Whatsapp Pe Maafi Mangne Ki Aadat Hm KAb Badlenge?
रोज़ाना आने वाले ग्रुप मॅसेजों में जिसे देखो मुआफ़ी मांगने पर तुला हुआ है, इन मॅसेजों को पढ़कर मै बहोत ज़ोर ज़ोर से हंसता हुं क्योंकि लिखने वालों को ये लिखकर भेजना चाहिये *"कि जाने अन्जाने में या जान बुझकर मेरे ज़रिये भेजे गये किसी पोस्ट, फोटो या विडियो से आप को दुख पहुंचा हो, तक़लीफ हुई हो या आपका मज़ाक उड़ाया गया तो मुझे मुआफ्र कर देना*
जहालत की हद पार कर दी है लोगों ने, हमारा मज़हब कोई डिजिटल प्रोग्राम नहीं है, जो पुरी दुनियाँ में किसी सोशियल मिडिया के बल पर फैल रहा है।
अग़र कोई हक़िकत में अल्लाह से अपने गुनाहों की मग़फिरत चाहता है तो उसे इंसान के रु ब रु होकर मुआफ़ी मांगना चाहिये, क्योंकि किसी को तक़लीफ या दुख पहुंचाने का या
झूठ का सहारा लेकर लोगों में फितना पैदा करने का, आपस में दुश्मनी लगाने का काम इन्सान से होता है
अग़र गुनाहों का डर दिल में जागा है तो बे-शक़ खुद होकर मुआफी मांगना चाहिये बवजूद इसके ये सामने वाले पर मुनस्सर करता है कि आपको मुआफ़ करे या न करें ।
अगर हमें अपनी ग़लतियों का या गुनाहों का एहसास हुआ है हमारे दिलों में अगर वाकई खौफ़ ए खुदा जागा है तो कायरों की तरह सोशियल मिडिया का सहारा क्यों लें, सच्ची तौबा का इरादा लेकर साफ दिल से सामने जाकर मुआफ़ी मांगना चाहिये, अल्लाह की रज़ा के लिये की जाने वाली पहल में शर्मिन्दगी कैसी, आपकी नियत सच्ची होगी तो पहल आप करेंगे, हाँ अगर दुनियावी रस्म अद़ा करनी है तो फिर वाॅट्सअॅप पर से किसी का भी मुआफ़ीनामा काॅपी करके सबको भेजते रहो
इससे होगा ये कि आपके गुनाह तो बरकरार ही रहेंगे अलबत्ता दिल को झुठी तसल्ली ज़रुर मिल जायेगी कि मैनें मॅसेज भेजकर मुआफ़ी तो मांग ली है
अल्लाह हम सब को सही रास्ता दिखाये और सच्चे दिल से तौबा करने की तौफिक अता फरमाये ।
आमीन ।
जहालत की हद पार कर दी है लोगों ने, हमारा मज़हब कोई डिजिटल प्रोग्राम नहीं है, जो पुरी दुनियाँ में किसी सोशियल मिडिया के बल पर फैल रहा है।
अग़र कोई हक़िकत में अल्लाह से अपने गुनाहों की मग़फिरत चाहता है तो उसे इंसान के रु ब रु होकर मुआफ़ी मांगना चाहिये, क्योंकि किसी को तक़लीफ या दुख पहुंचाने का या
झूठ का सहारा लेकर लोगों में फितना पैदा करने का, आपस में दुश्मनी लगाने का काम इन्सान से होता है
अग़र गुनाहों का डर दिल में जागा है तो बे-शक़ खुद होकर मुआफी मांगना चाहिये बवजूद इसके ये सामने वाले पर मुनस्सर करता है कि आपको मुआफ़ करे या न करें ।
अगर हमें अपनी ग़लतियों का या गुनाहों का एहसास हुआ है हमारे दिलों में अगर वाकई खौफ़ ए खुदा जागा है तो कायरों की तरह सोशियल मिडिया का सहारा क्यों लें, सच्ची तौबा का इरादा लेकर साफ दिल से सामने जाकर मुआफ़ी मांगना चाहिये, अल्लाह की रज़ा के लिये की जाने वाली पहल में शर्मिन्दगी कैसी, आपकी नियत सच्ची होगी तो पहल आप करेंगे, हाँ अगर दुनियावी रस्म अद़ा करनी है तो फिर वाॅट्सअॅप पर से किसी का भी मुआफ़ीनामा काॅपी करके सबको भेजते रहो
इससे होगा ये कि आपके गुनाह तो बरकरार ही रहेंगे अलबत्ता दिल को झुठी तसल्ली ज़रुर मिल जायेगी कि मैनें मॅसेज भेजकर मुआफ़ी तो मांग ली है
अल्लाह हम सब को सही रास्ता दिखाये और सच्चे दिल से तौबा करने की तौफिक अता फरमाये ।
आमीन ।
Maa naaraz Bahan naaraz
Bhai naaraz Pados wale naaraz Rishtedar naaraz
Aur hum social media me unse maafi maang rahe hain jinko hum jante tak nahi Hadd hai.
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