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Yah Kaisi Aazadi hai Jahan ke log Khauf aur Dahshat me Zindagi kat rahe hai?

Yah Kaisi Aazadi hai Jahan Charo taraf Dahshat, Nafrat aur chinkho ki shor Sunayi de rahi hai?

हक़ मिलता नहीं लिया जाता है
आजादी मिलती नहीं छिनी जाती है।

यह कैसी आज़ादी है जहाँ के लोग खौफ और दहशत मे जी रहे है, वहाँ के बाशिंदों के साथ यक्सा सुलूक न किया जाए, कुछ को पहले दर्जे का बाशिंदा समझा जाता हो तो किसी को दूसरे दर्जे का, ऐसे मे वह आज़ाद नही है और ना वह आज़ादी का जश्न मनाने लायक है।
भारतीय सविधान कब, कैसे और किन लोगो के जरिये तैयार किया गया?
अपनी आज़ादी को हम हरगिज़ मिटा सकते नहीं
सर कटा सकते हैं लेकिन सर झुका सकते नहीं।
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اگر نہیں تو کیسی آزادی؟ اور کیسا آزادی کا جشن؟

اگر کسی ملک کے باشندے خوف اور دہشت کی فضا میں جی رہے ہوں اور امن و امان سے محروم ہوں تو حقیقت میں وہ آزاد نہیں ہیں۔

اگر کسی ملک کے باشندوں کے ساتھ برابری کا برتاؤ نہ ہوتا ہو، کچھ کو درجۂ اوّل کا شہری سمجھا جاتا ہو اور دوسروں کے ساتھ دوسرے درجے کے شہریوں جیسا برتاؤ کیا جاتا ہو تو حقیقت میں وہ آزاد نہیں ہیں۔

اگر کسی ملک کے شہریوں پر ہمیشہ خطروں اور اندیشوں کی تلوار لٹکتی رہتی ہو اور وطن سے ان محبّت کو شک و شبہ کی نظر سے دیکھا جاتا ہو تو حقیقت میں وہ آزاد نہیں ہیں۔

جشنِ آزادی مبارک۔

اس پر خوشی و مسرّت کے شادیانے بجانا بھی درست۔

لیکن ہمیں حقیقی آزادی کے حصول کی طرف ضرور پیش قدمی کرنی چاہیے کہ یہی زندہ اور باشعور قوموں کا وطیرہ ہے۔

سوشل میڈیا ڈیسک آل انڈیا مسلم پرسنل لا بورڈ_

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Jab Yahudi Aalim ne Allah ke aakhiri Nabi ki Pehchan batayi aur Muhammad Sallahu Alaihe wasallam ko aakhiri Nabi mana.

Jab yahudi Aalim ne Aap Sallahu Alaihe wasallam ke paidaish Ki Khabar Makka ke logo ko di.

Yahudi Aalim ne Jab Muhammad Sallahu Alaihe wasallam ko Aakhiri nabi mana.

Yahudi and Christian

حضرت کعب احبار ؓ فرماتے ہیں کہ میں نے تورات میں پڑھا ہے کہ اللہ تعالیٰ نے حضرت موسیٰ علیہ السلام کو آنحضرت ﷺ کی ولادت کے وقت کی خبر دے دی تھی اور حضرت موسیٰ علیہ السلام نے اپنی قوم بنی اسرائیل کو اس کی اطلاع دے دی تھی۔
اس سلسلے میں انہوں نے فرمایا تھا:

"تمہارے نزدیک جو مشہور چمک دار ستارہ ہے، جب وہ حرکت میں آئے گا، تو وہی وقت رسول اللہ ﷺ کی پیدائش کا ہوگا۔"

یہ خبر بنی اسرائیل کے علماء ایک دوسرے کو دیتے چلے آئے تھے اور اس طرح بنی اسرائیل کو بھی آنحضرت کی ولادت کا وقت یعنی اس کی علامت معلوم تھی۔

حضرت عائشہ رضی اللہ عنہا سے روایت ہے کہ ایک یہودی عالم مکہ میں رہتا تھا، جب وہ رات آئی جس میں آنحضرت ﷺ پیدا ہوئے تو وہ قریش کی ایک مجلس میں بیٹھا تھا، اس نے کہا:

"کیا تمہارے ہاں آج کوئی بچہ پیدا ہوا ہے۔"

لوگوں نے کہا:
"ہمیں تو معلوم نہیں ۔"
اس پر اس یہودی نے کہا:

"میں جو کچھ کہتا ہوں ، اسے اچھی طرح سن لو، آج اس امت کا آخری نبی پیدا ہوگیا ہے اور قریش کے لوگوں ! وہ تم میں سے ہے، یعنی وہ قریشی ہے۔

اس کے کندھے کے پاس ایک علامت ہے( یعنی مہر نبوت) اس میں بہت زیادہ بال ہیں ۔ یعنی گھنے بال ہیں اور یہ نبوت کا نشان ہے۔ نبوت کی دلیل ہے۔ اس بچے کی ایک علامت یہ ہے کہ وہ دو رات تک دودھ نہیں پیے گا۔ ان باتوں کا ذکر اس کی نبوت کی علامات کے طور پر پرانی کتب میں موجود ہے۔

علامہ ابن حجر نے لکھا ہے کہ یہ بات درست ہے، آپ نے دو  دن تک دودھ نہیں پیا تھا-

یہودی عالم نے جب یہ باتیں بتائیں تو لوگ وہاں سے اٹھ گئے- انہیں یہودی کی باتیں سن کر بہت حیرت ہوئی تھی- 
جب وہ لوگ اپنے گھروں میں پہنچےتو ان میں سے ہر ایک نے اس کی باتیں اپنے گھر کے افراد کو بتائیں ، عورتوں کو چونکہ حضرت آمنہ کے ہاں بیٹا پیدا ہونے کی خبر ہو چکی تھی، اس لیے انہوں نے اپنے مردوں کو بتایاں :

ذرا  چل کر مجھے وہ بچہ دکھاؤ-،،

لوگ اسے ساتھ لیےحضرت آمنہ کےگھر کے باہر آئے، ان سے بچہ دکھانےکی درخواست کی- آپ نے بچے کو کپڑے سے نکال کر انہیں دے دیا-

لوگوں نے آپ کےکندھے پر سے کپڑا ہٹایا- یہودی کی نظر جونہی مہر نبوت پر پڑی، وہ فوراً بے ہوش ہو کر گر پڑا، اسے ہوش آیا تو لوگوں نے اس سے پوچھا:
تمہیں کیا ہو گیا تھا-،،

جواب میں اس نےکہا:

میں اس غم سے بے ہوش ہوا تھا کہ میری قوم میں سے نبوت ختم ہوگئ..اور اے قریشیو! اللہ کی قسم! یہ بچہ تم پر زبردست غلبہ حاصل کرے گا اور اس کی شہرت مشرق سے مغرب تک پھیل جائےگی-،،

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Kerala ka wah Shakhs Jo Hajj ke liye Paidal Saudi Arab Ja raha hai? Shihab chittur

Janiye us Shakhs ke bare me Jo Hajj 2023 ke liye India se Saudi Arabia Paidal Ja raha hai? 

जानिए कौन है वह शख्स जिसने अकेले हज के लिए पैदल सफर पर निकला है

आज के दौर मे शायद आप यह जानकर चौंक जायेंगे, हैरत मे पड़ जायेंगे के क्या कोई शख्स हज्ज् के लिए इंडिया से सऊदी अरब पैदल जा सकता है? *जानिए उस शख्स के बारे मे जो केरला से पैदल मक्का जा रहे है*। 

मंजिलें बहादुरो का इस्तकबाल करती है
बुझदिलों को तो रास्तो का खौफ मार देता है।

कई बार हमसब सुनते हैं के पहले लोग घोडे, ऊँट और हथियो पर सफर करते थे और दूर दूर तक पैदल ही चलते थे क्योंके उस वक़्त न कोई रेल, जहाज़ या कोई दूसरी इलेक्ट्रॉनिक गड़ियाँ थी।

लोग हज्ज् के लिए भी इसी तरह जाया करते थे।
जब इंसान तरक्की किया तो महिनो का सफर घंटो मे बदल गया।

अब घोड़ा और ऊँट वाला दौर रहा नही यह साइंस का दौर है।

इसी इकिसवी सदी मे एक शख्स हिंदुस्तान से सऊदी अरब हज्ज् के लिए पैदल रवाना होता है।

लोग साइकल से या पैदल चलकर मीलों का सफर तय कर रिकॉर्ड कायम करते हैं। लेकिन  आज मै आपको एक ऐसे शख्स के बारे मे बताऊंगा  जिसके बारे में जानकर आप भी चौंक जायेंगे।

आज के दौर मे ऐसी बातें सिर्फ अपने बुजुर्गो से सुनने को और किताबो मे पढ़ने को मिलती है।

जब इरादे मजबूत हो तो मंजिले भी आसान हो जाती है

भारत के दक्षिणी राज्य केरला के एक शख्स ने वह काम कर दिखाया जो शायद आज के दौर मे नामुमकिन है।
बहुत से मुसलमानो की यह ख्वाहिश होती है के जिंदगी मे एक बार जरूर हज्ज् ए बैतुल्ला जाए।

इसी तरह केरल के इस शख्स की भी ख्वाहिश थी मगर इन्होंने अपने दिल की तमन्नाओ को पूरी करने के लिए कोई आम तरीका नही बल्कि एक अलग अंदाज मे मक्का जाने का फैसला किया।

भारत के दक्षिणी राज्य केरल के मलप्पुरम जिले के कोट्टक्कल के पास अठावनाड नामक इलाके के रहने वाले है शिहाब् चित्तूर मुश्किल और तकलीफो से भरे सफर पर निकले है।

भारत के कई राज्यों से गुजरते हुए पाकिस्तान, ईरान, इराक, कुवैत और आखिर में सऊदी अरब पहुचेंगे।

जब उनसे इस सफर के बारे मे पूछा गया तो उन्होंने कहा

"पैदल हज के लिए मक्का जाना मेरी बचपन से ही ख्वाहिश थी, अल्हम्दुलिल्लाह अल्लाह का शुक्र अदा करता हूं। मेरी मां की दुआओ से अल्लाह ने मेरी यह तमन्ना पूरी की और मैंने सभी फराएज़ को पूरा किया, इंशा अल्लाह मैं जल्द ही अपनी मंजिल तक पहुंच जाऊंगा।”

आठ महीने बाद अगले साल  मक्का पहुंचेंगे शिहाब् चित्तूर।

इस सफर के लिए उन्हें विदेश मंत्रालय से इजाज़त लेने के लिए चक्कर काटने पड़े। मगर उनकी कोशिशो ने रंग लाई और वे अपने मकसद मे कामयाब हो गए।

वे तकरीबन आठ महीने बाद 8640 किलोमीटर तय कर अपनी मंजिल तक पहुचेंगे।

वह एक साल से हज पर जाने की तैयारी मे लगे थे।
शिहाब् चित्तूर उसी केरला के रहने वाले हैं जहाँ हिंदुस्तान की सबसे पहली मस्जिद तामीर की गयी थी।

वो कहते है

"मेरा सफर रूहानी है, मेरा मकसद पैदल हज करने का है। मुझे सलाह देने वाला कोई नहीं था। मैं सिर्फ लोगों से पैदल सफर पर जाने के बारे मे सुना था। लेकिन आज हिंदुस्तान में शायद ही कोई जिंदा मिले जो यहां से पैदल हज पर जाने के बारे मे अपना तजुर्बा बताये। "

जब उन्होंने अपने इस सफर के लिए विदेश मंत्रालय से इजाज़त मांगी तो वहाँ के कई अफसर हैरत मे पड़ गए।
उनसे जब मक्का जाने की इजाज़त मांगी गयी तो वे लोग हैरान हो गए।  वहाँ मौजूद ऑफिसर्स यह सोच कर मुश्किल मे पड़ गए के इस मसले के कैसे हल किया जाए, क्योंके इससे पहले उनलोगो को पैदल हज् पर जाने का तजुर्बा नही था।

आखिर मे उन्हे मंजिल ए मकसूद जाने के लिए इजाज़त मिल गयी।

इकस्वी सदी या फिर यूँ कहे आधुनिक युग का पहला शख्स जिसने पैदल हज् के लिए गया हो।

मोहम्मद शिहाब् आज के मॉडर्न दौर के सबसे पहले शख्स है जिन्होंने हिंदुस्तान से सऊदी अरब पैदल सफर किया हो।

कई जगहो पर उनका इस्तकबाल मशहूर शख्सियत के तौर पर किया गया है। जुमे को जब वह चलियाम पहुंचे तो हज़ारो लोगो की भीड़ उनके इस्तकबाल के लिए जमा हो गयी। उनको लोग सेलेब्रेटी के जैसा फूल बरसा रहे है। उनका  नाम शायद गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड मे भी शामिल किया जाए।

आज के इस दौर मे लोग शोहरत पाने के लिए, सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के लिए, अपने फॉलोवर्स बढ़ाने के लिए और नाम रौशन करने के लिए बे हयाई, फ़हाशि, कुफ्र और शिर्क का सहारा ले रहे है तो वही केरला के एक मुसलमान जिसने अगले साल हज का अरकान् अदा करने के लिए अभी से ही तैयारी शुरू कर दी है।

जहाँ आज का मुसलमान अपने मुहल्ले की मस्जिद मे पांच कदम चलकर नमाज अदा करने नही जाता तो वहीं शिहाब् चित्तूर पांच मुल्को का सफर कर हज के फराएज़ अदा करने जा रहे है।

मोहम्मद शिहाब् वहाँ जा रहे है जहाँ सब बराबर है। अमीर गरीब , कमज़ोर मजबूत  हर कोई बराबर है। मक्का मे की छोटा बड़ा और ऊंच नीच नही होता बल्कि वहाँ जाने वाला सब बराबर होता है।

यह एक अनोखा शुरुआत है मुसलमानो की आँखे खोलने के लिए।

मोहम्मद शिहाब् मस्जिद या मदरसे में रातें बिताना पसंद करते हैं। मोहम्मद शिहाब् का हर एक कदम अल्लाह की राह मे बढ़ रहा है।  वे अपने साथ बहुत कम सामान लेकर जा रहे है ताकि सफर आसान हो और कही कोई दिक्कत न हो।

केरला से पैदल हजयात्रा पर निकले शिहाब चित्तूर का 2023 में हज से पहले पहुँचने का इरादा है।

आप सब लोगो से शिहाब् चित्तूर के लिए दुआओ की गुजारिश है ताकि अल्लाह ताला उनके सफर को आसान फरमा दें।

या अल्ला तु ऐसे नेक इरादे वाले की हीफाजत फरमा और उन्हे उनके मकसद मे कामयाबी अता कर। अल्लाह तु उनके रास्ते मे आने वाली परेशानियों को दूर कर दे और हजर ए अस्वद का दीदार करा।
   आमीन

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Liberal Gang ka byan: Mai Qurbani Nahi karunga balki Usi Paiso se Kisi Gareeb ki madad karunga.

Waise log jo Qurbani Par Tankeed karte hue kahte hai ke Itne paise kharch karne se kya fayeda, Isi paiso se kisi Gareeb ko madad kiya jaye.

Kya yah Aazad khyal logo ke yaha Ghar me kam karne wale jise Naukar kahte hai, unka kitna khyal rakhte hai?

Itni Hi Gareebo ki fikr hai to fir aap jo bhi khate hai aur pehante hai waisa hi kisi gareeb ko Khana kyu nahi khilate aur Kapda (clothes) pahnate hai?

Apne partiyo me itne paise barbad kar dete hai, Shadiyo me Itne fijul kharchi karte hai, apne level ke logo ko bulaya jata magar kisi Gareeb ko invite kyu nahi karte, us paise se kisi Gareeb ki madad kyu nahi karte, Partiyo me khana itna nuksan ho jata hai magar pas me kitne Gareeb log Bhukhe so rahe hai iski khabar bhi nahi hogi in logo ko.

میں قربانی کا جانور لینے کا پروگرام بنا رہا تھا کہ فیس بک پر ایک لبرل صاحب نے پوسٹ ماری ہوئی تھی کہ میں قربانی نہیں کروں گا بلکہ ان پیسوں سے واٹر کولر خرید کر گھر کے باہر لگاؤں گا.

وجہ۔۔۔؟

غریب آدمی کو قربانی سے کوئی فائدہ نہیں ہوتا مگر میرے کولر سے غریب ٹھنڈا پانی پئیں گے

اچھا۔۔۔؟

ہم قربانی کا جانور لینے منڈی پہنچے منڈی میں گھاس پھوس اور چارہ بیچنے والے کون۔۔۔؟

غریب لوگ جن کی خوب بکری ہو رہی تھی

رسیاں زنجیریں اور کلے (کندے) بیچنے والے کون۔۔۔؟

غریب لوگ جن کی خوب کمائی ہو رہی تھی.

جس بیوپاری سے جانور خریدا وہ بھی ایک غریب تھا جسکا ذریعہ معاش جانور بیچنا تھا کہہ رہا تھا اس بار ان پیسوں سے بیٹی کی شادی کرنے کے قابل ہو جاؤں گا

لو جی ایک غریب کی بیٹی بیاہی جائے گی یہ سوچ کر دل خوش ہوا

گرمی بہت تھی منڈی کے باہر جوس شربت اور ٹھیلوں والے اپنی جیبیں گرم کر رہے تھے کیونکہ لوگ گلاسوں پہ گلاس پی رہے تھے یہ بھی غریب لوگ تھے جنکی بکری ہو رہی تھی ہم نے بھی املی آلو بخارے کا شربت پیا اور ایک لوڈر رکشا میں جانور لادا رکشے والا بھی غریب بندہ جنکی آج کل ڈیمانڈ زیادہ ہونے کی وجہ سے صحیح کمائی ہورہی تھی.

گھر آئے تو جانور کا چارہ یاد آیا وہ بھی ایک غریب سے خریدا عید والے دن قربانی بھی ایک قصائی نے کی جو کہ غریب آدمی اس نے ایک دن میں اچھا خاصا کما لیا.

آخر گوشت کے تین شرعی حصے کئے اور تیسرا حصہ کئی غربا میں تقسیم کیا جن کو سارا سال گوشت میسر نہیں آیا.

قربانی کی کھال ایک مدرسے کو ہدیہ کی جہاں غریب بچوں کو مفت کھانا اور رہائیش ملتی ہے.

کولر والے بھائی۔ !!

دیکھ لو میرے ایک جانور نے کتنے غریبوں کو معاشی فائدہ پہنچایا۔ اور تیرے کولر سے پہلے بھی وہ لوگ پانی پی کر زندہ ہیں۔

اگر غریبوں کا اتنا احساس ہے تو جو کھانا خود کھاتے ہو وہی غریب کو کھلاؤ اور جو خود پہنتے ہو وہ بھی اسے پہناؤ اپنی دیگر فضول خرچیاں ختم کر کے غربا پر خرچ کرو اسلامی احکامات پر بلاوجہ تنقید اور بحث سے گریز کرو قربانی حکم خدا ہے جس پر کوئی سمجھوتا نہیں۔

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Nabi ki Shaan me Gustakhi karne wale ko Sirf Party se hatana kafi nahi. All India Muslim Personal law board

Nupur Sharma Insulting Our Prophet Muhammad Sallahu Alaihe Wasallam. 

*पैग़म्बर-ए-इस्लाम पर अपमानजनक और अशोभनीय टिप्पणी करने वाले भाजपा सदस्यों को पार्टी से निलंबित करना पर्याप्त नहीं, कड़ी सज़ा और प्रभावी क़ानून आवश्यक* - _महासचिव बोर्ड_

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नई दिल्ली 6 जून 2022 ई0

          पिछले दिनों देश की सत्ताधारी पार्टी के कुछ कार्यकर्ताओं ने पैग़म्बर-ए-इस्लाम जनाब मुह़म्मद रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर आपत्तिजनक और अशोभनीय टिप्पणी की, इसने देश के सभी मुसलमानों को सख़्त तकलीफ़ पहुंचायी और वैश्विक स्तर पर भी इसके कारण देश की प्रतिष्ठा को ठेस पहुंची, इस पृष्ठभूमि में ऐसे जघन्य अपराध करने वालों को पार्टी से निलंबित करना निश्चित रुप से अच्छी बात है लेकिन यह पर्याप्त नहीं है, यह बात आवश्यक है कि ऐसे कुकृत्य करने वालों को कठोर दण्ड दिया जाए, उनके विरुद्ध क़ानूनी कार्यवाही की जाए और ऐसा क़ानून बनाया जाए जो विभिन्न धर्मों के पवित्र व्यक्तित्वों (आस्था के प्रतीकों) के अपमान को निन्दनीय अपराध घोषित करता हो और उस पर तत्काल और उचित क़ानूनी कार्यवाही हो सके।

मौलाना ख़ालिद सैफ़ुल्लाह रह़मानी साहब महासचिव बोर्ड ने इन विचारों को व्यक्त करते हुए ईशनिंदा (गुस्ताख़ान-ए-रिसालत) के विरुद्ध प्रदर्शन को जायज़ और स्वाभाविक कहा और उनको ख़िराज-ए-तहसीन पेश किया, इसके साथ ही उन्होंने कहा कि उत्तरप्रदेश में प्रदर्शन करने वालों के विरुद्ध जिस प्रकार एकतरफ़ा और भेदभावपूर्ण कार्यवाही की जा रही है वह बेहद अफ़सोसनाक और निन्दनीय है।

             ✍जारीकर्ता:
*डॉक्टर मुहम्मद वक़ारुद्दीन लतीफ़ी*
            _कार्यालय सचिव_

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Abhi ke Halat (Sitution) me Musalmano ko kya karna chahiye? Gyanwapi Mosque aur Indian Muslims.

India ke Musalmano ke Liye ek jaruri Elan (announce).

Musalmano ko aise galat me kya karna chahiye jab Media, Journalist, Ajenciya Sab biki hui hai?

कौम के लिए जरूरी एलान इसे जरूर पढ़ें.

आज जो हिंदुस्तान मे बीजेपी मुस्लिमों के खिलाफ कर रही है ओर ज्ञानवापी मस्जिद के लिये  भी इसके खिलाफ हमें एकजुट होकर आवाज उठानी है।

इसके लिए हमें करना यह है की अपने मोबाइल में टि्वटर , फेसबुक, व्हाट्सएप जितने हो सके उतने विदेशी मीडिया विदेशी न्यूज़ चैनल, विदेशी नेताओं के पेज अकाउंट्स पर अगर कोई भी कौम के खिलाफ हुआ काम का वीडियो या फोटो आए तो उसे तुरंत भेजें और आपका कोई रिश्तेदार या दोस्त विदेश में हो तो उसे भी कौम के खिलाफ हुआ काम का वीडियो भेजें और उसे सभी तक फैलाने को बोले।

अगर किसी मुसलमान के खिलाफ पुलिस प्रशासन भाजपा के दबाव मैं आकर कोई केस दर्ज करता है तो उसकी f.i.r. भी फेसबुक, ट्यूटर सोशल मीडिया के जरिए से हर जगह फैलाये और बताये कि किस प्रकार से r.s.s. बजरंग दल व दूसरे संगठन मुस्लिमों, ईसाइयों के खिलाफ भारत में काम कर रहा है।

  ज्ञानवापी मस्जिद के बारे में भी सभी सोशल मीडिया ट्विटर वॉट्सएप फेसबुक से हर एक देश तक आवाज पहुंचाओ क्योंकि भारत में सरकार r.s.s. बजरंग दल की है ।

यहां हमारी सुनवाई नहीं होने वाली है इसलिए यह काम जरूरी है हर जगह पर आवाज उठाओ की जिस प्रकार सभी देशों ने मिलकर  अल कायदा, आईएसआईएस को आतंकवादी संगठन घोषित किया वैसे ही r.s.s. बजरंग दल हिंदू युवा वाहिनी जैसे सभी संगठनों  को आतंकवादी संगठन घोषित किया जाए।

जो नेता मुस्लिमों के खिलाफ  लोगों को उकसाते है उनके खिलाफ भी कार्रवाई हो।

इस पर पूरे विश्व में प्रतिबंध लगे ओर इसमें बीजेपी सरकार का नाम भी जोड़े ओर लिखे ये हम  पर जुल्म करवा रहे हैं ताकि विदेशों में भी इनके खिलाफ आवाज उठने लगे।

जिस भी भाई को यह मैसेज जहां से भी मिले 5 लोगों को जरूर भेजें और इस पर अमल जरूर करें।

हम अपनी आवाज़ खुद उठाएंगे दुनिया के सामने , यहाँ मीडिया, रिपोर्टर, और दूसरी एजेंसिया सब बिकी हुई। है। हमे उन सब के भरोसे नही रहना है। अपनी मदद खुद करनी होगी।

आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने क्या कहा ज्ञानवापी मस्जिद के वुज़ू खाने को बंद करने पर।

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Gyanwapi Masjid Me Wuzukhane ko band Karne All India Muslim Personal law Board ne kya kaha?

Gyanwapi Masjid me Wuzukhane ko seal karne ka hukm aur Waha Mandir hone ka Shak?

Court ka Hukm Musalmano par Zulm karne ke jaisa hai.

ज्ञानवापी मस्जिद और उसके परिसर के सर्वे का आदेश और उस सर्वे रिपोर्ट के आधार पर वज़ू ख़ाना बंद करने का निर्देश घोर अन्याय पर आधारित है और मुसलमान इसे बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं कर सकते-* _ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड_

इस तहरीर को उर्दू मे पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करे।
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_नई दिल्ली: 16 मई, 2022_

            ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के महासचिव मौलाना ख़ालिद सैफ़ुल्लाह रह़मानी ने अपने प्रेस नोट में कहा कि ज्ञानवापी मस्जिद बनारस, मस्जिद है और मस्जिद रहेगी, उसको मंदिर बनाने का कुप्रयास सांप्रदायिक घृणा पैदा करने की एक साजिश से ज़्यादा कुछ नहीं, यह ऐतिहासिक तथ्यों एवं कानून के विरुद्ध है।

1937 में दीन मुह़म्मद बनाम राज्य सचिव मामले में अदालत ने मौखिक गवाही और दस्तावेजों के आलोक में यह निर्धारित किया कि पूरा परिसर मुस्लिम वक़्फ़ की मिल्कियत है और मुसलमानों को इसमें नमाज़ अदा करने का अधिकार है, अदालत ने यह भी तय किया कि विवादित भूमि में से कितना भाग मस्जिद है और कितना भाग मंदिर है, उसी समय वज़ू ख़ाना को मस्जिद की मिल्कियत स्वीकार किया गया फिर 1991 ई0 में (Place of Worship Act 1991) संसद से पारित हुआ, जिसका सारांश यह है 1947 ई0 में जो धार्मिक स्थल जिस स्थिति में थे उन्हें उसी स्थिति में बनाए रखा जाएगा।

2019 ई0 में बाबरी मस्जिद मुक़दमे के निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय ने बड़े स्पष्ट शब्दों में कहा कि अब सभी इबादतगाहें इस क़ानून के अधीन होंगी और यह क़ानून संविधान की मूलभावना के अनुसार है।

इस निर्णय में और क़ानून का तक़ाज़ा यह था कि मस्जिद के संदेह में मंदिर होने के दावे को  अदालत तत्काल बहिष्कृत (ख़ारिज) कर देती, लेकिन अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण कि बनारस के दीवानी अदालत ने उस स्थान के सर्वे और वीडियोग्राफी का आदेश जारी कर दिया, ताकि तथ्यों का पता लगाया जा सके, वक़्फ़ बोर्ड ने इस सम्बंध में उच्च न्यायालय का दरवाज़ा खटखटाया है और उच्च न्यायालय में यह मामला लम्बित है, इसी प्रकार ज्ञानवापी मस्जिद प्रशासन ने भी दीवानी अदालत के इस निर्णय के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया है और सुप्रीम कोर्ट में यह मामला विचाराधीन है, लेकिन इन सभी बातों को अनदेखा करते हुए दीवानी अदालत ने पहले सर्वे का आदेश दिया और फिर वज़ू ख़ाना को बंद करने का आदेश दिया, यह क़ानून का खुला उल्लंघन जिसकी एक अदालत से उम्मीद नहीं की जा सकती।

अदालत की इस कार्रवाई ने न्याय की आवश्यकताओं का उल्लंघन किया है इसलिए सरकार इस निर्णय के कार्यान्वयन को तुरंत रोके, इलाहाबाद उच्च न्यायालय के निर्णय की प्रतीक्षा करे और 1991 ई0 के क़ानून के अनुसार सभी धार्मिक स्थलों की रक्षा करे, यदि इस प्रकार के काल्पनिक तर्कों के आधार पर धार्मिक स्थलों की स्थिति परिवर्तित की जाएगी जाती है तो पूरे देश में अराजकता फैल जाएगी क्योंकि कितने बड़े-बड़े मन्दिर बौद्ध और जैन धर्म के धार्मिक स्थलों को परिवर्तित करके बनाए गए हैं और उनकी स्पष्ट निशानियाँ मौजूद हैं।

मुसलमान इस उत्पीड़न को कदाचित बर्दाश्त नहीं कर सकते, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड इस अन्याय से हर स्तर पर लड़ेगा।

              ✍🏼 जारीकर्ता:
    *डॉ. मुहम्मद वक़ारुद्दीन लतीफ़ी*
              (कार्यालय सचिव)

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Gyanwapi Masjid me Wuzukhane ko band karne ke mamle me All India Muslim Personal law Board ne kya kaha?

Gyanwapi Masjid ke wuzukhane ko Band karne ka Court ka Faisla kitna sahi hai?
Gyanwapi Masjid, uske Andar Survey ki ijazat aur Report ki buniyaad par wuzukhane ko band karne ka Hukm puri tarah se Musalmano ke sath Zulm hai.

*گیان واپی مسجد اور اس کے احاطے کے سروے کا حکم اور اس سروے رپورٹ کی بنیاد پر وضوءخانہ کو بند کرنے کی ہدایت سراسر نا انصافی پر مبنی ہے اور مسلمان اسے ہرگز برداشت نہیں کرسکتے۔* _آل انڈیا مسلم پرسنل لا بورڈ_

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نئی دہلی : 16 مئی 2022

آل انڈیا مسلم پرسنل لا بورڈ کے جنرل سکریٹری مولانا خالد سیف اللہ رحمانی صاحب نے اپنے پریس نوٹ میں کہاہے کہ گیان واپی مسجد بنارس، مسجد ہے اور مسجد رہے گی، اس کو مندر قرار دینے کی کوشش ،فرقہ وارانہ منافرت پیدا کرنے کی ایک سازش سے زیادہ کچھ نہیں، یہ تاریخی حقائق کے خلاف اور قانون کے مغائر ہے، 1937 میں دین محمد بنام اسٹیٹ سکریٹری میں عدالت نے زبانی شہادت اور دستاویزات کی روشنی میں یہ بات طئے کردی تھی کہ یہ پورا احاطہ مسلم وقف کی ملکیت ہے۔ اور مسلمانوں کو اس میں نماز پڑھنے کا حق ہے، عدالت نے یہ بھی طئے کر دیا تھا کہ متنازعہ اراضی کا کتنا حصہ مسجد ہے اور کتنا حصہ مندر ہے، اسی وقت وضوءخانہ کو مسجد کی ملکیت تسلیم کیا گیا،

پھر ۱۹۹۱ءمیں(Places of Worship Act 1991) پارلیمینٹ سے منظور ہوا، جس کا خلاصہ یہ ہے کہ ۷۴۹۱ء میں جو عبادت گاہیں جس طرح تھیںان کو اسی حالت پر قائم رکھا جائےگا۔ ۹۱۰۲ء میں بابری مسجد مقدمہ کے فیصلہ میں سپریم کورٹ نے بہت صراحت سے کہا کہ اب تمام عبادت گاہیں اس قانون کے ما تحت ہوں گیں اور یہ قانون دستور ہند کی بنیادی اسپرٹ کے مطابق ہے۔

اس فیصلہ اور قانون کا تقاضہ یہ تھا کہ مسجد کے شبہ میں مندر ہونے کے دعوی کو عدالت فورا (خارج) رد کردیتی، لیکن افسوس کہ بنارس کے سول کورٹ نے اس مقام کے سروے اور ویڈیو گرافی کا حکم جاری کر دیا، تاکہ حقائق کا پتہ چلایا جا سکے،وقف بورڈ اس سلسلہ میں ہائی کورٹ سے رجوع کرچکا ہے اور ہائی کورٹ میں یہ مقدمہ زیر کارروائی ہے، اسی طرح گیان واپی مسجد کی انتظامیہ بھی سول کورٹ کے اس فیصلہ کے خلاف سپریم کورٹ سے رجوع کرچکی ہے۔

سپریم کورٹ میں بھی یہ مسئلہ زیر سماعت ہے، لیکن ان تمام نکات کو نظر انداز کرتے ہوئے سول عدالت نے پہلے تو سروے کا حکم جاری کر دیا اور پھر اس کی رپورٹ قبول کرتے ہوئے وضوءخانہ کے حصہ کو بند کرنے کا حکم جاری کر  دیا، یہ کھلی ہوئی زیادتی ہے اور قانون کی خلاف ورزی ہے جس کی ایک عدالت سے ہرگز توقع نہیں کی جاسکتی، عدالت کے اس عمل نے انصاف کے تقاضوں کو مجروح کیا ہے اس لئے حکومت کو چاہئے کہ فوری طور پر اس فیصلہ پر عمل آوری کو روکے، الہ آباد ہائی کورٹ کے فیصلہ کا انتظار کرے اور ۱۹۹۱ءکے قانون کے مطابق تمام مذہبی مقامات کا تحفظ کرے، اگر ایسی خیالی دلیلوں کی بناء پر عبادت گاہوں کی حیثیت بدلی جائے گی تو پورا ملک افرا تفری کا شکار ہو جائیگا، کیونکہ کتنے ہی بڑے بڑے مندر بودھ اور جینی عبادت گاہوں کو تبدیل کرکے بنائے گئے ہیں اور ان کی واضح علامتیں موجود ہیں،  مسلمان اس ظلم کو ہر گز برداشت نہیں کرسکتے، آل انڈیا مسلم پرسنل لا بورڈ ہر سطح پر اس نا انصافی کا مقابلہ کرے گا۔

           ✍️ جاری کردہ:
*ڈاکٹر محمد وقار الدین لطیفی*
             آفس سکریٹری

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Deeni Madaris Par Angrejo ka Galba kaise hote ja raha hai?

Deeni Madaris Par Angrejiyat kaise hawi hoti ja rahi hai?

*دینی مدارس کی اثر انگیزی میں کمی کے اسباب*

(یہ مفتی تقی عثمانی صاحب کی چشم کشا تحریر ہے، بڑی محنت سے اس کو جمع کیا ہے، ارباب انتظام اور حضرات اساتذہ سے عاجزانہ درخواست ہے اس تحریر کو اول تا آخر مکمل بغور پڑھیں، اللہ تعالی عمل کی توفیق عطا فرمائے!۔ وسیم فلاحی عفا اللہ عنہ)

جہاں تک راقم الحروف نے غور کیا، ہمارے انحطاط کا بنیادی سبب یہ ہے کہ رفتہ رفتہ دینی مدارس کے تعلیم و تعلّم کا یہ نظام ایک رسم بنتا جارہا ہے، اور اس کا اصل مقصد نگاہوں سے اوجھل ہورہا ہے، اگر چہ ہماری زبانوں پر یہی جملہ رہتا ہے کہ ہماری تمام کاوشوں کا مقصدِ اصلی دین کی خدمت ہے، لیکن بسا اوقات یہ بات محض گفتار ہی کی حد تک محدود رہتی ہے، اور دل کی گہرائیوں میں جاگزیں نہیی ہوتی، اگر یہ مقصد واقعةً ہمارے دل کی گہرائیوں میں جاگزیں ہوتا تو اس کی لگن سے ہمارا کوئی لمحہ خالی نہ ہوتا، پھر ہمیں اپنے اسلاف کی طرح ہر وقت یہ فکر دامن گیر رہتی کہ ہمارا کوئی عمل اللہ تعالی کی مرضی کے خلاف تو نہیی، اور ہمارا طرز عمل خدمت دین اور اس کے مقصد کے لیے مفید ہورہا ہے یا مضر ؟؟

اس کے برعکس عملاً ہماری تمام تر توجہات دینی مدارس کے ظواہر پر مرکوز رہتی ہیں، اور ان توجہات میں مقصدِ اصلی کی لگن کا کوئی عکس نظر نہیی آتا، عموماً منتظمین کے عملی مسائل یہ ہوتے ہیں کہ کس طرح مدرسے کی شہرت میں اضافہ ہو؟

کس طرح اس میں طلبہ کی تعداد بڑھے؟
کس طرح مشہور اساتذہ کو اپنے یہاں جمع کیا جائے؟

اور اس سے بڑھ کر یہ کہ کس طرح عوام میں مدرسے اور اس کے اهل حل و عقد کی مقبولیت میں اضافہ ہو؟

ہمارا طرزعمل اس بات کی گواہی دیتا ہے کہ مدارس کے قیام سے ہمارے پیش نظر یہی بنیادی مقاصد ہیں، جن کے حصول کی دھن میں ہمارے شب وروز صرف ہورہے ہیں، چنانچہ ان مقاصد کو حاصل کرنے کے لیے بعض اوقات ایسے ذرائع اختیار کیے جاتے ہیں، جو کسی دین اور اهل دین کے شایان شان نہیں ہوتے، بلکہ بعض اوقات تو ان مقاصد کے لیے واضح طور پر ناجائز ذرائع کے استعمال میں بھی باک محسوس نہیی کیا جاتا، اور اگر کسی مدرسے کو ان مقاصد میں فی الجملہ کامیابی حاصل ہوصل ہوجائے تو یہ سمجھ لیا جاتا ہے کہ مقصد اصلی حاصل ہوگیا، لیکن طلباء کی تعلیمی، اخلاقی اور دینی حالت کیسی ہے؟

ہم کس قسم کے افراد تیار کرکے اس سے معاشرے کی قیادت کے خواہش مند ہیں؟

اور فی الواقعہ ہماری جدوجہد سے دین کو کتنا فائدہ پہنچ رہا ہے؟

ان سوالات پر غور کرنے اور ان کی تڑپ رکھنے والے رفتہ رفتہ مفقود ہوتے جارہے ہیں۔

اس صورت حال کا بنیادی سبب یہ کہ ہم ایک مرتبہ زبان سے اپنا مقصد اصلی خدمت دین کو قرار دینے کے بعد عملی زندگی میں اسے بھول جاتے ہیں، اور اپنی کوششوں کا تمام تر محور ان ظواہر کو بنالیتے ہیں، جو یا تو شرعاً مطلوب ہی نہیں، یا اگر مطلوب ہیں تو اس شرط کے ساتھ کہ ان کو نیک نیتی سے مقصد کا محض ذریعہ قرار دیا جائے، خود مقصد نہ سمجھ لیا جائے۔

اسی طرح اساتذہ کا معاملہ عام طور سے یہ نظر آتا ہے کہ ان کا محور فکر بسا اوقات یہ رہتا ہے کہ ہمیں کونسا مضمون یا کونسی کتاب پڑھانے کے لیے ملے؟

طلبہ پر کس طرح اپنے علمی تفوق کی دھاک بٹھائی جائے، وہ کونسے ذرائع اختیار کیے جائیں جن سے طلبہ میں اپنی مقبولیت بڑھے؟

اور پھر اس مقبولیت میں اضافہ کی خاطر بسا اوقات یہ بات مد نظر نہیی رہتی کہ طلبہ کے لیے کونسا طرز عمل زیادہ مفید اور مناسب ہے؟

بلکہ دیکھا یہ جاتا ہے کہ کیا طرزعمل طلبہ کی خواہشات کے مطابق ہے؟

چنانچہ اس کے نتیجے میں اساتذہ اپنے طلبہ کی رہنمائی کرنے کے بجائے ان کی خواہشات کے تابع ہوکر رہ جاتے ہیں، اور طلبہ اساتذہ کے پیچھے نہیی چلتے، بلکہ اساتذہ طلبہ کی خواہشات کے پیچھے چلنے لگنے ہیں۔

ماضی میں خاص طور پر دینی مدارس کی روایت یہ رہی ہے کہ اساتذہ اور طالب علم کا رشتہ محض ایک رسمی رشتہ نہیی ہوتا تھا، جو درسگاہ کی حد تک محدود ہو، اس کے بجائے وہ ایک ایسا روحانی رشتہ ہوتا تھا، جو دائمی طور پر عمر بھر قائم رہتا تھا،

استاذ صرف کتاب پڑھانے کی ڈیوٹی ادا کرنے والا معلم نہیی ہوتا تھا، بلکہ وہ اپنے طلبہ کے لیے ایک مشفق باپ، ان کا اخلاقی اور روحانی مربی اور علم و عمل دونوں کے میدان میں ایک شفیق نگراں کی حیثیت رکھتا تھا، جو طلبہ کے نجی معاملات تک دخیل ہوتا تھا، اس کا نتیجہ یہ تھا کہ طلبہ اپنے اساتذہ سے علمی استعداد کے ساتھ ساتھ اخلاقی تربیت بھی حاصل کرتے تھے، ان سے زندگی کا سلیقہ سیکھتے تھے، ان سے للہیت، ایثار، تواضع اور دوسرے اخلاق فاضلہ اپنی زندگی میں جذب کرتے تھے، اور اس طرح شاگرد اپنے استاذ کے علم و عمل کا آئینہ ہوا کرتا تھا۔

رفتہ رفتہ یہ باتیں داستان پارینہ ہوتی جارہی ہیں، اور وجہ وہی ہے کہ استاذ نے اپنا مقصد صرف درسگاہ میں ایک ایسی تقریر کرنے کو بنالیا ہے، جسے طلبہ پسند کر سکیں، رہی یہ بات کہ کس قسم کی تقریر ان طلبہ کے لیے زیادہ مفید ہے؟

ان طلبہ کو مفید تر بنانے کے لیے ان کو کن کاموں کا مکلّف کرنا ضروری ہے؟

طلبہ کے کونسے رجحانات ان کے علم و عمل کے لیے مضر ہیں؟

ان رجحانات کو کس طرح ختم کیا جاسکتا ہے؟

طالب علم درسگاہ سے باہر جاکر کس قسم کی زندگی گزارتے ہیں؟

ان سوالات کے بارے میں سوچنے اور ان مقاصد کی لگن رکھنے والے-الا ما شاء اللہ- مفقود ہوتے جارہے ہیں۔

دار العلوم دیوبند کی بنیادی خصوصیت، جس کی بناء پر وہ بر صغیر کے دوسری درسگاہوں سے ممتاز ہوا، یہ تھی کہ وہ علم براے علم کا ادارہ نہ تھا، بلکہ انسانوں کی ایسی تربیت گاہ تھی، جس سے صحیح العقیدہ سچے اور پکے مسلمان تیار ہوتے تھے، اپنی گفتار سے زیادہ کردار سے اسلام کی تبلیغ کرتے تھے۔

اس وقت ہمیں سب سے پہلے اپنے ماحول میں دینی مدارس کی اسی روح کو از سر نو تازہ کرنے کی ضرورت ہے، کیونکہ اس کے بغیر ہماری درسگاہیں اگر بہت کامیاب ہوئیں تب بھی محض علم براے علم کے مراکز بن کر رہ جائیں گی، مدرسے قائم کرنا اور ان میں چند لگے بندھے علوم کا درس دینا بذات خود ایک مقصد بن جائے گا، جس میں  بہت سے مستشرقین پورپ بھی سرگرم عمل ہیں، اور رفتہ رفتہ ہم سے سارے اوصاف گم ہوجائیں گے، جو ان علوم کی درس و تدریس کے لیے لازمی شرط کی حیثیت رکھتے ہیں۔

دینی مدارس میں یہ اصل روح جو مرور ایام سے دھیمی پڑتی جارہی ہے، از سر نو تازہ کرنے کے لیے سب سے اہم ذمہ داری ان درسگاہوں کے اساتذہ اور منتظیمین پر عائد ہوتی ہے، ان کا یہ فریضہ ہے کہ وہ پہلے اپنے ذاتی اعمال و اخلاق کا جائزہ لے کر یہ دیکھیں کہ اسلامی علوم نے ان میں اپنا کوئی رنگ پیدہ کیا ہے یا نہیں؟

خوف خدا اور فکر آخرت میں کتنا اضافہ ہوا؟
اللہ کے ساتھ تعلق کتنا بڑھا؟
عبادت کے ذوق میں کتنی زیادتی ہوئی؟
جن فضائل اعمال کی دوسروں کو شب و روز تلقین کی جاتی ہے، ان پر خود کتنا عمل پیرا ہوے؟

جس انفاق فی سبیل اللہ کی دوسروں کو بڑھ چڑھ کر تاکید کی جاتی ہے، اس میں ہم خود کس قدر حصہ دار بنے؟

دین کے خاطر جان و مال کی قربانی دینے کے جذبے نے کتنی ترقی کی؟

معاشرے کے بگاڑ سے کرب و اضطراب کی کیفیت اور اس کی اصلاح کی فکر کس حد دل و دماغ پر طاری ہوئی؟ ۔۔۔۔۔۔ یہ ساری باتیں ہمارے سوچنے کی ہیں، اور اگر ہم حقیقت پسندی کے ساتھ ان سوالات کا جواب اپنے عمل میں تلاش کریں، تو ندامت و حسرت کا پیدہ ہونا ناگزیر ہے۔

ضرورت اسی ندامت و حسرت سے کام لینے کی ہے، لیکن اس سے صحیح کام اسی وقت لیا جاسکتا ہے، جب ندامت و حسرت محض وقتی ابال نہ ہو، بلکہ اس کا بار بار استحضار ہوتا رہے، یہاں تک کہ یہ مستقبل کے لیے نشان راہ بن جائے۔۔۔۔

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Sweden me Quran Majid Ki be hurmati karne me European Propganda Shamil hai?

Sweden Me Musalmano ke Mazhabi kitab ko kaise aag ke hawale kiya gaya?

Kya European County Musalmano ke khilaaf is Tahrik me Shaamil hai?

स्वीडन मे फिर मुसलमानो के मजहबी किताब कुरान को आग मे डाल दिया गया।

سویڈن میں قرآن مجید کی بےحرمتی نہایت مذموم حرکت.

تحریر: حافظ عبدالسلام ندوی

ان دنوں سویڈن کے مختلف شہروں میں کئی سارے پرتشدد مظاہرے رونما ہورہے ہیں، ان مظاہروں کی ابتداء دراصل انتہا پسند سیاسی رہنما راسمس پیلوڈن کی جانب سے قرآن مجید کی دانستہ بے حرمتی کے بعد ہوئی، راسمس پیلوڈن ایک ڈینش سویڈش سیاسی رہنما ہےجو سٹرام کرس نامی سیاسی جماعت کا بانی ہے، یہ انتہائی دائیں بازو کی جماعت ہےجو مختلف موقعوں پر سویڈن میں سکونت پذیر مسلمانوں کے خلاف زہرافشانی کرتی ہے اور مذہب اسلام کو ہدف مطاعن ٹھہراتی ہے۔

اس جماعت کا سربراہ راسمس پیلوڈن 2020 ء میں اس وقت میڈیا کی خصوصی توجہ کا مرکز بنا تھا جب اس نے مذہب اسلام کی مقدس ترین کتاب قرآن مجید کو خنزیر کے نجس گوشت کے ساتھ ایک لفافہ میں لپیٹ کر نذر آتش کیا تھا،اس ملعون حرکت کے بعد اسے دو سال کے لیے سویڈن میں داخل ہونے پر پابندی عائد کردی گئی تھی، لیکن جو ہی اب یہ مدت اختتام پذیر ہوئی ہے، اس نے از سر نو اپنی اوچھی حرکت شروع کر دی ہے۔

اس نے یہ اعلان کیا ہے کہ جس طرح اس نے قبل ازیں مذہب اسلام کے مقدس ترین نصوص کو نذر آتش کیا ہے پھر سے وہ اس عمل کو دہرائے گا، اس نفرت انگیز اعلان کے بعد سویڈن کے مختلف شہروں میں اسلام کے عقیدت کیشوں نے مظاہروں کا سلسلہ شروع کر دیا ہے، اور حکومت سے یہ مطالبہ کیا ہے کہ راسمس پیلوڈن کو سخت سے سخت سزا دی جائے، علاوہ ازیں مختلف اسلامی ممالک نے بھی قرآن مجید کی عمدا بےحرمتی کے خلاف سخت مذمتی بیان جاری کیا ہے، سعودی عرب کی وزارت خارجہ نے اپنے ایک بیان میں کہا کہ سعودی عرب بات چیت، رواداری،   بقائے باہمی کو فروغ دینے کے لیے مشترکہ کوششوں کی اہمیت پر زور دیتا ہے جب کہ نفرت، انتہا پسندی ،تمام مذاہب اور مقدس مقامات کے ساتھ بدسلوکی کے خاتمے کے حق میں ہے، اس سے قبل ایران اور عراق کی حکومت بھی سویڈن سفیر کو طلب کرکے یہ انتباہ دے چکی ہے کہ اسلام کے مقدس ترین نصوص کی بےحرمتی ناقابل برداشت جرم ہے، لہذا اس جرم میں ملوث تمام افراد کے خلاف قانونی کاروائی ضرور ہونی چاہیے ورنہ رواداری اور بقائے باہمی کا تصور محض ایک خواب بن کر رہ جائے گا۔

اس صورتحال میں سوئیڈن حکومت پر سب سے بڑی ذمہ داری عائد ہوتی ہےکہ وہ ملک کی سب سے بڑی اقلیت مسلم جماعت کے آئینی حقوق کی حفاظت کے لیے ہر ممکن کوشش کرے اور ان افراد کو سلاخوں کے پیچھے ڈالے جو اسلام مخالف سرگرمیوں میں ملوث ہیں تاکہ سویڈن میں امن کا ماحول قائم ہو، اور یورپ کا یہ خوشحال ترین ملک چین و سکون کی سانس لے.

یہاں یہ بات بھی قابل ذکر ہے کہ اس طرح کی افسوسناک اور اشتعال انگیز کارروائیوں کے ردّعمل میں مسلمانوں کا فسادات کرنا بھی درست نہیں ہے بلکہ مسلمانوں پر یہ ذمہ داری عائد ہوتی ہے کہ وہ لوگوں کو قرآن کی حقیقی تعلیمات سے روشناس کروائیں تا کہ مسلمانوں کے مخالف انتہا پسند لوگ قرآنی آیات کو سیاق و سباق سے ہٹا کر اپنے نفرت انگیز پروپیگنڈا کو عملی جامہ پہناتے ہوئے اسلام کو بدنام نہ کر سکیں.

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Sweden Me Ek Christian shakhs Ne Quran ko aag me Jalane ki tahrik (Movement)chalayi hai?

Quran Burned By Rasm us Paludan in Sweden. 

स्वीडन मे फिर मुसलमानो के मजहबी किताब कुरान को आग मे डाल दिया गया।

आखिर यूरोपीय देशों मे मुसलमानो के खिलाफ इस तरह का आंदोलन चलाकर का साबित किया जा रहा है?

स्वीडन में धुर-दक्षिणपंथी और आप्रवासी विरोधी समूहों द्वारा मुसलमानों के धर्म ग्रंथ क़ुरान को जलाने की घटना के बाद कई शहरों में चौथे दिन भी विरोध प्रदर्शन हुईं हैं.

लोकल मीडिया ने बताया है कि पूर्वी शहर नोरेशेपिंग में इतवार को भी लगातार विरोध प्रदर्शन हुए जिनमें पुलिस ने शांति पूर्वक प्रदर्शन कर रहे मुसलमानो को चेतावनी देते हुए उन पर गोलियां चलाई थीं जिसमें तीन लोग घायल हुए हैं.

हार्ड लाइन आंदोलन के प्रमुख और डेनिश-स्वीडिश चरमपंथी आतंकवादी रसमुस पालूदान ने कहा है कि उन्होंने इस्लाम के सबसे पवित्र मूलपाठ (कुरानी आयात) को जलाया है और वो अपने इस काम को दोहराएंगे.

डॉएचे वैले ने रिपोर्ट किया है कि रविवार को पालूदान ने नोरेशेपिंग में एक अन्य रैली की चेतावनी दी थी जिसके बाद इसके विरोध में भी प्रदर्शन करने के लिए लोग इकट्ठा हुए थे.

डेनमार्क में नस्लवाद समेत कई अपराधों के कारण पालूदान को 2020 में एक महीने की जेल हुई थी.

उन्होंने फ़्रांस और बेल्जियम जैसे यूरोपीय देशों में इसी तरह से क़ुरान जलाने की कोशिशें की थीं.

इस शख्स ने मुसलमानो के जज़्बात का मजाक बनाते ही उसने इस्लामिक ग्रंथ को आग मे डाल दिया और वहाँ की प्रशासन और सरकार मे इसमे पूरी तरह से मिली हुई है।

इससे पहले भी इसने कुरान को आग मे डाला था मगर वहाँ की सरकार और सिस्टम कुछ नही की बल्कि उस अवार्ड देकर और हौसला अफजाई की गयी।

इससे पहले नार्वे मे भी कुरान को आग के हवाले कर दिया गया था जिसमे एक मुस्लिम लड़के ने भीड़ को छिड़ते ही कुरान को आग मे जलने से बचा लिया जिसकी वजह से उस जेल मे डाल दिया गया।

यह कोई नई बात नही जब ऐसे घटनाओ पर वेस्टर्न देश खामोश हो बल्कि जब भी मुसलमानो के खिलाफ आंदोलन चलाया गया तब उसे और पश्चिमी देशो ने बढ़ावा दिया।

स्वीडन मे इस शख्स ने एक मुहिम चलाया है कुरान जलाने का, यह इससे पहले भी कई देशो मे ऐसा कर चुका है।

दरअसल, देश में प्रतिबंधित डेनमार्क की Hard Line के नेता Rasmus Paludan को मालम में मीटिंग की इजाजत नहीं दी गई थी और स्वीडन के बॉर्डर पर रोक लिया गया था।

प्रशासन को शक था कि उसके आने से स्वीडन में कानून को तोड़ा जाएगा और  मुसलमानो के खिलाफ अभियान चलाया जायेगा। इसके बाद इस शख्स को गिरफ्तार कर लिया गया था।

लेकिन गिरफ्तार किए जाने के बाद गुस्साए आतिवादियो ने रैली के दौरान कुरान को जला दिया।

इसके आरोप में तीन लोगों को गिरफ्तार किया गया है।

Paludan ने भी पिछले साल कुरान को जलाकर विवाद खड़ा कर दिया था। यही नहीं, उसने मुस्लिमों में वर्जित मीट (बेकन) में घेरकर कुरान को रखा था।

फेसबुक पर भी उसने नफरतभरे पोस्ट किए थे।

इससे आप सब अंदाज़ा लगा सकते है के ईसाइयो ने मुसलमानो के खिलाफ कितना नफरत फैलाया हुआ है?

इस शख्स को यूरोपीय सरकार ऐसा करने के लिए पैसे और राजनीतिक मदद करती है।

इस चरमपंथी और आतंकवादी घटना का सऊदी अरब, इराक और ईरान ने निंदा की है।

नार्वे मे कुरान को जलाकर मुसलमानो को का पैगाम दिया जा रहा है?

यह शख्स कौन है जिसने नार्वे मे कुरान को आग से बचाया?

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Youtube Yahudiyo ke Propganda ko failane ke liye Dr Israr Ahmed ka Channel delete kiya?

रूस के खिलाफ हिंसा को बढ़ावा देने वाला अमेरिकन सोशल मीडिया फेसबुक डॉक्टर इसरार अहमद के चैनल को यूटूब से क्यों हटाया गया है?

यूटूब ने क्यों डॉक्टर इसरार अहमद पर लगाया बैन और उनके ऑफिशियल चैनल को रिमूव कर दिया है?

आमतौर पर ऐसा कहा जाता है के हर दुनिया मे सबसे ज्यादा उदार और आज़ाद ख्याल शासन व्यवस्था है तो वह यूरोप का है।
लेकिन क्या सच मे ऐसा ही है या फिर दिखावे वाली शान है?

फ्रांस मे चार्ली हेब्दो हर साल और हमेशा मुसलमानो के आखिरी नबी मोहम्मद सल्लाहु अलैहे वसल्लम पर कार्टून तैयार करता है ( नजोबिल्लाह) और इसे यूरोप दुनिया के सामने अभिवायक्ति की आज़ादी यानी बोलने की आज़ादी (फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेसन) का नाम दिया जाता है।

यूरोप हमेशा इस्लाम उसके रसूल और मुसलमानो के ईमान ओ अक़ीदा की बेहूर्मति करके दुनिया के सामने उदार सिस्टम साबित करता है।

जब भी कोई इस्लाम या गुस्ताख ए रसूल पर  कुछ बोलता है या किताब लिखता है तो अमेरिका, इंग्लैंड उसे नोबेल पुरस्कार देकर उसकी हौसला अफ़ज़ाई करता है।

इस तरह इस्लाम के खिलाफ जितनी भी साजिशें की जाती है या मुसलमानो को जलील करने के लिए उनके तहजीब का मज़ाक बनाया जाता है वह सब यूरोपियन शासन व्यवस्था( यहूदि व नसरानी) मे उदार सिस्टम कहलाता है। यानी जितना आप इस्लाम विरोधी कंटेंट पब्लिश (प्रकाशित) करेंगे उतना ही आप उदार, आज़ाद ख्याल और आधुनिक कहलाएंगे।

सलमान रुश्दी, तारेक फतेह, तस्लीमा नसरीन जैसे गुस्ताख ए रसूल लोग यूरोप के सबसे बड़े सेलिब्रेटीज है।

फिलिस्तीन (Palestine) जिंस पर इंग्लैड ने जबरदस्ती मुसलमानो के ज़मीन पर यहूदियों का देश बना दिया जिसे इसराइल कहते है।

आज वही फिलिस्तिनि दर दर भटक रहे है, अपने ही देश मे पराये बन गए, कभी जिनका अपना देश हुआ करता था आज वही लोग गुलामो से बदतर शरणार्थी वाली जिंदगी जी रहे है।

यह है यूरोप का वह धुंधला उदार सिस्टम जिसे दुनिया गले लगा रही है।

आज वही इसराइल वहाँ के मुसलमानो पर बम गिरा रहा है, ड्रोन से हमला कर रहा है और वहाँ पर यहूदियों को दुनिया के  कोने कोने से लाकर बसा रहा है।

लेकिन इन सारे मामले पर अमेरिका जो लोकतंत्र और मनवाधिकार का ठीकेदार है पूरी तरह से खामोश तमाशा देख रहा है और इसराइल को हथियार और आर्थिक मदद कर रहा है।

न्यूज़ीलैंड के अल नूर मस्जिद मे एक ईसाई ने जुमे के दिन बंदूक से 50 से ज्यादा नमाजियो को आँख बंद करके मौत के नींद सुला दिया मगर मनवाधिकार के ठिकेदारो की आवाज़ भी नही निकली।

नार्वे मे लोगो की भीड़ ने कुरान को आग मे जलाने की साजिश की और मुसलमानो के खिलाफ खुलेआम नफरत का इज़हार किया तब भी लोकतंत्र का गहवारा कहे जाने वाले इंग्लैंड और यूरोप खामोश रहा।

लाखो मुसलमानो को सीरिया और इराक मे हवाई हमला, ड्रोन और मिसाइल से मारने वाला अमेरिका खुद को इंसानियत का मसीहा कहता है।

अफगानिस्तान मे 20 सालों तक अफ़्ग़ानियो का खून बहाने वाला अमेरिका और उसका नाटो खुदको क्रांतिकारी और अफगानी जो अपने वतन की आज़ादी के लिए लड़ रहा था उस आतंकवादी (दहशतगर्द) कहा गया। दुनिया अफ़्ग़ानियो को ज़ालिम, कट्टरपंथी, राक्षस, क्रूर, दकियानुसी, चरमपंथी और पुराने ख्यालो वाला कहती थी।

सिर्फ इतना ही नही अगर कोई उन वतन परस्त अफ़्ग़ानियो जो अपने मुल्क की खातिर बाहरी दुश्मनो से लड़ रहे थे उनके हिमायत मे या तारीफ मे कोई कुछ बोल देता या सोशल मीडिया पे पोस्ट करता तो उस हेट स्पीच और दहशतगर्द बता कर उसे हटा दिया जाता था।

क्या यह उन, लोगो की आज़ादी नही थी?

क्या किसी वतन परस्त की तारीफ करने से दहशत गर्द हो जाता है?

क्या यह फ्रीडम और स्पीच के दायरे मे नही आता था?
क्या यह अमेरिका और यूरोप तय करेगा के मुसलमानो को क्या बोलना चाहिए और क्या नही?

क्या अब फेसबुक और दूसरे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मस् मुसलमानो के लिए रूल बनायेगा के उस क्या पोस्ट करना है?

जब युक्रेन पर रूस ने हमला किया तो युक्रेन वाले रूस के खिलाफ लड़ने लगे तो इस तरह से युक्रेनि भी तो आतंकवादी हुए।

फिर फेसबुक और सिलिकॉन वेली से दूसरे सोशल मीडिया वाले यह क्यों कहने लगे के " अगर कोई रूस के खिलाफ दूसरे लोगो को हिंसा करने के लिए कहता है, हिंसक बयां देता है, हिंसक पोस्ट करता है तो फेसबुक उसे स्पोर्ट करेगा" ?

क्या यह इससे आतंकवाद नही फैलता है?
क्या यह भड़काऊ भाषण से सामाजिक सौहाद्र नही बिगड़ेगा?
क्या फेसबुक इसलिए युक्रेन के समर्थन मे बोल रहा ही क्योंके वह एक ईसाई देश है?
इस तरह से
अफगानिस्तान मे अपने मुल्क के लिए लड़ने वाले क्रांतिकारी और फ्रीडम फाइटर क्यों नही हो सकते है?

फेसबुक क्यों इनके हिमायत वाले कंटेंट को ब्लॉक करता है?

इसी तरह इस्लामी विद्वान डॉक्टर इसरार अहमद के ऑफिशियल चैनल को क्यों ब्लॉक किया गया?

क्या फेसबुक मुसलमानों के साथ भेदभाव करता है?
अगर नही तो युक्रेन के समर्थन मे रूस के लिए हिंसक पोस्ट करने की इजाज़त क्यों?

जबकि एक आलिम के ब्यान मे इसे हिंसा नजर आती है ऐसा क्यो?

एक स्कॉलर के बयान मे ऐसा क्या है जिससे ब्लॉक करना पड़ा जबकि दुनिया मे सबसे जयादा दहशत फैलाने वाला अमेरिका आज दुसरो को इंसानियत का दर्स देता है?

इंसानियत का खून करने वाला आज मुसलमानो को मानवता का पाठ पढ़ा रहा है?

दुनिया मे सबसे जयादा दहशत फैलाने वाला अमेरिका आज मुसलमानो को दहशत गर्द साबित कर रहा है?

उदार सिस्टम का समर्थक और इज़हार ए ख्याल पर बोलने वाला यूरोप डॉक्टर इसरार अहमद के जुबान को क्यों बंद करना चाहता है?

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Mera Sabse pasandida Leader Hai Barak obama. Malala Yusufajai

Europe Ke god me Baithkar zehar ugalne wali aasteen ke saanp.

क्या आप जानते है मलाला यूसुफजई कौन है?

यूरोप मुस्लिम महिलाओं को बिकनी पहनाकर क्या साबित करना चाहता है?

" मेरा जिस्म मेरी मर्ज़ी " यह है इंसानियत के थिकेदारो का नारा।

एक ईसाई शख्स जिन्हें इस्लाम कुबूल करने की वजह से मौत की सजा दी गयी।

मलाला यूसुफजई और उनके वालिद के हवाले से बहुत कुछ ऐसा है जिसे आपको जरूर जानना चाहिए।

मलाला के लिए अमेरिका और सलेबी इतना मेहरबान क्यों? 

मलाला मीडिया कॉवेराज के लिए, सलेबियो को खुश कर के अवार्ड पाने के लिए हमेशा इस्लाम के खिलाफ औरतों के हुकुक के नाम पर बयाँ देती है। 

मलाला की किताब "आई एम मलाला" लिखने में उनकी मदद क्रिस्टियानो लिंब नाम की जर्नलिस्ट ने की।

 
क्रिस्टियानो लिंब को इसलिए शोहरत मिली क्योंकि वह पाक फौज और पाकिस्तान की विरोधी है। इसलिए क्रिस्टियानो लिंब पर पाकिस्तान सरकार के तरफ से पाबंदी भी है।

मलाला यूसुफजई सलमान रुश्दी की गुस्ताखाना किताब " शैतानी आयात " के बारे में लिखती है के "उसके वालिद के ख्याल में वह आजादी इजहार (freedom of expression) है" ।

मलाला यूसुफजई अपनी किताब में कुरान पर टिप्पणी करती है और उसमे खवातीन से मुतल्लिक मौजूद क्वानिन से वह इत्तेफाक नहीं रखती।

मसलन वह एक मर्द और दो औरत की गवाही को गलत कहती है जो के कुरान का हुक्म है ।

इसी तरह जीना (illegal Sex) से मुतल्लिक चार लोगो की गवाही को भी दुरुस्त नहीं समझती।
   (आई एम मलाला पेज 24 और 79)

इसी किताब के पेज 28 पर वह इस्लाम का सेकुलरिज्म और लिबरलिज्म से तुलना करते हुए दीन ए इस्लाम को दहशतगर्द करार देती है।  नौजोबिल्लाह

वह तसलीमा नसरीन को अपनी लाडली बहन करार देती है। यह दोनो के अच्छे ताल्लुकात है।

तसलीमा नसरीन को बांग्लादेश हुकूमत ने  गुस्ताख ए रसूल  की वजह से पाबंदी लगा रखा है।

मलाला ने अपनी पूरी किताब में अल्लाह के लिए लफ्ज़ " गॉड " इस्तेमाल किया है और नबी ए अकरम सल्लाहू अलीहे वसल्लम के लिए सिर्फ नाम लिखा है जैसे गैर मुस्लिम और काफिर लिखा करते है। इसने कही भी नबी सल्लाहु अलैहे वसल्लम के लिए " दुरुद " या " पीस बी अपॉन हिम " (PBUH) नही लिखा है।

मलाला यूसुफजई गुस्ताख ए रसूल पर सजा ए मौत वाले कानून के खिलाफ है।

मलाला यूसुफजई के मुताबिक पाकिस्तान रात के अंधेरे में बना था। इसके किताब में ये अल्फाज पढ़कर यह मतलब निकाला जा सकता है गोया रात के अंधेरे में कोई गुनाह या जुर्म हुआ था।

मलाला यूसुफजई के मुताबिक इन के वालिद जियाउद्दीन यूसुफजई पाकिस्तान के यौम ए आजादी के दिन (14 अगस्त) को काली रिबन बांधी थी जिसपर वह गिरफ्तार किए गए थे और जुर्माना देना पड़ा था।

वह कहती है पहले मैं स्वाति हूं, फिर पश्तून और तब मैं पाकिस्तानी हूं। अपने मुसलमान होने का जिक्र कहीं भी नही करती।

मलाला के वालिद जियाउद्दीन यूसुफजई का कहना है के अगर मुझे किसी मुल्क का शहरी (नागरिक) बनने की ख्वाहिश है तो वह अफगानिस्तान है।

वह अपने मुल्क के कानून का मजाक बनाते हुए कहती है के अहमदी खुद को मुस्लिम कहते है लेकिन यहां का कानून उसे गैर मुस्लिम करार दिया है। (पेज 72)

मलाला और उनके वालिद शकील आफरीदी की हिमायत करते है जो पाकिस्तानी सरकार के मुताबिक गद्दार और जासूस है और इस वक्त सजा काट रहा है।

मलाला की तकरीर उसके वालिद लिखते थे जबकि ब्लॉग अब्दुल हई काकर नामी बीबीसी का नुमाइंदा लिखता था जैसा के वह अपनी किताब में यह सब का जिक्र कर चुकी है।

एडम बि एलेक नाम का सीआईए (CIA) एजेंट कई महीनो तक अपनी शक्ल बदल कर मलाला के घर रहा और उनके वालिद के साथ मिलकर मलाला की तरबियत की ताकि उसको आने वाले वक्त के लिए तैयार किया जा सके। (यह खबर भी फैली के उसने बाद में मलाला से नोबेल इनाम में अपना हिस्सा मांगा था)

मलाला के मुताबिक उनके वालिद जियाउद्दीन यूसुफजई बिजली चोरी में कई बार पकड़े गए थे जिसकी वजह से जुर्माना भी हुआ था।

मलाला की पसंदीदा शक्सियत "बराक ओबामा" है । (हो सकता है अब ट्रंप और बाइडेन हो)

मलाला के मुताबिक वह भेष (रूप) बदल कर यानी बगैर यूनिफॉर्म के ही स्कूल जाती थी क्योंकि तालिबान से खतरा था।

जबकि जहां मलाला रहती थी वहां कोई स्कूल बंद नहीं था। तालिबान मट्ठा के इलाके में ही पाबंदी लगा सके थे। जहां कुछ ही  स्कूल बंद किए गए थे। खास बात यह है के वह जिस वक्त की बात कर रही है उस वक्त वह अपने बाप जियाउद्दीन यूसुफजई के ही स्कूल में जेरे तालीम थी। जो उन्ही के घर के निचले छत में था।

तो क्या वह ऊपर वाले छत से नीचे आने के लिए अपना भेष बदलती थी?

यह है मलाला और उसका असल चेहरा जो आज पाकिस्तान और दुनिया भर के लिबरल टोला वाले की अगुवाई कर रही है।

यह वही मलाला है जो हमेशा मुसलमान हुक्मरानों को औरतों  की आजादी के लिए नसीहत करती है।

यह वही शख्स है जो तसलीमा नसरीन को बहन बताती है और खुद को मुस्लिम औरतों की नुमाइंदा बनती है।

क्या हम एक ऐसे मुस्लिम मुआश्रे की बुनियाद देना चाहते है जिसमे आस्तीन के सांपो को पनाह मिले और इस्लामी निजाम को बर्बाद करने के लिए दिन रात कोशिश करते रहे?

इन को इस्लामी निजाम से नफरत है , हमारे नबी, साहाबा और अल्लाह का कलाम से इन लोगो को दुश्मनी है और यही लोग मुस्लिम खवातीन् के हक़ की बात करते है।

आप सब से गुजारिश है के ऐसे लोगो का बॉयकॉट किया जाए, सोशल मीडिया पर अन फॉलो कीजिये और इनका सामाजिक बॉयकॉट कीजिये। या लोग फिरंगियों के गोद मे बैठ कर मुसलमानो के खिलाफ जहर उगलते है। इन के बहकावे मे न आवे। जो इस्लाम का नही वह भला मुसलमानो का नुमाइंदा कैसे हों सकता है।

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A Christian man who converted to islam, Heart TOUCHING and Real story.

A Christian who converted to Islam.

HEART TOUCHING AND REAL LIFE STORY.

Noah Cabarino was a Christian and converted to Islam during his work in Saudi Arabia where he learned Arabic and memorized the Qur'an, interpretation and biography in only 7 years.

He returned to his home country, the Philippines, and he is an advocate of Islam.

He held debates with priests, and more than 70,000 Christians converted to Islam in a few years.

Even the American ambassador in the Philippine capital, Manila, indicated to him in one of the seminars that he wanted to bring extremist Islam back to the Philippines!!

And when the Christians failed to confront him with the argument and proof, they assassinated him (may Allah accept him) with bullets while he was prostrating the afternoon prayer in one of the mosques in Manila in 2016.

He did not know who assassinated him. His followers accused America , while some newspapers accused Iran . and others accused Christian association.

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Aaj Ukraine Apne Army me Sirf Mardo ko kyu Shamil kar raha hai Auraton ko nahi?

Ham sab Un Se mutalba karte hai wah Ukraine par Human Rights ke khilafwarzi ka mukadma chalaye.
Ukraine kyu Army me Mardo ko Shaamil kar raha hai Aurato ko nahi?

 



(حقوق نسواں)

✍ : طالب العلم معاذ عثمان

ہم پرزور مطالبہ کرتے ہیں کہ اقوامِ متحدہ یوکرین پر سنگین پابندیاں عائد کرے کیونکہ یوکرین نے انسانی حقوق کی خلاف ورزی کی ہے، یوکرینی حکومت کی طرف سے
پیغام جاری کیا گیا ہے کہ یوکرین کا ہر مرد جس کی عمر 18 سال سے لے کر 60 سال تک ہے، وہ ملکی دفاع کے خاطر
ہتھیار اٹھائے۔

ہتھیار بھی خود حکومت فراہم کرے گی.

جبکہ عورتوں اور بچوں کو با حفاظت محفوظ جگہ پر منتقل کر دیا گیا ہیں۔

یوں تو یوکرینی فوج میں مرد و خواتین دونوں شامل ہیں، مگر عام عوام کو پیغام میں یوکرینی صدر زلنسکی نے نہایت واضع الفاظ میں صرف یوکرینی مردوں کو پیغام دیا ہے کہ وہ ہتھیار اٹھائے۔

یوکرینی صدر کے اس پیغام کے بعد چند سوالات کا اٹھنا فطری ہیں کیونکہ یوکرینی حکومت نے عورتوں کے حقوق کو خاک میں ملا دیا ہے۔

وہ سوالات ہیں، کیا عورتیں مردوں سے کمزور ہے؟

کیا عورتوں میں حب الوطنی کا جزبہ نہیں ہوتا ؟
کیا یوکرینی عورتیں بزدل ہیں؟؟؟

اگر یورپ (یوکرین) میں عورتوں کو مردوں کے سنگ ملک و وطن کی دفاع کی خاطر لڑنے نہیں دیا جاتا تو پھر کیا یہ اندازہ لگانا درست ہے کہ یورپ میں خواتین کو حقیر سمجھا جاتا ہے ؟؟؟

اگر حقیر نہیں سمجھا جاتا اور عورت کو مرد کے برابر اور ہم پلّہ سمجھا جاتا ہے تو پھر یہ دہرا معیار کیوں؟

یا ماجرا کچھ اور ہے جیسا کہ عام طور پر ہمارے معاشرے کا تصوّر ہے کہ حقوق سب کے برابر ہیں مگر کرنے کے کام مختلف۔۔۔

بات عورتوں کے حقوق کی ہو رہی ہو اور ہمارے معاشرے کے مغرب زدوں کو یاد نہ کیا جائے، کوئی جواز ہی نہیں بنتا!

عموماً ہمارے معاشرے کے مغرب زدہ لوگ بڑے رشک بھری نظروں سے یورپی معاشرے کو دیکھتے ہیں۔

یورپی معاشرے میں سب سے زیادہ دلکش چیز جو انہیں لگتی ہے وہ ہے عورتوں کی آزادی یا بالفاظ دیگر ،حقوق نسواں۔۔۔

حقوق نسواں مطلب و مقصد ہی یہی ہے کہ عورتوں کو حقیر نہ سمجھا جائے، ہر عورت کو ان کا حق فراہم کیا جائے، خواتین کو تعلیم سے ہرگز محروم نہ کیا جائے، زبردستی شادیاں نہ کرائے جائیں، اگر عورتیں کو جاب وغیرہ کرے تو منع نہ کیا جائے، اس سے یہ معلوم ہوتا ہے کہ یہ تو در حقیقت وہی بات کر رہے ہیں جو رحمت اللعالمین صلی اللّٰہ علیہ وسلم نے بہت پہلے کی تھی، یعنی وہ محمد رسول اللّٰہ ہی تھے جنہوں نے جاہلیت کے زمانے میں عورتوں کو وہ حقوق دئے جو روز روشن کی طرح واضح ہیں اور بیان کرنے کی ضرورت نہیں ہیں کیونکہ ہر شخص (بالخصوص مسلمان) اس سے واقف ہے۔

درحقیقت معاملہ اس وقت سمجھ سے بالا تر ہو جاتا ہے کہ یہ لوگ جو حقوق مانگ رہے ہیں، یہ حقوق تو پہلے ہی سے آئین شریعت نے فراہم کی ہیں۔

اگر بات یہ ہی ہے کہ شریعت پر عملدرآمد نہیں ہو رہی تو واضح بتائے تاکہ فقط چند لوگ نہیں بلکہ پورا عوام اس تحریک میں شامل ہو جائے اور اسلام پسند سیاسی پارٹیاں بھی حمایت کر دے۔

مگر بات حقوق کے حصول کی نہیں ہے یہ تو محظ ایک بہانہ ہے اور حصول حقوق کے نام پر بےحیائی برائیوں کو فروغ دینے کا کام یا تو چاہتے ہوئے اور یا نہ چاہتے ہوئے سر انجام دے رہے ہیں۔

ان لوگوں کے بارے میں میں وہ الفاظ استعمال کرنا پسند کرونگا جو سید قطب نے اپنے ملک کے اشتراکیت زدوں کے بارے میں عرض کئے تھے کہ "بات تو ان کی ٹھیک ہیں مگر مقصد غلط ہے۔" کیونکہ ان کے قول و فعل کا تضاد ہی ان کے مقصد کو واضح کرتا ہے۔

اگر آپ ماضی قریب کے چند لمحوں کا مشاہدہ کریں تو سب کچھ عیاں ہو جائے گا۔

جیسا کہ ہر سال مارچ کے مہینے میں چند لوگ عورت مارچ کے نام سے ایک جلوس منعقد کرتے ہیں جس میں وہ جو نعرہ بازی کرتے ہیں وہ بھی سب کو خوب معلوم ہیں، جو اس بات کو واضح کرتی ہے کہ اصل مقصد عورتوں کے حقوق کے لیے جدوجہد نہیں بلکہ کچھ اور ہے۔

اسی مارچ کو ہر سال ہمارے معاشرے کے مغرب زدہ لوگ خوب بڑھا چڑھا کر پیش کرتے ہیں۔

درحقیقت یہ لوگ ہمارے معاشرے میں مغربی معاشرے کے دلال بن کر مغربی تہذیب کی اچھائی بیان کرنے میں مصروف رہتے ہیں۔

چند مہینے پہلے جب گوادر کی بیٹیوں اور ماؤں نے نہایت عظیم الشان ریلی نکالی تھی تو اس ریلی پر سب کو سانپ سونگھ گیا تھا۔

بی بی سی کے رپورٹ کے مطابق یہ گوادر کی سب سے بڑی ریلی تھی۔ جبکہ کچھ ملکی و غیر ملکی خبر رساں اداروں کے مطابق یہ ریلی بلوچستان کے تاریخ کی سب سے بڑی ریلی تھی۔
مگر اس پر کسی نے بھی یہاں تک کہ بڑے بڑے اینکروں نے بھی اس ریلی کے لیے کچھ بولنا تک بھی پسند نہ کیا۔

معروف عالم الدین اور بیسویں صدی کا محقق و مصنف سید ابوالاعلی مودودی نے اپنی کتاب "دین اور خواتین" میں عورتوں کے حقوق کے بارے میں اور عورتوں کی آزادی کے بارے میں نہایت مدلل انداز میں لکھا ہے کہ "ہم مسلمان عورتوں کو ضروری فوجی تعلیم دینے کا بھی انتظام کریں گے اور یہ بھی ان شاءاللہ اسلامی حدود کو باقی رکھتے ہوئے ہوگا۔

میں بارہا اپنے رفقا سے کہہ چکا ہوں کہ اب قومیت کی لڑائیاں حد سے بڑھ چکی ہیں اور انسان درندگی کی بدتر سے بدتر شکلیں اختیار کر رہا ہے۔

ہمارا سابقہ ایسی ظالم طاقتوں سے ہے جن میں انسانیت کی کسی حد کو بھی پھاند جانے میں تامل نہیں ہے۔
کل اگر خدانخواستہ کوئی جنگ پیش آجائے تو معلوم کیا کیا درندگی اور وحشت ان سے صادر ہو۔

اس لیے یہ ضروری ہے کہ ہم اپنی عورتوں کو مدافعت کے لیے تیار کریں اور ہر مسلمان عورت اپنی جان و مال اور آبرو کی حفاظت کرنے پر قادر ہو۔

انھیں اسلحے کا استعمال سیکھنا چاہیے، وہ سواری کر سکتی ہوں، سائیکل اور موٹر چلا  سکیں، فسٹ ایڈ [ابتدائی طبی امداد ] جانتی ہوں، پھر صرف اپنی ذاتی حفاظت ہی کی تیاری نہ کریں، بلکہ ضرورت ہو تو جنگ میں مردوں کا ہاتھ بٹاسکیں۔

ہم یہ سب کچھ کرنا چاہتے ہیں لیکن اسلامی حدود کے اندر اندر کرنا چاہتے ہیں، ان حدود کو توڑ کر نہیں کرنا چاہتے۔
قدیم زمانے میں بھی مسلمان عورتوں نے اسلحے کے استعمال اور مدافعت کے فنون کی تربیت حاصل کی تھی لیکن اُنھوں نے پورے فنون سپہ گری اپنے باپوں، بھائیوں اور شوہروں سے سیکھے تھے اور پھر عورتوں نے عورتوں کو تربیت دی تھی۔

اب بھی یہ صورت بآسانی اختیار کی جاسکتی ہے کہ فوجی لوگوں کو اپنی محرم خواتین کی تربیت پر مامور کیا جائے اور پھر جب عورتیں کافی تعداد میں تیار ہو جائیں تو ان کو دوسری عورتوں کے لیے معلم بنا دیا جائے۔ "

تو ضرورت اس امر کو سمجھنے کی ہے کہ اس دنیا میں جو بھی انسان ہو؛ چاہے وہ مرد ہو یا عورت, اس شخص کو اس دنیا میں ان اصولوں ، قاعدوں ، پابندیوں اور آزادیوں کے محدود لکیروں کے اندر ہی زندگی گزارنی چاہیے جن لکھیروں کو خالق سماوات و الارض نے مقرر کئے ہیں۔ چاہے وہ مرد ہو یا عورت ، عربی ہو یا عجمی ، یورپ کا باشندہ ہو یا برصغیر کا وہ رب کے مقرر کردہ اصولوں سے مبرّا نہیں ہے بلکہ عین اس کا پابند ہے۔

جو بھی کام ہو شریعت کے دائرے میں رہ کر ہو, ایسا  نا  ہو جس سے اللہ اور اسکے رسول کی نا فرمانی ہو۔

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Kya Zalim, Jabir aur Aiyyash Musalman Hukmran Ki Itaat (obey) karna chahiye?

Musalman Hakim ki itatat kab tak ki jayegi?
Sawal: Musalman hakim ki itaat karna kis kadar Jaruri hai? Agar Hukmran Zalim, jabir aur aiyyash ho to kya tab bhi unki Itaat wajib hai? Maujooda  Hukmaranon ki itaat ke bare me sharai hukm kya hai?

"سلسلہ سوال و جواب نمبر-254"
سوال_ مسلمان حاکم کی اطاعت کرنا کس قدر ضروری ہے؟ اگر حکمران ظالم، جابر اور عیاش ہوں تو کیا پھر بھی انکی اطاعت واجب ہے؟ نیز موجودہ حکمرانوں کی اطاعت کے بارے شرعی حکم کیا ہے؟

Published Date: 20-6-2019

جواب:
الحمدللہ:

*شریعت مطہرہ نے مسلمانوں کو ہر مسئلہ میں مکمل رہنمائی دی ہے اور دنیا میں زندگی گزارنے کا مکمل طریقہ و سلیقہ سکھایا ہے، اسلام مسلمانوں کو جہاں اخوت و بھائی چارے کا درس دیتا ہے وہیں اتفاق و اتحاد کو قائم کرنے کا حکم دیتا ہے،اور یہ کیسے ہوسکتا ہے کہ شریعت مسلمانوں کے اتحاد کو قائم رکھنے کا حکم دے اور اس کے لیے کوئی اصول و ضوابط ہی نا بتائے،اور ان اصولوں میں سب سے اہم بات ہے اپنے حاکم کی اطاعت کرنا،آپ دیکھتے ہیں کہ کسی بھی گھر ،محلہ ، شہر، یا ملک کے اتحاد کو قائم رکھنے کے لیے وہاں کے وڈیرے/ حاکم/لیڈر کی اطاعت کرناضروری ہوتی ہے،اگر اپنے لیڈر /حاکم وقت کی اطاعت ہی نا کی جائے تو اتفاق و اتحاد کی بجائے اختلافات جنم لیتے ہیں، جو کسی بھی گھر ، محلہ، شہر یا ملک کو برباد کر دیتے ہیں،جیسے کہ  آج اختلاف و انتشار کی وجہ سے کئی مسلم ممالک ذلیل و رسواء ہو رہے ہیں۔۔۔۔۔*

*ہمارے پاکستان میں مسلمانوں کی اکثریت کم علمی کی وجہ سے یہ سمجھتی ہے کہ حاکم وقت کی اطاعت و فرمانبرداری والی تمام آیات اور احادیث صرف پہلے گزر جانے والے خلفاء اور امراء کے لیے ہی تھیں، اور موجودہ وقت میں جو مسلمانوں کے حاکم ہیں چونکہ وہ جمہوری ہیں اور جمہوریت کفر ہے اس لیےانکی اطاعت واجب نہیں بلکہ اکثر مسلمان تو چھوٹی چھوٹی باتوں پر مسلم حکمرانوں کے خلاف بغاوت اور کفر کے فتوےٰ داغنے شروع کر دیتے ہیں، جب کہ شریعت ہمیں مسلمان حاکم کی اطاعت کا درس دیتی ہے، بھلے وہ حاکم ظالم جابر اور عیاش ہی کیوں نا ہو، وہ جمہوری ہو یا غیر جمہوری ، ہمارے لیے ہر حال میں انکی ہر معروف کام میں اطاعت ضروری اور واجب ہے اور اگر وہ خلاف شریعت کام کہیں تو انکی اطاعت نہیں کریں گے، بلکہ شریعت کی رو سے انہیں سمجھائیں گے، اور اگر پھر بھی وہ غلطی پر قائم رہیں تو ہم دل میں برا جانیں گے، لیکن شریعت کے احکامات کے مطابق حاکم وقت کے کسی بھی غلط فیصلے یا ظلم و جبر پر نا ہی اسکے خلاف بغاوت کی جائے گی اور نا ہی کفر کے فتوے لگائیں جائیں گے، اور نا ہی منبر و محراب میں بیٹھ کر انکی غلطیوں کے اعلان کیے جائیں گے، بلکہ تنہائی میں انکو نصیحت کی جائے گی ، اور یہ اطاعت تب تک رہے گی جب تک کہ وہ واضح کفر کا ارتکاب نہیں کرتے اور جب تک وہ نماز کو قائم کرنے والے ہیں.

*موجودہ حالات کے پیش نظر اس مسئلے کی اہمیت کو اجاگر کرنے کے لئے قرآن و حدیث اور سلف صالحین سے چند دلائل پیش خدمت ہیں، جن میں ایک مسلم حکمران کی اطاعت و فرماں برداری کی اہمیت خوب  واضح کی گئی ہے،ہماری اللہ سے دعا ہے کہ اللہ اسے قارئین کے لئے فائدہ مند بنائے، اور اسے اپنی رضا کے لئے خالص کرے*

*قرآن کریم سے دلائل*

أَعـوذُ بِاللهِ مِنَ الشَّيْـطانِ الرَّجيـم
بِسْمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ

📚يٰۤـاَيُّهَا الَّذِيۡنَ اٰمَنُوۡۤا اَطِيۡـعُوا اللّٰهَ وَاَطِيۡـعُوا الرَّسُوۡلَ وَاُولِى الۡاَمۡرِ مِنۡكُمۡ‌ۚ فَاِنۡ تَنَازَعۡتُمۡ فِىۡ شَىۡءٍ فَرُدُّوۡهُ اِلَى اللّٰهِ وَالرَّسُوۡلِ اِنۡ كُنۡـتُمۡ تُؤۡمِنُوۡنَ بِاللّٰهِ وَالۡيَـوۡمِ الۡاٰخِرِ‌ ؕ ذٰ لِكَ خَيۡرٌ وَّاَحۡسَنُ تَاۡوِيۡلًا ۞

ترجمہ:
اے لوگو جو ایمان لائے ہو ! اللہ کا حکم مانو اور رسول کا حکم مانو اور ان کا بھی جو تم میں سے حکم دینے والے ہیں، پھر اگر تم کسی چیز میں جھگڑ پڑو تو اسے اللہ اور رسول کی طرف لوٹاؤ، اگر تم اللہ اور یوم آخر پر ایمان رکھتے ہو، یہ بہتر ہے اور انجام کے لحاظ سے زیادہ اچھا ہے۔
(سورۃ : النساء، آیت نمبر 59)

📚تفسیر مودودی
یہ آیت اسلام کے پورے مذہبی ، تمدنی اور سیاسی نظام کی بنیاد اور اسلامی ریاست کے دستور کی اولین دفعہ ہے ۔ اس میں حسب ذیل اصول مستقل طور پر قائم کر دیے گئے ہیں:
( 1) اسلامی نظام میں اصل مطاع اللہ تعالیٰ ہے ۔ ایک مسلمان سب سے پہلے بندہ خدا ہے ، باقی جو کچھ بھی ہے اس کے بعد ہے ۔ مسلمان کی انفرادی زندگی ، اور مسلمانوں کے اجتماعی نظام ، دونوں کا مرکز و محور خدا کی فرمانبرداری اور وفاداری ہے ۔ دوسری اطاعتیں اور وفاداریاں صرف اس صورت میں قبول کی جائیں گی کہ وہ خدا کی اطاعت اور وفاداری کی مد مقابل نہ ہوں بلکہ اس کے تحت اور اس کی تابع ہوں ۔ ورنہ ہر وہ حلقہ اطاعت توڑ کر پھینک دیا جائے گا جو اس اصلی اور بنیادی اطاعت کا حریف ہو ۔ یہی بات ہے جسے نبی صلی اللہ علیہ وسلم نے ان الفاظ میں بیان فرمایا ہے کہ لا طاعۃ لمخلوق فی معصیۃ الخالق ۔ خالق کی نافرمانی میں کسی مخلوق کے لیے کوئی اطاعت نہیں ہے ۔

( 2 ) اسلامی نظام کی دوسری بنیاد رسول کی اطاعت ہے ۔ یہ کوئی مستقل بالذات اطاعت نہیں ہے بلکہ اطاعت خدا کی واحد عملی صورت ہے ۔ رسول اس لیے مطاع ہے کہ وہی ایک مستند ذریعہ ہے جس سے ہم تک خدا کے احکام اور فرامین پہنچتے ہیں ۔ ہم خدا کی اطاعت صرف اسی طریقہ سے کر سکتے ہیں کہ رسول کی اطاعت کریں ۔ کوئی اطاعت خدا رسول کی سند کے بغیر معتبر نہیں ہے ، اور رسول کی پیروی سے منہ موڑنا خدا کے خلاف بغاوت ہے ۔ اسی مضمون کو یہ حدیث واضح کرتی ہے کہ من اطاعنی فقد اطاع اللہ و من عصانی فقد عصی اللہ ۔ ” جس نے میری اطاعت کی اس نے خدا کی اطاعت کی اور جس نے میری نافرمانی کی اس نے خدا کی نافرمانی کی ۔ “ اور یہی بات خود قرآن میں پوری وضاحت کے ساتھ آگے آرہی ہے ۔

( 3 ) مذکورہ بالا دونوں اطاعتوں کے بعد اور ان کے ماتحت تیسری اطاعت جو اسلامی نظام میں مسلمانوں پر واجب ہے وہ ان” اولی الامر“ کی اطاعت ہے جو خود مسلمانوں میں سے ہوں ۔ ”اولی الامر “ کے مفہوم میں وہ سب لوگ شامل ہیں جو مسلمانوں کے اجتماعی معاملات کے سربراہ کار ہوں ، خواہ وہ ذہنی و فکری رہنمائی کرنے والے علماء ہوں ، یا سیاسی رہنمائی کرنے والے لیڈر ، یا ملکی انتظام کرنے والے حکام ، یا عدالتی فیصلے کرنے والے جج ، یا تمدنی و معاشرتی امور میں قبیلوں اور بستیوں اور محلوں کی سربراہی کرنے والے شیوخ اور سردار ۔ غرض جو جس حیثیت سے بھی مسلمانوں کا صاحب امر ہے وہ اطاعت کا مستحق ہے ، اور اس سے نزاع کر کے مسلمانوں کی اجتماعی زندگی میں خلل ڈالنا درست نہیں ہے۔۔۔۔

📚تفسیر القرآن الکریم،
استاذ العلماء حافظ عبدالسلام بھٹوی صاحب حفظہ اللہ اپنی تفسیر میں کہتے ہیں کہ،
اس آیت میں اللہ تعالیٰ نے رعایا کو، چاہے فوج کے افراد ہوں یا عام لوگ، انھیں اپنی، اپنے رسول (صلی اللہ علیہ وآلہ وسلم) کی اور حکام و امراء کی اطاعت کا حکم دیا ہے، الا یہ کہ حکام اللہ کی نافرمانی کا حکم دیں تو ان کی بات نہیں مانی جائے گی،
شاہ عبد القادر (رحمہ اللہ) لکھتے ہیں : ” اختیار والے بادشاہ، قاضی اور جو کسی کام پر مقرر ہو اس کے حکم پر چلنا ضروری ہے، جب تک وہ اللہ اور اس کے رسول کے حکم کے خلاف حکم نہ کرے، اگر صریح خلاف کرے تو وہ حکم نہ مانیے۔ “
(موضح)

📚علامہ شیخ عبد الرحمٰن سعدی رحمتہ اللہ علیہ فرماتے ہیں: اس آیت میں اللہ تعالی نے اولو الامر کی اطاعت کا حکم دیا ہے، اولو الامر سے مراد اہل حل و عقد علماء و حکام وقت ہیں، کیونکہ لوگوں کے دینی و دنیوی معاملات اللہ کی اطاعت میں ، اور ان کی پیروی فرمانبرداری سے ہی سدھر سکتے ہیں لیکن شرط یہی ہے کہ وہ کسی گناہ یامعصیت کے کام کا حکم نہ دیں، اور اگر وہ کوئی ایسا حکم دیتے ہیں جس میں اللہ کی نافرمانی ہے تو ایسی صورت میں حاکم کی کوئی اطاعت نہیں ہے، اور شائد یہی بات ہے کہ جب حکام وقت کی اطاعت کا ذکر کیا گیا تو فعل اطیعوا حذف کر دیا گیا جبکہ رسولﷺ کے ساتھ یہ فعل ذکر کیا گیا: اس کی وجہ یہی ہے کہ رسولﷺ تو اللہ کی اطاعت کے سوائے کسی چیز کا حکم نہیں دیتے ،اور جس نے رسول ﷺ کی اطاعت کی اس نے درحقیقت اللہ ہی کی اطاعت کی ، لیکن جہاں تک اہل حل و عقد کا تعلق ہے تو ان کی اطاعت کو مشروط کیا گیا کہ یہ اطاعت اللہ کی معصیت میں نہ ہو۔
(تیسیر الکریم الرحمٰن فی تفسیر کلام المنان ص: 183، ط: الرسالۃ)

اس آیت میں حکام وقت کی اطاعت کی فرضیت کا بیان ہے، اور یہ مطلق ہے، اس کی تقیید سنت میں یوں آئی ہے کہ اطاعت صرف جائز کاموں میں ہے نہ کہ اللہ کی معصیت میں۔

📚 اس کی دلیل آپ ﷺ کا فرمان ہے کہ:
اطاعت تو صرف جائز کاموں میں ہے۔
(صحیح بخاری:7257)
( صحیح مسلم: 1840)

______&_________

*سنت نبویہ سے حاکم وقت کی اطاعت کی فرضیت کے دلائل*

📚ابوہریرہ سے روایت ہے کہ وہ کہتے ہیں کہ آپ ﷺ نے فرمایا: جس نے میری اطاعت کی اس نے اللہ کی اطاعت کی اور جس نے میری نافرمانی کی اس نے اللہ کی نافرمانی کی اور جس نے امیر کی اطاعت کی اس نے میری اطاعت کی اور جس نے امیر کی نافرمانی کی اس نے میری نافرمانی کی، (صحیح بخاری: حدیث نمبر_2957 )
(صحیح مسلم: حدیث نمبر-1835)

📚ابن عمرؓ سے روایت ہے کہ آپﷺ نے فرمایا: ایک مسلمان پر (حکام کی) سمع و اطاعت فرض ہے چاہے اسے پسند ہو یا نا پسند ہو، الا یہ کہ اگر اسے نافرمانی کا حکم دیا جائے ، اگر امیر اسے نافرمانی کا حکم دے تو نا تو اس پر سننا ہے اور نا ماننا ۔
(صحیح بخاری حدیث نمبر- 7144)
( صحیح مسلم: حدیث نمبر-1839)

📚حذیفۃ بن الیمانؓ سے روایت ہے کہ وہ فرماتے ہیں کہا آپ ﷺ نے فرمایاؒ میرے بعد ایسے امام ہوں گے جو نا تو میری سنت پر چلیں گے اور نہ میرے طریقے کی پیروی کریں گے ان میں ایسے لوگ پیدا ہوں گے جن کے جسم انسانوں کے ہوں گے اور دل شیطان کے۔ میں نے کہا: اے اللہ کے رسول! اگر میں ایسے لوگوں کو پالوں تو کیا کروں؟ آپﷺ نے فرمایا: حاکم وقت کی سنو اور اس کی اطاعت کرو، اگرچہ تمہاری پیٹ پر مارے اور تمہارا سارا مال لے لے،
سنو اور اطاعت کرو۔
(صحیح مسلم: حدیث نمبر-1847)

📚علقمۃ ابن وائل اپنے باپ سے روایت کرتے ہوئےفرماتے ہیں کہ انہوں نے کہا:
سلمۃ بن یزید جعفیؓ نے رسول اللہﷺ سے سوال کیا، وہ کہتے ہیں کہ : ہم نے کہا: اے اللہ کے نبی اگر ہم پر ایسے امراء مسلط ہوجائیں جو ہم سے اپنا حق مانگیں اور ہمارا حق روکیں تو ایسی صورت میں آپ ہمیں کیا حکم دیتے ہیں؟ تو رسول اللہ ﷺ نے فرمایا: سنو اور اطاعت کرو، ان کا کام وہ ہے جو انہیں سونپا گیا ہے اور تمہارا کام وہ ہے جو تمہیں سونپا گیا ہے۔
(صحیح مسلم: حدیث نمبر_1846)

📚عیاض بن غنم ؓ فرماتے ہیں کہ رسول اللہﷺ نے فرمایا: جو کوئی کسی صاحب منصب کو نصیحت کا ارادہ کرے تو اسے علانیۃ ظاہر نہ کرے بلکہ اس کا ہاتھ تھامے او اسے اکیلے میں لے جائے، اگر وہ اس کی بات سن لے تو ٹھیک ورنہ اس نے اپنی ذمہ داری ادا کردی۔
(السنۃ لابن ابی عاصم 1096، )
نیز البانی نے حدیث کو صحیح کہا ہے۔

📚ام سلمۃؓ سے روایت ہے کہ آپﷺ نےفرمایا: عنقریب ایسے حاکم ہوں گے جن کی بعض باتیں تمہیں اچھی لگیں گی اوربعض بری ، چنانچہ تو جو کوئی ان کی غلط باتوں کو پہچان لے اس کا ذمہ بری ہوگیا، اور جس نے ان پر انکار کیا اس کا ذمہ بری ہوگیا لیکن جو راضی ہو گیا اور اسی صورت کے پیچھے چل پڑا ، صحابہ نے فرمایا : کیا ہم ان سے جنگ نہ کریں؟ آپﷺ نے فرمایا : نہیں جب تک وہ نماز پڑھتے رہیں۔
(صحیح مسلم: حدیث نمبر-1854)
(سنن ابو داؤد حدیث نمبر-4760)

📚حذیفۃ بن یمانؓ سے روایت ہے کہ آپ فرماتے ہیں : لوگ رسول اللہﷺ سے بھلائی کے بارے میں سوال کرتے تھے جبکہ میں آپﷺ سے شر(برائی) کے بارے میں سوال کرتا تھا کہ کہیں مجھ تک نہ پہنچ جائے چنانچہ میں نے کہا: اے اللہ کے رسول ہم جاہلیت اور شر کی دلدلوں میں پھنسے ہوئے تھے پھر اللہ تعالی نے ہمیں یہ خیر عطا فرمائی تو کیا اب اس خیر کے بعد بھی شر ہے؟ آپ ﷺ نے فرمایا: ہاں، میں نے کہا: کیا اس شر کے بعد پھر خیر ہے؟ آپ نے فرمایا: ہاں لیکن اس میں دھواں ہوگا، میں نے کہا : دھواں کیسا؟ فرمایا : ایسے لوگ ہوں گے جو میری سنت کو چھوڑ کر دوسری سنتیں اختیار کریں گے، اور میرے طریقے کو چھوڑ کر دوسرے طریقے اختیار کریں گے ، تم ان کی بعض باتوں کو پہچانو گے اور بعض کا انکار کرو گے، میں نے کہا : تو کیا اس خیر کے بعد بھی شر ہے؟ آپﷺ نے فرمایا: ہاں جنہم کی طرف بلانے والے لوگ ہوں گے، جوان کی دعوت قبول کرے گا وہ اسے جنہم میں پھینک دیں گے، میں نے کہا: اے اللہ کے رسول آپ مجھے ان کے اوصاف ونشانیاں بتادیں (کہ وہ کیسے ہوں گے) آپﷺ نے فرمایا: ہاں وہ ہماری طرح کے ہی ہوں گے اور ہماری ہی زبان بولیں گے، میں نے کہا: اے اللہ کے رسول اگر مجھے یہ زمانہ مل جائے تو آپ مجھے کیا حکم دیتے ہیں؟ تم مسلمانوں کی جماعت اور اس کے امیر کو لازم پکڑنا ، میں نے کہا : اور اگر ان کی نہ کوئی جماعت ہو اور نہ امام؟ آپ ﷺ نے فرمایا: پھر ان تمام فرقوں سےا لگ ہوجانا اگرچہ تمہیں درخت کی ٹہنی سے ہی لٹکنا پڑے ، یہاں تک کہ تمہیں موت آجائے اور تم اسی طریقے پر ہو۔
(صحیح بخاری: حدیث نمبر-7084)
(صحیح مسلم:847 الفاظ مسلم کے ہیں)

📚امام نووی رحمتہ اللہ علیہ فرماتے ہیں حدیث حذیفہ میں اس طرف اشارہ ہے کہ مسلمانوں کی جماعت اور اس کے امام کو لازم پکڑنا چاہئے ، اس کی اطاعت کرنی چاہئے اگرچہ وہ فسق وفجور یا دیگر معصیت میں مبتلا ہو لوگوں کا مال غصب کرتا ہو یا دیگر گناہوں میں ملوث ہو ایسی صورت میں اگر وہ گناہ کا حکم نہ دے تو اس کی اطاعت فرض ہے۔
(شرح مسلم 12/237) ط۔دالفکر بیروت۔

📚ابوہریرہ سے روایت ہے کہ وہ فرماتے ہیں کہ آپﷺ نے فرمایا: بنواسرائیل کے امور کی تدبیر انبیاء کے ذمے تھی، جب بھی کوئی نبی وفات پاتا اس کے بعد ایک اور نبی آجاتا اور میرے بعد کوئی نبی نہیں آئے گا، لیکن خلفا، بکثرت ہوں گے ، صحابہ کرام نے فرمایا : اے اللہ کے رسول پھر آپ ہمیں کیا حکم دیتے ہیں؟
آپﷺ نے فرمایا: جو پہلے امیر بنے اس کی بیعت نبھاؤ اور وفا کرو، ان کو ان کا حق دو: کیونکہ اللہ نے ان کے سپرد جو کیا ہے اللہ ان سے اس (رعایا) بارے میں پوچھے گا۔
(صحیح بخاری حدیث نمبر- 3455)
(صحیح مسلم حدیث نمبر-،1842)

📚ابن مسعود سے روایت ہے کہ”میرے بعد تم پر ایک ایسا زمانہ آئے گا جس میں تم پر دوسروں کو مقدم کیا جائے گا اور ایسی باتیں سامنے آئیں گی جن کو تم برا سمجھو گے۔“ لوگوں نے عرض کیا: یا رسول اللہ! اس وقت ہمیں آپ کیا حکم فرماتے ہیں؟ آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا کہ جو حقوق تم پر دوسروں کے واجب ہوں انہیں ادا کرتے رہنا اور اپنے حقوق اللہ ہی سے مانگنا۔ ( یعنی صبر کرنا اور اپنا حق لینے کے لیے خلیفہ اور حاکم وقت سے بغاوت نہ کرنا ) ۔
(صحیح بخاری: حدیث نمبر-3603)
( صحیح مسلم : حدیث 1843)

📚عوف بن مالکؓ سے روایت ہے کہ میں نے رسول اللہﷺ کو فرماتے سنا تمہارے بہترین امراء وہ ہیں جن سے تم محبت رکھتے ہو اور وہ تم سے محبت کرتے ہاور جو تمہارے لئے دعا کرتے ہیں، جبکہ تمہارے بدترین امراء وہ ہیں جن سے تم نفرت رکھتے ہو وہ تم سے نفرت رکھتے ہیں اور جن پر تم لعنت بھیجتے ہو اور جو تم پر لعنت بھیجتے ہیں، صحابہ نے عرض کی : اے اللہ کے رسولﷺ کیا ایسے موقع پر ہم ان سے جنگ نہ کریں؟ آپﷺ نےفر مایا: نہیں، جب تک وہ تم میں نماز قائم کرتے رہیں، سن رکھو کہ جس پر کوئی امیر ہو اور وہ اسے کوئی ناجائز کام کرتا دیکھے، تو وہ اس نا جائز کام کو ناپسند کرے اور ہرگز اس کی اطاعت سے ہاتھ نہ کھینچے ۔(صحیح مسلم: حدیث نمبر-1855)

📚ابن عمرؓ سے روایت ہے کہ وہ فرماتے ہیں کہ آپﷺ نے فرمایا: جس نے امیر کی اطاعت سے ہاتھ کھینچا اس کے لئے قیامت کے دن کوئی حجت نہیں ہوگی، اور جو اس حال میں مراکہ وہ جماعت سے الگ تھا تو وہ جاہلیت کی موت مرا
(السنۃ/ابن ابی عاصم 1075، البانی نے حدیث کو صحیح کہا ہے)

📚حارث ابن بشیرؓ سے روایت ہے کہ وہ کہتے ہیں کہ رسول اللہﷺ نے فرمایا: میں تمہیں پانچ چیزوں کا حکم دیتا ہوں: جماعت کو لازم پکڑنے کا، سننے اور اطاعت کرنے کا ، ہجرت کا، اللہ کی راہ میں جہاد کا، اور جو جماعت سے ایک بالشت بھی باہر ہوا تو اس نے اسلام کا پٹہ اپنے گلے سے اتار پھینکا۔
(سنن ترمذی:2863، البانی نے حدیث کو صحیح کہاہے)

📚عرباض بن ساریہؓ سے روایت ہے کہ وہ فرماتے ہیں کہ آپ ﷺ نے خطبہ ارشاد فرمایا جس میں آپ نے فرمایا: اللہ سے ڈرو ، اور سنو اور اطاعت کرو اگرچہ تمہارے اوپر ایک حبشی غلام امیر بنا دیا جائے ،تم میں سے جو میرے بعد زندہ رہے گا وہ سخت اختلافات دیکھے گا، اس لئے تم میری سنت کو لازم پکڑو اور میرے بعد میرے ہدایت یافتہ خلفاء کی سنت کو لازم پکڑو او اس سے تمسک اختیار کرو،
(اخرجہ ابن ابی عاصم السنۃ 54، البانی نے حدیث کو صحیح کہا ہے)

📚عبادہ بن صامتؓ سے روایت ہے کہ ہمیں رسول اللہﷺ نے بلایا ، ہم نے آپ ﷺ کی بیعت کی آپ نے ہم سے جن امور پر بیعت لی وہ یہ تھے کہ ہم سنیں اور اطاعت کریں چاہیں وہ کام ہمیں پسند ہو یا نہ ہو۔ اور ہمیں اس میں مشکل پیش آئے یا آسانی ۔۔۔۔۔۔۔۔۔ اور ہم امراء سے بغاوت نہ کریں اور آپ نے فرمایا: سوائے اس کے کہ تم ان میں واضح کفر پاؤ جس پر تمہارے پاس اللہ کی طرف سے واضح وصاف دلیل ہو،
(صحیح مسلم، باب وجوب طاعۃ الامراء فی غیر معصیۃ ، وتحر یمھافی المعصیۃ)

📚 [عن أنس بن مالك:] 
نهانا كُبَراؤُنا مِنْ أصحابِ رسولِ اللهِ قال: لا تَسُبُّوا أُمَراءَكم ولا تَغُشُّوهم ولا تَبْغَضوهم واتقوا اللهَ واصبِروا فإنَّ الأمرَ قريبٌ
(الألباني تخريج كتاب السنة ١٠١٥)
• إسناده جيد
انسؓ سے روایت ہے کہ انہوں نے فرمایا: اصحاب رسول اللہﷺ میں سے کبارصحابہ نے ہمیں سختی سے منع کیا: فرمایا کہ رسول اللہﷺ نے فرمایا ہے: نہ تو اپنے امراء کو گالی دو اور نہ ان کے پاس زیادہ جاؤ اور نہ ان سے بغض رکھو اور اللہ سے ڈرتے رہو؛ کیونکہ وقت بہت قریب ہے۔

📚 تمیم داریؓ فرماتے ہیں کہ رسول اللہﷺ نے فرمایا: یقیناً دین خیر خواہی کا نام ہے، یقیناً دین خیر خواہی کا نام ہے، یقیناً، دین خیر خواہی کا نام ہے“ لوگوں نے عرض کیا: اللہ کے رسول! کن کے لیے؟ آپ نے فرمایا: ”اللہ کے لیے، اس کی کتاب کے لیے، اس کے رسول کے لیے، مومنوں کے حاکموں کے لیے اور ان کے عام لوگوں کے لیے یا کہا مسلمانوں کے حاکموں کے لیے اور ان کے عام لوگوں کے لیے،
(سنن ابو داؤد حدیث نمبر-4944)
(صحیح مسلم: حدیث نمبر-55)

وضاحت:
اللہ کے لئے خیر خواہی کا مفہوم یہ ہے کہ بندہ اللہ کی وحدانیت کا قائل ہو اور اس کی ہر عبادت خالص اللہ کے لئے ہو،
کتاب اللہ کے لئے خیر خواہی یہ ہے کہ اس پر ایمان لائے اور عمل کرے،
رسول کے لئے خیر خواہی یہ ہے کہ رسول کی نبوت کی تصدیق کرنے کے ساتھ وہ جن چیزوں کا حکم دیں اسے بجا لائے اور جس چیز سے منع کریں اس سے باز رہے، مسلمانوں کے حاکموں کے لئے خیر خواہی یہ ہے کہ حق بات میں ان کی تابعداری کی جائے اور حقیقی شرعی وجہ کے بغیر ان کے خلاف بغاوت کا راستہ نہ اپنایا جائے، اور عام مسلمانوں کے لئے خیرخواہی یہ ہے کہ ان میں امربالمعروف اور نہی عن المنکر کا فریضہ انجام دیا جائے۔

📚حضرت عبادہ بن صامت رضی اللہ عنہ نے ) کہا : رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم نے ہم کو بلایا ، ہم نے آپ کےساتھ بیعت کی ، آپ نے ہم سے جن چیزوں پر بیعت لی وہ یہ تھیں کہ آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے ہم سے خوشی اور ناخوشی میں اور مشکل اور آسانی میں اور ہم پر ترجیح دیے جانے کی صورت میں ، سننے اور اطاعت کرنے پر بیعت کی اور اس پر کہ ہم اقتدار کے معاملے میں اس کی اہلیت رکھنے والوں سے تنازع نہیں کریں گے ۔ کہا : ہاں ، اگر تم اس میں کھلم کھلا کفر دیکھو جس کے ( کفر ہونے پر ) تمہارے پاس ( قرآن اور سنت سے ) واضح آثار موجود ہوں۔
(صحیح مسلم حدیث نمبر-1709)

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*خلیفہ کی بیعت توڑنے،مسلمانوں کی اجتماعیت میں خلل ڈالنے اور جماعت سے نکلنے کے بارے کچھ روایات*

📚ابوہریرہؓ سے روایت ہے کہ وہ فرماتے ہیں کہ رسول اللہ ﷺ نے فرمایا جو اطاعت سے نکلا اور جماعت سے الگ ہوا اور اسی حال میں مرگیا تو اس کی موت جاہلیت کی موت ہوگی۔
(صحیح مسلم: حدیث نمبر- 1848)

📚عبد اللہ بن عباسؓ سے روایت ہے کہ آپ ﷺ نے فرمایا: جسے اپنے امیر کی کوئی بات بری لگے تو اس کو چاہئے کہ اس پر صبر کرے ؛ کیونکہ جو بھی امیر کی اطاعت سے ایک بالشت بھی باہر نکلا اور پھر اسی حال میں مرگیا تو اس کی موت جاہلیت کی موت ہوئی
(صحیح بخاری: حدیث نمبر-7053)
( صحیح مسلم: حدیث نمبر- 1849)
(یہ الفاظ مسلم کے ہیں)

📚 عرفجہ اشجعیؓ فرماتے ہیں کہ رسول اللہﷺ نے فرمایا: جو تمہارے پاس اس حال میں آئے جبکہ تم پر ایک امیر قائم ہے اور تمہاری اجتماعیت کو توڑنے کی کوشش کرے یا اس میں انتشار وتفرق پیدا کرنے کی کوشش کرے تو اس کو قتل کردو۔
اور ایک روایت میں ہے : تو اس تلوار سے اس کی گردن ماردو جو بھی ہو۔
(صحیح مسلم: حدیث نمبر-1852)

📚نیز عبد اللہ بن عمر وبن عاص کی طویل مرفوع حدیث میں ہے: جو کسی امیر کی بیعت کرے اور اسے اپنی وفاداری سونپ دے ، دل سے اس کی اطاعت پر راضی ہو جائے تو اسے چاہئے کہ حتی المقدور اس کی اطاعت کرے پھر اگر کوئی دوسرا آکر انتشار پیدا کرنے کی کوشش کرے تو اس کی گردن ماردو۔
(صحیح مسلم : حدیث نمبر-1844)

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*حکام وقت کی اطاعت و فرمانبرداری پر اقوال صحابہ*

📚سوید ابن غفلہؓ سے روایت ہے کہ مجھ سے عمر نے کہا: اے ابو امیہ ہوسکتا ہے کہ میں اس سال کے بعد تم سے نہ مل سکوں ، اگر تمہارے اوپر ایک نک کٹا حبشی غلام بھی امیر بنادیا جائے تو اس کی بات سنو اور اس کی اطاعت کرو، اگر وہ تمہیں مارے تو صبر کرو، اور تمہیں محروم کر دے تو صبر کرو، اور اگر تم سے کوئی ایسا کام چاہے جو تمہارے دین کو ختم کر رہا ہو تو اسے کہو: لبیک اے امیر بس میرا خون لے لو لیکن میں اپنے دین کو نقصان نہیں پہنچاسکتا، اور کسی بھی حال میں جماعت سے الگ مت ہو۔
(السنۃ للخلال 1/111 ، دار الرایہ)​

📚جب اہل مدینہ نے یزید بن معاویہ کی بیعت سے انکار کیا تو عبداللہ بن عمر رضی اللہ عنہما نے اپنے خادموں اور لڑکوں کو جمع کیا اور کہا کہ میں نے نبی کریم صلی اللہ علیہ وسلم سے سنا ہے، آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا کہ ہر غدر کرنے والے کے لیے قیامت کے دن ایک جھنڈا کھڑا کیا جائے گا اور ہم نے اس شخص ( یزید ) کی بیعت، اللہ اور اس کے رسول کے نام پر کی ہے اور میرے علم میں کوئی غدر اس سے بڑھ کر نہیں ہے کہ کسی شخص سے اللہ اور اس کے رسول کے نام پر بیعت کی جائے اور پھر اس سے جنگ کی جائے اور دیکھو مدینہ والو! تم میں سے جو کوئی یزید کی بیعت کو توڑے اور دوسرے کسی سے بیعت کرے تو مجھ میں اور اس میں کوئی تعلق نہیں رہا، میں اس سے الگ ہوں،
(صحیح بخاری،حدیث نمبر_ 7111)

📚عبد اللہ بن دینار سے روایت ہے کہ انہوں نے فرمایا: جب لوگوں نے عبد الملک کی بیعت کی ، توعبد اللہ بن عمرؓ نے اس کی طرف خط لکھا: اللہ کے بندے امیر المومنین عبد الملک کی طرف : میں اللہ کے بندے امیر المومنین عبد الملک کی بیعت کا اقرار کرتا ہو ں کہ میں اللہ اور رسول کے طریقے پر جس قدر ہوسکا اس کی اطاعت کروں گا اور میرے بیٹے بھی اس کا اقرار کرتے ہیں۔
(صحیح بخاری: حدیث نمبر-7205)

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*حکام وقت کی اطاعت میں ائمہ اہل السنۃ والجماعۃ کے اقوال:*

📚سفیان ثوری رحمۃ اللہ علیہ سے روایت ہے کہ انہوں نے فرمایا: اے شعیب تمہارا لکھا ہوا تمہارے کچھ کام نہیں آئے گا جب تک تم ہر نیک و بد حاکم کے پیچھے نماز صحیح نہ سمجھو، شعیب اس وقت سفیان ثوری رحمۃ اللہ علیہ کے عقیدہ کے کچھ اجزاء لکھ رہے تھے۔
(شرح اصول الاعتقاد اہل السنۃ والجماعۃ للالکائی ، ط۔ دار طیبہ(1/173)

📚نیز امام احمد رحمہ اللہ فرماتے ہیں:
اور سننا اور اطاعت کرنا ہر امیر کی، وہ نیک ہو یا بد ، یا وہ اپنے باپ کےبعد خلافت سنبھالے اور اس پر لوگوں کا اتفاق ہوجائے اور وہ اس سے راضی ہوجائیں ، یا وہ جوبذریعہ قوت امیر بنے یہاں تک کہ وہ خلیفہ بن جائے اور امیر المومنین کہلانے لگے۔
(شرح اصول الاعتقاد اہل السنۃ والجماعۃ للالکائی ، ط۔ دار طیبہ 1/180)

نیز انہیں امام ممدوح نے امیر کے ظلم و جور پر صبر کی ، نیز اس کی خیر خواہی چاہنے اور اس کے خلاف بغاوت نہ کرنے کی وہ عملی مثالیں دی ہیں جو سونے کے پانی سے لکھنے کے قابل ہیں؛

📚چانچہ خلال نے اپنی کتاب السنۃ میں حنبل سے صحیح سند سے روایت کیا ہے(1/132-134ط: دارالرایہ) کہ:
واثق کے دور حکومت میں بغداد کے فقہاء ابوعبداللہ (یعنی احمد بن حنبل) کے پاس آئے اور ان سے کہا: اے ابو عبد اللہ! اب یہ معاملہ بہت بڑھ گیا ہے اور پھیل گیا ہے(یعنی آپ کا خلق قرآن کے مسئلے کو بیان کرنا وغیرہ) امام احمد نے فرمایا: آپ لوگ کیا چاہتے ہیں؟ انہوں نے کہا ہم آپ سے اس امارت کے بارے میں مشورہ چاہتے ہیں ہم اس (واثق) کی امارت اور حکومت سے راضی نہیں ہیں، امام احمد نے ان لوگوں سے ایک گھنٹہ مناظرہ کیا اور انہیں کہا: تمہیں چاہیئے کہ تم دل سے برا جانو اور اس کی اطاعت سے ہاتھ مت کھینچو، مسلمانوں کے کلمے کو متفرق مت کرو اور اپنے اور اپنے ساتھ دوسروں کے خون مت بہاؤ، اپنے امر کے انجام پر غور کرو، اور صبر کرو یہان تک کہ نیک کو آرام آجائے یا پھر بد کے شر سے لوگ پر امن ہوجائیں،

📚امام سھل بن عبد اللہ تستری رحمۃ اللہ علیہ فرماتے ہیں: یہ امت تہتر فرقوں میں تقسیم ہوجائے گی جن میں سے بہتر ہلاک ہوں گے، جو سب کےسب حاکم وقت سے بغض رکھتے ہوں گے، اور نجات وہ ایک فرقہ پایئگا جوحاکم وقت کے ساتھ ہوگا،
(قوت القلوب/ابوطالب مکی 2/242 ط : دار صادر)

📚امام حسن بن علی بربہاری رحمۃ اللہ علیہ فرماتے ہیں: اگر تم کسی کو حاکم وقت پر بددعا کرتے دیکھو تو سمجھ لو کہ اہل بدعت میں سے ہے اور اگر کسی کو حاکم وقت کے لئے دعا کرتے دیکھو تو سمجھ لو کہ صاحب سنت ہے( ان شاء اللہ تعالی)
(قوت القلوب/ابوطالب مکی 2/107 ط : دار صادر)

📚 دوسری جگہ پر آپ فرماتے ہیں: کسی کے لئے جائز نہیں کہ وہ ایک رات بھی اس حال میں گزارے کہ وہ اپنے آپ کو کسی نیک یا بد امام کی امارت سے آزاد سمجھتا ہو۔(اقوت القلوب/ابوطالب مکی 2/70 ط : دار صادر)

📚عقیدہ طحاویہ میں امام اطحاوی فرماتے ہیں: اور ہم اس بات کو جائز نہیں سمجھتے کہ کوئی حکام وقت واہل حل وعقد کے خلاف بغاوت کرے اگر چہ وہ کتنا ہی ظلم کیوں نہ کریں، اور نہ ہی ہم ان پر بددعا کرتے ہین اور نہ ہی ان کی اطاعت سے اپنا ہاتھ کھینچے ہیں اور ہم ان کی اطاعت کو اللہ کی اطاعت کے ضمن میں داخل سمجھتے ہیں جو کہ فرض ہے، سوائے اس کے کہ وہ کسی گناہ کا حکم دیں، نیز ہم ان کے سدھرنے کی اور ان کی سلامتی کی دعا کرتے ہیں
( شرح الطحاویہ لابن ابی العز، بتخر یج الالبانی ، ص: 379،ط: مکتب اسلامی)

📚اور ابن قدامہ رحمۃ اللہ علیہ فرماتے ہیں: جس کی امامت ثابت ہوگئی اس کی اطاعت کی فرضیت بھی ثابت ہوگئی اور اس کے خلاف بغاوت حرام ہوگئی؛
کیونکہ اللہ تعالی کا فرمان ہے: (يَاأَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا أَطِيعُوا اللَّـهَ وَأَطِيعُوا الرَّسُولَ وَأُولِي الْأَمْرِ مِنكُمْ ۔۔۔۔))
(المغنی 12/273 ط: دار ہجر)

📚نیز امام ابن تیمیہ رحمۃ اللہ علیہ فرماتےہیں: اسی بناء پر اہل السنۃ کا مشہور مذہب یہ ہے کہ وہ ائمہ کے خلاف بغاوت کو جائز نہیں سمجھتے اور ان کے خلاف قتال بالسیف کو حرام سمجھتے ہیں، اگرچہ یہ ائمہ کتنے ہی ظالم کیوں نہ ہوں، جیسا کہ متعدد احادیث صحیحہ سے ثابت ہے؛ کیونکہ قتال وبغاوت سے پیدا ہونے والا فتنہ ان کے ظلم کے فتنے سے کہیں زیادہ ہے اس لئے چھوٹے فساد کے ذریعے بڑے فساد کو دفع کرنا دانشمندانہ فعل نہیں اور شائد ہی کوئی فرقہ ایسا ہو جس نے کسی حاکم کے خلاف بغاوت کی ہو اور پھر اس کے خروج سے پیدا ہونے والا فساد اس ظلم کے فساد سے زیادہ نہ ہوا ہو جسے اس خروج نے مٹایا۔
(منہاج السنۃ 2/391،ط: مکتبۃ المعارف)

📚نیز شیخ الاسلام محمد بن عبد الوھاب رحمۃ اللہ علیہ فرماتے ہیں:
کمال اجتماعیت میں سے ایک چیز یہ بھی ہے کہ ہم حاکم وقت کی بات سنیں اور اس کی اطاعت کریں اگرچہ وہ ایک حبشی غلام ہی کیوں نہ ہو؛ اس لئے آپﷺ نے اس بارے میں کافی شافی بیان فرمایا اور اس ضمن میں شرعی ودنیوی لحاظ سے بیان کے تمام طرق وآداب استعمال فرمائے پھر حال یہ ہوا کہ یہ عظیم اصول اکثر مدعیان علم اذہاں سےبھی غائب ہوگیاچہ جائیکہ اس پر عمل ہو!!
(الجامع الفرید ، ص: 324)

*عصر حاضر کے علماء کرام کے اقوال*

📚شیخ عبدالرحمٰن بن سعدی رحمۃ اللہ علیہ فرماتے ہیں: لیکن جہاں تک ائمہ مسلمین کی خیر خواہی کا تعلق ہے جوکہ حاکم وقت سے لے کر شہر کے امیر اور قاضی تک سبھی ہوسکتے ہیں، نیز ان میں وہ لوگ بھی شامل ہیں جو کسی چھوٹے صوبے یا علاقے پر حکمران ہیں ؛ چونکہ ان کو سونپے جانے والی ذمہ داری بھی عظیم ہے اس لئے ان کے مرتبے اور مقام کی مناسبت سے ان کی خیر خواہی بھی فرض ہوئی؛ اس میں سب سے پہلی بات یہ ہے کہ ان کی امامت کو مانا جائے، ولایت کو مانا جائے اچھے وجائز کاموں میں ان کی اطاعت فرض سمجھی جائے، ان کے خلاف بغاوت نہ کی جائے نیز عوام الناس کو ان کی بات سننے وماننے کی ترغیب دی جائے، اور ان کا حکم ماننے کو کہا جائے بشرطیکہ اس میں اللہ اور اس کے رسول کی کوئی نافرمانی نہ لازم آتی ہو۔
(الریاض الناضرۃ:ص: 49)

📚مفتی اعظم  شیخ عبدالعزیز بن باز رحمتہ اللہ علیہ فرماتے ہیں: اس میں شک نہیں کہ اللہ تعالی نے اہل حل وعقد کی اطاعت کا حکم دیا ہے، نیکی اور بھلائی کے کاموں میں ان میں ان کی اطاعت فرض کی ہے اور امور خیریہ میں ان کے ساتھ تعاون کو، باہمی تناصح اور پھر صبر کو واجب قرار دیا ہے، چنانچہ ارشاد ہوا:
يَاأَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا أَطِيعُوا اللَّـهَ وَأَطِيعُوا الرَّسُولَ وَأُولِي الْأَمْرِ مِنكُمْ ۖ فَإِن تَنَازَعْتُمْ فِي شَيْءٍ فَرُدُّوهُ إِلَى اللَّـهِ وَالرَّسُولِ إِن كُنتُمْ تُؤْمِنُونَ بِاللَّـهِ وَالْيَوْمِ الْآخِرِ ۚ ذَٰلِكَ خَيْرٌ وَأَحْسَنُ تَأْوِيلًا
(مجموع فتاوی الشیخ عبد العزیز بن باز رحمۃ اللہ علیہ۔ جمع محمد سعد شویعر ط: الافتاء(9-93)۔

📚علامہ محمد بن صالح عثیمین رحمۃ اللہ علیہ فرماتے ہیں: رعایا پر واجب امراء کے منجملہ حقوق میں سے یہ بھی ہے کہ رعایا حاکم کی بات سنے اور اطاعت کرے ان کا کسی کام کو کرنے کا کہنا یا منع کرنا سنے جب تک وہ خلاف شریعت بات کا حکم نہ دیں، اگر حکم ماننے سے شریعت کی نافرمانی لازم آتی ہو تو ایسی صورت میں کوئی سننا یا ماننانہیں: لاطاعۃ لمخلوق فی معصیۃ الخالق
(رسالہ: حقوق الراعی والراعیۃ)

📚 شیخ صالح بن فوزان الفوزان حفظہ اللہ فرماتے ہیں: ولی امر کا حق ہے کہ جائز کاموں میں اس کی اطاعت کی جائے؛ کیونکہ اللہ تعالی کا فرمان ہے: يَاأَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا أَطِيعُوا اللَّـهَ وَأَطِيعُوا الرَّسُولَ وَأُولِي الْأَمْرِ مِنكُمْ ۖ
نیز آپ ﷺ نے فرمایا: ایک مسلمان پر امیر کی بات ماننا اور سننا فرض ہے اور فرمایا : چنانچہ سنو اور اطاعت کرو اگرچہ ایک حبشی غلام ہی تم پر امیر بنادیا جائے اور جس نے مسلمان امیر کی اطاعت نہ کی تو اس نے اللہ اور اس کے رسول کی نافرمانی کی۔
(المتقی من فتاوی الشیخ صالح الفوزان ، جمع عادل الفریدان، ط: موسسۃ الرسالۃ(1/390)

*جس امام/حاکم کی اطاعت کا احادیث میں حکم ہے وہ یہی موجودہ حکمران ہیں*

فضیلۃ الشیخ عبدالسلام بن برجس آل عبدالکریمرحمہ اللہ المتوفی سن 1425ھ
( سابق مساعد استاد المعھد العالي للقضاء، الریاض)

وہ آئمہ یا خلیفہ جن کی اطاعت کا نبی کریم صلی اللہ علیہ وآلہ وسلم نے حکم فرمایا ہے وہ یہی موجودہ ومعروف حکمران ہیں کہ جن کے پاس حکومت واختیارات ہیں لیکن جو معدوم ہو یا اس کو اصلاً ہی کسی چیز پر  اختیار یا اقتدار ہہ نہ ہو تو وہ نبی اکرم صلی اللہ علیہ وآلہ وسلم کے ولاۃ امور (حکمرانوں) کی اطاعت والے حکم میں داخل نہیں ہیں۔

📚شیخ الاسلام امام ابن تیمیہ رحمہ اللہ فرماتے ہیں:
’’أن النبي صلی اللہ علیہ وآلہ وسلم أمر بطاعة الأئمة الموجودين المعلومين، الذين لهم سلطان يقدرون به على سياسة الناس، لا بطاعة معدوم ولا مجهول ولا من ليس له سلطان ولا قدرة على شيء أصلاً‘‘
(منھاج السنۃ النبویۃ: (1/115)
ط۔ رشاد سالم۔)
ترجمہ:
(بے شک نبی کریم صلی اللہ علیہ وآلہ وسلم نے ان آئمہ کی اطاعت کا حکم فرمایا ہے جو موجود و معروف ہیں کہ جن کے پاس اقتدار ہے کہ جس کے ذریعہ سے وہ لوگوں کے سیاسی امور کی باگ ڈور سنبھالتے ہیں۔ نا کہ معدوم و مجہول کی اطاعت کا حکم فرمایا ہے، اور نہ ہی ان کی کہ جن کا کسی چیز پر اصلاً ہی کوئی اختیار واقتدار نہیں)

اس  کی دلیل یہ ہے کہ شریعت نے جو امامت کے مقاصد بیان کیے ہیں وہ یہ ہیں: لوگوں میں عدل وانصاف قائم کرنا، شعائر اللہ کا اظہار کرنا اوراقامت حدود وغیرہ کہ جن کو کوئی معدوم جو موجود ہی نہ ہو یا مجہول جسے کوئی جانتا ہی نہ ہو ادا نہیں کرسکتا۔ بلکہ یہ باتیں تووہی کرسکتا ہے جو موجود ہواور تمام مسلمانوں خواہ علماء ہوں یا عوام، نوجوان ہوں یا بوڑھے، مرد ہوں یا عورتوں میں معروف ہو۔ ایسا امام وحاکم کہ جسے مقاصد امامت کے نفاذ کی قدرت حاصل ہو۔ جب کسی مظلوم کو اس کا حق لوٹانے کا حکم دے تو لوٹا دیا جائے، جب کسی حد کو نافذ کرنے کا حکم دے تو وہ نافذ کردی جائے، جب وہ رعایا پر کوئی تعزیری حکم جاری کرے تو وہ جاری کردیا جائے اور اس جیسے دیگر مظاہر جو سلطنت، ولایت وحکومت پر دلالت کرتے ہیں۔ تو یہ وہ امام ہے کہ جس کے ہاتھوں اللہ تعالی مسلمانوں کے مصالح جاری کرواتا ہے۔ پس راستے محفوظ ہوجاتے ہیں، مسلمانوں کا کلمہ اس پر جمع ہوجاتا ہے یعنی یکجہتی ہوجاتی ہے،  اور اسلامی سلطنت کی بنیادوں کی حفاظت ہوتی ہے،

(مصدر: معاملۃ الحکام فی ضوء الکتاب و السنۃ)

_________&_________

*اوپر بیان کردہ تمام آیات و احادیث، سلف صالحین اور علماء کرام کے فتاویٰ جات اس بات کی دلیل ہیں کہ تمام مسلمانوں کے لیے اپنے مسلمان حاکم کی اطاعت ہر معروف کام میں واجب اور ضروری ہے، پھر چاہے حکمران فاسق و فاجر ہی کیوں نا ہوں، لیکن اگر یہ حاکم کسی غیر شرعی کام کا حکم دیں تو اس امر میں انکی اطاعت جائز نہیں،اور نا ہی کسی مسلمان کے لیے جائز ہے کہ وہ حاکم وقت کو گالی دے یا اسکے بارے فتنہ و فساد پھیلائے اگر حاکم برا ہے تو دعوت سے اسکی اصلاح کرے یا پھر خاموش رہے*

_______&__________

 📣 *خارجیت سے بچ کر رہیں۔۔۔!*

تاریخ اسلام کی ورق گردانی کرنے والے کو اس بات کا بخوبی علم ہوگا کہ خلافت راشدہ سے لے کر آج تک خوارج سے زیادہ خطر ناک فرقہ پیدا نہیں ہوا، انہوں نے اسلام اور مسلمانوں کو سخت نقصان پہنچایا اور لوگوں کے دین میں فساد برپا کیا، معیشت کو کمزور کیا، مسلمان حکام کے خلاف بغاوت کے مرتکب ہوئے، ناحق جانوں کا خون کیا، اموال غصب کئے، غرض یہ کہ کوئی ایسا نہ بچا جو ان کے بد اثرات سے محفوظ رہا ہو یہاں تک کہ انبیاء کرام علیھم السلام کے بعد افضل ترین مخلوق صحابہ بھی ان کے شر سے محفوظ نہ رہ سکے، چنانچہ انہوں نے عثمانؓ کو شہید کیا، علیؓ کے خون سے ہاتھ رنگے نیز اس کے علاوہ کئی ایک صحابہ ان کی درندگی کا شکار بنے، ان زمانوں کے بعد بھی ان کا یہی طریقہ رہا، اور آج بھی کافر حیلے بہانوں سے مسلمانوں میں خارجیت کا ذہن پیدا کر کے مسلمان کو مسلمانوں کے خلاف ہی استعمال کر رہے ہیں،لہذا تمام مسلمانوں سے گزارش ہے کہ خدارا مسلمانوں کی اجتماعیت کو ہرگز نا توڑیں اور آپس میں مل جل کر رہیں اور خاص کر مسلم حکمرانوں پر کفر کے فتوے لگا کرمسلمانوں کے اتحاد کو نقصان نا پہنچائیں، مانا کہ حکمران اچھے نہیں ہیں تو آپ کو چاہیے کہ سلف صالحین کے منہج کے مطابق انکی اصلاح کریں، اگر یونہی حکمرانوں پر فتوے لگا کر انکے پاؤں کھینچتے رہیں گے تو مسلمانوں میں کبھی اتحاد قائم نہیں ہو سکے گا اور نتیجہ ذلت و رسوائی میں ہو گا،
(((خارجیت کی مزید تفصیل کے لیے بہت جلد ایک الگ سے سلسلہ بنائیں گے ان شاءاللہ))

*لہذا ہمیں چاہیے کہ حکمرانوں کے اچھے فیصلوں کی حوصلہ افزائی کریں اور برے فیصلوں میں انکی اصلاح کریں*

اللہ پاک ہمیں سمجھ عطا فرمائیں آمین،

(مآخوذ از:  اردو مجلس/ اسلام سوال وجواب)

((( واللہ تعالیٰ اعلم باالصواب )))

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