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Abhi ke Halat (Sitution) me Musalmano ko kya karna chahiye? Gyanwapi Mosque aur Indian Muslims.

India ke Musalmano ke Liye ek jaruri Elan (announce).

Musalmano ko aise galat me kya karna chahiye jab Media, Journalist, Ajenciya Sab biki hui hai?

कौम के लिए जरूरी एलान इसे जरूर पढ़ें.

आज जो हिंदुस्तान मे बीजेपी मुस्लिमों के खिलाफ कर रही है ओर ज्ञानवापी मस्जिद के लिये  भी इसके खिलाफ हमें एकजुट होकर आवाज उठानी है।

इसके लिए हमें करना यह है की अपने मोबाइल में टि्वटर , फेसबुक, व्हाट्सएप जितने हो सके उतने विदेशी मीडिया विदेशी न्यूज़ चैनल, विदेशी नेताओं के पेज अकाउंट्स पर अगर कोई भी कौम के खिलाफ हुआ काम का वीडियो या फोटो आए तो उसे तुरंत भेजें और आपका कोई रिश्तेदार या दोस्त विदेश में हो तो उसे भी कौम के खिलाफ हुआ काम का वीडियो भेजें और उसे सभी तक फैलाने को बोले।

अगर किसी मुसलमान के खिलाफ पुलिस प्रशासन भाजपा के दबाव मैं आकर कोई केस दर्ज करता है तो उसकी f.i.r. भी फेसबुक, ट्यूटर सोशल मीडिया के जरिए से हर जगह फैलाये और बताये कि किस प्रकार से r.s.s. बजरंग दल व दूसरे संगठन मुस्लिमों, ईसाइयों के खिलाफ भारत में काम कर रहा है।

  ज्ञानवापी मस्जिद के बारे में भी सभी सोशल मीडिया ट्विटर वॉट्सएप फेसबुक से हर एक देश तक आवाज पहुंचाओ क्योंकि भारत में सरकार r.s.s. बजरंग दल की है ।

यहां हमारी सुनवाई नहीं होने वाली है इसलिए यह काम जरूरी है हर जगह पर आवाज उठाओ की जिस प्रकार सभी देशों ने मिलकर  अल कायदा, आईएसआईएस को आतंकवादी संगठन घोषित किया वैसे ही r.s.s. बजरंग दल हिंदू युवा वाहिनी जैसे सभी संगठनों  को आतंकवादी संगठन घोषित किया जाए।

जो नेता मुस्लिमों के खिलाफ  लोगों को उकसाते है उनके खिलाफ भी कार्रवाई हो।

इस पर पूरे विश्व में प्रतिबंध लगे ओर इसमें बीजेपी सरकार का नाम भी जोड़े ओर लिखे ये हम  पर जुल्म करवा रहे हैं ताकि विदेशों में भी इनके खिलाफ आवाज उठने लगे।

जिस भी भाई को यह मैसेज जहां से भी मिले 5 लोगों को जरूर भेजें और इस पर अमल जरूर करें।

हम अपनी आवाज़ खुद उठाएंगे दुनिया के सामने , यहाँ मीडिया, रिपोर्टर, और दूसरी एजेंसिया सब बिकी हुई। है। हमे उन सब के भरोसे नही रहना है। अपनी मदद खुद करनी होगी।

आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने क्या कहा ज्ञानवापी मस्जिद के वुज़ू खाने को बंद करने पर।

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Gyanwapi Masjid Me Wuzukhane ko band Karne All India Muslim Personal law Board ne kya kaha?

Gyanwapi Masjid me Wuzukhane ko seal karne ka hukm aur Waha Mandir hone ka Shak?

Court ka Hukm Musalmano par Zulm karne ke jaisa hai.

ज्ञानवापी मस्जिद और उसके परिसर के सर्वे का आदेश और उस सर्वे रिपोर्ट के आधार पर वज़ू ख़ाना बंद करने का निर्देश घोर अन्याय पर आधारित है और मुसलमान इसे बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं कर सकते-* _ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड_

इस तहरीर को उर्दू मे पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करे।
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_नई दिल्ली: 16 मई, 2022_

            ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के महासचिव मौलाना ख़ालिद सैफ़ुल्लाह रह़मानी ने अपने प्रेस नोट में कहा कि ज्ञानवापी मस्जिद बनारस, मस्जिद है और मस्जिद रहेगी, उसको मंदिर बनाने का कुप्रयास सांप्रदायिक घृणा पैदा करने की एक साजिश से ज़्यादा कुछ नहीं, यह ऐतिहासिक तथ्यों एवं कानून के विरुद्ध है।

1937 में दीन मुह़म्मद बनाम राज्य सचिव मामले में अदालत ने मौखिक गवाही और दस्तावेजों के आलोक में यह निर्धारित किया कि पूरा परिसर मुस्लिम वक़्फ़ की मिल्कियत है और मुसलमानों को इसमें नमाज़ अदा करने का अधिकार है, अदालत ने यह भी तय किया कि विवादित भूमि में से कितना भाग मस्जिद है और कितना भाग मंदिर है, उसी समय वज़ू ख़ाना को मस्जिद की मिल्कियत स्वीकार किया गया फिर 1991 ई0 में (Place of Worship Act 1991) संसद से पारित हुआ, जिसका सारांश यह है 1947 ई0 में जो धार्मिक स्थल जिस स्थिति में थे उन्हें उसी स्थिति में बनाए रखा जाएगा।

2019 ई0 में बाबरी मस्जिद मुक़दमे के निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय ने बड़े स्पष्ट शब्दों में कहा कि अब सभी इबादतगाहें इस क़ानून के अधीन होंगी और यह क़ानून संविधान की मूलभावना के अनुसार है।

इस निर्णय में और क़ानून का तक़ाज़ा यह था कि मस्जिद के संदेह में मंदिर होने के दावे को  अदालत तत्काल बहिष्कृत (ख़ारिज) कर देती, लेकिन अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण कि बनारस के दीवानी अदालत ने उस स्थान के सर्वे और वीडियोग्राफी का आदेश जारी कर दिया, ताकि तथ्यों का पता लगाया जा सके, वक़्फ़ बोर्ड ने इस सम्बंध में उच्च न्यायालय का दरवाज़ा खटखटाया है और उच्च न्यायालय में यह मामला लम्बित है, इसी प्रकार ज्ञानवापी मस्जिद प्रशासन ने भी दीवानी अदालत के इस निर्णय के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया है और सुप्रीम कोर्ट में यह मामला विचाराधीन है, लेकिन इन सभी बातों को अनदेखा करते हुए दीवानी अदालत ने पहले सर्वे का आदेश दिया और फिर वज़ू ख़ाना को बंद करने का आदेश दिया, यह क़ानून का खुला उल्लंघन जिसकी एक अदालत से उम्मीद नहीं की जा सकती।

अदालत की इस कार्रवाई ने न्याय की आवश्यकताओं का उल्लंघन किया है इसलिए सरकार इस निर्णय के कार्यान्वयन को तुरंत रोके, इलाहाबाद उच्च न्यायालय के निर्णय की प्रतीक्षा करे और 1991 ई0 के क़ानून के अनुसार सभी धार्मिक स्थलों की रक्षा करे, यदि इस प्रकार के काल्पनिक तर्कों के आधार पर धार्मिक स्थलों की स्थिति परिवर्तित की जाएगी जाती है तो पूरे देश में अराजकता फैल जाएगी क्योंकि कितने बड़े-बड़े मन्दिर बौद्ध और जैन धर्म के धार्मिक स्थलों को परिवर्तित करके बनाए गए हैं और उनकी स्पष्ट निशानियाँ मौजूद हैं।

मुसलमान इस उत्पीड़न को कदाचित बर्दाश्त नहीं कर सकते, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड इस अन्याय से हर स्तर पर लड़ेगा।

              ✍🏼 जारीकर्ता:
    *डॉ. मुहम्मद वक़ारुद्दीन लतीफ़ी*
              (कार्यालय सचिव)

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Gyanwapi Masjid me Wuzukhane ko band karne ke mamle me All India Muslim Personal law Board ne kya kaha?

Gyanwapi Masjid ke wuzukhane ko Band karne ka Court ka Faisla kitna sahi hai?
Gyanwapi Masjid, uske Andar Survey ki ijazat aur Report ki buniyaad par wuzukhane ko band karne ka Hukm puri tarah se Musalmano ke sath Zulm hai.

*گیان واپی مسجد اور اس کے احاطے کے سروے کا حکم اور اس سروے رپورٹ کی بنیاد پر وضوءخانہ کو بند کرنے کی ہدایت سراسر نا انصافی پر مبنی ہے اور مسلمان اسے ہرگز برداشت نہیں کرسکتے۔* _آل انڈیا مسلم پرسنل لا بورڈ_

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نئی دہلی : 16 مئی 2022

آل انڈیا مسلم پرسنل لا بورڈ کے جنرل سکریٹری مولانا خالد سیف اللہ رحمانی صاحب نے اپنے پریس نوٹ میں کہاہے کہ گیان واپی مسجد بنارس، مسجد ہے اور مسجد رہے گی، اس کو مندر قرار دینے کی کوشش ،فرقہ وارانہ منافرت پیدا کرنے کی ایک سازش سے زیادہ کچھ نہیں، یہ تاریخی حقائق کے خلاف اور قانون کے مغائر ہے، 1937 میں دین محمد بنام اسٹیٹ سکریٹری میں عدالت نے زبانی شہادت اور دستاویزات کی روشنی میں یہ بات طئے کردی تھی کہ یہ پورا احاطہ مسلم وقف کی ملکیت ہے۔ اور مسلمانوں کو اس میں نماز پڑھنے کا حق ہے، عدالت نے یہ بھی طئے کر دیا تھا کہ متنازعہ اراضی کا کتنا حصہ مسجد ہے اور کتنا حصہ مندر ہے، اسی وقت وضوءخانہ کو مسجد کی ملکیت تسلیم کیا گیا،

پھر ۱۹۹۱ءمیں(Places of Worship Act 1991) پارلیمینٹ سے منظور ہوا، جس کا خلاصہ یہ ہے کہ ۷۴۹۱ء میں جو عبادت گاہیں جس طرح تھیںان کو اسی حالت پر قائم رکھا جائےگا۔ ۹۱۰۲ء میں بابری مسجد مقدمہ کے فیصلہ میں سپریم کورٹ نے بہت صراحت سے کہا کہ اب تمام عبادت گاہیں اس قانون کے ما تحت ہوں گیں اور یہ قانون دستور ہند کی بنیادی اسپرٹ کے مطابق ہے۔

اس فیصلہ اور قانون کا تقاضہ یہ تھا کہ مسجد کے شبہ میں مندر ہونے کے دعوی کو عدالت فورا (خارج) رد کردیتی، لیکن افسوس کہ بنارس کے سول کورٹ نے اس مقام کے سروے اور ویڈیو گرافی کا حکم جاری کر دیا، تاکہ حقائق کا پتہ چلایا جا سکے،وقف بورڈ اس سلسلہ میں ہائی کورٹ سے رجوع کرچکا ہے اور ہائی کورٹ میں یہ مقدمہ زیر کارروائی ہے، اسی طرح گیان واپی مسجد کی انتظامیہ بھی سول کورٹ کے اس فیصلہ کے خلاف سپریم کورٹ سے رجوع کرچکی ہے۔

سپریم کورٹ میں بھی یہ مسئلہ زیر سماعت ہے، لیکن ان تمام نکات کو نظر انداز کرتے ہوئے سول عدالت نے پہلے تو سروے کا حکم جاری کر دیا اور پھر اس کی رپورٹ قبول کرتے ہوئے وضوءخانہ کے حصہ کو بند کرنے کا حکم جاری کر  دیا، یہ کھلی ہوئی زیادتی ہے اور قانون کی خلاف ورزی ہے جس کی ایک عدالت سے ہرگز توقع نہیں کی جاسکتی، عدالت کے اس عمل نے انصاف کے تقاضوں کو مجروح کیا ہے اس لئے حکومت کو چاہئے کہ فوری طور پر اس فیصلہ پر عمل آوری کو روکے، الہ آباد ہائی کورٹ کے فیصلہ کا انتظار کرے اور ۱۹۹۱ءکے قانون کے مطابق تمام مذہبی مقامات کا تحفظ کرے، اگر ایسی خیالی دلیلوں کی بناء پر عبادت گاہوں کی حیثیت بدلی جائے گی تو پورا ملک افرا تفری کا شکار ہو جائیگا، کیونکہ کتنے ہی بڑے بڑے مندر بودھ اور جینی عبادت گاہوں کو تبدیل کرکے بنائے گئے ہیں اور ان کی واضح علامتیں موجود ہیں،  مسلمان اس ظلم کو ہر گز برداشت نہیں کرسکتے، آل انڈیا مسلم پرسنل لا بورڈ ہر سطح پر اس نا انصافی کا مقابلہ کرے گا۔

           ✍️ جاری کردہ:
*ڈاکٹر محمد وقار الدین لطیفی*
             آفس سکریٹری

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Aaj Tawaif, fahesha, jism Bechne wale Log Muslim Ladkiyo ka Roll Model bane hai?

Aaj ki Modern Muslim Ladkiyo ka Roll Model kaise log hai?

Ham jaise honge waise hi hamara Roll Model bhi hoga?

जब भी ख्वातीन को यह लगे के उनके नकाब के सबब उनका मज़ाक बनाया जायेगा , मर्दो को यह लगे के उनकी दाढ़ी की वजह से उनका मज़ाक बनाया जायेगा , मदरसे का मज़ाक बनाया जायेगा या कोई भी दींनी काम करते वक़्त यह महसूस हो के आपका लोग मज़ाक बनाएंगे तो यफ् रखिये इज़्ज़त और जिल्लत अल्लाह के हाथ मे है। वह जिसको चाहे इज़्ज़त दे और जिसको चाहे जलील कर दे। 

پردہ عورت کے لیے انعامِ خداوندی

اللہ تعالیٰ نے عورت کو پردہ کرنے کا حکم دیا ہے جو کہ عورت کے لیے اللہ تعالیٰ کی طرف سے بہت بڑا انعام ہے، اسی پردے میں عورت کی عزت ہے، یہی عورت کی حیا کی حفاظت کا ذریعہ ہے۔
جو عورت پردہ کرتی ہے، اللہ تعالیٰ اس کو دنیا اور آخرت کی بے شمار نعمتیں عطا کرتا ہے، جن میں سے سب سے بڑی نعمت یہ ہے کہ: اللہ تعالیٰ ایسی عورت سے راضی ہوجاتا ہے۔ ظاہر ہے کہ ایک مسلمان عورت کے لیے اس سے بڑھ کر نعمت اور خوشی اور کیا ہوسکتی ہے کہ اللہ اس سے راضی ہوجائے۔

آج کی نام نہاد مسلم لڑکیاں جن کی رول ماڈل رقص کرنے والی , جسم فروخت کرنے والی طوایف ہے۔
جیسی آپ ہونگی ویسی ہی آپ کا رول ماڈل ہوگا۔
اے میری محترم بہن!

تمہارے لیے یہ رول ماڈل نہیں - فحش رقاصہ یا جسم کی تجارت کرنے والیاں یا مغنیہ -
       نہیں، ہرگز نہیں!

اور اگر تم یہ جاننا چاھتی ہو کہ تم کون ہو تو دیکھو کہ تم نے کن لوگوں کو اپنا رول ماڈل بنایا ہے. اور اگر تم امت کی حالتِ زار پرکھنا چاھتی ہو تو دیکھو کہ امت کی عورتوں نے کن لوگوں کو رول ماڈل بنایا ہے.

چنانچہ اگر مسلمان امت، عظیم، راست باز، راسخ العقیدہ، عبادت گزار، صابر، مھاجرات اور مجاھدات کو احترام کی نظر سے دیکھتی ہیں تو جان لو کہ یہ امت فاتح ہو گی. لیکن اگر یہ امت، فاسقہ، بد عقیدہ، جھوٹی، دھوکہ باز، گمراہ عورتوں جو دوسروں کو اپنی اداؤں سے مائل کرتی ہیں، کی عزت کرتی ہے تو یہ امت صریح خسارے میں ہے. اور العیاذ باللہ، ہم آج یہ سب دیکھ رہے ہیں.

ہم اللہ سے اسکی پناہ اور اپنے گناہوں پر معافی مانگتے ہیں.

-----  شيخ يوسف ابن صالح العييري رحمه الله تعالى

(نشرِ مکرر)

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Kya Aurat Apna Haque Mehar Tabdil (Change) kar sakti hai, Chhod Sakti hai?

Kya Aurat apna Mehar Tabdil (Change) kar sakti hai?
Kya khawind Biwi ko haque mehar dene se mana kar sakta hai?
Kya Nikah ke Bad Shauhar aur Biwi Mehar badal sakte hai?

السلام عليكم ورحمته الله وبركاته
كيا عورت اپنا حق مہر تبدیل کر سکتی ہے؟؟

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وَعَلَيْكُمُ السَّلاَمُ وَرَحْمَةُ اللهِ وَبَرَكَاتُهُ

اصل بات تو یہی ہے کہ بطور مہر وہی چیز یا رقم ادا کی جائے جو عقد نکاح کے وقت تعین کی گئی تھی ، لیکن اگر خاوند اور بیوی دونوں اس میں کمی یا زیادتی پر متفق ہوجائیں تو ایسا کرنا بھی جائز ہے ۔اس لیے کہ اللہ تعالیٰ کا فرمان ہے:

"اور مہر مقرر ہو جانے کے بعد تم آپس کی رضا مندی سے جوطے کرلو اس میں تم پر کوئی حرج نہیں۔"   (النساء:24)

لہٰذا نکاح میں مہر کے تعین کے بعد اگر شوہر اور بیوی کی باہمی رضامندی سے مہر کی رقم میں زیادتی کی جائے تو اس طرح مہر کی رقم یا مقدار کو بڑھانے میں شرعاً کوئی حرج نہیں ، اور ساتھ ساتھ یہ بھی جان لیجیے کہ مہر کی رقم میں تبدیلی کی صورت میں دوبارہ نکاح پڑھانے کی ضرورت نہیں ہوتی ۔

امام قرطبی رحمۃ اللہ علیہ اس آیت کی تفسیر میں فرماتے ہیں:

یعنی مہر مقرر ہو جانے کے بعد رضا مندی کے ساتھ اس میں کمی یا زیادتی کرنا جائز ہے۔
(تفسير قرطبى(5/235)

اسی طرح اگر عورت اپنا حق مہر اپنی خوشی اور رضامندی سے معاف کر دے تو یہ بھی جائز ہے ۔

شیخ صالح فوزان رحمۃ اللہ علیہ کا کہنا ہے:
جب بیوی اپنے مہر میں سے خاوند کو کچھ یا سارا ہی معاف کر دے تو اس میں کوئی حرج نہیں۔ کیونکہ یہ اس کا حق ہے۔

اللہ تعالیٰ کا ارشاد ہےکہ:
"اگر وہ خود اپنی خوشی سے کچھ مہر چھوڑ دیں تو اسے شوق سے خوش ہوکر کھالو۔"
(النساء:4)

اس میں طرفین کا اتفاق ضروری ہے۔
(فتاوىٰ نور على الدرب109)

واللہ تعالیٰ اعلم بالصواب

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Social Media Ka Istemal Karne wali Deen dar Ladkiyaan (Girls) Jo Inbox me kisi Na Mehram se Bat nahi karti.

Waisi Ladkiyaan (Girls) jo Social Media par Non Mehram se bat nahi karti hai inbox me.

Kya Social Media Istemal Karne wali Sari ladkiyaan Be haya hi hoti hai?

Social Media ka sahi istemal kaise kare?

Social Media par Kisi ladke ke messages ko dekh kar kya karna chahiye?

Na Mehram se Social Media par Inbox me chat karna.

Social Media  Joine karne ka ek behan ka waqya.

Social Media Par ladke aur Ladkiyo ka Chat karne ke bare me Islam kya kahta hai?

میں نا محرم سے بات نہیں کرتی۔۔۔!!!

I don't talk to Non Mahram.

اگر ایک دین پر چلنے والی لڑکی یہ کہے کہ میں نامحرم سے ان باکس میں بات نہیں کرتی۔۔۔تو اسے یہ طعنہ دے دیا جاتا ہے کہ اگر تم ایسا سوچتی ہو تو سوشل میڈیا یوز کیوں کرتی ہو؟؟؟؟

پہلی بات سوشل میڈیا کا اچھا یا برا استعمال ہمارے اپنے ہاتھ میں ہے.

دوسری بات دین پر عمل کرنے والی لڑکی کو کیا سمجھ رکھا ہے آپ نے۔۔۔۔؟

کہ کیا وہ جنگلوں سے آئی ہوئی کوئی مخلوق ہے؟؟

اگر اللہ کے حکم پر عمل کرتی ہے تو بس اب جنگل میں جا کہ اپنی ایک دنیا بسا لے اس لڑکی کوئی حق نہیں کہ یہ دنیا میں گھومے یا لوگوں سے رابطے میں رہے۔۔۔۔
Seriously......????

اللہ کے حکم پر عمل کرنے والی زندگی کو بھرپور طریقے سے انجوائے کرتی ہے مگر اللہ سبحان وتعالی کی بتائی ہوئی حدود کے اندر رہ کر۔۔۔۔۔۔اسے اچھائی اور برائی کا فرق پتہ ہوتا ہے۔۔۔۔۔ان ایپس کے اچھے اور برے استعمال کا پتہ ہوتا ہے۔۔۔۔۔۔۔۔!!!!

آپ حق نہیں رکھتے کہ اللہ کے حکم پر چلنے والی لڑکی کو بڑے آرام سے اُٹھ کر یہ فتوی دے دیں کہ تم سوشل میڈیا یوز نہیں کر سکتی!!!

آپ سوشل میڈیا کا استمعال کر سکتی ہیں اسلام کی پیاری شہزادی!!!!

اسے استعمال کریں اپنے رب کا دین پھیلانے کے لیے

اسے استعمال کریں لوگوں کو اللہ کے قریب لانے کے لیے
اس کا استعمال ضرور کریں اپنے اللہ کی محبت کی آگاہی کے لیے۔

رب نے سود سے روکا ھم نی بینک بنالیۓ

رب نے زنا سے روکا ھم نے کلب بنالیۓ

رب نے پردے کا حکم دیا ھم نے ٹی وی اور ڈش خرید کر بے حیاۂی کو عام کر دیا ۔۔۔

رب نے کہا قرآن میں تمھاری کامیابی ہے اور ھم نی آکسفورڈ کی کتابوں کو کامیابی بنا لیا .

ذرا سوچئے آج مسلمان اس وجہ سے پریشان ہیں جس کو راضی کرنا تھا اس کو ناراض کر دیا  تو پھر رحمت کیسی ؟
نیکی کی دعوت عام کرو .

اللہ تعالیٰ عمل کی توفیق عطا فرمائے آمین ثم آمین

جزاکم اللہ خیرا کثیرا

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Kya Parda Karna Koi Fashion hai ya Choice?

Parda karna Na koi Choice hai aur nahi Fashion?

Parda Karne wali Ladkiyaan Islam ki Shahzadiyan Kahlati hai.

Kya Parda karna Ya nahi karna ladki Ki marzi hai?

जब भी ख्वातीन को यह लगे के उनके नकाब के सबब उनका मज़ाक बनाया जायेगा , मर्दो को यह लगे के उनकी दाढ़ी की वजह से उनका मज़ाक बनाया जायेगा , मदरसे का मज़ाक बनाया जायेगा या कोई भी दींनी काम करते वक़्त यह महसूस हो के आपका लोग मज़ाक बनाएंगे तो यफ् रखिये इज़्ज़त और जिल्लत अल्लाह के हाथ मे है। वह जिसको चाहे इज़्ज़त दे और जिसको चाहे जलील कर दे। 

Social Media ka Sahi istemal kaise kare?

پردہ عورت کے لیے انعامِ خداوندی.

اللہ تعالیٰ نے عورت کو پردہ کرنے کا حکم دیا ہے جو کہ عورت کے لیے اللہ تعالیٰ کی طرف سے بہت بڑا انعام ہے، اسی پردے میں عورت کی عزت ہے، یہی عورت کی حیا کی حفاظت کا ذریعہ ہے۔
جو عورت پردہ کرتی ہے، اللہ تعالیٰ اس کو دنیا اور آخرت کی بے شمار نعمتیں عطا کرتا ہے، جن میں سے سب سے بڑی نعمت یہ ہے کہ: اللہ تعالیٰ ایسی عورت سے راضی ہوجاتا ہے۔

ظاہر ہے کہ ایک مسلمان عورت کے لیے اس سے بڑھ کر نعمت اور خوشی اور کیا ہوسکتی ہے کہ اللہ اس سے راضی ہو جائے۔

پردہ کوئی چوائس نہیں فیشن نہیں ۔۔۔

پردہ غربت چھپانے کے لیے نہیں کیا جاتا ۔۔۔ پردہ غیر استری شدہ کپڑے چھپانے کے لیے نہیں کیا جاتا۔۔۔۔۔ پردہ جم جانے کے لیے نہیں کیا جاتا۔۔۔ آدھے بال باہر نکالنے کا نام پردہ نہیں ہے۔۔۔ سر کے اوپر بڑا سا جوڑا سجا کر دیدہ زیب کرنے کا نام پردہ نہیں ہے۔۔۔۔ پردہ فن نہیں ہے ۔۔۔۔ پردہ مزاق نہیں ہے ۔۔۔۔ پردہ تفریح اور فیشن نہیں ہے۔۔۔۔۔

پینٹ شرٹ کے اوپر کترن باندھنے کا نام پردہ نہیں ہے۔۔۔
چست اور فٹنگ کے عبایا پہنے کا نام پردہ نہیں ہے۔۔۔

پردہ مسلمان عورت کو امتیازی حیثیت دینے کا نام ہے۔۔

پردہ اس حکم کا نام ہے جو اہل ایمان کی عورتوں کو دیا گیا۔

پردہ کرنا ہے تو مسلمان عورت کی طرح ہی کریں کہ جیسے پردہ کرنے کا اسے حکم دیا گیا ہے۔

پردہ کوئی کھیل تماشہ نہیں کہ جب دل چاہا کیا اور جب دل چاہا اتار دیا۔...

اللہ تعالیٰ سب ماؤں بہنوں اور بیٹیوں کو پردہ کرنے کی توفیق عطا فرمائے .

آمین۔۔

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Kuchh Europe Parast ladkiyaan (Girls) jo Khud ko Modern Dikhane ke liye Nange Jism Rahti hai.

Aeisi ladkiyaan Jo Mardo ko mutashir (attract) karne ke liye Jism dikhati hai.

Aisi Auraten jo Modern aur Aazad khyal (liberal) kahlane ke liye aur Mardo Ki najar ki bhikh mangane ke liye nange jism rahti hai.

Aisi Lad kiyaan (Girls) jo Kisi dusre Ladke ki Muhabbat me fansi hui hai.

Aaj kal ki Shadiyo me Dulhan ka dulhe ke sath dance karna.

जब भी ख्वातीन को यह लगे के उनके नकाब के सबब उनका मज़ाक बनाया जायेगा , मर्दो को यह लगे के उनकी दाढ़ी की वजह से उनका मज़ाक बनाया जायेगा , मदरसे का मज़ाक बनाया जायेगा या कोई भी दींनी काम करते वक़्त यह महसूस हो के आपका लोग मज़ाक बनाएंगे तो यफ् रखिये इज़्ज़त और जिल्लत अल्लाह के हाथ मे है। वह जिसको चाहे इज़्ज़त दे और जिसको चाहे जलील कर दे। 

السَّلاَمُ عَلَيْكُمْ وَرَحْمَةُ اللهِ وَبَرَكَاتُهُ
سوشل میڈیا پر اکثر آزاد خیال , دین سے دور مغرب زدہ لڑکیاں اپنی معیوب حرکتوں اور مردانہ شہوت کو متحرک کرنے والے الفاظ و انداز کی برہنگی سے نا محرم مردوں کو متوجہ کرتی ہیں ، کچھ شوخ و چنچل مزاج کی لڑکیاں اتنی اخلاقی پستی کا مظاہرہ کرتی ہیں کہ ان کی توقعات کے عین مطابق غیر اخلاق اور آوارہ و اوباش مردوں سے کمنٹ باکس بھر جاتا ہے اور وہ وہ تاثرات ان لڑکیوں کو خوش کرتے ہیں جن سے ان لڑکیوں کے آزاد خیال گھرانے یا گھر کے کفیلوں کی نابینائی کا پتا چلتا ہے ۔

حالانکہ ان ہی آوارہ اور بظاہر اسیرِ زلفِ جاناں نظر آتے مردوں کے دلوں میں جھانک کر دیکھا جائے تو ان لڑکیوں کی جگہ وہی ہوگی جو سڑکوں اور کوٹھوں پر مردوں کو اپنی دلربا اداوں سے گھائل کرنے والی عورتوں کی ہوتی ہے ۔

مرد کتنا ہی بد کردار کیوں نہ ہو ، کیسا ہی ادب و آداب کا مفلس کیوں نہ ہو ، لیکن اسی لڑکی کو عزت دار سمجھتا ہے اور عزت دیتا ہے جو شریف اور دیندار ہوتی ہے ، ایسے مرد لڑکیوں کے ساتھ وقت گزاری ضرور کرتے ہیں لیکن اپنی شریک سفر کے روپ میں شریف اور باحیا عورت کو ہی ترجیح دیتے ہیں ۔

کاش فیس بک کی ان لڑکیوں کو یہ بات سمجھ آجائے جن کے گرد مردوں کا مجمع انہیں اس خوش فہمی میں مبتلا رکھتا ہے کہ تم کمال کی ہو ۔۔۔۔۔

مسز انصاری

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Aaj kal ki Shadiyo me Dulhe aur Dulhan ka sath me Dance aur behuda Harkat karna.

Aaj kal Shadiyo me Ladki wale ke yahan kis tarah ki Rasm ada ki jati hai?

Dulhan Ka Shadi ke Mauke Par Nachte (Dance) hue logo ke Samne aana?

अल्लाह ताला ने औरत को पर्दा करने का हुक्म दिया है जो के औरत के लिए अल्लाह की तरफ से बहुत बड़ा इनाम है। इसी पर्दे मे औरत की इज़्ज़त है, यही औरत की हया की हीफाजत का जरिया है। जो औरत पर्दा करती है अल्लाह उसको दुनिया व आखि़रत की बेशुमार नेमतें अता करता है, जिनमे से सबसे बड़ी नेमत यह है के अल्लाह ऐसी औरत से राजी हो जाता है, एक मोमिना औरत के लिए इससे बढ़ कर और खुशी की बात क्या हो सकती है के उसका रब उससे राजी हो जाए?

काली रंग की बा हया और खुबसिरत दुल्हन।

हसीं ओ ज़मिल औरतों का आज के दौर मे फितना।

लड़कियो का न मेहरम् से सोशल मीडिया और दिगर प्लेटफॉर्म पे गुफ्तगु करना।

एक नवजवाँ औरत जिसने भूख से तड़पते हुए लड़के  को अपनी दूध पिलाई।

. دورِ حاضر کی دلہن

مجھے تو یہ سمجھ ہی نہیں آتی کہ اس زوال کی وجہ کیا ھے لڑکیوں کو کوئی سمجھانے والا نہیں رہ گیا کیا؟

نا والدین نا خاندان؟
سب تماش بین بن گئے ؟

ہر وقت کے اپنے تقاضے اور خوبصورتی ھے دلہن بنی لڑکیاں اس قدر بری لگتی ھیں ناچتی ھوئی جس کی کوئی حد نہیں.

کیا واقعی آپ کو آج تک کسی نے نہیں بتایا نہیں سمجھایا کہ دلہن بننے کے کیا تقاضے ھیں؟

مت نکالیں گھونگٹ مت نظریں جھکائیں مگر چہرے پہ حیا تو ھو دلہن پہ روپ ھی اس کے جھنپنے سے آتا ھے یہ روپ ہی تو ھے جو دلہن کو عام لڑکیوں سے منفرد اور بہت چارم فل بناتا ھے.

عجیب گندا رواج  نہ جانے شروع کہاں سے ھوا دلہا دلہن کے بوس و کنار اور دلہن کا پنڈال میں ناچتے ھوئے آنا۔

پہلے دلہن سہیلیوں کے ساتھ آتی تھی پھر رواج بدلا بھائی ساتھ آنے لگے پھر والدین کے ساتھ پنڈال میں آتی یہ سب اچھا تھا۔

ناچنا کیوں شروع کر دیا آخر؟

اور تقریب کے دوران دلہا دلہن کے بوس و کنار دیکھ کے تو لگتا ھے ان سے پوچھا جائے کہ یہ ماں باپ کرائے کے ھیں کیا جو صرف تماش بینی کر رھے ھیں
آپ کو صحیح غلط بتا رھے ھیں نہ اس بے باکی پہ خود شرمندہ ھو رھے ھیں۔

منفرد نظر آنے کی کوئی حد بھی تو ھو۔

پڑوسی ملک میں بھی بڑی بڑی سپر سٹار ہیروئنز اپنی شادی پہ ایسا ناچ گانا نہیں کرتیں جو ھمارے ملک میں شروع ھوچکا ھے۔

عام عام درمیانے درجے کی ہیروئنز اور ٹک ٹاکرز اپنی شادی پہ وہ وہ اوچھا پن کر رھی ھیں جس کی کوئی مثال نہ ھو۔

ایک ایک ماہ ڈھولکیوں برائڈل شاور مایوں مہندی شادی ولیمہ سب پہ دل بھر کے ناچنے کے بعد شادی چار دن نہیں چلا سکتیں۔

کئی سالوں کے ریلیشن شپ اور پھر مہینہ بھر کی ڈانس پریکٹسز اور مہینہ بھر کے فنکشن پہ خوب اودھم مچانے کے بعد
انکو خیال آتا ھے کہ مجھے تو گھر چلانے والی لڑکی چاھیے اور لڑکیوں کو کیرئیر کو فوقیت دینی ھے حیرت ھے یہ بنیادی باتیں آپ نے طے نہیں کیں تو کیا کیا؟

افسوس کا مقام یہ ھے کہ اس اندھی تقلید کے تحت ھمارے ارد گرد بھی مہندیوں مایوں پہ دلہنوں کا ناچنا عام ھو گیا ھے۔

شادی پہ ناچتی ھوئی دلہن کی انٹری کا دیدار بھی جلد کسی نو دولتی کے گھر کی شادی میں ھو جائے گا
برائیڈل شاور تو مقبول عام ھوگیا ۔

شادی ایک گھر کی بنیاد ھے۔

ایک گھرانے کی تشکیل اس کو ان خرافات سے پاک کر کے انجوائے کریں۔

اگر کسی کو میری یہ پوسٹ بُری لگے تو میں معذرت خواہ ہوں آپ کے الفاظ آپ کی پہچان ہے۔

کاش کہ یہ بات تیرے دل میں اتر جائیں۔

خواہش صرف اتنی ہےکہ کچھ الفاظ لکھوں جس سے کوئی گمراہی کے راستے پر جاتے جاتے رک جائے نہ بھی رکے تو سوچ میں ضرور پڑ جائے...!!!

منقول

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Aeisi Ladkiya (Girls) Jo Na Mehram ki Muhabbat ke liye apne Baap Bhai ki Izzat ka Janaza Nikal deti hai?

Aisi Lad kiyaan (Girls) jo Kisi dusre Ladke ki Muhabbat me fansi hui hai.

Aisi Betiyaan jo apne Baap Bhai ki Izzat ka janaza Nikal deti hai.

आज कल की दुल्हन शादियों मे नाचते हुए लड़के के साथ तस्वीर निकलवाती है।

लड़के लड़कियो का इनबॉक्स मे चैटिंग करने से लेकर शादी तक का सफर

जब एक औरत ने किसी भूखे लड़के को दूध पिलाई।

ایسی لڑکیاں جو بھاگ کر شادی کر لیتی ہے؟

ماشاء اللہ میری بہن بہت اچھی تحریر لکھی آپ نے سب اس کو ضرور پڑھیں

وہ لڑکیاں جو عشقِ مجازی میں مبتلا ہیں، میں ان کو کبھی نہیں کہتی کہ
”یہ وبال ہے، عذاب ہے، فورا چھوڑ دو اس کو،حرام کی لذت حلال کی لذت چھین لیتی یہ وہ وغیرہ۔۔“

میں ان کے لیے دعا کرتی ہوں۔ اور ان کو بھی دعا کا کہتی ہوں۔

کیونکہ دعائیں ہی شفائیں لاتی ہیں۔

اگر دلوں پہ کوئی زخم ہے تو اس زخم کی شفا اللہ دے گا۔

اگر کوئی اس اذیت میں مبتلاء ہے تو اللہ اس سے نکلنے کا راستہ بنائے گا۔

اگر کوئی اس تکلیف سے پل پل جی اور مر رہا ہے تو اللہ اس کے لیے آسانیاں پیدا کرے گا ان شاءاللہ۔
لیکن۔۔

میں اس سب کے باوجود کہنا چاہتی ہوں۔۔۔

کیا پہاڑوں سے زیادہ مضبوط انسان، فرشتوں سے افضل، ابلیس سے آگے ”انسان“ اتنا ہی بے بس ہوگیا ہے کہ مٹی کی محبت میں میں ہار جائے؟؟

مرد کے لیے کیا مشکل ہے؟؟

اس کے لیے تو شریعت آسانیاں دے رہی ہے، اسے تو قرآن قوام کا سرٹیفیکیٹ دے رہا ہے۔۔۔ وہ مرد کب سے اتنا مجبور ہوگیا کہ آپ سے نکاح کرکے آپ کو عزت و احترام کے ساتھ گھر کی زینت نہ بنا سکے؟؟

آپ کو کیوں ایسا مرد اچھا لگ گیا جو اتنا اچھا نہیں جو آپ کو حرام سے بچا کر حلال کی طرف لے جائے ؟؟

آپ ایک ایسے انسان سے کیسے متاثر ہوجاتی ہیں جس میں نہ تو قوت ارادی ہے، نہ قوت فیصلہ؟؟

آپ اس شخص کو دعاؤں میں مانگ رہی ہیں جو وفاؤں میں نہیں ہے؟؟

”اللہ تو سب کچھ کر سکتا ہے نا۔۔۔ تو وہ اسے میرا بھی بنا سکتا ہے وہ بنا دے میں اسی سے مانگ رہی ہوں۔“

کہنے والی لڑکیاں یہ کیوں بھول جاتی ہیں اللہ ہم سے واقف ہماری پیدائش سے پہلے تھا، جو آپ مانگ رہی ہیں وہ تو چند لمحوں کا اثر ہے، وہ لمحے سالوں پہ بھی محیط ہوسکتے ہیں۔

لیکن ان لمحوں کے وقتی اثر کا نفع طویل مدت کے لیے مانگنا حماقت ہے۔

آپ اتنی پیاری ہیں، خوب صورت ہیں، تعلیم یافتہ ہیں۔۔۔ آپ کو چاہا اور سراہا جاتا ہے آپ کیوں بھول جاتی ہیں۔۔۔ شیطان سب سے زیادہ محنت نوجوانوں پہ کرتا ہے، وہ آپ پہ بھی محنت کر رہا ہے۔

اس نے کہا تھا نا اللہ سے کہ۔۔۔

”تیرے بندوں کے لیے دنیا مزین کردوں گا۔“
تو آپ یقین کیجیے وہ ایسا ہی کررہا ہے۔۔

کیا نہیں کیا اس نے ایسا؟؟

ایک غیر مرد کو اس نے مزین کرکے آپ کے سامنے نہیں رکھا؟

آپ کو ”محبت“ کا بہکاوا دیکر بے چینی اور بے سکونی میں نہیں ڈالا؟؟

باپ بھائی کی سلامتی مانگنے والی بیٹیاں اور بہنیں کیا اب ایک ہی شخص کی دعائیں نہیں مانگنے لگ گئیں؟؟

پیدائش میں حصے دار والدین، حفاظت میں حصہ ڈالنے والے بھائی بہن۔۔۔۔ بیماری کی ایمرجینسی میں ہسپتال لیکر بھاگ جانے والے بہن بھائی، کھانے پینے، پہننے اوڑھنے کو اچھا دینے والے گھر والے، مر جائیں تو کندھوں پہ اٹھا کر قبر میں اتارنے والے اپنے خونی محرم رشتے۔۔۔

اور دعاؤں میں صرف ایک ہی شخص کی طلب؟؟؟

ذہن پہ ایک ہی شخص سوار؟؟؟

دل میں صرف ایک ہی شخص کا راج۔۔۔۔۔؟؟؟

اگر بیٹیاں ایسی ہی ہوتی ہیں،
اگر بیٹیوں کو یہ ہی کچھ کرنا اور یہ ہی طرزِ عمل اپنانا ہے تو میں دعا کروں گی اللہ کرے کسی گھر میں ایسی بیٹی پیدا ہی نہ ہو۔

اگر ان کے پیدا ہونے کی تکلیف ہمارے پالنے والے والدین اٹھانے والے ہیں تو پھر یہ ہی باقی بچتا ہے، بیٹیاں پیدا ہوتے ہی مرجائیں۔

کیونکہ جس باپ بھائی کی غیرت کو معمولی سمجھ کر بیٹیاں غلط راستوں پر چل رہی ہوتی ہیں، وہ غیرت باپ بھائی کے لیے سانسوں کی طرح قیمتی ہوتی ہے۔

باوجود سمجھانے والے بہن بھائی، دوست، سہلیاں میسر ہونے کے کوئی پھر بھی اس راستے پہ چلے توووووووو۔

اک بات کہوں؟

بیٹیاں بہت سمجھدار ہوتی ہیں۔۔۔۔ وہ محض ایک خواہش کو ہمیشہ کی طلب نہیں بننے دیتیں۔

اللہ ہر بیٹی کو، اپنے حفظ و امان میں رکھے آمین۔

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Eid ki Namaj Padhne ka Sunnat tarika Kya hai?

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*نماز عیدین پڑھنے کا سنت طریقہ*

*شیخ جیلانی کا موقف*

تحریر: *قاری محمد اسماعیل قادرپوری*

شیخ جیلانی رحمۃ اللّٰہ علیہ نماز عیدین کا سنت طریقہ بتاتے ہوئے لکھتے ہیں:

*اسکی دو رکعت ہیں پہلی رکعت میں سبحانک اللہم کے بعد سات تکبیریں پڑھے اور اس کے بعد آعوذ پڑھے اور دوسری رکعت میں قرات پڑھنے سے پہلے پانچ تکبیریں کہے اور ان کا طریقہ یہ ہے کہ ہر ایک تکبیر کہتا ہوا اپنے دونوں ہاتھوں کو اٹھائے (رفع الیدین کرے)....... اور جب تکبیروں سے فارغ ہو تو آعوذ پڑھے اور اس کے بعد سورۃ الفاتحہ اور پھر سورہ سبح اسم ربک الاعلی اور دوسری رکعت میں ھل اتک پڑھے۔*

(غنیۃ الطالبین باب دونوں عیدوں کے بیان میں، صفحہ نمبر 517)

شیخ جیلانی رحمہ اللّٰہ کی عبارت سے درج ذیل باتیں ثابت ہوتی ہیں:

*1- پہلی رکعت میں ثناء کے بعد سات تکبیریں اور دوسری رکعت میں قرات سے پہلے پانچ تکبیریں ٹوٹل 12 تکبیریں کہنی ہیں۔*

*2- دونوں رکعتوں میں زائد تکبیرات کے بعد سورۃ الفاتحہ پڑھنی ہے اور تکبیرات میں رفع الیدین بھی کرنا ہے۔*

*3- دونوں رکعات میں وہی سورتیں تلاوت کرنی ہیں جو رسول اللّٰہ صلی اللّٰہ علیہ وسلم تلاوت کیا کرتے تھے۔*

*ہمارے جو بھائی شیخ جیلانی رحمہ اللّٰہ کو اپنا غوث الاعظم مانتے ہیں اور کہتے ہیں کہ وہ ہر بات اللّٰہ تعالٰی کے حکم سے لکھتے ہیں انہیں چاہیے کہ وہ نماز عیدین کا طریقہ درست کریں اور سنت رسول کے مطابق نماز ادا کریں۔*

احادیث سے بھی نماز عیدین کے پڑھنے کا یہی طریقہ ثابت ہے۔

ام المومنین حضرت عائشہ صدیقہ سلام اللہ علیہا فرماتی ہیں:

*أَنَّ رَسُولَ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ كَانَ يُكَبِّرُ فِي الْفِطْرِ وَالْأَضْحَى فِي الْأُولَى سَبْعَ تَكْبِيرَاتٍ، ‏‏‏‏‏‏وَفِي الثَّانِيَةِ خَمْسًا*

*رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم عید الفطر اور عید الاضحی کی پہلی رکعت میں سات تکبیریں اور دوسری رکعت میں پانچ تکبیریں کہتے تھے۔*

(سنن ابوداؤد حدیث نمبر 1149وسندہ صحیح)

سیدنا عمرو بن عوف المزنی رضی اللّٰہ عنہ بیان کرتے ہیں رسول اللّٰہ صلی اللّٰہ علیہ وسلم:

*كَبَّرَ فِي الْعِيدَيْنِ فِي الْأُولَى سَبْعًا قَبْلَ الْقِرَاءَةِ، ‏‏‏‏‏‏وَفِي الْآخِرَةِ خَمْسًا قَبْلَ الْقِرَاءَةِ*

*عیدین میں پہلی رکعت میں قرأت سے پہلے سات اور دوسری رکعت میں قرأت سے پہلے پانچ تکبیریں کہتے تھے۔*

(جامع ترمذی حدیث نمبر 536)

سیدنا عبداللہ بن عمرو بن عاص رضی اللّٰہ عنہما بیان کرتے ہیں:

*قَالَ نَبِيُّ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ التَّكْبِيرُ فِي الْفِطْرِ سَبْعٌ فِي الْأُولَى، ‏‏‏‏‏‏وَخَمْسٌ فِي الْآخِرَةِ، ‏‏‏‏‏‏وَالْقِرَاءَةُ بَعْدَهُمَا كِلْتَيْهِمَا۔*

*اللّٰہ کے نبی کریم صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: عید الفطر کی پہلی رکعت میں سات تکبیریں اور دوسری رکعت میں پانچ تکبیریں ہیں، اور دونوں میں قرأت (زائد) تکبیرات کے بعد ہے۔*

(ابوداؤد حدیث نمبر 1151)

*قارئین کرام! ان احادیث سے معلوم ہوا کہ رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم جب نماز عیدین پڑھاتے تو آپ پہلی رکعت میں سات تکبیریں اور دوسری رکعت میں پانچ، ٹوٹل بارہ تکبیریں کہتے تھے۔ اور دونوں رکعتوں میں تکبیرات قرات سے پہلے کہتے اور قرات بعد میں کرتے تھے اور اہل الحدیث بھی الحمدللہ اسی طریقہ پر سنت کے مطابق پڑھتے ہیں۔*

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Deeni Madaris Par Angrejo ka Galba kaise hote ja raha hai?

Deeni Madaris Par Angrejiyat kaise hawi hoti ja rahi hai?

*دینی مدارس کی اثر انگیزی میں کمی کے اسباب*

(یہ مفتی تقی عثمانی صاحب کی چشم کشا تحریر ہے، بڑی محنت سے اس کو جمع کیا ہے، ارباب انتظام اور حضرات اساتذہ سے عاجزانہ درخواست ہے اس تحریر کو اول تا آخر مکمل بغور پڑھیں، اللہ تعالی عمل کی توفیق عطا فرمائے!۔ وسیم فلاحی عفا اللہ عنہ)

جہاں تک راقم الحروف نے غور کیا، ہمارے انحطاط کا بنیادی سبب یہ ہے کہ رفتہ رفتہ دینی مدارس کے تعلیم و تعلّم کا یہ نظام ایک رسم بنتا جارہا ہے، اور اس کا اصل مقصد نگاہوں سے اوجھل ہورہا ہے، اگر چہ ہماری زبانوں پر یہی جملہ رہتا ہے کہ ہماری تمام کاوشوں کا مقصدِ اصلی دین کی خدمت ہے، لیکن بسا اوقات یہ بات محض گفتار ہی کی حد تک محدود رہتی ہے، اور دل کی گہرائیوں میں جاگزیں نہیی ہوتی، اگر یہ مقصد واقعةً ہمارے دل کی گہرائیوں میں جاگزیں ہوتا تو اس کی لگن سے ہمارا کوئی لمحہ خالی نہ ہوتا، پھر ہمیں اپنے اسلاف کی طرح ہر وقت یہ فکر دامن گیر رہتی کہ ہمارا کوئی عمل اللہ تعالی کی مرضی کے خلاف تو نہیی، اور ہمارا طرز عمل خدمت دین اور اس کے مقصد کے لیے مفید ہورہا ہے یا مضر ؟؟

اس کے برعکس عملاً ہماری تمام تر توجہات دینی مدارس کے ظواہر پر مرکوز رہتی ہیں، اور ان توجہات میں مقصدِ اصلی کی لگن کا کوئی عکس نظر نہیی آتا، عموماً منتظمین کے عملی مسائل یہ ہوتے ہیں کہ کس طرح مدرسے کی شہرت میں اضافہ ہو؟

کس طرح اس میں طلبہ کی تعداد بڑھے؟
کس طرح مشہور اساتذہ کو اپنے یہاں جمع کیا جائے؟

اور اس سے بڑھ کر یہ کہ کس طرح عوام میں مدرسے اور اس کے اهل حل و عقد کی مقبولیت میں اضافہ ہو؟

ہمارا طرزعمل اس بات کی گواہی دیتا ہے کہ مدارس کے قیام سے ہمارے پیش نظر یہی بنیادی مقاصد ہیں، جن کے حصول کی دھن میں ہمارے شب وروز صرف ہورہے ہیں، چنانچہ ان مقاصد کو حاصل کرنے کے لیے بعض اوقات ایسے ذرائع اختیار کیے جاتے ہیں، جو کسی دین اور اهل دین کے شایان شان نہیں ہوتے، بلکہ بعض اوقات تو ان مقاصد کے لیے واضح طور پر ناجائز ذرائع کے استعمال میں بھی باک محسوس نہیی کیا جاتا، اور اگر کسی مدرسے کو ان مقاصد میں فی الجملہ کامیابی حاصل ہوصل ہوجائے تو یہ سمجھ لیا جاتا ہے کہ مقصد اصلی حاصل ہوگیا، لیکن طلباء کی تعلیمی، اخلاقی اور دینی حالت کیسی ہے؟

ہم کس قسم کے افراد تیار کرکے اس سے معاشرے کی قیادت کے خواہش مند ہیں؟

اور فی الواقعہ ہماری جدوجہد سے دین کو کتنا فائدہ پہنچ رہا ہے؟

ان سوالات پر غور کرنے اور ان کی تڑپ رکھنے والے رفتہ رفتہ مفقود ہوتے جارہے ہیں۔

اس صورت حال کا بنیادی سبب یہ کہ ہم ایک مرتبہ زبان سے اپنا مقصد اصلی خدمت دین کو قرار دینے کے بعد عملی زندگی میں اسے بھول جاتے ہیں، اور اپنی کوششوں کا تمام تر محور ان ظواہر کو بنالیتے ہیں، جو یا تو شرعاً مطلوب ہی نہیں، یا اگر مطلوب ہیں تو اس شرط کے ساتھ کہ ان کو نیک نیتی سے مقصد کا محض ذریعہ قرار دیا جائے، خود مقصد نہ سمجھ لیا جائے۔

اسی طرح اساتذہ کا معاملہ عام طور سے یہ نظر آتا ہے کہ ان کا محور فکر بسا اوقات یہ رہتا ہے کہ ہمیں کونسا مضمون یا کونسی کتاب پڑھانے کے لیے ملے؟

طلبہ پر کس طرح اپنے علمی تفوق کی دھاک بٹھائی جائے، وہ کونسے ذرائع اختیار کیے جائیں جن سے طلبہ میں اپنی مقبولیت بڑھے؟

اور پھر اس مقبولیت میں اضافہ کی خاطر بسا اوقات یہ بات مد نظر نہیی رہتی کہ طلبہ کے لیے کونسا طرز عمل زیادہ مفید اور مناسب ہے؟

بلکہ دیکھا یہ جاتا ہے کہ کیا طرزعمل طلبہ کی خواہشات کے مطابق ہے؟

چنانچہ اس کے نتیجے میں اساتذہ اپنے طلبہ کی رہنمائی کرنے کے بجائے ان کی خواہشات کے تابع ہوکر رہ جاتے ہیں، اور طلبہ اساتذہ کے پیچھے نہیی چلتے، بلکہ اساتذہ طلبہ کی خواہشات کے پیچھے چلنے لگنے ہیں۔

ماضی میں خاص طور پر دینی مدارس کی روایت یہ رہی ہے کہ اساتذہ اور طالب علم کا رشتہ محض ایک رسمی رشتہ نہیی ہوتا تھا، جو درسگاہ کی حد تک محدود ہو، اس کے بجائے وہ ایک ایسا روحانی رشتہ ہوتا تھا، جو دائمی طور پر عمر بھر قائم رہتا تھا،

استاذ صرف کتاب پڑھانے کی ڈیوٹی ادا کرنے والا معلم نہیی ہوتا تھا، بلکہ وہ اپنے طلبہ کے لیے ایک مشفق باپ، ان کا اخلاقی اور روحانی مربی اور علم و عمل دونوں کے میدان میں ایک شفیق نگراں کی حیثیت رکھتا تھا، جو طلبہ کے نجی معاملات تک دخیل ہوتا تھا، اس کا نتیجہ یہ تھا کہ طلبہ اپنے اساتذہ سے علمی استعداد کے ساتھ ساتھ اخلاقی تربیت بھی حاصل کرتے تھے، ان سے زندگی کا سلیقہ سیکھتے تھے، ان سے للہیت، ایثار، تواضع اور دوسرے اخلاق فاضلہ اپنی زندگی میں جذب کرتے تھے، اور اس طرح شاگرد اپنے استاذ کے علم و عمل کا آئینہ ہوا کرتا تھا۔

رفتہ رفتہ یہ باتیں داستان پارینہ ہوتی جارہی ہیں، اور وجہ وہی ہے کہ استاذ نے اپنا مقصد صرف درسگاہ میں ایک ایسی تقریر کرنے کو بنالیا ہے، جسے طلبہ پسند کر سکیں، رہی یہ بات کہ کس قسم کی تقریر ان طلبہ کے لیے زیادہ مفید ہے؟

ان طلبہ کو مفید تر بنانے کے لیے ان کو کن کاموں کا مکلّف کرنا ضروری ہے؟

طلبہ کے کونسے رجحانات ان کے علم و عمل کے لیے مضر ہیں؟

ان رجحانات کو کس طرح ختم کیا جاسکتا ہے؟

طالب علم درسگاہ سے باہر جاکر کس قسم کی زندگی گزارتے ہیں؟

ان سوالات کے بارے میں سوچنے اور ان مقاصد کی لگن رکھنے والے-الا ما شاء اللہ- مفقود ہوتے جارہے ہیں۔

دار العلوم دیوبند کی بنیادی خصوصیت، جس کی بناء پر وہ بر صغیر کے دوسری درسگاہوں سے ممتاز ہوا، یہ تھی کہ وہ علم براے علم کا ادارہ نہ تھا، بلکہ انسانوں کی ایسی تربیت گاہ تھی، جس سے صحیح العقیدہ سچے اور پکے مسلمان تیار ہوتے تھے، اپنی گفتار سے زیادہ کردار سے اسلام کی تبلیغ کرتے تھے۔

اس وقت ہمیں سب سے پہلے اپنے ماحول میں دینی مدارس کی اسی روح کو از سر نو تازہ کرنے کی ضرورت ہے، کیونکہ اس کے بغیر ہماری درسگاہیں اگر بہت کامیاب ہوئیں تب بھی محض علم براے علم کے مراکز بن کر رہ جائیں گی، مدرسے قائم کرنا اور ان میں چند لگے بندھے علوم کا درس دینا بذات خود ایک مقصد بن جائے گا، جس میں  بہت سے مستشرقین پورپ بھی سرگرم عمل ہیں، اور رفتہ رفتہ ہم سے سارے اوصاف گم ہوجائیں گے، جو ان علوم کی درس و تدریس کے لیے لازمی شرط کی حیثیت رکھتے ہیں۔

دینی مدارس میں یہ اصل روح جو مرور ایام سے دھیمی پڑتی جارہی ہے، از سر نو تازہ کرنے کے لیے سب سے اہم ذمہ داری ان درسگاہوں کے اساتذہ اور منتظیمین پر عائد ہوتی ہے، ان کا یہ فریضہ ہے کہ وہ پہلے اپنے ذاتی اعمال و اخلاق کا جائزہ لے کر یہ دیکھیں کہ اسلامی علوم نے ان میں اپنا کوئی رنگ پیدہ کیا ہے یا نہیں؟

خوف خدا اور فکر آخرت میں کتنا اضافہ ہوا؟
اللہ کے ساتھ تعلق کتنا بڑھا؟
عبادت کے ذوق میں کتنی زیادتی ہوئی؟
جن فضائل اعمال کی دوسروں کو شب و روز تلقین کی جاتی ہے، ان پر خود کتنا عمل پیرا ہوے؟

جس انفاق فی سبیل اللہ کی دوسروں کو بڑھ چڑھ کر تاکید کی جاتی ہے، اس میں ہم خود کس قدر حصہ دار بنے؟

دین کے خاطر جان و مال کی قربانی دینے کے جذبے نے کتنی ترقی کی؟

معاشرے کے بگاڑ سے کرب و اضطراب کی کیفیت اور اس کی اصلاح کی فکر کس حد دل و دماغ پر طاری ہوئی؟ ۔۔۔۔۔۔ یہ ساری باتیں ہمارے سوچنے کی ہیں، اور اگر ہم حقیقت پسندی کے ساتھ ان سوالات کا جواب اپنے عمل میں تلاش کریں، تو ندامت و حسرت کا پیدہ ہونا ناگزیر ہے۔

ضرورت اسی ندامت و حسرت سے کام لینے کی ہے، لیکن اس سے صحیح کام اسی وقت لیا جاسکتا ہے، جب ندامت و حسرت محض وقتی ابال نہ ہو، بلکہ اس کا بار بار استحضار ہوتا رہے، یہاں تک کہ یہ مستقبل کے لیے نشان راہ بن جائے۔۔۔۔

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