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Zaira Wasim Muslim actress left Bollywoood real story. Zaira Wasim Kyu Khatam Ki Filmi Duniya Se Apni Talluq?

Zaira Wasim Kyu Khatam Ki Filmi Duniya Se Apni Talluq Aur USki Wajah Kya Btayi?

फ़िल्म 'दंगल' और 'सीक्रेट सुपरस्टार' जैसी फ़िल्मों से चर्चित हुईं बाल अदाकारा ज़ायरा वसीम ने बॉलीवुड को अलविदा कह दिया है. फ़ेसबुक पर लिखी एक लंबी पोस्ट में उन्होंने कहा है कि अपने धर्म और अल्लाह के लिए ये फ़ैसला ले रही हैं.
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Zaera Wasim in Secret Super Star Movie
ظایرا وسیم نے اپنی فلمی دنیا سے کیو الوداع کہا؟
ﯾﮧ ﮨﮯ ﺍﻧﮉﯾﺎﻥ ﺍﯾﮑﭩﺮﺱ ﻇﺎﺋﺮﮦ ﻭﺳﯿﻢ (Zaira waseem) ﺟﺲ ﻧﮯ ﻋﺎﻣﺮ ﺧﺎﻥ ﮐﯽ ﭘﮩﻠﯽ ﻓﻠﻢ ﺩﻧﮕﻞ ﻣﯿﮟ ﻣﯿﻦ ﺭﻭﻝ ﺍﺩﺍ ﮐﯿﺎ ﺍﻭﺭ ﯾﮧ ﻓﻠﻢ ﭘﻮﺭﯼ ﺩﻧﯿﺎ ﻣﯿﮟ ﮐﺎﻣﯿﺎﺏ ﮨﻮﮔﺌﯽ۔ ﭘﺎﮐﺴﺘﺎﻥ ﭼﺎﺋﯿﻨﮧ ﺍﻭﺭ ﯾﻮﺭﭖ ﺳﻤﯿﺖ ﭘﻮﺭﯼ ﺩﻧﯿﺎ ﺳﮯ ﺩﻭﺳﻮ ﮐﺮﻭﮌ ﺭﻭﭘﮯ ﮐﻤﺎ ﮔﺌﮯ ﺍﻭﺭ ﺍﻥ ﮐﻮ ﺍﻧﮉﯾﺎ ﻣﯿﮟ ﺑﯿﺴﭧ ﺍﯾﻮﺍﺭﮈ ﺳﮯ ﺑﮭﯽ ﻧﻮﺍﺯﺍ ﮔﯿﺎ۔ ﭘﮭﺮ ﺍﺳﮑﮯ ﺑﻌﺪ ﺍﺳﮑﯽ ﺳﯿﮑﺮﯾﭧ ﺳﭙﺮ ﺳﭩﺎﺭ ﻧﺎﻣﯽ ﻓﻠﻢ ﺁﮔﺌﯽ ﺍﻭﺭ ﻭﮦ ﺩﻧﮕﻞ ﮐﻮ ﺑﮭﯽ ﭘﯿﭽﮭﮯ ﭼﮭﻮﮌ ﮔﺌﯽ ﺍﻭﺭ ﻭﮦ ﻧﻮ ﺳﻮ ﮐﺮﻭﮌ ﺭﻭﭘﮯ ﮐﻤﺎﮔﺌﯽ۔ ﻣﮕﺮ ﺁﺝ ﺍﭼﺎﻧﮏ ﺍﺱ ﻟﮍﮐﯽ ﻧﮯ ﻓﻠﻤﯽ ﮐﯿﺮﺋﯿﺮ ﺳﮯ ﮨﻤﯿﺸﮧ ﮐﮯ ﻟﺌﮯ ﺍﺳﺘﻌﻔٰﯽ ﺩﮮ ﺩﯾﺎ ﺍﻭﺭ ﻭﮦ ﺑﮭﯽ ﺍس ﻮﻗﺖ ﺟﺐ ﺍﺳﮑﯽ ﺷﮩﺮﺕ ﻋﺮﻭﺝ ﭘﺮ ﺗﮭﯽ۔ ﺍﻧﮑﮯ ﺳﭩﯿﭩﻤﻨﭧ ﻣﯿﮟ ﻧﮯ ﺍﺳﯽ ﭘﯿﮑﭽﺮﻭﮞ ﻣﯿﮟ ﺍﭘﻠﻮﮈ ﮐﺮﺩﯼ ﮨﮯ ﺧﻮﺩ ﺩﯾﮑﮫ ﺳﮑﺘﮯ ﮨﯿﮟ ﯾﺎ ﺍﺳﮑﮯ ﺍﻧﺴﭩﺎ ﮔﺮﺍﻡ ﺁﺋﯽ ﮈﯼ ﺑﮭﯽ ﺩﯾﮑﮫ ﺳﮑﺘﮯ ﮨﯿﮟ ﮐﮧ ﺍﻧﮩﻮﮞ ﻧﮯ ﺧﻮﺩ ﯾﮧ ﺳﭩﯿﭩﻤﻨﭧ ﺩﯼ ﮨﮯ۔
ﺍﻧﮑﺎ ﮐﮩﻨﺎ ﮨﮯ ﮐﮧ ﻣﯿﺮﯼ ﻋﺰﺕ ﻧﻔﺲ ﺩﻥ ﺑﺪﻥ ﻣﺠﺮﻭﺥ ﮨﻮﺭﮨﯽ ﺗﮭﯽ۔ ﭘﯿﺴﮧ ﺍﻭﺭ ﺷﮩﺮﺕ ﻋﺮﻭﺝ ﭘﺮ ﮨﻮﻧﮯ ﮐﮯ ﺑﺎﻭﺟﻮﺩ ﻣﯿﺮﯼ ﺯﻧﺪﮔﯽ ﻣﯿﮟ ﺭﻭﺯ ﻧﺌﯽ ﻧﺌﯽ ﭨﯿﻨﺸﻦ ﺟﻨﻢ ﻟﮯ ﺭﮨﯽ ﺗﮭﯽ۔ ﺗﺐ ﻣﯿﮟ ﻧﮯ ﺍﭘﻨﮯ ﺁﭖ ﭘﺮ ﺗﻮﺟﮧ ﺩﮮ ﺩﯾﺎ ﮐﮧ ﺍﯾﺴﺎ ﮐﯿﺎ ﮨﮯ ﺟﻮ ﻏﻠﻂ ﮨﻮﺭﮨﺎ ﮨﮯ ﺍﻭﺭ ﻭﮦ ﺗﮭﯽ ﻣﯿﺮﯼ ﮐﻤﺎﺋﯽ ﺟﻮ ﮐﮧ حرام ﮐﯽ ﮐﻤﺎﺋﯽ ﺗﮭﯽ۔ ﺍﻭﺭ ﺍﻧﮩﻮﮞ ﻧﮯ ﮐﭽﮫ ﻗﺮﺍﻧﯽ ﺁﯾٰﺘﻮﮞ ﮐﺎ حوالہ ﺑﮭﯽ ﺩﮮ ﺭﮐﮭﺎ ﮨﮯ۔ ﮐﮧ ﺍﺧﺮﺕ ﮐﮯ ﺩﻥ ﻣﯿﮟ ﺍﭘﻨﮯ ﺧﻀُﻮﺭ ﺻﻠّﯽ ﺍﻟﻠّٰﮧُ ﻋَﻠﯿﮧٖ ﻭَﺍٓﻟٖﮧ ﻭَﺳّﻠَﻢ ﮐﻮ ﮐﯿﺎ ﺟﻮﺍﺏ ﺩﻭﻧﮕﯽ ﮐﮧ ﻣﯿﮟ ﻧﮯ ﮐﺲ ﮐﮯ ﻧﻘﺶ ﻗﺪﻡ ﭘﺮ ﭼﻞ ﮐﺮ ﺯﻧﺪﮔﯽ ﮔﺰﺍﺭﺩﯼ ﮨﮯ۔ ﺍﻧﮑﯽ ﺗﺨﺮﯾﺮ ﺑﮩﺖ ﻟﻤﺒﯽ ﮨﮯ۔
ﻏﺮﺽ ﯾﮧ ﻟﮍﮐﯽ ﺁﺟﮑﻞ ﮐﯽ ﻣﺎﮈﺭﻥ ﻟﮍﮐﯿﻮﮞ ﮐﮯ ﻟﺌﮯ ﺍﯾﮏ ﻣﺜﺎﻝ ﮨﮯ ﮐﮧ ﺍﺳﮑﯽ ﮐﺎﻣﯿﺎﺑﯽ ﺍﺳﻼﻣﯽ ﻃﺮﯾﻘﻮﮞ ﺍﻭﺭ ﺍﺳﻼﻣﯽ ﺗﻌﻠﯿﻤﺎﺕ ﻣﯿﮟ ﮨﮯ۔ ﺍﻟﻠﮧ ﮐﯽ ﺑﺘﺎﺋﯽ ﮨﻮﺋﯽ ﻃﺮﯾﻘﻮﮞ ﺳﮯ ﺍﻧﮑﺎﺭ ﮐﺮﻭﮔﮯ ﺗﻮ ﺍﻟﻠﮧ ﺗﻤﮭﯿﮟ ﺗﻤﮭﺎﺭﯼ ﺩﻭﻟﺖ ﺍﻭﺭ ﺷﮩﺮﺕ ﺳﻤﯿﺖ ﺫﻟﯿﻞ ﻭﺧﻮﺍﺭ ﮐﺮﮮ ﮔﺎ۔ ﺍﻧﮑﯽ ﺍﺧﮑﺎﻣﺎﺕ ﮐﯽ ﺑﺠﺎﻭﺭﯼ ﮐﺮﻭﮔﮯ ﺗﻮ ﻏﺮﺑﺖ ﮐﯽ ﺩﻟﺪﻝ ﻣﯿﮟ ﭘﮭﻨﺲ ﮐﺮ ﺑﮭﯽ ﺍﻟﻠﮧ ﺗﻤﮭﯿﮟ ﺳﺮ ﺧﺮﻭ ﺭﮐﮭﮯ ﮔﺎ۔
ﺧﺪﯾﺚ ﻗﺪﺳﯽ ﮨﮯ۔ ﺍﻟﻠﮧ ﺍﭘﻨﮯ بندہ ﺳﮯ ﻓﺮﻣﺎﺗﺎ ﮨﮯ ﮐﮧ
ﺍﯾﮏ ﺗﯿﺮﯼ ﭼﺎﮨﺖ ﮨﮯ ﺍﻭﺭ ﺍﯾﮏ ﻣﯿﺮﯼ ﭼﺎﮨﺖ ﮨﮯ
ﮐﺮﺩﻭ ﻗﺮﺑﺎﮞ ﺍﭘﻨﯽ ﭼﺎﮨﺖ ﮐﻮ ﻣﯿﺮﯼ ﭼﺎﮨﺖ ﭘﮯ
ﭘﮭﺮ ﻣﯿﮟ ﺗﻤﮭﯿﮟ ﻭﮦ ﺑﮭﯽ ﺩﻭﻧﮕﺎ ﺟﻮ ﺗﯿﺮﯼ ﭼﺎﮨﺖ ﮨﮯ
ﻧﺎ ﮐﯿﺎ ﺍﯾﺴﺎ ﺟﻮ ﻣﯿﺮﯼ ﭼﺎﮨﺖ ﮨﮯ
ﭘﮭﺮ ﻣﯿﮟ ﺗﻤﮭﯿﮟ ﺗﮭﮑﺎﺩﻭﻧﮕﺎ ﺑﮭﮕﺎﺩﻭﻧﮕﺎ ﺗﯿﺮﯼ ﭼﺎﮨﺖ ﻣﯿﮟ
ﺍﻭﺭ ﮨﻮﮔﺎ ﭘﮭﺮ ﺑﮭﯽ ﻭﮨﯽ ﺟﻮ ﻣﯿﺮﯼ ﭼﺎﮨﺖ ﮨﮯ
ﺍﻟﻠﮧ ﮨﻢ ﺳﺐ ﮐﻮ ﺩﯾﻦ ﺍﺳﻼﻡ ﭘﺮ ﺻﺨﯿﺦ ﻣﻌﻨﻮﮞ ﻣﯿﮟ ﭼﻠﻨﮯ ﮐﯽ ﺗﻮﻓﯿﻖ ﺩﮮ ﺩﯾﮟ۔ ﺁﻣﯿﻦ ﺛﻤٰﮧ ﺁﻣﯿﻦ

 पढ़िए उनके पोस्ट के अहम हिस्से

पाँच साल पहले मैंने एक फ़ैसला किया था, जिसने हमेशा के लिए मेरा जीवन बदल दिया था. मैंने बॉलीवुड में क़दम रखा और इससे मेरे लिए अपार लोकप्रियता के दरवाज़े खुले. मैं जनता के ध्यान का केंद्र बनने लगी. मुझे क़ामयाबी की तरह पेश किया गया और अक्सर युवाओं के लिए रोल मॉडल बताया जाने लगा.
Zaira Wasim original Post on Facebook

हालांकि मैं कभी ये नहीं करना चाहती थी और ऐसा नहीं बनना चाहती थी. ख़ासकर क़ामयाबी और नाकामी को लेकर मेरे विचार ऐसे नहीं थे, जिन्हें मैंने खोजना और समझना शुरू ही किया था.

आज जब मैंने बॉलीवुड में पांच साल पूरे कर लिए हैं तब मैं ये बात स्वीकार करना चाहती हूं कि इस पहचान के साथ, यानी अपने काम के साथ सच में ख़ुश नहीं हूं. लंबे अर्से से मैं ये महसूस कर रही हूं कि मैंने कुछ और बनने के लिए संघर्ष किया है.
मैंने अब उन चीज़ों को खोजना और समझना शुरू किया जिन चीज़ों के लिए मैंने अपना समय, प्रयास और भावनाएं समर्पित की हैं. इस नई लाइफ़स्टाइल को समझा तो मुझे अहसास हुआ कि भले ही मैं यहां पूरी तरह से फिट बैठती हूं, लेकिन मैं यहां के लिए नहीं बनीं हूं.

इस क्षेत्र ने मुझे बहुत प्यार, सहयोग और तारीफ़ें दी हैं लेकिन ये मुझे गुमराही के रास्ते पर भी ले आया है. मैं ख़ामोशी से और अनजाने में अपने ईमान से बाहर निकल आई.

मैंने ऐसे माहौल में काम करना जारी रखा जिसने लगातार मेरे ईमान में दख़लअंदाज़ी की. मेरे धर्म के साथ मेरा रिश्ता ख़तरे में आ गया. मैं नज़रअंदाज़ करके आगे बढ़ती रही और अपने आप को आश्वस्त करती रही कि जो मैं कर रही हूं सही है और इससे मुझ पर फ़र्क़ नहीं पड़ रहा है. मैंने अपने जीवन से सारी बरकतें खो दीं.
बरकत ऐसा शब्द है जिसके मायने सिर्फ़ ख़ुशी या आशीर्वाद तक ही सीमित नहीं है बल्कि ये स्थिरता के विचार पर भी केंद्रित है और मैं इसे लेकर संघर्ष करती रही हूं.

मैं लगातार संघर्ष कर रही थी कि मेरी आत्मा मेरे विचारों और स्वभाविक समझ से मिलाप कर ले और मैं अपने ईमान की स्थिर तस्वीर बना लूं. लेकिन मैं इसमें बुरी तरह नाकाम रही. कोई एक बार नहीं बल्कि सैकड़ों बार. अपने फ़ैसले को मज़बूत करने के लिए मैंने जितनी भी कोशिशें कीं, मैं वही बनी रही जो मैं हूं और हमेशा अपने आप से ये कहती कि जल्द ही मैं बदल जाऊंगी.
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Zaira Wasim in Secret Super Star Movie
मैं लगातार टालती रही और मैं अपनी आत्मा को इस विचार में फंसाती रही और छलती रही कि मैं जानती हूं मैं जो कर रही हूं वो सही नहीं लग रहा. लेकिन एक दिन जब सही समय आएगा तो मैं इस पर रोक लगा दूंगी. ऐसा करके मैं लगातार ख़ुद को कमज़ोर स्थिति में रखती, जहां मेरी शांति, मेरे ईमान और अल्लाह के साथ मेरे रिश्ते को नुक़सान पहुंचाने वाले माहौल का शिकार बनना आसान था.

मैं चीज़ों को देखती रही और अपनी धारणाओं को ऐसे मोड़ती रही जैसे मैं चाहती थी, बिना ये समझे कि मूल बात ये है कि उन्हें ऐसे ही देखा जाए जैसी की वो हैं.
मैं बचकर भागने की कोशिशें करती और आख़िरकार बंद रास्ते पर पहुंच जाती. इस अंतहीन सिलसिले में कुछ था जो मैं खो रही थी और जो लगातार मुझे प्रताड़ित कर रहा था, जिसे न मैं समझ पा रही थी और न ही संतुष्ट हो पा रही थी.
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Zaira Wasim Who acts in Secret Super Star and Dangal Movie by Aamir Khan
जब तक मैंने अपने दिल को अल्लाह के शब्दों से जोड़कर अपनी कमज़ोरियों से लड़ने और अपनी अज्ञानता को सही करने का फ़ैसला नहीं किया.

क़ुरान के महान और आलौकिक ज्ञान में मुझे शांति और संतोष मिला. वास्तव में दिल को सुकून तब ही मिलता है जब इंसान अपने ख़ालिक़ के बारे में, उसके गुणों, उसकी दया और उसके आदेशों के बारे में जानता है.

मैंने अपनी स्वयं की आस्तिकता को महत्व देने के बजाय अपनी सहायता और मार्गदर्शन के लिए अल्लाह की दया पर और अधिक भरोसा करना शुरू कर किया
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मैंने जाना कि मेरे धर्म के मूल सिद्धांतों के बारे में मेरा कम ज्ञान और कैसे पहले बदलाव लाने की मेरी असमर्थता, दरअसल दिली सुकून और ख़ुशी की जगह अपनी (दुनियावी और खोखली) इच्छाओं को बढ़ाने और संतुष्ट करने का नतीजा थी.

मेरा दिल शक़ और ग़लती करने की जिस बीमारी से पीड़ित था उसे मैंने पहचान लिया था. हमारे दिल पर दो बीमारियां हमला करती हैं. संदेह और त्रुटि और दूसरी हवस और इच्छाएं. इन दोनों का ही क़ुरान में ज़िक्र है.
अल्लाह कहता है, "उनके दिलों में एक बीमारी है (संदेह और पाखंड) की जिसे मैंने और ज़्यादा बढ़ा दिया है." मुझे अहसास हुआ कि इसका इलाज सिर्फ़ अल्लाह की शरण में जाने से ही होगा और वास्तव में जब मैं रास्ता भटक गई थी तब अल्लाह ही ने मुझे हार दिखाई.

क़ुरान और पैग़ंबर का मार्गदर्शन मेरे फ़ैसले लेने और तर्क करने की वजह बना और इसने ज़िंदगी के प्रति मेरे नज़रिए और ज़िंदगी के मायने को बदल दिया.

हमारी इच्छाएं हमारी नैतिकता का प्रतिबिंब हैं. हमारे मूल्य हमारी आंतरिक पवित्रता का बाहरी रूप हैं. इसी तरह क़ुरान और सुन्नत के साथ हमारा रिश्ता, अल्लाह और धर्म के साथ हमारे रिश्ते और हमारी इच्छाओं, मक़सद और ज़िंदगी के मायने को परिभाषित करता है.

मैंने कामयाबी को लेकर अपने विचार, अपनी ज़िंदगी के मायने और मक़सद के गहरे स्रोतों को लेकर सावधानीपूर्वक सवाल किया. सोर्स कोड जिसने मेरी धारणाओं को प्रभावित किया, वो अलग आयामों में विकसित हुआ.
कामयाबी का हमारे पक्षपाती, भ्रमित, पारंपरिक और खोखले जीवन मूल्यों से सह-संबंध नहीं है. हमें क्यों बनाया गया इसके मक़सद को समझ लेना ही कामयाबी है. हम अपनी आत्मा को धोखा देकर गुमराही में आगे बढ़ते रहते हैं और ये भूल जाते हैं कि हमें क्यों बनाया गया है.
ये यात्रा थकाऊ रही है, लंबे समय से मैं अपनी रूह से लड़ती रही हूं. ज़िंदगी बहुत छोटी है लेकिन अपने आप से लड़ते रहने के लिए बहुत लंबी भी है. इसलिए आज मैं अपने इस फ़ैसले पर पहुंची और मैं अधिकारिक तौर पर इस क्षेत्र से अलग होने की घोषणा करती हूं.
यात्रा की कामयाबी आपके पहले क़दम पर निर्भर है. मेरे सार्वजनिक तौर पर ऐसा करने का कारण अपनी पवित्र छवि निर्माण करना नहीं है बल्कि मैं एक नई शुरूआत करना चाहती हूं और उसके लिए कम से कम मैं ये कर सकती हूं. अपनी इच्छाओं के सामने समर्पण मत करो क्योंकि इच्छाएं अनंत हैं और हमेशा उससे बाहर निकलो जो आपने हासिल किया है.
Zaira Wasim On Facebook Pages

"5 years ago I made a decision that changed my life forever. As I stepped my foot in Bollywood, it opened doors of massive popularity for me. I started to become the prime candidate of public attention, I was projected as the gospel of the idea of success and was often identified as a role model for the youth. However, that’s never something that I set out to do or become, especially with regards to my ideas of success and failure, which I had just started to explore and understand.
As I complete 5 years today, I want to confess that I am not truly happy with this identity i.e my line of work. For a very long time now it has felt like I have struggled to become someone else. As I had just started to explore and make sense of the things to which I dedicated my time, efforts and emotions and tried to grab hold of a new lifestyle, it was only for me to realise that though I may fit here perfectly, I do not belong here. This field indeed brought a lot of love, support, and applause my way, but what it also did was to lead me to a path of ignorance, as I silently and unconsciously transitioned out of imaan. While I continued to work in an environment that consistently interfered with my imaan, my relationship with my religion was threatened. As I continued to ignorantly pass through while I kept trying to convince myself that what I was doing is okay and isn’t really affecting me, I lost all the Barakah from my life. Barakat is word whose meaning isn't just confined to happiness, quantity or blessing, it also focuses on the idea of stability, which is something I struggled with extensively.
I was constantly battling with my soul to reconcile my thoughts and instincts to fix a static picture of my iman and I failed miserably, not just once but a hundred times. No matter how hard I tried to wrestle to firm my decision, I ended up being the same person with a motive that one day I will change and I will change soon. I kept procrastinating by tricking and deluding my conscience into the idea that I know what I am doing doesn’t feel right but assumed that I will put an end to this whenever the time feels right and I continued to put myself in a vulnerable position where it was always so easy to succumb to the environment that damaged my peace, iman and my relationship with Allah . I continued to observe things and twist my perceptions as I wanted them to be, without really understanding that the key is to see them as they are. I kept trying to escape but somehow I always ended up hitting a dead end, in an endless loop with a missing element that kept torturing me with a longing I was neither able to make sense of nor satisfy. Until I decided to confront my weakness and began to strive and correct my lack of knowledge and understanding by attaching my heart with the words of Allah. In the great and divine wisdom of the Quran, I found sufficiency and peace. Indeed the hearts find peace when it acquires the knowledge of Its Creator, His Attributes, His Mercy and His commandments.
I began to heavily rely upon Allah’s mercy for my help and guidance instead of valuing my own believability. I discovered my lack of knowledge of the basic fundamentals of my religion and how my inability to reinforce a change earlier was a result of confusing my heart's contentment and well being with strengthening and satisfying my own (shallow and worldly) desires. I discovered my disease of doubt & error that my heart was afflicted with- There are 2 types of diseases that attack the heart, one; DOUBT and Error and the second; LUST and Desire. Both are mentioned in the Quran.
Allah says, “ In their hearts is a disease (of doubt & hypocrisy) and Allah increased their disease. [Quran 2:10]. And I realized the remedy to this could only be attained through the guidance of Allah and indeed Allah guided my path when I lost my way.
Quran and the guidance of Allah’s messenger (PBUH) became the weighing factor in my decision making and reasoning and it has changed my approach to life and it’s meaning.
Our desires are a reflection of our morals, our values are an externalization of our internal integrity. Similarly, our relationship with the Quran and Sunnah defines and sets the tone of our relationship with Allah and our religion, our ambitions, purpose and the meaning of life. I carefully questioned the deepest sources of my ideas of success, meaning and the purpose of my life. The source code that governed and impacted my perceptions evolved into a different dimension. Success isn’t correlated with our biased, delusional and conventional shallow measures of life. Success is the accomplishment of the purpose of our creation. We have forgotten the purpose we were created for as we ignorantly continue to pass through our lives; deceiving our conscience. “And That the hearts of those who don’t believe in the hereafter, may incline to it (the deception) and that they may be well pleased with it and that they may earn what they are going to earn, (and it’ll be evil). [Quran 6:113]
Our purpose, our righteousness or terribleness isn’t defined by our selfish consumption, it isn’t equated by the worldly measures. Allah says, “I swear (by Al-Asr) by time (that’s running out). Verily, man is drowning in great loss, with the exception of (a few) those who believe , do good deeds and call on another to the way of truth and counsel one another to patience and perseverance. [Quran 103]
This journey has been exhausting, to battle my soul for so long. Life is too short yet too long to be at war with oneself. Therefore, today I arrive at this well-grounded decision and I officially declare my disassociation with this field. The success of the journey is dependent on how you take the first step and the reason why I am openly doing so is not to paint a holier picture of myself but this is the least I can do to start afresh and this is just my first step as I have arrived at the clarity of realisation of the path I wish to be on and strive for and during this time I may have consciously or unconsciously planted a seed of temptation in the hearts of many but my sincere advice to everyone is that no amount of success, fame, authority or wealth is worth trading or losing your peace or the light of your Imaan for. Strive not to surrender to your desires for desires are infinite and always leap out ahead of whatever has just been achieved. Do not deceive yourself or become deluded and find believability in the self assured biased narratives of the principles of deen-where one conceals the truth while knowing it or where one picks and chooses to accept only what suits his situation or desires the best. Sometimes we have deep flaw in our iman and we often cover it up with words and philosophies. What we say is not in our hearts and we seek every manner of excuse for clinging to it and indeed He is aware of the contradictions, He is aware of all the thoughts unspoken for He is All-Hearing (As-Sami), the All-Seeing (Al-Baseer), and the All-Knowing (Al-Aleem). “And Allah knows what you conceal and what you reveal”. [Quran 16:19]. Instead of valuing your own deceptive conviction, make genuine efforts to strive and discover and understand the truth yourself with a heart full of faith and sincerity. “O you who have believed, if you are conscious of Allah, He will give you the ability to distinguish right from wrong”. (Quran 8:29).
Don’t look for role models or measures of success in the displeasure of Allah and the transgressions of His commandments. Do not allow such people to influence your choices in life or dictate your goals or ambitions. The Prophet said, “A person will be (raised on the day of Judgement) with whom he loves.” And do not become arrogant to seek advice from the better informed but position yourself away from your ego and arrogance and rely only on Allah’s guidance, indeed only He is the turner of the hearts and the ones He guides, none can lead astray. Not everyone has the conscience or the conscious to recognise the what we need to know or change and hence, it is not for us to judge, abuse, belittle or mock such people. It is our responsibility to make a positive impact by reinforcing the correct understanding by reminding each other. “And remind, for indeed the reminder benefits the believers” (Quran 51:55).
And we must do so not by ramming facts down each others throats by abuse or hostile behaviour or through violent disapprovals but it can only be done through kindness and mercy that we can affect the people around us. [If you see that one of you has slipped, correct him, pray for him and do not help the shaytan against him by insulting or mocking him- Umar Ibn Al-Khattaab]
But before we do that we must remember to exemplify Islam and it’s understanding ourselves in our knowledge and in our hearts, actions, intentions and behaviour and then use it to benefit the ones lack grasp on the fundamentals of the religion in terms of understanding, beliefs and manners . And remember that when you will start your journey or to find your ground in His Commandments- you are going face hardships, resistance, ridicule or discomfort from others and sometimes it can come from people who you love and are the closest to you. Sometimes it can be because of how you have been acting previously or have acted all your life, but do not let it discourage you or lead you to lose hope in Allah’s mercy and guidance- for He is Al-Hādīy (The Guide). Do not let your previous actions stop you from seeking repentance, know that He is Al-Ghafaar (The repeatedly forgiving). Truly, Allah loves those who turn unto Him in repentance and loves those who purify themselves. [Quran, 2:222]. Do not let the judgement, ridicule, abuse, words or fear of people take you off from the path of you wish to be on or stop you from expressing yourself to the fullest, remember He is Al-Walīy the helper. Do not let the worry of tomorrow get in your way to reassess your life, for he is Ar-Ražzaq (The Provider).
It can be a tough, complicated and sometimes an unimaginably lonely path, especially in today’s time but remember
the Messenger of Allah (PBUH) said: “There will come upon the people a time when holding onto the religion will be like holding onto hot coal.”
May Allah guide our boats to find its shore and help us to distinguish between truth and deception. May Allah makes us strengthen us in our Imaan and make us amongst the ones who engage in His remembrance and make our hearts firm and help us to remain steadfast. May Allah give us a better understanding of His wisdom and allow us to exhibit our efforts to alleviate doubt and error at individual levels and guide each other. May Allah cleanse our hearts from hypocrisy, arrogance and ignorance and rectify our intentions and grant us sincerity in speech and in our deeds. Ameen"
-Zaira Wasim

Original Post of Muslim actress Zaira  Wasim On Instagram

Zaira Wasim on Instagram

Dangal Actress Zaira Wasim

Zaira Wasim Dangal girl


Zaira Wasim instagram letter


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Aeisi Mohabbat Jisse Park,Hotel aur University me Apni Hawas Pura Karna.

Aaj kal Ke Larke Jo Mohabbat Ka nam dekar Usse Apni Hawas Pura Karte Hai.
ہر لڑکے ﮐﺎ ﮐﺴﯽ ﻧﺎ ﮐﺴﯽ ﻟﮍﮐﯽ ﺳﮯ ﺍﻭﺭ ﮨﺮ ﻟﮍﮐﯽ ﮐﺎ ﮐﺴﯽ ﻧﺎ ﮐﺴﯽ ﻟﮍﮐﮯ ﺳﮯ ﻣﺤﺒﺖ ﮐﺮﻧﺎ ﺍﺏ ﺭﻭﺍﺝ ﺑﻦ ﭼﮑﺎ ﮨﮯ ﺍﺏ ﯾﮧ ﻣﺤﺒﺖ ﻣﺤﺮﻡ ﺳﮯ ﺑﮭﯽ ﮨﻮﺳﮑﺘﯽ ﮨﮯ ﺍﻭﺭ ﻧﺎ ﻣﺤﺮﻡ ﺳﮯ ﺑﮭﯽ ﮨﻮﺳﮑﺘﯽ ۔ ﯾﻌﻨﯽ ﻣﺤﺒﺖ ﺑﮩﺖ ﻋﺎﻡ ﮨﮯ ﺁﺳﺎﻥ ﺍﻟﻔﺎﻅ ﻣﯿﮟ ﯾﻮﮞ ﮐﮩﮧ ﻟﯿﮟ ﺩﻧﯿﺎ ﻣﯿﮟ ﮨﺮ ﺍﻧﺴﺎﻥ ﺍﭘﻨﯽ ﺯﻧﺪﮔﯽ ﮐﮯ ﮐﺴﯽ ﺑﮭﯽ ﺣﺼﮯ ﻣﯿﮟ ﻣﺤﺒﺖ ﺿﺮﻭﺭ ﮐﺮﺗﺎ ﮨﮯ ...
ﻟﯿﮑﻦ ﻣﯿﮟ ﺁﺝ ﻣﺨﺎﻃﺐ ﮨﻮﮞ ﺍﻥ ﻟﮍﮐﮯ ﻟﮍﮐﯿﻮﮞ ﺳﮯ ﺟﻨﮑﻮ ﻧﺎﻣﺤﺮﻡ ﺳﮯ ﻣﺤﺒﺖ ﮨﻮﮔﺌﯽ ﮨﻮ۔ ﺩﮬﯿﺎﻥ ﺭﮨﮯ ﯾﮧ ﺟﺬﺑﮧ ﻣﺤﺒﺖ ﮐﺎ ﮨﻮﻧﺎ ﻻﺯﻡ ﮨﮯ ۔ ﺍﮔﺮ ﮨﻮﺱ ﮐﺎ ﮨﻮﮔﺎ ﺗﻮ ﺍﺳﮯ ﻣﺤﺒﺖ ﻣﺖ ﮐﮩﺌﮯ ﮔﺎ ۔ ﻟﻔﻆ " ﻣﺤﺒﺖ " ﺑﮩﺖ ﭘﺎﮎ ﻟﻔﻆ ﮨﮯ ...
ﻣﯿﮟ ﻧﮯ ﺑﮩﺖ ﺳﯽ ﻣﺤﺒﺖ ﮐﯽ ﮐﮩﺎﻧﯿﺎﮞ ﺳﻨﯽ ﺍﻭﺭ ﭘﮍﮬﯽ ﮨﯿﮟ ﮐﮧ ﻣﯿﮟ ﻓﻼﮞ ﻟﮍﮐﯽ ﺳﮯ ﻣﺤﺒﺖ ﮐﺮﺗﺎ ﮨﻮﮞ ۔ ﺍﻭﺭ ﺍﺱ ﺳﮯ ﻣﻼ ﺑﮭﯽ ﮨﻮﮞ ﮐﺌﯽ ﮐﺌﯽ ﺑﺎﺭ ۔ ﺍﯾﮏ ﻟﮍﮐﮯ ﮐﺎ ﺍﮎ ﻟﮍﮐﯽ ﺳﮯ ﻣﺤﺒﺖ ﻭﺍﻻ ﺗﻌﻠﻖ ﺑﻦ ﮔﯿﺎ۔ ﻭﮦ ﻟﮍﮐﯽ ﯾﻮﻧﯿﻮﺭﺳﭩﯽ ﻣﯿﮟ ﭘﮍﮬﺘﯽ ﮨﮯ ...
ﺍﺱ ﻟﮍﮐﮯ ﺳﮯ ﺍﺳﮑﺎ ﺗﻌﻠﻖ ﺗﻘﺮﯾﺒﺎً ﺍﯾﮏ ﺳﺎﻝ ﺳﮯ ﮨﮯ ۔ ﺍﺱ ﻧﮯ ﺑﺘﺎﯾﺎ ﮐﮧ ﻭﮦ ﻟﮍﮐﯽ ﮐﻮ ﮨﻔﺘﮧ ﻣﯿﮟ ﺗﯿﻦ ﺑﺎﺭ ﻣﻠﺘﺎ ﮨﮯ ۔ ﺟﺲ ﻣﯿﮟ ﮐﺴﯽ ﺩﻥ ﻭﮦ ﮨﻮﭨﻞ ﻣﯿﮟ ﺍﺳﭩﮯ ﺑﮭﯽ ﮐﺮﺗﮯ ﮨﯿﮟ ۔ ﮐﮩﻨﮯ ﻟﮕﺎ ﮨﻢ ﺩﻭﻧﻮﮞ ﻣﯿﮟ ﺳﺐ ﮐﭽﮫ ﮨﻮﺍ ﺻﺮﻑ ﺍﮎ ﻭﺍﺣﺪ ﭼﯿﺰ ﻧﮩﯿﮟ ﺟﺲ ﮐﻮ ﮐﺮﻧﮯ ﺳﮯ ﮨﻢ ﺯﺍﻧﯽ ﮨﻮﺟﺎﺗﮯ ...
ﻣﯿﮟ ﻧﮯ ﮐﮩﺎ ﻭﮦ ﻟﮍﮐﯽ ﺍﭘﻨﯽ ﺭﺿﺎ ﻣﻨﺪﯼ ﺳﮯ ﺟﺎﺗﯽ ﮨﮯ ﺗﻤﮩﺎﺭﮮ ﺳﺎﺗﮫ ﮨﻮﭨﻞ ۔ ﮐﮩﻨﮯ ﻟﮕﺎ ﻧﮩﯿﮟ ﻣﯿﮟ ﺍﺳﮯ ﮐﮩﺘﺎ ﮨﮯ ﺗﻮ ﻭﮦ ﺁﺗﯽ ﮨﮯ ﻭﮦ ﻣﺠﮭﮯ ﻣﻨﻊ ﺑﮭﯽ ﮐﺮﺗﯽ ﮨﮯ ﻟﯿﮑﻦ ﻭﮦ ﻣﺠﮫ ﺳﮯ ﻣﺤﺒﺖ ﮐﺮﺗﯽ ﮨﮯ ﺗﻮ ﺍﺱ ﻟﺌﮯ ﻣﯿﺮﯼ ﺑﺎﺕ ﻣﺎﻧﺘﮯ ﮨﻮﺋﮯ ﺁﺟﺎﺗﯽ ﮨﮯ ۔ ﻣﯿﮟ ﻧﮯ ﭘﻮﭼﮭﺎ ﻭﮦ ﺗﻮ ﻣﺤﺒﺖ ﮐﮯ ﮨﺎﺗﮫ ﻣﺠﺒﻮﺭ ﮨﮯ ﺗﻮ ﮐﯿﺎ ﺗﻢ ﺍﺱ ﺳﮯ ﻣﺤﺒﺖ ﻧﮩﯿﮟ ﮐﺮﺗﮯ؟ ﮐﮩﻨﮯ ﻟﮕﺎ ﻧﮩﯿﮟ ﻣﯿﮟ ﺍﭘﻨﯽ ﮨﻮﺱ ﮐﮯ ﻟﺌﮯ ﺍﺳﮯ ﺑﻼﺗﺎ ﮨﻮﮞ ...
ﻟﯿﮑﻦ ﺍﺏ ﻣﯿﮟ ﺑﮩﺖ ﺷﺮﻣﻨﺪﮦ ﮨﻮﮞ ﻭﮦ ﻟﮍﮐﯽ ﺑﮩﺖ ﺍﭼﮭﯽ ﮨﮯ ۔ﺍﮔﺮ ﮐﻞ ﮐﻮ ﻣﯿﮟ ﺍﺱ ﺳﮯ ﺷﺎﺩﯼ ﻧﮧ ﮐﺮﺳﮑﺎ ﺗﻮ ﺍﺱ ﻟﮍﮐﯽ ﮐﯽ ﻋﺰﺕ ﻧﻔﺲ ﮐﮩﺎﮞ ﮐﯽ ﺭﮦ ﺟﺎﺋﮯ ﮔﯽ ۔ ﻣﯿﮟ ﮐﯿﺎ ﮐﺮﻭﮞ ﻣﺠﮭﮯ ﮐﻮﺋﯽ ﺣﻞ ﺳﺠﮭﺎﺋﯽ ﻧﮩﯿﮟ ﺩﯾﺘﺎ ﺍﻭﺭ ﺷﺎﺩﯼ ﻣﯿﮟ ﮐﺮ ﻧﮩﯿﮟ ﺳﮑﺘﺎ ...
ﻣﯿﮟ ﻧﮯ ﺍﺳﮯ ﮐﮩﺎ ﺗﻢ ﻧﮯ ﺧﻮﺩ ﺍﻗﺮﺍﺭ ﮐﯿﺎ ﮐﮧ ﺗﻢ ﺍﭘﻨﮯ ﻧﻔﺲ ﮐﯽ ﺗﺴﮑﯿﻦ ﮐﮯ ﻟﺌﮯ ﺍﺳﮯ ﺍﺳﺘﻌﻤﺎﻝ ﮐﺮﺗﮯ ﺭﮨﮯ ﺍﮔﺮ ﺗﻤﮩﯿﮟ ﻣﺤﺒﺖ ﮨﻮﺗﯽ ﺗﻮ ﺍﺳﮯ ﮨﻮﭨﻞ ﻣﯿﮟ ﻧﮧ ﻟﮯ ﮐﺮ ﺟﺎﺗﮯ ﺍﺳﮯ ﺍﭘﻨﯽ ﻋﺰﺕ ﺳﻤﺠﮭﺘﮯ ۔ ﺍﺳﮑﯽ ﻗﺪﺭ ﮐﺮﺗﮯ ۔ ﮨﺎﮞ ﻣﺎﻧﺎ ﮐﮧ ﻭﮦ ﻟﮍﮐﯽ ﺑﮩﺖ ﺑﮯ ﻭﻗﻮﻑ ﮨﮯ ﺟﻮ ﺗﻤﮩﺎﺭﯼ ﺑﺎﺗﻮﮞ ﻣﯿﮟ ﺁﮔﺌﯽ۔ ﻭﮦ ﮐﯿﺎ ﻣﯿﮟ ﮐﮩﺘﯽ ﺳﺒﮭﯽ ﺍﯾﺴﯽ ﻟﮍﮐﯿﺎﮞ ﺟﻮ 12 12 ﮔﮭﻨﭩﮯ ﻟﮍﮐﻮﮞ ﮐﮯ ﺳﺎﺗﮫ ﻓﻮﻥ ﭘﮯ ﺑﺎﺕ ﮐﺮ ﮐﮯ ﮔﺰﺍﺭﺗﯽ ﮨﯿﮟ ﺣﺪ ﺩﺭﺟﮧ ﮐﯽ ﺑﮯ ﻭﻗﻮﻑ ﮨﻮﺗﯽ ﮨﯿﮟ ...
ﻣﺤﺒﺖ ﺣﺮﺍﻡ ﮐﺮﻧﮯ ﮐﺎ ﻧﺎﻡ ﻧﮩﯿﮟ ۔ ﻣﺤﺒﺖ ﺣﻼﻝ ﮐﺮﻧﮯ ﮐﺎ ﻧﺎﻡ ﮨﮯ ۔ ﮐﯿﻮﻧﮑﮧ ﻣﺤﺒﺖ ﮐﺎ ﺟﺬﺑﮧ ﺑﮩﺖ ﭘﺎﮐﯿﺰﮦ ﮨﻮﺗﺎ ﮨﮯ ۔ ﻟﮍﮐﯿﺎﮞ ﺟﺐ ﺑﮭﯽ ﺍﭘﻨﮯ ﮔﮭﺮ ﺳﮯ ﺑﺎﮨﺮ ﻧﮑﻠﯿﮟ ﯾﮧ ﺳﻮﭺ ﮐﺮ ﻧﮑﻠﯿﮟ ﮐﮧ ﺍﺏ ﺍﻧﮑﯽ ﻋﺰﺕ ﮐﯽ ﺭﮐﮭﻮﺍﻟﯽ ﺍﻧﮩﯿﮟ ﺧﻮﺩ ﮐﺮﻧﯽ ﮨﮯ ۔ ﮐﻮﺋﯽ ﺑﺎﭖ ﮐﻮﺋﯽ ﺑﮭﺎﺋﯽ ﻧﮩﯿﮟ ﺁﺋﮯ ﮔﺎ ﻣﺪﺩ ﮐﺮﻧﮯ ﮐﻮ ۔ ﺍﺱ ﻟﺌﮯ ﺟﺐ ﺑﮭﯽ ﮐﻮﺋﯽ ﻟﮍﮐﺎ ﺁﭖ ﺳﮯ ﭘﺎﺭﮎ ﯾﺎ ﮐﺴﯽ ﺟﮕﮧ ﺟﺎﻧﮯ ﮐﺎ ﮐﮩﮯ ﺗﻮ ﺳﻤﺠﮫ ﺟﺎﺋﯿﮟ ﺍﺳﮯ ﺁﭖ ﺳﮯ ﻣﺤﺒﺖ ﻧﮩﯿﮟ ...
ﺍﮔﺮ ﺍﺗﻨﯽ ﮨﯽ ﻣﺤﺒﺖ ﮨﮯ ﺗﻮ ﺍﺱ ﺳﮯ ﻧﮑﺎﺡ ﮐﺮﯾﮟ ﺍﻭﺭ ﺍﺳﮯ ﮔﮭﺮ ﮐﯽ ﭼﺎﺭﺩﯾﻮﺍﺭﯼ ﻣﯿﮟ ﻋﺰﺕ ﺩﯾﮟ ﻋﺰﺕ ﻧﯿﻼﻡ ﻧﮧ ﮐﺮﯾﮟ ﮐﻞ ﺁﭖ ﺑﮭﯽ ﮐﺴﯽ ﻟﮍﮐﯽ ﮐﮯ ﺑﺎﭖ ﺑﻨﯿﮟ ﮔﮯ ...

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Tabrej Ki Mob Lynching Ek Bani Bnayi Sazish Kaise Thi? Jai Shri Ram Kyu Bulwaya Gya?

Tabrej Ki Maut Ek Bna Bnaya Plan Nahi to Aur Kya Tha?

तबरेज माब लिचीग एक बनी बनाई साजीश नहीं तो और क्या?
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تبریز ماب لینچنگ ایک سوچی سمجھی سازش نہیں تو اور کیا تھی,
کیونکہ تبریز کے چہرہ پہ نہ تو داڑھی تھی اور نہ ہی کوئی دوسری ظاہری نشانی جس سے رات کے اندھیرے میں یہ معلوم ہوجائے کہ یہ شخص مسلمان ہے,
تبریز سے جب اسکے نام کے بارے میں سوال کیا گیا تو اس نے اپنا نام سونو بتایا, اس پر بھگوا غنڈوں نے اس سے اصل نام بتانے پر زور دیا, اگر ان غنڈوں کو تبریز کے مذہب کا علم نہیں تھا تو اسکا اصل نام کیوں پوچھا گیا,
تبریز کے والدین اس دنیا سے گزرچکے تھے,ممکن ہے ان غنڈوں کو اسکا بھی علم ہو اور اس کی اس مجبوری اور بےسہارگی کا فائدہ اٹھاکر اسے موت کے گھاٹ اتار دیا گیا,
پولس کا رول اس سلسلہ میں سب سے زیادہ نکمے پن کا رہا,ظاہری طور پر ایسا معلوم ہوتا ہے کہ پولس نے ایک متعین منصوبہ کے تحت وقت پر پہنچنے میں تاخیر کی اور عین اس وقت جب تبریز کے اہل خانہ وہاں پہچنے والے تھے پولس تبریز کو اٹھاکر لےگئی, 

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پولس کی معیت میں تبریز کی جو تصویریں سوشل میڈیا پلیٹ فارم پر شائع ہورہی ہیں, اس میں وہ بری طرح زخمی دکھ رہا ہے لیکن اسکے باوجود انڈین ایکسپریس کی رپورٹ کے مطابق ایف آئی آر میں لنچنگ کا کہیں تذکرہ تک نہیں ہے, جب کہ پولس نے اس حالت میں بھی اس سے چوری کا قبول نامہ درج کروالیا,
ڈاکٹروں کا کردار بھی اس سلسلہ میں انسانیت کا سر شرم سے خم کر دینے والاہے،
تبریز کے چچا کے مطابق ١٧ تاریخ کو یہ حادثہ پیش آتا ہے اور ٢٢٢ تاریخ کو اسے ہسپتال علاج کے لئے بھیجا جاتا ہے،
٢٢٢ کی صبح جب اسکے اہل خانہ ہسپتال میں اس سے ملنے جاتے ہیں تو٨:٣٠ میں اسے خبردی جاتی ہے کہ تبریز اب اس دنیا میں نہیں رہا،لیکن ١١:٣٠ میں جب تبریز کو اسکے اہل خانہ کے سپرد کیا جاتاہے تو اسکے ناک سے خون کا ابال آتا ہے،اس ابال سے پتہ چلتاہے کہ ابھی اس میں جان باقی ہے، یعنی تبریز کے اہل خانہ کو پہلے غلط خبر دی جاتی ہے، 


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یہ سارے واقعات اس بات کا بین ثبوت ہیں کہ تبریز کا قتل بہت زبردست منصوبہ کے تحت ہوا ہے, بلکہ حقیقت تو یہ ہے کہ ہجومی تشدد کے جتنے بھی واقعات پیش آتے ہیں ان سب کے لئے وقت,تاریخ اور فرد متعین ہوتا ہے اور باضابطہ طور پہ قاتل اور خونی تیار کرکے بھیجے جاتے ہیں,وردی پوش غنڈوں کو بھی ایک ایک لمحہ کی خبر دی جاتی ہے اور ضرورت کے وقت انکی مدد سے مقصد براری کی جاتی ہے,
بیشک وطن عزیز کو ایک ایسے جنگ میں دھکیلنے کی کوشش کی جارہی ہے جسکا انجام نہایت ہی خوفناک ہے,
حافظ عبدالسلام ندوی
ڈائریکٹر شفیع احمد اصلاحی ایجوکیشنل اینڈ ویلفیئر ٹرسٹ۔
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Biwi Aur Shauhar Ka Ek Dusre Ke Liye Taiyar Hona. (Zeenat Ikhtiyar Karna)

Biwi Apne Shauhar Ke Liye Zebaish Ho Aur Shauhar Apne Biwi Ke Liye.

ﺑﯿﻮﯾﺎﮞ ﺷﻮﮨﺮ ﮐﮯ ﻟﯿﮱ ﺳﺠﻨﮯ ﺳﻨﻮﺭﻧﮯ ﮐﻮ ﺗﯿﺎﺭ ﮨﯽ ﻧﮩﯿﮟ، ﺷﻮﮨﺮ ﺟﯿﺴﮯ ﮨﯽ ﮔﮭﺮ ﻣﯿﮟ ﺩﺍﺧﻞ ﮨﻮﺗﺎ ﮨﮯ ﺗﻮ ﻭﮨﯽ ﮔﺮﺩ ﺁﻟﻮﺩ ﭼﮩﺮﺍ ﻣﻮﭨﺎ ﺟﺴﻢ ﺑﻮﺳﯿﺪﮦ ﻟﺒﺎﺱ ﺧﺸﮑﯽ ﺑﮭﺮﮮ ﺑﺎﻝ ﻟﯿﮱ ﻣﺮﺩﺍﻧﮧ ﺁﻭﺍﺯ ﻧﮑﺎﻟﺘﮯ ﮨﻮﮰ ﻣﻨﮧ ﺑﻨﺎ ﮐﺮ ﻏﺼﮧ ﻣﯿﮟ ﮐﮩﺘﯽ ﮨﮯ، ﻓﻼﮞ ﭼﯿﺰ ﻻﻧﺎ ﺑﮭﻮﻝ ﮔﮱ ﮨﻮﻧﮕﮯ، ﻣﻌﻠﻮﻡ ﮨﮯ ﻣﺠﮭﮯ، ﺁﭖ ﺳﮯ ﺍﯾﮏ ﮐﺎﻡ ﮈﮬﻨﮓ ﺳﮯ ﻧﮩﯿﮟ ﮨﻮﺗﺎ ﻭﻏﯿﺮﮦ ﻭﻏﯿﺮﮦ۔۔۔ !!!
ﯾﮩﺎﮞ ﻭﮦ ﺷﻮﮨﺮ ﺁﮨﺴﺘﮧ ﺁﮨﺴﺘﮧ ﺑﯿﻮﯼ ﺳﮯ ﺩﻭﺭ ﮨﻮﻧﺎ ﺷﺮﻭﻉ ﮨﻮﺟﺎﺗﺎ ﮨﮯ، ﭘﮭﺮ ﺍﺳﮯ ﺑﯿﻮﯼ ﺳﮯ ﺯﯾﺎﺩﮦ ﻣﻮﺑﺎﺋﻞ، ﭨﯿﻠﯿﻮﮊﻥ ﺍﻭﺭ ﺩﻭﺳﺘﻮﮞ ﻣﯿﮟ ﺩﻟﭽﺴﭙﯽ ﺑﮍﮬﻨﮯ ﻟﮕﺘﯽ ﮨﮯ، ﺍﯾﻤﺎﻥ ﺍﻭﺭ ﺩﻝ ﻣﯿﮟ ﺧﺪﺍ ﮐﺎ ﮈﺭ ﮨﻮﺗﺎ ﮨﮯ ﺗﻮ ﻧﻔﺲ ﭘﺮ ﻗﺎﺑﻮ ﮐﯿﮱ ﺭﮐﮭﺘﺎ ﮨﮯ ﺍﻭﺭ ﮐﮩﯿﮟ ﺍﯾﻤﺎﻥ ﮐﻤﺰﻭﺭ، ﺧﻮﻑ ﺧﺪﺍ ﮐﻢ ﮨﻮ ﺗﻮ ﺑﺎﮨﺮ ﺧﻮﺍﺗﯿﻦ ﺳﮯ ﺗﻌﻠﻖ ﺑﻨﺎ ﺑﯿﭩﮭﺘﺎ ﮨﮯ۔۔۔ !!!
ﮨﺮ ﺷﺨﺺ ﺍﭘﻨﯽ ﺑﯿﻮﯼ ﮐﻮ ﺟﻮﺍﻥ، ﺗﺮ ﻭ ﺗﺎﺯﮦ ﺍﻭﺭ ﺧﻮﺑﺼﻮﺭﺕ ﺩﯾﮑﮭﻨﺎ ﭼﺎﮨﺘﺎ ﮨﮯ، ﮨﺮ ﺷﺨﺺ ﭼﺎﮨﺘﺎ ﮨﮯ ﮐﮧ ﺍﺳﮑﯽ ﺑﯿﻮﯼ ﺭﻭﻣﺎﻧﻮﯼ ﺍﻧﺪﺍﺯ ﻣﯿﮟ ﮔﻔﺘﮕﻮ ﮐﺮﮮ، ﻟﯿﮑﻦ ﺧﻮﺍﺗﯿﻦ ﮐﯽ ﻃﺮﻑ ﺳﮯ ﺟﻮﺍﺏ ﻣﻠﺘﺎ ﮨﮯ ﮐﮧ ﺑﭽﻮﮞ ﮐﮯ ﺑﻌﺪ ﯾﮧ ﺳﺐ ﻧﮩﯿﻦ ﮨﻮﺗﺎ، ﺑﭽﮯ ﮐﻮﻥ ﺳﻨﺒﮭﺎﻟﮯ ﮔﺎ، ﮔﮭﺮ ﮐﮯ ﮐﺎﻡ ﮐﺎﺝ ﮐﻮﻥ ﮐﺮﮮ ﮔﺎ، ﺍﻥ ﺗﻤﺎﻡ ﻣﻌﺎﻣﻼﺕ ﻣﯿﻦ ﺍﻧﺴﺎﻥ ﮐﯽ ﺣﺎﻟﺖ ﺧﺮﺍﺏ ﮨﻮ ﮨﯽ ﺟﺎﺗﯽ ﮨﮯ۔۔۔ !!!
ﺍﻭﺭ ﭘﮭﺮ ﺍﺱ ﮐﺎ ﻧﺘﯿﺠﮧ ﮐﭽﮫ ﯾﻮﮞ ﻧﮑﻠﺘﺎ ﮨﮯ ﮐﮧ ﺷﻮﮨﺮ ﻣﻮﺑﺎﺋﻞ ﻣﯿﮟ ﻣﺼﺮﻭﻑ ﺭﮨﺘﮯ ﮨﯿﮟ، ﺩﻭﺳﺘﻮﮞ ﻣﯿﮟ ﻣﺼﺮﻭﻑ ﺭﮨﺘﮯ ﮨﯿﮟ، ﺁﻓﺲ ﮐﺎﻡ ﺳﮯ ﺩﮬﯿﺎﻥ ﮨﯽ ﻧﮩﯿﮟ ﮨﭩﺘﺎ، ﮔﮭﺮ ﺩﯾﺮ ﺳﮯ ﺁﺗﮯ ﮨﯿﮟ۔۔۔ !!!
ﻭﺍﺿﺢ ﺑﺎﺕ ﮨﮯ ﮐﮧ ﺟﺐ ﺑﯿﻮﯼ ﮐﮯ ﺍﻧﺪﺭ ﺳﮯ ﻋﺒﺪﺍﻟﻐﻔﻮﺭ ﻭﺍﻟﯽ ﻓﯿﻠﻨﮕﺰ ﺁﯾﺌﮟ ﮔﯽ ﺗﻮ ﺷﻮﮨﺮ ﻧﮯ ﻣﻮﺑﺎﺋﻞ ﺍﻭﺭ ﭨﯿﻠﯿﻮﮊﻥ ﮐﻮ ﮨﯽ ﺗﺮﺟﯿﺢ ﺩﯾﻨﯽ ﮨﮯ، ﺩﻭﺳﺘﻮﮞ ﮐﯽ ﮨﯽ ﺗﺮﺟﯿﺢ ﺩﯾﻨﯽ ﮨﮯ، ﺍﯾﺴﺎ ﮐﯿﺴﮯ ﻣﻤﮑﻦ ﮨﮯ ﮐﮧ ﺳﺠﯽ ﺳﻨﻮﺭﯼ ﺑﯿﻮﯼ ﺳﮯ ﻣﻨﮧ ﻣﻮﮌ ﮐﺮ ﺷﻮﮨﺮ ﻣﻮﺑﺎﺋﻞ ﻣﯿﮟ ﮔﮭﺴﺎ ﺭﮨﮯ۔۔۔؟؟؟
ﺍﮔﺮ ﺍﯾﮏ ﻋﻮﺭﺕ ﺍﭘﻨﮯ ﮐﻤﺮﮮ ﮐﺎ ﻣﺎﺣﻮﻝ ﺷﻮﮨﺮ ﮐﮯ ﻟﯿﮯ ﺭﻭﻣﺎﻧﻮﯼ ﺑﻨﺎ ﮐﺮ ﺭﮐﮭﮯ، ﺧﻮﺩ ﮐﻮ ﺷﻮﮨﺮ ﮐﮯ ﻟﯿﮯ ﺗﯿﺎﺭ ﮐﯿﮱ ﺳﺞ ﺳﻨﻮﺭ ﮐﺮ ﺭﮨﮯ، ﺷﻮﮨﺮ ﺳﮯ ﮔﻔﺘﮕﻮ ﮐﮯ ﺩﻭﺭﺍﻥ ﺁﻭﺍﺯ ﻣﯿﮟ ﻧﺮﻣﯽ ﺍﭘﻨﺎﮰ ﺭﮐﮭﮯ ﺗﻮ ﺷﻮﮨﺮ ﺩﻭﺳﺘﻮﮞ ﻣﯿﮟ ﺟﺎﻧﺎ ﺗﻮ ﺩﻭﺭ ﺑﻠﮑﮧ ﺍﭘﻨﮯ ﺁﻓﺲ ﺳﮯ ﺟﻠﺪﯼ ﭼﮭﭩﯽ ﻟﮯ ﺁﮰ ﮔﺎ۔۔۔ !!!
ﯾﮧ ﺗﻮ ﺍﻟﻠﮧ ﮐﺎ ﺣﮑﻢ ﮨﮯ ﺧﻮﺍﺗﯿﻦ ﻭﺍﺳﻄﮯ ﮐﮯ ﺍﭘﻨﮯ ﺷﻮﮨﺮ ﮐﮯ ﻟﯿﮯ ﺳﺠﻨﯽ ﺳﻨﻮﺭﯼ ﺭﮨﺎ ﮐﺮﻭ ﺗﺎﮐﮧ ﺷﻮﮨﺮ ﮐﺎ ﺍﭘﻨﯽ ﺑﯿﻮﯼ ﺳﮯ ﺩﻝ ﻟﮕﺎ ﺭﮨﮯ، ﻭﮦ ﮐﺒﯿﺮﮦ ﮔﻨﺎﮨﻮﮞ ﮐﯽ ﻃﺮﻑ ﻧﺎ ﺟﺎﮰ، ﺍﻭﺭ ﻏﯿﺮ ﻣﺤﺮﻣﻮﮞ ﺳﮯ ﭘﺮﺩﮮ ﮐﺎ ﺣﮑﻢ ﺩﯾﺎ ﮔﯿﺎ، ﻟﯿﮑﻦ ﯾﮩﺎﮞ ﺗﻮ ﻣﮑﻤﻞ ﺍﻟﭩﯽ ﮔﻨﮕﺎ ﺑﮧ ﺭﮨﯽ ﮨﮯ ﮐﮧ ﮔﮭﺮ ﻣﯿﮟ ﺷﻮﮨﺮ ﮐﮯ ﺳﺎﻣﻨﮯ ﺑﯿﻮﯼ ﮐﮯ ﮨﺎﺗﮭﻮﮞ ﻣﯿﮟ ﺳﮯ ﭘﯿﺎﺯ ﺍﻭﺭ ﻟﮩﺴﻦ ﮐﯽ ﺳﻤﯿﻞ ﺁﺭﮨﯽ ﮨﮯ ﺍﻭﺭ ﮐﺴﯽ ﺷﺎﺩﯼ ﮐﮧ ﺗﻘﺮﯾﺐ ﻣﯿﮟ ﺟﺎﺗﮯ ﻭﻗﺖ ﻣﯿﮏ ﺍﭖ ﮐﮯ ﮈﺑﮯ ﺧﺘﻢ ﮐﺮﺩﯾﮯ، ﺁﺩﮬﮯ ﺁﺩﮬﮯ ﭘﺮﻓﯿﻮﻡ ﺍﻭﺭ ﺳﭙﺮﮮ ﮨﻮﺍ ﻣﯿﮟ ﺍﮌﺍﺩﯾﮯ۔۔۔ !!!
ﺑﻌﺾ ﺟﮕﮧ ﻣﺮﺩﻭﮞ ﻣﯿﻦ ﺑﮭﯽ ﯾﮧ ﺧﺎﻣﯿﺎﮞ ﮨﯿﮟ ﺑﯿﻮﯼ ﮐﮯ ﭘﺎﺱ ﺟﺎﯾﺌﮟ ﺗﻮ ﺻﻔﺎﺉ ﻭ ﺳﺘﮭﺮﺍﺉ ﮐﺎ ﺧﯿﺎﻝ ﺭﮐﮭﯿﮟ، ﺧﻮﺩ ﮐﻮ ﭼﺴﺖ ﻭ ﺍﯾﮑﭩﻮ ﺭﮐﮭﯿﮟ، ﺁﻧﮑﮭﻮﮞ ﭼﻤﮏ ﺭﮐﮭﮯ، ﭼﮩﺮﮮ ﭘﺮ ﻣﺴﮑﺮﺍﮨﭧ ﺭﮐﮭﮯ، ﺑﺎﻟﻮﮞ ﻣﯿﮟ ﮐﻨﮕﮭﯽ ﺍﻭﺭ ﮨﻠﮑﯽ ﺧﻮﺷﺒﻮ ﮐﺎ ﺍﺳﺘﻌﻤﺎﻝ ﺑﮯ ﺣﺪ ﺿﺮﻭﺭﯼ ﮨﮯ، ﺍﯾﺴﺎ ﻧﺎ ﮨﻮ ﮐﮧ ﺑﺎﮨﺮ ﺳﮯ ﭘﺴﯿﻨﮯ ﻣﯿﮟ ﺑﮭﺮﺍ ﺁﮰ ﺍﻭﺭ ﺑﺪﺑﻮ ﺳﮯ ﺁﺱ ﭘﺎﺱ ﻣﺎﺣﻮﻝ ﺧﺮﺍﺏ ﮐﺮﺩﮮ، ﺳﺮ ﮐﮯ ﺑﺎﻟﻮﮞ ﻣﯿﮟ ﺧﺸﮑﯽ ﻧﺎ ﺁﻧﮯ ﺩﮮ، ﺩﺍﮌﮬﯽ ﮨﮯ ﺗﻮ ﮐﻨﮕﺎ ﮐﯿﺎ ﮐﺮﮮ، ﺑﯿﺌﺮﮈ ﮨﮯ ﺗﻮ ﻣﯿﮞﭩﯿﻦ ﮐﺮﮐﮯ ﺭﮐﮭﮯ، ﮐﻠﯿﻦ ﺷﯿﻮ ﮨﮯ ﭼﮩﺮﺍ ﮔﺮﺩ ﻭ ﭘﺴﯿﻨﮯ ﺳﮯ ﺻﺎﻑ ﺭﮐﮭﮯ، ﻣﻄﻠﺐ ﺑﯿﻮﯼ ﮐﻮ ﺑﮭﯽ ﺍﭘﻨﺎ ﺷﻮﮨﺮ ﺟﻮﺍﻥ، ﺧﻮﺑﺼﻮﺭﺕ، ﺗﺮﻭ ﺗﺎﺯﮦ ﺍﻭﺭ ﺍﯾﮑﭩﻮ ﺍﭼﮭﺎ ﻟﮕﺘﺎ ﮨﮯ!
ﺗﻤﺎﻡ ﺑﺎﺗﻮﮞ ﻣﻘﺼﺪ ﯾﮧ ﮨﮯ ﻣﯿﺎﮞ ﺑﯿﻮﯼ ﮐﯽ ﺯﻧﺪﮔﯽ ﻣﯿﮟ ﺩﻭﻧﻮﮞ ﮐﺎ ﺍﯾﮏ ﺩﻭﺳﺮﮮ ﮐﮯ ﻟﯿﮱ ﺳﺠﻨﺎ ﺳﻨﻮﺭﻧﺎ، ﺍﯾﮏ ﺩﻭﺳﺮﮮ ﮐﮯ ﻟﯿﮱ ﺗﯿﺎﺭ ﮨﻮﻧﺎ، ﺑﮩﺖ ﺯﯾﺎﺩﮦ ﺍﮨﻤﯿﺖ ﮐﺎ ﺣﺎﻣﻞ ﮨﮯ، ﺍﺱ ﺳﮯ ﻣﺤﺒﺖ ﺑﮍﮬﺘﯽ ﮨﮯ، ﺑﯿﺰﺍﺭﯾﺖ ﺩﻭﺭ ﺑﮭﺎﮔﺘﯽ ﯾﮯ، ﮔﮭﺮ ﮐﺎ ﻣﺎﺣﻮﻝ ﺧﻮﺑﺼﻮﺭﺕ ﺭﮨﺘﺎ ﮨﮯ۔۔۔ !!!
ﺑﯿﻮﯼ ﮐﮯ ﻣﻌﺎﻣﻼﺕ ﺍﺱ ﻟﯿﮱ ﺯﯾﺎﺩﮦ ﮈﺳﮑﺲ ﮐﯿﮯ ﮐﮧ ﺍﮐﺜﺮ ﻭ ﺑﯿﺸﺘﺮ ﺑﯿﻮﯾﺎﮞ ﺑﭽﻮﮞ ﺍﻭﺭ ﮔﮭﺮ ﮐﮯ ﮐﺎﻣﻮﮞ ﻣﯿﮟ ﺍﺗﻨﺎ ﻣﺼﺮﻭﻑ ﮨﻮﺟﺎﺗﯽ ﮨﯿﮟ ﮐﮧ ﺷﻮﮨﺮ ﮐﮯ ﻟﯿﮱ ﺳﺠﻨﮯ ﺍﻭﺭ ﺳﻨﻮﺭﻧﮯ ﮐﮯ ﻟﯿﮱ ﻭﻗﺖ ﻧﮩﯿﮟ ﻧﮑﺎﻝ ﭘﺎﺗﯽ ﺟﺲ ﺳﮯ ﺷﻮﮨﺮ ﺁﮨﺴﺘﮧ ﺁﮨﺴﺘﮧ ﺑﯿﻮﯼ ﺳﮯ ﺩﻭﺭ ﮨﻮﻧﮯ ﻟﮕﺘﺎ ﮨﮯ ﺟﯿﺴﺎ ﮐﮧ ﺍﻭﭘﺮ ﻟﮑﮫ ﭼﮑﺎ ﮨﻮﮞ۔۔۔ !!!
ﻣﺨﺘﺼﺮ ﺳﯽ ﺑﺎﺕ ﮨﮯ ﻓﺎﺭﻍ ﺁﺝ ﮐﻞ ﮐﻮﺉ ﺑﮭﯽ ﻧﮩﯿﮟ، ﺟﮩﺎﮞ ﺧﻮﺍﺗﯿﻦ ﮐﮯ ﭘﺎﺱ ﮐﺎﻡ ﮐﮯ ﺍﻧﺒﺎﺭ ﻟﮕﮯ ﮨﻮﺗﮯ ﮨﯿﮟ ﻭﮨﺎﮞ ﻣﺮﺩ ﺑﮭﯽ ﺩﻥ ﺑﮭﺮ ﮐﻤﺎﻧﮯ ﻭﺍﺳﻄﮯ ﺍﭘﻨﯽ ﺟﺎﻥ ﺟﻼﺗﺎ ﮨﮯ، ﻭﻗﺖ ﻧﮑﻠﺘﺎ ﻧﮩﯿﮟ ﮨﮯ، ﻭﻗﺖ ﻧﮑﺎﻟﻨﺎ ﭘﮍﺗﺎ ﮨﮯ، ﺍﻭﺭ ﺍﯾﮏ ﺩﻭﺳﺮﮮ ﮐﮯ ﻟﯿﮱ ﺳﺠﻨﺎ ﺳﻨﻮﺭﻧﺎ ﺗﻮ ﺍﺱ ﺭﺷﺘﮯ ﮐﮯ ﻟﯿﮯ ﺍﻧﺘﮩﺎﺉ ﺿﺮﻭﺭﯼ ﮨﮯ، ﺍﮔﺮ ﺍﺱ ﮐﮯ ﻟﯿﮯ ﺩﻭﻧﻮﮞ ﻣﯿﮟ ﺳﮯ ﮐﺴﯽ ﮐﻮ ﻓﺮﺻﺖ ﻧﮩﯿﮟ ﻣﻠﺘﯽ ﺗﻮ ﻣﻌﺬﺭﺕ ﮐﮯ ﺳﺎﺗﮫ ﻋﺮﺽ ﯾﮧ ﮨﮯ ﮐﮧ ﺍﭘﻨﯽ ﺍﺯﺩﻭﺍﺟﯽ ﺯﻧﺪﮔﯽ ﻣﯿﮟ ﻣﺴﺎﺋﻞ ﮐﮯ ﺫﻣﮧ ﺩﺍﺭ ﺁﭖ ﺧﻮﺩ ﮨﯿﮟ۔ “ اسلئے بیوی کو چاہئے کے اپنے شوہر کے لیے تیار ہو اور زینت اختیار کرے، بات چیت کا لہجہ خوشنما ہو جس سے آپکے شوہر کو سکون اور اطمینان محسوس ہوتا ہے اور اُنکے دلوں میں آپکے لیے محبت روشن ہوتا ہے، اور شوہر کو بھی چاہئے کے بیوی کے لیے تیار ہو۔ اس سے آپ دونوں کے درمیان محبت بڑھتی ہے اور ایک دوسرے سے خوش رہتے ہیں، ایک دوسرے کو پسند کرتے ہیں۔
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Islam Aur Gair Islamic Gurupes Me kis Tarah Deen Ki Messages Kare?

Islamic Aur Gair Islamic Social Media Gurups Me Kaise Messages Kare?
اسلامی اور غیر اسلامی گروپس میں پوسٹ کرنے کا انداز (Part 01)
ﺍﺳﻼﻣﯽ ﮔﺮﻭﭘﺲ ﺍﻭﺭ ﻏﯿﺮ ﺍﺳﻼﻣﯽ ﮔﺮﻭﭘﺲ ﺍﻥ ﺩﻭﻧﻮﮞ ﻣﯿﮟ ﭘﻮﺳﭩﯿﮟ ﮐﺮﻧﮯ ﮐﺎ ﺍﻧﺪﺍﺯ ﺟﺪﺍ ﺟﺪﺍ ﮨﻮﻧﺎ ﭼﺎ ﮨﯿﮯ ﻭﮦ ﻟﻮﮒ ﺟﻮ ﺍﻣﺖ ﮐﺎ ﺩﺭﺩ ﺭﮐﮭﺘﮯ ﮨﯿﮟ ﺧﺪﺍﺭﺍ ﺍﻥ ﮐﻮ ﺍﺱ ﺑﺎﺕ ﮐﻮ ﻣﻠﺤﻮﻅ ﺣﺎﻃﺮ ﺭﮐﮭﻨﺎ ﭼﺎﮨﯿﮯ ﮨﻤﯿﮟ ﺍﮔﺮ ﺩﯾﻦ ﮐﻮ ﻏﺎﻟﺐ ﮐﺮﻧﺎ ﮨﮯ ﺑﮯ ﺣﯿﺎ ﺋﯽ , ﻓﺤﺎﺷﯽ ﻭ ﻋﺮﯾﺎﻧﯽ ﮐﮯ ﮐﻠﭽﺮ ﺳﻤﯿﺖ ﺳﯿﻨﮑﮍﻭﮞ ﺑﺮﺍ ﺋﯿﻮﮞ ﺍﻭﺭ ﮔﻤﺮﺍﮨﯿﻮﮞ ﮐﻮ ﺣﺘﻢ ﮐﺮﻧﺎ ﮨﮯ ﺗﻮ ﻭﻗﺖ ﮐﯽ ﻗﻠﺖ ﮐﮯ ﻣﺪﻧﻈﺮ ﺍﻭﺭ ﺍﺱ ﺑﺎﺕ ﮐﻮ ﺩﯾﮑﮭﺘﮯ ﮨﻮﮰ ﮐﮧ ﺑﺮﺍﺋﯽ ﺁﺳﺎﻧﯽ ﺳﮯ ﭘﮭﯿﻠﺘﯽ ﺍﻭﺭ ﺍﻭﺭ ﺍﭼﮭﺎﺋﯽ ﮐﻮ ﺍﭘﻨﺎ ﺭاﺳﺘﮧ ﺑﻨﺎﻧﮯ ﻣﯿﮟ ﺣﺎﺻﯽ ﻣﺸﻘﺖ ﮐﺎ ﺳﺎﻣﻨﺎ ﮐﺮﻧﺎ ﭘﮍﺗﺎ ﮨﮯ
ﻟﻮﮔﻮﮞ ﮐﺎ ﺿﻤﯿﺮ ﺑﯿﺪﺍﺭ ﮐﺮﻧﮯ ﻭﺍﻟﯽ ﭘﻮﺳﭩﯿﮟ ﺍﻭﺭ ﺍﻥ ﮐﮯ ﺿﻤﯿﺮ ﭘﺮ ﺗﺎﺯﯾﺎﻧﮯ ﺑﺮﺳﺎﻧﮯ ﻭﺍﻟﯽ ﭘﻮﺳﭩﯿﮟ ﺍﻥ ﮔﺮﻭﭘﺲ ﻣﯿﮟ ﮐﺮﯾﮟ ﺟﻮ ﻏﯿﺮ ﺍﺳﻼﻣﯽ ﮨﯿﮟ ﺟﻦ ﻣﯿﮟ ﮨﻤﺎﺭﯼ ﻧﻮﺟﻮﺍﻥ ﻧﺴﻞ ﺩﻥ ﺭﺍﺕ بے ﺣﯿﺎﺋﯽ ﮐﮯ ﻓﺮ ﻭﻍ ﻣﯿﮟ ﺟﭩﯽ ﮨﮯ اسلامی ﮔﺮﻭﭘﺲ ﻣﯿﮟ ﺩﻭﺳﺮﯼ ﻗﺴﻢ ﮐﮯ ﻣﺴﺎﺋﻞ ﺯﯾﺮ ﺑﺤﺚ ﺁﻧﮯ ﭼﺎ ﮨﯿﮯ ﭼﻮﻧﮑﮧ ﺍﻥ ﮔﺮ ﻭﭘﺲ ﻣﯿﮟ ﻇﺎﮨﺮ ﮨﮯ ﺍﯾﺴﮯ ﻟﻮﮒ ﮨﯽ ﮨﻮ ﺗﮯ ﮨﯿﮟ ﺟﻮ ﺩﯾﻦ ﮐﺎ ﺩﺭﺩ ﺭﮐﮭﺘﮯ ﮨﯿﮟ ﺍﻟﻠﮧ ﮐﺎ ﮈﺭ ﺭﮐﮭﺘﮯ ﮨﯿﮟ ﺍﻭﺭ ﺍﻥ ﮐﮯ ﺿﻤﯿﺮ ﭘﮩﻠﮯ ﺳﮯ ﮨﯽ ﮐﭽﮫ حد ﺗﮏ ﺑﯿﺪﺍﺭ ﮨﻮ ﺗﮯ ﮨﯿﮟ
ﺗﻮ ﮨﻤﯿﮟ ﺍﺱ ﺑﺎﺕ ﮐﮯ ﻣﺘﻌﻠﻖ ﻏﻮﺭ ﻓﮑﺮ ﺳﮯ ﮐﺎﻡ ﻟﯿﻨﺎ ﭼﺎ ﮨﯿﮯ ﺍﻭﺭ ﺍﺳﻼﻣﯽ ﻭ ﻏﯿﺮ ﺍﺳﻼﻣﯽ ﺍﻥ ﺩﻭﻧﻮﮞ ﮔﺮﻭ ﭘﺲ میں ﭘﻮﺳﭩﯿﮟ ﮐﺮﻧﮯ ﮐﺎ ﺍﻧﺪﺍﺯ ﺍﻟﮓ ﺍﻟﮓ ﺍﭘﻨﺎﻧﺎ ﭼﺎ ﮨﯿﮯ
ﺍﻥ ﺷﺎ ﺍﻟﻠﮧ ﺍﮨﻞ ﻓﮑﺮ ﻭ ﻧﻈﺮ ﺍﺱ ﻧﮑﺘﮯ ﮐﻮ ﺑﮩﺘﺮﯼ ﺳﮯ ﺳﻤﺠﮫ ﺳﮑﺘﮯ ﮨﯿﮟ ﺍﮔﺮ ﮐﺴﯽ ﺑﮭﺎ ﺋﯽ ﯾﺎ ﺑﮩﻦ ﮐﻮ ﭘﮭﺮ ﺑﮭﯽ ﺳﻤﺠﮫ ﻧﺎ ﺁ ﺋﯽ ﮨﻮ ﺗﻮ ﮨﻢ ﻣﺰﯾﺪ ﺭﻭﺷﻨﯽ ﮈﺍﻝ ﺩﯾﮟ ﮔﮯ
ﺟﺰﺍﮎ ﺍﻟﻠﮧ۔

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Islamic Aur Gair Islamic Gurups Me Posts Karne Ka Andaaj. (Part 02)

Islamic Aur Gair Islamic Gurups Me Kaise Messages kare? (Part 02)
ﺍﺳﻼﻣﯽ ﺍﻭﺭ ﻏﯿﺮ ﺍﺳﻼﻣﯽ ﮔﺮﻭﭘﺲ ﻣﯿﮟ ﭘﻮﺳﭩﯿﮟ ﮐﺮﻧﮯ ﮐﺎ ﺍﻧﺪﺍﺯ : ﺣﺼﮧ ﺩﻭﻡ
ﻏﯿﺮ ﺍﺳﻼﻣﯽ ﮔﺮﻭﭘﺲ ﻣﯿﮟ ﭘﻮﺳﭩﯿﮟ ﮐﺮﺗﮯ ﻭﻗﺖ ﺁﭖ ﮐﻮ ﻟﻮﮔﻮﮞ ﮐﮯ ﺿﻤﯿﺮ ﺑﯿﺪﺍﺭ ﮐﺮ ﻧﮯ ﮨﻮ ﺗﮯ ﮨﯿﮟ ﺟﺬﺑﺎﺗﯽ ﺍﻟﻔﺎﻅ ﮐﺎ ﺍﺳﺘﻌﻤﺎﻝ ﮐﺮﻧﺎ ﮨﻮ ﺗﺎ ﮨﮯ ﺍﻭﺭ ﺍﯾﺴﮯ ﺟﻤﻠﮯ ﺗﺤﻠﯿﻖ ﮐﺮﻧﮯ ﭘﮍﮬﺘﮯ ﮨﯿﮟ ﺟﻮ ﺍﻥ ﮐﯽ ﻋﻘﻠﻮﮞ ﮐﻮ ﺍﭘﯿﻞ ﮐﺮ ﺭﯾﮟ
ﺍﺳﻼﻣﯽ ﮔﺮﻭﭘﺲ ﻣﯿﮟ ﯾﮧ ﺍﻧﺪﺍﺯ ﺁ ﭖ ﮐﻮ ﮐﻤﻨﭩﺲ ﺍﻭﺭ ﻻ ﺋﮑﺲ ﺗﻮ ﺩﻻﺗﺎ ﮨﮯ ﻣﮕﺮ ﺍﺱ ﮐﺎ ﮐﭽﮫ ﻓﺎ ﺋﺪﮦ ﻧﮩﯿﮟ ﮐﯿﻮﻧﮑﮧ ﻭﮨﺎﮞ ﻇﺎﮨﺮ ﮨﮯ ﺩﯾﻦ ﺳﮯ ﻣﺤﺒﺖ ﮐﺮﻧﮯ ﻭﺍﻟﮯ ﻟﻮﮔﻮﮞ ﮐﯽ ﮐﺜﺮﺕ ﮨﻮ ﺗﯽ ﮨﮯ ﺍﻭﺭ ﻭﮦ ﺍﯾﺴﺎ ﮐﺎﻡ خوشی ﺳﮯ ﮐﺮ ﺗﮯ ﮨﯿﮟ
ﺁﭖ ﮐﺎ ﺍﺻﻞ ﻣﯿﺪﺍﻥ ﻏﯿﺮ ﺍﺳﻼﻣﯽ ﮔﺮﻭﭘﺲ ﮨﻮﻧﮯ ﭼﺎ ﮨﯿﮯ ﺍﯾﮏ ﺍﯾﮏ ﮔﺮﻭﭖ ﮐﻮ ﭼﻦ ﻟﯿﮟ ﺍﻭﺭ ﻭﮨﺎﮞ ﻟﻮﮔﻮﮞ ﮐﮯ ﺍﯾﻤﺎﻥ ﮐﻮ ﺟﮭﻨﺠﮭﻮﮌﯾﮟ ﺍﻥ ﮐﮯ ﺿﻤﯿﺮ ﭘﺮ ﺩﺳﺘﮏ ﺩﯾﮟ ﺍﻭﺭ ﺍﺱ ﮐﯿﻠﮱ ﺁﭖ ﮐﻮ ﺍﮐﺜﺮ ﺍﻭﻗﺎﺕ ﺳﺤﺖ ﺟﻤﻠﮯ ﺍﺳﺘﻌﻤﺎﻝ ﮐﺮﻧﮯ ﭘﮍﺗﮯ ﮨﯿﮟ ﻣﺴﻠﻤﺎﻧﻮﮞ ﮐﯽ ﻗﺮﺑﺎﻧﯿﻮﮞ ﮐﺎ ﺫﮐﺮ ﮐﺮﯾﮟ ﺍﻭﺭ ﺍﻥ ﺷﺎ ﺍﻟﻠﮧ ﮨﻢ ﺳﻤﺠﮭﺘﮯ ﮨﯿﮟ انڈیا ﮐﮯ ﺩﯾﻦ ﺩﺍﺭ ﻃﺒﻘﺎﺕ ﻣﯿﮟ ﺍﯾﺴﮯ ﺍﮨﻞ ﻓﮑﺮ ﻭ ﻧﻈﺮ ﻣﻮﺟﻮﺩ ﮨﯿﮟ ﺟﻮ ﺍﺱ ﺣﻮﺍﻟﮯ ﺳﮯ ﺳﻮﭼﺘﮯ ﮨﻮﻧﮕﮯ ﮐﮧ ﺍﻥ ﺩﻭﻧﻮﮞ ﻗﺴﻢ ﮐﮯ ﮔﺮﻭﭘﺲ ﻣﯿﮟ ﺩﯾﻦ ﮐﯽ ﺳﺮﺑﻠﻨﺪﯼ ﮐﯿﻠﮱ ﮐﻮﻥ ﺳﺎ ﻃﺮﯾﻘﮧ ﮐﺎﺭ ﺯﯾﺎﺩﮦ ﻣﻨﺎﺳﺐ ﮨﮯ
ﺟﺰﺍﮎ ﺍﻟﻠﮧ

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Logo ko Digital Fitno Se Bachane ke Liye Hme Kya Karni Chahiye? (Part 01)

Logo Ko Media Aur Tv Serial Ke Gumrahi Se Bachane Ke liye Kya Karni Chahiye? (Part 01)
ﺟﻮ ﺩﯾﻦ ﮐﺎ ﮐﺎﻡ ﮐﺮ ﺭﮨﮯ ﮨﯿﮟ ﻭﮦ ﻣﺒﺎﺭﮎ ﮨﯿﮟ ﺟﻮ ﺍﺱ ﺩﻭﺭ ﻣﯿﮟ ﺍﻟﻠﮧ ﮐﮯ ﮐﻠﻤﮯ ﮐﻮ ﺑﻠﻨﺪ ﮐﺮ ﺭﮨﮯ ﮨﯿﮟ ﺟﺐ ﮐﮧ ﮨﺮ ﻃﺮﻑ ﻓﺘﻨﻮﮞ ﮐﯽ ﺑﮭﺮ ﻣﺎﺭ ﮨﮯ ﺍﻭﺭ ﻣﯿﮉﯾﺎ ﭼﻮ ﺑﯿﺲ ﮔﮭﻨﭩﮯ ﻟﻮﮔﻮﮞ ﮐﮯ ﺍﯾﻤﺎﻥ ﺗﺒﺎﮦ ﮐﺮ ﻧﮯ ﻣﯿﮟ ﺟﭩﺎ ﮨﻮﺍ ﮨﮯ
ﻣﮕﺮ ﮨﻤﯿﮟ ﯾﮧ ﺩﯾﮑﮭﻨﺎ ﮨﻮ ﮔﺎ ﮐﮧ ﻭﮦ ﺗﻤﺎﻡ ﺗﺮ ﺗﺮﺟﯿﺤﺎﺕ ﺟﻮ ﺍﺱ ﺍﻣﺖ ﮐﯽ ﺑﮩﺘﺮ ﯼ ﺍﻭﺭ ﮔﻤﺮﺍﮨﯽ ﻭ ﻇﻼﻟﺖ ﺳﮯ ﻧﮑﺎﻟﻨﮯ ﮐﯿﻠﮱ ﮨﻤﺎﺭﮮ ﭘﯿﺶ ﻧﻈﺮ ﮨﯿﮟ ﺍﻥ ﻣﯿﮟ ﮨﻤﺎﺭﮮ ﻧﺰﺩﯾﮏ ﺍﻭﻝ ﺩﻭﻡ , ﺳﻮﻡ ﻧﻤﺒﺮ ﭘﺮ ﮐﻮﻥ ﺳﯽ ﺗﺮﺟﯿﺢ ﮨﮯ ﺍﺱ ﻣﻮﺿﻮﻉ ﭘﺮ ﺗﻔﺼﯿﻞ ﺳﮯ ﺑﺎﺕ ﮨﻮ ﺳﮑﺘﯽ ﮨﮯ
ﮨﻤﺎﺭﮮ ﻧﺰﺩﯾﮏ ﺍﻭﻝ ﺗﺮﺟﯿﺢ ﯾﮧ ﮨﻮﻧﯽ ﭼﺎ ﮨﯿﮯ ﮐﮧ ﻟﻮﮔﻮﮞ ﮐﻮ ﻣﻄﺎﻟﻌﮧ ﮐﯽ ﺟﺎﻧﺐ ﻣﺎ ﺋﻞ ﮐﯿﺎ ﺟﺎ ﮰ
ﺍﻭﺭ ﯾﮧ ﺩﯾﮑﮭﺎ ﺟﺎ ﮰ ﮐﮧ ﻭﮦ ﻣﺴﻠﻤﺎﻥ ﮐﯿﺴﮯ ﺗﯿﺎﺭ ﮐﯿﺎ ﺟﺎ ﮰ ﺟﻮ ﻣﻌﺎﺷﺮﮮ ﮐﯿﻠﮱ ﻣﻔﯿﺪ ﮨﻮ.

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Deen Ke Kamo Me Likes Aur Comments Nahi Mil Raha Hoto Kya Kare?

Deen Ke Kamo Me Me Reyakari Aur Dikhawe wala Amal Kaise Ho Raha Hai?
ﮨﻤﺎﺭﮮ ﺩﯾﻨﯽ ﺑﮭﺎ ﺋﯽ ﺟﻮ ﺩﯾﻦ ﮐﺎ ﺩﺭﺩ ﺭﮐﮭﺘﮯ ﮨﯿﮟ ﺍﻥ ﺳﮯ ﺍﭘﯿﻞ ﮨﮯ ﮐﮧ ﺑﮯ ﻟﻮﺙ ﮨﻮ ﮐﺮ ﺍﻟﻠﮧ ﮐﮯ ﺩﯾﻦ ﮐﯿﻠﮱ ﮐﺎﻡ ﮐﺮﯾﮟ ﺍﮔﺮ ﺁﭖ ﻓﯿﺲ ﺑﮏ ﭘﺮ ﻣﺤﺾ ﺍﻟﻠﮧ ﮐﯽ ﺣﻮﺷﻨﻮﺩﯼ ﮐﯿﻠﮱ ﺩﻋﻮﺕ ﮐﺎ ﮐﺎﻡ ﮐﺮ ﺭﮨﮯ ﮨﯿﮟ ﺗﻮ ﺍﮔﺮ ﻻ ﺋﮑﺲ ﻧﺎ ﻣﻠﯿﮟ ﺗﻮ ﺍﺱ ﮐﺎ ﻣﻄﻠﺐ ﯾﮧ ﻧﮩﯿﮟ ﺁﭖ ﺩﯾﻦ ﮐﮯ ﻣﻌﺎﻣﻠﮧ ﻣﯿﮟ ﺑﮭﯽ ﺻﺮﻑ ﺍﯾﺴﯽ ﮨﯽ ﭘﻮﺳﭩﯿﮟ ﮐﺮﻧﮯ ﻣﯿﮟ ﺟﭧ ﺟﺎ ﺋﯿﮟ ﺟﻦ ﺳﮯ ﻻ ﺋﮑﺲ ﻣﻠﯿﮟ ﺗﺮﺟﯿﺤﺎﺕ ﮐﺎ ﺗﻌﯿﻦ ﮐﺮﯾﮟ ﺩﯾﮑﮭﯿﮟ ﮐﻮﻥ ﺳﯽ ﮔﻤﺮﺍﮨﯿﺎﮞ ﮨﯿﮟ ﺟﻦ ﭘﺮ ﺯﯾﺎﺩﮦ ﺗﻮﺟﮧ ﺩﯾﻨﮯ ﮐﯽ ﺿﺮﻭﺭﺕ ﮨﮯ ﺍﻥ ﮐﻮ ﭘﮩﻠﮯ ﭨﺎﺭﮔﭧ ﮐﺮﯾﮟ ﯾﮧ ﺑﮩﺘﺮﯾﻦ ﻃﺮﯾﻘﮧ ﮐﺎﺭ ﮨﮯ ﺑﺎﻃﻞ ﮐﺎ ﺯﻭﺭ ﺗﻮﮌﻧﺎ ﮐﻮ ﺋﯽ ﺁﺳﺎﻥ ﮐﺎﻡ ﻧﮩﯿﮟ ﮨﮯ ﺑﮭﺎﺋﯿﻮﮞ
ﮐﻤﻨﭩﺲ ﺍﻭﺭ ﻻﺋﮑﺲ ﮐﯽ ﺣﺮﺱ ﯾﮧ ﺩﻧﯿﺎ ﺩﺍﺭ ﻟﻮﮔﻮﮞ ﮐﺎ ﮐﺎﻡ ﮨﮯ ﺩﯾﻦ ﺩﺍﺭ ﻟﻮﮔﻮﮞ ﮐﻮ ﺍﺱ ﮐﺎﻡ ﻣﯿﮟ ﻧﮩﯿﮟ ﭘﮍﻧﺎ ﭼﺎ ﮨﯿﮯ ﺻﺮﻑ ﻭﮨﯿﮟ ﭘﻮﺳﭩﯿﮟ ﮐﺮﯾﮟ ﺟﻦ ﻣﯿﮟ ﺍﻣﺖ ﮐﺎ ﻣﻔﺎﺩ ﻣﻀﻤﺮ ﮨﻮ ﺟﻮ ﻟﻮﮔﻮﮞ ﮐﻮ ﺑﮩﺘﺮﯾﻦ ﻓﺎ ﺋﺪﮦ ﭘﮩﻨﭽﺎ ﺋﯿﮟ
ﮨﻢ ﻧﮯ ﺩﯾﻦ ﮐﺎ ﮐﺎﻡ ﺍﻟﻠﮧ ﮐﯽ ﺭﺿﺎ ﮐﯿﻠﮱ ﮐﺮﻧﺎ ﮨﮯ ﻻﺋﮑﺲ ﺍﻭﺭ ﮐﻤﻨﭩﺲ ﮨﻤﺎﺭﺍ ﻣﻘﺼﺪ ﻧﮩﯿﮟ ﮨﻮﻧﺎ ﭼﺎ ﮨﯿﮯ ﺁﭖ ﮐﮯ ﻣﺪﻧﻈﺮ ﯾﮧ ﺑﺎﺕ ﮨﺮ ﮔﺰ ﻧﮩﯿﮟ ﺭﮨﻨﯽ ﭼﺎ ﮨﯿﮯ ﮐﮧ ﻣﯿﮟ ﻭﮦ ﭘﻮﺳﭧ ﮐﺮﻭﮞ ﺟﺲ ﺳﮯ ﻣﺠﮭﮯ ﮐﻤﻨﭩﺲ ﻣﻠﯿﮟ ﺑﮭﺎ ﺋﯿﻮﮞ ﯾﮧ ﭼﯿﺰ ﺭﯾﺎﮐﺎﺭﯼ ﻣﯿﮟ ﺁﺗﯽ ﮨﮯ ﺍﻭﺭ ﺟﺐ ﯾﮧ ﻃﺮﺯ ﻋﻤﻞ ﺩﯾﻦ ﮐﮯ ﻣﻌﺎﻣﻠﮯ ﻣﯿﮟ ﺍﭘﻨﺎﯾﺎ ﺟﺎ ﮰ ﺗﻮ ﭘﮭﺮ ﺍﻭﺭ ﺑﮭﯽ ﺣﻄﺮﻧﺎﮎ ﮨﻮ ﺟﺎﺗﺎ ﮨﮯ۔

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Kya koi larki Ghar walo ke liye Kam Kar Sakti Hai?

Kya Larki Ghar walo ke Madad ke liye Naukari kar Sakti?
ﺍﯾﮏ ﺳﻮﺍﻝ ﯾﮧ ﮨﮯ ﮐﮧ ﺍﮔﺮ ﮐﻮ ﺋﯽ ﻟﮍﮐﯽ ﮔﮭﺮ ﻭﺍﻟﻮﮞ ﮐﯽ ﺳﭙﻮﺭﭦ ﮐﯿﻠﮱ ﮐﺎﻡ ﯾﺎ ﻧﻮﮐﺮﯼ ﮐﺮﮮ ﺗﻮ ﺍﺱ ﮐﯽ ﺷﺮﻋﯽ ﺣﯿﺜﯿﺖ ﮐﯿﺎ ﮨﮯ ﺩﯾﮑﮭﯿﮟ ﺍﺳﻼﻡ ﺍﯾﺴﺎ ﻣﺬﮨﺐ ﮨﮯ ﺟﻮ ﺟﺎﻣﺪ ﻧﮩﯿﮟ ﮨﮯ ﯾﮩﺎﮞ ﺍﺟﺘﮩﺎﺩ ﮐﺎ ﺟﺰ ﻣﻮﺟﻮﺩ ﮨﮯ ﻣﮕﺮ ﺍﺟﺘﮩﺎﺩ ﮐﺎ ﺧﻖ ﺻﺮﻑ ﻋﻠﻤﺎ ﮐﻮ ﮨﮯ ﺍﻭﺭ ﺍﺟﺘﮩﺎﺩ ﮐﻮ ﺋﯽ ﻋﺎﻡ ﺑﺎﺕ ﻧﮩﯿﮟ ﺍﺱ ﻣﻮﺿﻮﻉ ﮐﮯ ﻣﺘﻌﻠﻖ ﺍﺟﮩﺘﺎﺩ ﮨﻮ ﺳﮑﺘﺎ ﮨﮯ ﺍﻭﺭ ﮐﻮ ﺋﯽ ﺍﺣﺴﻦ ﺭﺍﮦ ﻋﻤﻞ ﺗﺠﻮﯾﺰ ﮐﯽ ﺟﺎ ﺳﮑﺘﯽ ﮨﮯ ﻣﮕﺮ ﯾﮧ ﺍﺟﺘﮩﺎﺩ ﺗﻮ ﺗﺐ ﮨﻮ ﺟﺐ ﻣﻠﮏ ﻣﯿﮟ ﺍﺳﻼﻣﯽ ﻧﻈﺎﻡ ﮐﺎ ﻧﻔﺎﺩ ﮨﻮ ﺍﻗﺒﺎﻝ ﺍﺳﯽ ﻟﯿﮱ ﮐﮩﺘﮯ ﺭﮨﮯ ﮐﮧ ﻣﻠﮏ ﮐﻮ ﺍﺳﻼﻣﯽ ﺑﻨﺎﻧﺎ ﮨﮯ ﺗﺎﮐﮧ ﮨﺮ ﻧﺌﮯ ﺁﻧﮯ ﻭﺍﻟﮯ ﻣﺴﺌﻠﮯ ﮐﮯ ﻣﺘﻌﻠﻖ ﺍﺟﮩﺘﺎﺩ ﮐﯿﺎ ﺟﺎ ﺳﮑﮯ ﺍﻭﺭ ﺍﻥ ﮐﯽ ﺳﻮﺍﻧﺢ ﺳﮯ ﻣﻌﻠﻮﻡ ﭘﮍﺗﺎ ﮨﮯ ﻭﮦ ﺍﯾﺴﮯ ﻣﻌﺎﻣﻼﺕ ﻣﯿﮟ ﻋﻠﻤﺎ ﺳﮯ ﮨﯽ ﻣﺸﻮﺭﮮ ﻟﯿﺎ ﮐﺮﺗﮯ ﺗﮭﮯ
ﺍﺱ ﮐﺎ ﺩﻭﺳﺮﺍ ﭘﮩﻠﻮ ﯾﮧ ﮨﮯ ﮐﮧ ﺍﮔﺮ ﺍﯾﮏ ﺍﺳﻼﻣﯽ ﻓﻼ ﺣﯽ ﺭﯾﺎﺳﺖ ﮨﻮ ﺗﻮ ﻭﮦ ﺍﯾﺴﮯ ﮔﮭﺮﺍﻧﻮﮞ ﮐﻮ ﻣﺎﮨﺎﻧﮧ ﻭﻇﯿﻔﮧ ﺩﮮ ﺟﮩﺎﮞ ﮐﻮ ﺋﯽ ﻣﺮﺩ ﮐﻤﺎﻧﮯ ﻭﺍﻟﮯ ﻧﮩﯿﮟ ﺍﻭﺭ ﺣﻮﺍﺗﯿﻦ ﮐﻮ ﻣﺠﺒﻮﺭﺍ ﺑﺎﮨﺮ ﻧﮑﻠﻨﺎ ﭘﮍﺗﺎ ﮨﮯ ﺍﺱ ﭘﺮ ﺍﻥ ﺷﺎﺍﻟﻠﮧ ﻗﺮﺁﻥ ﻭ ﺳﺒﻨﺖ ﮐﯽ ﺭﻭﺷﻨﯽ ﻣﯿﮟ ﻣﺰﯾﺪ ﺑﺎﺕ ﮐﺮﯾﮟ ﮔﮯ ﺍﺱ ﮔﺮﻭﭖ ﻣﯿﮟ !!!
ﺍﮔﺮ ﻋﻠﻤﺎ ﮐﻮ ﺣﮑﻮﻣﺖ ﭨﺎﺳﮏ ﺩﮮ ﺗﻮ ﻭﮦ ﺍﻥ ﺷﺎﺍﻟﻠﮧ ﺑﮩﺘﺮﯾﻦ ﺭﺍﮦ ﻋﻤﻞ ﺗﺠﻮﯾﺰ ﮐﺮ ﺩﯾﮟ ﮔﮯ ﮐﮧ ﮐﺲ ﻃﺮ ﺡ ﻋﻮﺭﺗﯿﮟ ﺑﺎ ﮨﺮ ﺟﺎ ﮐﺮ ﮐﺎﻡ ﮐﺮ ﺳﮑﺘﯽ ﮨﯿﮟ ﺍﻥ ﮐﯿﻠﮱ ﻋﻠﯿﺤﺪﮦ ﺍﺩﺍﺭﮮ ﺑﻨﺎ ﺋﯿﮟ ﺟﺎ ﺋﯿﮟ ﻋﻠﯿﺤﺪﮦ ﻓﯿﮑﭩﺮﯾﺎﮞ ﮨﻮﮞ ﯾﺎ ﺍﺱ ﻃﺮ ﺡ ﮐﮯ ﺍﻭﺭ ﻣﺤﺘﻠﻒ ﮐﺎﻡ.

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Europe ki Gulami Hm kis Tarah kar rahe hai?

Hmari Media aur Tv Serial hme aur hmari Nasl ko kis Raah pe le ja rahi hai?

यह 22 साल की रसियन लड़की है जो एक फूड कंपनी में काम करती है, दो बच्चो को मां भी है और मां होने की वजह से अपने बच्चे की परवरिश भी करती है, नहलाना, कपड़े साफ करना, दूध पिलाना वगैरह वगैरह। अपने दो बच्चो को साथ लेकर घर घर खाना भी पहुंचाती है। इन लोगो के लिए यही आजादी का मतलब है। यह हुई औरतों पे ज़ुल्म। बच्चे भी संभाले और दर दर कि ठोकरें भी खाए रोजगार के लिए।

इसी तहजीब के पीछे हम मरे जा रहे है। 

जबकि इसलाम ने औरत पे ऐसा कोई ज़ुल्म नहीं

डाला, औरत सिर्फ घर संभाले और बच्चे व रोजगार का काम मर्द के जिम्मे है।

फिर यूरोप कहता है मुस्लिम औरतों पे ज़ुल्म होता है, उसे ज़ंजीर में जकर कर रखता है, सर उठा कर जीने नहीं देता, उसे इंसान नहीं जानवर समझता है वगैरह। मगर इनके यह कितनी आजादी है?

यह लोग खुद अपने यहां औरतों को काम करने की मशीन समझते है, यह लोग इंसान नहीं मशीन बना दिया है अपने फायदे के मुताबिक इस इस्तेमाल करते है। जिसको इसलाम ने शहजादी बनाया उनको यह लोग बाजारू औरत बनाने मै लगे है। इनके आजादी का मतलब बेहयाई, फहाशी, शर्म व हया का जनाजा निकालना है।

ﻋﻮﺭﺕ ﺍﻭﺭ ﺍﺳﻼﻡ
ﺍﺱ ﺑﺎﺕ ﻣﯿﮟ ﺗﻮ ﺷﮏ ﮐﯽ ﮔﻨﺠﺎ ﺋﺶ ﻧﮩﯿﮟ ﮐﮧ ﺍﺳﻼﻡ ﻋﻮﺭﺕ ﺍﻭﺭ ﻣﺮﺩ ﮐﻮ ﺑﺎﮨﺮ ﻧﮑﻠﺘﮯ ﻭﻗﺖ ﻧﮕﺎﮨﯿﮟ ﻧﯿﭽﯽ ﺭﮐﮭﻨﮯ ﮐﺎ ﺣﮑﻢ ﺩﯾﺘﺎ ﮨﮯ ﺗﺎﮐﮧ ﻓﺘﻨﮧ ﻧﺎ ﭘﮭﯿﻠﮯ ﺍﺳﯽ ﻟﯿﮱ ﻣﺤﺮﻡ ﺍﻭﺭ ﻧﺎ ﻣﺤﺮﻡ ﺭﺷﺘﻮﮞ ﮐﯽ ﺗﻔﺮﯾﻖ ﻋﻤﻞ ﻣﯿﮟ ﺁ ﺋﯽ
ﺍﻭﺭ ﺍﯾﺴﯽ ﺍﺣﺎﺩیث بے شمار ﮨﮯ ﺟﺲ ﻣﯿﮟ ﻋﻮﺭﺗﻮﮞ ﮐﺎ ﭼﮩﺮﮦ ﺩﯾﮑﮭﻨﮯ ﺳﮯ ﻣﻤﺎﻧﻌﺖ ﮐﺎ ﺍﻇﮩﺎﺭ ﮨﮯ ﺍﯾﮏ ﺭﻭﺍﯾﺖ ﺑﮩﺖ ﺳﯽ ﺍﺳﻨﺎﺩ ﺳﮯ ﺳﯿﺪﻧﺎ ﻋﻠﯽ ﺭﺿﯽ ﺍﻟﻠﮧ ﻋﻨﮧ ﺳﮯ ﻣﺮﻭﯼ ﮨﮯ ﻣﮕﺮ ﺑﺎﺕ ﭘﮭﺮ ﻭﮨﯿﮟ ﮨﮯ ﮨﻤﺎﺭﯼ ﺍﺳﻼﻣﯽ ﺗﻌﻠﯿﻤﺎﺕ ﺳﮯ ﺩﻭﺭﯼ ﻟﮍﮐﯿﺎﮞ ﻧﻤﺎﺯ ﺭﻭﺯﮦ ﺳﺐ ﮐﺮﺗﯽ ﮨﯿﮟ ﻣﮕﺮ ﺍﻥ ﮐﻮ ﺑﮯ ﺣﯿﺎﺋﯽ ﮐﯿﺎ ﮨﮯ ﺍﺱ ﮐﮯ ﻣﺘﻌﻠﻖ ﺍﺳﻼﻡ ﮐﺎ ﻭﺍﺿﺢ ﻧﮑﺘﮧ ﻧﻈﺮ ﻣﻌﻠﻮﻡ ﻧﮩﯿﮟ ﮐﯿﻮﻧﮑﮧ ﻭﮦ ﺍﺳﻼﻡ ﮐﻮ ﭘﮍﮬﺘﯽ ﮨﯽ ﻧﮩﯿﮟ ﯾﮧ ﺑﺎﺕ ﺳﻮ ﻓﯿﺼﺪ ﺍﻋﺘﻤﺎﺩ ﺳﮯ ﺗﻮ ﻧﮩﯿﮟ ﮐﯽ ﺟﺎ ﺳﮑﺘﯽ ﺍﮔﺮ ﮐﻮﺋﯽ ﭘﮍﮪ ﻟﮯ ﺗﻮ ﺍﺱ ﭘﺮ ﻋﻤﻞ ﮐﮩﺎﮞ ﺗﮏ ﮐﺮﮮ ﮔﺎ ﻣﮕﺮ ﺗﺠﺮﺑﮧ ﯾﮧ ﮐﮩﺘﺎ ﮨﮯ ﮐﭽﮫ ﻧﺎ ﮐﭽﮫ ﺍﺛﺮ ﺿﺮﻭﺭ ﭘﮍﺗﺎ ﮨﮯ
ﺩﻭﺳﺮﯼ ﻃﺮﻑ ﭨﯽ ﻭﯼ ﺍﻭﺭ ﺍﻧﭩﺮﻧﯿﭧ ﮨﯿﮟ ﯾﮧ ﺩﻧﯿﺎ ﻋﻮﺭﺗﻮﮞ ﮐﻮ ﺑﺮا ﺳﺮ ﻋﺎﻡ ﺑﺮﺍﺋﯽ ﮐﯽ ﺩﻋﻮﺕ ﺩﯾﺘﯽ ﮨﮯ ﺑﮯ ﺣﯿﺎ ﺋﯽ ﭘﺮ ﻣﺎ ﺋﻞ ﮐﺮ ﺗﯽ ﮨﮯ ﺍﺏ ﺗﻮ ﺍﺷﺘﮩﺎﺭ ﺑﮭﯽ ﺍﯾﺴﮯ ﭼﻠﻨﮯ ﻟﮕﮯ ﮨﯿﮟ ﺍﻭﺭ ﯾﮧ ﺟﻮ ﭼﻼﺗﺎ ﮨﮯ ﺟﻮ ﺑﻨﺎﺗﺎ ﮨﮯ ﺳﺐ ﻣﻌﻠﻮﻡ ﮨﮯ ﮐﮧ ﮐﻮﻥ ﻣﺴﻠﻤﺎﻧﻮﮞ ﮐﻮ ﺑﮯ ﺣﯿﺎی ﮐﮯ ﺭﺳﺘﮯ ﭘﺮ ﭼﻼﻧﺎ ﭼﺎﮨﺘﺎ ﮨﮯ ﮐﯿﻮﻧﮑﮧ ﺟﺐ ﮐﻮ ﺋﯽ ﻗﻮﻡ ﺑﮯ ﺣﯿﺎﺋﯽ ﻣﯿﮟ ﭘﮍﮪ ﺟﺎ ﺗﯽ ﮨﮯ ﭘﮭﺮ ﺍﺱ ﺳﮯ ﺟﺮﺃﺕ ﺍﻭﺭ ﺟﻮﺍﻧﻤﺮﺩﯼ ﺣﺘﻢ ﮨﻮ ﺟﺎ ﺗﯽ ﮨﮯ
ﺍﻭﺭ ﺍﺱ ﮐﯽ ﺟﮕﮧ ﺳﺴﺘﯽ ﺍﻭﺭ ﮐﺎﮨﻠﯽ ﻟﮯ ﻟﯿﺘﯽ ﮨﮯ ﯾﮧ ﮨﻤﺎﺭﺍ ﻗﻮﻝ ﻧﮩﯿﮟ ﮨﮯ ﺍﺱ ﺍﻣﺖ ﮐﮯ ﺑﻠﻨﺪ ﭘﺎﯾﺎ ﺷﻌﺮﺍ ﺍﻭﺭ ﻣﻤﺘﺎﺯ ﻋﻠﻤﯽ ﺷﺤﺼﯿﺎﺕ ﺍﯾﺴﺎ ﻓﺮﻣﺎ ﮔﺌﯽ ﮨﯿﮟ ﻣﮕﺮ ﻣﻐﺮﺏ ﮐﯽ ﭼﮑﺎﭼﻮﻧﺪ ﺍﻭﺭ ﭨﯽ ﻭﯼ ﮈﺭﺍﻣﻮﮞ ﺍﻭﺭ ﻓﻠﻤﻮﮞ ﮐﯽ ﻣﺴﻠﻂ ﮐﯽ ﮔﺌﯽ ﺗﮩﺬﯾﺐ ﮨﻤﯿﮟ ﺍﻥ ﺑﺎﺗﻮﮞ ﭘﺮ ﺗﻮﺟﮧ ﮐﺮﻧﮯ ﮐﯽ ﺯﺣﻤﺖ ﻧﮩﯿﮟ ﺩﯾﺘﯽ ﯾﮧ ﻓﯿﺲ ﺑﮏ ﯾﮧ ﮔﺮﻭﭖ ﺑﮩﺖ ﻣﺤﺪﻭﺩ ﺫﺭﺍﺋﻊ ﮨﯿﮟ ﮐﮧ ﮨﻢ ﺍﺱ ﻧﮑﺘﮯ ﮐﻮ ﮐﺎﻣﻞ ﻃﻮﺭ ﭘﺮ ﻋﻮﺍﻡ ﮐﮯ ﺍﺫﮨﺎﻥ ﻣﯿﮟ ﺍﺗﺎﺭ ﺳﮑﯿﮟ ﺟﺐ ﺗﮏ ﮐﻮﺋﯽ ﺧﻮﺩ ﺳﮯ ﻗﺮﺁﻥ ﻭ ﺗﻔﺎﺳﯿﺮ , ﺣﺪﯾﺚ ﻭ ﺍﺳﻼﻣﯽ ﺗﺎﺭﯾﺢ ﮐﺎ ﻣﻄﺎﻟﻌﮧ ﻧﮩﯿﮟ ﮐﺮﮮ ﮔﺎ ﺍﻭﺭ ﺟﺪﯾﺪ ﻣﯿﮉﯾﺎ ﮐﮯ ﭘﯿﺶ ﮐﺮ ﺩﮦ ﻧﻄﺮﯾﺎﺕ ﮐﺎ ﺍﺳﯿﺮ ﺭﮨﮯ ﮔﺎ ﯾﮧ ﺑﺎﺕ ﺳﻤﺠﮫ ﻧﮩﯿﮟ ﺁﺳﮑﺘﯽ ﺍﻟﻠﮧ ﮐﮯ ﺑﻨﺪﻭﮞ ﺍﻭﺭ ﮐﭽﮫ ﻧﮩﯿﮟ ﮐﺮ ﺳﮑﺘﮯ ﺗﻮ ﺍﻗﺒﺎﻝ ﺟﯿﺴﮯ ﻣﺮﺩ ﺩﺭﻭﯾﺶ ﮐﯽ ﮐﺘﺐ ﮨﯽ ﭘﮍﮪ ﻟﻮ
ﯾﻘﯿﻦ ﮐﺮﻭ ﻭﮦ ﮐﺘﺐ ﺑﮩﺖ ﭼﮭﻮﭨﯽ ﭼﮭﻮﭨﯽ ﮨﯿﮟ ﮐﻠﯿﺎﺕ ﺍﻗﺒﺎﻝ ﺍﺭﺩﻭ ﺍﻭﺭ ﻓﺎﺭﺳﯽ ﺍﻥ ﮐﺎ ﭘﮍﮬﻨﺎ ﮐﻮﺋﯽ ﭘﮩﺎﮌ ﻧﮩﯿﮟ ﮨﮯ
ﺍﻭﺭ ﺁخری ﺑﺎﺕ ﺍﮔﺮ ﯾﻮﺭﭖ ﮐﯽ ﻏﻼﻣﯽ ﮐﺮﻧﯽ ﮨﯽ ﮨﮯ ﺗﻮ ﺟﯿﺴﺎ ﮐﮧ ﻣﺮﺷﺪ ﺍﻗﺒﺎﻝ ﻧﮯ ﮐﮩﺎ
ﯾﻮﺭﭖ ﮐﯽ ﻏﻼﻣﯽ ﭘﮧ ﮨﻮﺍ ﺭﺿﺎ ﻣﻨﺪ ﺗﻮ
ﻣﺠﮭﮯ ﮔﻼ ﺗﺠﮫ ﺳﮯ ﮨﮯ ﯾﻮﺭﭖ ﺳﮯ ﻧﮩﯿﮟ
ﺗﻮ ﺍﻥ ﮐﯽ ﺗﮩﺬﯾﺐ ﮐﺎ ﺍﯾﮏ ﺑﻨﯿﺎﺩﯼ ﻋﻨﺼﺮ ﻣﻄﺎﻟﻌﮧ ﺑﮭﯽ ﮨﮯ ﯾﮧ ﻭﺻﻒ ﻭﮨﺎﮞ ﺍﺱ حد ﺗﮏ ﻏﺎﻟﺐ ﮨﮯ ﺟﺲ ﮐﺎ ﮨﻢ ﺗﺼﻮﺭ ﺑﮭﯽ ﻧﮩﯿﮟ ﮐﺮ ﺳﮑﺘﮯ ﮨﻢ ﺍﭘﻨﯽ ﭨﺎﺋﻢ ﻻﺋﻦ ﭘﺮ ﻣﺴﻠﺴﻞ ﺍﺳﯽ ﻣﻮ ﺿﻮﻉ ﭘﺮ ﺑﺤﺚ ﮐﺮ ﺭﮨﮯ ﮨﯿﮟ ﺗﻮ ﮐﺴﯽ ﺑﮭﯽ ﺍﻋﺘﺮﺍﺽ ﺳﮯ ﻗﺒﻞ ﺍﺱ ﻣﻀﻤﻮﻥ ﮐﻮ ﺩﻭﺳﺮﺍ ﻣﻀﺎﻣﯿﻦ ﮐﮯ ﺳﺎﺗﮫ ﻣﻼ ﮐﺮ ﺿﺮﻭﺭ ﺩﯾﮑﮭﯿﮯ ﮔﺎ‌۔

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Kya Aurat Naukari kar Sakti Hai? (Part 03)

Kya Aurat Naukari kar Sakti Hai?
ﺳﻮﺍﻝ ﮐﯿﺎ ﻋﻮﺭﺕ ﻧﻮﮐﺮﯼ ﮐﺮ ﺳﮑﺘﯽ ﮨﮯ (Part 03)
ﺩﻭ ﺳﻮﺍﻝ ﺗﮭﮯ ﺍﻥ ﻣﯿﮟ ﺳﮯ ﺍﯾﮏ ﺟﻮﺍﺏ ﮨﻤﺎﺭﯼ ﻭﺍﻝ ﭘﺮ ﮨﮯ ﺍﻭﺭ ﺩﻭﺳﺮﯼ ﮐﺎ ﺟﻮﺍﺏ ﯾﮧ ﮨﮯ ﺣﻘﯿﻘﺖ ﻣﯿﮟ ﻟﮑﮭﻨﺎ ﺑﮩﺖ ﻣﺸﮑﻞ ﮨﻮ ﺭﮨﺎ ﮨﮯ ﻣﮕﺮ ﻣﻮﺕ ﮐﺎ ﮐﭽﮫ ﭘﺘﺎ ﻧﮩﯿﮟ ﺍﺱ ﻟﯿﮱ ﻟﮑﮫ ﺩﯾﺘﮯ ﮨﯿﮟ
ﺳﻮﺍﻝ ﯾﮧ ﺗﮭﺎ ﻣﺴﻠﻢ ﺩﻭﺭ ﻣﯿﮟ ﻋﻮﺭﺗﯿﮟ ﺟﻨﮕﻮﮞ ﻣﯿﮟ ﺣﺼﮧ ﻟﯿﺘﯽ ﺗﮭﯽ ﺯﺣﻤﯿﻮﮞ ﮐﯽ ﻣﺮ ﺣﻢ ﭘﭩﯽ ﮐﺮ ﺗﯽ ﺗﮭﯽ ﺗﻮ ﺍﺱ ﮐﺎ ﺟﻮﺍﺏ ﯾﮧ ﮨﮯ ﺍﺏ ﻭﮦ ﻣﺪﯾﻨﮯ ﺟﯿﺴﺎ ﻣﻌﺎﺷﺮﮦ ﮨﮯ ﺯﺣﻤﯽ ﺻﺤﺎﺑﮧ ﮨﻮ ﺗﮯ ﺍﻭﺭ ﻣﺮﮨﻢ ﭘﭩﯽ ﮐﺮﻧﮯ ﻭﺍﻟﯿﺎﮞ ﺻﺤﺎﺑﯿﺎﺕ ﮨﻮ ﺗﯽ ﮐﯿﺎ ﮨﻢ ﺍﻥ ﮐﯽ ﺧﺎﮎ ﮐﻮ ﺑﮭﯽ ﭘﺎ ﺳﮑﺘﮯ ﮨﯿﮟ ﺍﻥ ﮐﮯ ﺍﯾﻤﺎﻥ ﮐﯿﺎ ﺗﮭﮯ ﺍﻭﺭ ﮨﻤﺎﺭﮮ ﮐﯿﺎ ﮨﯿﮟ
ﺍﻗﺒﺎﻝ ﻧﮯ ﮐﮩﺎ ﺗﮭﺎ
ﺗﮭﺎ ﺍﺑﺮﺍﮨﯿﻢ ﭘﺪﺭ ﺍﻭﺭ ﭘﺴﺮ ﺁﺫﺭ ﮨﯿﮟ
ﻭﮨﺎﮞ ﺗﻮ ﺟﺐ ﺣﮑﻢ ﮨﻮﺍ ﺷﺮﺍﺏ حرﺍﻡ ﺗﻮ ﺣﻠﻖ ﻣﯿﮟ ﺟﺎﺗﺎ ﺟﺎﺗﺎ ﮔﮭﻮﻧﭧ ﺑﮭﯽ ﺩﻭﺑﺎﺭﮦ ﭘﯿﭧ ﻣﯿﮟ ﻧﮩﯿﮟ ﮔﯿﺎ ﺑﻠﮑﮧ ﺍﮔﻞ ﺩﯾﺎ ﮔﯿﺎ
ﺟﺐ ﻗﺒﻠﮧ ﮐﯽ ﺗﺒﺪﯾﻠﯽ ﮐﺎ حکم ﺁﯾﺎ ﺗﻮ ﮐﮭﮍﯼ ﺟﻤﺎﻋﺖ ﮐﮯ ﮨﺮ ﻓﺮﺩ ﻧﮯ ﺍﭘﻨﮯ ﭼﮩﺮﮮ ﺑﯿﺖ ﺍﻟﻤﻘﺪﺱ ﺳﮯ ﮨﭩﺎ ﮐﺮ ﮐﻌﺒﮧ ﮐﯽ ﻃﺮﻑ ﭘﮭﯿﺮ ﻟﯿﮱ
ﺟﺐ ﻋﻮﺭﺗﻮﮞ ﮐﻮ ﮐﮩﺎ ﮔﯿﺎ ﮐﮧ ﺭاﺳﺘﻮﮞ ﮐﮯ ﺩﺭﻣﯿﺎﻥ ﮐﯿﻮﮞ ﭼﻠﺘﯽ ﮨﻮ ﺗﻮ ﺭﺍﻭﯼ ﮐﮩﺘﺎ ﮨﮯ ﻣﯿﮟ ﻧﮯ ﺩﯾﮑﮭﺎ ﻋﻮﺭﺗﯿﮟ ﺍﺱ ﻃﺮ ﺡ ﺩﯾﻮﺍﺭﻭﮞ ﮐﮯ ﺳﺎﺗﮫ ﭼﻤﭧ ﮐﺮ ﭼﻠﺘﯽ ﺗﮭﯽ ﮐﮧ ﺍﻥ ﮐﮯ ﮐﭙﮍﮮ ﺩﯾﻮﺍﺭﻭﮞ ﻣﯿﮟ ﺍﮌ ﺟﺎ ﺗﮯ ﭘﮭﻨﺲ ﺟﺎ ﺗﮯ ﺗﮭﮯ
ﺟﺐ ﭘﺮﺩﮮ ﮐﺎ ﺣﮑﻢ ﻧﺎﺯﻝ ﮨﻮﺍ ﮐﯿﺎ ﺍﺱ ﮐﮯ ﺑﻌﺪ ﺍﺱ ﻣﻌﺎﺷﺮﮮ ﻣﯿﮟ ﮐﺴﯽ ﻧﺎ ﻣﺤﺮﻡ ﻧﮯ ﮐﺴﯽ ﻋﻮﺭﺕ ﮐﺎ ﭼﮩﺮﮦ ﺩﯾﮑﮭﺎ ﮐﯿﺎ ﺍﺱ ﺑﺎﺕ ﮐﺎ ﺛﻨﻮﺕ ﮨﮯ
ﻭﮦ ﮐﯿﺎ ﺗﮭﮯ ﺍﻗﺒﺎﻝ ﮐﯽ ﻃﺮﻑ ﺭﺟﻮﻉ ﮐﺮﯾﮟ ﺍﻭﺭ ﮨﻢ ﮐﯿﺎ ﮨﯿﮟ ﻓﺮﻣﺎﺗﮯ ﮨﯿﮟ
ﺟﻮ ﺑﮭﺮﻭﺳﮧ ﺗﮭﺎ ﺍﺳﮯ ﻗﻮﺕ ﺑﺎﺯﻭ ﭘﺮ ﺗﮭﺎ
ﮨﮯ ﺗﻤﮩﯿﮟ ﻣﻮﺕ ﮐﺎ ﮈﺭ ﺍﺳﮯ ﺧﺪﺍ ﮐﺎ ﮈﺭ ﺗﮭﺎ
ﺑﺎﭖ ﮐﺎ ﻋﻠﻢ ﻧﺎ ﺑﯿﭩﮯ ﮐﻮ ﺍﮔﺮ ﺍﺯﺑﺮ ﮨﻮ
ﭘﮭﺮ ﭘﺴﺮ ﻗﺎﺑﻞ ﻣﯿﺮﺍﺙ ﭘﺪﺭ ﮐﯿﻮﻧﮑﺮ ﮨﻮ
ﺗﻢ ﺁﭘﺲ ﻣﯿﮟ ﻏﻀﺐ ﻧﺎﮎ
ﻭﮦ ﺁﭘﺲ ﻣﯿﮟ ﺭﺣﯿﻢ
ﺗﻢ ﺧﻄﺎ ﮐﺎﺭ ﻭ ﺧﻄﺎ ﺑﯿﮟ
ﻭﮦ ﺧﻄﺎ ﭘﻮﺵ ﻭ ﮐﺮ ﯾﻢ
ﺗﻢ ﮨﻮ ﮔﻔﺘﺎﺭ ﺳﺮﺍﭘﺎ , ﻭﮦ ﺳﺮﺍﭘﺎ ﮐﺮﺩﺍﺭ
ﺗﻢ ﺗﺮﺳﺘﮯ ﮨﻮ ﮐﻠﯽ ﮐﻮ , ﻭﮦ ﮔﻠﺴﺘﺎﮞ ﺑﮧ ﮐﻨﺎﺭ
ﺍﻭﺭ ﻣﺮﺷﺪ ﻧﮯ ﭘﮭﺮ ﮐﯿﺎ ﻓﺮﻣﺎﯾﺎ
ﺍﺏ ﺗﮏ ﯾﺎﺩ ﮨﮯ ﻗﻮﻣﻮﮞ ﮐﻮ ﺣﮑﺎﯾﺖ ﺍﻥ ﮐﯽ
ﻧﻘﺶ ﮨﮯ ﺻﻔﺤﮧ ﮨﺴﺘﯽ ﭘﮯ ﺻﺪﺍﻗﺖ ﺍﻥ ﮐﯽ
ﺍﺳﯽ ﻟﯿﮯ ﺍﯾﮏ ﻣﻐﺮﺑﯽ ﺣﻖ ﺷﻨﺎﺱ ﻧﮯ ﮐﮩﺎ ﺗﮭﺎ ﺍﮔﺮ ﺍﯾﮏ ﻋﻤﺮ ﺍﻭﺭ ﮨﻮﺗﺎ ﺗﻮ ﺁﺝ ﭘﻮﺭﯼ ﺩﻧﯿﺎ ﻣﯿﮟ ﺍﺳﻼﻡ ﮨﯽ ﺍﺳﻼﻡ ﮨﻮﺗﺎ
ﮐﯿﺎ ﮐﯿﺎ ﮐﮩﯿﮟ ﻣﮕﺮ ﻭﮨﯿﮟ ﺟﻮ ﺍﻗﺒﺎﻝ ﻧﮯ ﮐﮩﺎ ﮐﮧ
ﺁﺝ ﺑﮭﯽ ﮨﻮ ﺟﻮ ﺍﺑﺮﺍﮨﯿﻢ ﮐﺎ ﺍﯾﻤﺎﮞ ﭘﯿﺪﺍ
ﺁﮒ ﮐﺮ ﺳﮑﺘﯽ ﮨﮯ ﺍﻧﺪﺍﺯ ﮔﻠﺴﺘﺎﮞ ﭘﯿﺪﺍ
ﯾﺎﺩ ﺭﮐﮭﻮ ﮞ ﺍﻟﻠﮧ ﮐﺎ ﻭﺍﺳﻄﮧ ﯾﺎﺩ ﺭﮐﮭﻮ ﮞ ﻗﺮﺁﻥ ﮐﻮ ﭼﮭﻮﮌﻧﮯ ﺑﺎ ﻋﺚ ﻋﻠﻮﻡ ﺍﺳﻼﻣﯿﮧ ﺳﮯ ﺑﮯ ﺗﻮﺟﯿﮩﯽ ﮐﮯ ﻣﻨﮧ ﻣﻮﮌﻧﮯ ﮐﮯ ﺑﺎﻋﺚ ﺗﻤﮩﯿﮟ ﭘﻮﺭﯼ ﺩﻧﯿﺎ ﻣﯿﮟ ﻣﺎﺭ ﭘﮍ ﺭﮨﯽ ﮨﮯ ﯾﺎ ﻧﮩﯿﮟ ﺍﻭﺭ ﺗﻢ ﺟﻮ ﮨﺎﮞ ﺗﻢ جو مسلمان ﻣﺤﻔﻮﻅ ﮨﻮ ﺍﭘﻨﮯ ﺁﺭﺍﻡ ﺩﮦ ﺑﺴﺘﺮﻭﮞ ﭘﺮ ﺑﯿﭩﮫ ﮐﺮ ﺑﻐﯿﺮ ﺍﺳﻼﻡ ﮐﺎ ﻣﻄﺎﻟﻌﮧ ﮐﯿﮯ ﺍﺱ ﮐﮯ ﺍﯾﮏ ﺍﯾﮏ ﺣﮑﻢ ﭘﺮ ﺍﻋﺘﺮﺍﺽ ﮐﺮ ﺗﮯ ﮨﻮ ﺗﻢ ﮐﺲ ﺍﻣﺘﺤﺎﻥ ﻣﯿﮟ ﮈﺍﻟﮯ ﮔﺌﮯ ﮨﻮ ﺗﻤﮩﯿﮟ ﺍﺱ ﮐﺎ ﻋﻠﻢ ﮨﯽ ﻧﮩﯿﮟ ﻗﻄﻌﺎ ﮨﯽ ﻧﮩﯿﮟ ﺗﻢ ﺍﺱ ﺍﻣﺘﺤﺎﻥ ﻣﯿﮟ ﮈﺍﻟﮯ ﮔﺌﮯ ﮨﻮ ﺟﺐ ﺍﻣﺖ ﺗﺒﺎﮦ ﺣﺎﻝ ﮨﮯ ﺟﺐ ﮨﺮ ﺟﮕﮧ ﺗﻤﮩﺎﺭﮮ ﺑﮭﺎﺋﯽ ﻋﺬﺍﺑﻮﮞ ﮐﺎ ﺷﮑﺎﺭ ﮨﯿﮟ ﺗﻢ ﺍﻥ ﮐﯽ ﻣﺪﺩ ﮐﻮ ﮐﺲ حد ﺗﮏ ﺟﺎ ﺗﮯ ﮨﻮ ﮐﯿﺎ ﺗﻢ ﺳﮯ ﻗﯿﺎﻣﺖ ﻭﺍﻟﮯ ﺩﻥ ﭘﻮﭼﮭﺎ نہیں ﺟﺎ ﮰ ﮔﺎ
ﯾﮩﺎﮞ ﺍﺱ ﻣﻠﮏ ﻣﯿﮟ ﮐﻔﺎﺭ ﮐﺎ ﺍﯾﮏ ﺳﭙﺎﮨﯽ ﮨﻤﺎﺭﮮ ﻣﺴﻠﻤﺎﻥ ﺑﮭﺎﺋﯿﻮﮞ ﭘﺮ ﺁﮒ ﺑﺮ ﺳﺎﻧﮯ ﺁﺗﮯ ﮨﮯ ﻭﮦ ﺁﮒ ﺟﺲ ﮐﺎ ﻋﺬﺍﺏ ﺻﺮﻑ ﺍﻟﻠﮧ ﺩﮮ ﺳﮑﺘﺎ ﮨﮯ ﺍﻭﺭ ﮨﻢ ﺍﺱ ﮐﯽ ﺩﻋﻮﺗﯿﮟ ﮐﺮ ﮐﮯ ﺍﺳﮯ ﻭﺍﭘﺲ ﺑﮭﯿﺞ ﺩﯾﺘﮯ ﮨﯿﮟ ﮐﯿﺎ ﮨﻢ ﺍﺱ ﺍﻣﺘﺤﺎﻥ ﺳﮯ ﺳﺮﺡ ﺭﻭ ﮨﻮ ﺳﮑﯿﮟ ﮔﮯ ﮐﯿﺎ ﮐﺴﯽ ﮐﮯ ﭘﺎﺱ ﺍﻥ ﺍﻣﻮﺭ ﭘﺮ ﻏﻮﺭ ﮐﺮﻧﮯ ﮐﺎ ﻭﻗﺖ ﮨﮯ
ﺍﻭﺭ ﺟﺐ ﺻﺤﺎﺑﯽ ﻧﮯ ﺩﺭﯾﺎﻓﺖ ﮐﯿﺎ ﺍﻟﻠﮧ ﮐﮯ ﺭﺳﻮﻝ ﮐﯿﺎ ﺍﺱ ﻭﻗﺖ ﮨﻢ ﺗﮭﻮﮌﮮ ﮨﻮﻧﮕﮯ ﻓﺮﻣﺎﯾﺎ ﻧﮩﯿﮟ ﺑﻠﮑﮧ ﺗﻢ ﺯﯾﺎﺩﮦ ﮨﻮ ﮔﮯ ‏( ﮈﯾﮍﮪ ﺍﺭﺏ ﻣﺴﻠﻤﺎﻥ ﺍﻭﺭ ﻣﭩﮭﯽ ﺑﮭﺮ ﯾﮩﻮﺩﯼ ﮐﺴﯽ ﻧﮯ ﮐﮩﺎ ﺗﮭﺎ ﺍﮔﺮ ﭘﻮﺭﯼ ﻣﻠﺖ ﭘﯿﺸﺎﺏ ﺑﮭﯽ ﮐﺮﮮ ﺗﻮ ﻭﮦ ﺑﮩﮧ ﮐﺮ ﭼﻠﮯ ﺟﺎ ﺋﯿﮟ ﺍﺗﻨﮯ ﮐﻢ ﮨﯿﮟ ﻣﮕﺮ ﻭﮦ ﺍﻣﺖ ﮐﮯ ﺳﯿﻨﮯ ﻣﯿﮟ ﻗﻠﺐ ﻣﯿﮟ ﺍﻟﻠﮧ ﮐﮯ ﺭﺳﻮﻝ ﺟﺲ ﺟﮕﮧ ﺳﮯ ﻣﻌﺮﺍﺝ ﭘﺮ ﮔﺌﮯ ﺟﮩﺎﮞ ﺗﯿﺴﺮﯼ ﻣﻘﺪﺱ ﺗﺮﯾﻦ ﻣﺴﺠﺪ ﮨﮯ ﺟﺲ ﻣﯿﮟ ﺍﯾﮏ ﻧﻤﺎﺯ ﮐﺎ ﺛﻮﺍﺏ ﭘﭽﺎﺱ ﻧﻤﺎﺯﻭﮞ ﮐﮯ ﺑﺮﺍﺑﺮ ﮨﮯ ﺟﻮ ﺍﻧﺒﯿﺎ ﮐﯽ ﺳﺮ ﺯﻣﯿﻦ ﮨﮯ ﻭﮨﺎﮞ ﺗﻤﮩﺎﺭﮮ ﻣﺴﻠﻤﺎ ﻥ ﺑﮭﺎ ﺋﯿﻮﮞ ﮐﯽ ﮔﺮﺩﻥ ﺩﺑﺎ ﮐﺮ ﺑﯿﭩﮭﮯ ﮨﯿﮟ ‏) ‏) ‏) ﺍﻭﺭ ﻓﺮﻣﺎﯾﺎ ﺗﻢ ﺳﻤﻨﺪﺭ ﮐﯽ ﺟﮭﺎﮒ ﮐﯽ ﻣﺎﻧﻨﺪ ﮨﻮ ﺟﺎ ﺅﮞ ﮔﮯ ﺟﺲ ﮐﯽ ﮐﻮ ﺋﯽ ﺣﯿﺜﯿﺖ ﻧﮩﯿﮟ
ﮨﺎﺗﮫ ﺑﮯ ﺯﻭﺭ ﮨﯿﮟ ﺍﻟﺤﺎﺩ ﺳﮯ ﺩﻝ ﺣﻮﮔﺮ ﮨﯿﮟ
ﺍﻣﺘﯽ ﺑﺎﻋﺚ ﺭﺳﻮﺍ ﺋﯽ ﭘﯿﻐﻤﺒﺮ ﮨﯿﮟ
ﺍﻭﺭ ﻋﻮﺭﺕ ﭘﺮﺩﮮ ﻣﯿﮟ ﺑﮭﯽ ﺭﮨﮯ ﺍﻭﺭ ﻧﻮﮐﺮﯼ ﺑﮭﯽ ﮐﺮ ﮮ ﺍﺱ ﮐﯿﻠﮱ ﺁﭖ ﮐﻮ ﺍﺳﻼﻣﯽ ﻓﻼﺣﯽ ﺭﯾﺎﺳﺖ ﮐﯽ ﺿﺮﻭﺭﺕ ﮨﮯ ﺍﻟﻠﮧ ﮐﮯ ﻗﺎﻧﻮﻥ ﮐﯽ ﺿﺮﻭﺭﺕ ﮨﮯ ﯾﮧ ﮐﯿﺴﮯ ﺁﮰ ﮔﺎ ﯾﮧ ﺍﺱ ﻭﻗﺖ ﺍﻣﺖ ﮐﮯ ﻧﺰﺩﯾﮏ ﺑﮩﺖ ﺑﮍﺍ ﺳﻮﺍﻝ ﮨﮯ ﺍﺱ ﮐﺎ ﺟﻮﺍﺏ ﮨﻢ ﺩﯾﮟ گے ﻣﮕﺮ ﺩﯾﻦ ﮐﻮ ﭘﮍﮬﮯ ﮐﻮ ﺋﯽ ﺗﻮ ﺍﺱ ﺟﻮﺍﺏ ﮐﯽ ﮔﮩﺮﺍ ﺋﯽ ﺗﮏ ﺟﺎ ﮰ ﻧﺎ۔

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