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Musalmanon me Ittehad kaise kayem Ki Jaye

ہمیں اتحاد کیوں ضروری ہے؟
مسلمانو میں اتحاد کیسے قائم کی جاے۔؟

 Musalmano ko Ittehad Kayem karne ki kyu Jarurat hai?

Musalmano Me Ittehad kaise Kayem ki jaye?


*मुस्लिम में इत्तेहाद लेकिन कैसे?*'

*कुरआन कहता है:-*

*आओ हम अल्लाह की रस्सी को मजबूती से पकडे और आपस में न बटे जाए*
[अल कुरआन 3:103]

(तो अल्लाह की रस्सी क्या है? अल्लाह की रस्सी *कुरआन और सही हदीस है*)

*अल्लाह की बात मानो और अल्लाह के रसूल ﷺ की बात मानो*
[अलकुरआन 04:59]

नोट:-ये बात कुरआन में 20 से ज़्यादा बार कही गयी है

*जिन लोगो ने अपने दीन के टुकड़े टुकड़े कर दिए और ख़ुद गिरोहों मे बंट गए,आपका उनसे कोई ताल्लुक़ नहीं, उनका मामला तो बस अल्लाह के हवाले है. फिर वह उन्हें बता देगा जो कुछ वे किया करते थे.*
[अलकुरआन 06:159]

*अब हम देखते हैं इमामो के क्या अक़वाल हैं*

इस्लामिक दुनिया में कई सारे इमाम रहे हैं लेकिन 4 इमाम ज्यादा मशहूर हुए और उनकी बाते सारी दुनिया में फैली और एक गलत फहमी यह फैलाई गयी कि किसी एक इमाम को मानना फर्ज़ है मगर ऐसा किसी भी क़ुरआनी आयत या सही हदीस से साबित नहीं है.
4 इमाम-  1) इमाम अबू हनीफा(रह.), 2) इमाम मालिक (रह.), 3) इमाम शाफ़ई (रह.) और 4) इमाम अहमद इब्न हम्बल (रह.)लेकिन ऐसा कोई सुबूत कुरआन और हदीस मे नहीं है
जिस मे ये कहा गया हो कि किसी एक ही इमाम की बात को  मानो हमें सारे इमामो की इज्ज़त करनी चाहिए और भी जो इमाम हैं उन सबकी, वो सब बड़े आलिम थे. अल्लाह उन्हें इसका बदला दे उनकी मेहनत के लिए. (आमीन)

*चारो इमामो ने क्या कहा:-*

अगर मेरा फतवा कुरआन और सही हदीस के खिलाफ़ जाये तो मेरे फतवे को *छोड़* देना और कुरआन और सही हदीस को मान लेना.
ईक़ाज़-अल-हिमम अल फुलानी (इमाम अबू हनीफा रह.)

अल मजमु अन नववी (1/63) (इमाम शाफ़ई रह.)

जामी बयान अल इल्म इब्न अब्दुल बर्र 1/775 (इमाममालिक रह.)

ईक़ाज़-अल-हिमम (इमाम इब्नहम्बल रह.)

*अब हम देखते हैं कुछ फ़तवे जो सही हदीस से टकराते हैं*

*इमाम शाफ़ई रहमतुल्लाह अलैह:-*

जैसे इमाम शाफ़ई (रह.) फरमाते हैं जब अगर कोई आदमी औरत को छू दे तो उसका वुजू टूट जाता है लेकिन इमाम अबुहनीफा(रह.) के नज़दीक ऐसा नहीं है तो देखे सही हदीस
क्या कहती है.

*सही हदीस कहती है:-*
अल्लाह के रसूलﷺने
अपनी बीवी का बोसा लिया और फिर नमाज़ को गए.(अबू दाऊद  हदीस नंबर 179)
इस तरह ये बात इमाम शाफ़ई (रह.) की सही हदीस से टकराती है लेकिन इमाम अबुहनीफा (रह.) की बात सही हदीस से मिलती है तो हमे यहाँ इमाम अबुहनीफा (रह.) की बात को मानना चाहिए और इमाम शाफ़ई (रह.) की बात को छोड़ देना चाहिए क्यूंकि उन्होंने खुद कहा की मेरा फ़तवा अगर सही हदीस के खिलाफ़ जाये तो मेरे फ़तवे को छोड़ देना.

*इमाम अबूहनीफा रहमतुल्लाह अलैह:-*

इमाम अबू हनीफा (रह.) फरमाते हैं कि इमाम के पीछे आहिस्ता से आमीन कहो लेकिन इमाम शाफ़ई (रह.) ने कहा ज़ोर से आमीन कहो. तो देखे सही हदीस क्या कहती है

*सही हदीस कहती है:*
अल्लाह के रसूल ﷺ जब (वलद् दाल्लीन)‌पढ़ते तो आमीन कहते, और उसके साथ अपनी आवाज बुलंद करते थे.(इससे मुतालिक़ और भी हदीसे हैं जिससे ये पता चलता है कि अल्लाह के रसूल ﷺ ज़ोर से अमीन कहा करते थे

[अबूदाऊद हदीस नंबर 932,933]
[ बुखारी हदीस नंबर 780,781,782]

तो यहाँ पे इमाम अबुहनीफा (रह.) की बात सही हदीस से टकराती है तो यहाँ पे हमें उनकी बात को छोड़ देना चाहिए क्यूंकि उन्होंने खुद कहा कि अगर मेरा फ़तवा सही हदीस के खिलाफ़ जाये तो मेरे फ़तवे को छोड़ देना.

नोट:- यहाँ हम ने सिर्फ दो इमामो के फ़तवे लिए हैं,बाक़ी और भी फ़तवे हैं जो सही हदीस के खिलाफ़ जाती है तो हमें पढ़ने की ज़रूरत है की इमामो ने क्या कहा और हम क्या कर रहे हैं.

अल्लाह के रसूल ﷺ ने फ़रमाया जिस तरह मुझे नमाज़ पढ़ते हुए देखों उसी तरह से नमाज़ पढो
[बुखारी हदीस नंबर 631]

तो हमें चाहिए कि अल्लाह के रसूल ﷺकी नमाज़ को ढूंढे, आखिर उनकी नमाज़ क्या थी और वो कैसे पढ़ते थे क्यूंकि अगर हमारी इबादत अल्लाह के रसूल ﷺ की इबादत की तरह न हुई तो हमारी इबादत कुबूल ही नहीं होगी तो क्या फायदा ऐसी इबादत का जो कुबूल ही नहीं हो.

अल्लाह हम सब मुसलमानों को अल्लाह के रसूल ﷺ की इबादत के तरीके वाला बना दे.

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