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Talim (Education) ke Nam par Muslim Ladkiyo ko Be Parda karna.

Talim ke nam par Musalmano ke andar Fahashi failane ki Sajish.

इस दुनिया मे हर शख्स उतना ही परेशान है
जितना उसकी नजर मे दुनिया की अहमियत।


मगरिब् को असल खतरा यह है के कहीँ लोग इस्लाम की तरफ न देखने लगे वह इसलिए के हर रोज यूरोप मे आलिम, मुफक्कीर्, फलसाफि, मुवास्सिर् कुरान व् हदीस पढ़ कर इस्लाम कुबूल कर रहा है....  लेकिन मुस्लिम घरानो मे बे हया, बेशर्म और बे गैरत बनने को ही असल तरक्की समझा जा रहा है। अगर हम अंग्रेजी कल्चर (मागरिबि ) के पीछे पीछे चलते रहे तो तबाही व् बर्बादी हमारे घरों का रूख जरूर करेगी। अगर कौम के लोग कुर्सी, पैसे और इक्तदार  के लिए दिन और तहजीब का मज़ाक बनाने और मुस्लिम खवातीन अंग्रेजी भेड़ियों के बहकावे मे गुमराह होती रही तो आने वाली नस्ल भेड़िया से ज्यादा डरपोक और खिंजीर से भी ज्यादा बे हया बन जायेगी।

तालीम के नाम पर मुस्लिम लड़कियो को बे पर्दा करना।

*एक कॉलेज के प्रोफेसर का लड़कियो के लिए सलाह:*

हॉलीवुड की सेक्स सिम्बॉल कहलाने वाली अदाकारा आखिरी वक़्त मे क्या कही थी? 
मुसलमानो से यूरोप कल्चर वार करके कैसे जीत रहा है?

मुस्लिम लड़कियो पर गैर मुस्लिमो के कल्चरल वार। 

खिलाफत के खातमे ले लिए लिबरल साजिशे । मुस्लिम दुनिया मे बेहयाई का तारीख। 

तुम्हारी तहज़ीब अपने ख़ंजर से आप ही ख़ुद-कुशी करेगी।
जो शाख़-ए-नाज़ुक पे आशियाना बनेगा ना-पाएदार होगा

आज मुस्लिम लड़कियो की तालीम.


सर और बाल खुले, दुपट्टे का पता नही, सलवार शूट को  कब तलाक दे दी, जीन्स टी शर्ट मे कान मे एयर फोन लगाए हुए

पूछो के कहाँ जा रही हो तो जवाब मिलेगा तालीम हासिल करने।

जो तालीम औरत को हया के रास्ते से हटाकर बे हयायी वाली शैतानी रास्ते पर ले आये उस तालीम नही कहते है, अगर यही तालीम है तो इससे बेहतर जाहिल रहना ही ठीक है।

जो तालीम औरत को सीरत ए मुस्तकीम से हटाकर सीरत ए सलेबी और यूरोप का प्रोडक्ट बना कर रख दे वैसी तालीम हासिल करने वाली कौम के यहाँ सुल्तान सलाहुद्दीन अय्यूबी पैदा नही होंगे।

तालीम तो ऐसी होनी चाहिये जो औरत को बा हया, बा पर्दा और बा हिजाब बना दे नाकि बे हया, बे पर्दा  और बे शर्म बना दे।

लड़कियां अगर सर ढक लेंगी, पर्दे मे रह कर तालीम हासिल करेंगी तो... भी उतना ही पढ़ी लिखी काबिल और बा शावउर् होंगी जितनी बे पर्दगी मे. वो तालीम ही क्या जो खवातीन से पर्दा और हिजाब छीन ले और दीन से गुमराह कर शैतानी रास्ते पर ले जाए।

यह सब तो कहने के लिए है, मगर वैसी मुस्लिम लड़कियां जो आज़ादी, बराबरी और अपने हक़ की लडाई लड़ रही है वही आज़ादी जो यूरोप ने इन्हे सिखाया है... उनके दिलों पर शैतान का कब्ज़ा है, उन्हें वही सब अच्छा लगेगा जो मगरिब् बताएगा, सिखायेगा और तरबियत दी जायेगी। ये खवातीन अल्लाह के निजाम का मज़ाक बना रही है, अल्लाह के हुक्म के खिलाफ काम कर रही और खुदा के दीन के खिलाफ बगावत कर रही है और वह सब सलेबियो के इशारे पर हो रहा है, मगरिब् के तहजीब और तरीके की खातिर ये नाम निहाद लिबरल्स, लेफ्ट अल्लाह को चैलेंज कर रही है। यह खुद को इस दुनिया का मालिक समझती है और  अल्लाह के कानून को तोड़ रही है। फ़िरौन, करून और हमाम का गुरूर, मन मर्जी, और कुफ्रिया हुकूमत चली ही नही, तो ये लोग अल्लाह की ना फर्मानी और शरीयत की तौहीन कर के कितने दिनों तक अपनी मनमर्जी करेंगे।

ख्वाहिशात तो सबके दिल में होती है और सब उसकी तकमिल चाहते है ... लेकिन देखना यह परता है के उन तक रसाई के लिए कौन सा रास्ता इख्तियार किया जाता है, उसी रास्ते के इंतेखाब में तो इंसान का पता चलता है के वह सोना है या कोयला? 

चालाकियां दुनिया में रहने के लिए काफी है लेकिन याद रखे के रोज़ मेहशर अकलो और दलीलों पर फैसले नहीं होंगे, ना वाहा झूठे गवाहों की जरूरत पड़ेगी, नहीं आपको झूठी कसम खाने की जरूरत होगी।

जो लोग मुसलमानो के अंदर बे हयायि, बे पर्दगी और फ़हाशि फैला रहे है वैसे लोगो के लिए बर्बादी है।

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Talim ke nam Par Sar se Dupatta hatane wali Modern Education system.

Talim ke Nam par be hyayi ko firog dena.

Aaj Musalmaan ladkiya Talim hasil karne ke liye Parda ka majak kyu bana rahi hai?


آج کل لڑکیوں کى تعلیم بال کُھلے ہوَے*

*کان میں ہینڈ فرى دوپٹہ گلے میں شلوار ٹخنوں سے اوپر*

اور جب پوچھو کہ کہا جارہى ہو تو جواب آۓ گا تعلیم حاصل کرنے .

جو تعلیم عورت کو حیاء کے راستے سے ہٹا دے میرے خیال میں ایسى تعلیم سے جاہل رہنا بہتر ہے .

تعلیم اور ڈگرى تو ایسى ہونى چاہیۓ جو عورت کو باوقار باحیاء اور باحجاب بنا دےناکہ ایسى تعلیم ہونى چاہیۓ جو آپ کو دین اور حیاء کے راستے سے ہى ہٹا دے .

لڑکیاں اگر سَر کو ڈھک لیں گى تو بھى اتنى ہى پڑھى لِکھى اور پیارى لگیں گى جتنى اب ہے.

*البتہ عزت کى چادر اوڑھ لینے سے اور حیاء کا پردہ کرنے سے مزید عورت باحیاء اور عزت دار لگتى ھے۔*

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Pakistani Hindu ne Qabaro aur Murtiyo (Statue) ki Pooja karne wale Dharm ke bare me Kya Fark bataya?

Ek Hindu Naw jawan ka Qabar ki pooja karne wale dharm Ke bare me kya kaha?
Qabar ki Pooja (Pray) Karne wale aur Murtiyo ki Pooja Karne wale me kya fark hai?
Pakistan ke Ek Hindu Ladke ne Qabar ki Aur Murtiyo ki Ibadat karne wale me Fark bataya.

قبوری دھرم پر ایک ہندو نوجوان کا تبصرہ*

پاکستان کے معروف عالم دین، عظیم مذہبی سکالر اور معروف صحافی حضرت مولانا امیر حمزہ صاحب جب سندھ میں پیر لٹن شاہ اور ککڑ شاہ وغیرہ کے دربار پر گئے تو قریب کی ایک مسجد میں ان سے ملنے کے لیے ایک پڑھے لکھے ہندو نوجوان آئے اور ہندو دھرم اور قبوری دھرم پر بڑا کمال کا تبصرہ کیا۔

امیر حمزہ صاحب لکھتے ہیں وہ مجھے بڑے تپاک سے ملا بہت خوش ہوا اور کہنے لگا:

*حمزہ صاحب! پہلی بات تو یہ ہے کہ آج آپ یہاں آئے اور آپ سے ملاقات کی میری دیرینہ خواہش پوری ہو گئی، خواہش کے پورا ہونے کی آج مجھے بڑی خوشی ہے۔*

*بات یہ ہے کہ جب میں بڑا ہوا تو مجھے بتوں کی پرستش اچھی نہیں لگتی تھی، اپنے دھرم (دین) پر دل مطمئن نہیں تھا، چنانچہ میں نے مسلمانوں میں دلچسپی لینا شروع کر دی کہ ان کا دھرم معلوم کروں، وہ کیا کہتا ہے۔*

*چنانچہ اس دوران یہ لوگ مجھے ککڑ شاہ کے دربار پر لے گئے اور جب میں وہاں پہنچا اور وہاں کے سارے حالات دیکھے تو اس نتیجے پر پہنچا کہ ان کے اور ہمارے دھرم میں کوئی خاص فرق نہیں، چنانچہ میں پریشان سا رہنے لگا۔*

*یہ حسن اتفاق ہے کہ آپ کی کتاب میرے ہاتھ لگ گئی، اس میں آپ نے جو ان درباروں کے بارے میں لکھا ہے، میں نے یہ پڑھنا شروع کیا تو مجھے پتہ چلا کہ اصل اسلام وہ نہیں جو یہ لوگ سمجھے ہوئے ہیں، بلکہ اسلام یہ ہے جسے مجلہ والے پیش کر رہے ہیں۔*

*چنانچہ میں نے پھر قرآن وحدیث کا مطالعہ شروع کیا اب الحمدللّٰہ میں سمجھ چکا ہوں، اب صرف اسلام کا اعلان باقی ہے۔ اندر سے مسلمان ہوں اور نام بھی رکھ لیا ہے۔ آج جب مجھے معلوم ہوا کہ آپ یہاں آ رہے ہیں تو دل خوش ہوا کہ آپ سے ملاقات ہو گی۔*

(مذہبی اور سیاسی باوے صفحہ نمبر 102)

*قارئین کرام! اس ہندو نوجوان نے جو تبصرہ کیا ہے وہ آپ کے سامنے ہے یہ تبصرہ بار بار پڑھیں اور سوچیں کہ ہمارے قبوری دھرم والے بھائی کس طرف جا رہے ہیں اب تو ہندو بھی کہنے لگے ہیں کہ ان کے اور ہمارے دھرم میں کوئی خاص فرق نہیں یعنی جیسے ہم بتوں کو پوجتے ہیں ایسے ہی یہ بزرگوں کو پوجتے ہیں فرق تو ختم ہو گیا ہے۔*

*اسی لیے اس ہندو نوجوان نے قبوری دھرم دیکھ کر اسلام قبول نہیں کیا، سوچنے لگا کہ یہاں تو سب کچھ وہی ہو رہا ہے جو ہمارے ہندو دھرم میں ہوتا ہے اور وہ مجھے اچھا نہیں لگتا۔ پھر بعد میں جب اس تک عقیدہ توحید کی صورت میں قرآن وحدیث کی خالص دعوت پہنچی تو وہ مسلمان ہو گیا الحمدللّٰہ۔*

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Joyland: Pakistan me bane Transgender movies me kam karne wale Artist Ka talluq kin logo se hai?

Pakistani Movies Joyland Liberals ke Khauf se Dubara Release kar diya gaya.

जम्हूरियत वह अज़्दाहा है जिसने मुसलमानो के खून के रिश्तों को भी तार तार कर दिया, आपसी भाई चारे और मुहब्बत को सियासी जमातो के बोझ ने निगल गया। 

बेहयाई, बे पर्दगी और हमजिंसीयत का नंगा नाच हो रहा है, यूरोप के चंदे पर बने हमजिंसीयत फिलम जॉयलैंड, अमेरिकी चंदे पर पल रहे मुल्क पाकिस्तान मे रिलीज़ कर दिया गया है। 

जॉयलैंड मूवी और पाकिस्तानी रहनुमाओ का रवैय्या.... यूरोप के लोकतंत्र जाल मे फंसा पाकिस्तान की मजबूरी।

Joyland Pakistani movies me kam karne walo ka talluq kaise ajenciyo se hai?

Pakistani Hukumat Kis qadar Europe se dara hua hai ke apne Tahjib ka sauda Movies Banwakar kar raha hai?

Kya kabhi Koi Gair Muslim liberals ke Hatho Islam qubool kiya hai?

Quran and Science aur Muslim Liberals and Leftist tabka.

Khawaja Sira kaun hai?, Transgender ke bare me Islam kya kahta hai?

Pakistan me Transgender kitne Percent hai jiske liye Kanoon banaya gaya?

Waise Musalmano ka anjaam jo Muslamano ke andar  Behyayi failana chahate hai?

Islamic Parde ke Khilaf Liberals ka Propganda.

Aaj ke daur me Europe kaise Musalmano ke Andar Liberals ke jariye "Cultural war" Kar raha hai?

Wah Jumle jise Sun kar Leftist, Liberals, European Ajent, Americi Product ke Hosh ood Gaye. 

इस दुनिया मे हर शख्स उतना ही परेशान है

जितना उसकी नजर मे दुनिया की अहमियत

मगरिब् को असल खतरा यह है के कहीँ लोग इस्लाम की तरफ न देखने लगे वह इसलिए के हर रोज यूरोप मे आलिम, मुफक्कीर्, फलसाफि, मुवास्सिर् कुरान व् हदीस पढ़ कर इस्लाम कुबूल कर रहा है.... लेकिन मुस्लिम घरानो मे बे हया, बेशर्म और बे गैरत बनने को ही असल तरक्की समझा जा रहा है। अगर हम अंग्रेजी कल्चर (मागरिबि ) के पीछे पीछे चलते रहे तो तबाही व् बर्बादी हमारे घरों का रूख जरूर करेगी। अगर कौम के लोग कुर्सी, पैसे और इक्तदार के लिए दिन और तहजीब का मज़ाक बनाने और मुस्लिम खवातीन अंग्रेजी भेड़ियों के बहकावे मे गुमराह होती रही तो आने वाली नस्ल भेड़िया से ज्यादा डरपोक और खिंजीर से भी ज्यादा बे हया बन जायेगी।।

جوائے لینڈ ایک پاکستانی ڈائریکٹر صائم صادق کی بنائی ہوئی پنجابی فلم ہے، انہی صاحب نے اس کی کہانی بھی لکھی ہے اور اس کی ایڈیٹنگ میں بھی شامل رہے ہیں۔ بیشتر فنکار پاکستانی ہیں۔ مرکزی کردار علی جونیجو نے ادا کیا دوسرا مرکزی کردار الینہ خان نامی ایک ٹرانس جینڈر نے ادا کیا ہے ،جبکہ ٹی وی کی معروف اداکارہ ثانیہ سعید اور ثروت گیلانی کے بھی اہم کردار ہیں، راستی فاروق نے بھی اہم کام کیا۔

اس کے پروڈیوسروں کی اچھی خاصی طویل فہرست ہے۔ نو دس لوگ ہیں۔ سرمد کھوسٹ، اپوروا گروچارن (یہ لانس اینجلس میں مقیم انڈین نژاد امریکی پروڈیوسر ہیں)، ثناجعفری، اولیوررج، لارن مان، کیتھیرین برنسٹ، رمن بہرانی وغیرہ ۔عام طور پر کسی فلم کے پروڈیوسر اتنے لوگ نہیں ہوتے ،سرمد کھوسٹ تو خیر پاکستانی اداکار اور ہدایت کار ہیں، منٹو فلم انہوں نے بنائی تھی۔

دیگر پروڈیوسرز میں سے بعض عالمی سطح پر اچھے خاصے معروف ہیں۔ حیران کن طور پر یہ سب معروف لوگ اس چھوٹی سی پاکستانی پنجابی فلم کے لئے اکھٹے ہوئے ہیں، جس کی زبان بھی وہ نہیں سمجھ سکتے۔

لگتا ہے ان سب نے ”نیکی “کا کام سمجھ کر اس فلم میں حصہ ڈالا۔
خبروں کے مطابق ملالہ یوسف زئی نے بھی اس فلم کے حوالے سے اپنا کردار ادا کیا۔ وہ ایگزیکٹو پروڈیوسر کی ذمہ داری نبھا رہی ہیں۔

یہ فلم پاکستان میں نومبر کے دوسرے عشرے میں سینما ہاﺅسز میں لگانی تھی۔ فلم کے خلاف احتجاج کی ایک لہر سوشل میڈیا پر اٹھی ، تنقید ہوئی تو مرکزی سنسر بورڈ نے خلاف رائے دی اور حکومت نے پابندی لگا دی۔ گزشتہ روز خبر آئی کہ وزیراعظم شہباز شریف نے اس کا جائزہ لینے کے لئے ایک اعلیٰ سطحی کمیٹی بنا دی ہے۔ دلچسپ بات ہے کہ کمیٹی میں ایک بھی پروفیشنل یا ٹیکنیکل آدمی نہیں، وزرا ہیں یا پیمرا وغیرہ کے سربراہ، ایک وزیر برائے سرمایہ کاری بھی ممبر ہیں۔

ٹرانس جینڈر فلم لگانے یا نہ لگانے سے سرمایہ کاری وزارت کا کیا تعلق؟

جب حکومت پابندی لگا چکی تھی تو پھر اس پر نظرثانی کی ضرورت کیوں پیش آئی ؟

بظاہر یہ لگ رہا ہے کہ مختلف این جی اوز کے دباﺅ اور لبرل عناصر کی کمپین کے نتیجے میں اس فلم کو نمائش کی اجازت دینے کا راستہ نکالا جا رہا ہے۔

یہ فلم بنیادی طور پر ایک ایل جی بی ٹی پلس (LGBT+)فلم ہے۔ جو لوگ اس اصطلاح کو نہیں جانتے، وہ سمجھ لیں کہ اس سے مراد لیزبین ، گے ، بائی سیکشویل، ٹرانس جینڈر ہے، اب اس ترکیب میں اضافہ ہوچکا ہے،Q سے مراد کوئیر(Queer)ہے۔

آسان لفظوں میں کوئیر سے مراد وہ لوگ ہیں جو اپنی جسمانی روپ سے مطمئن نہیں۔ قدرت نے انہیں مرد بنایا مگر خود کو عورت سمجھتے ہیں اور کسی مرد سے محبت کرنے اور تعلق رکھنے کے قائل ہیں اسی طرح کہیں پر عورت ہے مگر وہ خود کو مرد سمجھتی اور جسمانی طور پر بھی ویسا بننا چاہتی ہے۔

فلم کی جھلک، موضوع اور فنکاروں کے انٹرویوز سے صاف ظاہر ہے کہ زیادہ فوکس ایک ٹرانس جینڈر کی لو لائف اور سیکشوئل لائف پر ہی ہے۔

فلم میں ایک روایتی گھرانہ دکھایا ، جس کا سربراہ ایک معذور مگر سخت گیر رجعت پسند والد رانا امان اللہ ہے۔
عثمان پیرزادہ کے بھائی سلمان پیرزادہ نے یہ کردار ادا کیا۔ اس کی خواہش ہے کہ اس کے بیٹے جلد اسے پوتے کا تحفہ دیں۔ رانا امان کا چھوٹا بیٹا حیدر (اداکار علی جونیجو)شادی شدہ ہونے کے باوجود ایک ٹرانس جینڈر (خواجہ سرا ڈانسر) پر عاشق ہوجاتا ہے۔

یوں فلم اس ٹرانس جینڈر (الینہ خان)بکے مسائل، اس کی لو لائف اور ہیرو کے ساتھ اس کے (فزیکل) رومانس کے گرد گھومتی ہے۔

کہانی میں دیگر خواجہ سراﺅں کے کردار ، ان کی آپس کی لڑائیاں، چشمک وغیرہ بھی دکھائی گئی ۔

کانز فلم فیسٹول میں اسے کوئیر پام ایوارڈ ملا ہے۔ یہ ایوارڈ ہم جنس پرستی/مخنث/ٹرانس جینڈر موضوعات پر فلموں کو دیا جاتا ہے۔ اس ایوارڈ کا دیا جانا بذات خود اس کا ثبوت ہے کہ یہ ایل جی بی ٹی فلم ہے اور یہ مین سٹریم موضوع کی فلم نہیں۔

میرے خیال میں فلم جوائے لینڈ کی پاکستانی سینما ہاﺅسز میں نمائش پر پابندی لگنی چاہیے ۔ یہ فلم اپنے موضوع اور ٹریٹمنٹ کی بنا پر ایسی نہیں کہ اسے سینماﺅں میں لگایا جائے۔ اس کی دو تین وجوہات ہیں۔

یہ فلم اور اس کا موضوع پاکستانی سماج کے بنیادی فیبرک کے خلاف ہے۔
ہمارا سماج ایک مشرقی اسلامی (Eastern Islamic) مزاج رکھتا ہے۔ اس کے کچھ تقاضے ہیں۔

یہاں بعض چیزیں معروف ہیں، عرب جسے عرف کہتے ہیں۔ اسلام، مشرقی تہذیب، شرم و حیا، تحفظ فروج (عصمت کی حفاظت) ہماری تہذیب کے بنیادی اجزا ہیں۔ حیا ویسے بھی حدیث مبارکہ کے مطابق اسلامی تہذیب کا جوہر ہے۔

ہمارے ہاں ہم جنس پرستی سخت غیر اخلاقی بات سمجھی جاتی ہے اور قانونی طور پر جرم ہے۔ مغربی تہذیب اور اب بھارتی تہذیب میں ہم جنس پرستی، اپنی مرضی سے جسمانی تعلق قائم رکھنا، ماورائے شادی جسمانی تعلق ، کسی قانونی بندھن کے بغیر اکھٹا رہنا (Live in Relation) عام ہے۔

وہاں قانون سازی کے بعد یہ سب فطری اور نارمل چیزیں بنا دی گئی ہیں۔ بھارت میں چند سال پہلے تک ہم جنس پرستی پر سزا تھی، اب وہاں قانون بدل گیا ہے، کوئی پابندی نہیں رہی۔
پاکستان میں ایسا نہیں۔ ہمارا مذہب اس حوالے سے بہت واضح اور غیر مبہم ہے، یہ سب غیر فطری اور گناہ کبیرہ کے درجے میں ہیں۔ ہمارے سماج میں اس کے لئے سخت مزاحمت موجود ہے۔

ایسا نہیں کہ ہمارا معاشرہ فرشتوں کا ہے، بہرحال یہاں انسان رہتے ہیں۔ گناہ بھی ہوتے ہیں، قوانین کی خلاف ورزی بھی ، مگر یہ حدود و قیود برقرار ہیں اور انہیں رہنا چاہیے۔
اگر ختم ہوئیں تو یہ برائیاں کئی گنا بڑھ جائیں گی۔

سماج میں یہ رکاوٹ یا بیرئر کا کام دے رہی ہیں۔ہمارے ہاں غیر فطری تعلق قائم ہونے کے بعض واقعات ہوتے ہیں ، مگر ان کی نوعیت مختلف ہے، یہ مغرب کے ”گے کلچر“جیسی ہرگز نہیں ۔ سماج مجموعی طور پر اسے غلط سمجھتا ہے۔

پاکستان ایک بڑی آبادی والا ملک ہے۔ اتنے بڑے ملک میں ٹرانس جینڈر ، خواجہ سرا وغیرہ بمشکل چند ہزار ہوں گے، یہ ایک فیصد بھی نہیں بنتا۔ اس لئے ٹرانس جینڈر رائٹس اور ایشوز وغیرہ محض این جی اوز کا ایجنڈہ اور فارن فنڈنگ جسٹی فائی کرنے کا ایک طریقہ ہی ہے۔

لوگوں کے بڑے مسائل دوسرے ہیں، مگر چونکہ ان کے لئے فارن فنڈنگ میسر نہیں، اس لئے ہماری انٹرٹینمنٹ انڈسٹری کے ذہین دماغ ادھر آنے کی زحمت نہیں کرتے۔ جیسے یہ کتنا بڑا المیہ ہے کہ کئی ملین بلکہ کروڑوں میں بچے ناکافی غذا ملنے کے باعث دماغی طور پر کمزور اور سلو ہوچکے ہیں۔ اتنے بڑے ایشو پر کبھی کوئی ڈرامہ یا فلم نہیں دیکھیں گے، حالانکہ اس پر آگہی بڑھانے سے کروڑوں لوگوں کو فائدہ پہنچے گا۔

ہمارے ہاں خواجہ سراﺅں کے لئے جینوئن ہمدردی پیدا ہوچکی ہے۔
الخدمت، اخوت، غزالی ٹرسٹ سکول جیسی معروف سماجی تنظیمیں جن کی قیادت مذہبی لوگ ہی کر رہے ہیں، وہ خواجہ سراﺅں کے لئے کئی پراجیکٹ شروع کر چکے ہیں۔

ان کے لئے قانون سازی ہوئی ہے۔افسوس کہ مغربی سٹائل کی ٹرانس جینڈر موومنٹ والے اپنے الٹرا لبرل ایجنڈے کے باعث حقیقی خواجہ سرا کے لئے مشکلات پیدا کر رہے ہیں۔
جوائے لینڈ جیسی فلم نام نہاد ٹرانس جینڈرز کی سوچ کی نمائندہ ہے جو اپنی جنسی خواہشات سے مغلوب ہو کر سب کچھ تلپٹ کرنا چاہتے ہیں۔

ویسے بھی جوائے لینڈ ایک آف بیٹ (Off Beat) فلم ہے، اس کا موضوع اور ٹریٹمنٹ مین سٹریم نہیں اور نہ ہی یہ عام فلم بینوں کے لئے ہے۔

قوی امکانات ہیں کہ سینما ہاﺅسز میں اس کی نمائش شدید عوامی ردعمل کا باعث بنے ۔ایسی کلٹ فلمیں محدود حلقے کے لئے ہوتی ہیں، دلچسپی رکھنے والے اسے اوٹی ٹی فورم پر یا یوٹیوب وغیرہ کے ذریعے دیکھ لیں گے۔
انہیں سینما ہاﺅس میں لگانے کی اجازت دینا LGBT کے پورے تصور اور” کوئیر“ موضوعات کی حوصلہ افزائی کرنے کے مترادف ہے۔

جوائے لینڈ جیسی فلمیں دراصل سماج میں موجود بیرئر توڑنے کے لئے بنائی جاتی ہیں ۔ سینما میں نمائش اس موضوع کو نارمل اور عام بنانے کی ایک کوشش ہوتی ہے۔

فلم دیکھنے والے جانتے ہیں کہ اسی انداز میں برسوں پہلے بھارت میں ایک فلم فائر بنائی گئی، شبانہ اعظمی نے اس میں کام کیا ۔پھر مشہور پروڈیوسر کرن جوہر نے جو خود مبینہ طور پر ”گے “ہے، اس نے ان موضوعات پر کئی فلمیں بنائیں ، ٹی وی ڈرامے بھی۔
بھارتی سماج میں بیرئر ٹوٹتے گئے ، حتیٰ کہ آج وہاں یہ سب نارمل، عام اور قانونی طور پر جائز ہوچکا ہے۔

ہر وہ شخص جو پاکستان میںLGBT اور ٹرانس جینڈرز کے بڑھتے رجحان کے آگے بند باندھنا چاہتا ہے۔

وہ سماج میں موجود بیرئرز برقرار رکھنے کا خواہش مند ہے، اسے جوائے لینڈ کی نمائش کے خلاف آواز اٹھانی چاہیے۔
وزیراعظم شہباز شریف کو عوامی جذبات اور عوامی ردعمل کا اندازہ لگا کر پابندی برقرار رکھنی چاہیے۔ مسلم لیگ ن میں موجود لبرل کیمپ پچھلے چند برسوں میں زیادہ طاقتور ہوا ہے، ن لیگ کو مگر ووٹ عوام سے لینے ہیں، ان لبرلز سے نہیں۔ اپنی سیاست کو اپنے ہاتھوں دفن نہ کریں۔

تحریک انصاف کو بھی عوامی جذبات کی نمائندگی کرتے ہوئے اس پر آواز اٹھانی چاہیے۔ عمران خان جس ریاست مدینہ کی بات کرتے ہیں، اس میں جوائے لینڈ جیسی ایل جی بی ٹی /کوئیر فلموں کی کوئی گنجائش نہیں۔

جماعت اسلامی کے سینیٹر مشتاق خان نے پہلے بھی بھرپور طریقے سے آواز اٹھائی، انہیں پھر متحرک ہونا پڑے گا۔ ویسے یہ کسی ایک جماعت کا نہیں، ہم عوام کا مشترکہ مسئلہ ہے، اس کے لئے اٹھ کھڑے ہوں۔ اپنے بچوں کو بہت اور پاک صاف معاشرہ دینے کے لئے۔

{سہیل حنیف آرائیں}

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Qatar Fifa 2022; Qatar me ho rahe Fifa World Cup ka Boycott kyu kiya ja raha hai Europe me?

Qatar Ke Fifa World Cup ka Boycott kyu kiya ja raha hai?

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क़तर मे होने वाले फीफा वर्ल्ड कप का वेस्टर्न परस्त क्यों बॉयकॉट कर रहे है?

वो जुमले जिसको सुनकर वेस्टर्न पाखंडी, यूरोपीय कट्टरपंथी, लेफ्टिस्ट, देशी लिबरल्स, फिरंगी परस्त के होश उड़ गए

Qatarfifaworldcup2022 #Fifaworldcup #Qatarfifa #Boycottqatarfifa  #Boycottqatar

लोगो ने पहले क़तर का मजाक उराया था, उसको कट्टरपंथी, रूढ़िवादी और दकियानुसी कहने मे कोई कसर नही छोड़ा था। 

जब क़तर को फ़ीफ़ा वर्ल्ड कप की मेजबानी अवार्ड हुआ तो लोगों ने खूब मजाक बनाया कि कतर के पास स्टेडियम, क्लब वगैरह कुछ भी नहीं है, कैसे कराएगा वर्ल्ड कप? 

सच बताऊँ तो ये सब ना मुमकिन था लेकीन क़तर ने कर दिखाया, #लूसैल नाम का आज एक शहर है वह रेगिस्तान था, आज स्मार्ट_सिटी है।

#फीफा_वर्ल्डकप_2022 की मेजबानी कर रहे क़तर ने बे मिशाल काम कर दिखाया, उसके हौसले व् जज़्बे को आज दुनिया सलाम कर रही है.. वो अपनी रवायतों से समझौता करने को कतई तैयार नहीं हैं, भले ही इस मेगा इवेंट के लिए रिकॉर्ड $220 बिलियन की भारी रकम खर्च कर रहा है, मगर समझौते को तैयार नही। 

क़तर हुकूमत का कुछ ऐसा अंदाज रहा । 

जब आप किसी के घर मेहमान बन कर जायेंगे तो उस घर के क़ानून और कायदे आपको मानना पड़ेंगे।

क़तर ने दुनिया को सिखाया मेहमां नवाजी...

मेजबानी कैसे होती है?

फीफा वर्ल्ड मैच के पहले दिन अल बैत स्टेडियम मे मेहमनो, खेलड़ियो और देखने वालो को मशक्, ऊद और अतर फ्री मे तोहफा दिया गया , खास बात यह है के इतनी महंगे तोहफे और वह भी बगैर बादशाह की तस्वीर के.... लोकतंत्र के राजनेता कुछ भी करने से पहले सोते जागते जनता को लालच देकर वोट लेता है.. वैसा ही जैसे गोद मे पड़े बच्चे को खिलौने देकर बहला दिया जाता है... और सरकार बनंने के बाद अवाम को अपने पैरो के आगे झुकाता है।
कही कही जम्हूरियत मे तो वादा करके वोट लेने के बाद वादा खिलाफ़ी होती है।

क़तर ने रचा इतिहास / दुनिया को क्या पैगाम दिया है? 

क़तर ने इतिहास रच दिया, एशिया का पहला देश जो अकेले ही विश्वकप का आयोजन करवा रहा है… मैच देखने वाले हर आम व खास मेहमानों/दर्शकों को मुश्क व ऊद जैसे महंगे इत्र, टीशर्ट, आदि जैसे गिफ्ट से भरा थैला दिया…

लेकिन ये क्या?

किसी लोकतांत्रिक देशो के राजनेताओ व हुक्मरानो के जैसे

इतने महंगे गिफ्ट पर क़तर के अमीर शेख तमीम बिन हमद अल-थानी का तो फोटो तक नहीं है?

इसके साथ साथ 

फुटबॉल विश्व कप का उद्घाटन करने वाले विकलांग #गनीम_अल_मुफ़्ताह है..

इस उद्घाटन समारोह को दुनिया के 500 प्रमुख चैनलों पर एक साथ दिखाया गया. 

इतिहास में पहली बार वर्ल्ड कप की शुरुआत क़तर ने एक विकलांग द्वारा उद्घाटन करा कर दुनिया भर को एक अहम पैगाम दिया है, जो उन लोगो पर तमाचा जो अरब मुमालिक को कट्टरपंथी कहते है।

आखिर यह क्यों कहा जा रहा है क़तर का बॉयकॉट करो?

आज से 12 साल पहले क़तर को फीफा वर्ल्ड कप की मेजबानी के लिए नामजद किया गया था।

इतने दिनों मे नये नये फाइव स्टार्स होटेल्स, एरपोर्ट, मेट्रो लाइंस, स्टेडियम, क्लब, रिहायशी इलाके और फन ज़ोन जैसे इंफ्रेस्ट्रॅक्चर बनवाये, इन सब पर 220 बिलियन डॉलर्स तक खर्च किया जो के अब तक का सबसे महंगा वर्ल्ड कप है।

इससे पहले

  1.                रूस 2018 - $11.6 बिलियन (b)
  2.            ब्राज़ील 2014-  $15b
  3. साउथ अफ्रीका 2010- $3.6b
  4.              ज़र्मनी 2006 - $4.3b
  5.              जापान 2002 - $7b
  6.               फ्रांस  1998 - $2.3b
  7.           अमेरिका 1994 - $0.5 b

इस रिपोर्ट से यह साबित होता है के क़तर फीफा वर्ल्ड कप पर 220 बिलियन अमेरिकी डॉलर खर्च करके पहले पायदान पर आ गया है।

इन दिनो क़तर एरपोर्ट दुनिया का सबसे व्यस्त एरपोर्ट होंगे, जहाँ रोज 900 से ज्यादा यात्री विमान उतरेंगे और एक आंकड़े के मुताबिक रोज 12 लाख लोगो विजिट करेंगे।

क़तर इन आने वाले मेहमानो के लिए क्लब, अजाएबघर, उनके स्थानीय खाने पीने के होटेल्स, विदेशी मेहमानो के रहने और उनके मौशिकी के इंतेजामात् कराये, गरज हर चीज क़तर हुकूमत मुहैय्या कराई है।

इन सब के लिए 8 स्टेडियम, 1 एरपोर्ट, एक मेट्रो लाइंस और कई होटेल्स और क्लब बनवाये गए है। यह मैच 28 दिनों तक चलेगा, फीफा वर्ल्ड कप चार साल होता है।

इतने महंगे और शानदार मेहमान नवाजी के बाद भी यूरोपीय मीडिया, इंटरनेशनल सोशल मिडिया क़तर हुकूमत का बॉयकॉट कर रहे वह इसलिए के क़तर सरकार ने मेहमानो से गुजारिश की के

"बराये मेहरबानी हमारे रिवायत, शरीयत और तहजीब का एहतेराम करे। "

इतने सालों से महंगे इंतेजाम और शानदार तैयारी के बावजूद क़तर की हुकूमत को सिर्फ इसलिए टार्गेट किया जा रहा है की उसने विदेशी मेहमानो से एक इल्तिजा की थी।

हमारे यहाँ शराब, बीयर, हमजिंसीयत (समलैंगिक) ,  नंगापन और बे पर्दगी, छोटे कपड़े और बंद कमरे मे होने वाले कामो को सड़को पर करने की पाबंदी है।

इतनी सी इल्तिजा पर वेस्टर्न परस्त और फिरंगियों के मानसिक गुलाम साढ़े तीन लाख की आबादी वाले एक छोटे से देश क़तर का बॉयकॉट करने लगे।

उनके इस गुजारिश से मागरिबि परस्त भेड़िये, नाम निहाद इंसानी हुकूक की तंजीमे, लिबरल्स, लेफ्टिस्ट और अहले यूरोप मे एक तूफान उठ खडा हो गया के यह भेदभाव और कदामात् पसंद मुल्क मे फीफा वर्ल्ड कप नही हो सकता है, इसका बॉयकॉट किया जाए।

इस छोटे से अरब इस्लामी मुल्क को चारो तरफ से शैतानी कुव्वतें घेरने लगे, टिकेट का बॉयकॉट होने लगा ताकि वहाँ की हुकूमत से अपनी मनमानी कराया जा सके।

पिछले महीने से शुरू हुआ यह तमाशा तब और जोर पकड़ लिया जब एक इंग्लिश रिपोर्टर ने सवाल किया तो क़तर के फीफा के अध्यक्ष ने साफ साफ लफ्जो मे जवाब दिया।

"हम अपने यहाँ आने वाले सभी मेहमानो का इस्तकबाल करते है, मगर उन्हे हमारी रिवायत, दीन और तहजीब का एहतेराम करना होगा, हम 28 दिनों के लिए अपना मजहब नही छोड़ सकते है। "

"मेरा जिस्म मेरी मर्जी" का नारा इजाद करने वाले
"मेरा मुल्क मेरी मर्जी" का नारा भूल गए।

यह मामला इतना बड़ा हो गया के इस बात से अंदाज़ा लगाया जा सकता है के फीफा अध्यक्ष इनफैंटाइनो को 1:30 घंटे तक प्रेस कॉन्फ्रेंस करनी पड़ी।
जिसका खुलासा यह निकला के 'अगर आपको आना है तो आओ नही तो भांड मे जाओ। '

इन्फैटिनो ने यूरोप को पाखंडी बताया और कहा के यूरोप ने जो पिछले तीन हजार सालों से किया है उसे अगले 3000 सालों तक दुनिया से माफी मांगनी चाहिए, नैतिकता का ज्ञान देने से पहले। यूरोप को अपने यहाँ उन मजदुरो को रोजगार देना चाहिए जो क़तर मे काम कर रहे है।

अगर यह वर्ल्ड कप शराब, बेहयाई, ट्रांसजेंडर और सेक्यूरिटी की आड़ मे कैंसिल कर दिया जाता तो इतने सालों की मेहनत और बिलियन डॉलर बर्बाद हो जाते।

लेकिन इतना बड़ा खतरा मोल लेने के बावज़ूद इतने छोटे से मुल्क ने अपने दिन व शरीयत और रिवायत के लिए झूका नही, बद तहजीब, नंगापन, फ़हाशि और हैंजिन्सियात् से समझौता नही किया। वाकई ये काबिल ए तारीफ है।

जब अमेरिका ने वियतनाम मे  लोगो को मौत के घाट उतार दिया, औरतो का बलात्कार किया और वहाँ के लोगो पर एजेंट ऑरेंज जैसे दवाओं का इस्तेमाल किया ताकि वहाँ के पेड़ पौधे सुख जाए और पानीयो मे जहर फैल जाए, इराक मे लाखो लोगो को बम्बारी करके एक मुहिम के तहत मारा गया और करोडो बेघर हुए उन लोगो का क्या, फिलिस्तिनियो पर इसराइल हमेशा बमबारी करता है, मिसाइल मारता है, अमेरिका के दिये हुए हथियारो और पैसे से फिलिस्तिनियो का खून बहाता है मगर उससे सवाल क्यों नही किया जाता?

अफगानिस्तान मे 20 सालों से हवाई हमले किये, आर्मी के जरिये लाखो को मारा गया मगर उसके बारे मे अमेरिका, इंग्लैंड, फ्रांस और दूसरे यूरोपीय मुमालिक से कौन सवाल करेगा?

यूरोप दुसरो पर मनवाधिकार के उल्लघं की बात करता है मगर उसे कभी इस बारे मे सवाल किया गया ?
कभी UNHRC ने अमेरिका और दूसरे यूरोपीय देशों से सवाल किया है?
किसी की हिम्मत नही .....

दूसरे देशो मे आकर नैतिकता और इंसानियत का पाठ पढाना बंद करना चाहिए यूरोप को, यह उसका लोकतंत्र और इंसानी हुकुक के नाम पर सियासत है, भु राजनीतिक है जो हमेशा दुसरो को दबाता रहता है।
यह यूरोप का ढोंग है मानवाधिकार के नाम पर।

यूरोपीय श्रेष्टथा इसी लोकतंत्र , मानवाधिकार और औरतों की आज़ादी के ढोंग पर टीका हुआ है जो दूसरे को नसीहत करता है, दबाता है। जिसका हाथ लाखो मासूमो के खून से रंगा हुआ है वो दुसरो को मानवाधिकार  की नसीहत करता है।

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Shayer-E-Mashriq Alama Iqbal Ka Muslim Naw jawano (Youths) ko Paigham.

Shayer-E-Mashriq Alama Iqbal ka Naw jawano ko Paigham.

#तकबीर_मुसलसल

*🎯 तू शाहीन है परवाज़ है काम तेरा*

शायर ए मशरिक़ अल्लामा इक़बाल रहमहुल्लाह का पैग़ाम नौजवानान-ए-मिल्लत के नाम_*

        ऐ राज़ ए हयात से नवाकिफ़ नौजवान!
तू ज़िन्दगी के आगाज़ और अंजाम से ग़ाफ़िल है।
तू दुश्मनों का खौफ़ दिल से निकाल दे। तेरे अन्दर एक क़ुव्वत ख्वाबीदह मौजूद है, उसे बेदार कर।

जब फिर अपने आप को शीशा समझने लगता है तो वह शीशा ही बन जाता है और शीशे की तरह टूटने लगता है। जब मुसाफ़िर अपने आप को कमज़ोर समझता है तो वह अपनी जान की नक़दी भी राहज़न के सुपुर्द कर देता है। तो वह अपने को कब तक पानी और मिट्टी का पुतला समझता रहेगा।
तुझे चाहिए कि अपने अन्दर से शोला-ए-तूर पैदा कर दे। यूसुफ़ की तरह ख़ुद-शनास हो ताकि असीरी से शहंशाही तक पहुँचे.

ऐ ग़ाफ़िल जवान! क़ौम अपने अतीत के इतिहास से रौशन होती और उसे याद रखने से ही ख़ुद को पहचानती है।
अगर वह अपनी तारीख़ भूल जाये तो फिर मिट जाती है। ऐ मुस्तक़बिल के मेमार (निर्माता)! अपनी तारीख़ को महफ़ूज़ कर, और पाइंदा हो जा, गुज़रे हुए सांसों से ज़िन्दगी पा जा। गुज़रे हुए कल को आज से मरबूत कर, ज़िन्दगी को सधाया हुआ परिंदा बना ले, अय्याम के रिश्ते को हाथ में ले ले; वरना तू दिन का अंधा और रात का पुजारी बन जाएगा।
तेरे अतीत से ही तेरा हाल (वर्तमान) वजूद में आता है और फिर हाल स तेरा मुस्तक़बिल (भविष्य) सँवरता है।

अगर तू हयात-ए-जाविदाँ का चाहने वाला है तो मुस्तक़बिल और हाल से रिश्ता न तोड़, तसलसुल-ए-इदराक की मौज ही में बक़ा है, मे-कशों के लिए शोर-ए-क़लकल ही में ज़िन्दगी है।

🎁पेशकश: *सोशल मीडिया डेस्क ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड*

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Qatar fifa World Cup 2022: Kuchh Napak rooh wale kyu Qatar Fifa World Cup 2022 ka Boycott kar rahe hai, Boycott Fifa World Cup 2022.

Aakhir #Qatarfifa2022 ka Boycott kyu kiya jara raha hai?

Kaise log Qatar Fifa World Cup 2022 ka boycott kar rahe hai?
#Qatarfifaworldcup2022 #Fifaworldcup #Qatarfifa #Boycottqatarfifa 
#Boycottqatar 
Hindi me Padhne ke liye yahan Click kare. 
 हम अपने मुल्क मे हर किसी का स्वागत करते है, लेकिन आने वालो को हमारी रिवायत का एहतेराम करना होगा, महज हम 28 दिनों के लिए अपना दिन व मजहब, रिवायत, तहजीब व शकाफ़त नही बदल सकते।

यह वो जुमले है जिसको सुनकर वेस्टर्न पाखंडी, यूरोपीय कट्टरपंथी, लेफ्टिस्ट, देशी लिबरल्स, फिरंगी परस्त के होश उड़ गए ... अरबो रुपये खर्च करने के बाद अरब का एक छोटा सा मुल्क अपने दिन व ईमान के लिए नही झूका जबकि नापाक रूहो को उम्मीद थी के इतने पैसे खर्च करने के बाद यह जरूर हमारी शर्तो पर खड़े उतरेंगे मगर ऐसा नही हुआ उसी वज़ह से लेफ्टिस्ट और वेस्टर्न गुलाम इस छोटे से देश मे हो रहे फुटबॉल का बॉयकॉट कर रहे है ताकि ज्यादा से ज्यादा नुक्सान पहुचाया जा सके और हमारी शर्तो को मान ले।
इतना ही नही

कतर ने दिन की दावत व तब्लिग़ के लिए 200 से ज्यादा उलेमा रखे है.... रहनुमाइ के लिए
उसके बाद कुछ लोगो को पता था के अब्दुल... सिर्फ पंचर् ही बनाता है मगर चैंपियन रहे अर्ज़ेनटिना को हरा दिया।

बुधवार को देश में सार्वजनिक अवकाश का एलान किया गया है. अर्जेंटीना पर सऊदी अरब की जीत का जश्न मनाने के लिए बुधवार को मुल्क के सभी स्कूल कॉलेज और प्राइवेट और सरकारी दफ्तर बंद रखे जाएंगे.

#Qatarfifaworldcup2022 #Fifaworldcup #Qatarfifa #Boycottqatarfifa  #Boycottqatar

الســـــلام عليــــــــــكم
اللــــــــــه تعـــــــــالٰی

أھل قطــــــــــــــــــر کی حفاظت فـــــــــرمــــــــائے

آخــــــر یہ کیــوں کہا جارہا ہے کہ
قطر کا بائیکاٹ کرو
۔۔۔
قطر کو آج سے بارہ سال پہلے یعنی دو ہزار دس میں فیفا ورلڈ کپ کی میزبانی کے لیے نامزد کیا گیا تھا۔

ان بارہ سالوں میں جدید مراعات پر مشتمل نئے اسٹیڈیمز، ہوٹل، شاپنگ مالز، فین زون اور رہائش گاہوں کی تعمیر و تیاری کی مد میں قطر اب تک تقریبا تین سو بلین ڈالرز خرچ کر چکا ہے۔

کہا جا رہا ہے کہ یہ دنیا کی تاریخ کا سب سے مہنگا ترین ورلڈ کپ ہے اور اس کی لاگت ماضی کے تمام ورلڈ کپز کی کُل لاگت سے بھی زیادہ ہے۔

ان دنوں میں دوحہ کا ائیرپورٹ دنیا کا مصروف ترین ائیرپورٹ ہو گا جہاں ہر روز نو سو سے زائد مسافر طیارے اتریں گے اور ایک اعداد و شمار کے مطابق قریبا بارہ لاکھ لوگ قطر کو وزٹ کریں گے۔

قطر نے ہر طرح کی ممکن جدت کو بروئے کار لاتے ہوئے آنے والوں کے لیے مقامی ثقافت و روایت کے مطابق آرٹ گیلری، میوزیم، فن زون، قومی اور بین الاقوامی کھانوں کے سٹال، موسیقی، اطفال و عوائل پروگرام غرض ہر ہر طرح کی تفریح ترتیب دے رکھی ہے۔

اتنی مہنگی اور اتنی شاندار تیاری کے باوجود قطر کی میزبانی کو محض اس لیے عالمی اور سوشل میڈیا پر ہدف تنقید بنایا جا رہا ہے کہ انہوں نے آنے والے لوگوں سے گزارش کی ہے کہ

براہ مہربانی ہماری ثقافت و روایات کا احترام کریں۔

ہمارے یہاں کھلے عام شراب، ہم جنس پرستی کے جھنڈے و نعرے، عُریاں لباس، اور بند کمروں کی کارروائ سڑکوں پر کرنے پر پابندی ہے۔”

اس چھوٹی سی عرضی کو لے کر پچھلے کچھ دنوں سے سوشل میڈیا پر ایک طوفان بدتمیزی برپا ہے، ایسے لگتا ہے جیسے قطر نے ان کی دم پر نہیں “گچی” پر پاؤں رکھ دیا ہے۔

میرا جسم میری مرضی کے نعرے ایجاد کرنے والے “میرا ملک میری مرضی” کی اجازت نہیں دے رہے۔

نام نہاد مغربی انسانی حقوق کی تنظیمیں اور این جی اوز باؤلے کتے کی طرح صبح شام بس ایک ہی رٹ لگا رہی ہیں کہ

“قطر کا بائیکاٹ کرو”

آپ کو ایسے ڈرامے پر کوئ حیرت ہو تو ہو تاریخ کے کسی طالب علم کو نہیں ہوگی۔ کیونکہ ان سفید چمڑی میں چھپی مہذب کالی بھیڑوں نے پچھلے کئ سو سالوں میں یہی تو کیا ہے۔

تمہارا کُتا ۔۔کتا، ہمارا کتا ٹومی۔

اسی بحث کو موضوع بناتے ہوئے کچھ ماہ پہلے ایک انگلش اینکر نے جب قطر ورلڈ کپ کے سیکورٹی چئیرمین عبدالعزیز عبداللہ الانصاری سے اس متعلق سوال کیا تو ان کا کہنا تھا کہ

ہم اپنے ملک میں ہر کسی کو خوش آمدید کہتے ہیں لیکن آنے والوں کو ہماری روایات کا احترام کرنا ہوگا، محض اٹھائیس دن کے لیے ہم اپنا مذہب نہیں بدل سکتے”

پچھلے کچھ ماہ سے زور پکڑتی یہ تنقید و تضحیک اب اپنی انتہاء کو پہنچ چکی ہے اور اس کی شدت کا اندازہ آپ اس بات سے لگائیے کہ ورلڈ کپ سے محض ایک دن قبل فیفا چئیرمین جیانی انفین ٹینو کو قریبا ڈیڑھ گھنٹے کی پریس کانفرنس کرنی پڑی جس کا لب لباب کچھ یوں بنتا ہے کہ

“ہم کچھ نہیں کر سکتے جس کو آنا ہے آئے نہیں آنا تو بھاڑ میں جائے کھسماں نوں کھائے”
اگر اس بائیکاٹ کی تحریک کے پیش نظر سیکیورٹی اور امن عامہ کا بہانہ بنا کر یہ ورلڈ کپ کینسل کر دیا جاتا تو قطر کی بارہ سالہ محنت اور بلینز آف ڈالر ڈوب جاتے۔۔۔۔

مگر اتنا بڑا خطرہ مول لیتے ہوئے یہ چھوٹا سا ملک اپنی روایات کے لیے جس طرح پوری دنیا کے بد تہذیب، بے راہرہ اور بدمعاش ٹولے کے سامنے پوری جرأت سے کھڑا ہوا ہے یقینا ہر ہر طرح سے لائق تحسین اور قابل داد ہے۔

*عمّار *

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Aaj Tak duniya me bahut bade bade waqya pesh aaye magar, Kya kisi ne Liberals ke Hatho Islam Qubool kiya hai?

Kya Kisi ne Aaj tak Liberal ke hatho Bait kiya hai?

Kya kisi Liberals, Secular aur Left ke Hatho Islam Qubool kiya hai?







क़तर के इस समारोह का बॉयकॉट क्यों हो रहा है, उसमे कैसे लोग शामिल है? 

इस दुनिया मे हर शख्स उतना ही परेशान है

जितना उसकी नजर मे दुनिया की अहमियत।

मगरिब् को असल खतरा यह है के कहीँ लोग इस्लाम की तरफ न देखने लगे वह इसलिए के हर रोज यूरोप मे आलिम, मुफक्कीर्, फलसाफि, मुवास्सिर् कुरान व् हदीस पढ़ कर इस्लाम कुबूल कर रहा है.... लेकिन मुस्लिम घरानो मे बे हया, बेशर्म और बे गैरत बनने को ही असल तरक्की समझा जा रहा है। अगर हम अंग्रेजी कल्चर (मागरिबि ) के पीछे पीछे चलते रहे तो तबाही व् बर्बादी हमारे घरों का रूख जरूर करेगी। अगर कौम के लोग कुर्सी, पैसे और इक्तदार के लिए दिन और तहजीब का मज़ाक बनाने और मुस्लिम खवातीन अंग्रेजी भेड़ियों के बहकावे मे गुमराह होती रही तो आने वाली नस्ल भेड़िया से ज्यादा डरपोक और खिंजीर से भी ज्यादा बे हया बन जायेगी।

हमे वह इस्लाम नही चाहिए जो वक्ती तौर पर निकाह, खुतबा और मैय्यत पर कुरान पढ़ने के काम आये और बाकी सारी जिंदगी के मसाइल मे अंग्रेजो के दस्तरख्वां की छोरी हुई हड्डियो पर गुजारा करे।

ہمیں وہ اسلام نہیں چاہیے جو بوقتِ نکاح, خطبہ اور بوقت نزع یٰسین پڑھنے کے کام آئے اور باقی تمام معاملاتِ زندگی میں یورپ کے دسترخوان کی چھوڑی ہوئی ہڈیوں (دیئے گئے نظام حکومت) پر گزارا کرے‘‘
مولانا ابوالکلام آزادؒ

:عجیب و غریب اسلام:::::::

دنیا میں بڑے بڑے عجیب کام ہوئے ہیں مگر

کسی لبرل یا سیکولر کے ہاتھوں کسی غیر مسلم نے اسلام قبول نہیں کیا!!!

بفرضِ محال کسی لبرل نے کسی غیر مسلم کو مسلمان کر دیا.

اس کے بعد وہ اسکو اسلام کی تعلیمات کیا بتائے گا؟؟؟

میرا جسم میری مرضی

پردہ کرنا عورت پہ ظلم و جبر ہے

خاندانی نظام بکواس ہے

داڑھی دہشت گردی کی نشانی ہے

اسلامی قوانین فرسودہ اور ظالمانہ ہیں

حج کرنا مال کا ضیاع ہے

زکوۃ جبری ٹیکس ہے؟

قربانی بے زبانوں پر ظلم ہے

نماز محض ایک ورزش ہے

شراب و زنا ہر انسان کا ذاتی فعل ہے

حقوقِ زوجین کی ادائگی جنگلی قانون ہے.

شریعت کے کسی قانون کی پاسداری لازم نہیں بلکہ جتنا اور جو دل کرے وہ کرو

ان سب کاموں کو کرنے کے بعد بھی آپ جنت کے حقدار بن جاؤ گے

آگے سے غیر مسلم کہ دین اور پھر تمہارے دین کی حدود کیا ہیں؟؟؟

تو لبرل یا سیکولر کیا جواب دے گا؟؟؟

مجھے ذاتی طور پہ لگتا ھے کہ

لبرلز نے اسلام کا لبادہ اس لئیے اوڑھ رکھا ہے کہ

اولاً تو وہ منافقِ اصلی و اعتقادی ہیں

ثانیاً کہ مرنے کے بعد مسلمان دھو مانج کے دفن کریں گے ورنہ کہیں چتا کو آگ نہ دے دی جائے

و گرنہ مذکورہ عقائد رکھنے والا کسی صورت مسلمان نہیں ہو سکتا

لہذا میرے مطابق ایک قانون ہونا چاہیے کہ لبرلز اور سیکولز کی چتا کو آگ لگائی جائے!!!

 تحریر سے نام حذف کرنا شرعاً اخلاقاً جرم ہے نام کے ساتھ کاپی کی اجازت ھے۔

✍️ #سیدمہتاب_عالم

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Joyland: Pakistan me Dubara Liberals ke khauf se Joyland Movie Release kar diya.

Pakistan me Transgender Movie Joyland Ko Dubara realese kar diya gaya.

Europe ke chande par bani Movie "Joyland" Par Pakistani Rahnumao, Hukmaraan aur Liderals ka rawaiyya..

 
Muslim Khawateen Deen ki Dawat o tabligh kaise kar rahi hai?
European Chande par Bana movie.. Joyland Pakistan ke liberals ke liye tohfa hai.


ہمیں ہر حال میں کل اس فلم کو ریلیز ہونے سے روکنا ہے ورنہ آنے والی تباہی روکنا بہت زیادہ مشکل ہو جائے گا.


فلحال پاکستان کے صوبہ پنجاب میں یہ فلم بین ہوگی ہے الحمدللہ مگر ابھی ہمارا باقی سارا ملک اس کے خطرے میں ہے اور اگر یہ فلم کل ریلیز ہوگی تو پنجاب تک بھی آجائے گی اس لئے اب ہم اپنے حصے کا کام کریں گے۔۔ روکے یا نہ روکے یہ مت سوچیں۔۔

ابراہیم علیہ السلام کی آگ کو چڑیا کے پانی نے نہیں بجھا دینا تھا مگر اس چڑیا کا نام تو کوشش کرنے والوں میں لکھ دیا گیا تھا ناں۔۔۔

خاموش تماشائی بننے سے بہتر ہے اپنا کردار ادا کریں۔۔۔
کیا ہوگا یہ اللہ کا کام ہے ہم نے کیا کیا یہ ہمارا کام ہے۔۔۔ابھی ہمیں جس بات کی شدت سے ضرورت ہے وہ یہ ہے کہ ٹویٹر پر
#banjoyland

کو ٹرینڈنگ میں لانا ہے اگر وہ ہوگیا تو یہ فلم ریلیز ہونے سے رک جائے گی۔۔ فلحال جو ہیش ٹیگ ٹرینڈنگ میں ہے وہ ہے
 #releasejoyland

ہمیں زیادہ سے زیادہ ٹویٹر پر ایسی پوسٹس کرنی ہے جس میں اوپر والا ٹیگ استعمال ہو۔۔ زیادہ استعمال ہی اسے ٹرینڈنگ میں لائے گا مگر ہم سب اکیلے کچھ نہیں کرسکتے۔۔

قدم ملا کر اٹھاتے ہیں۔۔۔

قطرہ قطرہ سمندر بن جائے تو طوفان برپا کر سکتا ہے تو آئیں اب ہم مسلمان سہی معنوں میں مسلمان ہونے کا حق ادا کریں۔۔۔۔ 﫱‍﫲ایک آخری بات رکھوں گا آپ کے سامنے.....!!!!

ہر بار ہر قوم کے 3 گروہ ہوتے ہیں۔۔ ایک وہ جو شیطان کا گروہ ہوتا ہے جو برائی کے کام کرتا ہے۔

دوسرا وہ جو اللہ کا گروہ ہوتا ہے جو اس برائی کے خلاف آواز اٹھاتا ہے اور

تیسرا وہ جو خاموش ہوتا ہے کہ بھلا ہمیں کیا路‍♀️ کوئی جو مرضی کرے (اور ہمارے ہاں ایسے لوگ بہت زیادہ ہیں) اور پتہ ہے جب کسی قوم پر عذاب آتا ہے تو وہ شیطان کے گروہ اور خاموش رہنے والوں پر آتا ہے کوشش کرنے والوں پر نہیں۔۔ اب فیصلہ کرلیں۔۔

خاموش رہنا ہے یا برائی کے خلاف آواز اٹھانی ہے؟ میرا ساتھ دیں گے آپ؟ اللہ کا گروہ بننا چاہیں گے آپ ........؟

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Shadi ke ek Din Pahle Khana khilane ko Walima kah sakte hai, Kya Nikah se Pahle walima ho sakta hai?

Kya Shadi se Pahle walima ho sakta hai?
Aisa dekha jata hai ke log Ladka ya Ladki ki Shadi ke ek Din Pahle Logo ko khane ki Dawat dete hai, aiese me kya yah walime me Shumar hoga? Bahut jagah ke Musalman Shadi se ek pahle khana khilane ki Rasm ko "Mehndi wale din ki roti", " Mel ki Roti" ,  India me "Matkor" Kahte hai iski Islam me haisiyat hai aur Kya yah walima Me Shumar hoga?

کیا شادی سے پہلے ولیمہ ہو سکتا ہے۔ چند سال پہلے میں نے دیہاتوں میں چند ایسی شادیوں میں شرکت کی تھی جوکہ بارات کے دن سے ایک دن پہلے جب مہمان اکٹھے ہوتے ہیں تو انکو جو کھانا کھلایا جاتا ہے اُسی کو ولیمہ کی روٹی کہتے ہیں ۔ چونکہ وہ غریب لوگ تھے اس لئے کفایت شعاری کے لئے ایسا کرتے تھے۔
ہم لوگ اس کھانے کو میل کی روٹی کہتے ہیں ۔ جبکہ آج کل اسکو مہندی والے دن کی روٹی کہتے ہیں۔

السلام علیکم ورحمةاللہ ۔۔۔

نکاح سے پہلے ولیمہ مسنون یا مشروع نہیں ہے ۔

لغت میں ولیمے کا معنی اجتماعیت ہے ، یعنی میاں بیوی کا جمع ہونا ، اس لحاظ سے اہل علم کی آراء کے مطابق ولیمہ کے تین اوقات ہیں
- نکاح کے بعد ، یعنی ولیمے کےاہتمام میں اس بات کا خیال رکھا جائے کہ نکاح کا اعلان عام ہو۔
- دلہن کی رخصتی سے پہلے
- دلہن کی رخصتی کے بعد جب کہ ازدواجی تعلق قائم ہوچکا ہو.

فقط واللہ تعالیٰ اعلم بالصواب

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Kya Rat ko Jhhadoo dene se Barkat nahi hota, nind se Uth kar Pani pine se La ilaaj bimariyaan hoti hai?

Kya Rat me nind se jag kar Pani pine se Ghar me barkat nahi hota?
Kya nind se sokar uthne par Pani pine se La ilaaj bimari hoti hai?

السلام علیکم ۔۔اللہ پاک کی ذات سے امید ہے ہے کہ آپ بخیر وعافیت ہوں گی ❤️۔۔۔میرا آج کا سوال عجیب و غریب ہے پر رہنمائی لینا ہی مناسب سمجھا ۔۔۔ایک جگہ سنا کہ رات نیند سے اٹھ پانی نہیں پینا چاہئے اس سے لاعلاج مرض ہو ہوجاتا ہے ۔۔پر عقل یہ بات ماننے کو تیار نہیں۔ انسان کو جب پیاس لگے گی پانی پئے گا۔۔تو یہ بات سائنس اور اسلام کی رو سے کہاں تک درست ہے رہنمائی فرمائیں شکریہ ۔۔۔جزاک اللہ خیرا کثیرا ❤️

وعلیکم السلام ورحمةاللہ ۔۔۔

یہ اپنے اپنے بنائے ہوئے طور طریقے یا ٹوٹکے ہیں سسٹر ، اس کا سائینس سے بھی کوئی واسطہ نہیں اور دین میں بھی یہ بے دلیل بات ہے ، بالکل اسی طرح جیسے رات کو جھاڑو دینا بے برکتی کا سبب ہے وغیرہ وغیرہ ، ابھی نیٹ کے توسط سے دین میں بڑے بڑے مفکرین داخل ہوچکے ہیں جو دن رات اپنی دماغوں کی فیکٹریوں میں ایسے ٹوٹکے مینوفیکچر کرتے ہیں جن کا دین سے کوئی تعلق نہیں ہوتا ، باشعور اور دین کی بنیادی معلومات رکھنے والے مسلمان کے لیے معتبر وہی ہے جو رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم کی سنت اور صحابہ کے طریقہ کے مطابق ہو ۔ ۔۔۔
واللہ تعالیٰ اعلم بالصواب

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Aaj Musalman Apne juban se jyada Magribi Juban English ko tawajjo de raha hai, Angrejiyat Musalmano par Hai hai.

Magribi Prast Musalman Apne Juban Se Jyada Angreji ko tawajjo dete hai?
Bare Shaharo se lekar Chhote shahro tak Yahi haal hai Musalmano ka, Angrejiyat ke pichhe Pagal bane hue Khas kar Muslim Naw jawan.

انگریزی بولنے کی حیثیت:

میں جو انگریزی بولنے پر ٹوکتا رہتا ہوں اور بلا ضرورت بولنے سے روکتا ہوں، اس کی وجہ یہ نہیں کہ یہ کوئی ناجائز اور حرام کام ہے۔

وجہ یہ ہے کہ آج کا مسلمان انگریز کی محبت میں گرفتار ہے، دل میں اس کی محبت اور عظمت بھری ہوئی ہے۔

انگریز سے محبت کا یہ عالم ہے کہ چھوٹا سا بچہ جب توتلی زبان میں بولنا شروع کرتا ہے تو والدین اور بھائی بہن اسے انگریزی الفاظ سکھاتے ہیں۔

جب وہ غلط سلط انگریزی الفاظ بولتا ہے تو یہ خوش ہوتے ہیں۔ لیکن عربی سے لگاؤ کی یہ حالت ہے کہ بوڑھا ہو جاتا ہے مگر قرآن کے دو چار لفظ بھی صحیح نہیں کر پاتا۔

مر جاتا ہے مگر قرآن کے الفاظ صحیح نہیں ہوتے، عربی زبان تو الگ رہی قرآن صحیح نہیں ہوتا۔

میں تنبیہ صرف اس لیے کرتا ہوں کہ زبان کے الفاظ دل کی غمازی کرتے ہیں۔ افسوس کہ آج کے مسلمانوں کو قرآن سے محبت نہیں، دل میں اس کی عظمت نہیں مگر انگریز مردود کی محبت اور عظمت دل میں کوٹ کوٹ کر بھری ہوئی ہے۔ بتایئے! یہ چیز خطرناک ہے یا نہیں؟

❖ مفتی رشید احمد لدھیانوی رحمہ اللّٰه
📚 خطبات الرشید، جلد 6
📄 باب : عیسائیت پسند مسلمان

‏ اردو کی ایک کتاب KG میں بچوں کو پڑھائی جاتی ہے، جس میں "ڈ" سے ڈاکٹر بتایا گیا ہے.
حیرت ہے کہ نصاب تیار کرنے والوں کو حرف "ڈ" سے اردو کا کوئی لفظ ہی نہ مل سکا اور "ڈ" سے ڈاکٹر (جو کہ اردو زبان کا لفظ ہی نہیں ہے) پر گزارہ کر لیا گیا.
اب سوشل میڈیا پر "ڈھول" پیٹ کر‏ اس بات کا "ڈھنڈورا" کرنا پڑ رہا ہے کے "ڈ" کے الفاظ "ڈالنا" کوئی اتنا مشکل امر بھی نہیں ہے.

اگر آپ کی ناراضی کا "ڈر" نہ ہوتو "ڈ" کو ذرا "ڈھونڈنا" شروع کریں.

*"ڈانٹ ڈپٹ" سے کام نہ چلے تو "ڈنڈا" بھی قدرت کا ایک تحفہ ہے۔ "ڈ" سے "ڈھول" نہ پیٹیں، "ڈگڈگی" نہ بجائیں، الفاظ کا "ڈھیر"
‏اکھٹا نہ کریں تو بھی اردو کے کنویں سے ایک آدھ "ڈول" ہی کافی ہوگا۔

"ڈبا" سے "ڈبیا" تک، "ڈراؤنے" قوانین سے لے کر تعلیم کے "ڈاکوؤں" تک، امیروں کے "ڈیروں" سے لے کر غریب کی "ڈیوڑھی" تک اور پھولوں کی "ڈالی" سے لے کر سانپ کے "ڈسنے" تک "ڈ" ہر جگہ دستیاب ہے.

‏سوچا "ڈبڈباتی" آنکھوں سے یہ "ڈاک"، بغیر کسی "ڈاکیا" اور "ڈاک خانے" کے آپ تک پہنچادوں کہ لفظوں کی مالا شاید نصاب کی کوتاہیوں کی "ڈھال" ثابت ہو".

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Islamic System and Modern System: Amir Muawiya Raziyallaahu anahu Masjid me Baith kar Awam ke Masail sunte they.

Awam ki Baat sunana aur unki jarurato ko Puri karne wala Hakim.
Amir Muawiya Razi alla hu Anahu apne awam ki Khabar giri kaise karte they?

मुसलमानो के सामने जब इस्लामी निजाम की बात हो तो अक्सर दो तरह के ख्यालात वाले लोग सामने दीवार खड़ी करने आते है।
एक तरफ मगरिब् परस्त, सलेबियो के हाथो शिकशत खाये मुनाफ़िक्, खुदगर्ज़, धोकेबाज लोग जो इस्लाम को लिबरल सरमाया दाराणा ( आर्थिक शक्ति) इक्तदार (बहुमत) के मुताबिक ढालने की कोशिश करते है, ताकि बे पर्दगी, बे ह्यायाई और न्यूडीटी से होने वाली कमाई बन्द न हो, ऐसे ज्यादातर लोग  इस्लामी और मागरिबि फलसफ़ॉ से वाक़िफ़ रहते है। दूसरी तरफ वह लोग है जो अल्लाह की हाकिमीयत और इस्लामी हुकूमत के फर्जियात् से तो वाक़िफ़ है, मगर मागरिबि फल्सफ़े और ज़दीद निजाम की टेक्निकल खूबियों का इल्म रखते है। हमारी जमातो, जमीयतो, तहरिको, अहजाब वगैरह को समाजी और ज़दीद टेक्निकल उलूम पर मेहनत करने की जरूरत है।

جب تک حق پر دسترس حاصل نہ ہو جائے، ابل باطل کی کتب نہ پڑھیں۔ باطل میں کوئی قوت نہیں، لیکن آپ میں کمزوری ضرور ہے۔ علوم و فنون کی مثال پانی کی طرح ہے۔
اناڑی تالاب میں بھی ڈوب جاتا ہے، جبکہ ماہر سمندر بھی تیر کر پار کر لیتا ہے۔
فضیلة الشیخ عبد العزيز الطریفی حفظہ اللہ

مسلمانوں کے سامنے جب نظام حکمرانی کی بات ہو تو اکثر دو رویے سامنے آتے ہیں۔ ایک طرف مغرب سے مرعوب شکست خوردہ اذہان یا مفاد پرست لوگ جو اسلام کو لبرل سرمایہ دارانہ اقدار کے مطابق ڈھالنے کی کوشش کرتے ہیں۔ ان کی اکثریت اسلامی اور مغربی فلسفوں سے سطحی واقفیت رکھتی ہے۔
دوسری طرف وہ لوگ ہیں جو اللہ کی حاکمیت کے تصور اور نفاذ دین کی فرضیت سے تو واقف ہیں، مگر مغربی فلسفے اور مروجہ نظام کی تکنیکی خصوصیات کا سطحی علم رکھتے ہیں۔ ہماری جماعتوں، جمیعتوں، تحریکوں، احزاب، وغیرہ کو سماجی اور اسٹریٹجک علوم پر سخت محنت کرنے کی ضرورت ہے। 
صحافی حسن عبداللہ

رعایا کی دادرسی

ایک عادل فرمانروا کے لئے رعایا کی شکایات سننا اور اس کی داد رسی ضروری ہے، امیر معاویہؓ کو اس میں اتنا اہتمام تھا کہ وہ روزانہ مسجد میں بیٹھ کر عام رعایا کو بلا استثناء آزادی سے اپنی شکایات پیش کرنے کا موقع دیتے تھے۔

علامہ مسعودی لکھتے ہین کہ امیر معاویہؓ مسجد میں کرسی رکھواکر بیٹھتے تھے اور بلا استثناء ضعیف ،کمزور، دیہاتی بچے اور لاوارث سب پیش کئے جاتے تھے اور ان میں ہر شخص ان کے سامنے اپنی اپنی شکایتیں پیش کرتا تھا، امیر معاویہؓ اسی وقت ان کے تدارک کا حکم دیتے تھے، مظلوموں کی فریاد رسی کے بعد پھر ایوان حکومت میں آتے اور تخت پر بیٹھتے اس وقت امراء اور اشراف درجہ بدرجہ باریاب ہوتے ،معمولی مزاج پرسی کے بعد جب یہ لوگ اپنی اپنی جگہ پر بیٹھ جاتے تو امیروں سے فرماتے کہ تم لوگ اشراف اس لئے کہلاتے ہو کہ تم کو اپنے سے کم درجہ کے لوگوں پر شرف بخشا گیا ہے، اس لئے تم کو چاہیے کہ جو شخص میرے پاس نہیں پہنچ سکتا، اس کی ضروریات مجھ سے بیان کرو، اس کے بعد اشراف لوگوں کی ضروریات پیش کرتے اور امیران سب کے پورا کرنے کا حکم دیتے۔

(مروج الذہب مسعودی:۲/۴۲۳،مطبوعہ مصر)
انوار اسلام.

آدمی کی اصلاح ممکن نہیں، جب تک وہ لایعنی امور کو چھوڑ کر بامقصد کام میں نہ لگے؛ اس سے امید ہے کہ خداوند کریم اس کا سینہ کھول دے!

امام مالک رحمہ اللّٰہ
(ترتیب المدارک، 1: 209)

دین سے نکلے بغیر ترقی ممکن نہیں، یہ
ایک وہم اور خیال ہے، جو اعدائے اسلام نے بعض مسلمانوں کے دلوں میں پیدا کر دیا ہے۔ جبکہ وحی، عقل اور تاریخ، سب اس پر گواہ ہیں کہ حقیقت اس کے بَرعکس ہے۔

محمد الأمين الشنقيطي رحمه الله
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