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Kothe Pe Nachne wali aur Tik Tok pe Nachne wali Tawaif me Fark.

Aaj ka Digital Tawaif jo Tik Tok pe nach kar ada dikha rahe hai.

Disadvantages of Tik Tok for Children's who are Teens.
आज की डिजिटल तवायफ
कहा जाता है कि प्राचीन काल में एक तवायफ का नाच देखने के लिए उसके खास मकान (कोठे) का रुख किया जाता था।
तो वो तवायफ।   देखने वालों को अपनी दिलकश अदाओं और अपने नंगे जिस्म के जरिए वाह वाही लूटती थी।
अगर उस रण्डी से पूछा जाता कि वो ये काम क्यो करती है?
तो 100% में से 99.99% ये जवाब होता के मजबूरी है, में मजबूर हूं शौक से ये काम नहीं करती हूं।
वो मजबूरी अगर पता लगाने की कोशिश की जाती तो हर किसी की एक अपनी दिल को दहलाने वाली कहानी होती ।
किसी के सर पर मां बाप का साया न रहा, तो किसी को शौहर बेगैरत व नालायक मिला।
ये तमाम बातें करने का मकसद ये है कि उन तवायफों की मजबूरियां समझ में आती थीं।
मगर आज की तवायफों को क्या हो गया है?
पता नहीं

मैं बात कर रहा हूं TIK TOK वाली तवायफों की
जी हां मुझ को पता है कि बहुत से लोगों को मेरी बात नागवार गुजर रही होगी मगर ये बात करनी भी ज़रूर है तो में कहना चाहूंगा उन लोगो से (जिनको मेरी बाते बुरी लग रही हैं) के भाई जरा अपने दिमाग पे ज़ोर डालो और सोचो के हमारे आस पास कितनी बे हायाई है क्या ये टिक टोक और इस जैसे दूसरे ऐप्स इसके लिए जिम्मेदार नहीं है?
आप देखो की बहुत ही कम कपड़े पहन कर ये आदम के बेटे और बेटीयाँ और नाम के मुसलमान ज़माने वालों को अपनी दिलकश अदाओं, टाईट जीन्स, चुस्त पजामे पहन कर यह तो दूर की बात अब तो वह भी खाली अब  कहीं कहीं कोई कपड़ा नहीं दिखाई देता बल्कि जिस्म पूरा नंगा क्या यह तरक्की है?
अगर बस चले तो हर जगह यह लोग नंगे ही जाएगी जिस तरह ब्लू फिल्मों में गंदी तस्वीरें दिखाई जाती है क्यू के यह तरक्की है।
क्या बगैर छोटे कपड़े के हम तरक्की नहीं कर सकते?
क्या सलवार सूट में रहकर हम कॉलेज और विश्वविद्यालय की पढ़ाई नहीं कर सकते?
पढ़ाई हमारे दिल ओ दिमाग से समझ में आती है या बे हया और बे शर्म बनने से?
तरक्की के नाम पे जितनी बे हयाई फैलाए यह सब फैशन है और यह हमारी आजादी है?
और दाद मांगती हैं।
तो में पूछता हूं कि क्या ये उन कोठो की पैदावार हैं?
क्या उनके सर पर भी उनके वालिदैन का साया ना रहा?
अपनी राय दें और अगर आपको भी इस आदम के बेटे बेटी की कुछ फिकर है तो ज़्यादा से ज़्यादा फैलाएं।
शेयर करे अल्लाह इनको अक्ले सलीम दे।
समझ नहीं आता और हैरत भी इस बात की है इनके बेगैरत बेशर्म वाल्दैन, बाप, भाई, उनके शौहर बेशर्म हैं या उनको भी अपनी बेटी, बीवी, और बहन को तवायफ की तरह नाचते हुए देख कर मज़ा आता है और बड़ा फख्र महसूस करते हैं कि मेरी बेटी के जिस्म को घूरने वाले (फालोवर) इतने हैं और मेरी बेटी इतनी फेमस है।
रंडी नाच में लअनत है ऐसे बेगैरत बाप- भाई पर !
कुछ बेगैरत रंडियाँ हिजाब पहेन कर जो ठुमके लगाती हैं न उनका इस्लाम से कोई लेना देना नही ऐसे लोगों ने हिजाब की भी बेइज़्ज़ती की है इन बेगैरतों को अब इनके तश्वीर के साथ ज़लील करूँगा।
नोट:- इससे पहले भी कई इज़्ज़त भरे अल्फ़ाज़ इस्लामी माँ बहने लिख कर पोस्ट किए हैं #TIK_TOK रंडियों पर फिर ये तल्ख भरे अल्फ़ाज़ के लिए माफी चाहता हूँ और बुरा उन्हीं बेगैरतों को लगेगा जो इस बेहयाई में लिप्त है।
लोगो तक शेयर कर के बता दें कि tik tok वाली कैसी है।
Tik Tok kya Hai aur iske Nuksanat ki Fehrist.
Isse kaise Paise kmate hai aur kya Yah Paise Jayez Tarike se kmaye jate hai ya Gandi Videos Upload kar, fahasi failakar dusro ki gharo ko barbad kar, dusro ka waqt jaya kar hm isme apni aqalmandi samajhte hai ke hmne Online Tik Tok se Paise kamaye hai.
टिक-टॉक' एक सोशल मीडिया ऐप्लिकेशन है जिसके जरिए स्मार्टफ़ोन यूज़र छोटे-छोटे वीडियो (15 सेकेंड तक के) बना और शेयर कर सकते हैं.
'बाइट डान्स' इसके स्वामित्व वाली कंपनी है जिसने चीन में सितंबर, 2016 में 'टिक-टॉक' लॉन्च किया था. साल 2018 में 'टिक-टॉक' की लोकप्रियता बहुत तेज़ी से बढ़ी और अक्टूबर 2018 में ये अमरीका में सबसे ज़्यादा डाउनलोड किया जाने वाला ऐप बन गया.
गूगल प्ले स्टोर पर टिक-टॉक का परिचय 'Short videos for you' (आपके लिए छोटे वीडियो) कहकर दिया गया है.
प्ले स्टोर पर टिक-टॉक को परिभाषित कहते हुए लिखा गया है :
टिक-टॉक मोबाइल से छोटे-छोटे वीडियो बनाने का कोई साधारण ज़रिया नहीं है. इसमें कोई बनावटीपन नहीं है, ये रियल है और इसकी कोई सीमाएं नहीं हैं. चाहे आप सुबह 7:45 बजे ब्रश कर रहे हों या नाश्ता बना रहे हों-आप जो भी कर रहे हों ,जहां भी हों, टिक-टॉक पर आइए और 15 सेकेंड में दुनिया को अपनी कहानी बताइए.
भारत में टिक-टॉक के डाउनलोड का आंकड़ा 100 मिलियन के ज़्यादा है. इकोनॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार इसे हर महीने लगभग 20 मिलियन भारतीय इस्तेमाल करते हैं.
भारतीयों में टिक-टॉक की लोकप्रियता का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि आठ मिलियन लोगों ने गूगल प्ले स्टोर पर इसका रिव्यू किया है.
दिलचस्प बात ये है कि 'टिक-टॉक' इस्तेमाल करने वालों में एक बड़ी संख्या गांवों और छोटे शहरों के लोगों की है. इससे भी ज़्यादा चौंकाने वाली बात ये है कि टिक-टॉक की दीवानगी सात-आठ साल की उम्र के छोटे-छोटे बच्चों के तक के सिर चढ़कर बोल रही है.
टिक-टॉक से वीडियो बनाते वक़्त आप अपनी आवाज़ का इस्तेमाल नहीं कर सकते. आपको 'लिप-सिंक' करना होता है.
जहां फ़ेसबुक और ट्विटर पर 'ब्लू टिक' पाने यानी अपना अकाउंट वेरिफ़ाई कराने के लिए आम लोगों को ख़ासी मशक्कत करनी पड़ती है वहीं, टिक-टॉक पर वेरिफ़ाइड अकाउंट वाले यूजर्स की संख्या बहुत बड़ी है. और हां, इसमें 'ब्लू टिक' नहीं बल्कि 'ऑरेंज टिक' मिलता है.
जिन लोगों को 'ऑरेंज टिक' मिलता है उनके अकाउंट में 'पॉपुलर क्रिएटर' लिखा दिखाई पड़ता है. साथ ही अकाउंट देखने से ये भी पता चलता है कि यूजर को कितने 'दिल' (Hearts) मिले हैं, यानी अब तक कितने लोगों ने उसके वीडियो पसंद किए हैं.
कैसे होती है कमाई?
टेक वेबसाइट 'गैजेट ब्रिज़' के संपादक सुलभ पुरी बताते हैं कि किसी देश में ऐप लॉन्च करने के बाद ये कंपनियां अलग-अलग कुछ जगहों से लोगों को बाक़ायदा हायर करती हैं.
आम तौर पर ऐसे लोगों को हायर किया जाता है जो देखने में अच्छे हों, जिन्हें कॉमेडी करनी आती हो, जिनमें गाना गाने या डांस करने जैसी स्किल हों. इन्हें रोज़ाना कुछ वीडियो डालने होते हैं और इसके बदले उन्हें कुछ पैसे मिलते हैं.
इसके अलावा ये फ़िल्मी सितारों या उन कलाकारों को भी इसमें शामिल करते हैं जो स्ट्रगल कर रहे हैं या करियर के शुरुआती मोड़ पर हैं. इस तरह उन्हें पैसे भी मिलते हैं और एक प्लैटफ़ॉर्म भी. दूसरी तरफ़ कंपनी का प्रचार-प्रसार भी होता है.
सुलभ बताते हैं, "इसके अलावा कंपनी और यूज़र्स के लिए कमाई का एक अलग मॉडल भी. मिसाल के लिए अगर कोई अपने वीडियो में कोका-कोला की एक बॉटल दिखाता है या किसी शैंपू की बॉटल दिखाता है तो ब्रैंड प्रमोशन के ज़रिए भी दोनों की कमाई होती है."
टेक वेबसाइट 'गिज़बोट' के टीम लीड राहुल सचान के अनुसार अगर यूज़र की कमाई की बात करें तो ये व्यूज़, लाइक, कमेंट और शेयर के अनुपात को देखते हुए तय होती है.
राहुल बताते हैं कि आजकल ज़्यादातर सोशल मीडिया ऐप्स व्यूज़ के मुकाबले 'इंगेजमेंट' और 'कन्वर्सेशन' पर ज़्यादा ध्यान दे रहे हैं. यानी आपके वीडियो को जितने ज़्यादा लोग रिऐक्ट करेंगे और जितने ज़्यादा लोग कमेंट करेंगे, आपकी कमाई भी उतनी ज़्यादा होने की संभावना होगी
.सिर्फ़ फ़ायदे नहीं, ख़तरे भी हैं
ऐसा नहीं है कि टिक-टॉक में सब अच्छा ही है. इसका एक दूसरा पहलू भी है:
- गूगल प्ले स्टोर पर कहा गया है कि इसे 13 साल से ज़्यादा उम्र के लोग ही इस्तेमाल कर सकते हैं. हालांकि इसका पालन होता नहीं दिखता.
भारत समेत दुनिया के तमाम देशों में टिक-टॉक के जरिए जो वीडियो बनाए जाते हैं उसमें एक बड़ी संख्या 13 साल से कम उम्र के लोगों की है.
प्राइवेसी के लिहाज़ से टिक-टॉक ख़तरों से खाली नहीं है. क्योंकि इसमें सिर्फ़ दो प्राइवेसी सेटिंग की जा सकती है- 'पब्लिक' और 'ओनली'. यानी आप वीडियो देखने वालों में कोई फ़िल्टर नहीं लगा सकते. या तो आपके वीडियो सिर्फ़ आप देख सकेंगे या फिर हर वो शख़्स जिसके पास इंटरनेट है.
- अगर कोई यूज़र अपना टिक-टॉक अकाउंट डिलीट करना चाहता है तो वो ख़ुद से ऐसा नहीं कर सकता. इसके लिए उसे टिक-टॉक से रिक्वेस्ट करनी पड़ती है.
- चूंकि ये पूरी तरह सार्वजनिक है इसलिए कोई भी किसी को भी फ़ॉलो कर सकता है, मेसेज कर सकता है. ऐसे में कोई आपराधिक या असामाजिक प्रवृत्ति के लोग छोटी उम्र के बच्चे या किशोरों को आसानी से गुमराह कर सकते हैं.
- कई टिक-टॉक अकाउंट अडल्ट कॉन्टेंट (Blue Film)  से भरे पड़े हैं और चूंकि इनमें कोई फ़िल्टर नहीं है, हर टिक-टॉक यूज़र इन्हें देख सकता है, यहां तक कि बच्चे भी.
सुलभ पुरी कहते हैं कि टिक-टॉक जैसे चीनी ऐप्स के साथ सबसे बड़ी दिक़्कत ये है कि इसमें किसी कॉन्टेन्ट को 'रिपोर्ट' या 'फ़्लैग' का कोई विकल्प नहीं है. ये सुरक्षा और निजता के लिहाज़ से ख़तरनाक तो हो सकता है.
उनका मानना है कि ऐसे में कंपनियों को इतना तो करना ही कि चाहिए कि 16 साल से कम उम्र के लोगों को इसे इस्तेमाल करने से रोकें.
सुलभ पुरी के मुताबिक़ यहां दूसरी बड़ी समस्या 'साइबर बुलिंग' की है. साइबर बुलिंग यानी इंटरनेट पर लोगों का मज़ाक उड़ाना, उन्हें.  नीचा दिखाना, बुरा-भला कहना और ट्रोल करना.
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उसमें अकल मंदी क्या है मैं टिकटोक को इस्तेमाल नहीं करता आया कि मैंने लोगों को फोन में टिक टॉक को देखा है और अगर 10 में से आप वीडियोस को रैंकिंग के हिसाब से नंबर दोगे तो 10 में से आपको 8:00 या 9:00 बीडियोस बेवकूफ आना हरकतों के साथ मिलेगी
जो आप को जबरदस्ती या तो हंसाने या रोनाल्डो डालने के लिए बनाई जाती हैं रुलाने के लिए बनाई जाती है कोई जबरदस्ती आंखों में विक्स लगा कर रो रहा है कोई ग्रीस्लीन भरे हुए हैं कोई मुंह पर इतना भयंकर मेकअप करे हुए हैं कि लोग देख कर डर जाए
छोटे-छोटे बच्चों को जबरदस्ती उटपटांग हरकतों करने के लिए बताया जाता है इस तरह से करिए उस तरह से करिए और बेहूदा अश्लीलता की भरमार है जिसमें दिखाकर फॉलो वर्ष और लाइक्स के चक्कर में उल्टे सीधे नैन नक्श दिखाकर बेतरतीब हरकतें करके वस्तुओं को सिर पर पहनकर नाच किया जा रहा है कोई नंगा हो रहा है कोई बगैर काम का ही नाच रहा है।
मूर्ख बन रहे हैं बना रहे हैं अपनी बेइज्जती करा रहे हैं और नाम दे रहे हैं कि हम लोगों को हंसा रहे हैं लोगों का इंटरटेन कर रहे हैं और जबरदस्ती खुद को वायरल करने की कोशिश कर रहे हैं.
जिसका सुख बहुत अच्छा निक भर का होगा लेकिन उससे ना तो आपको कोई एक किस्म की इज्जत मिलेगी ना ही असली फैन उससे आपको मिलेंगे
आगे क्या होता है कहा नहीं जा सकता लेकिन फिलहाल टिकटोक आधी से ज्यादा आबादी जाहिलो से भरी पड़ी है और बाकी बची आबादी में इनफ्लुएंसर मोटिवेशनल स्पीकर्स और मॉडल्स जो अच्छा कर सकते हैं जिनका यही काम है जो इस तरह की हरकते नहीं करते जिससे किसी को नुकसान पहुंचे जिससे किसी को तकलीफ़ पहुंचे जिससे आप खुद में शर्मिंदा ना हो जिससे आप सच में मनोरंजन महसूस करें ऐसी चीजें दिखाई जा रही है।
रफ्ता रफ्ता टिकटोक भी साफ हो रहा है स्वच्छ भारत की तरह भविष्य में कहा नहीं जा सकता मगर हमें सही कामो के लिए इस्तेमाल करना चाहिए जो के यह बहुत कम है और बुरे चीजों की कमी नहीं इसलिए हमे इसके सारे प्राइवेसी और अच्छे बुरे को समझ लेना चाहिए।
नाच गाना यह सब छोटे सोच वाले लोगो का काम है अगर नहीं तो इन्हे अपने पास में लाकर जहां बहुत सारे मेहमान है वहां नाचने को बोले वह शर्म से अपना सर नीचा कर लेगा क्यू?
क्यू के वहां उसे शर्म लगने लगी है मगर बेशर्म बनकर छुप छुप कर नाचते हो वह अच्छा है और वह तेरे इज्जत को बढ़ाती है अगर बढ़ाती तो रोड छाप वाले लोग ही इस तरह नहीं करते, इस क़िस्म के लोग खुद के और दूसरो के नजरो में अपनी इज्जत खो देते है, कोई इन्हे उतनी अहमियत नहीं देता क्यू यह खुद मामूली टपोरियों के जैसा बन गए है और इसे हम अपनी कामयाबी और तरक्की समझते है। लानत हो ऐसे लोगो पर।
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