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Sh bin baz has started that a woman cannot pass in front of a praying man 3 arms length if he has no sutra. Is it a distance of 3 forearms or 3 full arms and do i cOunt itfrom myfeet position or Sujood position?

Can anybody Pass in front of a Person who is praying?

QUESTION: Sh bin baz has started that a
woman cannot pass in front of a
praying man 3 arms length if he has
no sutra. Is it a distance of 3
forearms or 3 full arms and do i
cOunt itfrom myfeet position or
sujud position?

ANSWER: It's not permissible to pass in
between the standing position and
the sujood place ofa person
praying.

Sheikh Assim Al-Hakeem

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What Should I do if I see a non- mahram cousin without hijab, and I have a necessity to talk to her? Should I tell her to go wear a hijab or should I keep my gaze down while talking?

Can A Man Talk with his Cousin without Hijab?

QUESTION:
Sheikh, what should I do if I see a non-
mahram cousin without hijab, and I have
a necessity to talk to her?
Should I tell her to go wear a hijab or should I keep my gaze down while talking?

ANSWER: You must not be chitchatting or hanging around with her as she's a non mahram to you and especially if she is not abiding by the proper hijab. Go and talk to your sister or mother to convey whatever you want to say to her providing it is halal.

Sheikh Assim Al-Hakeem

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Should I take job in Apollo Pharmacy company as its name contain Shirk?

QUESTION: I am from India. I was trying to take a job in "Apollo Pharmacy" which is a prominent Pharmacy company in india.
Then I realize Apollo is the idol of
healing in Greek. Should I take job in
this company as its name contain
Shirk?

ANSWER: No problem in this if your job
description is halal because the name
of the company does not make a job
halal or haram.

Sheikh Assim Al-Hakeem

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Can a girl perform Namaaz while with make up, like before going to mariages can one perform Wuzu then do make up and when the ime Comes she can perform namaaz in some corner of funcüon hall?

QUESTION: Can a girl perform Namaaz
while with make up, like before going
to mariages can one perform Wuzu  then do make up and when the ime Comes she can perform namaaz in some corner of funcüon hall?

ANSWER: No problem as long as the wudu is not broken. It is not permissible for non mahram to see her in her make up.

Sheikh Assim Al-Hakeem

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Juma Mubarak Kahna Biddat (encourage things) hai, Juma Mubarak Ka Messages.

Juma Mubarak kahna Biddat hai?

kisi Musalman ke liye Juma Mubarak kahna Kaisa hai?

#Juma Mubarak #Biddat #Gumrahi #Shirk #Gairullah 

Allah ta’ala ne Mubarakbaad dene ke tareeqe bataaye hain. Hamen waisa hi karna chahiye…  Jaise Eidain Ki mUbarakbaad ke liye dua sikhaayi “Taqabballahi Wa minna Wa minkum” (AL-MUGHNEE 2/259)

Lekin Jumah Ke liye Aisa kuch ni faramaya lihaza ye biddat hai.. Jumah Mubarak bolna Nabi se ya sahaba se sabit nahi hai, kisi hadees me bhi nahi hy… Nabi (S.A.W) ne Deen kaha tak sikhaye waha tak hamw sikhna hai.

Nabi se agay nahi badna hai. ….Quran ,Surah Furqan (ayat no 27) me Allah swt kahte hai “Aur us din zalim shaksh apne hath chaba chaba kar kahega ke haye kash ke maine Rasul (saw) ki raah ikhteyar ki hoti”…

—>>Ayesha r.a. riwayat karti hai ki

Mohammad s.a.w. ne farmaya ki Jisne hamare is deen me kuch aisi baat shamil ki jisme hamara amal nai hai to wo mardud (Rejected) hai.

{Sahih al bukhari, had-2697
Sahih Muslim, had-1718.}

–>>Abdullah Ibn UMar (RA) farmate hain:

TAMAAM Biddatein GUMRAAHI hain, agarche “Ba-Zaahir woh, logon ko ACHCHI lagein”.
{SUNAN KUBRA BAIHAQI (HADITH138).}

Jumma Mubarak kehna ALLAH ke Rasul s.a.w. se sabit nai hai aur jo kehte hai …wo sahih hadith se sabit karke batayen.

…Upar Quran aur Ahadith ki roshani se ye pata chala ke apni taraf se koi kam karne me koi fayeda nahi hai aur jo aisa krta hai wo qayamat ke din ruswa hoga ke jo ALLAH ke Rasul saw hame bata ke nahi gaye hamne  wo kam kyun kiya.

ख्वाजा गरीब नवाज कौन है, आला हजरत किसको कहते है, क्या ख्वाजा मतलब हिजड़ा होता है?

अहले बैत में कौन लोग शामिल है, अहले बैत किसको कहते है?

एक नेक सैय्यद जादी खातून का वाक्या जिसने शादी नही की मगर दूसरो से...

क्या इस्लाम मुहब्बत का दुश्मन है? इस्लाम में वेलेंटाइन डे या कोई और दिन मनाने का हुक्म?

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Cultural Dron: Jab Misr (Egypt) ki Mallika ne Burqa utar kar Aag ke hawale kar di thi.

European Sajish ki tarikh jab Muslim Riyasat me be Pardagi ko aam kiya gaya.

क्या यूरोप सच में औरतों की आजादी की बात करता है?

इस दुनिया मे हर शख्स उतना ही परेशान है, 

जितना उसकी नजर मे दुनिया की अहमियत।

मगरिब् को असल खतरा यह है के कहीँ लोग इस्लाम की तरफ न देखने लगे वह इसलिए के हर रोज यूरोप मे आलिम, मुफक्कीर्, फलसाफि, मुवास्सिर् कुरान व् हदीस पढ़ कर इस्लाम कुबूल कर रहा है.... लेकिन मुस्लिम घरानो मे बे हया, बेशर्म और बे गैरत बनने को ही असल तरक्की समझा जा रहा है। अगर हम अंग्रेजी कल्चर (मागरिबि ) के पीछे पीछे चलते रहे तो तबाही व् बर्बादी हमारे घरों का रूख जरूर करेगी। अगर कौम के लोग कुर्सी, पैसे और इक्तदार के लिए दिन और तहजीब का मज़ाक बनाने और मुस्लिम खवातीन अंग्रेजी भेड़ियों के बहकावे मे गुमराह होती रही तो आने वाली नस्ल भेड़िया से ज्यादा डरपोक और खिंजीर से भी ज्यादा बे हया बन जायेगी।

There are about 2 Billion Muslims on this planet. Why is it that our holy book is being disrespected by a small and insignificant country like Sweden?

It is because we are divided through borders. We need to unite under one khalifah. 

Muslim countries will be the main target. They will do everything to impose an LGBTQ world order on Muslims. In the past, women's rights and feminism were used to bomb and invade Muslim countries, & this is their next agenda to target Muslims. Muslims should make necessary.

Liberalism is anti Islam, European Propganda against Islam. 

इल्म के नाम पर औरत से पर्दा छीनना और बे हयायी की दलदल मे धकेलना।

जानवर को पानी पिलाने वाली औरत का वाक्या।

मुस्लिम लड़कियो पर गैर मुस्लिमो के मंडराते खतरे।

दिन की दावत के लिए सोशल मीडिया पर फेक प्रोफाईल बनाना कैसा है?

मुस्लिम लड़कियो के सर से किसने दुपट्टा हटाया है?

क्या पर्दा करना  पिछ्डेपन की निशानी है?

सबसे पहली और अहम बात यह के....

आजादी और बराबरी की तारीख (इतिहास) और मुस्लिम दुनिया पर होने वाले  अशरात (प्रभाव) पर आधारित है।

यह बात जेहन नशीं कर लेनी चाहिए के आजादी औरत और मर्द के साथ बराबर के अधिकार दिए जाने की सब से पहली आवाज यूरोपिय नसरानियत (ईसाई) की सर ज़मीं फ्रांस  में बुलंद की गई।

जिसका ख्याल था के औरत बुराइयों का जड़ (सरचशमा) है। और वह बदकारियो और गंदगियों का अड्डा है। और वह नापाक रूह है जिससे दूर भागना चाहिए। उससे सारे आमाल बेकार हो जाएंगे चाहे वह मां हो या बहन।

औरत के बारे में यूरोप के पोपो ने इस तरह के गलत ख्यालात को खूब जोर शोर से फैलाया। जबकि वह खुद नापाक जिस्म और रूह वाले है। अखलाकी जराएम के मजमूए (संग्रह) है। वह खुद छोटे बच्चो की चोरी करते है ताकि उसको कलिसाओ में तरबियत देकर एक बद दिल राहिब बनाए और अपनी तादाद बढ़ाए।
वह हुकूमत और अवाम (आम जनता) के किसी काम का न रहे।
इस घिनौनी और घटिया कामो की वजह से उनके यहाँ लोग सख्त बेचैनी और परेशानी का शिकार हो गए।

नतिज़तन् (फलस्वरूप) उनके यह दो नजरियो (विचारधारा) ने जन्म लिया।

(I) औरत की आज़ादी के नाम से आवाज़ बुलंद करना।
(II)औरत और मर्द के दरमियाँ हमजिंसीयत का मुतालबा।

इन दोनो नजरियो का मकसद था हर उस चीज का इंकार जिसका ताल्लुक कलिसा (चर्च) या उसके पादरियों से था और फिर लोगो मे ज़िद्द करना और अड़ जाना जैसे हठधर्मी वाली सोच जन्म लिया।

इस तरह उन की आवाज़ इस तरह बुलंद होने लगी के इल्म (साइंस / विज्ञान) और दिन (धर्म) दोनो का इत्तेफाक नही होगा यानी दोनो एक नही हो सकता है, धर्म अंधकार और अंधविश्वाश के तरफ ले जाता है जबकि साइंस हमे अंधेरे से रौशनी की तरफ लाता है। तर्क और बहस करने की आज़ादी देता है।

अकल् (बुद्धि) और दिन (धर्म) दोनो अलग चीजें है यह कभी आपस मे एक नही हो सकते।

इस तरह वे लोग आज़ादी के नारे लगाने मे बड़ा ज़ोर देने लगे, हर कैद व बंद, पकड़ और पाबंदी, फितरि (naturally) और दिनी (मजहबी) नियम व कानून से बिल्कुल आज़ाद हो। उनकी आज़ादी मे ज़रा सी भी कमी न हो। यानी बिना ब्रेक वाली गाड़ी जिसे एक बार स्पीड कर दिया फिर न वो स्लोअ हो सकता और नही ब्रेक लग सकता है।

आगे चलकर औरतों की आज़ादी, औरत (निस्वनियत) और मर्द मे जो फर्क (Difference) है उसे खत्म कर देने की मांग  उठने लगी। चाहे वह दिनी हो या सामाजिक ।

हर मर्द और औरत बिल्कुल आज़ाद हो, जो चाहे कर ले, न धर्म, समाज या किसी मुल्क के कानून की पाबंदी, ना अदब व अखलाक और न किसी का नियंत्रण होगा। बिल्कुल आज़ाद।

यह मांग सारी दुनिया मे फैलती गयी यहाँ तक के अमेरिका यूरोप जैसे ना फरमान मुल्को मे आम हो गयी।

लड़कियो की इज़्ज़त नीलाम होने लगी, दौलत से औरतों की इज़्ज़त की कीमत लगाई जाने लगी। चारो तरफ बेहयाई, बदअखलाकि और बुराई फैल गयी।
शराफत ए जिंदगी खतरे मे पड़ गयी। बद फेलि की वबा ( किड़ा) हर तरफ कोहराम मचाने लगी।

यह सारे घटिया हरकतें, औरतों की आज़ादी के जराशिम मगरीबी पसंद लोगो ने इस्लामी दुनिया (मुस्लिम वर्ल्ड) मे फैलाये।

इस नापाक हरकत की शुरुआत की, उसकी क्या तारीख (इतिहास) होगी जिसमे सारे आलम ए इस्लाम की काया पलट दी। जो मुसलमान अपनी औरतों को पर्दे की पाबंदी करवाते है, उनकी हीफाजत किया करते थे, उनकी हुकूक और ज़िम्मेदरिया अदा करते थे उसी तरह औरतें भी हुकूक (अधिकार) व अहबबात की अदायेगी मे कोई कोताही नही बरतते थे अचानक उनमे बद अखलाकि, बे हयायी और बे पर्दगी वाली आज़ादी की दीमक लग गयी।

आप को बता दे के नबी सल्लाहु अलैहे वसल्लम के दौर से चौदहविं सदी (1400 ईसवी) तक  मुसलमान औरतें पर्दे की पाबंद थी। अपना चेहरा और बाल खुले नही रखती थी, जिस्मो से कपड़े नही हटते थे, उस दौर की मुसलमान खवातीन अपनी जेब व ज़ीनत, हुस्न व जमाल का जलवा किसी गैर मर्द के सामने नही बिखेरती थी। उस वक़्त मेहरम् और ना मेहरम्  मे फर्क होता था और इसी बुनियाद पर औरतें किसी से बात करती थी।

चौदहविं सदी के बाद इस्लामी सलतनत (हुकूमत) का पतन (ज़वाल) शुरू हुआ, वह अलग अलग टुकड़ो मे बँट गयी। उसके बाद मुस्लिम दुनिया (कंट्री) को नाफरमान यूरोपीय साज़िश ने अपने पंजे से जकड़ लिया।

फिर अवाम (जनता) का दिल व दिमाग इस्लामी शयार् से कुफ्र व फसाद और बदअखलाकि व फ़हाशि की तरफ तब्दील हो गया।

मुसलमानो के तबाही व बर्बादी की पहली चिंगारी उनके औरतो के चेहरे से नकाब हटाना था।

इस काम की शुरुआत सबसे पहले कनाना की सरज़मीं मिस्र (इजिप्ट) से हुआ। 
उस वक़्त जबकि हाकिम ए मिस्र मोहम्मद अली बाशा ने अपनी कुछ ज़मातो को तालीम (शिक्षा) के लिए फ्रांस भेजा और उन इल्मी काफिलो के बीच एक शख्स
राफतुल् राफे तहतालवि थे जिनकी वफ़ात 1290 मे हुई।

उसने मिस्र वापस आकर औरत की आज़ादी  का पहला बिज सरज़मीं मिस्र मे बोया और यह काम बहुत से तहज़ीब, यूरोप के गंदे मंसूबे और बिगड़ी हुई अकल वालो ने किया।
यहूद व नसारा ने भी यह काम खूब जोश खरोश से किया। जिनका नाम कुछ इस तरह से है।

(I) यहूद नसरानी मर्क़स् फहमी (वफ़ात 1374) जिसने मशरीक़ि खातून के नाम से एक किताब लिखी जिसका मकसद पर्दे को खत्म कर देना, मुस्लिम मुआशरे मे फहाशि (अश्लीलता) और बद फेली फैलाना और औरतों का तन्हाई मे अजनबी मर्दो से मेल जोल बढ़ाना था।

(II) अहमद लतीफ सैयद (वफ़ात 1382) यह पहला शख्स है जिसने मिस्र मे जवान लड़कियो को तालीम के लिए लड़को के साथ मखलुत् तालीम (सह शिक्षा) का बिज डाला। यह मिस्र का पहला वाक्या था। इसको फ़िरोग् (प्रचार व प्रसार) देने मे यूरोपियत का सरगना हुसैन (वफ़ात 1393) ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया।

इस फितने की बागडोर बेपर्दगी के प्रचार व प्रसारक् क़ासिम अमिन (वफ़ात 1326) ने संभाली जिसने इस सिलसिले मे तहरीर उल मरात् ( आज़ादी औरत ) के नाम से एक किताब लिखी जिसके खिलाफ उस वक़्त के उलेमा ए किराम के ऐतराजआत की बौछार हो गयी।

इतना ही नही शाम, इराक और मिस्र के उलेमा ने उसे मूर्तद्द होने का भी फतवा दे दिया।  हालात की तब्दीली के बाद उसने एक और किताब लिखी जिसका उनवान था "मरातुल् ज़दीद" यानी "नई औरत" । इस किताब के जरिये अवाम और खास कर औरतों को  यूरोप के जैसा बनाने की कोशिश की गयी। औरतें बिकनी पहने, नंगी रहे और खुलेआम सड़को, होटलो, कॉलेजों, पार्को और समुंदर के किनारे गैर मर्दो से मिले ज़ुले और सेक्स करे। उसका मकसद मुस्लिम समाज मे जीना को बढ़ावा देना था।

इस मामले मे बलात की मल्लिका नाजलि अब्दुल रहीम सबरी ने इस किताब के लेखक कासिम अमिन का साथ दिया और नसरानी (ईसाई) मज़हब कुबूल कर ली और इस्लाम से खारिज हो गयी।

उसके बाद इस नजरिया (विचारधारा) को अपनाने और लागू करने के लिए कासिम अमिन और बेपर्दगी को फ़िरोग् देने वाला साद जग्लोल (1346) और उसका सगा भाई फतेह जग्लोल (1332) है।

फिर औरत की आज़ादी के नाम से 1919 मे हादी शाहरावि (1367) की सरबाराहि मे औरतों की तहरीक और मुजाहरे ने सर उठाया।

इस सिलसिले मे उनका पहला इजतेमा 1920 मे मिस्र के मर्कसिया के कलीसे मे मोनाकिद (आयोजित) हुआ।
उसी इजतेमा मे मिस्र की पहली औरत मुस्मात् हादी शाहरावि थी जिसने अपना पर्दा बिल्कुल खतम कर दिया।

यहाँ एक वाक्या का ज़िक्र करना जरूरी है जिससे दिल गमगीन और हसरत जद्दा हो जायेगा।

साद जग्लोल जब इंग्लैंड से इस्लाम को खतम करने और समाज मे बेहयाई, बदकारी और फ़हाशि फैलाने के तमाम हथकंडे सिख कर आया तो उसके इस्तकबाल (स्वागत) के लिए दो खेमे तैयार की गई। एक औरत की और एक मर्द की। जब वह हवाई जहाज़ से उतरा तो वह सीधे औरतों वाले खेमे की तरफ गया जिसमे बापर्दा औरते थी।  हादी शाहरावि ने पर्दे के अंदर से उसका इस्तकबाल किया ताकि वह (साद जग्लोल) उसका (हादी शाहरवि) बुर्का निकाल दे और बिल्कुल नंगी हो जाए।

बर्बादी हो ऐसे लोगो पर...... उसने अपना हाथ बढ़ाया और उसके चेहरे से नकाब हटा दिया तो सब औरतों ने खुशी से तालियां बजाई और अपना अपना बुर्का निकाल डाला।

दूसरे दिन का वाक्या है के साद जग्लोल की बीवी सोफिया बिन मुस्तफा फहमी जिसका नाम शादी के बाद सोफिया हानम साद जग्लोल पड़ गया यानी Sofiya wife of Saad Jaglol बिल्कुल अहले यूरोप के रसम की तरह उनकी बीवीया शौहरो की तरफ मंसूब होती है।

यह खातून काहिरा मे कसर नैल (Nail Palace) के सामने एहतेजाज व मुजाहिरे मे पर्दे से बेजार   पर्दे उतारने वालियो के साथ मिलकर  उसने अपना पर्दा उतार दिया और सब ने मिलकर अपने बुर्क़े को कदमो तले रौंद डाले और उन्हें जला डाला उसी दिन से उस मैदान का नाम मैदान उल तहरीर यानी आज़ादी का मैदान नाम पड़ा।

इसी तरह इस काम को आगे बढ़ाया कनाना के कुछ नापाक लोगो ने जिसका नाम कुछ इस तरह से है।

हुसैन
एहसान अब्दुल कुदुस्
मुस्तफा अमीन
नजीब महफूज़
वगैरह ने और नसरानियों मे शिब्लि शमैल् और फराह उल नतुन ने।

इस्लाम और मुसलमानो के खिलाफ इस प्रोपगैंडा और मकर व फरेब को फैलाने मे सहाफ़त (पत्रकारिता) ने खूब साथ दिया। इस फितने की नसर् व असात् का पहला जरिया यही है।

1900 मे मज़लत उल सुफुर् (बे पर्दगी) नाम से मैगज़ीन निकाला गया। जिसमे लोगो की जेहंन साजि की गयी।

उसके दिल व दिमाग को यूरोप के मुताबिक अच्छा और बुरा का सबक सिखाया गया, शराफत दिनदारी का मजाक बनाया गया और जो लोग दिन पे चलते थे उन्हें पिछड़े हुआ, कदामत पसंद (रूढ़ीवादी) और इंतेहा पसंद (कट्टरपंथी) कहा जाने लगा। दीनदारी और शराफत पर जबरदस्त हमले किये गए और लोगो के दिलों मे इसके ताल्लुक़ से नफरत बैठाया गया।

औरत की बेपर्दा और नंगी तस्वीरें, बात चित मे शहवत वाले जुमले, औरत मर्द को एक साथ दिखाना, औरत मर्द की शरीक हयात है इसलिए बराबरी वाला मामला, औरत पर मर्द के हुकूक को हिमाकत का दर्जा देना, छोटे कपड़े, मॉडर्न दौर के तौर तरीके को फ़िरोग् दिया जाने लगा।

निस्वानी स्विमिंग पूल बनाये जाने लगे जिसमे औरत और मर्द एक साथ बरहना नहाने लगे।

औरत और मर्द के मिले ज़ुले हम्माम (शौचालय) बनाये जाने लगे। क्लब, पार्क, बे हया वाक्यात् यह सब वज़ूद मे आने लगा।

बे हया नंगी औरतो के गाने, मुजरा करने वाली तवाइफ् जिसे एक्टरेस कहा जाने लगा। ऐसे लोगो को बड़ा मर्तबा दिया जाने लगा।

इन कामो को दो तरीको से फैलाया गया।

(I )उन की अंदरूनी कमजोरी- उनके खिलाफ जुबान व कलम से इसलाह करने वाले की कमजोरी, उनकी गंदगियो पर खामोशी, नंगी तस्वीरो को फैलाना, दिन की दावत देने वाले को चुप कराना और इस्लाही तहरिरो को नही छापने देना। उनके कामो मे रोड़े लगाना, इंतेहापसंद वगैरह के तोहमत लगाना।

(II) अमानतदार, बा सलाहियत्, दनिशवर, दीनदार और ताकतवर मुसलमानो को नजर अंदाज़ करके ना अहल, यूरोपीय मुखबिर, गद्दार और बद किरदार लोगो को ओहदे और मनसब पर बैठाना।

इस उम्मत मे बेपर्दगी की नामुनासिब शुरुआत चेहरे से नकाब हटाने से शुरू हुई। जिसकी मजीद तफ़्सील उस्ताद अहमद फ़र्ज़ की किताब "मुसलमान औरतों के खिलाफ साजिश" मे दर्ज है।

दूसरी किताब "पर्दे की वापसी" मे दर्ज है जिसके मुसनिफ् (लेखक) शेख मोहम्मद इब्न अहमद इस्माइल् है।

यहाँ से यह हरकत शुरू होकर जल्द ही पूरे आलम ए इस्लाम मे आग की तरह धधकती हुई फैल गयी।

यहाँ तक के बेपर्दगी की पाबंदी और इसको कायम रखने के लिए कानून बनाये गए और यह सब किसी गैर मुस्लिम मुमालिक मे नही बल्कि मुस्लिम मुमालिक मे मुस्लिम हुक्मरानो के जरिये हुआ।

तुर्किसतां (तुर्की) मे यूरोपीय एजेंट और फिरंगी गुलाम  कमाल पाशा अतातुर्क ने 1920 मे पर्दा खतम करने का कानून लाया जिसके तहत वहाँ आज भी बुर्का, नकाब यह सब पहनने पर पाबंदी है।

ईरान मे 1926 मे एक राफजी रज़ा बहलवि ने पर्दे को खैराबाद करने का हुक्म जारी किया। मगर बाद मे ईरान की क्रांति मे बहलवि का तख्तापलट हुआ और वहाँ शिया तौर तरीको से हुकूमत की जाने लगी और बुर्के से पाबंदी हटा ली गई। जिसे इस्लामी क्रांति कहते है।

अफगानिस्तान मे मोहम्मद अमान नाम के शख्स ने पर्दे को बैन करने के लिए कानून बनाया।

इसी तरह अल्बानिया मे अहमद जोगवा ने किया।

ट्युनिसिया मे अबू रकीबिया (वफ़ात 1431) ने पर्दा न करने और एक से ज्यादा शादी करने के जुर्म  की सज़ा मुकर्रर किया। ऐसा करने वाले को एक साल की सज़ा और माली ज़ुर्माना रखा गया।

इस हरकत की सरबरहि उसने और ताहिर हद्दाद ने की जो 1317 को पैदा हुआ और 1353 को वफ़ात पाया।

जिसने 1920 और 1930 के बीच एक किताब लिखा " हमारी औरत शरीयत इस्लामी और सोसाइटी के आईने मे "
जिसमे औरत को बेहयाई, बे पर्दगी और उरियानियत की तरफ दावत दी गयी। इस किताब के बारे मे यह कहा गया है के यह नसरानी पोप मुसम्म उल इस्लाम का लिखा हुआ है जिसको बाद मे ताहिर हद्दाद ने अपना लिया है।
इस किताब के आखिर मे 12 सवालात दर्ज है जिसके जवाब चंद मुफ्तियो ने दिये है।

दो मालकि मुफ्तियो ने उसे दिन से खारिज होने का फतवा भी दिया है।

इसी वज़ह से क्लियत उल हुकूक (Law College) के इम्तिहाँ मे हिस्सा लेने से सरकार ने मना कर दिया। फिर उसने किनाराकशी इख़्तियार कर लिया, लोगो ने उससे अपना ताल्लुक खतम कर लिया और वह 1353 मे इंतकाल कर गया।
उसके जनाज़े मे भी उसके घरवाले और चंद दोस्तो के  अलावा और किसी ने जाना गवारा ना किया। उसे गाने बजाने का खूब शौक था, होटलो और कहवे खाने पर हमेशा आता जाता था। कंमुनिज्म (Communism) की तरफ फ़ख़्र से अपना निस्बत करता था।

उसकी किताबो की हौलनाकियाँ अखबारों मे छपने लगी। यहाँ तक के ट्युनिसिया बेपर्दगी और नंगापन मे अव्वल दर्जे मे आने लगा।  पाकबाजी और पर्दे के खिलाफ जंग  पर लिखी गयी 400 सहफो की किताब देखे जिससे आपका दिल रो उठेगा।

अब इराक की बारी थी।  उसने भी पर्दे के खिलाफ कानून बनाया और उसकी सरबराही अल जहावि और अल साफि ने किया।

अल्जेरिया मे पर्दा खतम होने का दर्दनाक वाक्या " "मगरिबियत फिक्र व सियासत और एकतेसाद मे"
नामी किताब मे दर्ज है जो 13 मई 1958 को रनुमा हुआ।  इस वाक्ये से दिल के टुकड़े हो जायेंगे।

एक खुतबा जुमा के मौके पर खतीब से "परदा खतम कर देने" का ऐलान करवाया गया तो फ़ौरन एक नवजवान औरत ने माइक  के जरिये बुर्का निकाल देने का एलान किया।

सबसे पहले उसने अपना बुर्का उतारा और फेंक दिया और सब लड़कियो ने उसके इस हरकत की पैरवी की,
बेहूदा लोगो ने तालियां बजाकर हौसला अफजाई की, दूसरे मुल्को मे भी ऐसी ही वाक्ये पेश आने लगे जिसे मीडिया वालो ने खुब उछाला और बरी शोहरत दी।

इसी तरह मराक़श और शाम के चारो हिस्से लेबनान, सीरिया, फिलिस्तीं और अर्दन मे फिरक़ा परस्त, कौमीयत परस्त के जरिये बे पर्दगी को आम किया गया।

मगर इन वाक्ये को मंजर ए आम पर नही लाया गया। यह बात अजीब सी लगती है के उस दौर मे ऐसे ऐसे वाक्यात पेश आये। नंगापन, हमजिंसीयत, बद फेलि, खुली आज़ादी के आतिश फसां का पहाड़ फटने का हाल किसी से छुपा ढका नही है।

अलबत्ता बर्रे सगीर की मुसलमान औरतें पर्दे के मामले मे दुसरो से बेहतर थी। 1950 मे यहाँ भी औरतों की आज़ादी और हम जिंसीयत ने सर उठाया।

कासिम अमीन की किताब मे इस बारे मे दर्ज है। सहाफ़त ने बेपर्दगी को कैसे उछाला , को एडुकेशन को शोहरत दी।
जिससे हिंदुस्तान का बुरा हाल हो गया। इसकी तफ़्सील खादिम हुसैन की किताब " बर्रे सगीर हिंद मे मुस्लिम तहज़ीब की बिगार मे यूरोप का नुमाया किरदार " के पेज 182 - 195 पर दर्ज है।

इसी तरह फितना की जड़ मर्दाना मुशाबेहत्, आज़ादी औरत के नतीजे मे मगरीबि औरत का इखतताम् हुआ और यहाँ से इस इलाके के मुसलमान औरत का आगाज हुआ। ।

एक ऑस्ट्रेलियन लेडी रिपोर्टर तालिबान से मुताशीर् होकर इस्लाम कुबूल कर ली।

आप यह सब पढ़ कर यह सोच रहे होंगे के यह पहले हुआ करता था अब ऐसा कुछ नही है तो आप को मालूम होना चाहिए के सबसे ज्यादा औरतों की आज़ादी की बात यूरोपियन मुमालिक करता है जबकि सबसे पहले बुर्का को स्विजेरलैंड मे बैन किया गया था।

वहाँ आज भी मुस्लिम औरतों से बुर्क़े की वजह से भेदभाव किया जाता है मगर यही गंदे मानसिकता वाले दुसरो को समानता का पाठ पढ़ाते है। फ्रांस, ऑस्ट्रेलिया, नीदरलैंड, स्वीडेन, पोलेन्ड्, फिनलैंड, कनाडा वगैरह देशों मे हिजाब, बुर्का वगैरह बंद है।

सलमान रुश्दी जिसने "शैतानी आयत " नाम से किताब लिखा जिसकी वजह से मुसलमानो ने मुजाहरे किये इसलिए वह अमेरिका भाग गया और अब वह अमेरिका मे पनाह लिए हुआ है। तसलिमा नसरीन जो भारत मे रह रही है, इसने भी इस्लाम के खिलाफ किताबें लिखी, नबी की शान मे गुस्ताखी की, फ्रांस का चार्ली हेब्दो जो हमेशा नबी की शान मे गुस्ताखी करता है मगर मुस्लिम दुनिया खामोश रहती है यह सब के पीछे अमेरिका और यूरोप है जिसने हमेशा सहाफ़त की आज़ादी , इज़हार राय की आज़ादी की आड़ मे इस्लाम और मुसलमानो के ही खिलाफ काम किया है। यह यहूद व नसारा शुरू से मुसलमानो के खिलाफ साजिश रचते आया है। इसलिए यह भूल जाए के 14 वी सदी मे ही ऐसा होता था बिल्कुल भी नही यह मॉडर्न दौर मे भी इस्लाम के खिलाफ लोगो के दिलो मे नफरत बैठाने के लिए इस्लामी आतंकवाद, कट्टरपंथी, दकियानुसी, चरमपंथी जैसे अल्फ़ाज इस्तेमाल किये जाते है ताकि लोग इस्लाम से दूर भागे और मुसलमानो से नफरत करने लगे।

जबकि यह लोग खुद औरतों को बुराई की जड़ आज भी समझते है

मगरीब ने औरत को जो कुछ दिया है वह औरत की हैसियत से नही बल्कि मर्द बनाकर दिया है। औरत दर हकीकत उसकी नजर मे वैसी ही जलील है जैसे जमाने जाहिलीयत मे हुआ करती थी। घर की मल्लका, शौहर की बीवी, बच्चो की माँ एक असली और हकीकी औरत के लिए अब भी मगरीब मे कोई इज्जत नही है। इज्जत है तो मर्द , मुजक्कर की जो जिस्मानी तौर पर तो औरत मगर दिमागी तौर पर मर्द हो और समाज मे मर्द के जैसा ही काम करे। ज़ाहिर है यह निस्वनियत की इज़्ज़त नही बल्कि मर्दांगी की इज्जत है। यह काम सिर्फ इस्लाम ने किया है के औरत को तहजीब और मुआश्रे मे उसके फितरी मकाम पर ही रख कर इज्जत व सर्फ बख्शा है।

मुसलमानो की हकीकी तस्वीर 

एक बादशाह ने बहुत बड़ा बर्तन बनवाया और लोगों को हुक्म दिया के हर कोई एक गिलास दूध इस बर्तन में डाले। 

लोग आते गए और अपने अपने ग्लास बर्तन में उडेलते रहे, सुबह बादशाह ने देखा बर्तन पानी से भरा हुआ है।

तहक़ीक से पता चला कि सबने ये सोच कर पानी का गिलास डाला कि बाक़ी लोग तो दूध ही डाल रहे होंगे, उसके एक ग्लास पानी का पता ही नहीं चलेगा।

लिहाज़ा पूरी आबादी ये सोच कर तबाही से बेख़बर और मस्त है कि बाक़ी लोग उम्मत को बचा लेंगे... मैं शामिल न हुआ तो क्या फर्क़ पड़ेगा।

कश्ती डूबने को है मुर्दा क़ौम सो रही है!

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Hollywood ki "Sex Symbol" Kahlane wali Actores jisne Be hyai ki Shuruwat ki?

Janiye Sabse Pahle kisne Behyayi ko khuleaam anjam diya?

Hollywood ki wah Actores jisko Sex Symbol kaha gaya.

بے شک ہماری جان لے لو،
حجاب رہنے دو!

یہ پردہ سچ میں مکمل جہاد ہے.

دنیا کی کوئی بھی عورت پردہ کے بغیر تعلق باللہ کی لذت چکھ ہی نہیں سکتی.

اپنی اوڑھنیاں اپنے سینوں پر ڈال لیں... یہ ربّانی حکم ہے.

اللہ کریم تم سب کی حفاظت فرمائے گا ان شاءاللہ العظيم.

یہ بہت درد ناک ہے. اور حیران کن بھی کہ چہرے کے پردہ کے خلاف تحریک، زمنِ رسول ﷺ سے ہی چلی آرہی ہے.

خلافت کے اختتام پر اس اسلامی عظیم شعائر کی دھجیاں اڑا دی گئیں.

مسلم خواتین کو یہ بات بہت زیادہ سمجھنے کی ضرورت ہے کہ پردہ فرض ہے اور پردہ کرنا اور پردہ کا تحفظ کرنا آپکا جہاد ہے.

یہ چند صفحات لازمی پڑھیں اور خواتین کو ضرور پڑھائیں جو پردہ کو گلیمرائز کرتے ہوئے نفس کی پیروی کر رہی ہیں. اور اپنی قدر کریں کہ اللہ نے آپکو بے قیمت نہیں رکھا.

پہلی جنگ عظیم کے اختتام پر مغرب کی عورتوں کا استحصال شروع کیا گیا تھا.

پھر دوسری جنگ عظیم تک اس تحریک نے مسلمانوں کے معاشرے میں قدم جما کر حیا اور عفت کی دھجیاں اڑا دیں. یعنی بے حیائی کی یہ تحریک دنیا بھر کی عورتوں کو روند رہی ہیں.

مارلین مورنو، ہالی ووڈ کی وہ اداکارہ ہے جو سیکس سمبل کہلائی۔

اس نے فحاشی پھیلانے میں بھرپور کردار ادا کیا. اور اب تک، اسکی اداؤں، طرز لباس کو اپنایا جاتا ہے.

مرنے سے پہلے اسے بھی یہ احساس ہو گیا تھا اور اس نے کہا تھا کہ "میں یہ جان چکی ہوں کہ میں مردوں کے ہاتھ میں ایک کھلونا ہوں، اور میں حقیقی سعادت بھری زندگی سے محروم ہوں."

اے مسلمان بہن! تو اس درد ناک صورتحال سے عبرت حاصل کر، جس سے آج بہت ساری تعلیم یافتہ لڑکیاں دوچار ہو رہی ہیں.

اللہ ہماری بہنوں کو با پردہ اور با حیا بنا، اُن کو کفار اور مشرق کی مشابہت سے بچا۔
آم
ین

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Ek Saiyyad Zadi ladki ka waqya jisne Shadi nahi magar Apni Saheliyo ko Nikah karne ki Nasihat karti thi.

Shadi ki Umar Hone Par bhi Shadi na karna.

Ek Nek khatoon ka Waqya jisne Shadi nahi ki magar apni Saheliyon ko Shadi karne ki nasihat kiya karti thi.



 کا حکم ہر حال میں مقدم ۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔!!اللہ

ایمانیات، معاشرت، معاملات اور عبادات و اخلاقیات ہر پہلو سے اللہ تعالیٰ اور شریعت کی باتوں کو مقدم رکھے، عائلی زندگی کے حالات ہوں یا دوسرے حالات، سبھی موقعوں پر شریعت کے احکام پر عمل درآمد کی فکر اشد ضروری ہے، ایک صاحب لکھتے ہیں:

"سید عطاء اللہ شاہ بخاری رحمۃ اللہ علیہ کو معلوم ہوا کہ کسی گھر میں فلاں لڑکی موجود ہے مگر ماں باپ شادی میں سستی کر رہے ہیں، تو انہوں نے لڑکی کی والدہ سے کہا کہ اس کی جلدی شادی کر دو۔

ماں نے کہا ابھی اس کی عمر ہی کیا ہے منہ سے دودھ کی خوشبو آتی ہے؟
حضرت شاہ صاحب نے فرمایا کہ بی بی اگر دودھ پھٹ گیا تو بدبو بھی آئے گی اور پھر یہ دودھ انسانوں کی بجائے کتوں کے کام آئیگا۔

ایک شہر میں سید زادی رہتی تھی جو بہت نیک اور پارسا تھی مگر اسکی شادی نہ ہوئی تھی، وہ دن بھر روزہ رکھتی اور رات بھر نوافل میں گزار دیتی، اہل علاقہ کی عورتیں اسکی بہت مداح تھیں، اس سید زادی سے دعائیں کرواتی تھیں، اس کی خدمت میں نذرانے پیش کیا کرتی تھیں، ایک دفعہ وہ سید زادی اتنی بیمار ہوئی کہ حالت نازک ہو گئی، محلہ کی نوجوان لڑکیاں اس کی خدمت کے لئے اس کے گھر اکٹھی ہو گئیں، بات چیت چل نکلی تو کسی نے کہا کہ آپ ہمیں وصیت کریں جو زندگی بھر کام آئے، سید زادی نے فرمایا کہ ہاں میں تمہیں زندگی کی بہترین نصیحت کرتی ہوں، وہ یہ ہے کہ جب بھی تمہارا مناسب رشتہ آجائے تو تم شادی کروانے میں ہرگز ہرگز دیر نہ کرنا، یہ سن کر لڑکیاں بہت حیران ہوئیں۔

ایک نے پوچھا کہ آپ نے خود تو شادی کروائی نہیں ہمیں جلدی کروانے کی نصیحت کر رہی ہیں، وہ فرمانے لگیں کہ میں اپنے دل کا حال آپ لوگوں کے سامنے کیسے کھولوں،؟

میری شادی میں تاخیر ہو گئی تو میرا نفس مجھے جنسی تقاضا پورا کرنے کیلئے اکساتا تھا۔

میرا دل نہ نماز میں لگتا تھا نہ تلاوت میں لگتا تھا، میں دن میں روزہ رکھتی اور رات میں شب بیداری کرتی تھی اس کے باوجود شہوت کے مارے میرا برا حال ہوتا تھا، اگر میں رات کو قرآن مجید کی تلاوت کر رہی ہوتی اور گلی میں سے بوڑھا چوکیدار آواز لگاتے گزرتا تو میرا جی چاہتا کہ میں اس بوڑھے کو اپنے پاس بلا لوں اور اپنی جنسی خواہش پوری کروں۔

کئی مرتبہ میں نے اٹھ کر دروازہ کھولنا چاہا مگر بدنامی کے ڈر سے سہم گئی کہ ساری زندگی کی بنی بنائی عزت خاک میں مل جائے گی، لوگ باتیں کریں گے کہ سید زادی ہو کر اس نے ایسا کام کیا، میں تڑپ تڑپ کر رات گزارتی، کسی کروٹ چین نہ آتا، میں اس عذاب کو بھگت چکی ہوں لہذا میں چاہتی ہوں کہ تمہیں کوئی پریشانی نہ اٹھانی پڑے.

معلوم ہوا کہ ہر حال میں شریعت کے احکام کو مقدم رکھنا چاہیے کہ یہی اصل دین داری ہے،النبي اولى بالمؤمنين کا یہی مصداق ہے کہ ایک عمدہ ترین فیصلہ تم اپنے لیے کرو اور شریعت بھی اسی امر سے متعلق کوئی فیصلہ کرے تو خیر و عافیت اور صلاح و فلاح شریعت کے امر میں ہی رہے گی اپنا فیصلہ چاہے جتنا خود کو بھاتا ہو۔

نبی اکرم صلی اللہ علیہ و سلم نے سچ فرمایا ہے کہ جب لڑکی کے جوڑ کا خاوند مل جائے تو اس کی شادی کر دو، رہی جہیز کی بات تو وہ رسم و رواج کے سوا کچھ نہیں ہے۔
جہیز لینا حرام ہے اور لڑکے والے کو شریعت کے مطابق شادی کرنی چاہیے۔

اللہ تعالیٰ سے دعا ہے کہ ہم سب کو اپنے دین کی قدر دانی نصیب فرمائے، و لتنظر نفس ماقدمت لغد والی آیت پر عمل کرنے کی توفیق عطا فرمائے آمین یارب العالمین۔
۔۔۔۔۔۔۔۔۔
افتخار احمد قاسمی بستوی

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Is taking loan from a bank for Construction of home is Riba?

Can i Take Loane from bank for Construction?

Q. Is taking loan from a bank for Construction of home is Riba?

Ans. If this is an Intrest based Loane , this is Riba and one of the major Sins in Islam.

Sheikh Assim Al Hakeem

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If you Pray for the dead people, will they know that you Particularly prayed for them?

Can Anybody pray for Dead People?


Q. If you Pray for the dead people, will they know that you Particularly prayed for them?

Ans. There is no authentic evidence to prove that they know .

Sheikh Assim Al Hakeem

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Sheikh what is the reward for reciting  Subhanallah Wabihamdihi 100 times in day?

What is the Reward for Reciting Qurani Aayat Subhanallah Wabihamdihi?

Q. Sheikh what is the reward for reciting  Subhanallah Wabihamdihi 100 times in day?

And. All your sins (minor) will be forgiven even if they were as much as the  foam of the Sea.

Sheikh Assim Al Hakeem

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Kya Islam Muhabbat ka Dushman hai, Valentine day ka Tarikhi (Historical) aur Sharai Hakikat?

Kya Islam Muhabbat karne se mana karta hai?

Islam Me Muhabbat ke bare me kya kaha gaya hai?

हमारी बहन बेटियों के हिजाब करने से फाजिर और फाशिको को क्या परेशानी है?

अहले वैत में कौन लोग शामिल है?

भौतिकवादी दौर में सच्चा प्यार मिलना कितना मुश्किल हो गया है? उर्दू लेख

वेलेंटाइन डे और हमारी बहन बेटियों की इज्जत।

क्या आपकी बहन  भी किसी और से छुप छुप कर प्यार करती है?

“سلسلہ سوال و جواب -207”

سوال_اسلام کا تصور محبت کیا ہے؟ کیا اسلام محبت کا دشمن ہے؟ نیز ویلنٹائن ڈے Velentien’s Day کی شرعی حیثیت بیان کریں؟

Published Date:12-2-2022

جواب۔۔!!
الحمدللہ۔۔۔۔!!

*اسلام پر نکتہ چینی کرنے والے یہ اعتراض اٹھاتے ہیں کہ اسلام محبت کا دشمن ہے،جب کہ یہ بات سراسر جھوٹ ہے، اسلام نا صرف محبت کی اجازت دیتا ہے بلکہ محبت کرنے والوں کی حوصلہ افزائی کے لیے بے شمار انعامات کا ذکر بھی کرتا ہے،لیکن شرط یہ ہے کہ محبت سچی، پاک اور اللہ کی رضا کے لیے ہونی چاہیے*.

آئیں اب مختصر محبت کے بارے جاننے کی کوشش کرتے ہیں،

*محبت کیا ہے؟*
محبت ایک فطری اور طاقتور جذبہ ہے،جو کبھی بھی، کسی کو بھی ، کسی سے بھی ہوسکتی ہے،

محبت دو طرح کی ہوتی ہے:
پاکیزہ محبت اور ناپاک محبت

*پاکیزہ محبت:*

پاکیزہ محبت خلوص، ایثار اور وفاداری پر قائم ہوتی ہے اور ہمیشہ پائیدار اور دائمی رہتی ہے۔ اور ہر قسم کے ذاتی مفاد، خود غرضی اور بے وفائی سے پاک ہوتی ہے۔

*ناپاک محبت:*

خبیث محبت مالی، ذاتی اور جنسی‘ رذیل مفادات، خود غرضی اور بے وفائی پر قائم ہوتی اور ہمیشہ کمزور رہتی اور جلد ختم ہوجاتی ہے، بلکہ اس کا انجام دشمنی پر ہوتا ہے۔

*اسلام کا تصورِ محبت:*

پوری کائنات میں سب سے زیادہ محبت کا داعی اور فروغِ محبت پر ابھارنے والا مذہب اگر کوئی ہے تو وہ صرف اسلام ہے‘ جس میں محبت کو ایمان کی بنیاد قرار دیا گیا ہے۔

*اللہ کی خاطر محبت تکمیل اِیمان کے اسباب میں سے ہے*

ابی اُمامہ رضی اللہ عنہ ُ سے روایت ہے کہ رسول اللہ صلی اللہ علیہ و علی آلہ وسلم نے اِرشاد فرمایا
﴿مَنْ أَحَبَّ لِلَّهِ وَأَبْغَضَ لِلَّهِ وَأَعْطَى لِلَّهِ وَمَنَعَ لِلَّهِ فَقَدِ اسْتَكْمَلَ الإِيمَانَ
::: جِس نے اللہ کی خاطر مُحبت کی ، اور اللہ کی خاطر نفرت کی، اور اللہ کی خاطرہی (کسی کو کچھ) دِیا ، اور اللہ ہی کی خاطر(کسی کو کچھ)دینے سے رُکا رہا ، تو یقیناً اُس نے اپنا اِیمان مکمل کر لیا﴾
(سنن ابو داؤد /حدیث 4681)
، اِمام الالبانی رحمہُ نے صحیح قرار دِیا ۔

*اللہ کے لیے محبت ایمان کی مضبوطی کے اسباب میں سے ہے*

رسول اللہ صلی اللہ علیہ وعلی آلہ وسلم نے ابو ذر الغِفاری رضی اللہ عنہ ُ سے فرمایا
﴿ يَا أَبَا ذَرٍّ أَيُّ عُرَى الإِيمَانِ أَوْثَقُ
اے ابو ذر کیا تُم جانتے ہو کہ اِیمان کی سب سے زیادہ مضبوط گرہ کونسی ہے؟﴾
ابو ذر رضی اللہ عنہ ُ نے عرض کیا
اللہ اور اس کے رسول ہی سب سے زیادہ عِلم رکھتے ہیں
تو رسول اللہ صلی اللہ علیہ وعلی آلہ وسلم نے اِرشاد فرمایا
الْمُوَالاةُ فِي اللَّهِ ، وَ المُعَادَاةُ فِي الله ، وَالْحُبُّ فِي اللَّهِ ، وَالْبُغْضُ فِي اللَّهِ:::
اللہ کے لیے دوستی رکھنا ، اور اللہ کے لیے دُشمنی رکھنا ، اور اللہ کے لیے مُحبت کرنا ، اور اللہ کے نفرت کرنا﴾
(صحیح الجامع الصغیر و زیادتہُ /حدیث2539)
( السلسلة الصحيحة ١٧٢٨ • حسن لشواهده)

*ایک دوسرے سے محبت اللہ سُبحانہ ُ و تعالیٰ کی مُحبت پانے کے اسباب میں سے ہے*

مُعاذ ابن جبل رضی اللہ عنہ ُ کا کہنا ہے کہ میں نے رسول اللہ صلی اللہ علیہ وعلی آلہ وسلم کو اِرشاد فرماتے ہوئے سُنا کہ
قَالَ اللَّهُ تَبَارَكَ وَتَعَالَى وَجَبَتْ مَحَبَّتِى لِلْمُتَحَابِّينَ فِىَّ وَالْمُتَجَالِسِينَ فِىَّ وَالْمُتَزَاوِرِينَ فِىَّ وَالْمُتَبَاذِلِينَ فِىَّ
اللہ تبارک و تعالیٰ کا فرمانا ہے کہ میرے لیے آپس میں مُحبت کرنے والوں، ایک دوسرے کے ساتھ مل بیٹھنے والوں ، اور ایک دوسرے کو جا کر ملنے والوں ، اور (ایک دوسرے کی خیر کے لیے) اپنی قوتیں صرف کرنے والوں کے لیے میری مُحبت واجب ہوگئی.

(صحیح ابن حبان /حدیث 575)
(مؤطا مالک/حدیث 1748)
(مُسند أحمد/حدیث 22680/حدیث معاذ ابن جبل رضی اللہ عنہ ُ میں سے حدیث رقم 47)
(صحیح الجامع الصغیر و زیادتہ/حدیث4331)

*اللہ کے لیے محبت انبیاء اور شھداء کے لیے بھی پسندیدہ درجہ حاصل ہونےکے اسباب میں سے ہے*

رسول اللہ صلی اللہ علیہ وعلی آلہ وسلم کے دوسرے بلا فصل خلیفہ أمیر المؤمنین عُمر الفارق رضی اللہ تعالیٰ عنہ ُ کا فرمان ہے کہ رسول اللہ صلی اللہ علیہ وعلی آلہ وسلم نے اِرشاد فرمایا ﴿
إِنَّ مِنْ عِبَادِ اللَّهِ لأُنَاسًا مَا هُمْ بِأَنْبِيَاءَ وَلاَ شُهَدَاءَ يَغْبِطُهُمُ الأَنْبِيَاءُ وَالشُّهَدَاءُ يَوْمَ الْقِيَامَةِ بِمَكَانِهِمْ مِنَ اللَّهِ تَعَالَى
:::بے شک اللہ کے بندوں میں کچھ ایسے لوگ بھی ہوں گے،جو انبیاء میں سے نہیں اور نہ ہی شہیدوں میں سے ہوں گےلیکن قیامت والے دِن اللہ کے پاس اُن کی رتبے کی انبیاء اور شہید بھی تعریف کریں گے﴾
صحابہ رضی اللہ عنہم اجمعین نے عرض کیا “”” اے اللہ کے رسول ہمیں بتایے کہ وہ لوگ کون ہیں ؟”””،
تو اِرشاد فرمایا ﴿
هُمْ قَوْمٌ تَحَابُّوا بِرُوحِ اللَّهِ عَلَى غَيْرِ أَرْحَامٍ بَيْنَهُمْ وَلاَ أَمْوَالٍ يَتَعَاطَوْنَهَا فَوَاللَّهِ إِنَّ وُجُوهَهُمْ لَنُورٌ وَإِنَّهُمْ عَلَى نُورٍ لاَ يَخَافُونَ إِذَا خَافَ النَّاسُ وَلاَ يَحْزَنُونَ إِذَا حَزِنَ النَّاسُ

:::وہ(صِرف )اللہ کی خاطر مُحبت کرنے والے لوگ ہوں گے ، (کیونکہ ) اُن کے درمیان نہ تو (اِیمان کے عِلاوہ)کوئی رشتہ داری ہو گی اور نہ ہی کوئی مال لینے دینے کا معاملہ ، پس اللہ کی قَسم اُن کے چہرے روشنی ہی روشنی ہوں گے اور وہ روشنی پر ہوں گے ، جب (قیامت والے دِن) لوگ ڈر رہے ہوں گے اور غم زدہ ہوں گے تو وہ نہیں ڈریں گے ، اور نہ ہی غم زدہ ہوں گے﴾
اور پھر رسول اللہ صلی اللہ علیہ وعلی آلہ وسلم نے یہ آیت مبارکہ تلاوت فرمائی
أَلاَ إِنَّ أَوْلِيَاءَ اللَّهِ لاَ خَوْفٌ عَلَيْهِمْ وَلاَ هُمْ يَحْزَنُونَ
بے شک اللہ کے ولیوں (دوستوں) پر نہ کوئی ڈر ہو گا اور نہ ہی وہ غم زدہ ہوں گے

(سُنن ابو داؤد /حدیث3527)
/کتاب الاِجارۃ /باب42)

اِس حدیث پاک میں اللہ تعالیٰ نے اپنے رسول صلی اللہ علیہ وعلی آلہ وسلم کی زبان مُبارک سے یہ خبر کروائی کہ اللہ کی خاطر ، صِرف اللہ کی خاطر ایک دوسرےسے مُحبت کرنے والے اِیمان والے اللہ کے اُن ولیوں میں شمار ہوتے ہیں جنہیں قیامت والے دِن کوئی خوف اور غم نہ ہوگا اور وہ اللہ کے ہاں ایسے بلند رتبے پائیں گے کہ جنہیں دیکھ کر انبیاء اور شہداء بھی رشک کریں گے ،

*محبت قیامت والے دِن اللہ کی عرش کا سایہ پانے کے اسباب میں سے ہے*

ابو ہُریرہ رضی اللہ عنہ ُ نے فرمایا کہ ، رسول اللہ صلی اللہ علیہ وعلی آلہ وسلم نے اِرشاد فرمایا
إِنَّ اللَّهَ يَقُولُ يَوْمَ الْقِيَامَةِ أَيْنَ الْمُتَحَابُّونَ بِجَلاَلِى الْيَوْمَ أُظِلُّهُمْ فِى ظِلِّى يَوْمَ لاَ ظِلَّ إِلاَّ ظِلِّى
:بے شک قیامت والے دِن اللہ کہے گا کہ میرے جلال کی وجہ (ایک دوسرے سے) مُحبت کرنے والے (اِیمان والے)کہاں ہیں ؟ آج ، اُس دِن میں جب کہ میرے (عرش کے)سائے کے علاوہ کوئی اور سایہ نہیں ، میں انہیں اپنے (عرش)کے سایے میں جگہ دوں گا
(صحیح مُسلم/حدیث2566_کتاب البر والصلۃ و الادب/باب12)

ابو ہُریرہ رضی اللہ عنہ ُ کی روایت کردہ سات قسم کے لوگوں کو عرش کے سایے میں جگہ ملنے والی حدیث شریف میں ہے کہ،
سَبْعَةٌ يُظِلُّهُمُ اللَّهُ فِى ظِلِّهِ يَوْمَ لاَ ظِلَّ إِلاَّ ظِلُّهُ الإِمَامُ الْعَادِلُ ، وَشَابٌّ نَشَأَ فِى عِبَادَةِ رَبِّهِ ، وَرَجُلٌ قَلْبُهُ مُعَلَّقٌ فِى الْمَسَاجِدِ ، وَرَجُلاَنِ تَحَابَّا فِى اللَّهِ اجْتَمَعَا عَلَيْهِ وَتَفَرَّقَا عَلَيْهِ ، وَرَجُلٌ طَلَبَتْهُ امْرَأَةٌ ذَاتُ مَنْصِبٍ وَجَمَالٍ فَقَالَ إِنِّى أَخَافُ اللَّهَ . وَرَجُلٌ تَصَدَّقَ أَخْفَى حَتَّى لاَ تَعْلَمَ شِمَالُهُ مَا تُنْفِقُ يَمِينُهُ ، وَرَجُلٌ ذَكَرَ اللَّهَ خَالِيًا فَفَاضَتْ عَيْنَاهُ

جس دِن اللہ کے (عرش کے) سایے کے علاوہ کوئی سایہ نہ ہوگا اُس دِن اللہ سات لوگوں کو اپنے (عرش کے) سایے میں جگہ دے گا (1)انصاف کرنےوالا حُکمران ، اور (2)وہ نوجوان جو اللہ کی عبادت میں مشغول رہتے ہوئے بڑا ہو، اور (3)وہ شخص جِس کا دِل مسجدوں میں ہی لگا رہے، اور (4)وہ دو شخص جو صِرف اللہ کے لیےمُحبت کرتے ہوں اسی مُحبت میں وہ ملتے ہوں اور اِسی مُحبت میں وہ الگ ہوتے ہوں، اور (5)وہ شخص جِسے کسی رتبے اور حُسن والی عورت نے (برائی کے لیے)دعوت دی ہو اور وہ شخص(اُس عورت کی دعوت ٹُھکراتے ہوئے)کہے میں اللہ سے ڈرتا ، اور (6)وہ شخص جو اس قدر چُھپا کر صدقہ کرتا ہو کہ اُس کے بائیں ہاتھ کو بھی پتہ نہ ہو کہ اُس کے دائیں ہاتھ نے کیا صدقہ کیا ہے ، اور (7)وہ شخص جِس نے تنہائی میں اللہ کو یاد کیا اور اُس کی آنکھوں سے آنسو رواں ہو گئے
(صحیح البخاری/حدیث660)
(صحیح مُسلم/ حدیث1031)

*اللہ کی خاطر مُحبت کرنے والوں کی نشانیاں*

ایک دوسرے کو نیکی کا حکم کرنا اور برائی سے باز رہنے کی تلقین کرنا اور ان دونوں ہی کاموں کی تکمیل میں ایک دوسرے کی مدد کرنا

اللہ سُبحانہ و تعالیٰ کا فرمان
وَالْمُؤْمِنُونَ وَالْمُؤْمِنَاتُ بَعْضُهُمْ أَوْلِيَاءُ بَعْضٍ يَأْمُرُونَ بِالْمَعْرُوفِ وَيَنْهَوْنَ عَنِ الْمُنْكَرِ
:::اور اِیمان والے مرد اور اِیمان والی عورتیں ایک دوسرے کے ساتھی ہیں (کہ ایک دوسرے کو)نیکی کے کاموں کا حُکم کرتے ہیں اور برائی سے منع کرتے ہیں﴾ (سُور التوبہ آیت_71)

اِیمان لانے والوں میں سے ،صِرف وہی لوگ اللہ تبارک و تعالیٰ کے اس فرمان پر عمل پیرانظر آتے ہیں جو ایک دوسرے سے اللہ کے لیے مُحبت کرتے ہیں ، ورنہ تو لاکھوں اِیمان والے ہیں ، أربوں مُسلمان ہیں ، کتنے ہیں جوایک دوسرے کو نیکی کی تلقین کرتے ہوں ؟ برائی اور گناہوں سے بچنے کی نصیحت کرتے ہوں؟
جو ہیں ، جتنے ہیں ، وہ اِن شاء اللہ ، ایک دوسرے سے اللہ کی خاطر مُحبت کرنے والوں میں ہو سکتے ہیں،

*ایک دوسرے کے دُکھ درد کو بالکل اپنے دُکھ درد کی طرح محسوس کرنا ، اور ایک دوسرے پر رحم و شفقت کرنا اور مددگار رہنا*

رسول اللہ صلی اللہ علیہ وعلی آلہ وسلم کے فرامین :::
﴿تَرَى الْمُؤْمِنِينَ فِى تَوَادِّهِمْ وَتَرَاحُمِهِمْ وَتَعَاطُفِهِمْ مَثَلُ الْجَسَدِ إِذَا اشْتَكَى مِنْهُ عُضْوٌ تَدَاعَى لَهُ سَائِرُ الْجَسَدِ بِالسَّهَرِ وَالْحُمَّى

:::اِیمان والوں کی مثال ایک دوسرے سے محبت کرنے میں ، اور ایک دوسرے پر صِرف اِیمان کی وجہ سے رحم کرنے میں ، اور ایک دوسرے کے مددگار رہنے میں اس طرح ہے کہ جیسے کوئی ایک جِسم ہوتا ہے کہ جب اُس جِسم کا کوئی حصہ تکلیف میں ہوتا ہے تو سارا ہی جِسم اُس تکلیف کی وجہ سے بخار اور بے خوابی کامیں مبتلا رہتا ہے.

( صحیح بخاری،حدیث6011)
صحیح مُسلم/حدیث6751/کتاب البِر والصلۃ ولآداب)

نبی کائنات جناب محمد رسول اللہ صلی اللہ علیہ و سلم کا ارشادِ گرامی ہے:
’’قسم ہے اس ذات کی جس کے ہاتھ میں میری جان ہے، تم اس وقت تک جنت میں داخل نہیں ہوسکتے‘ جب تک کہ ایمان نہ لے آؤ اور اس وقت تک مومن نہیں بن سکتے‘ جب تک کہ آپس میں محبت نہ کرو،کیا میں تمہیں ایسی چیز نہ بتاؤں جس سے تم آپس میں محبت کرنے لگو گے؟ آپس میں سلام کو فروغ دو۔‘‘
(صحیح مسلم: كِتَابٌ : الْإِيمَانُ | بَابٌ : لَا يَدْخُلُ الْجَنَّةَ إِلَّا الْمُؤْمِنُونَ ،حدیث -54)

*پیغامِ محبت کا امین‘ دین اسلام چونکہ خود ایک پاکیزہ مذہب ہے، لہٰذا اپنے ماننے والوں کو بھی ہمیشہ اور ہر معاملے میں پاکیزگی اختیار کرنے کا حکم دیتا اور صرف پاکیزگی کو ہی قبول کرتا ہے*

 سیدنا محمد رسول اللہ صلی اللہ علیہ و سلم کا ارشادِ گرامی ہے: ’’اے لوگو!
بے شک اللہ تعالیٰ پاکیزہ ہے اور پاکیزگی کے سوا کوئی چیز قبول نہیں کرتا۔‘‘
(صحیح مسلم: كِتَابٌ : الزَّكَاةُ. | بَابٌ : قَبُولُ الصَّدَقَةِ مِنَ الْكَسْبِ الطَّيِّبِ، وَتَرْبِيَتُهَا،حدیث -1014)

*اسی لئے پاکیزہ محبت صرف وہی لوگ اپناتے ہیں‘ جو اسلام جیسے پاکیزہ دین سے محبت کرتے اور خود بھی مسلمان اور مومن ہوتے ہیں*

*ہر انسان اپنے ہی جیسے انسان سے محبت کرتا ہے:*

ابتدائے کائنات سے یہ ایک مسلمہ قاعدہ چلا آرہا ہے کہ ہر انسان دنیا میں اپنے ہی جیسے کردار کے حامل لوگوں سے محبت کرتا اور ان ہی کی رفاقت کا طالب رہتا ہے۔ جیسے : مشرک، کافر، زانی، شرابی، چور، ڈاکو، قاتل وغیرہ سب گنہگار اپنے ہی جیسے گنہگاروں سے محبت کرتے ہیں، اسی طرح مسلمان اور مومن صرف اللہ اور اس کے رسول صلی اللہ علیہ و سلم اور دیگر مومنین سے ہی محبت کرتے ہیں۔

اور اللہ تعالیٰ دنیا میں بھی ان لوگوں کو اسی ترتیب سے جمع کرتا ہے اور آخرت میں بھی ان کا انجام انہی لوگوں کے ساتھ ہوگا ‘جن سے وہ دنیا میں دلی محبت کرتے ہوں گے۔

 اللہ تعالیٰ کا فرمان ہے:
’’خبیث عورتیں‘ خبیث مردوں کے لائق ہیں اور خبیث مرد‘ خبیث عورتوں کے لائق ہیں۔ اور پاکیزہ مرد پاکیزہ عورتوں کے لائق ہیں اور پاکیزہ عورتیں پاکیزہ مردوں کے لائق ہیں۔‘‘
(سورہ النور:26) مزید دیکھئے :النور:3)

یہ تو دنیا میں ان کی اپنے ہی جیسے کرداروں سے باہمی محبت اور میل جول ہے، اسی طرح آخرت میں بھی یہ لوگ اپنے ہی جیسے کرداروں کے ساتھ اٹھائے جائیں گے۔

’’اس (قیامت کے) دن لوگ (اپنے اعمال کے مطابق) مختلف ٹولیوں کی صورت میں جمع کئے جائیں گے، تاکہ انہیں انکے اعمال دکھا دیئے جائیں، پھر جس نے ایک ذرہ برابر بھی نیکی کی ہوگی تو وہ اسے دیکھ لے گا اور جس نے ایک ذرہ برابر بھی برائی کی ہوگی تو وہ اسے بھی دیکھ لے گا۔‘‘
(سورہ الزلزال-آئیت 8)

نبی کریم صلی اللہ علیہ و سلم کا فرمان: ’’(خواب میں)میرے پوچھنے پر جبریل اور میکائیل علیہ اسلام نے مجھے بتایا کہ جو منظر آپ کو دکھائے گئے ہیں ان میں سے سب سے پہلے جس شخص پر آپ کا گزر ہوا اور اس کے جبڑے، نتھنے اور آنکھیں گدی تک لوہے کے آلے سے چیری جارہی تھیں‘ یہ وہ شخص تھا جو صبح کے وقت گھر سے نکلتا تھا تو جھوٹی خبریں گھڑتا تھا‘ جو ساری دنیا میں پھیل جاتی تھیں اور دوسرے برہنہ مرد اور عورتیں جو آپ نے تنور میں جلتے ہوئے دیکھے وہ زانی مرد اور عورتیں تھیں اور تیسرا وہ شخص جو خون کی ندی میں غوطے کھارہا تھا اور جس کے منہ میں بار بار پتھر ڈالے جارہے تھے یہ وہ شخص تھا جو دنیا میں سود خور تھا۔‘‘
(صحیح بخاری: حدیث -1386)

نبی مکرم صلی اللہ علیہ و سلم کا ارشادِ گرامی ہے: ’’(قیامت کے دن)آدمی اس کے ساتھ ہو گا جس کے ساتھ (دنیا میں) محبت کی ہوگی۔‘‘
(صحیح بخاری: کتاب الادب، باب علامۃحب ﷲ عزوجل)

مذکورہ دلائل سے یہ بات ثابت ہوچکی ہے کہ قیامت کے دن ہر انسان کا انجام اس کی دنیوی دوستی، محبت اور اعمال کی بنیاد پر ہوگا اور ہر ایک اپنے ہی قبیلے کے فرد کے ساتھ یاتو سخت ترین عذاب دیاجائے گا یا پھر بہترین نعمتوں میں ہوگا۔

*پاکیزہ محبت کے مستحق کون؟*

اسلامی اعتبار سے پاکیزہ محبت کی سب سے زیادہ حقدار اللہ تعالیٰ کی ذات ہے، پھر اللہ کے حبیب جنابِ محمد رسول اللہ صلی اللہ علیہ و سلم کی ذاتِ اقدس اور اس کے بعد تمام اہل ایمان۔

ان محبتوں کا حصول ہر مسلمان پر فرض ہے، اس کے بغیر ایمان مکمل نہیں ہوتا۔

اللہ تعالیٰ کا ارشاد ہے:
“بے شک تمہارے دوست تو صرف اللہ،
اسکا رسول(صلی اللہ علیہ و سلم) اور وہ اہل ایمان ہیں‘ جو نماز قائم کرنے، زکوٰۃ ادا کرنے اور اللہ کے آگے جھکنے والے ہیں۔ اور جو شخص اللہ، اس کے رسول(صلی اللہ علیہ و سلم) اور اہل ایمان کو اپنا دوست بنالے‘ وہ یقین مانے کہ اللہ کا گروہ ہی غالب رہنے والا ہے۔ ‘‘
(سورہ المائدہ: 55-56)

نبی رحمت صلی اللہ علیہ و سلم کا فرمانِ مبارک ہے:لَا تُصَاحِبْ إِلَّا مُؤْمِنًا، وَلَا يَأْكُلْ طَعَامَكَ إِلَّا تَقِيٌّ ".
’’تم مومن کے علاوہ کسی کو اپنا دوست نہ بناؤ۔
‘(ابو داؤد: کتاب الادب، باب من یؤمران یجالس، حدیث -4832)
حسن حدیث

’فرمان نبوی صلی اللہ علیہ وآلہ وسلم!
الرَّجُلُ عَلَى دِينِ خَلِيلِهِ، فَلْيَنْظُرْ أَحَدُكُمْ مَنْ يُخَالِلُ "
آدمی اپنے دوست(محبوب) کے دین پر ہوتا ہے، لہٰذا ہر آدمی کو یہ دیکھنا چاہئے کہ وہ کسے اپنا دوست بنا رہا ہے؟‘‘
(سنن ابو داؤد حدیث -4833)
حدیث حسن

*دین اسلام ہر معاملہ میں اُخروی کامیابی کو اہمیت دیتا ہے، اس لحاظ سے ہر مسلمان کو کسی سے بھی محبت کرنے سے پہلے اسکے، اُخروی انجام پر غور کرنا ضروری ہے۔*

*پاکیزہ محبت ہی ذریعہ نجات ہے،اصل محبت وہی ہے جو بے غرض ہو، پرخلوص ہو اور ہمیشہ سلامت رہے۔ اور اس سے زیادہ پائیدار اور دائمی محبت اور کیا ہوسکتی ہے کہ جو نہ صرف دنیا، بلکہ آخرت میں بھی کارآمد ہو اور نجات کا ذریعہ بن جائے*

اللہ تعالیٰ کا ارشاد ہے:
’’خبردار! اللہ کے وہ دوست جو اللہ پر ایمان لائے اور پرہیزگار بن کر رہے ، ان کیلئے کسی قسم کا خوف اور غم نہیں ہوگا، ان کیلئے دنیا اور آخرت میں بھی بشارتیں ہی ہیں۔ اللہ کی باتیں کبھی نہیں بدلتیں۔ یہ بہت بڑی کامیابی ہے۔‘‘
(سورہ یونس:62)

رسول اللہ صلی اللہ علیہ و سلم نے فرمایا: ’’اللہ کے بندوں میں سے کچھ لوگ ایسے ہیں‘ جو نہ نبی ہیں اور نہ شہداء، لیکن قیامت کے روز اللہ تعالیٰ انہیں ایسے درجات سے نوازے گا جن پر انبیاء اور شہداء بھی فخر کریں گے۔ صحابہ رضوان اللہ علیہم اجمعین نے عرض کیا ‘ اے اللہ کے رسول صلی اللہ علیہ و سلم! وہ کون لوگ ہونگے؟ آپ صلی اللہ علیہ و سلم نے ارشاد فرمایا: یہ وہ لوگ ہونگے جو بغیر کسی رشتہ یا مالی لین دین کے محض اللہ کی رحمت(رضا) کے حصول کی خاطر ایک دوسرے سے محبت کرتے ہیں۔ اللہ کی قسم! انکے چہرے نورانی ہونگے اور وہ نور کے منبروں پر ہونگے۔ جب لوگ خوف زدہ ہونگے تو انہیں کسی قسم کا کوئی خوف نہیں ہوگا۔ جب لوگ غم زدہ ہونگے تو یہ بے غم ہونگے۔ اسکے بعد رسولِ اکرم نے یہ (مذکورہ، سورہ یونس کی آئیت:62) تلاوت فرمائی۔‘‘
(سنن ابی داؤد: کتاب البیوع، باب فی الرھن،حدیث نمبر-3527)

*ناپاک محبت کا بدترین انجام*

دنیا میں اپنی خودساختہ دوستیوں پر فخر کرنے والے ، اپنے محبوبوں کی قربت کی چاہت میں اپنی آخرت برباد کرنے والے اور انکے اشارۂ ابرو پر اپنا سب کچھ قربان کرنے کے دعویدار قیامت کے دن آپس میں بدترین دشمن بن جائینگے ، اپنی محبت کے اس بدترین انجام پر ایک دوسرے کو مورودِ الزام ٹھہرائینگے اور اپنی حرکتوں پر شرمندگی و پشیمانی کا اظہار کرینگے۔

*ذرا پڑھئے کہ اللہ کا سچا کلام قیامت کے دن کا کیا نقشہ کھینچتاہے*

’’بہت ہی گہرے دوست اس (قیامت کے) دن ایک دوسرے کے دشمن ہوں گے، سوائے پرہیزگاروں کے۔‘‘
(سورہ الزخرف:67)

دنیا میں ایک دوسرے کے لیے جان دینے والے سب ایک دوسرے کے دشمن بن جائینگے، کوئی کسی کا ساتھی نہیں ہو گا،
لیکن اس وقت بھی متقین کی دوستی قائم رہے گی، کیونکہ ان کی محبت اللہ کی رضا کے لیے تھی اس لیے قائم ہو گی،

’’اس (قیامت کے) دن ظالم اپنے ہاتھوں کو (احساسِ ندامت سے) چبا چبا کر کہے گا ‘ ہائے کاش! میں نے رسول(صلی اللہ علیہ و سلم) کا راستہ اختیار کیا ہوتا۔ ہائے افسوس‘ کاش میں نے فلاں کو اپنا دوست نہ بنایا ہوتا۔اس نے میرے پاس نصیحت آجانے کے بعد بھی مجھے گمراہ کردیا اور شیطان تو انسان کو (وقت پر) دغا دینے والا ہے۔‘‘
(سورہ الفرقان:،29٫28٫27،)

*اس لیے شریعت نے دنیا میں محبت و دوستی کے لیے تقوی کو معیار بنایا ہے، کہ (الحب للہ و البغض للہ)محبت اور دشمنی صرف اللہ کے لیے ہونی چاہیے بس…!*

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دوستی اور محبت پر مختصر بات کرنے کے بعد ہم آتے ہیں اصل موضوع کی طرف

*ویلنٹائین ڈے(Valentine’s Day) کی حقیقت*

ویلنٹائین ڈے کے متعلق کئی متضاد روایات تاریخی کتب میں موجود ہیں، مگر ان میں سے اکثر سے زیادہ من گھڑت قصہ کہانیوں پر مشتمل ہیں۔

بعض روایات معروف تحقیقی ادارے ’’Britannica Encyclopedia‘‘ کے حوالے سے ملتی ہیں، جنہیں پڑھ کر یہ معلوم ہوتا ہے کہ یہ دن عیسائیوں کے کیتھولک فرقے کی مذہبی رسومات کا ایک خاص دن ہے۔
اصل لفظ ’’Valentine Saint ‘‘ہے۔ یہ لاطینی زبان کا لفظ ہے۔ ’’ Saint‘‘ کا ترجمہ ’’بزرگ‘‘ ہے، جو پادریوں کیلئے بولا جاتا ہے۔

عیسائیوں کے کیتھولک فرقے کے لوگوں کا یہ عقیدہ ہے کہ ہر سال 14، فروری کو ’’Valentine‘‘ نامی پادریوں کی روحیں دنیا میں آتی ہیں، اس لئے وہ اس دن کے تمام معمولات‘ بشمول عبادات و نذر و نیاز انہی کے نام سے سرانجام دیتے ہیں۔ اس عقیدے کی ابتداء رومیوں سے ہوئی۔
پھریہ دن فرانس اور انگلینڈ میں بھی بطورِ خاص منایا جانے لگا اور اس دن فرانس، انگلینڈ اور دیگر مغربی ممالک میں تعطیل ہوتی ہے اور وہ اس دن اپنی عبادت گاہوں میں خاص قسم کی عبادات سرانجام دیتے ہیں۔ اس رسم کے غیر معقول ہونے اور دنیائے عیسائیت کے معتبر پادریوں کی مخالفت کی وجہ سے یہ دن بالکل معدوم ہوچکا تھا، چودھویں صدی عیسویں کے ایک متعصب عیسائی اسکالر ’’Henry Ansgar Kelly‘‘نے اپنی ایک کتاب (انٹرنیٹ پر دستیاب ہے)

’’Chaucer and the Cult of Saint Valentine‘‘

کے نام سے خاص اسی موضوع پر لکھی اور عشق و محبت کی خود ساختہ کہانیوں کے ذریعے اسے محبت کے دن کے نام سے دوبارہ دنیا میں روشناس کروایا۔

اٹھارھویں صدی میں اسے فرانس اور انگلینڈ میں سرکاری سرپرستی حاصل ہوئی اور پھر رفتہ رفتہ عشق و محبت کا یہ خود ساختہ دن دنیا بھر میں ہر سال مزید جدت اور جوش و خروش کے ساتھ منایا جانے لگا ۔

(مزید تفصیل کیلئے دیکھئے:

Saint Valentine – Wikipedia, the free encyclopedia وغیرہ)

*پس پردہ حقائق*

اس دن کی تاریخی حیثیت اور اسے منانے کا موجودہ طریقہ ہمیں اس کے جن مضمرات اور پس پردہ حقائق کو سمجھنے میں مدد فراہم کرتا ہے‘ وہ یہ ہیں:

یہ دن عیسائیوں کی ایجاد ہے چ یہ ان کی مشرکانہ عبادت کا دن ہے ژ خود عیسائی پادری بھی اسکے مخالف ہیں ڈاس کے معدوم ہونے کے بعد ایک متعصب عیسائی اسکالر نے اسے دوبارہ زندہ کیا، اسے عیسائی ممالک میں سرکاری سرپرستی میں منایا جاتا ہے۔ ‘اس دن کی اہمیت میں بیان کی جانے والی عشق و محبت کی تمام داستانیں جھوٹی ہیں۔

موجودہ دور میں اس کو منانے والا عموماً ہم جنس پرست، زانی ، فحاشی پسند اور مغرب نواز طبقہ ہی ہے اور ایسے ہی لوگوںمیں اس دن کو بطورِ خاص اہمیت حاصل ہے، یعنی یہ ناپاک لوگوں کا تہوار ہے۔

یہودی، عیسائی اور تمام کفار و مشرکین اسلام اور مسلمانوں کے ازلی و ابدی دشمن ہیں، اسلام اور مسلمانوں کو مٹانے کے معاملے پر یہ تمام قولی و عملی طور پر متفق و متحد ہیں۔

ایک طرف مسلمان ملکوں پر ناجائز قبضے اور ان پر تباہ کن بم برساکر ان کے خلاف قتل و غارت گری کا بازار گرم کیا ہوا ہے، دوسری طرف ان کی عورتیں اور بچے اغوا کر کے ان سے جبراً حرام کاری کروائی جارہی اور ُپر مشقت کام لئے جارہے ہیں اور تیسری طرف اسلام کو غیر مہذب، قدامت پسند اور بنیاد پرست مذہب قرار دیکر اپنی غلیظ اور ناپاک تہذیب کو جدید اور اعتدال پسند ظاہر کیا جارہا اور اسے مسلمانوں میں فروغ دے کر ان کی ایمانی غیرت و حمیت کو ختم کر کے نوجوان مسلمان مردوں اور عورتوں میں جنسی بے راہ روی کو عام کرنے کی بھرپور کوششیں کی جارہی ہیں۔

ان تمام باتوں کی صداقت ان کی کتابوں اور روزمرہ کے بیانات میں روزِ روشن کی طرح عیاں ہے۔

پس اے مسلمانو! کفار کی ان سازشوں کا مقابلہ اسلام سے محبت کی صورت میں کرو، تمہارا اپنے دین سے محبت، اس پر ایمان اور عمل انکی سازشوں کوانکے اپنے خلاف پھیر سکتا ہے، لہٰذا آج سے ہی ہر معاملے میں کفار سے مشابہت اور انکی رسومات میں شرکت اپنے اوپر حرام کر دو،

*ویلنٹائن ڈے کے حوالے سے کچھ آیات و احادیث قابل ذکر ہیں*

قرآن کریم میں اللہ پاک فرماتے ہیں

القرآن - سورۃ نمبر 24 النور
آیت نمبر 19
اِنَّ الَّذِيۡنَ يُحِبُّوۡنَ اَنۡ تَشِيۡعَ الۡفَاحِشَةُ فِى الَّذِيۡنَ اٰمَنُوۡا لَهُمۡ عَذَابٌ اَلِيۡمٌۙ فِى الدُّنۡيَا وَالۡاٰخِرَةِ‌ؕ وَاللّٰهُ يَعۡلَمُ وَاَنۡـتُمۡ لَا تَعۡلَمُوۡنَ ۞
بلاشبہ جولوگ پسندکرتے ہیں کہ اہلِ ایمان میں بے حیائی پھیلے بلاشبہ ان کے لیے دنیا اور آخرت میں دردناک عذاب ہے اوراﷲ تعالیٰ جانتاہے اورتم نہیں جانتے ۔،
(سورہ النور،آئیت -19)

انٹرنیٹ پر ویلنٹائن کی مبارک دینے والے، پوسٹیں شئیر کرنے والے اور جو کوئی بھی جس انداز میں بھی مسلمانوں میں بے حیائی پھیلانے کا ذریعہ بنتا ہے وہ سب اس آئیت مبارکہ میں بیان کی گئی وعید کی زد میں آتے ہیں،

عَنْ عَبْدِ اللَّهِ بْنِ يَسَارٍ مَوْلَى ابْنِ عُمَرَ، قَالَ : أَشْهَدُ لَقَدْ سَمِعْتُ سَالِمًا ، يَقُولُ : قَالَ عَبْدُ اللَّهِ : قَالَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ : " ثَلَاثٌ لَا يَدْخُلُونَ الْجَنَّةَ، وَلَا يَنْظُرُ اللَّهُ إِلَيْهِمْ يَوْمَ الْقِيَامَةِ : الْعَاقُّ بِوَالِدَيْهِ، وَالْمَرْأَةُ الْمُتَرَجِّلَةُ الْمُتَشَبِّهَةُ بِالرِّجَالِ، وَالدَّيُّوثُ،
حكم الحديث: إسناده حسن.
فرمان نبویﷺ
قیامت کے دن تین لوگ نہ تو جنت میں جائیں گے نہ اللہ پاک انکی طرف دیکھیں گے،
ایک وہ شخص جو والدین کی نافرمانی کرے،
دوسری وہ عورت جو مرد کا حلیہ بنائے،
تیسرا وہ دیوث (جو بیوی بچوں میں بے حیائی برداشت کرے)
(مسند احمد،حدیث _6180) حدیث حسن

رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا:
" لَيْسَ الْمُؤْمِنُ بِالطَّعَّانِ، وَلَا اللَّعَّانِ، وَلَا الْفَاحِشِ، وَلَا الْبَذِيءِ ".
”مومن طعنہ دینے والا، لعنت کرنے والا، بےحیاء اور بدزبان نہیں ہوتا ہے،
(سنن ترمذی،حدیث _1977) حدیث صحیح

نبی کریم صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا
لَتَتْبَعُنَّ سَنَنَ مَنْ كَانَ قَبْلَكُمْ، شِبْرًا شِبْرًا، وَذِرَاعًا بِذِرَاعٍ، حَتَّى لَوْ دَخَلُوا جُحْرَ ضَبٍّ تَبِعْتُمُوهُمْ ". قُلْنَا : يَا رَسُولَ اللَّهِ، الْيَهُودُ وَالنَّصَارَى ؟ قَالَ : " فَمَنْ "؟
”تم اپنے سے پہلی امتوں کی ایک ایک بالشت اور ایک ایک گز میں اتباع کرو گے، یہاں تک کہ اگر وہ کسی گوہ کے سوراخ میں داخل ہوئے ہوں گے تو تم اس میں بھی ان کی اتباع کرو گے۔“ ہم نے پوچھا: یا رسول اللہ! کیا یہود و نصاریٰ مراد ہیں؟
فرمایا پھر اور کون۔،
(صحیح بخاری،حدیث _7320)

رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا:
مَنْ تَشَبَّهَ بِقَوْمٍ فَهُوَ مِنْهُمْ ".
جس نے کسی قوم کی مشابہت اختیار کی تو وہ انہیں میں سے ہے،
(سنن ابو داؤد،حدیث نمبر_4031)

ان تمام احادیث اور آیات سے پتہ چلا کہ ویلنٹائن جو کہ ایک بے حیائی کا دن ہے ، اسکو منانا مسلمانوں میں بے حیائی پھیلانے اور کافروں کی مشابہت اختیار کرنے کا سبب ہے، جو کہ سرا سر گناہ ہے،

*ویلنٹائن ڈے اور اسی طرح کے دیگر ناجائز تہواروں پر ایک مسلمان کی طرف سے کسی بھی شکل میں معاونت بھی حرام ہے، چاہے کھانے پینے، خرید و فروخت، مصنوعات، تحائف، خطوط، اعلانات، وغیرہ ہی کی شکل میں کیوں نہ ہو، کیونکہ یہ سب گناہ اور زیادتی کے زمرے میں آتا ہے، اور اللہ اور اسکے رسول کی نافرمانی ہے،*

جبکہ اللہ تعالی کا فرمان ہے کہ:

(وتعاونوا على البر والتقوى ولا تعاونوا على الإثم والعدوان واتقوا الله إن الله شديد العقاب)
ترجمہ: نیکی اور تقوی کے کاموں پر ایک دوسرے کی مدد کرو، گناہ اور زیادتی کے کاموں پر ایک دوسرے کی مدد نہ کرو، اور اللہ تعالی سے ڈر جاؤ، بیشک اللہ تعالی سخت سزا دینے والا ہے”
(سورہ المائدہ،ائیت _2)

ویلنٹائن ڈے کا پس منظر حقیقت میں کیا ہے شائد ہی کوئی جانتا ہو لیکن اسکی طرف نسبت کر کے اس دن بہت زیادہ بے حیائی کی جاتی ہے جس کو ایک عام آدمی بھی جانتا ہے روزمرہ کی روٹین سے ہٹ کر پھلوں کے ریٹس زیادہ ہوجاتے ہیں رخساروں پر جو پردے سے ڈھکے ہونا چاہیں پر دل اور نہ جانے کیسے کیسے نشانات بنا کر گناہ کی دعوت دی جاتی ہے اور سلیبرئیشن کی جاتی ہے بنا یہ سوچے کہ ہم مسلمان ہیں ۔۔!
اسلام ہمیں کس چیز کا درس دیتاہے۔۔۔!

بعض کم عقل لوگ کہتے ہیں۔۔جی،!
اسلام محبت سے منع تو نہیں کرتا۔۔۔!
ان کے جواب میں گزارش یہ ہے کہ اسلام محبت سے منع نہیں کرتا بلکہ بے حیائی سے منع کرتا ہے اسلام عزتوں کی حفاظت کرتا ہے ان کو سرعام سڑکوں پر اور کلبوں میں ننگا نہیں کرتااور اسی کی بات کی مذمت کرتا ہے۔۔۔
جولوگ یہ دن مناتے ہیں ان سے اگر یہ پوچھا جائے کہ کیا وہ پسند کرتے ہیں کہ ان کی بہن،بیوی،بیٹی،کو کوئی کھلے روڑ پر پھول پیش کرےاور گناہ کی دعوت دے۔۔۔؟
تو یقینآجواب جو آئے گا وہ آپ بھی سمجھ ہی گئے ہوں گے لیکن یہ کیسا ماجرہ ہے کہ کوئی کرے تو مارنے پر اتر آئیں اورخود کریں تو محبت۔۔۔!
واہ رے انسان تیری خود پسندی۔

کوئی یہ نہیں جانتا کہ یہ ویلنٹائن جیسے پیار کا ڈرامہ ٪99.99 ایک ہی رات میں ختم ہو جاتا ہے تو یہ کیسا پیار  ہے بھائی۔۔۔۔؟

کوئی منانے والا بتا دے۔

دنیا کا کوئی مذہب، کوئی تہذیب، کوئی ثقافت ایسی بے حیائی کی اجازت نہیں دے سکتی لیکن اعتراض کرنے والے اسلام کو ہی پوائنٹ آوٹ کرتے ہیں۔

دکھ کی بات تو یہ ہے کہ پرائے تو پرائے اپنے بھی اس کام میں آگے آگے ہیں۔ جب کہ اسلام جتنا صاف، پاکیزہ، ماڈرن، آئیڈیل اور محبت کرنے والا مذہب اور کوئی نہیں اس سے بڑھ کر محبت کی اور مثال کیا ہوسکتی ہے کہ اسلام ایک بے زبان جانور کا بھی خیال رکھا گیا ہے کہ اس کے حقوق مرجوح نہ ہوں اس چیز کا درس دیا گیا ہے۔

مسلمان یہ سمجھ نے سے قاصر ہی ہو گیا ہے کہ یہ مغربی گندگی تہذیب ہے یہ تہوار ان کا بھی کوئی اسلامی تہوار نہیں ہے وہ اپنا یہ کیچڑ آلود کلچر ہم میں چھوڑ رہے ہیں کہ ہم اس دین سے نکل جائیں جس کو لے کر ایک آدمی اٹھا اور پوری دنیا پر چھا گیا جس کے ایک میل کی مسافت پر کفر ڈر سے کانپ جاتا تھا۔ مگر اس نوجوان نسل کو کون جگائے.

،،کیا خوب کہا شاعر نے

“نئی تہذیب کے انڈے ہیں گندے”

ان کو تو بس انجوائے منٹ سے غرض ہے وہ اسلامی ہو یا غیر اسلامی اس سے فرق نہیں بڑتا بعض لوگ یہ کہتےہیں کہ لازمی نہیں آپ کسی لڑکی،لڑکے کو ہی اس دن کی مبارک باد دیں۔آپ اپنی زوجہ کو بھی کہ سکتے ہیں ماں،کو بھی کہ سکتے ہیں تو ان عقل کے دشمنوں سے سوال یہ ہے کہ کیا بس ایک ہی دن ہے محبت کے لئے؟

اور کون اس دن کو منانے والا آدمی ہے جو ماں یا بہن کو کہتا ہے ؟؟ جبکہ یہ سب کچھ بازاروں، کالجز، یونیورسٹیز، اور دیگر جگہوں پر صرف عیاشی کے لئے منایا جاتاہے،،

اللہ ہم سب کو معاف کریں اور اس کی سمجھ دیں کہ یہ صرف ایک بے حیائی اور فحاشی ہے،

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*جائز اور ناجائز محبت میں فرق*

دین اسلام وہ عظیم دین ہے جس میں رشتہ ناطہ ، محبت ، دوستی اور باہمی تعلّقات کی بنیاد انتہائی پاکیزگی اور شفّافیت پر قائم ہے ، یہی وجہ ہے کہ اس دین نے اپنے ماننے والوں کو سب سے بڑھ کر اُن رشتوں سے محبت کرنے اُن کا احترام و خیال رکھنے کا حکم دیا ہے جن سے مل کر ایک بہترین گھر خاندان اور معاشرہ قائم ہوتا ہے ، اس دین میں مرد و عورت کے باہمی تعلّق ، محبت ، دوستی اور الفت کی بنیاد بھی انتہائی پاکیزگی پر قائم ہے ، جیسے شوہر اور بیوی کا رشتہ ، ماں اور بیٹے کا رشتہ ، باپ اور بیٹی کا رشتہ ، بہن اور بھائی کا رشتہ ، دادا اور پوتی کا رشتہ ، نانا اور نواسی کا رشتہ ، چچا اور بھتیجی کا رشتہ ، ماموں اور بھانجی کا رشتہ یہ وہ عظیم رشتے ہیں جنہیں اسلام میں مرد و عورت کے مَحرَم رشتوں سے تعبیر کیا جاتا ہے جن کی بنیاد جائز اور شفاف پاکیزہ محبت پر قائم ہے۔

جبکہ دوسری طرف اگر مرد و عورت کے مابین مذکورہ کوئی بھی رشتہ نہ ہو تو ایسے مرد و عورت کو ہمارا دین ایک دوسرے کے لیے نا مَحرَم یا غیر مَحرَم قرار دیتا ہے اور چند باتوں میں اُن پر کچھ پابندیاں عائد کرتا ہے جیسے عورت پر یہ پابندی ہے کہ وہ اپنے جسم کی زینت و خوبصورتی کو غیر مَحرَم مردوں کے سامنے ظاہر نا کرے اور اُن کا سامنے ہونے پر اُن سے پردہ کرے، اسی طرح غیر مَحرَم مرد و عورت ایک دوسرے کے ساتھ اکیلا پن (علیحدگی) اختیار نہیں کرسکتے ، ایک دوسرے کو چھو نہیں سکتے چہ جائیکہ ایک دوسرے کے ساتھ میل ملاپ رکھیں ، ایک ساتھ رہیں ، بوس و کنار کریں اور جسمانی تعلقات قائم کریں ۔۔۔۔۔۔۔۔

اور یہ سب پابندیاں دینِ اسلام نازل کرنے والے اللہ تعالیٰ کی جانب سے لگائی گئیں ہیں جو عورت و مرد کا خالق و مالک ہے ، چونکہ وہ خالق ہے لہٰذا وہی سب سے بڑھ کر جانتا ہے کہ اس کی تخلیق کردہ مخلوق کے لیے کیا صحیح ہے اور کیا غلط ؟ سو یہ پابندیاں اُس اللہ کی جانب سے ان دونوں کی عزت و عصمت کی حفاظت کے لیے لگائی گئیں ہیں کیونکہ اللہ نے جہاں ایک طرف اُن دونوں کی تخلیق اس انداز سے کی ہے کہ دونوں کے لیے ایک دوسرے میں جاذبیت رکھی ہے تو دوسری طرف دونوں میں ایک نفسِ امارۃ بھی رکھا ہے یعنی ہر نفس کے اندر ایک ایسا حصہ موجود ہے جو نفس کو برائی اور جرم پر آمادہ کرتا ہے جس کی بنا پر برائی جنم لیتی ہے ، اسی نفسِ امّارہ کی وجہ سے دنیا میں ہر برائی اور جرم کا وجود ہے اور یہ بات عین انسانی عقل کے مطابق ہے کہ برائی اور جرم کو اسوقت تک مکمل انداز سے نہیں روکا جاسکتا جب تک کہ اُس کی وجہ کو نہیں روکا جاتا ، اسی لیے ہمارے دین نے برائی اور جرم سے نہیں بلکہ اُن کے اسباب و وجوہات اختیار کرنے سے منع فرمایا اور مرد وعورت کے مابین جو برائی جنم لیتی ہے اُس کی سب سے بڑی اور بنیادی وجہ عورت کا غیر مَحرَم مرد کے سامنے اپنی زینت و خوبصورتی کو ظاہر کرنا ، پے پردگی اختیار کرنا ، غیر مَحرَم کے ساتھ علیحدگی اختیار کرنا اور دونوں کا ایک دوسرے کو خود کی طرف مائل کرنے لیے مختلف اسباب اختیار کرنا وغیرہ وغیرہ۔

لہٰذا جس معاشرے میں چور ، لٹیرے ، ڈاکو موجود ہوں یا اس میں کسی بھی چیز کے چوری ہونے ، چھن جانے وغیرہ کا خدشہ ہو تو اس معاشرے میں ہر قیمتی چیز کو ناصرف حفاظت میں رکھا جاتا ہے بلکہ اسے چوری و ڈاکے سے بچانے کے لیے چھپا کر بھی رکھا جاتا ہے اوراس کے علاوہ بھی کئیں مختلف اقدامات کیے جاتے اور پابندیاں لگائی جاتی ہیں اور اس سارے پراسس کو دنیا کا کوئی شخص بھی نا چیلنج کرسکتا ہے اور نا غلط کہ سکتا ہے بالکل اسی طرح دینِ اسلام کی نظر میں عورت اور مرد دونوں اس دنیا میں نہایت قیمتی ترین ہیں اور مرد کی نسبت عورت اپنی تخلیق ، ساخت ، وضع قطع کے لحاظ سے زیادہ خوبصورت اور نازک بنائی گئی ہے اور اس کے ساتھ ساتھ وہ مرد کی نسبت طاقت میں بھی کمزور ہے کہ موقع پر اپنی حفاظت کرسکے لہٰذا شریعتِ اسلامیہ میں عورت پر پردہ و حجاب جیسی زیادہ پابندیاں لگائی ہیں جس کا مقصد محض یہ ہے کہ اس کی خوبصورتی ، عزت اور جان کو ہر انسان میں موجود برائی و جرم پر ابھارنے والے نفسِ امّارہ کی چوری و ڈاکے سے بچایا جاسکے جس کا خدشہ ہر معاشرے اور ہر دور میں موجود رہتا ہے۔

اور ان سب پابندیوں کا ہرگز یہ مطلب نہیں کہ غیر مَحرَم مرد و عورت بوجہ ضرورت آپس میں ایک دوسرے کے سامنے نہیں آسکتے یا بات چیت نہیں کرسکتے یا دیگر جو ضروری معاملات ہیں انہیں نہیں نبھا سکتے بلکہ بوجہ ضرورت و مجبوری غیر مَحرَم مرد و خواتین شریعت کی مقررہ کردہ حدود و ضوابط کی پابندی کرتے ہوئے ایک دوسرے سے ہم کلام بھی ہوسکتے ہیں تعلیم و تعلّم کا سلسلہ بھی قائم کرسکتے ہیں (بشرطیکہ مخلوط اور بے پردہ نہ ہو) اسی طرح خیر کے امور میں ایک دوسرے کے ساتھ تعاون بھی کرسکتے ہیں۔ یہی ہمارے دین کی میانہ روی ہے کہ اس میں نا تو مکمل بلا حدود و قیود کے آزادی ہے اور نا ہی بے وجہ و سبب کے پابندی ، لہٰذا گھر ، معاشرے ، ملک و قوم کی فلاح و کامیابی دین الٰہی کے سامنے سر تسلیمِ خم کرنے اور اس کے احکامات کو بجالانے میں ہی ہے۔

اسی طرح یہاں یہ بات بھی ملحوظِ خاطر رہے کہ جہاں شریعتِ اسلامیہ غیر مَحرَم مرد و زن کے باہمی میل ملاپ و تعلقات کے حوالہ سے چند معقول پابندیاں عائد کرتی ہے وہاں اُنہیں ایک معقول و مہذب طریقہ کار کے مطابق (جسے ہمارے دین میں نکاح و شادی سے تعبیر کیا جاتا ہے) ایک دوسرے کے ساتھ میل ملاپ ، ساتھ رہنے اور ہر قسم کے تعلقات قائم کرنے کی اجازت بھی دیتی ہے ، لہٰذا جب کوئی لڑکا کسی لڑکی بارے میں یا کوئی لڑکی کسی لڑکے بارے میں سنجیدہ ہو تو شادی کا رشتہ قائم کرنے سے پہلے بھی انہیں شرعی حدود میں رہتے ہوئے ایک دوسرے کو دیکھنے، بات چیت کرنے ، مزاج سمجھنے کی عارضی اجازت بھی ہے لیکن اگر وہ بغیر حجاب و پردہ کے ایک دوسرے کے ساتھ رہنا چاہیں، زندگی ساتھ بسر کرنا چاہیں تو اپنی اس سنجیدگی کو نکاح کے ذریعہ عملی جامہ پہنائیں اور پھر ساتھ رہیں اور اس طرح پھر اللہ الٰہ العالمین کی مدد بھی اُن کے شاملِ حال ہوگی ، یہ رشتہ بھی پاکیزہ اور شفّاف ہوگا اور معاشرہ بھی اُسے قدر و قبولیت کی نگاہ سے دیکھے گا۔

اسلام میں غیر مَحرَم مردوں اور عورتوں کا باہم مروّجہ محبتیں کرنا یا دوستیاں لگانا ایک بے ہودہ عمل ہے۔

یہی وجہ ہے کہ اللہ رب العالمین نے اپنے کلامِ مجید میں ایسے لوگوں کی حیثیت بیان فرمائی ہے ملاحظہ فرمائیں۔

اللہ رب العالمین کا فرمان ہے:

فَانْكِحُوْھُنَّ بِـاِذْنِ اَھْلِہِنَّ وَاٰتُوْھُنَّ اُجُوْرَھُنَّ بِالْمَعْرُوْفِ مُحْصَنٰتٍ غَيْرَ مُسٰفِحٰتٍ وَّلَا مُتَّخِذٰتِ اَخْدَانٍ۝۰ۚ

’’پس تم ان (لونڈیوں) کے مالکوں کی اجازت سے ان سے نکاح کرلو اور انہیں دستور کے مطابق ان کے مہر دو، جبکہ وہ نکاح میں لائی گئی ہوں، بدکاری کرنے والی نہ ہوں اور نہ چوری چھپے آشنا بنانے والی ہوں۔ ‘‘ (النساء: 25)

اسی طرح اللہ تعالیٰ نے مسلمان مردوں کے لیے اہل کتاب کی عورتوں سے نکاح کا جواز بیان کرتے ہوئے ارشاد فرمایا:

وَالْمُحْصَنٰتُ مِنَ الْمُؤْمِنٰتِ وَالْمُحْصَنٰتُ مِنَ الَّذِيْنَ اُوْتُوا الْكِتٰبَ مِنْ قَبْلِكُمْ اِذَآ اٰتَيْتُمُوْہُنَّ اُجُوْرَہُنَّ مُحْصِنِيْنَ غَيْرَ مُسٰفِحِيْنَ وَلَا مُتَّخِذِيْٓ اَخْدَانٍ۝۰ۭ

’’اور تمہارے لئے پاک دامن مسلمان عورتیں اور ان لوگوں کی پاک دامن عورتیں حلال ہیں جنہیں تم سے پہلے کتاب دی گئی ، جبکہ تم انہیں ان کے مہر دے دو، نیز انہیں نکاح کی قید میں لانے والے بنو نہ کہ بدکاری کرنے والے اور نہ چھپی آشنائی رکھنے والے۔ ‘‘ (المائدہ :5)

مذکورہ دونوں آیاتِ مبارکہ میں اس کائنات اور اس میں موجود ہر مخلوق کے خالق و مالک اللہ أحکم الحاکمین نے غیر محرم لڑکا و لڑکی کی باہمی غیر شرعی طور پر بغیر نکاح کے کی جانے والی دوستیوں کو پاکدامنی کے منافی قرار دیا ہے۔ان آیات پر غور کرنے سے ایک بہت ہی باریک نکتہ سمجھ میں آرہا ہے۔

اور وہ یہ کہ پہلی آیت میں شرعی طریقہ کے خلاف چوری چھپے دوستی کو لونڈیوں کی طرف منسوب کیا گیا ہے اور دوسری آیت میں مسلمان مردوں کی طرف سے اہل کتاب کی عورتوں کی طرف۔

حالآنکہ دونوں آیاتِ مبارکہ میں مومنہ عورتوں کا بھی ذکر موجود ہے، مگر ان کے ساتھ اللہ تعالیٰ نے لفظ ِ ’’پاک دامنی‘‘ کا وصف خاص طور پر ذکر فرمایا ہے۔ اس سے یہ بات بالکل صاف اور واضح ہے کہ مومنہ اور مسلمہ عورت سے کسی بھی ایسی بے ہودہ اور بے حیاء حرکت کا سرزد ہونا سراسر خلافِ واقعہ ہے۔ اور کم از کم مسلمان لڑکیاں ایسا نہیں کرتیں۔جب کوئی مسلمان عورت اپنے کردار میں مضبوط دیوار کی طرح ٹھوس ہوگی تو کوئی بیمار دل شخص کسی بھی طرح اسے اپنے دامِ تزویر میں پھنسا نہیں سکے گا۔ پھر ایسے مرد یا تو جگہ جگہ بکنے والی لونڈیوں کے قابل رہ جاتے ہیں یا پھر اہل کتاب (یہود و نصاریٰ) کی بے حیاء عورتوں کے جال میں پھنس جاتے ہیں۔ اور ایسی عورتیں جو محض چند ٹکوں کے بیلنس، شاپنگ اور محبت کے جھوٹے دعوؤں کے عوض غیر محرم کے ساتھ ناجائز تعلق قائم کرتی ہیں حتی کہ کچھ اپنی عصمت تک کا سودا کرلیتی ہیں، وہ بکاؤ لونڈیوں کی طرح ہوجاتی ہیں یا پھر اہل کتاب (یہود و نصاری) کی عورتوں کی طرح بے وقعت۔اسلام غیرت اور حیاء کا دین ہے:

کائنات میں سب سے بڑھ کر اللہ کی غیرت ہے اور اس کے بعد اس کے پیارے پیغمبر محمد صلی اللہ علیہ وسلم کی غیرت اور پھر تمام انبیاء اور اہل ایمان کی۔ ہر وہ شخص جس کے دل میں ذرہ برابر بھی ایمان ہے، وہ لازمی غیرت مند ہوگا۔ اور اسلامی غیرت اس بات کی متقاضی ہے کہ کوئی بھی غیرتِ اسلامی سے سرشار آدمی اپنی کسی بھی محرم خاتون کے بارے میں یہ سننا بھی گوارہ نہ کرے کہ اس کا کسی غیر مرد کے ساتھ کوئی ناجائز چکر چل رہا ہے یا وہ کسی انجانے آدمی کے دامِ تزویر میں گرفتار ہے۔ جو شخص اس بات کو سننا بھی پسند نہیں کرتا کیا وہ اپنی آنکھوں سے ایسے مناظر دیکھنے کی تاب لا سکتا ہے؟

یا اپنی بیٹی، بیوی، بہن یا ماں کے کسی ایسے ناجائز رشتے کا تصور کر سکتا ہے؟؟؟

اس رشتے کی بابت کھلے دل سے سننے اور اس منظر کو کھلی آنکھوں سے دیکھنے کی تاب لانے کے لئے آدمی کو اَتاہ درجے تک بے غیرت ہونا پڑتا ہے۔ اور ایسے ہی ہوتے ہیں وہ بے غیرت باپ، بھائی اور بیٹے جن کی آنکھوں کے سامنے اپنی ماؤں، بہنوں اور بیٹیوں کو ویلنٹائین کارڈز آرہے ہوتے ہیں اور وہ بے شرمی کی مسکان کو اپنے لبوں پر سجائے دینے والے کا صد شکر ادا کررہے ہوتے ہیں۔

البتہ کچھ لوگ ایسے بھی ہیں جو اندر سے تو ’’غیرت مند‘‘ ہیں، لیکن اعلانیہ بے غیرت ہیں، یعنی اگر کوئی ان کی ماں، بہن ، بیٹی اور بہو کو محبت سے لبریز کارڈ دے تو ان کی غیرت کو ’’دھچکا‘‘ لگتا ہے، لیکن یہی لوگ دوسروں کی بہن بیٹیوں کے بارے میں اس طرح کےبے غیرتانہ جذبات رکھنے میں بڑے ہی کشادہ دل واقع ہوئے ہیں۔

*اسلام کی غیرت و حیاء اور ہر ایک کے لئے یکساں جذبات رکھنے کا درس کس قدر عمدہ ہے، کاش شرمگاہ کے پجاری اس کے اندر چھپے احساس کو سمجھ سکیں۔*

حدیث ملاحظہ فرمائیں!

حَدَّثَنَا يَزِيدُ بْنُ هَارُونَ ، حَدَّثَنَا حَرِيزٌ ، حَدَّثَنَا سُلَيْمُ بْنُ عَامِرٍ ، عَنْ أَبِي أُمَامَةَ ، قَالَ : إِنَّ فَتًى شَابًّا أَتَى النَّبِيَّ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ، فَقَالَ : يَا رَسُولَ اللَّهِ، ائْذَنْ لِي بِالزِّنَى. فَأَقْبَلَ الْقَوْمُ عَلَيْهِ فَزَجَرُوهُ، وَقَالُوا : مَهْ مَهْ. فَقَالَ : " ادْنُهْ ". فَدَنَا مِنْهُ قَرِيبًا، قَالَ : فَجَلَسَ، قَالَ : " أَتُحِبُّهُ لِأُمِّكَ ؟ ". قَالَ : لَا وَاللَّهِ، جَعَلَنِي اللَّهُ فِدَاءَكَ. قَالَ : " وَلَا النَّاسُ يُحِبُّونَهُ لِأُمَّهَاتِهِمْ ". قَالَ : " أَفَتُحِبُّهُ لِابْنَتِكَ ؟ ". قَالَ : لَا وَاللَّهِ يَا رَسُولَ اللَّهِ، جَعَلَنِي اللَّهُ فِدَاءَكَ. قَالَ : " وَلَا النَّاسُ يُحِبُّونَهُ لِبَنَاتِهِمْ ". قَالَ : " أَفَتُحِبُّهُ لِأُخْتِكَ ؟ ". قَالَ : لَا وَاللَّهِ، جَعَلَنِي اللَّهُ فِدَاءَكَ. قَالَ : " وَلَا النَّاسُ يُحِبُّونَهُ لِأَخَوَاتِهِمْ ". قَالَ : " أَفَتُحِبُّهُ لِعَمَّتِكَ ؟ ". قَالَ : لَا وَاللَّهِ، جَعَلَنِي اللَّهُ فِدَاءَكَ. قَالَ : " وَلَا النَّاسُ يُحِبُّونَهُ لِعَمَّاتِهِمْ ". قَالَ : " أَفَتُحِبُّهُ لِخَالَتِكَ ؟ ". قَالَ : لَا وَاللَّهِ، جَعَلَنِي اللَّهُ فِدَاءَكَ. قَالَ : " وَلَا النَّاسُ يُحِبُّونَهُ لِخَالَاتِهِمْ ". قَالَ : فَوَضَعَ يَدَهُ عَلَيْهِ وَقَالَ : " اللَّهُمَّ اغْفِرْ ذَنْبَهُ، وَطَهِّرْ قَلْبَهُ، وَحَصِّنْ فَرْجَهُ ". قَالَ : فَلَمْ يَكُنْ بَعْدَ ذَلِكَ الْفَتَى يَلْتَفِتُ إِلَى شَيْءٍ

ترجمہ:
’’ ایک نوجوان نبی کریم صلی اللہ علیہ وسلم کی خدمت ِ اقدس میں حاضر ہوا اور کہنے لگا :
اے اللہ کے رسول صلی اللہ علیہ وسلم ! مجھے زنا کرنے کی اجازت دیجئے۔ لوگ اس کی طرف متوجہ ہو کر اسے دانٹنے لگے اور اسے پیچھے ہٹانے لگے،
لیکن نبی صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: میرے قریب آجاؤ۔ وہ نبی اقدس صلی اللہ علیہ وسلم کے قریب جاکر بیٹھ گیا۔
نبی صلی اللہ علیہ وسلم نے اس سے پوچھا : کیا تم اپنی والدہ کے حق میں بدکاری کو پسند کروگے؟ اس نے کہا: اللہ کی قسم کبھی نہیں، میں آپ پر قربان جاؤں۔ نبی صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: لوگ بھی اسے اپنی ماں کے لئے پسند نہیں کرتے۔
پھر پوچھا: کیا تم اپنی بیٹی کے حق میں بدکاری پسند کرو گے؟ اس نے کہا اللہ کی قسم کبھی نہیں۔ نبی صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: لوگ بھی اسے اپنی بیٹی کے لئے پسند نہیں کرتے۔

پھر پوچھا: کیا تم اپنی بہن کے حق میں بدکاری کو پسند کروگے؟ اس نے کہا: اللہ کی قسم کبھی نہیں۔ نبی صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: لوگ بھی اسے اپنی بہن کے لئے پسند نہیں کرتے۔

پھر پوچھا : کیا تم اپنی پھوپھی کے حق میں پسند کروگے؟ اس نے کہا اللہ کی قسم کبھی نہیں۔ نبی صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا:ـ لوگ بھی اسے اپنی پھوپھی کے لئے پسند نہیں کرتے۔

پھر پوچھا: کیا تم اپنی خالہ کے حق میں بدکاری کو پسند کروگے؟ اس نے کہا: اللہ کی قسم کبھی نہیں۔ نبی صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: لوگ بھی اسے اپنی خالہ کے لئے پسند نہیں کرتے۔

پھر نبی صلی اللہ علیہ وسلم نے اپنا دست ِمبارک اس پر رکھا اور دعا کی کہ :
( اَللّٰهُمَّ اغْفِرْ ذَنْبَهُ وَ طَهِّرْ قَلْبَهُ، وَ حَصِّنْ فَرْجَهٗ )
’’اے اللہ اس کے گناہ معاف فرما، اس کے دل کو پاک فرما اور اس کی شرمگاہ کی حفاظت فرما۔ ‘‘

راوی کہتے ہیں کہ اس کے بعد اس نوجوان نے کبھی کسی کی طرف آنکھ اٹھا کر نہیں دیکھا۔

(مسند ِ احمد: تتمۃ مسند الانصار، حديث ابي امامۃ الباھلی، حدیث :22211)
حكم الحديث: إسناده صحيح، رجاله ثقات، رجال الصحيح.

یہ ہے اسلام کا ایسا درس جو رہتی کائنات تک کے تمام لوگوں کو یہ احساس دلا رہا ہے کہ جو جذبات اپنے محرم رشتوں کے حوالے سے دل میں ہیں وہی جذبات دوسروں کے محرم رشتوں کے حوالے سے بھی اسی طرح دل میں ہونا چاہئیں۔ کیا کوئی اپنی ماں، بہن ، بیٹی یا بہو کو اظہارِ محبت کی اس رذیل رسم کے مطابق ’’وِش‘‘ کرنا یا گلے لگانا پسند کرے گا؟؟

*اللہ ہم سب کی عزتوں کی حفاظت کریں اور اس دن کو روکنے اور اس سے دور رہنے کی توفیق دیں،(آمین)*

(ماخوذ از:
(مضامین ڈاٹ کام از شعیب اقبال خان)
(محدث فورم از حافظ محمد سفیان )

((( واللہ تعالیٰ اعلم باالصواب )))

______&_____

(کیا اسلام پسند کی شادی سے منع کرتا ہے،؟
(تفصیل کیلیے دیکھیں سلسلہ نمبر-54)

سوال: اجنبی (غیر محرم) مردوں عورتوں کا ایک دوسرے کو سلام کہنے کے بارے شریعت میں کیا حکم ہے؟ کیا شریعت میں عورت کی آواز کا بھی پردہ ہے؟
(جواب کیلئے دیکھیں سلسلہ نمبر-285)

سوال_کیا عورت کے لیے چہرے کا پردہ لازمی ہے؟ کچھ لوگ کہتے ہیں عورت چہرے کا پردہ نہیں کرے گی؟ قرآن و سنت سے رہنمائی فرمائیں..!!
(جواب کیلئے دیکھیں سلسلہ نمبر-180)

سوال_کیا شادی سے قبل منگیتر یا غیر محرم لڑکا لڑکی فون اور سوشل میڈیا جیسے واٹس ایپ وغیرہ پر بات چیت کر سکتے ہیں؟
(جواب کیلئے دیکھیں سلسلہ نمبر- 97)

_____&_____

اپنے موبائل پر خالص قرآن و حدیث کی روشنی میں مسائل حاصل کرنے کے لیے “ADD” لکھ کر نیچے دیئے گئے پر سینڈ کر دیں،
آپ اپنے سوالات نیچے دیئے گئے پر واٹس ایپ کر سکتے ہیں جنکا جواب آپ کو صرف قرآن و حدیث کی روشنی میں دیا جائیگا,
ان شاءاللہ۔۔!
سلسلہ کے باقی سوال جواب پڑھنے
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