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Kya Musalman hone ke liye Topi ya Pagadi (टोपी, पगड़ी) Pehanna Jaruri hai?

Topi ya Pagadi pehanna kya Musalman ke liye jaruri hai?

*Topi ya Pagdi (पगड़ी) pahanna Farz , Sunnat ya Mustahab (optional) hai*?
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*"Topi" Lafz Arabic zaban me nhi hai*❌
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👉 *Kyuki Arabic zaban me "ट" ٹ  "प "پ" Nhi hota hai.*
( *Quran* me apko ट" ٹ  "प "پ" nhi milega)

*Pagdi (पगड़ी) bandh kar Rasoolullah ﷺ Namaz pdhte the Aise koi Sahi Rawayat Kisi bhi hadees se Sabit nhi hai.* ❌
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👉 Esse hme ye pta chalta hai ki *Rasoolullah ﷺ ke zamane me Topi nhi thi,* kyuki Agar hoti to usse Mutalliq koi alfaz to milta, or ham Muslims wahi alfaz se pukarte bhi Topi ko, matlab ye hua ki *ye lafz "Topi" Saudia ki ejad nhi hai,* or na hi ye Rasoolullah ﷺ or Sahaba (رضی اللہ عنہا) sa sabit h.

👉 *Ulmae karam ne Topi ke Pahanne ko mustahab (optional) kaha hai*
Matlab ye na to Farz hai or na hi Sunnat*
(Majmoo’ Fataawa al-Shaykh Ibn Baaz, 10/405, 406.)
( *हर बात दलील के साथ*)
*By Beneficial iilmTeam

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Aaj ki ladkiya kaise larke se shadi karna chahati hai?

Aaj Muslim larke ladkiya shadi karne se kyu inkar kar rahe hai?
Apni marji ka karne wale Apne nafs ke gulam hai.
kaisa hoga future ka bharat?
Lajjato ko katne wali maut ko kasrat se yad karo.
Indian society after 20 years
भविष्य का भारत कैसा होगा?
आने वाले 20 सालो के बाद का भारतीय समाज कैसा होगा?
भारत का दिशा और दशा कैसी होती जा रही?

ﺑِﺴْـــــــــــــﻢِﷲِالرَّحْمٰنِﺍلرَّﺣِﻴﻢ

रसूल अल्लाह ﷺ ने फरमाया: तीन ख़सलतें (सिफतें) ऐसी हैं की जिसमें ये पैदा हो जाएं उसने ईमान की मिठास को पा लिया। अव्वल ये की~
1 अल्लाह और उसका रसूल उसके नज़दीक सबसे ज़्यादा महबूब बन जाएं,
2 दूसरे ये कि वो किसी इन्सान से महज़ अल्लाह की रज़ा के लिए मुहब्बत रखे।
3 तीसरा ये की वो कुफ़्र में वापिस लौटने को ऐसा बुरा जाने जैसा की आग में डाले जाने को बुरा जानता है।
Sahih Bukhari: jild-1, Kitab ul iman 2, hadith no. 16

रसूल अल्लाह ﷺ ने फ़रमाया: बद-गुमानी (शक) से बचते रहो क्योंकि बद-गुमानी (शक की) बातें अक्सर झूटी होती हैं, लोगों के ऐब/खामी तलाश करने के पीछे ना पड़ो, आपस में हसद (जलन) ना करो, किसी के पीठ पीछे बुराई ना करो, बु़ग़्ज़ ना रखो, बल्कि सब अल्लाह के बंदे आपस में भाई भाई बन कर रहो।
Bukhari sharif: jild-8, kitab Al-Adab 78, hadith no. 6064
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या तो आप मुसलमान हो सकते है या फिर सेक्युलर (Secular), लिबरल (liberal), Feminist, conservative

आप एक बात अपने ज़ेहन में डाल लें , इस्लाम को आपकी कोई ज़रूरत नही है , बल्कि इस्लाम की ज़रूरत आप को है। इसलाम आपका मुहताज नहीं है, चंद दिनों की ज़िन्दगी में चाहे जो कीजिए अपनी मर्जी, आप आजाद है मगर याद रखिए ना आप अपनी ज़िन्दगी को खरीद चुके है ना मौत की कीमत अदा कर चुके है, ना दुनिया में अपनी मर्जी से आ सकते है और ना जा सकते है।

आप इस्लाम की बात माने या न माने , इससे इस्लाम की शान में कोई कमी नही आएगी , लेकिन आप की इज़्ज़त , आप का वक़ार , आप की हैसियत खत्म हो जाएगी ।

हम मुसलमानो की इज़्ज़त इस्लाम से है , हमारा जीना इस्लाम से है और मरना भी इस्लाम के लिए ही है।
हमारा जीना और मरना सिर्फ अपने रब के लिए

हर मुसलमान का इस्लाम लाने के बाद सबसे अहम फ़रीज़ा इस्लाम की तबलीग है, इस्लाम की दावत देना है , अल्लाह के निज़ाम को इस दुनिया पे ग़ालिब करना है, शिर्क और तौहीद का फ़र्क़ करना है।

तुम ज़मीन के फ़ैसले पर ख़ुशियां मना लो,
हम आसमान के फ़ैसले का इंतज़ार करेंगे
इं शा अल्लाह

*बकरी चाहती है कि हमें भेड़िये के पेट में जाकर बदलाव लाना चाहिए।*

कुछ लोगों की दलील होती है, की आज जो मुसलमानों की हालात है वो सिस्टम का हिस्सा नहीं होने की वज़ह से हे, मुसलमान बड़े-बड़े ओहदे पर काईद होंगे तभी हम मुस्लिम समाज में बदलाव की एक किरन ला सकते है,
लेक़िन! इसके बरअक्स एक ये भी पहलू है कि जो सिस्टम का हिस्सा बनने की कोशिश करते है वो सिस्टम में जाने से पहले ही अपना "ईमान" गवां बैठते है, फ़िर वो सिस्टम की एक कठपुतली बनकर रह जाते है। आज भी बड़े-बड़े ओहदे पर 'उर्दू नाम वाले' मनसब हो कर बैठे है, तो क्या हो रहा है आज मुस्लिम समाज का ? दुनिया की हवस और लालच ईमान के मयार को खतम कर देती है।

मुस्लिम लड़के और लड़कियां शादी क्यों नहीं कर रहे है? क्या हम भी यूरोप के जैसा नस्ल कशि चाहते है, भेड़ बकरियों वाला जंगली तरीका जहा शादी नाम की कोई चीज नहीं बस सिर्फ casual sex है।
किसी लड़के ने अखबार में इश्तहार छपवाया के हमे इस तरह की लड़की से शादी करनी है फिर इसके जवाब में BBC हिंदी ने एक मजमून साया किया जिसका छोटा सा हिस्सा पेश कर रहे है,  दावा किया है के यह बहुत सारी लड़कियों से पूछ कर रिपोर्ट तैयार किया गया है, मतलब लड़किया ऐसे लड़के से शादी करेगी।
जो भी हो मगर क्या कोई लड़का या लड़की (मुसलमान) दीनदर हो तो क्या उसकी शादी हो सकती है इस दौर में?
अगर किसी ने जीना (زنا) नहीं किया तो क्या उसे पुराने ख़यालो वाला कहा जाएगा।
लड़की की डिमांड पूरा पढ़ने के लिए लिंक पे क्लिक कीजिए।

जो मुझे इज्जत दे. मुझे भी अपने जैसा इंसान समझे. इंसान का दर्ज़ा दे. इंसान अच्छा होगा तो पति भी अच्छा होगा. हर मामले में बराबरी में यकीन रखता हो. प्रोगेसिव हो. केयरिंग हो पर पॉजेसिव न हो.
जो बात वह अपने लिए सही मानता हो, वह सब मेरे लिए भी सही हो. जो बात मेरे लिए गलत माने, वह बात अपने लिए भी गलत माने. सच्चा, ईमानदार और भरोसेमंद हो.
शांत, समझदार, संवेदनशील, मन-वचन-कर्म से समानता में यकीन करने और इस पर चलने वाला हो. दिमागी तौर पर बेहतर तालमेल वाला हो.
महज डिग्रीधारी पढ़ा-लिखा न हो बल्कि नज़रिए में खुलापन हो. दोस्त जैसा हो. अपने विचार मुझ पर थोपे नहीं. मुझे अपनी शख्सियत और पहचान बनाने से रोके नहीं. हर काम में सपोर्ट करे. मुझे आगे पढ़ने से न रोके. जॉब करने से नहीं रोके. ये कभी न बोले- तुम केवल घर के काम पर ध्यान दो.
किसी भी बात या काम के लिए जोर-जबरदस्ती न करे.
मुझे अपने घर यानी नैहर जैसी आज़ादी दे. कहीं आने-जाने पर रोक न लगाए. हमारे भी शौक़, सपने और दोस्त होते हैं. बहुत पूछताछ न करे. बेवजह की दखलंदाजी न करे. प्यार के नाम पर रोकटोक न करे. अकेले मत जाओ कह कर, आने-जाने से न रोके.
पुरुष दोस्तों से जोड़कर कभी ताना न मारे. मैं क्या करती हूँ और क्या नहीं, हर सेकेंड का हिसाब न माँगे. शक न करे. किसी पुरुष दोस्त या साथ काम करने वाले से बात करने या मिलने-जुलने पर चिकचिक न करे. 'मैंने तुमसे ज्यादा दुनिया देखी है' कह कर हर बात मनवाने की कोशिश न करे.
घर के बारे में फैसला दोनों मिलकर लें. पार्टनर समझे, घर के काम के लिए रखी गई कोई महिला नहीं. हमेशा यह उम्मीद न करे कि मैं 'सुपर वुमन' की तरह घर के सारे काम अकेले कर लूँगी. खाना बनाता हो. घर के काम में बराबर से हाथ बँटाने वाला हो. मेरे काम को भी काम माने. हमेशा हर काम के लिए मुझसे उम्मीद न लगाए.
संतान कब होगी, यह फैसला दोनों का हो. संतान की देखभाल और परवरिश में बराबर की शिरकत करे. घर में कोई बुजुर्ग है तो उनकी देखभाल भी सिर्फ मेरी जिम्मेदारी न हो.
हमें अपनी माँ, बहन, चाची, या मामी जैसा बनने/ बनाने की उम्मीद न करे. अपने घरवालों की हर उम्मीद पूरा करने के लिए दबाव न डाले. अपने माता-पिता और समाज की आड़ में गलत बात का सपोर्ट न करे.
अगर दोनों नौकरी करते हैं, तो दोनों बराबर तरीके से घर के खर्च में हिस्सा बंटाएं.
मेरी ही नहीं, मेरे घर वालों की भी इज्जत करे. अगर पत्नी अपने सास-ससुर या बाकी ससुरालियों को अपना मान कर सेवा करती है, वैसे ही पति को भी पत्नी के माँ-बाप या अपने ससुराल वालों की करनी चाहिए. दहेज़ के सख़्त खिलाफ हो.
मैं जो कहूँ, उसे भी ध्यान से सुने. मैं जैसी हूँ, मझे वैसे ही स्वीकार करे. मेरी भावनाओं को समझे और मुझसे पूछे कि मैं क्या करना चाहती हूँ. मैं जैसी हूँ, वैसे ही अपनाए.
(सच्चाई के साथ) ढेर सारा प्यार करे.

जो हमें समझे. मतलब मेरी खुशियों की वजह, मेरे छोटे-छोटे शौक... वगैरह. रेस्तरां में मेन्यू मुझे डिसाइड करने दे.
जिसमें साथ चलने की हिम्मत हो... आगे भागने की नहीं. अपनी गलतियाँ मानने की हिम्मत रखता हो.
पति काफ़ी कुछ है लेकिन सब कुछ नहीं. मेरी व्यक्तिगत दुनिया भी होगी, उसमें द़खल न दे. पार्टनर से पहले भी मेरा वजूद था और हमारी दुनिया थी, वह कायम रहनी चाहिए.
हमारे समाज में ज़्यादातर लड़कियों के बचपन के ढेर सारे सपने पूरे नहीं हो पाते. कई सपने वह मन में सँजोए आती है.
पार्टनर ऐसा हो जो उन अधूरे ख़्वाब को पूरा करने में मदद करे. उन्हें पूरा करने के लिए बढ़ावा दे. संतान के नाम के साथ मेरा नाम भी जुड़े.
यह लेख bbc हिंदी पे प्रकाशित किया गया है।

आज के दौर में औरतों को वो सब कुछ चाहिए जो उनके लिए पहले से खास तौर पे महफूज़ है और साथ ही (gender equality) लैंगिक समानता भी।

"सबसे पहले हमे इंसान समझे" तो फिर यह फेमिनिज्म की क्या जरूरत है और फेमिनिस्ट क्यों बनी है? हमानिज्म में यकीन करो क्यों के सबसे पहले इंसान है हम सब।
Feminism nahi Humanism
आप की इज्जत में झुका हुआ था
आप ने तो गिरा हुआ ही समझ लिया।

नारीवाद में मर्दों को अपने से नीचे दबाने को कहा जाता है, समाज की गैर बराबरी को दूर करने के बजाय उसके बरक्स वहीं काम करने में यकिन रखता है जो पहले मर्द औरतों के साथ कर चुके है, मर्दों से नफ़रत करना और नफ़रत दिलाना, हर गलती की सजा मर्दों को ही देना यह कह कर के पुरुष प्रधान समाज में ऐसे होता है वैसे होता है। गलती कोई करे, कैसा भी गलती हो मगर उसका जिम्मेदार तो मर्द ही है और यही हुई हमारी आजादी मतलब अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता।

          My body my choice
              My life My Choice

कुछ भी करके निकल जाओ और बोल दो हम फेमिनिज्म वाले है, हम नारीवादी आंदोलन से ताल्लुक रखते है फिर सबकी बोलती बंद हो जाती है, किसी की हिम्मत नहीं होती के इसे जवाब दिया जाए। कभी कभी अगर कोई उसे जवाब दे दे तो वह महिला विरोधी, संकुचित मानसिकता वाला, विकृत मानसिकता, रूढ़िवादी समाज, छोटे शहरों का रहने वाला, इसने औरतों की इज्जत करना सीखा ही नहीं, इसकी मां बहन है भी या नहीं। अपने मां बहन के साथ भी इसी तरह पेश आता होगा वगैरह वगैरह जवाब में मिलता है। सोशल मीडिया पे भी इसी तरह है, कुछ पोस्ट कर दिया जाए फिर महिला अधिकार, महिला सम्मान, जैसे जुमले ट्रेंड करने लग जाते है।

Terrorism, Feminism, Sexism, Casteism etc सारे वाद वाले आंदोलन हमेशा बर्बादी की ओर ले जाता है।
फासीवाद, समाजवाद, साम्यवाद और उदारवाद जैसे सभी वादों को समझने के लिए अध्ययन करने की जरूरत है।
यूरोपियन इतिहास जैसे - फ़्रांस और इटली पे नज़र डाले जहाँ से जन्म होता है कम्युनिष्ट समूहों का जिन्होंने अपने आज़ादी एवं अधिकार के नारों से कई देशों का बंटवारा करा दिया। इन्हीं कम्युनिस्टों का येे वाद वाले आंदोलन की वजह से सोवियत संघ टूट गया।

आज खुद यूरोप में कोई सामाजिक व्यवस्था है तो बताए, जो चाहा, जब चाहा, जहा चाहा, जैसे चाहा जिस्मानी ताल्लुकात बना लिया, यह जानवरो का तरीका है और कुछ नहीं। जानवर में कौन किसको पैदा करने वाला है मालूम नहीं, उसी तरह अगर डीएनए टेस्ट किया जाए तो नतीजा कुछ और ही होगा। यूरोप की नस्ल कशी तो हो ही रही है, उसके यहां शादी जैसे पाकीजा रिश्ते में यकीन कौन रखता है, शादी से पहले और शादी के बाद सिर्फ सेक्स ही सेक्स है और यही है आजादी ।
ऑफिस वर्कर है तो वह ऑफिस में अपने काम करने वाला / वाली के साथ सेक्स करता है, एजुकेशन पैलेस हो यह पार्क हो हर जगह यही है। हसबैंड किसी दूसरी औरत से और वाइफ किसी दूसरे मर्द से। जब जिसे मौका मिला अपनि मर्जी चला दी, आखिर अपनी मर्जी से ही करने को तो  आजादी कहते है। ऊपर भी यही लिखा गया हुआ है के मुझे मायके वाली आजादी चाहिए, मुझसे काम की उम्मीद नहीं रखना होगा, मेरे किसी मर्द दोस्त के साथ आने जाने पे शक नहीं करना होगा  वगैरह
क्या उसके मायके में यह सब आजादी मिलती है, अगर
मिलती है तो वह वहीं रहे फिर दिक्कत क्या है?
अपनी जिम्मदारियों से भागने को आजादी का नाम देते है।
क्या गारंटी है के उसका किसी मर्द के साथ अफेयर ना हो?
मगर यह हम पूछ ले तो रूढ़िवादी और छोटे शहरों के कहलाएंगे, तुम्हे यह अधिकार किसने दिया है मेरे past के बारे में पूछने का? तुम होते कौन हो मुझे जज करने वाले, मुझे क्या करना है, कैसे रहना है किसके साथ रहना है यह मै तय करुंगी
फिर तो दोनों बराबर है , हसबैंड हो या वाइफ, औरत हो या मर्द : वह (मर्द) भी जब चाहे जैसे चाहे जिस तरह रहे उसे बे वफा कहने का और हवस का पुजारी कहने का हक आपको किसने दिया है। जब बराबरी और अब्ला बनने की बात आती है तो सोचना कैसा?
एक गलत करे तो दूसरे बराबरी का हक जताते हुए वह भी गलत कर बैठे। इसमें कानून हमेशा एकतरफा काम करती है।
जब लड़का या लड़की वर्जिन हो और अपने लिए वर्जिन लड़की / लड़का देख रहे हो तो किसी को कोई हक नहीं के उसी पुरानी और छोटी सोच वाला कहे, अगर ऐसी बात है तो अपने पैरेंट्स से पूछना जाकर के आप का भी किसी दूसरे से अफेयर था और है क्या अभी?
अब जो ना जायज तरीके से पैदा हुआ होगा वह तो यही कहेगा ना।
खुद को ज्यादा मॉडर्न और सही साबित करने के लिए दूसरो को रूढ़िवादी कहने का आज ट्रेंड तो चल ही रहा है।
गलत गलत है, चाहे कोई करे, और दुनिया में कोई बराबर नहीं है, यह यूरोप में होता है मर्द औरत आपस मे दोस्त होते है, लिव इन चलता है फिर शादी करते है अब हसबैंड वाइफ नहीं दोस्त बनकर रहते है फिर कुछ महीनों बाद कोई दूसरी लड़की अच्छी लगी तो उससे भी दोस्त बना लिए फिर डिनर पे बुला लिया और इसी तरह दो दिनों के बाद फिर नई लड़की के साथ दोस्ती हो जाती है अब पहले वाली इसे धोखाधड़ी समझती है और वह किसी दूसरे लड़के साथ दोस्ती कर लेती है उसका भी ऐसे ही चलते रहता है। यही है अपनी मर्जी और आजादी। जिसे बहुत सारे मर्दों के साथ रहने का आदत है वह कभी भी किसी एक के साथ नहीं रह सकती, और मर्द तो नाम से ही बदनाम है। इसलिए यूरोप में शादी की कोई अहमियत ही नहीं, तो फिर शुरू होता है आजादी, अपनी मर्जी।
जब वर्जिन की बात आती है तो कुछ आधुनिकता का सबक देने वाले यह कहते है के लड़किया ही हमेशा ऐसी कुर्बानियां क्यों दे लड़का क्यों नहीं समझौता कर सकता?
अगर लड़का या लड़की वर्जिन है तो फिर समझौता कैसा? उसकी मर्जी जैसे तुम किसी के साथ हमबिस्तर हो सकती है अपनी मर्जी से तो वह अपनी मर्जी से यह सब नहीं कह सकता / कर सकता है। वह किससे शादी करेगा, कब करेगा यह फैसला तुम करोगे, जो खुद अपनी इज्जत बचा ना सकी वह दूसरो से इज्जत करने की अपील कर रही है। "मेरी इज्जत जो करे " जैसे आपने उपर पढ़ा तो ऐसे लोगो के लिए इज्जत की क्या मायने है?

अपने सारे फैसले इनसे ले और इनके पैरो के जूती बने रहे तो वह अच्छा, अगर इन्हे सच्चाई का आइना दिखाए तो बे शर्म, तुच्छ मानसिकता वाला, औरतों को भोग की वस्तु समझने वाला कहा जाएगा मगर यह ख्याल नहीं रहता के इन्होंने खुद अच्छे इंसान की बात की मगर जानवरो वाली हरकत करते हुए खुद को दूसरों के हवाले कर दी अपनी हवस की आग बुझाने के लिए,  दूसरी तरफ इज्जत देने को कह भी रही है।

इसलाम में खवातीन के हुकूक
लड़की वाले लड़के की वर्जिनिटी को खरीदते है।
क्या इसलाम लड़कियों को अपनी मर्जी से शादी करने नहीं देता?

इसलाम ने लड़के और लड़कियों को यह आजादी दी है के अपनी मर्जी से शादी करे, जिन लोगो को ज्यादा जानकारी नहीं है इस्लाम के बारे में वह अपनी जहिलियात की सर्टिफिकेट पेश ना करे इससे बेहतर है के पहले जाकर मुकम्मल जानकारी हासिल करे। हलाला का मुआमला हो या तीन तलाक़ का बगैर जानकारी के कुछ भी बोलने से परहेज़ करे, कुछ भी बोले तो उसका दलील पेश करे।

जब दूसरी और तीसरी शादी की बात आती है तो तथाकथित आधुनिकता का दिखावा करने वाले इसे पिछरी सोच और 1400 साल पुरानी तरीका बोलते है। दूसरी तरफ यही दूसरी तीसरी गर्ल फ्रेंड बनकर सशक्त ,  आत्मनिर्भर कहलाती है।

दूसरी शादी की बात आने पे फेमिनिस्ट लड़किया यह कहती है के यह औरतों को सिर्फ भोग का वस्तु समझते है, जानवरो वाला तरीका अपना लिया है, कितना मुश्किल होता और क्या गुजरती होगी अपने हसबैंड को किसी दूसरी औरत से शेयर करने पर। दूसरी तरफ लिव इन रिलेशनशिप में रहना मॉडर्न तरीका बन जाता है, एक लड़का ना जाने कितनी लड़कियों के साथ लव इं में रहता है वह भी बिना पूछे बगैर उसकी इजाज़त के और फिर शादी की बात आती है तो सर्जरी करवाती है ताकि होने वाला हसबैंड को सच्चाई मालूम ना हो। (लिंक दिया का चुका है मन की बात नहीं की जा रही है)

इसलाम में दूसरी शादी पहली बीवी की मर्जी के बगैर हो ही नहीं सकती, दोनों में इंसाफ बराबर करना है, इसलाम में बेवा औरत (विधवा औरत) को भी दुबारा शादी करने का हक है मगर लिव इन रिलेशनशिप में कोई लड़का क्या दूसरी लड़की से रिलेशन बनाने से पहले उस लड़की को बताता है, उससे इजाज़त लेता है और क्या उसके साथ पूरी ज़िन्दगी रहता है या फिर महीनों बाद दूसरी थाली में मूंह डालने चला जाता है।

जब पूरी ज़िन्दगी साथ नहीं दे सकता तो फिर वह भी किसी दूसरे लड़के से शादी करेगी नहीं तो इसी तरह भोग की वस्तु बनती रहेगी, लव इं रिलेशनशिप में रहेगी या फिर शादी करेगी। अगर लिव इन में रही तो वह भी वस्तु मात्र ही खुद को समझ रही है , जो मर्दों को यह समझाती है के हमे पहले इंसान समझा जाए, ना के भोग की वस्तु फिर खुद की इज्जत की परवाह किए बगैर इस्तेमाल हो जाती है और यह अपनी मर्जी से होती है। अगर शादी करेगी तो पहले अपनी डिमांड करेगी लड़के वाले के सामने फिर अगर उसे मालूम हो जाता है के लड़की सत्तर चूहे खा चुकी है तो वह इंकार कर देता है फिर वही लड़की अब उस लड़के को आधुनिकता का पाठ पढ़ाने लग जाती है, गलती खुद करे और उसकी सजा किसी और को मिले। जब वर्जिनिटी मायने नहीं रखता तो तुम्हे दूसरी बीवी बनने से क्या ऐतराज़ है, जाओ दूसरी शादी करके किसी मर्द की दूसरी बीवी बनकर रहो। (खैर तुम अपनी मर्जी से ही करो, किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता)

एक #मुसलमान_लड़की को इस बात का अद्राक होना चाहिए के वह आम नहीं है, उसकी खूबसूरती इतनी मामूली नहीं के हर कोई उसे देखे, वह इतनी सस्ती नहीं और ना इतनी मामूली है के उसे हर कोई इतनी आसानी से देखे, उसके #खूबसूरती के काबिल वहीं है जिसे #अल्लाह चुनेगा, वह कहता है पाक दामन मर्द पाक दामन औरतों के लिए और पाक दामन औरतें पाक दामन मर्दों के लिए, बद चलन मर्द   बदचलन औरत के लिए और बद चलन #औरत बद चलन #मर्द के लिए।
अल्लाह ने वादा किया है , मुसलमानों से यह गुजारिश करता हू के वह अपना फैसला करे, कौन सा तरीका अपनाएंगे, निकाह करेंगे या लिव इन रिलेशनशिप?
शरीयत के मुताबिक लिव इन रिलेशनशिप जीना  (زنا) है,
इसलाम ने निकाह को आसान करने को कहा ताकि जीना (زنا) मुश्किल हो जाए तो यही हुई लिव इन रिलेशनशिप जो जीना के तरफ ले जाता है, अपनी मर्जी से करने के लिए हर कोई आजाद है। जब हद से ज्यादा बढ़ जाए तो उसे अल्लाह के अजाब का इंतेज़ार करना चाहिए।
मुस्लिम लडको के लिए
जब हम खुद दूसरी लड़कियों की दामन दागदार करेंगे तो हमारे नसीब में पाक दामन लड़की कहा से आएगी।
यह दुनिया मुकाफात ए अमल है, तुम दूसरो के साथ जैसा करोगे वैसा ही तुम्हारे साथ भी होगा, तुम दूसरो की बेटी बहन से अपनी हवस की प्यास बुझाओगे तो तुम्हारी बहन भी दूसरो के लिए तुम्हारे खिलाफ खरी होगी।
इसलाम में शादी के लिए क्या क्या चीजों की जरूरत है?
ससुराल वालो के बुरे सुलूक पे लड़की को क्या करना चाहिए?
आजादी से हमे क्या मिला? casual sex
मुजरा करने वाली औरतें मुस्लिम लड़कियों के हक की बात करती है.

दिल्ली, मुंबई, कोलकाता जैसे महानगरों में औरतों ने खुद ही नारीवाद का मज़ाक बना कर रखा हुआ है, इसके लिए पुरुष समाज को (पुरुष प्रधान बोलकर) हमेशा दोषी ठहराना मुनासिब नहीं होगा (ध्यान रहे कि  आज ज्यादातर लोग खासतौर से मर्द को ही निशाने पे लेता है यह कहकर के इतने जमाने से औरतों पे ज़ुल्म करते है आए अब तो बराबरी का जमाना है)

शादी से पहले सेक्स की हुईं लड़किया अपने हसबैंड से सच्चाई छुपाने के लिए सर्जरी करवा रही है।

मगर यहां तो अपनी मर्जी की ही करेगी यही इनकी पसंद है और जो उससे इंकार कर दे, इनके किरदार की सच्चाई बयां करे वह रूढ़िवादी समाज और पुराने ख़यालो वाला हो जाता है।

जब बात वर्जिनिटी की आती है तो उसे तुच्छ मानसिकता और संकीर्ण सोच वाला कहते है और सीधा लड़के के किरदार पे उंगली खरा करते है इतना कहकर अगर तुम्हे सीता चाहिए तो राम बनना होगा
यह हमारे बारे में कितना कुछ जानती है?
चलो सही हम राम नहीं है मगर हम वर्जिन है,
अवतार नहीं मगर
आज तक किसी लड़की को टाइमपास के लिए गर्ल फ्रेंड नहीं बनाया, क्यों के हम यह कुत्ते कुतियो वाले रिश्ते में यकीन नहीं रखते।

उनसे यह पूछ दिया जाए तो यही कहेंगे के किस जमाने में जी रहे हो, यह इक्कीसवीं सदी है जिसमें दुनिया चांद और सूरज पे जा चुकी है, मेरा उनसे यही कहना है के मुझे मालूम है के दुनिया चांद पे जा चुकी है मगर यह बताओ के तुम क्यों नहीं गई? मंगल ग्रह पे दुनिया बस रही है, लेकिन ना तुम मंगल ग्रह पे गई हो ना चांद पे। जो तुम कह रही हो वह मुझे भी मालूम है और हा अपनी खामियां छुपाने के लिए यह आधुनिकता का सबक मुझे नहीं दिया करो।

उस लड़के द्वारा इंकार करने पर इसे पितृप्रधान समाज की नीच मानसिकता कहना कितना सही है?
क्योंकि गलती तो आपने की ( अगर आप मानतीं है कि गलती हुई), कोई और लड़का इस गलती को क्यों बर्दास्त करे?
और अगर आपको लगता है कि कोई गलती नहीं थी (हमारी सच्ची मुहब्बत थी)) तो उसे छोड़ क्यों दिया?
यह तो अजीब बात हुई पूरी दुनिया में बराबरी के हक की लड़ाई करनेवाली अपने मुहब्बत में हार कैसे जाती है?
क्यों छोड़ा उस लड़के को?
उस लड़के ने क्यों आपको छोड़ा, क्या वजह थी?
या सिर्फ जिस्मानी सुकून हासिल करना ही इस मुहब्बत का मकसद था?
जब आपको अच्छे बुरे, सही और ग़लत की समझ है और आप अपना फैसला खुद करेंगी फिर यह क्या है?

घरवाले जब मना कर देते है और शादी करने को कहते है तो उन्हें हम नीच कमजर्फ कहते है और अपनी मन मर्जी करते और जब वह लड़का छोड़ देता है तो वाहा आपकी सशक्तिकरण कहा चली जाती है?
पूरी दुनिया से बराबरी की जंग करने वाली फेमिनिस्ट लड़किया अपने आशिक से मुहब्बत की जंग में हार कैसे जाती है?

भई जब मुहब्बत में ही नहीं जीत सके तो कहाँ जीतोगे? तो इतना फ़िक्र मत करो और भिड़ जाओ अपने सच्चे प्यार के लिए । और अगर ये नहीं कर सकते या करना नहीं चाहते हो तब तो ज़ाहिर सी बात है कि आप मौक़ा परस्त है, बे वफा है, खुद ग्रज और मफाद परस्त है जो अपनी जरूरत के मुताबिक सबसे ताल्लुकात कायम करती है और मतलब निकल जाने के बाद उसे छोड़ देती है, जिससे (मां बाप) हमारी वजूद है हम उसी से आजादी मांग रहे है, उसी से अपनी निजात चाहते है, उसी को कहते है के आप मेरी ज़िन्दगी में दीवार ना बने।
एक लड़का के लिए हम अपनी मां बाप के खिलाफ जाकर उसके साथ रहते है तो फिर उससे ब्रेकअप क्यों हो जाता है जब इतना ऐतेबार था तो?
जब मां बाप अपनी मर्जी से करने ही नहीं देते तो पुरुष प्रधान समाज की गलती और जब अपनी मर्जी से बॉय फ्रेंड बनाओ फिर वह छोर दे तो सारे मर्द एक जैसे होते है। इसी तरह कोई दूसरा लड़का शादी करने से इंकार कर दे तो वह रूढ़िवादी है, संकीर्ण मानसिकता वाला है और फिर पुरुष प्रधान समाज का सोच रखता है।

कल उसके साथ फ़ायदा दिख रहा था तो उसके साथ थे, आज इस थाली में ज्यादा घी दिख रहा है तो आज यहाँ हैं । फ़िक्र मत करो कल कहीं इससे भी ज्यादा फ़ायदा दिख ही जाएगा। और बिल्कुल भैया ये आपकी आजादी भी है लेकिन आजाद तो सब होते हैं, वो लड़का भी है जिसने सब जानने के बाद शादी से मना कर दिया। तो उसे ताना मारना, कोसना, रूढ़िवादी कहना, विकृत मानसिकता , पुराने ख़यालो वाला, दबे कुचले और छोटे शहरों के, धिक्कार, नीच, बे शर्म, संकीर्ण और तुच्छ मानसिकता, औरतों को भोग की वस्तु समझने वाला कहना कितना मुनासिब है?

क्या हम अपनी मर्जी से शादी नहीं कर सकते?
क्या हमे इतनी भी आजादी नहीं है के अपने जैसी लड़की से शादी करे?
क्या हम वर्जिन को तरजीह देकर शादी नहीं कर सकते?
क्या हमे इतनी भी आजादी नहीं है?

सारा माहौल बिगाड़ कर रख दिया है इन्होने
धोखा मिले तो कहती हैं हमें फंसाया गया।
कोई इनसे पूछे इत्मीनान से अपने घरवालों को लड़का देखने का वक़्त नहीं दे सकती थीं?
सेक्स की भूखी हैं ये।
हमारे समाज में ही स्वयंवर होते थे, तो औरतों को हमेशा आजादी मिली है। इनसे कोई पूछे जब किसी लड़के को ये फंसाती हैं, तभी उसको पहले शादी के लिये क्यूँ नहीं बोलतीं?
क्यों उसकी बातों में आ जाती हैं।  असल में गलती खुद करती हैं और दोष लड़कों पर डालती हैं।
जो अच्छी लड़कियाँ हैं, उनसे सबक सीखें ये।
अपनी मर्जी से ही दोस्ती और फिर शादी करना चाहती है तो यह तुम सोचो के कौन अच्छा है और कौन बुरा?

ज्यादातर जगहों पे अभी भी लड़के और लड़कियों कि शादी घर वाले अपनी मर्जी से करते है। घरवाले तो लड़का ढूंढते है और फिर लड़की को ही आखिरी फैसला करना होता है ऐसा तो नहीं है के जबरदस्ती शादी कर दी जाती है।

बहुत सारे फेमिनिस्ट यह भी कहते है के जब हम किसी अनजान लड़के से दोस्ती नहीं कर सकते तो अनजान लड़का से शादी कैसे कर सकते है?

तो नतीजा सामने है फिर ब्रेकअप होने के बाद बे वफा कहना और सारे पुरुष समाज को कोसना कितना मुनासिब है? जब अपनी मर्जी से ही दोस्ती करती है तो लड़के को दोष देना कितना सही है, इसलिए तो घरवाले शादी अपनी मर्जी से करे देते थे लेकिन जब मर्जी अपनी तो गलती की जिम्मेदारी भी अपनी, उसके अंजाम का जिम्मेदार भी खुद बनिए किसी लड़के को मत जिम्मेदार बनाइए क्यों के इसमें अपने मर्जी से सबकुछ था।

मुहब्बत किसी और से, और पैसे के लालच में, जमीन व जायदाद , शोहरत के हवस में शादी किसी और से कर के कुछ दिनों के बाद उससे अलग होने का रास्ता निकालना, घर में अगर सास ससुर, हसबैंड किसी बातो पे कुछ कह दे तो उसे हमेशा धमकी देना के में पंखे से लटक जाऊंगी, मै आजाद रहना चाहती हू, मै भी एक इंसान हू और मुझे वह सब आजादी चाहिए जो एक इंसान को मिलनी चाहिए। इन सब बातो का लेवल लगा कर घर में रोज कुछ ना कुछ बवाल खरा कर ही देती है और फिर जब इससे भी ना हो तो जहैज के लिए ज्यादती, यौन उत्पीडन, मानसिक उत्पीडन, सामाजिक प्रताड़ना, घरेलू हिंसा का केस करके आराम से अपने घर बैठ जाती है फिर लड़के वाले की ज़िन्दगी और मौत से जंग शुरू हो जाती है।
अदालत (आओ दावा करो लड़ो और तबाह हो जाओ) का चक्कर लगाते लगाते बेचारे का सबकुछ खत्म हो जाता फिर 5 साल के बाद मालूम पड़ता है के यह इलज़ाम झूठा था जो लड़की एक साजिश के तहत लगाई थी। कई बार तो लड़के वाले को जेल का भी मजा चखना पड़ता है। आखिर कानून जब बना है तो उसका भी तो फायदा उठाना ही चाहिए।
एक औरत होने का यह भी फायदा है के कभी भी किसी भी मर्द पे इल्ज़ाम लगा दीजिए और हमेशा मर्द ही  गलत होता है समाज और कानून की नज़र में।
एक तो वह खुद बे कसूर है मगर अब खुद को ही सच्चा साबित करना पड़ता है के मैंने यह काम नहीं किया, मैंने कभी ऐसी गन्दी हरकत नहीं की, मैंने कभी इसका यौन शोषण नहीं किया।
(National Crime Records Bureau, MHA के मुताबिक 67% मामले कचहरी में झूठे पाए गए)






यही है इनकी बराबरी, इसी से इन्हे आजादी मिलती है।
सशक्त, आत्मनिर्भर होना मतलब किसी मर्द को झूठा साबित करना, उसका मजाक उड़ाना, उसकी इज्जत को तार तार करना, उसपे दहेज उत्पीडन का केस करना, यौन शोषण और बलात्कार का मुकदमा चलाना ही तो है।
मर्दों की इज्जत होती भी है ऐसा तो मैंने कहीं लिखा हुआ नहीं देखा। हां इतना जरूर देखा और कहते हुए सुना के औरतों की इज्जत करना सीखो क्यों के तुम्हारी मां बहन भी एक औरत है। लेकिन यह नहीं देखा के मर्दों की इज्जत करना सीखो क्यों के तुम्हारे बाप (वालिद/ फादर/ पिता)  और भाई भी एक मर्द है। देखता भी कैसे क्यों के दोनों तो बराबर है ना फिर एक को इज्जत मिल गई तो समझो सबको मिल गई।
respect women's but don't respect man
because My choice and its my freedom.

किसी जईफ शख्स, हामिला औरत (प्रेंग्नेंट औरत), दूध पीने वाले छोटे से बच्चे को लेकर अकेली सफर कर रही एक मां, विकलांग, मरीज ( फटा पुराना कपड़ा पहने कमजोर लाचार मजबुर), की क्या हिम्मत की किसी नए उम्र की लड़की से सीट के लिए इल्तिज़ा कर सके, ऐसा कई बार हुआ  के कोई बे सहारा आदमी अगर बैठने के लिए सीट मांगे तो यही लड़किया ( फेमिनिस्ट, आत्मनिर्भर, सशक्त, आधुनिक, आजाद चिरिया जो कहीं भी, कभी भी, जमीं व आसमान में अपनी मर्जी से सैर लगाती ही रहती है) उसे इस तरह धुधकारती है के वह कमजोर शख्स खुद को दुनिया का सबसे मजबूर, मुफलिस, बे कस समझता है, उसके आंखों से आंसू निकलने लगता है।

हम भी बादशाहों के बादशाह है साहब
बातों से जात और हरकत से औकात पहचान लेते है।

इसी तरह लड़को को भी देखा के अगर कोई बूढ़ा शख्स पुराना कपड़ा पहने हुए, पान चबाते हुए किसी नवजवान लड़का से सीट मांगे तो वह जगह होते हुए भी बैठाने से इंकार कर देता है और वहीं बूढ़े के जगह पे कोई लड़की बैठने के लिए इधर उधर (दाई बाई) देख रही हो तो सभी लड़के उसे मैडम के नाम से मुखातिब करते है और उसे सीट पे बैठने को बोलते है चाहे उसके सीट पे बैठने की जगह नहीं भी हो तो, अगर जगह हो तब भी किसी जईफ शख्स को बैठाने से इंकार देते है।
(आखिर इंसान तो दोनों है और ज्यादा जरूरत उस बूढ़े को है मगर लड़की को ही खास तौर पे क्यों सेलेक्ट किया गया? यह भी एक छोटी सोच है)

वाजेह रहे के लेखक ने अपनी आंखो से कई बार ऐसा देखा है यह कहासुनी नहीं है।

हक़ीक़त यह है के हमारे अंदर दिखावा करने का शौक बहुत ज्यादा है और अंग्रेजो की 200 साल गुलामी का असर भी फिर हम कैसे ना आधुनिक हो?
छोटे कपड़े पहनने से, बेहयाई फैलाने से, सिगरेट पिए, शराब और जूवा आम हो जाए तो हम आधुनिक हो गए चाहे पढ़ने में र ब ट ही क्यों ना हो।

आज की नवजवान नस्ल यह भूल जाती है कि परिवार नाम की जिस संस्था से फायदा हासिल कर वह कमाने वा ऐश व आराम करने योग्य बनी है वह पुरानी परम्परा और तथाकथित पिछड़े मां बाप के त्याग के वजह ही मुमकिन हुआ है.

अगर इस नस्ल ने भी आज की पीढ़ी की तरह मजे मारने को अपना मकसद बनाया होता तो भारत में भी अमेरिका की तरह डॉक्टर , इंजीनियर , साइंटिस्ट विशेषज्ञ विदेश से बुलाए जाते , लड़के सड़क पर नशा करते, लड़कियां वक्त से पहले गर्भवती हो कर अवैध बच्चे पैदा करतीं जो यतीमखाने (अनाथालय) में पलते , आधी आबादी डिप्रेसन में रहती । लेकिन यहां मां , बाप पेट काट कर, ज़मीन बेच कर पढ़ाई के लिए पैसा जुटाते हैं।
नयी पीढ़ी यह भी भूल जाती है कि अमेरिका में 14 साल के बाद मां बाप को बच्चों की शिक्षा और भरण पोषण का खर्च उठाना जरूरी नहीं है जबकि भारत में कई बार 30 साल की उम्र और शादी के बाद तक मां बाप पर आर्थिक निर्भरता दिखाई पड़ जाती है । अमेरिका में बी टेक , एम टेक , पीएचडी या लड़की घुमाने का खर्चा खुद कमा कर उठाया जाता है , बाप के पैसे से नहीं किया जाता है ।

आज की नस्ल अमेरिकी और भारतीय संस्कृति के फायदे एक साथ उठाना चाहती है और जिम्मेदारी से भाग रही है । उसे अमेरिका का आराजाक्ता और आजाद ज़िन्दगी भी चाहिए और भारतीय मां , बाप का सामाजिक और आर्थिक संरक्षण भी चाहिए लेकिन उनकी बात मानने से परहेज है। अमेरिका में पढ़ाई के लिये कर्ज को अदा करने में सालो लग जाते हैं ।

कई लड़कियां, लड़के 35 साल की उम्र तक मजा लेने के चक्कर में शादी से भागते रहते हैं , फिर 40 के होने पर अकेलेपन , बीमारियों से घबरा कर शादी के लिए बेचैन हो जाते हैं लेकिन तब कोई मिलता नहीं है, बाद में इन्हे अपने किए हुए का खामियाजा भुगतना पड़ता है, अपने जवानी में इन्हे सबकुछ आसान ही लगता है, मगर जब वक़्त का पाशा पलटता है तो इनकी मन मर्जी और आजादी सब कुछ निकल जाती है उस वक़्त अफसोस और मायूस होने के अलावा कुछ भी बचा नहीं होता, फिर दुनिया से अलग थलग पर जाते है कोई पूछने वाला भी नहीं होता, परिवार - रिश्तेदार वाला खूबसूरत सिस्टम इन्हे नसीब कहा होता है। रिश्ते नाते में इन्हे यकीन ही नहीं हर जगह इन्हे आधुनिकता दिखाई पड़ती है।

इस नस्ल को अपने किए हुए का पता आज से 20–25 साल बाद अगली नस्ल के बाद मालूम होगा फिर उस वक़्त हम पुरानी पीढ़ी कहलाएंगे, उस वक़्त का लड़के लड़किया हमे पुरानी पीढ़ी कहेंगे। तब यह शुरू होगा
पुरानी पीढ़ी को नई पीढ़ी के हिसाब से चलना ही होगा
, लेकिन तब तक अमेरिका की तरह सब कुछ बरबाद हो चुका होगा, ना सामाजिक व्यवस्था पहले जैसी होगी ना मां बाप का वह प्यार। यतीमखाने में इनकी परवरिश होगी, जब वाहा से निकलेंगे तब भूखे शेर के जैसा लड़कियों के तरफ दौर पड़ेंगे फिर बलात्कार और रेप आम हो जाएगी तब तक हम बहुत ही आधुनिक हो चुके होंगे, 35 - 40 साल की उम्र में ही ज़िन्दगी से मायूस हो जाएंगे, ज़िन्दगी से हम ना उम्मीद हो चुके होंगे, खुद को दुनिया का सबसे मजबूर समझेंगे तन्हाई हमे काटने दौड़ेगी। जैसे हम अपने बच्चो की जिम्मेदारी से भागकर आजाद हो गए थे उसी तरह बुढ़ापे में भी हमारी औलाद अपनी आजादी की मजे लेगी और हमे जिस वक़्त सबसे ज्यादा सहारे की जरूरत होगी उस वक़्त हम रोएंगे और नहीं नस्ल अपने रंगीनियों में डूबी होगी। हमने अपने जिम्मेदारी से भागने को आजाद समझा तो हमारी औलाद भी आजादी चाहेगी उसे भी आसमान में सैर लगाने का दिल करेगा।
पहले के मां बाप अपनी औलाद से यह उम्मीद रखते थे के बुढ़ापे का लाठी बनेगा मगर आज की नस्ल अपनी अय्याशी में लगा हुआ है फिर जब हम बूढ़े होंगे तो कौन पूछेगा? दुनियादारी यही खत्म हो जाएगी अपनी मर्जी का चाहे जितना कर लो क्यों के यह दुनिया बे वफा है किसी के साथ वफा नहीं की। ना हमे कोई फेमिनिज्म वाले मदद करेंगे ना कोई पुरुष प्रधान समाज वाला, कितना आजाद हो जाओगे कितना अपनी मर्जी से करोगे? वक़्त से पहले और किस्मत से ज्यादा तो मिल नहीं सकता। जवानी में जब हम किसी का नहीं सुनते है तो बुढ़ापे में कौन हमारी सुनेगा, हम यह भूल जाते है
ना मुझसे पहले भी और ना जाने बाद में भी कितनी नस्ल आएगी और इसी ज़मीन में अपने घमंड के साथ दफन हो जाएगी
आज लग चुकी है सिर्फ राख होकर खाक में मिलना बाकी है।
जब हम सारी दुनिया अपनी मर्जी से चलेगी तो कोई किसी के परेशानी व मुसीबत में नहीं जाएगा, यह कह कर के "जाओ अपनी मर्जी में जो आए वह करो मै भी डिप्रेशन से गुजर रहा हू"।
कुछ इस तरह का होगा भविष्य का भारत

वाज़ेह रहे के यह मजमूं कोई महिला विरोधी या पुरुष सत्ता के नजरिए से नहीं लिखा गया है, फेमिनिस्ट वाले अपने ख़यालो का इजहार जरा अदब व एहतेराम से ही करे, हर किसी को आजादी है फिर अगर कोई वर्जिन है तो उसे आप धुधकार नहीं सकते, कंजर्वेटिव नहीं कह सकते, किसी को पिछड़ी सोच वाला, विकृत और संकीर्ण मानसिकता वाला कहकर उसे जलील करने का आपको हक नहीं है। आधुनिकता के नशे में अपनी औकात ना भूले, आज भी बहुत सारे लड़के लड़कियां शादी से पहले तक किसी से कोई दोस्ती नहीं करती उसके लिए यह बहुत मायने रखता है के वह अपने जैसा ही शरीक ए हयात खोजे, अपनी  विचार दूसरे पे थोपने का हक आपको किसी ने नहीं दिया है जो आप अपनी मर्जी का करते हुए किसी का मजाक बना दे, उसे पूरी आजादी है अपने जैसे से शादी करने का, आप अपनी मर्जी का मालिक है तो दूसरे लोग भी अपनी मर्जी का मालिक है । कोई आपका जरखरीद गुलाम नहीं है जो उसको हुक्म देना शुरू कर दे के तुम जाहिल हो, पुराने ख़यालो वाला हो, तुम्हे साइंस का नॉलेज नहीं ऐसा आप नहीं कह सकते। जरूरी नहीं के जो बिना बॉय फ्रेंड / गर्ल फ्रेंड का रह रहे हो वह आधुनिक ही ना हो और अनपढ़ हो, बस उसे अपनी इज्जत की परवाह हो, घरवाले - रिश्तेदार वाले का ख्याल रखता हो और रिश्तों की कद्र जानता हो फिर छोटी सोच उसकी नहीं बल्कि लिव इन रिलेशनशिप (live in relationship) वालो का है जो आधुनिकता के नाम पर, फ़ैशन के नाम पर खुद को बर्बाद कर चुका है और दूसरो को भी उसी बुराई के दलदल में फेंकना चाहता है।

दुनिया परस्ती गुलामी का रास्ता है, जिसने दुनिया को अपने ऊपर गालिब किया उसने दुनिया की गुलामी अपने लिए लाज़िम किया, आलम ए इसलाम के जो मुल्क दुनिया के रंगीनियों में मस्त रहे वह फिरंगियों के गुलाम बने। जिसने आखीरत का दुनिया के मुकाबले इंतेखाब किया उसे अल्लाह कभी झूकने नहीं दिया।
बेशक यही कामयाब लोग है।
अल्लाह हमे फिरंगियों के साजिश से महफूज रख, दुनिया के हवस से हमे निकाल और सही अमल करने की तौफीक अता फरमा, हमेशा सीरत ए मुस्तकीम पे चला। आमीन समा आमीन

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Har Dost kahlane wala Shakhs, Sacha dost nahi hota.

Sache dost ki nishani kya hai?
Hamari Zindagi me kaun hamara Sacha dost hai?

بزرگ سنایا کرتے تھے کہ ایک شخص سے بہت سارے لوگ دوستی کا دم بھرنے لگے تو اس کے والد نے کہا:

بیٹا ! ہر دوست کہلانے والا شخص ، دوست نہیں ہوا کر تا ؛ بڑی جانچ پڑتال کے بعد کسی کو دوست سمجھنا چاہیے ۔

پھر باپ نے ایک دُنبہ ذبح کرکے بوری میں بند کیا جس سے خون ٹپک رہا تھا ، اور بیٹے سے کہا:

یہ اپنے دوستوں کے پاس لے جاؤ ، اور اُنھیں کہو:

مجھ سے قتل ہوگیا ہے ، میری مدد کرو !

پھر دیکھو وہ کیا جواب دیتے ہیں ۔

بیٹے نے بوری اٹھائی اور رات کو ایک دوست کا دروازہ جا کھٹکھٹایا ۔

دوست نے پوچھا خیریت ہے ؟

کہنےلگا: یار مجھ سے قتل ہوگیا ہے ، نہ  لاش ٹھکانے لگانے کی جگہ مل رہی ہے ، نہ سر چھپانے کی ؛ میری کچھ مدد کرو !

دوست نے مدد کے بجائے ٹال دیا ، کہ تُو جانے اور تیرا کام جانے ، میں تیرے ساتھ کیوں پھنسوں ۔
وہ دوسرے ، تیسرے ، چوتھے ، الغرض سب دوستوں کے پاس گیا لیکن کسی نے بھی اُسے اپنے گھر میں پناہ نہ دی ۔
وہ مایوس ہوکر والد کے پاس آیا اور کہا:

اباحضور !  آپ درست فرماتے تھے ، واقعی وہ میرے دوست نہیں تھے ، جو مصیبت کا سن کر ہی بھاگ گئے ۔

والد نے کہا: بیٹے میرا ایک دوست ہے ، اور زندگی میں مَیں نے اس ایک کو ہی دوست بنایا ہے ؛ اب تُو یہ بوری لے کر اس کے گھر جا اور دیکھ وہ کیا کہتا ہے ۔

بیٹا اس کے گھر پہنچا اور اسے وہی کہانی سنائی ، جو اپنے دوستوں کو سنائی تھی ۔

اس نے بوری لے کر مکان کے پچھواڑے میں گڑھا کھود کر دبا دی ، اور اوپر پھول لگادیے تاکہ کسی کو شک نہ ہو ۔

بیٹے نے باپ سے آکر سب کچھ بیان کیا اور کہا:

اباجی آپ کا دوست تو واقعی سچا دوست ہے ۔

باپ نے کہا:بیٹا ! ابھی ٹھہرجاؤ ، اتنی جلدی فیصلہ نہ کرو ۔
کل اُس کے پاس دوبارہ جانا اور اس سے بدتمیزی کرنا ، پھر جو ردِ عمل ہوا وہ آکر مجھے بتانا ۔

بیٹے نے ایسے ہی کیا ........... گیا ، اور اس سے بد تمیزی اور لڑائی کی ۔

اس نے جواب میں کہا:

اپنے والد سے کہنا فکر نہ کرے ، تمھارا دوست " چمن " کبھی نہیں اُجاڑے گا ۔

( مطلب جو پودے لاش کے اوپر لگائے ہیں وہ سدا لگے رہیں گے ، انھیں کبھی نہیں اکھاڑوں گا ۔
یعنی تیرے بیٹے کی بدتمیزی کو دیکھ کر اس کا راز کبھی فاش نہیں کروں گا ، کیوں کہ میں تیرا دوست ہوں )

۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔
رب تعالیٰ ہمیں بھی مخلص دوست نصیب کرے !
دوست مشکل‌ وقت میں کبھی ساتھ نہیں چھوڑتا ، دوست ، دوست کے دنیا و آخرت میں کام آتا ہے ۔
وہ اس کے عیبوں کو دل ، دماغ ، اور آنکھوں کے سامنے نہیں رکھتا ، بلکہ پشت کے پیچھے گہرا گڑھا کھود کر ، اس میں ہمیشہ کے لیے دبا دیتا ہے ؛ اور اس کے اوپر محبت بھری نصیحت  کے پھول لگادیتا ہے ، جن کی خوشبو دوست کو آئندہ کے لیے عیبوں کی بدبو سے بچائے رکھتی ہے ۔

✍️لقمان شاہد

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Kya bina Wuzu kiye ham Quran Majeed ki tilawat kar sakte hai?

Kya Bagair wuzu kiye Quran ki tilawat kar sakte hai?
Bina Wuzu ke quran sharif ki tilawat karna.

بلا وضو قرآن کی تلاوت
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دلائل کی روشنی میں قرآن بلا وضو پڑھنے کا جواز نکلتا ہے ، اور جہاں قرآن بغیر وضو کے اور بغیر چھوئے پڑھ سکتے ہیں ، وہیں بلا وضو قرآن چھو کر بھی پڑھا جاسکتا ہے ۔ بعض لوگ یہ اعتراض کرتے ہیں کہ بلا وضو قرآن پڑھنے کے جوبھی دلائل ہیں ، ان میں چھونے کا ذکر نہیں ہے ۔ چلیں دیکھتے ہیں ، اس بات کی کیا حقیقت ہے ۔

صحیح بخاری شریف میں ایک حدیث ہے جسے ابن عباس رضی اللہ عنہ بیان کرتے ہیں۔ اس حدیث میں ہے کہ نبی کریم صلی اللہ علیہ و آلہ وسلم سوئے ہوئے تھے، جب اُٹھے تو اپنی آنکھوں کو ہاتھ سے صاف کیا اور پھر سورۃ آل عمران کی آخری دس آیات کی تلاوت کی۔ پھر لٹکائے ہو مشکیزہ کی طرف بڑھے اور وضو کیا اور نماز شروع کر دی''۔
(صحیح بخاری مع الفتح)۔

اس حدیث سے یہ بات واضح ہوتی ہے کہ نبی کریم صلی اللہ علیہ وآلہ وسلم نے پہلے تلاوت کی اور وضو بعد میں کیا۔ امام بخاری رحمہ اللہ نے اس حدیث پر باب قائم کیا ہے: بے وضو ہونے کے بعد قرآن مجید کی تلاوت کرنا۔

حضرت عمر رضی اللہ عنہ کا اثر دیکھیں : عَنْ مُحَمَّدِ بْنِ سِيرِينَ أَنَّ عُمَرَ بْنَ الْخَطَّابِ کَانَ فِي قَوْمٍ وَهُمْ يَقْرَئُونَ الْقُرْآنَ فَذَهَبَ لِحَاجَتِهِ ثُمَّ رَجَعَ وَهُوَ يَقْرَأُ الْقُرْآنَ فَقَالَ لَهُ رَجُلٌ يَا أَمِيرَ الْمُؤْمِنِينَ أَتَقْرَأُ الْقُرْآنَ وَلَسْتَ عَلَی وُضُوئٍ فَقَالَ لَهُ عُمَرُ مَنْ أَفْتَاکَ بِهَذَا أَمُسَيْلِمَةُ ۔
ترجمہ : محمد بن سيرین سے روایت ہے کہ عمر بن خطاب رضی اللہ عنہ لوگوں میں بیٹھے اور لوگ قرآن پڑھ رہے تھے پس گئے حاجت کو اور پھر آکر قرآن پڑھنے لگے ایک شخص نے کہا آپ کلام اللہ پڑھتے ہیں بغیر وضوکے حضرت عمر رضی اللہ عنہ نے کہا تجھ سے کس نے کہا کہ یہ منع ہے کیا مسیلمہ نے کہا؟
حوالہ : موطاامام مالک:جلد نمبر 1:باب: کلام اللہ بے وضو پڑھنے کی اجازت۔

اس اثر سے یہ پتا چلتا ہے کہ لوگوں میں قرآن بلاوضو نہ پڑھنے کی غلط فہمی پہلے سے پائی جاتی ہے ۔ اسی سبب حضرت عمررضی اللہ عنہ نے اس جھوٹ کا انتساب مسیلمہ کی طرف کیا تاکہ لوگوں کو معلوم ہوجائے یہ بات جھوٹ ہے ۔ جو لوگ یہ کہتے ہیں کہ تلاوت الگ چیز ہے اور چھونا الگ چیز ہے ۔ یہ بات صحیح ہے کہ تلاوت ایک چیز ہے اور مس ایک چیز ہے مگر تلاوت کے حکم سے مس کا بھی جواز ملتا ہے کیونکہ قرآن کی تلاوت کا ہمیں حکم ملا ہے اور تلاوت شامل ہے مس اور غیر مس دونوں کو ۔ اگربلاوضو چھوکر تلاوت کرنے کی ممانعت مانی جائے تو اس کے لئے صریح اور صحیح نص چاہئے ۔

ایک اور عقلی بات: قرآن پوری کائنات کے لئے آیا چاہے مسلم ہو یا کافر۔ اگر بغیر وضو کے چھونے کی ممانعت ہوتی تو مذہب اسلام پوری دنیا میں نہیں پھیل پاتا کیونکہ دین کا دارومدار قرآن پہ ہے ۔ اور آپ ﷺ نے غیرمسلم بادشاہوں کو خطوط لکھے جس میں قرآن کی آیات بھی تھیں ۔ اگر قرآن بغیر وضو کے چھونا منع ہوتا تو نبی ﷺ کبھی بھی غیرمسلم کو خط میں قرآنی آیات نہ لکھتے ۔

واللہ اعلم

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Apne Musalman bhai ke liye dua jisko hamne kabhi bura kaha ho.

Jisne Apne Musalman bhai ko kabhi taklif pahunchai ho.

BISMILLAHIR RAHMANIR RAHIM*

Aise Momeen ke liye dua jisko humne kabhi bura kaha ho ya takleef di ho

*💫 Abu Huraira Radi Alalhu Anhu se rivayat hai ki RasoolAllah Sallallahu Alaihi Wasallam ne is tarah dua farmayee*

*اللَّهُمَّ فَأَيُّمَا مُؤْمِنٍ سَبَبْتُهُ فَاجْعَلْ ذَلِكَ لَهُ قُرْبَةً إِلَيْكَ يَوْمَ الْقِيَامَةِ*

*Allahumma Fa-Ayyuma Mumineen Sabbatuhu Faj'al Zalika Lahu* *Qurbatan ilaika Yaum-Al-Qayamah.*

Eh Allah maine jis momeen ko bhi bura kaha ho (ya taklif di ho)  tu us baat ko uske liye Qayamat ke din apne qareeb hone ka  zariya bana de.

*Sahih Bukhari, Hadith 6361*

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Gunah karne ki wajah se dil pe kala nukta dal diya jata hai.

Gunah karne wale ke dilo me kala nukta laga diya jata hai.
Bismillahirrahmanirrahim*
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*Gunah karne ki wajah se Dil me ek siyaah nukta ho jata hai*
_________🌙
*Rasool Allah Sallallahu Alaihe wasallam ne farmaya : Jab momin koi gunah karta hai to us k dil me ek siyah nukta  ( daag ) lag jaata hai ' Agar woh tauba kare, baaz aajaye aur magfirat talab kare to us ka dil saaf kar diya jaata hai ' Aur agar woh  ( gunaah me ) badhta chala jaye to phir woh dhabba bhi badhta jaata hai ' Ye wahi zang hai jis ka zikr Allah ta'ala ne apni kitab me kiya hai*

(Sunan ibne maaja : 4244)
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*AL-QURAN*

"Hargiz nahi balke un ke bure aamal ne unke dilo par zang pakad liya hai jo woh karte hain."

*Surah Al mutaffifin aayat no 15*
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Yah 3 surah har chij ke liye kafi ho jayegi.

Yah Tin suratein hi aapke liye kafi hai.
BismillahirRahmanNirRaheem*
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*Ye teen surah tumhe har cheez ke liye kaafi ho jayegi*
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*HADITH*

*Abdullah bin khubayb Radi Allahu Anhu se rivayat hai ki Rasool-Allah Sal-Allahu Alaihi Wasallam ne farmaya Subah aur sham 3 baar Surah Al-Ikhlas , Surah Al-Falaq Aur Surah An-Nas padh liya karo , ye tumhe har cheez ke liye kaafi ho jayegi (yani har tarah ki pareshaniyo se bachne ke liye ye kaafi hain)

*Sunan Abu dawud, Jild 3, 1643-Hasan*
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*Uqba bin amir radi allahu anhu se rivayat hai ki RasoolAllah  (ﷺ) ne farmaya har namaz ke baad  aakhri teen surah yani Surah Al-Ikhlas, Surah Al-Falaq  aur Surah An-Nas padha karo*

*Al Silsila As sahiha, 2776*
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Jamat-E-Muslemin firqe ke aqaid w najariyat.

Jamat-E-Muslemin firqe ki haqeeqat kya hai?
Jamat e Muslemin nami firqe ke aqaid w najariyat.

*جماعت المسلمین نامی فرقے کے عقائد و نظریات*

فرقہ مسعود یہ یعنی جماعت المسلمین نامی نام نہاد انتہا پسند ،ضالّ اور مفصّل فرقوں کی فہرست میں ایک جدید اضافہ ہے اسکے فرقے کا بانی ،امیر اور امام مسعود احمد BSC ہے جو اس فرقے کی تشکیل سے قبل غیر مقلّدین نام نہاد اہل حدیث کی مختلف فرقہ وارانہ جماعتوں کیساتھ وابستہ رہنے کی وجہ سے کفر و شرک کے دلدل میں بری طرح پَھنسا ہوا تھا یہ اعتراف خود مولوی مسعود احمد نے اپنی کتاب خلاصہ تلاشِ حق کے صفحہ نمبر ۴ پر کیا ہے ۔
مولوی مسعود احمد اہل حدیث فرقے میں مقبولیت حاصل کرنے کے بعد 1385 میں جماعت المسلمین کا قیام عمل میں لایا یہ فرقہ مسعود یہ جو کہ جماعت المسلمین کا قیام عمل میں لایا یہ فرقہ مسعود یہ جو کہ جماعت المسلمین کے نام سے کام کررہا ہے یہ اہل حدیث سے ملتا جلتا ہے اسکے عقائد غیر مقلّدانہ ہیں ۔
فرقہ مسعود یہ کے باطل عقائد ::
عقیدہ :جماعت المسلمین فرقہ صحیح ہے باقی تمام لوگ بے دین و گمراہ ہیں یہ جماعت المسلمین فرقے کا عقیدہ ہے ۔
عقیدہ :امام ابو حنیفہ ، امام شافعی ،امام ابن حنبل ، امام مالک علیہم الرضوان ان کی تقلید حرام ہے ۔
عقیدہ :مولوی مسعو د احمد نے اپنی کتاب تاریخ الاسلام والمسلمین کے صفحہ نمبر639پر صرف دس ازواجِ مطہرات کو شامل کیا جبکہ تین ازواج مطہرات کا ذکر مناسب نہ سمجھا ۔
اس طرح اولاد رسول صلی اللہ علیہ وسلم کا عنوان قائم کرکے آپ صلی اللہ علیہ وسلم کے صرف ایک صاحبزادے حضرت ابراہیم رضی اللہ عنہ کا ذکر ملتا ہے ۔باقی سب (معاذ اللہ )جھوٹ ہے ۔مولوی مسعود نے حضور صلی اللہ علیہ وسلم کا ایک صاحبزادہ لکھ کر آپ صلی اللہ علیہ وسلم کی کُنیت ابو القاسم کا مذاق اڑا یا ۔
عقیدہ :مولوی مسعود احمد نے اپنی کتاب خلاصہ تلاشِ حق کے صفحہ نمبر 197پر ام المومنین حضرت عائشہ رضی اللہ عنہا کو کم فہم سُو ءظن اور گناہ میں مبتلا لکھا ہے ۔
عقیدہ :مولوی مسعود احمد نے اپنی کتاب تاریخ الا سلام والمسلمین کے صفحہ نمبر 641پر صحابہ کرام علیہم الرضوان کو جھوٹا اور گنا ہگار لکھا ہے ۔
عقیدہ :مولوی مسعود احمد نے اپنی کتاب خلاصہ تلاش حق کے صفحہ نمبر 54پر حضرت عبداللہ ابن مسعود رضی اللہ عنہ کے خلاف بات کی ہے کیونکہ رفع ید ین نہ کرنے والی حدیث انہی سے روایت ہے ۔
عقیدہ :مولوی مسعود احمد نے اپنی کتاب خلاصہ تلاشِ حق کے صفحہ نمبر 181/177پر لکھتا ہے کہ جو امام مقتدیوں کو اپنے پیچھے سورہ فاتحہ پڑھنے کا موقع نہ دے وہ بد عتی ہے ۔
آگے اپنی کتاب بد عت حسنہ کی شرعی حیثیت نامی کتاب کے صفحہ نمبر 9پر لکھتا ہے کہ بدعت کفر ہے سب سے بد تر کام تو کفر اور شرک کے کام ہیں لہٰذا بدعت کفر اور شرک سے کسی طرح کم نہیں ۔
عقیدہ :مولوی مسعود احمد صلوٰۃ تراویح اور صلوٰۃ تہجد دونوں کو ایک ہی نماز قرار دیتے ہیں اسکا ذکر انہوں نے اپنی کتاب منہا ج المسلمین ص219،ص283اور تاریخِ الا سلام والمسلمین کے ص 115پر کیا ہے کہ قیام رمضان دراصل قیام اللیل یا تہجد ہی ہے قیام رمضان کو گھر میں پڑھنا افضل ہے ۔
(بحوالہ :منہاج المسلمین ص 283)
اس کے علاوہ بھی بہت سی بکواس اور کفریات فرقہ مسعود یہ کے ہیں جماعت المسلمین کے لوگ اب بھی ان کتابوں کو مانتے ہیں اور یہی عقیدہ رکھتے ہیں لیکن آپ کے سامنے میٹھے میٹھے بول بولیں گے تاکہ لوگ ان کے قریب آئیں اور یہ لوگوں کو گمراہ کر سکیں ۔
فرقہ مسعودیہ المعروف جماعت المسلمین کی ہر جھوٹی بڑی کتابوں میں پمفلٹ میں پوسٹروں میں یہ عبارت لکھی ہوئی ہوتی ہے ۔
جماعت المسلمین کی دعوت
ہمارا حاکم…….. ….صرف اللہ…….. ….غیراللہ نہیں
ہمارا امام ….صرف ایک ….یعنی رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم ….امتّی نہیں
ہمارا دین ….صرف ایک……..یعنی اسلام ….فرقہ وارانہ نام نہیں
ہمارا نام …. ….صرف ایک…………یعنی مسلم ……..فرقہ وارانہ نہیں
ہماری محبت کی بنیاد ….صرف ایک ……..یعنی اللہ تعالیٰ ….دنیاوی تعلقات نہیں
ہمارے فخر کا سبب ……..صرف ایک ……..یعنی ایمان ……..وطن و زبان نہیں
اس خوبصورت دعوت کی آڑ میں سادہ لوح مسلمانوں کو گمراہ کیا جاتا ہے کیا ہر مسلمان کا یہ ایمان عقیدہ نہیں سامنے یہ عقائد پیش کر تے ہیں اور اندر کتابوں میں کفریات کی بھر مار ہوتی ہے ۔
اللہ تعالیٰ تمام مسلمانوں کو اس فرقے سے محفوظ رکھے۔ آمین ثمہ آمین

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Islam Khudkushi (Suicide) Karna Ke bare me kya kahta hai?

Islam Suicide ke bare me kya kahta hai?
Kya Car bomb blast karne ki ijazat islam deta hai?

Hazrat Muhammad (Sallallahu Alaihi) ne farmaya

Pichley zamane mein ek shaks zakhmi ho gaya tha aur us se usko badi takleef ho rahi thi aakhir usne chhuri (knife) se apna haath kaat dala jisse khoon bahne laga, is wajah se wo mar gaya.

Allah ne farmaya,”Mere Bande ne marne mein jaldi ki is liye maine bhi Jannat ko is par HARAM kar diya.

📚 Sahih Bukhari Vol 4, Book 56, No. 669

Hazrat Muhammad (sallallahu alyhiwasallam) ne farmaya

Jis ne apne aap ko pahad (mountain) se gira kar (khudkushi ki) halak kiya wo dozakh mein jaayega aur hamesha apne aap ko isi tarah pahad se girata rahega.

Dozakh mein hamesha hamesha us ki yahi halat rahegi.

Jisne zahar kha kar apne aap ko halak kiya (khudkushi ki) dozakh mein wahi zahar us ke haath mein hoga jise khata rahega aur dozakh mein wo hamesha hamesha isi halat me rahega.

Jisne apne aap ko kisi hathiyar se halak kiya (khudkushi ki) wahi hathiyar Dozakh mein uske hath me hoga jise wo apne pet me marta rahega, dozakh mein wo hamesha hamesha isi halat me rahega.

📚 Sahi bukhair 5442,_*
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taken from Dawat -e- Tauheed Islamic Group'
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Duniya ki Adalat hame Insaf nahi de sakti (आओ दावा करो लड़ो और तबाह हो जाओ)

Adalat ka chakkar lagane se hame Insaf nahi milts.
Sarko pe protest karne, Adalat me jane se hame Insaf ke badale Pareshan kiya jata hai isse behtar hai ke ham aapas me hi samjhauta kare.
आओ दावा करो लरो और तबाह हो जाओ

آجکل کی عدالتوں اور نیب کے کیفیت کچھ اس انداز میں چل رہے ہیں کہ مقدمات کے فیصلوں میں دانستہ تاخیر عوام کو کچھ کر گذرنے پہ مجبور کررہی ہے۔۔۔کہ !

ایک دفعہ ملانصیرالدین بازار سے جا رہے تھے کہ پیچھے سے کسی نے انہیں زور سے تھپڑ مارا۔ ملا صاحب نے غصے سے پیچھے دیکھا،
وہ شخص گھبرا کربولا۔
"معاف کرنا میں سمجھا، میرا دوست ہے"
ملا صاحب نے کہا. "نہیں،
انصاف ہو گا ۔۔۔
چلو عدالت چلتے ہیں۔ "
جج صاحب کے سامنے اپنا مدعا پیش کیا۔
جج نے اس شخص کا خوف دیکھ کر کہا :
"کیوں جناب! تم تھپڑ کی قیمت دو گے یا ملا
صاحب آپ کو بھی تھپڑ لگائیں؟"
اس شخص نے کہا۔ "جناب! میں تھپڑ کی قیمت دوں گا
لیکن ابھی میرے پاس کچھ بھی نہیں ہے۔ میری بیوی کے پاس کچھ زیور ہیں، وہ میں لے آتا ہوں۔ "
جج نے کہا : "ٹھیک ہے، جلدی لے کر آؤ۔ "

ملا صاحب انتظار کرتے کرتے تھک گئے لیکن وہ شخص نہیں آیا،
ملا صاحب اٹھے اور ایک زور کا "تھپڑ" جج کو مارا

اور کہا :
"اگر وہ زیور لاۓ تو تم لے لینا۔ "

معزز عدلیہ و نیب
جتنی جلدی ہو سکے مجرموں سے زیور یا نقد مال،زر  نکلیں
اور  روز روز کی تاریخیں۔۔ ریفرنس۔۔۔ پیشیاں۔۔۔ پروٹیکشن آڈر ۔۔۔ضمانت۔۔۔ قبل از گرفتاریاں ختم کریں
ورنہ عوام بھی
ملا نصیرالدین بننے پر مجبور ہو جائینگے..!!!

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Waise Mard jo Apni Maa ki bato me aakar Biwi pe Zulm karte hai.

waise Shauhar jo Apni Maa ki baaton me aakar Biwi se Jhhagra karte hai.
Sasurali Jhhagra me Shauhar ki sakht pakar.

سسرالی ظلم میں شوہر کی سخت پکڑ ..!

میں نے کچھ مہینے پہلے ایک پوسٹ کی تھی کہ معاشرے میں سسرالی ظلم میں شوہر کی سخت پکڑ ہوسکتی یے جس کے بعد چند ممبر کے مسیج آۓ اور کہنے لگے یہ اپ کیسی باتیں کر رہے ہیں شوہر کی پکڑ کیوں ہوگی تو میں نے انہیں جواب دیا کہ انشاءاللہ اگلی پوسٹ میں واضح کرکے لکھوں گا۔

جناب مختصر بات ہے ساس بہو معاملات پر کافی بار لکھ چکا ہوں، یہ ساس بہو جھگڑے ہر دوسرے گھر کا مسئلہ ہیں، جنہوں نے گھروں کا سکون ختم کرکے رکھ دیا ہے جنہوں نے زندگیاں اجاڑ کر رکھ دی ہیں ان مسئلوں کی وجہ سے کئ خواتین کو طلاقیں ہوچکی ہیں، اور انکی زندگیاں تباہ ہوگئ ہیں کئ خواتین لمبے عرصے سے میکے بیٹھی ہیں،
اکثر جگہ وجہ یہ پائی جاتی ہے کہ شوہر ماں کے کہنے میں آکر بیوی کے ساتھ بدسلوکی کرتا ہے، پورے گھر کے سامنے بیوی کو بے عزت کرتا یے، بعض لوگ تو گندی گالیاں تک نکالنے پر آجاتے ہیں اور کہیں ہاتھ اٹھانے تک کی نوبت آجاتی ہے۔

جب بہو نے ساس کے کھانے میں زہر ملا کر مارنے کی کوشش کی۔
باس کی غلامی کرنے والی عورتیں اُن عورتوں کو ذلیل کرتی ہے جو اپنے گھر میں خاوند کی خیدمت کرتی ہے۔

میرے بھایئوں! کبھی بھی غلطی مت کرنا کہ ماں نے کچھ کہا اور بغیر تصدیق کیے بیوی پر گرما گرمی دکھادی، کبھی غلطی مت کرنا کہ بہن نے کچھ کہا تو بغیر کچھ معلوم کیۓ بیوی کو بے عزت کردیا، ہمارے معاشرے میں اکثریت ایسے شوہروں کی ہے جو ماں کے کچھ بھی کہنے پر فورن بیوی پر برس پڑتے ہیں۔ میرے بھائ یہ ظلم کبیرہ ہے، یہ گناہ کبیرہ ہے، اگر بغیر تصدیق کیے بیوی سے بدسلوکی کی جاۓ تو مالک الملک کا قانون حرکت میں آتا ہے، وہ صرف آپ کی بیوی نہیں ہے پہلے بھی کہ چکا ہوں وہ صرف آپ کی بیوی نہیں ہے، وہ اللہ کی بندی بھی ہے، وہ رسول اللہﷺ کی امتی بھی یے اور کوئ شک نہیں کہ اللہ اپنے بے قصور بندوں پر ظلم کا بدلہ ضرور لیتا ہے۔

ذرا سوچیں، ایک لڑکی اپنے ماں باپ بہن بھائ، اپنا گھر بار سب کچھ چھوڑ کر صرف اور صرف آپ کے لیۓ چلی آئ، آپ کے ساتھ جینا مرنے پر راضی ہوگئ، آپ کے ماتحت زندگی گذارنے پر راضی ہوگئ، آپ کے ساتھ سوتی یے، اپنا جسم شیئر کرتی یے، اپنا سکھ دکھ اپ کے ساتھ شیئر کرتی یے، دھوبی بن کر آپ کے اور آپ کے گھر والوں کے کپڑے دھوتی ہے، استری کرتی ہے، باورچن بن کر آپ کا اور گھر والوں کا کھانا بناتی ہے، آپ کے جوتے صاف کرتی یے، آپ کا گھر صاف رکھتی ہے، بچوں کو پالتی ہے انکی پرورش کرتی یے، جب اپ بیمار پڑ جاتے ہو تو ہر اعتبار سے خدمت میں پیش رہتی ہے، دنیا کے بڑے سے بڑے عالم کے پاس مفتی کے پاس ولی اللہ کے پاس چلے جاؤ یہ تمام کام اس عورت کی ذمہ داری نہیں ہے، اگر وہ یہ سب کرنے سے منع کردے تو کسی قسم کے گناہ کی مرتکب نہیں ہوگی۔ لیکن وہ یہ سب کرتی ہے اور اسکے باوجود اس کے ساتھ  ایسا سلوک کہ ماں نے کچھ کہا تو بغیر تصدیق کیۓ بیوی کو ذلیل کردیتے ہو، بہن نے کچھ کہا تو بغیر سچ جانے بیوی کو بے عزت کردیتے ہو، گھر سے باہرنکالنے کی دھمکیاں دیتے، دوسری شادی کی دھمکیاں دیتے ہو، طلاق کی دھمکیاں دیتے ہو۔ خدا کی قسم یہ ظلم ہے، زیادتی ہے، گناہ ہے۔ آج تم کسی کی بیٹی کے ساتھ یہ ظلم یہ زیادتی کر رہے ہو تو یاد رکھنا یہ دنیا مکافات عمل ہے۔ کل کو یہی عمل تمہاری بہن بیٹیوں کے ساتھ بھی دہرایا جاۓ گا۔

کسی کی بیٹی کو بیاہ کر لاۓ ہو، اسے عزت دو، محبت دو، پیار دو، اچھا سلوک کرو، اسے خوش رکھو، اگر آج تم کسی کی بیٹی کو خوش رکھو گے تو کل کو تمہاری بیٹیاں تمہاری بہنیں اپنے گھروں میں خوش رہیں گی۔

ہمارے مفتی صاحب تو یہاں تک فرماتے ہیں کہ "اگر حقوق نہیں دے سکتے، اچھا سلوک نہیں کرسکتے تو اللہ کا واسطہ روزے رکھو لیکن کسی کی بیٹی کو برباد مت کرو"

کوئ شک نہیں ماں معتبر ہے، ماں کے پیروں تلے جنت یے، ماں کے برابر کوئ نہیں، ماں کا رتبہ بلند و بالیٰ لیکن آپ کی بیوی کے پیروں کے نیچے بھی تو کسی کی جنت یے، وہ بھی انسان ہے، اسکے بھی جذبات ہیں، وہ بھی دل رکھتی ہے، سوچنے سمجھنے کی صلاحیت رکھتی یے، اسے بھی تو دکھ ہوتا ہوگا، وہ بھی اللہ کی بندی ہے، لہذا ان رشتوں کو بیلنس کرکے چلا جاۓ، ماں بہن کی باتوں میں آکر بیوی سے بدسلوکی نا کی جاۓ، بیوی کی باتوں میں آکر ماں سے بدسلوکی نا کی جاۓ، ماں کے الگ حقوق ہیں، بیوی کے الگ حقوق ہیں۔ ان چیزوں کو سمجھنے کی ضرورت ہے۔
اللہ ہمیں مغربی تہذیب کے برائیوں سے بچا، ہمیں پکّا سچا مومن بنا۔ اللہ تو اُسے تباہ و برباد کر دے جو مسلم معاشرے  میں جدید دور کے نام پے تو کبھی ماڈرن اور فیمنزم کے نام پر فہاشی پھیلانا چاہتے ہیں۔
آمین ثمہ آمین

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