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Quran Majeed Tarjuma Hindi. (Para 05)

Badkari Se Door raho aur Pakija Rasta Ikhtiyar karo.
Quran Majeed Tarjuma Hindi Para 05
पारा – 5, ख़ुलासा क़ुरआन

क़ुरआन-ए-मजीद का पैग़ामे अमल
डॉ. मुहिउद्दीन ग़ाज़ी

बदकारी से दूर रहो,
निकाह (शादी) का पाकीज़ा रास्ता इख़्तियार करो,
अगर किसी मुस्लिम आज़ाद औरत से निकाह की ताक़त न रखते हो तो
किसी मुस्लिम बांदी से निकाह कर लो
लेकिन कभी बेहयाई के क़रीब न जाओ।

आपस में एक-दूसरे का माल नाजायज़ तरीक़ों से मत खाओ।

आपसी रजामंदी वाली तिजारत को बढ़ावा दो।

एक-दूसरे की जान का एहतिराम (सम्मान) करो।

औरतों को चाहिए कि वह नेक और इताअत-गुज़ार (फ़रमाँबरदार) हों,
और मर्दों की ग़ैर-मौजूदगी में अपनी इज़्ज़त व इस्मत (पाकदामनी) की हिफाज़त करने वाली बनें।

बीवी का रवैया सही न हो तो
उसकी इस्लाह (सुधार) की मुनासिब तदबीरें इख़्तियार करो।

शौहर-बीवी में इख़्तिलाफ़ (अनबन) बढ़ जाए तो
दूसरे लोग भी सूरतेहाल को बेहतर बनाने में तआवुन (मदद) करें।

अल्लाह की बंदगी करो,
उसके साथ किसी को शरीक न ठहराओ।

माँ-बाप के साथ अच्छा बर्ताव करो,
रिश्तेदारों,
यतीमों,
मिसकीनों,
रिश्तेदार पड़ोसियों,
अजनबी पड़ोसियों,
बग़ल के साथियों,
मुसाफ़िरों
और जो तुम्हारी मिल्कियत में हों
उनके साथ बेहतर तरीक़े से पेश आओ।

अल्लाह से सरकशी (बग़ावत) न करो।

न ख़ुद हक़ को छिपाओ
और न दूसरों को हक़ को छिपाने पर उभारो।

अल्लाह ने तुम्हें जो इल्म दिया है,
उसका एलान करो।

कुफ़्र और नाशुक्री का तरीक़ा मत इख़्तियार करो।

लोगों को दिखाने के लिए न ख़र्च करो।

नशा मत करो
और नमाज़ के लिए पूरे होश व हवास के साथ आओ।

ग़ुस्ल वाजिब (अनिवार्य) हो जाए
तो ग़ुस्ल करो
और अगर बीमार हो
या पानी मयस्सर (उपलब्ध) नहीं हो
तो तयम्मुम (पाक-साफ़ मिट्टी से अपने चेहरे और हाथों पर मलना) कर लो।

यहूदियों और ईसाईयों की तरह दीन में तहरीफ़ (तबदीली) का ख़याल दिल में न लाओ।

न दीन से बेज़ारी का इज़हार करो
न दीन का मज़ाक़ उड़ाओ।

इताअत और फ़रमाँबरदारी का सच्चा नमूना बन जाओ।

शिर्क बहुत बड़ा गुनाह है।
सबसे बड़ा शिर्क अल्लाह की भेजी हुई शरीयत के मुक़ाबले में दूसरे क़ानूनों की पैरवी करना है।
इस शिर्क को अल्लाह कभी माफ़ नहीं करेगा।

अपनी पाकीज़गी का ख़ुद दम न भरो,
संजीदगी (गंभीरता) से अपना जायज़ा लो कि
क्या अल्लाह के यहाँ तुम्हें पाकीज़ा क़रार दिया जाएगा।

जिसका जो हक़ है
वह उसके हवाले कर दो,
और जब लोगों के दरमियान फ़ैसला करो
तो अद्ल (इंसाफ़) के साथ करो।

अल्लाह की नसीहतों की क़द्र करो।

तागूत
और तागूत की शरीयत को तस्लीम न करो।

अल्लाह और अल्लाह के दीन पर ईमान लाओ।

इताअत (फ़रमाँबरदारी ) करो,
अल्लाह की
और इताअत करो रसूल की,
और उन लोगों की
जो तुम में साहिब-ए-अम्र हों।

फिर अगर तुम्हारे दरम्यान किसी मामले में निज़ाअ (विवाद) हो जाए,
तो उसे अल्लाह और रसूल की तरफ़ रुजू (पलटो) करो।
अपने मामलात का फ़ैसला कराने के लिए तागूत के पास मत जाओ।

अगर तुम मोमिन हो
तो अपने आपसी इख़्तिलाफ़ात में रसूल का फ़ैसला मानो,
और रसूल जो फैसला करे
उस पर अपने दिलों में कोई तंगी महसूस न करो,
रसूल के फ़ैसले के आगे सरे-तस्लीम ख़म कर दो।

अल्लाह और रसूल की इताअत करो।
अल्लाह तुम्हें उन लोगों का साथ अता करेगा
जिन पर उसने ईनाम फ़रमाया है,
यानी अंबिया और सिद्दिक़ीन और शहीदों और सालहीन (नेककारों) का साथ।
तुम ऐसे लोगों की रिफ़ाक़त (साथ) की तमन्ना दिल में बसाओ
और इसके लिए कोशिशें करो।

बातिल से मुक़ाबले के लिए हर वक़्त तैयार रहो,
जब हुक्म हो तो निकल पड़ो
और जी (मन) मत चुराओ,
उन लोगों में शामिल हो जाओ
जिन्होंने आख़िरत के लिए दुनिया की ज़िंदगी को क़ुरबान कर दिया।

तुम अल्लाह के लिए उन बेबस मर्दों,
औरतों और बच्चों की ख़ातिर जंग करो
जो कमज़ोर पाकर दबा लिए गए हैं,
और अल्लाह से अपनी बस्ती के ज़ालिमों के ख़िलाफ़ फ़रयाद कर रहे हैं।

तुम्हें अल्लाह के रास्ते में जंग करनी है,
जब जंग फ़र्ज़ हो जाए तो लोगों से मत डरो,
अल्लाह के फ़ैसले पर ऐतराज़ मत करो,
मौत से मत डरो,
तुम मौत से कहीं नहीं भाग सकते हो,
दुनिया की ज़िंदगी बहुत कम है
और आख़िरत बहुत बेहतर है।
आख़िरत की ख़ातिर दुनिया को क़ुरबान कर देने में ही बेहतरी है।

अपनी ताक़त भलाई के लिए इस्तेमाल करो,
बुराई को ताक़त न पहुँचाओ।

जब कोई तुम्हें सलाम करे
तो उसको
उससे बेहतर तरीक़े से जवाब दो
या कम से कम उसी तरह जवाब दो।

मुनाफ़िक़ों को दोस्त न बनाओ,
उनकी मीठी-मीठी बातों से धोखा न खाओ।

किसी मोमिन पर हाथ न उठाओ,
न किसी ऐसे शख़्स पर हाथ उठाओ,
जिसकी क़ौम से तुम्हारा मुआहिदा (समझौता) हो,
और अगर ग़लती से कोई क़त्ल हो जाए
तो उसका ख़ूनबहा (जुर्माना) अदा करो।

ग़लती से क़त्ल हो जाने की सूरत में एक मोमिन ग़ुलाम भी आज़ाद करो,
ग़ुलाम न हो
तो दो महीने लगातार रोज़े रखो।

जानबूझ कर किसी मोमिन को क़त्ल करने का ख़याल दिल में न लाओ,
यह बहुत संगीन गुनाह है,
जिसकी सज़ा जहन्नम है,
हमेशा रहने वाली जहन्नम।

हालत ए जंग में भी कोई सलाम करे
तो उसे झूठा समझकर उस पर हाथ मत उठाओ।

जब अल्लाह की राह में जान व माल पेश करने का हुक्म हो
तो बैठे मत रहो,

आगे बढ़ो
और जब हिजरत का हुक्म हो
तो पसोपेश न करो
और हिजरत के लिए निकल पड़ो।

दुश्मन का ख़तरा हो,
उस सूरत में भी नमाज़ ज़रूर पढ़ो।

साथ ही ऐसी तरकीब करो कि
एक गिरोह नमाज़ पढ़े
और एक गिरोह दुश्मन के सामने रहे।

अल्लाह तआला जो समझबूझ अता करे
उसकी रोशनी में अल्लाह की किताब के मुताबिक़ फ़ैसला करो।

ख़यानत करने वाले
और ग़लत पेशा लोगों के साथ
कोई रियायत न करो
न उन के साथ हमदर्दी रखो।

कोई गुनाह कर बैठो
तो फ़ौरन ख़ुदा से माफ़ी माँगो।

गुनाहों को अपनी ज़िंदगी की कमाई मत बनाओ।

ख़ुद, ग़लती या गुनाह करके
दूसरे बेगुनाह के सर न थोप दो,
यह बेहद संगीन हरकत है।

लोगों को
सदक़ा ओ ख़ैरात
और नेकी के कामों की तलक़ीन करो
और लोगों के बिगड़े ताल्लुक़ात बनाने की कोशिश करो।

इन कामों के लिए सरगोशी बेहतर हो
तो सरगोशी करो,
इसके अलावा सरगोशी से परहेज़ करो।

रसूल की मुख़ालिफ़त करना
और अहले ईमान का तरीक़ा छोड़ कर
दूसरे रास्ते इख़्तियार करना
आख़िरत के लिए बहुत ख़तरनाक है,
इससे ख़बरदार रहो
और शिर्क से बहुत दूर रहो,
शिर्क एक नाक़ाबिले माफ़ी जुर्म है।

मर्द हो या औरत,
जन्नत में जाने के लिए
ईमान और नेक अमल ज़रूरी है।
इसलिए अपने ईमान की हिफाज़त करो,
बुरे कामों से बचो
और अच्छे आमाल करते रहो,
आरज़ूओं के महल मत बनाओ।

अपना रुख़ अल्लाह की तरफ़ करो
और नेकी व तक़वा (परहेज़गारी) की ज़िंदगी बसर करो।

इब्राहीम जिस तरह अल्लाह की तरफ़ यकसू (एकाग्रचित्त) थे
वैसे ही तुम भी यकसू होकर
इब्राहीम के तरीक़े पर चलो।

यतीम बच्चों का हक़ न मारो
या उनके साथ कोई ज़्यादती न करो।
कमज़ोर यतीम बच्चों के हुक़ूक़ (अधिकार) अदा करो।
यतीमों के साथ इंसाफ़ करो
और भलाई के कामों में आगे बढ़ो।

शौहर और बीवी में इख़्तिलाफ़ हो
तो आपस में सुलह करने में पहल करो
और एहसान का तरीक़ा इख़्तियार करो।
ख़ुदातरसी से काम लो
ख़ुदग़र्ज़ी नफ़्स में रची-बसी है
इसलिए इस बात से होशियार रहो।

ऐसा कोई तरीक़ा न इख़्तियार करो कि
तुम्हारी कोई बीवी मुअल्ल्क़ (अधर में लटक कर) रह जाए।
अलगाव की नौबत आए
तो भी अल्लाह की बेपनाह मेहरबानी से पुरउम्मीद रहो।

ख़ुदा के वास्ते इंसाफ़ के अलंबरदार
और उसके गवाह बनो
चाहें इसकी वजह से
कितना ही नुक़सान उठाना पड़े।

अल्लाह का इनकार करने वालों को अपना में दोस्त न बनाओ।

मुनाफ़िक़त (कपट) से अपना दामन बचाओ
और अल्लाह का दामन थाम लो।
ख़ालिस अल्लाह की इताअत को अपना तरीक़ा बना लो।

अनुवाद:- तय्यब अहमद

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