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Palestine: Aap kiske Sath hai Freedom Fighter ke ya Terrorist State Israel ke? Palestine liberation.

Palestine ka Sath kaun dega?

फिलिस्तिनियो को आतंकी कौन बता रहा है?
फिलिस्तिनियो के साथ कौन खड़ा है? इस्राएल को ईसाई देश क्यो समर्थन दे रहे है?

ऐ ईमान वालो तुम यहूदियों और नासराणियो को यार व मददगार न बनाओ, ये दोनो खुद ही एकदूसरे के यार ओ मदद गार है। और तुम मे से जो शख्स उनकी दोस्ती का दम भरेगा तो फिर वह उन्ही मे से होगा। यकिनन अल्लाह जालिम लोगो को हिदायत नही देता।

अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में अपने वीटो पावर का इस्तेमाल कम से कम 33 बार इसराइल के लिए किया है.

" तुम मेरा पानी ले लो, मेरे पेड़ो को जला दो, मेरे घरों को तबाह कर दो, नौकरियां छीन लो, मां बाप की हत्या कर दो, मेरे देश में धमाके करो, हमे भूखा रखो, अपमानित करो लेकिन हमे इन सबके बदले एक रॉकेट दागने के लिए दोषी ठहराओ "

उपर जो आप सब ने पढ़ा अगर वैसा ही हाल आपका का हो जाए तो आप क्या करेंगे?

 
अगर बिजली काट दी जाए, घरों को तबाह कर दिया जाए और रोज़ दिन रात आपके आशियाने पर मिसाइल और हेलीकोपट्रो से बॉम्बारी किया जाए तो आप क्या सोचेंगे और क्या करेंगे?

इससे भी ज्यादा बद्तरीन हालात है अरब के एक छोटे से खितते मे बसा फिलिस्तीन का।
जो ज़मीन फिलिस्तीन के लोगो का था उस पर जबरदस्ती यहूदियों ने कब्ज़ा करके अपना नया देश इस्राएल बनाया 1948 मे।

"We Should Fight The information war this time with zionist, salebi and west propganda machine, keep commenting, writing & breaking lies they spread. Don't need to be sorry, conddemn, its time to support Palestine, Mujahiden, Freedom fighters & our Supporters."

मस्ज़िद ए अक्सा फिलिस्तीन से दुनिया के मुसलमानो का क्या ताल्लुक़ है?

आज मुस्लिम दुनिया का रहनुमा कौन है और किधर है?

फिलिस्तीन मे अरब कब से आबाद है और मकबूजा फिलिस्तीन (इस्राएल) कब बना?

दहशतगर्द इस्राएल कब बना, किसने बनाया से यहूदि स्टेट?

इस्राएल क्या पूरी तरह से अरब देश पर हमला करके उसे कब्ज़े मे ले लेगा?

इस्राएल अब ज़मीनी जंग शुरू करने जा रहा है उधर आतंकवादि अमेरिका ने इस्राएल का साथ देते ही हथियारो से लैश जहाज़ भेजा है, जिसमे एंटी क्रूज़ मिसाइल, गोला बारूद, एंटी शिप मिसाइल है।

यह शुरू होने से पहले यूरोप और इस्राएल मिलकर अफवाहों का बाजार गरम कर रहा था फिलिस्तिनियो के खिलाफ, ताकि गैर मुस्लिम दुनिया, मीडिया और तथकथित बुद्धिजीवी को अपने साथ ला सके। अगर इन लोगो को अपने खेमे मे रखेंगे तो ये लोग हमारे ज़ुल्म व ज्यादती, फिलिस्तिनियो के क़तलेआम पर मीडिया मे बहस के दौरान हमारी हिमायत करेंगे और मजलुम फिलिस्तीनईयो को आत्यचरि और आतंकवादि साबित करवा देंगे।
इस तरह से ये अभी इंफोर्मेशन वार शुरु किया है ताकि हमारे ज़ुल्म की इंतेहा पर पर्दा डाला जा सके। यूरोपियन मीडिया और हिंदी मीडिया चाहे उदारवादी हो या दक्षिणपंथी सबने फिलिस्तीन पर हो रहे ज़ुल्म को न दिखा कर फिलिस्तीन के लोगो के हाथ मे कंकर और पत्थर को दिखा रहे  है।

लेबनान के इलाको पर भी आतंकवादि इस्राएल ने बॉम्बारी की और अब ज़मीनी आतंकियो के जरिये अगल बगल के सारे देशो पर हमला करेगा लेकिन मानवाधिकार का लबादा ओढ़ने वाला अमेरिका और यूरोपीय देश इसमे इस्राएल को हर तरह से चाहे सामरिक,आर्थिक या राजनीतिक मदद कर रहा है।

अब तक 1000+ फिलिस्तिनि शहीद हुए और 2500 ज़ख़्मी है। वहाँ के अस्पताल मुर्दा घर बन गए।

लेबनान मे 50 लाख फिलिस्तिनि रहते है। पहले ये ग़ज़ा पर बॉम्ब बरसाया फिर अब मिस्र, जोर्डन और दूसरे मुल्को पर। इसे इजरायली सनक कह सकते है जिसे अपने आप पर बहुत घमंड है।

इस्राएल ने ग़ज़ा पट्टी पर फॉस्फोरस बॉम्ब भी गिराया है जिसे अमेरिका ने दुनिया को इसे इस्तेमाल करने पर पाबंदी लगाया हुए है।

मिस्र को आतंकवादि देश इस्राएल ने धमकी दिया के वह ग़ज़ा मे रहने वालो को अपने यहाँ पनाह न दे।

जिसने दुसरो के ज़मीन को कब्ज़ा करके खुद बसा आज वही फिलिस्तिनि लोगो को मार कर भाग रहा है लेकिन UNSC और मानवाधिकार की रट लगाने वाला, चीन कि विगर मुसलमानो पर तंकिद करने वाला इस्राएल को हथियार दे रहा है ताकि वह ग़ज़ा और फिलिस्तिनियो का सफाया कर सके। इसे बड़ा अपराध और क्या हो सकता है? इस्राएल जिसे ब्रिटेन ने पैदा किया और अमेरिका ने भरण पोषण किया। अब वह फिलिस्तिनियो के नर संहार के लिए हथियार और सियासी मदद कर रहा है।

फ्रांस, जर्मनी , इटली, ब्रिटेन और अमेरिका इनमें से कोई भी यहुदी देश नहीं है बावजूद इसके ये खुलेआम इज़रायल के साथ खड़े हैं। यहां तक की अमेरिका ने  आतंकी इज़रायल के प्रति एकजुटता दिखाने के लिए व्हाइट हाउस में नीली और सफेद रंग की रौशनी की..

क्या इस्राएल अकेले 1948 से यह सब कर रहा है?

इस्राएल को ईसाई देशो से मदद मिलती है, चाहे वह लेफ्ट हो या राइट। अमेरिका मे यहूदि लॉबी काफी जड़े जमाये हुए है। इस्राएल को मुसलमानो का जनसंहार करने के लिए लेफ्ट, लिबरल, डेमोक्रेट सभी तबके के लोग अपने अपने तरीके से मदद करता है।

मगर इन सब के बीच मुस्लिम देशों का रवैया क्या है?

अगर आप फिलिस्तीन की आज़ादी चाहते है और इजरायली सामान खरीद कर इस्तेमाल भी करते है तो समझ जाए के आप फिलिस्तिनियो का खून बहाने, मस्जिदो पर बॉमबारी करने की फंडिंग कर रहे है। साथ साथ आप झूठ भी बोल रहे है के मै क़ीबला ए अव्वल की हीफाज़त चाहता हूँ।

57 मुस्लिम देश होते हुए भी फिलीस्तीन यतीमों की तरह अकेला मुसलमानों के बैतूल मुकद्दस की हीफाजत के लिए अपनी और अपने मुस्तकबिल के खून को पानी की तरह बहाए जा रहा है।
जो मजाहेदीन आतंकियो से मुकाबला करने की सोच रहे है उसे अमेरिका और दूसरे ईसाई देशों ने आतंकवादि कहा है?

हम आह भी करते है तो हो जाते है बदनाम
वह क़त्ल भी करते है तो चर्चा नही होता।

Western Ideology:
1) Ukraine  has the right to defend
2) Israel  has the right to invade

जो अपने मुल्क की आज़ादी के लिए लड़ रहा है उसे ईसाई देशो ने दहशत गर्द का लकब् दिया लेकिन जो दुसरो के ज़मीन को नजायेज कब्ज़ा कर वहाँ के बाशिंदों को कसाई की तरह मार रहा है उसे यह ईसाई देश मदद कर रहे है।

अरब देशों ने फिलिस्तीन को उसके हाल पर छोड़ कर तेल बेचने और शाही खज़ाना भरने मे मसरूफ है
उसे बड़े बड़े होटलो और नंगी औरतों के साथ रहने से वक़्त ही नही बच रहा है के वह ग़ज़ा के लोगो के बारे मे सोचे। उसने पहले से आतंकी इस्राएल के आगे घुटने टेक दिये है।

इन सब मे आम मुसलमानो को क्या करना चाहिए?

मुसलमानो को यह बात समझ लेना चाहिए के कोई भी अगर आपकी मदद कर रहा है तो उसके पीछे अपना मकसद छिपा रहता है? चाहे देशी लिब्रल्स हो या नामनिहाद् औरतो के आज़ादी के मतवाले। वह आपकी पहचान मिटाकर एक अलग दुनिया मे रखना चाहते है जहाँ आप उसकी मर्ज़ी से ही कुछ कर सकते है। आप दुसरो के ज़ुल्म पर मजलुमो का साथ देंगे, लेकिन जब आप पर ज़ुल्म होगा तो आप खुद को अकेला पाएंगे।

आप के साथ कोई खडा नही होगा। युक्रेन के साथ कितने ईसाई देश खड़े है, और सारी दुनिया को यह कह रहे के युक्रेनी लोगो का साथ दे, लेकिन यहूदि देश ने फिलिस्तीन पर हमला किया तो कितने देश आपके साथ खड़े हुए?

मुसलमान दुसरो को इंसाफ दिलाने वाला क्यों जब खुद पर ज़ुल्म होता है तो अकेला रह जाता है उसका कोई साथ नही देता। यहाँ तक के नामनिहाद् इस्लामिक मुल्क कहने वाला भी।

अमेरिका  अफगानिस्तान पर हमला किया मनवाधिकार के लिए,
इराक पर हमला किया झूठा अफवाह फैला करके, उसके पास विनाशकारी हथियार है।
वियतनाम पर हमला किया वहाँ अपना कठपुतली सरकार बनाने के लिए
वगैरह बहाने बनाकर।

दुनिया भर मे सारे देशों पर हमला करके उसे बर्बाद करने वाला सारी दुनिया को लोकतंत्र और मनवाधिकार का सबक सिखाता है। जब वह खुद दुसरो पर हमला करता है तो क्या वह अपना बनाया हुआ ग्लोबल ऑर्डर भूल जाता है, या उसका बनाया नियम उसे इसकी पूरी आज़ादी देता है?

आज जब ग़ज़ा पर आतंकी इस्राएल हमला किया तो उसका साथ देने सलेबी मुमलिक तैयार है लेकिन मुसलमानो पर हुकमरानी करने वाले सलेबी और सह्युनि एजेंट छिप कर इस्राएल का साथ दे रहे है।

इसलिए के ग्लोबल ऑर्डर के वह जाल मे फंसे हुए है। अमेरिका के बनाये हुए जाल मे फंसे हुए है जिसका नतीजा फिलिस्तिनियो को चुकाना पड़ रहा है।

आम मुसलमानो को सलेबियो की तरफ से शुरू हुआ डिजिटल वार का जवाब देना चाहिए, यह इंफोर्मेशन वार फिलिस्तिनियो के खिलाफ शुरू किये है ताकि खुद को मीडिया मे डिजिटल मजलुम साबित करे।

मुसलमान अरबो से उम्मीद न लगाए वह अपने खज़ाने को देख रहे है, लिहाज़ा आप सब फिलिस्तिनि माँ, बहनो, भाईयो के लिए दुआ करे और उनकी आज़ादी के इस मुहिम मे साथ दे।

आप वहा जा नही सकते, आप के पास उसे देने के लिए न हथियार है न पैसे लेकिन आप दुआ कर सकते है मासूम फिलिस्तिनियो के लिए, लोगो से उनका साथ देने के लिए कह सकते है।

इस्राएल फिलिस्तीन के खिलाफ प्रोपगैंडा फैलाने मे बहुत माहिर है, वो नरसंहार करने से पहले "प्रोपगैंडा वार" करता जिसका साथ यूरोप से लेकर एशिया तक के Columnist, Reporters, Anchors, Actor, Artist aur Leaders साथ देते है। इसलिए किसी भी वीडियो को देख कर अपनी राय न बनाये। बल्कि आपके पास इतिहास और 1948 से अबतक हुई घटनाएं मौजूद है उस पर नज़र दौराये। 1948 से अबतक बेशुमार मासूमो का क़त्लआम करने वाला आतंकी इस्राएल और उसका साथ देने वाला ईसाई देश एक वीडियो क्लिप से बेगुनाह साबित नही हो सकता है।

किसी नामनिहाद् सेकुलर के बहकावे मे आकर उसके प्रोपगैंडा को कामयाब न बनाये। सलेबी मीडिया पूरे जोर शोर से इस्राएल के लिए "इंफोर्मेशन वार" शुरू किये हुए है जिनमे से कुछ ये है। BBC, CNN, The Guardian, washington Post, NewYork Times, Times of Israel, ABC वगैरह से होशियार रहे। ये इस्राएल के आतंक को लोकतन्त्र और मनवाधिकार के चादर मे डाल कर आपको स्विकार करने के लिए कहेंगे।

आज फ़लस्तीनी मसला एक भावनात्मक मुद्दा हो चुका है, और पूरी दुनिया में ही नहीं, या फिर अरब देशों या फ़लस्तीन के लोग मे ही नहीं, मुसलमानों में ही नहीं, जिस पर भी इंग्लैंड के उपनिवेशवाद या अमेरिका के साम्राज्यवाद का असर पड़ा है, या जो कोई भी शोषित हैं, उनमें ये फ़लीस्तीनीयों के लिए समर्थन धीरे धीरे फैल रहा है."

यह निहथे लोगो और आतंकवादि राज्य के बीच,

तानाशाह और विस्तारवादी रवैय्या और स्वराज के बीच लडाई है।

यह वैसा ही जंग है जैसे महात्मा गाँधी, सुभाष चन्द्र बोष, भगत सिंह, वीर कुंवर सिंह, खुदीराम बोस, बाल गंगाधर तिलक, बटुकेश्वर दत्त, लाला राजपत् राय जैसे महापुरुषो ने लडी थी ईस्ट इंडिया कंपनी, ब्रिटिश साम्राज्य और उपनिवेशवाद के खिलाफ अपनी खुद मुखतारी और आज़ादी के लिए।

फिर कोई अगर फिलिस्तीन के फ्रीडम फाइटर को अपनी ज़मीन के लिए लड़ने, मुहिम चलाने पर आतंकवादि और क्रूर कहता है तो यह बात अंग्रेजो ने भी स्वतंत्रता सेनानियों के लिए कही थी। अंग्रेजो ने भी हिंदुस्तान के जाबाज सिपाहियों को स्वराज के लिए गद्दार और दहशत गर्द कहा था और रॉलेक्ट् एक्ट बनाये थे, फांसी पर चढ़ाया था खुदीराम बोस को।

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Democracy aur Musalman: Jamhuriyat aur Magribi tahzeeb ne Deen Ki jagah le li hai Musalamno ke andar.

Musalmano yah Democracy tumhara Nijam nahi hai, Yah Jinka Nijam hai Usool w zawabt, marzi bhi unhi ki chalegi.

Ye Jamhuriyat (Democracy) aur Magribi Tahjib ne Deen ki jagah le li hai.

Islam ke Khilaf European Propganda, Quran Jalana. 

Kya Watan se Muhabbat karna Iman ka hissa hai? 

Misr se shuru hua Fahaashi aaj Muslim duniya par kabza kar rakha hai? 

Spain ki tarikh: jahan 800 Saal ki hukumat ke bad aaj Firangiyo ka kabza hai. 

Kaisi Aazadi hai Jahan Musalmano ke Gharo ko Buldoz kar ke Jashn manayi jati hai? 

मुस्लिम मुमालिक ने इस्लाम को अपना दस्तूर माना लेकिन उस पर अमल नही
मगरीबि मुल्को ने अपना दस्तूर अकल को माना, तो उस पर अमल भी किया।
ज़ाहिर सी बात है के आने वाली नई नस्लें इस्लाम को लेकर बद्गुमानिया पालती और मगरीबि ख्यालात को सही और ज़दीद।

तुम्हारी तहज़ीब अपने ख़ंजर से आप ही ख़ुद-कुशी करेगी।
जो शाख़-ए-नाज़ुक पे आशियाना बनेगा ना-पाएदार होगा.

कुछ लोग सुबह शाम, उठते बैठते साइंस और टेक्नोलॉजी  मे मगरीब की मिशाल देते है, मगर तकलीद उनके फशक् व फुजूर, बेहयाई, फ़हाशि, हमजिंसीयत की करते है। ऐसे लोगो की मिशाल उस शख्स की तरह है जो हर वक्त कुत्ते की वफादारी की तारीफ करे मगर कुत्ते से सिर्फ भौकना सीखे।

कुछ नाम नेहाद, जदीद, आज़ाद ख्याल मुसलमान जो तौहीद से हटकर इल्हाद के तरफ जा चुके है ऐसो को मुसलमान कहना ही नही चाहिए और ये मुसलमान कहलाने मे शर्म महसूस करते है। ये इस्लाम को छोड़कर मगरीब के बेहया तहजीब के चिराग से रौशनी हासिल करने को रौशन ख्याली समझते है।

इस्लामी निजाम के खिलाफ लोगो को भड़काने, नफरत दिलाने और माइंड सेट बनाने के लिए यूरोप का देसी लिबरलस्, मुनाफ़िक्स, नामनिहाद हुकुक निस्वा के  जरिये एक मुहिम चलाया जा रहा है। वह इसलिए के  मगरीबि हुकमराँ इस्लामी निजाम से खौफज़दा है। वह समझते है के ऐसा न हो के हमारे अंदर भी लोग इस्लामी निजाम का दावा करे।

पहले मगरिब् का फलसफा था के मज़हब हर शख्स का जाती मसला है, रियासत (State) मज़हब से अलग रहेगी। इसलिए पहले लोगो को इस फल्सफ़े के तहत मज़हब - दिन से दूर किया, अब इन का नया फलसफा है के मज़हब जाती जिंदगी मे भी नही होनी चाहिये  इसलिए मज़हब को जाती जिंदगी से भी खतम करने की मुहिम शुरू की गयी है। लिहाजा पहले रियासती और अब इन्फरादि सतह पर भी किसी का कोई मज़हब नही होना चाहिए।

देसी लिबराल्स और मुनफिकिं की थ्योरी

अफ़ग़ानिस्तान अमेरिका का मसला हो तो अमेरिका के साथ, इस्राएल फिलिस्तीन का मामला हो तो इस्राएल इनको हक पर नज़र आता है, यूरोप कुरान जलाने को आज़ादी बताये और इस्लाम विरोधी प्रोपगैंडा करे तो वह आधुनिक और आज़ादी ख्याल, अमेरिका ईरान के साइंसदाँ पर मिसाइल गिराए तो अमेरिका उदारवाद और ईरान कटरपंथ, मुसलमान कुरान जलाने का विरोध करे तो शरणार्थी और चरमपंथी, मुस्लिम रियासत मे औरतों को हिजाब पहनने को कहा जाए तो तुच्छ, दकियानुसी, कट्टरपंथी और महिला विरोधी, नारीवादि tv पर अपना बाल काटने शुरू कर देते है और इस्लामी को महिला विरोधी बताते है। फ्रांस अपने यहाँ मुसलमान औरतो को अबाया, हिजाब, बुर्का पर पाबंदी लगाए तो वह मॉडर्न, आज़ाद ख्याल और मजहबी रवादारी, वह अरबी को गोलिया मारे तो वतन प्रस्त। मुसलमान किसी मसले पर इकट्ठा हो जाए और इतेफाक रखे तो कट्टरपंथी और शिद्दत पसंद। 

आपको कमज़ोर इस तरह से किया गया, कि आपको लगता रहा कि आप ही तो ताकतवर हैं, लेकिन अंजाम ये हुआ कि ताकत तो कब की छिन चुकी थी,बस रह गया था ,तो बस एक नाम ,जो अब छीना जा रहा है,बाद कड़वी है मगर आपको किसी दूसरे ने नही बल्कि आपको कमज़ोर किया आपकी अना ने,आपकी लापरवाही ने, आपकी तरबियत ने और रही सही कसर पूरी की है मुनआफ़ीक़ो ने।

इस दुनिया मे हर शख्स उतना ही परेशान है,
जितना उसकी नजर मे दुनिया की अहमियत।

मगरिब् को असल खतरा यह है के कहीँ लोग इस्लाम की तरफ न देखने लगे वह इसलिए के हर रोज यूरोप मे आलिम, मुफक्कीर्, फलसाफि, मुवास्सिर् कुरान व् हदीस पढ़ कर इस्लाम कुबूल कर रहा है....  लेकिन मुस्लिम घरानो मे बे हया, बेशर्म और बे गैरत बनने को ही असल तरक्की समझा जा रहा है। अगर हम अंग्रेजी कल्चर (मागरिबि ) के पीछे पीछे चलते रहे तो तबाही व् बर्बादी हमारे घरों का रूख जरूर करेगी। अगर कौम के लोग कुर्सी, पैसे और इक्तदार  के लिए दिन और तहजीब का मज़ाक बनाने और मुस्लिम खवातीन अंग्रेजी भेड़ियों के बहकावे मे गुमराह होती रही तो आने वाली नस्ल भेड़िया से ज्यादा डरपोक और खिंजीर से भी ज्यादा बे हया बन जायेगी।

औरत यमन से मदीना का सफर करे, खूबसूरत और जवान हो, सोने चंदियो के गहने से सजी हो मगर उस खातून की तरफ या उसके गहने की तरफ किसी गैर मर्द को आँख उठाकर देखने तक की जसारत् न हो... तो वह हैरत ज़दा होकर पूछे के यह कौन लोग है और यहाँ किस तरह का नेजाम् है तो पता चले के
खलीफा उमर फारूक राजिअल्लाहु अनहु है और यह नेजाम्  " निजाम ए इस्लाम " है।


مسلمانو! جمہوریت تمہارا نظام نہیں ہے۔ یہ جن کا نظام ہے اصول و ضوابط، احکام اور مرضی بھی انہی کی چلے گی۔

عالمی کفری برادری جمہوریت کا بہت پرچار تو بہت کرتی ہے لیکن اس کے ذریعے اسلامی قوتوں کا مستفید ہونا گوارا نہیں کرتے۔ ۱۹۹۲ء میں الجزائر میں اسلامک سالویشن فرنٹ، ۲۰۰۶ء میں فلسطین میں حماس اور ۲۰۱۲ء میں مصر میں اخوان المسلمون الیکشن جیتے یا جمہوریت کے راستے اقتدار میں پہنچے تو وہاں امریکا اور مغربی ممالک نے فوجی عناصر کے ہاتھوں جمہوریت کی بساط لپیٹ دی تھی۔ اہلِ مغرب کو معلوم ہے کہ ہماری تہذیب کا سرچشمہ ہمارا دین اسلام ہے۔ اس لیے ان کی توپوں کا رُخ ہمارے دین کی طرف ہے اور خلافت و شریعت تو درکنار جمہوریت کے راستے سے بھی اسلامی نظام نافذ ہونا انہیں شدید ناگوار گزرتا ہے۔

جمہوریت اور مغربی تہذیب نے "دین" کی جگہ لے لی ہے :

✦ سیاست، معیشت اور معاشرت میں کوئی قوم جن اصولوں اور جس نظام پر چلتی ہے وہی اس کا "دین" ہوتا ہے۔

افراد اور قوموں کی اپنی کوئی نہ کوئی تہذیب ہوتی ہے جس سے ان کی بہت گہری وابستگی ہوتی ہے۔ پھر اس تہذیب کا کسی نظام سے بھی بڑا گہرا تعلق ہوتا ہے۔ اس لیے کہیں کہیں تہذیب سے مذہب سے بھی بڑھ کر جذباتی تعلق ہوتا ہے۔

اِس وقت مغربی تہذیب کی یہی مثال ہے، جس کا نظامِ جمہوریت سے گہرا تعلق ہے اور اس نے مذہب و دین کی جگہ لے لی ہے۔ اہلِ مغرب مذہب سے کہیں زیادہ اپنی تہذیب کے بارے میں حساس ہوتے ہیں۔ انہوں نے سیاست، معیشت اور معاشرت میں کسی نہ کسی مذہب کی جگہ "جمہوری و مغربی تہذیب کا دین" نافذ کر رکھا ہے اور ساری دنیا پر اسی دجالی نظام و تہذیب کا غلبہ دیکھنا چاہتے ہیں۔

جس طرح کسی بادشاہ کی آمد سے پہلے اس کے غلام یا کارندے اس کی آمد کا اعلان کرتے ہیں، اسی طرح دجال کے خروج سے پہلے اس کے ایجنٹ (اقوامِ متحدہ اور مغربی ممالک) اس کی تہذیب برپا کرکے اس کی آمد کا شور مچا رہے ہیں۔

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Kaise Sanpo (Snakes) ko marna Jayez hai, Zahrile Saanpo ki Pehchan kya hai?

Kin Saanpo (Snakes) ko Marna chahiye aur kise nahi?

Agar koi Saanp hame nuksan Pahuchaye to kya Use Qatal karna Jayez hai?


السَّلاَمُ عَلَيْكُمْ وَرَحْمَةُ اللهِ وَبَرَكَاتُهُ

سانپوں کو اُن کی طرف سے انتقام لیے جانے کے خوف سے قتل نہ کرنا :
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عبداللہ ابن مسعود رضی اللہ عنہ ُ کا کہنا ہے کہ رسول اللہ صلی اللہ علیہ وعلی آلہ وسلم نے اِرشاد فرمایا ﴿ إِقتلوا الحیَّات کلَّھُن ، فَمَن خَافَ ثأرَھُنَّ فَلَیس مِنّا ::: سب سانپوں(چھپکلیوں وغیرہ)کوقتل کرو اور جو اُن کے انتقام سے ڈرا(اور اِس ڈر کی وجہ سے اُن کو قتل نہ کیا) تو وہ ہم میں سے نہیں ﴾سنن أبو داؤد/حدیث 5238/أبواب السلام/باب33 باب فی قتل الحیات،سُنن النسائی/حدیث 3193/کتاب الجہاد/باب 48،صحیح الجامع الصغیر و زیادتہ /حدیث 1149/المشکاۃ 4140 ،
عبداللہ ابن عباس رضی اللہ عنہماسے روایت ہے کہ رسول اللہ صلی اللہ علیہ وعلی آلہ وسلم نے اِرشاد فرمایا ﴿ مَا سَالَمْنَاهُنَّ مُنْذُ حَارَبْنَاهُنَّ وَمَنْ تَرَكَ شَيْئًا مِنْهُنَّ خِيفَةً فَلَيْسَ مِنَّا:::جب سےہم نےاُن(یعنی سانپوں)کےساتھ لڑائی شروع کی ہے ہم نے اُنہیں سلامتی نہیں دی جِس نے اُن(سانپوں)کو (اُنکے انتقام کے)ڈر کی وجہ سےقتل نہ کیا تو وہ ہم میں سے نہیں ﴾
[ سنن أبی داؤد/حدیث5237/کتاب الادب /أبواب السلام/ باب باب فی قتل الحیات ، اور امام ابو داؤد رحمہ ُ اللہ کی اس روایت کو امام الالبانی رحمہ ُ اللہ نے صحیح قرار دِیا ،]

أبو ھریرہ رضی اللہ عنہ ُ و أرضاہ ُ سے روایت ہےکہ رسول اللہﷺ نے فرمایا
﴿ مَا سَالَمْنَاهُنَّ مُنْذُ حَارَبْنَاهُنَّ وَمَنْ تَرَكَ شَيْئًا مِنْهُنَّ خِيفَةً فَلَيْسَ مِنَّا
جب سےہم نےاُن(یعنی سانپوں)کےساتھ لڑائی شروع کی ہے ہم نے اُنہیں سلامتی نہیں دی جِس نے اُن(سانپوں)کو (اُنکے انتقام کے)ڈر کی وجہ سےقتل نہ کیا تو وہ ہم میں سے نہیں ﴾
تعلیقات الحسان علیٰ صحیح ابن حبان/حدیث5615/کتاب الحَظر و الإِباحۃ / باب 4 ، سنن أبی داؤد/حدیث5250/کتاب الادب /أبواب السلام/ باب باب فی قتل الحیات ، ، امام الالبانی رحمہُ اللہ نے امام ابو دواد رحمہُ اللہ کی روایت کو حسن صحیح قرار دِیا ،
إِمام الالبانی رحمہُ اللہ نےامام ابن حبان رحمہُ اللہ کی اِس روایت کو حسن اور گواہ کےطورپرصحیح کہا ہے،

◉ فقہ الحدیث ::: حدیث کی تشریح اور أحکام​ :
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رسول اللہﷺ کی ہر بات اُن کی اُمت کے لیے سبق رکھتی ہے اور خاص طور پر عقیدے کی اِصلاح کے لیے خاص مفہوم رکھتی ہے ، اُوپر بیان کی گئی دونوں أحادیث شریفہ میں رسول اللہﷺ نے ایک شرکیہ عقیدے کا اِنکار فرمایا ہے ، اور اُس کو رَد فرماتے ہوئے اپنی اُمت کے عقیدے کی درستگی کے لیے یہ اِرشاد فرمایاہے
﴿ فَمَن خَاف ثأرھُنَّ فَلَیس مِنّا
اور جو اُن کے انتقام سے ڈرا (اور اِس ڈر کی وجہ سے اُنکو قتل نہ کیا) تو وہ ہم میں سے نہیں﴾

اور﴿مَن تَرکَ قَتل شيء مِنھُنَّ خِیفَۃً فَلیس مِنا
جِس نےاُن(سانپوں)کو(اُنکے انتقام کے)ڈر کی وجہ سےقتل نہ کیا تو وہ ہم میں سے نہیں ﴾

یہ وضاحتیں اِس لیے بیان فرمائیں کہ اُس وقت کے معاشرے میں یہ عقیدہ پایا جاتا تھا کہ سانپ کو مارنے سے اُس سانپ کے رشتہ دار مارنے والے سے انتقام لیتے ہیں ، اور اِس عقیدے کی وجہ سے لوگ سانپوں کو مارنے سے ڈرتے تھے ، اور یہ بات آج بھی ہے ، ہمارے معاشرے میں اکثرزبانوں،اور کتابوں میں اِس قِسم کی کہانیاں ملتی ہیں جو اِس عقیدے کی غماز ہوتی ہیں ، اللہ تعالیٰ ہم سب کو حق جاننے اُسے قبول کرنے اور اُس پر عمل کرنے کی توفیق عطاء فرمائے اور اُسی پر ہمارا خاتمہ فرمائے ،
اوپر بیان کی گئی أحادیث میں ہر قِسم کےسانپوں کو قتل کرنے کا حُکم ملتا ہے ، اور چند دوسری أحادیث میں دو قسم کے سانپوں کے لیے الگ حُکم ملتا ہے ،

⓵ جِن میں سے ایک قِسم کے سانپ کو مارنےسے منع کیا گیا،لہذا اِس معاملے میں یہ بات یاد رکھنے کی ہے کہ ہر قِسم کے سانپوں میں سے ایک قِسم کے سانپوں کو نہیں مارا نہیں جائے گا ،
⓶ اور ایک قِسم کے سانپوں کو مارنے سے پہلے اُن سانپوں کو تنبیہ(warning)کی جائے گی ،

◉ کِس قِسم کے سانپوں کو مارنے کی ممانعت ہے :
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❶ اِیمان والوں کی والدہ محترمہ عائشہ رضی اللہ عنہا سے روایت ہے کہ

أَنَّ رَسُولَ اللَّهِ -صلى الله عليه وسلم- نَهَى عَنْ قَتْلِ حَيَّاتِ الْبُيُوتِ إِلاَّ الأَبْتَرَ وَذَا الطُّفْيَتَيْنِ فَإِنَّهُمَا يَخْطَفَانِ - أَوْ قَالَ يَطْمِسَانِ - الأَبْصَارَ وَيَطْرَحَانِ الْحَمْلَ مِنْ بُطُونِ النِّسَاءِ وَمَنْ تَرَكَهُمَا فَلَيْسَ مِنَّا::: رسول اللہ صلی اللہ علیہ وعلی آلہ وسلم نے گھروں میں پائے جانے والے جِنَّان کو قتل کرنے سے منع فرمایا ،سوائے اُس کے جس کی دُم بہت چھوٹی سی ہوتی ہے اور وہ جِس کی کمر پر دو دھاریاں بنی ہوتی ہیں،کیونکہ یہ (دونوں) بینائی کو چھین لیتے ہیں ،یا فرمایا کہ ، مٹا دیتے ہیں اور عورتوں کے پیٹ سے حمل گرا دیتے ہیں اور بینائی ختم کر دیتے ہیں ۔

[ مُسند أبی یعلی الموصلی/حدیث4341/مُسند عائشہ رضی اللہ عنہا کی دوسری حدیث ، مُسند أحمد/حدیث24511/حدیث عائشہ رضی اللہ عنھا کی پہلی حدیث ، اِس حدیث کے بارےمیں إِمام أبوبکر الہیثمی نے کہا"""أحمد کی روایت کے راوی صحیح روایات والے ہیں """، بحوالہ المجمع الزوائد / کتاب الصید و الذبائح / باب النھی عن قتل عوامر البیوت /باب32 ۔]

❷ سعید ابن المسیب رحمہُ اللہ کا کہنا ہے کہ ایک دفعہ ایک عورت ()اِیمان والوں کی والدہ محترمہ امی جان عائشہ رضی اللہ عنہا و أرضاھا کے پاس حاضر ہوئی تو ان کے ہاتھ میں ایک نیزہ تھا ، اُس نے پوچھا ، اے ایمان والوں کی امی جان ، آپ اِس سے کیا کرتی ہیں ، تو انہوں نے اِرشاد فرمایا""" یہ چھپکلیوں( کو قتل کرنے کے لیے ہے ) کے لیے ہے """، کیونکہ نبی کریمﷺ نے ہمیں بتایا تھا ۔

أَنَّهُ لَمْ يَكُنْ شَىْءٌ إِلاَّ يُطْفِئُ عَلَى إِبْرَاهِيمَ عَلَيْهِ السَّلاَمُ إِلاَّ هَذِهِ الدَّابَّةُ، فَأَمَرَنَا بِقَتْلِهَا ، وَنَهَى عَنْ قَتْلِ الْجِنَّانِ إِلاَّ ذَا الطُّفْيَتَيْنِ وَالأَبْتَرَ فَإِنَّهُمَا يُطْمِسَانِ الْبَصَرَ وَيُسْقِطَانِ مَا فِى بُطُونِ النِّسَاءِ::: کہ جب ابراہیم (علیہ السلام)کو آگ میں ڈالا گیا تو (جائے وقوع کے قریب )زمین میں پر چلنے والا (رینگنے والا)کوئی ایسا جانور نہ تھا جس نے آگ بھجائی (کی کوشش)نہ (کی)ہو ، سوائے چھپکلی کے، یہ ابراہیم علیہ السلام پر آگ (کو تیز کرنے کے لیے) پھونکتی رہی، لہذا رسول اللہ صلی اللہ علیہ وعلی آلہ وسلم نے اسے قتل کرنے کا حکم فرمایا، اور ہمیں جِنّان کو قتل کرنے سے منع فرمایا ، سوائے دو دھاری والے کے ، اور چھوٹی دُم والے کے کیونکہ یہ دونوں بینائی ختم کر دیتے ہیں اور جو کچھ عورتوں کے پیٹ میں ہوتا ہے وہ گرا دیتے ہیں ۔
[ سُنن النسائی /حدیث/2844کتاب الحج/باب85،امام الالبانی رحمہ ُ اللہ نے صحیح قرار دِیا ]

❸ ابن ابی مُلیکہ رحمہُ اللہ کا کہنا ہے کہ ، عبداللہ ابن عُمر رضی اللہ عنہُما و أرضاہُما سب ہی سانپوں کو قتل کر دِیا کرتے تھے ، پھر انہوں نے ایسا کرنے سے منع کر دِیا اور(منع کرنے کا سبب بتاتے ہوئے )فرمایا :

إِنَّ النَّبِيَّ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ هَدَمَ حَائِطًا لَهُ فَوَجَدَ فِيهِ سِلْخَ حَيَّةٍ فَقَالَ انْظُرُوا أَيْنَ هُوَ فَنَظَرُوا فَقَالَ اقْتُلُوهُ
نبی کریمﷺ نے اُن کے باغ کی دیوار گرائی تو اُس (دیوار) میں ایک سانپ کی اتاری ہوئی کھال دیکھی ، تو اِرشاد فرمایا ، دیکھو کہ سانپ کہاں ہے ؟ ، صحابہ نے سانپ دیکھ لیا ، تو رسول اللہﷺ اِرشاد فرمایا ، اُسے قتل کر دو
اس لیے میں سانپوں کو قتل کیا کرتا تھا ، پھر (ایک دفعہ)میری ملاقات ابو لبابہ (البدری رضی اللہ عنہ ُ )سے ہوئی تو انہوں نے مجھے خبر دی کہ ، رسول اللہﷺ نے اِرشاد فرمایا
لَا تَقْتُلُوا الْجِنَّانَ إِلَّا كُلَّ أَبْتَرَ ذِي طُفْيَتَيْنِ فَإِنَّهُ يُسْقِطُ الْوَلَدَ وَيُذْهِبُ الْبَصَرَ فَاقْتُلُوهُ
جِنّان کو قتل مت کرو، سوائے اس کے جس کی دُم کٹی ہوتی ہے ، (یا اتنی چھوٹی ہوتی ہے گویا کہ کٹی ہوئی ہو)،اور سوائے اُس کے جِس کی کمر پر دو دھاریاں نبی ہوتی ہیں ، کیونکہ یہ (دونوں قِسم کے سانپ)حمل ضائع کر دیتے ہیں ، اور بینائی ختم کر دیتے ہیں.

[ صحیح البُخاری/حدیث3311/کتاب بدء الخلق/باب 15، صحیح مُسلم/ حدیث 2233/کتاب قتل الحیات وغیرہ/پہلا باب، اُوپرلکھے ہوئے الفاظ صحیح البُخاری کی روایت کے ہیں ]

اور سنن ابی داؤد میں اس کے یہ الفاظ ہیں کہ

نَهَى عَنْ قَتْلِ الْجِنَّانِ الَّتِى تَكُونُ فِى الْبُيُوتِ إِلاَّ أَنْ يَكُونَ ذَا الطُّفْيَتَيْنِ وَالأَبْتَرَ فَإِنَّهُمَا يَخْطِفَانِ الْبَصَرَ وَيَطْرَحَانِ مَا فِى بُطُونِ النِّسَاءِ

رسول اللہ (صلی اللہ علیہ وعلی آلہ وسلم) نے جِنّان جو کہ گھروں میں ہوتے ہیں ، انہیں قتل کرنے سے منع فرمایا ، سوائے اس کے کہ وہ جِنّان دو دھاری والوں میں سے ہو ، اور چھوٹی دُم والا ہو ، کیونکہ یہ دونوں (قِسم کے سانپ)بینائی چھین لیتے ہیں ، اور جو کچھ عورتوں کے پیٹ میں ہوتا ہے نکال دیتے ہیں [ سُنن ابو داؤد /حدیث /5255کتاب الادب /باب175 ]

اس حدیث شریف سے ہمیں یہ بھی پتہ چلا کہ پہلے ہر قِسم کے سانپوں کو مارنے کا عام حکم فرمایا گیا تھا ، پھر اُس حکم میں تبدیلی فرما کر اسے مُقیّد فرما دِیا گیا،
إِمام ابن حجر العسقلانی رحمہُ اللہ نے فتح الباری شرح صحیح البُخاری میں لکھا :::

""" جِنَّان ::: جان کی جمع ہے ، اور جان چھوٹےسے باریک ہلکے وزن والے سانپ کو کہتے ہیں ، اور یہ بھی کہا جاتا ہے کہ جان وہ سانپ ہوتا ہے جو باریک اور سفید رنگ کا ہوتا ہے""" ،
إِمام الترمذی رحمہُ اللہ نے ابن المبارک رحمہُ اللہ کا قول نقل کیاہے کہ """جان وہ سانپ ہے جو چاندی کے طرح (چمکدار رنگت والا)ہوتا ہے ،اور اُسکی چال سیدہی ہوتی ہے"""،
عام طور پر
( جِنّان ) سے مُراد چھوٹے سانپ ہوتے ہیں ،
( أبتر ) اُس سانپ کو کہا جاتا ہے جِس کی دُم چھوٹی سی ہوتی ہے ، اور عموماً اُس کی رنگت نیلی سی ہوتی ہے،
( ذی طفیتین ) وہ سانپ جِس کی پُشت پر دو سُفید یا سُفیدی مائل دھاریاں ہوتی ہیں،

مذکورہ بالا سب احادیث شریفہ کے مطالعہ سے یہ مسئلہ واضح ہوا کہ گھروں میں دِکھائی دینے والے سانپوں میں سے دودھاری والے ، اور چھوٹی دُم والے سانپوں کو فوراً قتل کر دیا جانا چاہیے کیونکہ یہ سانپ دو خوفناک کام کرتے ہیں ،
⓵بینائی ختم کر دیتے ہیں ، اور ،
⓶ حاملہ عورتوں کا حمل گِرا دیتے ہیں

اس کے بعد گھروں میں دِکھائی دینے والے سانپوں کو قتل کرنے کے حکم میں سے ایک احتیاطی کاروائی ، کے حکم کے بارے میں مطالعہ کریں گے ، وہ احتیاطی کاروائی گھروں میں دِکھائی دینے والے سانپوں کو قتل کرنے سے پہلے انہیں تنبیہ کرنے کی ہے ،

کن سانپوں کو تنبیہ کی جائے گی :

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یہاں سے آگے چلنے سے پہلے میں یہ مناسب سمجھتا ہوں کہ کچھ ایسے لوگوں کے شبہات کا جواب دیا جائے جو لوگ اللہ اور اس کے رسول صلی اللہ علیہ وعلی آلہ وسلم ، اور بالخصوص رسول اللہ صلی اللہ علیہ وعلی آلہ وسلم کے فرامین مبارکہ کو اپنی ناقص اور جہالت زدہ عقلوں کے مطابق سمجھنے کی کوشش کرتے ہیں ، اور اس میں علمیت کا رنگ بھرنے کے لیے انہیں جدید سائنسی علوم کی معلومات کے مطابق پرکھنے کی کوشش کرتے ہیں ،
اور اگر اپنی جہالت کی وجہ سے ایسی کوئی معلومات حاصل نہ کر سکیں تو معاذ اللہ صحیح ثابت شدہ احادیث شریفہ کا تو انکار ہی کر ڈالتے ہیں اور قران کریم کی آیات مبارکہ کی باطل تاویلات کرنے لگتے ہیں ،
جبکہ قران کریم اور صحیح ثابت شدہ احادیث شریفہ سائنسی معلومات کا ذریعہ نہیں ہیں ، اور ان پر """ ایمان بالغیب """ رکھنے کا حکم ہے ، لیکن اس کی توفیق ہر کسی کو نصیب نہیں ہوتی ، خاص طور پر کسی ایسے کو تو نہیں ہوتی جو اپنی عقل ، ذاتی سوچ و فِکر اور مادی علوم کو اللہ اور اس کی خلیل محمد صلی اللہ علیہ وعلی آلہ وسلم کے اقوال اور افعال کی جانچ کی کسوٹی بناتا ہے ،
ایسے ہی جاھلوں میں سے کچھ اِن صحیح ثابت شدہ احادیث پر بھی اعتراض کرتے ہیں ، کیونکہ ان کی عقلوں میں یہ بات نہیں آ پاتی کہ کوئی سانپ کس طرح کسی کی بینائی ضائع کر سکتا ہے؟؟؟ اور کس طرح کسی حاملہ عورت کا حمل گرا سکتا ہے ؟؟؟
میں یہاں کچھ زیادہ تفصیلات ذِکر نہیں کروں گا ، بس اتنا ہی کہنا کافی ہے کہ جدید علوم میں سے جانوروں کی صِفات اور عادات سے متعلق علم میں یہ چیز معروف ہے کہ سانپوں میں ایسے بھی ہیں جو کافی فاصلے سے اپنا زہر فوارے کی صورت میں پھینکتے ہیں ، اور اگر وہ زہر کسی کی آنکھ میں داخل ہو جائے ، اور مناسب وقت کے اندر اندر اس کا کوئی علاج نہ کیا جائے تو اُس آنکھ کی بینائی ہمیشہ کے لیے جاری رہتی ہے ،
ایسے سانپوں کو عام طور پر """Spitting Snakes, Rinkhals cobra, Ringhals cobra """وغیرہ کہا جا تا ہے ، اور ان کی کئی مختلف اقسام بتائی جاتی ہیں ،
ان معلومات کو انٹر نیٹ پر بھی بڑی آسانی سے دیکھا جا سکتا ہے
عقل پرستوں کی جہالت اگر اس کا علم نہیں رکھتی تو یہ ان کی بد عقلی ، اور جہالت کی ایک اور کھلی نشانی ہے ، نہ کہ صحیح ثابت شدہ احادیث شریفہ میں کسی کمی کی ،
بلکہ صحیح ثابت شدہ احادیث مبارکہ میں ایسی باتوں کا علم عطا فرمانا جن کا علم اس وقت کے انسانی معاشرے میں نہ تھا، اور پھر وقت کے ساتھ ساتھ اس علم کے لیے جدید علوم میں سے گواہیوں کا میسر ہونا اس بات کے دلائل میں سے ہے کہ احادیث شریفہ اللہ کی طرف سے وحی کی بنا پر رسول اللہ صلی اللہ علیہ وعلی آلہ وسلم کی ز بان مبارک پر جاری ہوتی تھیں ، اور یہ ہی وہ وحی ہے ، جسے ہمارے عُلماء " وحی غیر متلو " ، یعنی تلاوت نہ کی جانے والی وحی کہتے ہیں، اور جِس کی گواہی خود اللہ جلّ و علا نے یہ فرما کر دی کہ :
وَمَا يَنْطِقُ عَنِ الْهَوَى O إِنْ هُوَ إِلَّا وَحْيٌ يُوحَى O عَلَّمَهُ شَدِيدُ الْقُوَى
(ہم نے بھیجے ) اور وہ (محمد صلی اللہ علیہ وعلی آلہ وسلم)اپنی خواہش کے مطابق بات نہیں فرماتے O اُن کی بات تو صِرف اُن کی طرف کی گئی وحی ہےOجو وحی انہیں بہت زیادہ قوت والے (فرشتے جبریل)نے سکھائی
[ سُورہ النجم (53)/آیات3،4،5 ]

پس جو اپنی بد دماغی کو حدیث ء رسول صلی اللہ علیہ وعلی آلہ وسلم کی پرکھ کی کسوٹی بناتا ہے وہ عملی طور پر اللہ کے اس فرمان کا انکار کرنے والا ہے ، اور قران کا مخالف ہے ،
اِن احادیث شریفہ کی شرح کرنے والے ہمارے اِماموں رحمہم اللہ نے اِن کے بارے میں بہت صدیوں سے بہت شاندار قِسم کی علمی معلومات مہیا کر رکھی ہیں ، اگر میں اُن سب کا ذِکر یہاں کرنے لگوں تو بات کافی لمبی ہو جائے گی ، صِرف ایک امام ربانی ، اِمام ابن القیم الجوزیہ رحمہُ اللہ کی پیش کردہ شرح میں سے ایک اقتباس پڑھتے ہے۔

وَلَا رَيْبَ أَنّ اللّهَ سُبْحَانَهُ خَلَقَ فِي الْأَجْسَامِ وَالْأَرْوَاحِ قُوًى وَطَبَائِعَ مُخْتَلِفَةً وَجَعَلَ فِي كَثِيرٍ مِنْهَا خَوَاصّ وَكَيْفِيّاتٍ مُؤَثّرَةً وَلَا يُمْكِنُ لِعَاقِلٍ إنْكَارُ تَأْثِيرِ الْأَرْوَاحِ فِي الْأَجْسَامِ فَإِنّهُ أَمْرٌ مُشَاهَدٌ مَحْسُوسٌ وَأَنْتَ تَرَى الْوَجْهَ كَيْفَ يَحْمَرّ حُمْرَةً شَدِيدَةً إذَا نَظَرَ إلَيْهِ مِنْ يَحْتَشِمُهُ وَيَسْتَحِي مِنْهُ وَيَصْفَرّ صُفْرَةً شَدِيدَةً عِنْدَ نَظَرِ مَنْ يَخَافُهُ إلَيْهِ وَقَدْ شَاهَدَ النّاسُ مَنْ يَسْقَمُ مِنْ النّظَرِ وَتَضْعُفُ قُوَاهُ وَهَذَا كُلّهُ بِوَاسِطَةِ تَأْثِيرِ الْأَرْوَاحِ وَلِشِدّةِ ارْتِبَاطِهَا بِالْعَيْنِ يُنْسَبُ الْفِعْلُ إلَيْهَا وَلَيْسَتْ هِيَ الْفَاعِلَةَ وَإِنّمَا التّأْثِيرُ لِلرّوحِ وَالْأَرْوَاحُ مُخْتَلِفَةٌ فِي طَبَائِعِهَا وَقُوَاهَا وَكَيْفِيّاتِهَا وَخَوَاصّهَا فَرُوحُ الْحَاسِدِ مُؤْذِيَةٌ لِلْمَحْسُودِ أَذًى بَيّنًا وَلِهَذَا أَمَرَ اللّهُ - سُبْحَانَهُ - رَسُولَهُ أَنْ يَسْتَعِيذَ بِهِ مِنْ شَرّهِ وَتَأْثِيرُ الْحَاسِدِ فِي أَذَى الْمَحْسُودِ أَمْرٌ لَا يُنْكِرُهُ إلّا مَنْ هُوَ خَارِجٌ عَنْ حَقِيقَةِ الْإِنْسَانِيّةِ وَهُوَ أَصْلُ الْإِصَابَةِ بِالْعَيْنِ فَإِنّ النّفْسَ الْخَبِيثَةَ الْحَاسِدَةَ
تَتَكَيّفُ بِكَيْفِيّةٍ خَبِيثَةٍ وَتُقَابِلُ الْمَحْسُودَ فَتُؤَثّرُ فِيهِ بِتِلْكَ الْخَاصّيّةِ وَأَشْبَهُ الْأَشْيَاءِ بِهَذَا الْأَفْعَى فَإِنّ السّمّ كَامِنٌ فِيهَا بِالْقُوّةِ فَإِذَا قَابَلَتْ عَدُوّهَا انْبَعَثَتْ مِنْهَا قُوّةٌ غَضَبِيّةٌ وَتَكَيّفَتْ بِكَيْفِيّةٍ خَبِيثَةٍ مُؤْذِيَةٍ فَمِنْهَا مَا تَشْتَدّ كَيْفِيّتُهَا وَتَقْوَى حَتّى تُؤَثّرَ فِي إسْقَاطِ الْجَنِينِ وَمِنْهَا مَا تُؤَثّرُ فِي طَمْسِ الْبَصَرِ كَمَا قَالَ النّبِيّ صَلّى اللّهُ عَلَيْهِ وَسَلّمَ فِي الْأَبْتَرِ وَذِي الطّفْيَتَيْنِ مِنْ الْحَيّاتِ إنّهُمَا يَلْتَمِسَانِ الْبَصَرَ وَيُسْقِطَانِ الْحَبَل
وَمِنْهَا مَا تُؤَثّرُ فِي الْإِنْسَانِ كَيْفِيّتُهَا بِمُجَرّدِ الرّؤْيَةِ مِنْ غَيْرِ اتّصَالٍ بِهِ لِشِدّةِ خُبْثِ تِلْكَ النّفْسِ وَكَيْفِيّتِهَا الْخَبِيثَةِ الْمُؤَثّرَةِ وَالتّأْثِيرُ غَيْرُ مَوْقُوفٍ عَلَى الِاتّصَالَاتِ الْجِسْمِيّةِ كَمَا يَظُنّهُ مَنْ قَلّ عِلْمُهُ وَمَعْرِفَتُهُ بِالطّبِيعَةِ وَالشّرِيعَةِ بَلْ التّأْثِيرُ يَكُونُ تَارَةً بِالِاتّصَالِ وَتَارَةً بِالْمُقَابَلَةِ وَتَارَةً بِالرّؤْيَةِ وَتَارَةً بِتَوَجّهِ الرّوحِ نَحْوَ مَنْ يُؤَثّرُ فِيهِ وَتَارَةً بِالْأَدْعِيَةِ وَالرّقَى وَالتّعَوّذَاتِ وَتَارَةً بِالْوَهْمِ وَالتّخَيّلِ ، وَنَفْسُ الْعَائِنِ لَا يَتَوَقّفُ أَعْمَى فَيُوصَفُ لَهُ الشّيْءُ فَتُؤَثّرُ نَفْسُهُ فِيهِ وَإِنْ لَمْ يَرَهُ وَكَثِيرٌ مِنْ الْعَائِنِينَ يُؤَثّرُ فِي الْمَعِينِ بِالْوَصْفِ مِنْ غَيْرِ رُؤْيَةٍ وَقَدْ قَالَ تَعَالَى لِنَبِيّهِ { وَإِنْ يَكَادُ الّذِينَ كَفَرُوا لَيُزْلِقُونَكَ بِأَبْصَارِهِمْ لَمّا سَمِعُوا الذّكْرَ } [سُورۃ الْقَلَمُ /آیۃ 51 ] .
وَقَالَ { قُلْ أَعُوذُ بِرَبّ الْفَلَقِ مِنْ شَرّ مَا خَلَقَ وَمِنْ شَرّ غَاسِقٍ إِذَا وَقَبَ وَمِنْ شَرّ النّفّاثَاتِ فِي الْعُقَدِ وَمِنْ شَرّ حَاسِدٍ إِذَا حَسَدَ }،
فَكُلّ عَائِنٍ حَاسِدٌ وَلَيْسَ كُلّ حَاسِدٍ عَائِنًا فَلَمّا كَانَ الْحَاسِدُ أَعَمّ مِنْ الْعَائِنِ كَانَتْ الِاسْتِعَاذَةُ مِنْهُ اسْتِعَاذَةً مِنْ الْعَائِنِ وَهِيَ سِهَامٌ تَخْرُجُ مِنْ نَفْسِ الْحَاسِدِ وَالْعَائِنِ نَحْوَ الْمَحْسُودِ وَالْمَعِينِ تُصِيبُهُ تَارَةً وَتُخْطِئُهُ تَارَةً

ترجمہ : اس میں کوئی شک نہیں کہ اللہ سبحانہ ُ وتعالی نے (مخلوق کے ) جسموں اور روحوں میں مختلف طبیعتیں اور قوتیں بنائی ہیں ، اور ان میں سے بہت سی (طبیعتیں اور قوتیں عام معمول سے دُور رکھتے ہوئے) خاص اور اثر کرنے والی بنائی ہیں ،کسی (درست ) عقل والے کے لیے اس بات کا امکان نہیں ہے کہ وہ روح کے ( کسی دوسرے ) اجسام میں اثر ہونے کا انکار کرے ، کیونکہ یہ ایسا معاملہ ہے جو مشاھدہ میں ہے اور احساس کی حدود میں ہے ، پس تم دیکھتے ہو کہ جب (کوئی ) کسی ایسے شخص جو دیکھے جِس سے وہ شرم کرتا ہو، جس کی حیاء کرتا ہو تو دیکھنے والا کا چہرہ سرخ ہو جاتا ہے (خاص طور پر مؤنث کے چہرے پر یہ اثر زیادہ نمایاں ہوتا ہے ، بشرطیکہ وہ حیا ء والی ہو ،فطرت کی اس خو بصورت دل نشین صِفت سے خود کو آزاد کرنے والی نہ ہو )اور کہ جب (کوئی ) کسی ایسے شخص جو دیکھے جِس سے وہ ڈرتا ہو ، تو دیکھنے والا کا چہرہ پیلا ہو جاتا ہے ، اور یہ بھی لوگوں کے مشاھدے میں ہے کہ لوگ نظر کی وجہ سے بیمار پڑ جاتے ہیں ، اور کمزور ہو جاتے ہیں ، یہ سب کچھ روح کی تاثیر کے ذریعے ہوتا ہے ،

اور رُوح کا ربط آنکھ کے ساتھ بہت زیادہ ہونے کی وجہ سے رُوح کی تاثیر کو آنکھ سے منسوب کیا گیا ، جب کہ (درحقیقت ) آنکھ بذات خود اس قسم کی تاثیر کرنے والی چیز نہیں ، بلکہ تاثیر رُوح کی ہوتی ہے ، اور رُوحیں اپنی طبعیتوں ، قوتوں، کیفیات اور خصوصیات میں (ایک دوسرے سے)مختلف ہوتی ہیں ، پس حسد کرنے والی رُوح محسود (جس سے حسد کیا جاتا ہے)کے لیے واضح طور پر نقصان پہنچانے والی ہوتی ہے ، اِسی لیے اللہ سُبحانہ ُ نے اپنے رسول (صلی اللہ علیہ وعلی آلہ وسلم)کو یہ حکم فرمایا کہ وہ( صلی اللہ علیہ وعلی آلہ وسلم)حسد کرنے والوں سے اللہ کی پناہ طلب فرمایا کریں ،
حسد کرنے والے کی محسود پر نقصان دہ تاثیر ایسا معاملہ ہے جس سے صِرف وہی انکار کر سکتا ہے جو انسانیت کی حقیقت (سمجھنے کی عقل و فراست) سے خارج ہو ، اور یہی (رُوحوں کی تاثیر) نظر لگنے کی اصلیت ہے ، برے نفس ، حسد کرنے والے ہوتے ہیں ایسے نفوس بری کیفیات کے ہی حامل ہوتے ہیں ، اور (جب) یہ محسودکے سامنے آتے ہیں تو اس بری کیفیت کا محسود پر اثر ہوتا ہے ، اور ایسے نفوس کے جیسی چیزوں میں سب سے زیادہ قریبی چیز سانپ ہے ، اس کا زہر اس میں قوت کے ساتھ خفیہ رہتا ہے ، اور جب یہ سانپ اپنے دشمن کے سامنے آتا ہے تو اس کے غصے کی طاقت پھٹ پڑتی ہے ، اور یہ بری اور نقصان دینے والی صِفت سے مغلوب ہو جاتا ہے ، پس ان سانپوں میں سے کچھ تو ایسے ہوتے ہیں جِس کی یہ بری صِفت اس قدر طاقتور ہوجاتی ہے کہ وہ حمل تک گرا دیتے ہیں ، اور ان سانپوں میں سے ایسے بھی ہیں جو بینائی ختم کر دیتے ہیں ، جیسا کہ نبی صلی اللہ علیہ وعلی آلہ وسلم نے اِرشاد فرمایا ہے ، اور ان سانپوں میں سے ایسے بھی ہیں جو اپنے نفس کی برائی کی قوت کی وجہ سے انسانوں پر کسی مادی تعلق (ربط ، اتصال) کے بغیر ہی اپنا اثر کر دیتے ہیں ،اور (یاد رکھیے کہ ایسی ) اثر پذیری کے لیے جسمانی ربط ضرور ی نہیں ہوتا ، جیسا کہ طبعی اور شرعی علوم سے جاھلوں کا خیال ہے ، بلکہ نفوس کا اثر بعض اوقات جمسانی تعلق ہونے سے ہوتا ہے ، تو بعض اوقات صِرف آپنے سامنے ہو جانے سے ہوتا ہے ، اور بعض اوقات صِرف نظر ملنے سے ہو جاتا ہے ، اور بعض اوقات کسی روح کی دوسرے کی طرف توجہ سے (جس کی طرف توجہ کی جائے ) اثر ہو جاتا ہے ، اور بعض اوقات دعاؤں سے، اور بعض اوقات جھاڑ پھونک (دم وغیرہ) کرنے سے، اور بعض اوقات (شر اور شریر سے ) پناہ طلب کرنے والے کلمات سے اثر ہوجاتا ہے ، اور (تو اور) بعض اوقات تو صِرف (اپنے خود ساختہ، یا لاشعور کے بنائے ہوئے) وھم اور تخیل سے اثر ہو جاتا ہے، اور نظر لگانے والا نفس کو اندھا پن (بھی ) نہیں روکتا ، کہ اگر کسی (ایسے نفس والے) اندھے کو بھی کسی چیز کے بارے میں بتایا جائے (جس چیز سے وہ حسد کرے ) تو اُس کا( برا ، نظر لگانے والا ) نفس اُس چیز میں اثر کرتا ، اور وہ اُس چیز کو دیکھ نہیں رہا ہوتا ، اور (یہ معاملہ بھی مشاھدے میں ہے کہ)بہت سے نظر لگانے والے ، کسی کو دیکھے بغیر صِرف اُس کے بارے میں کچھ معلومات پا کر ہی اسے نظر کا شکار کر لیتے ہیں ، اور (اسی لیے ، اور اسی چیز کو سمجھاتے ہوئے )اللہ تعالیٰ نے اپنے نبیﷺ سے اِرشاد فرمایا

وَإِنْ يَكَادُ الّذِينَ كَفَرُوا لَيُزْلِقُونَكَ بِأَبْصَارِهِمْ لَمّا سَمِعُوا الذّكْرَ
اور بالکل قریب تھا کہ کافر آپ کو اُن کی نظروں کے ساتھ پِھسلا دیں ، جب انہوں نے (یہ) ذِکر (قران کریم) سُنا [ سُورہ القلم /آیت 51 ]

اور اِرشاد فرمایا ہے :

قُلْ أَعُوذُ بِرَبّ الْفَلَقِ O مِنْ شَرّ مَا خَلَقَ O وَمِنْ شَرّ غَاسِقٍ إِذَا وَقَبَ O وَمِنْ شَرّ النّفّاثَاتِ فِي الْعُقَدِ O وَمِنْ شَرّ حَاسِدٍ إِذَا حَسَدَ

(اے محمد ) کہیے میں صُبح کے رب کی پناہ طلب طلب کرتا ہوں O اُس شر سے جو اُس نے تخلیق فرمایا O اور اندھیری رات کے شر سے جب وہ چھا جائے O اور گانٹھوں (گرہوں) پر پڑھ پڑھ کر پھونکنے والیوں کے شر سے O اور حسد کرنے والےکے شر سے جب وہ حسد کرے
[ سُورہ الفلق ]

پس (اللہ کے اس کلام کی روشنی میں بھی یہ ثابت ہوا کہ) ہر حاسد نظر لگانے والا ہوتا ہے ، اسی لیے نظر لگانے والا حاسدوں کی گنتی میں ہوتا ہے ، لہذا حاسد سے پناہ طلب کرنا ، نظر لگانے والے سے پناہ طلب کرنے کو شامل کر لیتا ہے ، اور نظر ایسا تِیر ہوتی ہے جو حسد کرنے والے نفس میں سے محسود اور نظر کا شکار ہونے والے کی طرف نکلتا ہے ، جو تِیر کبھی تو نشانے پر لگتا ہے اور کبھی نشانہ چُوک جاتا ہے """""، زاد المعاد فی ھدی خیر العباد/ فصل الرّدّ عَلَى مَنْ أَنْكَرَ الْإِصَابَةَ بِالْعَيْنِ اور فصل الْحَاسِدُ أَعَمّ مِنْ الْعَائِنِ۔

پس واضح ہوا کہ کسی مخلوق کا کسی دوسری مخلوق پر مختلف طور پر اثر انداز ہونا اللہ تبارک و تعالیٰ کے فرامین سے ثابت شدہ ہے ، اور ایسی ہی کچھ تاثیر کی خبر رسول اللہ صلی اللہ علیہ و علی آلہ وسلم کی اِن مذکورہ بالا احادیث شریفہ میں دی گئی ہے ،
جس کی تائید اللہ تبارک و تعالیٰ نے جدید علوم کے ذریعے بھی مہیا فرمادی ، اب اس کے بعد بھی اگر کوئی اِن صحیح ثابت شدہ احادیث مبارکہ کاا نکار کرے ، یا ان پر اعتراض کرے تو میں یہی دُعا کرتاہوں کہ اللہ جلّ و علا اُن لوگوں کو ہدایت دے ، اور اگر اللہ تعالیٰ کی مشیئت میں اُن کے لیے ہدایت نہیں ہے تو اللہ جلّ جلالہُ اپنی ساری ہی مخلوق کو اُن لوگوں کے شر سے محفوظ فرما دے ۔

کن سانپوں کو تنبیہ کی جائے گی :
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⓵ عبداللہ ابن عُمر رضی اللہ عنہما و أرضاہُما کا کہناہے کہ ایک دفعہ میں ایک سانپ کو قتل کرنے کی کوشش میں تھا کہ أبو لبابہ (رضی اللہ عنہ ُ ) نے مجھے ایسا کرنےسےمنع کیا ، تو میں نے کہا کہ رسول اللہﷺ نے سانپوں کو قتل کرنے کا حُکم فرمایاہے ، تو أبو لُبابہ(رضی اللہ عنہ ُ) نے کہا
إِنَّهُ نَهَى بَعْدَ ذَلِكَ عَنْ ذَوَاتِ الْبُيُوتِ ، وَهْىَ الْعَوَامِرُ
رسول اللہ صلی اللہ علیہ وعلی آلہ وسلم نے( تمام سانپوں کو مارنےکے حُکم کے)بعد میں گھروں میں رہنے والے عوامر(یعنی گھروںمیں رہنےوالے جِنَّات جو سانپوں کی شکل میں ظاہر ہوتے ہیں)کو قتل کرنےسے منع فرما دیا تھا ۔
[ صحیح البُخاری /حدیث 3298/ کتاب بدء الخلق/باب 14 ]

ایک اضافی فائدہ :
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اس حدیث شریف سے یہ بھی پتہ چلا کہ ہر صحابی رضی اللہ عنہ ُ کو رسول اللہﷺ کی ہر بات کا پتہ نہیں ہوا کرتا تھا، جو کچھ اُس نے خود سے نہ سنا ، اُس کے بارے میں تب ہی جانتا تھا جب اُسے اپنے کسی دوسری صحابی بھائی سے کوئی خبر ملتی ، رضی اللہ عنہم ا جمعین۔

رسول اللہﷺ نے گھروں میں رہنے والے جنّات کو قتل کرنے سے منع کرنے کا سبب بھی بیان فرمایا اور اپنی عادتِ مُبارک کے مُطابق اپنی اُمت پر رحمت و شفقت کرتے ہوئے اُس کی مکمل وضاحت فرمائی ، ملاحظہ فرمایے :

⓶ أبی سعید الخُدری رضی اللہ عنہ ُ سے روایت ہے کہ رسول اللہﷺ نے اِرشاد فرمایا
إِنَّ بِالْمَدِينَةِ نَفَرًا مِنَ الْجِنِّ قَدْ أَسْلَمُوا فَمَنْ رَأَى شَيْئًا مِنْ هَذِهِ الْعَوَامِرِ فَلْيُؤْذِنْهُ ثَلاَثًا فَإِنْ بَدَا لَهُ بَعْدُ فَلْيَقْتُلْهُ فَإِنَّهُ

شَيْطَانٌ::: مدینہ میں کچھ جن مُسلمان ہو چکےہیں ، لہذا جب تم لوگ گھروں میں کوئی سانپ دیکھو تو اُنہیں تین دفعہ تنبیہ کرو ، اگر اِس کے بعد بھی وہ نظر آئے تو اُسے قتل کر دو کیونکہ وہ شیطان ہے .

[ صحیح مُسلم حدیث 2236 ،کتاب السلام/ باب 37 /قتل الحیات و غیرھا کی آخری حدیث ]

اِن أحادیث کی شرح میں لکھا گیا " اگر تین دفعہ تنبیہ کرنے اور گھر سے نکل جانے یا ظاہر نہ ہونے اور نُقصان نہ پہنچانے کا کہہ دینے کے بعد بھی وہ سانپ نظر آئے تو اُسے قتل کیا جائے گا ، کیونکہ یہ بات یقینی ہو جائے گی کہ وہ مسلمان جنوں میں سے نہیں ، لہذا اُس کو قتل کرنا حرام نہیں ، کیونکہ اس کو قتل کرنے کا حق مل گیا ، اِس لیے اللہ تعالیٰ اُس کے رشتہ داروں میں سے کِسی کو بھی ہر گِز یہ موقع نہیں دے گا کہ وہ قتل کرنے والے سے اِنتقام لے.

اِن أحادیث شریفہ کے مفہوم کے بارے میں علماء کی دو رائے ہیں :

⓵ گھروں میں رہنے یا نظر آنے والے سانپوں کو قتل کرنے سے پہلے تنبیہ کرنے کا معاملہ صرف مدینہ کے گھروں کے لیے خاص ہے،

⓶ أحادیث کے عام اِلفاط کے مطابق یہ حُکم تمام دُنیا کے گھروں کے لیے ہے ، رہا معاملہ گھروں سے باہر والے سانپوں کو تو اُن کو فوراً اور ہر حال میں قتل کرنے کا حُکم واضح ہے اور اُس کی شرح میں سب کا اتفاق ہے ، شرح إِمام النووی علیٰ صحیح مُسلم ، فتح الباری شرح صحیح البُخاری ، التمھید لأبن عبدالبَر ۔

یہاں ایک بات کی طرف توجہ دلانا ضروری خیال کرتا ہوں کہ سانپوں کو تنبیہ کرنے کےلیے کوئی خاص اِلفاظ کِسی صحیح حدیث میں نہیں ملتے ، ایک ضعیف یعنی کمزور، نا قابل روایت ہے جِس کے اِلفاظ کو عام طور پر سانپوں کو تنبیہ کرنے کے لیے بطورء سُنّت استعمال کیا جاتا ہے لیکن ایسا کرنا دُرست نہیں کیونکہ یہ روایت رسول اللہ صلی اللہ علیہ علی آلہ وسلم کے الفاظ کے طور پر ثابت شدہ نہیں ، لہذا ان الفاظ کو سُنّت سمجھنا اور سُنّت سمجھ کر استعمال کرنا دُرُست نہیں ، وہ ضعیف (کمزور، نا قابل حُجت ) درج ذیل ہے،

إِذا ظھرت الحیۃ فی المسکن فقولوا لھا إِنا نسألکِ بعھد نوحٍٍ وبعھدسلیمان بن داؤد أن لا تؤذینا ، فإن عادت فأقتلوھا

اگر کِسی گھر میں سانپ نظر آئے تو اُسے کہو ہم تمہیں نوح اور سلیمان بن داؤد کے ساتھ کیے ہوئے عہد کے واسطے سے سوال کرتے ہیں کہ ہمیں نقصان مت پہنچانا ، اگر یہ کہنے کے بعد بھی وہ واپس نظر آئے تو اُسے قتل کر دو

[ سُنن الترمذی حدیث 1483 /کتاب الأحکام و الفوائد/ باب 2 ما جاء فی قتل الحیات ، سُنن أبو داؤدحدیث 5249/أبواب السلام/باب 33 فی قتل الحیات ، تفصیلات کے لیے إِمام الالبانی رحمہُ اللہ کی کتاب سلسلۃ الأحادیث الضعیفۃ 1507،ملاحظہ فرمائیے ۔]

الحمد للہ ،یہاں تک کی معلومات کی روشنی میں یہ بالکل واضح ہو گیا کہ گھروں میں پائے جانے والے سانپوں کو قتل کرنے کا حکم مُقید ہے ، اور گھروں سے باہر پائے جانے والے سانپوں کو قتل کرنے کا حکم عام ہے ، اور جو دو قِسم کے سانپوں کے بارے میں یہ خبر دی گئی ہے کہ وہ بینائی ختم کر دیتے ہیں ، اور حامل عورتوں کا حمل گرا دیتے ہیں ، وہ خبر بالکل حق ہے ، جس کا ثبوت قران کریم میں سے بھی میسر ہوا ، اور جدید علوم کی""" جدید تحقیقات """ سے بھی ، جن پر کچھ مسلمان، عملی طور پر ، اللہ کے قران اور اللہ کے رسول صلی اللہ علیہ وعلی آلہ وسلم کے فرامین سے زیادہ اِیمان رکھتے ہیں ۔ ولا حول و لا قوۃ اِلا باللہ۔
واللہ تعالیٰ اعلم بالصواب
کتبہ : الشیخ عادل سہیل حفظہ اللہ.

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Namaj me Chhink aane ya Khansne ka Hukm, Namaj me Chhinkne ke Aadab.

Namaj me Chhink ka Sharai Aadab.

Namaj me Chinkne ya Khasne ka Sharai Hukm


السَّلاَمُ عَلَيْكُمْ وَرَحْمَةُ اللهِ وَبَرَكَاتُهُ

نماز اور غیر نماز میں چھینک کے شرعئی آداب :
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✒️: مسز انصاری

چھینک اللہ تعالیٰ کی عظیم نعمتوں میں سے ایک نعمت ہے۔ چھینک آنے پر مسنون دعا اور دعا سننے والے پر جواب کا وجوب شرعئی لحاظ سے ثابت ہے ۔
صحیح بخاری،کتاب الادب کی دسویں حدیث یہ ہے :

عن أبي هريرة رضي الله عنه، عن النبي صلى الله عليه وسلم قال: " إذا عطس أحدكم فليقل: الحمد لله، وليقل له أخوه أو صاحبه: يرحمك الله، فإذا قال له: يرحمك الله، فليقل: يهديكم الله ويصلح بالكم "
سیدنا ابو ہریرۃ رضی اللہ عنہ سے روایت ہے کہ نبی ﷺ نے فرمایا
جب تم میں سے کسی کو چھینک آئے تو وہ الحمد للہ کہے اور اس کا بھائی اسے یرحمک اللہ کہے تو جب وہ اسے یرحمک اللہ کہے تو وہ اسے یوں کہے یھدیکم اللہ ویصلح بالکم
اللہ تمہیں ہدایت دے اور تمہاری حالت درست کرے ۔
(صحیح بخاری ،سنن ابو داود ، سنن الترمذی )

اور چھینک آنے پر الحمد للہ کہنے کی وجہ یہ ہے کہ چھینک سے دماغ میں رکے ہوئے فضلات و بخارات خارج ہو جاتے ہیں اور دماغ کی رگوں اور اس کے پٹھوں کی رکا وٹیں دور ہو جاتی ہیں۔ جس سے انسان بہت سی خوفناک بیماریوں سے محفوظ ہو جاتا ہے، جو بلاشبہ اللہ تعالیٰ کی ایک بہترین نعمت ہے ۔

ابوہریرہ رضی اللہ عنہ سے روایت ہے کہ رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا : اللہ تعالیٰ چھینک کو پسند کرتا ہے اور جمائی کو ناپسند کرتا ہے۔
[بخاري كتاب الادب]

ابوہریرہ رضی اللہ عنہ سے روایت ہے کہ رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا : اللہ تعالیٰ چھینک کو پسند فرماتا ہے اور جمائی کو ناپسند فرماتا ہے۔ جب تم میں سے کسی کو چھینک آئے اور وہ الحمد لله کہے تو ہر اس مسلمان پر جو اسے سنے حق ہے کہ اسے يرحمك الله کہے اور جمائی شیطان سے ہے جب تم میں سے کسی کو جمائی آئے تو جس قدر ہو سکے اسے روکے کیونکہ جب وہ ”ھا “ کہتا ہے تو شیطان اس سے ہنستا ہے۔ [بخاري كتاب الادب]

صحیح حدیث کے مطابق تین مرتبہ چھینک آنے پر الحمد للہ کہنا چاہیے، مگر تین مرتبہ سے زائد بار چھینک زکام کے مرض کی علامت ہے
يُشَمَّتُ العاطِسُ ثلاثًا ، فما زاد فهو مَزْكومٌ
چھینکنے والے کو چھینک آنے پر تین بار جواب دیا جائے، اور جو اس سے زیادہ ہو ‘ تو پھر وہ زکام زدہ ہے ۔
الراوي : سلمة بن الأكوع | المحدث : الألباني | المصدر : صحيح ابن ماجه | الصفحة أو الرقم : 3009 | خلاصة حكم المحدث : صحيح

یاد رہے کہ چھینک کے جواب میں الحمدللہ کے ساتھ علی کل حال کہنا بھی ثابت ہے ، چنانچہ ابن عمر نے ایک آدمی کو بتایا کہ آپﷺ نے انھیں الحمد للہ علی کل حال کے الفاظ سکھائے تھے ، حدیث شریف میں ہے :

عَنْ نَافِعٍ أَنَّ رَجُلًا عَطَسَ إِلَى جَنْبِ ابْنِ عُمَرَ فَقَالَ الْحَمْدُ لِلَّهِ وَالسَّلَامُ عَلَى رَسُولِ اللَّهِ قَالَ ابْنُ عُمَرَ وَأَنَا أَقُولُ الْحَمْدُ لِلَّهِ وَالسَّلَامُ عَلَى رَسُولِ اللَّهِ وَلَيْسَ هَكَذَا عَلَّمَنَا رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ عَلَّمَنَا أَنْ نَقُولَ الْحَمْدُ لِلَّهِ عَلَى كُلِّ حَالٍ »
ترجمہ : سیدنانافعؒ کہتے ہیں کہ: سیدنا عبداللہ بن عمر رضی اللہ عنہما کے پہلو میں بیٹھے ہوئے ایک شخص کو چھینک آئی تو اس نے کہا' الحمد للہ والسلام علی رسول اللہ'یعنی تمام تعریف اللہ کے لیے ہے اور سلام ہے رسول اللہ ﷺ پر ۔ ابن عمر رضی اللہ عنہما نے کہا:کہنے کو تو میں بھی الحمد للہ والسلام علی رسول اللہ کہہ سکتاہوں ۱؎ لیکن اس طرح کہنا رسول اللہ ﷺ نے ہمیں نہیں سکھلایا ہے۔ آپ نے ہمیں بتایا ہے کہ ہم ' الحمد للہ علی کل حال' (ہرحال میں سب تعریفیں اللہ ہی کے لیے ہیں) کہیں۔
[ دیکھئے : شیخ البانیؒ کی کتاب : إرواء الغليل | الصفحة أو الرقم: 3/245 | خلاصة حكم المحدث: إسناده صحيح

اور جس شخص کو چھینک آئے اور وہ الحمد للہ نہ کہے تو سننے والے کو بھی اسے یرحمک اللہ نہیں کہنا چاہیے :
عَطَسَ رَجُلَانِ عِنْدَ النَّبِيِّ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ، فَشَمَّتَ أَحَدَهُمَا وَلَمْ يُشَمِّتِ الْآخَرَ، فَقَالَ الرَّجُلُ: يَا رَسُولَ اللَّهِ، شَمَّتَّ هَذَا وَلَمْ تُشَمِّتْنِي، قَالَ: إِنَّ هَذَا حَمِدَ اللَّهَ وَلَمْ تَحْمَدِ اللَّهَ".
ہم سے آدم بن ابی ایاس نے بیان کیا، کہا ہم سے شعبہ نے بیان کیا، کہا ہم سے سلیمان تیمی نے بیان کیا، کہا کہ میں نے انس رضی اللہ عنہ سے سنا، انہوں نے بیان کیا کہ نبی کریم صلی اللہ علیہ وسلم کی موجودگی میں دو آدمیوں نے چھینکا۔ لیکن نبی کریم صلی اللہ علیہ وسلم نے ان میں سے ایک کی چھینک پر یرحمک اللہ کہا اور دوسرے کی چھینک پر نہیں کہا۔ اس پر دوسرا شخص بولا کہ یا رسول اللہ! آپ نے ان کی چھینک پر یرحمک اللہ فرمایا۔ لیکن میری چھینک پر نہیں فرمایا؟ نبی کریم صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا کہ انہوں نے الحمدللہ کہا تھا اور تم نے نہیں کہا تھا۔
الراوي : أنس بن مالك | المحدث : مسلم | المصدر : صحيح مسلم | الصفحة أو الرقم : 2991 | خلاصة حكم المحدث : [صحيح] | التخريج : أخرجه البخاري (6225)، ومسلم (2991).

دورانِ باجماعت نماز جب مقتدی کو امام کے پیچھے چھینک آئے تو خاموشی سے آہستہ آواز کے ساتھ الحمد للہ کہہ سکتا ہے جیسا کہ حضرت رفاعہ بن مالک رضی اللہ عنہ بیان کرتے ہیں
" میں نے نبی اکرم صلی اللہ علیہ وسلم کے پیچھے نماز پڑھی، تو مجھے چھینک آ گئی، تو میں نے «الحمد لله حمدا كثيرا طيبا مباركا فيه مباركا عليه كما يحب ربنا ويرضى» ”اللہ کے لیے بہت زیادہ تعریفیں ہیں، جو پاکیزہ و بابرکت ہوں، جیسا ہمارا رب چاہتا اور پسند کرتا ہے“ کہا، تو جب رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم نماز پڑھ چکے، اور سلام پھیر کر پلٹے تو آپ نے پوچھا: ”نماز میں کون بول رہا تھا؟“ تو کسی نے جواب نہیں دیا، پھر آپ نے دوسری بار پوچھا: ”نماز میں کون بول رہا تھا؟“ تو رفاعہ بن رافع بن عفراء رضی اللہ عنہ نے کہا: اللہ کے رسول! میں تھا، آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے پوچھا: ”تم نے کیسے کہا تھا؟“ انہوں نے کہا: میں نے یوں کہا تھا: «الحمد لله حمدا كثيرا طيبا مباركا فيه مباركا عليه كما يحب ربنا ويرضى» ”اللہ کے لیے بہت زیادہ تعریفیں ہیں، جو پاکیزہ و بابرکت ہوں، جیسا ہمارا رب چاہتا اور پسند کرتا ہے“ تو نبی اکرم صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: ”قسم ہے اس ذات کی جس کے ہاتھ میں میری جان ہے، تیس سے زائد فرشتے اس پر جھپٹے کہ اسے لے کر کون اوپر چڑھے۔‏‏‏‏“
[سنن نسائي/كتاب الافتتاح/حدیث: 932  ||  صحيح ابي داود :700 || صحيح ترمذي :331 ]

واضح رہے کہ چھینک مارنے اور رکوع سے سر اٹھانے کا وقت ایک ہی تھا جیسا کہ صحیح بخاری میں اس کی صراحت ہے۔ دیکھیے: [صحیح البخاري، الأذان، حدیث: 799]

البتہ نماز میں چھینک کا جواب دینا جائز نہیں ، اس بارے میں شیخ ابن ‏عثیمین رحمہ اللہ تعالی کہتےہیں :

" جب نمازی کوچھینک آئے تووہ المحد للہ کہے گا ، اس لیے کہ اس کا ثبوت سیدنا معاویہ بن حکم رضی اللہ تعالی عنہ کے قصہ میں ملتا ہے :
سیدنا معاویہ بن حکم رضي اللہ تعالی عنہ نبی صلی اللہ علیہ وسلم کے ساتھ نماز پڑھنے لگے توایک شخص نے چھینک لی اورالحمدللہ کہا تواس کے جواب میں معاویہ رضي اللہ تعالی عنہ نے يرحمك الله کہا تولوگ انہيں گھور گھور کردیکھنے لگے کہ اس نے غلط کام کیا ہے ، توانہوں نے کہا کہ ان کے مائیں گم پائيں تووہ لوگ اپنی رانوں پرہاتھ مارنے لگے تا کہ وہ خاموش ہوجائيں تووہ خاموش ہوگیا ۔
جب نبی صلی اللہ علیہ وسلم نے نماز ختم کی تو انہیں بلایا معاویہ رضي اللہ تعالی عنہ کہتے ہیں کہ میرے ماں باپ ان پر قربان ہوں اللہ کی قسم نہ تو نبی صلی اللہ علیہ وسلم نے مجھے ڈانٹا اورنہ ہی مارا اورنہ برا بھلا کہا بلکہ نبی صلی اللہ علیہ وسلم فرمانے لگے :
نماز میں لوگوں سے باتیں کرنا صحیح نہيں بلکہ اس میں تو تسبیح وتحمید اورتکبیر اورقرآن مجید کی تلاوت ہوتی ہے ۔
[ صحیح مسلم حدیث نمبر ( 537 ) سنن ابوداود حدیث نمبر ( 930 ) ]

اس قصہ سے پتہ چلتاہے کہ نبی صلی اللہ علیہ وسلم نے چھینک کے بعد الحمدللہ کہنے والے کو کچھ نہيں کہا جو اس بات کی دلیل ہے کہ نمازمیں جب انسان کو جب چھینک آئے تو اسے الحمدللہ کہنا چاہیے کیونکہ یہاں ایسا سبب پایا جاتا ہے جو الحمد للہ کہنے کا متقاضی ہے ، لیکن اس کا معنی یہ نہیں کہ ہر وہ سبب جس کی بنا پر کوئي دعا ہو وہ بھی نماز میں کہنا جائز ہے ۔ "
[ دیکھیے : فتاوی ابن ‏عثیمین رحمہ اللہ ( 13 / 342 )  ]

ھٰذا ماعندی واللہ تعالیٰ اعلم بالصواب

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Khubsurat Na Mehram Aurat kisi Mard ke liye kitna Khatrnak Sabit ho sakti hai?

Maine Apne bad ke mardo ke liye Auraton se jyada bada fitna nahi chhora hai.

السَّلاَمُ عَلَيْكُمْ وَرَحْمَةُ اللهِ وَبَرَكَاتُهُ

خوبصورت نامحرم عورت عمومًا مرد کے زھد و تقویٰ کے لیے زہر ہے :
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️: مسزانصاری

خوبصورت عورت مرد کی روح کے لیے وہ نشہ آور شراب ہے جس سے کمزور قوتِ ایمانی رکھنے والے دلوں کے مرد اپنے ہوش گنوا بیٹھتے ہیں، جب بھی تم کسی نامحرم عورت کی طرف دانستہ نظر اٹھا بیٹھو اور اس کے لیے اپنے دل کو معلق ہوتا محسوس کرو تو بغیر وقت ضائع کیے فورًا شیطان مردود سے اللہ کی پناہ طلب کرو ، کیونکہ عورت کے وجود سے بڑھ کر کوئی چیز مرد کی روح کو تیزی سے مدہوش نہیں کرتی یہاں تک کے مرد اپنے رب سے جدا ہوجاتا ہے اور عبادتِ الہٰی سے زیادہ اس عورت کو پوجنے لگتا ہے، اور یہ سب تلبیسِ ابلیس ( ابلیس کی مکاریاں ) ہے ۔

ما تَرَكْتُ بَعْدِي فِتْنَةً أضَرَّ علَى الرِّجالِ مِنَ النِّساءِ.
’’میں نے اپنے بعد مردوں کے لیے عورتوں سے زیادہ نقصان دہ کوئی دوسرا فتنہ نہیں چھوڑا ہے۔‘‘

الراوي : أسامة بن زيد | المحدث : البخاري | المصدر : صحيح البخاري
الصفحة أو الرقم: 5096 | خلاصة حكم المحدث : [صحيح]
التخريج : أخرجه البخاري (5096)، ومسلم (
2740)

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Shauhar ke Faut ho jane ya talaq dene par Shauhar ka walid Biwi ka Mehram hoga ya Na Mehram?

Kisi Aurat ka Shauhar ke faut ho Jane par Uska Sasur Mehram hoga ya Na Mehram?
Agar Shauhar Talaq de de to biwi ka Sasur Mehram hoga ya Na Mehram?

اسلام کی شہزادی
ایک عورت کا شوہر فوت ہو جائے تو سسر محرم ہو گا یا نا محرم؟؟
سسر سے پردہ کرنا ہو گا یا نہیں؟

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وَعَلَيْكُمُ السَّلاَمُ وَرَحْمَةُ اللهِ وَبَرَكَاتُهُ

جب کسی عورت سے عقد نکاح ہو جائے تو اس عورت پر سسر حرام ہوجاتا ہے ۔صرف عقد نکاح سے ہی حرمت ثابت ہوجاتی ہے اس لیے اگر کسی مرد نے عورت سے عقد نکاح کرلیا تو خاوند کا والد (یعنی عورت کا سسر) ا پنی بہو کا محرم بن جائے گا ۔ یہ حرمت برقرار رہتی ہے خواہ خاوند فوت ہو جائے یا اسے طلاق دے کر اپنی زوجیت سے فارغ کر دے، بیوی کا سسر اس کا محرم رہے گا، وہ اس کے سامنے اپنا چہرہ ننگا کر سکتی ہے، اس کے ساتھ سفر بھی کر سکتی ہے، اس میں کوئی حرج نہیں ہے ۔اور اسی طرح عورت کے لیے خاوند کی دوسری بیوی سے بیٹے بھی محرم ہوں گے اورخاوند پر اس کی ساس بھی حرام ہوجائے گی۔

اسے  تحریم مصاہرت (یعنی سسرالی تحریم) کہتے ہیں اور اس بات کی دلیل کہ سسر کے لیے اس کی بہو حرام ہے مندرجہ ذیل اللہ تعالیٰ کا فرمان ہے:

"اور (تم پر حرام ہیں) تمہارے صلبی بیٹوں کی بیویاں۔" النساء۔23۔

اور خاوند کے بیٹے کی والد کی بیوی حرمت کی دلیل اللہ تعالیٰ کا یہ فرمان ہے:

"اور تم ان عورتوں سے نکاح نہ کرو جن سے تمہارے باپوں نے نکاح کیا ہے۔" النساء۔22۔

اور دادماد پر اپنی ساس سے نکاح کی حرمت کی دلیل یہ فرمان باری تعالیٰ ہے:

"اور (تم پر حرام ہے) تمہاری بیویوں کی مائیں۔"

فقط واللہ تعالیٰ اعلم

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Sweden ya Dusre European Mumalik me Quran ki behurmati kyu ki ja rahi hai?

Sweden me Ijtemai taur Par Quran ko Najar-E- Aatish karne ka mamala aur sari Duniya ki khamoshi.
Batil ko hamesha isse ranj aur chid rahti he ke haqe ka Muqabla kaise kiya jaye.. Isliye apni gussa aur nakami ko chupane ke liye Aisi harkate karta hai.

السَّلاَمُ عَلَيْكُمْ وَرَحْمَةُ اللهِ وَبَرَكَاتُهُ

سویڈن میں قرآن جلایا گیا ....... خبر محزن ومؤسف جدا 😢

🖋️: مسز انصاری
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حق (اسلام) پہلے بھی باطل کی یلغار سے محفوظ نہیں تھا اور آج بھی حق تیروں سے آزاد نہیں ہے، قرونِ اولیٰ اور آج کے وقت میں باطل کی ان یلغاروں میں فرق یہ ہے کہ پہلے جب مسلمان فولادی عزائم رکھتا تھا اور امت مسلمہ پر عمر بن الخطاب کی ہیبت کی پرچھائیاں تھیں تو دشمنانِ اسلام پیٹھ پیچھے سے وار کرنے کے لیے بھی سو بار سوچتا تھا، اور آج جبکہ مسلمان باہمی افتراقی جنگوں کے شغل میں منہمک ہے، اس کی ساری قوت اسلام کی دیوار گرانے میں ہی صرف ہورہی ہے تو اس کے ہاتھ میں تلوار لوہے کے زنگ آلود ٹکڑے کے سوا کچھ نہیں رہی، اسی لیے دشمنانِ حق کو اس کی تلوار کی کاٹ کا خوف بھی نہیں رہا ، اب بھرے مجمع میں ہر ایرا غیرا مسلمانوں کے دلوں کو چیر ڈالتا ہے اور مسلمان کے جذبات کو لہولہان کیا جاتا ہے، کبھی قرآن کو جلا کر، کبھی قرآن کو ٹکڑے ٹکڑے کر کے، کبھی پیارے نبیﷺ کے چہرہ اقدس کو مضہکہ خیز اشکال کی صورت میں پیش کر کے اور کبھی آپﷺ کی شان میں گستاخیاں کر کے۔
اسلام کی صفوں میں شب خون کا یہ سلسلہ چلتا رہے گا اور اس میں اضافہ ہی ہوتا رہے گا، اس وقت تک جب تک مسلمان دنیا پرستی، زن پرستی اور زر پرستی میں لگا رہے گا اور قرآن و سنت گرد میں اٹا الماریوں میں مقفل رہے گا ۔۔۔۔
تمسک  بالقرآن والسنۃ(قرآن و سنۃ سے چمٹ جاؤ)
قرآن علامت اخلاصِ توحید ہے، اس کی حکمت و دانائی وسیع اور نفع بخش ہے،اس کی تعلیم شفاف ہے، کوئی پیچیدگی نہیں، کوئی ابہام نہیں، کوئی التباس نہیں، کوئی رَیب نہی اور کوئی تشکیک نہیں۔
پس جب بھی تم قرآن سے منہ موڑو گے اللہ تمہیں ذلیل و خوار کر دے گا ۔

﴿وَقَالَ ٱلرَّسُولُ يٰرَبِّ إِنَّ قَومِي ٱتَّخَذُواْ هٰذَا ٱلۡقُرءَانَ مَهجُورا﴾ [ الفرقان: 30]’’
اور رسول کہے گا کہ اے میرے پروردگار! بےشک میری امت نے اس قرآن کو چھوڑ رکھا تھا ‘‘

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Qurbani ka Janwar kaisa hona chahiye, Qurbani Ke liye kaisi Shartein hai?

Qurbani ke Liye wah 6 Sharayet jo lajimi hai.


السَّلاَمُ عَلَيْكُمْ وَرَحْمَةُ اللهِ وَبَرَكَاتُهُ

قربانی کی شرائط


قربانی کے لیے چھ شرائط کا ہونا ضروری ہے :

❶ پہلی شرط :

وہ قربانی "بھیمۃ الانعام" [یعنی گھریلو پالتو جانوروں]میں سے ہو جو کہ اونٹ ، گائے ، بھیڑ بکری ہیں ؛فرمانِ باری تعالی ہے:
( وَلِكُلِّ أُمَّةٍ جَعَلْنَا مَنْسَكًا لِيَذْكُرُوا اسْمَ اللَّهِ عَلَى مَا رَزَقَهُمْ مِنْ بَهِيمَةِ الْأَنْعَامِ )
ترجمہ:  اور ہر امت کے لیے ہم نے قربانی کا طریقہ مقرر فرما دیا ہے تا کہ وہ اللہ کے عطا کردہ [بھیمۃ الانعام یعنی]پالتو جانوروں پر اللہ کا نام لیں۔[الحج:34]
اور "بھیمۃ الانعام" سے مراد اونٹ گائے بھیڑ اور بکری ہیں عرب کے ہاں یہی معروف ہے نیز حسن  اور قتادہ سمیت دیگر اہل علم کا بھی یہی موقف ہے ۔

❷ دوسری شرط :

قربانی کا جانور شرعی طور پر معین عمر کا ہونا ضروری ہے ، وہ اس طرح کہ بھیڑ کی نسل میں جذعہ [چھ ماہ کا بچہ ] قربانی کیلیے ذبح ہو سکتا ہے جبکہ دیگر جانوروں میں سے ان کے اگلے دو دانت گرنے کے بعد قربانی ہو گی کیونکہ نبی صلی اللہ علیہ وسلم کا فرمان ہے :
( مسنہ [یعنی جس کے اگلے دو دانت گر گئے ہیں اس ] کے علاوہ کوئی جانور ذبح نہ کرو، تاہم اگر تمہیں ایسا جانور نہ ملے تو بھیڑ کا جذعہ[یعنی چھ ماہ کا بچہ ] ذبح کر لو ) صحیح مسلم ۔
حدیث میں مذکور : "مسنہ"  کا لفظ  ایسے جانور پر بولا جاتا ہے جس کے اگلے دو دانت گر چکے ہوں یا اس سے بھی بڑے جانور کو "مسنہ" کہتے ہیں جبکہ "جذعہ" اس سے کم عمر کا  ہوتا ہے۔
لہذا اونٹ پورے پانچ برس کا ہو تو  اس کے اگلے دو دانت گرتے ہیں۔
گائے کی عمر دو برس ہو تو اس کے اگلے دو دانت گرتے ہیں۔
جبکہ بکری ایک برس کی ہو تو وہ تو اس کے اگلے دانت گرتے ہیں۔
اور جذعہ چھ ماہ کے جانور کو کہتے ہیں ، لہذا اونٹ گائے اور بکری میں سے آگے والے دو دانت گرنے سے کم عمر کے جانور کی قربانی نہیں ہوگی ، اور اسی طرح بھیڑ میں سے جذعہ سے کم عمر [یعنی چھ ماہ سے کم ] کی قربانی صحیح نہیں ہوگی ۔

❸ تیسری شرط :

قربانی کا جانور چار ایسے عیوب سے پاک ہونا چاہیے  جو قربانی ہونے میں رکاوٹ ہیں:
⓵-  آنکھ میں واضح طور پر عیب : مثلاً: جس کی آنکھ بہہ کر دھنس چکی ہو یا پھر بٹن کی طرح ابھری ہوئی ہو ، یا پھر آنکھ مکمل سفید ہو کر کانے پن کی واضح دلیل ہو۔
⓶-  واضح طور بیمار جانور : اس سے بیمار جانور مراد ہیں مثلاً: جانور کو بخار ہو جس کی بنا پر جانور گھاس نہ کھائے اور اسے بھوک نہ لگے، اسی طرح جانور کی بہت زیادہ خارش جس سے گوشت متاثر ہو جائے، یا خارش جانور کی صحت پر اثر انداز ہو ، ایسے ہی گہرا زخم اور اسی طرح کی دیگر بیماریاں ہیں جو جانور کی صحت پر اثر انداز ہوں۔
⓷-  واضح طور پر پایا جانے والا لنگڑا پن : ایسا لنگڑا پن جو صحیح سالم جانوروں کے ہمراہ چلنے میں رکاوٹ بنے۔
⓸- اتنا لاغر  کہ ہڈیوں میں گودا باقی نہ رہے: کیونکہ نبی صلی اللہ علیہ وسلم سے جب یہ پوچھا گیا کہ قربانی کا جانور کن عیوب سے پاک ہونا چاہیے تونبی صلی اللہ علیہ وسلم نے اپنے ہاتھ سے اشارہ کر کے فرمایا چار عیوب سے : ( وہ لنگڑا جانور جس کا لنگڑا پن واضح ہو ، اور آنکھ کے عیب والا جانور جس کی آنکھ کا عیب واضح ہو ، اور بیمار جانور جس کی بیماری واضح ہو، اور وہ کمزور جانور جس کی ہڈیوں میں گودا ہی نہ ہو)  ۔اسے امام مالک رحمہ اللہ نے موطا میں براء بن عازب رضی اللہ عنہ سے روایت کیا ہے ۔
اور سنن میں برا‏ء بن عازب رضی اللہ عنہ ہی سے ایک روایت مروی ہے جس میں ہے کہ نبی صلی اللہ علیہ وسلم ہمارے درمیان کھڑے ہوئے اور فرمایا: ( چار قسم کے جانور قربانی میں جائز نہیں ) اور پھر آگے یہی حدیث ذکر کی ہے ۔
علامہ البانی رحمہ اللہ نے ارواء الغلیل (1148)میں اسے صحیح قرار دیا ہے ۔
لہذا یہ چار عیب ایسے ہیں جن کے پائے جانے کی بنا پر قربانی نہیں ہوگی ، اور ان چار عیوب کے ساتھ دیگر عیوب بھی شامل ہیں جو ان جیسے یا ان سے بھی شدید ہوں تو ان کے پائے جانے سے بھی قربانی نہیں ہوگی ، جیسے کہ درج ذیل عیوب ہیں:
⓵-  نابینا  جانور جس کو آنکھوں سے نظر ہی نہ آتا ہو ۔
⓶-  وہ جانور جس نے اپنی طاقت سے زیادہ چر لیا ہو؛ اس کی قربانی اس وقت تک نہیں ہو سکتی جب تک وہ صحیح نہ  ہو جائے  اور اس سے خطرہ ٹل نہ جائے۔
⓷-  وہ جانور جسے بچہ جننے میں کوئی مشکل در پیش ہو جب تک اس سے خطرہ زائل نہ ہو جائے ۔
⓸-  زخم وغیرہ لگا ہوا جانور جس سے اس کی موت واقع ہونے کا خدشہ ہو ،  گلا گھٹ کر یا بلندی سے نیچے گر کریا اسی طرح کسی اور وجہ سے ؛ اس وقت تک ایسے جانور کی قربانی نہیں ہو سکتی جب تک کہ اس سے یہ خطرہ زائل نہیں ہو جاتا ۔
⓹- دائمی بیمار، یعنی ایسا جانور جو کسی بیماری کی وجہ سے چل پھر نہ سکتا ہو۔
⓺-  اگلی یا پچھلی ٹانگوں میں سے کوئی ایک ٹانگ کٹی ہوئی ہو ۔
جب ان چھ عیوب کو حدیث میں بیان چار عیوب کے ساتھ ملایا جائے تو ان کی تعداد دس ہو جائے گی  ؛ چنانچہ ان کی قربانی نہیں کی جائے گی۔

❹ چوتھی شرط :

وہ جانور قربانی کرنے والے کی ملکیت میں ہو یا پھر اسے شریعت یا مالک کی جانب سے اجازت ملی ہو۔
لہذا جو جانور ملکیت میں  نہ ہو اس کی قربانی صحیح نہیں ، مثلاً غصب یا چوری کردہ جانور اور اسی طرح باطل اور غلط دعوے سے ہتھیایا  گیا جانور ، کیونکہ اللہ تعالی کی معصیت و نافرمانی کے ذریعے اللہ کا قرب حاصل نہیں ہو سکتا ۔
اور یتیم کا سر پرست یتیم کی جانب سے ایسی صورت میں قربانی کر سکتا ہے جب یتیم  اپنے مال سے قربانی نہ ہونے پر مایوس ہو جائے اور عرف عام میں یتیم کی طرف سے قربانی کرنے کا رواج بھی ہو۔
اسی طرح موکل کی جانب سے اجازت کے بعد وکیل کا قربانی کرنا بھی صحیح ہے ۔
❺ پانچویں شرط :

کہ جانور کا کسی دوسرے کے ساتھ تعلق نہ ہو ، لہذا رہن رکھے گئے جانور کی قربانی نہیں ہو سکتی ۔

❻ چھٹی شرط :

قربانی کو شرعاً محدود وقت کے اندر اندر ذبح کیا جائے ، اور یہ وقت دس ذوالحجہ کو نماز عید کے بعد سے شروع ہو کر ایام تشریق کے آخری دن سورج غروب ہونے تک باقی رہتا ہے ، ایام تشریق کا آخری دن ذوالحجہ کی تیرہ تاریخ بنتا ہے ، تو اس طرح ذبح کرنے کے چار دن ہیں  یعنی: عید کے دن نماز عید کے بعد ، اور اس کے بعد تین دن یعنی گیارہ ، بارہ اور تیرہ ذوالحجہ کے ایام  قربانی کے دن ہیں۔
لہذا جس نے بھی نماز عید سے قبل قربانی ذبح کر لی یا پھر تیرہ ذوالحجہ کو غروب شمس کے بعد کوئی شخص قربانی کرتا ہے تو اس کی یہ قربانی صحیح نہیں ہوگی ۔
جیسے کہ امام بخاری رحمہ اللہ نے براء بن عازب رضی اللہ عنہ سے روایت کیا ہے کہ رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا : ( جس نے نماز [عید ]سے قبل ذبح کر لیا وہ صرف گوشت ہے جو وہ اپنے اہل عیال کو پیش کر رہا ہے اور اس کا قربانی سے کوئی تعلق نہیں ) ۔
اور جندب بن سفیان بَجَلی رضی اللہ عنہ بیان کرتے ہیں کہ میں نبی صلی اللہ علیہ وسلم ساتھ حاضر تھا تو آپ نے فرمایا : ( جس نے نماز عید سے قبل ذبح کر لیا وہ اس کے بدلے میں دوسرا جانور ذبح کرے ) ۔
اسی طرح نبیشہ ھذیلی رضی اللہ عنہ بیان کرتے ہیں کہ رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا : (ایام تشریق کھانے پینے اور ذکر الہی کے ایام ہیں ) اسے امام مسلم نے روایت کیا ہے ۔
لیکن اگر ایام تشریق سے قربانی کو مؤخر کرنے کا کوئی عذر پیش آ جائے مثلاً قربانی کا جانور بھاگ جائے، اور اس کے بھاگنے میں مالک کی کوئی کوتاہی نہ ہو اور وہ جانور ایام تشریق کے بعد ہی واپس ملے ، یا اس نے کسی کو قربانی ذبح کرنے کا وکیل بنایا تو وکیل ذبح کرنا ہی بھول گیا اور وقت گزر گیا ، تو اس عذر کی بنا پر وقت گزرنے کے بعد ذبح کرنے میں کوئی حرج نہیں ، اور [اس کی دلیل یہ ہے کہ جس طرح]نماز کے وقت میں سویا ہوا یا بھول جانے والا شخص جب سو کر اٹھے یا اسے یاد آئے تو نماز ادا کرے گا [بالکل اسی طرح یہ بھی قربانی ذبح کرے گا]۔
اور مقررہ وقت کے اندر دن یا رات میں کسی بھی وقت قربانی کی جاسکتی ہے ، قربانی دن کے وقت ذبح کرنا اولی اور بہتر ہے ، اور عید والے دن نماز عید کے خطبہ کے بعد ذبح کرنا زیادہ افضل اور اولی ہے ، اور ہر آنے والا دن گزشتہ دن سے کم تر ہو گا، کیونکہ جلد از جلد قربانی کرنے میں خیر و بھلائی کیلیے سبقت ہے " 

فقط واللہ تعالیٰ اعلم بالصواب
[ ماخذ: ماخوذ از : "احکام الاضحیۃ والذکاۃ " از شیخ محمد بن عثیمین رحمہ اللہ ]
[الاسلام سوال و جواب]

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Kya Aurat Qurbani Ka Janwar Zibah Kar Sakti hai? Khawateen ke liye Janwar Zibah karna kaisa hai?

Kya Aurat Qurbani Ka Janwar Zibah kar sakti hai?

Kya Auraten Gaye, Bhainse, Bakra aur Oont (Camel) Zibah kar sakti hai?

عورت بھی قربانی کا جانور ذبح کر سکتی ہے۔

نافع نے (عبد الرحمٰن یا عبد اللہ ) بن کعب بن مالک سے سنا وہ عبد اللہ بن عمرؓ سے کہہ رہے تھے کہ ان کے والد نے ان کو خبر دی ان کی ایک لونڈی سلع پہاڑ پر (جو مدینہ میں ہے) بکریاں چرایا کرتی تھی ایک دن اس نے ایک بکری کو دیکھا وہ مر رہی ہے اس نے کیا کیا ایک پتھر توڑ کر اس سے وہ بکری ذبح کر ڈالی کعب نے اپنے لوگوں سے کہا اس کا گوشت ابھی نہ کھاؤ میں نبیﷺ کے پاس جاتا ہوں آپ سے پوچھ لوں یا میں ایک شخص کو نبی ﷺ کے پاس بھج کر پچھوا لوں (یہ راوی کی شک ہے) غرض کعب خود نبی ﷺ کے پاس آئے یا کسی کو بھیج کر پچھوا بھیجا آپ نے فرمایا اس بکری کو کھاؤ۔
(بخاری/کتاب الذبائح:۲۲)

سیدنا ابو موسیٰ اشعری ؓ اپنی بیٹیوں کو قربانی کا حکم دیا کرتے تھے۔

(صحیح بخاری ،الاضاحی تعلیقاً،باب:۱۰)

       
مجاہد رحمہ اللہ فرماتے ہیں:
"لابأس بذبيحةالصبي والمرأة من المسلمين وأهل الكتاب"
(السنن الكبرى للبيهقي 9/475)
"مسلمان اوراہل کتاب میں سےبچہ اورعورت کےذبیحہ میں کوئی حرج نہیں ہے "

امام نووی رحمہ اللہ فرماتےہیں:
"کعب بن مالک کی حدیث کی بنیادپر بلا اختلاف عورت کا ذبیحہ جائزہے"۔

(المجموع شرح المھذب 9/87)
نیز فرماتےہیں :

" ابن المنذرنے عورت اورصاحب تمییز بچہ کےذبیحہ کی حلّت پراجماع نقل کیاہے۔"

المجموع شرح المھذب 9/89)

شیخ الاسلام ابن تیمیہ رحمہ اللہ فرماتےہیں :
" عورت اورمردکاذبیحہ جائز ہے،  عورت حالت حیض میں بھی ذبح کرسکتی ہے۔"

علامہ ابن بازرحمہ اللہ ایک سوال کےجواب میں فرماتےہیں :

" مرد کی طرح عورت بھی قربانی کا جانور ذبح کر سکتی ہے ، رسول اللہ  صلی اللہ علیہ وسلم سے یہ صحیح سند کے ساتھ ثابت ہے۔ عورت اگر مسلمان یاکتابیہ ہےاور اس نے شرعی طریقہ پر جانور ذبح کیا ہےتو اس کا گوشت کھانا جائز ہے۔ مرد کی موجودگی میں بھی عورت ذبح کر سکتی ہے، اس کے لئے مرد کاہونا شرط نہیں ہے"

علامہ عبد اللہ بن عبدالرحمن الجبرین ایک سوال کے جواب میں فرماتے ہیں :

" اگر عورت عاقلہ ،مکلفہ ہو اور اس نےبسم اللہ پڑھ کر ناخن ،دانت اور ہڈی کے علاوہ کسی تیز دھاردار آلہ سے ذبح کیا ہےتو اس میں کوئی حرج نہیں ہے۔"

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Apne Qurbani ke Janwaro ko Khula na chhore taki dusro ko taklif pahuche.

Qurbani ke Janwaro ka khyal rakhe, kahi isse dusro ko taklif nahi pahuche.

Qurbani ka Gosht kitne dino tak rakh sakte hai?
Qurbani (Eid-UL-Azaha) ke Ahkaam o Masail. ....
Jo log Qurbani karne ki taqat nahi rakhte wah kya kare?
Qurbani ke liye kaisa janwar jayez hai?

Qurbani se Jude Ahem Sawalo ke jawab janane ke liye yaha click kare.

Qurbani se jude Masail aur Unka Hal.

السَّلاَمُ عَلَيْكُمْ وَرَحْمَةُ اللهِ وَبَرَكَاتُهُ

️: مسز انصاری
۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔

قربانی کریں مگر ..............

- اپنے قربانی کے جانور کو لوگوں کے لیے تکلیف کا باعث نا بنائیں ۔
- اپنے جانوروں کی گندگی سے آنے جانے والوں کو تکلیف نا دیں ۔
- جانور باندھنے کی وہ جگہ منتخب نا کیجیے جہاں ہرروز کسی کی گاڑی پارک ہوتی ہے ۔
- جس جگہ جانور باندھیں اسے صاف کرتے رہیں تاکہ ناگوار بدبو لوگوں کو تکلیف نا پہنچائے۔
- اپنے جانوروں کو اس طرح کھلا نا چھوڑیے کہ وہ کسی کی محنت سے مرتب کیا گیا گارڈن خراب کر ڈالیں ۔

کامل ایمان رکھنے والے مؤمن اپنے مسلمان بھائی کے لیے وہی آرام و راحت پسند کرتے ہیں جو وہ اپنے لیے پسند کرتے ہیں ۔ یعنی وہ اپنے دینی اور دنیاوی امور میں اس بات کا خیال رکھتے ہیں کہ ان کا کوئی عمل یا رویہ کسی مسلمان کے لیے تنگی قلب کا باعث نا بنے ۔

لَا يُؤْمِنُ أحَدُكُمْ، حتَّى يُحِبَّ لأخِيهِ ما يُحِبُّ لِنَفْسِهِ.
تم میں سے کوئی شخص اس وقت تک مؤمن نہیں ہو سکتا، جب تک وہ اپنے بھائی کے لیے بھی وہی پسند نہ کرے، جو اپنے لیے کرتا ہے“۔ 

الراوي : أنس بن مالك | المحدث : البخاري | المصدر : صحيح البخاري
الصفحة أو الرقم : 13 | خلاصة حكم المحدث : [صحيح]

فقط واللہ تعالیٰ اعلم بالصواب

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Islam ke Khilaf European Propganda Quran jalana.

Sweden aur Denmark me Propganda of Freedom of expresson.

Sweden me bar bar Quran kyu jalaya jata hai, Ise kaun log support karte hai?

Shikari aur Shikar yani Musalman aur Christian.

Muslim Mulko me Khilafat islamic system kaise laya jaye?

New world order ya Jewish world Order.

Islamic tarike se Khawateen ko kaise Padhaya jaye.

Qustuntuniya par Musalmano ki fatah.

मुस्लिम मुल्को ने इस्लाम को अपना दस्तूर माना लेकिन अमल नही
मागरिबि मुल्को ने अक़ल को अपना दस्तूर माना तो अमल भी किया।

तुम्हारी तहज़ीब अपने ख़ंजर से आप ही ख़ुद-कुशी करेगी।
जो शाख़-ए-नाज़ुक पे आशियाना बनेगा ना-पाएदार होगा

ज़ाहिर सी बात है के नई नस्ले इस्लाम के मुतालिक बद्गुमानिया और वस्वसे पालती और मागरिब के मुतालिक़ अच्छे ख्यालात।
आज यूरोप इस्लाम विरोधी हरकतो को खूब जोर शोर से फैला रहा है, वह आधुनिकता, उदारवादी और लिबरल मंसिकता के नाम पर इस्लाम और मुसलमान विरोधी मुहिम चला रहा है।

कभी फ्रांस मे नबी की शान मे गुस्ताखी की जाती है, कार्टून बनाया जाता है।
कभी स्पेन, नॉर्वे, स्वेडेन, डेनमार्क जैसे बातील और फिरंगी मुल्को मे कुरान जलाकर अपनी आज़ादी का मुजाहेरा किया जाता है। ये खुद को लिबरल, वामपंथी, उदारवादी तबका और आज़ाद ख्याल वाले कहलाते है।

इनकी आज़ादी और इज़हार ए राय कुरान को आग के हवाले करके ही पूरी होती है, इसमे सरकार और मग्रिबि विचारधारा का हाथ है जो हमेशा मुसलमानो के ख़िलाफ प्रोपगैंडा चलाया जाता है।

ये नाम निहाद सेकुलर और लिबरल सोच वाले इस्लाम विरोधी अभियान चलाने को अपनी आज़ादी बताते है।
दुसरो के धर्म का मज़ाक बनाना आसान काम है जिससे ये अपनी आज़ादी समझते है।

किसी ट्रांसजेंडर पर यह कुछ नही बोलते है, वरना
Homophobic कहा जायेगा।
किसी औरत पर कुछ भी नही कहा जा सकता है वरना उस महिला विरोधी कहा जायेगा
Misogynist

आप ऐसा न सोचे के ऐसी सोच वाले लोग सिर्फ यूरोप मे ही है, ऐसे हरकतो को दबी चुपी आवाज़ मे यहाँ भी स्पोर्ट दिया जाता है, ये कुछ नामनिहाद देसी लिबरल भी उन्ही यूरोपियन को अपना रहनुमा और रहबर समझते है जो स्विडेन मे कुरान की बे अदबि करने को आज़ादी बता रहे है।
यह आधुनिक, उदारवादी कुरीतिया सिर्फ इस्लाम के खिलाफ ही क्यो आज़माया जाता है। कभी आप ने सोचा है।
हीन्द्, पाक, बंगलादेश जैसे मुल्को मे एक तबका हमेशा आज़ादी आज़ादी नारा देते रहता है।
ये आज़ादी गैंग यूरोप के नकश् ए कदम पर चलते है।
यह मॉडर्न, उदार, आज़ाद ख्याल और साइंस से शुरू करते है अपना मुहिम।

शुरू मे जो अंजान है उसे चांद और सितारों पर पहुँचने मे मिले कामयाबी के पीछे का राज कुछ ऐसे बतायेंगे।

दुनिया चाँद तारो पर चली गयी, मंगल ग्रह पर इंसान बस रहा है और आप वही के वही है।

यानि ये लोग चाँद पर पहुँचने के लिए बातिल , नँगापन, हमजिंसीयत को जिम्मेदार बताते है।
अगर आप नँगा हो जाए, बे गैरत बन जाए, अपने दिन और किताब को आग लगाए, मज़ाक बनाये, गालिया दे तो आप फिर आसमान पर जा सकते है, साइंस और टेक्नोलॉजी मे आगे बढ़ सकते है।

ये लोग इसकी शुरुआत औरतों की तालीम, रोजगार से शुरू करते है। औरतों की तालीम का तहरिक यूरोपियन पैटर्न पर चलाते है.... उसे तालीम कम.. दिन से, असल मकसद से, उसके मजहबी किताब से, आलिम ए दिन से दिल मे नफरत ज्यादा बैठाते है। क्योंके इनका असल सच छुपा रहता है इसलिए कोई जब दीन की बातें बताता है तो उसे रूढ़ीवादी, पुरानी सोच वाला कहकर मजाक बना दिया जाता है ताकि इसका हौसला यही पस्त कर दे। जबकि इस्लाम ने औरतों को पढ़ने से मना नही किया मगर तालीम जो मग्रिबियत के सिलेबस मे है वह कुफ्र और बेग़ैरति की तरफ ले जाता है।

जब यह अपनी ज़मीन शुरुआती दौर मे तैयार कर लेते है फिर औरतों की आज़ादी के नाम पर उसे आज़ाद महसूस कराने और वेल एडुकेटेड कहलाने के लिए यह शर्त रखा जाता है बरहना लिबास पहनो फिर तुम्हे दुनिया आज़ाद ख्याल कहेगी वरना मर्दो की गुलाम कहलओगी, यानी आप कितना भी पढ़ ले जबतक मगरिब् के तहजीब पर नही चलेंगे तब तक जाहिल गंवार है। ये लोग हर जगह इख़्तिएलाफ पैदा कर के एक पक्ष को अपने साथ रख कर दूसरे के खिलाफ खडा करते है ताकि दरार पैदा किया जा सके और यहाँ से शुरू होता है जेंडर वार।

ये तालीम के साथ साथ मर्दो के खिलाफ भी उसका ब्रेनवाश करते है और जब स्टेप बाय स्टेप ट्रेनिंग मुकम्मल हो जाता है फिर उसे दुनिया के सामने दूसरी लड़कियो के लिए आदर्श बनाकर पेश करते है।
इसमे मर्द और औरत दोनो शामिल है, लेकिन इस सोच को फैलाने के लिए समाज मे औरतों को अपना मूहरा बनाते है, यानी नारी उत्थान (women empowerment) से शुरू करते है।

स्वीडेन मे जो कुरान जलाया जा रहा है उधर भी इसी तरह शुरुआत हुआ, जैसे हिंद पाक मे शुरू किया गया है। यहाँ औरतों की आज़ादी के बाद अब हमजिंसीयत की तरफ कदम बढ़ाया जायेगा जो के इस्लाम मे हराम है। फिर उसी आज़ादी की शुरुआत होगी जो शार्ली हेब्दो, और डेनमार्क मे आज हो रहा है।

ऐसे मुनफ़ीकीन् देसी लिबरल की पहचान कैसे करे।

देसी लिबरल थ्योरी

यह हमेशा अपने मुल्क के बनिसबत यूरोप को बेहतर बतायेंगे, वहाँ का मिशाल देकर वैसे कानून यहाँ भी नाफ़िज़ करवाएंगे, जैसे ट्रांसजेंडर एक्ट व homosexuality, इज़हार ए राय की आज़ादी बगैर रोक टोक के (मगर इनके डेमोक्रेसी, यूरोपियन सिस्टम पर तंकिद नही कर सकते है बाकी आपको जितना इस्लाम के खिलाफ बोलना है बोले इस्लाम विरोधी नही कहलाएंगे, उदारवादी कहलाएंगे। हा आप अपने मजहब, दिन और तहजीब का प्रचार या इजतैमाइ तौर पर कुछ भी नही कर सकते वरना कट्टरपंथी, दकियानुसी कहे जायेंगे, आप महिला विरोधी, सामलैंगिक विरोधी कह जा सकते है)

ये अपने मुल्क और अमेरिका का मसला हो तो अमेरिका के साथ खड़े होंगे,
इसराइल व फिलिस्तीन का मसला हो तो इसराइल के साथ खड़े होंगे, वैसे आम दिनों मे ये इंसानी हुकूक और जम्हूरियत की आवाज़ खूब उठाएंगे अपने मुल्क की हुकूमत से मगर इसराइल के ज़ुल्म पर खामोश रहेंगे क्यों वह इसलिए के इसराइल के साथ अमेरिका खडा है।
इराक अमेरिका का मसला होगा तो फ़ौरन अमरीकी खेमे मे जायेंगे और उसके दूसरे पक्ष को आतंकवाद और दहशत गढ़ बोलेंगे।
अफगान अमेरिका का मामला हो तो ये पूरे अफगानी को कट्टरपंथी कहेंगे दूसरे तरफ हमलावर अमेरिका को अमन पसंद।
युक्रेन रूस का मामला होगा तो युक्रेन का साथ देंगे, दलील यह के रूस ने युक्रेन पर हमला किया, लेकिन सच यह नही है सच यह है के युक्रेन के साथ अमेरिका इंग्लैंड खडा है। अगर हमला करने वाला रूस दहशत गर्द है तो अमेरिका' इराक, अफगान, वियतनाम जैसे देश पर हमला करके अमन पसंद कैसे बन गया?
इनको इसराइल, इंग्लैंड, डेनमार्क सब हक पर नजर आता है, मुसलमानो के इख़्तेलाफ को फिरक़ परस्ती कहते है,  इत्तेहाद हो जाए तो कहते है "हम आप के इत्तेफाक को नही मानते"।

एक वाइट अमेरिकन पुलिस के बर्बरता से जॉर्ज फ्लॉयड मारा गया
अमरीका मे #BlackLivesMatter प्रोटेस्ट हुआ अमेरिका मे पुलिस की बर्बरता पर खूब चर्चा हुई सबने मरने वाले से अपनी संवेदना  दिखाई। 
किसी ने बाइबल या अमेरिका का संविधान या वहां के राष्ट्रपति की तस्वीर नहीं जलाई।

ईरान मे मोरालिटी पुलिस के हिरासत मे महसा अमीनी की मौत हुई हंगामा हुआ खूब प्रोटेस्ट हुआ पुलिस के साथ साथ ईरान की सरकार इस्लाम क़ुरान सब टारगेट हुआ ( ईरान मे इस्लामी हुकूमत नहीं है )
पूरी दुनया ने महसा अमीनी के साथ अपनी संवेदना प्रकट की। (आगजनी हुआ, नंगे प्रोटेस्ट किया, इसके समर्थन पर भारतीय मीडिया मे औरतें बाल काटने लगी,  actores हमदर्दी दिखाने लगी। )

फ्रांस मे वहां की पुलिस ने 17 साल के निहाल मरजूक को पॉइंट ब्लेंक से गोली मार दी
ममला पुलिस बर्बरता के साथ साथ उनके एक गन्दी जेहनियत का था
प्रोटेस्ट हुआ हंगामा हुआ
पूरी दुनिया अमेरिका और ईरान के मामले जैसे निहाल को अपनी संवेदना देती फ्रांस सरकार और उसकी पुलिस के हरकत पर सवाल करती मगर ऐसा हुआ नहीं उल्टा मुसलमानो के वुजूद पर माईगरेंट मुसलिम पर सवाल होने लगा और भारत मे तो इसका अलग ही सीन है। कुछ आतंकवादी मीडिया ने मुसलमानो के खिलाफ नफ़रत के लिए इसको कैचा कर लिया।

ऐसा क्यों है के पूरी दुनिया मुसलमानो के मामले मे दोगला रवैया रखती हैं?
क्यूँ मुसलमानो के मामले मे लोग सारा सिद्धांत सारी इंसानियत भूल जाते है ?

सोचिएगा जरुर.....

मगर सारी तथाकथित आज़दिया, सेकुलरिज्म और अभिवायक्ति की स्वतंत्रा का बोझ कुरान जलाकर ही हलका किया जाता है। यह मगरीबि प्रोपगैंडा है इस्लाम के खिलाफ।

मगर मुसलमान नवजवानो का क्या हाल है?

इसलामी एडुकेशं को बेकार करार दिया और अगर पढाया भी जाता तो एक मामूली और बिना जरूरत का किताब समझा जाने लगा।

हिंदुस्तान, पाकिस्तान के तरफ के मुसलमानो ने इस्लाम को शादी, बराती, मैय्यत और मुहर्रम तक ही जरूरी समझा। बाकी दिनों मे फिरंगियों के दस्तारखवाँ पर छोड़े हुए हड्डीयो को गले का हार बना लिया।

दिनी तालीम को सिर्फ मस्जिद के इमाम और उलेमा तक ही जरूरी समझा जाने लगा।

ऐसे मौलवियो ने भी इस्लाम को इस तरह पेश किया के सिर्फ इस्लाम मे नमाज, रोजा, कुरान खवानी जैसे बिद्दत्, ज़कात व खैरात और हज्ज्  ही फ़र्ज़ है। बाकी सारी उमर गोश्त की बोटिया नोचते रहो और एक सर पर टोपी, कुर्ता व पजामा पहन लो हो गए मुसलमान।

जिहाद एक सआदत थी मगर इसको जुर्म करार दिया गया।
जिहाद एक इबादत थी मगर इसको फसाद करार दिया गया।

जिहाद एक जरूरत थी मगर इसको बेकार करार दिया गया।
जिहाद नुसरत का दरवाजा था मगर हम ने खुद बंद कर दिया।

जिहाद रहमत की बारिश थी मगर छतरिया लगा ली गयी
जिहाद शहादत की राह थी जो बंद कर दी गयी।

उम्मत ए मुस्लेमा को बहादुर और बेदार लोगो की जरूरत है।

ऐसा कहा जाता है के अफसर ज़र्मन  (ज़र्मनी का रहने वाला) हो और लड़ने वाले तुर्क हो तो सारी दुनिया फतह कर लेंगे। वज़ह यह बताई जाती है के तुर्क बहादुर है मगर ग़ाफ़िल है और ज़र्मनी इतने बहादुर नही मगर बेदार है।

यह हिकायत बयां करने का मकसद यह था के हर मुसलमान को चाहिए के वह बहादुर भी बने और बेदारी का मुजाहेरा भी करे। आज हम अपनी तादाद को देख कर फखर महसूस करते है लेकिन हकीकत यह है के हम बेदार नही है बल्कि अपनी गफलत का शिकार है, हम अपने आप को, अपनी तारीख को, अपने अस्लाफ को भूल चुके है। इसी गफलत की नींद ने गैरो को अपनी चाल चलने के लिए आज़ादी फराहम कर दी।

हमारी गफलत और बुझ्दिली का ही नतीजा है के आज मुसलमान गुलामी का शिकार है, जो लोग खुद को आज़ाद समझते है वह बाकी मुसलमानो के खातिर की जद्दो जेहद् नही करना चाहते, हर कोई बहाने बनाये बैठा हमारा यह मजबूरी.... वह मजबूरी

शहर में आग लगा के मुझे तसल्ली है , ज़रा सा शोर मचा के मुझे तसल्ली है।
डरा रहा था उजाले में आइना मुझ को, चिराग घर के बुझा के मुझे तसल्ली है।

एक ही जिंदगी है, कुछ कर दिखाओ, रोज क़यामत सुरखुरु होंगे वरना यह दुनिया तो हाथ से निकल चुकी, आखि़रत मे भी अफसोस का शिकार होंगे।

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