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B. S. E. B. 10th Urdu Darakhshan Questions Answers Chapter 30.

B S E B 10th urdu Darakhashan Sawal o Jawab Chapter 30.

Bihar Matrice Darakshan Urdu Sawal o Jawab.

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          پروین شاکر 30

  گئے موسم میں جو کھلتے تھے گلابوں کی طرح (۱)
   دل پے اتریں گے وہی خواب عذابوں کی طرح

بارش ہوئی تو پھولوں کے تن چاک ہو گئے (۲) 

مختصر ترین سوالات

(1) پروین شاکر کی پیدائش کب ہوئی؟
جواب - 24 نومبر 1952 میں

(2) پروین شاکر کی پیدائش کہاں پر ہوئی؟
جواب - کراچی پاکستان میں

(3) پروین شاکر کے اسلاف کا وطن کہاں ہے؟
جواب - ہندوستان کے لہریا سرائے دربھنگه ( بہار )

(4) پروین شاکر کے والد کا نام کیا ہے؟
جواب - سیّد ثاقب حسین

(5) پروین شاکر کے والد ہجرت کرکے کہاں گئے؟
جواب - پاکستان

(6) پروین شاکر کی ابتدائی تعلیم کہاں ہوئی؟
جواب - گھر پر

(7) پروین شاکر نے میٹرک کا امتحان کس اسکول سے پاس کیا؟
جواب - رضیہ گرلز ہائی اسکول

(8) بی اے کی ڈگری پروین شاکر نے کس کالج سے لی؟
جواب - سر سیّد گرلس کالج

(9) پروین شاکر کی شادی کس سے ہوئی؟
جواب - اُن کے خالہ زاد بھائی ڈاکٹر نصیر علی

(10) پروین شاکر کی وفات کب ہوئی؟
جواب - 26 دسمبر 1994 کو اسلام آباد کے نزدیک ایک سڑک حادثے میں۔

(11) پروین شاکر کے والد کیا تھے؟
جواب - شاعر

(12) اُن کے والد کا تخلص کیا تھا؟
جواب - شاکر

(13) پروین شاکر کے مجموعے کا نام لکھیے۔
جواب - 1977 میں " خوشبو"
            1981 میں  " صدبرگ "
            1984 میں " خودکلامی "
            1990 میں " انکار "
             " ماہِ تمام "
             " کف آئینہ "

مختصر سوالات

(1) پروین شاکر کی سوانح پر پانچ جملے لکھیے۔
جواب - پروین شاکر 24 نومبر 1952 کو کراچی ( پاکستان ) میں پیدا ہوئے۔ اُن کے اسلاف کا وطن ہندوستان ہے۔ ابتدائی تعلیم گھر پر ہوئی۔ اُن کی شادی اپنے خالہ زاد بھائی ڈاکٹر نصیر علی سے ہوئی تھی۔ اُن کی وفات 26 دسمبر 1994 کو اسلام آباد کے نزدیک سڑک حادثے میں ہوئی۔

(2) اپنی یاد سے پروین شاکر کا کوئی ایک شعر لکھیے۔
جواب - ہجر کی شب میری تنہائی پہ دستک دے گی
  تیری خوشبو ، میرے کھوئے ہوئے خوابوں کی طرح

(3) پروین شاکر کی ازدواجی زندگی مختصر بیان کیجئے۔
جواب - پروین شاکر کی شادی اپنے خالہ زاد بھائی ڈاکٹر نصیر علی سے ہوئی۔ لیکن یہ رشتہ زیادہ دن تک چل نہیں سکا اور جلد ہی ٹوٹ گیا۔ دراصل میں دونوں کے مزاج میں کافی فرق تھا۔ یہ المیہ ذہنی عدم توازن کی وجہ سے ہی پیدا ہوا۔ ایک لڑکا بھی پیدا ہوا جس کا نام سیّد مراد علی رکھا گیا۔ بہرحال 1989 میں طلاق کے کر خاوند سے الگ ہو گئی۔

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Aashiyana-E-Haqeeqat

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Ham Indians 26 January kyu manate hai?

Ham Indians 26 January kyu manate hai?

Why we celebrate Republic day?


#26 January #Republic day,

गणतंत्र दिवस एक राष्ट्रीय त्योहार है।

भारतीय 15 अगस्त को आज़ादी का दिन के तौर पर क्यो मानते है? 

गणतंत्र दिवस जिसे अंग्रेजी में रिपब्लिक डे कहते है।
गणतंत्र दिवस भारत में 26 जनवरी को मनाया जाता है।

हिंदुस्तान में पहले मुगलों की हुकूमत थी लेकिन अंग्रेजो ने 1757 में मुगल सल्तनत के आखिरी ताजदार बहादुर शाह जफर को बेदखल कर गिरफ्तार कर लिया और रंगून भेज दिया।

अंग्रेज यहां व्यापार करने के लिए कंपनी बैठाए जिसे ईस्ट इण्डिया कम्पनी के नाम से जाना जाता है , मगर यह कंपनी हकीकत में यहां हुकूमत करने के लिए आई थी।

कंपनी यहां अब व्यापारिक एकाधिकार से राजनीतिक एकाधिकार प्राप्त कर ली थी, लाखो हिन्दुस्तानियों को कैद कर लिया गया और उससे जबरन नील की खेती करवाई जाने लगी।

हिंदुस्तानी राजाओं के आपसी लड़ाई झगड़े का फायदा उठाकर अंग्रेजो ने उन राजाओं को और लड़ाना शुरू कर दिया।

इस तरह अंग्रेजो ने भारत पर 190 साल तक राज किया।

इसी गुलामी को खतम करने के लिए अनेकों महापुरुषों ने आंदोलन चलाए, अनशन पर बैठे और अपनी जानो की कुर्बानियां दी तब जाकर हमे यह आजादी मिली।

इसलिए यह दिन शहीदों को खिराज ए तहसीन पेश करने का दिन है। जिन्होंने अपनी जिंदगी की , कुर्बानी की और जान की बाजी लगाई।

हिंदुस्तान की तारीख में 26 जनवरी का दिन एक तारीखी दिन है।

इसी दिन अंग्रेजो से 190 साल की गुलामी से आजादी मिलने पर हमारा अपना संविधान बनकर तैयार हुआ, यानी हम कानूनी तौर पर स्वाधीन हुए।

जब हमें 15 अगस्त 1947 को आजादी मिली तो उसके बाद देश कैसे चलाया जाए यह सवाल उठ खड़ा हुआ?

जिसके बाद एक कानूनी मसौदा तैयार किया गया जिसके लिए सविधान सभा का गठन किया गया जिसका अध्यक्ष बाबा साहब भीम राव अम्बेडकर को बनाया गया।

नए अविधान बन जाने तक देश का शासन 1935 के भारत सरकार अधिनियम के द्वारा होता था।

15 अगस्त 1947 को हिंदुस्तान आजाद हुआ । सविधान सभा ने अपना काम जारी रखा और उसने फरवरी 1948 में नए सविधान का मसविदा तैयार किया। विधानसभा ने 26 नवंबर 1949 के दिन सविधान को अंतिम रूप दे दिया।

फिर जब यह सविधान बनकर तैयार हो गया तब 26 जनवरी 1950 के दिन लागू कर दिया गया।

इसलिए 26 जनवरी के दिन  को पूरे भारत में गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाता है

हमारा सविधान तैयार होने में पूरे 2 साल 11 महीने और 18 दिन लगे।

इसी सविधान ने भारत को एक लोकतंत्र और समाजवादी राष्ट्र करार दिया।

भारतीय सविधान में सारे धर्मो के लोगो को, सभी जातियों के लोगो के बराबर बताया गया और इसे सेक्युलर यानी धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र कहा।

भारतीय सविधान दुनिया का सबसे विस्तृत सविधान है, जिसमे भारतीय को 6 मौलिक अधिकार हासिल है।

इस तरह भारत में 26 जनवरी का दिन एक अत्यंत महत्वपूर्ण दिन है जिसे राष्ट्रीय पर्व के रूप में मनाया जाता है।

आजादी के लिए जान्निशारो ने मुल्क की खातिर अपनी जान तक दे दी, आजादी का नारा शहर शहर , गांव गांव और कस्बा कस्बा में बुलंद होने लगा।

रामप्रसाद बिस्मिल ने देश के लोगो को संबोधित करते हुए कहा।

सर परोशी की तम्मन्ना  अब हमारे दिल में है
देखना है जोर कितना बाजुएं कातिल में है

हिंदुस्तान की आजादी में इन महापुरुषों का महत्वपूर्ण योगदान है जिसे कभी भुलाया नही जा सकता है।

महात्मा गांधी, सुभाष चन्द्र बोस, सरदार भगत सिंह इत्यादि महापुरुषों और स्वतंत्रता सेनानियो के अथक प्रयासों से हमे आजादी मिली जिसके बाद हम स्वाधीन हुए।

सविधान तैयार होने के बाद पंडित जवाहरलाल नेहरु पहले प्रधान मंत्री बने , सरदार वल्लभ भाई पटेल गृह मंत्री और मौलाना अबुल कलाम आजाद शिक्षा मंत्री बनाए गए। लेकिन महात्मा गांधी ने किसी सरकारी पद को स्वीकार नहीं किया और वह आज  इस देश के राष्ट्रपिता की हैसियत से जाने जाते है।

हमारा देश आजाद है। 26 जनवरी के दिन हर राज्य और देश के सभी कार्यालयों में तिरंगा फहराया जाता है और स्वतंत्रता सेनानियो को याद किया जाता।
खास तौर पर देश के सभी शिक्षण संस्थानों में गणतंत्र दिवस का जश्न बड़े शौक से मनाया जाता है।

इस दिन कई जगहों पर अमर शहीदों, महापुरुषों और स्वतंत्रता सेनानियो की याद में राष्ट्रीय समारोह का आयोजन किया जाता है।

26 जनवरी के दिन हर सरकारी और गैरसरकारी कार्यालयों में छुट्टी होती है।

गणतंत्र दिवस के मौके पर देश के राष्ट्रपति लाल किले पर तिरंगा फहराते है और स्वतंत्रता सेनानियो को नमन करते है।

सेना की परेड होती, इस मौके पर कई विदेशी मेहमान भी मौजूद होते है।

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B. S. E. B. 10th Urdu Darakhshan Questions Answers Chapter 29.

B S E B 10th urdu Darakhashan Sawal o Jawab Chapter 29۔

Bihar Matrice urdu Darakhshan Questions Answers chapter 29.

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BSEB 10th Urdu Darakhshan Chapter 26

BSEB 10th Urdu Darakhshan Chapter 18

     حسن نعیم  29

قلب و جاں میں حسن کی گہرائیاں رہ جائیں گی (۱)

فسانہ غم کا کوئی غم گسار ہو تو کہیں۔ (۲)

مختصر ترین سوالات

(1) حسن نعیم کی پیدائش کہاں ہوئی؟
جواب - 6 جنوری 1924 کو پٹنہ میں

(2) حسن نعیم کا انتقال کب اور کہاں ہوا؟
جواب - 22 فروری 1991 کو ممبئی میں

(3) حسن نعیم کس ملازمت سے مستعفی ہوئے؟
جواب - وزارتِ خارجہ ( Foreign Minister )

(4) حسن نعیم کس ادارہ میں ڈائریکٹر کے عہدے پر مامور تھے؟
جواب - غالب انسٹیٹیوٹ دہلی

(5) حسن نعیم کا اصل نام کیا تھا؟
جواب - سیّد حسن

(6) حسن نعیم کس خاندان کے فرد تھے؟
جواب - ذی وقار

(7) حسن نعیم کی حوصلا افزائی کن بزرگ شعرا نے کی؟
جواب - بسمل عظیم آبادی
           جمیل مظہری
        .    معین احسن خزبی

(8) حسن نعیم کن شعرا  سے خاص طور پر متاثر ہوئے؟
جواب - مومن اور غالب

مختصر سوالات

(1) حسن نعیم کی غزل گوئی کی خصوصیات مختصر بیان کیجئے۔
جواب -  حسن نعیم کے غزلوں سے پتہ چلتا ہے کے وہ مومن اور غالب سے بھی متاثر ہوئے تھے۔ لیکن وہ تقلید پسند نہیں تھے۔ اس لیے اُنہونے اپنی راہ سب سے الگ نکالی۔ وہ نئی غزل کے ایسے  شاعر تھے جو جدیدیت کی رسم سے واقف تھے۔

ایک برطانوی خاتون اور آسٹریلین ٹیچر نے اسلام قبول کیوں کیا؟

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Aashiyana-E-Haqeeqat

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Hasan Bin Sabah aur Uski Banayi hui Dunyawi Jannat ka Tarikhi Dastan. Part 06 (ii)

Hasan Bin Saba aur Uski Banayi hui Duniyawi Jannat ka Tarikhi Dastan. Part 6 ii

Husn Bin Sba Aur uski Duniyawi Jannat.
Aurat hi Mard ki Sabse Bari Kamjori hai.
Egypt ke Shahar kahira ka Buniyad kisne dala tha?
Abu Tahir aur Abidullah Jaise Jhoote Nabiyon ka kya Hashr hua?

Kis Tarah Hajar-E-Aswad ko Abu Tahir ne Uthwa kar Apne yaha mangwaya liya aur Lakho Musalmanon ka Qatal kiya tha?


Hasan Bin Saba aur Uski Banayi hui Duniyawi Jannat ka Tarikhi Dastan. Part 6 ii
Hasan bin Sabah


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حسن بن صباح اور اسکی مصنوعی جنت
۔
قسط نمبر 6 حصہ 2
عبیدیت ایسا ہی ایک فتنہ تھا جو تیسری صدی ہجری میں اٹھا، یہ اسماعیلیوں کی ایک شاخ تھی لیکن اصل میں یہ فرقہ باطنی تھا، اور اس کے بانی پیشواؤں میں بھی ابلیسی اوصاف پائے جاتے تھے، اللہ تبارک و تعالی نے قرآن میں فرمایا ہے۔

*ہَلۡ اُنَبِّئُکُمۡ عَلٰی مَنۡ تَنَزَّلُ الشَّیٰطِیۡنُ ﴿۲۲۱﴾ؕ تَنَزَّلُ عَلٰی کُلِّ  اَفَّاکٍ  اَثِیۡمٍ ﴿۲۲۲﴾ۙ یُّلۡقُوۡنَ السَّمۡعَ وَ اَکۡثَرُہُمۡ کٰذِبُوۡنَ ﴿۲۲۳﴾ؕ*

"کیا میں تمہیں بتادوں کہ کس پر اترتے ہیں شیطان، اترتے ہیں بڑے بہتان والے گناہگار پر (مثل مسلیمہ وغیرہ کاہنوں کے) شیطان اپنی سنی ہوئی (جو انہوں نے ملائکہ سے سنی ہوتی ہے ) ان پر ڈالتے ہیں اور ان میں اکثر جھوٹے ہیں (کیونکہ وہ فرشتوں سے سنی ہوئی باتوں میں اپنی طرف سے بہت جھوٹ ملا دیتے ہیں ۔ حدیث شریف میں ہے کہ ایک بات سنتے ہیں تو سو جھوٹ اس کے ساتھ ملاتے ہیں اور یہ بھی اس وقت تک تھا جب تک کہ وہ آسمان پر پہنچنے سے روکے نہ گئے تھے ۔)"
عبیدی فرقہ کا بانی عبیداللہ تھا جس کے متعلق پورے یقین کے ساتھ نہیں کہا جاسکتا کہ وہ کہاں کا رہنے والا تھا، بعض مورخوں نے لکھا ہے کہ وہ کوفہ کا رہنے والا تھا اور کچھ نے لکھا ہے کہ وہ حمص کے علاقے کے ایک گاؤں مسلمیہ کا رہنے والا تھا ،اس کے باپ کا نام محمد حبیب تھا اور وہ اپنے قبیلے کا سرکردہ فرد تھا۔
محمد حبیب کو ایک خواہش پریشان رکھتی تھی، وہ عمر کے آخری حصے میں پہنچ چکا تھا ،اس کا بیٹا عبید اللہ جوان ہو گیا تھا اور وہ دیکھ رہا تھا کہ عبیداللہ میں ایسے ابلیسی اوصاف پائے جاتے ہیں کہ وہ لوگوں کو اپنا گرویدہ بنانے کے لیے ہر ڈھنگ کھیل سکتا ہے، اس کی خواہش یہ تھی کہ تھوڑے سے علاقے میں اس کی اپنی سلطنت قائم ہو جائے۔

محمد حبیب نے اعلان کر دیا کہ اس کا بیٹا مہدی آخر الزماں ہے، یہ بڑی لمبی داستان ہے کہ عبید اللہ اور اسکے باپ نے کیسے کیسے ڈھنگ کھیل کر اور کیسی کیسی فریب کاریوں سے اپنے پیروکار بنا لیے اور ان کی تعداد بڑھتی چلی گئی۔
عبیداللہ نے 270 میں مہدویت کا اعلان کیا تھا، اور اس نے اپنے فرقے کو فرقہ مہدویہ کا نام دیا تھا، اس نے 278 ہجری میں حج کیا اور وہاں اپنے مہدی موعود ہونے کا پروپیگنڈہ ایسے انداز سے کیا کہ بنو کنانہ کے پورے قبیلے نے اسے امام مہدی تسلیم کر لیا۔
محمد حبیب نے اپنے بیٹے کو مہدی تسلیم کرانے کے لئے قبیلوں کے سرداروں کو بڑی خوبصورت لڑکیوں اور سونے چاندی کے انعامات کے ذریعے بھی پھانسا تھا، جب اس فرقے کے پیروکاروں کی تعداد زیادہ ہو گئی تو مہدیوں نے خفیہ اور پراسرار قتل کا سلسلہ شروع کردیا، قتل اہلسنت کے علماء کو کیا جاتا تھا اور پتہ ہی نہیں چلتا تھا کہ قاتل کون ہے؟ چونکہ اس فرقے کی مخالفت اہلسنت کی طرف سے ہوتی تھی اس لئے وہی قتل ہوتے تھے ،جہاں کہیں سے بھی مخالفانہ آواز اٹھتی تھی وہاں کے چیدہ چیدہ آدمی ہمیشہ کے لئے لاپتہ ہو جاتے تھے۔
تاریخ الخلفاء میں لکھا ہے کہ ایک روز ایک سرکردہ فرد ابن طباءالباعلوی  عبیداللہ سے ملنے گیا، عبیداللہ دربار لگائے بیٹھا تھا وہاں کچھ امراء بھی تھے اور عام حاضرین کی تعداد خاصی تھی۔
اے عبیداللہ !۔۔۔۔علوی نے کہا ۔۔۔میں تجھے مہدی آخر الزماں تسلیم کرلونگا پہلے تو یہ بتا کہ تیرا حسب ونسب کیا ہے، اور کونسا قبیلہ تیری پہچان ہے؟
عبیداللہ نے اپنی نصف تلوار نیام سے کھینچی اور بولا ۔۔۔یہ ہے میرا نصب۔۔۔۔ پھر وہ ایک تھیلی میں ہاتھ ڈال کر سونے کی بہت سی اشرفیاں نکال کر دربار کے حاضرین کی طرف پھینک کر بولا۔۔۔ اور یہ ہے میرا حسب۔
درباری اشرفیوں پر ٹوٹ پڑے ابن طباءالباعلوی وہاں سے چپ چاپ باہر نکل گیا۔
یہ تھی عبید اللہ کی کامیابی کی اصل وجہ، اس کے علاوہ اس نے اس قسم کے عقیدے رائج کر دیے کہ ایک آدمی بیک وقت اٹھارہ عورتوں کے ساتھ شادی کر سکتا ہے، جبکہ اسلام نے صرف چار بیویوں کی اجازت دی تھی اور وہ بھی مخصوص حالت میں، اس کا دوسرا عقیدہ یہ تھا کہ حکومت کا جو سربراہ ہو ،اور مذہب کا جو امام ہو وہ گناہوں سے پاک ہوتا ہے، اور اس سے اس کے اعمال پر کوئی باز پرس نہیں کی جا سکتی، ایک عقیدہ یہ بھی تھا کہ امام کسی عورت سے یہ کہہ دے کہ تم فلاں کی بیوی ہو تو اس عورت پر یہ فرض ہو جاتا تھا کہ وہ اس کی بیوی بن جائے۔
اس قسم کے عقائد سے یہ ظاہر ہوتا ہے کہ عبید اللہ نے لوگوں کو اپنا گرویدہ بنانے کے لئے ان کے دل پسند عقائد تخلیق کیے تھے۔
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جیسا کہ پہلے کہا جا چکا ہے کہ عبیداللہ کے عروج و زوال کی داستان بہت لمبی ہے، اسے اختصار سے پیش کیا جا رہا ہے تاکہ جو اصل داستان ہے اس کی طرف پوری توجہ دی جا سکے۔
عبیداللہ کے باپ محمد حبیب نے سوچا کہ اپنی سلطنت قائم کرنے کے لیے کوئی ایسا آدمی چاہیے جو ذہنی طور پر بہت ہی ہوشیار ہو اور فریب کاریوں میں خصوصی مہارت رکھتا ہو۔
اسے عبیداللہ کے پیروکار میں سے ایک شخص بہت ہی ذہین ہوشیار اور چالاک نظر آیا اس کا نام ابو عبداللہ تھا، محمد حبیب نے اسے اپنے ساتھ رکھ لیا اور اسے اپنے ڈھنگ کی ٹریننگ دینے لگا، پھر اسے بتایا کہ اس کا اصل مقصد کیا ہے۔
ابو عبداللہ اپنے ایک بھائی ابو عباس کو بھی ساتھ لے آیا اور انہوں نے ایک منصوبہ تیار کر لیا۔
عبیداللہ نے باقاعدہ فوج تیار کردی، ابو عبداللہ حج پر گیا اور وہاں ایسی اداکاری کی کہ لوگوں نے اسے بہت بڑا عالم سمجھ لیا، وہاں سے اسے بہت زیادہ حمایت ملی۔
سلطنت قائم کرنے کے لئے ان لوگوں نے سوچا کہ شمالی افریقہ بڑی اچھی جگہ ہے، وہ بربروں کا علاقہ تھا بربر ضعیف الاعتقاد تھے اور جنگجو بھی تھے، مختصر یہ کہ ابو عبداللہ اور ابو عباس شمالی افریقہ گیا اور وہاں لوگوں کو سبز باغ دکھا دکھا کر ایک فوج بنالی، یہ سب لوگ مال غنیمت کے لالچ میں ان بھائیوں کے ساتھ ہو گئے، بہرحال انہوں نے وہاں ایک اپنی سلطنت قائم کر لی۔
عبیداللہ بھی وہاں چلا گیا یہ شخص مکمل طور پر ابلیس بن چکا تھا ، اس نے ابو عبداللہ اور ابو عباس کی کوششوں سے بنی ہوئی سلطنت پر قبضہ کرلیا اور وہاں باقاعدہ حاکم بن گیا۔ دونوں بھائی اس کے خلاف ہو گئے، ابوعباس نے تو صاف کہنا شروع کر دیا کہ عبید اللہ مہدی نہیں ہے، وہاں کے ایک شخص نے جو شیخ المشائخ تھا عبیداللہ سے کہا کہ وہ اگر مہدی ہے تو کوئی معجزہ دکھائے، عبیداللہ نے تلوار نکالی اور اس عالم دین کی گردن کاٹ دی۔
ابو عبداللہ اور ابو عباس نے یہ اسکیم بنائی کے عبید اللہ کو قتل کر دیا جائے، اس محفل میں جس میں یہ اسکیم بنی تھی عبیداللہ کے جاسوس بھی موجود تھے، یہ فیصلہ ایک بڑے ہی طاقتور ابو زاکی کہ گھر میں ہوا تھا۔
عبیداللہ نے ابو زاکی کو طرابلس کا گورنر بنا کر بھیج دیا ،اور اس کے ساتھ ہی وہاں اپنے آدمی درپردہ بھیجے، انہیں یہ کام سونپا کہ طرابلس میں ابوزاکی کو اس کے کمرے میں جب وہ سویا ہوا ہو قتل کر دیا جائے۔
عبید اللہ کے حکم کی تعمیل ہوئی ابوزاکی گورنر تھا وہ سوچ ہی نہیں سکتا تھا کہ جس عبیداللہ نے اسے یہ رتبہ دیا ہے وہ اسے قتل بھی کرا دے گا، وہ سکون اور اطمینان سے سو گیا پھر کبھی بھی نہ جاگا ،اس کے محافظ دستے میں سے ایک آدمی اس کے کمرے میں گیا اور اس کا سر اس کے جسم الگ کر دیا اور پھر اس کا سر عبید اللہ کے پاس بھیج دیا، اس کے بعد عبیداللہ نے اسی طرح ابو عبداللہ اور ابو عباس کو بھی قتل کروا دیا۔
انہیں بھائیوں نے یہ سلطنت قائم کی تھی۔
عبیداللہ نے اپنی بیعت کے لئے ہر طرف مبلغ پھیلا دئیے لیکن بہت کم لوگوں نے اس کی طرف دھیان دیا، بلکہ مخالفت شروع ہو گئی۔ عبیداللہ نے قتل و غارت کا طریقہ اختیار کر لیا، اہل سنت کے علماء کو سب سے پہلے قتل کیا گیا، پھر جہاں کہیں اشارہ ملتا کہ یہ گھر اہلسنت کا ہے اس گھر کے تمام افراد کو قتل کر دیا جاتا ان کا مال و اسباب عبیداللہ کے پیروکاروں میں تقسیم کردیا جاتا ،وہ دراصل اسماعیلیت کی تبلیغ کر رہا تھا جو شخص اس کے زیادہ سے زیادہ مرید بناتا تھا اسے وہ جاگیر عطا کرتا ،اور بعض کو اس نے زرو جواہرات سے مالامال کردیا۔
عبیداللہ نے طاقت جمع کرکے مصر پر حملہ کیا ایک ہی معرکے میں سات ہزار عبیدی مارے گئے، لیکن عبیداللہ نے ہمت نہ ہاری ایک بار اس کے لشکر میں کوئی ایسی وبا پھوٹ پڑی کے انسان اور گھوڑے مرنے لگے، عبیداللہ نے کچھ عرصے کے لئے مصر کی فتح کا ارادہ ترک کر دیا ،آخر 356 ہجری میں اس نے مصر فتح کر لیا ،مصر کے سب سے بڑے شہر قاہرہ کی بنیاد اسی نے رکھی تھی، عبیداللہ تو مر گیا اس کا خاندان  567 ہجری تک مصر پر حکومت کرتا رہا ،حسن بن صباح کے دور میں عبیدی ہی مصر پر حکومت کر رہے تھے، تاریخوں میں لکھا ہے کہ تاتاریوں نے بغداد میں مسلمانوں کا اتنا قتل عام نہیں کیا تھا جتنا عبیداللہ نے اہلسنت کا کیا۔
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یہاں ضروری معلوم ہوتا ہے کہ فرقہ پرستی کے ایک اور فتنے کا ذکر کر دیا جائے، اس فرقے کا نام قرامطی تھا ،اور اس کا بانی ابو طاہر سلیمان قرامطی تھا، اس کا باپ ابوسعید جنابی 301 ہجری میں اپنے ایک خادم کے ہاتھوں قتل ہو گیا تھا ،ابو طاہر قرامطی بھائیوں میں چھوٹا تھا ،اس میں حسن بن صباح والے اوصاف موجود تھے، اس نے اپنے بڑے بھائی سعید پر ایسے ظلم و ستم کئے کہ اسے ذہنی اور جسمانی لحاظ سے مفلوج کردیا اور خود باپ کا جانشین بن گیا۔
اس خاندان کی اپنی ایک سلطنت تھی جس میں طائف، بحرین، اور ہجر جیسے اہم مقامات شامل تھے، ابو طاہر نے نبوت کا اعلان کر دیا، اس شخص کے متعلق بھی مورخوں نے لکھا ہے کہ یہ اسلام اور اہلسنت کے لئے تاتاریوں اور عبیداللہ سے بھی زیادہ خطرناک قاتل ثابت ہوا۔ دس سال تک ابوطاہر اپنی نبوت کی تبلیغ کرتا رہا اور فوج بھی تیار کرتا رہا، اس کا ارادہ بصرہ کو فتح کرنے کا تھا، آخر ایک رات اس نے ایک ہزار سات سو آدمی اپنے ساتھ لئے اور بصرہ پر حملہ کر دیا، وہ اپنے ساتھ بڑی لمبی لمبی سیڑھیاں لے گیا تھا۔
یہ سیڑھیاں شہر پناہ کے ساتھ لگا کر حملہ آور اوپر گئے اور شہر میں داخل ہو گئے، حملہ غیر متوقع اور اچانک تھا ابو طاہر کے آدمیوں نے شہر کی سوئی ہوئی مختصر سی فوج کو قتل کرنا شروع کردیا، لوگ باہر کو بھاگنے لگے ابو طاہر کے حکم سے شہر کے دروازے کھول دیے گئے اور لوگ کھلے دروازوں کی طرف بھاگے، ہر دروازے کے ساتھ قرامطی کھڑے تھے انہوں نے لوگوں کا قتل عام شروع کر دیا، عورتوں اور بچوں کو پکڑ کر الگ ساتھ لے گئے، تمام گھروں اور سرکاری خزانے میں لوٹ مار کی اور اس طرح بصرہ شہر کو تباہ و برباد کر کے اور اس کی گلیوں میں خون کے دریا بہا کر قرامطی اپنے مرکزی شہر ہجر کو چلے گئے۔
اسی سال ابو طاہر نے حاجیوں کے قافلوں کو لوٹنے کا سلسلہ شروع کردیا ، قرامطی صرف لوٹ مار نہیں کرتے تھے بلکہ وہ قتل عام بھی کرتے تھے، انہوں نے حج سے واپس آنے والے حاجیوں کو لوٹ کر قتل کیا ،اس طرح ہزارہا حاجی شہید ہو گئے۔
خلیفہ وقت نے قرامطیوں کی سرکوبی کے لیے لشکر بھیجے، قرامطی اتنے طاقتور ہو چکے تھے کہ انہوں نے ہر جگہ خلیفہ کے لشکر کو شکست دی اور شہروں میں داخل ہو کر شہریوں کا قتل عام کیا ،خلیفہ اپنے لشکر کو کمک بھیجتا رہا لیکن ابو طاہر کا لشکر اتنا تیز اور ہوشیار تھا کہ وہ خلیفہ کے لشکر کے ہاتھ نہیں آتا تھا، قرامطیوں میں سرفروشی اور جاں نثاری اس وجہ سے تھی کہ ابو طاہر تمام مال غنیمت ان کے حوالے کر دیتا تھا اور شہروں سے جتنی جوان عورتیں پکڑی جاتی تھیں وہ بھی انہی کو دے دیتا تھا، لشکر کو شراب پینے کی کھلی اجازت تھی، حادثہ یہ کہ قرامطی اپنے آپ کو اہل اسلام کہتے تھے اور ابو طاہر نبی بنا ہوا تھا۔
مسلمانوں یعنی اہلسنت کی کمزوری یہ تھی کہ خلافت خلفائے راشدین جیسی مخلص اور دیندار نہیں تھی، خلافت اقتدار کی کرسی یا شہنشاہیت کا تخت بن گئی تھی، خلافت کے لشکر میں خلفاء راشدین کے دور والا جذبہ اور اللہ کی راہ میں شوق شہادت نہیں رہا تھا ،ایک وہ وقت تھا کہ مجاہدین کے چالیس ہزار کے لشکر نے آتش پرستوں کے ایک لاکھ 20ہزار کے طاقتور لشکر کو ہر میدان میں شکست دے کر سلطنت فارس کو ختم کر دیا تھا، مگر اب خلیفہ کے دس ہزار فوجی ایک ہزار قرامطیوں پر غالب آنے سے معذور تھے۔
ابلیسی طاقتیں اسلام کا قلعہ قمع کرنے کے لئے تیز و تند طوفان کی طرح اٹھ آئی تھیں۔
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یہاں بھی ابلیس کا رقص دیکھئے۔
ابو طاہر نے شہر ہجر کو اپنا دارالحکومت بنایا اور وہاں ایک عالی شان مسجد تعمیر کروائی، اس کا نام دارالہجرت رکھا گیا ،جب مسجد مکمل ہوگئی تو ابو طاہر قرامطی اسے دیکھنے کے لئے اندر آیا۔
میرے قرامطیوں!،،،،، اس نے ممبر پر کھڑے ہو کر اعلان کیا۔۔۔ اصل اسلام کے علمبردار تم ہو ،وہ مسلمان نہیں جو قرامطی نہیں، اور جو مجھے نبی نہیں مانتا۔
خدا نے مجھے حکم دیا ہے کہ اب حج مکہ میں نہیں یہاں ہجر میں ہوا کرے گا، اس کے لیے ضروری ہے کہ حجر اسود کو مکہ سے اٹھا کر یہاں اس مسجد میں رکھا جائے۔
ہم تیرے شیدائی ہیں۔۔۔ ایک آدمی نے اٹھ کر کہا۔۔۔ ہمیں یہ بتا کہ وہ پتھر جسے ہم حجراسود کہتے ہیں یہاں کس طرح لایا جائے گا؟،،، اہلسنت ہمیں یہ پتھر اٹھانے کی ہمت نہیں کرنے دیں گے، پھر ہم کیا کریں گے؟
کیا تمہاری تلواریں کُند ہو گئی ہیں؟۔۔۔ ابو طاہر نے کہا۔۔۔ ہم نے کہاں کہاں اہلسنت کا خون نہیں بہایا، کیا تم خانہ کعبہ میں ان منکروں کا خون بہانے سے گریز کرو گے، ہم اس سال حج کے موقع پر مکہ جائیں گے اور خانہ کعبہ کی وہ حاجت پوری کر دیں گے کہ اہلسنت آئندہ مکہ کی طرف دیکھیں گے بھی نہیں۔
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319 ہجری میں ابو طاہر قرامطی نے مکہ معظمہ کا رخ کیا، حاجی وہاں پہنچ چکے تھے بلکہ وہ بیت اللہ کے طواف میں مصروف تھے، بعض نماز پڑھ رہے تھے، ابو طاھر سب سے پہلے گھوڑے پر سوار تلوار ہاتھ میں لئے مسجد حرام میں داخل ہوا، اس نے شراب منگوائی اور گھوڑے پر بیٹھے بیٹھے شراب پی ۔
مورخ لکھتے ہیں کہ جب ابو طاہر گھوڑے پر بیٹھا شراب پی رہا تھا اس کے گھوڑے نے مسجد میں پیشاب کر دیا۔
دیکھا تم سب نے۔۔۔ ابو طاہر نےقہقہہ لگا کر بڑی بلند آواز سے کہا ۔۔۔ میرا گھوڑا بھی مجھے اور میرے عقیدے کو سمجھتا ہے۔
مسجد حرام میں کچھ مسلمان موجود تھے انہوں نے شور شرابہ کیا ،ادھر سے حجاج دوڑے آئے وہ سب نہتے تھے اور سب نے احرام باندھ رکھے تھے، ابو طاہر کے اشارے پر قرامطیوں نے ان کا قتل عام شروع کر دیا، وہاں سے ابو طاہر خانہ کعبہ میں گیا اور وہاں بھی حجاج کا قتل عام شروع کر دیا، ابو طاہر کے حکم سے خانہ کعبہ کا دروازہ اکھاڑ دیا گیا۔
میں خدا ہوں۔۔۔ ابو طاہر نے جو گھوڑے پر سوار تھا متکبرانہ اعلان کیا۔۔۔ اور خدا میری ذات میں ہے، تمام خلقت پر میری بندگی فرض ہے ،،،،،،پھر اس نے کہا ۔۔۔۔ائے گدھوں!،،،، تمہارا قرآن کہتا ہے کہ جو شخص بیت اللہ میں داخل ہو جائے اسے امن مل جاتا ہے، کہاں ہے وہ امن؟،،، میں نے جسے چاہا زندہ رہنے دیا اور جسے چاہا اسے خون میں نہلا دیا ۔
ایک حاجی آگے بڑھا اور اس نے ابو طاہر کے گھوڑے کی لگام پکڑ لی۔
اے منکر دین !،،،،اس شخص نے ابوطاہر سے کہا ۔۔۔تو نے قرآن کی یہ آیت غلط پڑھی ہے، اس کا مطلب یہ ہے کہ جو شخص بیت اللہ میں داخل ہو جائے اسے امن دو اور اس پر ہاتھ نہ اٹھاؤ۔
اس شخص کے عقب سے ایک تلوار حرکت میں آئی اور اس کا سر کٹ کر دور جا پڑا۔
ابو محلب امیر مکہ تھا اسکے پاس اتنی فوج نہیں تھی کہ وہ قرامطیوں کا مقابلہ کرتا، وہ اپنی چند ایک آدمیوں کو لے کر ابو طاہر کے پاس گیا، یہ سب لوگ تلواروں سے مسلح تھے، ابو محلب نے ابو طاہر سے کہا کہ وہ اپنے آپ کو نبی کہتا ہے اور مسلمان بھی، لیکن وہ خدا کے اس گھر کی اس طرح بے حرمتی کر رہا ہے۔
حجاج کے قتل سے ہاتھ کھینچ لے ابوطاہر! ۔۔۔۔ابو مہلب نے کہا ۔۔۔اللہ کے عذاب سے ڈر کہیں ایسا نہ ہو کہ تجھے اسی دنیا میں اسکی سزا مل جائے۔
اس شخص کو عذاب الہی دکھا دو ۔۔۔ابو طاہر نے بلند آواز سے کہا۔۔۔ بہت سے قرامطی ابو محلب اور اس کے آدمیوں پر ٹوٹ پڑے، ابو محلب اور اس کے آدمیوں نے جو سب کے سب تلواروں سے مسلح تھے جم کر مقابلہ کیا لیکن وہ اتنے تھوڑے تھے کہ اتنی زیادہ آدمیوں کے ہاتھوں شہید ہو گئے۔
کعبہ معلّٰی کے اوپر میزاب نصب تھا جو سونے سے مرصع تھا، ابو طاہر نے حکم دیا کے اوپر چڑھ کر میزاب اتار کر اس کے گھوڑے کے قدموں میں رکھا جائے۔
ایک قرامطی کعبة اللہ پر چڑھا، تاریخ میں ایک شخص محمد بن ربیع بن سلیمان کا نام آیا ہے وہ دور کھڑا دیکھ رہا تھا ،اس نے بعد میں مسلمانوں کو بتایا کہ جب قرامطی کعبہ معلیٰ پر چڑھا تو محمد بن ربیع نے ہاتھ پھیلا کر آسمان کی طرف دیکھا اور کہا ۔۔۔یا اللہ تیری بردباری کی کوئی حد نہیں، کیا تیری ذات باری اس شخص کو بھی بخش دے گی؟
محمد بن ربیع نے لوگوں کو بتایا کہ وہ قرامطی جو کعبہ معلٰی پر چڑھ گیا تھا نہ جانے کیسے اوپر سے سر کے بل گرا اور گرتے ہی مر گیا ،محمد بن ربیع کا ہی بیان ہے کہ ابو طاہر نے بڑے غصے میں ایک اور قرامطی کو کعبہ پر چڑھنے کا حکم دیا، یہ آدمی اوپر پہنچنے والا ہی تھا کہ اس کا ہاتھ چھوٹ گیا اور وہ بھی سر کے بل گر پڑا اور مر گیا۔
ابو طاہر اور زیادہ غصے میں آگیا اس نے ایک اور قرامطی کو حکم دیا کہ وہ اوپر جائے۔ تقریباً تمام مؤرخوں نے لکھا ہے کہ یہ تیسرا شخص ایسا خوف زدہ ہوا کہ اوپر چڑھنے کی بجائے ایک ہی جگہ کھڑا تھر تھر کانپنے لگا اور اچانک باہر کی طرف بھاگ گیا۔
ابو طاہر پر کچھ ایسا اثر ہوا کہ اس پر خاموشی طاری ہو گئی ،کچھ دیر کعبہ معلٰی کو دیکھتا رہا ،صاف پتا چلتا تھا کہ اس کے خیالوں میں کچھ تبدیلی آئی ہے، لیکن ابلیس کا غلبہ اتنا شدید تھا کہ وہ اچانک آگ بگولہ ہو گیا، اس نے حکم دیا کہ غلاف کعبہ کو کھینچ کر اس کے چھوٹے چھوٹے ٹکڑے کر دیئے جائیں،
قرامطی غلاف کعبہ پر ٹوٹ پڑے اور تلواروں سے غلاف کعبہ کو کاٹ کاٹ کر اس کے ٹکڑے سارے لشکر میں تقسیم کردیئے۔
ابو طاہر نے بیت اللہ کا سارا خزانہ اپنے قبضے میں لے لیا ۔
جو حجاج قتل عام سے بچ گئے تھے انہوں نے بغیر امام کے حج کا فریضہ ادا کیا۔
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ابوطاہر حجر اسود کو اپنے دارالحکومت ہجر لے جانا چاہتا تھا ۔
رات کا وقت تھا بچے کھچے حجاج ابھی وہیں تھے، کسی ذریعے سے انہیں پتہ چل گیا کہ ابوطاہر حجر اسود اپنے ساتھ لے جانا چاہتا ہے۔
حجاج کے جذبہ کو دیکھئے انہوں نے رات ہی رات اتنے وزنی پتھر کو وہاں سے اٹھایا اور مکہ کی گھاٹیوں میں لے جا کر چھپا دیا، یہ کوئی معمولی کارنامہ نہ تھا ایک تو پتھر بہت وزنی تھا اور دوسرا جان کا خطرہ بھی تھا، وہاں ہر طرف قرامطی موجود تھے، وہ دیکھ لیتے تو ان تمام حجاج کے جسموں کے ٹکڑے اڑا دیتے، ان کی آنکھوں میں دھول جھونک کر پتھر اٹھا لے جانا اور غائب کر دینا ایک معجزہ تھا۔
صبح طلوع ہوئی ابو طاہر پھر خانہ کعبہ میں آن دھمکا اور حکم دیا کہ حجر اسود اٹھا لو۔
پتھر وہاں نہیں ہے ۔۔۔کسی قرامطی نے پتھر کی جگہ خالی دیکھ کر ابو طاہر سے کہا۔
وہ بہت وزنی پتھر تھا ۔۔۔ابو طاہر نے کہا۔۔ مجھے مت بتاؤ کہ کوئی انسان اسے اٹھا کر لے گیا۔
اس کے کانوں سے پھر یہی آواز ٹکرائی کے پتھر وہاں نہیں ہے ،تب اس نے خود جا کر دیکھا اور یہ دیکھ کر حیران رہ گیا کہ پتھر وہاں نہیں ہے، اس نے قہر و غضب سے حکم دیا کے پتھر کو تلاش کیا جائے، حجاج وہاں سے جانے کی تیاریاں کر رہے تھے اور کچھ جا بھی چکے تھے، قرامطیوں نے چند ایک حجاج سے پوچھا کہ پتھر کہاں ہے جس کسی نے لاعلمی کا اظہار کیا اسے قتل کر دیا گیا۔
تلاش کرتے کرتے پتھر مل گیا ،ابو طاہر نے اسی وقت پتھر ایک اونٹ پر لدوایا اور ہجر کی طرف روانگی کا حکم دی دیا ۔
یہ واقعہ بروز دو شنبہ ذوالحجہ 317 ہجری کا ہے ۔
ابو طاہر نے چشمہ زمزم کی جگہ کو بھی مسمار کروا دیا، بعض مورخ لکھتے ہیں کہ وہ چھ دن مکہ معظمہ میں رہا اور بعض نے گیارہ دن لکھے ہیں۔
یہ وہ دور تھا جب مصر میں عبیداللہ کا طوطی بول رہا تھا اور وہ مہدی موعود بنا ہوا تھا ،وہ اس کے عروج کا زمانہ تھا، عجیب بات ہے کہ ابو طاہر قرامطی بھی اس کے اس دعوے کو تسلیم کرتا تھا کہ وہ مہدی آخرالزّماں ہے۔ ہو سکتا ہے وہ عبید اللہ کی طاقت سے ڈرتا ہو اور اسے خوش رکھنے کا یہی ایک طریقہ ہو سکتا تھا کہ وہ اسے مہدی آخرالزّماں مان لے۔
ابو طاہر نے حجر اسود کو مکہ سے لاکر اپنی بنائی ہوئی مسجد دار الہجرۃ کے غربی جانب رکھا ،اور عبید اللہ کے نام ایک پیغام لکھوا کر بھیجا ،اس میں اس نے عبید اللہ کو لکھوایا کہ میں نے حکم دیا ہے کہ خطبے میں آپ کا نام لیا جائے، میں نے اپنی سلطنت میں آپ کے نام کا خطبہ جاری کر دیا ہے۔
اس نے اس پیغام میں عبیداللہ کی عقیدت کا اظہار بڑے جذباتی انداز میں کیا اور پھر لکھا کہ اس نے مکہ میں کس طرح تباہی مچائی ہے، اور خانہ کعبہ کے اندر اور مکہ کی گلیوں میں اہل سنت کے خون کی ندیاں بہا دی ہیں، اس نے اس پیغام میں اہلسنت کو اہل فساد اور اہل ذلت لکھا۔
اسے توقع تھی کہ عبیداللہ اس کے اس پیغام سے بہت خوش ہوگا ،لیکن اس کا قاصد پیغام کا جواب لے کر آیا تو ابو طاہر حیران رہ گیا۔ عبیداللہ نے لکھا کہ تم یہ چاہتے ہو کہ میں تمہاری ان بد اعمالیوں پر تمہیں خراج تحسین پیش کروں، تو نے خانے کعبہ کی توہین کی اور اتنی مقدس جگہ میں مسلمانوں کا خون بہایا، نہ جانے کہاں کہاں سے جو حجاج آئے تھے انہیں قتل کیا، اور پھر حجر اسود کو اکھاڑ کر لے گیا، تو نے یہ بھی نہ سوچا کہ حجراسود اللہ کی کتنی بڑی امانت ہے جسے ایک جگہ سنبھال کر رکھا گیا تھا، جماعت عبیدیہ تجھ پر کفر اور الحاد کا فتویٰ عائد کرتی ہے، ہم تمھیں کوئی انعام نہیں دے سکتے۔
ابو طاہر نے یہ پیغام پڑھا تو آگ بگولہ ہو گیا اور اس نے اعلان کر دیا کہ کوئی قرامطی عبیداللہ کو مہدی آخرالزماں نہ مانے۔

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پورے دس سال---- 317 ہجری سے 327 ہجری تک---- فریضہ حج ادا نہ کیا جا سکا۔ کوئی بھی حج کعبہ کو نہ گیا ،اس کی ایک وجہ تو یہ تھی کہ حج کو جانے والے قرامطیوں سے ڈرتے تھے اور دوسری یہ کہ وہاں اب حجراسود نہیں تھا ،ایک شخص ابو علی عمر بن یحییٰ علوی ابو طاہر کا گہرا دوست تھا ایک روز وہ ابو طاہر کے پاس گیا۔
غور کرو ابوطاہر!،،،، ابو علی عمر نے کہا ۔۔۔دس سالوں سے حج بند ہے، اس کی وجہ تم خوب جانتے ہو، صرف تمہارے ظلم و تشدد کی وجہ سے مسلمان فریضہ حج ادا نہیں کر سکتے، اس کے نتیجے میں لوگ تمہاری عقیدت سے منحرف ہوتے چلے جا رہے ہیں، میں نے سوچا ہے کہ حج کرنے والوں کو امن کا یقین دلاؤ اور ان پر محصول مقرر کر دو، پانچ دینار فی اونٹ محصول وصول کرو۔
ابو طاہر کو یہ تجویز اچھی لگی اس سے ایک تو اس کی ساکھ بحال ہوتی تھی، اور دوسرے اسے بے شمار رقم محصول کے ذریعے حاصل ہو رہی تھی ،اس نے ہر طرف قاصد دوڑا دیے کہ وہ اعلان کرتے جائیں کہ آئندہ حج پر کوئی مداخلت نہیں ہوگی، اور حجاج کو امن کی ضمانت دی جاتی ہے، اس نے محصول کا اعلان بھی کروایا۔
ابن خلدون نے لکھا ہے کہ خلیفہ کے حاجب محمد بن یعقوب نے بھی ابو طاہر کو لکھا تھا کہ حجاج پر ظلم و تشدد چھوڑ دو، اور حجراسود واپس کر دو ،اس نے یہ فیصلہ کیا کہ جو علاقہ اس وقت تمہارے قبضے میں ہے وہ تمہارا ہی رہے گا اور اس سلسلے میں تمہیں خلافت اپنا دشمن نہیں سمجھے گی۔
ابو طاہر نے اس کے جواب میں یہ یقین دہانی کرا دی کہ آئندہ قرامطی فریضہ حج کی ادائیگی میں کسی قسم کی مداخلت نہیں کریں گے، لیکن ابو طاہر نے حجر اسود واپس دینے سے انکار کر دیا ،ابو طاہر نے جو محصول نافذ کیا تھا یہ دراصل آج کے دور کا جگہ ٹیکس تھا، خلافت اتنی کمزور تھی کہ وہ ابو طاہر کا ہاتھ روکنے سے قاصر تھی۔
ابو طاہر کو توقع تھی کہ لوگ حجر اسود کی خاطر ہجر آئیں گے اور پھر آہستہ آہستہ حج ہجر میں ہی ہوا کرے گا ،لیکن کوئی بھی اہل سنت ان دس سالوں میں وہاں نہ گیا ، خلیفہ مقتدر باللہ نے ابو طاہر کو پچاس ہزار درہم پیش کئے کہ اس رقم کے عوض حجر اسود واپس کر دے، لیکن ابو طاہر نے صاف انکار کر دیا۔
اس کے بعد خلیفہ مطیع باللہ کچھ عرصے بعد مسند خلافت پر آیا تو اس نے تیس ہزار دینار ابو طاہر کو پیش کئے کہ وہ حجر اسود واپس کر دے، ابو طاہر نے یہ سودا قبول کرلیا ،صرف ایک مؤرخ نے لکھا ہے کہ ابو طاہر نے حجر اسود اللہ کے نام پر واپس کیا تھا اور لیا کچھ بھی نہیں تھا، یہ تحریر اس وجہ سے مشکوک لگتی ہے کہ یہ بیان ایسے شخص کا ہے جو اسماعیلی تھا۔
10محرم 339 ہجری ابو طاہر کا ایک آدمی جس کا نام شبیر بن حسین قرامطی تھا حجراسود لے کر مکہ مکرمہ پہنچا دن شنبہ تھا، اسی روز حجر اسود کو اپنی جگہ پر رکھ دیا گیا جہاں سے اسے اکھاڑا گیا تھا ،خلیفہ نے اس کے اردگرد چاندی کا حلقہ چڑھوا دیا اس چاندی کا وزن 14 سیر تھا ،حجر اسود چار روز کم 22 سال ابو طاہر قرامطی کے قبضے میں رہا۔
اللہ کی قدرت ملاحظہ فرمائیں۔

جب حجر اسود مکہ سے ہجر لے جایا گیا تھا تو اس کے وزن کے نیچے چالیس اونٹ اس سفر کے دوران مر گئے تھے، وہ اس طرح کہ پہلے یہ پتھر ایک اونٹ پر لادا گیا وزن خاصا زیادہ تھا جو یہ اونٹ کچھ فاصلے تک ہی برداشت کر سکا آخر یہ اونٹ بیٹھ گیا اور پھر ایک پہلو پر لیٹ گیا اور مر گیا ،پھر یہ دوسرے اونٹ پر لادا گیا یہ اونٹ بھی کچھ فاصلے طے کرکے گرا اور مر گیا ،اسی طرح چالیس اونٹ اس پتھر تلے مرے اور پتھر ہجر تک پہنچا، لیکن یہی پتھر جب ہجر سے مکہ کو واپس لایا گیا تو صرف ایک اونٹ وہاں سے مکہ تک لے آیا، پتھر کا وزن اتنا ہی تھا اور اسے لانے والا اونٹ کوئی غیر معمولی طور پر طاقتور نہ تھا، یہ خدا کا ہی معجزہ تھا اور اس سے اندازہ ہوتا ہے کہ اللہ کی نظر میں اس پتھر کی اہمیت اور تقدس کتنی زیادہ ہے۔
اللہ نے ابو طاہر کو بڑی لمبی رسی دی تھی، حجر اسود کی واپسی کے بعد یہ رسی ختم ہو گئی، حجر اسود مکہ معظمہ پہنچا اور ادھر ابو طاہر چیچک کے مرض میں مبتلا ہو گیا ،مورخ لکھتے ہیں کہ وہ اس مرض میں بہت دن زندہ رہا لیکن اس کی حالت جو کوئی بھی دیکھتا تھا وہ کانوں کو ہاتھ لگاتا اور وہاں سے بھاگتا، بعض عقل والے قرامطی اس کی یہ حالت دیکھ کر تائب ہوگئے اور اہلسنت کے عقیدے میں واپس آگئے۔
ابوطاہر چیختا اور چلاتا تھا ،اور ایک روز اس کی چیخیں اور اس کا تڑپنا بند ہو گیا ،اور وہ اپنے پیچھے اپنے گھر میں اپنے گلے سڑے جسم کی بدبو چھوڑ کر اس دنیا سے رخصت ہو گیا۔
آج بھی کہیں کہیں قرامطی پائے جاتے ہیں۔ کسی وقت انہوں نے ملتان کو اپنا مرکز بنالیا تھا ،سلطان محمود غزنوی نے جب اپنے ایک حملے کے دوران ملتان پر چڑھائی کی تھی تو اسے پتہ چلا تھا کہ یہاں اکثریت قرامطیوں کی ہے، محمود غزنوی خود ایک سپاہی کی طرح لڑا تھا ،محمود غزنوی کے عتاب کا یہ عالم تھا کہ سارا دن تلوار چلاتا رہا اور اس کی تلوار کے دستے پر اتنا خون جم گیا تھا کہ اس کا دایاں ہاتھ بڑی مشکل سے تلوار کے دستے سے اکھاڑا گیا تھا ،ملتان کی گلیوں میں بارش کے پانی کی طرح خون بہنا شروع ہو گیا تھا۔ محمود غزنوی نے قرامطیوں کا خاتمہ کر دیا تھا، اور قرامطیوں نے اہلسنت کا جو خون بہایا تھا اس کا انتقام لے لیا تھا، اس کے بعد کم از کم ملتان میں قرامطی پھر کبھی نہ اٹھ سکے۔

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حسن بن صباح قلعہ شاہ در میں احمد بن عطاش کے پاس بیٹھا تھا ،احمد بن عطاش جس طرح اس قلعے کا والی بنا تھا وہ پہلے بیان کیا جاچکا ہے، وہ حسن بن صباح کو بتا چکا تھا کہ اس نے اس قلعے پر کس طرح قبضہ کیا ہے۔

لیکن حسن!،،،،، ابن عطاش نے کہا۔۔۔ لوگ کہتے ہونگے کہ احمد بہت بڑا فریب کار تھا جو قلعے کا والی بن گیا ہے، میں کہتا ہوں کہ جو طاقت تم میں ہے وہ مجھ میں نہیں ہے، تم ان چند ایک لوگوں میں سے  ہو جنہیں خدا ایک خاص طاقت دے کر دنیا میں بھیجتا ہے، میں نے تمہیں عبید اللہ کی بات سنائی ہے، اس کے پاس کچھ بھی نہیں تھا صرف اس کا باپ تھا جس نے اس کی پشت پناہی کی تھی، دیکھ لو وہ مصر کا حکمران بنا اور آج بھی مصر عبیدیوں کے قبضے میں ہے، ابو طاہر قرامطی بیوقوف آدمی تھا وہ اپنی عقل کی حدود سے آگے نکل گیا تھا۔
استاد محترم !،،،،حسن بن صباح نے کہا ۔۔۔یہ تو میں جانتا ہوں کہ مجھ میں کوئی مافوق الفطرت طاقت ہے، لیکن مجھے ایسی رہنمائی کی ضرورت ہے جس سے میں جان سکوں کہ یہ طاقت کیا ہے ،اور اسے کس طرح استعمال کروں ؟
وہ طاقت تم اپنے ساتھ لے آئے ہو ۔۔۔احمد ابن عطاش نے کہا۔
وہ تو میں جانتا ہوں ۔۔۔حسن بن صباح نے کہا۔۔۔ وہ میرے اندر موجود ہے۔
نہیں حسن !،،،،احمد بن عطاش نے کہا ۔۔۔میں تمہارے اندر کی طاقت کی بات نہیں کر رہا، میں اس لڑکی کی بات کر رہا ہوں جو تمہارے ساتھ آئی ہے، کیا نام ہے اس کا؟،،،،، فرح،،،، کیا تم نے محسوس نہیں کیا کہ تم اس لڑکی کے بغیر ایک قدم بھی نہیں چل سکتے؟
ہاں استاد محترم !،،،،حسن بن صباح نے کہا۔۔۔ میں اس لڑکی کے بغیر نہیں رہ سکتا ۔
کہتے ہیں عورت مرد کی بہت بڑی کمزوری ہے۔۔۔ احمد بن عطاش نے کہا۔۔۔وہ غلط نہیں کہتے، حسین عورت بہت بڑی طاقت ہے، دلکش عورت ایک نشہ ہے، عورت کی دلربائی نے پتھر دل بادشاہوں کے تختے الٹے ہیں، تم اس طاقت کو استعمال کرو گے۔
میں نے تمہیں سجاح بن حارث اور مسلیمہ کی کہانی سنائی ہے، سجاح نے اتنا بڑا لشکر کس طرح اکٹھا کر لیا تھا، اس نے کئ قبیلوں کے سرداروں کو کس طرح اپنا پیروکار بنا لیا تھا، صرف اس لیے کہ وہ حسین عورت تھی وہ نشہ بن کر آدمی پر طاری ہو جاتی تھی۔
لیکن استاد محترم !،،،،حسن بن صباح نے مسکرا کر کہا ۔۔۔وہ تو ایک مرد سے مار کھا گئی تھی۔
نہیں حسن !،،،احمد بن عطاش نے کہا ۔۔۔مسلیمہ نے اسے تین روز اپنے خیمے میں رکھ کر اسے بیوی بنائے رکھا تھا، یہ اس کی بہت بڑی کمزوری تھی، اور اگر غور کرو تو اس کے بعد ہی مسلیمہ کا زوال شروع ہوا تھا۔ میں تمہیں طریقہ بتاؤں گا کہ جو طاقت تم اپنے ساتھ لائے ہو اس سے تمہیں خود کس طرح بچنا ہے، اور اسے کس طرح استعمال کرنا ہے ۔
کیا آپ مجھے علم سحر بھی سکھائیں گے؟،،،، حسن بن صباح نے پوچھا۔
ہاں !،،،،احمد بن عطاش نے جواب دیا۔۔۔ وہ تو میں نے تمہیں سکھانا ہی ہے، لیکن یہ خیال رکھو حسن !،،،سحر کے علاوہ کچھ پراسرار علوم اور بھی ہیں، اگر تم ان میں سے کسی ایک علم کے بھی ماہر ہو جاؤ تو معجزے کر کے دکھا سکتے ہو، لیکن بھروسہ اسی طاقت پر کرنا ہے جو تمہاری اپنی ہے، اپنی روحانی قوتوں کو بیدار کرو، تو پھر تم دیکھوگے کہ معجزے کس طرح ہوتے ہیں، لیکن ہمیں کسی اور قوت کی ضرورت ہے۔
احمد بن عطاش نے اس کے ساتھ تقریباً وہی باتیں کیں جو اس سے پہلے ابن عطاش اور پھر ایک اور درویش اس کے ساتھ کر چکے تھے۔ احمد ابن عطاش نے اسے ایک بات یہ بتائی کہ اس علاقے میں جو چھوٹے بڑے قلعے ہیں ان پر قبضہ کرنا ہے۔
میں نے تمہیں کچھ تربیت دینی ہے۔۔۔ احمد بن عطاش نے کہا۔۔۔ اور تمہیں تیار کرنا ہے کہ کسی طرح سلجوقیوں کی حکومت میں داخل ہو جاؤ ،وہاں تمہیں کوئی عہدہ مل جائے پھر وہاں تم نے حاکموں کے حلقے میں اپنے ہم خیال پیدا کرنے ہیں، اور پھر سلجوقیوں کی جڑیں کاٹنی ہے۔

اسی رات سے احمد بن عطاش نے حسن بن صباح اور فرح کو تربیت دینی شروع کر دی اور انہیں اس طرح کے سبق دینے لگا کہ اپنے ہم خیال کس طرح پیدا کرنے ہیں، اس نے دیکھا کہ فرح کچھ جھینپی ہوئی سی تھی۔

دیکھ لڑکی !،،،،احمد بن عطاش نے فرح سے کہا ۔۔۔ہم نے تجھے ہر کسی مرد کا کھلونا نہیں بنانا، ذرا سوچ پودے کے ساتھ ایک پھول ہے اسے نہ جانے کتنے لوگ سونگھتے ہیں، لیکن پھول کی خوشبو اور تازگی ختم نہیں ہوتی، ہم نے تجھے ایسا ہی پھول بنانا ہے لیکن ہم تجھے ایسا پھول نہیں بننے دیں گے جسے شاخ سے توڑ لیا جاتا ہے، شاخ سے ٹوٹا ہوا پھول مرجھا جاتا ہے یا پتی پتی ہو کر مسلا جاتا ہے، میں تجھے یہ طریقہ بتاؤں گا کہ تو کس طرح شاخ کے ساتھ رہے گی اور تیری خوشبو اور تازگی ہمیشہ زندہ رہے گی۔
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جاری ہے بقیہ قسط۔7۔میں پڑھیں
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B. S. E. B. 10th Urdu Darakhshan Questions Answers Chapter 28.

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                 احمد فراز 28

دولتِ درد کو دنیا سے چھپا کر رکھنا۔          (۱)

تیرے ہوتے ہوئے محفل میں جلاتے ہے چراغ۔  (۲)

مختصر ترین سوالات

(1) احمد فراز کی پیدائش کب ہوئی؟
جواب - 1933 میں

(2) احمد فراز کہاں پیدا ہوئے؟
جواب - پشاور میں جو اب پاکستان میں ہے۔

(3) احمد فراز کس یونیورسٹی میں لیکچرر ہوئے؟
جواب - پشاور یونیورسٹی میں

(4) احمد فراز کس ادارہ کے محنیجنگ ڈائریکٹر ہوئے؟
جواب - نیشنل بُک فاؤنڈیشن پاکستان

(5) اپنی موت سے کچھ ہی دنوں پہلے وہ بہار کے کس صوبے کے مشاعرے میں تشریف لائے تھے؟
جواب - دربھنگہ میں 2009 میں

(6) احمد فراز کی شاعری کے کتنے مجموعے شائع ہوئے؟
جواب - 12 مجموعے شائع ہوئے

(7) اُن کی ابتدائی تعلیم کہاں سے ہوئی؟
جواب - گھر پر

(8) انہیں کس یونیورسٹی نے ڈاکٹر آف لٹریچر کی اعزاز ڈگری سے نوازا؟
جواب - کراچی یونیورسٹی نے

(9) اُن کا گھریلو ماحول کیسا تھا؟
جواب - ادبی اور شاعرانہ

(10) اُن کے رسالو کے نام لکھے۔
جواب - ماہنامہ اشتیاق اور داستان
ہفتہ وار - خادم

(11) اُن کتنے مجموعے شائع ہوئے، نام لکھیے۔
جواب -   تنہا تنہا
          درد آشوب
            نایافت
           شب خون
            میرے خواب ریزہ ریزہ
          جاناں جاناں
           بے آوارگی گلی کوچوں میں
           نا بینا شہر میں آئینہ
            سب آوازیں میری ہے
          پس انداز موسم
            خواب گل پریشاں ہے
          غزل بہانہ کروں

(12) یونیورسٹی العین نے احمد فراز کے کلام کو کس نام سے چار جلدوں میں شائع کیا۔
جواب - 1987 میں یونیورسٹی العین نے احمد فراز کے کلام کو ' اثاثہ ' کے نام سے چار جلدوں میں شائع کیا۔

(13) احمد فراز بنیادی طور پر کس مزاج کے شاعر تھے؟
جواب - رومانی مزاج کے

(14) احمد کی شاعری کس حلقے میں زیادہ مقبول ہوئی؟
جواب - عام و خاص دونوں حلقے میں

مختصر سوالات

(1) احمد فراز بنیادی طور پر کس مزاج کے شاعر ہیں؟
جواب - رومانی مزاج کے

(2) احمد کی شاعری کا اصل محور کیا ہے؟
جواب - حسن و عشق

(3) احمد فراز کی شاعری کس کس حلقے میں مقبول ہوئی؟
جواب - عام و خاص دونوں حلقے میں

(4) احمد فراز کی ادارت میں کون کون سے ماہنامہ اور ہفتہ وار شائع ہوئے؟
جواب -   ماہنامہ -  اشتیاق اور داستان
            ہفتہ وار -  خادم

(5) اردو غزل کی روایت میں آزاد غزل کا تجربہ کیسا رہا؟
جواب - اردو غزل کی روایت میں آزاد غزل کا تجربہ مختلف اصناف کی طرح رہا۔ دوسرے اصناف کی طرح اردو میں آزاد غزل کامیاب نہیں ہوا۔ یہ تجربہ ہیّتی تبدیلی کا تھا۔ کوشش کی گئی تھی کے اس کی ھّیٹ یہ شکل میں کسی قدر تبدیلی لائی جائے لیکن ایسا نہیں ہوا۔

(6) غزل عربی کی کس صنف سے ماخوذ ہے؟
جواب - قصیدہ سے

(7) جس غزل میں ردیف نہ ہو اس غزل کو کیا کہتے ہے؟
جواب - غیر مردف

(8) دکن کے کس شاعر کے ذریعے اردو غزل شمال تک پہنچی؟
جواب - ولی دکنی

(9) غزل کے پہلے شعر کو کیا کہتے ہیں؟
جواب -  مطلع

(10) غزل کے آخری شعر کو کیا کہتے ہے؟
جواب - مقطع

(11) غزل کے دوسرے شعر کو کیا کہتے ہے؟
جواب - مطلع ثانی  يا   حسن مطلع
          
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B. S. E. B 10th Urdu Darakhshan Questions Answers Chapter 27.

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مبارک عظیم آبادی 27۔ غزل

ساعتیں گزرے جو غفلت میں سمجھ لے کھو گئیں( ۱)

گر گئے افسوس کس کس کی نظر سے کیا کہیں (۲)

مختصر ترین سوالات

(1) مبارک عظیم آبادی کب اور کہاں پیدا ہوئے؟
جواب - 21 اپریل 1869 کو عصر کے وقت جمعہ کے دن تاج پور ضلع دربھنگ میں ہوئی تھی۔

(2) مبارک عظیم آبادی کس سال پیدا ہوئے؟
جواب - 21 اپریل 1869

(3) مبارک عظیم آبادی کا انتقال کب ہوا؟
جواب - اُن کا انتقال 12 دسمبر 1958 کو ہؤا۔

(4) مبارک عظیم آبادی کے والد کا نام کیا تھا؟
جواب - فدا حسین  و امق

(5) اردو شاعری میں مبارک عظیم آبادی کے استاد کون تھے؟
جواب - داغ دہلوی

(6) فارسی شاعری میں مبارک عظیم آبادی کے استاد کون تھے؟
جواب - حکیم عبدالحمید پریشاں

(7)  مبارک عظیم آبادی کے شعری مجموعے کا نام کیا ہے؟
جواب - جلوہ داغ

(8) مبارک عظیم آبادی کا شعری مجموعہ کب شائع ہوا؟

جواب - 1951

(9) حکومت ہند نے مبارک عظیم آبادی کی ادبی کارگذاری کا اعتراف کب کیا؟
جواب - 1954 میں

(10) حکومت ہند نے مبارک عظیم آبادی کی ادبی خدمات اعتراف کرتے ہوئے کتنا وظیفہ مقرر کیا؟
جواب - مبلغِ  100 روپیے  ماہوار وظیفہ مقرر کیا۔

(11) مبارک عظیم آبادی نے حیدرآباد دکن کے سفر میں کن کے یہاں قیام فرمائے ہوئے تھے؟
جواب - مبارک عظیم آبادی نے حیدرآباد دکن کے قیام کے دوران سر عبد العزیز کے یہاں قیام فرمائے ہوئے تھے، کولکتہ میں وحشت سے ملاقات کی۔

(12) سر عبد العزیز حیدرآباد کے کس وھدے پر فائز تھے؟
جواب - وہ وہاں کے اہم وزیر تھے۔

(13) مبارک عظیم آبادی کے والد صاحب کا تعلق کس بابا کے اولاد میں سے ہے؟
جواب - بابا فرید گنج شکر     کی

(14) مبارک عظیم آبادی نے کہاں تک تعلیم حاصل کی؟
جواب - میٹرک تک۔

(15) مبارک عظیم آبادی کس کے بیعت کا شرف رکھتے تھے؟
جواب - حضرت مولانا سیّد شاہ بدر الدین قدس سرہ سجّادہ نشیں خانقاہ مجیبیہ

(16) مبارک عظیم آبادی نے طب سے متعلق کتنی کتابیں لکھی؟
جواب -۔  دو کتابیں
           میزان الطب
            کتب الکبیر

(17) مبارک عظیم آبادی نے علم طب پر کس زبان میں کتابیں لکھی؟
جواب - فارسی

(18) اُنہونے کتنی سال تک ہومیو پیتھی کی تعلیم حاصل کی؟
جواب - 6 سال تک تعلیم حاصل کی اور اس کے بعد اپنا مطب ( Clinic) کھولا۔

(19) اُن کے والد صاحب کیا تھے؟
جواب - شاعر

(20) وہ کس کے شگرد تھے؟
جواب - سیّد حسن حسرت

(21) مبارک عظیم آبادی داغ دہلوی کے شاگرد کب ہوئے؟
جواب - 1892

(22) اُن کے استاد داغ دہلوی کا انتقال کب ہوا؟
جواب - 1905 میں

(23) مبارک عظیم آبادی کتنے سالو تک زندہ رہے ؟
جواب - تقریباً 90 سالو تک جن میں 70 سال شعر و شاعری میں گزاری۔

(24) غزل عربی کے کس صنف سے ماخوذ ہے؟
جواب -    قصیدہ  سے

(25) جس غزل میں ردیف نہ ہو اس غزل کو کیا کہتے ہے؟
جواب -     غیر مردف

(26) دکن (South) کے کس شاعر کے ذریعے اردو غزل شمال (North) پہنچا؟
جواب -   ولی دکنی

(27) غزل کے پہلے شعر کو کیا کہتے ہیں؟
جواب -     مطلع

(28) غزل کے آخری شعر کو کیا کہتے ہیں؟
  جواب  -        مقطع

(29) جس غزل میں ایک سے زیادہ مطلع ہو اس مطلع کو کیا کہتے ہے؟
جواب - ایسی صورت میں دوسرے مطلع کو مطلعِ ثانی یہ حسن مطلع کہتے ہے اور تیسرے مطلع کو مطلعِ ثالث کہا جاتا ہے۔

(30) تشبیب کا مطلب کیا ہوتا ہے؟
جواب - شباب یعنی جوانی۔

مختصر سوالات۔

(1) مبارک عظیم آبادی نے حیدرآباد دکن کے سفر میں کس سے ملاقات کی اور کس کے یہاں قیام فرمائے؟
جواب - حیدرآباد کے قیام کے دوران سر عبد العزیز کے یہاں قیام فرمائے اور کولکتہ میں وحشت سے ملاقات کی۔

(2) مبارک عظیم آبادی نے کس کے ہاتھ پر بیعت کی تھی؟
جواب - حضرت مولانا سیّد شاہ بدر الدین قدس سرہ سجّادہ نشیں خانقاہ مجیبیہ

(3) مبارک عظیم آبادی نے جو کتابیں لکھی ، اُن کا نام بتائیں۔
جواب - مبارک عظیم آبادی نے دو کتابیں فارسی زبان میں لکھی ۔
            میزان الطبِ
                  قطب الکبیر

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B. S.E. B. 10th urdu Darakhashan Questions Answers Chapter 26.

BSEB 10th Urdu Darakhshan Questions Answers Chapter 26.

Bihar Matrice Darakshan Urdu Sawal o Jawab.

BSEB #10th #Urdu #GuessPaper #UrduGuide #BiharBoard #SawalkaJawab #اردو #مختصر_سوالات

BSEB Urdu Darakhshan Chapter 18.

BSEB Urdu Darakhshan Chapter 11

BSEB Urdu Darakhshan Chapter 17

  جذبہ عشق 26۔ غلام ہمدانی مصحفی

مُسلمِ لڑکیوں کو ہندو بنانے کی خطرنک سازش۔

مختصر ترین سوالات

(1) مصحفی کا پورا نام کیا تھا؟
جواب - غلام ہمدانی مصحفی

(2) مصحفی کی پیدائش کب اور کہاں ہوئی؟
جواب - 1748 کو لکھنؤ میں

(3) مصحفی کی زیرِ نصاب مثنوی کا عنوان بتائے۔
جواب - جواب - اس مثنوی میں دہلی کے ایک رئیس خاندان کے ایک نوجوان کے  عشق و محبت کی کہانی ہے۔ اس میں ایسا پہلو یہ ہے کہ وہ نوجوان اپنی بیوی پر ہی عاشق تھا۔ محبوب کے حسن و جمال اور اس کے اعضاء کی خصوصیات اِس میں بیاں کی گئی ہے۔
بدقسمتی سے وہ عورت سخت بیمار ہو جاتی ہے۔ ہر طرح کا علاج چلا لیکن سب لاحاصل۔ اسی طرح صاحبِ فراموش رہ کر چند دنوں کے بعد راہی ملک عدم ہوئی اور اپنے عاشق کو رونے اور غم فراق میں تڑپنے کے لیے چھوڑ گئی۔

مختصر سوالات

(1) مصحفی کی ابتدائی زندگی کا مختصر جائزہ لیجیے۔
جواب - اُن کا اصل نام غلام ہمدانی تھا اور مصحفی تخلص کیا کرتے تھے۔ اُن کی پیدائش 1748 میں امروہہ ( اُتر پردیش ) میں ہوئی۔ اُن کے والد اکبر پور کے رہنے والے تھے۔ امروہہ میں ابتدائی تعلیم حاصل کی۔ شعر گوئی کا شوق اسی زمانے سے تھا۔ امروہہ سے بریلی چلے گئے۔ سن بلوغ میں آنولہ تشریف لائے۔

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Aashiyana-E-Haqeeqat

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Muslim Ladkiyo ki "Ghar Waapasi" Ke liye Chalaya raha Compaign.

Muslim Behano ke nam Ek Paigham.

Muslim Ladkiyo ke khilaf "Ghar Waapasi" ke liye chalayi ja rahi tahrik.

मुस्लिम लड़कियों के खिलाफ चलाई जा रही बहुत बड़ी साजिश का पर्दाफाश किया गया है।

कुछ ऐसी तंजीमे है जो इस्लामिक शहजादियों को भगाकर शादी का झांसा देकर उसे धर्म बदलवाने , उससे इश्क वा मुहब्बत का नाटक करके जिस्म की आग बुझाई जाती है और फिर उसे किसी होटल, रेस्त्रा या बदनाम गलियों में नीलाम कर दिया जाता है।


हमारी बहुत सारी बहनें आज कल सोशल मीडिया से जुड़ी हुई है जहां उनके दिलों में इस्लाम के मुत्तालिक नफरत का जहर भरा जा रहा है ताकि वह अपने इस्लामिक शिनाख्त को छोड़कर गैरो का धर्म कुबूल कर लें और उनके मजहबी अकीदे पर चलना शुरू कर दें। इसके लिए इन लोगो को बकायदा तरबियत ( Training ) दी जाती है " घर वापसी  " का।

इसलिए मैं आप सब बहनों से दरखावस्त करता हूं के इन मक्कार और धोखेबाज लोगो के बहकावे में नहीं आए। अपने इस्लामी वकार को कायम रखें और दिन ए इस्लाम के बताए हुए तरीके पर चलें ... याद रखें शैतान हर वक्त हमें गुमराह करने में लगा रहता है इसलिए शैतान को कभी उसके मकसद में कामयाब नही होने दें।

اَلسَلامُ عَلَيْكُم وَرَحْمَةُ اَللهِ وَبَرَكاتُهُ‎

ﺑِﺴْــﻢِﷲِﺍﻟﺮَّﺣْﻤَﻦِﺍلرَّﺣِﻴﻢ

 قـــــــوم کی شہــــــــــزادیوں

 میری عزیزالقدر مسلم بہنوں ! کیا آپ کو اسلامی تعلیمات پسند نہیں ؟

کیا آپ کو اپنے نبیﷺ کی سیرت سے نفرت ہے ؟

کیا مذہب اسلام کوئ بےحیائ، وخلاف عقل باتوں کا درس کا دیتا ہے؟

اگر بات ایسی نہیں ہے، تو آپ کیوں، ان فریب ، مکار ، دغا باز،  اور خواہشات کے بچاری بھیڑوں، اور انسانی درندوں کے جال میں پھنس کر اپنا پیارا ، مقدس، اعلی ، مذہب اسلام کو ہندو مذہب میں تبدیل کر رہی ہیں؟
میرے مسلم قوم کی بہنوں ، اور بیٹیوں! یہ ان بدقماش، اور نہایت گندے مزاج  کے لوگوں کی ایک خطرناک سازش ہے ، انہیں مذہب تبدیل کروانے پر ان کی ٹیم کی جانب سے ان انسانیت کے خونخواروں کو نہایت ہی گراں قدر انعامات سے نوازا جاتا ہے -

مگر بات اتنے پر بس نہیں ہوتی، بلکہ یہ سنگ دل ، بےرحم لوگ اپنی خواہشات کی آگ بجھا کر ہمارے فرزدان ملت کی بیٹوں کو

Slum bars, cinema  halls and hotels

میں ارزاں قیمت میں فروخت کر کے انکی زندگی کو جہنم بنا کر چلے جاتے ہیں ____

 میں یہ بات بڑے ہی درد دل کے ساتھ آپ کی بہتری ، بھلائ، خیرخواہی اور آپ کی خوشگوار زندگی کے لیے کہہ رہا ہوں کہ خدا را میری قوم کی غیرت مند بہنوں اور بیٹیوں ، آپ ہم مسلمانوں کی شان ہو ، ہماری قیمتی سرمایہ ہو ، ہمارے غموں کو خوشیوں میں بدلنے والی ہو، آپ سے ہی ہماری انجمنوں کی زینت ہے ، آپ کا رتبہ اسلام میں بھی اعلی وارفع ہے اور ہم مسلمانوں کے نزدیک بھی آپ کا مقام نہایت بلند ہے؛ آپ اپنی قدر کو سمجھیں اور ان کے چنگل میں نا جائیں۔

دھوکہ ہے یہ عشق و محبت کا کھیل،
فریب ہے یہ سوشل میڈیا کی دوستی،
جھوٹے ہیں لوگوں کے عشق و محبت کے بڑے بڑے دعوے،

اگر محبت کی تمناء ہے تو اپنے مالک کونین سے دل لگائیں، جو آپ کو بہت پیار دے گا ، آپ کو کبھی در در کی ٹھوکریں نہیں کھانی پڑے گی ،
آپ کو کسی کے سامنے ہاتھ پھیلانا نہیں پڑے گا ، وہ آپ کو دنیا  میں بھی عزت دے گا اور جنت میں  درجہ اعلی علیین میں ہو گا --

 خدارا! سوچیئے گا ضرور ایک بار نہیں بار بار ہزار بار تنہائی میں پھر فیصلہ کرنا کہ کیا کرنا تھا اور کیا کر رہی ہیں آپ۔
جزاکم اللّٰہ
خیرا کثیرا

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B. S. E. B 10th Urdu Darakhshan Questions Answers Chapter 25.

BSEB 10th Urdu Darakhshan Questions Answers.

Bihar Matrice Urdu Darakhshan Questions Answers Chapter 25

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دار الخلافت زین الملک میں بکاؤلی کا پہنچنا
اور  وزیر ہو کر تاج الملک     کی تلاش میں رہنا

          گلزار نسیم  25۔  دیا شنکر نسیم

        معروضی سوالات Objective Questions

(1) نسیم کا پورا نام کیا ہے؟
جواب - دیا شنکر نسیم

(2) نسیم کہاں پیدا ہوئے؟
جواب - لکھنؤ میں

(3) نسیم کی مثنوی کا نام کیا ہے؟
جواب - گلزار نسیم

(4) شاعری میں نسیم کس کے شاگرد تھے؟
جواب - آتش لکھنوی

(5) نسیم کا انتقال کب ہوا؟
جواب - 1845

(6) نسیم کا اصل نام کیا تھا؟
جواب - دیا شنکر کول

(7) نسیم کے والد کا نام کیا تھا؟
جواب - گنگا پرشاد کول

(8) اُنکی پیدائش کب اور کہاں ہوئی؟
جواب - 1811 میں لکھنؤ میں۔

(9) نسیم کی ابتدائی تعلیم کس زبان میں ہوئی؟
جواب - اردو اور فارسی میں

(10) نسیم کا زمانہ میں کس کا دور تھا؟
جواب - امجد علی شاہ

(11) نسیم کی مشہور مثنوی کا نام لکھیے۔
جواب - گلزار نسیم

(12) بکاؤلی کے محبوب کا نام کیا تھا؟
جواب - تاج الملک

(13) بکاؤلی اپنے محبوب کو کہاں کہاں تلاش کرتی ہے؟
جواب - جنگل، بیاباں اور اجنبی راہو میں اپنے محبوب تاج الملک کو تلاش کرتی ہے۔

   مختصر ترین سوالات  Very Short Questions

(1) زیرِ نصاب مثنوی میں کس واقعہ کو نظم کیا گیا ہے؟
جواب -

(2) نسیم کا پورا نام کیا تھا؟
جواب - دیا شنکر کول

(3) نسیم کی پیدایش کب ہوئی؟
جواب - 1811 میں لکھنؤ میں

(4) نسیم کی مشہور مثنوی کا نام لکھیے۔
جواب - گلزار نسیم

(5) نسیم کے والد کا نام کیا تھا؟
جواب - گنگا پرشاد کول

                   مختصر سوالات

(1) صنف مثنوی پر پانچ جملے لکھیے۔
جواب - مثنوی عربی لفظ ہے۔ لیکن اس صنف کو عربی میں زیادہ فروغ حاصل نہیں ہوا۔
دراصل مثنوی فارسی کی دین ہے۔ فارسی میں اس صنف سے بڑا کام لیا گیا۔ فارسی  مثنوی نگاروں کو اردو مثنوی نگاروں سے کہیں زیادہ شہرت و مقبولیت حاصل ہوئی۔

(2) بکاولی اپنے محبوب کی تلاش کے لیے کیا کیا کرتی ہے؟
جواب - بکاؤلی اپنے محبوب کو تلاش کرنے جنگل ، بیاباں اور اجنبی راہو کی طرف جاتی ہے۔ جب وہ بادشاہ زین الملک کی دربار میں جاتی ہے تب اسے پتہ چلتا ہے کے وہ جسے تلاش کر رہی تھی وہ اسی جگہ ہے۔

(3) زین الملک کے ملک میں پہنچ کر بکاؤلی کو کیا محسوس ہوا؟
جواب - بکاؤلی جب زین الملک کے دربار میں پہنچتی ہے تو اس وقت ہر طرف خوشی کے چچہے تھے۔ باغ میں سگوفے کھل رہے تھے تب اسے بتایا گیا کے وہ جسے تلاش کر رہی ہے وہ اسی جگہ پر موجود ہے۔

(4) نسیم کی مختصر سوانح بیان کیجئے۔
جواب - اصل نام دیا شنکر کول اور اُن کے والد کا نام گنگا پرشاد کول تھا۔ یہ کشمیری پنڈت تھے۔ اُن کی پیدائش 1811 میں لکھنؤ میں ہوئی۔ اُن کے خاندانی رواج کے مطابق اُن کی  ابتدائی تعلیم اردو اور فارسی میں ہوئی۔ ابتدا سے ہی انہیں شعر و شاعری سے لگاؤ تھا۔ آتش لکھنوی کے شاگرد تھے۔ اُن کا انتقال 1845 میں ہوئی۔

(5) بکاؤلی کے کردار پر پانچ جملے لکھیے۔
جواب - اس مثنوی میں بکاؤلی کے آنے اور اس کے وزیر بننے کی تصویر پیش کی گئی ہے۔ بادشاہ زین الملک کے دربار میں پہنچ کر اپنی غیر معمولی اور سحر انگیز شخصیت کی وجہ سے وزیر بن گئی۔ دربار میں پہنچ کر وہ اپنے محبوب تاج الملک کو تلاش کرتی ہے۔ اپنے محبوب کو تلاش کرنے میں اسے بہت ساری پریشانیوں کا سامنا کرنا پڑتا ہے۔ وہ جنگل ، بیاباں اور اجنبی راہو میں تاج الملک کو تلاش کرتی ہوئی بادشاہ زین الملک کی مملکت میں داخل ہو جاتی ہے جہاں اسے ایک حیرت انگیز منظر دیکھنے کو ملتا ہے۔

______________________

اس مثنوی میں بکاؤلی کے اپنے محبوب کی تلاش کرنے کے سفر کو بتایا گیا ہے۔

دار الخلافت زین الملک میں بکاؤلی کا پہنچنا
اور  وزیر ہو کر تاج الملک     کی تلاش میں رہنا

اس اقتباس میں بکاؤلی کے آنے اور اس کے وزیر بننے کی تصویر پیش کی گئی ہے۔ بادشاہ زین الملک کے دربار میں پہنچ کر اپنی غیر معمولی اور سحر انگیز شخصیت کی وجہ سے وہ  وزیر بن جاتی ہے اور پھر اپنے محبوب تاج الملک کو تلاش کرتی ہے۔ اس طرح اپنے محبوب کو تلاش کرنے میں جتنی پریشانیاں ہوتی ہے اس کا ذکر کیا گیا ہے۔ وہ جنگل، بیاباں اور اجنبی راہو میں تاج الملک کو تلاش کرتے کرتے بادشاہ زین الملک کے دربار میں داخل ہوتی ہے تو یہاں کا منظر ہی کچھ اور دیکھتی ہے۔ یہاں ہر طرف خوشی کی مبارک گھڑی ہوتی ہے۔ باغ میں سگوفے کھل رہے ہوتے ہیں۔ اسے بتایا گیا تھا کے وہ جسے تلاش کر رہی ہے وہ اسی جگہ موجود ہے۔ اس نے پری زاد ہونے کے باوجود اپنی حقیقت کو چھپا لیتی ہے اور ایک آدم زاد کی طرح سلطان کی آتی ہوئی سواری کے سامنے کھڑی ہو جاتی ہے۔
یہاں وہ مکالمہ بھی پیش کیا گیا ہے جو سلطان اور بکاؤلی کے درمیان ہوتا ہے۔ وہ اپنے کو ابن فیروز بتاتی ہے اور بادشاہ کو اس طرح متاثر کرتی  ہے کے  وہ حقیقتاً اسے آدم زاد  مرد سمجھ کر اپنے دربار میں وزیر مقرّر کر لیتا ہے۔ اقتباس کے آخری حصے میں مکالمے کا جو کمال دکھلایا گیا ہے وہ اس حصے کی جان ہے۔

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Aashiyana-E-Haqeeqat

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An Australian Teacher Accepted Islam in Afghanistan.

An Australian Teacher Accepted Islam in Afghanistan.

जानिये क्यों एक ऑस्ट्रेलियन शिक्षक ने तालिबान के कैद में रहने के बाद इस्लाम कुबूल कर लिया? ऑस्ट्रेलियन नागरिक की आपबीती


आपको यह जानकर हैरानी होगी के जिस तरह से आज सारी दुनिया इस्लामी को कट्टरपंथी, चरमपंथी, आतंकवाद, रूढ़िवादी, दकियानूसी, पुराने ख्यालों वाला , 1400 साल पीछे धकेलने वाला, औरतों की आजादी खतम करने और औरतों को कैद करके रखने वाला मजहब के तौर पर पेश कर रही है इसी दौर में अफगानिस्तान में तालिबान की कैद में रहने वाले एक ऑस्ट्रेलियाई टीचर जो काबुल में अफगान फौजियों को अंग्रेजी सिखाने आए थे उन्होंने दिन ए इस्लाम कुबूल कर लिया।

इतना ही नहीं इससे पहले भी इंग्लैंड की एक लेडी रिपोर्टर ने इस्लाम कुबूल कर लिया था और अब वह दूसरे लोगो को दीन की दावत दे रहीं हैं। उनका नाम है युवान रिडले

Yvonne Ridley 


She became the headlines when she was captured by the ruling Taliban in 2001 after sneaking into Afghanistan wearing the all-enveloping blue burkha ahead of the US-led war. Two days into an undercover mission for Express Newspapers, she was arrested as a suspected American spy by the Taliban. Few expected her to survive the ordeal but she emerged unscathed 11 days later after being released on humanitarian grounds.


तकरीबन साढ़े तीन साल तक तालिबान की क़ैद में रहने वाले और धर्म-परिवर्तन कर मुसलमान बनने वाले टिमोथी वीक्स ( जो अब इस्लाम कुबूल कर चुके है उनका नया नाम जिब्राइल उमर है ), अब एक बार फिर अफ़ग़ानिस्तान जाना चाहते हैं.

जिब्राइल उमर (टिमोथी वीक्स) को तालिबान ने अगस्त 2016 में काबुल की अमेरिकन यूनिवर्सिटी के मैन गेट से अगवा कर लिया था. और साढ़े तीन साल तक तालिबान की क़ैद में रहने के बाद, दोहा समझौते के तहत साल 2019 में हक़्क़ानी सहित तीन मशहूर तालिबान कमांडरों के बदले में उनकी रिहाई हुई थी.

वह काबुल की अमेरिकन यूनिवर्सिटी में अंग्रेज़ी के शिक्षक थे. वह अफगान फौजियों को अंग्रेजी सिखाने के लिए काबुल आए हुए थे।

जिब्राइल उमर (टिमोथी वीक्स) जुलाई 2016 में अफ़ग़ानिस्तान पहुंचे थे और अभी तक उन्होंने इस सिलेबस की तैयारी पर काम शुरू भी नहीं किया था, कि अगले महीने 9 अगस्त को तालिबान ने उन्हें उनके एक करीबी दोस्त केविन किंग के साथ यूनिवर्सिटी के मुख्य द्वार से गन पॉइंट पर अगवा कर लिया था.

उन दोनों को तलाश करने के लिए अमेरिकी सेना ने अफ़ग़ानिस्तान के विभिन्न हिस्सों में कई ऑपरेशन किए.

एक या दो मौक़ों पर, ऐसा भी हुआ कि अमेरिकी सेना के कमांडर उन ठिकानों तक भी पहुंच गए, जहां उन दोनों को क़ैद में रखा गया था.

वो कहते हैं, "मैं भाग्यशाली हूं कि अपहरण की इस बुराई में मुझे अच्छाई की एक किरण दिखाई दी है, अब मेरे पास ऐसा करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है, क्योंकि मैं अपने अफ़ग़ान बहन-भाइयों की मदद करने के लिए पूरी तरह से तैयार हूं."

उन्होंने कहा कि "मुझे अब तालिबान के हाथों कैद किए जाने का कोई अफ़सोस नहीं है, क्योंकि अगर ऐसा नहीं हुआ होता तो मैं इस्लाम की सच्चाई के बारे में नहीं जान पाता. अब मुझे अफ़ग़ानिस्तान, यहां की तहजीब  और वहां के लोगों से प्यार है जो मेरे अपने हैं और मैं उनके लिए काम करना चाहता हूं.

जिब्राइल ने कहा, "मुझे अफ़ग़ानिस्तान के इस्लामी अमीरात के बड़े नेताओं पर पूरा भरोसा है, क्योंकि मैं अपनी आज़ादी के बाद से लगातार उनके साथ बातचीत में शामिल रहा हूं.

पिछले साल के शुरू में अमेरिका और तालिबान के बीच क़तर में हुए समझौते पर हस्ताक्षर किये जाने के अवसर पर मुझे दोहा आने के लिए दावतनामा मिला था."

उन्होंने इस इंटरव्यू में अपने अपहरण, तालिबान की हिरासत में बिताये गए समय और तालिबान के प्रमुख नेता अनस हक़्क़ानी के बदले में, अपनी रिहाई के बारे में तफसील से बात की.

उन्होंने बताया कि उन्हें हिरासत में लिए जाने के कुछ वक्त  बाद तालिबान के एक कमांडर ने उन्हें बताया था कि उन्हें बहुत जल्द रिहा कर दिया जाएगा, लेकिन उन्हें ये बाद में पता चला कि अमेरिका की तरह ऑस्ट्रेलिया की भी ये नीति नहीं थी कि वह अग़वा होने वाले आपने लोगों की रिहाई के लिए फिरौती की रक़म अदा करे.

इसलिए, तालिबान की क़ैद में उनके रहने के लिए दिन  बढ़ते हुए हफ़्तों से महीनों और महीनों से सालों तक पहुँच गई.

इस्लाम धर्म कैसे अपनाया मैने

जिब्राइल उमर बताते हैं कि क़ैद में रहने के दौरान जब तालिबान की तरफ़ से प्रताड़ना कम हुई, और हालात ठीक होने लगे तो उनकी पढ़ने में रुचि हो गई.

"जब मैंने तालिबान से कुछ किताबें मांगी, तो उन्होंने उर्दू बाज़ार कराची से प्रकाशित कुछ किताबें और अंग्रेज़ी में क़ुरान की तफ़्सीर (व्याख्या) लाकर दी."

"इन किताबों और क़ुरान को पढ़ने के बाद, मैं धीरे-धीरे इस्लाम की ओर आकर्षित होने लगा. मेरे अंदर इस्लाम के लिए एक अजीब मुहब्बत रौशन होने लगी।

आख़िरकार 5 मई, 2018 को मैंने इस्लाम धर्म अपना लिया और वुज़ू और नमाज़ की प्रेक्टिस शुरू कर दी."

वो कहते हैं, "जब तालिबान को मेरे इस्लाम अपनाने के बारे में पता चला, तो उन्होंने ख़ुश होने के बजाय मुझे जान से मारने की धमकी देना शुरू कर दिया."

जिब्राइल उमर (टिमोथी वीक्स) अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान की क़ैद के दौरान इस्लाम अपनाने वाले दूसरे शख्स है।

आप को बता दे के  उनसे पहले भी  युवान रिडले, एक ब्रिटिश महिला पत्रकार, भी ऐसा कर चुकी हैं और अब युवान रिडले इस्लाम की दावत वो तबलीग का काम कर रहीं है।

युवान रिडले को अफ़ग़ान तालिबान ने साल 2001 में अग़वा किया था.

A Brtish Lady Journalist accepted Islam, An European Lady Journalist accepted Islam, Converted Muslim women's list,


मुझे ऑस्ट्रेलिया में कुत्ता कहा जाता था, मुझ पर थूका जाता था'

जिब्राइल उमर कहते हैं, ''मैं अक्सर महसूस करता हूं कि आतंकवाद के ख़िलाफ़ युद्ध को इस्लाम के ख़िलाफ़ युद्ध के तौर पर पेश किया जाता है.''

"मैं ऐसा अफ़ग़ानिस्तान के संदर्भ में नहीं बल्कि एक नव-मुस्लिम के तौर पर समझता हूँ.

मैं अपने देश ऑस्ट्रेलिया में मुझे पहुंचाई गई यातनाओं के आधार पर ऐसा समझता हूँ, जहां गलियों में मुझ पर थूका गया था, मुझे कुत्ता कहा गया यहां तक कि एक पूर्व ऑस्ट्रेलियाई सैनिक ने नमाज़ के लिए पहनी जाने वाली पख़्तून टोपी सिर पर रखने पर मुझ पर हमला तक किया. और यह सब ऐसे देश में होता रहा, जहां किसी के साथ भेदभाव करना क़ानून के ख़िलाफ़ है."

उनका कहना है कि दुर्भाग्य से पश्चिमी दुनिया इस्लामोफोबिया से पीड़ित है.

"लोग स्टॉकहोम सिंड्रोम से पीड़ित होने का ताना देते थे."

जिब्राइल उमर का कहना है कि जब वह साढ़े तीन साल जेल में रहने के बाद घर लौटे, और उनके परिवार के सदस्यों को पता चला कि मैं तो अपने 'दुश्मन', यानी अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान की सरकार का समर्थन करता हूँ, तो उनके लिए इस बात को स्वीकार करना बहुत मुश्किल हो रहा था.

जिब्राइल उमर कहते हैं, "मेरे बारे में इस तरह की सोच का वास्तविकता से कोई लेना-देना नहीं था,"

वह बताते हैं कि वह स्टॉकहोम सिंड्रोम से पीड़ित नहीं हैं, क्योंकि उन्हें हिरासत के दौरान बहुत मार साहनी पड़ी है, लेकिन वह इस सच्चाई को जान चुके हैं कि अफ़ग़ानिस्तान की तालिबान सरकार अपनी पूर्ववर्ती हर सरकार से बेहतर है क्योंकि इनके नेता किसी भी तरह के भ्रष्टाचार में शामिल नहीं हैं.

"बहुत सारे लोग मुझ पर ताना कसते थे कि मैं स्टॉकहोम सिंड्रोम नामक बीमारी से पीड़ित हूँ."

स्टॉकहोम बीमारी क्या है?


ध्यान रहे कि स्टॉकहोम सिंड्रोम एक ऐसी बीमारी है जिसमें मरीज ख़ुद को अपहरणकर्ताओं से आज़ाद कराये जाने की उम्मीद खो देते हैं, तो उनमें से कुछ की शारीरिक और मानसिक यातना से बचाने वाला मनोवैज्ञानिक रक्षा सिस्टम, ख़ुद-ब-ख़ुद अपहरणकर्ताओं का समर्थक होने लगता है.

इस तरह प्रताड़ित किया जाने वाला व्यक्ति यातना देने वाले का बचाव करने लगता है.

अफ़ग़ानिस्तान और पख़्तूनों के बारे में किताब

अपने भविष्य के इरादों के बारे में जिब्राइल उमर ने कहा कि वह इसे लेकर बहुत फिक्रमंद और ख्वाहिशमंद है
उन्होंने अपनी किताब पर काम करना शुरू कर दिया है. इस किताब के माध्यम से मैं दुनिया को अफ़ग़ानिस्तान और ख़ासकर पख़्तूनों के बारे में बताना अपना फर्ज समझता हूं।

इस किताब को प्रकाशित करने के लिए दुनिया के मशहूर प्रकाशक 'हार्पर कॉलिन्स' के साथ उनका डील हो चुका है, और अगले साल की शुरुआत में इस किताब के पूरा होने की उम्मीद है.

वो कहते हैं, "फिलहाल, दुनिया भर में शरणार्थी, कैदियों की तरह बहुत सारी समस्याओं का सामना कर रहे हैं. मुझे उम्मीद है कि भविष्य में उन्हें उनके हिस्से के अधिकार दिए जाएंगे.

उनका कहना है कि अमेरिकी सेना की वापसी के बाद विकसित देशों, ख़ासकर ऑस्ट्रेलियाई सरकार का फ़र्ज़ है कि वह इस मुश्किल वक्त में अफ़ग़ानिस्तान की मदद करे और अगर वे अफ़ग़ानिस्तान की मदद नहीं करता है तो वहां होने वाले किसी भी नुक़सान के लिए ये देश ज़िम्मेदार होंगे.

__________________________
हिदायत देना अल्लाह का काम है , अल्लाह चाहे जिसे हिदायत दे दे।

नूर ए हक शम्मा इलाही को बुझा सकता है कौन
जिसका हामी हो खुदा उसको मिटा सकता है कौन?

अल्लाह हम सबको नेक रास्ते पर चला, हमे सच सुनने और सच बोलने की तौफीक अता फरमा। या अल्लाह मुसलमानों को सीरत ए मुस्तकीम पर चला , मुसलमान को गुमराही से बचा और मुस्लिम मुआशरे को फहाशी जैसे लानत से महफूज रख।
आमीन सुम्मा आमीन

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B. S. E. B 10th Urdu Darakhshan Questions Answers Chapter 24.

BSEB 10th Urdu Darakhshan Questions Answers Chapter 24.

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जहरे इश्क  24  मिर्जा शौक लखनवी

زہر عشق 24   مرزا شوق لکھنوی
مختصر ترین سوالات

(1) مرزا شوق کا اصل نام کیا تھا؟
جواب - تصدیق حسین خاں

(2) مرزا شوق لکھنوی کی پیدائش کب ہوئی؟
جواب - 1783

(3) مرزا شوق کا خاندانی پیشہ کیا تھا؟
جواب - طبابت کا

(4) مرزا شوق کا انتقال کب ہوا؟
جواب - 1871

(5) مرزا شوق کی مثنوی کا نام بتائے۔
جواب - فریب عشق

(6) مرزا شوق لکھنوی کیا تخلص کرتے تھے؟
جواب - شوق

(7) مرزا شوق کہاں پیدا ہوئے؟
جواب - لکھنؤ میں

(8) ان کے والد کا نام کیا تھا؟
جواب - آغا علی خاں تھا جو ماہر طبیب تھے۔

(9) مرزا شوق کے تین مقبول مثنویوں کے نام لکھے۔
جواب - زہر عشق
            بہار عشق
            فریب عشق

(10) اُنہونے ابتدائی تعلیم کہاں حاصل کی؟
جواب - گھر پر

(11) آپ کے نصاب میں مرزا شوق کا کون سا مضمون شامل ہے؟
جواب - زہر عشق

(12) انہیں کس کے عہد حکومت میں شاہی معالج مقرر کیا گیا؟
جواب - واجد علی شاہ کے دور حکومت میں

(13) اُن کے والد صاحب کس پیشہ سے تعلّق رکھتے تھے؟
جواب - اُن کے والد صاحب ایک ماہر طبیب تھے۔

(14) مثنوی کس زبان کا لفظ ہے؟
جواب - عربی

(15) فارسی مثنوی نگاروں کے نام لکھے۔
جواب - شاہنامہ فردوسی
بوستان سعدی
سکندر نظامی
مثنوی معمونی

(16) اردو مثنوی نگاروں کے نام لکھے۔
جواب - مرزا شوق لکھنوی
          دیا شنکر نسیم
            میر حسن
            شوق نیموی
             ملا وجہی

(17) مثنوی کس زبان (ادب) کی دین ہے؟
جواب - فارسی

مختصر سوالات

(2) صنف مثنوی سے اپنی واقفیت کا اظہار کیجئے۔
جواب - مثنوی عربی لفظ ہے۔ لیکن اس صنف کو عربی زبان میں زیادہ فروغ حاصل نہیں ہوا۔ اصل میں مثنوی فارسی کی دین ہے۔ فارسی میں اس صنف سے بڑا کام لیا گیا۔ فارسی مثنویوں کو اردو مثنویوں سے کہیں زیادہ شہرت و مقبولیت حاصل ہوئی۔

(3) مثنوی نگار نے شام کا نقشِہ کس طرح پیش کیا ہے؟
جواب - مثنوی نگار شام کا نقشہ پیش کرتے ہوئے لکھا ہے۔ بیٹھے بیٹھے دل گھبرایا تو بام پر ٹہلنے کے لئے آ گئے۔ اس وقت سوداگر کی بیٹی بھی بام پر اپنے سہیلیوں کے ساتھ بام پر گھوم رہی تھی۔ جب اکیلی بچ گئی بام پر تب دونوں کی نگاہیں چار ہو گئی۔
شاعر اسے اشارہ سے بھی بلا نہ سکیں۔ اسی صورت میں شام ہو گئی اور ایک کنیز پیام لائی کے امّی بلائی ہے۔

(4) مثنوی نگار نے سوداگر کی بیٹی کی آنکھوں کی مثال کس سے دی ہے؟
جواب - ہرن

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Muslim Behno se khash apeal : Apni Pictures Social media par upload nahi karein.

Musalman Bhaiyo se gujarish hai ke wah apni Tasweerein Social media par upload nahi karein.

Muslim Khawateen bhi in kamon se Parhej karein.

بہنو کو سخت تنبیہ کی جاتی ہے کہ اپنی تصاویر کو سوشل میڈیا یا ویب اپلوڈنگ یا انٹرنیٹ پر کسی بھی طرح ڈالنے سے پرہیز کریں.

اوپر جو پکچر شئیر کی گئی ہے، اس میں ایک بہن یہی بتا رہی ہیں کہ انتہائی فحش ویب سائٹس پر فاحشہ خواتین کی تصاویر پر مسلمان لڑکیوں کے چہروں کی تصاویر لگا کر اپلوڈ کی جاتی ہیں.

العیاذ باللہ،

ھدی نام کی بہن، جو بہت آرام سے اپنی تصاویر اپلوڈ کر دیتی تھیں، جب انکی تصاویر فحش ویب پر استعمال ہوئی ہیں تو انہیں سبق حاصل ہوا ہے. جس کا وہ اظہار کر رہی ہیں.
واللہ، اس سے زندگیاں برباد ہو جاتی ہیں.

ایسا ہی واقعہ ایک بھائی کے ساتھ ہوا تھا. مجھے یہ لکھتے ہوئے یاد آ گیا وہ واقعہ. حسبنا اللہ و نعم الوكيل. کم و بیش نو دس سال پرانا ہے.

ایک بدمعاش قسم کی لڑکی نے فرینڈ ریکویسٹ ریجکٹ ہونے پر اس بھائی سے بدلہ لیا.

انکی تصاویر چوری کر کے، انہیں برہنہ عورتوں پر ایڈٹ کر کے انکے تمام کانٹیکس کو بھیج دی تھی. مجھے بھی ایک میل موصول ہوئی. میں unknown قسم کے لنکس اوپن نہیں کرتی تھی.

یہ Hotmail کا زمانہ تھا. ساتھ ہی بھائی کی بھی ای میل ملی تو بہت معذرت کر رھے تھے اور بہت ہی زیادہ شرمندہ بھی.

میں نے پھر سمجھایا کہ میں نے تصاویر دیکھی نہیں ہیں، آپ اپنی تصاویر ختم کر دیں. اور اللہ تعالیٰ سے دعا کریں کہ اللہ تعالیٰ ہمیشہ عزت محفوظ رکھے. آمین ثم آمین.

یہ تو ایسی چیز ہے کہ مرد و عورت دونوں ہی اس شر سے بچ نہیں پاتے. اس لیے حفاظت کی دعاؤں کا اہتمام کیجیے. اور اللہ کی ناپسندیدگی والے کاموں سے بچیے. اللہ تعالیٰ سب کو ھدایت دے اور سمجھ عطاء فرمائے آمین.

#لمحہ_فکریہ

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