India ke Musalmano ka Maujuda Hal byaan karti yah Tahrir.
Hindustan ke Musalmano ki Khamiyaa aur Kamzoriya.
Urdu ka Zawal lekin Mujrim kaun?
इससे किस ने रोका, पिछले 150 सालों मे मुसलमानो ने सबसे पिछडा हुआ रहने का रिकॉर्ड बनाया है। सारी दुनिया के मुसलमानो का आज यही हाल है लेकिन हिंद के मुसलमानो तो सबसे बुरा हाल है।
इसलिए के मै बेकार हूँ, मै घंटो पढाई नही कर सकता, अगर पढाई शुरू कर दूँ तो चौराहे की खूबसूरती खतम हो जायेगी, जो मै होने नही दूंगा।
अगर पढाई करूँगा तो उसके लिए मुझे वक़्त निकालना होगा इसलिए खेल तमाशा के लिए वक़्त मिलेगा नही, जो मै होने नही दूंगा।
अगर पढ़ता हूँ तो गुटका और जूवा छोड़ना होगा जो मै होने नही दूंगा।
पढाई करता हूँ तो मुहल्ले की रौनक खत्म हो जायेगी, मै दिन भर इसी मुहल्ले मे घूमता रहता हूँ।
हां मुझे कोई काम नही है, और पैसे कमाने की बात है तो बाहर जाकर कोई काम सिख लूंगा फिर पैसे कमाने लगूँगा.. कोई पढाई करने वाला पढ़ते ही रहेगा जबतक मै पैसे कमाना शुरू कर दूंगा इससे मेरा घरवाला भी पढाई का न सोच कर कमाने बाहर भेज देगा।
हां मै मुसलमान हूँ और मेरी पैदाइश के वक़्त मेरी तकदीर पर मुहर लग गयी थी के मै टायर फिट्टर बनूँगा, पंक्चर की दुकान खोल कर बैठ जाऊंगा या गाड़ियों की मरम्मत करूँगा नही तो गाड़ी चलाना सिख लूंगा जिससे दो वक़्त की रोटी मिल जायेगी।
हाँ मै पैदाइशी मुसलमान हूँ, जाहिल रहना मेरा काम है पैसे किसी तरह कमा लूंगा और भाईयो की टाँगे खींचना और गैरो का मुसाबिहात् इख़्तियार करना मेरा फ़र्ज़ है।
मैने पढाई क्यो नही की? या पढाई क्यों नही कर सका?
ऐसा सवाल मेरे ख्याल मे आया भी नही और मेरे बच्चे होंगे वह भी ऐसे ही करते जायेगा, इसमे कोई शक नही के मै अनपढ़ हूँ और मेरे बच्चे भी मुझ जैसा अनपढ़ होगा। लेकिन दुसरो का कल्चर और रिवायत कॉपी करना मेरा सबसे अहम काम होगा।
मै हिंदुस्तान का 30 करोड़ मुसलमानो का ही हिस्सा हूँ, ज्यादतर गरीब और कच्ची आबादियों मे रहता हूँ। मै चाहता हूँ के हुकूमत मेरे घर मे फर्श पर झाड़ू देने आये।
मै मुसलमान हूँ मेरा काम दुसरो का नकल करना और दुसरो की बुराई करना है, मै किसी अच्छे कामो मे शामिल नही हो सकता और न वह काम होने दूंगा बल्कि मेरा इलाका पिछडा है और रहेगा। 15 फिट सड़को को 8 फिट करने का माहिर हूँ, 8 फिट सड़क को मजिद कम करना मेरा हक है।
मै मुसलमान हूँ, जिसका दिन सबसे पहले "इकरा" से शुरू होता है, तालीम हासिल करने को कहता है लेकिन इसपर मैने कभी अमल कीया नही अगर किया भी तो गैरो के नरसरी के पालतू बन गए।
मै हमेशा सऊदी अरब और दूसरे मुल्को की बात करके अपनी तारीफ करता हूँ लेकिन अपने इस हाल पर कभी सोचा नही?
खुद का मुहासबा किया नही?
आखिर हुकुमत तो हमारी ही थी फिर खतम कैसे हुई?
हमारे अंदर क्या कमिया थी और आज हैं, इतने जलील वे रुस्वा क्यो हो रहे है?
हां मै मुसलमान हूँ। मै अनपढ़ हूँ, इसलिए के मेरे माँ बाप मुझे बचपन मे गैरेज मे काम करने के लिए भेज दिये और मै गरीब घराने से हूँ।
वालिदैन के पास बेहतर तालीम देने के पैसे नही थे,और मेरे समाज तालीम से ज्यादा दिखावा और शौक पर खर्च करने मे यकीं रखता है। क्योंके यह अमीर ही नही और गरीब दिखना नही चाहते बल्कि नवाबों के जैसा दिखना चाहते है चाहे कर्ज क्यो न लेना पड़े, गरीबो की मदद करने के बजाए उसको जलील करने और मज़ाक बनाने पर फ़ख़्र समझती है।
मै मुसलमान हूँ। अपने भाईयो को नीचा दिखाने मे और खुद को बड़ा साबित करने मे कोई मौका नही छोड़ता, दुसरो को ज़ालिल करना अपना फन समझता हूँ। रीकशा चलता हूँ, दूध बेचता हूँ, वेल्डिंग और प्लंबिंग का काम करता हूँ.. गैरेज मे गाड़ियां बनाता हूँ, चौराहे पर बैठे कर सिग्रेट पिता हूँ, ताश खेलता हूँ और जो कोई नही खेलना जानता उसे फ्री कोचिंग भी देता हूँ। क्योंके यह मेरा फर्ज़ है।
इसलिए के मै ना ख्वांदा हूँ। सिर्फ दो वज़हो से।
वालिदैन की गफलत और मुआशरे के दनिश्वरो की गफलत।
मेरे वालिदैन बेबस थे लेकिन मेरा मुआशेरा बेबस नही था और नही है।
मैने अपने आँखो से लाखो रुपये शादियों मे फिज़ूल खर्ची करते देखा है।
मुशायरे और कौवालियो पर पैसों की बारिश करते देखा है,
गली मुहल्ले मे अपनी मौजूदगी ज़ाहिर करने के लिए पानी के जैसे पेट्रोल खर्च करते देख है,
दिखावे और यहूद व नसारा के नकश् ए कदम पर चलते हुए खुद को कूल व मॉडर्न साबित करने के लिए पार्टिया और यौम ए पैदाइश मनाते देखा है।
शादियों मे नाच गाने और आर्केस्ट्रा मंगाने वाला गरीब कैसे हो सकता है? इसे यह साबित होता है के हमे किसकी जरूरत है और कैसा बनना है?
अगर सिर्फ मेरे वालिदैन और मेरा समाज तालीम/शिक्षा को लेकर फ़िक्रमंद होती तो आज वज़ीर ए आज़म और वज़ीर ए आला नही होता लेकिन IPS और IAS जरूर होता। वोट लिए बगैर भी मै सुरखुरु होता, या कम अज कम डॉक्टर, इंजीनियर, वकील और दीनदार शख्स जरूर होता। लेकिन बचपन से ही मेरे ज़ेहन मे यह डाल दिया गया के बड़ा होकर सिर्फ पैसे कमाना है और पढ़े लिखे लोगो के जैसे दिखावा करना है क्योंके हम उनके लायक है नही इसलिए सिर्फ ज़हिरी तौर पर उसके जैसा बनना है।
ये मुसलमां है जिसे देख शर्माए यहूद।
India Ke Musalman khud zimmedari hai apne halat ka.
ReplyDeleteJaisi karni waisi bharni
ReplyDeleteWah khud zimmedari hai apne halat ke.
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