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Delhi me Masjid Ko aag laga dena kya yah Achanak hua?

Delhi Me jo Danga o Fasad hua uske jimmedar kaun?
Muslim Samaj Me Naw jawano ki Zindagi.
मैं इसपर लिखना नहीं चाहता था लेकिन अब मस्जिदों पर होते हमले!!
ईश्वर (अल्लाह) की किताब की शहादत!!
और मस्जिद तक को आग लगा देना!!
ये लिखने लायक है मैं ये पोस्ट एक मुस्लिम होने के नाते लिख रहा हूँ और यहाँ मैं अपनी आइडेंटीडिटी को दिखाने में हरगिज़ परहेज़ नहीं करूँगा!!

मैं दिल्ली के मौजूदा हालत को बहुत करीब से देख रहा हूँ और सबकी बातें भी अलग-अलग तरह से सुन रहा हूँ!!

कोई इसके लिए किसी को ज़िम्मेदार बता रहा तो कोई किसी को अब सवाल ये है की उन लोगों को जो आज हमारे लिए दिलों में इतनी नफ़रत लेकर हमारे खिलाफ निकले हैं वो तैयार कैसे किये गए?

हमने तो हमेशा सेकुलर्ज़िम को मज़बूत रखा हमने तो हमेशा
गाँधी,अंबेडकर, इंदिरा, मुलायम, अखिलेश, माया, राहुल, लालू, नितीश, प्रियंका, चंद्रशेखर, अल्का, मनीष, केजरीवाल नाम ही चुने!!

फिर आज इनकी नफरतें हमारे लिए इतनी कैसे बढ़ गयीं???

सोचिये और हाँ ये याद करके सोचियेगा की आपने कब-कब उनके सामने खुद को present (दर्शाया) किया??

अर्रे आप बहुत सीधे हैं मैं यहाँ पूछ रहा हूँ की आपने कब मुस्लिमस् होने के नाते अपनी ज़िम्मेदारी निभाई???

अब भी नहीं समझे आप!!

मैं पूछ रहा हूँ की कितनी बार अपने नॉन मुस्लिमस् दोस्तों को ईश्वर (अल्लाह) की किताब के बारे में बताया??

कितनी बार आपने उन्हें ज़िंदगी का असल मक़सद बताने की कोशिश की??

कितनी बार उन्हें खिलाफ़त का इंसाफ और कानून दिखाया??

तो सर सच तो ये है की आपने उन्हें उनके सामने सिर्फ़ उन जैसा ही बनकर दिखाया कभी गाँधी, कभी अंबेडकर कभी कुछ और कभी कुछ!!

फिर वो सीरत ए मुस्तफा को कैसे पहचान पाते???

फिर तो अल्लाह के कुरान के उपदेश कैसे समझ पाते??

फिर कैसे आप चाहते हैं की आपको इज़्ज़त मिल जाएगी???

नहीं हरगिज़ नहीं, हरगिज़ नहीं, हरगिज़ नहीं!!

क्या आपको वो वक़्त नहीं याद जब अल्लाह के रसूल से जंग के दौरान पत्थर लगने पर सहाबियों ने कहा की अब तो इनके लिए बद्दुआ कर दीजिये!!

तो अल्लाह के रसूल ने कहा की नहीं मुझे ज़माने के लिए रहमत बनाकर भेजा गया है इन्हें मेरा पता नहीं और इनकी नस्लें ही मुझपर ईमान लाएंगीं!!

तो आज हम इस दुनियाँ की हवस में कहाँ हैं और हमारा ईमान कहाँ हैं जाँचा है हमने???

अपने ईमान को गवाह बनाकर कहिये क्या पेश किया हमने??????

क्या दिया हमने उन्हें अपने बारे में????????

आज मैं खुद देखता हूँ अपनी बस्तियों में 70% शराबी हैं 😓
20% चरसी हैं!!
बिना लाइसेंस की गाडियाँ हमारे नौजवाँ लहराते हैं!!
टिक टोक पर खुद की नुमाइश् करते हैं!!
खाली गलियों में वक़्त बिताते हैं!! इन सारे कामो पे यह अपनी बहादुरी समझते है, इसी से इनकी शान व शौकत बढ़ती है, यह इसी को अपनी काबिलियत समझते है, लोग इन्हें दूर से ही जानवर समझ कर भागते है इस मंजर पे यह हंस कर खुद को तसल्ली दिया करते है के हमारी इज्जत व वकार कितनी है, हम अपनी खुद पहचान बताते है के हम कितने बा अखलाक और बा किरदार लोग है, हमारा सोच कितना आला है, जब हम मोहल्ले के चौराहे पे बैठ कर दूसरो का मजाक बनाते है और उनके (जो हमे समझाते हैं) बातो का ग़लत मतलब निकालते तो उस वक्त दुनिया यही कहती है
    यह मुसलमां है जिसे देख शर्माए यहुद व नसारा
और जब लोग हमें अच्छी तरबियत की नसीहत करते है तो हम उनकी बातो पे हंसने लगते है बल्के उनके है नहीं  हम तो पूरी दुनिया को हंस देते है और उसके अंदर कोई ना कोई कमी निकाल ही देते है और यही हमारी प्लस प्वाइंट बन जाती है, लोगो के सामने हमारा सर ऊंचा हो जाता है, और हम फिर से उसी काम को दोहराने लगते है, बगैर किसी को परेशान किए और तकलीफ पहुंचाए इनका तो एक दिन भी नहीं गुजरता बल्कि यह तो इनके ज़िन्दगी का अहम मकसद है। सलीके से बात करना, और हुस्न ए सुलूक से पेश आना तो इनके तरबियत में शामिल ही नही , होता भी कैसे इनके वालिद साहब का भी बचपना और जवानी वैसे ही शायद गुजरा हो फिर उनके लिए यह अमल बेहद जरूरी रहा होगा और जो खुद वैसा हो उसे यह सब बुरा कैसे लग सकता है और जब माहौल ही वैसा हो फिर आने वाली नस्ल से क्या उम्मीद करेंगे वह तो शहनाज़ व परी पैकर के तलाश में रहेंगे ही।

बिना गाली तो बात निकलती ही नहीं ज़ुबाँ से 😓😓😓😓
सारे काम जो मना थे हमने नहीं माना!!

शादी इतनी महंगी कर दीं!!
की कोई हज़ारों बार भी ज़िना करे तो सस्ता😓😓😓😓
जबकि बताया क्या था की शादी को इतना सस्ता कर दो की ज़िना महंगा लगे!!!

कहाँ हैं हम मुसलमान होकर कोई बेटी की शादी के लिए कर्ज़ लेकर 300 आदमियों की बारात और दहेज़ दे???

और कहते हैं की हमें तो अल्लाह ने दिया है हम तो करेंगे!!

सब नहीं लिखा जा सकता लेकिन हर जगह हम दीन से दूर हैं!!

ये दीन से दूरी की ही वजह है की अब लोग हमसे इतना दूर हैं की दुनियाँ हमें ऐसे खाना चाहती है जैसे भूखें दस्तरखाँ पर टूट पड़ते हैं!!

याद है न अल्लाह के नबी की वो हदीस जिसका मफ़हूम भी यही था!!

की जब तुम दीन से दूर हो जाओगे तो दुनियाँ तुम पर ऐसे ही टूट पड़ेगी जैसे दस्तरखाँ पर भूखें टूट पड़ते हैं!!

हाँ तो याद रखिये रोइये, चिल्लाइये कोई नहीं आने वाला और ऐसी क़ौम पर अल्लाह की मदद भी नहीं आती जो अल्लाह की ही नाफरमानी करे और जब आज़माइश् आये तो रोये!!

तुम्हारे को अपने मसले खुद ही सुलझाने हैं और इन सबका वाहिद रास्ता सिर्फ़ अल्लाह है!!

जो तमाम जहानों का मालिक है और वो मोमिनों से वादा करता है की"तुम ही गालिब रहोगे अगर तुम मोमिन हो "

तो दुआ करें की हम पूरे के पूरे दीन पर वापस आयें और तमाम जहान को सीरत ए मुस्तफा पहुचाएं!!

बाक़ी ये पोस्ट दिल की असल गवाही है जिसे मैंने बरसों पहले से मेहसूस किया है की ऐसा होना है और होता रहेगा!!

लिहाज़ा सभी हज़रात नमाज़ों की पावंदी करें और झूठ, क़ीनआ, चुगली और तमाम बुराइयों से परहेज़गारी की पावंदी करें!!

तभी हमें दुनियाँ अपने गले से लगाएगी जब हमारे ईमान मज़बूत होंगे!!

बाक़ी सब फ़ानी है और यहीं रह जाना है!!

अल्लाह हाफ़िज़

अगर दिल गवाही दे तो इसे इतना शेयर करिये की आपके सहारे ही किसी को अमल की तौफीक़ मिल जाए!!

बाक़ी ये सबसे आसान रास्ता है अगर इसे भी आगे पहुँचाने में आपकी हिम्मत साथ न दे या दिल इरादा न करे तो आप यकीं करें!! आप भी अल्लाह की पकड़ से नहीं बच सकेंगे!!

बाक़ी अल्लाह हमें हिदायत दे
आमीन सुम्मा आमीन

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