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Kya Ahlehadees Angrezon Ki Paidavar (Aulad) Hai? India me Islam Kab Aaya?

Kya Ahlehadees Angrezon Ki Paidavar (Aulad) Hai?

Deobandi,Barailwi ye Jamaate kb aayi
Ahlehadees Hindustan me kbse Hai?
*क्या "अहले हदीस" अंग्रेजों की पैदावार हैं??
एक तहक़ीकी जायेज़ा।"
नहीं बिल्कुल नहीं
"अहले हदीस" अंग्रेजों की पैदावार नहीं हैं।*
"अहले हदीस" और "जमीअत-ए-अहले हदीस" में क्या फर्क़ है?*
हिन्दुस्तान में *अहले हदीस* की एक *Organisation* है जिसका नाम *जमीअत-ए-अहले हदीस (JAH)* है जो December 1906 में अंग्रेजों के ज़माने में मुसलमानों के Problems को हल करने के लिए Ragister कराई गयी थी। इसको लेकर लोग समझते हैं और कहते हैं कि *अहले हदीस* अंग्रेजों की औलाद हैं। लेकिन *दारुल उलूम देवबंद* (31 मई 1866) और *बरेल्वी सुन्नी* (1856 - 1921) भी तो *अंग्रेजों* के ज़माने में ही वजूद में आये हैं। इन पर किसी की निगाह नहीं होती है, इनको कोई *अंग्रेजों* की औलाद नहीं कहता है।
*Note:-* हिन्दुस्तान में अंग्रेजों का ज़माना 1757 और 1947 के बीच रहा है।
*Note:-* अरबी में *जमीअत* का मतलब *Organization* होता है।
याद रहे *अहले हदीस* एक मनहज (Methodology) है और *जमीअत-ए-अहले हदीस* एक *Organization* है। दोनों में बहुत फर्क़ है।
हिन्दुस्तान में दूसरे और भी *Organization* हैं जैसे कि *जमात-ए-इस्लामी हिन्द (JIH)*, *SIO*, *GIO*, *दावत-ए-इस्लामी*, *MIM*, वगैरह।
Public को ये लगता है कि *जमीअत-ए-अहले हदीस (JAH)* का मतलब *अहले हदीस* होता है, जबकि ऐसा नहीं है।
*जमीअत-ए-अहले हदीस* एक *Organization* है और *अहले हदीस* एक *मनहजी (Methodological)* नाम है।
इस बात को लेकर सारे बर्रे सगीर ( *हिन्दुस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश और श्री लंका*) में ये आवाजें गूंज रही हैं कि *अहले हदीस* अँग्रेज की औलाद हैं।
हमको हमारे मुखालेफीन (विरोधी) लोगों से कहना है कि *आओ दलील के मैदान में, कौन हक़ पर है।* दलील के बजाये *गाली के अंदाज़* में किसी की बदनामी नहीं करनी चाहिये। मुकाबला हो तो इल्मी हो।
होना तो ऐसा था जो जमाअतें या फ़िरके इमामों के नाम पर और इस्लाम के किसी खास मसले को लेकर बनाई हैं उन पर *ऐतराजात* और *लान तान* होना चाहिए था लेकिन अपनी असलियत छुपाने के लिए एक *हक़ जमाअत* को बातिल उल्माओं ने निशाना बनाया ताकि अपनी चोरी न पकड़ी जाये और लोग *हक़* से दूर हो जाएँ लेकिन अपनी *दुकानें* बंद न होनी पायें।
आपको मालूम है कि *सल्फ़ स्वालेहीन* ने इमामों के नाम पर जो फिरके बनाये गए उन पर *ऊँगली* उठाई है लेकिन कभी *अहले हदीस* नाम पर किसी ने भी *ऊँगली* नहीं उठाई। लोगों से ये बात छुपायी गयी।
आज ये शर्फ़ हमको हासिल हो रहा है कि इस इल्ज़ाम का तहक़ीकि जवाब दिया जाये।
*"देवबंदी", "बरेल्वी", "तबलीगी जमाअत", "जमाअत-ए-इस्लामी हिन्द" और "कादियानी" ये सब कब वजूद में आये???*
लोग ये भूल गए कि अंग्रेजों के ज़माने में *जमीअत-ए-अहले हदीस* (1906) के साथ साथ *दारुल उलूम देवबंद* (31 मई 1866), *बरेल्वी* (1856 - 1921), *तबलीगी जमाअत* (1927), *जमाअत-ए-इस्लाम
ी हिन्द* (1941) और *कादियानी* (1835 - 1908) भी तो *Ragister* कराये गए।
*इनको अंग्रेजों की औलाद क्यों नहीं कहा जाता है????*
हिन्दुस्तान में अंग्रेजों के ज़माने से पहले *हन्फ़ियत* तो मौजूद थी लेकिन *देवबंदी हन्फी*, *बरेल्वी हन्फी* और *कादियानी* कहाँ मौजूद थे???
अंग्रेजों के ज़माने ही में तो *हन्फ़ियत* जो एक इमाम *अबू हनीफ़ा रह.* के मुक़ल्लेदीन हैं उसके टुकड़े-टुकड़े कराये गए और उस में से *देवबंदी, बरेल्वी, तब्लीगी, जमाअत-ए-इस्लामी हिन्द* और *कादियानी* पैदा हुए।
ये तो अंग्रेजों की एक साजिश थी कि उन्होंने *इमाम अहमक़ रज़ा* और *गुलाम अहमक़ कादियानी* को तनख्वा (Sallery) देकर मुसलमानों में इख्तेलाफ पैदा करवाया और हिन्दुस्तान के मुसलमानों को *टुकड़ों* में बाँट दिया। लोग इस बात को भूल गए और सारा इल्ज़ाम *अहले हदीस* पर डाल दिया।
*अहले हदीस* नें हिन्दुस्तान में कभी मुसलमानों को बाँटने का काम नहीं किया बल्कि मुसलमानों को *क़ुरआन व हदीस* की तरफ बुलाकर सिर्फ जोड़ने का काम किया।
*"अहले हदीस" किसे कहते हैं???*
*अहले हदीस* एक *अहले सुन्नत वल जमाअत* का मनहजी (Methodological) नाम है जो *इस्लामी शरियत* तर्जुमानी करता है। ये किसी खास इमाम या इस्लाम के किसी खास मसले की तरफ इन्सानियत को नहीं बुलाता बल्कि इस्लाम की बुनियाद यानि *क़ुरआन व हदीस* की तरफ़ बुलाता है।
*क्या *अहले हदीस" "क़ुरआन" को नहीं मानते???*
लोग कहते हैं कि इस जमाअत का नाम ही बताता है कि ये सिर्फ *हदीस* को ही मानते हैं और *क़ुरआन* को नहीं मानते। लेकिन ऐसा कहने वाला *अहले हदीस* नाम की गहराई और हिकमत नहीं जानते।
अल्लाह ने अपने कलाम *क़ुरआन* को भी *हदीस* कहा है-
* ﺍَﻟﻠّٰﮧُ ﻧَﺰَّﻝَ ﺍَﺣۡﺴَﻦَ ﺍﻟۡﺤَﺪِﯾۡﺚِ ﮐِﺘٰﺒًﺎ ﻣُّﺘَﺸَﺎﺑِﮩًﺎ ﻣَّﺜَﺎﻧِﯽَ ٭ۖ *
Reference:
(क़ुरआन 39:23)
जिस तरह अल्लाह ने क़ुरआन में *यहूद व नसारा* को *अहले किताब* कहा है जबकि उनकी आसमानी किताबें अलग अलग थीं।
जिस तरह *अहले किताब* में *तौरात* और *इंजील* छुपे हुए हैं उसी तरह *अहले हदीस* में *क़ुरआन व सुन्नत* छुपा हुआ है क्योंकि क़ुरआन भी एक तरह की हदीस है-
* ﺍَﻟﻠّٰﮧُ ﻧَﺰَّﻝَ ﺍَﺣۡﺴَﻦَ ﺍﻟۡﺤَﺪِﯾۡﺚِ ﮐِﺘٰﺒًﺎ ﻣُّﺘَﺸَﺎﺑِﮩًﺎ ﻣَّﺜَﺎﻧِﯽَ ٭ۖ *
Reference:
(क़ुरआन 39:37)
ये नाम बहुत ही मुख़्तसर और हिकमत से भरा हुआ है।
*"अहले हदीस" नाम कब से वजूद में आया..???*
लकब *अहले हदीस* का वजूद तो *ताबेईन* के दौर से ही अपनाया गया। जब इस्लाम में *अहले राय* और *अहले कलाम* वजूद में आये। उस वक़्त जो *अहले सुन्नत वल जमाअत* पर चलने वाले थे, जो इस्लाम के हर *अक़ाइद* और मसले को *क़ुरआन व सहीह हदीस* के मुताबिक लेते थे उन्होंने अपने आप को *अहले हदीस* का लकब दिया है।
जैसे- *इमाम मुहम्मद बिन शिरीन, इमाम अब्दुल्लाह इब्ने मुबारक, इमाम शाफ़ई, इमाम अहमद बिन हम्बल, इमाम अली इब्ने मदनी, इमाम बुखारी, शैख़ अब्दुल कादिर जीलानी* और सारे मुहद्दीसीन।
*"अहले हदीस" कितने नामों से जाने जाते हैं?*
जिस तरह अल्लाह ने मुसलमानों को *क़ुरआन व हदीस* में मुख्तलिफ नामों से पुकारा है जैसे -
*मुस्लिम, मोमिन, इबादुल्लाह, अंसार, मुहाजरीन, हवारी, अहले ईमान* वगैरह
उसी तरह *अहले हदीस* के भी मुख्तलिफ हम-नाम हैं जैसे-
*अहले सुन्नत वल जमाअत, अस'हाबुल हदीस, अहले अतहर, अहले तौहीद, मुहम्मदी, सल्फ़ी, अंसार वल सुन्नह, तय्फा मंसूरा, फिरका ए नाजिया* वगैरह।
*क्या "सहाबा" (रदि.) ने खुद को "अहले हदीस" कहा???*
बेशक़!
*सहाबा* (रदि.) ने खुद को *अहले हदीस* कहा।
*अब्दुल्लाह बिन अब्बास* (रदि.) को *अहले हदीस* कहा गया।
Reference:
*तारीखे बग़दाद अल ख़तीब 3/227*
*अबू सईद खुदरी* (रदि.) ने (किसी से) फ़रमाया कि "हमारे बाद तुम अहले हदीस हो"।
Reference:
*शर्फुल ख़तीब 12*
*इमाम शाबी* (रह.) ने तमाम सहाबा इकराम को *अहले हदीस* कहा है और आपने तकरीबन 500 सहाबा इकराम को देखा था।
(यानि कि *इमाम शाबी* (रह.) *ताबई* थे।)
Reference:
*ताज्किरातुल हुफ्फाज़ 1/42*
*क्या "अहले हदीस" नाम किसी "हदीस" की किताब में आया है???*
*बेशक़!*
*अहले हदीस* का नाम हदीस की किताब में आया है-
*हज़रत मुआविया बिन कुर्रह फरमाते हैं कि*
*"रसूल अल्लाह" (स.अ.व.) ने फ़रमाया कि*
*"जब शाम के लोगों में बिगाड़ आएगा तब आपके लिए कोई भलाई नहीं रहेगी। मेरी उम्मत में एक गिरोह (group) हमेशा हक़ पर क़ायम रहेगा जिसकी मदद अल्लाह करता रहेगा और उससे दुश्मनी करने वाले उसको नुक्सान नहीं पंहुचा पाएंगे यहाँ तक कि क़यामत कायम ही जाएगी।*
इस हदीस की तशरी (Explanation) में खुद "इमाम तिर्मिज़ी" (रह.) कहते हैं कि
*मेरे उस्ताद इमाम बुखारी रह. ने कहा, और इमाम बुखारी कहते हैं कि मेरे उस्ताद इमाम अली इब्ने मदनी रह. ने कहा कि*
*इस गिरोह (group) से मुराद "अस'हबुल हदीस" (यानि अहले हदीस) है।*
Reference:
*सहीह जामअ तिर्मिज़ी, बाब: अल-फितन, जिल्द नम्बर 33, हदीस नम्बर 2351*
*क्या चारों इमाम "अहले हदीस" थे???*
*बेशक़!*
चारों इमाम *अहले हदीस* ही थे।
*इमाम अबू हनीफा* (रह.) फरमाते हैं कि
*जब तुम्हें "सहीह हदीस" मिल जाये तो उसपे अमल कर लेना वही मेरा मज़हब है।*
Reference:
"रददुल मुख़्तार अला दुर्रे मुख्तार लिइब्ने आबेदीन: 68/1"
*इमाम मालिक* (रह.) फरमाते हैं कि
*यक़ीनन मैं एक इन्सान हूँ, मेरी ज़ात ग़लत भी हो सकती है और सहीह भी, लिहाजा मेरी राय में नज़र दौड़ाओ और जो बात तुम्हें "क़ुरआन व सुन्नत" के मुआफ़िक ( Mighty) लगे उसे ले लो और जो "क़ुरआन व सुन्नत" के मुखालिफ हो उसे छोड़ दो।*
Reference:
"जामेउल बयानुल इल्म व फज़ल इब्ने अब्दुल बर सफा: 2/32"
*इमाम शाफ़ई* (रह.) फरमाते हैं कि
*इस बात पर तमाम मुसलमानों का इज्माह (इत्तेफाक) है कि जिस शख्स को "सुन्नते रसूल" मालूम हो जाये उसके लिए किसी आदमी के क़ौल के खातिर "सुन्नत" को छोड़ देना जायज़ नहीं।*
Reference:
"एअलामल मोबिईन लि इब्ने कय्यम अल्जौज़ी: 2/361"
*इमाम हम्बल* (रह.) फरमाते हैं कि
*जिसने "रसूलअल्लाह" (स.अ.व.) की "हदीस" को रद कर दिया वो हलाकत के किनारे खड़ा है।*
Reference:
"इब्ने अल्जौज़ी सफा: 182"
*हिन्दुस्तान में "अहले हदीस" कब से ?*
हिन्दुस्तान का सबसे पहला मुसलमान केरला के बादशाह थे जिनका नाम *चेरामन पेरूमल भास्कारा रवि वर्मा* था जो अरब जाकर *नबी करीम (SAW)* से मुलाकात किये थे और इस्लाम कबूल किया था और अपना नाम *ताजुद्दीन* रखा था। इनको *सहाबी* होने का शर्फ़ हासिल हुआ।
केरला में आज भी दुनिया की दूसरी सबसे पुरानी मस्जिद *चेरमन जुमा मस्जिद* के नाम से मशहूर है।
अब आप बतायें *चेरामन* कौन था???
*हनफी था, मलिकी था, शाफ़ई था या हम्बली था*???
उस वक़्त तो चारों इमामों में से किसी की पैदाइश भी नही हुई थी। वो तो सिर्फ *क़ुरआन व सुन्नत* पर चलने वाला था।
उसके बाद "अल्हम्दुलिल्लाह" हिन्दुस्तान में धीरे - धीरे *क़ुरआन व सुन्नत* पर चलने वाले नबी और सहाबा के दौर से ही पाए जाने लगे।
हाँ! लेकिन किसी दौर में कम तो किसी में ज़्यादा ज़रूर रहे हैं।
*हज़रत उमर* (रदि.), *उस्मान* (रदि.) और *मुआबिया* (रदि.) के दौरे खिलाफत में, हिन्दुस्तान में कई सहाबा (रदि.) ने हिजरत की, और खालिस *क़ुरआन व सुन्नत* वाले इस्लाम की दावत फैलाई।
उस वक़्त तो *हन्फ़ियत* का कोई वजूद भी नहीं था क्यों कि उस वक़्त *इमाम अबू हनीफा* (रह.) अभी पैदा भी नहीं हुए थे। उनकी पैदाइश 80 हिजरी में हुई थी।
उसके बाद जैसा कि *मुहम्मद बिन क़ासिम* (रह.) अपनी 17 साल की उम्र में जो *क़ुरआन व हदीस* के *दा'ई* और मुजाहिद थे जिन्होंने सन 711 (93 हिजरी) में हिन्दुस्तान के *सिंध* इलाक़े पर हमला किया था। तब भी *हन्फ़ियत* का वजूद भी नहीं था क्यों कि उस वक़्त *इमाम अबू हनीफा* (रह.) छोटे बच्चे थे।
उसके बाद 1325 से 1352 तक *मुहम्मद बिन तुग़लक* की हुकूमत रही।
*हिन्दुस्तान में "अहले हदीस" के मशहूर उल्मा???*
वैसे तो हिन्दुस्तान में *अहले हदीस* के बहुत उल्मा हुए यहाँ हम कुछ मशहूर उल्मा का नाम लिख देते हैं-
*मुहम्मद बिन तुग़लक रह.* (1325 - 1351)
*मौलाना शम्श-अल-दीन इब्ने अल हवेरी रह.*
*मौलाना अलम-अल-दीन रह.* (मुल्तान के "शेख बहा-अल-दीन ज़करिया साहब रह. के नाती)
*मौलाना अब्दुल अज़ीज़ मुहद्दिस देहल्वी रह.*
*शाह मुहम्मद इस्माईल शहीद रह.*
*मौलाना वलायत अली अज़ीम आवादी रह.*
*शेख अब्दुल हक़ मुहद्दिस रह* (बनारस)
*मौलाना अबुल कलाम आज़ाद रह.* (1888 - 1958)
(Freedom fighter and first Education Minister of India)
*अब्दुल हलीम शरार रह.*
*मौलाना अल्ताफ हुसैन हलिर रह.*
(Great Poet)
*मौलाना ज़फर अली खान रह.*
(Editor Zamindar)
*मौलाना अब्दुल मजीद हरीरी रह.*
(Former Indian Abassdor to Saudi Arabia)
*मौलाना अब्दुल वहाब अरवी रह.*
*अंग्रेजों के ख़िलाफ़ लड़ने वाले "अहले हदीस" उलेमा???*
हिन्दुस्तान को अंग्रेजों से आज़ाद कराने में हमारे *अहले हदीस* उलमाओं का बहुत बड़ा हाथ रहा है जैसे-
*मौलाना अबुल कलाम आज़ाद*
*मौलाना अब्दुल्लाह रह.* (Martyrdom of Andaman)
*मौलाना वलायत अली रह.*
*सादिक़पूरी* (अजीमाबाद)
*शाह इस्माईल*
*सय्यद अहमद*
*विलायत अली*
*इनायत अली*
*मियाँ सय्यद नज़ीर हुसैन*
*हसन खान* (भोपाल)
*मौलाना सनाउल्लाह अमृतसरी रह.
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