Hmari Media aur Tv Serial hme aur hmari Nasl ko kis Raah pe le ja rahi hai?
यह 22 साल की रसियन लड़की है जो एक फूड कंपनी में काम करती है, दो बच्चो को मां भी है और मां होने की वजह से अपने बच्चे की परवरिश भी करती है, नहलाना, कपड़े साफ करना, दूध पिलाना वगैरह वगैरह। अपने दो बच्चो को साथ लेकर घर घर खाना भी पहुंचाती है। इन लोगो के लिए यही आजादी का मतलब है। यह हुई औरतों पे ज़ुल्म। बच्चे भी संभाले और दर दर कि ठोकरें भी खाए रोजगार के लिए।
इसी तहजीब के पीछे हम मरे जा रहे है।
जबकि इसलाम ने औरत पे ऐसा कोई ज़ुल्म नहीं
डाला, औरत सिर्फ घर संभाले और बच्चे व रोजगार का काम मर्द के जिम्मे है।
फिर यूरोप कहता है मुस्लिम औरतों पे ज़ुल्म होता है, उसे ज़ंजीर में जकर कर रखता है, सर उठा कर जीने नहीं देता, उसे इंसान नहीं जानवर समझता है वगैरह। मगर इनके यह कितनी आजादी है?
यह लोग खुद अपने यहां औरतों को काम करने की मशीन समझते है, यह लोग इंसान नहीं मशीन बना दिया है अपने फायदे के मुताबिक इस इस्तेमाल करते है। जिसको इसलाम ने शहजादी बनाया उनको यह लोग बाजारू औरत बनाने मै लगे है। इनके आजादी का मतलब बेहयाई, फहाशी, शर्म व हया का जनाजा निकालना है।
ﻋﻮﺭﺕ ﺍﻭﺭ ﺍﺳﻼﻡ
ﺍﺱ ﺑﺎﺕ ﻣﯿﮟ ﺗﻮ ﺷﮏ ﮐﯽ ﮔﻨﺠﺎ ﺋﺶ ﻧﮩﯿﮟ ﮐﮧ ﺍﺳﻼﻡ ﻋﻮﺭﺕ ﺍﻭﺭ ﻣﺮﺩ ﮐﻮ ﺑﺎﮨﺮ ﻧﮑﻠﺘﮯ ﻭﻗﺖ ﻧﮕﺎﮨﯿﮟ ﻧﯿﭽﯽ ﺭﮐﮭﻨﮯ ﮐﺎ ﺣﮑﻢ ﺩﯾﺘﺎ ﮨﮯ ﺗﺎﮐﮧ ﻓﺘﻨﮧ ﻧﺎ ﭘﮭﯿﻠﮯ ﺍﺳﯽ ﻟﯿﮱ ﻣﺤﺮﻡ ﺍﻭﺭ ﻧﺎ ﻣﺤﺮﻡ ﺭﺷﺘﻮﮞ ﮐﯽ ﺗﻔﺮﯾﻖ ﻋﻤﻞ ﻣﯿﮟ ﺁ ﺋﯽ
ﺍﻭﺭ ﺍﯾﺴﯽ ﺍﺣﺎﺩیث بے شمار ﮨﮯ ﺟﺲ ﻣﯿﮟ ﻋﻮﺭﺗﻮﮞ ﮐﺎ ﭼﮩﺮﮦ ﺩﯾﮑﮭﻨﮯ ﺳﮯ ﻣﻤﺎﻧﻌﺖ ﮐﺎ ﺍﻇﮩﺎﺭ ﮨﮯ ﺍﯾﮏ ﺭﻭﺍﯾﺖ ﺑﮩﺖ ﺳﯽ ﺍﺳﻨﺎﺩ ﺳﮯ ﺳﯿﺪﻧﺎ ﻋﻠﯽ ﺭﺿﯽ ﺍﻟﻠﮧ ﻋﻨﮧ ﺳﮯ ﻣﺮﻭﯼ ﮨﮯ ﻣﮕﺮ ﺑﺎﺕ ﭘﮭﺮ ﻭﮨﯿﮟ ﮨﮯ ﮨﻤﺎﺭﯼ ﺍﺳﻼﻣﯽ ﺗﻌﻠﯿﻤﺎﺕ ﺳﮯ ﺩﻭﺭﯼ ﻟﮍﮐﯿﺎﮞ ﻧﻤﺎﺯ ﺭﻭﺯﮦ ﺳﺐ ﮐﺮﺗﯽ ﮨﯿﮟ ﻣﮕﺮ ﺍﻥ ﮐﻮ ﺑﮯ ﺣﯿﺎﺋﯽ ﮐﯿﺎ ﮨﮯ ﺍﺱ ﮐﮯ ﻣﺘﻌﻠﻖ ﺍﺳﻼﻡ ﮐﺎ ﻭﺍﺿﺢ ﻧﮑﺘﮧ ﻧﻈﺮ ﻣﻌﻠﻮﻡ ﻧﮩﯿﮟ ﮐﯿﻮﻧﮑﮧ ﻭﮦ ﺍﺳﻼﻡ ﮐﻮ ﭘﮍﮬﺘﯽ ﮨﯽ ﻧﮩﯿﮟ ﯾﮧ ﺑﺎﺕ ﺳﻮ ﻓﯿﺼﺪ ﺍﻋﺘﻤﺎﺩ ﺳﮯ ﺗﻮ ﻧﮩﯿﮟ ﮐﯽ ﺟﺎ ﺳﮑﺘﯽ ﺍﮔﺮ ﮐﻮﺋﯽ ﭘﮍﮪ ﻟﮯ ﺗﻮ ﺍﺱ ﭘﺮ ﻋﻤﻞ ﮐﮩﺎﮞ ﺗﮏ ﮐﺮﮮ ﮔﺎ ﻣﮕﺮ ﺗﺠﺮﺑﮧ ﯾﮧ ﮐﮩﺘﺎ ﮨﮯ ﮐﭽﮫ ﻧﺎ ﮐﭽﮫ ﺍﺛﺮ ﺿﺮﻭﺭ ﭘﮍﺗﺎ ﮨﮯ
ﺩﻭﺳﺮﯼ ﻃﺮﻑ ﭨﯽ ﻭﯼ ﺍﻭﺭ ﺍﻧﭩﺮﻧﯿﭧ ﮨﯿﮟ ﯾﮧ ﺩﻧﯿﺎ ﻋﻮﺭﺗﻮﮞ ﮐﻮ ﺑﺮا ﺳﺮ ﻋﺎﻡ ﺑﺮﺍﺋﯽ ﮐﯽ ﺩﻋﻮﺕ ﺩﯾﺘﯽ ﮨﮯ ﺑﮯ ﺣﯿﺎ ﺋﯽ ﭘﺮ ﻣﺎ ﺋﻞ ﮐﺮ ﺗﯽ ﮨﮯ ﺍﺏ ﺗﻮ ﺍﺷﺘﮩﺎﺭ ﺑﮭﯽ ﺍﯾﺴﮯ ﭼﻠﻨﮯ ﻟﮕﮯ ﮨﯿﮟ ﺍﻭﺭ ﯾﮧ ﺟﻮ ﭼﻼﺗﺎ ﮨﮯ ﺟﻮ ﺑﻨﺎﺗﺎ ﮨﮯ ﺳﺐ ﻣﻌﻠﻮﻡ ﮨﮯ ﮐﮧ ﮐﻮﻥ ﻣﺴﻠﻤﺎﻧﻮﮞ ﮐﻮ ﺑﮯ ﺣﯿﺎی ﮐﮯ ﺭﺳﺘﮯ ﭘﺮ ﭼﻼﻧﺎ ﭼﺎﮨﺘﺎ ﮨﮯ ﮐﯿﻮﻧﮑﮧ ﺟﺐ ﮐﻮ ﺋﯽ ﻗﻮﻡ ﺑﮯ ﺣﯿﺎﺋﯽ ﻣﯿﮟ ﭘﮍﮪ ﺟﺎ ﺗﯽ ﮨﮯ ﭘﮭﺮ ﺍﺱ ﺳﮯ ﺟﺮﺃﺕ ﺍﻭﺭ ﺟﻮﺍﻧﻤﺮﺩﯼ ﺣﺘﻢ ﮨﻮ ﺟﺎ ﺗﯽ ﮨﮯ
ﺍﻭﺭ ﺍﺱ ﮐﯽ ﺟﮕﮧ ﺳﺴﺘﯽ ﺍﻭﺭ ﮐﺎﮨﻠﯽ ﻟﮯ ﻟﯿﺘﯽ ﮨﮯ ﯾﮧ ﮨﻤﺎﺭﺍ ﻗﻮﻝ ﻧﮩﯿﮟ ﮨﮯ ﺍﺱ ﺍﻣﺖ ﮐﮯ ﺑﻠﻨﺪ ﭘﺎﯾﺎ ﺷﻌﺮﺍ ﺍﻭﺭ ﻣﻤﺘﺎﺯ ﻋﻠﻤﯽ ﺷﺤﺼﯿﺎﺕ ﺍﯾﺴﺎ ﻓﺮﻣﺎ ﮔﺌﯽ ﮨﯿﮟ ﻣﮕﺮ ﻣﻐﺮﺏ ﮐﯽ ﭼﮑﺎﭼﻮﻧﺪ ﺍﻭﺭ ﭨﯽ ﻭﯼ ﮈﺭﺍﻣﻮﮞ ﺍﻭﺭ ﻓﻠﻤﻮﮞ ﮐﯽ ﻣﺴﻠﻂ ﮐﯽ ﮔﺌﯽ ﺗﮩﺬﯾﺐ ﮨﻤﯿﮟ ﺍﻥ ﺑﺎﺗﻮﮞ ﭘﺮ ﺗﻮﺟﮧ ﮐﺮﻧﮯ ﮐﯽ ﺯﺣﻤﺖ ﻧﮩﯿﮟ ﺩﯾﺘﯽ ﯾﮧ ﻓﯿﺲ ﺑﮏ ﯾﮧ ﮔﺮﻭﭖ ﺑﮩﺖ ﻣﺤﺪﻭﺩ ﺫﺭﺍﺋﻊ ﮨﯿﮟ ﮐﮧ ﮨﻢ ﺍﺱ ﻧﮑﺘﮯ ﮐﻮ ﮐﺎﻣﻞ ﻃﻮﺭ ﭘﺮ ﻋﻮﺍﻡ ﮐﮯ ﺍﺫﮨﺎﻥ ﻣﯿﮟ ﺍﺗﺎﺭ ﺳﮑﯿﮟ ﺟﺐ ﺗﮏ ﮐﻮﺋﯽ ﺧﻮﺩ ﺳﮯ ﻗﺮﺁﻥ ﻭ ﺗﻔﺎﺳﯿﺮ , ﺣﺪﯾﺚ ﻭ ﺍﺳﻼﻣﯽ ﺗﺎﺭﯾﺢ ﮐﺎ ﻣﻄﺎﻟﻌﮧ ﻧﮩﯿﮟ ﮐﺮﮮ ﮔﺎ ﺍﻭﺭ ﺟﺪﯾﺪ ﻣﯿﮉﯾﺎ ﮐﮯ ﭘﯿﺶ ﮐﺮ ﺩﮦ ﻧﻄﺮﯾﺎﺕ ﮐﺎ ﺍﺳﯿﺮ ﺭﮨﮯ ﮔﺎ ﯾﮧ ﺑﺎﺕ ﺳﻤﺠﮫ ﻧﮩﯿﮟ ﺁﺳﮑﺘﯽ ﺍﻟﻠﮧ ﮐﮯ ﺑﻨﺪﻭﮞ ﺍﻭﺭ ﮐﭽﮫ ﻧﮩﯿﮟ ﮐﺮ ﺳﮑﺘﮯ ﺗﻮ ﺍﻗﺒﺎﻝ ﺟﯿﺴﮯ ﻣﺮﺩ ﺩﺭﻭﯾﺶ ﮐﯽ ﮐﺘﺐ ﮨﯽ ﭘﮍﮪ ﻟﻮ
ﯾﻘﯿﻦ ﮐﺮﻭ ﻭﮦ ﮐﺘﺐ ﺑﮩﺖ ﭼﮭﻮﭨﯽ ﭼﮭﻮﭨﯽ ﮨﯿﮟ ﮐﻠﯿﺎﺕ ﺍﻗﺒﺎﻝ ﺍﺭﺩﻭ ﺍﻭﺭ ﻓﺎﺭﺳﯽ ﺍﻥ ﮐﺎ ﭘﮍﮬﻨﺎ ﮐﻮﺋﯽ ﭘﮩﺎﮌ ﻧﮩﯿﮟ ﮨﮯ
ﺍﻭﺭ ﺁخری ﺑﺎﺕ ﺍﮔﺮ ﯾﻮﺭﭖ ﮐﯽ ﻏﻼﻣﯽ ﮐﺮﻧﯽ ﮨﯽ ﮨﮯ ﺗﻮ ﺟﯿﺴﺎ ﮐﮧ ﻣﺮﺷﺪ ﺍﻗﺒﺎﻝ ﻧﮯ ﮐﮩﺎ
ﯾﻮﺭﭖ ﮐﯽ ﻏﻼﻣﯽ ﭘﮧ ﮨﻮﺍ ﺭﺿﺎ ﻣﻨﺪ ﺗﻮ
ﻣﺠﮭﮯ ﮔﻼ ﺗﺠﮫ ﺳﮯ ﮨﮯ ﯾﻮﺭﭖ ﺳﮯ ﻧﮩﯿﮟ
ﺗﻮ ﺍﻥ ﮐﯽ ﺗﮩﺬﯾﺐ ﮐﺎ ﺍﯾﮏ ﺑﻨﯿﺎﺩﯼ ﻋﻨﺼﺮ ﻣﻄﺎﻟﻌﮧ ﺑﮭﯽ ﮨﮯ ﯾﮧ ﻭﺻﻒ ﻭﮨﺎﮞ ﺍﺱ حد ﺗﮏ ﻏﺎﻟﺐ ﮨﮯ ﺟﺲ ﮐﺎ ﮨﻢ ﺗﺼﻮﺭ ﺑﮭﯽ ﻧﮩﯿﮟ ﮐﺮ ﺳﮑﺘﮯ ﮨﻢ ﺍﭘﻨﯽ ﭨﺎﺋﻢ ﻻﺋﻦ ﭘﺮ ﻣﺴﻠﺴﻞ ﺍﺳﯽ ﻣﻮ ﺿﻮﻉ ﭘﺮ ﺑﺤﺚ ﮐﺮ ﺭﮨﮯ ﮨﯿﮟ ﺗﻮ ﮐﺴﯽ ﺑﮭﯽ ﺍﻋﺘﺮﺍﺽ ﺳﮯ ﻗﺒﻞ ﺍﺱ ﻣﻀﻤﻮﻥ ﮐﻮ ﺩﻭﺳﺮﺍ ﻣﻀﺎﻣﯿﻦ ﮐﮯ ﺳﺎﺗﮫ ﻣﻼ ﮐﺮ ﺿﺮﻭﺭ ﺩﯾﮑﮭﯿﮯ ﮔﺎ۔
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