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Taliban ne bataya ke Usne kyu Ladkiyo ke College band kiye hai aur kab kholega?

Taliban ne Ladkiyo ke School aur College kyu band kiye, Ladkiyo ki Universities kab khulegi?

तेरी तहज़ीब ने उतारा है तेरे सर से हिजाब
मेरे तहजीब ने मेरी आँखो को झुका रखा है।

पर्दा कैद लगता है मुस्लिम बहनो को जबकि कैद तो मॉडर्न फैशन है, कैद तो यह चुस्त लिबास है। पर्दा औरत की हीफाजत करता है। फैशन मे सिर्फ बेहयाई है। मॉडर्न लड़कियो को पर्दा कैद लगता है। हया वालियो के लिए फैशन सिर्फ इतना है के आपने कैद को आज़ादी का नाम दे दिया है और पर्दे को कैद का नाम दे दिया है। पर्दा ही इस दौर मे इस्लामी खवातीन का मुहफ़िज है।

इस दुनिया मे हर शख्स उतना ही परेशान है,
जितना उसकी नजर मे दुनिया की अहमियत।

मगरिब् को असल खतरा यह है के कहीँ लोग इस्लाम की तरफ न देखने लगे वह इसलिए के हर रोज यूरोप मे आलिम, मुफक्कीर्, फलसाफि, मुवास्सिर् कुरान व् हदीस पढ़ कर इस्लाम कुबूल कर रहा है....  लेकिन मुस्लिम घरानो मे बे हया, बेशर्म और बे गैरत बनने को ही असल तरक्की समझा जा रहा है। अगर हम अंग्रेजी कल्चर (मागरिबि ) के पीछे पीछे चलते रहे तो तबाही व् बर्बादी हमारे घरों का रूख जरूर करेगी। अगर कौम के लोग कुर्सी, पैसे और इक्तदार  के लिए दिन और तहजीब का मज़ाक बनाने और मुस्लिम खवातीन अंग्रेजी भेड़ियों के बहकावे मे गुमराह होती रही तो आने वाली नस्ल भेड़िया से ज्यादा डरपोक और खिंजीर से भी ज्यादा बे हया बन जायेगी।

शिक्षा (तालीम) के नाम पर मुसलमान लड़कियो को बे पर्दा करने का रिवाज बढ़ता जा रहा है।*

वह दिन जिसके बाद #मुसलमानो की हालत बिल्कुल #लौंडियो के जैसी हो गयी।

आज मुसलमान औरतो के सर से दुपट्टा किसने हटाया?

तालिबान के सुलूक से मुताशीर् होकर ब्रिटिश महिला ने अपनाया इस्लाम।

जब मिस्र की शहज़ादी यूरोप से पढ़कर आई तो उसने बुर्के को आग मे जला डाला।

इंग्लैंड की महारानी का ताज जो मुसलमानो से लूटा गया।
उमर मुख्तार: रोम के दांत खट्टे करने वाले।

फ्रांस मे मुस्लिम औरतो की आज़ादी की बात क्यों नही हो रही है

मुस्लिम मुमालिक मे यूरोप का बनाया हुआ सरकार।

शिकारी और मुसलमान: कैसे कुफ्फार् हमारा शिकार करने को तैयार है?

इस्लाम से पहले मक्का मे किस धर्म के मानने वाले लोग थे?
पाकिस्तान मे अमेरिका द्वारा चुनी गयी सरकार और यूरोप का कल्चर वार.......

ओ जाहिल औरत.. तुम लोगो की वज़ह से ही हमलोगो को बराबरी का मौका नही मिलता है?


चौदह महीने लगातार लड़कियो की यूनिवर्सिटीज मुकम्मल तौर पर खुली रखी गई, पूरी कोशिश की गयी के वह नर्मी से, हिकमत से शरई हिजाब और अहकाम ए इलाही की पाबंदी करे।
लेकिन कोई इस पर अमल करने को तैयार नही था इसलिए हमने अपनी दिनी ज़िम्मेदारी के पेश ए नज़र हुक्म ए शानी (अगले आदेश) तक पाबंदी लगाई।

यह कहना है तालिबान सरकार के उच्च शिक्षा मंत्री शेख निदा मोहम्मद नदीम का।

आजकल मीडिया और सोशल मिडिया पर एक खबर खूब धूम मचाया हुआ है वह यह के तालिबान ने लड़कियो की पढाई के लिए यूनिवर्सिटी के दरवाजे बंद किये, एक बार फिर तालिबान ने अपनी दकियानुसी और रूढ़ीवादी सोच दुनिया को दिखाया है। वगैरह वगैरह जैसे सुर्खिया पढ़ने को मिल रहे है।

सारी दुनिया चाहे अफ्रीका हो या इंडिया हर जगह वहाँ की हुकूमत यानी सरकार अपने हिसाब से कानून बनाती है और लागू करती है कोई किसी से नही पूछने जाता, अगर कोई बोलता है तो उसे अपना आंतरिक मामला कहकर बच निकलता है, मगर अफगानिस्तान के मामले मे ऐसा नही।
वहाँ हर कोई अपने अपने हिसाब से कानून बनवाना चाहता है, ऐसा लग रहा है जैसे अफगानिस्तान सारी दुनिया का कर्ज़दार है।

तालिबान पिछले दिनों  लड़कियो के कॉलेज जाने पर रोक लगा दिया है जब तक शरई माहौल न त्तैयार हो जाए।

इस बीच दुनिया भर का और हिंदुस्तानी मीडिया मदारी का नाच दिखाने मे कोई कसर नही छोड़ा, जबकि खुद यहाँ मुस्लिम लड़कियो को हिजाब पहनने से मना किये गया और यह पाबंदी अभी भी कायम है, ये सब यूरोप के नकश् ए कदम पर किया जा रहा है, फ्रांस और स्विजेरलैंड और यहाँ तक के तुर्किये मे हिजाब और बुर्के पर पाबंदी है।
क्या औरतों की आज़ादी की बात करने वालो ने इन मुल्को से सवाल किया, उनसे किसी ने पूछने गया, ये लोग उस वक़्त गूंगे क्यों बने हुए थे?

जब भारत मे बुनियाद परस्ती और नस्ल परस्ती की बुनियाद पर मुस्लिम खवातीन को तालीम हासिल करने से रोका जा रहा था तो उस वक़्त मुस्लिम और गैर मुस्लिम दुनिया खामोश तमाशा देख रही थी।
और आज
तालिबान ने जब अगले हुक्म तक शरई और समाजी वज़हो से कुछ वक़्त के लिए रोक लगा दिया है तो काफिरो, मुश्रीको और मुनाफीको की ज़मीर जाग गयी है।

तालिबान ने बताया के आखिर उसने क्यों वक्ति तौर पर पाबंदी लगाया है।

एक सूबे के खवातीन का दूसरे सूबे मे कई हफ़्तो तक बगैर मेहरम् के कयाम होता था जोके जाएज़ नही।

हजार कोशिशो के बावज़ूद शरीयत के मुताबिक हिजाब का सिस्टम नही बन रहा था।

अक्सर यूनिवर्सिटीज मे मर्द व औरत का इख्तलात था, जिसके लिए कोई दूसरा रास्ता नही था।

मौजूदा निसाब मे कुछ ऐसे निसाब थे जो खवातीन के लिए जरूरी नही थे।

दुनिया हमारे अंदुरुनी मामलात् मे दखल न दे, हमने 20 सालों तक जंग अफगानो के हुकुक के लिए किया है। हम खवातीन के तालीम के खिलाफ नही है , न अफगानो के हुकुक के। बहुत जल्द शरीयत के मुताबिक तालिमि निज़ाम बनाकर इदारे खोल दिये जायेंगे।

यह किसने कहा है के हम तालीम के मुखालीफ (विरोधी) है?

लेकिन जिस तरह का  मखलुत् और गैर शरई तलिमि निज़ाम राएज़ है क्या हम भी उनके नक़्श ए कदम पर चले?
हम इस वक़्त ऐसे सिस्टम पर काम कर रहे है जिस की रौशनी मे तालीम ए निस्वा शरीयत के दायरे मे आ जायेगी।

तालिबान के रहनुमा शेख सहाबुद्दीन दिलावर ने कहा है के इन शा अल्लाह अगले महीने तक शरई माहौल मे लड़कियो के सारे स्कूल और कॉलेज खोल दिये जायेंगे।

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