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Rakhail Rakhna Kiski Majboori hai Mard Ya Aurat ki?

Rakhail Rakhna Kiski Majboori hai Mard Ya Aurat ki
Kothe ki Tawaif Aur Live in Relationship ke rishte.
European Culture Aur Hamara Samaj

पहले के दौर में कोठे की तवायफ और आज कल की लिव इन रिलेशनशिप वाली दोस्ती में क्या फर्क है?
रखैल (concubine) रखना किसकी मजबूरी है, मर्द की या औरत की ?
मेरी प्यारी बहनों निकाह करके किसी की बीवी बनो, चौथी और पांचवीं गर्लफ्रेंड नहीं
मुझे जज का तो नाम याद नहीं लेकिन अभी कुछ दिन पहले हालिया बयान किसी जज ने दिया है की 'Live in Relationship' में रहने वाली औरतेंं किसी रखैल की तरह ही हैं।

जज के इस बयान की हमेशा की तरह - कम्युनिस्ट, उदारवादी , साम्यवादी , बुद्धिजीवी समुदाय से आने वाले लोगों ने आलोचना शुरू कर दी और जज साहब को माफ़ी मांगने को कहा। पर मुझे लगता है किसी जज ने यह सीधी बात कहने की हिम्मत तो दिखाई।

जिनके आंगन में गरीबी का शजर हो
उनकी हर बात बुरी लगती है ज़माने को.

किसी भी किस्म की ज़िद्द को मानवाधिकार, उदारवाद, आजाद ख्याल, अभियुक्तों की आजादी और आज़ादी के झंडे तले नहीं लाया जा सकता। एक तरफ पश्चिमी देश अपनी इसी कुव्यवस्था से परेशान हैं, वहाँ का युवा आज पूरी तरह सेक्स , भोग , विलास , नशा आदि में लिप्त होकर पूरे सामाजिक व्यवस्था को गंदा कर चुका है। हालात यह है के वाहा का नवजवान नसल अपने ही पैरों पे कुल्हाड़ी मार रहा है, वह लोग बाप बनने के काबिल ही नहीं रहते , उमर से पहले ही बालिग होकर बुढ़ापे की उम्र में पहुंच जाते है, वाहा के लोग एड्स और इस किस्म की खतरनाक बीमारियों में मुब्तिला है, वह एक तरफ तो औरतों कि आजादी की बात करते है, के औरतों को भी बराबर हक मिलना चाहिए, उसे भी मर्दों के तरह हर कामो में शामिल किया जाना चाहिए, हा सही है के शामिल किया जाना चाहिए हम भी इस बात की वकालत करते है मगर अब इतना भी काम में नहीं शामिल कर लिया जाए के हमें नौकर की जरूरत ही नहीं परे बल्कि वह सारी कामे खुद कर ले, यानी के यूरोपीय वाले इतने आजाद ख्याल और औरतों के हक की बात करते है के वह नौकर के बदले महिलाओं से ही काम करा लिया करते है, रही कपड़े की बात तो जिस तरह कोई अपनी मर्जी से जीन्स, शर्ट, स्कर्ट वगैरह पहनती है उसी तरह यहां की बहुत सारी औरतें ( लड़कियां) सलवार सूट और साड़ी पहनती है, उसकी आपको फिक्र करने की जरूरत नहीं है और ना आपको हमदर्दी दिखाने की, अगर इतना ही फिक्र है तो जरा यूरोप की बरबादी पे एक नजर डाल लीजिए, एक तरफ  आबादी को कंट्रोल (Population Control/Family planning) करने की बात कही जा रही दूसरी तरफ निकोलस मादुरो जैसी शख्सियत यह कह रहे है के यहां की औरतों को ज्यादा से ज्यादा बच्चे पैदा करने की जरूरत है ताकि हमारे देश में युवा पीढ़ी की तादाद बढ़े, नई नस्ल आएगी जिससे हमारे देश की नेतृत्व क्षमता और बढ़ेगी, आखिर जब नई नस्ल आएगी ही नहीं तो फिर देश को कौन चलाएगा? रोबोट और परमाणु बम

यूरोपीय देशों की हालत बदतर होती जा रही है। न वहां कोई शादी कर रहा है , न कोई बच्चे पैदा कर रहा है , केवल सेक्स और नशा में लिप्त है। वह लोग एक तरफ यह कहते है के औरत को वस्तु मात्र नहीं समझना चाहिए, वह कोई मशीन नहीं है बच्चा पैदा करने की, लेकिन देखने से तो यही ज़ाहिर होता है के आप वस्तु मात्र नहीं एक खरीदी हुई सामान जरूर समझते है, इनके यह सिर्फ और सिर्फ औरतों को अपनी हवस पूरी करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है, उससे सिर्फ अपनी प्यास बुझाया जाता है, जिस्मानी सुकून हासिल  किए जाते है, जीनसी ख्वाहिशात पूरी होने के बाद अब वह कोई काम की नहीं रहती। यानी के इस्तेमाल करो और फेको (Use And Throw) जैसा प्रिंसिपल लागू होता है। दुनिया में सबसे ज्यादा ब्लू फिल्म (Blue Film/Porn Video) यूरोप मै ही तैयार होता है, पैसे देकर उससे अपनी जरूरत पूरी करके वीडियो बनाकर और फिर अपना बिज़नेस को प्रोमोट किया जाता है, यूरोप वालो का यह एक धंधा है, सेक्स वीडियो बनाकर नंगे होकर मर्द - औरत वह सारे काम करते है जिसके बारे में  हमारे यहां बात करने से लोग बचते है और देखना और दिखाना तो दूर की बात मगर अफसोस की बात है के यहां भी अब लोग इसे बरी तादाद में देखने लग गए है.... जो भी हो इसके बारे में आप को बताने की जरूरत नहीं के वीडियो क्यों बनाते है और कैसे उससे पैसे कमाते है?  इससे तो यही मालूम पड़ता है के  यूरोप वाले किस मकसद से औरतों कि आजादी की बात करते है, वीडियो बनाते वक़्त और उससे पहले फिर उसके बाद उसमे काम करने वाली सेक्स वर्कर को कैसे कैसे हालात से गुजरना पड़ता है, कितने सितम ढाए जाते है, कितना ज़ुल्म व ज्यादती का शिकार होती है वह वहीं जानती है मगर उसे महिलाओं के अधिकारों का हनन नहीं कह सकते, उसमे औरत की इज्जत कहा गायब हो जाती है?
क्या उस वर्कर के फीलिंग का आप अंदाजा लगा सकते है?
क्या उस औरत के जज्बात, एहसासात का ख्याल महिला संगठन वाले रखते भी होंगे या नहीं?
क्या यही नारीवादी, नारी सशक्तिकरण और महिला अधिकार है?
क्या यूरोप में महिलाओं के सारे अधिकार मिल चुके है और वह पूरे इज्जत के साथ अपनी ज़िन्दगी गुज़ार रही है, उसके साथ कोई ज्यादती या जिंसी तशादुद नहीं नहीं हो रहा है?
जब यूरोप वाले अपने यहां की औरतों को सारे हुकूक दे चुके है तो अब क्या बाकी रह गया है देना?
क्या हम उसे यौन उत्पीड़न, यौन हिंसा या बलात्कार कह सकते है?
अगर आपके किसी अपनों के साथ होगा तो क्या आप उसे आजादी कहेंगे?
अगर यह हमारे यहां भी आम हो गया तो क्या हम सब इसे नारीवाद की जीत कहेंगे?

संभाल ऐ बिनते हव्वा अपने शोख मिजाज़ को
हम ने सरे बाजार हुस्न को नीलाम होते देखा है।

हालत ये है की सरकारों को शादी और बच्चा पैदा करने के लिए छुट्टी देने और नाना प्रकार के प्रोत्साहन कार्यक्रम चलाने पड़ रहे हैं।
कई यूरोपीय देशों की आबादी बूढी हो चुकी है युवा हैं ही नहीं और जो हैं वे सेक्स और नशे से मुक्त नहीं हो पा रहे।
क्या भारत भी उन्हीं के रास्ते पर चलेगा ? कम्युनिस्ट तो यही चाहते हैं की भारत का सामाजिक ढांचा बेकार हो जाय इसलिए वे कोर्ट और अदालतों में मानवाधिकार व आज़ादी के सम्बन्ध में याचिकाएं डालकर लोगों को उल्लू बनाते रहते हैं।

यहाँ मैं औरतों के लिए भी कठोर शब्द इस्तेमाल करूँगा -
नारी सदैव भोग और विलासिता की वस्तु बनकर रही है। चाहे वह राजाओं-महाराजाओं के दौर में हो या फिर आज के मॉडर्न जमाने में। औरत सिर्फ मर्दों के विलासिता की वस्तु ही है क्योंकि यही उसने स्वीकार कर लिया है। अगर नारी में स्वाभिमान होता तो कभी "रखैल" शब्द का जन्म ही नहीं होता।

आज़ादी के नाम पर भी नारी केवल पुरुषों के वशीभूत ही है। आप पश्चिमी देशों में नारी की दशा जरा देखें तो सही, क्या हालत है उसकी।

रिलेशनशिप बना > शारीरिक संबंध कायम हुए > बच्चा हुआ >

कुछ साल में रिश्ते टूट गए > बच्चे अनाथ हुए > सरकार ने कुछ साल जिम्मेदारी ली >

उसके बाद ?

उसके बाद यह की, अगर पैदा हुई औलाद लड़की थी तो वह मजबूर है कुछ भी करने को। क्योंकि वहाँ की सरकार आजीवन गुजाराभत्ता नहीं देती। नतीजा ये निकला की वह लड़की अब अपने गुजारे के लिए किसी लाइसेंस प्राप्त क्लब में 'स्ट्रिप डांसर' बन गयी। जहाँ जिस्म की नुमाईश पर कुछ पैसे मिल जाते हैं। विदेशों में यह एक चक्र सा बन गया है। शादी न करने की वजह से आधे से ज्यादा मर्द "गे" और औरते "लेस्बियन" हो चुकी हैं।

** भारत में एक बाप अपनी बेटी को पढ़ाता है लिखाता है , उसके लिए उचित जीवनसाथी का चुनाव करता है तो क्या वह पाप कर रहा है ?

- विदेशों में तरस रहे हैं बच्चे कि काश बाप आकर मिल लेता , माँ मिल लेती।

- वहाँ बच्चे अच्छे कपड़े, खाने और अपनी इच्छापूर्ति के लिए तरस रहे हैं।

- तरसते हैं अपनों के प्यार के लिए।

- विदेशों में युवाओं का जीवन बेहद तनहा और अकेला है। कई लोग अकेले ज़िन्दगी गुजारते गुजारते परेशान हो जाते है इतने बोर होते है के आखिर में उसे खुदकुशी (Suicide) करना पड़ता है।

1 - वैवाहिक स्त्री पुरुष जिम्मेदारियों के निर्वाह को सर्वोपरि मानते हैं जो सदियों से प्रभावी है। एक दूसरे के सुख दुख में हमेशा शामिल रहते है, अपनी शरीक हयात  की खुशी के लिए हर मुमकिन कोशिश करता है ताकि वह परेशान और नाराज़ ना हो। अगर यह मोहब्बत नहीं है तो क्या वह ब्लू फिल्म के स्टार जैसा सुलूक करना और जानवरों के जैसा प्यास बुझाने के लिए टूट परना प्यार है?

2 - लिव इन रिश्ते जिम्मेदारियों के अधीन न होकर आज़ादी के पिलर पर खड़े होते हैं जो बहुत आसानी से गिर जाता है। और जब हम अपने मां बाप, भाई बहन से चुपके चुपके ऐसे रिश्ते कायेम करते है तो फिर इसकी जिम्मेदारी हमे ही लेनी पड़ती है, याद रखे दुनिया में कोई भी हमे देखने के बाद, जब हम जवान हो जाते है तब हमारी तस्वीरें देख कर सेलक्ट किया जाता है.... लेकिन दुनिया में एक ऐसी हस्ती है जो हमारी पैदाइश से यानी दुनिया में आने से पहले से हमसे मोहब्बत करती थी वह भी बिना किसी शक्ल व सूरत देखे, बगैर किसी फायदे और नुकसान को देखे हमसे बे पनाह मोहब्बत करती थी वह है हमारी मां     और उसे ही हम ललकारते है सिर्फ अपने आशिक / माशूका के साथ जाने के लिए, अरे उसे छोड कर अपनी आस्ना के पास जा रहे हो.. अगर उससे वाकई मोहब्बत करते हो तो शादी करो लेकिन इस तरह से छोर कर भागना एक औलाद को जेब नहीं देता। निकाह कीजिए और फिर घर लाइए लेकिन नहीं यहां तो शादी वाली बात है ही नहीं अरे यार बस यूंही टाइम पास चल रहा है मतलब यह वक्त गुजारने के लिए है।

यहाँ आज अपने देश की लड़कियां या लड़के अपने बाप को अदालत में घसीट दे रही हैं अपने किसी मजनू आशिक या माशूका के लिए। कई मर्तबा तो यह इश्क़ लराने वाले और मोहब्बत के दावे करने वाले अपने मां बाप की जान तक ले लेते है, आए दिन हमे अखबारों में पढ़ने को मिलता है। कैसी मोहब्बत है के जिसने हमे इस दुनिया में चलना सिखाया, हमे उंगली पकड़ कर अच्छे और बुरे की तमीज सिखाया वहीं आज हमारा सबसे बड़ा दुश्मन बन गया है। हम रिश्ते जोड़ने चले है एक रिश्ते को तोर कर
हम अपने वजूद को ही मिटाने पे लगे हुए है।
क्या यही होगा आज़ाद समाज का स्वरुप ?

बातें बहुत हैं कहने को लेकिन कितना लिखा जाय। मैं नारी की आज़ादी का समर्थक हूँ लेकिन नारी आज़ाद होकर पुनः किसी मर्द की अधीनता न ग्रहण करे।
ख्वाहिशात तो सबके दिल में होती है और सब उसकी तकमिल चाहते है ...  लेकिन देखना यह परता है के उन तक रसाई के लिए कौन सा रास्ता इख्तियार किया जाता है, उसी रास्ते के इंतेखाब में तो इंसान का पता चलता है के वह सोना है या कोयला
यदि आज की लड़कियां आज़ादी का मकसद सिर्फ अपने माँ बाप के कायदे कानून से अलग रहना तक समझती है तो वह ये जान लें उनका शोषण होना तय है। ये हमेशा याद रखें कि - कानून, वकील, जज और अदालतें किसी का भरण पोषण नहीं करती और न ही ये हमें कोई सहारा देती हैं।

न 'रखैल' किसी की मजबूरी है और ना ही 'लिव इन रिलेशनशिप' लेकिन यह दोनों बातें एक बिंदु पर एक समान प्रतीत होती हैं। मर्द हो या औरत दोनों को ही इस गंदे हरकत से दूर रहना चाहिए।

यदि आप किसी से मोहब्बत करती या करते हैं तो शादी करके एक नई ज़िन्दगी का आगाज करें।

आज़ाद होकर नहीं, बल्कि हुस्न ए सुलूक के साथ ज़िम्मेदारी निभाए पूरी ज़िन्दगी।

इश्क़ में दो का अदद आखिरी होता है
तीन की जलन आप नहीं समझेंगे

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3 comments:

  1. I against Liv in relationship

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