find all Islamic posts in English Roman urdu and Hindi related to Quran,Namz,Hadith,Ramadan,Haz,Zakat,Tauhid,Iman,Shirk,daily hadith,Islamic fatwa on various topics,Ramzan ke masail,namaz ka sahi tareeqa

Taliban ne bataya ke Usne kyu Ladkiyo ke College band kiye hai aur kab kholega?

Taliban ne Ladkiyo ke School aur College kyu band kiye, Ladkiyo ki Universities kab khulegi?

तेरी तहज़ीब ने उतारा है तेरे सर से हिजाब
मेरे तहजीब ने मेरी आँखो को झुका रखा है।

पर्दा कैद लगता है मुस्लिम बहनो को जबकि कैद तो मॉडर्न फैशन है, कैद तो यह चुस्त लिबास है। पर्दा औरत की हीफाजत करता है। फैशन मे सिर्फ बेहयाई है। मॉडर्न लड़कियो को पर्दा कैद लगता है। हया वालियो के लिए फैशन सिर्फ इतना है के आपने कैद को आज़ादी का नाम दे दिया है और पर्दे को कैद का नाम दे दिया है। पर्दा ही इस दौर मे इस्लामी खवातीन का मुहफ़िज है।

इस दुनिया मे हर शख्स उतना ही परेशान है,
जितना उसकी नजर मे दुनिया की अहमियत।

मगरिब् को असल खतरा यह है के कहीँ लोग इस्लाम की तरफ न देखने लगे वह इसलिए के हर रोज यूरोप मे आलिम, मुफक्कीर्, फलसाफि, मुवास्सिर् कुरान व् हदीस पढ़ कर इस्लाम कुबूल कर रहा है....  लेकिन मुस्लिम घरानो मे बे हया, बेशर्म और बे गैरत बनने को ही असल तरक्की समझा जा रहा है। अगर हम अंग्रेजी कल्चर (मागरिबि ) के पीछे पीछे चलते रहे तो तबाही व् बर्बादी हमारे घरों का रूख जरूर करेगी। अगर कौम के लोग कुर्सी, पैसे और इक्तदार  के लिए दिन और तहजीब का मज़ाक बनाने और मुस्लिम खवातीन अंग्रेजी भेड़ियों के बहकावे मे गुमराह होती रही तो आने वाली नस्ल भेड़िया से ज्यादा डरपोक और खिंजीर से भी ज्यादा बे हया बन जायेगी।

शिक्षा (तालीम) के नाम पर मुसलमान लड़कियो को बे पर्दा करने का रिवाज बढ़ता जा रहा है।*

वह दिन जिसके बाद #मुसलमानो की हालत बिल्कुल #लौंडियो के जैसी हो गयी।

आज मुसलमान औरतो के सर से दुपट्टा किसने हटाया?

तालिबान के सुलूक से मुताशीर् होकर ब्रिटिश महिला ने अपनाया इस्लाम।

जब मिस्र की शहज़ादी यूरोप से पढ़कर आई तो उसने बुर्के को आग मे जला डाला।

इंग्लैंड की महारानी का ताज जो मुसलमानो से लूटा गया।
उमर मुख्तार: रोम के दांत खट्टे करने वाले।

फ्रांस मे मुस्लिम औरतो की आज़ादी की बात क्यों नही हो रही है

मुस्लिम मुमालिक मे यूरोप का बनाया हुआ सरकार।

शिकारी और मुसलमान: कैसे कुफ्फार् हमारा शिकार करने को तैयार है?

इस्लाम से पहले मक्का मे किस धर्म के मानने वाले लोग थे?
पाकिस्तान मे अमेरिका द्वारा चुनी गयी सरकार और यूरोप का कल्चर वार.......

ओ जाहिल औरत.. तुम लोगो की वज़ह से ही हमलोगो को बराबरी का मौका नही मिलता है?


चौदह महीने लगातार लड़कियो की यूनिवर्सिटीज मुकम्मल तौर पर खुली रखी गई, पूरी कोशिश की गयी के वह नर्मी से, हिकमत से शरई हिजाब और अहकाम ए इलाही की पाबंदी करे।
लेकिन कोई इस पर अमल करने को तैयार नही था इसलिए हमने अपनी दिनी ज़िम्मेदारी के पेश ए नज़र हुक्म ए शानी (अगले आदेश) तक पाबंदी लगाई।

यह कहना है तालिबान सरकार के उच्च शिक्षा मंत्री शेख निदा मोहम्मद नदीम का।

आजकल मीडिया और सोशल मिडिया पर एक खबर खूब धूम मचाया हुआ है वह यह के तालिबान ने लड़कियो की पढाई के लिए यूनिवर्सिटी के दरवाजे बंद किये, एक बार फिर तालिबान ने अपनी दकियानुसी और रूढ़ीवादी सोच दुनिया को दिखाया है। वगैरह वगैरह जैसे सुर्खिया पढ़ने को मिल रहे है।

सारी दुनिया चाहे अफ्रीका हो या इंडिया हर जगह वहाँ की हुकूमत यानी सरकार अपने हिसाब से कानून बनाती है और लागू करती है कोई किसी से नही पूछने जाता, अगर कोई बोलता है तो उसे अपना आंतरिक मामला कहकर बच निकलता है, मगर अफगानिस्तान के मामले मे ऐसा नही।
वहाँ हर कोई अपने अपने हिसाब से कानून बनवाना चाहता है, ऐसा लग रहा है जैसे अफगानिस्तान सारी दुनिया का कर्ज़दार है।

तालिबान पिछले दिनों  लड़कियो के कॉलेज जाने पर रोक लगा दिया है जब तक शरई माहौल न त्तैयार हो जाए।

इस बीच दुनिया भर का और हिंदुस्तानी मीडिया मदारी का नाच दिखाने मे कोई कसर नही छोड़ा, जबकि खुद यहाँ मुस्लिम लड़कियो को हिजाब पहनने से मना किये गया और यह पाबंदी अभी भी कायम है, ये सब यूरोप के नकश् ए कदम पर किया जा रहा है, फ्रांस और स्विजेरलैंड और यहाँ तक के तुर्किये मे हिजाब और बुर्के पर पाबंदी है।
क्या औरतों की आज़ादी की बात करने वालो ने इन मुल्को से सवाल किया, उनसे किसी ने पूछने गया, ये लोग उस वक़्त गूंगे क्यों बने हुए थे?

जब भारत मे बुनियाद परस्ती और नस्ल परस्ती की बुनियाद पर मुस्लिम खवातीन को तालीम हासिल करने से रोका जा रहा था तो उस वक़्त मुस्लिम और गैर मुस्लिम दुनिया खामोश तमाशा देख रही थी।
और आज
तालिबान ने जब अगले हुक्म तक शरई और समाजी वज़हो से कुछ वक़्त के लिए रोक लगा दिया है तो काफिरो, मुश्रीको और मुनाफीको की ज़मीर जाग गयी है।

तालिबान ने बताया के आखिर उसने क्यों वक्ति तौर पर पाबंदी लगाया है।

एक सूबे के खवातीन का दूसरे सूबे मे कई हफ़्तो तक बगैर मेहरम् के कयाम होता था जोके जाएज़ नही।

हजार कोशिशो के बावज़ूद शरीयत के मुताबिक हिजाब का सिस्टम नही बन रहा था।

अक्सर यूनिवर्सिटीज मे मर्द व औरत का इख्तलात था, जिसके लिए कोई दूसरा रास्ता नही था।

मौजूदा निसाब मे कुछ ऐसे निसाब थे जो खवातीन के लिए जरूरी नही थे।

दुनिया हमारे अंदुरुनी मामलात् मे दखल न दे, हमने 20 सालों तक जंग अफगानो के हुकुक के लिए किया है। हम खवातीन के तालीम के खिलाफ नही है , न अफगानो के हुकुक के। बहुत जल्द शरीयत के मुताबिक तालिमि निज़ाम बनाकर इदारे खोल दिये जायेंगे।

यह किसने कहा है के हम तालीम के मुखालीफ (विरोधी) है?

लेकिन जिस तरह का  मखलुत् और गैर शरई तलिमि निज़ाम राएज़ है क्या हम भी उनके नक़्श ए कदम पर चले?
हम इस वक़्त ऐसे सिस्टम पर काम कर रहे है जिस की रौशनी मे तालीम ए निस्वा शरीयत के दायरे मे आ जायेगी।

तालिबान के रहनुमा शेख सहाबुद्दीन दिलावर ने कहा है के इन शा अल्लाह अगले महीने तक शरई माहौल मे लड़कियो के सारे स्कूल और कॉलेज खोल दिये जायेंगे।

Share:

Happy December ya Happy New Year Ka Mubarakbad dena Kaisa hai?

Happy New Year kahna kaisa hai?

Marry Christmas ka Mubarakbad Dena kaisa hai?
India, Pak aur Bangladesh ke Musalmano ka Apna Christmas day.

Kya koi Musalman kisi Gair muslim ke festival par Mubarakbad de sakta hai?

Christmas kab se Manaya jane laga, History.

Participating in Christmas with Kuffar.

If Someone disbeliever wil wish me on 25 December, then what I Should do?

Musalmano ka Christmas day manana aur Cake katna kaisa hai?

Christmas aur New Year se jude Sawalat aur unke jawab padhne ke liye yahan click kare.

کرسمس_ڈے 25 دسمبر کی حقیقت
اهم سوالات ؟؟؟؟؟؟؟؟؟؟ --

1 - میری کرسمس کہنا کیسا هے؟
2 - اس کا کیا مطلب ہے ...... ؟
3 - کیا ہم کسی عیسائی کو میری کرسمس کہہ سکتے ہیں ...... ؟

        __________________
            جواب
        ----------------------------
میری کرسمس کا مطلب ہے .....
اللہ کے بیٹا ہوا ہے، مبارک ہو.

الله کی پناہ، نعوذباللہ من ذلك

ایسا عقیدہ رکھنا کفر ہے جو مسلمان سے ایمان ختم کر دیتا ہے.
       _____ ×××××× _____
اللہ تعالی قرآن کریم میں ارشاد فرماتا ہے _____

(قل هو الله أحد الله الصمد لم يلد ولم يولد ولم يكن له كفوا احد)
( سورة إخلاص. جزء 30)

ترجمہ ------ اے  نبی! آپ کہہ دیجئے، اللہ ایک ہے. وہ کسی کا محتاج نہیں ہے. نہ اس نے کسی بیٹے کو جنا. اور نہ اس کو کسی نے جنا ہے .اور نہ کوئی اس جیسا ہو سکتا ہے

ہم مسلمان ہیں .....

نہ تو ہمیں میری کرسمس کہنا چاہئے، ❌
اور نہ ہی ہیپی نیو ایئر.❌

عیسی عليه السلام. کو عیسائی اللہ کا بیٹا مانتے ہیں
اور ان کی پیدائش کی خوشی میں کرسمس ڈے مناتے ہیں.

تو برائے کرم .....

مسلمان ہونے کے ناطے کبھی .....
❌ میری کرسمس نہ کہنا.
نہ اس دن کو منانا

اس بات کا لوگ شعور نہیں رکھتے کہ جب ہم کسی کو کرسمس کی مبارک دیتے ہیں تو ہم اس بات سے اتفاق کر رہے ہوتے ہیں کہ الله نے بیٹا جنا (پیدا کیا). نعوذ بالله یہ شرک ہے.

سبحان الله عما یشرکون".​
الله پاک ہے اس سے جو یہ شرک کرتے ہیں

قریب ہے کے اس (بات) سے آسمان پھٹ پڑیں اور زمین شق ہو جائے اور پہاڑ گر کر ریزہ ریزہ ہو جائیں.
کہ دعوی کیا انہوں نے رحمان کے لیے اولاد کا
(یعنیMerry Christmas الله نے بیٹا پیدا کیا نعوذبالله).
رحمان کے لائق نہیں کے وہ اولاد بنائے (پیدا کرے یا رکھے).
سورۃ مریم (19)
آیت 90-92

کہہ دو الله ایک (یکتا) ہے.
الله بےنیاز ہے.
نہیں جنا اس نے (کسی کو) اور نہ ہی وہ (خود) جنا گیا.
اور اس کا کوئی بھی ہمسر نہیں ہے.
سورۃ الاخلاص (112)
آیت 1-4

ایک مسلمان کو چاہیے کہ وہ ان تہواروں سے بچ کر رہے۔
الله پاک ہمیں ہر قسم کے کفرو شرک سے بچائے کیونکہ الله کے ہاں شرک کی معافی نہیں ....
آمین

Share:

Kisi Musalamaan ke liye 25 December ke Christmas day par Cake katna aur Mubarak bad dena kaisa hai?

Christmas Day ya 25 December ka festival manana kaisa hai?

Kya Isaa Alaihe Salam 25 December ko Paida hue they.?
Angrejo ke Festival ko Musalaman kyu manate hai?
Kya kisi Musalamaan ke liye Christmas ki partiyo me jana, Mubarakbad Dena aur Cake Wagairah katna kaisa hai?


"سلسلہ سوال و جواب نمبر-173"
سوال_کسی مسلمان کے لیے کرسمس کی پارٹیوں میں جانا، مبارکباد دینا اور کیک وغیرہ کاٹنا کیسا ہے؟

Published Date: 24-12-2018

جواب۔۔۔!
الحمدللہ۔۔۔!!

کرسمس(Christmas) الفاظ کرائسٹ (Christ) اور ماس (Mass)کا مرکب ہے۔ کرائسٹ(Christ)مسیح کو کہتے ہیں اور ماس (Mass) اجتماع ، اکٹھا ہونا ہے یعنی مسیح کے لیے اکٹھا ہونا، اس کا مفہوم یہ ہوا:
مسیحی اجتماع یا یومِ میلاد مسیح (یعنی عیسی علیہ السلام کی پیدائش کا دن)

*کرسمس کا دن 25 دسمبر کیوں:*

25 دسمبر کا دن دنیا بھر کی عیسائی اقوام میں حضرت عیسیٰ کا یومِ پیدائش 'عید میلاد المسیح' یعنی کرسمس کے نام سے انتہائی تزک و احتشام سے منایا جاتا ہے، لیکن خوش قسمتی سے عیسائیوں میں کچھ حقیقت پسند مکاتبِ فکر تاحال موجود ہیں جو یہ تسلیم کرتے ہیں کہ 25 دسمبر حضرت مسیح علیہ السلام کی
ولادت کا دن نہیں بلکہ دیگر بت پرست اقوام سے لی گئی بدعت ہے۔

فقط یہی نہیں بلکہ تاریخِ کلیسا میں کرسمس کی تاریخ کبھی ایک سی نہیں رهی کیونکہ جنابِ عیسیٰ علیہ السلام کا یومِ پیدائش کسی بھی ذریعے سے قطعیت سے معلوم نہیں۔

بلکہ حضرت عیسیٰ علیہ السلام کا یومِ پیدائش بالکل نامعلوم ہے اور یومِ پیدائش کے متعلق فقط اندازے و تخمینے لگائے جاتے ہیں، کوئی مستند دلیل نہیں ملتی کہ حضرت عیسیٰ علیہ السلام 25؍ دسمبر کو پیدا ہوئے تھے بلکہ حقیقت اسکے برعکس ہے، قرآن اور اناجیل میں عیسیٰ کی پیدائش کے معلوم واقعات کی روشنی میں یہ بات عیاں ہوتی ہے کہ آپ کی ولادت موسم گرما میں ہوئی،اس کے با وجود حضرت عیسیٰ عیہ السلام کا یومِ پیدائش 25؍دسمبر کو مقررکیا گیا ۔

کیونکہ ابتدائی عیسائیت کو تحفظ دینے والے مشرک
اہلِ روم اپنے سورج دیوتا کا جنم دن 25؍دسمبر کو ہی منایا کرتے تھے اور مصر کے فرعون اپنی مشہور دیوی آئیسز (Isis) کے بیٹے ہورس (Horus) دیوتا کا جنم دن بھی 25 دسمبر کو منایا کرتے تھے۔

عید کے طور پر 25 دسمبر کو منانے کا رواج تاریخ میں سب سے پہلے ہمیں بابل کی تہذیب سے ملتا ہے کیونکہ اہلِ بابل 25؍دسمبر کو شہر کے بانی نمرود بادشاہ کی سالگرہ منایا کرتے تھے۔

جبکہ کسی شخصیّت کے جنم دن کو تہوار کے طور پر منانا یا خود اپنی سالگرہ منانا نمرود، فرعون اور مشرک اقوام کا طریقہ ہے اور صرف اسلام نہیں بلکہ بائبل کی تعلیم کے مطابق بھی ایسے تہوار منانا جائز نہیں.

*کرسمس منانا یا کرسمس کی مبارک باد دینا یا انکہ پارٹیوں میں جانا حرام ہے، یہاں ہم قرآن و احادیث اور سلف صالحین کی رو سے کچھ دلائل پیش کرتے ہیں..!!*

اس بات کا لوگ شعور نہیں رکھتے کہ جب ہم کسی کو کرسمس کی مبارک دیتے ہیں تو ہم اس بات سے اتفاق کر رہے ہوتے ہیں کہ حضرت عیسی علیه السلام 25 دسمبر کو پیدا ہوئے, اور ہم اس بات سے بھی اتفاق کر رہے ہوتے ہیں کہ الله نے بیٹا جنا،کیونکہ عیسائیوں کے عقیدے کے مطابق عیسیٰ علیہ السلام اللہ کا بیٹا ہے نعوذ باللہ..! جبکہ اس بات کا اقرار کفر و شرک تک پہنچا دیتا ہے

((("سبحان الله عما یشرکون".)))
الله پاک ہے اس سے جو یہ شرک کرتے ہیں

سورتہ اخلاص اللہ کی وحدانیت کا مکمل ثبوت..

القرآن:
کہہ دو الله ایک ہے.
الله بےنیاز ہے، نہیں جنا اس نے (کسی کو) اور نہ ہی وہ (خود) جنا گیا،اور اس کا کوئی بھی ہمسر نہیں ہے.
(سورۃ الاخلاص آیت 1-4)

دوسری جگہ پر اللہ فرماتے ہیں۔۔!

أَعُوذُ بِاللَّهِ مِنَ الشَّيْطَانِ الرَّجِيمِ
بِسْمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ

تَكَادُ السَّمٰوٰتُ يَتَفَطَّرۡنَ مِنۡهُ وَتَـنۡشَقُّ الۡاَرۡضُ وَتَخِرُّ الۡجِبَالُ هَدًّا ۞اَنۡ دَعَوۡا لِـلرَّحۡمٰنِ وَلَدًا‌ ۞
وَمَا يَنۡۢبَـغِىۡ لِلرَّحۡمٰنِ اَنۡ يَّتَّخِذَ وَلَدًا ۞

قریب ہے کے اس (بات) سے آسمان پھٹ پڑے اور زمین شق ہو جائے اور پہاڑ گر کر ریزہ ریزہ ہو جائیں،کہ دعوی کیا انہوں نے رحمان کے لیے اولاد کا (یعنی الله نے بیٹا پیدا کیا نعوذبالله)
رحمان کے لائق نہیں کے وہ اولاد بنائے(پیدا کرے یا رکھے)
(سورۃ مریم آیت٬ 90-91-92)

ایک اور مقام پر قرآن میں فرمایا

بَدِيۡعُ السَّمٰوٰتِ وَالۡاَرۡضِ‌ؕ اَنّٰى يَكُوۡنُ لَهٗ وَلَدٌ وَّلَمۡ تَكُنۡ لَّهٗ صَاحِبَةٌ‌ ؕ وَخَلَقَ كُلَّ شَىۡءٍ‌ ۚ وَهُوَ بِكُلِّ شَىۡءٍ عَلِيۡمٌ ۞

وہی آسمانوں اور زمین کا موجد ہے، اس کی اولاد کس طرح ہو سکتی ہے جب کہ اس کی کوئی بیوی نہیں ہے، اور اسی نے ہر چیز کو پیدا کیا، اور وہی ہر چیز کو جاننے والا ہے.
(سورۃ الانعام٬آیت_101)

اور یہودیوں نے کہا عزیر (علیه السلام) الله كا بيٹا ہے اور کہا نصاری (عیسائیوں) نے مسیح (عليه السلام) الله کا بیٹا ہے، یہ ان کے مونہوں کی بات ہے، (یوں) وہ ان لوگوں کی بات کی مشابہت کرتے ہیں جنہوں نے ان سے پہلے کفر کیا، الله ان كو ہلاک کرے، کہاں وہ پھیرے (بہکتے) جاتے ہیں. انہوں نے اپنے علماء اور درویشوں اور مسیح ابن مریم (علیھم السلام) کو (اپنا) رب بنا لیا الله کو چھوڑ کر، حالانکہ وہ حکم نہیں دیے گئے تھے مگر یہ کہ وہ (صرف) ایک معبود کی عبادت کریں، اس کے سوائے کوئی معبود نہیں، وہ پاک ہے اس سے جو وہ شریک ٹھہراتے ہیں.
(سورۃ التوبة،آئیت نمبر-30,31)

رسول الله صلی الله عليه وسلم نے فرمایا:
الله تعالی فرماتا ہے کہ ابن آدم (علیه السلام) نے مجھے گالی دی اور اس کے لیے مناسب نہ تھا کہ وہ مجھے گالی دیتا. اس کا مجھے گالی دینا یہ ہے کہ کہتا ہے کہ الله نے اپنا بیٹا بنایا ہے حالانکہ میں ایک ہوں بے نیاز ہوں نہ میری کوئی اولاد ہے اور نہ میں کسی کی اولاد ہوں اور نہ کوئی میرے برابر کا ہے.
(صحیح بخاری٬ حدیث نمبر_ 4974 )

اللہ پاک فرماتے ہیں:
اے ایمان والو کافروں کو دوست نہ بناؤ،
(سورہ نساء،آئیت نمبر_144)

اور فرمایا
 گناہ کے کاموں میں ایک دوسرے کی مدد نہ کرو،
(سورہ المائدہ،آئیت نمبر-2)

فرمان نبویﷺ،
جس نے کسی قوم کی مشابہت کی وہ انہیںمیں سے ہو گا،
(سنن ابو داؤد، حدیث نمبر-4031)

رسول اللّٰہ ﷺ
نے بیسیوں مرتبہ مختلف معاملات ِزندگی کے متعلق فرمایا :
«خالفوا المشركين
''مشرکین کی مخالفت کرو ۔''
(صحيح بخاری: 5892)
(صحیح مسلم:259)

فرمایا
«خالفوا المجوس»
مجوسیوں کی مخالفت کرو۔''
(صحیح مسلم: 260)

ایک اور جگہ فرمایا
«خالفوا اليهود والنصارى»
''یہود اور نصاریٰ کی مخالفت کرو۔''
( سنن ابی داؤد: 652؛)
(صحیح ابن حبان: 2183)

*صحابہ کرام اور فقہائے اسلام کے فرامین عید کرسمس کے حوالے سے*

سیدنا عمر فاروق (رضی الله تعالیٰ عنه) نے فرمایا:
الله كے دشمنوں سے انکے تہوار میں اجتناب کرو. غیر مسلموں کے تہوار کے دن انکی عبادت گاہوں میں داخل نہ ہو،
کیونکہ ان پر الله کی ناراضگی نازل ہوتی ہے.
(سنن بيهقی9ج/ص 392_18862)

حضرت عبداللّٰہ بن عمرو نے فرمایا:
'' غیر مسلموں کی سر زمین میں رہنے والا مسلمان ان کے نوروز (New Year) اور ان کی عید کو ان کی طرح منائے اور اسی رویّے پر اس کی موت ہو تو قیامت کے دن وہ ان غیر مسلموں کے ساتھ ہی اُٹھایا جائے گا۔''
( سنن الکبریٰ للبیہقی: حدیث 18863 اسنادہ صحیح ؛ )
( اقتضاء الصراط المستقیم از علامہ ابن تیمیہ :1؍200)

امام احمد بن حنبل رحمته اللہ سے پوچھا گیا:
"جس شخص کی بیوی عیسائی ہو تو کیا اپنی بیوی کو عیسائیوں کی عید یا چرچ میں جانے کی اجازت دے سکتا ہے ؟
آپ نے فرمایا:
وہ اسے اجازت نہ دے کیونکہ الله نے گناہ کے کاموں میں تعاون نہ کرنے کا حکم دیا ہے۔"
( المغنی لابن قدامہ:9؍364 ؛الشرح الکبیر علیٰ متن المقنع:10؍625)

مختلف شافعی فقہارحمہم اللہ کا کہنا ہے کہ:
"جو کفار کی عید میں شامل ہو، اسے سزا دی جائے۔"
(الاقناع:2؍526؛مغنی المحتاج:5؍526)

معروف شافعی فقیہ ابوالقاسم ہبۃاللّٰہ بن حسن بن منصورطبری رحمته اللہ کہتے ہیں:
''مسلمانوں کے لیے یہ جائز نہیں کہ یہود و نصاریٰ کی عیدوں میں شرکت کریں کیونکہ وہ برائی اور جھوٹ پر مبنی ہیں۔ اور جب اہلِ ایمان اہلِ کفر کے ایسے تہوار میں شرکت کرتے ہیں تو کفر کے اس تہوار کو پسند کرنے والے اور اس سے متاثر ہونے والے کی طرح ہی ہیں۔ اور ہم ڈرتے ہیں کہ کہیں ان اہل ایمان پر الله کا عذاب نہ نازل ہو جائے کیونکہ جب الله کا عذاب آتا ہے تو نیک و بد سب اس کی لپیٹ میں آ جاتے ہیں۔"
( احکام اہل الذمۃ:3؍1249)

امام مالک کے شاگردِ رشید مشہور مالکی فقیہ عبدالرحمٰن بن القاسم رحمته اللہ سے سوال کیا گیا کہ:
"کیا ان کشتیوں میں سوار ہونا جائز ہے جن میں عیسائی اپنی عیدوں کے دن سوار ہوتے ہیں۔ تو آپ رحمته اللہ نے اس وجہ سے اسے مکروہ جانا کہ کہیں ان پر الله کا عذاب نہ اُتر آئے کیونکہ ایسے مواقع پر وہ مل کر شرک کا ارتکاب کرتے ہیں۔"
( المدخل لابن الحاج:2؍47)

احناف کے مشہور فقیہ ابو حفص کبیر رحمته اللہ نے فرمایا:
اگر کوئی شخص پچاس سال الله کی عبادت کرے پھر مشرکین کی عید آئے تو وہ اس دن کی تعظیم کرتے ہوئے کسی مشرک کو ایک انڈہ ہی تحفہ دے دے تو اس نے کفر کیا اور اس کے اعمال ضائع ہو گئے۔"
(البحرالرقائق شرح کنز الدقائق: 8؍555؛الدر المختار: 6؍754)

نامور فقیہ امام ابو الحسن آمدی رحمته اللہ کا بھی فتویٰ ہے کہ:
"یہود و نصاریٰ کی عیدوں میں شامل ہونا جائز نہیں۔"
(احکام اہل الذمہ ازامام ابن قیم:3؍1249)

امام ابن قیم رحمته اللہ نے فرمایا:
''کافروں کے خاص دینی شعار کے موقع پر اُنہیں مبارک باد پیش کرنا بالاتفاق حرام ہے۔
(احکام اہل الذمۃ:1؍205)

امام ابنِ تیمیہ نے اس مسئلہ میں فرمایا:
''موسم سرما میں دسمبر کی 24تاریخ کو لوگ بہت سے کام کرتے ہیں۔عیسائیوں کے خیال میں یہ دن حضرت عیسیٰ کی پیدائش کا دن ہے۔اس میں جتنے بھی کام کئے جاتے ہیں مثلاًآگ روشن کرنا، خاص قسم کے کھانے تیار کرنا اور موم بتیاں وغیرہ جلانا سب کے سب مکروہ کام ہیں۔اس دن کو عید سمجھنا عیسائیوں کا  عقیدہ ہے ۔اسلام میں اس کی کوئی اصلیت نہیں اورعیسائیوں کی اس عید میں شامل ہونا جائز نہیں ۔"
(اقتضاء الصراط المستقیم : 1؍478)

سعودی عرب کے عظیم مفتی شیخ ابن عثیمین رحمہ اللہ سے جب اس عید کرسمس کے بارے سوال کیا گیا  کہ کفار کو انکی عیدوں کی مبارک دینا کیسا ہے ؟

تو  انکا جواب تھا کہ:

جواب کا متن:
سب علماء کا اس بات پر اتفاق ہے کہ کرسمس یا کفار کے دیگر مذہبی تہواروں پر مبارکباد دینا حرام ہے،
جیسے کہ ابن قیم رحمہ اللہ نے اپنی کتاب " أحكام أهل الذمة " میں نقل کیا ہے،
آپ کہتے ہیں:
"کفریہ شعائر پر تہنیت دینا حرام ہے، اور اس پر سب کا اتفاق ہے، مثال کے طور پر انکے تہواروں اور روزوں کے بارے میں مبارکباد دیتے ہوئے کہنا: "آپکو عید مبارک ہو" یا کہنا "اس عید پر آپ خوش رہیں" وغیرہ، اس طرح کی مبارکباد دینے سے کہنے والا کفر سے تو بچ جاتا ہے لیکن یہ کام حرام ضرور ہے، بالکل اسی طرح حرام ہے جیسے صلیب کو سجدہ کرنے پر اُسے مبارکباد دی جائے، بلکہ یہ اللہ کے ہاں شراب نوشی ، قتل اور زنا وغیرہ سے بھی بڑا گناہ ہے، بہت سے ایسے لوگ جن کے ہاں دین کی کوئی وقعت ہی نہیں ہے ان کے ہاں اس قسم کے واقعات رونما ہوتے ہیں، اور انہیں احساس تک نہیں ہوتا کہ وہ کتنا برا کام کر رہا ہے، چنانچہ جس شخص نے بھی کسی کو گناہ، بدعت، یا کفریہ کام پر مبارکباد دی وہ یقینا اللہ کی ناراضگی مول لے رہا ہے" ابن قیم رحمہ اللہ کی گفتگو مکمل ہوئی۔

چنانچہ کفار کو انکے مذہبی تہواروں میں مبارکبا د دینا حرام ہے، اور حرمت کی شدت ابن قیم رحمہ اللہ نے ذکر کردی ہے، -حرام اس لئے ہے کہ- اس میں انکے کفریہ اعمال کا اقرار شامل ہے، اور کفار کیلئے اس عمل پر اظہار رضا مندی بھی ، اگرچہ مبارکباد دینے والا اس کفریہ کام کو اپنے لئے جائز نہیں سمجھتا ، لیکن پھر بھی ایک مسلمان کیلئے حرام ہے کہ وہ کفریہ شعائر پر اظہار رضا مندی کرے یا کسی کو ان کاموں پر مبارکباد دے، کیونکہ اللہ تعالی نے اپنے بندوں کیلئے اس عمل کو قطعی طور پر پسند نہیں کیا، جیسے کہ

فرمانِ باری تعالی ہے:
 إن تكفروا فإن الله غني عنكم ولا يرضى لعباده الكفر وإن تشكروا يرضه لكم 
ترجمہ:اگر تم کفر کرو تو بیشک اللہ تعالی تمہارا محتاج نہیں، اور (حقیقت یہ ہے کہ)وہ اپنے بندوں کیلئے کفر پسند نہیں کرتا، اور اگر تم اسکا شکر ادا کرو تو یہ تمہارے لئے اس کے ہاں پسندیدہ عمل ہے۔

اسی طرح فرمایا:
 اليوم أكملت لكم دينكم وأتممت عليكم نعمتي ورضيت لكم الإسلام ديناً 
ترجمہ:
آج میں نے تمہارے لئے دین کو مکمل کردیا ، اور تم پر اپنی نعمتیں مکمل کردیں، اور تمہارئے لئے اسلام کو بطورِ دین پسند کر لیا۔

لہذا کفار کو مبارکباد دینا حرام ہے، چاہے کوئی آپکا ملازمت کا ساتھی ہو یا کوئی اور ۔
اور اگر وہ ہمیں اپنے تہواروں پر مبارکباد دیں تو ہم اسکا جواب نہیں دینگے، کیونکہ یہ ہمارے تہوار نہیں ہیں، اور اس لئے بھی کہ ان تہواروں کو اللہ تعالی پسند نہیں کرتا، کیونکہ یا تو یہ تہوار ان کے مذہب میں خود ساختہ ہیں یا پھر انکے دین میں تو شامل ہیں لیکن محمد صلی اللہ علیہ وسلم پر ساری مخلوق کیلئے نازل ہونے والے اسلام نے انکی حیثیت کو منسوخ کردیا ہے،

اور اسی بارے میں اللہ پاک نے فرمایا:
 ومن يبتغ غير الإسلام ديناً فلن يقبل منه وهو في الآخرة من الخاسرين 

ترجمہ:اور جو شخص بھی اسلام کے علاوہ کوئی دین تلاش کریگا ؛ اسے کسی صورت میں قبول نہیں کیا جائے گا، اور وہ آخرت میں خسارہ پانے والوں میں سے ہوگا۔

چنانچہ ایک مسلمان کیلئے اس قسم کی تقاریب پر انکی دعوت قبول کرنا حرام ہے، کیونکہ انکی تقریب میں شامل ہونا اُنہیں مبارکباد دینے سے بھی بڑا گناہ ہے۔
اسی طرح مسلمانوں کیلئے یہ بھی حرام ہے کہ وہ ان تہواروں پر کفار سے مشابہت کرتے ہوئے تقاریب کا اہتمام کریں، یا تحائف کا تبادلہ کریں، یا مٹھائیاں تقسیم کریں، یا کھانے کی ڈشیں بنائیں، یا عام تعطیل کا اہتمام کریں، کیونکہ نبی صلی اللہ علیہ وسلم کا فرمان ہے: (جو جس قوم کی مشابہت اختیار کریگا وہ اُنہی میں سے ہے)

شیخ الاسلام ابن تیمیہ رحمہ اللہ اپنی کتاب( اقتضاء الصراط المستقيم، مخالفة أصحاب الجحيم ) میں کہتے ہیں:

"کفار کے چند ایک تہواروں میں ہی مشابہت اختیار کرنے کی وجہ سے اُنکے باطل پر ہوتے ہوئے بھی دلوں میں مسرت کی لہر دوڑ جاتی ہے،اور بسا اوقات ہوسکتا ہے کہ اسکی وجہ سے انکے دل میں فرصت سے فائدہ اٹھانے اور کمزور ایمان لوگوں کو پھسلانے کا موقع مل جائے" انتہی
مذکورہ بالا کاموں میں سے جس نے بھی کوئی کام کیاوہ گناہ گار ہے، چاہے اس نے مجاملت کرتے ہوئے، یا دلی محبت کی وجہ سے ، یا حیاء کرتے ہوئے یا کسی بھی سبب سے کیا ہو، اسکے گناہ گار ہونے کی وجہ یہ ہے کہ اس نے دین الہی کے بارے میں بلاوجہ نرمی سے کام لیا ہے، جو کہ کفار کیلئے نفسیاتی قوت اور دینی فخر کا باعث بنا ہے۔

اور اللہ تعالی سے دعا ہے کہ مسلمانوں کی اپنے دین کی وجہ سے عزت افزائی فرمائے، اور انہیں اس پر ثابت قدم رہنے کی توفیق دے، اور انہیں اپنے دشمنوں پر غلبہ عطا فرمائے، بیشک وہ طاقتور اور غالب ہے،
( مجموع فتاوى ورسائل شيخ ابن عثيمين 3/369 )

*ان تمام قرآنی آیات، احادیث مبارکہ اور فقہائے کرام کے فتاویٰ جات سے پتہ چلا کہ اللہ پاک ایک ہے، اسکا کوئی شریک نہیں نہ اسکا کوئی بیٹا ہے،جو لوگ عیسیٰ علیہ السلام کو اللہ کا بیٹا مانتے ہیں انکی پارٹیوں میں جانا یا انکو مبارک دینا انکے کفر و شرک میں انکی مدد کرنے اور انکا حوصلہ بڑھانے کے برابر ہے، جو کظ سرا سر حرام ہے،جبکہ اللہ نے گناہ کے کاموں میں کسی کی مدد کرنے سے منع فرمایا ہے، اور جو مسلمان یہود و نصارٰی کی مشابہت کرتے ہوئے کرسمس وغیرہ منائے گا یا کیک کاٹے گا وہ انہیں میں سے ہو گا چاہے وہ انکو خوش کرنے کے لیے دل سے نا کر رہا ہو،*

*ہائے امت مسمہ کاالمیہ۔۔۔!!!*

بڑے افسوس کا مقام ہے کہ اکثر مسلمان عوام الناس اور ان کی رہنمائی کرنے والے کچھ عاقبت نااندیش علما نہ صرف غیر مسلموں کے ایسے تہواروں میں شرکت کرتے بلکہ ان کی تعریف بھی کرتے ہیں۔
اُنہیں الله سے ڈرنا چاہیئے اور الله کے ان دشمنوں کو خوش نہیں کرنا چاہیئے۔

اللہ کا فرمان ہے:
وہ لوگ چاہتے ہیں کہ تم نرمی ختیار کرو تو وہ بھی نرم ہو جائیں۔
(سورۃ القلم:-9)

اور الله کا فرمان بھی ہے:
تم سے نہ تو یہودی کبھی خوش ہوں گے اور نہ عیسائی یہاں تک کہ اُن کے مذہب کی پیروی اختیار کر لو
(سورۃ البقرہ:120)

رسول اللّٰہ ﷺ نے سچ فرمایا:
*م لوگ پہلی اُمتوں کے طریقوں کی قدم بقدم پیروی کرو گے یہاں تک کہ اگر وہ لوگ کسی گوہ کے بِل میں داخل ہوں تو تم بھی اس میں داخل ہو گے۔
(صحیح بخاری: 3456)

ہمارے معاشرے میں رائج قبر پرستی، پیر پرستی، اکابر پرستی اور رنگارنگ پوجا پاٹ اور بدعات مثلاً ہندوؤں کی رسومات عرس، میلے وغیرہ ان تمام باتوں کی دلیل قرآن و سنت سے نہیں ملتی اور نہ ہی آثارصحابہ کرام و اہل بیت عظام رضی اللہ عنہم  سے ان کی کوئی دلیل ملتی ہے بلکہ یہ بدعات تو سراسر یہود و نصاریٰ کی اندھا دھند نقالی کا ہی کرشمہ ہیں۔ ان میں اکثر مسلمان لیڈر دینی وسیاسی اور سماجی راہ نما جو شرکت کرتے ہیں یہ اپنے ووٹ بینک کیلئے یا اپنا قد و کاٹھ ان میں اونچا کرنے کیلئے یا اپنے آپ کو معتدل ثابت کرنے کیلئے ہی کرتے کوئی بھی انہیں صحیح اسلام کی دعوت دینے کیلئے نہیں جاتا۔۔۔
الا ماشااللہ دوچند۔

*شریعت اسلام میں اقلیتوں کے حقوق ہیں، کہ جو کافر لڑائی نا کریں ان است اچھا سلوک کریں، ان اقلیتوں کی مدد کریں، انکو کھانا کھلائیں، انکو دعوت دیں، ان پر جبر نہ کریں۔۔!!*

*مگر نافرمانی اور گناہ میں انکی مدد کرنا اور  انکی حوصلہ افزائی کرنا جائز نہیں*

*یہاں ایک بات یہ بھی قابل ذکر ہے کیا کبھی کسی عیسائی،یہودی نے مسلمانوں کی عیدوں، تہواروں میں شمولیت کی؟*

*کیا کسی عیسائی نے روزہ رکھا؟ کسی کافر ملک نے مسلمانوں کو خوش کرنے کے لیے ہماری عیدوں کے دن سرکاری طور پر تقریبات منائی؟؟*

*اور اس سب کے باوجود جو مسلمان اقلیتوں کو خوش کرنے کے لیے کیک کاٹتے ہیں، انکو مبارک باد دیتے ہیں، پارٹیوں میں جاتے ہیں تا کہ عیسائی خوش ہوں ان سے،۔تو وہ حکمران اور علماء کرام  ایسا کریں کہ اس کرسمس پر ایک دن کے لیے عیسائی بن جائیں،آخر دنیا کو تو دکھانا ہے نا کہ ہم اقلیتوں سے پیار کرتے ہیں؟ ہم بھلے عام زندگی میں انہیں چوڑھے کہتے ہوں*

افسوس.....!!!!
تجھ پر اے مسلماں!!
کہ دنیا کی عارضی تعریفوں اور نام و سٹیٹس کے لیے تم نے رب کے احکامات تک کو پس پشت ڈال دیا،

*اللہ سے دعا ہے کہ اللہ پاک ہمیں صحیح معنوں میں دین اسلام پر عمل کرنے کی توفیق عطاء فرمائے، آمین یا رب العالمین*

((( مآخذ محدث فورم )))

((( واللہ تعالیٰ اعلم باالصواب )))

اپنے موبائل پر خالص قرآن و حدیث کی روشنی میں مسائل حاصل کرنے کے لیے “ADD” لکھ کر نیچے دیئے گئے پر سینڈ کر دیں،
آپ اپنے سوالات نیچے دیئے گئے پر واٹس ایپ کر سکتے ہیں جنکا جواب آپ کو صرف قرآن و حدیث کی روشنی میں دیا جائیگا,
ان شاءاللہ۔۔!
سلسلہ کے باقی سوال جواب پڑھنے
کیلیئے ہماری آفیشل ویب سائٹ وزٹ کریں
یا ہمارا فیسبک پیج دیکھیں::
یا سلسلہ بتا کر ہم سے طلب کریں۔۔!!

*الفرقان اسلامک میسج سروس*

آفیشل واٹس ایپ
+923036501765

آفیشل ویب سائٹ
http://alfurqan.info/

آفیشل فیسبک پیج//
https://www.facebook.com/Alfurqan.sms.service2/

الفرقان اسلامک میسج سروس کی آفیشل اینڈرائیڈ ایپ کا پلے سٹور لنک 

https://play.google.com/store/apps/details?id=com.alfurqan

Share:

Nabi ke khoon Pine wali Hadees ka Jayeza, kya yah Riwayat sahi hai?

Kya kisi Insan ka khoon pi sakte hai?
Kya yah Sahee Hadees hai ke ek Sahabi ne Allah ke Nabi Ke khoon piye they?

Arshia Akbar
السلام علیکم ۔۔سسٹر میرا اج کا سوال ہے کہ ایک عالم صاحب سے سننے میں ایا ( موبائل) پہ ہی ۔۔۔دل نہیں مانا تو سوچا غلط سوچنے سے بہتر ہے کہ اپ سے پوچھ کر علم میں اضافہ۔۔تصیح کرلوں ۔۔۔انھوں نے فرمایا کہ حضور صلی اللہ علیہ وسلم کے خون نکل ایا تو حضور صلی اللہ علیہ وسلم نے صحابی سے فرمایا کہ اس خون کو ٹھکانے لگا دو جہاں کسی کی نظر نہ پڑے۔ کیوں کہ بہتا ہوا خون حرام ہوتا ہے ۔تو صحابی وہ خون لے کر باہر نکلے اور وہ خون پی لیا ۔

حضور صلی اللہ علیہ وسلم کے پاس کے کہا جی لگا دیا ٹھکانے کہ کہاں ٹھکانے لگایا کہ حضور وہاں جہاں کسی کی بھی نظر نہیں پڑے گی ۔توحضورص نے پوچھا کہ پی گئے وہ خون صحابی نے فرمایا جی حضور ۔تو حضور صلی اللہ علیہ نے فرمایا کہ تجھےدوزخ کی اگ نہیں چھو سکے گی۔۔۔۔اگر لفظ اگے پیچھے ہوئے ہوں تو اللہ پاک درگزر سے کام لے ۔۔۔۔میں نے یہ پوچھنا تھا کہ بقول ان عالم تھے یا مولوی صاحب تھے جو بھی تھے انکے بہتا ہوا خون حرام ہے تو پھر حضور صلی اللہ علیہ وسلم نے یہ ارشاد فرمایا ہے کہ میرا خون پینے سے اگ نہیں چھوئے گی۔۔۔تصیح اور میری رہنمائی فرمائیں شکریہ 💗۔۔سوال لکھنے میں لمبا ہوگیا ۔۔ڈر لگتا ہے کہ لکھنے میں کچھ اگے پیچھے نہ ہو ۔۔۔۔۔جزاک اللہ خیرا کثیرا ❤️

۔............................................................................

وعلیکم السلام ورحمةاللہ معزز سسٹر ۔۔۔۔

شیخ غلام مصطفی ظہیر صاحب نے اس سلسلے میں ایک تحقیقی مضمون قلمبند فرمایا ہے ، انہوں نے اس سلسلے میں وارد بعض روایات کے متعلق تحقیق پیش کی ہے ۔

آپ نے اوپر جو تحریر ذکر کی ، اس میں خون پینے سے متعلق در ج ذیل چار روایات کا تذکر کیا گیا ہے :
ابو طیبہ رضی اللہ عنہ والی روایت
ایک قریشی لڑکے والی روایت
عبد اللہ بن زبیر رضی اللہ عنہ والی روایت
علی رضی اللہ عنہ والی روایت

ان سب کی حقیقت ذیل میں ملاحظہ کر لیجیے :

قریشی لڑکے والی روایت :
سیدنا عبد اللہ بن عباس رضی اللہ عنہما سے روایت ہے کہ ایک قریشی لڑکے نے نبی ئ اکرم صلی اللہ علیہ وسلم کو سنگی لگائی ۔ جب وہ اس سے فارغ ہوا تو آپ صلی اللہ علیہ وسلم کا خون لے کر دیوار کے پیچھے چلا گیا ۔ پھر اس نے اپنے دائیں بائیں دیکھا ۔ جب اسے کوئی نظر نہ آیا تو اس نے وہ خون پی لیا ۔ جب واپس لوٹا تو نبی اکرم صلی اللہ علیہ وسلم نے اس کے چہرے کی طرف دیکھ کر پوچھا : اللہ کے بندے ! آپ نے اس خون کا کیا کیا ؟
اس نے عرض کیا : میں نے دیوار کے پیچھے اسے چھپا دیا ہے ۔ آپ نے فرمایا : کہاں چھپایا ہے ؟
اس نے عرض کیا : اے اللہ کے رسول ! میں نے زمین پر آپ کا خون گرانا مناسب نہیں سمجھا تو وہ میرے پیٹ میں ہے ۔ آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا : جاؤ تم نے خود کو جہنم سے بچا لیا ۔
(المجروحین من المحدثین لابن حبان : ٣/٥٩، التلخیص الحبیر لابن حجر : ١/١١١)

تبصرہ : یہ جھوٹ کا پلندا ہے ۔ امام ابنِ حبان رحمہ اللہ فرماتے ہیں :

'' اس کے راوی نافع السلمی ابو ہرمز بصری نے امام عطاء بن ابی رباح رحمہ اللہ کی طرف منسوب ایک جھوٹا نسخہ روایت کیا تھا ۔ ''پھر انہوں نے اس سے یہ حدیث ذکر کی ۔
اس راوی کے متعلق امام یحییٰ بن معین رحمہ اللہ فرماتے ہیں :
لیس بثقۃ ، کذّاب ۔ ''یہ ثقہ نہیں ۔ پرلے درجے کا جھوٹا ہے ۔ ''
(الکامل لابن عدی : ٧/٤٩، وسندہ، حسنٌ)
یہ بالاتفاق ضعیف اور متروک راوی ہے ۔ اس کے بارے میں ادنیٰ کلمہ توثیق بھی ثابت نہیں ہے ۔

حضرت عبد اللہ بن زبیر رضی اللہ عنہ والی روایت :

عامر بن عبد اللہ بن زبیر اپنے والد سے روایت کرتے ہیں کہ ایک دفعہ رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم نے سنگی لگوائی ۔ مجھے حکم دیا کہ میں اس خون کو ایسی جگہ چھپا دوں جہاں سے درندے ، کتے (وغیرہ) یا کوئی انسان نہ پا سکے ۔ عبداللہ بن زبیر رضی اللہ عنہ کہتے ہیں کہ میں نبی ئ اکرم صلی اللہ علیہ وسلم سے دُور چلا گیا اور دُور جا کر اس خون کو پی لیا ۔ پھر میں آپ صلی اللہ علیہ وسلم کی خدمت میں حاضر ہوا ۔ آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے پوچھا : آپ نے خون کا کیا کیا ؟
میں نے عرض کی : میں نے ویسے ہی کیا ہے جیسے آپ نے حکم دیا تھا ۔ آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا : میرے خیال میں آپ نے اسے پی لیا ہے ۔ میں نے عرض کیا : جی ہاں ! آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا : اب آپ سے میرا کوئی امتی بغض و کینہ سے نہیں ملے گا ۔
(السنن الکبری للبیہقی : ٧/٦٧، وصححہ المقدسی : ٩/٣٠٨)

تبصرہ : اس روایت کی سند ''ضعیف'' ہے ۔ اس کا راوی الھنید بن قاسم بن عبد الرحمن ''مجہول'' ہے ۔ متقدمین ائمہ محدثین میں سے کسی نے اس کی توثیق نہیں کی ۔ لہٰذا حافظ ہیثمی رحمہ اللہ (مجمع الزوائد : ٨/٧٢)کا اس کو ثقہ قرار دینا اور حافظ ابنِ حجر رحمہ اللہ (التلخیص الحبیر : ١/٣٠)کا '' ولا بأس بہ '' کہنا صحیح نہیں ۔

ایک روایت میں ہے : لعلک شربتہ ؟ قال : نعم ، قال : ولم شربت الدم ؟ ویل للناس منک ، وویل لک من الناس ۔
''آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: شاید آپ نے پی لیا ہے ۔ صحابی نے عرض کیا : جی ہاں ! آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا : آپ نے خون کیوں پیا ؟ نیز فرمایا : لوگ آپ سے محفوظ ہو گئے اور آپ لوگوں سے محفوظ رہیں گے ۔ ''
اس کی سند میں وہی الھنید بن قاسم راوی ''مجہول'' ہے ۔
ایک روایت میں ہے : لا تمسّک النار إلا قسم الیمین ۔
'' آپ کو آگ صرف قسم پوری کرنے کے لیے چھوئے گی ۔ ''
(حلیۃ الاولیاء لابی نعیم الاصبہانی : ١/٣٣٠، جزء الغطریف : ٦٥، تاریخ دمشق لابن عساکر : ٢٠/٢٣٣، ٢٨/١٦٢، ١٦٣، الاصابۃ فی تمییز الصحابۃ لابن حجر : ٤/٩٣)

تبصرہ : اس کی سند سخت ترین '' ضعیف'' ہے ۔ اس کے راوی سعد ابو عاصم مولیٰ سلیمان بن علی اور کیسان مولیٰ عبداللہ بن الزبیر کی توثیق نہیں مل سکی ، لہٰذا یہ سند مردود و باطل ہے ۔

اسماء بنت ابی بکر کی روایت میں ہے : لا تمسّک النار ، ومسح علی رأسہ ۔ '' نبئ اکرم صلی اللہ علیہ وسلم نے سیدنا عبداللہ بن زبیر رضی اللہ عنہ کے سر پر ہاتھ پھیرا اور فرمایا کہ آپ کو آگ ہرگز نہ چھوئے گی ۔ (سنن الدارقطنی : ١/٢٢٨)
تبصرہ : اس کی سند سخت ''ضعیف'' ہے ، کیونکہ :
1 اس کا راوی محمد بن حمید الرازی ''ضعیف'' ہے ۔ (تقریب التہذیب : ٥٨٣٤)
2 اس کا راوی علی بن مجاہد بھی ''ضعیف'' ہے ۔ حافظ ذہبی رحمہ اللہ نے اسے کذاب قرار دیا ہے ۔ (المغنی فی الضعفاء : ٢/٩٠٥)

حافظ ابنِ حجر رحمہ اللہ فرماتے ہیں : متروک ، ولیس فی شیوخ أحمد أضعف منہ ۔ ''یہ متروک راوی ہے ۔ امام احمد رحمہ اللہ کے اساتذہ میں اس سے بڑھ کر ضعیف کوئی نہ تھا ۔ '' (تقریب التہذیب : ٤٧٩٠)
نیز حافظ ابنِ حجر رحمہ اللہ نے اسے ''ضعیف'' بھی کہا ہے ۔ (التلخیص الحبیر : ١/٣١)

علی بن مجاہد کے بارے میں امام یحییٰ بن ضُریس کہتے ہیں کہ یہ پرلے درجے کا جھوٹا راوی ہے ۔ (الجرح والتعدیل لابن ابی حاتم : ٦/٢٠٥، وسندہ، حسنٌ)
ابو غسان محمد بن عمرو کہتے ہیں : ترکتہ ، ولم یرضہ ۔ ''میں نے اسے چھوڑ دیا ۔ وہ اس سے راضی نہیں تھے ۔ ''(الضعفاء للعقیلی : ٣/٢٥٢، وسندہ، صحیحٌ)

امام احمد بن حنبل رحمہ اللہ اس کے بارے میں فرماتے ہیں :
کتبنا عنہ ، ما أری بہ بأسا ۔ '' ہم نے اس سے لکھا ہے ، میں اس میں کوئی حرج خیال نہیں کرتا ۔ '' (سوالات ابی داو،د لاحمد : ٥٦٣)
امام ابنِ حبان رحمہ اللہ نے اسے ''الثقات'' میں ذکر کیا ہے ۔
یہ دونوں قول مرجوح ہیں ۔ امام ابنِ حبان ویسے ہی متساہل ہیں ۔ امام احمد بن حنبل رحمہ اللہ کا قول جمہور کے مقابلے میں مرجوح ہے ، جیسا کہ حافظ ذہبی رحمہ اللہ اور حافظ ابنِ حجر رحمہ اللہ کی جرح سے معلوم ہوا ہے ۔
جریر بن عبد الحمید کہتے ہیں کہ وہ میرے نزدیک ثقہ ہے ۔ (سنن الترمذی : ٥٩)
لیکن اس قول کی سند میں محمد بن حمید الرازی ''ضعیف'' ہے ، لہٰذا یہ قول ثابت نہیں ۔

3 اس کے تیسرے راوی رباح النوبی کے بارے میں حافظ ذہبی رحمہ اللہ لکھتے ہیں : لیّنہ بعضہم ، ولا یُدری من ہو ۔ '' اسے بعض محدثین نے ضعیف قرار دیا ہے ، نہ معلوم یہ کون ہے ؟ ''(میزان الاعتدال للذہبی : ٢/٣٨)

ابو طیبہ و علی رضی اللہ عنہما والی روایات :
رہی ابو طیبہ والی روایت ، تو حافظ ابن حجر رحمہ اللہ التلخیص میں فرماتے ہیں : لگتا ہے ، یہ قریشی غلام والی روایت ہی ہے ، جبکہ ابو طیبہ کا نام اس میں غلطی سے لیا گیا ہے ، بہر صورت ہر دوصورتوں میں یہ روایت ضعیف ہے ۔ دیکھیے : ( التلخیص الحبیر ج 1 ص 168 ط العلمیۃ )

حضرت علی رضی اللہ عنہ والی روایت کے متعلق بھی ابن الملقن اور ابن حجر رحمہما اللہ نے فرمایا کہ یہ روایت ہمیں نہیں مل سکی ( التلخیص الحبیر ج 1ص 170 ط العلمیۃ مع الحاشیۃ )

فقط واللہ تعالیٰ اعلم بالصواب

Share:

Ja Koi Aurat Kapde pehanti hai to use Bure Jinnat dekhte hai, yah Dua Padhne se Wah nange Jism ko nahi dekh Payega.

Kapde Badalte waqt kaun si Dua Padhe?
Jab Koi Shakhs Apni Kapde Badalta hai to use Jinnat Jarur dekhta hai, Insan use Nahi dekhta magar wah hame jarur dekhta hai khas kar Auraton ke Barhana Jism ko. Isliye Jab Auraten Kapde Badlati hai to unhe Yah Dua Jarur Padhni Chahiye , is Dua ke Padhne se Jinnat aur Us Shakhs ke bich ek Diwar khadi kar di jati hai.

آپ لباس تبدیل کرتے وقت انسانوں سے تو پردہ کرلیں گے لیکن جنات کی نظروں سے آپ نہیں چھپ سکتے ، جنات آپ کو برہنہ جسم دیکھتے ہیں ، ہمارے معاشرے میں اسی لیے اکثر لوگ جنات کی ایذارسانی کا شکار ہوتے ہیں کہ جب وہ لباس تبدیل کرتے ہیں تو بسم اللہ نہیں پڑھتے ، خصوصًا عورتوں کے برہنہ جسموں کو دیکھ کر شریر جنات ان پر سوار ہوجاتے ہیں ۔۔۔۔۔۔۔۔۔

پس کپڑے تبدیل کرتے وقت بسم اللہ ضرور پڑھیے ، یہ بسم اللہ آپ کے اور جنات کے درمیان ایک دیوار کھڑی کر دے گی ۔

پاک ہے وہ رب جس نے ہمیں ہر مخلوق کی ایذارسانیوں سے بچنے کے آسان طریقے بتائے ، اس کے باوجود ہم پوشیدہ مخلوق کے ہاتھوں ظلم سہتے ہیں تو یہ ہماری ہی لاپرواہیاں ہیں ، وہ رب تو ہمیں کہاں کہاں سے بچاتا ہے ہم اندازہ بھی نہیں کر سکتے اور ہمارا رب جتاتا بھی نہیں نا ہی ہمیں تنہا چھوڑتا ہے :

عن أنس بن مالك قال قال رسول الله صلى الله عليه و سلم ستر ما بين عورات بني آدم والجن إذا وضع أحدهم ثوبه أن يقول بسم الله
جنات کی آنکھوں اور انسان کی شرم گاہوں کے
درمیان حجاب کی صورت یہ ہےکہ آدمی جب اپنےکپڑے
بدلےتو بسم اللہ پڑھ لے
[ (المعجم الاوسط للطبراني :7066) صححه الالباني​ ]

Share:

Shikari Aur Musalmaan: Aaj Musalmano ka Haal isi Parinde (Bird) ke Jaisa hai?

Musalmano Ke Badtar halat ka Zimmedar kaun hai?

आज मुसलमानो का हाल  इसी परिंदे के जैसा है?


जॉर्ज बर्नाड शॉ” का भी कहना है- ‘‘अगर अगले सौ सालों में इंग्लैंड ही नहीं, बल्कि पूरे यूरोप पर किसी धर्म के शासन करने की संभावना है तो वह इस्लाम है।’’

शिक्षा (तालीम) के नाम पर मुसलमान लड़कियो को बे पर्दा करने का रिवाज बढ़ता जा रहा है।*

यूरोप के #लोकतंत्र जाल मे फंसा पाकिस्तान की मजबूरी।

#इस्लाम से पहले #मक्का मे किसकी #हुकूमत थी और किस #धर्म के मानने वाले थे?

Muslim world me Europe ka Cultural dron, मिस्र मे यूरोप का कल्चर वार

यूरोप का बिकनी जाल जिसके जरिये मुसलमान लड़कियो को फंसाया जा रहा है।

पुराने दौर की बात है। एक शिकारी चिड़िया को पकड़ कर मुनासिब दामो मे बाजार ले जाकर बेचता था।

एक दिन एक दीनदार शख्स का उस बाजार से गुजर हुआ तो उसने उन परिंदो को देखा जो पिंजरे मे कैद थे।
वो ईमानदार शख्स ने सोचा के इन परिंदो को पिंजरे मे रखना और किसी के हाथो बेचना बहुत बड़ा गुनाह है।

इसलिए उसने उन परिंदो को आज़ाद करने के बारे मे सोचा, मगर उसे ख्याल आया के अगर मै इन परिंदो को मूंह मांगी रकम मे खरीद कर आज़ाद कर देता हूँ तो फिर यह शिकारी इसी परिंदे को पकड़ लेगा और पिंजरे मे डाल देगा इस तरह से मेरी मेहनत पर पानी फेड जायेगा।

इसलिए वह सब परिंदो को घर ले गया और उन को  चंद अल्फ़ाज़ सिखाने शुरू कर दिये।

जैसे

हम बाग मे सैर करने नही जायेंगे, अगर गए भी तो शाख और टहनिया पर नही बैठेंगे, अगर बैठ भी गए तो शिकारी को आता देख उड़ जायेंगे, हम कभी शिकारी के झांसे मे नही आयेंगे, कभी दुसरो के फेंके हुए दाने को नही खायेंगे ....... वगैरह

काफी अरसे बाद वह सिखाये हुए बोली बोलने लगा, यह सुनकर नेक दिल आदमी बहुत खुश हुआ के चलो मैंने अपनी मेहनत मे कामयाब हुआ।
वह वही सबकुछ बोलता था जो उसने सिखाया था।

वह अब एक एक करके सारे परिंदे आज़ाद करने शुरू कर दिये। अगले दिन सुबह जब शिकारी बाग मे शिकार करने गया तो उसने देखा के उनमे से कुछ परिंदे इंसानो के जैसे बोल रहे थे। फिर शिकारी सोचने लगा के अब तक मै बगैर बोलने वाले परिंदे बेचता था, अगर इन बोलने वाले परिंदो का शिकार करू तो ज्यादा कीमत मिलेगी।
शिकारी उन परिंदो की तरफ देखा जो बाग मे बैठे गुनगुना रहे थे। मै बाग मे नही जाऊंगा, शाख पर नही बैठूंगा, शिकारी के आते ही उड़ जाऊंगा......

शिकारी ने अपना जाल फैलाया , दाना डाला और चंद लम्हो मे उन आज़ाद परिंदो को फिर पिंजरे मे बंद कर लिया।
अब वह मूंह मांगी कीमत पर बाजार मे बेच दिया।

जब उस नेक शिफत इंसान ने उन परिंदो को पिंजरे मे यह बोलते हुए देखा तो हैरत मे पड़ गया।

उन परिंदो को क्या मालूम था के..

यह बाग क्या होता है?
शिकारी किस बला का नाम है?
शाख और टहनी क्या किस चीज को बोलते है?
उड़ना क्या होता है, और शिकारी कौन है?

कुछ ऐसे ही हालत आज हम मुसलमानो की है। चंद रटे रटाये अल्फ़ाज़ याद कर लिए जो नमाज मे पढ़ लेते है, दुआओ मे गुनगुना लेते है और रमज़ान का महिना आने पर कुरान ए शरीफ पढ़ लेते है।
कहीं सफर पर जाने के लिए, खाना खाने पर पढ़ी जाने वाली दुवाये याद कर लिए हो गया।

हमने कभी कुरान ए करीम को समझा ही नही और नही समझने की कोशिश की।

मुसलमानो ने कभी कुरान का मफहुम् समझा ही नही के

अल्लाह ने हम सब से क्या मुतालाबात किया है?
किन कामो से रोका है और किसका हुक्म दिया है?
क्या जाएज़ है और क्या नाजाएज़ है?
तरक्की का असल मकसद क्या है?
ईमान और हया क्या है और इसकी अहमियत और फजीलत क्या है?
दोस्त कौन है और दुश्मन कौन है?
असल कामयाबी क्या है, आखि़रत की गिरवी रखकर दुनिया बनाना?

जब यह हाल होगा तो शिकारी (बातिल कुव्वतें) हमे देख कर खुश भी होंगे और अपनी सरकाशि, मकर व फरेब का जाल फेंक कर हमारा शिकार करेंगे।

Share:

Agar Masjid Ke Imam Taweez Gando se Logo ka ilaaj karte hai to Aeise Imam Ke Pichhe Namaz Jayez hogi?

Kya Koi Ahlehadees kisi Biddati ke Pichhe Namaj padh sakta hai?

Taweez se Jude Masail ke bare me Janane ke liye yaha Click Kare.
Kya Jinn aur Jadu se Bachne ke liye Taweez Pahan Sakte hai?
Koi Shakhs apne Ghar me Akela Salfi hai aur Pure Rishtedaar aur Ghar wale Biddati hai aur Masjid ke Imam Wahan ke Logo ka ilaaj Taweez gando se karte hai, agar kisi ka tabiyat kharaab hota hai to Imam ke Pas jate hai aur Imam Sahab Jhhar phoonk karke Taweez dete hai to kya Aeise Imam ke Pichhe Namaj Padhni Chahiye aur kya Namaz Jayez hogi?


"سلسلہ سوال و جواب نمبر-
سوال:کسی زانی، مشرک اور بدعتی امام کے پیچھے نماز پڑھنا کیسا ہے؟ کیا ہماری نماز ہو جائے گی؟

جواب..!
الحمد للہ:

اول:

اگر کسی کے محلے کی مسجد کا امام بدعتی ہو تو اس کی بدعت دو طرح کی ہو سکتی ہے:

کفریہ یا فاسقہ،

اگر اسکی بدعت کفریہ ہے  تو اسکے پیچھے نماز یا  جمعہ کچھ بھی ادا کرنا جائز نہیں ہے،

  اور اگر اسکی بدعت اسے دائرہ اسلام سے خارج نہیں کرتی، تو راجح یہی ہے کہ اس کے پیچھے نماز اور جمعہ پڑھنا  درست ہے،

عام طور پر اسی حکم  پر عمل کیا جاتا ہے، حتی کہ اہل سنت کا شعار بن چکا ہے، اور صحیح بات بھی یہی ہے، چنانچہ ایسے بدعتی کے پیچھے نماز ادا کرنے پر وہ دوبارہ نماز نہیں پڑھے گا، اس بارے میں اصول یہ ہے کہ: جس شخص کی  اپنی نماز درست ہے، اسکی امامت بھی درست ہے۔

اور اگر بدعتی امام کے علاوہ کسی اورمتبع ِسنت امام کے پیچھے نماز وغیرہ ادا کرنا ممکن ہو تو متبع امام کے پیچھے نماز ادا کرنا ضروری ہے، اور اگر مقتدی  علماء میں سے ہے  تو اسے صحیح العقیدہ امام کے پیچھے ہی نماز ادا کرنا چاہیے،  اسکا یہ عمل امر بالمعروف اور نہی عن المنکرکے تحت  ہے، لیکن  باجماعت نماز ترک کر کے گھر میں اکیلے نماز ادا کرنا اس کیلئے جائز نہیں ہے، تو جمعہ کے بارے میں حکم بالاولی  عدم ِجواز کا  ہوگا۔

شیخ الاسلام ابن تیمیہ رحمہ اللہ کہتے ہیں:

"اگر مقتدی کو علم ہو جائے کہ اسکا امام بدعتی ہے، اور اپنی بدعت کی دعوت بھی دیتا ہے، یا اعلانیہ فسق و فجور کے کام کرتا ہے، اور وہی مسجد کا مستقل امام  ہے،اور مسجد میں باجماعت نماز اسی کے پیچھے اد اکی جاتی ہے، یعنی وہ جمعہ، عیدین کا امام ہے، یا عرفہ میں بھی وہی امام ہے، تو مقتدی اس کے پیچھے نماز ادا کرے گا، یہ موقف تمام سلف صالحین، اور دیگر علمائے کرام کا ہے، یہی مذہب امام احمد رحمہ اللہ ، شافعی رحمہ اللہ  اور ابو حنیفہ رحمہ اللہ  وغیرہ کا ہے۔

اسی لئے علماءنے  عقائد کی کتب میں کہا ہے کہ: 
"جمعہ اور عید   نیک اور فاجر ہر طرح کے امام کے پیچھے اد کی جائےگی"

اور اگر علاقے میں ایک ہی امام ہے، تو مقتدی کو چاہیے کہ جماعت کے ساتھ اسی امام کے پیچھے نماز ادا کرے کیونکہ چاہے امام فاسق ہی کیوں نہ ہو پھر بھی نماز با جماعت اکیلے آدمی کی نماز سے بہتر ہے۔

یہی مذہب احمد بن حنبل، شافعی وغیرہ  جمہور علمائے کرام  کا ہے، بلکہ امام احمد کے موقف کے مطابق  ہر شخص پر [بدعتی امام کے علاوہ کوئی امام نہ ہونے کی صورت میں ]جماعت میں شامل ہونا واجب ہے، اور جس شخص نے فاسق و فاجر امام کے پیچھے جمعہ ، اور نمازیں ادا  نہ کیں تو وہ امام احمد وغیرہ کے ہاں بدعتی ہے، جیسے کہ رسالہ  "عبدوس" میں  ابن مالک اور عطار نے ذکر کیا ہے۔

چنانچہ صحیح بات یہی ہے کہ : بدعت [غیر مکفّرہ] میں ملوّث امام کے پیچھے نماز پڑھے گا، اور دوبارہ نہیں لوٹائے گا؛
کیونکہ صحابہ کرام فاسق و فاجر حکمرانوں کے پیچھے جمعہ اور نمازیں پڑھا کرتے تھے، اور انہیں دوبارہ بھی نہیں پڑھتے تھے،

جیسے عبد اللہ بن عمر رضی اللہ عنہما نے حجاج بن یوسف کے پیچھے ،

ابن مسعود رضی اللہ عنہ نےولید بن عقبہ کے پیچھے نماز پڑھی حالانکہ وہ  شرابی تھا،

بلکہ ایک بار ولید نے لوگوں کوصبح کی چار رکعتیں  پڑھا دیں ، اور پھر کہنے لگا: "اور زیادہ پڑھاؤں؟"
تو ابن مسعود رضی اللہ عنہ نے فرمایا: ہم تو تمہارے ساتھ زیادہ ہی پڑھتے آئے ہیں" پھر لوگوں نے عثمان رضی اللہ عنہ سے اسکی شکایت کی۔

صحیح بخاری میں ہے کہ : جب  باغیوں نے ان کو گھیر رکھا تھا۔ تو عبیداللہ بن عدی بن خیار نے ان سے کہا کہ آپ ہی عام مسلمانوں کے امام ہیں مگر آپ پر جو مصیبت ہے وہ آپ کو معلوم ہے۔ ان حالات میں باغیوں کا مقررہ امام نماز پڑھا رہا ہے۔ ہم ڈرتے ہیں کہ اس کے پیچھے نماز پڑھ کر گنہگار نہ ہو جائیں۔ عثمان رضی اللہ عنہ نے جواب دیا نماز تو جو لوگ کام کرتے ہیں ان کاموں میں سب سے بہترین کام ہے۔ تو وہ جب اچھا کام کریں تم بھی اس کے ساتھ مل کر اچھا کام کرو اور جب وہ برا کام کریں تو تم ان کی برائی سے الگ رہو
(صحیح البخاری حدیث نمبر-695)

امام بخاریؒ اس حدیث پر اپنی صحیح میں باب قائم کرتے ہیں کہ بَاب إِمَامَةِ الْمَفْتُونِ وَالْمُبْتَدِعِ’’
(مفتون وبدعتی کی امامت کا بیان)

اور اس باب کے تحت فرماتے ہیں:
وَقَالَ الْحَسَنُ: صَلِّ وَعَلَيْهِ بِدْعَتُه
’ (اور بدعتی کے متعلق امام حسن بصری
" فرماتے ہیں: کہ تم اس کے پیچھے نماز پڑھ لو اس کی بدعت کا وبال اسی پر ہے،

سلف سے اس قسم کے بہت سے واقعات ملتےہیں۔

فاسق اور بدعتی کی نماز ذاتی طور پر درست ہے، چنانچہ اگر مقتدی نے فاسق یا بدعتی کے پیچھے نماز پڑی تو اس کی نماز باطل نہیں ہوگی، لیکن ایسے امام کے پیچھے نماز پڑھنا مکروہ ہے، کیونکہ امر بالمعروف و نہی عن المنکر واجب ہے۔

وہ شخص جو اعلانیہ بدعات کا ارتکا ب کرتا ہے اسے مسلمانوں کا مستقل  امام مقرر نہیں کیا جانا چاہیے ، ( اگر بالفرض امام بن جائے)تو اسے توبہ کرنے تک تعزیری سزا دی جائے ، اسی طرح اگر اس کے توبہ کرنے تک قطع تعلقی ممکن ہو تو یہ اچھا ہے،  اور اگر کچھ لوگوں کا اسکے پیچھے نماز پڑھنا  ترک کرنے سےیہ بات اس کے دل پر گراں گزرے، اور توبہ کی طرف مائل کرے، یا ایسے  امام کو معزول کر دینے ، یا   لوگوں کا اس قسم کے گناہوں کی وجہ سے خود ہی  اسکے پیچھے نماز نہ پڑھنے تو ان تمام  صورتوں میں مصلحت کے تحت ایسے امام کے پیچھے نماز نہ پڑھنا بہتر ہے،بشرطیکہ مقتدی  جمعہ اور فرض نماز کسی اور امام کے پیچھے ادا  کرتے رہیں ۔

لیکن اگر اس کے پیچھے نماز ترک کرنے سے کہیں اور جمعہ نہیں مل سکتا، یا جماعت نہیں مل سکتی تو  یہ طرز عمل  بدعت شمار ہو گا ، اور صحابہ کرام کے طریقے کے خلاف   ہے"
" الفتاوى الكبرى " ( 2 / 307 ، 308 )

دوم:

مندرجہ بالا تفصیل سے یہ معلوم ہو گیا کہ جو شخص خطیب کی طرف سے بدعات کی ترغیب سنتا ہے ، جیسے کہ آپ نے اپنے سوال میں ان بدعات کی طرف اشارہ کیا ہے، یا امام ضعیف و موضوع روایات بیان کرتا ہے تو ایسے شخص کو مسجد نہیں چھوڑنی چاہیے، یا خطبہ جمعہ سے اٹھ نہیں جانا چاہیے، اِلّا کہ  کوئی معروف بڑا  عالمِ دین ہو، اور خطبہ کے دوران اس امید سے اٹھے کہ کسی اور کے  پیچھے نماز جمعہ ادا کریگا، یا خطبہ چھوڑ کر جانے والے شخص کی طرف سے پہلے بھی خطیب کو نصیحت کی جا چکی ہو، اور اسے حق بات بیان کر دی گئی ہو تو  وہ چھوڑ سکتا ہے۔

لیکن اگر  اس نے پہلے خطیب کو نصیحت نہیں کی، یا وہ کسی دوسری مسجد میں جمعہ ادا نہیں کر سکے گا، تو  ظاہر ہے کہ خطبہ کے دوران مسجد سے باہر جانا اس کیلئے درست نہیں ہے، صرف ایسے امام کے خطبہ کے دوران اٹھ کر جا سکتا ہے جس کے پیچھے نماز  ہو ہی نہیں سکتی، مثلاً: امام کفریہ نظریات کا حامل  ہو۔

خطبہ جمعہ کے دوران اگر کوئی خطیب گمراہی والی بات کرے، یا بدعت  ثابت کرنے کی کوشش کرے، یا شرکیہ افعال کرنے کی ترغیب دلائے، تو خطیب کو دورانِ خطبہ روکا جا سکتا ہے، لیکن یاد رہے کہ اسکی کچھ شرائط ہیں مثلا  : درمیان میں روکنے کی وجہ سے لوگوں میں فتنہ کھڑا نہ ہو،  جمعہ ضائع ہونے کا اندیشہ نہ ہو، اگر اندیشہ ہو تو خطبہ ختم ہونے کے بعد خطیب کو سمجھائے اور لوگوں کو حقیقت سے آگاہ کرے۔

یہ بات بھی قابلِ ذکر ہے کہ جو شخص خطیب کی بات کا رد کرنا چاہے تو  نرم زبان و لہجہ استعمال کرے، تا کہ رد کرنے کا اصل مقصد حاصل ہو سکے۔

دائمی کمیٹی کے علمائے کرام سے پوچھا گیا:

اس خطیب کے بارے میں اسلام کا کیا حکم ہے جو  دورانِ خطبہ  باتیں کرے، یا سارا خطبہ اسرائیلی روایات اور ضعیف احادیث بیان کرے تاکہ لوگ خوش ہوں؟

تو انہوں نے جواب دیا: 
" جب آپ کو یقینی طور پر معلوم ہو جائے کہ وہ خطبہ میں بے بنیاد اسرائیلیات ذکر کرتا ہے ، یا ضعیف احادیث بیان کرتا ہے تو اسے نصیحت کرو کہ وہ ان کے بدلے صحیح احادیث  اور قرآنی آیات بیان کرے، اور کسی چیز کی نبی صلى الله علیہ وسلم کی طرف حتمی نسبت اسی وقت کرے جب  اسے اس کے صحیح ثابت ہونے کا یقین ہو جائے، نبی صلى الله علیہ وسلم كا فرمان ہے كہ: (دین نصیحت ہے)يہ حديث مسلم نے اپنی صحيح میں روایت کی ہے ، چنانچہ نصیحت کرتے ہوئے اچھا انداز اپنایا جائے، سختی نہ کی جائے،

شیخ عبد العزيز بن باز ، شیخ  عبد الرزاق عفیفی، شیخ  عبد الله بن غديان

" فتاوى اللجنة الدائمة " ( 8 / 229 ، 230 )

خلاصہ یہ ہوا کہ :
اگر آپ کسی ایسی مسجد میں جا سکتے ہیں جہاں بدعات پر عمل نہیں ہوتا ، اور نہ ہی خطیب غلط بات کی دعوت دیتا ہے، تو اچھا ہے آپ وہیں پر جائیں، اور اگر ایسا ممکن نہیں ہے یا آپ کے قریب کوئی اور مسجد ہی نہیں ہے،
تو پھر آپ کے لئے جمعہ اور باجماعت نماز آپکے ذکر کردہ مسائلِ کی وجہ سے چھوڑنا جائز نہیں ہے، آپ خطیب کو دعوت دینے کیلئے پوری کوشش کریں، اور بھرپور انداز میں نرمی سے پیش،اور لوگوں کو دعوت دینے کیلئے اچھا اسلوب اختیار کریں۔

واللہ اعلم

مآخذ الاسلام سوال وجواب

الفرقان اسلامک میسج سروس
                                +923036501765

Share:

Translate

youtube

Recent Posts

Labels

Blog Archive

Please share these articles for Sadqa E Jaria
Jazak Allah Shukran

Most Readable

POPULAR POSTS