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Describe the conditions which led to the Partition of India.

Describe the conditions which led to the Partition of the India. What are its Results?

भारत का बंटवारा किन कारणों से हुआ?

भारत विभाजन के उत्तरदाई कारणों पर प्रकाश डालें।
देश विभाजन के उत्तरदाई प्रीस्तिथियों या कारणों का वर्णन करें। इसके क्या परिणाम हुए?


किन कारणों से भारत देश का बंटवारा हुआ?


जवाब: 1947 से पहले के इतिहास को देखते समय जब भी भारत के बंटवारे की बात रखी जाती थी तो किसी को भी यह बात ना मुमकिन लगता था। ज्यादातर भारतीय जिसमे सभी संप्रदाय के लोग थे वे बंटवारा के खिलाफ थे फिर भी तत्कालीन प्रीस्तिथियो में यह संभव नहीं था के बंटवारा को टाला जा सके। बंटवारे यानी विभाजन के लिए निम्नलिखित वजहों को उत्तरदाई समझा जा सकता है।

(1) सांप्रदायिक कट्टरता : बंटवारे की सबसे बड़ी वजह बहुत ही पुरानी थी और वह था सांप्रदायिक कट्टरता।
 सभी धर्मो के नेता कट्टर संप्रदायिकवादी थे। आम जनता चाहे वह हिंदू हो या मुस्लिम सहिष्णु थे लेकिन उनके नेता हमेशा उन्हें उकसाते रहते थे। 

सांप्रदायिक भावनाओ को उभारने का नतीजा यह हुआ के हिंदुओ और मुसलमानों के बीच नफरत, मतभेद, असंतोष, प्रस्पर अविश्वास, सांप्रदायिक दंगे, असहिशुंता वगैरह तेजी से फैलते गए और यह सोच निकलने लगा के हिंदू और मुसलमान एक ही देश में नहीं रह सकते।

(2) जिन्ना की ज़िद: हिंदुस्तान के बंटवारे की दूसरी वजह थी मुस्लिम लीग के नेता मोहम्मद अली जिन्ना की ज़िद। जिन्ना जिस वक्त मुस्लिम लीग में शामिल हुआ उस समय तक किसी मुसलमान के दिमाग में पाकिस्तान की कल्पना भी नहीं थी लेकिन जिन्ना जो के कट्टर जिद्दी और संघर्ष के लिए तैयार रहने वाला शख्स था उसने पाकिस्तान की मांग उठाई और हर ऐसी योजना को नामंजूर कर दिया जिसमे पाकिस्तान का जिक्र नही था। इसलिए वह सारे हिंदुस्तान के मुसलमानों का नेता खुद को समझता था और उसने पाकिस्तान निर्माण के लिए जिद पर अड़ा रहा।

(3) कांग्रेस की तुष्टिकरण की नीति : भारत के बंटवारे के लिए कांग्रेस भी कम जिम्मेदार नहीं थी। कांग्रेस की नीतियां हमेशा मुस्लिम लीग को खुश करने में लगी रही। गांधी जी जिन्ना और मुस्लिम लीग के सामने हथियार डाल रखे थे। 

वे अंग्रेजो से किसी भी समझौते से पहले यह चाहते थे के जिन्ना भी इससे सहमत हो जाए और वे इसके लिए हर बड़ी से बड़ी कुर्बानी देने के लिए तैयार थे। ऐसा लगता था के कांग्रेस भी जिन्ना को एकमात्र प्रतिनिधि मानते थे नही तो फिर मुसलमानों के हितों के लिए सिर्फ जिन्ना को ही महत्त्व क्यों दिया गया जबकि दूसरे राष्ट्रवादी नेता भी मौजूद थे।

 कांग्रेस को खुद के सभी वर्गों की संस्था होने पर शक था। अगर ऐसा नहीं तो कांग्रेस के नेताओ को ब्रिटिश सरकार से कहना चाहिए था की उनकी संस्था संपूर्ण राष्ट्र और सभी संप्रदायो का प्रतिनिधित्व करती है। इसलिए उनके साथ ही वार्ता और समझौता किया जाए। इसके विपरित कांग्रेस ने मुस्लिम लीग और जिन्ना को जरूरत से ज्यादा महत्व देकर उसे खुश करने की कोशिश किया।


(4) ब्रिटिश सरकार की घटिया नीति: भारत के बंटवारे के लिए ब्रिटिश सरकार भी पूरे तरह से जिम्मेदार थी। जिन्ना और मुस्लिम लीग को इतना महत्व देना ब्रिटिश नीति की एक चाल थी। 

   अंग्रेज जानते थे के जब तक वे हिंदू और मुसलमान की राजनीति करेंगे यानी हिंदुओ और मुसलमानों में फुट डाले रखेंगे तब तक इस देश में उनके शासन को कोई खतरा नहीं है। 

अंग्रेजो ने "फुट डालो और राज करो" की नीति सांप्रदायिक चुनाव पद्धति, और अल्पसंख्यकों को प्रतिनिधित्व देने की नीतियां अपनाकर भारत के सभी संप्रदायों में फुट डालने का सफल प्रयास किया। मुस्लिम लीग को हर जगह जरूरत से ज्यादा प्रतिनिधित्व दिया गया। चाहे विधापरिषद का निर्वाचन हो या गवर्नर जनरल की कार्यकारिणी या अंतिम सरकार, मुसलमानों को उनकी संख्या के अनुपात से कहीं अधिक स्थान प्रदान किए गए।

 इसके अलावा भी ब्रिटिश सरकार की यह नीति थी के अगर हिंदुस्तान एक ही राष्ट्र बना रहा तो यह बहुत ज्यादा शक्तिशाली हो जायेगा इसलिए भारत को कमजोर बनाने के लिए उसको बांट दिया जाए। विभाजित राज्य आपस में हमेशा लड़ते रहेंगे और कभी शक्तिशाली नहीं बन पायेंगे। 


(5) अंतिम सरकार की असफलता: 1946 के शुरुवात में बनाई गई अंतरिम सरकार में पहले कांग्रेस शामिल हुई और फिर बाद में मुस्लिम लीग भी शामिल हो गई। 
आपसी वैमनस्य , द्वेस, अविश्वास और असंतोष के कारण कांग्रेस और मुस्लिम लीग की यह अंतरिम सरकार असफल हो गई जिससे यह साबित हो गया के हिंदू और मुसलमान एक साथ मिलकर काम नहीं कर सकते इसलिए देश का बंटवारा कर दिया जाए।

(6) विभाजन एक आवश्यक बुराई: तत्कालीन परिस्थितियों में एक बुराई होते हुए भी विभाजन आवश्यक हो गया था। जिन्ना और उसके नेतृत्व में मुसलमान पाकिस्तान बनाने के लिए हर संभव प्रयास करने लगे। 

अंग्रेजो ने भी मुसलमानों को भड़काने का सफल कोशिश किया। ऐसे में कांग्रेस और दूसरी राष्ट्रवादी पार्टियां भारत की एकता का प्रयास करते तो पूरे राष्ट्र में आराजकता फैल जाती और देश के सैकड़ों टुकड़े हो जाते। इसलिए कांग्रेस ने एक आवश्यक बुराई होने के नाते इसे स्वीकार किया। 

(7) राष्ट्रवादी मुसलमानों की गलत नीति: राष्ट्रवादी मुसलमान जो धार्मिक रूप से उदार थे देश की एकता के लिए सभी कांग्रेस में ही शामिल हो गए थे। 

जिसका नतीजा यह हुआ के सभी विभाजनवादी मुस्लिम नेता ही मुस्लिम लीग में रह गए। मुस्लिम लीग को देश की अखंडता के लिए तैयार करते और विभाजनवादी नेताओ को दबाकर लीग का स्वरूप राष्ट्रवादी और देश की अखण्डता का समर्थक बताते तो यह संभव था की देश का विभाजन नहीं होता।


(8) लॉर्ड इटली की घोषणा और माउंटबेटन का प्रभाव: लॉर्ड इटली ने घोषणा की थी के अगर भारत के राजनीतिक गतिरोध का कोई समाधान नहीं निकला तो ब्रिटिश सरकार किसी को भी सत्ता सौंपने के लिए तैयार होगी और जरूरत के मुताबिक सत्ता हस्तांतरित कर देगी। इसके लिए जून 1948 तक भी इंतजार न करके 1947 में सत्ता हस्तांतरित करने की बात कही गई थी।

 इसी घोषणा से कांग्रेस और दूसरे राष्ट्रवादी पार्टियों ने विचार किया की अगर ब्रिटिश सरकार ने घोषित नीति पर अमल किया तो देश में अराजकता फेल जायेगी इसलिए उन्होंने विभाजन को स्वीकार कर लिए।
                    इसके अलावा लॉर्ड माउंटबेटन का प्रभाव भी कांग्रेस द्वारा विभाजन को स्वीकार करने में निर्णायक रहा। लॉर्ड माउंटबेटन मार्च 1947 में भारत में गवर्नर जनरल बनकर आया था। 

एक दो महीने में ही भारत की तत्कालीन स्थिति का अध्ययन कर उसने निष्कर्ष निकाला के बिना विभाजन के भारत की समस्या का समाधान निकालना संभव नहीं , इसलिए उसने जवाहर लाल नेहरू और सरदार पटेल को अपने ठोस तर्को से विभाजन स्वीकार करने के लिए तैयार किया।

विभाजन के लिए उत्तरदाई उपरोक्त वर्णित कार्यों का अध्ययन करने के बाद इस प्रश्न का उत्तर यही है की विभाजन अनिवार्य था। यह माना जा सकता है के विभाजन एक बुराई थी, इससे देश विभाजित और कमजोर हुआ, करोड़ों लोग बेघर और संपतिहीन हो गए।

 हजारों लोगों की जाने चली गई लेकिन तत्कालीन परिस्थितियों के कारण अगर हिंदुस्तान का बंटवारा नहीं किया जाता तो भारत की स्थिति इतनी भयावह होती के उसकी कल्पना करना भी मुश्किल है।
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