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Nek Biwi Ghar Ki Khusiyo Ka Hissa Hoti Hai?

Kaunsi chaar chijein Khusiyon ka Sabab Banti Hai?

   ﺑِﺴْـــــــــــــﻢِﷲِﺍﻟﺮَّﺣْﻤَﻦِﺍلرَّﺣِﻴﻢ
 السَّلاَمُ عَلَيكُم وَرَحمَةُ اللّٰهِ وَبَرَكَاتُهُ 
Hadith : Chaar cheeze khushiyo ka hissa hoti hain Neik Biwi, Bada ghar, neik padosi aur achchi sawari
Saad bin abi waqas Radi Allahu anhu se rivayat hai ki Rasool-Allah Sallallahu Alaihi Wasallam ne farmaya chaar cheeze khushiyo ka hissa hoti hain (yani inki wajah se khushi hasil hoti hai) Neik Biwi, Bada ghar, neik padosi aur achchi sawari aur chaar cheezi pareshaniyo ka hissa hoti hain (yani inki wajah se pareshani hoti hai) bure padosi, buri biwi , buri sawari aur tang makan.
Al-Silsila As-Sahiha-1903

  سعد بن ابی وقاص‌ رضی اللہ عنہ سے روایت ہے کی  رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا چار چیزیں خوشیوں کا حصّہ ہوتی ہیں (یعنی ان کی وجہ سے خشی حاصل ہوتی ہیں )۔ نیک بیوی، کشادہ گھر، نیک پڑوسی، اور اچھی سواری۔ 

اور چار چیزیں  پریشانیوں کا حصّہ ہوتی ہیں (یعنی ان کی وجہ سے پریشانی ہوتی ہے)۔ برا پڑوسی، بری بیوی، بری سواری، اور تنگ مکان۔ السلسلہ صحیحہ ١٩٠٣

 Sad ibn Abi Waqqaas Radi Allahu Anhu said that the Prophet SallAllahu Alaihi Wasallam said Four things are part of happiness: a righteous wife, a spacious abode, a good neighbour and a comfortable mount. And four things are part of misery: a bad wife, a bad neighbour, a bad mount and a small abode.  Al-Silsila As-Sahiha-1903
     ☆▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬☆
Aye imaan waalo Allah ki itaat karo aur uske Rasool ki itaat karo aur apne Amalo ko Baatil na karo
Jo Bhi Hadis Aapko Kam Samjh Me Aaye Aap Kisi  Hadis Talibe Aaalim Se Rabta Kare !
  JazakAllah  Khaira Kaseera
      ☆▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬☆
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12 RabiAwwal ki Haqeeqat. Kyu Nahi Mnate Hai Hm Eid Miladunnabi

Kyu 12 RabiAwwal Manate Hai?

Kya Ye Nabi ka Tarika hai?


ईद मिलाद-उन-नबी – 12 रब्बी-उल-अव्वल की हक़ीक़त
अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाही व बरकतुहु
12 रब्बी-उल-अव्वल को बर्रे सगीर मे की जाने वाली ईद भी हम मुसलमानो मे बड़े इख्तेलाफ़ का मौजू है, आइए हम इस्स दिन के पसेमंजर पर गौर करते है, सहाबा-ए-कीराम के हालत-ए-ज़िंदगी के असर देखते है के उनपर ये दिन कैसे गुजरा ।
✦ रसूल-ए-करीम (ﷺ) की वफ़ात का मर्ज:
रिवायतों मे आता है के – “कलबे-ए-वफ़ात के कुछ साल पहले आप (ﷺ) को एक यहूदन ने दावत दी । आप अपने 2 सहाबा के साथ उस दावत मे तशरीफ ले गए। उस यहूदन ने खाने मे जहर मिलाकर आपके सामने पेश किया। जिसे खाकर वो दो साहबी फौरन इन्तेकाल कर गए और आप (ﷺ) ने वो लुकमा मूह मे लेकर चबा ही लिया और जहर का अंदेशा होने पर थूंक दिया। रिवायतों मे आता है के आप को आखरी वक्त तक होने वाले मर्ज की तकलीफ का सबब यही जहर था ।
आपके मर्ज मे कमी बेशी होती रहती थी खास वफ़ात के दिन (12 रब्बी-उल-अव्वल) के रोज़ आपका हुजरा (माई आयशा का घर) मस्जिद के सामने ही था। आपने पर्दा उठाकर देखा तो लोग नमाज़-ए-फ़जर पढ़ रहे थे। ये देखकर खुशी से आप हंस पड़े। लोगो ने समझा के आप मस्जिद मे आना चाहते है। मारे खुशी के तमाम सहाबा बेकाबू हो गए। मगर आपने इशारे से रोका और हुजरे मे दाखिल हो कर पर्दा दाल दिया।
ये सबसे आखरी मौका था की सहाबा कीराम ने जमाल-ए-नबूवत की जियारत की। इसके बाद आप को बार-बार गशी (बेहोशी) का दौरा पड़ने लगा। हजरते फातिमा जहरा (रज़ीअल्लाहु अनहा) की ज़ुबान से शिद्दते ग़म मे ये अल्फ़ाज़ निकल गये “हाय रे मेरे बाप की बेचैनी।” आप (ﷺ) ने फरमाया “ऐ बेटी! तुम्हारा बाप आज के बाद कभी बेचैन न होगा।” – (बुखारी जिल्द:2, सफा:241, बाब:मरजुनबी (ﷺ)
✦ आप (ﷺ) के ज़ुबान-ए-मुबारक के आखरी अलफाज:
वफ़ात से थोड़ी देर पहले सह पहर का वक्त था की आपके सीना-ए-मुबारक मे सांस की घर-घराहट महसूस होने लगी । इतने मे आपके लबे-मुबारक हिले और लोगो ने ये अलफाज सुने “नमाज़ और घुलमों का खयाल रखो।”
आपके पास मे पानी की एक लगान थी इसमे बार हाथ दलते, और चेहरे अक्दस पर मलते, और कलमे पढ़ते। अपनी चादर मुबारक को कभी मूह पर डालते तो कभी हटा देते ।
हजरते आईशा (र.अ) आपके आप (ﷺ) के सिर-ए-मुबारक को पने सिने से लगाए बैठी हुई थी इतने मे आपने हाथ उठाकर उंगली से इशारा किया और 3 मर्तबा फरमाया “(तर्जुमा: अब कोई नहीं! बल्कि वो बड़ा रफीक चाहिए)।”
यही अलफाज जबाने मुक़द्दस पे थे की नगहा मुक़द्दस हाथ लटक गए और आंखे छठ की तरफ देखते हुए खुली की खुली रही और आप दुनिया से रुखसत कर गए। (इन्न लिल्लाही व इन्न इलैहि राजीऊँन)
– (बुखारी: जिल्द:2, सफा:640 & 641)
तारीख-ए-वालिदत और वफ़ात की तारीख मे अक्सर उलमाए सीरत का इत्तिफाक़ है की महिना रब्बी-उल-अव्वल का था और तारीख 12 थी ।
✦ वफ़ात का असर:
हुजूरे अक्दस (ﷺ) की वफ़ात से सहाबा-ए-कराम और अहले बैत को कितना बड़ा सदमा पोहचा इसकी तस्वीर कशी के लिए हजारो सफअत भी काफी नहीं हो सकती ।
हजरते उस्माने घनी (र.अ.) पर ऐसा वक्त तारी हो गया के वो इधर उधर भागे भागे फिरते थे। मगर किसी से न कुछ कहते और न किसी से कुछ सुनते थे।
हज़रत अली (र.अ.) रंजो मलाल मे निढाल होकर इस तरह बैठे रहे के उनमे उठने-बैठने की सकत ही नहीं रही।
हज़रत अब्दुल्लाह बिन उनैस (र.अ.) के क़ल्ब (Heart) पर ऐसा धक्का लगा के वो इस सदमे को बरदस्त न कर सके और उन्हे दिल का दौरा पड गया।
हज़रत उमर (र.अ.) इस कदर होशो-हवास खो बैठे की उन्होने तलवार खींच ली और नंगी तलवार लेकर मदीना की गलियों मे इधर उधर घूमने लगे और ये कहते फिरते की “अगर किसिने ये कहा के मेरे नबी (ﷺ) की वफ़ात हो गयी तो मई इसी तलवार से उसकी गर्दन उड़ा दूंगा।”
✦ वफ़ात-ए-रसूल पर अबू बकर सिद्धिक (र.अ.) का खुतबा:
बुखारी शरीफ की रिवायत मे है के हजरते अबू बकर सिद्धिक (र.अ.) अपने घोड़े पर सवार होकर “सुख” से आए जो की मस्जिदे नबवि से एक मिल के फासले पर था।
और किसी से कोई बात न कही न सुनी। सीधे हजरते आएशा (र.अ.) की हुजरे मुबारक मे चले गए और हुज़ूर-ए-पाक (ﷺ) के रूखे मुबारक से चादर हटाकर आपकी दोनों आंखो के दरमियान निहायत गरमजोशी के साथ एक बोसा दिया। और कहा के “आप अपनी हयात और वफ़ात दोनों हालत मे पाकीज़ा रहे! मेरे माँ-बाप आप पर फिदा हो। हरगिज़ अल्लाह तआला आप पर दो मौतों को जमा नहीं फरमाएगा! आपकी जो मौत लिखी हुयी थी आप उस मौत के साथ वफ़ात पा चुके।”
इसके बाद हजरते अबू बकर (र.अ.) मस्जिद मे तशरीफ लाये और लोगों को मुतव्वजो करने के लिए खुतबा देना शुरू किया के –
“तुम मे से जो शख्स मुहम्मद (ﷺ) की परशतीश करता था वो जान ले मुहम्मद (ﷺ) की वफ़ात हो गयी है। और तुम मे से जो शख्स अल्लाह की परशतीश करता है तो वो जान ले के अल्लाह ज़िंदा है और वो कभी मरने वाला नहीं।”
- खुदबा अबू बकर सिद्दिक (أبو بكر)
फिर उसके बाद हजरते अबू बकर सिद्धिक (र.अ.) ने सूरह इमरान की आयत 144 तिलावत फरमायी:
“और मोहम्मद (ﷺ) तो एक रसूल है, उनसे पहले बोहोत रसूल हो चूके है तो क्या अगर वो इंतेकाल फरमा जाए या शहीद हो जाए तो तुम उलटे पाँव फिर जाओगे? फिर जो उलटे पाँव फिरेगा अल्लाह का कुछ नुकसान न करेगा। और अनकरीब अल्लाह शुक्र अदा करने वालों को सवाब देगा।”
- (अल-कुरान: सूरह आले इमरान 3:144)
इसके बाद हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास (र.अ.) कहते है के “हज़रत अबू बकर (र.अ.) ने ये आयत तिलावत की तो मालूम होता था की गोया कोई इस आयत को जानता ही नहीं था इनसे सुनकर हर शख्स इसी आयत को पढ़ने लगा।
हज़रत उमर (र.अ.) का बयान है की: मैंने जब अबू बकर सिद्धिक (र.अ.) की ज़ुबान से सूरह आले इमरान की ये आयत सुनी तो मुझे मालूम हो गया के वाकय नबी-ए-करीम (ﷺ) इंतेकाल कर गए। और इनके साहिबजादे हजरते अब्दुल्लाह बिन उमर (र.अ.) कहते है के:
“गोया हम पर एक पर्दा पड़ा हुआ था। इस आयत की तरफ हमारा ध्यान ही नहीं गया। हज़रत अबू बक़र सिद्धिक (R.A.) के खुतबे ने इस पर्दे ओ उठा दिया।”
– (Reference: Book सिरते-मुस्तफा by अब्दुल मुस्तफा आज़मी अलही रेहमान)
✦ सबक:
तो बहरहाल ये है पसेमंजर 12 रब्बिउल अव्वल का।
– ये वो दिन था जब फातिमा जहरा के सर से अपने वालिद का साया हट गया।
– ये वो दिन था जब आपकी अजवाज़-ए-मुताहरा बेवा हो गयी।
– ये वो दिन था जब सहाबा करम शिद्दते ग़म से गश खाकर गिर गए।
और ये वही दिन था जब दुश्मनाने दिन को खुशिया मनाने की सबसे बड़ी वजह मिल गयी थी।
– के अल्लाह के रसूल तो अब दुनिया से रुखसत कर गए। लिहाजा वही का सिलसिला बंद हो गया।
– और अब हमारा निफाक भी अब उम्मत मे पोशीदा रहेगा।
– तो जितना हो सके अब उम्मत की साफो मे दाखिल हो कर उम्मत मे इंतेशार फैलाया जाए।
यही वो मुनाफिक थे जिनके लिए 12 रब्बी-उल-अव्वल तो खुशियो का दिन था।
और अल्लाह गवाह है कुछ ही सालो पहले तक इस्स दिन को 12 वफ़ात के नाम से मनाया जाता था । लेकिन जब उम्मत मे शऊर (समझ) आने लगा तो नाम बादल कर मिलाद-उन-नबी रख लिया गया और फिर ये ईद-मीलदून नबी कहलाया । अल्लाह हिदायत दे इन हज़रत को।
# अल्लाह रहम करे –
– आज हम क्या कर रहे है 12 रब्बी-उल-अव्वल को ?, किसकी सुन्नत पर अमल कर रहे है ?
मेरे अज़ीज़ों ! थोड़ा तो गौर फिक्र करो ।
– क्या सहाबा से बढ़कर भी मोहब्बत-ए-रसूल का भी दावेदार हो सकता है कोई ?
– जब उन्हे इस्स दिन जश्न मनाने का इल्म न हुआ, तो हमारी क्या हैसियत थोड़ा तो अंदाज़ लगाईए !।
यकीनन विलादते रसूल की खुशी हर मोमिन को है लेकिन हमारी खुशिया सियासती रंग मे न रंगी हो, और न ही हमारी खुशिया गैर- मुसलमानो पर फकर जयाने वाली हो। बल्कि हममारी खुशिया शरियाते-ए-इस्लामिया के ताबेय है।
– अलहम्दुलिल्लाह! जो अल्लाह और उसके रसूल ने कहा, जिस पर सहाबा ने अमल किया वही हमारे लिए हुज्जत होनी चाहिए।
♥ आमद की खुशी कैसी हो ?
मेरे अज़ीज़ों! सहाबा (र.अ.) ने रसूल-ए-करीम (ﷺ) की आमद पर ज़िंदगी भर हक़ीक़ी खुशिया मनाई, यानि आपकी तालिमात पर ज़िंदगी भर अमल किया और दूसरों तक अपने उम्दा अखलाख के सबब दीन की दावत पोहचते रहे।
जिसका नतीजा है के आज हम और आप भी अहले ईमान वालों मे शुमार है। वरना अल्लाह अगर हमे हिदायत न देता तो हम भी गुमराहों मे शुमार होते। अदना सी अदना मख्लूख से डरने वाली क़ौमों मे हमारा भी शुमार होता।
अल्लाह का लाख शुक्र है के अल्लाह ने अपने नबी के जरये, सहाबा किराम की जद्दो जहद के जरये हम तक दीन-ए-इस्लाम पोहचाया और हमे हिदायत से सरफराज किया। लिहाजा हमे भी चाहिए के हम भी रसूलअल्लाह (ﷺ) की तालिमत को मजबूती से पकड़ ले। आप (ﷺ) की इताअत को लाज़िम और फर्ज़ जाने। और दीन मे नए अकीदे ईजाद करने से अहतियात/परहेज़ करे।
♥ इनशा अल्लाह उल अज़ीज़!
# अल्लाह रबबूल इज्ज़त हमे कहने सुनने से ज्यादा अमल की तौफीक दे,
# हमे एक और नेक बनाए, सिरते मुस्तक़ीम पर चलाये,
# हम तमाम को रसूल–ए-करीम (ﷺ) से सच्ची मोहब्बत और इता-अत की तौफीक आता फरमाए,
# जब तक हमे जीनदा रखे इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखे,
# खात्मा हमारा ईमान पर हो।

!!! व आखिरू दावाना अनिलहमदुलीललाहे रब्बिल आलमीन !
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Sunnat Se Badhte Fasle. Deen me Nayi Chijein Izaad karne wale

Biddat Ki TArif, Sunnat Aur Biddat Kya HAi?

Allah rabbul izzat  Ne Hamein Ek Kamil Deen Diya Hai Jiski Ratein Bhi Din Ki Tarhan Roshan Hain
Allah SWT Ne Hamein Andhere Main Hargiz Nahin Chora, Hamara Yeh Iman Hai Ke Rasool ﷺ Deen Ki Har Choti Aur Badi Baat Bata Kar Gaye Hain Yaha Tak Ke Washroom me kaunsi dua padh kar jani hai yaha tak ke pahle right foot rakhna hai ye left foot itni choti si baat bhi Aur Agar Wo Naye Naye Kaam Jo Deen Ke Naam Par Kiye Ja Rahe Hain Uski Koi Asal Hoti To Kya Rasoolallah ﷺ Hame Na Bata Kar Jate❓
Ab Deen Main Na Koi Izafa Hoga Aur Na Hi Koi Kami Ho Sakti Hai Alhamdolillah Hamara Deen Mukammal Hai. Aur Yahi Hamara Eeman hai Aur Ek Muslim Ka Eeman Hona Chaiye.
Lekin Dekhne Main Ye Aaraha Hai Ki Aise Log Hote Hain Jinhe Shayad Nauzobillah Rasool ﷺ ki Batayee Hui Batein Kam Lagti Hain Isliye Wo Deen Ki Baton Main Izafa Karte Rahte Hain Jab ke Unki Batayee Baat Ka Saboot Na Quran Main Hota Hai Aur Na Kisi Saheeh Ahadees Main‼
Deen Ki Har Baat Hamein Quran Aur Ahadees Main Milegi Agar Baat Quran Ahadees Se Sabit Hai To WO Sar Ankho Par Lekin Logon Ki Banayee Hui Bataein Hargiz Deen Nahin Ban Sakti‼
Hum Deen Ki Baton Ko Bahot Halke Main Lene Lag Gaye Hain Koi Bhi Aakar Kuch Bata Deta Hai Deen Ke Naam Par Aur Hum Aankhe Band Kiye Hue Use Qabool Kar Lete Hain Na hi ye Janne Ki Koshish Karte Hain Ke Jo Baat Batayi Gayi Wo Quran Ahadees Se Sabit Bhi Hai Ya Nahin‼
Choti Si Baat Hi Lelijiye Namaz Aur Roze Ki Niyat Zaban Se Karna. Koi Bhi Aalim Mufti Kisi Bhi Hadees Se Yeh Sabit Nahin Kar Sakta Ke Rasool ﷺ Ne Zaban Se Niyat Karna Bataya Ho. Niyat Naam Hai Dil Ke Irade Ka Aur Yeh Baat Sab Mante Bhi Hain Sabko Pata Hai Ke Jo Zaban Se Niyat Ke Alfaz Kahe Jate Hain WO Kisi Bhi Hadees Main Nahin. Yaha Tak Ke Log Likh Bhi Dete Hain Ke Niyat Dil Ke Irade Ka Naam Hai Lekin Zaban Se Karlo To Aur Acha Hai. Unse Poocha Jaye Ke Aapko Kaise Pata Ke Zaban Se Niyat Ki Jaye To Wo Achi Hogi❓
Aapko Kisne Bataya❓ Kya Ap Par Wahee Ayi Thi❓Ya Aap Yeh Dawah Karte Ho Ke Nauzobillah Rasool ﷺ ko Yeh Baat Pata Nahin Thi Aur Aapko Pata Chal Gayee❓ Ya Aapka Ye Dawah Hai Ke Rasool Allah ﷺ Sahaba Kiram Ko Nauzobillah Batana Bhool Gaye❓Kis Base (buniyaad)Par Aap Keh Dete Ho Ke Zaban Se Kaho To Aur Acha Hai❓ Jo Bhi Deen ki Baat Thi Rasool ﷺ Sab Bata Kar Gaye Hain To Kyon Hum Usi Main Razi Nahi Ho Jate Hain ❓KYon Apni Taraf Se Izafa Karke Hum Rasool ﷺ Ki Mukhalfat Karte Hain ❓AUr Jane Anjane Main Rasool ﷺ Ki Toheen Kar Beth Te Hain❓
Allah Ki Panah‼
Wo Rasool-E-Aala ﷺ Jo Sare Ambiyan Main Sabse Afzal Hain Unki Baat Ke Ooper Apne Alimo Aur Ulmao Ki Baat Ko Tarjeeh Di Jane Lagi Hai. Hona To Yeh Chahiye Ke Jab Quran Ahadees Ki Saheh Baat Samne Aajaye To Hum Apne Aalim Mufti Ki Baat Ko Chordein Isliye Ke Hamne Kalma Mohammed Rasool Allah ﷺ Ka Parha Hai Na Ke Kisi Imam Mufti Ya Aalim Ka. Kabr Me Hame Hamare Rasool ke bareme pucha jayega na ki kisi Imam ya Maulana ya Molvi sahab ke bareme‼
Hamein Allah SWT Ne kulli taur par Rasool ﷺ Ki pairwi Karne Ka Hukum Diya Hai Kisi Imam, Mufti, Aalim Ke Peeche Chalne Ko Nahin Kaha‼
Lekin Afsos Hum Dawah To Karte Hain Ke Hum Hi Sache Aashiq-E-Rasool Hain Lekin Hamara Amal Sunnaton Ke Khilaf Hota Hai isi liye Jo Aaj Sabse ZYada Aashiq-E-Rasool Hone Ka Dawah Karte Hain WOhi Sabse ZYada Shirk AUr Bidat Main Doobe Hue Hain‼
Aur Yaad Rakhiye Jahan Bidat Aajati Hain Wahan Sunnat kabhi Nahin Rehti Hai Sunnat Aur Bidat Ek Jagah Reh Hi Nahin Sakti Hain jaise Aag aur Pani ek jagah nahi rah sakte hai. Isliye Bidato Ko chota Gunah Na Samjho Yeh Bahot Bada Fitna Hota hai. Dheere Dheere Yehi Bidate Deen Ka Hissa Banti Chali Jati Hain Logon Ki Nazro Main, Aur WO Asal Deen Ki Baat Se Door Ho Jate Hain‼
Yahan Par Bhi Bahot se Members Hain Jo Deen ki Batein Share Karte Hain Lekin Kitni Hi Batein Aisi Hoti Hain Jo Na Quran Se Sabit Na Ahadees Se. Aur Aise Logon Ka Honsla Hum AUr Barha Dete Hain Jab Reply Main Likhte Hain Ke Jazzak Allah Khair Nice Sharing. Sochiye Zara Hum Bhi Unki Jhooti Baat Ka Hissa Bante Chale Jate Hain ‼
Isliye Har Ek Member Se Guzarish Hai Ke Plz Apni Zimmedari Samjhiye Tab Hi Aap Deen Ka Aur Tableegh Ka Saheh Haq Ada Kar Sakte Hain. Aur visitors Se Bhi Yehi Apeal Hai Ke Plz Jab Bhi Read Karein Apni Ankhein Khol Kar Read Karein Samajh Kar Read Karein Aur Aapko Lagta Hai ke Jo Share Kiya Gaya Hai WOh Quran Ahdees Ke Reference Ke Sath Nahin Hai TO Aap unse Poochiye Unse Ref. Mangiye ‼
Allah SWT Ka Farman Suniye:-
"Aye Logon Jo Iman Laye Ho Allah Aur Uske Rasool ﷺ Se Aage Na Badho‼
Surah Hujrat Aayat-1
Rasool ﷺ Ki Ata'at Karne Ka Hukum Diya Gaya Hai Rasool ﷺ Ki Itteba Ke Muqable Main Kisi Doosre Ki Ata'at Aur Itteba Karke Apne Aamaal Ko Barbad Na kijiye‼
Irshad-E-Bari Ta'ala Hai :-
                                        Aye Logo Jo Iman Laye Ho Allah Ki Ata'at Karo, Rasool ﷺ Ki Ata'at karo Aur Apne Aamaal Barbad Na Karo‼
Surah Mohammed, Ayat-33
Bidat Ko Choti Baat Na Samjhiye Yeh Ek Bahot Bada Gunah Hai Jisse Bachne Ka Hukum Rasool ﷺ Ne Diya Hai:-
Rasool ﷺ Ka Farman hai :
                                             Jisne hamare Deen main Koi Nayi CHeez Ijad Ki Jiska Deen Se Koee Taulluq Nahin Hai Tu WO Mardood Hai‼
Saheeh Bukhari, hadith -2697
Ek Aur Hadees Hai " Deen ke Andar Nayee Nayee Cheeze Dakhil Karne Se Baaz Raho Bila shubha Har Nayee Cheez Bidat Hai Aur Har Bidat Gumrahi Hai aur har gumraahi ka thikaana jahannam  hai‼
Sunan Abu'daud Kitab Al Sunnah, hadith-7064
Ummeed Hai Baat Clear Ho Gayi Hogi Aur Kisi Ko Koi Baat Buri Lagi Ho To uske Liye Ma'azrat Chahta Hoon, 
Bus Itni Koshish Thi Ke Hum Saheeh Deen Ki Baton Ko Apnalein Bidat Aur Gumrahee Se Bach Jayein.
Rasool ﷺ Se Sachi Mohabbat Hai To Aap ﷺ Ki Batayee Huee Baton Se Aage Barhne Ki Koshish Na Karein Aur Agar Abhi Bhi Usko Zidd ki Wajah Se Baat Samajh Na Ayi Ho To Wo Apna kal Is Hadith Ke aayine Me Dekh le:-
RasoolAllah ﷺ Hauz-e-Kausar se apne ummatio ko pani pila rahe honge  kuch log ayenge aur unhe rok dia jaega, inko bhi Nabi ﷺ yehi samjhaenge ke yeh to meray farmabardar ummati hain lekin Aap ﷺ ko mutla’ kia jae ga ke ‘Ae Nabi ﷺ Aap nahi jantay ke inho ne Aap ke jane ke bad kya kuch kiya, inhon ne Aap ke baad Deen me Nayi Nayi cheeze nikal li thin’, to Aap ﷺ farmaenge “In ke liye (rahmat se) duri ho! In ke liye duri ho! Jinho ne mere baad Deen ko badal dala‼
Sahih Bukhari, Vol.8, kitab ur-Riqaaq, Hadith- 6584
Wallahu Alam......
   Wama Alaina illal balaagh
Allah SWT Hum Sabko Apne Deen Se Mohabbat Karne Wala Bana Dey Aur Hamein Us Deen Per Sabit Qadam Karde Jo Rasool ﷺ Hamein Dekar Gaye Aur Haq Baat Logon Ke Samne Kehne Ki Hamein Himmat de. Aameen

 Tahreer D͓̽a͓̽n͓̽i͓̽s͓̽h͓̽ A͓̽n͓̽s͓̽a͓̽r͓̽i
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Jo BAtein Quran-O-HAdeeth Me NAhi HAi Use Ahle HAdees Kyu KArte HAi?

Quran-O-HAdeeth ME Jo BAtein NAhi HAi Aap Unhe Kyu KArte HAi?

اہل بدعت کی گیارہ باتیں (سوالات ، اعتراضات ) اور اُن کے جوابات

مجموعہ داعیان اسلام*

آج کل اسطرح کے اور بھی کچھ سوالات گردش کر رہے ہیں,
تاکہ کسی طرح جھوٹ کو سچ  بنا کر عوام کو  دین کے نام پہ دھوکہ دیا جائے اور اپنی پیٹ پوجا کا سلسلہ جاری رکھا جائے,

اسی سے متعلقہ چند سوالات کے جوابات پیش خدمت ہیں,*

بِسّمِ اللَّہ الرّ حمٰنِ الرَّحیم*
الحَمدُ لِلّہ ِ وحدہُ و الصَّلاۃُ و السَّلامُ عَلیٰ مَن لا نبیَّ و لا مَعصُومَ بَعدَہ ُمُحمدٌ  صَلَّی اللَّہُ عَلیہ ِوعَلیٰ آلہِ وسلّمَ، و مَن أَھتداء بِھدیہِ و سلک َ  عَلیٰ مَسلکہِ ، و قد خِسَرَ مَن أَبتدعَ و أَحدثَ فی دِینِ اللَّہ ِ بِدعۃ، و قد خاب مَن عدھا حَسنۃ ،*
شروع *اللہ* کے نام سے جو بہت ہی مہربان اور بہت رحم کرنے والا ہے ،
اکیلے *اللہ* کے لیے ہی ساری خاص تعریف ہے اور رحمت اور سلامتی اس پر جِس کے بعد کوئی بنی نہیں اور کوئی معصوم نہیں وہ ہیں۔
*محمد  صلی اللہ علیہ وعلی آلہ وسلم،* اور رحمت اور سلامتی اُس پر جِس نے اُن *صلی اللہ علیہ وعلی آلہ وسلم* کی ہدایت کے ذریعے راہ  اپنائی اور اُن *صلی اللہ علیہ وعلی آلہ وسلم* کی راہ پر چلا،
اور یقیناً وہ نقصان پانے والا ہو گیا جِس نے *اللہ* کے دِین میں کوئی نیا کام داخل کیا، اور یقیناً وہ تباہ ہو گیا جِس نے اُس بدعت کو اچھا جانا ،
*▫السلامُ علیکُم و رحمۃُ اللہ و برکاتہُ ،*
کِسی بھائی نے ایک تصویری مراسلہ ارسال کیا ، جس  کا عنوان ہے """گیارہ باتیں  جن کا جواب کسی مفتی کے پاس نہیں  """اِس تصویری مراسلے میں  اھل بدعت کی طرف سے  جو کچھ لکھا گیا وہ من و عن نقل کر رہا ہوں ،
اور پھر اِن شاء اللہ اُس کا جواب پیش کرتا ہوں ،
اُس تصویری مراسلے میں لکھا ہے :::
*گیارہ باتیں  جن کا جواب کسی مفتی کے پاس نہیں:*
*::: 1⃣ :::*  ہر سال جشن سعودیہ منایا جاتا ہے جس کا قرآن و حدیث میں کوئی ثبوت نہیں ۔
*::: 2⃣ :::* ہر سال غسل کعبہ ہوتا ہے جس کا قرآن و حدیث میں کوئی ثبوت نہیں ۔
*::: 3⃣ :::*  ہر سال غلاف کعبہ تبدیل کیا جاتا ہے جس کا قران و حدیث میں کوئی ثبوت نہیں ۔
*::: 4⃣ :::*  غلاف کعبہ پر آیات لکھی جاتی ہیں جس کا قران و حدیث میں کوئی ثبوت نہیں ۔
*::: 5⃣ :::* مکہ مکرمہ اور مدینہ منورہ میں تہجد کی اذان ہوتی ہے جس کا قران و حدیث میں کوئی ثبوت نہیں ۔
*::: 6⃣ :::*  مدارس میں ختم بخاری شریف ہوتا ہے جس کا قران و حدیث میں کوئی ثبوت نہیں ۔
*::: 7⃣  :::* *سیرت النبی ﷺ* کے اجتماعات منعقد ہوتے ہیں جس کا قران و حدیث میں کوئی ثبوت نہیں ۔
*:::  8⃣  :::*  ہر سال تبلیغی اجماع ہوتا ہے اور چلے لگائے جاتے ہیں جس کا قرآن و حدیث میں کوئی ثبوت نہیں ۔
*:::  9⃣ :::* *صحابہ کرام علیہم الرضوان* کے  وصال کے ایام منائے جاتے ہیں جس کا قرآن و حدیث میں کوئی ثبوت نہیں ۔
*:::  :::* جشن دیو بند و اہلحدیث منایا جاتا ہے جس کا قرآن و حدیث میں کوئی ثبوت نہیں ۔
*::: 1⃣1⃣ :::* ذکر *میلاد ِ مصطفے ﷺ* منانے کا کسی صحابی، ائمہ  یا محدث نے منع کیا ہو  اسکا بھی کوئی ثبوت نہیں ۔
لیکن جیسے ہی *میلاد النبی ﷺ* منانے کی بات آ جائے تو سارے نام نہاد دِین کے ٹھیکیدار مفتے کھڑے ہو جاتے ہیں  اور شرک و بدعت کا شور آلاپنا شروع کر دیتے ہیں ۔
*آخر کیوں ⁉*
*::: پہلی بات:-*
*1⃣:::* ہر سال جشن سعودیہ منایا جاتا ہے جس کا قرآن و حدیث میں کوئی  ثبوت نہیں ۔
*::::: جواب  :::::*
سعودیہ کا ، یا کسی ملک کا  اپنے ملک کے بننے کا ، یا ملک سے متعلق کسی اور معاملے کا جشن منانا دُنیاوی معاملات میں سے ہے ،دِین سے متعلق نہیں ، اس لیے اِسے بدعت نہیں کہا جاتا ،
*لیکن عُلماء حق کِسی بھی قِسم کی سالگرہ منانے کو جائز قرار نہیں دیتے کیونکہ  یہ کافروں کی مشابہت ہے ،*
خواہ وہ کِسی خوشی والے کام کے سے متعلق ہو، یا کِسی دُکھ والے کام سے، مُسلمانوں میں صدیوں تک سالگرہ نامی جیسی کوئی  خُرافات نہیں پائی جاتی تھیں۔
▫▪▪▫
*::: دُوسری  بات*
*2⃣ :::* ہر سال غسل کعبہ ہوتا ہے جس کا قران و حدیث میں کوئی ثبوت نہیں ۔
*::::: جواب  :::::*
غسل کعبہ  کی اصل قران کریم میں مذکور ،
*إِبراہیم   اور إِسماعیل علیہما  السلام کو دیا گیا یہ حکم شریف ہے کہ،* 
*وَعَهِدْنَا إِلَى إِبْرَاهِيمَ وَإِسْمَاعِيلَ أَنْ طَهِّرَا بَيْتِيَ لِلطَّائِفِينَ وَالْعَاكِفِينَ وَالرُّكَّعِ السُّجُودِ  :::*
اور ہم نے  إِبراہیم اور إِسماعیل کو پابند کیا کہ تم دونوں میرے گھر (کعبہ ) کو پاکیزہ کرو ، طواف کرنے والوں  کے  لیے اور قیام کرنے والوں کے لیے اور رکوع و سجود کرنے والوں کے لیے
*سُورت البقرہ 2/آیت 125،*
*اور صِرف إِبراہیم علیہ السلام کے ذِکر کے ساتھ یہ فرمایا کہ*
*وَطَهِّرْ بَيْتِيَ لِلطَّائِفِينَ وَالْقَائِمِينَ وَالرُّكَّعِ السُّجُودِ:::*
اور میرے گھر (کعبہ ) کو پاکیزہ کرو ، طواف کرنے والوں  کے  لیے اور قیام کرنے والوں کے لیے اور رکوع و سجود کرنے والوں کے لیے
*سُورت الحج 22/آیت 26،*
*::: رسول اللہ محمد صلی اللہ علیہ وعلی آلہ وسلم نے بھی فتح مکہ کے دِن کعبہ شریفہ کی دیوراوں کو پانی سے دھویا   :::*
*::::::    اسامہ  بن زید رضی اللہ عنہ ُ کا کہنا ہے کہ:*
*دخلت على رسول الله صلى الله عليه وسلم فى الكعبة فرأى صُورًا فدَعَا بدَلوٍ مِن ماءٍ فأتيته به فضَربَ بهِ الصُّورِ ويقول قاتل الله قوماً يُصوِرون ما لا يَخلقُون :::*
میں (فتح مکہ کے موقع پر ) کعبہ میں *رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم* کے پاس داخل ہوا ، (اُسی وقت ) *رسول اللہ صلی اللہ علیہ و علی آلہ وسلم* نے  وہاں(کعبہ  کی دیوراوں پر بنی ہوئی) تصویریں دیکھیں تو پانی کا برتن (بالٹی ، ڈول وغیرہ ) لانے  کا حکم فرمایا ، تو میں  لے کر حاضر ہوا،  تو *رسول اللہ صلی اللہ علیہ وعلی آلہ وسلم* نے پانی اُن تصاویر پر ڈال کر اُنہیں مٹایا ، اور اِرشاد فرمایا ، اللہ اُن لوگوں کو ھلاک کرے جو اُن چیزوں کی تصویریں بناتے ہیں جو چیزوں اُن لوگوں نے تخلیق (ہی) نہیں کِیں
*سلسلۃ الاحادیث الصحیحۃ /حدیث 996،*
*مختصر طور پر یہ واقعہ """اخبار مکۃ للفاکھی /ذكر الْأُمُور الَّتِي صنعها رَسُول الله صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ فِي الْكَعْبَة""" میں بھی مروی ہے ،*
اس حدیث شریف سے ثابت ہوا کہ کعبہ شریفہ کو حسی ، اور معنوی ہر قسم کی ناپاکی، گندگی وغیرہ سے صاف کرنا ، پانی کے ساتھ دھونا رسول اللہ صلی اللہ علیہ وعلی آلہ وسلم کی سُنّت مُبارکہ سے ثابت ہے ،
*::::::  مزید  گواہی کے طور پر یہ    بھی  ملاحظہ فرمایے  ::::::*
*::::::   عبداللہ ابن عمر رضی اللہ  عنہما سے روایت ہے کہ:*
*ثُمَّ أَمَرَ (رُسولُ اللَّہ صَلی اللَّہُ عَلیہِ وعَلی آلہِ وسلَّم ) بِلاَلاً ، فَرَقَيَ عَلَى ظَهْرِ الْكَعْبَةِ ، فَأَذَّنَ بِالصَّلاَةِ ، وَقَامَ الْمُسْلِمُونَ فَتَجَرَّدُوا فِي الأُزُرِ ، وَأَخَذُوا الدِّلاَءَ ، وَارْتَجَزُوا عَلَى زَمْزَمَ يَغْسِلُونَ الْكَعْبَةَ ، ظَهْرَهَا وَبَطْنَهَا ، فَلَمْ يَدَعُوا أَثَرًا مِنَ الْمُشْرِكِينَ إِلاَّ مَحَوْهُ ، أَوْ غَسَلُوهُ.:::*
(پھر فتح مکہ کے دِن ) رسول اللہ صلی اللہ علیہ وعلی آلہ وسلم نے  بلال رضی اللہ  عنہ ُ  کو حکم دِیا ( کہ کعبہ کی چھت پر چڑھ کر  نماز کے لیے اذان کہیں )  تو بلال  کعبہ کی چھت پر ) چڑھے اور نماز کے لیے اذان دی،  تو ،  مُسلمانوں نے (اپنے اوپری کپڑے اتار دیے اور صِرف ) اپنے  تہہ بند وغیرہ میں ملبوس  رہ کر ،  پانی کے برتن  لے کر زمزم پر ٹوٹ پڑے اور (زمزم  لا لا کر) کعبہ کو باہر اور اندر سے  دھویا، اور مشرکین کے اثرات میں کوئی ایسا اثر نہیں چھوڑا جسے مِٹا نہ دِیا  ، دھو نہ دِیا ہو
*مصنف ابن ابی شیبہ/کتاب المغازی/باب 34حدیث فتح مکہ ،*
اپنی باتوں کے جوابات نہ پانے والے صاحبان کو یہ مسئلہ تو معلوم ہو گا ہی کہ ،
*جو کام رسول اللہ صلی اللہ علیہ وعلی آلہ وسلم کے سامنے ہوا ہو ، اور اُس سے رسول اللہ صلی اللہ علیہ  و علی آلہ وسلم نے منع نہ فرمایا ہو تو وہ  کام سو فیصد جائز اور دُرُست ہوتا ہے، سُنّت شریفہ  میں قُبولیت یافتہ ہوتا ہے ،*
*اِس کے بعد آتے ہیں، کعبہ شریفہ کو خُوشبُو  لگانے، اور خُوشبُو والے پانی سے دھونے کی طرف ،*
*▫::::::  إمام محمد بن عبداللہ الازرقی رحمہُ اللہ متوفی   250 ہجری*
نے اپنی  کتاب "اخبار مکہ/
*ذِكْرُ كِسْوَةِ الْكَعْبَةِ فِي الْإِسْلَامِ وَطِيبِهَا وَخَدَمِهَا وَأَوَّلِ مَنْ فَعَلَ ذَلِكَ "*
میں اپنی سند سے *اُم المؤ منین عائشہ رضی اللہ عنہا* کا یہ قول نقل کیا ہے کہ
*طَيِّبُوا الْبَيْتَ، فَإِنَّ ذَلِكَ مِنْ تَطْهِيرِهِ:::*
  (اللہ کے ) گھر یعنی کعبہ کو خُوشبُو  دار کیا کرو ، کیونکہ ایسا کرنا اُس کو پاکیزہ کرنے  میں سے ہے  ،
*اور یہ بھی کہ امی جان عائشہ رضی اللہ عنہا نے فرمایا:*
*أُطَيِّبُ الْكَعْبَةَ أَحَبُّ إِلَيَّ مِنْ أَنْ أُهْدِيَ إِلَيْهَا ذَهَبًا وَفِضَّةً :::*
  کعبہ کو خُوشبُو لگانا مجھے اس بات سے زیادہ پسند ہے کہ میں کعبہ کے لیے سونا اور چاندی ہدیہ کروں،
*اور  عبداللہ ابن زبیر رضی اللہ عنہما کے بارے میں یہ بھی مذکورہ ہے کہ:*
*کانَ يُجَمِّرُ الْكَعْبَةَ كُلَّ يَوْمٍ بِرَطْلٍ مِنْ مُجْمَرٍ، وَيُجَمِّرُ الْكَعْبَةَ كُلَّ يَوْمِ جُمُعَةٍ بِرَطْلَيْنِ مِنْ مُجْمَرٍ :::*
   وہ کعبہ کو ہر روز ایک رطل (خُوشبُو ) سُلگا کر خُوشبُو دار کیا کرتے تھے ، اور ہر جمعہ کے دِن کعبہ کو دو رطل (خُوشبُو) سُلگا  کر خُوشبُو دار کیا کرتے تھے ،
*::::::  اِسی باب میں   أمیر المؤمنین معاویہ رضی اللہ عنہ ُ کے بارے میں  یہ بھی مذکور ہے کہ*
*كَانَ مُعَاوِيَةُ أَوَّلَ مَنْ طَيِّبَ الْكَعْبَةَ بِالْخَلُوقِ وَالْمُجْمَرِ، وَأَجْرَى الزَّيْتَ لِقَنَادِيلِ الْمَسْجِدِ مِنْ بَيْتِ الْمَالِ:::*
*سب سے پہلے أمیر المؤمنین معاویہ رضی اللہ عنہ ُ نے خَلوق ( زعفران اور دیگر خُوشبُو دار چیزوں کے مجموعے ) اور (دیگر )سلگائی جانے والی خُوشبُو کے ذریعے کعبہ شریفہ کو (باقاعدہ سرکاری سطح پر )  خُوشُبو دار کیا ،*
اور مسجد الحرام  کی قندیلوں کے لیے  بیت المال میں سے  تیل جاری کیا،
*یہ لیجیے ،‼*
الحمد للہ ، کعبہ شریفہ کو غُسل دینا، قرآن و صحیح سُنّت شریفہ سے بھی ثابت ہے،  اور صحابہ رضی اللہ عنہم اجمعین کے قول اور فعل سے بھی ،
*بلکہ صحابہ رضی اللہ عنہم اجمعین سے تو غسل دینے کے عِلاوہ خُوشبُو لگانا بھی  ثابت ہے ،*
اِس میں سال میں ایک ، دو  ، یا دس بار کی کوئی قید نہیں ، جسے *اللہ تعالیٰ* یہ شرف جتنا چاہے  عطاء فرمائے ،
پس جو کوئی کعبہ شریفہ کو غسل دینے کو قرآن و حدیث میں ثبوت کے بغیر کہتا ہے وہ  یا تو جاھل ہے، یا پھر ایسا دروغ گو  متعصب  جو اپنے مذھب و مسلک کی تائید میں غلط بیانی کرتا  ہے ۔
▫▪▪▫
*::: تیسری بات 3⃣ :::*
  ہر سال غلاف کعبہ تبدیل کیا جاتاہے جس کا قران و حدیث میں کوئی ثبوت نہیں ۔
*::::: جواب  :::::*
اس سوال کا معاملہ بھی پہلے والے سوال کی طرح ہی ہے ، یعنی، سوال یا تو جہالت  پر مبنی ہے یا جانتے بوجھتے ہوئے گمراہی پھیلانے اور اپنی بنائی اور پھیلائی ہوئی بدعات کو تحفظ دینے کی مذموم کوشش ہے ،
کعبہ شریفہ پر غلاف چڑھانا، کعبہ شریفہ  کو کپڑوں سے ڈھانپنا ، قبل از اسلام سے چلتا آ رہا تھا ،
*اور بعد از اِسلام ، فتح مکہ کے بعد رسول اللہ صلی اللہ علیہ وعلی آلہ وسلم نے بھی اِس روایت کو برقرار رکھا، اور اُن صلی اللہ علیہ وعلی آلہ وسلم کے خُلفاء راشدین ، اور دیگر صحابہ رضی اللہ عنہم اجمعین نے  بھی اِس پر عمل جاری رکھا ،*
کعبہ شریفہ پر غِلاف چڑھانے کی بہت سی  ایسی روایت میسر ہیں  جن میں  یہ  خبر ملتی ہے کہ  *رسول اللہ محمد صلی اللہ علیہ وعلی آلہ وسلم* نے، اور صحابہ رضی اللہ عنہم اجمعین نے کعبہ شریفہ پر کپڑے ڈالے ، غِلاف چڑھائے  ، اِن میں کچھ روایات صحیح ہیں  اور کچھ ضعیف ، جو کہ صحیح کی گواہ کے طور پر قابل ذِکر ہیں ، ملاحظہ فرمایے  :::
*::::::    فتح مکہ کے موقع پر رسول اللہ صلی اللہ علیہ و علی آلہ وسلم نے اِرشاد فرمایا:*
*وَلَكِنْ هَذَا يَوْمٌ يُعَظِّمُ اللَّهُ فِيهِ الْكَعْبَةَ ، وَيَوْمٌ تُكْسَى فِيهِ الْكَعْبَةُ* :::
بلکہ یہ تو وہ دِن ہے جِس دِن میں اللہ نے کعبہ کو عظمت عطاء فرمائی اور جِس دِن کعبہ کو لباس پہنایا  جاتا ہے
*صحیح بخاری /حدیث /4280کتاب المغازی /باب  48  أَيْنَ رَكَزَ النَّبِىُّ - صلى الله عليه وسلم - الرَّايَةَ يَوْمَ الْفَتْحِ،*
*::::::   رسول اللہ صلی اللہ علیہ وعلی آلہ وسلم کے چچا جان ، عباس بن عبدالمطلب رضی اللہ عنہ ُ  سے روایت ہے کہ:*
*كَسَا رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ الْبَيْتَ فِي حَجَّتِهِ الْحُبُرَاتِ:::*
رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم نے اپنے حج میں (اللہ کے) گھر کعبہ شریفہ  کو حُبرات  کا  لباس پہنایا
*مسند الحارث /کتاب الحج/باب کسوۃ الکعبہ،*
*▫لیث بن ابی سلیم رحمہُ اللہ  کا کہنا ہے کہ:*
*كَانَ كِسْوَةَ الْكَعْبَةِ عَلَى عَهْدِ النَّبِيِّ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ، الْأَقْطَاعُ وَالْمُسُوحُ :::*
نبی صلی اللہ علیہ وعلی آلہ وسلم کے دَور میں کعبہ کا غِلاف أقطاع اور مسوح کا ہوا کرتا تھا۔
*مصنف ابن ابی شیبہ /کتاب الحج /باب فِي الْبَيْتِ مَا كَانَتْ كِسْوَتُهُ،*
*أقطاع ، اور مسوح* دو مختلف کپڑوں کے نام ہیں۔
*::::::   نافع رحمہُ اللہ  مولیٰ ابن عمر  رضی اللہ عنہ ُ سے روایت ہے کہ:*
 
*كَانَ ابْنُ عُمَرَ يَكْسُو بُدْنَهُ إِذَا أَرَادَ أَنْ يُحْرِمَ الْقَبَاطِيَّ وَالْحِبَرَةَ، فَإِذَا كَانَ يَوْمُ عَرَفَةَ أَلْبَسَهَا إِيَّاهَا، فَإِذَا كَانَ يَوْمُ النَّحْرِ نَزَعَهَا، ثُمَّ أَرْسَلَ بِهَا إِلَى شَيْبَةَ بْنِ عُثْمَانَ فَنَاطَهَا عَلَى الْكَعْبَةِ:::*
جب  (عبداللہ) ابن عمر (رضی اللہ عنہما حج کے )احرام کا اِرداہ کرتے تو اپنے قربانی کے جانور پر  قباطی اور حِبرہ (نامی کپڑے  ) لگا دیتے ، اور  عرفات والے دِن وہ کپڑے اُسے پہنا دیتے ، اور قربانی والے دِن وہ کپڑے اتار دیتے اور پھر شیبہ بن عثمان (رضی اللہ عنہ ُ جو کہ کعبہ کے منتظمین تھے ) کو وہ کپڑے بھیج دیتے  تو شیبہ بن عثمان وہ کپڑے کعبہ پر لٹکا دیتے
*اخبار مکہ للأزرقی /ذِكْرُ كِسْوَةِ الْكَعْبَةِ فِي الْإِسْلَامِ وَطِيبِهَا وَخَدَمِهَا وَأَوَّلِ مَنْ فَعَلَ ذَلِكَ "،*
"اخبار مکہ للفاکھی /ذِكْرُ ما يجوز ان تكسى به الكعبة من الثياب ،
ڈاکٹر عبدالملک دھیش نے ، أخبار مكة في قديم الدهر وحديثه  میں اس روایت کو صحیح قرار دِیا ہے "
الحمد للہ یہ بھی جواب بھی پورا ہوا، اور واضح ہوا کہ کعبہ شریفہ کو لباس پہنانا ،
*غِلاف چڑھانا ، رسول اللہ صلی اللہ علیہ و علی آلہ وسلم اور صحابہ رضی اللہ عنہم اجمعین کی سُنّت شریفہ میں موجود ہے ،*
  پس جو کوئی اِس کام کو سُنّت کے مُطابق نہیں جانتا ، نہیں سمجھتا ، تو جیسا کہ پہلے کہا، وہ شخص یا تو جاھل ہے یا پھر اپنے مذھب و مسلک کی تائید میں حق پوشی کر رہا ہے ۔
▫▪▪▫
*::: چوتھی بات 4⃣ ::::*
غلاف کعبہ پر آیات لکھی جاتی ہیں جس کا قران و حدیث میں کوئی ثبوت نہیں ۔
*::::: جواب  :::::*
اِس کام کے بارے میں عُلماء کا اختلاف ہے جِس میں سے صحیح یہ ہے کہ صرف کعبہ شریفہ کے غِلاف پر آیات مُبارکہ لکھنا ، لیکن سونے چاندی سے نہیں بلکہ عام مواد سے جائز ہے
*▫کیونکہ اللہ تبارک و تعالیٰ نے فرمایا ہے:*
*وَمَن يُعَظِّمْ شَعَائِرَ اللَّهِ فَإِنَّهَا مِن تَقْوَى الْقُلُوبِ:::*
  اور جو کوئی اللہ کی طرف سے مقرر کردہ ادب کرنے والی چیزوں اور مُقامات کی تعظیم کرتا ہے تو ایسا کرنا یقیناً دِلوں کے تقوے  کا ثبوت ہے
*سُورت  الحج (22)/آیت 32،*
کعبہ شریفہ، شعائر اللہ میں سے اول و افضل ترین ہے ، پس اُس کی تعظیم کرتے ہوئے اُس کے غِلاف پر اللہ تبارک و تعالیٰ کا ہی  کلام ، یعنی قران کریم کی آیات شریفہ لکھی جانا دُرست ہے ،
*بشرطیکہ:*
اُنہیں لکھنے میں کوئی اسراف ، یعنی فضول خرچی نہ کی جائے ، لہذا ، سونے چاندی اور دیگر قیمتی مواد کا اِستعمال نہیں کیا جانا چاہیے ، عام مواد  سے لکھے جانے میں کوئی حرج نہیں۔
▫▪▪▫
*::: پانچویں بات 5⃣ :::*
مکہ مکرمہ اور مدینہ منورہ میں تہجد کی اذان ہوتی ہے جس کا قرآن و حدیث میں کوئی ثبوت نہیں ۔
*::::: جواب  :::::*
تہجد کی اذان نام کی تو کوئی چیز نہیں ہے ، یہاں غالباً فجر کی پہلے اذان کو تہجد کی اذان کہا  گیا ہے ، اور یہی اذان مکہ مکرمہ ، مدینہ منورہ اور سعودی عرب کے کئی دیگر شہروں میں دی جاتی ہے ،  اور فجر کی اِس  پہلی اذان کا ثبوت رسول اللہ صلی اللہ علیہ وعلی آلہ وسلم کی ذات پاک سے میسر ہے ، ملاحظہ فرمایے :::
*▫عبداللہ ابن مسعود رضی اللہ  عنہ ُ سے روایت ہے کہ رسول اللہ صلی اللہ علیہ و علی آلہ وسلم نے اِرشاد فرمایا:*
*♦لاَ يَمْنَعَنَّ أَحَدَكُمْ - أَوْ أَحَدًا مِنْكُمْ - أَذَانُ بِلاَلٍ مِنْ سَحُورِهِ ، فَإِنَّهُ يُؤَذِّنُ - أَوْ يُنَادِى - بِلَيْلٍ ، لِيَرْجِعَ قَائِمَكُمْ وَلِيُنَبِّهَ نَائِمَكُمْ :::*

تم میں سے کوئی  بھی بلال کی اذان پر اپنی سحری کو نہ روکے ،بلال تو (فجر کے وقت سے پہلے )  رات میں تم میں سے سوئے ہوئے کو آگاہ خبر دار کرنے کے لیے ،اذان دیتا ہے (یا فرمایا ) پکار لگاتا ہے اور اِس لیے کہ  تم لوگوں میں قیام (اللیل) کرنے والا (سحری ) کی طرف واپس  آئے۔
*صحیح بخاری /حدیث /621کتاب  الأذان /باب 13  الأَذَانِ قَبْلَ الْفَجْرِ ، ایک دو لفظ کے فرق کے ساتھ  صحیح مُسلم  /حدیث /2593کتاب  الصیام /باب 8  ،*
*امی جان عائشہ رضی اللہ عنہا سے روایت ہے کہ رسول اللہ صلی اللہ علیہ وعلی آلہ وسلم نے اِرشاد فرمایا:*
*إِنَّ بِلاَلاً يُؤَذِّنُ بِلَيْلٍ ، فَكُلُوا وَاشْرَبُوا حَتَّى يُؤَذِّنَ ابْنُ أُمِّ مَكْتُومٍ:::*
  بلال  تو (فجر سے پہلے) رات میں اذان دیتا ہے ، لہذا  تم لوگ اُس وقت تک (سحری) کھاتے پیتے رہو جن تک کہ (عبداللہ) ابن أُم مکتوم اذان نہ دے۔
*صحیح بخاری /حدیث /623کتاب  الأذان /باب 13  الأَذَانِ قَبْلَ الْفَجْرِ ، ایک لفظ کے فرق کے ساتھ  صحیح مُسلم  /حدیث /2588کتاب  الصیام /باب 8  ،*
لیجیے الحمد للہ ، رسول اللہ صلی اللہ علیہ وعلی آلہ وسلم  کے دور مُبارک میں ، اور یقیناً اُن  صلی اللہ علیہ وعلی آلہ وسلم  کی اجازت سے  فجر کی دو اذانوں کا ثبوت مہیا ہے ، اب اگر  کوئی شخص اِن احادیث کا عِلم ہی نہیں رکھتا اور بلا عِلم سوال ، و اعتراضات کرتا ہے تو اِس کا وبال اُسی پر ہے ،  اور اگر اُسے اِس کا  علم ہے  ، اور جانتے بوجھتے ہوئے فجر کی پہلی اذان کو تہجد کی اذان کا نام دے کر بات کو بدلنے کی،  حق چھپانے کی کوشش میں ہے،  تو یہ  لا عِلمی میں کی گئی کوشش سے بُرا اور بڑا وبال ہے ،
*کسی نے بہت خُوب کہا ہے کہ :::*
*اِن کُنتَ لا تدری فتلک المُصیبۃ   :::*
*و اِن کُنتَ تدری فالمُصیبۃ أعظم*
اگر تُم نہیں جانتے تو یہ ہی مُصیبت ہے  ::: اور اگر تُم جانتے ہو تو یہ اُس سے بڑی مُصیبت ہے
▫▪▪▫
*:::  چَھٹی بات 6⃣ :::*
مدارس میں ختم بخاری شریف ہوتا ہے جس کا قران و حدیث میں کوئی ثبوت نہیں ۔
*::::: جواب  :::::*
   سائل یا معترض کو ایسی بات  کرنے سے پہلے یہ سوچنا چاہیے تھا کہ صحیح  بخاری  قرآن کریم  کے نزول ، اور رسول اللہ صلی اللہ علیہ وعلی آلہ وسلم کی وفات کے کتنے سال بعد لکھی گئی تھی ؟؟؟
*تو اِس کتاب کی تعلیم سے متعلق کسی معاملے ، یا کسی محفل کا کوئی ثبوت قران و حدیث میں سے کہاں ملے گا  ⁉*
اور  یہ بھی کہ اِس بات ، سوال ، یا اعتراض میں صحیح بخاری کا ذِکر ہی کیوں ، مدرسوں اور اُن کے نظام اور ان کے تعلیمی نصاب سب ہی کچھ اِس کی زد میں آتے ہیں ،
*بہرحال ،  اِس مذکور بالا بات یا سوال میں  بات یا سوال کرنے والے کی ختم بخاری شریف سے کیا مُراد ہے⁉*
اِس کی کوئی وضاحت نہیں کی گئی ؟؟؟
اگر تو اِس سے مُراد مدارس میں  تدریسی نصاب میں سے  صحیح بخاری  کی تعلیم مکمل ہونے پر اُس تعلیم سے متعلق کوئی محفل منعقد کرنا ہے تو اُس میں کوئی حرج نہیں ، کیونکہ وہ اُسی دینی تعلیم سے متعلق ہے ،
▫▪▪▫
*:::  ساتویں  بات7⃣  :::*
سیرت النبی ﷺ کے اجتماعات منعقد ہوتے ہیں جس کا قران و حدیث میں کوئی ثبوت نہیں ۔
*::::: جواب  :::::*
 
سیرت النبی  صلی اللہ علیہ وعلی آلہ وسلم کے نام پر ہونے والے اجتماعات کا معاملہ بھی ہر ایک اجتماع  کے منعقد کیے جانے کے سبب  اور اُس میں  ہونے والے کاموں کے مطابق ہی فرداً فرداً  سمجھا جا سکتا ہے ،
*⛓مثلا:*
ً اگر کوئی اجتماع رسول اللہ صلی اللہ علیہ وعلی آلہ وسلم کی پیدائش کی خوشی  کی نسبت سے، یا کِسی خاص دِین یا خاص وقت کی  کسی نسبت  سے  منعقد کیا جاتا ہے تو وہ بدعت ہے ،
*اور اگر‼*
  کوئی اجتماع کسی خاص نسبت کے بجائے محض سیرت شریفہ کے بیان کے لیے منعقد کیا جاتا ہے اور اس میں صِرف صحیح ثابت شدہ سیرت مُبارکہ ہی بیان کی جاتی ہے اور کوئی جھوٹی ، غیر ثابت شدہ  قصہ گوئی نہیں کی جاتی ، کوئی خود ساختہ من گھڑت عبادت یا عمل نہیں کیے جاتے تو اِس میں کوئی حرج نہیں ، کیونکہ رسول اللہ صلی اللہ علیہ وعلی آلہ وسلم کی سیرت کی تعلیم دینا بھی دِین میں مطلوب و مقصود ہے ،
*::::::    اللہ عزّ و جلّ نےاِرشاد  فرمایا ہے:*
*لَقَدْ كَانَ لَكُمْ فِي رَسُولِ اللَّهِ أُسْوَةٌ حَسَنَةٌ:::*
یقیناً تم لوگوں کے لیے اللہ کے رسول (کی زندگی مُبارک) میں سب سے بہترین نمونہ ہے
*سُورت الاحزاب 33/آیت 21،*
*::::::   اور رسول اللہ صلی اللہ علیہ وعلی آلہ وسلم نے اِرشاد فرمایا ہے:*
*مَن أَطَاعَنِی دَخل الْجَنَّۃَ وَمَنْ عَصَانِی فَقَدْ أَبَی:::*
جو میری بات پر عمل کرے گا وہ جنّت میں داخل ہو گا اور جو میری بات نہیں مانے گا وہ اِنکار کرنے والا ہے۔
*صحیح البُخاری/کتاب الأعتصام بالکتاب و السُنۃ /باب 2 کی حدیث5،*
*::::::   اِس کے عِلاوہ  رسول اللہ صلی اللہ علیہ وعلی آلہ وسلم کی ز ُبان مُبارک سے اللہ تعالیٰ نے یہ فیصلہ بھی اعلان کروا دِیا:*
*♦لا یؤمِنُ أحدُکُم حَتیٰ  یِکُونُ  ھواہُ  تَبعاً  لِمَا  جِئتُ  بِہِ:::*
تُم سے کوئی اُس وقت تک اِیمان والا نہیں ہو سکتا جب تک اُسکی خواہشات میری ساتھ آئی ہوئی چیز (یعنی کتاب اللہ اور سُنّتِ رسول اللہ صلی اللہ علیہ و علی آلہ وسلم)کے مُطابق نہ ہوں جائیں
*شرح السُنّہ،اِمام بغوی رحمہُ اللہ ، امام النووی رحمہُ اللہ """الاربعین"""میں کہایہ حدیث صحیح ہے اور ہم نے اسے"""الحجۃ"""میں نقل کیا ہے،*
*♦::::::   اور رسول اللہ صلی اللہ علیہ وعلی آلہ وسلم نے یہ بھی  اِرشاد فرمایا ہے کہ*
*فَمَنْ رَغِبَ عَنْ سُنَّتِى فَلَيْسَ مِنَّی:::*
لہذا جِس نے میری سُنّت سے منہ ُ پھیرا وہ مجھ  میں سے نہیں ۔
*صحیح بخاری حدیث/5063 کتاب النکاح/پہلا باب ، صحیح مُسلم /حدیث/3469کتاب النکاح/پہلا باب ،*
  
اِس معنی اور مفہوم کی اور بھی کئی صحیح ثابت شدہ احادیث مُبارکہ ہیں ،
 
رسول اللہ صلی اللہ علیہ وعلی آلہ وسلم کی  سیرت شریفہ ،  جس میں نبی اکرم صلی اللہ علیہ وعلی آلہ وسلم کے اقوال مُبارکہ یعنی حدیث شریف ، اور افعال مُبارکہ یعنی سُنّت شریفہ شامل ہیں ،   اور اُن صلی اللہ علیہ وعلی آلہ وسلم کے دِن رات کے معمولات کی خبریں ہیں ،
*اُسے سیکھے بغیر اُمت  اپنے رسول کریم محمد صلی اللہ علیہ وعلی آلہ وسلم کے أسوہ حسنہ کو کس طرح سیکھ سکتی ہے ⁉*
*اُن صلی اللہ علیہ وعلی آلہ وسلم کی أطاعت اور نافرمانی کا فرق کیسے سمجھ سکتی ہے⁉*
لہذا اُمت کو اُس کے رسول کریم محمد صلی اللہ علیہ وعلی آلہ وسلم کی سیرت  سکھانا قران و حدیث سے خارج نہیں ، بس سیرت کے نام پر صحیح سیرت ہی سکھائی جائے ،خود ساختہ بدعات ، اور جھوٹے غیر ثابت شدہ روایات ، اور قصے کہانیاں نہ سنائی جائیں ۔
▫▪▪▫
*:::  آٹھویں  بات 8⃣ :::*
  ہر سال تبلیغی اجماع ہوتا ہے اور چلے لگائے جاتے ہیں جس کا قران و حدیث میں کوئی ثبوت نہیں ۔
*::::: جواب  :::::*
جی ، تبلیغی اجتماع اور اس کے چِلّے ، اور اُس کےعِلاوہ بھی تمام تر چِلّے دِین میں کوئی دلیل نہیں رکھتے ، اِن سب کاموں سے باز رہنا چاہیے ۔
▫▪▪▫
*:::  نویں   بات 9⃣ :::*
صحابہ کرام علیہم الرضوان کے  وصال کے ایام منائے جاتے ہیں جس کا قرآن و حدیث میں کوئی ثبوت نہیں ۔
*::::: جواب  :::::*
 
یہ بھی دُرست ہے ، کہ صحابہ کرام رضی اللہ عنہم اجمعین کے ، بلکہ کِسی بھی ہستی کے یوم پیدائش یا یوم وفات کو منانے کی قرآن و حدیث میں کوئی دلیل نہیں ،
*یہ سب بدعات ہیں اِن  سے بہر صُورت باز  ہی  رہنا  چاہیے ۔*
▫▪▪▫
*::: دسویں   بات  :::* جشن دیو بند و اہلحدیث منایا جاتا ہے جس کا قران و حدیث میں کوئی ثبوت نہیں ۔
*::::: جواب  :::::*
 
اِس جشن بازی کی بھی کوئی وضاحت نہیں کی گئی کہ ، اس سے کیا مُراد ہے ؟؟؟
اگر تو یہ جشن کسی جماعت ، کسی گروہ ، کسی مدرسے کی سالگرہ کے طور پر منائے جاتے ہیں تو غلط ہیں ، مزید بات اسی وقت کی جا سکتی ہے جب ان کی تفصیل بتائی جائے ۔
▫▪▫▪
*::: گیارہویں بات  1⃣1⃣ :::*
ذکر *میلاد ِ مصطفے ﷺ* منانے کا کسی صحابی، ائمہ  یا محدث نے منع کیا ہو  اسکا بھی کوئی ثبوت نہیں ۔
*لیکن‼*
جیسے ہی *میلاد النبی ﷺ* منانے کی بات آ جائے تو سارے نام نہاد دِین کے ٹھیکیدار مفتے کھڑے ہو جاتے ہیں  اور شرک و بدعت کا شور آلاپنا شروع کر دیتے ہیں ۔ آخر کیوں ؟
*::::: جواب  :::::*
  
کیا  ہی بھونڈی ، بے تکی بات ہے ، ارے صاحب منع تو تب کرتے جب اُن کے زمانے میں یہ  میلاد ہوتی ، یہ بات ، یا سوال ، یا اعتراض تو اُلٹا میلاد منانے والوں پر حُجت ہے ،
*♦اِس سے یہ ثابت ہوتا ہے کہ صحابہ رضی اللہ عنہم اجمعین ، تابعین ، تبع تابعین ، أئمہ محدثین و فقہا کرام رحمہم اللہ جمعیاً کے زمانوں میں بھی یہ میلاد نہیں ہوتی تھی ،*
پس  کسی شک و شبہے کے بغیر یہ بدعت ہے،
*♦گیارہویں بات کے آخر میں بھی سوال یا اعتراض کرنے والے نے  بالکل غلط بات کہی ہے ، میلاد النبی صلی اللہ علیہ وعلی آلہ وسلم سے منع کرنے والے مُفتے نہیں  ہیں ،*
بلکہ مُفتے تو  وہ ہیں جو میلاد کے نام پر لوگوں کے پیسے بٹورتے ہیں اور اپنے پیٹ ، جیبیں اور گھر بھرتے ہیں ، اور اپنے نام  و القابات کی نمود کے لیے لوگوں کا مال استعمال کرتے ہیں ، اور  اپنے ساتھ ساتھ  لوگوں کی آخرت تباہ کرتے ہیں ۔   
*▫و السلام علیکم و رحمۃ اللہ و برکاتہ*
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*پیشکشں:*

*ابو سعد حافظ عبدالقیوم شیخ

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Eid Miladunnabi (12 RabiAwwal) Mnane ke Dalail Aur Hmara Jwab.

Eid Miladunnabi (12 RAbiawwal) Manane Walo ka Dalai Aur Hmara JAwab


DALIL NO 1⃣
Quran Se Dalil- “Allah ke fazal Aur rehmat par khushian manao. 
A͓̽L͓̽-͓̽J͓̽A͓̽W͓̽A͓̽A͓̽B͓̽:-
                        Agar Iss Ayat Ki Tafseer Kuch Aur Paye Jaye To Barelwiyo Ki Qiyas Batil Hoge… Aye dekhte hain iss ayat ki tafsir Jamhoor mufassireen kya karte Hain
Iss ayat mein fazal se murad ISLAAM hai Aur Rehmat se murad QURAN hai

(Zad ul mesar Lil Ibn Jauzi Jild 1,Safa 31
Durre Mansoor Lil Suyuti jild 4, Safa 368
Tafseer Tabri Jild 7, Safa 161
Fathul Qadeer Lil Shaukani Jild 2, Safa 56
Tafseer Jalalain Safa 175

Tafseer Ibn Kaseer Jild 2,Safa 382
Tafseer Raazi Jild 9,Safa 124
Yahi  Tafseer Barelwi Alim Ne Bhi Ki Hai Naeemuddin Muradabadi  sahab Apni Kitab Khazainul Irfan Safa 387
(Note :- ye jab ham barelwi Hazrat Ko Qur'an ki ayat Pesh karte hain to wo hame khaas Taur par tafaseer e jalalain  se dikhane Ko kehte hain isme hamne unka bhi shauk poora Kiya hai aur mazeed  imaam  Jalaluddin siyuti, imaam shaukaani koi Anjaan name nahi hai ahnaaf ke bade ulama me Inka shumaar hota hai)
Chunanche Yeh Dalil Sirre Se Barelwiyon Ki Banti He Nahi Agar Tafseer Ke Lehaz Se Dekha Jaye To Aur Tafseer E Quran Hujjat Hoti Hai Yeh Baat Barelwi Logo Ko Bhi Pata Hai Magar Yaha Woh Pesh Karda Ayat Ki Tafseer Pesh Kyu Nahi Karte❓
DALEEL NO-2⃣
Jab Aaqa (pr durood o salam) Hijrat Kar Ke MADINA Sharif Aaye,Toh Logon Ney Khoob Jashan Manaya Nojawan Larkey Apni Chatton Par Charh Kar Aur Gulam, Khuddam Raasto Me Phirte The, Aur Nara’Aey Risalat Lagate Aur Kehte YA RASOLALLAH…‼

Sahih Muslim Jild 2,Safa 419
A͓̽L͓̽-͓̽J͓̽A͓̽W͓̽A͓̽B͓̽:-
                     Awwal To Yeh Ke Yeh Hijrat Ka Jashan Tha Na Ke Wiladat Ka Jo Barelwion Ne Apna Dalil Banaya Hua Hai‼
Duja Yeh Ke Aisi Dalil Hai He ke na to Aap ﷺ  Ne aur na hi Sahaba Ne Milad Ka Huqam Diya   Hai ‼
Bidat Har wo Naya kam hai, jisko deen samaj kar Aur lazim jante huye kiya jaye jo nabi-e-pak ﷺ  Aur sahaba se sabit na ho wo Biddat hai‼

Fathul Baari Sharh Sahih Bukhari 5/321,  Sahih Bukhari 1/371, TafseerIbne Kasir 4/156
DALEEL NO3⃣
Huzoor Alehissalam Har Peer (Monday) ko Roza Rakh kar Apna Milad Manate The‼

Sahih Muslim Jild 2,Safa 819,Hd.no-1162
A͓̽L͓̽-͓̽J͓̽A͓̽W͓̽A͓̽B͓̽'-
                 Awwalan baat to  Ye hai ke ye  Hadees Adhoori naqal ki gaye hai Isse aage yeh bhi hai Ke“Aur iss din mujpar quran nazil hua”Chunanche Quran Nazil Honeke Wajah Se Allah Ke Rasool Ne Roza Rakha Tha‼
Lehaza Barelwion Ko Bhi Chaiye Ke Harr Hafta Peer Ke He Din Roza Rakhe Jaise Aap ﷺ  Rakhte The Na Ke 12 Rabbiul Awwal Ke Din Ko Maksoos Thehraana Aur Usi din To Barelwi Hazrat Khub Masti Karte Hain‼
DALIL NO4⃣
Huzoor Alehissalam Ne Apni Wiladat ki Khushi me Bakra Zibha Farmaya‼

Al Haawi Lil Fatawa Jild 1, Safa 196
A͓̽L͓̽-͓̽J͓̽A͓̽W͓̽A͓̽B͓̽:-
                     Ye Hadees Zaeef Hai, Munqate He Jo khud  Imam Suyuti Ne Kaha He Iss Kitab Me…Dusra Yeh Amal Mustaqil Allah Ke Rasool S.A.W Ka Amal He Jo Rasul S.A.W Par Maksoos He Jaise Nabion Par Tahajjud Ki Namaaz Farz Hai‼

Muwatta Imam Malik
Issi Tarah nabi e Rehmat ﷺ  Ne 11 Shaadiya Ki Hain,Issi Tarah Rasool ﷺ  Sokar Uthte To Wazu Na Karte Hain‼

Chunanche Agar Yeh Amal nabi ﷺ  Ne Ki Hai To Yeh Maqsoos Amal Hai Unke Liye Lehaza ummati wo  Kyun Kare Jiska Huqam Hi Rasool Allah ﷺ  Ne Nahi Diya❓
Aur bilfarz ye Maan bhi  loya jayeYeh Zibah Karne Ka Qaul Sahi He To Mujhe ye  Batayen Ki Kis Sahabi E Rasool Ne Milad Ke Din Bakra Zibah Kiya❓
DALIL NO5⃣
Abu Lahab Jab Mara To Kisine Khwaab Me Dekh Ke Pocha Tum Kis Halat Me Ho❓
Abu Lahab Ne Kaha Tumhare Baad Koi Bhalai Nai Payi Lekin Har Peer Ko Uss Ungli Se Pani Diya Jata Hai Jisse Mere Bhateejeh (Rasool Ullah S.A.W) Ki Pedaish ki Khushi Me Sowebia(Kaniz) Ko Azad Kya Tha‼

Sahih Bukhari Kitabul Janaiz
Lehaza Jab Kafir Nabi S.A.W Ke Paidaish Ke Din Koi Nek Amal karke Bhalai Pa Sakta Hai To Musalman Kyu Nahi❓
A͓̽L͓̽-͓̽J͓̽A͓̽W͓̽A͓̽B͓̽:-
                      Yeh Hadees Quran Ke Khilaff Hai Kyuki ﷻ آللہ  Qur'an me  Farmata hai:-
تَبَّتۡ یَدَاۤ  اَبِیۡ  لَہَبٍ وَّ  تَبَّ ؕ﴿۱﴾
   Tarjuma :-Abu Lahab ky dono hath toot gaye aur who ( khud ) halak ho gaya‼
Surah tabbat surah no 111, ayat no 2
Ab Agar Abu Lahab Ke Hath He Akhirat Me Toot Chuka Hai To Ab Wo Pani Kese Pi Sakta Hai Apni Ungli Se❓

Dusra Jawab Yeh Hoga Ke Yeh Hadees Me Eid Miladun Nabi Manane ka Suboot Nahi Na He Huqam Hai‼
Agar Itna Hi Zidd He Iss Hadees Par Amal Karne ki To barelwi Hazrat Ko chahiye ke ap log Rabi UL Awwal me 4 peer to ayenge hi har Shaqs 4 na saheh   1 hi  Gulam azaad kar de ‼

Teesra Ye Ke hadees Bayaan Karne Wale Hazrat Ibn Abbas Razi Allahu Tallanhu Hai Jinhone Yeh Khuwab Dekha Tha Aur Yeh Haal Tab Ka Tha Jab Wo Musalman Na Huwe The‼
  Ar ye hadees sanad ke Aitbaar se bhi Saheh  Nahi ye Mursal He Raavi Ka Ibn Abbas Raz Se Mulakat Sabit Nahi‼
Wallahu Alam......
Wama Alaina illal balaagh
Allah se dua hai ke wo hame kehne sunne se zyaada amal ki taufeek ata farmaye ameen

D͓̽a͓̽n͓̽i͓̽s͓̽h͓̽ A͓̽n͓̽s͓̽a͓̽r͓̽i͓̽
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Shirak Ki Halat Me Khatma.

Shirk ki halat mein khatima.

Hazrat Anas Radi-Allahu-Anhu se Riwayat Hain ke Ek shaks ne Arz kiya: Allah ke Rasool! Mere Walid Kaha hain❓ Aap Sallallahu Alaihi wasallam ne farmya: Tumhare walid Jahannam mein hain. Jab wo peeth pher kar chala to Aap Sallallahu Alaihi wasallam ne farmaya " Mere walid aur Tere walid dono Jahannam mein hain.*
*{Sunan Abi Dawud 4718}*
*Anas (RadiAllahu anhu) se rivayat hai ki ek aadmi ne arz kiya, yhe Allah ke Rasoollallah (Sallallahu Alaihi Wasallam), Mere Baap (Father) kaha hai❓*
*Aap Rasoollallah Sallallahu Alaihi Wasallam ne Farmaya dozakh mai, Jab vo admi wapas jane laga to Aap Rasoollallah Sallallahu Alaihi Wasallam ne us ko bolaya or phir farmaya ke mere baap or tere baap dono dozakh mai hai.*
*{Sahih Muslim Vol 1,H-500}*
*Wazahat*
*Isse ye malum hota hai ke insaan ke liye Tauheed, Wahdaniyat ki kitni Ahmiyat hai.Tauheed ke bagair insaan ki zindagi be-mani Hai. Jis ka khatima Tauheed ke bagair ho, chahe wo Nabi ke Walid ho, ya Nabi ke Maa ho, ya Nabi ki biwi ho, ya Nabi ka beta ho, ya Nabi ke chacha ho, chahe kitni bhi badi motabar shaksiyat ho, unka thikana jannam hai. jo Allah Ta'ala ki Wahdaniyat ko nai pehchana Allah ke Nazdeek uski koi Ahmiyat Nahi hai..*
*Aur isse ye baat bhi malum hoti hai ke Nabi Sallallahu Alaihi wasallam ki sifarish bhi unhi logon ke liye hai jinka khatima Tauheed par hota hai, jo shaks Allah Ta'ala ki zaat, sifaat,Ibadah me kisi doosre ko bhi shareek tehrata hai Matalb Allah par Imaan Rakhta hai ke Allah Aulaad ka Rizzaq ka, Maal ka, naam, shohrat ka dene wala hai aur bimariyon ko shifa karne wala hai.,*
*Aur saath saath ye bhi imaan rakhta hai ke, Nabi, sahabi, wali, ya peer faqeer ya koi baba bhi ye sab kuch dete hai, aisa Aqeeda aisa imaan Rakh kar tauba ke bagair is duniya se jayega to uski sifarish bhi Nabi Sallallahu Alaihi wasallam nahi karenge..is liye ke Allah ta'ala ke Nazdeek sab se Aham chiz Tauheed hai. Allah ta'ala ko ek jaanna ek maanna aur sirf usi ki ibadat karan..*

*Allah ta'ala hum sab ka khatima Tauheed par kare.*
*Aameen ya Rabbal Aalemeen.

Shirk Aur USke Aqsaam, Kind Of Shirk 

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