Musalmano yah Democracy tumhara Nijam nahi hai, Yah Jinka Nijam hai Usool w zawabt, marzi bhi unhi ki chalegi.
Ye Jamhuriyat (Democracy) aur Magribi Tahjib ne Deen ki jagah le li hai.
Islam ke Khilaf European Propganda, Quran Jalana.
Kya Watan se Muhabbat karna Iman ka hissa hai?
Misr se shuru hua Fahaashi aaj Muslim duniya par kabza kar rakha hai?
Spain ki tarikh: jahan 800 Saal ki hukumat ke bad aaj Firangiyo ka kabza hai.
Kaisi Aazadi hai Jahan Musalmano ke Gharo ko Buldoz kar ke Jashn manayi jati hai?
मुस्लिम मुमालिक ने इस्लाम को अपना दस्तूर माना लेकिन उस पर अमल नही
मगरीबि मुल्को ने अपना दस्तूर अकल को माना, तो उस पर अमल भी किया।
ज़ाहिर सी बात है के आने वाली नई नस्लें इस्लाम को लेकर बद्गुमानिया पालती और मगरीबि ख्यालात को सही और ज़दीद।
तुम्हारी तहज़ीब अपने ख़ंजर से आप ही ख़ुद-कुशी करेगी।
जो शाख़-ए-नाज़ुक पे आशियाना बनेगा ना-पाएदार होगा.
कुछ लोग सुबह शाम, उठते बैठते साइंस और टेक्नोलॉजी मे मगरीब की मिशाल देते है, मगर तकलीद उनके फशक् व फुजूर, बेहयाई, फ़हाशि, हमजिंसीयत की करते है। ऐसे लोगो की मिशाल उस शख्स की तरह है जो हर वक्त कुत्ते की वफादारी की तारीफ करे मगर कुत्ते से सिर्फ भौकना सीखे।
कुछ नाम नेहाद, जदीद, आज़ाद ख्याल मुसलमान जो तौहीद से हटकर इल्हाद के तरफ जा चुके है ऐसो को मुसलमान कहना ही नही चाहिए और ये मुसलमान कहलाने मे शर्म महसूस करते है। ये इस्लाम को छोड़कर मगरीब के बेहया तहजीब के चिराग से रौशनी हासिल करने को रौशन ख्याली समझते है।
इस्लामी निजाम के खिलाफ लोगो को भड़काने, नफरत दिलाने और माइंड सेट बनाने के लिए यूरोप का देसी लिबरलस्, मुनाफ़िक्स, नामनिहाद हुकुक निस्वा के जरिये एक मुहिम चलाया जा रहा है। वह इसलिए के मगरीबि हुकमराँ इस्लामी निजाम से खौफज़दा है। वह समझते है के ऐसा न हो के हमारे अंदर भी लोग इस्लामी निजाम का दावा करे।
पहले मगरिब् का फलसफा था के मज़हब हर शख्स का जाती मसला है, रियासत (State) मज़हब से अलग रहेगी। इसलिए पहले लोगो को इस फल्सफ़े के तहत मज़हब - दिन से दूर किया, अब इन का नया फलसफा है के मज़हब जाती जिंदगी मे भी नही होनी चाहिये इसलिए मज़हब को जाती जिंदगी से भी खतम करने की मुहिम शुरू की गयी है। लिहाजा पहले रियासती और अब इन्फरादि सतह पर भी किसी का कोई मज़हब नही होना चाहिए।
देसी लिबराल्स और मुनफिकिं की थ्योरी
अफ़ग़ानिस्तान अमेरिका का मसला हो तो अमेरिका के साथ, इस्राएल फिलिस्तीन का मामला हो तो इस्राएल इनको हक पर नज़र आता है, यूरोप कुरान जलाने को आज़ादी बताये और इस्लाम विरोधी प्रोपगैंडा करे तो वह आधुनिक और आज़ादी ख्याल, अमेरिका ईरान के साइंसदाँ पर मिसाइल गिराए तो अमेरिका उदारवाद और ईरान कटरपंथ, मुसलमान कुरान जलाने का विरोध करे तो शरणार्थी और चरमपंथी, मुस्लिम रियासत मे औरतों को हिजाब पहनने को कहा जाए तो तुच्छ, दकियानुसी, कट्टरपंथी और महिला विरोधी, नारीवादि tv पर अपना बाल काटने शुरू कर देते है और इस्लामी को महिला विरोधी बताते है। फ्रांस अपने यहाँ मुसलमान औरतो को अबाया, हिजाब, बुर्का पर पाबंदी लगाए तो वह मॉडर्न, आज़ाद ख्याल और मजहबी रवादारी, वह अरबी को गोलिया मारे तो वतन प्रस्त। मुसलमान किसी मसले पर इकट्ठा हो जाए और इतेफाक रखे तो कट्टरपंथी और शिद्दत पसंद।
आपको कमज़ोर इस तरह से किया गया, कि आपको लगता रहा कि आप ही तो ताकतवर हैं, लेकिन अंजाम ये हुआ कि ताकत तो कब की छिन चुकी थी,बस रह गया था ,तो बस एक नाम ,जो अब छीना जा रहा है,बाद कड़वी है मगर आपको किसी दूसरे ने नही बल्कि आपको कमज़ोर किया आपकी अना ने,आपकी लापरवाही ने, आपकी तरबियत ने और रही सही कसर पूरी की है मुनआफ़ीक़ो ने।
इस दुनिया मे हर शख्स उतना ही परेशान है,
जितना उसकी नजर मे दुनिया की अहमियत।
मगरिब् को असल खतरा यह है के कहीँ लोग इस्लाम की तरफ न देखने लगे वह इसलिए के हर रोज यूरोप मे आलिम, मुफक्कीर्, फलसाफि, मुवास्सिर् कुरान व् हदीस पढ़ कर इस्लाम कुबूल कर रहा है.... लेकिन मुस्लिम घरानो मे बे हया, बेशर्म और बे गैरत बनने को ही असल तरक्की समझा जा रहा है। अगर हम अंग्रेजी कल्चर (मागरिबि ) के पीछे पीछे चलते रहे तो तबाही व् बर्बादी हमारे घरों का रूख जरूर करेगी। अगर कौम के लोग कुर्सी, पैसे और इक्तदार के लिए दिन और तहजीब का मज़ाक बनाने और मुस्लिम खवातीन अंग्रेजी भेड़ियों के बहकावे मे गुमराह होती रही तो आने वाली नस्ल भेड़िया से ज्यादा डरपोक और खिंजीर से भी ज्यादा बे हया बन जायेगी।
औरत यमन से मदीना का सफर करे, खूबसूरत और जवान हो, सोने चंदियो के गहने से सजी हो मगर उस खातून की तरफ या उसके गहने की तरफ किसी गैर मर्द को आँख उठाकर देखने तक की जसारत् न हो... तो वह हैरत ज़दा होकर पूछे के यह कौन लोग है और यहाँ किस तरह का नेजाम् है तो पता चले के
खलीफा उमर फारूक राजिअल्लाहु अनहु है और यह नेजाम् " निजाम ए इस्लाम " है।
مسلمانو! جمہوریت تمہارا نظام نہیں ہے۔ یہ جن کا نظام ہے اصول و ضوابط، احکام اور مرضی بھی انہی کی چلے گی۔
عالمی کفری برادری جمہوریت کا بہت پرچار تو بہت کرتی ہے لیکن اس کے ذریعے اسلامی قوتوں کا مستفید ہونا گوارا نہیں کرتے۔ ۱۹۹۲ء میں الجزائر میں اسلامک سالویشن فرنٹ، ۲۰۰۶ء میں فلسطین میں حماس اور ۲۰۱۲ء میں مصر میں اخوان المسلمون الیکشن جیتے یا جمہوریت کے راستے اقتدار میں پہنچے تو وہاں امریکا اور مغربی ممالک نے فوجی عناصر کے ہاتھوں جمہوریت کی بساط لپیٹ دی تھی۔ اہلِ مغرب کو معلوم ہے کہ ہماری تہذیب کا سرچشمہ ہمارا دین اسلام ہے۔ اس لیے ان کی توپوں کا رُخ ہمارے دین کی طرف ہے اور خلافت و شریعت تو درکنار جمہوریت کے راستے سے بھی اسلامی نظام نافذ ہونا انہیں شدید ناگوار گزرتا ہے۔
جمہوریت اور مغربی تہذیب نے "دین" کی جگہ لے لی ہے :
✦ سیاست، معیشت اور معاشرت میں کوئی قوم جن اصولوں اور جس نظام پر چلتی ہے وہی اس کا "دین" ہوتا ہے۔
افراد اور قوموں کی اپنی کوئی نہ کوئی تہذیب ہوتی ہے جس سے ان کی بہت گہری وابستگی ہوتی ہے۔ پھر اس تہذیب کا کسی نظام سے بھی بڑا گہرا تعلق ہوتا ہے۔ اس لیے کہیں کہیں تہذیب سے مذہب سے بھی بڑھ کر جذباتی تعلق ہوتا ہے۔
اِس وقت مغربی تہذیب کی یہی مثال ہے، جس کا نظامِ جمہوریت سے گہرا تعلق ہے اور اس نے مذہب و دین کی جگہ لے لی ہے۔ اہلِ مغرب مذہب سے کہیں زیادہ اپنی تہذیب کے بارے میں حساس ہوتے ہیں۔ انہوں نے سیاست، معیشت اور معاشرت میں کسی نہ کسی مذہب کی جگہ "جمہوری و مغربی تہذیب کا دین" نافذ کر رکھا ہے اور ساری دنیا پر اسی دجالی نظام و تہذیب کا غلبہ دیکھنا چاہتے ہیں۔
جس طرح کسی بادشاہ کی آمد سے پہلے اس کے غلام یا کارندے اس کی آمد کا اعلان کرتے ہیں، اسی طرح دجال کے خروج سے پہلے اس کے ایجنٹ (اقوامِ متحدہ اور مغربی ممالک) اس کی تہذیب برپا کرکے اس کی آمد کا شور مچا رہے ہیں۔
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