Quran Majeed Ki wo 24 Aayatein jinka Galat Matlab Nikal kar logo me Nafrat Failane ki koshis ki ja rahi hai?
बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम
अस्सलामुअलैकुम वरह् मतुल्लाही वबरकातुहु
क्या इस्लाम आतंकवाद की शिक्षा देता है?
*सभी मुस्लिम और गैर मुस्लिम भाइयो से अपील है कि इस पोस्ट को ज़रूर पढ़े ये एक महत्वपूर्ण जानकारी है जो आपको दी जा रही है
नोट यह पोस्ट किसी को नीचा दिखाने या किसी का अपमान करने के लिए नही है.
पार्ट नंबर, 51
पवित्र कुरआन की वे चौबीस आयतें
23 पैम्फलेट में लिखी 23वें क्रम की आयत है:-
*वे चाहते हैं कि जिस तरह से वे 'काफ़िर' हुए हैं उसी तरह से तुम भी 'काफ़िर' हो जाओ, फिर तुम एक जैसे हो जाओ; तो उनमें से किसी को अपना साथी न बनाना जब तक वे अल्लाह की राह में हिजरत न करें, और यदि वे इससे फिर जावें तो उन्हें जहां कहीं पाओ पकड़ो और उनका वध (क़त्ल) करो। और उनमें से किसी को साथी और सहायक मत बनाना।”(कुरआन, सूरा-4, आयत- 89)
इस आयत को इसके पहले वाली 88 वीं आयत के साथ मिलाकर पढ़ें, जो निम्न है.
"तो क्या वजह है कि तुम मुनाफ़िक़ों के बारे में दो गिरोह [यानी दो भाग] हो रहे हो? हाल यह है कि खुदा ने उनके करतूतों की वजह से औंधा कर दिया है। क्या तुम चाहते हो कि जिस शख्स को खुदा ने गुमराह कर दिया है, उसको रास्ते पर ले आओ?" (कुरआन, सूरा-4, आयत- 88)*
*स्पष्ट है कि इससे आगे वाली 89वीं आयत, जो पर्चे में दी है मुनाफिकों (यानी कपटाचारियों) के सन्दर्भ में है, जो मुसलमानों के पास कहते हैं कि हम 'ईमान' ले आए और मुसलमान बन गए और मक्का में काफिर के पास जाकर कहते कि हम अपने बाप-दादा के धर्म में ही हैं, बुतों को पूजने वाले हम तो मुसलमानों के बीच भेद लेने जाते हैं, जिसे हम आप को बताते हैं ये मुसलमानों के बीच बैठकर उन्हें अपने बाप-दादा के धर्म 'बुत-पूजा' पर वापस लौटने को भी कहते। इसी लिए यह आयत उतरी कि इन कपटाचारियों को दोस्त न बनाना क्योंकि यह दोस्त हैं ही नहीं, तथा इनकी सच्चाई की परीक्षा लेने के लिए इनसे कहो कि तुम भी मेरी तरह वतन छोड़कर हिजरत करो अगर सच्चे हो तो। यदि न करें तो समझो कि ये नुक़सान पहुंचाने वाले कपटाचारी जासूस हैं, जो काफ़िर दुश्मनों से अधिक ख़तरनाक हैं। उस समय युद्ध का माहौल था, युद्ध के दिनों में सुरक्षा की दृष्टि से ऐसे जासूस बहुत ही ख़तरनाक हो सकते थे, जिनकी एक ही सज़ा हो सकती थी; मौत । उनकी सन्दिग्ध गतिविधियों के कारण ही मना किया गया है कि उन्हें न तो अपना साथी बनाओ और न ही मददगार, क्योंकि ऐसा करने पर धोखा ही धोखा है।
यह आयत मुसलमानों की आत्मरक्षा के लिए उतरी न कि झगड़ा कराने या घृणा फैलाने के लिए।
HAMARI DUAA
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Aisi ayat hai hi kyu jisme dusro dharm ke logo marne ki baat kare.
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