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Aaj ka Musalman Quran se Kitna door hai?

Aaj Musalman Quran se Kitna Door hai?
Aakhir aaj ke Musalmano ki halat ke jimmedar kaun hai?
Aaj Jab Musalmanon ke yaha kisi se Jhhagra hota hai to Us waqt Quran uthane ki bat aati hai chal tu sahi ya mai Quran uthao?
Quran Majeed Sirf Quran khawani me hi padhi jati hai?
Quran khawani unhi logo ke yaha aksar hota hai jinke yaha koi quran padhne wala nahi hai ya hai to padhta nahi hai isliye ise ek rasm ke taur pe samajha jata hai?
Jin gharon me hamesha Quran Majeed ki tilawat ki jati hai waha Quran khawani ki jarurat hi kya hai?
Aaj Agar Musalman Quran-o-Hadees pe amal kiya hota to Quran khawani jaisi biddat hamare bich hoti hi nahi?
Aaj Ka Musalman Quran Majeed se kitna door hai aap is waqiye se samajh sakte hai, ise sirf apne tak hi nahi rakhe balke Apne dusre bhaiyon tak jarur pahuchaye.
آج کا مسلمان قرآن کریم سے کتنا دُور ہے؟
مسلمانوں کے بدترین حالات کا زمدار لائن ہے؟
آج جہاں مسلمانوں کے گھر سے قرآن کی تلاوت کی آواز آنی چاہیئے تھی وہاں سے موشقی اور گندی ویڈیوز کی آوازیں آتی ہے۔ ٹک ٹوک پے ناچنے والا اور ناچنے والی، پب جی کھیلنے والو کو مسلم معاشرے میں آسانی سے دیکھا جائے سکتا ہے، آنلائن ویڈیوز بناکر ہماری مسلم بہنے سوشل میڈیا پے ڈال رہی ہے تاکہ اس سے ہمیں فلمی دنیا میں انتخاب کیا جائے گا، اس سے وہ اداکارہ بن جائے گی، جہاں جسم فروشی کرکے پیسے کمایا جاتا ہے، جہاں پیسو کے لیے غیر مرد کے ساتھ ہمبستر ہونا پڑتا ہے، مسلم سماج میں آج اس قدر برائی پھیل چکی ہے کے اس میں پتہ نہیں چل رہا کے کون صحیح ہے اور کون غلط ہے؟ آج ہم بابری مسجد کا رونا رو رہے ہیں کے کافروں نے مسجد توڑ کر وہاں اپنی عبادت گاہ مندر بنا دیے، (فیصلہ آ چکا ہے آج یہ کل بنےگا تو وہی) مگر افسوس کے ہمارے محلے کی مسجدیں ویران ہے، اس میں ہم جا ہی نہیں رہے ہیں اور فیس بک، ٹویٹر اور دیگر سوشل میڈیا پے مکہ اور مدینہ میں نمازیں ادا کرنے کی دعاء کر رہے، کیا یہی ہمنے قرآن سے نصیحت حاصل کی ہے یہ پھر اُسے ہمنے صرف جھگڑا و تکرار کے وقت تک ہی محدود رکھا؟

नबी साल्लाहू अलैहि वसलम्म ने अपने जिंदगी के आखिरी वक़्त मे अपने उम्मत से कहा था, मेरे बाद तुम दो चीजो को अगर मजबूती से पकड़े रहोगे तो कभी भी गुमराह नही होगे | ये दो चीज़े है — किताबुल्लाह व सुन्नती रसूल
मतलब अल्लाह की किताब और नबी की सुन्नत

1— कुरान

2— नबी की सुन्नत

लेकिन अफसोस की बात है की मुसलमानो ने कुरान को छोड़ दिया, और जो पढ़ते भी है तो उसका मतलब नही समझते है | आज मुसलमानो की हालात का सबसे बड़ी वजह यही है|

आज का मुसलमान क़ुरआन व हदीस से कितना दूर है आप इस वाक़िए से समझ सकते है।

*एक नसीहत भरा वाक़िया*

एक बार अफ्रीका के एक गांव में एक इमाम मुकर्रर किए गए, बेहतरीन हाफ़िज़ होने के साथ साथ क़ुरआन मजीद की तिलावत बड़ी शानदार करते थे, वक़्त के पाबंद और तकवे वाले थे, लिहाज़ा लोगों को बहुत पसंद आए, गांव के लोग बड़ी इज्जत करने लगे, उस गांव का हर शख्स उस इमाम की दावत करना अपने लिए इज्जत समझता और बढ़ चढ़ कर इज्जत अफजाई की कोशिश करता इसलिए इमाम साहब की खाने की बारी लग गई थी,

रमज़ान का महीना शुरू हो गया, आदत के मुताबिक गांव के एक शख्स ने बड़े शौक से उस आलिम ए दीन को दावत दिया, उसने इमाम साहब की बड़ी ताज़ीम वा तकरीम किया, दस्तरखान को तरह तरह के समान से सजाया गया, इमाम साहब खाने से फारिग हुए और खुशदिली से दुआएं देते हुए रुखसत हो गए,

उधर उस शख्स की बीवी दस्तरख्वान समेटने अाई तो उसे याद आया के दस्तरख्वान के करीब उसने एक मोटी रकम रख कर भूल गई थी मगर अब उसका कहीं नाम ओ निशा नहीं था, पूरा कमरा और घर छान मारा मगर वह रकम ना मिल सकी, जब उसका खाविंद नमाज़ पढ़ कर घर आया तो बीवी ने सारा माजरा कह सुनाया शौहर ने भी रकम के मुतल्लिक़ ला इलमी का इजहार किया, थोड़ी देर गौर और फिक्र करने के बाद उन्होंने सोचा के आज इमाम साहब के इलावा हमारे घर और कोई नहीं आया था, और इस घर में हमारे सिवा इस घर में एक दूध पीती बच्ची है, लिहाज़ा हो या ना हो पैसे इमाम साहब ने ही उठाए है,

उस आदमी को बहुत गुस्सा आया के हमने ही जिसे इस मुबारक और बाबरकत महीने में दावत दी और उसने इस मेहमाननवाजी का  ये सिला दिया, मगर उसने शर्म के मारे इमाम साहब से कुछ पूछा नहीं अलबत्ता उस रोज़ के बाद से वह इमाम साहब से कतराने लगा,

इस वाकिया को पूरा एक साल बीत गया, फिर रमज़ान के महीने में उसी घर में इमाम साहब की दावत परी।

शौहर ने बीते रमज़ान के वाक्ये को सामने रखते हुए बीवी से मशवरा किया, बीवी नेक और फर्माबरदार थी शौहर से बोली हो सकता है इमाम साहब को किसी परेशानी या मजबूरी के सबब ऐसा किया हो, हम उन्हें माफ कर दें ताकि अल्लाह पाक हमें बख्स दे,

चुनांचे इमाम साहब को फिर दावत दी गई, शाम में जब सब लोग खाना खा चुके तो उस आदमी ने इमाम साहब से कहा :

"क्या आपने महसूस किया के पिछले रमज़ान से मैं आप से कतराने लगा था ?

इमाम साहब बोले जी हां ! मगर मसरूफियत की वजह से सबब दरयाफ्त ना कर सका, उसने कहा मैं आपसे कुछ पूछना चाहता हूं आप उसका सही सही जवाब दीजिए, पिछली बार मेरी बीवी दस्तरख्वान के पास कुछ पैसे भूल गई थी जो आपके जाने के बाद गायब हो गए थे, कहीं वह पैसे आपने तो नहीं उठा लिए थे

इमाम साहब फौरन बोले जी हां ! मैंने ही उठाया था !
ये सुनकर उस आदमी के होश उड़ गए, इमाम साहब ने कहा के

"मैंने दस्तरख्वान के करीब कुछ नोट देखा जो हवा की वजह से बिखर गए थे, खिड़की खुली हुई थी और पंखा चल रहा था, मुझे लगा के कहीं नोट उड़ ना जाए, फिर मैंने उन नोटों को जमा करके उठा लिया,

इतना कह कर सर झुका कर इमाम साहब रोने लगे, घर वाले हैरत से इमाम साहब को देखने लगे के एक तो यह मेरा पैसा चुरा लिया और ऊपर से रो रहा है ताकि इसकी हमदर्दी को जीत सकू , फिर उन्होने कहा तुम्हे मालूम है के मैं क्यूं रो पड़ा ??

मैं इस बात पर नहीं रो रहा के तुमने मुझपर इलज़ाम लगाया और बोहतान तराशी किया बल्कि इस बात पर रो रहा हूं कि आज पिछले एक साल से तुम्हारे घर में किसी ने भी क़ुरआन मजीद छुआ तक नहीं, अगर एक बार ही क़ुरआन मजीद सिर्फ खोल ही लेते तो अपने पैसे पा लेते,

*इतना सुनते ही वह आदमी दौड़ा दौड़ा क़ुरआन मजीद के पास गया और उसे खोल कर देखा तो उसमें सारे पैसे मौजूद थे,

आखिर यह नजम किसी ने सही ही कहा है।

अमल की किताब थी,

दुआ की किताब बना दिया |

समझने की किताब थी,

पढ़ने की किताब बना दिया |

जिंदगी का दस्तूर थी,

मुर्दो का मंसूर बना दिया |

जो इल्म की किताब थी,

ला- इल्मो के हाथ थमा दिया |

तस्खीरे- कायनात का दर्स देने आयी थी,

सिर्फ मदरसो का निसाब बना दिया |

मुर्दा कौमों को जिंदा करने आयी थी,

मुर्दो की बख्शिस में लगा दिया |

ऐ मुसलमान ये तुमने क्या किया??

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