मुस्लिम नाम आते ही लोगों के सोचने का ढंग बदल जाता है आतंकवादी, बेरहम , कट्टरवादी ना जाने कैसे केसे लकब से नवाजा जाता है. इनको कुछ भी कहो मगर ये अपने माँ बाप को ओल्डएज होम नही भेजते बुरा सुलूक नही करते बल्कि उनके कदमों के नीचे जन्नत मानते हैं ओर उनके साये से खुद को महफ़ूज़ समझते हैं.
इस्लाम एक ऐसा धर्म है जिसके बारे में समाज में तरह तरह की बातें फैली हुई हैं जिनमे से अधिकतर या तो इसे बदनाम करने के लिए फैलाई गयी हैं या कुछ खुद को पैदायशी मुसलमान कहने वालों की अज्ञानता के कारण फैली हैं | वैसे भी अच्छे को बुरा साबित करना दुनिया की पुरानी आदत है |
इस्लाम को बुरा साबित करने की कोशिश करने वालों का मुह बंद करने का आसान तरीका यह है कि इसके बताये कानून पे ईमानदारी से चलके दिखाओ |
इस्लाम धर्म आदम के साथ आया और इसके कानून पे चलने वाला मुसलमान कहलाया |अज्ञानी को ज्ञानी बनाने का काम इस्लाम ने किया | इंसान को अल्लाह ने बनाया और जब हज़रत आदम को दुनिया में भेजा तो कुछ कानून उन्हें बताये. जैसे कि कैसे जीवन गुजारो ?
ऐसे ही तकरीबन एक लाख चौबीस हज़ार पैगम्बर आय और अल्लाह उनके ज़रिये इंसानों को इंसानियत का पैगाम देता रहा | एक इंसान में इर्ष्या ,हसद,लालच,जैसी न जाने कितनी बुराईयाँ हुआ करती हैं और इनपे काबू करते हुई जो अपना जीवन गुज़ार देता है सही मायने में इंसान कहलाता है या कहलें की सही मायने में मुसलमान कहलाता है |
यह तो कुछ लोगो ने समाज में फैला दिया है की नमाज़ ,रोज़ा ,हज्ज ,दाढ़ी,का नाम मुसलमान है|
जबकि मुसलमान नाम है इस्लाम के बताये कानून पे चलने का और यह कानून बताते हैं की, लोगों पे ज़ुल्म न करो ,इमानदार रहो ,इर्ष्या ,हसद और लालच से बचो|
इस्लाम अपराध करने वाले जालिमो का साथ देने,उनसे सहानभूति करने वालों और ज़ुल्म देख के चुप रहने वालों को भी अपराधी करार देता है |आप कह सकते हैं की इस्लाम न अपराध करने वालों को पसंद करता है और न ही अपराध को बढ़ावा देने वालों को पसंद करता है |
यह फ़िक्र करने की बात है कि इंसानियत का सबक सिखाने वाला इस्लाम आज आतंकवादियों के शिकंजे में कैसे फँस गया ?
इंसान की फितरत है की वो दौलत, शोहरत ,ऐश ओ आराम के पीछे भागता है और अल्लाह कहता है की इसके पीछे न भागो वरना ज़िन्दगी जहन्नुम बन जाएगा |
हमें बात समझ नहीं आती और हम लगते हैं दूसरों का माल लूटने, दहशत फैलाने , बलात्कार करने और नतीजे में इंसानियत का क़त्ल होता जाता है |
पैगम्बर इ इस्लाम हज़रत मुहम्मद ﷺ के इस दुनिया से जाने के बाद ऐसे बहुत से ताक़तवर लोग थे जिनका मकसद था दौलत, शोहरत ,ऐश ओ आराम हासिल करना और वही लोग ताक़त और मक्कारी के दम पे बन बैठे इस्लाम के ठेकेदार |
नतीजे में हक की राह पे चलने वाले मुसलमानों और गुमराह करने वाले मुसलमानों में आपस में जंग होने लगी |
कर्बला की जंग इसकी बेहतरीन मिसाल है |
जहां एक तरफ यजीद था जो मुसलमानों का खलीफा बना बैठा था और दुनिया में आतंक फैलता नज़र आता था|
ज़ुल्म और आतंक की ऐसी मिसाल आज तक नहीं देखने को मिली | और दुसरी तरफ थे पैगम्बर इ इस्लाम के नवासे इमाम हुसैन (अ.स) जिन्होंने दुनिया को सही इस्लाम सिखाया, इंसानियत और सब्र का पैगाम दिया | नतीजे में उनको जालिमो ने शहीद कर दिया |
आज भी इस समाज में खुद को मुसलमान कहने वाले दो तरह के लोग हुआ करते हैं |
एक वो जो नाम से तो मुसलमान लगते हैं ,नाम,रोज़ा ,हज ,ज़कात के पाबंद दिखते तो हैं लेकिन इस्लाम के बताये कानून पे नहीं चलते | यह वो लोग हैं जो इस्लाम का साथ तभी तक देते हैं जब तक इनका कोई नुकसान न हो |
जैसे ही इनके सामने दौलत ,शोहरत आती है यह इस्लाम के बताये कानून को भूल जाते हैं और जब्र से,मक्कारी से,झूट फरेब से दौलत,शोहरत को हासिल कर लिया करते हैं | कुरान मे�� इन्हें मुनाफ़िक़ कहा गया है और इनसे दूर रहने का हुक्म है |
ऐसे फरेबियों का हथियार होते हैं समाज के अज्ञानी लोग |
एक उदाहरण है इस्लाम में परदे का हुक्म| यह सभी जानते हैं की औरत के शरीर की तरफ मर्द का और मर्द के शरीर की तरफ औरत का आकर्षित होना इन्सान की फितरत है | इसी वजह से इस्लाम में इसको उस वक़्त तक छुपाने का हुक्म दिया है जब तक की दोनों को एक दुसरे से शारीरिक सम्बन्ध न बनाना हो |
इस्लाम में शारीरिक सम्बन्ध बनाने के भी कुछ कानून हैं |
शायरों को भी कहते सुना जाता है की “चेहरा छुपा लिया है किसी ने हिजाब में,जी चाहता है आग लगा दूँ नक़ाब में |
इसका मतलब साफ़ है की पर्दा उसे बुरा लगता है जो औरत के शरीर को खुला देखना चाहता है।
इस्लाम में एक दुसरे का “महरम” उसे कहते हैं जिसके साथ शादी न हो सके .जैसे माँ ,बहन,बेटी,दादी,नानी इत्यादि | और जिसके साथ शादी हो सकती है उसे “नामहरम”कहते हैं और नामहरम का एक दुसरे से शरीर का छिपाना आवश्यक है |
संसार की सभी सभ्यताओं में ऐसा ही कानून है बस इस परदे का अलग अलग तरीका है |
वोह औरतें या मर्द जो जानवरों की तरह कहीं भी ,कभी भी, किसी से भी ,शारीरिक सम्बन्ध बना लेने को गलत नहीं समझते यदि अपने शरीर का प्रदर्शन करते दिखाई दें तो बात समझ में आती है लेकिन आश्चर्य तो उस समय होता है जब वो लोग जो इस्लाम के कानून को मानने का दावा करते हैं अपने शरीर का प्रदर्शन करते नजर आते हैं|
कई बार तो महरम और नामहरम की परिभाषा भी यह बदल देते हैं |कभी किसी नामहरम के करीब जाते हैं तो कहते हैं बेटी जैसी है, कभी कहते हैं बहन जैसी है |
वहीं इस्लाम कहता है यह नामहरम है इस से पर्दा करो |
“अल्लाह ओ अकबर “ का नारा लगाने वाले ऐसे दो चेहरे वाले मुसलमानों के यहाँ होता वही है जो यह चाहते हैं या जो इनका खुद का बनाया कानून कहता है।
क्योंकि सवाल नामहरम औरत की कुर्बत का है| अल्लाह कहता है दूर रहो ,इंसान का दिल कहता है औरत के करीब रहो |जीत इन्सान के दिल की गलत ख्वाहिशों की होती है और नतीजे में कभी बलात्कार होता है कभी व्यभिचार होता है।
जब औरत के शरीर के करीब रहने की लालच इंसान को अल्लाह से दूर कर देती है, इस्लाम के कानून को भुला देता है तो दौलत और शोहरत की लालच के आड़े आने वाले इस इस्लाम के कानून को भुला देने में कितनी देर लगेगी |
यदि आप को यह पहचानना हो कि यह शख्स इस्लाम को मानने वाला है या नहीं |
मुसलमान है या नहीं ? तो उसके सजदों को न देखो, न ही उसकी नमाज़ों को देखो बल्कि देखो उसके किरदार को ,उसकी सीरत को ,और यदि वो हज़रत मुहम्मद (स.अ.व) से मिलती हो,या वो शख्स समाज में अमन और शांति फैलाता दिखे या वो शख्स इंसानों में आपस में मुहब्बत पैदा करता दिखे तो समझ लेना मुसलमान है.
सलात (नमाज) रोज़ा यह सब इस्लाम की बुनियादी चीजें है इसलिए यह बहुत ही जरूरी है कयामत के दिन सबसे पहले नमाज का ही सवाल होगा फिर बाद में कुछ और होगा, पांच वक़्त का नमाज फ़र्ज़ है इसलिए हमें अफजल वक़्त पे नमाज अदा करनी चाहिए मगर नमाज ही क्यू हमें अपने नबी जैसा अखलाक भी बनाना चाहिए और वैसा किरदार भी यह बहुत ही जरूरी है।
अल्लाह हम सब को अपने नबी के सीरत पे चला, हमें नेक और पक्का सच्चा मुसलमान बना। आमीन सूम्मा आमीन
ज़ालिम,नफरत का सौदागर कभी मुसलमान नहीं हो सकता |
बुरा इस्लाम नहीं बल्कि उसका इकरार करने के बाद भी उसके कानून को ना मानने वाला इंसान है |
कहीं टाइपिंग में गलत हो गया हो तो कमेंट जरुर करे सुधार कर दिया जायेगा।