Pareshani Aur Musibat me Padhi Jane wali dua.
ﺑِﺴْـــــــــــــﻢِﷲِالرَّحْمٰنِﺍلرَّﺣِﻴﻢ
नबी करीम ﷺ ने फ़रमाया: जब भी किसी को कोई फ़िक्र व ग़म और रंज-ओ-मलाल लाहक़ हो और वो ये दुआ पढ़े:
"अल्लाह हुम्म्मा इन्नी अब्दुका, व अब्नु अब्दिक, व अब्नु अमतिक, नासियति बियदिक, माज़िन फिय्या हुकमुक, अदलुन फिय्या कज़ाउक, असअलुका बिकुल्लिसमिन हुवालका सम्मैता बिहीनफसक, औ अनज़लतहु फी किताबिक, औ अल्लमतहु अहदिन मिन खलकिक, औ असतासरता बिहि फी इल्मिल गैबि इन्दक, अन तज अलल कुराना रबिया कलबी, व नूरा सदरी, व ज़िला हुज़नी, व ज़हाबा हम्मी"_
*तरजुमा: (ए अल्लाह मैं तेरा बंदा हूँ, तेरे बंदे का बेटा हूँ और तेरी बंदी का बेटा हूँ, मेरी पेशानी तेरे हाथ में है, मेरे बारे में तेरा हुक्म-जारी है और मेरे बारे में तेरा फ़ैसला अद्ल वाला है, मैं तुझसे तेरे हर उस ख़ास नाम के साथ सवाल करता हूँ जो तूने ख़ुद अपना नाम रखा है या उसे अपनी किताब में नाज़िल किया है या अपनी मख़लूक़ में से किसी को सिखलाया है या इल्मे ग़ैब में उसे अपने पास रखने को तर्जीह दी है कि तू क़ुरआन को मेरे दिल की बहार और मेरे सीने का नूर और मेरे ग़म को दूर करने वाला और मेरे फ़िक्र को ले जाने वाला बना दे)।
तो अल्लाह ताला उसके फ़िक्र-ओ-ग़म और रंज-ओ-मलाल को दूर करके उस के बदले वसिअत और कुशादगी अता करेगा।
कहा गया ए अल्लाह के रसूल क्या हम ये कलिमात सीख ना लें? आपﷺ ने फ़रमाया क्यों नहीं, हर सुनने वाले को याद कर लेने चाहिऐं।
📚 Musnad Ahmed: jild 5, hadith no. 5576
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