*QUNOOT E NAZILAH*
*Bismillahirrahmanirraheem*
*Jang, museebat aur ghalba e dushman k waqt dua e qunoot padhni chahiye, ise qunoot e nazilah kehte hai.*
*Ameer ul Momineen Hazrat Umar bin Khattab Razi Allahu Anhu fajar ki namaz mein (ruku k baad) qunoot karte aur ye dua padhte they:*
*"ALLAHUM MAGHFIR LANA WA LIL MOMINEENA WAL MOMINAATI WAL MUSLIMEENA WAL MUSLIMAATI WA ALLIFA BAINA QULOOBIHIM WA ASLIH ZAATA BAINIHIM WAN SURHUM ALA ADOOWIKA WA ADOOWIHIM ALLAHUMMAL AN KAFARATA AHLIL KITABIL LAZEENA YA SUDDOONA AN SABEELIKA WA YUKAZZIBOONA RUSULAKA YU QATILOONA AOLIYA'AKA ALLAHUMMA KHALIF BAINA KALIMATIHIM WA ZALZIL AQDAMAHUM WA ANZIL BIHIM BAASAKAL LAZI LA TARUDDUHU ANIL QAUMIL MUJRIMEEN"*
*"Ae Allah! hamey aur tamaam momin mardo, momin aurato, musalman mardo aur musalman aurato ko baksh de aur unke dilo mein ulfat daal de, unki (bahami) islaah farma, apne aur unke dushmano k khilaf unki madad farma, Ae Allah! kafiro ko apni rahmat se door kar jo teri raah se rookte, tere rasoolo ko jhutlaate aur tere dosto se ladte hai, Ae Allah! unke darmiyaan phoot daal de unke qadam daghmaga de aur un par apna wo azaab utaar jise tu mujrim qaum se nahi taala karta". (Behaqui 2:210, 211, Imam Behaqui ne ise sahih kaha)*
*Rasool Allah Sallallahu Alaihi Wa Sallam jab kisi par bad-dua ya naik dua ka iraadah farmate to aakhiri rakaat k ruku k baad "SAMI ALLAHULIMAN HAMIDAH RABBANA LAKAL HAMD" kehne k baad dua farmate. (Sahih Bukhari Kitabut Tafseer Hadees no. 4560, Sahih Muslim Kitabul Masajid Hadees no. 675)*
*Rasool Allah Sallallahu Alaihi Wa Sallam ne ek maah tak paancho namazo mein ruku k baad qunoot e nazilah padhi aur Sahaba Razi Allahu Anhum aapke pichey aameen kehte they. (Abu Dawood Kitabul Witr Hadees no. 1443, ise Imam Hakim, Hafiz Zahbi aur Imam Ibne Khuzaima ne sahih kaha)
*बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहीम*
*क़ुनूत ए नाज़लह*
कुफ्फार के साथ जंग ,मुसलमानों पर आमदह मुसीबत और ग़ल्बा ए कुफ्फार के वक़्त दुआ ए क़ुनूत पढ़नी चाहिए इसे क़ुनूत ए नाज़लह कहते है
◼ नबी सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से क़ुनूत ए नाज़लह 1 महीने तक पढ़ने की दलील-सुनन अबू दाऊद 1443,हसन
◼ क़ुनूत ए नाज़लह *आखिरी रकाअत मे रुकूअ के बअद,समियल्लाहु लिमन् हमिदह,रब्बना वलकल् हम्द,कहने के बाद ऊँची आवाज़ से पढ़ें* -सही बुखारी 4559,4560
◼ क़ुनूत ए नाज़लह मे *दोनों हाथ उठाकर दुआ* करना चाहिए ( मुस्नद अहमद, 12402, सही )
◼क़ुनूत ए नाज़लह पाँचों नमाज़ों मे करे और *मुक़्तदी भी आमीन कहें* - सुनन अबू दाऊद 1443, हसन
नोट-सिर्री व जेहरी दोनों तरह की नमाज़ों मे क़ुनूत ए नाज़लह फर्ज़ नमाज़ों की आखिरी रकअत मे रुकूअ के बअद बुलन्द आवाज़ से इमाम दोनों हाथ उठाकर पढ़ेगा और मुक़्तदी भी दोनों हाथ उठाकर आमीन कहेंगे।
◼ क़ुनूत ए नाज़लह मे जिसके लिए दुआ या बद्दुआ की जा रही है उसका नाम लेना जायज़ है-सही बुखारी 804,675
◼ क़ुनूत ए नाज़लह की दुआ - *(अल्लाहुम्मग़्फिर् लना वलिल् मुअमिनीना वल् मुअमिनाति वल् मुस्लिमीना वल् मुस्लिमाति वअल्लिफ बैना क़ुलूबिहिम् , वअस्लिह ज़ाता बैनिहिम् वन्सुर्हुम अला अदुव्विका वअदुव्विहिम् , अल्लाहुम्मल् अन् कफरता अहलिल् किताबिल् लज़ीना यसुद्दूना अन् सबीलिका वयुकज़्ज़िबूना रुसुलका वयुक़ातिलूना औलियाअका , अल्लाहुम्मा खालिफ बैना कलिमतिहिम वज़ल्ज़िल् अक़्दामहुम वअन्ज़िल् बिहिम बअसकल्लज़ी ला तरुद्दुहू अनिल् क़ौमिल् मुज्रिमीन्)*
( ऐ अल्लाह ! हमें और तमाम मोमिन मर्दों, मोमिन औरतो, मुसलमान मर्दों और मुसलमान औरतों को बख्श दे और उनके दिलों मे उलफत डाल दे, उनकी बाहेमी इस्लाह फरमा दे, अपने और उनके दुशमनों पर इनकी मदद फरमा,इलाही ! अहले किताब के काफिरों पर अपनी लअनत फरमा जो तेरी राह से रोकते,तेरे रसूलों को झुठलाते और तेरे दोस्तों से लड़ते है , इलाही ! इनके दरम्यान फूट डाल दे ,इनके क़दम डगमगा दे और इन पर अपना वह अज़ाब उतार जिसे तू मुजरिम क़ौम से नहीं टाला करता)
(सुननुल्कुब्रा लिल बेहकी हदीस नम्बर 3143, सही)
◼ अब्दुल्लाह बिन उमर और अब्दुल्लाह बिन ज़ुबैर रज़ियल्लाहो तआला अन्हुम, दुआ करने के बाद अपनी हथेलियाँ चेहरे पर फेरते थे -अल् आदाबुल् मुफ्रिद लिल इमाम बुखारी हदीस नम्बर 609,ज़ईफ
{ याद रहे कि दुआ के बअद चेहरे पर हाथ फेरने के मुताल्लुक़ कोई सही हदीस मौजूद नहीं , इनके मुताल्लुक़ जितनी रिवायत मरवी है वह सब की सब ज़ईफ हैं जो क़ाबिले हुज्जत नहीं ( अहकाम व मसायल , अज़ मुबश्शिर अहमद रब्बानी, सफह नम्बर 263 ) }
*कुछ मखसूस दुआएँ*
*(1)इन्ना लिल्लाहि वइन्ना इलैहि राजिऊन*, (सूरह अल् बक़रह सूरह नम्बर 2 आयत नम्बर 156 )
*अल्लाहुम्मा अजुरनी फी मुसीबति वअख्लिफ्ली खैरम्मन्हा*, {सही मुस्लिम किताबुल् जनायज़ हदीस नम्बर 918 (2126)}
*(2)रब्बना आतिना फिद्दुनिया हसनतव्वं वफिल्आखिरति हसनतव्वं वक़िना अज़ाबन्नार*, (सूरह अल् बक़रह आयत नम्बर 201)
*(3)रब्बना अफ्रिग़् अलैना सबरव्वं वषब्बित् अक़्दामना वन्सुर्ना अलल् क़ौमिल् काफिरीन्* , (सूरह अल् बक़रह आयत नम्बर 250)
*(4)रब्बना लातुआखिज़्ना इन्नसीना अव् अख्तअना,रब्बना वला तहमिल् अलैना इसरन् कमा हमल्तहू अलल्लज़ीना मिन् क़ब्लिना ,रब्बना वला तुहम्मिल्ना माला त़ाक़ता लना बिह्,वअफु अन्ना वग़्फिर् लना वरहम्ना अन्ता मौलाना फन्सुरना अलल् क़ौमिल् काफिरीन्* , (सूरह अल् बक़रह आयत नम्बर 286)
*(5) रब्बनग़्फिर्लना ज़ुनूबना वइसराफना फी अम्रिना वषब्बित् अक़्दामना वन्सुर्ना अलल् क़ौमिल् काफिरीन्* ,(सूरह आल् इमरान सूरह नम्बर 3 आयत नम्बर 147)
*(6) हस्बुनल्लाहु वनिअमल्वकील* , (सूरह आल इमरान आयत नम्बर 173)
*(7) रब्बना ला तज्अल्ना फित्नतल् लिल् क़ौमिज़् ज़ालिमीन(85)वनज्जिना बिरह्मतिका मिनल् क़ौमिल् काफिरीन्(86)* ,(सूरह यूनुस सूरह नम्बर 10 आयत नम्बर 85-86)
*(8) रब्बनत़्मिस् अला अम्वालिहिम्* ,(सूरह युनुस आयत नम्बर 88)
*(9) लाइलाहा इल्ला अन्ता सुबहानका इन्नी कुन्तु मिनज़् ज़ालिमीन्* , (सूरह अल् अम्बियाअ सूरह नम्बर 21 आयत नम्बर 87)
*(10) रब्बिह् कुम् बिल् हक़्क़ि* , (सूरह अल् अम्बियाअ आयत नम्बर 112)
*(11) रब्बी नज्जिनी मिनल् क़ौमिज़् ज़ालिमीन्* ,(सूरह अल् क़सस सूरह नम्बर 28 आयत नम्बर 21)
*(12) रब्बना ला तज्अल्ना फित्नतल् लिल्ज़ीना कफरू वग़्फिर् लना रब्बना इन्नका अन्तल् अज़ीज़ुल् हकीम्* , (सूरह अल् मुम्तहिनह सूरह नम्बर 60 आयत नम्बर 5)
*(13) वनज्जिनी मिनल् क़ौमिज़् ज़ालिमीन्* , (सूरह अत्तहरीम सूरह नम्बर 66 आयत नम्बर 11)
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