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Hamari Asal Kamyabi Europe Ka Culture Apane me hi hai.

Hamari Nayi Nasal ka Angreji Qaum ki Mushabehat Ikhtiyar karna.
European Culture and Our Indian Society
America Ke Culture Ko apnana hi kya Hamari Sabse Bari Kamyabi Hai?
‏حقیقت تو یہ ہی ہے کہ آپ کچھ بھی کر لیں کوئی بھی قربانی دے دیں یہ دنیا آپ کو تب تک ہی چاہے گی جب تک آپ کا وقت اچھا ہے۔
اقوالِ زَریں
اچھی باتوں کا اثر آج کل اس لیے بھی نہیں ہوتا کیونکہ لکھنے والے اور پڑھنے والے دونوں یہ سمجھتے ہیں کہ دوسروں کے لیئے ہیں۔
हकीकत तो यही है के आप कुछ भी कर ले, कोई भी कुर्बानी दे दे , यह दुनिया आपको तब तक ही चाहेगी जब तक आपका वक़्त अच्छा है।
अच्छी बातो का असर आजकल इसलिए भी नहीं होता क्यों के लिखने वाले और पढ़ने वाले दोनों यह समझते है के यह दूसरो के लिए है।
मतलब का वजन बहुत ज्यादा होता है इसलिए मतलब निकलते ही रिश्ते बहुत हल्के हो जाते है।
क्या आज भारतीय समाज अमेरिका का नकल करने में नहीं लगा हुआ है जबकि यह हमारी सभ्यता और संस्कृति के विपरित है?
यूरोप और अमेरिका का समाज जो है वो रखैलों में यकीन करता है पत्नियों में नहीं। यूरोप और अमेरिका में आपको शायद ही ऐसा कोई पुरुष या महिला मिले जिसकी एक शादी हुई हो, जिनका एक पुरुष से या एक स्त्री से सम्बन्ध रहा हो और ये एक दो नहीं हजारों साल की परम्परा है उनके यहाँ | आपने एक शब्द सुना होगा "Live in Relationship" ये शब्द आज कल हमारे देश में भी नव-अभीजात्य वर्ग में चल रहा है, इसका मतलब होता है कि "बिना शादी के पती-पत्नी की तरह से रहना" | तो उनके यहाँ, मतलब यूरोप और अमेरिका में ये परंपरा आज भी चलती है|

एक स्त्री के साथ रहना, ये तो कभी संभव ही नहीं हो सकता

It's Highly Impossible" तो वहां एक पत्नि जैसा कुछ होता नहीं | "स्त्री में तो आत्मा ही नहीं होती

2 अगर देखा जाए तो हमने अपने संबंध पसंद (लाइक), साझा (शेयर) व टिप्पणी (कमेंट) तक ही सीमित कर लिए हैंl `सेल्फी` के इस नए जमाने में कहीं हम अकेले ही न रह जाएं, क्योंकि हर शख्स आज अपना ताल्लुक, अखलाक, रिश्ते-नाते, मान-सम्मान, उपचार, प्रचार-प्रसार, इसी माध्यम के द्वारा करना चाह रहा है, पर हाथ लग रही है मायूसी, बीमारी,मानसिक तनाव और एक ऐसी बुरी लत जो बहुत बड़ी मुसीबत ला सकती हैl
जहाँ लोगों को पिछली तीन पीढ़ियां भी याद नहीं, वहां हम हजार सालों की बात करें तो क्या ये बेमानी नहीं होगी, जहाँ बचपन पहले हँसी- ठिठोली, बड़े मैदानों में खेलकूद, आस-पड़ोस के आंगन में गुजरता था, वो ही आज इस सोशल मीडिया, हाई-टेक उपकरण के व्यापक विस्तार से बच्चों में एक नकारात्मक ऊर्जा का संचार कर रहा है

हम बच्चों को आधुनिक बनाने में आपत्तिजनक सामग्री देने में लगे हैं,

जिन बच्चों को दोस्तों, किताबों के साथ अपना महत्वपूर्ण समय व्यतीत करना चाहिए, वो चारदीवारी में कैद होकर रह गए।
जैसा कि हर सिक्के के दो पहलू होते हैं, तो सोशल मीडिया के सही इस्तेमाल को समझना होगा, वक्त और हालात का ध्यान रखना होगाl नहीं तो हम खुद अपने पैर पर कुल्हाड़ी मार लेंगे, जिससे हम अपने निजी व सामाजिक ताल्लुक भी खतरे में डाल देंगे।

सिर्फ अच्छी अंग्रेजी बोलने भर से किसी के ज्ञान का आंकलन ना करें क्योंकि यूरोप में झाड़ू लगाने वाला भी अंग्रेजी बोल सकता है

ऋषियों, मुनियों पर अविश्वास और अपने धर्म शास्त्रों को ना पड़ना तथा उन्हें बदनाम करना एक फ़ैशन बन गया है अपने देश मे...

लेकिन अगर विश्वास करोगे तो दुनिया मे जितनी खोज मूलतः हुई है वो केवल सनातन संस्कृति के ऋषियों ने खोजी हैं

जिस देश ने विश्व को सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे संतु निरामया का संदेश दिया आज उस देश मे हर घर मे लोग बीमार है हर घर मे बीमारी है आखिर क्यों ..?

हिन्दुस्तान अखबार मे प्रकाशित 24 जून 2019 की खबर हमें गौर से पढ़नी और समझनी चाहिए

खड़े होकर भोजन करने मे हम अपने आपको एजुकेटेड मानने लगे और बैठ कर खाना खाने वाले को इलिट्रेड ।

जो प्राचीन है उसको हीन माने और जो अंग्रेजियत है उसे आधुनिक समझे ।

ऋषियो ने की थी जो खोज आज हम उसे क्यों मानने लगे है बोझ

मैकाले ने ऐसा हीनता का भाव भरा जिसमे हम अपने महापुरुषो , ज्ञानवेक्ताओ और ऋषियो वैज्ञानिकों की खोज को भूल गए ।

हम न्यूटन को तो जानते है परंतु आर्यभट्ट को भूल गए । हम नहीं जानना चाहते की कोपरनिकस से बहुत पहले हमारे देश में सूर्य के केंद्र की व्यवस्था को हमने जान लिया था ।

बौधायन को कॉपी पेस्ट करने वाले पाइथागोरस को हम पूजने लगे ।

शल्य चिकित्सा के जनक महर्षि शुश्रुत अणु के अविष्कारक महर्षि कणाद के गौरवशाली इतिहास हमको नहीं बताया गया कारण मात्र केवल एक भारतीय युवा मानशिक गुलामी में डूबे रहे।

जाना था हमको पूरब को और राह पकड़ी पश्चिम की ये जानते हुए की सूरज भी पश्चिम में जाकर अस्त हो जाता है ।

अब ये तय करना ही होगा हमे कैसा भारत बनाना एक वोर इण्डिया है जहा भय भूख गरीबी भ्रष्टाचार है और दूसरी ओर भारत है जिसका सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे संतु निरामया का स्वर्णिम इतिहास है ।

अंग्रेजो के विदा होने के बाद भी अंग्रेजियत को जिस शर्मनाक तरीके से पोसा जा रहा है उसने हमारी नई पीढ़ी को अपनी चिर युवा संस्कृति से सदा दूर करने का प्रयास किया है ।

स्वदेशीमय भारत ही हम सबका अंतिम लक्ष्य है ।

इंसान का जब वक़्त अच्छा आता है तो बहुत सारे ऐसे रिश्ते भी पैदा हो जाते है, जो पहले आपको क़ब्र में उतार चुके होते है।

(written By Md Rehan Fazal)

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