Faminism Ka Ahem Maqsad kya hona Chahiye?
Faminism and Indian Civilization and Culture.
क्या छोटे कपड़े पहनने से ही हम तरक्की कर सकते है?
क्या सिगरेट, शराब, गुटखा वगैरह खाना ही हकिकी नारीवाद है?
कुछ लोग खुद की मनमानी करने को ही नारीवाद समझते है मगर क्या हम अपनी आजादी का इस्तेमाल दूसरो को नुकसान पहुंचाने में कर सकते है?
हम दूसरो को उनके किरदार पे नहीं अपनी जरूरतों के मयार पे परखते है इसलिए जरूरतें बदल जाने पे रवैए भी बदल जाते है।
कुछ प्रगतिशील लोगों जो सिर्फ दूसरे की बहू बेटियों को ही कम कपड़ों में देखना चाहते हैं ( अपनी बेटी को नहीं) उनकी भावनाएं कहीं खंडित विखंडित न हो जायें और वो गाली गलौज न करने लगें ।
पहली बात तो यह है कि कपड़ों का स्थान माहौल सामाजिकता से बहुत बड़ा रिश्ता है । क्या आप अपने आफिस शर्ट लेस जा सकते हैं । या किसी मैयत में चमकदार कपड़े पहन कर जायेंगे या किसी पार्टी में गंदी पुरानी टी शर्ट पहनेंगे । नहीं न ।
अच्छे समयानुकूल कपड़े पहनना सबके लिए आवश्यक है चाहे वो पुरुष हो या स्त्री ।
नग्नता सामाजिक और वैधानिक रूप से स्वीकार्य नहीं है ।
सवाल यह है के औरतों द्वारा कम या छोटे कपड़े पहनना । इस पर यह मेरा स्पष्ट मत है कि यह उनका अधिकार है कि वो कैसे वस्त्र पहनें । किसी को भी इस पर कमेंट करने का कोई हक नहीं है न ही किसी को कम वस्त्रों वाली महिला को छेड़ने का हक मिल जाता है ।
पर यह भी सोचनीय है कि कम या छोटे वस्त्र क्यों पहने जाते हैं । थुलथुल शरीर वाली आंटियां भी क्लीवेज पेट और पीठ दिखाऊ ब्लाउज पहनतीं हैं और कम उम्र की बच्चियाँ भी । जबकि पुरुष ऐसा नहीं करते। ( यह उनकी मर्जी है)
आखिर इसके पीछे क्या मानसिकता है । मेरा सोचना है कि शो बिजनेस की हीरोइनों, माडल, ऐक्ट्रेस इत्यादि को अपने प्रोफेशन में बने रहने के लिए जिस्म दिखाना जरूरी है आखिर उन्हें बदन दिखाने के ही पैसे मिलते हैं अगर नंगा होना भी परे तो कोई मुश्किल काम नहीं ( कुछ अपवाद है )
अब भेड़ चाल है तो उनकी नकल जरूरी है और नकल की नकल जरूरी है तो हर उम्र हर क्लास की महिलाएं छोटे बदन दिखाऊ कपड़े पहनने लगीं और यही फैशन बन गया।
अब अधिकार की बात न करके सुरक्षा की बात करते हैं ।
अगर मेरे पास बहुत सारे रूपये हैं तो इसपे मेरा हक है कि मैं उन्हें लहराते हुए बाज़ार में घूमूं । पर कोई ऐसा नही करता क्योंकि उसे अपने पैसों की सुरक्षा की चिंता होती है ।
यह एक तथ्य है कि सुंदरता की ओर सब आकर्षित होते हैं कुछ नीच किस्म के लोग अर्ध नग्न बदन को देख कर उसे पाने के लिए गलत कर बैठते हैं । यह सरासर गलत है पर इससे बचने के लिए हमें खुद की सुरक्षा भी तो करनी चाहिए ।
और हाँ चंद यौन अपराधियों के वजह से पूरे पुरुष समाज को दोषी नहीं माना जाये।
अब एक कहानी के जरिए इस बात को समझाने की कोशिश करता हूं
एक बार, एक कोचिंग सेंटर में एक लड़की आया करती थी। वह हमेशा पाश्चात्य वेशभूषा में आती थी। पाश्चात्य का मतलब कोई साधारण पोशाक नहीं, ऐसे छोटे छोटे कपड़े पहनकर आती थी जो शायद हमें किसी शिक्षा संस्थान में पहनकर नहीं जाना चाहिए। फ़िर एक दिन, उस कोचिंग सेंटर की एक शिक्षिका ने उसे पास बुलाया और कहा कि तुम यहाँ पढ़ाई करने आती हो या किसी फ़ैशन शो में प्रतियोगिता करने आती हो? थोड़ा ढ़ग से कपड़े पहना करो। बस इतनी सी बात पर उस लड़की को इतना गुस्सा आ गया कि उसने सीधे ही जाकर उस कोचिंग सेंटर के चैयरमैन के पास शिकायत कर दी। और फ़िर उस शिक्षिका और अपने सभी साथियों को यह समझाने लगी कि "मैं एक नारीवादी हूँ ( सीधा सीधा बोले तो 'फ़ेमिनिस्ट')। और इसीलिए मैं हमेशा ऐसे कपड़े ही पहनकर आऊंगी। और वैसे भी यह मेरी मर्ज़ी है कि मैं कैसे कपड़े पहनूँ, मेरी ज़िन्दगी का फैसला आपको नहीं करना है, क्या पहनना है क्या करना है कहा जाना है यह मै तय करुंगी आप नहीं, और मुझेे अच्छे बुरे की पहचान है यह आपको समझाने की जरूरत नहीं है। और हा आप सभी को मेरी पसंद की कद्र करनी चाहिए। "फ़िर वह लड़की वेसे ही पोशाक में क्लास आने लगी"।
कुछ दिनों बाद उस कोचिंग सेंटर में एक शिक्षक-अभिभावकों की मीटिंग थी। उसमें वह लड़की अपने माता-पिता के साथ आई थी। वह जहाँ पर जाकर बैठी, उसके पास वाली सीट पर और एक लड़की बैठी हुई थी। वह लड़की बहुत सीधी-साधी थी और सलवार पहनी हुई थी। उसको देखकर दूसरी लड़की ने कहा कि आज इंसान चाँद पर पहूँच गया है पर तुम फ़िर भी सलवार के नीचे छुपी हुई हो! अगर ऐसा करोगी तो तुम्हारे अन्दर एक अच्छा व्यक्तित्व का विकास कभी नहीं हो पाएगा। अब मेरे जैसा नारीवादी बनो।
मुझे यह बात समझ नहीं आ रही है कि जो लड़की एक दिन दूसरों को यह बात सीखा रही थी कि उनको उसकी इच्छा का सम्मान करना चाहिए, वह लड़की खुद ही दूसरों की इच्छा का सम्मान करना नहीं जानती है!! क्या नारीवाद की नीतियाँ हमें यही सीखाती हैं?
अगर हम यह उम्मीद करते है के हमारे ख्वाहिश की क़दर किया जाना चाहिए तो दूसरे भी आपसे यही उम्मीद रखते होंगे, और नहीं तो फिर आप अपना विचार दूसरो पे थोपना चाहते है, यानी के आप भी यही चाहते है के यह शख्स मेरे मुताबिक चले, मेरे मर्जी से ही कुछ करे, मै जो कहूं और करू वहीं किया जाए उसके अलावा कुछ नहीं, अगर आप अपनी मर्जी से अपनी ज़िन्दगी गुजारना चाहते है तो गुजारिए मगर दूसरो की ज़िन्दगी में दखल अंदाजी नहीं कीजिए, आप अपने लिए जो कर सकते है कीजिए कोई मना नहीं करेगा, मगर दूसरो के साथ जबरदस्ती नहीं कीजिए और ना उसे जलील करने की कोशिश कीजिए वरना आप जो यह उम्मीद किए है के मेरे ख्वाहिश का कदर होनी चाहिए तो उसपे आपको अशक जारी करने के अलावा कुछ हासिल नहीं होगा.... क्यों के इज्जत मांगने से नहीं मिलती है और नहीं खरीदी जाती है। जिस तरह पैसों के घमंड में लोग अच्छी तरबियत का मजाक बनाते है तो अगर इज्जत बेची जा रही हो तो आप जाकर खरीद लीजिए ..... इस तरह भीख में मत मंगिए के मेरा सम्मान होना चाहिए....
अब आप लोग ही बताईए कि क्या भारतीय पोशाक पहनना उस लड़की का गँवारपन था या मुर्खता थी?
भारतीय पोशाक पहनना हमारी मज़बूरी नहीं, हमारी पहचान है। यह तो केवल एक छोटा सा उदाहरण था, इस बात का कि हम पाश्चात्यकरण की छाया में इस प्रकार वशीभूत हो चुके हैं कि अपनी भारतीय संस्कृति एवं परंपरा को हम असभ्यता का नाम देने लगे हैं!
पोशाक तो सिर्फ़ एक उदाहरण था। ऐसे हर क्षेत्र में हम भारतीय, खास करके हमारी युवापीढ़ी अपनी संस्कृति और सभ्यता को नीचा दिखाने की कोशिश करते हैं।
मेरा कहने का यह तात्पर्य है कि इन सभी के लिए ज़िम्मेदार कौन हैं?
इसके लिए हम खुद ही ज़िम्मेदार हैं। जब कि भारतीय अभिभावकों को अपने बच्चों को भारतीय संस्कृति के संदर्भ में संस्कार देने की आवश्यकता है, वे लोग पाश्चात्य संस्कृति की गारिमा गाते हैं। मेरे खयाल से हमारी शिक्षा व्यवस्था में "भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता विषय" के अध्ययन को विद्यार्थियों के लिए अर्निवार्य कर देना चाहिए। तभी ही जाकर के हम अपनी संस्कृति का महत्व समझ सकते हैं।
कीजिये अपनी निगाहों को एक चेहरे का पावन्द,
हर सूरत पर लुट जाना तौहीन-ए-वफ़ा होती है,
केवल पैसों के बल पर अपनी मनमानी करने और अच्छी सोच को बुरा साबित करने तथा घमण्ड में आकर अपनी ही सभ्यता का अपमान करने का दौर है।
यह मर्द औरत दोनों के लिए है। यहां पे नहीं नारीवादी बातें की जाती है और ना महिला विरोधी और इसी तरह न पुरुषवाद की बातें की जाती है और ना मर्दों को नीचा दिखाने वाली बात। हम किसी की तरफदारी नहीं करते है, जो सही है वह सही ही रहेगा और ग़लत ग़लत ही रहेगा, यहां हर किसी को आजादी है अपने मर्जी के मुताबिक ज़िन्दगी गुजारने का चाहे औरत - मर्द या बच्चे और बूढ़े हो, कोई किसी के अंडर में नहीं है, यहां पे दूसरो का फैसला नहीं किया जाता, आप जैसे चाहे वैसे रहे हमारे तरफ से किसी के लिए जबदस्ती वाली बात नहीं. मुस्लिम (औरत मर्द) भाईयो से गुजारिश है के वह शरीयत के मुताबिक ही जेबईश हो, और ना मेहरम से उसी तरह का सुलूक करे जैसा आप सल्लाहु अलैहे वसल्लम ने बताया, पर्दा मर्द और औरत दोनों के लिए है मगर अफसोस की बात है के हमारे समाज में पर्दे कि अहमियत सिर्फ औरतों के लिए ही समझा जाता है मगर नहीं इसलाम ने दोनों को पर्दा करने का हुक्म दिया और तरीका भी बताया है। मर्द अपनी निगाहें नीची रखे और किसी गैर औरत पे नजर नहीं डाले और अगर गलती से नजर पर जाए तो अपनी नजर को फौरन दूसरी तरफ कर ले (अगर कोई ज्यादा जरूरी काम नहीं है तो) और उसी तरह खवातीन भी पर्दे करे और अपनी शर्मगाह की हिफाज़त करे, किसी ना मेहरम से बात करते वक्त सख्त लहजे में बात करे और अपने शौहर के लिए जेबाईश हो। हमारे लिए सबसे बेहतर तरीका मोहम्मद ﷺ का तरीका है, ना के किसी ऐरे गैरे लोगो का।
की मोहम्मद से वफा तो हम तेरे है
यह जां चीज है क्या ये लौह वा कलम तेरे है।
अल्लाह मुसलमानों को फहासी से महफूज़ रख, जिस तरह पूरी दुनिया मुसलमानों को बर्बाद करने मै लगी है या अल्लाह तू उसे ही बर्बाद कर दे, या अल्लाह मुस्लिम औरतों को बा पर्दा और बा हया बना, उनके इज्जत की हिफाज़त कर और उन्हें काफिर मुशरिक के बुराइयों से महफूज़ रख। आमीन
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