Taliban Kiske Marji se sarkar banayega?
तालिबान पर अपना विचार थोपने वाला कोई देश, संगठन होता कौन है?
इस्लामिक हुकूमत का यूरोपीकरण बर्दास्त नही।
तालिबान ने अपनी सरकार में महिलाओं को क्यों नहीं शामिल किया है?
अफगानिस्तान में इस नारीवादी सोच की क्या जरूरत?
क्या अब भी तालिबान विरोधी ताकतें अपनी मानसिकता नही बदली है?
हर किसी को अपने हिसाब से कानून बनाने का अधिकार है तो फिर तालिबान से सवाल क्यों?
क्या अमेरिका, यूरोप या कोई और देश तालिबान से पूछ कर कानून बनाया था?
हैरान करने वाली बात है कि जिस सोच के साथ तालिबान ने अफगानिस्तान में अपनी सरकार बनाई है है फिर उसी के खिलाफ उंगली करने की क्या जरूरत?
क्या ऐसे लोग जंगली जानवरों के मानिंद है? अगर है तो इन्हें रस्सियों में बांध कर रखा जाना चाहिए इनकी सीमाएं तय करनी चाहिए।
सवाल यही है कि दुनिया के सबसे ज्यादा अस्थिर देश में नारीवादी से प्रभावित सोच की क्या जरूरत?
सवाल ये भी है कि जिस तरह की बयानबाजी और शोर शराबा लोकतंत्र के ठिकेदार कर रहे है क्या यह उनको शोभा देता है?
जब यही लोग दूसरों से यह उम्मीद करते है के " अपना विचार नहीं थोप " सकते तो फिर यह लोग क्यों आज अपना विचार दूसरों पर थोप रहे है?
अगर इसे रोकने की कोशिश की जायेगी तो यह लोग दूसरों को कट्टरपंथी और खुद को आजाद ख्याल वाले कहकर संबोधित करते है?
तालिबान कैसा शासन व्यवस्था चाहता है?
तालिबान के शासन व्यवस्था का प्राथमिक आधार वहां शरीयत नाफिज करना है।
अफगानिस्तान में इस्लामिक हुकूमत कायम करना और इसी वजह से तालिबान ने इतनी कुरबानिया दी , इतने जान गवाएं। इतनी आसानी से उसे यह आजादी नहीं मिली है , किसी ने उसे चंदे में यह नहीं दिया है।
मुसलसल बीस सालो तक अमेरिकी कठपुतली, अमेरिका और उसके मददगारों से जिहाद करने पर यह दिन देखने को मिला है।
अगर इस जंग में अमेरिका की जीत होती तो मगरिबी मुमालिक, उसके चमचे और अफगानिस्तान में पल रहे कुछ कुर्दोगलु आज जश्न मना रहे होते।
लेकिन इन लोगो को वह दिन देखाने को भी मयस्सर नहीं हुआ। शायद इसलिए इनको शर्म आ रही है कुछ बोलते हुए।
तालिबान की जीत इन लोगो से हजम नही हो रही है इसलिए यह लोग अपने गुस्से का इजहार लोकतंत्र, महिलाओं का अधिकार, और समावेशी सरकार जैसे लफ्जो में कर रहे है।
किस्मत का फैसला अल्लाह करने वाला है मगर यूरोपीय चमचों का फैसला अमेरिका करता है और अमेरिका ने कर दिया , उसने जंग खत्म करके तालिबान से समझौता कर लिया फिर उनके कठपुतलियों की क्या औकात?
इस्लामिक हुकूमत पर जब सवालिया निशान ( question mark ) खड़े करने की कोशिश की जाती है तो मुसलमान क्यों नहीं ऐसे संगठनों, आयोगों और लोगो का विरोध करते है?
तालिबान को अपनी आजादी के लिए दुनिया के करीब हर सुपर पावर से लंबी लड़ाई करनी पड़ी है।
इस्लाम आने के बाद तकरीबन दुनिया के 50 देशों में मुसलमानो की हुकूमत है ........ लेकिन बदकिस्मती से अफगान लोगो की सोच देखिए ..... दुनिया आगे बढ़ रही है मगर यह लोग अबु जेहल और अबु लहब वाली सोच से बाहर निकले ही नहीं है।
तस्सवुर कीजिए एक मुजाहिदीन है, जो अपनी कमाई से अपने बच्चो को पाल रहा है, घर परिवार वालो को भी देख रहा है, साथ में इस्लाम के लिए दावत ओ तबलीग भी कर रहा है, मुस्लिम खवातीन से पर्दा करने और इस्लाम पे चलने के लिए भी का रहा है, गरीबों की मदद कर रहा है, भूखे को खाना और नंगे को कपड़ा पहना रहा है तो इसमें गलत क्या है?
मुसलमानो से शरीयत पे चलने और इस्लामिक तहजीब को अपनाने के लिए कह रहा है तो उसने कौन सा गुनाह कर दिया?
लेकिन अमेरिका और यूरोप ने कह दिया तुम मुजाहिदीन नही बन सकते है तुम आतंकवादी हो।
तुम मुस्लिम औरतों से पर्दा करने को नही कह सकते बल्कि वह यूरोपीय तहजीब पे चलेगी और बुर्का नही बिकनी पहनेगी ।
क्या मुसलमान होना एक अपराध है?
क्या मुजाहिदीन बनना कोई जुल्म है?
या यह अमेरिकी सोच मुसलमानो को सिर्फ अपाहिज जानवर समझ रखा है के मैं जैसे कहूंगा वैसे ही तुम्हे करना है।
क्यों खामोश हैं आप?
हमेशा मुसलमानों को गुलाम बनाकर रखने वाली सोच दुनिया के कई हिस्सों में रही है, चाहे वह शारीरिक गुलामी हो या मानसिक गुलामी और जब गुलामी करते रहने की आदत हो गई तो अमेरिका ने मुसलमानो को कंट्रोल करने को अपना अधिकार समझने लगा।
लेकिन दुनिया ने उस सोच में बदलाव होते भी देखा है।
तालिबान अब अफगानिस्तान में इस्लामिक हुकूमत कायम करने जा रहा है?
जो कल तक तालिबान को आतंकवादी संगठन कहा करते थे और उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने को गुहार अमेरिका से लगाते थे वह लोग अब तालिबान से परदे के पीछे से बात कर रहे है?
जो लोग तालिबान के खिलाफ अमेरिका का साथ दे रहे थे आज वह तालिबान की सरकार में अपनी भागीदारी चाहते है।
क्यों इस्लाम का झंडा लेकर चलने वाले लोग खामोशी से इस नाइंसाफी को देख रहे हैं।
क्यों मुस्लिम हुक्मरान अमेरिकी प्रोपगंडा के खिलाफ खामोश है?
सैकड़ों-हजारों मुजाहिदिनो की शहादत के बाद आज जब इस्लामी हुकूमत कायम करने की बात आई तो कुछ अफगान औरतें सड़कों पे क्यो?
दुनिया के अलग अलग हिस्सों में अपनी मर्जी अपनी आजादी का नारा देने वाले को तालिबान की मर्जी पे ऐतराज क्यो?
जब तालिबान पे अमेरिका बॉम्ब गिरा रहा था तो दुनिया के नारीवादी, उदारवादी इसलिए खुश हो रहे थे के अब तालिबान का खात्मा हो गया। मीडिया सोशल मीडिया पर तालिबान के खिलाफ अभियान चलाया जा रहा था और लोगो के दिलो में तालिबान को लेकर खौफ और नफरत का माहौल पैदा किया जा रहा था।
अब जब तालिबान ने अपनी सरकार बना ली है तो लोकतंत्र के ठिकेदार तालिबान को ज्ञान दे रहे है के ऐसे करो , वैसे करो।
तालिबान के खिलाफ अमेरिका का साथ देने वाले को तालीबान क्यो अपने सरकार में शामिल करे?
जिनको भागीदारी करना है वहा अशरफ गनी के यहां चले जाए।
क्या अमेरिकी कठपुतली अशरफ गनी की सरकार ने तालिबान को शामिल किया था?
अगर नही तो फिर यह सवाल क्यो?
तालिबान को अफगानिस्तान की हुकूमत कोई दान में नही मिली है , नही किसी ने तोहफे में दिया है।
जब My Body My Choice हो सकता है तो My Government My Rule क्यों नहीं?
तालिबान हर तरह से आजाद है, किसी को कोई हक़ नहीं के वह तालिबान और अफगानिस्तान के अंदरूनी मुआमले में दखल अंदाजी करे। तालिबान ने इसलिए इतनी शहादतें नही दी के इस्लामिक हुकूमत का यूरोपीकरण किया जाए।
तालिबानी हुकूमत में हर गैर मुस्लिम को उसके मजहब के मुताबिक इबादत करने की आजादी होनी चाहिए, मजहबी आजादी के सिवा नंगे घूमने, शराब पीने, जीना करने और फहाशी फैलाने की आजादी बर्दास्त नही किया जायेगा।
जिनको फहाशि फैलाना है वह अमेरिका चले जाए या अपने जैसे सोच वाले मुल्क चले जाए, क्योंकि यह लोग कल भी अमेरिका के साथ थे और आज भी अमेरिका के इशारे पर इस्लामिक हुकूमत का बगावत कर रहे है।
इन लोगो के लिए अफगानिस्तान नही बदलेगा बल्कि इन्हें खुद को बदल लेना चाहिए। अगर अफगानिस्तान में खतरा महसूस हो रहा है तो इजरायल चले जाए वहा इनका मेहमान नवाजी अच्छे से किया जायेगा।
जो तालिबान के साथ कल था , आज तालिबान उसके साथ है।
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