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Sana Khan ke Bad Bhojpuri Film Industri ki Actress Sahar Afsaa Kyu Filmi duniya ko alavida kah gayi?

Sana Khan ke Bad Bhojpuri Actress Kyu Cinema chhod di?

सना खान के बाद एक और अदाकारा फिल्मी दुनिया को अलविदा कर दी।

अल्लाह से करे दूर, तो तालीम भी फितना
इमलाक भी औलाद भी जागीर भी फितना
नाहक के लिए उठे तो शमशिर भी फीतना
शमशीर ही क्या नार ए तकबीर भी फितना

भोजपुरी अदाकारा सहर अफशा ने शोबिज की दुनिया को छोड़ने का एलान किया है। उन्होंने एक पोस्ट शेयर किया है, जिसमें बताया है कि वह इस्लाम के बताये हुए राह पर चलेंगी।

ज़ायेरा वसीम, सना खान के बाद फिल्मी दुनिया छोड़ने वालो के फेहरिस्त मे एक और नाम जुड़ गया है सहर अफसां का, जो भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री से तल्लुक् रखती है।

फिल्मी दुनिया मे अपना एक अलग मुकाम बनाने वाली, लोगो के दिल पर राज करने वाली भोजपुरी सिनेमा की अदाकारा सहर अफसां भोजपुरी सिनेमा छोड़कर अपने मजहब इस्लाम पर चलेगी।

उन्होंने इसके बारे मे सोशल मीडिया पर एक तस्वीर पोस्ट करके बताया जो तीन भाषाओं उर्दू, हिंदी और इंग्लिश मे है। इसमे उन्होंने अपने चाहने वाले लोगो को बहुत ही संजीदगी से समझाने की कोशिश कीं है।

क्या इन्हे आज़ादी नही चाहिए? 

क्या इनको तरक्की नही करना है? 

क्या इन्हे लोगो का तवज्जो नही चाहिए, उनका ध्यान अपनी तरफ नही लगाना है? 

क्या उन्हें मॉडर्न और लिबरल नही कहलाना है? 

क्या उन्हें एक शसक्त, आधुनिक, आज़ाद ख्याल, नारीवादी महिला नही बनना है, जो इन्होंने औरतों को ज़ंजीर मे जकड़कर रखने वाला मजहब ..... दिन ए इस्लाम की राह पर चलने के लिए इतनी मेहनत से हासिल की गयी कामयाबी दौलत व शोहरत को पीछे छोड़ दी। 

क्या पूर्व एक्ट्रेस सेहर अफ़शा भी वैसी ही आम औरतों की तरह जिंदगी गुजारगी जैसे दूसरी मुस्लिम औरते जीती है, क्या यह भी हिजाब, नकाब और पर्दा करेगी जैसे और खवातीन पर्दा करती है? 

उन्होंने अपने पोस्ट मे लिखा:

असल्लामु वालैकूम

मै आप सब को इत्तला करना चाहती हूँ मै ने यह तय किया है के मै यह शोबिज (फिल्म इंडस्ट्री) छोड़ने जा रही हूँ अब मेरा इससे कोई ताल्लुक़ नही रहेगा।

और इन शा अल्लाह मै अपनी अगली जिंदगी इस्लामी तालीमात् और अल्लाह के हुक्म के मुताबिक गुजारने का इरादा रखती हूँ। और अपनी गुजस्ता ( पिछली) जिंदगी से तौबा करती हूँ, अल्लाह से तौबा करती हूँ और अल्लाह से माफी की तलबगार हूँ।
अगर चे मुझे बहुत ज्यादा दौलत और शोहरत भी मिल जाए लेकिन हमेशा मै एक खलस मे मुब्तिला रही क्योंके इस जिंदगी का मै बचपन मे भी तसव्वुर नही की बस इत्तेफाक से मै इस इंडस्ट्री मे आगयी और बढ़ती ही गयी , लेकिन अब ये सब खत्म करने का इरादा कर लिया है और अगली जिंदगी इन शा अल्लाह अल्लाह के हुक्म के मुताबिक गुजारने का इरादा है।

आप सब से दुआ की दरखवास है के अल्लाह मुझे इस्तिकामत् और नेकी वाली जिंदगी अता फरमाये।
उम्मीद करती हूँ के मुझे पिछली जिंदगी से नही बल्कि आने वाली जिंदगी से याद रखा जायेगा।

उनके इस फैसले पर कला छोड़ इस्लाम पर चलने वाली पूर्व अदाकारा सना खान ने मुबारक बाद दी।

सहर अफसां जिनके नामो का चर्चा चारो तरफ है, सोशल मीडिया पर लोग इनके बारे मे सवाल कर रहे के आखिर उन्होंने ऐसा फैसला क्यु किया?
इन्होंने तेलुगु सिनेमा से शुरुआत की और फिर भोजपुरी मे भी छा गयी।

लेकिन यह कोई पहली बार नही है, न जाने कितनी एक्ट्रेस अपने मजहब के लिए कला को छोड़ कर एक सादगी और मजहबी जिंदगी जी रही है, फिल्मी दुनिया की चकाचौंध और ग्लामरेस् वाली जिंदगी से परेशान होकर बहुत सारी एक्ट्रेस खुदकुशी भी कर चुकी है मगर जिन्होंने सही वक़्त पर सही फैसला किया उन्हे बाद मे अफसोस न रहा और न खुदकुशी जैसे गुनाह करने पड़े।
अगर इसलाम औरतों को जंजीर में ज़कर कर रखता, तरक्की की राह में रुकावट होता, महिला विरोधी होता तो क्यों इतने पैसे वाली तालीम याफ्ता बॉलीवुड अदाकारा सना खान , ज़ायरा वसीम इतने दौलत, शोहरत, इज्जत और लोगो की हिमायत छोर कर अल्लाह के हुक्म को मानती?

इस्लाम के खातिर बॉलीवुड को अलविदा कहा सना खान।

मै हिजाब करने वाली मॉडर्न लड़की हूँ तब भी मुझे रूढ़ीवादी कहा जाता है?

ज़ायेरा वसीम क्यों बॉलीवुड को त्याग दी।

इससे पहले भी कई एक्ट्रेस फिल्मी दुनिया को अलविदा कर चुकी है।

बता दें कि इससे पहले, जायरा वसीम ने जून 2019 में इस्लाम के लिए अपनी ख्यालात का हवाला देते हुए एक्टिंग छोड़ दी थी। अक्टूबर 2020 में एक्ट्रेस सना खान ने अल्लाह के लिए अपनी मुहब्बत का हवाला देते हुए शोबिज छोड़ दिया। अब सहर अफशा ने ऐलान किया है कि वह भी इसी वजह से फिल्म इंडस्ट्री छोड़ रही हैं।

पाकिस्तानी सिंगर अब्दुल्ला कुरैशी ने भी हाल ही में इसी तरह का फैसला लिया, उन्होंने 6 अक्टूबर 2022 को एलान किया के उन्होंने इस्लाम के लिए मौशिकी (संगीत इंडस्ट्री) को छोड़ दिया है।

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Waisi Ladkiyaa jo Apne khandan ki izzat mitti me mila deti hai, tum koi Chocolate aur ice Cream nahi ho jise har koi Istemal kar ke fenk de.

Tum koi  Chocolate, ice cream nahi ho jo har kisi ko lutf uthane dogi.

Waisi Ladkiyaa Jo apne Maa Baap ki izzat Pairo ke niche raund deti hai.
Muslim Naw jawan kaise Europe ke Gulam bane hue hai?

Halal rishte ko Chhod kar  Haram Talluq kayem karne wali Ladkiyaa.

Mai Mardo se Nafrat karti hoo... Isliye kabhi Shadi nahi karungi.

Muslim Ladkiyo ke Sar se Dupatta kisne hataya?

چند روز قبل کا واقعہ میری اردو کی پروفیسر صاحبہ ہم سے بات کرتے ہوۓ اچانک سے بولیں کہتی کچھ شیئر کرنا ہے اپ سب سے غور کرنا...

پوری کلاس خاموشی سے سننے لگی وہ کہتی ہیں بیٹا کل رات میں ایک کافی شاپ گئ وہاں چند نوعمر لڑکے ایک ٹیبل پر بیٹھے قہقے لگا رہے تھے کہ پورے کیفے میں ان کی اواز تھی.. کہتیں کہ نہ چاہتے ہوئے بھی میرا دھیان ان کی گفتگو پر گیا تو میں نے دیکھا کہ انہوں نے ٹیبل پر موبائل رکھا ہے اس پر ایک لڑکی کی کال ریکارڈنگ ہے ..

لڑکے وہ سن رہے ہیں اور ہنس رہے ہیں..
ان میں سے ایک لڑکا بولا دیکھو میں کہا تھا نہ کہ اس لڑکی کو دیوانہ کر کے رہوں گا....
دیکھو اج کیسے مر مٹ رہی ہے..
ایک لوتی ہے والدین کی بہت بنا پھرتا تھا اس کا باپ....
پروفیسر صاحبہ کہتی ہیں کہ میری روح کانپ گئ اور میں وہاں سے نکل آئی اور راستے میں سوچتی رہی تھی کہ یہ بھی تو کسی کی بیٹی ہے جس کی تربیت بہت لاڈ پیار سے کی گئ ہے..

کیا چلا جاۓ گا اس لڑکے کا؟؟
پر کیا رہ جاۓ گا اس لڑکی کے پاس؟
ہمیں کہتی ہیں میری شہزادیوں تم لوگ کوئ چاکلیٹ ائسکریم نہیں ہو جو ہر کسی کو اپنی مٹھاس دکھاو..

تم لوگ عزت کی وارث ہو.. یوں اپنے باپ کی دستار کو سرعام نہیں روندو.. تم باوقار رہنا... جا بجا الفاظ ہیں بیٹا اس دن کسی نامحرم سے بات کرنا جس دن باپ کی دستار کو پاؤں میں روندنے کی جرات اجاۓ تم میں.. یہ الفاظ کہتے ان کی اواز تو لرکھڑا رہی تھی پر ساتھ ہی ہم سب کا دل ایک مٹھی میں بند ہو چکا تھا.. اور اج اس چیز کو ماڈرن ایزم کہتے ہیں..

وہ کہتیں بیٹا تمہاری حیا تمہارا ماڈرن ایزم ہے...  جب تک لڑکی کی انکھ پر حیا کا پردہ ہوگا.. اس کا سر جھکا ہو گا.. کسی مرد کی مجال نہیں اس کی طرف دیکھے اور تب تک تمہارے باپ کا سر فخر سے بلند ہو گا..
اللہ پاک ہر بیٹی کے نیک نصیب فرماۓ।
امین ثم
امین

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Musalmano Ki asal Taqat kisme hai Imaan me ya Hathiyaro me, Taliban kis Taqat se America ko Shikashat diya?

Musalman kin wazaho se Aaj Zaleel ho raha hai?

Musalmano ki asal Taqat Imaan ki Daulat hai ya Duniyawi takat?

جہاد کی بدولت افغانستان میں 30 سالوں میں دو بار اسلامی حکومت کا قیام ہوا ہے۔ الحمدللّٰه!  ماشاءاللّٰه لا قوۃ الا باللّٰه! جبکہ جمہوریت کی بدولت پاکستان میں 75 سالوں میں کئی بار غیر اسلامی بلِ منظور ہوئے ہیں، اسلام سے مذاق اور مسلمانوں سے دھوکہ ہوا ہے۔

مسلمانوں کا مسئلہ ایمانی طاقت یا مادی طاقت؟

مکہ کے پڑھے لکھے طبقے نے اسلام کی دعوت کو ٹھکرایا تھا، جبکہ دنیاوی تعلیم سے محروم افراد نے رسول اللّٰه ﷺ کی دعوت پر لبیک کہا تھا۔

جنگِ بدر کے معرکہ میں مسلمانوں نے اُس وقت کی تعلیم یافتہ، زیادہ فوجی طاقت اور عددی طور پر برتر قوت کو اللّٰه کی مدد سے شکست دی۔
اگر تعلیم مسئلہ ہوتی تو مسلمان کفار کے قیدیوں کو چھوڑنے کی یہ شرط نہ رکھتے کہ دس مسلمانوں کو لکھنا پڑھنا سکھاؤ تو تمہیں چھوڑ دیں گے۔

یہ اسلام کی علم دوستی تھی، لیکن اکثر مسلمان لکھنے پڑھنے کے ہنر سے ناواقف تھے۔ صرف ایمان تھا!

یہ بات آج کے ایٹمی دَور میں کسی کو ہضم ہی نہیں ہوتی تھی۔

لیکن طالبان نے دنیا کی دو سپر پاورز کو خاک میں ملا کر دکھایا ہے۔

ان کے پاس بھی صرف ایمان کی دولت تھی۔ امریکا، مغرب، مشرق، پاکستان ہر طرف سے ان افغان مجاہدین کے لیے رکاوٹیں اور اختلاف ہی تھا۔

ان کے پاس تو ہیلی کاپٹر، جنگی طیارے، بم اور جدید میزائل نہیں تھے۔ ایمان کی دولت تھی!

مسلمانوں نے پہلے ایمان حاصل کیا، عمل کیا، دنیا کو فتح کیا اور ساتھ ساتھ علم و ہنر سیکھتے اور ایجادات بھی کرتے چلے گئے۔

وہ زمانے میں معزز تھے مسلماں ہو کر،
اور تم خوار ہوئے تارکِ قرآں ہوکر۔
اقبالؒ

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Mai Hijab karne wali ek Modern Ladki hoo, tabhi bhi Mujhe Zahil aur Conservative kaha jata hai?

Mai Ek Modern Ladki hoo aur Burke me rahti hoo.

Parda aur Hijab Karne wali Ladkiyo ko Kaise Ya Samaj Aur yahan ka Kanoon dekhta hai?

Mai Sharai Parda karna Chahati hoo magar mere Gharwale is se mana karte hai, mai kaise manage karoo?

France me Musalman Auraton ke khilaf chalaye ja rahe hai Tahrik.

Europe ka Musalmano pe Cultural Drone.

ओ जाहिल औरत... तुम जैसी औरतों की वज़ह से ही हमलोगो को डी ग्रेड कहा जाता है, तुम जैसी औरतें ही हमारी नाक कटवाती है, तुम लोगो की वजह से ही हमलोगो को कमज़ोर समझा जाता है, हमे बराबरी के लेवल पे खडा नही किया जाता, आखिर यह छः गज का टेंट ओढ कर क्या साबित करना चाहती हो? होश मे आओ देखो दुनिया कहाँ से कहाँ चली गयी, लड़कियां जहाज़ उड़ा रही है और तुम जैसी जाहिल औरतें इस तम्बू से बाहर ही नही आ सकीं...

میں ایک ماڈرن لڑکی ہوں_

وہ سر سے لے کر پاؤں تک پردے میں ملبوس مارکیٹ جانے کے لئے تیار تھی فلیٹ سے نکل کر لاک لگایا اور چابی پڑوسن کے حوالے کر دی تاکہ دیر کی صورت میں اس کے بچے آسانی سے گھر کے اندر آ سکیں پڑوسن نے چابی تھامتے ہوئے معنی خیز نظروں سے اسے دیکھا اور ہلکی سی طنزیہ مسکراہٹ کے ساتھ اندر کی طرف چلی گئی.

وہ افسوس سے سر جھٹکتی سیڑھیاں اترتے نیچے آ رہی تھی کہ پڑوسن کے شوہر کرامت صاحب اوپر کی طرف آتے دکھائی دیئے اس پہ نگاہ پڑتے ہی کرامت صاحب کی آنکھوں میں خباثت چمکی کچھ دور سے ہی بآواز بلند مخاطب ہوئے "ارے بھابھی جان" سارا زور لفظ جان پہ لگا دیا تھا گویا کہیں جا رہی ہیں کچھ ضروری کام تو عرض کیجیئے ہم جو موجود ہیں۔
آپ کہاں کہاں خود کو سنبھالتی پھریں گی آنکھوں میں خباثت کا رنگ گہرا ہی ہوتا جا رہا تھا۔

نہیں بھائی صاحب آپکی مہربانی بس کچھ ضروری کام ہے اس نے سنجیدگی سے جواب دیا اور آگے کو بڑھ گئی کرامت صاحب کی نگاہ کافی دیر تک اس کے برقعے میں الجھی رہی اور لبوں پہ مسکراہٹ رینگنے لگی۔

مین روڈ پر نکلتے ہی اسے لگا جیسے ہر کوئی مضحکہ خیز نگاہوں سے اسے اپنی گرفت میں لئے ہوئے ہے اور یہ کوئی ایک آج کے دن کی بات نہیں تھی ہر بار باہر نکلتے ہوئے اسے انہی سب چیزوں کا سامنا کرنا پڑتا تھا اور وجہ تھی اس کا برقعہ.....

اس ماڈرن ایریے میں رہتے ہوئے جہاں دوپٹہ تو دور کی بات مکمل لباس بھی کم ہی خواتین پہ نظر آتا تھا اسکا برقعہ پہننا واقعی عجیب تھا۔

کھلے ہوئے دسترخوان پہ ان گنت پکوانوں کے درمیان رکھی ہوئی وہ ایسی پلیٹ لگتی جسے اوپر سے ڈھانپ دیا گیا ہو اور ہر کوئی سارا دسترخوان چھوڑ کر بس اس پلیٹ کے تجسس میں پڑا ہو لیکن سب کا حال یہ تھا کہ جیسے مکھیاں چاہ کر بھی اس ڈھانپی ہوئی پلیٹ کو گندا نہیں کر سکتی تھیں۔

اسی طرح معاشرے کی خباثت بھری نگاہیں چاہ کر بھی اس برقعہ پوش کو میلا نہیں کر پا رہی تھیں۔

مارکیٹ پہنچ کر وہ ایک گروسری سٹور میں داخل ہوئی اور سودے کی لسٹ نکال کر اشیاء کا جائزہ لینے لگی۔
خرید و فروخت کے بعد وہ باہر کی جانب پلٹی ہی تھی کہ اچانک اس کو اپنے پیچھے آواز آئی "جاہل عورت" اس نے آواز کی سمت مڑ کر دیکھا تو سامنے بلیو جینز پہ ریڈ شارٹ ٹاپ پہنے سلیولیس بازوؤں کے ساتھ ایک فیشن ایبل لڑکی کھڑی دکھائی دی جو کافی غصے سے اسے گھور رہی تھی۔

اس نے سوالیہ نظریں لڑکی کی جانب اٹھائیں تو وہ لڑکی دوبارہ مخاطب ہوئی تم جیسی جاہل عورتوں کی وجہ سے ہم عورتوں کو ڈی گریڈ کیا جاتا ہے۔

صرف تم جیسی عورتیں ہر جگہ ہماری ناک کٹواتی پھرتی ہیں, ہمیں برابری کے لیول پہ کھڑا نہیں کیا جاتا, ہمیں کمزور سمجھا جاتا ہے آخر یہ چھ گز کا ٹینٹ اوڑھ کر تم کیا ثابت کرنا چاہتی ہو؟

ہوش میں آؤ دنیا کے ساتھ چلنا سیکھو دنیا اتنی ماڈرن ہو چکی ہے کہاں سے کہاں پہنچ چکی ہے اور تم جیسی جاہل عورتیں ابھی تک اس تنبو سے ہی باہر نہیں آ سکیں.....

اس نے سکون سے اسکی پوری بات سنی پھر دو قدم آگے بڑھی اور اطمینان سے.... گویا  زمانہ جاہلیت میں جب اسلام نہیں تھا تو لوگ بےلباس تھے پھر اسلام آیا لوگوں کو سمجھ بوجھ دی اور لوگ اپنے آپ کو ڈھانپنے لگے یوں رفتہ رفتہ جاہلیت ختم ہوئی اور لوگ ماڈرن ہونے لگے۔

اب اگلی بات کا فیصلہ آپ خود کر لیں کہ زمانہ جاہلیت میں ننگے ہو کر جنگلوں میں گھومنے اور زمانہ جدید میں ننگے ہو کر سڑکوں پارکوں اور ہوٹلوں میں گھومنے میں کیا فرق ہے؟

میرے خیال میں تو کوئی فرق نہیں میں اگر زمانہ جاہلیت کی ہوتی تو ضرور بےلباس گھومتی لیکن میں پردہ کرتی ہوں اور اپنے آپ کو ڈھانپ کے رکھتی ہوں کیونہ میں "حقیقتاً ایک ماڈرن لڑکی ہوں"

یہ کہہ کر وہ پروقار انداز میں واپسی کی طرف مڑی تو سامنے سے آتے دو مردوں نے ایک طرف ہو کر اسکو گزرنے کا راستہ دیا تشکر کے جذبات سے اس نے اوپر آسمان کی طرف دیکھا اور ایک مطمئن سا آنسو اس کی آنکھ سے نکل کر برقعے میں جذب ہوگیا...

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Qayamat ke Din Kiske Nam Se pukara jayega Maa ya Baap ke nam se?

Qayamat ke Din Logo ko kis nam se pukara jayega?

Qayamat ke Din kisi Shakhs Ko uke Maa ke nam se pukara jayega ya Baap?


"سلسلہ سوال و جواب نمبر-292"

سوال_قیامت کے دن لوگوں کو انکے باپ کے نام سے پکارا جائے گا یا ماں کے نام سے؟
اکثر لوگ کہتے ہیں کہ ماں کے نام سے پکارا جائے گا اسکی حقیقت کیا یے؟

Published Date: 3-10-2019

جواب:
الحمدللہ:

*یہ بات عوام میں کافی مشہور ہوگئی ہے کہ قیامت کے دن لوگوں کو انکی ماں کے نام سے پکارا جائے گا، جبکہ حقیقت اسکے برعکس ہے، قرآن و حدیث کے دلائل سے یہ بات سمجھ آتی ہے کہ قیامت کے دن لوگوں کو انکے باپ نام سے ہی پکارا جائے گا*

اس مسئلہ کو سمجھنے کے لئے یہ پہلے دیکھنا پڑے گا کہ آدمی دنیا میں کس سے پکارا جاتا تھا؟

چنانچہ یہ بات ظاہر ہے کہ دنیا میں لوگ باپ کے نام سے ہی پکارے جاتے ہیں ، رجسٹر پر ، فائل میں ، سرٹیفیکیٹ میں بلکہ ہر طرح کے معاملات اور دنیا کے تمام تر مشاغل میں باپ کا نام استعمال کیا جاتا ہے اور یہ حکم قرآن کا بھی ہے،

القرآن - سورۃ نمبر 33 الأحزاب
آیت نمبر 5
أَعـوذُ بِاللهِ مِنَ الشَّيْـطانِ الرَّجيـم
بِسْمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ

اُدۡعُوۡهُمۡ لِاٰبَآئِهِمۡ هُوَ اَقۡسَطُ عِنۡدَ اللّٰهِ‌ ۚ فَاِنۡ لَّمۡ تَعۡلَمُوۡۤا اٰبَآءَهُمۡ فَاِخۡوَانُكُمۡ فِى الدِّيۡنِ وَمَوَالِيۡكُمۡ‌ؕ وَ لَيۡسَ عَلَيۡكُمۡ جُنَاحٌ فِيۡمَاۤ اَخۡطَاۡ تُمۡ بِهٖۙ وَلٰكِنۡ مَّا تَعَمَّدَتۡ قُلُوۡبُكُمۡ‌ ؕ وَكَانَ اللّٰهُ غَفُوۡرًا رَّحِيۡمًا ۞
ترجمہ:

انھیں ان کے باپوں کی نسبت سے پکارو، یہ اللہ کے ہاں زیادہ انصاف کی بات ہے، پھر اگر تم ان کے باپ نہ جانو تو وہ دین میں تمہارے بھائی اور تمہارے دوست ہیں اور تم پر اس میں کوئی گناہ نہیں جس میں تم نے خطا کی اور لیکن جو تمہارے دلوں نے ارادے سے کیا اور اللہ ہمیشہ بےحد بخشنے والا، نہایت رحم والا ہے۔

اور حدیث پاک میں بھی غیر باپ کی طرف نسبت کرنے والوں پہ جنت کی حرمت بتلائی گئی ہے،

فرمان رسول صلی اللہ علیہ وآلہ وسلم
مَنِ ادَّعَى إِلَى غَيْرِ أَبِيهِ وَهُوَ يَعْلَمُ أَنَّهُ غَيْرُ أَبِيهِ، فَالْجَنَّةُ عَلَيْهِ حَرَامٌ "

ترجمہ : نبی ﷺ نے فرمایا جس نے اپنے باپ کے علاوہ کسی کی طرف اپنے اپ کو منسوب کیا جب کہ وہ جانتا ھو کہ اس کا باپ نہیں ھے اس پر جنت حرام ہے۔
(صحیح بخاری حدیث نمبر-6766)

اور نبی اکرم صلی اللہ علیہ وآلہ وسلم نے فرمایا:
لَا تَرْغَبُوا عَنْ آبَائِكُمْ، فَمَنْ رَغِبَ عَنْ أَبِيهِ فَهُوَ كُفْرٌ : اپنے آباء و اجداد سے اعراض نہ کرو! جس نے اپنے باپ کے علاوہ کس دوسرے کی طرف نسبت کی اس نے کفر کیا۔
(صحیح بخاری حدیث نمبر-6786)

*پتا یہ چلا کہ دنیا میں لوگ والد کی نام سے پکارے جاتے تھے تو یہی حکم وفات کے بعد بھی باقی رہے گا یعنی وفات کے بعد بھی ہر جگہ والد کے نام سے ہی پکارا جائے گا۔

چنانچہ اس کے صریح دلائل بھی ہیں،
پہلی دلیل :

عَنْ ابْنِ عُمَرَ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُمَا عَنْ النَّبِيِّ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ قَالَ إِنَّ الْغَادِرَ يُرْفَعُ لَهُ لِوَاءٌ يَوْمَ الْقِيَامَةِ يُقَالُ هَذِهِ غَدْرَةُ فُلَانِ بْنِ فُلَانٍ،

ابن عمر رضی اللہ عنہما سے روایت کہ نبی ﷺ نے فرمایا قیامت کے دن دغا باز کی سرین پر جھنڈا لگایا جائے گا جس پر لکھا ہوگا کہ اس نے فلاں بن فلاں سے غدر کیا تھا۔
(صحیح البخاری,کتاب الادب،حدیث نمبر-6177)

امام بخاری رحمہ اللہ نے اس حدیث پر باب قائم کیا ہے،
صحيح البخاري | كِتَابٌ : الْأَدَبُ  | بَابُ مَا يُدْعَى النَّاسُ بِآبَائِهِمْ.

اس بات کا بیان کہ قیامت کے دن لوگوں کو انکے باپ کے نام سے پکارا جائے گا،

امام بخاری رحمہ اللہ کے اس باب باندھنے سے معلوم ہوا کہ وہ بھی اسی بات کہ قائل تھے کہ قیامت کے دن باپ کے نام سے پکارا جائے گا،

اسی طرح اس حدیث کی شرح میں حافظ ابن حجر رحمہ اللہ نے ابن بطال کا قول نقل کیا ہے کہ،

وقال ابن بطال: في هذا الحديث رد لقول من زعم أنهم لا يدعون يوم القيامة إلا بأمهاتهم سترا على آبائهم.

ابن بطال کہتے ہیں کہ اس حدیث میں ان لوگوں کے قول کا رد ہے جنکا گمان ہے کہ قیامت کے دن باپوں کی بجائے صرف ماؤں کے نام سے پکارا جائے گا،
(فتح الباری شرح صحیح البخاری)

دوسری دلیل :
 نبی اکرم ﷺ نے فرمایا

إِنَّكُمْ تُدْعَوْنَ يَوْمَ الْقِيَامَةِ بِأَسْمَائِكُمْ وَأَسْمَاءِ آبَائِكُمْ، فَأَحْسِنُوا أَسْمَاءَكُمْ "

کہ تم لوگ قیامت کے دن اپنے اور اپنے باپوں کے نام سے پکارے جاؤ گے تو اپنا نام اچھا رکھو۔
(سنن ابو داؤد حدیث نمبر-4948)

اگرچہ اس روایت کی سند میں انقطاع ہے مگر بہت سے محدثین کرام نے اس حدیث کی سند کو جید کہا ہے،( واللہ اعلم )

(صحيح ابن حبان 5818 أخرجه في صحيحه )
(النووي المجموع 8/436إسناده جيد)
(ابن القيم تحفة المودود 103إسناده جيد)
(المنذری، الترغيب والترهيب 3/112 [إسناده صحيح أو حسن أو ما قاربهما]

______&________

امام ابن قیم رحمہ اللہ کی وضاحت:

قال ابن القيم رحمه الله،
الفصل العاشر في بيان أن الخلق يدعون يوم القيامة بآبائهم لا بأمهاتهم . هذا الصواب الذي دلت عليه السنة الصحيحة الصريحة ، ونص عليه الأئمة كالبخاري وغيره فقال في صحيحه : باب يدعى الناس يوم القيامة بآبائهم لا بأمهاتهم ، ثم ساق في الباب حديث ابن عمر قال قال رسول الله : ( إذا جمع الله الأولين والآخرين يوم القيامة يرفع الله لكل غادر لواء يوم القيامة فيقال هذه غدرة فلان بن فلان ).
وفي سنن أبي داود [4948] بإسناد جيد عَنْ أَبِي الدَّرْدَاءِ قَالَ : قَالَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ : ( إِنَّكُمْ تُدْعَوْنَ يَوْمَ الْقِيَامَةِ بِأَسْمَائِكُمْ وَأَسْمَاءِ آبَائِكُمْ فَأَحْسِنُوا أَسْمَاءَكُمْ )

امام ابن قیم رحمہ اللہ کی اس ساری بحث کا خلاصہ یہ ہے کہ وہ فرماتے ہیں کہ قیامت کے دن مخلوق کو انکے باپوں کے نام سے پکارا جائے گا ،اور ماؤں کے نام نہیں سے نہیں پکارا جائے گا،  اور اس پر سنت میں صریح دلائل موجود ہیں،۔۔۔۔آگے وہ بخاری کی روائیت ذکر کرتے ہیں! اور پھر ابو داؤد کی روایت لکھتے ہیں کہ اسکی سند جید ہے۔۔۔!
("تحفة المودود بأحكام المولود"ص147)

__________&_________

سعودی فتاویٰ کمیٹی سے سوال کیا گیا:

السؤال-27556
هل صحيح أن الله يوم القيامة يدعو الناس بأسمائهم وأسماء أمهاتهم( فلان ابن فلانة ) وما الرد على من يقول ذلك ؟....وهل هناك دليل شرعي ؟

کیا یہ بات صحیح ہے کہ قیامت کے دن لوگوں کو انکے اور انکی ماؤں کے نام سے پکارا جائے گا....؟ اور اسکا کیا رد ہے جو اس طرح کی بات کہی جاتی ہے اور کیا اس پر شرعی دلیل ہے؟

نص الجواب:
الحمد لله:

القول بأن الناس يدعون يوم القيامة بأسماء أمهاتهم ، خطأ مخالف لما ثبت في السنة الصحيحة الدالة على أنهم ينسبون لآبائهم،
فزعم بعض الناس أنهم يدعون بأمهاتهم ، واحتجوا في ذلك بحديث لا يصح ، وهو في معجم الطبراني من حديث أبي أمامة عن النبي صلى الله عليه وسلم : ( إذا مات أحد من إخوانكم فسويتم التراب على قبره فليقم أحدكم على رأس قبره ثم ليقل يا فلان بن فلانة فإنه يسمعه ولا يجيبه ثم يقول يا فلان بن فلانة فإنه يقول أرشدنا يرحمك الله ) الحديث ، وفيه : فقال رجل يا رسول الله فإن لم يعرف اسم أمه ؟ قال فلينسبه إلى أمه حواء يا فلان ابن حواء )
[ قال الهيثمي (3/163) : في إسناده جماعة لم أعرفهم . انتهى . وقال في كشف الخفاء (2/375) : وضعفه ابن الصلاح ثم النووي وابن القيم والعراقي والحافظ ابن حجر في بعض تصانيفه وآخرون ]
قالوا : وأيضا فالرجل قد لا يكون نسبه ثابتا من أبيه كالمنفي باللعان وولد الزنى فكيف يدعى بأبيه ؟
والجواب : أما الحديث فضعيف باتفاق أهل العلم بالحديث ، وأما من انقطع نسبه من جهة أبيه فإنه يدعى بما يدعى به في الدنيا ، فالعبد يُدعى في الآخرة بما يدعى به في الدنيا من أب أو أم والله أعلم " انتهى،

تنبيه : قد حمل بعضهم قول الله عز وجل : ( يَوْمَ نَدْعُو كُلَّ أُنَاسٍ بِإِمَامِهِمْ ) الإسراء/ 71على هذا القول الضعيف [ انظر القرطبي 10/257] .
قال الزمخشري : " ومن بدع التفاسير : أن الإمام جمع أم ، وأن الناس يدعون يوم القيامة بأمهاتهم ، وأن الحكمة في الدعاء بالأمهات دون الآباء : رعاية حق عيسى عليه السلام ، وإظهار شرف الحسن والحسين ، وأن لا يفتضح أولاد الزنا !! وليت شعري أيهما أبدع : أصحة لفظه ، أم بهاء حكمته !!؟ " انتهى [ الكشاف 2/682]

(https://islamqa.info/ar/answers/87556)

ترجمہ:
اس سب کا خلاصہ یہ ہے کہ سعودی فتاویٰ کمیٹی نے جواب دیا کہ قیامت کے دن لوگوں کو انکے باپ کے نام سے پکارا جائے گا ، اور اس پر سنت سے دلائل موجود ہیں اور یہ کہنا کہ ماں کے نام سے پکارا جائے گا ایک غلطی ہے، اور بعض لوگ جو  طبرانی کی ایک حدیث سے دلیل پکڑتے ہیں کہ لوگوں کو قیامت کے دن ماں کے نام سے پکارا جائے گا۔ وہ حدیث ضعیف ہے،

حدیث ملاحظہ فرمائیں:

الناس یوم القیامة بامھاتھم سترا من اللہ عز وجل علیھم
(الآلی المصنوعۃ للسیوطی : ۴۴۹/۲ نقلہ عن الطبرانی)
ترجمہ: رسول اللہ ﷺ کا فرمان ہے کہ :
"بے شک اللہ تعالیٰ لوگوں کو قیامت کے دن اُن کی ماؤں (کے نام) سے پکارے گا تاکہ اس کے بندوں کی پردہ پوشی رہے،
اس حدیث کو شیخ البانی نے موضوع اور باطل قرار دیا ہے،
(الألباني السلسلة الضعيفة333،موضوع)
(ابن حجر،فتح الباري لابن حجر 10/579) إسناده ضعيف جدا)
(أخرجه ابن عدي في «الكامل في الضعفاء» (1/343)
(وابن الجوزي في «الموضوعات»3/248)

اور بعض لوگ قرآن کی ایک آیت سے بھی قیامت کے دن ماں کے نام سے پکارے جانے کی دلیل پکڑتے ہیں، وہ آئیت یہ ہے:

القرآن - سورۃ نمبر 17 الإسراء
آیت نمبر 71
أَعـوذُ بِاللهِ مِنَ الشَّيْـطانِ الرَّجيـم
بِسْمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ

يَوۡمَ نَدۡعُوۡا كُلَّ اُنَاسٍۢ بِاِمَامِهِمۡ‌ۚ فَمَنۡ اُوۡتِىَ كِتٰبَهٗ بِيَمِيۡنِهٖ فَاُولٰۤئِكَ يَقۡرَءُوۡنَ كِتٰبَهُمۡ وَلَا يُظۡلَمُوۡنَ فَتِيۡلًا ۞
ترجمہ:
جس دن ہم سب لوگوں کو ان کے امام کے ساتھ بلائیں گے، پھر جسے اس کی کتاب اس کے دائیں ہاتھ میں دی گئی تو یہ لوگ اپنی کتاب پڑھیں گے اور ان پر کھجور کی گٹھلی کے دھاگے برابر (بھی) ظلم نہ ہوگا

کچھ لوگ یہاں لفظ "امامھم" سے مراد ماں لیتے ہیں جو کہ غلط ہے، جبکہ امام سے مراد پیشوا ،رہبر و رہنما مراد ہے یہاں،
________&_______

*مذکورہ باتوں کا خلاصہ یہ ہے کہ لوگوں کو قیامت کے دن بھی باپ کے نام سے پکارا جائے گا جیساکہ دنیا میں پکارا جاتا تھا، جو لوگ اس کے خلاف بات کرتے ہیں ان کے پاس کوئی صحیح اور ٹھوس دلیل نہیں ہے*

(( واللہ تعالیٰ اعلم باالصواب ))

کیا شادی کے بعد لڑکی کا سر نیم بدلا جا سکتا ہے؟ یعنی بیوی شوہر کا نام اپنے نام ساتھ لگا سکتی ہے؟ کچھ لوگ کہتے ہیں کہ یہ حرام ہے؟
(دیکھیں تفصیلی سلسلہ نمبر-103)

اپنے موبائل پر خالص قرآن و حدیث کی روشنی میں مسائل حاصل کرنے کے لیے "ADD" لکھ کر نیچے دیئے گئے نمبر پر سینڈ کر دیں،

آپ اپنے سوالات نیچے دیئے گئے نمبر پر واٹس ایپ کر سکتے ہیں جنکا جواب آپ کو صرف قرآن و حدیث کی روشنی میں دیا جائیگا,
ان شاءاللہ۔۔!!

⁦  سلسلہ کے باقی سوال جواب پڑھنے۔ 
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Mai Mardo se Nafrat karti hoo isliye Kabhi Shadi nahi karungi.

Aaj Kal Ladkiyaa Shadi karne se Kyu Dar rahi hai?

Aaj ke ladke Shadi kyu nahi karna chahate?

میں مردوں سے نفرت کرتی ہوں اس لیے کبھی شادى نہیں کرونگی۔

اس نے کہا میں ساری زندگی شادی نہیں کروں گی
میں نے مسکرا کر پیار سے اس بیٹی کو دیکھا اور کہا کیوں؟

وہ بولی میں نے اپنی ماں کے ساتھ اپنے باپ کا سلوک دیکھا ہے جس کے بعد مجھے اب مردوں سے نفرت ہو گئی ہے۔

بیٹی گاڑی چلاتی ہو ...؟
میں نے دھیان ہٹانا چاہا ...

ہاں انڈپینڈنٹ ہوں, اپنا کماتی ہوں اپنی گاڑی ہے وہ فخر سے بولی میں نے کہا روز گھر سے آفس تک کتنی گاڑیاں دیکھتی ہو؟ جو تمہیں کراس کرتی ہیں یا تم انہیں۔
اس نے کہا بیسیوں بلکہ شاید سینکڑوں مگر چچا جان یہ کیا سوال ہوا؟

میں نے کہا میری بچی ایک سوال کا اور جواب دے دو ان سڑک پر دوڑتی لاکھوں گاڑیوں میں سے کتنی کے روز ایکسیڈنٹ ہوتے ہوں گے؟

وہ بولی روز لاکھوں میں سے شاید پچاس یا سو ۔۔

میں نے کہا ان پچاس سو ایکسیڈنٹس کی وجہ سے تم گاڑی چلانےکا رسک کیوں لیتی ہو وہ بولی کیوں چھوڑوں ؟ لاکھوں گاڑیاں چل رہی ہیں چند ایکسیڈنس کی وجہ سے بھلا میں کیوں چھوڑوں ؟

میں نے محبت سے اسے دیکھا دل میں دعا کی کہ اللہ میرا یہ اگلا جملہ اس بچی کے دل میں اتار دے اس کے ماں باپ سکون میں آ جائیں اور ٹھہر ٹھہر کر کہا
میری اچھی بیٹی چند ایکسیڈنٹس کی وجہ سے گاڑی نہیں چھوڑتی چند برے یا ظالم مردوں کی وجہ سے شادی چھوڑ چکی ہو؟ یہ کیوں ؟
آخر لاکھوں کروڑوں مرد اچھے بھی تو ہیں ان کی شادیاں کامیاب بھی تو ہیں!

وہ پوری طرح میری بات کی گرفت میں آ چکی تھی ۔

تب میں نے شفقت سے اس کے دوپٹے سے ڈھکے سر پر ہاتھ پھیرا اور کہا بیٹی معاشرے میں درندے پھر رہے ہے اور شوہر تمہاری نفسیاتی جذباتی اور معاشرتی ضرورت بھی ہے ... اور محافظ بھی ...

ابھی جوان اور توانا ہو مگر جلد یہ سب ڈھل جائے گا بالوں میں چاندی اتر آئے گی, امکانات ختم ہوتے چلے جائیں گے, بھائی بہن سہیلیاں سب اپنی زندگی میں مگن ہو جائیں گی, تب تمہیں احساس ہو گا مگر اس وقت ٹرین چھوٹ چکی ہو گی پھر شاید کوئی بچا کھچا آپشن دستیاب ہو اور وہ ایک پچھتاوا بن کر رہ جائےگا ۔۔!

اس نے سر جھکا لیا اور کہا آپ میرے لئے دعا کریں ...

آپ لوگ بھی دعا کریں اللہ ہماری بچیوں کو “دین بیزار لبرل ازم “کے جالوں سے بچا لے۔۔۔!

منقول

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The world Largest Secular Democracy Oppresses Muslim Women to Liberate them.

The World’s Largest Democracy Oppresses Muslim Women to “Liberate” them!

A Hijab ban in the Indian city of New Delhi was issued by the Karnataka government on the 22nd of February 2022. It was and later upheld by the High Court in India and analysts have come to understand its wider social consequences in student communities.

A study published by the People’s Union for Civil Liberties (PUCL) said: “This could potentially lead to the ghettoisation of education as the ban has forced some hijab-clad students to seek a transfer to Muslim-managed institutions, thereby limiting their interactions with students of other communities”.

Comment:

The recent study has shown the wider psychological impact that these laws have had on the young Muslim women. It has led to a deep sense of isolation and depression among these students, who are placed at a disadvantage with these discriminatory rules.

The unfortunate reality of these sisters is that they have their futures and life in the hands of an authority that does not respect them and uses fake female liberation ideas to excuse their human rights abuses.

The Karnataka High Court had declared that “wearing of hijab by Muslim women does not form a part of essential religious practices in the Islamic faith and it is not protected under the right to freedom of religion guaranteed under Article 25 of the Constitution of India.

During a hearing on petitions challenging the hijab ban in the Supreme Court earlier this month an absurd assertion was made that; “The right to dress would also include the “right to undressing.”

The PUCL report said that the High Court’s verdict has denied women their right to wear the hijab as a matter of choice and agency for themselves.

The oppressive rulings dictating to women what they can wear show immense hypocrisy in the liberal democratic narrative that seeks to liberate Iranian women from such rulings on dress, yet use the same punitive punishments on Muslim women who choose Hijab.

Liberal democratic viewpoints would condemn Afghanistan colonial puppet government’s ban on women in education to demonize Sharia law, but do the same to celebrate Western ideals.

In India it is relevant to note that the importance to many women, irrespective of their religion, like to cover their heads because it makes them feel safe or they have a cultural affiliation with the practice.

They are not subject to the ban’s enforcement, which clearly indicates that Islam is the matter under attack specifically.

The Central Media Office of Hizb ut Tahrir has also issued previous news comments on the workplace discrimination for Muslim women in India, such is the false liberation of women under secular laws.

The only way Muslim women can fulfill their full potential is under the ruling of the Khilafah that would look after all of the women’s needs as citizens of the State, without discrimination.

Education of women is valued in Islam and the contradiction of denying Muslim women’s education would not be an issue with the sincere of the Sharia Law in place.

(يُؤتِى الْحِكْمَةَ مَنْ يَشاءُ وَمَنْ يُؤتَ الْحِكْمَةَ فَقَدْ اُوتِىَ خَيْراً كَثِيراً وَمَا يَذَّكَّرُ اِلَّا اُولُوا الاَلْبَابِ)

“He gives knowledge and wisdom to whomever He wills مَن يَشاءُ, and to whomsoever knowledge is given, much good has been given.” [Al-Baqara: 269]

Written for the Central Media Office of Hizb ut Tahrir by
Imrana Mohammad
Member of the Central Media Office of Hizb ut Tahrir

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India, Pakistan ke Musalmano ka Apna Christmas Day hai, Islami Christmas ke bare me Jane.

Musalmano Ka Apna Christmas Day bhi hai.

India, Pakistan kee Musalman Apna ek Christmas day bhi manate hai aur wah hai 12 Rabiawwal.
Eid Miladunnabi ya Musalmano ka Apna Christmas.
Jaise Islami Jam Huriyat, Islami Bank hota hai waise Hi Ek Islami Christmas bhi hai.

عربی کے ایک شاعر نے کیا ہی خوب کہا:

اذا کان الغراب دلیل قوم
سیھدیھم الی دار الخراب

"جب کوّا قوم کا رہنما ہو گا تو وہ ان لوگوں کو ویرانوں اور ہلاکت کی جگہوں پر پہنچادے گا۔"

یہ شرک کی طرف جاتے راستے ہیں. ❌
جیسے بے نظیر کی قبر پر جا کر لوگ سجدہ ریز ہوتے ہیں. صرف چند ٹکوں کے عوض!!!

ارباب البصائر ان خرافات سے کھلم کھلا نفرت کا اظہار کریں.

#اسلامی_کرسمس!!

کرسمس تو کرسمس ہے ،اسکی ایک صفت ہے کہ یہ اللہ کے تہواروں کے مقابلے میں گھڑی جاتی ہے اور پھر اس پر تقدیس کا پردہ اوڑھا دیا جاتا ہے
یہ گھر کے کسی بچے کی سالگرہ کی مانند نہیں ہوتی جو کے کبھی بھی ثواب یا عبادت کی نیت سے نہیں منائی جاتی ،
یہ مقدس ہستیوں کا ذکر خیر بھی بلند کرنے کے لیے نہیں ہوتی بلکہ انکی سنت خراب کرنے کے لیے ہوتی ہے ،
یہ ان سے محبت کے دعوی کے ثبوت کے طور پر بھی نہیں ہوتی بلکہ دین میں بدعت داخل کرنے کے لیے ہوتی ہے
یہ اس دن ان ہستیوں پر مخصوص کرکے دوردوسلام بھیجنے کے لیے بھی نہیں ہوتی بلکہ ان کے نام پر شرک پھیلانے کے لیے ہوتی ہے.

اسکا دن مخصوص ہوتا ہے ، اس کا طریق کار مخصوص ہوتا ہے ،اس کا وقت مخصوص ہوتا ہے اس کی گمراہی کی سب بے بڑی نشانی یہ ہوتی ہے کہ جن کے نام پر یہ منائی جاتی ہے وہ اسے کبھی بھی نہیں مانتے اور نہ اس کے سچے ماننے والے !

یہ محبت نہیں ذلت ہوتی ہے ، یہ عبادت نہیں بدعت ہوتی ہے ، یہ رحمت نہیں زحمت ہوتی ہے ، یہ دین نہیں بے دینی ہوتی ہے،خاص اسی دن دوردسلام بھی عبادت نہیں بدعت میں داخل ہوجاتا ہے

جس طرح اسلامی جمہوریت ، اسلامی بینک ہوتا ہے ویسے ہی “عیدمیلادالنبی” اسلامی کرسمس ہے ۔ یہ اسی طرح کی نفرت و سلوک کی مستحق ہے جو کے ہم کرسمس کے ساتھ کرتے ہیں بلکہ اس سے بھی زیادہ کیونکہ یہاں شرک و گمراہی رسول اللہ کے نام پر پھیلائی جاتی ہے.

“جیسے بائبل میں کرسمس نہیں سانتاکلاز نہیں
ویسے ہی قرآن و سنت میں عیدمیلادالنبی نہیں “

--------------------------------------
  بصیرت افروز

جو علم کی راہ پہ چل پڑے، اسے تنہائی سے وحشت نہیں ہوتی، اور جو کتابوں سے حوصلہ پکڑنا سیکھ جائے، وہ سب دلاسوں سے بے نیاز ہو جاتا ہے، اور جسے تلاوتِ قرآن سے انس ہو جائے، اسے دوستوں کے بچھڑنے سے فرق نہیں پڑتا۔۔۔!!

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Muslim Country me kaise Islami Nijam Nafiz ho sakta hai , Pakistaan kaise America aur IMF ka Gulam bana?

Pakistan kya islami Mulk hai ya America ka Gulam.

Muslim Mumalik me Kaise Islami Nejam Nafij ho sakta hai?

مذہبی سیاسی جماعتیں کیسے اسلامی نظام نافذ کر پائیں گی، جب تک وہ حق بولنے سے خوفزدہ ہونا چھوڑ نہیں دیتیں اور جب تک یہ تسلیم نہیں کیا جاتا کہ یہ جمہوریت اور یہ جمہوری سیاست مسلمانوں کے مسائل کا حل اور ان کے درد کی دوا نہیں ہے!

جماعت اسلامی کے سابق امیر سید منور حسن مرحوم نے جب حق بولا اور کہا کہ طالبان شہید ہیں اور امریکہ کے ساتھ مل کر لڑنے والے پاکستانی فوجی شہید نہیں، تو ان کو منظر سے ہٹا دیا گیا۔ اس بات کا قوی گمان ہے ان کو جماعتی الیکشن میں دھاندلی کرکے ہرایا گیا تھا اور موجودہ امیر سراج الحق کو منتخب کیا گیا۔

بہرحال، اللّٰه تعالیٰ نے ان کو عمر کے آخری حصے میں جمہوری نظام کا مزید حصہ بنے رہنے سے بچا لیا۔

جمہوریت کے متعلق بھی سید منور حسن کہا تھا کہ ملک کے موجودہ حالات پر محض انتخابی سیاست اور جمہوری سیاست کے ذریعے قابو نہیں پایا جا سکتا، بلکہ اس کے لیے جہاد اور قتال فی سبیل اللّٰه کے کلچر کو عام کرنے کی ضرورت ہے۔

2014ء میں سید منور حسن نے لاہور میں جماعت اسلامی کے اجتماع سے خطاب کرتے ہوئے کہا تھا:

"میں ڈنکے کی چوٹ پر اور بِلا خوف و تردید یہ کہتا ہوں کہ جس معاشرے میں ہم رہتے ہیں، اس میں اگر جہاد اور قتال فی سبیل اللّٰه کے کچلر کو عام نہیں کیا گیا تو محض انتخابی سیاست اور جمہوری سیاست کے ذریعے اس وقت کے حالات پر قابو نہیں پایا جا سکتا ہے۔

جہاد اور قتال فی سبیل اللّٰه کے لفظ کا استعمال متروک ہوتا جا رہا ہے اور اس کو دہشت گردی سے جوڑ دیا گیا اور شدت پسندی قرار پایا ہے اور بڑے بڑے لوگ اس لفظ کے زیادہ استعمال سے خوفزدہ ہوتے ہیں۔"

لاپتہ افراد کے بارے میں سید منور حسن مرحوم نے کہا تھا کہ:

"لوگوں کو لاپتہ کرنے والے اپنی ہی فوج اور ایجنسیوں والے ہیں۔ ہمیں حیا آتی ہے کہ ہماری ایجنسی کے لوگ ہمارے نوجوانوں کو اغوا کرتی ہے۔

خدا کرے ان فوجیوں کے بیٹوں کے ساتھ بھی، اغوا کرنے والوں کے ساتھ بھی اللّٰه تعالیٰ وہی سلوک کرے۔ جو انہوں نے کیا ہے وہ ان کے سامنے آئے، یہ بھی رسوا ہوں۔"

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Ek Momin Ladki ka waqya Jisne Allah Ki Muhabbat ki Khatir Na Mehram ki Muhabbat Qurbaan kar di.

Momin ladkiyaa kaisi hoti hai?

Momin Ladkiyo ki Pehchan aur khubiyaan.

مومن لڑکیوں!
یہ تحریر تمہارے نام ہے

●○●○●○●○●○●○●○●○

آو تمہیں آج ایک محبت کی کہانی سناتی ہوں
اس زمین سے دور تمہیں فضاؤں کی سیر کرواتی ہوں

اسے اس نامحرم سے شدید محبت ہو گئی تھی
پتہ نہیں کب، کیسے مگر اسے یہ بیماری لاحق ہو گئی تھی

وہ جس عمر میں تھی وہ عمر نادان تھی
وہ نادان، کم عمر اور ناسمجھ لڑکی تھی

وہ لاعلم تھی اپنے اعمال سے، وہ بے خبر اپنے انجام سے تھی
وہ پتھریلی روش پر گھائل ہوتی چلی جا رہی تھی.

رحمٰن نے قرآن میں بتا بھی دیا تھا
جو الله کی پیروی نہیں کرتے ہیں
وہ شیطان کے نقشِ قدم پر چلتے ہیں
مگر وہ اس سے بیگانہ اور بےخبر جو تھی

وہ صراط المستقيم سے دور تھی
وہ شیطان کی پیروی میں جو تھی

وقت گزرا وہ ہدایت پر آ گئی
رحمٰن نے اسے اپنا نور عطاء فرما دیا
وہ تاریکی سے نور کے سفر پر آ گئی
وہ نور کے راستوں پر چلنے جو لگی تھی

وہ لڑکی ایک بار پھر سے مبتلائے جنگ ہوئی
وہ اب اس نامحرم کو بھول جانا چاہتی تھی
وہ اس انجانے بھنور سے نکل آنا چاہتی تھی
وہ اسے ہمیشہ کے لیے بھلا دینا چاہتی تھی
کیونکہ، اسے علم تھا اس کے رب کو یہ پسند نہیں ہے
اس کے رب نے نگاہیں جھکانے کا حکم دیا ہے
اس کے رب نے حرام تعلقات سے منع فرمایا ہے

وہ اپنی نگاہیں نیچی رکھتی تھی
وہ اس نامحرم کو دیکھتی نہ تھی
وہ اپنے دل کو قابو میں رکھتی تھی
وہ اس نامحرم کو سوچتی نہ تھی
وہ اپنے لب سی کر رکھتی تھی
وہ لبوں سے کچھ کہتی نہ تھی
وہ اپنے پیروں کو جماۓ رکھتی تھی
وہ اس راستے پر جاتی نہ تھی

وہ سب کچھ کرتی تھی
وہ جتنا کر سکتی تھی
کیونکہ، وہ سب کھو سکتی تھی
مگر الله کو کھو سکتی نہ تھی
وہ ہر محبت کو چھوڑ سکتی تھی
مگر الله کی محبت سے دور ہو سکتی نہ تھی

وہ کمزور ہرگز نہ ہونا چاہتی تھی
مگر نہ جانے کیسے وہ کمزور ہو جاتی تھی
وہ نگاہیں ہرگز نہ اٹھاتی تھی
اور وہ خیالات کو بھٹکنے بھی نہ دیتی تھی

ان کوششوں کے باوجود بھی وہ اسے یاد آ جاتا تھا
اس کا دل اس کے محرم ہو جانے کی خواہش کر بیٹھتا تھا.

وہ لڑکی یہیں تڑپ اٹھتی تھی
جب اس کی یاد اسے آتی تھی
اور دل محرم ہونے کی خواہش کر بیٹھتا تھا
اسے یہی خواہش کمزور کر دیتی تھی

وہ اسی کشمکش میں چلی جا رہی تھی
روتی تڑپتی اس محبت سے نکلنا چاہ رہی تھی

اسے اس کے رب سے شدید محبت بھی تھی
مگر حب الشہوات بھی اس کے اندر آ گئی تھی

وہ رب کی محبت کی متلاشی لڑکی تھی
وہ جانتی تھی کہ اس کے رب کو یہ پسند نہیں ہے
وہ دل میں اس کی خواہش کرتی بھی
تھی
اور ڈر کر کبھی خاموش بھی ہو جاتی تھی
وہ صبر سے دل کو تھامے رکھتی تھی
مگر وہ کمزور بھی پڑ جاتی تھی

اسے بےشک اس نامحرم سے محبت تھی
مگر اس سے بڑھ کر اپنے رب سے محبت تھی

اس نے حب الشہوات کے بارے میں جب جانا
اس نے پرہیزگاری اختیار کی اور صبر کر لیا

وہ ان نوجوانوں میں سے ہونا چاہتی تھی
"جو رحمٰن سے بن دیکھے ڈرتے ہیں"
وہ ان نوجوانوں جیسی ہونا چاہتی تھی
جنہوں نے رب کی خاطر اپنی محبت کو چھوڑ دیا تھا
وہ ان میں سے ایک ہونا چاہتی تھی
جن کے لئے نامحرم کی محبت چھوڑنا مشکل مرحلہ تھا
مگر جنہوں نے اپنے رب کی خاطر اسے ایسے چھوڑا تھا
کہ پھر پلٹ کر اس جانب نہ دیکھا تھا
انہوں نے اپنی اس محبت پر صبر کر لیا تھا
انہوں نے رب کی خاطر صبر کیا تھا
انہوں نے صرف رب کی خاطر چھوڑا تھا

اس لڑکی نے بھی یہ مرحلہ طے کر لیا تھا
اس نے بھی رب کی خاطر اس محبت پر صبر کر لیا تھا

یہ تھی اس لڑکی کی محبت کی کہانی
جو شروع ہوئی ایک نامحرم کی محبت سے تھی
اس کہانی کا انجام رب سے محبت ہونا طے پایا تھا

وہ نامحرم کی چاہت رکھنے والی لڑکی
وہ اپنے رب کی محبت کو پا گئی تھی
وہ اپنے رب کی خاطر سب چھوڑ چکی تھی
وہ اپنے رب کی خاطر صبر کر گئی تھی

وہ مومن لڑکی تھی
اور مومن لڑکیاں نگاہیں جھکا کر رکھتی ہیں
وہ اپنے خیالات پر قابو رکھتی ہیں
وہ ہر کسی کو نہیں سوچ لیتی ہیں
وہ ہر کسی پر نگاہیں نہیں اٹھا لیتی ہیں
وہ ہر کسی کی خواہش نہیں کر لیتی ہیں

محبت انہیں بھی ہو جاتی ہے
مگر وہ جانتی ہیں محبت کس سے کرنی ہے
وہ جانتی ہیں محرم اور نامحرم کے فرق کو
وہ بخوبی ان سب سے واقف ہوتی ہیں

مومن لڑکیاں اپنے رب کے حدود کو جانتی ہیں
مومن لڑکیاں اپنے رب کو سب سے اوپر رکھتی ہیں
مومن لڑکیاں اپنے حدود میں رہتی اچھی لگتی ہیں
وہ رب کے لیے سب چھوڑتی پیاری لگتی ہیں

مومن لڑکیاں ایسی ہی ہوتی ہیں
اپنے رب کے روکے سے رک جانے والی
اپنے رب کے حکم پر سمعنا و اطعنا کرنے والی
مومن لڑکیاں ایسی ہی ہوتی ہیں.

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Muhabbat ke Nam par Ladkiyo se Tasweer, Videos mangna aur Use Blackmail karne ka Riwaz.

Ek Behan ka Ladko ki Nasihatem bhara Paigham.
Waise Ladke jo Muhabbat ke nam par Ladkiya fansate hai aur Unse Tasweer, videos, Dating wagairah sab kuchh karte hai FIR Blackmail karke Ladki Ko badnam karte hai.
Kya yahi Sacchi Muhabbat hai aur Ladkiyo se aisi Muhabbat ki ummid ki jati hai.

عاۂشہ فاطمہ

ان بھاۂیوں کیلۓ یہ تحریر ہے ۔۔ جو نا محرم لڑکی سے بات چیت کو محبت سمجھتے ہیں ۔۔۔۔ بھائیوں دل تو ایک ہوتا ہے اور دل پر تو دلوں کو بنانے والے کی محبت ہونی چاہیۓ؟؟؟؟؟؟۔۔۔

پھر آپ لوگ کیوں لڑکیوں سے بات چیت کو محبت کھتے ہیں ۔۔۔
حالانکہ وہ تو محبت ہوتی بھی نہیں وہ تو دھوکہ ہوتا ہے حرام تعلقات ہوتے ہیں ۔۔۔

کیا آپ کو لگتا ہے کہ محبت ہوگی وہ غور کیا کریں کسی لڑکی کے کجھ الفاظوں سے محبت نہیں ہوا کرتی۔
کسی لڑکی کی تصویر سے محبت نہیں ہوا کرتی یہ سب کجھ تو وہ اپنوں سے چھپا کر کرتی ہے۔

بات چیت تصاویر ویڈیو اور یہ کیسی محبت ہے آپ لوگوں کی جو کجھ وقت بعد بلیک میلنگ پر اتر آتے ہیں۔
کسی لڑکی کو برباد کرکے رسوا کرکے والدین کی اس کی عزت کو تباہ و برباد کرکے آپ لوگ خوشی خوشی زندگی گزار لیتے ہیں ؟؟

لیکن کب تک آخر آپ قاتل بھی تو ہوۂے نہ لڑکی کی خود کشی کا سبب, اس کے باپ بھائی کو کسی کو منہ نہ دکھانے کا سبب۔
کیا یہ نہیں سوچا کبھی کہ تمھاری محبت کتنی  خطرناک ہے جو صرف لڑکی کو برباد کرنا ۔۔

اس کو آپ لوگ دیتے ہیں محبت کا نام استغفر اللّٰہ کے یہاں کبھی حساب بھی تو دینا آپ کو ۔۔۔ پہلے لڑکی کو یقین دلایا پھر تصاویر لی اور پہر جب دل بھر گیا واۂرل کردی تصاویر ۔۔۔ ؟؟

لیکن لڑکی کا قصور تو بہت ہے لیکن اس سے بڑا قصور آپ لوگوں کا نہیں کہ لڑکی کو یقین دلاتے ہو ۔۔۔ کہ محبت کرتا ہو آپ سے یقین کریں کجھ نہیں کرونگا ۔۔ اور ایک تو لڑکی اتنی تعریفوں کی خواہشمند اور اتنی بے وقوف یقین کرکے دیتی ہیں پکچر ۔۔۔۔ اور پھر انجام سامنے ہوتا ہے رسوائی بربادی بدنامی ۔۔۔۔
کیا ملتا ہے آپ لوگوں کو ایسی محبت کی شروعات کرتے ہوئے ؟؟
ایسی محبت کا دکھاوا کرتے ہوئے ۔۔۔۔؟؟؟

اللّٰہ تعالٰی تو سب دیکھ رہا ہوتا ہیں کیوں شروع سے اس کی محبت نہیں دیکھتے ہو جس نے آپ لوگوں کیلۓ وقت پر ہر چیز مقرر کی ہوئی ہیں؟؟
کیا ہر مرد کیلۓ آسمان پر تو رشتے بنتے ہیں پھر انتظار کیوں نہیں کرتے ہیں آپ لوگ کیوں تب تک عزت کی زندگی نہیں گزارتے ہیں ؟؟۔۔

کیوں نا محرم لڑکیوں سے دوستی وغیرہ سے گریز نہیں کرتے ہیں ۔۔۔۔ ۔؟؟

رب العالمین سے محبت کیوں نہیں کرتے ہیں بلا وجہ میسیجز وغیرہ میں مصروف ہونے سے بہتر ہے نماز, قرآن مجید کو اپناۂے اور سچی محبت رب العالمین سے کریں۔

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Barailwi Dharm ka History, Barailwi aur Hindu dharm me Kitna Fark hai?

Hindu Dharm se Tarike lekar Barailwi  Dharm Izaad Hua.


हिंदू धर्म सबसे प्राचीन धर्म है, तकरीबन हजारो लाखो साल पुरानी, इस धर्म की प्रमुख चार किताबे है ऋग्वेद, यजुर्वेद, अथर्वेद और सामवेद। इस धर्म मे बहुत से देवी देवता भी हुए जिनकी पूजा की जाती है, हिंदू धर्म मे कई अवतार भी हुए। खैर हर कोई इस धर्म के बारे मे जानता है मगर आज यहाँ आप को एक ऐसे धर्म के बारे मे बताऊंगा जिसके मानने वाले को देखे होंगे मगर उनके धर्म के बारे मे शायद आपको मालूम नही होगा।

वह धर्म है बरेलवी धर्म: 

इस धर्म के मानने वाले ज्यादातर हिंदुस्तान, पाकिस्तान, नेपाल और बांग्लादेश मे है। बरेलवी धर्म के मानने वाले और हिंदू धर्म के मानने मे ज्यादा फर्क है। मगर हिंदू धर्म बहुत पुराना धर्म है, इस धर्म मे अवतार है, वेद की किताबे है, शास्त्र है, और इनका अपना तरीका है। मगर बरेलवी धर्म का न कोई अवतार है, न इतिहास मालूम है, बल्कि इन लोगो के पास कुछ नही था तो हिंदू धर्म के रीति रिवाजों को अपनाकर एक अलग धर्म बनाया। बरेलवी धर्म का कोई सर पैर मालूम ही नही, इसका डेट ऑफ बर्थ किसी को मालूम नही।

आइये जानते है इस बगैर सर पैर वाले धर्म के बारे मे, इसने कौन कौन से तरीके हिंदू धर्म से लिए है।

हिंदू अपने धार्मिक शास्त्रों को छोड़कर पंडित जी की कही हुई बात और किताबो पर चलते है।
वही बरेलवी कुरान व हदीस को छोड़ कर अपने मौलवियो, इमामो और बुजुर्गो की लिखी हुई किताब व उनके बातिल अकिदे पर चलते है।

(1) हिंदू को अगर कोई पंडित जी रात भर पानी मे रहने को कहे तो वह खडा रह जायेगा।

उसी तरह बरैलवी का मौलवी बरेलवी को पानी मे खड़ा रहने को बोले तो वह खड़ा रहेगा।

(2) हिंदुओ के चार वेद है। ऋग् वेद, अथर्वेद, सामवेद और यजुर्वेद। इन वेदो को छोड़कर वे अपने अपने पंडितो की किताबें पढ़ते है और मूर्ति पूजा करते है।

इसी तरह बरेलवी धर्म वाले भी कुरान व हदीस को छोड़कर अपने अपने बुजुर्गो, इमामो और खानकाहो को पुकारते है। यह बागी अपने चार इमामो की किताब को ही मानते है।

(3) हिंदू मूर्ति पूजा करेंगे और कहेंगे की हम इन्हें रूपक मानते है, इसके जरिये हम ईश्वर के करीब होते है।

इसी तरह बरेलवी भी मजारो पर जाकर बाबाओ, पिरो और सज्जादा नशीं से  मांगते है और कहते है के हम इनसे मांगते नही बल्कि इनसे वसीला लेते है, ये हमारी दुवाओ को अल्लाह तक पहुचाते है।

(4) ये खड़ी मूर्ति की पूजा करते है और वो (बरेलवी) पड़ी मूर्ति की।
ये देवी देवता के स्थान पर जाते है और वो क़ब्रिस्तान की जयारत् करने जाते है।

हिंदू मूर्ति को धोकर पीते है तो कहते है की ये गंगा जल से भी पवित्र है।
वही बरेलवी उर्स के मौके पर पक्की कब्र को धोकर पियेंगे तो कहेंगे के यह तो आब ए ज़मज़म से भी पाक है।

(5) ये अपने पूजा स्थलों पर भजन गाते है, वो अपने इबादतगाहो (मजार, दरगाह) पर कव्वालिया गाते है।

(6) ये मंदिरो का दर्शन करने के लिए धाम/ यात्रा करते है, जबकि बरेलवी मजार की जियारत के लिए सफर पर जाते है।

(7) ये मूर्ति, पेड़ों पर कपड़े और माला डालते है , इधर बरेलवी मजारो और दरगाहों पर फूल और चादर चढ़ाते है।

(8) हिंदू मंदिरो मे भजन कीर्तन पढ़ते है उसी तरह बरेलवी मजारो व दरगाहों पर कव्वालियान गाते है और ठुमके लगाते है।

इतना ही नही दोनो की शादियों मे भी बहुत सी समानताएं है।

(1) इनके यहाँ शादी से एक दिन पहले मटकोर पूजा होती है, उसी दिन भोज भी होता है। भोज होने से पहले पंडित जी पूजा कराकर प्रसाद बांट देते है।

बरेलवी धर्म मे भी शादी के एक दिन पहले मटकोर होता है जिसमे ये पहले मिलाद करते है, मिलाद के बाद खड़े होकर कयाम करते है उसके बाद मिठाई पर फ़ातेहाँ पढ़ते है फिर बाँटते है उसके बाद भोज होता है।

(2) हिंदुओ मे जिसकी शादी होती है वह मटकोर के दिन अपने माँ के साथ मंदिर मे पूजा करने जाता / जाती है, इसमे आसपास की बहुत सो औरतें भी शामिल होती है।

वही बरेलवियो मे  मटकोर के दिन बहुत सारी औरते एक साथ लड़का या लड़की को लेकर मस्ज़िद मे "ताक " भरने जाती है। इतना ही नही लड़का सारी जिंदगी नमाज पढ़ता हो या न हो मगर बारात जाने से पहले दो रकात् नमाज जरूर पढ़ता है, वह अलग बात है के दुल्हे राजा कभी मस्ज़िद गया न हो।

(3) हिंदू भाईयो के यहाँ शादी मे दुल्हा से धान कुटवाया जाता है, उसी तरह बरेलवियो के यहाँ भी घर - भराव होता है जिसमे चावल उपर से फेंका जाता है और सास ससुर का घर भरा जाता है ।

(4) हिंदुओ मे लड़की की विदाई के वक़्त लड़की का भाई गाड़ी को धक्का देकर आगे बढ़ाता है, ठीक उसी तरह बरेलवी के यहाँ भी लड़की का भाई गाड़ी को धक्का देकर आगे बढ़ाता है।

पर्व व त्योहार मे यक्सानीयत (सिमिलार्लिटीज)

(1) हिंदू धर्म के मानने वाले छठ पूजा (कुछ राज्य मे ही होता हो) मनाते है, बरेलवी भी बीबी पब्नी और बेड़ा नाम का पर्व मनाते है।

(2) हिंदू रक्षा बंधन के मौके पर महाविरि झंडा मनाते है तो दूसरी तरफ झंडे के जैसा ही 10 मुहर्रम को ताजिया मनाया जाता है।

(3) हिंदू सकरात् मनाते है जिसमे तिल का लाइ खाते है तो बरेलवियो के यहाँ शब् ए बारात मनाया जाता है जिसमे हलवा खाते है।

(4) हिंदू महायज्ञ मनाते है, जिसमे बहुत सारी देवी देवताओं की पूजा की जाती है, बरेलवी लोग भी उर्स मनाते है जिसमे सज्जादा नशीं के आगे सजदा करते है और अपनी मुरादें मांगते है। उर्स मे ये लोग दरगाहों और मजारो पर जाते है वहाँ मेला लगता है। मेला मे ज्यादातर लड़के और लड़कियो की भीड़ होती है जहाँ से लड़किया किसी लड़के के साथ भाग जाती है।

तहज़ीज़ व तदफ़ीन / अंतिम संस्कार या क्रिया कर्म मे समानताएँ

(1) हिंदू धर्म मे मरने वाले के यहाँ श्राद होता है उसी तरह
बरेलवियो मे चहारम, दस्वां, बिस्वां, चलिस्वा, बरसी और बरखि होता है मरने वाले के नाम पर।

(2) हिंदू धर्म के धर्मगुरु, संत या आचर्यं भगवा या नारंगी रंग का कपड़ा पहनते है
ठीक उसी तरह बरेलवी लोगो के पीर, मौलवी, सज्जादा नशी व उलेमा चिश्तिया रंग के कपड़े पहनते है।

(3) हिंदू राशि देख कर अपने भाग्य / भवीष्य का फैसला करते है वहीं बरेलवी भी जंतरि देख कर शादी या किसी खास मौके का तारीख तय करते है, वो अपने किस्मत का फैसला जंतरि की तरिखो से करते है।

(4) हिंदू भाई यंत्र बनाते है और उसे दरवाजे के सामने लटका देते है तो दूसरी तरफ लौह ए कुरानी लटका देते है।

(5) ज्यादातर हिंदू भाई जब बाहर से आते है तो देवी देवता का दर्शन करने धाम जरूर जाते है। उसी तरह जब कोई बरेलवी विदेश से आता है तो बाबा के दरबार पर हाजिरी देने जरूर जाता है।

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