Musalman Ka Quran se Talluq rakhna kitna Ahem Hai?
मुसलमान उम्मत और कुरआन
यह चीज़ इस बात को ज़ाहिर करने के लिए बिलकुल काफ़ी है।कि इस उम्मत को बनाने वाले ख़ालिक के नज़दीक, इस उम्मत की पूरी ज़िन्दगी जिस चीज़ से जुड़ी है, *वह अल्लाह की किताब कुरआन है।
इस उम्मत की पहचान, इसका वुजूद, इसकी ज़िन्दगी, इसका उरूजो-ज़वाल ( उत्थान- पतन), इसकी बलन्दी और पस्ती,इसकी ख़ुशहालीऔर बदहाली, सबका सब इसी किताब के साथ जुड़ा है। यह कोई शायरी या अफ़साना नहीं है बल्कि मुसलमानों का चौदह सौ साल का इतिहास इस बात पर गवाह है। यही हक़ीक़त उनकी ज़िन्दगी की सबसे बड़ी हक़ीक़त है। मुसलमानों ने जब-जब इस किताब से रिश्ता जोड़ा उन्होंने दुनिया में इज़्ज़त पाई, सरबलन्द और ख़ुशहाल हुए। और जब-जब इस किताब से रिश्ता तोड़ा तो वे दुनिया में ज़लील,रुसवा और मोहताज हुए।पहले दौर को देखिए या इसके बाद के आने वाले दौर को, इतिहास अपने आपको इसी तरह दुहराता रहा है। अल्लाह को इस बात से कोई दिलचस्पी नहीं कि दुनिया की हुकूमत अरबों के हाथ में आए या तुर्कों के हाथ में चली जाए।इख़तियार अब्बासियों के हाथ में हो या उसमानियों के हाथ में अल्लाह की सल्तनत में इस बात की
कोई अहमियत हासिल नहीं। इसलिए कि जब क़ुरआन मजीद नाज़िल हुआ तो इख़तियार और हुकूमत के आने-जाने का यह अमल तो उस वक्त भी बराबर जारी था। अल्लाह ने क़ुरआन के साए में अगर कोई उम्मत पैदा की तो केवल इसलिए कि वह अपने ख़ालिक और मालिक के पैग़ाम पर चलने वालीऔर उसकी हिदायतों को माननेवाली बने।कुरआन की अमानतदार बने और इसकी डाली हुई ज़िम्मेदारियों को अदा करे। ख़ुद इसपर अमल करे और दुनिया के सामने इसकी गवाह बनकर खड़ी हो।
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