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Discuss the Career , work and Achievements Of Tipu Sultan.

Discuss the Career , work and Achievements Of Tipu Sultan.



टीपू सुल्तान की जीवनी , कार्य और उपलब्धियों का वर्णन करें।

जवाब - 6 दिसंबर 1872 को हैदर अली की मौत के बाद शासन की बागडोर टीपू सुलतान के हाथो में मिला। 1783 में टीपू सुल्तान ने वेदनूर पर अधिकार कर लिया। इधर उत्तर पश्चिम की ओर से इनपर हमले हुए , जब तक वह अंग्रेजो की ओर ध्यान देते तब तक अंग्रेजो ने पुलर्तन कोयंबटूर पर अधिकार कर लिया। इधर टीपू सुल्तान श्रीरंगापटनम की और बढ़ रहे थे जिससे अंग्रेज बहुत है फिक्रमंद थे। चूंकि टीपू सुल्तान और अंग्रेज दोनो ही परेशानी में थे। दोनो मे मंगलौर नमक जगह पर 17 मार्च 1784 को एक संधि हुई। दोनो ने एक दूसरे के जीते हुए इलाके को छोड़ दिया और कैदियों को आजाद कर दिया। मंगलौर के समझौते के बाद भी टीपू सुल्तान और अंग्रेजो में गुस्से का माहौल बना रहा। लॉर्ड वेलेजली के वक्त में टीपू और अंग्रेजो के बीच तीन मैसूर युद्ध हुआ।
तीसरे युद्ध में टीपू सुलतान की हार हुई मगर वे हौसला नहीं हारे। उन्होंने फ्रांसिसियों से दोस्ती कर ली और लगातार अपनी ताकत बढ़ाते रहे। इस से अंग्रेज बहुत घबरा गए और चौथा मैसूर युद्ध हुआ। जिसमे टीपू सुल्तान शहीद हो गए। मैसूर राज्य को अंग्रेजो ने तहस नहस कर दिया और वहां प्राचीन हिंदू राजवंश के एक बेटे को वहां का अधिनस्थ राजा बना दिया।

टीपू सुल्तान के चरित्र और कार्य: टीपू सुल्तान के जिंदगी को हम तीन हिस्सों में बांट सकते है।

(i) व्यक्ती के रूप में: टीपू सुल्तान बहुत ही बहादुर, होशियार और तजुर्बेकार शख्स था। वह हर काम नियमित ढंग से किया करता था। वह उच्च कोटि का विद्वान और जिज्ञासु प्रवृति का था। वह आधुनिक ज्ञान प्राप्त करने में बहुत दिलचस्पी रखता था।

 वह हिंदी , फारसी और कन्नड़ का योग्य वक्ता था और पढ़ने लिखने में बहुत ही दिलचस्पी रखता था। 
उसे विज्ञान, वैधक, धर्म ओ शासन के विभिन्न विषयों का अच्छा ज्ञान था जिसपर वह समय समय पर विचार प्रकट किया करता था। 

उसने एक बहुत बड़ा पुस्तकालय बनवाया था, जिसमे विभिन्न विषयों पर पांडुलिपियां मौजूद थी। उसने अनेक पत्र भी लिखे थे। वे स्वामी भक्तो और राज्य भक्तो के प्रति बहुत ही उदार और दयालु था। उसमे अदमय उत्साह और नैतिक बल था। अंग्रेजो को लेकर वह हमेशा होशियार रहता था, आखिरी सांस तक उसने अंग्रेजो से मुकाबला किया और अपना लोहा मनवाया। 

 टीपू सुल्तान का चिन्ह बाघ था जो उसके बहादुरी और निडरता को परिभाषित करता था। वह बहुत ही शक्की मिजाज का आदमी था। वह कभी भी किसी पर जल्द विश्वास नहीं करता था। वह कभी किए हुए वादे से पीछे नहीं हटता था और हमेशा अपने दुश्मनों के साजिश को नाकाम बनाने में लगा रहता था। उसे खुदा (ईश्वर) पर बहुत ही विश्वास था।

विद्वानों ने उसे अति विद्वान और धर्मांध बताया है। इंग्लैड की औरतें अपने बच्चे को टीपू सुल्तान का नाम लेकर डराया करती थी। 
उसे अपने आप पर गर्व था।
 एक बार उसने अपने फ्रांसीसी सलाहकार से कहा के अकेला पड़ने पर और बहुत सारी मुसीबतों से घिरा होने पर भी खुद को अकेला महसूस नहीं करता था क्योंकि खुदा ( ईश्वर ) और खुद की बहादुरी तथा उससे मिली मदद पर उसे पूरा यकीन था। यह आत्मविश्वास उसका एक खास खूबी था।

उसे खुद पर पर बहुत गर्व था, वह खुद को सर्वाधिक ज्ञानी, विद्वान, बुद्धिमान, वीर और साहसी समझता था। मुनरो ने लिखा है " उसमे अदमय उत्साह और शक्ति थी और वह अपने सभी कामों को नियमित ढंग से किया करता था। उसमे अदमय शारीरिक वा मानसिक शक्ति थी "।

(2) सैनिक के रूप में: शुरत्व और आत्मसम्मान टीपू के ऐसे गुण थे, जिन्होंने उसे सफल सैनिक रूप में इतिहास में ख्याति दिलवाई। वह बहुत ही बहादुरी से लड़ते हुए शहीद हुए। 

 टीपू एक अत्यंत योग्य और कुशल सेनानायक था। सच तो यह है के उसमे सैन्य संचालन में अपूर्व प्रतिभा थी। व्यूह रचना और रणकौशल में वह उच्चकोटि का परवीन व्यक्ति था। उसने अपनी ताकत के नशे में अपनी योग्यता पर ज्यादा विश्वास कर लिया जिससे उसे खतरनाक अंजाम भुगतने पड़े। 

उसकी एक बड़ी भूल थी के उसने हमेशा अपने घुड़सवार सेना को नजरंदाज किया। वह हमेशा तोप खाने की तरक्की में लगा रहता था। इसमें कोई शक नही के वह बहुत ही बहादुर था जिसने अंग्रेजो को कई बार हराया, अगर देशी नरेश टीपू सुल्तान का  साथ देते तो अंग्रेज कभी भारत पर हुकूमत नहीं कर पाता। जिस तरह निजाम, मराठा ने टीपू के खिलाफ अंग्रेजो का साथ दिया उसे भारतीय इतिहास कभी नहीं भूलेगा।

(3) एक शासक के रूप में: टीपू सुल्तान बहुत ही उदार और दयालु शासक था। उसके राज्य में आर्थिक संपन्नता चारो ओर मौजूद थी। कृषि , व्यापार और कारोबार तरक्की पर थे। उसकी प्रजा खुशहाल जिंदगी जी रही थी। वह अपनी प्रजा को खुश रखने के लिए बहुत मेहनत किया करता था। टीपू सुल्तान मुसलमान होते हुए भी अपने हिंदू प्रजा के साथ बहुत ही उदार व्य था। 
उनके सुख दुख का पूरी तरह से ख्याल रखता था। उसने मंदिर बनवाने के लिए हमेशा हिंदुओ की मदद किया करता था, उसने हिंदुओ को सरकारी नौकरियों की भी आजादी दे रखी थी। वह कई बार उच्च पदों पर भी हिंदुओ को भी नियुक्त कर देता था। टीपू का मस्तिष्क बहुत ही उर्वर और सक्रिय था। उसमे सुधार करने की तीव्र प्रवृति थी। चारित्रिक प्रबलता और निष्कलंकता उसमे महान गुण था।
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