Khilafat Aandolan (Movement) kyu hua tha?
खिलाफत आन्दोलन के कारण और परिणामों का वर्णन करें।
खिलाफत आंदोलन भारत में क्यों किया गया था?
जिससे भारत के मुसलमान अंग्रेजो के दुश्मन बन गए। उन्होंने अंग्रेजो के खिलाफ आंदोलन शुरू कर दिया जिसे इतिहास में "खिलाफत आंदोलन" कहते है।
मुख्य कारण
(i) तुर्की के सुल्तान ने प्रथम विश्व युद्ध में अंग्रेजो के खिलाफ जर्मनी का साथ दिया था इसलिए अंग्रेज मुसलमानों से नाराज थे।
(ii) मुसलमानों को अंग्रेजो से डर था।
(iii) प्रथम विश्व युद्ध के बाद अंग्रेजो ने वादा तोड़कर तुर्की सल्तनत में तोड़ फोड़ की थी।
(iv) वायसराय ने मुस्लिम शिष्ट मंडलो को कोई संतोषजनक जवाब नहीं दिया था।
(v) कांग्रेस और मुस्लिम लीग के समझौते से भी अंग्रेज मुसलमानों के खिलाफ थे।
आंदोलन की प्रगति: महात्मा गांधी के नेतृत्व में हिंदुओ ने खिलाफत आंदोलन में मुसलमानों का साथ दिया था।
इसी वक्त मौलाना महमूद उल हसन ने जमीयत उल उलेमा की स्थापना की और सरकार की नीति की आलोचना की। फरवरी 1920 में डॉक्टर अंसारी के नेतृत्व में मुसलमानों का एक प्रतिनिधि मंडल वायसराय से मिला। उस मंडल ने सरकार को अपना नजरिया समझाने की कोशिश किया , लेकिन इस मंडल के प्रयास सफल नहीं हुए। मुसलमानों का प्रतिनिधि मंडल इंग्लैंड भी गया लेकिन उसे भी कोई खास कामयाबी नहीं मिली।
आंदोलन को कांग्रेस का समर्थन: सितंबर 1920 में कांग्रेस का एक अतिरिक्त अधिवेशन कोलकाता में हुआ।
इस अधिवेशन में कांग्रेस ने सहयोग का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया और खिलाफत आंदोलन का समर्थन किया।
1921 में कांग्रेस और मुस्लिम लीग ने मिलकर काम किया। आजादी हासिल करने के लिए हजारों लोग जेल गए। कांग्रेस और मुस्लिम लीग दोनो ने ही सरकार को सहयोग न देने का फैसला कर लिया।
आंदोलन में हिंसात्मक करवाई: गांधी जी ने खिलाफत आन्दोलन में पूरा सहयोग दिया लेकिन गांधी जी ने चोरा चोरी नामक स्थान पर हिंसात्मक कारवाई हो जाने के कारण अपने आंदोलन को बंद कर दिया। इसी समय गांधी जी को 6 साल के लिए कारावास दंड दिया गया।
गांधी जी के जेल चले जाने से आंदोलन ठंडा पड़ गया।
1921 में मुस्लिम लीग का अधिवेशन अहमदाबाद में हुआ। इस अधिवेशन में गांधी जी के असंतोष के विषय में कोई प्रस्ताव पास नही किया गया। इस तरह गांधी जी की जेल यात्रा से मुस्लिम लीग और कांग्रेस के संबंध नरम पड़ गए और खिलाफत आन्दोलन भी कमजोर पड़ गया।
मोपला हत्याकांड और धार्मिक एकता की समाप्ति: खिलाफत आन्दोलन में हिंदुओ और मुसलमानों ने मिलकर एक साथ काम किया था। हिंदुओ ने खिलाफत आन्दोलन में सहयोग दिया और मुसलमानों ने कांग्रेस के सहयोग के प्रस्ताव को स्वीकार किया।
मालाबार में मुसलमानों की संख्या ज्यादा थी , यहां के मुसलमानों को मोप्ला कहते थे। मालाबार में हिंदुओ ने खिलाफत आन्दोलन में मुसलमानों का साथ दिया।
मोपला लोगो की संख्या अधिक होने की वजह से खिलाफत आन्दोलन उग्र रूप धारण कर लिया। सरकार ने इस आंदोलन को कठोरता से दमन किया। यह आंदोलन शुरवात में राजनीतिक था लेकिन बाद में यह आंदोलन धार्मिक रूप ले लिया।
इसलिए इस आंदोलन में सैंकड़ों निपराध हिंदू मारे गए। इस आंदोलन का असर उत्तरी भारत पर भी पड़ा जिससे भारत में सांप्रदायिक एकता खतम हो गई।
खिलाफत आंदोलन का महत्व:
(i) खिलाफत आंदोलन मुस्लिम लीग और कांग्रेस का एक सम्मिलित कार्य क्रम था। इसलिए इस आंदोलन से आरंभ में भारत में सांप्रदायिक एकता की नीव पड़ी।
(ii) खिलाफत आंदोलन के कारण भारत में मुस्लिम संगठन संभव हो सका।
(iii) खिलाफत आंदोलन के बाद अंग्रेजो की नीति में बदलाव आया और कांग्रेस तथा मुस्लिम लीग के पारस्परिक मेल को तोड़ने के लिए वे योजना बनाने लगे।
(iv) मोपला हत्याकांड खिलाफत आन्दोलन का अंतिम चरण था। इसमें धार्मिकता आ जाने के कारण बहुत से मासूम लोग मरे गए, जिससे भारत में सांप्रदायिक एकता खतम हो गया।
(v) मोपला हत्याकांड का असर उत्तरी भारत में भी पड़ा जिसके कारण भारत में सांप्रदायिक दंगे की नीव पड़ी।
(vi) खिलाफत आंदोलन के बाद अंग्रेजो ने अपनी विभेद नीति के आधार पर हिंदू मुसलमान में फुट डलवाने की कोशिश की। जिसका नतीजा हिंदू मुसलमान दंगो के रूप में सामने आया।
(vii) खिलाफत आंदोलन के कारण मुस्लिम लीग का प्रभाव कम पड़ने लगा।
परिणाम
महात्मा गांधी के नेतृत्व में 1920 के असहयोग आन्दोलन की एक महत्वपूर्ण घटना खिलाफत आन्दोलन थी। इस आंदोलन की शुरुवात प्रथम विश्व युद्ध के बाद हुआ। प्रथम विश्व युद्ध में तुर्की , जर्मनी का साथ दे रहा था।
इसलिए प्रथम विश्व युद्ध में जर्मनी के हार के साथ उसकी भी हार हो गई। युद्ध के दौरान अंग्रेजी सरकार ने यह उम्मीद दिलाई थी के न तो तुर्की सल्तनत का विघटन किया जाएगा और न खिलाफत की। लेकिन जंग खतम होते ही उस्मानिया सल्तनत के ऐशियाई प्रदेशों को इंग्लैंड और फ्रांस ने आपस में बांट लिया।
मित्र राष्ट्रों द्वारा खलीफा ( खिलाफत करने वाला ) का मजाक उड़ाया गया, उनका अपमान किया गया।
इसके साथ ही इस्लामिक जगह यानी फिलिस्तीन जहां मस्जिद ए अक्सा है वहां पर कब्जा कर लिया।
हिंदुस्तानी मुसलमानों का इससे क्षुब्द होना स्वाभाविक था। इसलिए उन लोगो ने सरकार से असहयोग प्रारंभ किया जो खिलाफत आन्दोलन से मशहूर है।
खिलाफत आंदोलन का मकसद इस्लाम के खलीफा सुल्तान को फिर से शक्ति देना था।
लड़ाई के समय से ही मुस्लिम लीग और कांग्रेस में ताल मेल स्थापित हो चुका था। जिससे मुस्लिम लीग और राष्ट्रवादियों का असर पूरी तरह से कायम हो गया था।
इसलिए मुस्लिम नेता सभी खिलाफत आंदोलन के समर्थक बन गए। 1919 में दिल्ली में हुए मुस्लिम लीग के अधिवेशन का सभापतित्व करते हुए डॉक्टर M A अंसारी ने जोरदार शब्दो में खिलाफत आंदोलन का समर्थन किया था। इस अधिवेशन में मुस्लिम लीग ने जोरदार शब्दो में स्वशासन स्थापित करने की मांग की।
ज्यादातर उलेमा संप्रदाय ने मौलाना मुहम्मद उल हसन के नेतृत्व में राजनीति में प्रवेश किया। उनके द्वारा स्थापित संस्था को " उल उलमाए हिंदी " का नाम दिया गया।
नवंबर 1919 में गांधी जी ने हिंदू मुसलमान नेताओ का एक सम्मेलन दिल्ली में बुलाया, जिसमे खिलाफत आंदोलन का पूरी तरह से समर्थन करने का निश्चय किया गया। 19 जनवरी 1920 को डॉक्टर अंसारी के नेतृत्व में एक शिष्टमंडल , जिसका आयोजन गांधी जी के आदेश पर किया गया था, ने भारत के गवर्नर जनरल चेम्सफोर्ड से भेंट की। साथ ही एक शिष्टमंडल गांधी जी के ही आदेशों पर , मोहम्मद अली के नेतृत्व में इंग्लैंड भी गया।
इन शिष्टमंडलो को सफलता नहीं मिली जिसके बाद गांधी जी ने खिलाफत आन्दोलन का बड़े पैमाने पर समर्थन किया और हिंदू मुसलमान एकता के लिए इस आंदोलन को बड़ा व्यापक और लोकप्रिय बनाया।
मगर यह आंदोलन ज्यादा दिनों तक नहीं चलाया जा सका। तुर्की में जब कमाल पाशा के नेतृत्व में धर्म निरपेक्ष (सेक्युलर) राज्य की स्थापना हुई और खिलाफत को खतम कर दिया गया।
मुस्तफा कमालपाशा ने मित्र राष्ट्रों के साथ एक संधि कर ली। इस तरह तुर्की में खिलाफत के हल के साथ ही भारत में भी खिलाफत आन्दोलन समाप्त हो गया।
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