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*लफ्ज़ अहले हदीस का सबूत क़दीम किताबों से और अहले हदीस को फ़िरक़ा कहने वाले जाहिलों का रद्द*
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*✍🏻परवेज़ आलम*
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आजकल ख़ुद को सिर्फ मुस्लिम कहने और अहले हदीस को फिरक़ा कहने वाले बे-इल्म छोकरों का एक फ़ित्ना नज़र आता है जो रंग-बिरंगी तन्ज़ीमों से जुड़कर इत्तिहाद की बातें करते नज़र आते हैं और खिड़ क़ौ फिरक़परस्ती के ख़िलाफ़ बताते फिरते हैं लेकिन इनसे बात करने पर इनकी जिहालत और बे-इल्मी बिल्कुल साफ़ नज़र आती है। उन्हीं लोगों के लिए ये पोस्ट लिखने की ज़रूरत महसूस हुई।
हम हदीस ही से दीन लेते हैं, राय से नहीं। यही वजह है कि
इमाम बुख़ारी
इमाम मुस्लिम
इमाम शाफ़ई
इमाम अहमद बिन हम्बल
इमाम याह्या बिन सईद अल-क़त्तान
इमाम तिर्मिज़ी
इमाम अबू दाऊद
इमाम नसाई
इमाम इब्ने खुज़ेमा
इमाम इब्ने हिब्बान
इमाम अबू अवाना
इमाम अहमद बिन अब्दुल्लाह बिन सालेह अल-इज्ली
इमाम अबू अब्दुल्लाह अल-हाकिम अल-नेसाबूरी
इमाम इब्ने तैमिया वग़ैरह
जैसे बड़े-बड़े मुहद्दिसीन सैंकड़ों सालों से अपने आपको *अहलुल हदीस* और *अहले सुन्नत* कहते आये हैं। आजकल के (बे-)अक़्ल-परस्त नौजवान खड़े होकर कहते हैं-नहीं-नहीं हम अहले हदीस नहीं हैं, हम सिर्फ़ मुस्लिम हैं, हमारा किसी फ़िरके से कोई तअल्लुक़ नहीं।
मेरा सवाल उन लोगों से है जो ख़ुद को *सिर्फ़ मुस्लिम* कहते फिरते हैं।
जैसा कि सब लोग जानते हैं कि हदीस की कई किस्में हैं, और उनको बनाने की वजह मुहद्दिसीन ने ब्यान कर दी थी कि "इस फ़ित्नों के दौर में अगर हदीस को हदीस की तरह छोड़ दिया जाएगा तो फ़िर उम्मत आगे जाकर गुमराह हो सकती है, अगर फ़र्क़ न बताया तो लोग नबी पर गढ़ी गयी झूठी बात को भी सहीह मानकर उसे दीन बना कर उस पर अमल करेंगे। तो जैसे उस दौर यानी नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के दौर में सिर्फ़ क़ुरआन और नबी का फ़रमान ही था तो आज हदीस में कई सारी किस्में हैण जैसे:
सहीह हदीस
ज़ईफ़ हदीस
मुरसल हदीस
हसन हदीस
वग़ैरह तो इस इक़्साम को ये लोग क्यों मानते हैं।
▪ऐसे लोगों के उसूल के मुताबिक़ जैसे अहले हदीस और अहले सुन्नत अल्लाह और रसूल ने नहीं कहा वैसे ही अल्लाह, रसूल और सहाबा ने कभी नहीं कहा कि सहीह हदीस को मानों, हसन हदीस को तस्लीम करो, ज़ईफ़ हदीस को तर्क कर दो, मुर्सल हदीस क़ाबिल-ए-क़बूल नहीं, शाज़ हदीस को छोड़ दो, मौज़ू झूठी हदीस है। ये सब उसूल-ए-हदीस अल्लाह, रसूल और सहाबा ने नहीं बनाए। फिर आप क्यों मानते हो? फिर तो मौज़ू (गढ़ी हुई) हदीस भी तस्लीम की जानी चाहिए!
कैसा दोगलापन और जिहालत है इन लोगों की।
वो लोग जो *अहले हदीस* कहना पसन्द नहीं करते मगर हदीस में फ़र्क़ करते हैं।
*सिर्फ़ मुस्लिम....*
नबी के दौर में हदीस बस हदीस ही थी यानी उसमें कोई मिलावट नहीं थी। बाद में फ़ितनों के डर से हदीसों में फ़र्क़ करना पड़ा। उसी तरह मुहद्दिसीन ने इज्तिहाद किया किया कि मुस्लिम नाम ही काफी नहीं है क्योंकि मुसलमानों में बहुत सारे फ़िरके हो गए हैं लिहाज़ उनसे अलग करके बताना लाज़िम है।
अहले सुन्नत वल जमात, सलफ़ी, अहलुल हदीस, अस्हाबुल हदीस ये सब एक ही जमात है जो बातिल फ़िरक़ों से अलग करके बताने के लिए इस्तेमाल किया गया।
”और तुम में एक जमात ऐसी होनी चाहिए जो नेकी की तरफ़ बुलाये और मारूफ़ का हुक्म दे और बुरे कामों से मन करे। यही लोग हैं जो कामयाब हैं और उन लोगों की तरह न हो जाना जो मुतफ़र्रिक़ हो गए और साफ़ अहकाम आने के बाद एक दूसरे से इख़्तिलाफ़ करने लगे। ये वे लोग हैं जिन्हें क़यामत के दिन बड़ा अज़ाब होगा। जिस दिन बहुत से चेहरे सफ़ेद होंगे और बहुत से सियाह। तो जिन लोगों के चेहरे सियाह होंगे उनसे अल्लाह फ़रमाएगा: क्या तुम ईमान ला कर काफ़िर ही गए थे? सो अब कुफ़्र के बदले अज़ाब का मज़ा।”
[सूरह आले इमरान 105 & 106]
मुहद्दिसीन इसी आयत के ज़िम्न में हक़ की पहचान के लिए दूसरे बातिल फ़िरक़ों से अपने आपको अलग किया।
आइये अब मुहद्दिसीन के आसार से पचास हवाले पेश-ए-ख़िदमत हैं जिनसे ये साबित होता है कि *अहले हदीस* का लक़ब और सिफ़ाती नाम बिलकुल सहीह है और इस पर मुहद्दिसीन का इज्मा है।
उन पचास मुहद्दिसीन के नाम दर्जे ज़ेल हैं:
👇🏻
1. इमाम बुख़ारी 2. इमाम मुस्लिम 3. इमाम शाफ़ई 4. इमाम अहमद बिन हम्बल 5. इमाम याह्या इब्ने सईद अल-क़त्तान 6. इमाम तिर्मिज़ी 7. इमाम अबू दाऊद 8. इमाम नसाई 9. इमाम इब्ने खुज़ेमा 10. इमाम इब्ने हिब्बान 11. इमाम अबू अवाना 12. इमाम अहमद बिन अब्दुल्लाह बिन सालेह अल-आजिली 13. इमाम अबू अब्दुल्लाह अल-हाकिम अन-नेसाबूरी 14. इमाम अबू अहमद हाकिम अल-कबीर 15. इमाम मुहम्मद बिन यूसुफ़ अल-फ़रयाबी 16. इमाम जाफ़र बिन मुहम्मद अल-फ़रयाबी 17. इमाम अबू हातिम राज़ी 18. इमाम अबू उबैद अल-क़ासिम बिन सलाम 19. इमाम अबू बक्र बिन अबी दाऊद 20. इमाम अहमद बिन अम्र बिन ज़िहाक बिन मुख़लद इब्ने अबी आसिम 21. हाफ़िज़ अबू हफ़्स उमर इब्ने शाहीन 22. अबू इस्हाक़ इब्राहीम बिन याक़ूब अल-जोज़्जानी 23. इमाम अहमद बिन सिनान अल-वासिती 24. इमाम अली बिन अब्दुल्लाह अल-मदीनी 25. इमाम क़ुतैबा इब्ने सईद 26. इमाम क़ुतैबा अद-दीनावरी 27. इमाम अहमद बिन अल-हुसैन अल-बैहक़ी 28. इमाम अबू बक्र अहमद बिन इब्राहीम अल-इस्माईली 29. इमाम ख़तीब बग़दादी 30. इमाम अबू नुऐम अस्बहानी 31.हाफ़िज़ मुहम्मद बिन इब्राहीम बिन अल-मुन्ज़िर अन-नीसाबूरी 32. इमाम अबू बक्र मुहम्मद बिन अल-हुसैन अल-आजुरी 33.हाफ़िज़ यूसुफ़ बिन अब्दुल्लाह बिन मुहम्मद इब्ने अब्दुल बर्र 34. इमाम इब्ने तैमिया अल-हर्रानी 35.शेख़ इब्ने रशीद अल-फ़हरी 36. इमाम इब्ने क़य्यिम 37. इमाम इस्माईल इब्ने कसीर अल-दिमिश्क़ी 38. इमाम इब्ने अल-मुनादी इब्ने अल-बग़दादी 39. इमाम शैराविया बिन शहरदार अद- ad-दैलमी 40. इमाम अबू अब्दुल्लाह मुहम्मद बिन अली बिन अब्दुल्लाह बिन मुहम्मद अस्-सूरी 41. इमाम जलालुद्दीन सुयूती 42.इमाम इस्माईल बिन मुहम्मद बिन फ़ज़्ल अल-अस्बहानी 43.क़ाज़ी हसन बिन अब्दुर रहमान बिन ख़लाद रामेहरूमज़ी 44. इमाम हफ़्स बिन ग़यास 45. इमाम अबुल फ़ास नस्र बिन इब्राहीम अल-मक़दिसी 46. इमाम अब अब्दुल्लाह मुहम्मद बिन मुफ़्लिह अल-मक़दिसी 47.इमाम मुहम्मद बिन इस्माईल अल-अमीर अल-यमनी 48. इमाम इब्ने अस्-सलाह 49.अबू इस्माईल अब्दुर रहमान बिन इस्माईल अस्-साबूनी 50.अबू मंसूर अब्दुल क़ाहिर बिन ताहिर बिन मुहम्मद अल-बग़दादी
*तफ़सीलात* :
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▪इमाम बुख़ारी [मुतवफ़्फ़ा 256 हिजरी] ने ताईफ़ा मंसूरा के बारे में फ़रमाया : "इससे मुराद *अहले हदीस* हैं।“
{मसला अल-इह्तिजाज बा अश्-शाफ़ई लिल ख़तीब, सफ़ह 47, सनद सहीह, अल-हुज्जत फ़ी बयान अल-मुहज्जह (1/246)}
इमाम बुख़ारी ने इमाम याह्या बिन सईद अल-क़त्तान से एक रिवायात के बारे में नक़ल किया कि: “वो *अहले हदीस* में से नहीं था"। {अत-तारीख़ अल-कबीर 6/429; अल-ज़ऊफ़ा अस्-सग़ीर 281}
▪इमाम मुस्लिम [मुतवफ़्फ़ा 261 हिजरी] ने मजरूह रावियों के बारे में फ़रमाते हैं कि: “वे *अहले हदीस* के नज़दीक मुत'अम हैं (यानी जिस पर तौहमत लगाई गई हो)"
{सहीह मुस्लिम, अल-मुक़द्दिमा, सफ़ह Safa 6} इमाम मुस्लिम ने मज़ीद फ़रमाया: हमने हदीस और *अहले हदीस* के मज़हब की तशरीह की।
(सहीह मुस्लिम, अल-मुक़द्दिमा, सफ़ह 6)
इमाम मुस्लिम ने इमाम अय्यूब सख़्तियानी, इमाम इब्ने औन, इमाम मालिक बिन अनस, इमाम शुबाह बिन अल-हज्जाज, इमाम याह्या बिन सईद अल-क़त्तान, इमाम अब्दुर रहमान इब्ने महदी और उनके बाद आने वालों को *अहले हदीस* में से क़रार दिया।
{सहीह मुस्लिम, अल-मुक़द्दिमा, सफ़ह 22}
▪इमाम शाफ़ई (मुतवफ़्फ़ा 204 हिजरी) एक ज़ईफ़ रिवायत के बारे में फ़रमाते हैं कि: “इस जैसी रिवायात क़ौ *अहले हदीस* साबित नहीं समझते।“
{अस्-सुन्नह अल-कुबरा लिल बैहक़ी 1/260, व सनद सहीह}
इमाम शाफ़ई ने फ़रमाया: “जब मैं *अस्हाबुल हदीस* में से देखता हूँ तो मैं नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को ज़िन्दा देखता हूँ।
{शर्फ़ असहाबुल हदीस लिल ख़तीब, सफ़ह 85–व सनद सहीह}
▪इमाम अहमद बिन हम्बल (मुतवफ़्फ़ा 241 हिजरी) से *ताइफ़ा मंसूरा* के बारे में पूछा गया तो उन्होनें फ़रमाया: “अगर ये ताइफ़ा *असहाबुल हदीस* नहीं है तो मैं नहीं जानता कि ये कौन लोग हैं।"
[माअरिफ़ह उलूम-उल-हदीस लिल अल-हाकिम: सफ़ह 2, सनद सहीह; और इमाम इब्ने हजर अस्क़लानी ने फ़रमाया: “हाकिम ने इसे अहमद से सहीह सनद से उलूम-उल-हदीस में रिवायत किया है कि: "अगर ये ताइफ़ा *असहाबुल हदीस* नहीं तो मैं नहीं जानता वो कौन लोग हैं।"
{फत्हुल बारी: 13/293 ; हदीस 7311}
▪इमाम याह्या बिन सईद अल-क़त्तान (मुतवफ़्फ़ा 198 हिजरी) ने सुलेमान बिन तरख़ान अत-तैमी के बारे में फ़रमाया कि: “तैमी हमारे नज़दीक *अहले हदीस* है।"
{मुसनद अली बिन जाद 1/594, हदीस 1354–सनद सहीह, दूसरा नुस्ख़ा 1314; अल-जिरह व अल-तादील लिल इब्ने अबी हातिम 4/125 व सनद सहीह}
एक रावी इमरान बिन क़ुदामा अल-उम्मी के बारे में इमाम याह्या बिन सईद ने फ़रमाया कि: “लेकिन वो *अहले हदीस* में से नहीं था।”
{अल-जरह व अल-तादील 6/303–सनद सहीह}
▪इमाम तिर्मिज़ी (मुतवफ़्फ़ा 279 हिजरी) ने रावी अबू ज़ैद के बारे में फ़रमाया कि: “और *अहले हदीस* के नज़दीक अबू ज़ैद मजहूल रावी है।"
{सुनन तिर्मिज़ी 88}
▪इमाम अबू दाऊद (मुतवफ़्फ़ा 275 हिजरी) ने फ़रमाया: “आम *अहले हदीस* के नज़दीक...”
{रिसाला अबी दाऊद इला मक्कह फ़ी वसफ़ अस्-सुन्नह सफ़ह 30}
▪इमाम नसाई (मुतवफ़्फ़ा 303 हिजरी) ने फ़रमाया: “अहले इस्लाम के लिए नफ़ा है *अहले हदीस* इल्म व फ़िक़्ह और क़ुरआन वालों में से।"
{सुनन नसाई 7/135 न. 4147; अत-तालीक़ात अस्-सलफ़िया 4152}
▪इमाम इब्ने ख़ुज़ेमा (मुतवफ़्फ़ा 311 हिजरी) ने एक हदीस के बारे फ़रमाया: “हमनें उलमा *अहले हदीस* के दर्मियान कोई इख़्तिलाफ़ नहीं देखा कि ये हदीस रिवायत के लिहाज़ से सहीह है।"
{सहीह इब्ने खुज़ेमा 1/21 # 31}
▪इमाम इब्ने हिब्बान (मुतवफ़्फ़ा 54 हिजरी): हाफ़िज़ मुहम्मद बिन हिब्बान अल-बुस्ती ने एक हदीस के तहत बाब बाँधा है: “इस हदीस का ज़िक्र जिसके मुताल्लिक़ बाज़ फ़िरके वाले *अहले हदीस* पर तनक़ीद करते हैं क्योंकि ये (मुत्तला) इसके सहीह माअने की तौफ़ीक़ से महरूम हैं।"
(सहीह इब्ने हिब्बान, अल-इहसान 566), दूसरे एडिशन में 565)। एक दूसरे मक़ाम पर इमाम इब्ने हिब्बान ने *अहले हदीस* की ये सिफ़त ब्यान की है कि: “वे हदीसों पर अमल करते हैं, उनका दिफ़ा करते हैं, और उनके मुख़ालिफ़ीन का क़ला क़मा (तोड़-फोड़) करते हैं"
{सहीह इब्ने हिब्बान, अल-इहसान न.6129, दूसरा एडिशन न.6162. देखिए 1/140 हदीस 61 के क़ब्ल }
▪इमाम अबू अवानाह [मुतवफ़्फ़ा 316 हिजरी] ने एक मसले के बारे में इमाम मुज़नी को बताते हैं: “इसमें *अहले हदीस* के दर्मियान इख़्तिलाफ़ है।"
{मुसनद अबी अवानाह 1/49}
▪इमाम अहमद बिन अब्दुल्लाह बिन सालेह अल-इज्ली (मुतवफ़्फ़ा 261 हिजरी) ने इमाम सुफ़ियान बिन उयेना के बारे में फ़रमाया: “बाज़ *अहले हदीस* कहते थे कि वो ज़ुहरी की हदीस में सबसे ज़्यादा सिक़ा हैं।"
{मारिफतुस-सिक़ात 1/417, 631 और दूसरा नुस्ख़ा 577}
▪इमाम अबू अब्दुल्लाह अल-हाकिम अन-नेसाबूरी (मुतवफ़्फ़ा 405 हिजरी) ने इमाम याह्या बिन मईन के बारे में फ़रमाया: “वो *अहले हदीस* के इमाम हैं।"
{अल-मुस्तदरक 1/198, 710}
▪इमाम अबू अहमद हाकिम अल-कबीर (मुतवफ़्फ़ा 378 हिजरी) ने एक किताब लिखी है: *“शिआर अहले हदीस।”* ये किताब हाफ़िज़ ज़ुबेर अली ज़ई रहिमहुल्लाह की तहक़ीक़ और तर्जुमे के साथ छप चुकी है।
{देखिए: माहनामा अल-हदीस 9, सफ़ह 4 से 28}
▪इमाम मुहम्मद बिन यूसुफ़ अल-फ़रयाबी (मुतवफ़्फ़ा 212 हिजरी) ने फ़रमाया: “हमनें सुफ़ियान सौरी को कूफ़ा में देखा और हम *अहले हदीस* की एक जमात थे।"
{अल-जरह व अल-तादील 1/60, व सनद सहीह}
▪इमाम जाफ़र बिन मुहम्मद अल-फ़रयाबी (मुतवफ़्फ़ा 301 हिजरी) ने इब्राहीम बिन मूसा अल-वासदूली के बारे में फ़रमाया: “इसका बेटा *अहले हदीस* में से है, इसे इस्हाक़ कहते हैं।"
{अल-कामिल लिल इब्ने अदी 1/271, दूसरा नुस्ख़ा 1/440, व सनद सहीह}
▪इमाम अबू हातिम अल-राज़ी (मुतवफ़्फ़ा 277 हिजरी) : अस्मा अल-रिजाल के मशहूर इमाम अबू हातिम अल-राज़ी ने फ़रमाया: “और किसी चीज़ पर *अहले हदीस* का इत्तिफ़ाक़ होना हुज्जत होता है।"
{किताब अल-मरासील, सफ़ह 192, न. 703}
▪इमाम अब उबैद अल-क़ासिम बिन सलाम (मुतवफ़्फ़ा 224 हिजरी) एक असर के बारे में फ़रमाते हैण: “बाज़ *अहले हदीस* उसे लेते हैं।"
{किताब अल-तहूर, सफ़ह 173; अबी उबैद , अल-औस्त लिल इब्ने अल-मुन्ज़िर 1/265}
▪इमाम अबू बक्र बिन अबी दाऊद (मुतवफ़्फ़ा 316 हिजरी): सुनन अबू दाऊद के मुसन्निफ़ इमाम अबू दाऊद के बेटे सदूक़ अल-जम्हूर इमाम अबू बक्र बिन अबी दाऊद फ़रमाते हैं: “और उस क़ौम में से ना हो जाना जो अपने दीन से खेलते हैं (वरना) तू *अहले हदीस* पर तान व जिरह कर बैठेगा।"
{इमाम मुहम्मद बिन अल-हुसैन अल-आजुरी की किताब अश्-शरीया, सफ़ह 975-सनद सहीह}
▪इमाम अहमद बिन अम्र बिन ज़िहाक बिन मुख़लद इब्ने अबी आसिम (मुतवफ़्फ़ा 287 हिजरी) एक रावी के बारे में फ़रमाते हैं: *“अहले हदीस* में से वो एक सिक़ा है।"
{अल-अहवाल वल-मसानी 1/428, 604}
▪इमाम अबू हफ़्स उमर इब्ने शाहीन (मुतवफ़्फ़ा 385 हिजरी) ने इमरान अल-उआमा के बारे में इमाम याह्या अल-क़त्तान का क़ौल नक़ल किया है: “लेकिन वो *अहले हदीस* में से नहीं था।'
{तारीख़ अस्मा अल-सिक़ात 1084}
▪अल्लामा इस्हाक़ इब्राहीम बिन याक़ूब अल-जोज़्जानी (मुतवाफ़ा 259 हिजरी) ने फ़रमाया: “फिर *अहले हदीस* में से मशहूर है।'
{अहवालुल-रिजाल सफ़ह 43 न.10 और सफ़ह 214}
▪इमाम अहमद बिन सिनान अल-वासिती (मुतवफ़्फ़ा 259 हिजरी) ने फ़रमाया:
“दुनिया में ऐसा कोई बिदअती नहीं है जो *अहले हदीस* से बुग्ज़ नहीं रखता।"
{मारिफ़ाह उलूम अल-हदीस लिल हाकिम, सफ़ह 4, न.6 –सनद सहीह}
👉🏻मालूम हुआ कि जो शख़्स अहले हदीस से बुग्ज़ रखता है या अहले हदीस को बुरा कहता है तो वो शख़्स पक्का बिदअती है।
▪इमाम अली बिन अब्दुल्लाह अल-मदीनी (मुतवफ़्फ़ा 234 हिजरी) एक रिवायत की तशरीह में फ़रमाते हैं: “यानी वो *अहले हदीस* है।"
{सुनन तिर्मिज़ी 2229, आरीज़तुल अहवज़ी 9/74}
▪इमाम क़ुतैबा इब्ने सईद (मुतवफ़्फ़ा 240 हिजरी) ने फ़रमाया: “अगर तुम किसी आदमी को देखो कि वो *अहले हदीस* से मुहब्बत करता है तो समझो कि ये शख़्स सुन्नत पर चल रहा है।"
{शर्फ़ असहाबुल हदीस हदीस 143–सनद सहीह}
▪इमाम क़ुतैबा अद-दीनावरी (मुतवफ़्फ़ा 276 हिजरी) ने एक किताब लिखी- *“तावील मुख़्तलिफ़ुल हदीस फ़ी रद्द अला अहलुल हदीस'*। उसमें उन्होंने *अहले हदीस* के दुश्मनों का रद्द किया।
▪इमाम अहमद बिन अल-हुसैन अल-बैहक़ी (मुतवफ़्फ़ा 458 हिजरी) ने इमाम मालिक बिन अनस, इमाम औज़ाई, इमाम सुफ़ियान सौरी, इमाम सुफ़ियान बिन उयेनाह, इमाम हम्माद बिन सलामा, इमाम शाफ़ई, इमाम अहमद बिन हम्बल, इमाम इस्हाक़ बिन राहविया वग़ैरह को *अहले हदीस* में से लिखा है।
{किताब अल-ऐतिक़ाद व बिदाया इला सबील-उर-रिशाद लिल बहक़ी, सफ़ह 180}
▪इमाम अबू बक्र अहमद बिन इब्राहीम अल-इस्माईली (मुतवफ़्फ़ा 371 हिजरी) ने एक रावी के बारे में कहा है कि:“वो *अहले हदीस* में से नहीं था।"
{किताब अल-मो'अजम 1/469 121}
▪इमाम ख़तीब अल-बग़दादी (मुतवफ़्फ़ा 463 हिजरी) ने *अहले हदीस* की फ़ज़ीलत पर एक किताब लिखी है-‘शर्फ़ असहाबुल हदीस' जो छपी हुई है और किताब 'नसीहा अहलुल हदीस' भी लिखी है।
{तारीख़ बग़दाद 1/224, 51}
▪इमाम अबू नुऐम अस्बहानी (मुतवफ़्फ़ा 430 हिजरी) ने फ़रमाया: *“उलमा-ए-अहले हदीस* पर इसका फ़साद मख्फ़ी नहीं है।"
{अल-मुस्तख़रज अला सहीह मुस्लिम 1/67, 89} और फिर फ़रमाया: “और शाफ़ई *अहले हदीस* के मज़हब पर गामज़न थे।"
{हुलियतुल औलिया 9/112 }
▪इमाम मुहम्मद बिन इब्राहीम बिन अल-मुन्ज़िर अन-नेसाबूरी (मुतवफ़्फ़ा 318 हिजरी) ने अपने साथियों और इमाम शाफ़ई को *अहले हदीस* कहा।
{अल-औस्त 2/307, 915}
▪इमाम अब बक्र मुहम्मद बिन अल-हुसैन अल-आजुरी (मुतवफ़्फ़ा 360 हिजरी) ने *अहले हदीस* को अपना भाई कहा-मेरे भाइयों के लिए नसीहत है। अहले क़ुरआन, *अहले हदीस* और अहले फ़िक़्ह में जो तमाम मुसलमानों में से हैं।
{अश्-शरिया सफ़ह 3 और 7}
👉🏻मुन्किरीन-ए-हदीस को अहले हदीस या अहले फ़िक़्ह कहना ग़लत है। अहले क़ुरआन और अहले हदीस और अहले फ़िक़्ह वग़ैरह अलक़ाब और सिफ़ाती नाम एक ही जमात के नाम हैं।
▪इमाम यूसुफ़ बिन अब्दुल्लाह बिन मुहम्मद इब्ने अब्दुल बर्र (मुतवफ़्फ़ा 463 हिजरी) ने फ़रमाया: *“अहले हदीस* के एक गिरोह ने कहा।"
{अल-तमहीद 1/16}
▪शेख़ुल इस्लाम इमाम इब्ने तैमिया अल-हर्रानी (मुतवफ़्फ़ा 728 हिजरी) ने एक सवाल के जवाब में फ़रमाया: “बुख़ारी और अबू दाऊद तो फ़िक़हा के इमाम और मुज्तहिद (मुतलक़) थे, रहे इमाम मुस्लिम, तिर्मिज़ी, नसाई, इब्ने माजह, इब्ने खुज़ेमा, अब याला और बज़्ज़ार वग़ैरहुम तो अहले हदीस के मज़हब पर थे, उलमा में से किसी की तक़लीद मुअय्यन करने वाले मुक़ल्लिद नहीं थे और न मुजतहिद-ए-मुतलक़ थे।"
{मज'मूआ फ़तावा इब्ने तैमिया 20/40} तम्बीह:
👉🏻 शेख़ुल इस्लाम इब्ने तैमिया का किबार अइम्मा हदीस के बारे में ये कहना कि "न मुजतहिद-ए-मुतलक़ थे" महल-ए-नज़र है।
▪शेख़ इब्ने रशीद अल-फ़हरी (मुतवफ़्फ़ा 721 हिजरी) ने किबार उलमा जैसे इमाम अय्यूब अल-सख़्तियानी के बारे में फ़रमाया: “वो *अहले हदीस*में से थे।"
{अस्-सुनन-अल-अबाईन, सफ़ह 119 और सफ़ह 124}
▪इमाम इब्ने क़य्यिम अल-जौज़ी (मुतवफ़्फ़ा 751 हिजरी) ने अपने मशहूर 'क़सीदा नूनियह' में फ़रमाया: *"अहले हदीस* से बुग्ज़ रखने वाले और गालियाँ देने वाले! तुझे शैतान से दोस्ती क़ायम करने की बशारत हो।"
{अल-काफ़िया अश्-शाफ़िया फ़ी इन्तिसार अल-फिरक़तुन-नाजिया, सफ़ह 99}
▪इमाम इस्माईल इब्ने कसीर अल-दमिश्क़ी (मुतवफ़्फ़ा 774 हिजरी) ने सूरह बनी इस्राईल की आयत 71 की तफ़्सीर में फ़रमाया: “बाज़ सलफ़ ने कहा: ये (आयत) *असहाबुल हदीस* की सबसे बड़ी फ़ज़ीलत है क्योंकि उनके इमाम नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हैं।"
{तफ़्सीर इब्ने कसीर 4/164}
▪इमाम इब्ने अल-मुनादी अल-बग़दादी (मुतवफ़्फ़ा 336 हिजरी) ने क़ासिम बिन ज़करिया याह्या अल-मतरज़ के बारे में फ़रमाया: “और वो *अहले हदीस* में से और सच्चों में से थे।"
{तारीख़ बग़दाद 12/441, 6910 सनद सहीह}
▪इमाम शैरावियह बिन शहरदार अद-दैलमी (मुतवफ़्फ़ा 509 हिजरी) :दैलम के मशहूर इमाम शैरावियह बिन शैहरदार ने अब्दुर्रहमान बिन अहमद बिनअब्दुस सक़फ़ी अल-हमदानी के बारे में अपनी तारीख़ में फ़रमाया: “हमारे इलाके के आम *अहले हदीस* ने उनसे रिवायात बयान की है और वे सिक़ा मुतक़न थे।"
{सियर अ'लाम अन-नबुला 14/438}
▪बग़दाद के मशहूर इमाम अबू अब्दुल्लाह मुहम्मद बिन अली बिन अब्दुल्लाह बिन मुहम्मद अस्-सूरी (मुतवफ़्फ़ा 441 हिजरी) ने फ़रमाया: "हदीस से दुश्मनी और *अहले हदीस* की ऐब-जौई करने वाले से कह दो कि क्या तू ये इल्म से कह रहा है, मुझे बता दे? या जिहालत से? तो जिहालत बेवकूफ़ों की आदत है। क्या उन लोगों की ऐब- जौई की जाती है जिन्होंने दीन को बातिल और बे-बुनियाद बातों से बचाया?
{तज़किरातुल हुफ़्फ़ाज़ 3/1117 no.1002–सनद सहीह; सियर अ'लाम अन-नबुला 14/438), अल-मुन्तज़म 15/324 लिल इब्ने अल-जौज़ी}
▪इमाम सुयूती (मुतवफ़्फ़ा 911 हिजरी) बनी इस्राईल की आयत 71 की तशरीह में फ़रमाते हैं: *“अहले हदीस* के लिए इससे ज़्यादा फ़ज़ीलत वाली और कोई बात नहीं है कि आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सिवा *अहले हदीस* का कोई इमाम नहीं है।"
{तदरीब-उर-रावी 2/126}
▪इमाम इस्माईल बिन मुहम्मद बिन फ़ज़्ल अल-अस्बहानी (मुतवफ़्फ़ा 535 हिजरी) ने फ़रमाया: *“अहले हदीस* का ज़िक्र और यही जमात क़यामत तक हक़ पर ग़ालिब रहेगा।'
{अल-हुज्जत फ़ी बयान अल-मुहज्जा व शरह अक़ीदा अहले सुन्नह 1/246}
▪क़ाज़ी हसन बिन अब्दुर्रहमान बिन ख़लाद रामेहरुमूज़ी (मुतवफ़्फ़ा 360 हिजरी) ने फ़रमाया: *“उनके हदीस* को फ़ज़ीलत बख़्शी है।"
{अल-मुहद्दिस अल-फ़ासिल बइना अर-रावी वल वावी, सफ़ह 159, नम्बर 1}
▪इमाम हफ़्स बिन ग़ियास (मुतवफ़्फ़ा 194 हिजरी) से *अहले हदीस* के बारे में पूछा गया तो आपने फ़रमाया: “वे दुनिया में सबसे बेहतरीन हैं।"
{माअरिफ़ह उलूम अल-हदीस अल-हाकिम, सफ़ह 3, नम्बर 3–सनद सहीह}
▪इमाम अबुल फ़ास नस्र बिन इब्राहीम अल-मक़दिसी (मुतवफ़्फ़ा 490 हिजरी) ने फ़रमाया: *“बाब: अहले हदीस की फ़ज़ीलत"*।
{अल-हुज्जत अ़ला तरीक़ अल-मुहज्जह 1/325}
▪इमाम अबू अब्दुल्लाह मुहम्मद बिन मुफ़्लिह अल-मक़दिसी (मुतवफ़्फ़ा 763 हिजरी) ने फ़रमाया: *“अहले हदीस* नाजी गिरोह है जो हक़ पर क़ायम है।"
{अल-आदाब अश्-शरिया 1/211}
▪इमाम मुहम्मद बिन इस्माईल बिन अमीर अल-यमनी (मुतावफ़्फ़ा 840 हिजरी) ने फ़रमाया: “फ़ज़ीलत वाले *असहाबुल हदीस* को लाज़िम पकड़ो, तुम उनके पास हर किस्म की हिदायत और फ़ज़ीलत पाओगे।"
{अर-रौज़ अल-बासिम फ़ी ज़ब अन-सुन्नह लि अबिल क़ासिम 1/146}
▪इमाम इब्ने अस्-सलाह (मुतवफ़्फ़ा 806 हिजरी) ने सहीह हदीस की एक तारीफ़ में लिखते हैं: “ये वो हदीस है जिसे सहीह क़रार देने पर *अहले हदीस* के दर्मियान कोई इख़्तिलाफ़ नहीं है।"
{उसूल अल-हदीस, मुक़द्दिमा इब्नुस सलाह, शरह अल-अरक़ी, सफ़ह 20}
▪इमाम अबू इस्माईल अब्दुर रहमान अल-साबूनी (मुतवफ़्फ़ा 449 हिजरी) ने एक किताब लिखी है-'अक़ीदतुस सलफ़ व असहाबुल हदीस'। उसमें वो कहते हैं: *“अहले हदीस* ये अक़ीदा रखते हैं और इसकी गवाही देते हैं कि अल्लाह सुब्हानहु वता आ़ला सातों आसमानों से ऊपर अर्श पर है।"
{अक़ीदतुस सलफ़ व अस्हाबुल हदीस, सफ़ह 14}
▪इमाम अबू मंसूर अब्दुल क़ाहिर बिन ताहिर बिन मुहम्मद अल-बग़दादी (मुतवफ़्फ़ा 429 हिजरी) ने शाम वग़ैरह की सरहदों पर रहने वालों के बारे में कहा: “वे सब अहले सुन्नत में से *अहले हदीस* के मज़हब पर हैं।"
{उसूल अद-दीन, सफ़ह 317}
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इन पचास हवालों से साबित हुआ कि मुसलमानों का मुहाजिरीन, अंसार और अहले सुन्नत की तरफ़ सिफ़ाती नाम और लक़ब अहले हदीस है और इस लक़ब के जवाज़ पर मुहद्दिसीन का इज्मा है। किसी एक इमाम ने भी अहले हदीस नाम व लक़ब को ग़लत, ना-जायज़ या बिदअत हरगिज़ नहीं कहा। लिहाज़ा बाज़ ख़वारिज और उनसे मुतास्सिरीन का अहले हदीस नाम से नफ़रत करना और उसे बिदअत और फ़िरक़ा-वाराना नाम कहकर मज़ाक उड़ाना असल में तमाम मुहद्दिसीन और उनके इज्मा की मुख़ालिफ़त करना है। इनके अलावा और भी बहुत से हवाले हैं जिनसे अहले हदीस या अस्हाबुल हदीस या सलफ़ी सिफ़ाती नामों का सबूत मिलता है। मुहद्दिसीन-ए-किराम की इन तशरीहात और इज्मा से मालूम हुआ कि अहले हदीस उन सहीह-उल-अक़ीदा मुहद्दिसीन और अवाम का लक़ब है जो बग़ैर तक़लीद के किताब-ओ-सुन्नत पर फ़हम-ए-सलफ़ सालिहीन की रोशनी में अमल करते हैं और उनके अक़ाइद भी किताब-ओ-सुन्नत और इज्मा के बिल्कुल मुताबिक़ होते हैं। याद रहे अहले हदीस और अहले सुन्नत एक ही गिरोह के सिफ़ाती नाम हैं। बाज़ अहले बिदअत ये कहते हैं कि
अहले हदीस सिर्फ़ मुहद्दिसीन को कहते हैं चाहे वे अहले सुन्नत में से हों या अहले बिदअत में से। इन लोगों का ये क़ौल फ़हम-ए-सलफ़ सालिहीन के ख़िलाफ़ होने की वजह से मरदूद है। अहले बिदअत के इस क़ौल से ये लाज़िम आता है कि गुमराह लोगों को भी *ताईफ़ा मंसूरा* क़रार दिया जाए हालाँकि इस क़ौल का बातिल होना अवाम पर भी ज़ाहिर है। बाज़ रावियों के बारे में ख़ुद मुहद्दिसीन ने ये सराहत की है कि वे *अहले हदीस* में से नहीं थे।
{देखिये: फरक़ा 5,21,28}
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*सवाल*:
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दुनिया का हर शख़्स अहले हदीस से नफ़रत करता है तो क्या बिदअती अपने आपसे भी नफ़रत करता है?
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*अल-जवाब*
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हक़ ये है कि अहले हदीस के इस सिफ़ाती नाम व लक़ब के मिस्दाक़ सिर्फ़ दो गिरोह हैं-
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1-हदीस बयान करने वाले (मुहद्दिसीन), और
2-हदीस पर अमल करने वाले (मुहद्दिसीन और उनके अवाम)।
▪इमाम इब्ने तैमिया फ़रमाते हैं: “हम *अहले हदीस* का ये मतलब नहीं लेते कि इससे मुराद सिर्फ़ वही लोग हैं जिन्होंने हदीस सुनी, लिखी या रिवायात की बल्कि इससे मुराद हम ये लेते हैं कि हर शख़्स जो इसके हिफ़्ज़, मअरिफ़त और फ़हम का ज़ाहिरी व बातिनी लिहाज़ से मुस्तहिक़ है और ज़ाहिरी और बातिनी लिहाज़ से इसकी इत्तिबा करता है और यही मुआमला अहले क़ुरआन का है।"
{मज्मूआ फ़तावा इब्ने तैमिया 4/95}
*इमाम इब्ने तैमिया के इस फ़हम से मालूम हुआ कि अहले हदीस से मुराद मुहद्दिसीन और उनके अवाम हैं।*
आख़िर में अर्ज़ है कि अहले हदीस कोई नस्ली फ़िरक़ा नहीं है बल्कि एक नज़रियाती जमात है। हर वो शख़्स अहले हदीस है जो क़ुरआन व हदीस और सलफ़ के फ़हम पर है।
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▪इमाम अहमद बिन हम्बल ने फ़रमाया: *"हमारे नज़दीक अहलुल हदीस वो शख़्स है जो हदीस पर अमल करता है।"*
[मनाक़िब अल-अहमद लि इब्ने अल-जौज़ी, सफ़ह 208 सनद सहीह]
▪इमाम अब्दुल्लाह इब्ने मुबारक ने फ़रमाया:
“मेरे नज़दीक वे *असहाबुल हदीस* हैं।{हदीस को मानने वाले}।
[शर्फ़ असहाबुल हदीस लिल ख़तीब]
▪इमाम सुफ़ियान अस्-सौरी ने अहले हदीस के बारे में फ़रमाया:
“फ़रिश्ते जन्नत के रखवाले हैं और *असहाबुल हदीस* ज़मीन के।"
[शर्फ़ असहाबुल हदीस लिल ख़तीब]
▪ईमाम् शाफ़ई ने फ़रमाया:
*“अहले हदीस से जुड़े रहो, क्योंकि वे लोगों में सबसे सहीह हैं।"*
{सियर अ'लाम-उन-नबुला 14/198}
और इमाम अबू नुऐम अल-अस्बहानी ने फ़रमाया:
“और अश्-शाफ़ई *अहलुल हदीस* के मज़हब पर थे।"
{हुलियतुल औलिया 9/112}
▪इमाम मुहम्मद बिन इदरीस अश्-शाफ़ई ने फ़रमाया: “जब मैं *असहाबुल हदीस* में से देखता हूँ तो मैं नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को ज़िन्दा देखता हूँ।"
{शर्फ़ असहाबुल हदीस लिल ख़तीब, सफ़ह 85-सनद सहीह}
▪हाफ़िज़ मुहम्मद बिन हिब्बान अल-बुस्ती ने एक हदीस के तहत बाब बाँधा है-“उस हदीस का ज़िक्र किसके ज़रिये से बाज़ मुत्तला फ़िरके वाले *अहले हदीस* पर तनक़ीद करते हैं क्योंकि ये (मुतला) इसके सहीह माअने की तौफ़ीक़ से महरूम हैं।"
(सहीह इब्ने हिब्बान; अल-इहसान 566), दूसरा एडिशन 565)
💦
एक दूसरे मक़ाम पर इमाम इब्ने हिब्बान ने *अहले हदीस* की ये सिफ़त बयान की है कि: *“वे हदीसों पर अमल करते हैं, उनका दिफ़ा करते हैं और उनके मुख़ालिफ़ीन का क़ला-क़मा (तोड़-फोड़) करते हैं।"*
(सहीह इब्ने हिब्बान; अल-इहसान न. 6129, दूसरा एडिशन न. 6162) देखिए (1/140 हदीस 61 से क़ब्ल}
▪इमाम अहमद बिन सिनान अल-वासिती (मुतवफ़्फ़ा 259 हिजरी) ने फ़रमाया:
*“दुनिया में ऐसा कोई बिदअती नहीं है जो *अहले हदीस से बुग्ज़ नहीं रखता।"*
{मआरिफ़ा उलूम अल-हदीस लिल हाकिम, सफ़ह 4, न. 6–सनद सहीह}
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*मालूम हुआ कि जो शख़्स अहले हदीस से बुग्ज़ रखता है या अहले हदीस को बुरा कहता है तो वो शख़्स पक्का बिदअती है। और दूसरी बात, यहाँ सिर्फ़ मुहद्दिसीन मुराद नहीं हैं। यहाँ मुराद हक़्क़ पर क़ायम जमात के लोग हैं।*
▪इमाम ख़तीब बग़दादी (मुतवफ़्फ़ा 463 हिजरी) ने *अहले हदीस* की फ़ज़ीलत पर एक किताब लिखी है-‘शर्फ़ असहाबुल हदीस’ जो छपी हुई है और किताब 'नसीहा अहले हदीस’ भी लिखी।
{तारीख़ बग़दाद 1/224, 51}
▪इमाम जलालुद्दीन सुयूती (मुतवफ़्फ़ा 911 हिजरी) बनी इस्राईल की आयत 71 की तशरीह में फ़रमाते हैं कि: *“अहले हदीस* के लिए इससे ज़्यादा फ़ज़ीलत वाली और कोई बात नहीं है क्योंकि आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सिवा अहले हदीस का कोई इमाम नहीं है। “{तदरीब-उर-रावी 2/126}
▪इमाम अबू इस्माईल अब्दुल रहमान बिन इस्माईल अल-साबूनी (मुतवफ़्फ़ा 449 हिजरी) ने एक किताब लिखी है ‘अक़ीदतुस सलफ़ व असहाबुल हदीस'। उसमें वो कहते हैं: “अहले हदीस ये अक़ीदा रखते हैं और उसकी गवाही देते हैं कि अल्लाह सुब्हानहु वता आला सात आसमानों से ऊपर अर्श पर है।"
{अक़ीदतुस सलफ़ व असहाबुल हदीस, सफ़ह 14}
सलफ़ सालिहीन के फ़हम की रोशनी में अमल करें इसी पर अपना अक़ीदा रखें। अपने आपको अहले हदीस कहलाने का ये मतलब हरगिज़ नहीं है कि अब ये शख़्स जन्नती हो गया है। अब आमाल-ए-सालिहा तर्क करके ख़्वाहिशात की पैरवी और मनमानी ज़िन्दगी गुज़री जाए। बल्कि वही शख़्स कामयाब है जिसने अहले हदीस नाम की लाज रखते हुए अपने अस्लाफ़ की तरह क़ुरआन व सुन्नत के मुताबिक़ ज़िन्दगी गुज़री। वाज़ेह रहे निजात के लिए सिर्फ़ नाम का लक़ब काफ़ी नहीं होता बल्कि नाम के साथ निजात का दारोमदार दिल की ततहीर और ईमान व अक़ीदा की दुरुस्तगी के साथ अमल-ए-सालेह पर है। यही शख़्स अल्लाह के फ़ज़्ल-ओ-करम से अब्दी निजात का मुस्तहिक़ है।
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