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Boot (Murti/Statue) Parasti Ki Shuruwat Kaise Hui?

Boot Parasti Ki Shuruwat Kaise Hui?

बूत परस्ती की शुरुआत कैसे हूवी?, Murti Pooja Ki Shuruaat Kaise Huyi


क्या मुशरिकीन बेजान पत्थर के बने हुए बुतो की इबादत करते थे या नेक सालेहीन बुजुर्ग औलिया की... 

‎ Mazaar ke pujariyo ke bhagwan.inko tauhid pasand nhi isiliye ye log ab hindu bante ja rhe hai..inko har aayat buto wali lagti hai kya allah ko nhi pta tha ki 1400 baad fir se mazaar ke pujari paida hone wale hai.
Sahih Bukhari Hadees # 4920
حَدَّثَنَا إِبْرَاهِيمُ بْنُ مُوسَى، ‏‏‏‏‏‏أَخْبَرَنَا هِشَامٌ، ‏‏‏‏‏‏عَنْ ابْنِ جُرَيْجٍ، ‏‏‏‏‏‏وَقَالَ عَطَاءٌ:‏‏‏‏ عَنْ ابْنِ عَبَّاسٍ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُمَا، ‏‏‏‏‏‏صَارَتِ الْأَوْثَانُ الَّتِي كَانَتْ فِي قَوْمِ نُوحٍ فِي الْعَرَبِ بَعْدُ أَمَّا وَدٌّ كَانَتْ لِكَلْبٍ بِدَوْمَةِ الْجَنْدَلِ، ‏‏‏‏‏‏وَأَمَّا سُوَاعٌ كَانَتْ لِهُذَيْلٍ، ‏‏‏‏‏‏وَأَمَّا يَغُوثُ فَكَانَتْ لِمُرَادٍ، ‏‏‏‏‏‏ثُمَّ لِبَنِي غُطَيْفٍ بِالْجَوْفِ عِنْدَ سَبَإٍ، ‏‏‏‏‏‏وَأَمَّا يَعُوقُ فَكَانَتْ لِهَمْدَانَ، ‏‏‏‏‏‏وَأَمَّا نَسْرٌ فَكَانَتْ لِحِمْيَرَ لِآلِ ذِي الْكَلَاعِ، ‏‏‏‏‏‏أَسْمَاءُ رِجَالٍ صَالِحِينَ مِنْ قَوْمِ نُوحٍ، ‏‏‏‏‏‏فَلَمَّا هَلَكُوا أَوْحَى الشَّيْطَانُ إِلَى قَوْمِهِمْ أَنِ انْصِبُوا إِلَى مَجَالِسِهِمُ الَّتِي كَانُوا يَجْلِسُونَ أَنْصَابًا وَسَمُّوهَا بِأَسْمَائِهِمْ، ‏‏‏‏‏‏فَفَعَلُوا فَلَمْ تُعْبَدْ حَتَّى إِذَا هَلَكَ أُولَئِكَ، ‏‏‏‏‏‏وَتَنَسَّخَ الْعِلْمُ عُبِدَتْ"".
Sahih Hadees
नूह (अलैहिस्लाम) जिस कौम मे मबउस थे उस कौम मे पाँच नेक सालेहीन नेक बुजुर्ग औलिया अल्लाह थे |
– उनकी मज्लिशों मे बैठकर लोग अल्लाह को याद करते थे और मसाइल सुनते थे,
– इससे उनके दीन को तक्वियत पहुचती थी|
– जब वे ग़ुजर गए तो क़ौम मे परेशानी हुई कि अब न वो मज्लिस रही न वो मसाइल रहे, अब कहा बैठे ?
– उस वक्त शैतान ने उनके दिलों मे यह फूंक मारी कि इन बुजूर्गों की इबादतगाहों मे उनकी तस्वीर (बूथ) बनाकर अपने पास रखलों |
– जब उन तस्वीरों को देखोगे तो उनका जमाना याद आ जाएगा और वह क़ैफियत पैदा हो जाएगी|
– तो उन के पाँचों के मुजस्समें बनाए गए और उन पाँचों का नाम था
(1) वद , (2) सुवाअ , (3) यग़ूस , (4) नसर , (5) यऊक |
उनका कुरआन मे जिक्र है ये पाँच बुत बनाकर रखे गए !
– उनका मक्सद सिर्फ तज़्कीर था की उन तस्वीरों(बुथो) के जरीए याद दिहानी हो जाएगी | उनको पूजना मक्सद नही था | शूरू मे जब तक लोगो के दिलों मे मारिफत रही, उन बुजूर्गों के असरात रहे |
– लेकिन जब दुसरी नस्ल आई तो उनके दिलों मे वह मारफत नही रही उनके सामने तो यही बुत थे |
– चूनांचे कुछ अल्लाह की तरफ मुतवज्जेह हुए और कुछ बुतों की तरफ मुतवज्जेह हुए |
– और जब तीसरी नस्ल आई तब तक शैतान अपना काम कर चुका था | उनके दिलों मे इतनी भी मारफत नही रही | उनके सामने बुत ही बुत रह गए | उन्ही को सज़्दा , उन्ही को नियाज उन्ही की नजर यहा तक की शिर्क शुरू हो गया | फिर तो नजराने वसूल किए जाने लगे मैले उर्स न जाने क्या क्या खुरापात शुरू हो गई .–
– (तफ़्सीर इब्ने कसीर पारा 29 , सूर: नूह के दुसरे रूकूअ मे)
_ अल्लाह तआला ने मुशरिकीन के माबूदों के बारे में फरमाता है !
सूरह अराफ आयत 194
__बेशक तुम अल्लाह के सिवा जिनको पुकारते हो वह तुम जैसे बंदे है ॥
औऱ फ़रमाया :
सूरह नहल आयत 21
__वह तो बेजान लाशें है उनको यह भी मालूम नही की क़ब उठाये जाएंगे !
और जिन औलिया अल्लाह को मुशरिकीन पुकारते उनके बारे में अल्लाह ने क़ुरान में बताया :
अल अहक़ाफ़ आयत 6
_और जब ( क़यामत के दिन ) लोग जमा किये जायेंगे वह उनके दुश्मन हो जाएंगे औऱ उनकी इबादत का इनकार कर देंगे !
__ बाज़ मुशरिकीन ने कुछ दुनिया से गुजरे हुए इंसानों को माबूद बना रखा है उन इंसानों को बसा अवकात यह पता ही नही होता के उन की इबादत की जा रही है इसलिए वह इंकार कर देंगे औऱ जिनको पता है वह यह कहेंगे के दर हक़ीक़त यह हमारी नही ,बल्कि अपनी नफ़सानी ख़्वाहिशात की इबादत करते थे !!
☆ ☆ ☆
__क़बर परस्ती भी बूत परस्ती ही है__
अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम का फरमान है
_ हजरत अबु हुरैराह रज़ि0 से रिवायत है के नबी सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम यह दुआ फरमाते थे के अय अल्लाह मेरी कबर को बूत न बनाएगा (जिसकी लोग इबादत शुरू कर दे) उनलोगों पर अल्लाह की लानत हो जो अपने नबीयों की क़बरो को सज़दागाह बना लेते है !
(मुसनद इमाम अहमद बिन हम्बल हदीस - 7352)
एक और हदीस में है
_ तौबान रज़ि0 रिवायत करते है कि नबी सल्लल्लाहो अलैही वसल्ललम ने फरमाया के क़यामत उस वक़्त तक नही आएगी जब तक मेरी उम्मत के कुछ कबीले मुशरिकीन के साथ ना मिल जाये औऱ वो बूत की इबादत ना करने लगे !
(जामे तिर्मिज़ी , हदीस -2219 )
__आज के मुशरिकीन का कहना है कि नेक लोगो की पनाह लेना औऱ तंगी व तकलीफ में मुश्किल कुशाई के लिए उन्हें पुकारना कोई इबादत नही है !
इसलिए नेक सालेहीन बुजुर्ग औलिया अल्लाह के बने हुए कबर (मज़ारआत) पर जाकर उन्हें पुकारते है उन से ऐसी मोहब्बत करते है , जैसी मोहब्बत अल्लाह से करनी चाहिए !
जबकि
क़ुरान में अल्लाह तआला ने अपने सिवा किसी औऱ को पुकारने से मना किया है गैब में पुकारना इबादत है ,
_ नोमान बिन बशीर रज़ि0 से रिवायत है के नबी अकरम सल्लल्लाहो अलैही वसल्लम ने फरमाया " दुआ ही इबादत है फिर आप ने सूरह मोमिन , आयत 60 पढ़ी
""औऱ तुमहारे रब ने फरमाया तुम लोग मुझे पुकारो मैं तुम्हारी दुआ जरूर क़बूल करूँगा , बेशक जो लोग मेरी बंदगी से सरकशी करते है वह अनक़रीब दोजख में ज़लील होकर दाखिल होंगे "
(जामे तिर्मिज़ी ,हदीस - 3372)
_एक गिरोह आज बूत परस्ती में लगे है और उसी के देखा देखी एक गरोह कबर परस्ती में मसगुल है नेक बुज़ुर्गो से अपना मोहब्बत अक़ीदत दिखाने  के लिए ,  आज के मुसलमान बूत परस्ती से हट कर कबर परस्ती पे आ गए नेक सालेहीन नेक बुज़ुर्ग की अक़ीदत मोहब्बत में उनके मज़ार बना रखे है उसी मज़ार पे शिर्क का सुरुवात फिर से शुरू हो गया नेक बुजुर्गों के मोहब्बत के नाम पे !!
अल्लाह से दुआ है कि हम तमाम लोगो को क़ुरान नाज़िल होने की मक़सद को समझने की तौफीक अतआ फरमाए ! आमीन
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