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Salat (Namaj) Nahi Parhne walo ki Sza?

Namaj Nahi Padhne wale Musalman Kaise Hai?
अब्दुल बासित. #Namaj #BeNamaji
नमाज़ ना पढ़ने वालो का हाल क़ुरान और ह़दीस की रौशनी मे
इस्लाम की बुनियाद पाँच चीज़ो पर की गई जिसमे दूसरी चीज़ नमाज़ है!
अल्लाह ने अपने बन्दो पर दिन मे पाँच वक़्त नमाज़ फर्ज़ की है,
जिसे किसी भी हाल मे छोड़ना जायज़ नही, यहा तक की हम सफर मे हो या जंग के मैदान मे भी हो जब भी नमाज़ नही छोड़नी है!

अल्लाह क़ुरान मे फरमाता है:-
बेशक मुस्लमान पर नमाज़ फर्ज़ है, अपने मुक़र्रर वक़्तो मे!  सूरहः निसा आयत नं० 103
यानी जो वक़्त अल्लाह ने मुकर्रर किये है, उनमे नमाज़ फर्ज़ है, ये नही की अपनी अक़्ल से किसी भी वक़्त फर्ज़ नमाज़ अदा करलो, सिर्फ जो वक़्त अल्लाह ने मुकर्रर किये है उनमे ही फर्ज़ नमाज़ अदा करनी है!

लेकिन जब अज़ान दी जाती है तो लोग उस वक़्त भी अपने कामो मे मशगूल (Busy) रहते है और कुछ बे-अक़्ल लोग तो एसे है जो अज़ान/नमाज़ के वक़्त को हँसी-खेल मे गुज़ार देते है, नमाज़ की तरफ ध्यान नही देते, इसकी वजह ये है की वह लोग नमाज़ की अहमियत नही जानते, अल्लाह ने क़ुरान मे उन लोगो को बे-अक़्ल कहा है!!

अल्लाह फरमाता है:-
*और जब तुम नमाज़ के लिए बुलाते हो तो वे लोग उसको मज़ाक और खेल बना लेते हैं, इसकी वजह यह है कि वे अक़्ल नहीं रखते।
सूरहः माईदाह आयत नं० 58

दूसरी जगह फरमाया:-
नमाज़ क़ायम करो और अल्लाह से डरो,
सूरहः अल-अनआम आयत नं० 72

अल्लाह ने फरमाया की नमाज़ क़ायम करो और उसके साथ साथ अल्लाह से भी डरो,
ये नही की सिर्फ नमाज़ अदा करली अब अल्लाह का खोफ भूल कर बेहयाई के काम करो, गन्दे काम करो, दीन सिर्फ नमाज़ अदा करने तक ही नही है, बल्की उसके साथ अल्लाह से डरते हुए, अल्लाह का खोफ दिल मे रखते हुए जिन्दगी गुज़ारनी है!

और नमाज़ हमे सिर्फ अल्लाह के लिये ही अदा करनी है किसी को दिखाने या कोई कर्ज़ जैसा उतारने के लिये नमाज़ नही पढ़नी, की नमाज़ के लिये खड़े हुए और जल्दी जल्दी उठक-बैठक लगाई और हो गया फर्ज़ पूरा, या कोई दोस्त या रिश्तेदार नमाज़ पढ़ रहा है तो उसको दिखाने के लिये हम भी नमाज़ अदा करले,,
बल्की नमाज़ सिर्फ अल्लाह के लिये ही है!!

अल्लाह फरमाता है:-
कह दीजिए कि मेरी नमाज़ और मेरी क़ुर्बानी, मेरा जीना और मेरा मरना अल्लाह के ख़ातिर है जो सारे जहानों का रब है।
सूरहः अल-अनआम आयत नं० 162

नमाज़ एक ऐसी इबादत है जो हमे बुराई और गलत कामो से रोकती है, और हक़ बात है की जब बन्दा दिन मे पाँच वक़्त नमाज़ अदा करेगा और उसके दिल मे नमाज़ की मुहब्बत होगी तो वह गलत कामो की तरफ जाएगा ही नही!

जैसा की अल्लाह फरमाता है:-
*बेशक नमाज़ बेहयाई और बुराई से रोकती है।
सूरहः अल-अनकाबूत आयत नं० 45

अल्लाह ने क़ुरान मे कई बार नमाज़ क़ायम करने को कहा है, और ये भी फरमाया की नमाज़ बुराई से रोकती है, लेकिन अफसोस हम इतनी क़ीमती दौलत को छोड़ बेठै है!
नमाज़ की फज़ीलत के बारे मे रसूलल्लाह के फरमान देखते है, आपने क्या फरमाया है!
अबू हुरैराह रज़ि० से रिवायत है की रसूलल्लाह ने फरमाया:-
*मुझे बताओ की अगर तुम मे से किसी शख्स के घर के सामने नहर हो और वो उसमे हर रोज़ पाँच बार ग़ुस्ल करता हो तो क्या उसके जिस्म पर कोई मैल(गन्दगी) रह जाएगी?
*सहाबा रज़ि० ने जवाब दिया की उसके जिस्म पर कोई मैल बाकी नही रहेगी!*
*आपने फरमाया:- यही पाँच नमाज़ो की मिसाल है, अल्लाह उनके ज़रिये खताए (गलतियाँ) मिटा देता है!
मिश्कातुल मसाबिह हदीस नं० 565

दूसरी हदीस मे आपने फरमाया:-
*हज़रत जाबिर रज़ि० बयान करते है की रसूलल्लाह ने फरमाया:-
मोमिन बन्दे और कुफ्र के दरमियान का फर्क नमाज़ को छोड़ना है
मिश्कातुल मसाबिह हदीस नं० 569
इस हदीस का मतलब है, जो शख्स नमाज़ ना पढ़े तो उसमे और काफिर मे कोई फर्क नही, दोनो बराबर है!.

हज़रत बुरैदाह रज़ि० बयान करते है की रसूलल्लाह ने फरमाया:-
हमारे और मुनाफिक़ो के बीच नमाज़ अहद (आड़) है, तो जिसने नमाज़ छोड़दी उसने कुफ्र किया!
मुसनद अहमद
तिर्मिज़ी
नसाई
इब्ने माजाह
मिशकातुल मसाबिह हदीस नं० 574

ये कुछ हदीसे आपने पढ़ी जिसमे रसूलल्लाह ने फरमाया की नमाज़ का छोड़ना कुफ्र है, अब क़ुरान मे नमाज़ ना पढ़ने वालो के लिये अल्लाह क्या फरमाता है, वो देखते है!_

नमाज़ ना पढ़ने वालो के बारे मे क़ुरान का फरमान
जो लोग नमाज़ छोड़ते है उनके बारे मे अल्लाह ने क़ुरान मे फरमाया:-
सूरहः मुदस्सिर आयत नं० 40-43
वे जन्नत वाले लोग,  मुजरिमो से (जहन्नम वालो से) पूछेंगे, तुम्हे क्या चीज़ (जहन्नम) में ले आई? वे कहेंगे, "हम नमाज़ अदा करने वालों में से न थे।

इन आयतो की तफ्सीर मे इमाम मोदूदी रह० फरमाते है:-
*ये लोग कहेंगे की हम उन लोगो मे से ना थे जिन्होने खुदा और उसके रसूल और उसकी किताब को मान कर खुदा का वो पहला हक़ अदा किया हो जो हर इंसान पर फर्ज़ है, यानी नमाज़!
यहाँ ये बात समझनी चाहिये की कोई इंसान उस वक़्त तक नमाज़ पढ़ ही नही सकता जब तक वो ईमान ना लाया हो लेकिन सिर्फ नमाज़ न पढ़ने की वजह बता कर ये बात वाज़ेह कर दी गई की ईमान ला कर भी आदमी जहन्नम से नही बच सकता अगर वो नमाज़ को छोड़ता हो!

यानी ईमान लाने के साथ-साथ नमाज़ अदा करना भी ज़रूरी है, ये नही की सिर्फ मुस्लिम नाम रखलो, ईद मनालो और मुसलमान हो गये, के साथ नमाज़ भी अदा करनी है!! दिखावे का मुसलमान होना नहीं बल्कि दिल और जुबान से इकरार करना और अमल से भी जाहिर होना चाहिए, किसके दिल मे क्या है किसे मालूम और जुबान से तो हर कोई खुद को मुसलमान और ईमान वाला कहता है मगर अमल से वैसा है क्या?

अल्लाह दूसरी जगह फरमाता है:-
सूरहः नं० 107 सूरहः अल माऊन आयत नं० 4-5
तबाही है उन नमाज़ियों के लिए,जो अपनी नमाज़ से ग़ाफिल (असावधान) हैं,

इन आयत के बारे मे तक़ी उसमानी साहब लिखते है:-
*नमाज़ो से ग़ाफिल होने का मतलब ये है की नमाज़ पढ़ते ही नही और ये भी, की नमाज़ो को सही तरीके से नही पढ़ते!!
यानी इन आयतो से मतलब है की नमाज़ मे सुक़ून इख्तियार नही करना, जल्दी जल्दी उल्टी-सीधी नमाज़ पढ़ना, सही वक़्त पर नमाज़ ना पढ़ना, रसूलल्लाह के तरीके पर नमाज़ ना पढ़ना, रूकू सज्दे सही से ना करना,

इमाम मोदूदी रह० इन आयत की तफ्सीर मे लिखते है:-
वह लोग कभी नमाज़ पढ़ते है और कभी नमाज़ नही पढ़ते,
पढ़ते है तो इस तरह की उसके सही वक़्त को टालते रहते है और जब वक़्त खत्म होने लगता है तो उठ कर चार ठोंगे मार लेते है, या नमाज़ पढ़ने के लिये जाते है तो नाखुशी से जाते है जैसे उन पर कोई मुसीबत आ गई हो, नमाज़ पढ़ते हुए कपड़ो से खेलते है, जम्बाईयाँ लेते है, खुदा की याद की कोई फिक्र उनके दिल मे नही होती, नमाज़ मे ना उनको ये खयाल होता है की वो नमाज़ पढ़ रहै है और ना ये याद रहता की उन्हेने क्या पढ़ा,
नमाज़ ऐसे मारा-मार पढ़ते है की ना क़याम ठीक से करते है, ना रूकू और ना सज्दे,
बस किसी तरह नमाज़ की शक्ल बना कर जल्दी से जल्दी फारिग़ हो जाने की कोशिश करते है, और बहुत लोग तो ऐसे है की अगर कही फँस गये तो नमाज़ पढ़ली, वरना इस इबादत का कोई मक़ाम उनकी ज़िन्दगी मे नही होता,
नमाज़ का वक़्त आता है तो उन्हे महसूस नही होता की ये नमाज़ का वक़्त है, मौअज़्ज़न की आवाज़ उनके कानो मे तो आती है लेकिन उन्हे ये नही पता होता की यह क्या कह रहा है,
नमाज़ से ग़ाफिल होने का मतलब ये है की आदमी नमाज़ के लिये खड़ा होता है, खुदा की याद का इरादा उसके दिल मे नही होता, नमाज़ शुरू करने से सलाम फेरने तक एक पल के लिये भी उसका दिल खुदा की याद की तरफ नही झुकता, और जिस खयालात को लेकर वह नमाज़ शुरू करता है, बस उन्ही मे उलझा रहता है........!!

जो लोग नमाज़ को खुदा के लिये नही पढ़ते और नमाज़ को गलत-सलत पढ़ते है उन्ही लोगो के बारे मे इन आयतो मे बताया गया है!!_
_आप सब से गुजारिश है की नमाज़ को सही तरीके से और सही वक़्त पर अदा कीजिये!!

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