Duniya ka Double standerd Palestine ke mamle par.
السلام علیکم ورحمتہ اللہ وبرکاتہ
ऐ ईमान वालो तुम यहूदियों और नासराणियो को यार व मददगार न बनाओ, ये दोनो खुद ही एकदूसरे के यार ओ मदद गार है। और तुम मे से जो शख्स उनकी दोस्ती का दम भरेगा तो फिर वह उन्ही मे से होगा। यकिनन अल्लाह जालिम लोगो को हिदायत नही देता।
शायद अरबो और दूसरे मुस्लिम हुकमरानो ने ये हदीस को भुला दिया और दौर ए ज़दीद मे खुद को आज़ाद ख्याल, मॉडर्न, सेकुलर कहलाने के लिए उन्ही के सफो मे खड़े हो गए जहाँ मुसलमानों के खिलाफ सिर्फ साजिशे की जाती है।
इसी भूल का नतीजा इस्राएल का वजूद मे आना, फिलिस्तीन के लोगो का खून बहना, ग़ज़ा पर दहशत गर्द इस्राएल का बॉम्बारी, हॉस्पिटल, स्कूल और पब्लिक पैलेस पर मिसाइल मारना है।
फिलिस्तीन पर EU, UN, USA, UK, लिबर्ल्स व दुनिया का दोहरा मापदंड क्यो?
कैसा लगे गा अगर तुम्हारे घर पर मैय्यत पड़ी हो, माँ बाप, भाई बहन, शौहर बीवी बच्चे बोम्बारी कर के मार दिये जाए और बगल के घर मे शादी की गीतें लगाई जा रही हो, ठुमके लगाए जा रहे हो।
यह बिल्कुल ऐसा ही है जैसे आज 8 दिनों से फिलिस्तीन मे मजलुमो पर गोलिया चलाई जा रही है। पानी, बिजली, खाना, इंटनरेट सब कुछ बंद कर दिया गया हो, मजिदो पर बॉम्ब गिराया जा रहा हो, अस्पताले मुर्दा घर बना हो। पुरा शहर पे क़यामत बरपा हुई हो।
ग़ज़ा पर बॉम्ब गिराया जा रहा है और यहाँ के मुसलमान क्रिकेट देखने मे मसरूफ है। याद रखो अगर तुमने आज ग़ज़ा के लोगो को नज़र अंदाज किया है लेकिन वह तो शहीद हुए मगर तुम्हारा ठिकाना क्या होगा तुम्हे खुद मालूम नही।
कब तुम्हारा लिंच कर दिया जायेगा झूठा बीफ के इल्ज़ाम मे, कब तुम पर दहशत गर्द का इल्जाम लगाकर सारी उम्र जेलो मे रखा जायेगा कोई खबर गिरी करने वाला भी नही होगा।
कब JSR के नारे लगवाए जायेंगे और तब्रेज़ अंसारी के जैसा मौत नसीब होगी मालूम नही होगा। फिर उस वक़्त दूसरे जगह के मुसलमान tv और रीलस मे मसरूफ होंगे।
तुम्हारे मौत पर मातम मनाने वाला भी कोई नही होगा, मौत किसकी किस हाल मे होगी पता नही।
चौक्के और छक्के पर तालियां लगाने वालो अपने ईमान का जायेज़ ले, क्या हमारी गैरत मर गयी है?
क्या हमारा ज़मीर मर गया है?
क्या हम ज़मीर फरोश बन गए?
क्या हम मुसलमान कहलाने लायक है?
Western (Christnity) Ideology:
1) Ukraine has the right to defend
2) Israel has the right to invade
आज यहूद वो नसारा मुसलमानो के खिलाफ एकजुट है, लेकिन मुसलमान मुसलमानो के साथ खडा नही, मस्ज़िद ए अक्सा के साथ नही।
अमेरिकी सदर बाइडन ने अपने इसराइल दौरे की शुरुआत दुनिया के सामने यह दिखाते हुए की के अमेरिका यहूदियों के साथ खड़ा है. यह लिखे जाने तक अब तक अमेरिका के विदेश मंत्री, और सदर, ब्रिटेन के वज़ीर ए आज़म और ईसाई देशो का बनाया हुआ तंजीम EU (यूरोपियन यूनियन) की सदर इस्राएल का दौरा कर चुकी है। यानी ईसाइयों के नेता इस्राएल को यह महसूस कराना चाहते है के हमसब आप के साथ है।
अमेरिका ने एक बार फिर खुद को इंसानियत के ख़िलाफ़ वाले खेमे में खड़ा किया है. ये शर्म की बात है कि उनसे कई ज़िंदगियां बचाने के इनकार कर दिया है."
इससे पहले दहशतगर्द इस्राएल ने अमेरिकी सदर का इस्तकबाल करने की खुशी मे ग़ज़ा के एक बैप्टिस्ट हॉस्पिटल पर बॉम्बारि किया जिसमे 900+ मासूमो की जानें गयी और बेशुमार ज़ख़्मी हुए।
अमेरिकी सदर Jospeh Biden जिसके स्वागत मे इस्राएल ने ग़ज़ा के एक हॉस्पिटल पर मिसाइल मारा जिसमे 900 से ज्यादा मरीज, डॉक्टर, नर्स शहीद हुए।
इजरायली नरसंहार को ईसाई देशों का समर्थन हासिल है, US के सेनाटर् इस क़तलेआम को "Holly war" बता रहा है, वह इसे इस्लाम और मुसलमानो के खिलाफ क्रुशेड कहता है लेकिन तथाकथित इंसानी हुकूक और लोकतन्त्र का रक्षक इस पर न सिर्फ खामोश है बल्कि इसका साथ भी दे रहा है। क्या आज कोई इसे यहूदि आतँकवाद या ईसाई आतँकवाद कह सकता है?
Israel is terrorist state.
IDF is terrorist Orgnization.
Netanyahu is Head of Terrorist
USA is Terrorist Suppliar
NATo is Major Factory of Terrorist.
UK is Mother of Terrorist.
Europe are Mastermind of Terrorist.
ईसाई मुमालिक ने सफतौर पर 1948 से इस्राएल का साथ देते आया है। 1948 मे ब्रिटेन ने इस्राएल नाम का एक नजाएज़ मुल्क अरबो की ज़मीन पर बनाया और वहा दुनिया भर से यहूदियों को ले जाकर यहूदि बस्तियाँ बसाई जा रही है , फिलिस्तीन के लोगो को उनके ही ज़मीन से भगाया जाने लगा। लेकिन अरबो की सियासत का तर्ज नही बदला, जिसने अरबो की ज़मीन पर कब्ज़ा करके यहूदियों को बसाया और जब जब फिलिस्तीन के लोगो पर ज़ुल्म होता है यूरोप का ईसाई देश हर तरह से इस्राएल की मदद करता है।
लेकिन ये सबके बीच अरब मुमालिक किधर है?
फिलिस्तीन मसला अरबो के सियासी नाकामी और अपाहिज तरिक ए हुकूमत का नतीजा है।
कहाँ है वह अरब मुमालिक, जिन्हे मुसलमानो का रहबर बनने का शौक है?
ओआईसी में जो 57 मुमालिक हैं, उसमें आधे से ज्यादा अमेरिका के बहुत क़रीबी दोस्त हैं. फिर वो तुर्की, पाकिस्तान, इंडोनेशिया, बांग्लादेश, जॉर्डन, सऊदी अरब, UAE, मिस्र, मोरक्को. ये लंबी लिस्ट है.
अरब के हुकमराँ फ़लस्तीनियों के समर्थन में कुछ बोलकर रस्मअदायगी कर लेते हैं. जहाँ तक तुर्की की बात है तो उसने सबसे पहले इस्राएल को तसलीम किया था, अरबो के पास धन है बल नही। अरबो की अय्याशी, आराम पसंद की वज़ह। से आज फिलिस्तीन गुलाम है यहूदियों का।
सऊदी अरब ख़ुद को मक्का-मदीना का रखवाला बताता है. ओआईसी का दफ्तर भी जेद्दा में है. ईरान ही ऐसा देश है जिसकी नीति हमेशा से फ़लस्तीन के पक्ष में और इसराइल के ख़िलाफ़ रही है."
सऊदी अरब के आम लोगों की हिमायत फ़लस्तीनियों के साथ बहुत ही मज़बूत है.
ईरान ख़ुद को क्रांतिकारी स्टेट मानता है, इसलिए वो फ़लस्तीनियों के समर्थन में बोलता है।
तुर्की या सऊदी अरब से इसराइल का कुछ भी नहीं बिगड़ने वाला है। अरबो का सबसे वफादार दोस्त 1948 से अमेरिका रहा है, लेकिन जब जब इस्राएल ने फिलिस्तीन पर ज़ुल्म किया तब तब अमेरिका और दूसरे ईसाई मुमालिक दहशत गर्द इस्राएल का साथ दिया। लेकिन अरबो को उस कोई फर्क नही पड़ा और वे ऐसे ही ईसाइयों के साथ दोस्ती करते आये।
अरबो का मुहाफ़िज़ अमेरिका, इस्राएल को पैदा करने वाला और बड़ा करने वाला भी अमेरिका है। एक तरफ अरबो से तेल और गैस लूटने के लिए साथ है तो दूसरी तरफ इस्लाम मुखलिफ् रिवायत की वज़ह से इस्राएल के साथ है।
अरबो के पास जो कुछ है उसका चाबी अमेरिका के पास है, उसके बगैर इजाज़त के UAE, सउदि अरब, ओमान, बहरीन, कुवैत जैसे अरब मुमालिक कुछ नही कर सकते है, क्योंके अरबो की अपना फौज नही है बल्कि अमेरिका की सेना को भारे पर रखे हुए है भला ऐसे अपाहिज बादशाह क्या कर सकता है? अगर वह कुछ करने की सोचेगा भी तो फौज साथ नही देगी। अमेरिका हथियार और फौज से इस्राएल को मदद करता है, अरब देश किस फौज से लड़ेंगे?
किधर है वह सुन्नी मुसलमानो का रहनुमा ?
किधर है वह OIC का हेड जो अपनी मन मर्ज़ी से दूसरे मुस्लिम मुमालिक को अलग थलग करने मे लगा रहता है।
कहाँ है वह 40 देश के आर्मी चीप जो UN के कहने पर शांति सेना भेजता है?
कही ये OIC (Orgnization of Israels Co -Opration) to nahi.
किधर है वह अरब मुमालिक जो अमेरिका की चाकरी करने और मुखबिरी करने मे लगा रहता है, उसका दोस्त अमेरिका और ब्रिटेन किधर है? जिसने उस्मानिया सलतनत से आज़ादी के लिए अंग्रेजो का साथ दिया था?
अगर जंग लंबी चली तो क्या करे?
अमेरिका और दूसरे ईसाई देश इस्राएल को हर तरीके की मदद कर रहे है, चाहे वह सामरिक, आर्थिक हो या कूटनीतिज्ञ। अरब व दूसरे मुसलमान हुक्मरानो और तंजीमो को भी चाहिए के लंबी जंग की तैयारी शुरू करे।
जिन मुल्को के पास पैसे है वह आर्थिक मदद और राजनीतिक मदद करे, जिनके पास हथियार है वह खुफिया महकमा से मदद करे, मुजाहेडीन को जंगी तरबियत दे, उसे खुफिया सूचना दे, मीडिया, स्तंभकार, ब्लॉग्गर व दूसरे तरीके से फ्रीडम फाइटर्स की हौसला अफ़ज़ाई करे, उनकी सॉफ्ट तरीके से मदद करे।
आज इस्राएल सिर्फ हथियारो और फौज से ही नही लड़ रहा है बल्कि डिजिटल वार भी कर रहा है, जिसमे फिलिस्तीन और मुज़हीदीन के खिलाफ अफवाह व झूठा खबर फैलाना शामिल है, लोगो को गुमराह करना जैसे हथकंडे मौजूद है।
यहूदि और ईसाई झूठ अफवाह फैलाने मे बहुत माहिर है,।
अमेरिका ने इराक के बारे मे झूठ बोला
अमेरिका ने सद्दाम हुसैन के बारे मे झूठ बोला
अमेरिका ने लीबिया के बारे मे झूठ बोला
अमेरिका ने अफगानिस्तान के बारे मे झूठ बोला
अब अमेरिका फिलिस्तीन के मामले पर झूठ बोल रहा है।
फलस्तीनियों के नरसंहार को रोकने के लिए अरब मुस्लिम देश यदि इस्राइल से जंग नहीं लड़ सकते तो कम से कम इस्राइल को तेल, गैस सप्लाय बंद करें.
इस्राइल से व्यापार बंद करें. अपने यहां से इस्राइल सफिर (राजदूत) को निकालें.
UN में जंग रोकने और इस्राइल पर पाबंदी लगाने का प्रस्ताव लाएँ. यदि अमेरिका ब्रिटेन वीटो करते हैं तो उनसे भी रिश्ते खत्म करें.
दुनिया अफगानिस्तान की तालीबान सरकार के बारे मे तरह तरह की बातें कर रही थी, समावेशी नही है, उदार नही है, औरतों की आज़ादी नही है, इंसानि हुकुक का ख्याल नही है, आज वही अमेरिका, UN, नामनिहाद् लोकतन्त्र के रखवाले ढोंगी जो कल तक तालीबान को दर्स देता था आज वह इस्राएल के ज़ुल्मो पर खामोश क्यो है?
अमेरिका जो बोलता है दुनिया और उसके पिछलग्गू मुल्क उसी को दोहराते है, फिरंगियों का राजभक्त और USA का अनुयाई बनकर उसी की प्रचार करते है।
अफगानिस्तान मे तालीबान की सरकार को तसलीम करे, उनसे रिश्ते बनाये, कम से कम UN मे एक वोट तो बढ़ेगा, ये करने से कौन रोक रहा है, लेकिन मुस्लिम हुकमराँ को जब तक अमेरिका इजाज़त नही दे देता तब तक ये कुछ नही करते। दूसरी तरफ उसी अमेरिका के तरफ से इस्राएल को खुली छुट मिली है।
अमेरिका दुनिया के हर कोने मे दो विरोधियो को पैदा करता है मगर अमेरिका का दोनो से दोस्ती रहता है, एक समझता है के वह मेरा है, दूसरा उसे अपना खासम खास दोस्त समझता है। लेकिन दोनो को इसी कसमकश् मे रख कर वह अपना मकसद पूरा करते रहता है। वह कभी किसी का नही हो सकता, जिसने समझ गया उसने अमेरिका का साथ छोड़ दिया, जिसने समझ कर भी उसको गले लगाया उसने खून के आंसू रोया, बार बार धोका खाया और जिसने नही समझा उसने ज़हर को पानी का घूँट समझ कर पिया।
यही पॉलिसी ईस्ट इंडिया कंपनी और ब्रिटिश सम्राज्य की थी, यही रोमन सलतन्त् की थी और मॉडर्न दौर मे अमेरिका का भी यही तरीका रहा है। Divide and Rule उसके बाद Use and throw.
कम से कम मुस्लिम अरब देशों से इतनी उम्मीद की जा सकती है. अगर इतना भी नहीं कर सकते तो चुल्लू भर पानी में डूब मरें.
आज अवाम फिलिस्तीन के साथ खडा है लेकिन मुस्लिम हुकमरां इस्राएल के साथ।
मिस्र, और पाकिस्तान की फौज पहले से ही अपने आका अमेरिका से डॉलर लेकर सोगया, तुर्किये जो NATO का मेंबर है, वहाँ के सदर Erdogan जो बर्रे सगीर ले मुसलमानो का खलिफ्तुल् मुस्लेमीन बना था आज सिर्फ ब्यान जारी कर रहा है।
जब मुसलमानो पर ज़ुल्म होता है तो दुनिया सारी इंसानी हुकुक, UN चार्टर भूल जाती है, लेकिन जहाँ गैरो के साथ कुछ होता है तो सारी एजेंसिया अचानक हरकत मे आजाती है कैसे?
फिलिस्तिनियो के लिए जो मुहब्बत और हिमायत यूरोप के ईसाई देशो मे देखने को मिल रहा है, और जिस तरह अवाम का समर्थन मिल रहा है वैसा समर्थन ख्वाजा के हिंदुस्तान, काएद ए आज़म के पाकिस्तान, नमनिहाद् खलिफ्तुल् मुस्लेमीन एरदोगन के तुर्किये मे नही मिला। अरबो का तो छोर ही दीजिये, उनके ख़ज़ाने की चाबी फिरंगियों के पास है लिहाज़ा वह अपाहिज हुकमराँ क्या कर सकते है? यूरोप के हुक्मरानो की मिलीभगत इस्राएल के साथ है, लेकिन अवाम फिलिस्तीन के साथ।
ऐ अबाबिल् को भेज कर खाना ए काबा की हीफाजत करने वाले अल्लाह, फरिशतो को नंगी तलवार देकर बद्र के मैदान मे उतारने वाले रब, मूसा को फ़िरौन के यहाँ पालने वाले मालिक, युसुफ को कुवें से निकालने वाले खालिक, ईसा को जिंदा आसमान पर उठाने वाले करीम, इब्राहिम को आग से बचाने वाले रहमान, युनुस को मछली के पेट से निकालने वाले रहीम फिलिस्तीन के मजलुमो, मुज़हदिनो, माओं, बहनो, की मदद फरमा। या अल्लाह तेरे लश्कर बहुत सारे है अपने किसी लश्कर को भेज कर मस्ज़िद ए अक्सा की हीफाजत फरमा और दुश्मनो को नेसत् व नाबूद कर दे, उसे तबाह कर दे। आमीन