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Kya Aurat Aur Mard Ki Namaj Alag Alag Hai?

Kya Aurat Aur MArd Ki Namaj Alag Alag HAi?

किया इसकी कोई दलील मिलती भी है?
क्योंकि रसूलल्लाह ने कहा:
नमाज़ वैसे पढ़ो जिस तरह तुम ने मुझे पढ़ते हुए देखा है
(Bukhari : 631)
यहाँ रसूलल्लाह ﷺ ने ये नहीं कहा कि औरत ऐसे पढ़े और मर्द दूसरी तरह से बल्कि अपने जैसी पढ़ने के बारे में कहा कि  मेरी तरह पढ़ी
रसूलल्लाह  ﷺ या किसी साहब या साबिया से ऐसा 1 भी सुबूत नही मिलता है कि औरत और मर्द की नमाज़ का तरीका अलग है.
कुछ लोग ये कहते हैं कि ये हदीस साहब को बताई को बतायी हई थी साबिया को नही,ऐसा कहने वालों को इस बात पे गौर करना चाहिए कि रसूलुल्लाह ﷺ जब कोई बात चाहिए
सिर्फ मर्द के लिए होती थी तो वह पे सिर्फ स्पेशल मर्द वर्ड यूज़ करते थे जैसे :- सोना (गिल्ड),रेशम पहनना मर्दो के लिए हराम है
 [Abu Dawud, 4057]
तो ठीक इसी तरह औरतो के लिए जो चीज़ अलग होती वो बता दिया करते थे कि औरतों को कहो ऐसे करे।
*जैसे ;- औरतो को नमाज़ के लिए सिर का कवर करना लाज़मी है लेकिन मर्द के लिए नही है।
 (Sahi bukhari/Muslim kitabussalat)
ज़रा सोचिये इतनी बड़ी इबादत (नमाज़) का तरीका अलग होता और रसूलुल्लाह ﷺ हमे नही बताते
रसूलुल्लाह ﷺ ने इतनी बड़ी इबादत नमाज़ के बारे में कभी नही कहा कि औरत तुम ऐसे पढ़ो मर्द तुम ऐसे पढो।
औरत ज़मीन से चिपक के सजदा करती हैं
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जिसका कोई सुबूत नही है बल्कि रसूलुल्लाह ﷺ  ने कहा:-
तुममें से कोई अपने  बाज़ू सजदे में इस तरह न बिछाये जिस तरह कुत्ता बिछाता हैं।
  (Sahih Bukhari : #822)
इस हदीस से यह साबित होता हैं के औरतो को इस तरह सजदा नही करना चाहिये बल्कि जैसे  मर्द लोग सजदा करते है वैसे ही औरत को भी करना है।
इमाम *बुखारी रहिमहुल्लाह* सही सनद के साथ उम्म ए दर्द रादिअल्लाहु अंह का अमल बयान करते है कि :
वो (नमाज़ में ) मर्दो की तरह बैठी थी
“ (Al-Tarikh Al-Saghir Al-Bukhari 90)
*कुछ लोग औरतों को कहते हैं कि सीने पे हाथ बांधो ओर मर्द को कहते हैं कि नाफ़ के नीचे इस बात की कोई दलील नही मिलती की औरत specially सीने पे बंधे ओर मर्द नाफ़ के नीचे।
कुछ रवायत और दी जाती है *औरत और मर्द के नमाज़ में फर्क की जो कि सारी की सारी  ज़ईफ़ है और क़ाबिले क़ुबूल नहीं।
इन सब बातों से यही पता चलता है कि औरत ओर मर्द दोनो की नमाज़ का तरीका एक ही जैसा है।
इस लिए हमे चाहिए कि जैसे रसूल ﷺ ने नमाज़ पढ़ी वैसे ही पढ़े.
क्योंकि आपकी इबादत अगर रसूल ﷺ की तरह ना हुई तो वो क़ुबूल ही नही होगी तो कोई फायदा नही ऐसी इबादत करने का जो क़ुबूल ही ना हो।
आये अब हम लोग रसूलुल्लाह ﷺ की नमाज़ का तरीका जानते हैं।
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मुकम्मल नमाज़ सहीह अहादीस के मुताबिक़
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بِسْمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ
```रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया “ नमाज़ उस तरह पढ़ो जिस तरह मुझे
पढ़ते हुए देखते हो. ” ```
*[बुख़ारी ह० 631]
क़याम का सुन्नत तरीक़ा
`पहले ख़ाना-ए- काबा की तरफ़ रुख़ करके खड़े होना```
[इब्न माजा ह० 803 ]
`अगर बाजमात नमाज़ पढ़े तो दूसरों के कंधे से कंधा और टख़ने से टख़ना मिलाना.```
*[अबू दाऊद ह० 662]
``फिर तक्बीर कहना और रफ़अ़ यदैन करते वक़्त हाथों को कंधों तक उठाना```
[बुख़ारी ह० 735, मुस्लिम ह० 861]
```या कानों तक उठाना```
[मुस्लिम ह० 865]
फिर दायां हाथ बाएं हाथ पर सीने पर रखना ```
*[मुस्नद अहमद ह० 22313]
```दायां हाथ बायीं ज़िराअ़ पर```
*[बुख़ारी ह० 740, मुवत्ता मालिक ह० 377]*
```ज़िराअ़ : कुहनी के सिरे से दरमियानी उंगली के सिरे तक का हिस्सा कहलाता है ```
[अरबी लुग़त (dictionary) अल क़ामूस पेज 568]
```दायां हाथ अपनी बायीं हथेली, कलाई और साअ़द पर
```
*[अबू दाऊद  ह० 727, नसाई  ह० 890]*
```साअ़द : कुहनी से हथेली तक का हिस्सा कहलाता है```
*[अरबी लुग़त (dictionary) अल क़ामूस  पेज 769]
``फिर आहिस्ता आवाज़ में ‘सना’ (यानी पूरा सुब्हानक्ल्लाहुम्मा) पढ़ना```
*[मुस्लिम ह० 892, अबू दाऊद ह० 775, नसाई ह० 900]*
```इसके अलावा और भी दुआएं जो सहीह अहादीस से साबित हैं, पढ़ी जा सकती हैं.```
◾``` फिर क़ुरआन पढ़ने से पहले ‘अऊज़ू बिल्लाहि मिनश् शैतानिर रजीम’ ```
*[क़ुरआन 16:98, बुख़ारी ह० 6115, मुसन्नफ़ अब्दुर्रज्ज़ाक़ ह० 2589]
```और ‘बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहीम’ पढ़ना ```
*[नसाई ह० 906, सहीह इब्न ख़ुज़ैमा ह० 499]
फिर सूरह फ़ातिहा पढ़ना ```
*[बुख़ारी ह० 743, मुस्लिम ह० 892]*
```जो शख्स़ सूरह फ़ातिहा नहीं पढ़ता उसकी नमाज़ नहीं होती.```
*[बुख़ारी ह० 756, मुस्लिम ह० 874```
जहरी (ऊँची आवाज़ से क़िराअत वाली) नमाज़ में आमीन भी ऊंची आवाज़ से कहना ```
*[अबू दाऊद ह० 932, 933, नसाई ह० 880 ]
```फिर कोई सूरत पढ़ना और उससे पहले ‘बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहीम’ पढ़ना ```
*[मुस्लिम ह० 894]*
`पहली 2 रकअ़तों में सूरह फ़ातिहा के साथ कोई और सूरत या क़ुरआन का कुछ हिस्सा भी पढ़ना ```
*[बुख़ारी ह० 762, मुस्लिम ह० 1013, अबू दाऊद ह० 859]*
```और आख़िरी 2 रकअ़तों में सिर्फ़ सूरह फ़ातिहा पढ़ना और कभी कभी कोई सूरत भी मिला लेना. ```
*[मुस्लिम ह० 1013, 1014]*
*रुकूअ़ का सुन्नत तरीक़ा*
◾ ```फिर रुकूअ़ के लिए तक्बीर कहना और दोनों हाथों को कंधों तक या कानों तक उठाना (यानी रफ़अ़ यदैन करना) ```
*[बुख़ारी ह० 735, मुस्लिम ह० 865]*
◾ ```और अपने हाथो से घुटनों को मज़बूती से पकड़ना और अपनी उंगलियां खोल देना. ```
*[बुख़ारी ह० 828, अबू दाऊद ह० 731]*
◾ ```सर न तो पीठ से ऊंचा हो और न नीचा बल्कि पीठ की सीध में बिलकुल बराबर हो.```
*[अबू दाऊद  ह० 730]*
◾ ```और दोनों हाथों को अपने पहलू (बग़लों) से दूर रखना ```
*[अबू दाऊद  ह० 734]*
◾``` रुकूअ़ में ‘सुब्हाना रब्बियल अज़ीम’ पढ़ना.```
*[मुस्लिम ह० 1814, अबू दाऊद ह० 869]* ```इस दुआ को कम से कम 3 बार पढ़ना चाहिए``` *[मुसन्नफ़ इब्न अबी शैबा ह० 2571]*
*क़ौमा का सुन्नत तरीक़ा*
◾ ```रुकूअ़ से सर उठाने के बाद रफ़अ़ यदैन करना और ‘समिअ़ल्लाहु लिमन हमिदह, रब्बना लकल हम्द’ कहना```
*[बुख़ारी ह० 735, 789]*
◾``` ‘रब्बना लकल हम्द' के बाद 'हम्दन कसीरन तय्यिबन मुबारकन फ़ीह' कहना.```
*[बुख़ारी ह० 799.]*
*सज्दा का सुन्नत तरीक़ा*
◾ ```फिर तक्बीर कहते हुए सज्दे के लिए झुकना और 7 हड्डियों (पेशानी और नाक, दो हाथ, दो घुटने और दो पैर) पर सज्दा करना. ```
*[बुख़ारी  ह० 812]*
◾ ```सज्दे में जाते वक़्त दोनों हाथों को घुटनों से पहले ज़मीन पर रखना ```
*[अबू दाऊद  ह० 840, सहीह इब्न ख़ुज़ैमा ह० 627]*
```नोट: सज्दे में जाते वक़्त पहले घुटनों और फिर हाथों को रखने वाली सारी रिवायात ज़ईफ़ हैं.```
*[देखिये अबू दाऊद ह० 838]*
◾ ```सज्दे में नाक और पेशानी ज़मीन पर ख़ूब जमा कर रखना, अपने बाज़ुओं को अपने पहलू (बग़लों) से दूर रखना और दोनों हथेलियां कंधों के बराबर (ज़मीन पर) रखना.```
*[अबू दाऊद ह० 734, मुस्लिम ह० 1105]*
◾ ```सर को दोनों हाथों के बीच रखना```
*[अबू दाऊद ह० 726]*
◾ ```और हाथों को अपने कानों से आगे न ले जाना.```
*[नसाई ह० 890]*
◾ ```हाथों की उंगलियों को एक दूसरे से मिला कर रखना और उन्हें क़िब्ला रुख़ रखना.```
*[सुनन बैहक़ी 2/112, मुस्तदरक हाकिम 1/227]*
◾ ```सज्दे में हाथ (ज़मीन पर) न तो बिछाना और न बहुत समेटना और पैरों की उंगलियों को क़िब्ला रुख़ रखना.```
*[बुख़ारी ह० 828]*
◾ ```सज्दे में एतदाल करना और अपने हाथों को कुत्तों की तरह न बिछाना. ```
*[बुख़ारी ह० 822]*
◾ ```सज्दे में अपनी दोनों एड़ियों को मिला लेना```
*[सहीह इब्न खुज़ैमा ह० 654, सुनन बैहक़ी 2/116]*
◾ ```और पैरों की उंगलियों को क़िब्ला रुख़ मोड़ लेना.```
*[नसाई ह० 1102]*
```नोट: रसूलुल्लाह ﷺ  ने फ़रमाया कि “ उस शख्स़ की नमाज़ नहीं जिसकी नाक पेशानी की तरह ज़मीन पर नहीं लगती.” ```
*[सुनन दार क़ुत्नी 1/348]*
◾ ```सज्दों में यह दुआ पढ़ना ‘सुब्हाना रब्बियल आला’```
*[मुस्लिम ह० 1814, अबू दाऊद ह० 869]* ```इस दुआ को कम से कम 3 बार पढ़ना```
*[मुसन्नफ़ इब्न अबी शैबा ह० 2571]*
*जलसा का सुन्नत तरीक़ा*
◾ ```फिर तक्बीर कह कर सज्दे से सर उठाना और दायां पांव खड़ा कर, बायां पांव बिछा कर उस पर बैठ जाना.``` *[बुख़ारी ह० 827, अबू दाऊद ह० 730.]*
◾ ```दो सजदों के बीच यह दुआ पढ़ना ‘रब्बिग़ फ़िरल ’ ```
*[अबू दाऊद ह० 874, नसाई ह० 1146, इब्न माजा ह० 897]*
◾ ```इसके अलावा यह दुआ पढ़ना भी बिल्कुल सहीह है ‘अल्लाहुम्मग्फ़िरली वरहम्नी वआफ़िनी वहदिनी वरज़ुक़्नी’ ```
*[अबू दाऊद ह० 850, मुस्लिम ह० 6850]*
◾ ```दूसरे सज्दे के बाद भी कुछ देर के लिए बैठना.``` *[बुख़ारी ह० 757]* ```(इसको जलसा इस्तिराहत कहते हैं)```
◾ ```पहली और तीसरी रक्अ़त में जलसा इस्तिराहत के बाद खड़े होने के लिए ज़मीन पर दोनों हाथ रख कर हाथों के सहारे खड़े होना.```
*[बुख़ारी ह० 823, 824]*
*तशह्हुद का सुन्नत तरीक़ा*
``तशह्हुद में अपने दोनों हाथ अपनी दोनों रानों पर और कभी कभी घुटनों पर भी रखना. ```
*[मुस्लिम  ह० 1308, 1310]
``फिर अपनी दाएं अंगूठे को दरमियानी उंगली से मिला कर हल्क़ा बनाना, अपनी शहादत की उंगली को थोडा सा झुका कर और उंगली से इशारा करते हुए दुआ करना.```
[मुस्लिम ह० 1308, अबू दाऊद ह० 991]
`और उंगली को (आहिस्ता आहिस्ता) हरकत भी देना और उसकी तरफ़ देखते रहना. ```
[नसाई ह० 1161, 1162, 1269, इब्न माजा ह० 912]
``पहले तशह्हुद में भी दुरूद पढ़ना बेहतर अमल है.``
[नसाई ह० 1721, मुवत्ता मालिक ह० 204]
`लेकिन सिर्फ़ ‘अत तहिय्यात ….’ पढ़ कर ही खड़ा हो जाना भी जायज़ है. ```
[मुस्नद अहमद ह० 4382]
`(2 तशह्हुद वाली नमाज़ में) आख़िरी तशह्हुद में बाएं पांव को दाएं पांव के नीचे से बाहर निकाल कर बाएं कूल्हे पर बैठ जाना और दाएं पांव का पंजा क़िब्ला रुख़ कर लेना.```
*[बुख़ारी ह० 828, अबू दाऊद  ह० 730]* ```(इसको तवर्रुक कहते हैं )```
``तशह्हुद में ‘अत तहिय्यात… ’ और दुरूद पढ़ना.```
*[बुख़ारी ह० 1202, 3370, मुस्लिम ह० 897,908]
दुरूद के बाद जो दुआएं क़ुरआन और सहीह अहादीस से साबित हैं, पढ़ना चाहिए.```
[बुख़ारी ह० 835, मुस्लिम ह० 897]
इसके बाद दाएं और बाएं ‘अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाह ’ कहते हुए सलाम फेरना. ```
[बुख़ारी  ह० 838, मुस्लिम ह० 1315, तिरमिज़ी ह० 295]
नोट: अहादीस के हवालों में काफ़ी एहतियात बरती गयी है लेकिन फिर भी अगर कोई ग़लती रह गयी हो तो ज़रूर इस्लाह करें.
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Biwi ki Mzakiya Andaaj.

 Yah Social Media Bhi N Kabhi Kabhi

کچن میں کام کرتے ہوے بیوی نے اپنےشوہر کو مدد کے لئے آواز دی
جب کئی بار آواز دینے کے بعد بھی شوہر نے کوئی جواب نہ دیا تو
بیوی غراتی ہوئی بیڈ روم کی طرف گئی
وہاں کیا دیکھتی ہے کہ شوہر بے شمار فائلوں میں گھرا سو رہا تھا
بیوی کو اس پر ترس آیا اور اس نے ان بکھری فائلوں کو اٹھایا
اپنے محبوب کے معصوم سوتے چہرے پر پیار بھری مسکراتی نگاہ ڈالی
اسکے ہاتھ سے گرا ہوا پین اٹھا کر سائیڈٹیبل پر رکھا
اسکے پیشانی کے بالوں کو پیار سے سنوارا
اور پھر
اسکی کمر پر زوردار گھونسہ ٹھوک دیا
شوہر ہڑبڑا کر اٹھا
اور بیوی سے پوچھنے لگا کہ کیا ہوا؟؟
بیوی نے اسے اپنا فون دکھایا
جس میں "واٹس ایپ" میں شوہر کا سٹیٹس
:Last Seen on Whatsapp "1 Minute Agoo"
لکھا نظر آ رہا تھا
یہ ٹیکنالوجی بھی ناں..
کبھی کبھی ٹھیک ٹھاک ٹھکوا دیتی ہے
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Hm Sb Ki waqt-E-Tanhai Aur Rab ki Narajagi.

ہم سب ہی باطل ، بے کار و بےہودہ ہیں
یہ ایک بہت نصیحت آموز واقعہ ہے ۔
ایک عورت کو اللہ نے بہت حُسن دیا تھا کہ گویا اُس کا حُسن توبہ شکن تھا ، ایک دِن اُس عورت نے اپنا چہرہ آئینے میں دیکھا تو اُس نے اپنے خاوند سے کہا """کیا تُم یہ سوچ سکتے ہو کہ کوئی شخص میرا چہرہ دیکھ کر میرے حُسن کا شِکار ہوئے بغیر رہ سکتا ہے ؟ """
اُس کے خاوند نے کہا """ ہاں """
بیوی نے کہا """ ایسا کون ہو سکتا ہے ؟ """
خاوند نے کہا """ عُبید بن عُمیر """
بیوی نے کہا """ مجھے اُس کے پاس جانے کی اِجازت دو ، میں اُسے ضرور فتنے میں ڈال کر رہوں گی """
خاوند نے کہا """ جاؤ ، اِجازت ہے """
بیوی نے تیاری کی اور عُبید بن عُمیر رحمہُ اللہ کے پاس فتویٰ حاصل کرنے کے بہانے سے پہنچی ، اور علیحدگی میں بات کرنے کے لیے عُبید بن عُمیر رحمہُ اللہ کو مسجد الحرام کے ایک گوشے میں لیے چلی ، جب وہ دونوں لوگوں کی نظروں سے کافی دُور ہو گئے تو اُس عورت نے اپنے چہرے سے پردہ ہٹا دیا ، گویا کہ چمکتے دمکتے چاند کاایک ٹکڑا زمین پر اُتر آیا ہو ،
عُبید بن عُمیر رحمہُ اللہ نے فرمایا """ اے اللہ کی بندی ، اللہ کا خوف کرو اور اپنا چہرہ چھپائے رکھو """
عورت نے کہا """ میں آپ کی مُحبت میں مُبتلا کر دِی گئی ہوں ، میرے معاملے میں غور فرمایے """
عُبید بن عُمیر رحمہُ اللہ نے فرمایا """ میں تُم سے کچھ پوچھتا ہوں ، اگر تُم نے ہاں میں جواب دیا تو پھر میں تمہارے اُس معاملے میں کی طرف توجہ کروں گا """
عورت نے کہا """ آپ جو بھی پوچھیں گے میں اُس میں آپ کی ہاں میں ہاں ہی ملاوں گی """
عُبید بن عُمیر رحمہُ اللہ نے فرمایا """ مجھے یہ بتاؤ کہ جب ملک الموت تُمہاری رُوح قبض کرنے کے لیے آئے گا تو کیا تمہیں یہ بات خوش کرے گی کہ میں نے تُمہاری یہ ضرورت پُوری کی ہو ؟ """
عورت نے کہا """ اللہ کی قسم ، نہیں """
عُبید بن عُمیر رحمہُ اللہ نے فرمایا """ دُرست کہا """،
اور پوچھا """ جب تمہیں قبر میں داخل کر دیا جائے گا اور پھر تمہیں سوال وجواب کے لیے بٹھایا جائے گا تو کیاتمہیں یہ بات خوش کرے گی کہ میں نے تمہاری یہ ضرورت پوری کی ہو ؟ """
عورت نے کہا """ اللہ کی قسم ، نہیں """
عُبید بن عُمیر رحمہُ اللہ نے فرمایا """ دُرست کہا """،
اور پھر پوچھا """ جب لوگوں کو اُن کے اعمال نامے دیے جائیں گے ، اور تم جانتی نہیں ہو گی کہ تمہار ا اعمال نامہ دائیں ہاتھ میں دیا جائے گا یا بائیں ہاتھ میں ،تو کیا تمہیں یہ بات خوش کرے گی کہ میں نے تمہاری یہ ضرورت پوری کی ہو ؟ """
عورت نے کہا """ اللہ کی قسم ، نہیں """
عُبید بن عُمیر رحمہُ اللہ نے فرمایا """ دُرست کہا """،
اور پوچھا """ اور جب تم پل صراط سے گذرنے لگو گی اور تم نہ جانتی ہوگی کہ تم لڑکھڑاؤ گی یا ثابت قدمی سے گذر جاؤ گی ، تو کیاتمہیں یہ بات خوش کرے گی کہ میں نے تمہاری یہ ضرورت پوری کی ہو ؟ """
عورت نے کہا """ اللہ کی قسم ، نہیں """
عُبید بن عُمیر رحمہُ اللہ نے فرمایا """ دُرست کہا """،
اور پوچھا """ اور جب اعمال تولنے کے لیے ترازو پر لائے جائیں گے اور تم نہ جانتی ہو گی کہ تمہارے نیک کاموں کا پلڑا بھاری ہو گا یا ہلکا ، تو کیا تمہیں یہ بات خوش کرے گی کہ میں نے تمہاری یہ ضرورت پوری کی ہو ؟ """
عورت نے کہا """ اللہ کی قسم ، نہیں """
عُبید بن عُمیر رحمہُ اللہ نے فرمایا """ دُرست کہا """،
اور پوچھا """ اور جب تُم سوال و جواب کے لیے اللہ کے سامنے پیش کی جاؤ گی ، تو کیاتمہیں یہ بات خوش کرے گی کہ میں نے تمہاری یہ ضرورت پوری کی ہو ؟ """
عورت نے کہا """ اللہ کی قسم ، نہیں """
عُبید بن عُمیر رحمہُ اللہ نے فرمایا """ دُرست کہا """،
اورفرمایا """ اے اللہ کی بندی ، اللہ کی ناراضگی اور عذاب سے بچو ، اُس نے تُمہیں اپنی نعمتیں عطاء کی ہیں ، اور تمہارے ساتھ اچھا سلوک کیا ہے """
یہ سب سن کر وہ عورت اپنے خاوند کے پاس واپس پہنچی تو اُس نے پوچھا """ کیا کر کے آئی ہو؟ """
عورت نے کہا """ تم بے کار و بے ہودہ ہو ، ہم سب ہی بے کار و بےہودہ ہیں """
اور وہ عورت نماز ،روزےاور عِبادات کی طرف پلٹ پڑی ،
اِس واقعے کے بعد اُس کا خاوند کہا کرتا تھا """ میرے اور عُبید بن عُمیر کے درمیان کیا دشمنی تھی کہ اِس نے میری بیوی کو میرے لیے خراب کر دیا ، پہلے میں ہر رات دُولہا ہوتا تھا اور اب اِس نے میری بیوی کو راھبہ بنا دیا ہے """
۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔
::: اس سچے واقعہ سے ملنے والے اسباق :::
::::: اللہ کے مراقبے پر ایمان ، کہ اللہ ہر جگہ دیکھ اور سن رہا ہے ، لہذا خلوت میں بھی کیے گئے اعمال سے وہ باخبر ہے ،
::::: سچے اِیمان والے کی نظر اُس کے اِختیار میں ہوتی ہے ، اپنی مرضی سے اُسے اُٹھاتا ہے اور اپنی مرضی سے اُسے جھکاتا ہے ،
::::: نظر کے زہریلے تیروں کو اپنے دِل تک نہیں جانے دیتا ،
::::: سچے اِیمان کی اِسکے حامل پر تاثیر اور پھر اُس سچے اِیمان والے کے عمل کی مُسلمان دِلوں والوں پر تاثیر کا پتہ چلتا ہے ،
::::: پہلے درجے کے تابعین کے دَور میں ، اور مکہ المرمہ میں بھی ، مُسلمانوں کی صفوف میں نام اور حُلیے کے مُطابق مُسلمان لگنے والے ایسے """ خوش خیال """ لوگ موجود تھے جو عورتوں کو """کافی آزادی """دینے کے قائل تھے ، اورُ اس آزادی کو اللہ کے نیک بندوں کو گمراہ کرنے کے لیے اِستعمال کرنے پر بھی راضی ہوتے تھے ،
::::: جب اُس وقت زمین کے سب سے مقدس ترین مُقام میں ، مُسلمانوں میں ایسے نام نہاد مُسلمان موجود تھے تو اب ساری دُنیا میں مُسلمانوں میں کیا کیا مُسلمان بن کر شامل نہ ہوگا؟
آپ لوگ اللہ کے اُس سچے مؤمن کا تعارف جانیے 
عُبید بن عُمیر رحمہُ اللہ ، بن قتادہ اللیثی رحمہُ اللہ پہلے درجے کے تابعین میں سے تھے ،
➖ کنیت ابو عاصم تھی ،
➖ دُرست اندازے کے مُطابق رسول اللہ صلی اللہ علیہ وعلی آلہ وسلم کے دُور مُبارک میں ہی پیدا ہو چکے تھے ،
➖ تاریخ وفات سن اَڑسٹھ 68ہجری ہے ،
➖ اھل مکہ کے قاضی اور اُن میں سے سب سے بہترین اندازء خطاب والے خطیب تھے ،
یعنی اِس طرح وعظ و نصیحت اور خطاب فرماتے تھے جیسے کہ کوئی آنکھوں دیکھا قصہ بیان کیا جا رہا ہو ،بلکہ کچھِ اس طرح گویا کہ بیان کرنے والا اُس قصے کے کرداروں کے تاثرات اور اُس قصے کے واقعات کے اثرات خود پر پا رہا ہو، حق گوئی کے ساتھ ایسا اندازء بیان اللہ کسی کسی کو ہی نصیب فرماتا ہے ،
➖ عُبید بن عُمیر رحمہُ اللہ نے مُسلمانوں میں سب سے پہلے یہ اندازء خطابت دُوسرے بلا فصل خلیفہ أمیر المومنین عمر ابن الخطاب رضی اللہ عنہما کے دورء خلافت میں پیش کیا ،
➖ اپنے دیگر تابعین بھائیوں رحمہم اللہ جمعیاً کی طرح اِیمان ، عِلم ء نافع ، عمل ء صالح اور ز ُھد و تقویٰ کی عظیم الشان مثال تھے،
➖ اپنے زمانے کے """ مُستجاب الدعوات """ لوگوں میں سے مانے جاتے تھے یعنی جن کی دُعا ءقُبول ہوتی تھی ،
➖ إمام مجاھد رحمہ ُ اللہ کہا کرتے تھے """ہم اپنے فقیہ اور اپنے قاضی پر فخر کرتے ہیں ، ہمارے فقیہ تو ہیں عبداللہ ابن عباس ( رضی اللہ عنہما ) اور ہمارے قاضی ہیں عُبید بن عُمیر( رحمہُ اللہ)،
یہ وہ لوگ تھے جنہوں نے اللہ کے دِین کو جِس کا ایک حصہ رسول اللہ صلی اللہ علیہ وعلی آلہ وسلم کی سُنّتء مُبارکہ پر مشتمل ہے ، اُس دِین کی جُزئیات کواِنتہائی اِمانت ، صداقت ، احتیاط ،ذمہ داری اور خوب چھان بین کےساتھ اپنے دِلوں میں محفوظ کیا ، زندگی بھر اُس پر عمل پیرا رہے ، اور اِسی طرح دُوسروں کو سِکھایا ، اللہ تعالیٰ ہم سب مُسلمانوں کو ایسے ہی اِیمان والوں میں سےبنا دے ۔
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مصادر و مراجع ::: تاریخ الثقات/ إمام احمد بن عبداللہ العجلی رحمہُ اللہ ،
التاریخ الکبیر / إمام المحدثین محمد بن اسماعیل البخاری رحمہُ اللہ ،
المتنظم فی التاریخ الامم و الملوک / إمام عبدالرحمٰن بن علی الجوزی رحمہُ اللہ ،
الطبقات الکبری / إمام محمد بن سعد رحمہُ اللہ ، جو ابن سعد کے نام سے معروف ہیں ،
الثقات /إمام محمد بن حبان رحمہُ اللہ ، """ صحیح ابن حبان """ کے مؤلف ، عام طور پر إمام ابن حبان کے طور پر ذکر کیے جاتے ہیں ،
صفۃ الصفوۃ / إمام عبدالرحمٰن بن علی الجوزی رحمہُ اللہ ،
کتب التاریخ اور کتب الرجال میں سے تقریبا ہر کتاب میں ان کا ذکر موجود ہے۔
وَبِاللّٰہِ التَّوْفِیْقُ
ھٰذٙا مٙا عِنْدِی وٙاللہُ تٙعٙالیٰ اٙعْلٙمْ بِالصّٙوٙاب
وَالسَّــــــــلاَم عَلَيــْـــــــكُم وَرَحْمَــــــــــةُاللهِ وَبَرَكـَـــــــــاتُه
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Bawjood Isme ke use kahi Allah Aag Me N Dal De.

اَلسَّلاَمْ عَلَيْــــــــــــــــــــكُمْ وَ رَحْمَةُ اللہِ وَبَرَكَاتُهُ

Sahih Bukhari Hadees # 27
ﺑِﺴْـــــــــــــﻢِﷲِﺍﻟﺮَّﺣْﻤَﻦِﺍلرَّﺣِﻴﻢ
حَدَّثَنَا أَبُو الْيَمَانِ ، قَالَ : أَخْبَرَنَا شُعَيْبٌ ، عَنِ الزُّهْرِيِّ ، قَالَ : أَخْبَرَنِي عَامِرُ بْنُ سَعْدِ بْنِ أَبِي وَقَّاصٍ ، عَنْ سَعْدٍ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ ،    أَنَّ رَسُولَ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ أَعْطَى رَهْطًا وَسَعْدٌ جَالِسٌ ، فَتَرَكَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ رَجُلًا هُوَ أَعْجَبُهُمْ إِلَيَّ ، فَقُلْتُ : يَا رَسُولَ اللَّهِ ، مَا لَكَ عَنْ فُلَانٍ ، فَوَاللَّهِ إِنِّي لَأَرَاهُ مُؤْمِنًا ؟ فَقَالَ : أَوْ مُسْلِمًا ، فَسَكَتُّ قَلِيلًا ، ثُمَّ غَلَبَنِي مَا أَعْلَمُ مِنْهُ فَعُدْتُ لِمَقَالَتِي ، فَقُلْتُ : مَا لَكَ عَنْ فُلَانٍ ، فَوَاللَّهِ إِنِّي لَأَرَاهُ مُؤْمِنًا ؟ فَقَالَ : أَوْ مُسْلِمًا ، ثُمَّ غَلَبَنِي مَا أَعْلَمُ مِنْهُ ، فَعُدْتُ لِمَقَالَتِي وَعَادَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ ، ثُمَّ قَالَ : يَا سَعْدُ ، إِنِّي لَأُعْطِي الرَّجُلَ وَغَيْرُهُ أَحَبُّ إِلَيَّ مِنْهُ خَشْيَةَ أَنْ يَكُبَّهُ اللَّهُ فِي النَّارِ    ، وَرَوَاهُ يُونُسُ ، وَصَالِحٌ ، وَمَعْمَرٌ ، وَابْنُ أَخِي الزُّهْرِيِّ ، عَنِ الزُّهْرِيِّ .
رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم نے چند لوگوں کو کچھ عطیہ دیا اور سعد وہاں موجود تھے۔  ( وہ کہتے ہیں کہ )  رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم نے ان میں سے ایک شخص کو کچھ نہ دیا۔ حالانکہ وہ ان میں مجھے سب سے زیادہ پسند تھا۔ میں نے کہا: یا رسول اللہ! آپ نے فلاں کو کچھ نہ دیا حالانکہ میں اسے مومن گمان کرتا ہوں۔ آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا مومن یا مسلمان؟ میں تھوڑی دیر چپ رہ کر پھر پہلی بات دہرانے لگا۔ نبی کریم صلی اللہ علیہ وسلم نے بھی دوبارہ وہی جواب دیا۔ پھر آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا کہ اے سعد! باوجود یہ کہ ایک شخص مجھے زیادہ عزیز ہے  ( پھر بھی میں اسے نظر انداز کر کے )  کسی اور دوسرے کو اس خوف کی وجہ سے یہ مال دے دیتا ہوں کہ  ( وہ اپنی کمزوری کی وجہ سے اسلام سے پھر جائے اور )  اللہ اسے آگ میں اوندھا ڈال دے۔
रसुल अल्लाह (ﷺ) ने  चन्द लोगो को कुछ अतीया दीया और साद رضي الله عنه वहा मवजुद थे। (वह कहते है के) रसुल अल्लाह (ﷺ) ने इन मे से एक आदमी को कुछ ना दीया। हाला के वह उन मे मुझे सब से ज्यादा पसीन्दा था। मैने कहा या रसुल अल्लाह (ﷺ)! आप ने फला को कुछ ना दीया हाला के मै इसे मोमीन गुमान करता हु। आप (ﷺ) ने फरमाया: मोमीन या मुसलमान? मै थोडी देर चुप रह कर फिर पहली बात दोहराने लगा। नबी करीम (ﷺ) ने भी दोबारा वही जवाब दिया। फिर आप (ﷺ) ने फरमाया: के ए साद! बावजुद ये के एक आदमी मुझे ज्यादा अजीज है(फिर भी मै उसे नजर अन्दाज कर के) किसी और दुसरे को उस खौफ की वज्ह से ये माल दे देता हु के (वह अपनी कमजोरी की वज्ह से इस्लाम से फीर जाए और ) अल्लाह उसे आग मे अवन्दा डाल दे।
(सहीह अल बुखारी हदीस न.27 )
Narrated Sa'd: Allah's Apostle distributed (Zakat) amongst (a group of) people while I was sitting there but Allah's Apostle left a man whom I thought the best of the lot. I asked, O Allah's Apostle! Why have you left that person? By Allah I regard him as a faithful believer. The Prophet commented: Or merely a Muslim. I remained quiet for a while, but could not help repeating my question because of what I knew about him. And then asked Allah's Apostle, Why have you left so and so? By Allah! He is a faithful believer. The Prophet again said, Or merely a Muslim. And I could not help repeating my question because of what I knew about him. Then the Prophet said, O Sa'd! I give to a person while another is dearer to me, for fear that he might be thrown on his face in the Fire by Allah.
جزاك الله خيرا
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Mazaar Par Jaker Kisi Bujurg Ke Liye Dua Karna Kya Yah Bhi Shirk Hai?

Mazaar Per jana shirk kis tarha hai? Ager koi banda Mazaar per sirf us bazurg ke liye dua karne jata hai toh Kya ye Bhi shirk hai

Quran o hadees ki Raushani men wazahat Farmaye
 وَعَلَيْكُم السَّلَام وَرَحْمَةُ اَللهِ وَبَرَكاتُهُ‎
درباروں اور مزاروں کی شرعئی حیثیت
فضیلۃ الشیخ محمد بن صالح العثیمین رحمہ اللہ المتوفی سن 1421ھ کے مطابق مزاروں پر جانے والے لوگ چار قسم کے ہوتے ہیں ۔
➖ پہلی قسم:
جو مزاروں پر اس لیے جاتے ہیں کہ اسے پکارتے ہیں، پناہ طلب کرتے ہیں، مدد طلب کرتے ہیں، اور اس سے رزق طلب کرتے ہيں تو ایساکرنے والے شرک اکبر کے مرتکب مشرک ہیں۔ نہ ان کا ذبیحہ حلال ہے اور نہ ہی نماز میں امامت کیونکہ اللہ تعالی فرماتا ہے:
﴿اِنَّ اللّٰهَ لَا يَغْفِرُ اَنْ يُّشْرَكَ بِهٖ وَيَغْفِرُ مَا دُوْنَ ذٰلِكَ لِمَنْ يَّشَاءُ ۭوَمَنْ يُّشْرِكْ بِاللّٰهِ فَقَدْ ضَلَّ ضَلٰلًۢا بَعِيْدًا﴾ (النساء: 116)
(بے شک اللہ تعالی اس بات کو نہیں معاف کرتا کہ اس کے ساتھ کسی کو شریک کیا جائے البتہ اس کے سوا جو گناہ ہیں وہ جس کے لیے چاہتا ہے معاف فرمادیتا ہے، اور جس نے اللہ تعالی کے ساتھ شریک ٹھہرایا تو وہ بہت دور کی گمراہی میں جاپڑا)
ایک اور آیت میں ہے:
﴿ فَقَدِ افْتَرٰٓى اِثْمًا عَظِيْمًا ﴾ (النساء: 48)
(یقیناً اس نے بہت عظیم گناہ اور بہتان باندھا)
➖ دوسری قسم:
وہ لوگ جو مزاروں پر اس لیے جاتے ہیں کہ قبر کے پاس اللہ تعالی سے دعاء کریں گے یہ عقیدہ رکھتے ہوئے کہ اس کے پاس دعاء کرنا مسجد یا اپنے گھر میں دعاء کرنے سے افضل ہے اور بلاشبہ یہ گمراہی، غلطی اور جہالت ہے لیکن یہ کفر کی حد تک نہیں پہنچتی ، کیونکہ وہ خالص اللہ تعالی سے دعاء کے لیے گیا تھا مگر اس کا یہ گمان تھا کہ اس قبر پر اس کا دعاء کرنا افضل ہے اور قبولیت کے زیادہ قریب ہے۔
➖ تیسری قسم:
جو قبروں کا طواف اللہ تعالی کی تعظیم کے لیے کرتا ہے یہ سوچ کرکہ یہ صاحب قبر اولیاء اللہ میں سے ہے اور ان کی تعظیم کرنا دراصل اللہ تعالی ہی کی تعظیم ہے تو ایسا شخص بدعتی ہے مگر شرک اکبر کرنے والا مشرک نہیں کیونکہ وہ صاحب قبر کی تعظیم کے لیے طواف نہیں کررہا بلکہ وہ تو اللہ تعالی کی تعظیم کے لیے طواف کررہا ہے ۔ لیکن اگر وہ واقعی صاحب قبر کی تعظیم میں طواف کرے تو قریب ہے کہ وہ شرک اکبر والا مشرک بن جائے گا۔
چوتھی قسم: جو قبروں پر شرعی زیارت کے لیے جاتا ہے اور فوت شدگان کے لیے دعاء کرتا ہےتو یہ شرعی زیارت ہے جس کا حکم نبی کریم صلی اللہ علیہ وآلہ وسلم نے فرمایا ہے:
’’إِنِّي كُنْتُ نَهَيْتُكُمْ عَنْ زِيَارَةِ الْقُبُورِ فَزُورُوهَا، فَإِنَّهَا تُذَكِّرُكُمْ الْآخِرَةَ‘‘
(مسند احمد 1240)
(بلاشبہ میں تمہیں قبروں کی زیارت سے منع کیا کرتا تھا، لیکن اب ان کی زیارت کیا کرو کیونکہ بے شک یہ تمہیں آخرت کی یاد دلائیں گی)
اور خود آپ صلی اللہ علیہ وآلہ وسلم سے ثابت ہے کہ آپ صلی اللہ علیہ وآلہ وسلم بقیع قبرستان جاکر فوت شدگان کے لیے دعاء مانگا کرتے تھے۔ اور اس زیارت کے دوران جو دعاء مستحب ہے وہ یہ ہے کہ:
’’السَّلَامُ عَلَيْكُمْ دَارَ قَوْمٍ مُؤْمِنِينَ، وَإِنَّا إِنْ شَاءَ اللَّهُ بِكُمْ لَاحِقُونَ يَرْحَمُ اللَّهُ الْمُسْتَقْدِمِينَ مِنَّا وَمِنكُم وَالْمُسْتَأْخِرِينَ و نَسْأَلُ اللَّهَ لَنَا وَلَكُمُ الْعَافِيَةَ اللَّهُمَّ لَا تَحْرِمْنَا أَجْرَهُمْ، وَلَا تَفْتِنَّا بَعْدَهُمْ وَ اغْفِرْ لَنَا وَلَهُم‘‘
(صحیح مسلم، ابن ماجہ ومسنداحمد وغیرہ کی احادیث سے ماخوذ)
(مومن قوم کی آرام گاہ تم پر سلامتی ہو، اور ہم بھی ان شاء اللہ تم سے ملنے والے ہیں، اللہ تعالی ہمارے اور تمہارے گزرے ہوؤں اور پیچھے رہ جانے والوں پر رحم فرمائیں، اور ہم اللہ تعالی سے اپنے اور تمہارے لیے عافیت کا سوال کرتے ہیں، اے اللہ! ہمیں ان کے اجر سے محروم نہ کرنا اور ان کے جانے کے بعد ہمیں کسی فتنے میں مبتلا نہ کرنا، اور ہماری اور ان کی بخشش فرمادے)۔
اب ہم آپکے سوال کی طرف آتے ہیں برادر مغل 
بھائی کا جواب دینے سے پہلے قبرستان اور مزقروں کا فرق
آپکے مطابق زائر کا مقصد محض بزرگ کے لیے دعا استغفار ہے ، تو سوال یہ پیدا ہوتا ہے کہ مزار کے بزرگ کو دعا میں خاص کرنے کے لیے اسے رختِ سفر باندھنا ناگزیر ٹہیرے گا جبکہ حدیث میں بیا ن ہے کہ 
مسجد حرام، مسجد نبوی اور بیت المقدس کے علاوہ تقرب الی اللہ اور حصول ثواب کی نیت سے کسی دوسری جگہ سفر کرکے جانا جائز نہیں ہے۔
(صحیح بخاری ،فضل الصلوٰۃ:۱۱۸۹)
جب ان تین مسجدوں کے علاوہ کسی اور مسجد کی طرف سفر کرنا جائز نہیں ،تو مزارات اور صالحین کے آثار کی زیارت کےلئے سفر کیونکہ جائز ہوسکتا ہے؟
جبکہ ائمہ اربعہ اور دیگر فقہا کے نزدیک تو مسجد قبا کی زیارت کے لئے دور دراز سے سفر کرکے جانا بھی جائزنہیں ہے ۔ہاں مدینہ منورہ سے مسجد قبا کی طرف ارادہ کرکے جانا اور وہاں نماز پڑھنا مستحب ہے،جیسا کہ حدیث میں بیان ہے کہ ‘‘رسول اللہﷺ ہر ہفتہ کے دن پیدل یا سوا رہوکر مسجد قبا تشریف لے جاتے اور وہاں نماز ادا کرتے تھے۔’’ (صحیح بخاری،فضل الصلوٰۃ :۱۱۹۳)
یہ بات ذہن نشین رہے کہ مذکورہ بالا حدیث سے یہ نہ سمجھا جائے کہ سفر کےمتعلق امتناعی حکم صرف مساجد سے متعلق ہے ، بلکہ مزار یا بزرگوں کے آثار بھی اس کے حکم کے تحت آتے ہیں ،کیونکہ نزول شریعت کے چشم دید گواہ حضرات صحابہ کرامؓ نے اس امتناعی حکم کو مساجد اور غیر مساجد کےلئے عام رکھا ہے
عصرِ حاضر میں قبروں ،مزاروں اور درباروں پر صریح بُت پرستی کا جو بازار گرم ہے ،عقیدہ توحیدِ باری تعالٰی کی حقیقت کو جس طرح وہاں مسخ کیا جارہا ہے،شرک وبُت پرستی کے اُن اڈّوں پر قرآن حکیم اور سنت محمّدیﷺ کی جس طرح تذلیل کی جاتی ہے، اور خاتم النبیین کے دین کے تمام روشن وتابندہ حقائق جس طرح وہاں بدلے جارہے ہیں , وہ کسی بھی غرض سے مزاروں پر جانے میں مانع ہیں ۔ جب عملی زندگی میں شریعت کا اتباع ہر مسلمان کا فرض اوّلین ہے تو غیر شرعئی امور میں کسی بھی نیت سے شرکت درست نہیں ۔مُردوں کی مناسب حرمت اور قبروں کی مناسب عزت بے شک جائز ہے لیکن اس کے یہ معنی ہر گز نہیں کہ قبروں پر عمارات تعمیر کرکے اُن کو ’’مزار‘‘ بنا لیا جائے ۔ اور اہل ایمان کو ان مزاروں پر جانا ہر گز لائق نہیں ۔ وہ اس لیے کہ یہ عمل بدعئی اعر شرکیہ عمل میں معاونت ہوگا ۔
وَبِاللّٰہِ التَّوْفِیْقُ
ھٰذٙا مٙا عِنْدِی وٙاللہُ تٙعٙالیٰ اٙعْلٙمْ بِالصّٙوٙاب
وَالسَّــــــــلاَم عَلَيــْـــــــكُم وَرَحْمَــــــــــةُاللهِ
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Kisi ke Inteqal Par "Inna Lillahi" kyu Padhte Hai?

“Inna Lillahi Wa Inna Ilaihi Rajioon” Momin Ye Dua Musibat ki Ghadi me Padhta hai.
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Al-Quran: Wo Log Ki Jab Unhey “Koi Museebat Aati Hai Tou” Kahte Hai
“Inna Lillahi Wa Inna Ilaihi Rajioon”
(Yaani Hum Tou Allah Ke Hain Aur Hum Usi Ki Taraf Laut Kar Jane Wale Hai)
Ye Hi Wo Log Hai Jin Par Unke Rab Ki Taraf Se Meharbaniyan Hai
Aur Rehmat Hai Aur Yahi Log Hidayat Paane Wale Hai.
📒– (Surah Baqra 2, Ayat 155-157) 
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Bimari me Shifa Hasil Karne Ki Dua. (Ayyub Alaihe Salam ki Dua)

Beemari se shifa hasil karne ke liye Ayyub Alaihi Salam ki Dua
أَنِّي مَسَّنِيَ الضُّرُّ وَأَنتَ أَرْحَمُ الرَّاحِمِين
Inni Massaniya Addurru Wa Anta Arhamur-Raahimeen
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القرآن : اور ایوب  عليه السلام کو (یاد کرو) جب انہوں نے اپنے پروردگار سے دعا کی کہ مجھے  تکلیف ہو رہی ہے اور تو سب سے بڑھ کر رحم کرنے والا ہے
تو ہم نے ان کی دعا قبول کرلی اور جو ان کو تکلیف تھی وہ دور کردی اور ان  کے گھر والے بھی  عطا فرمائے اور اپنی مہربانی کے ساتھ اتنا ہی اور بھی دیا  اور عبادت کرنے والوں کے لئے (یہ) نصیحت ہے
سوره الانبیا  (٢١) آیت ٨٣-٨٤
Al Quran : Ayyub Alaihi Salam ko (yaad karo) jab unhone apne RABB se dua ki Mujhe takleef ho rahi hai aur tu sabse badh kar raham karne wala hai,to humne unki dua Qubul kar li aur jo unko takleef thi wo dur kar di aur unko baal bachche
Surah Al Anbiya (21), 83-84

अल क़ुरान : अय्यूब अलैही सलाम को (याद करो) जब उन्होंने रब्ब से दुआ की मुझे तकलीफ़ हो रही है और तू सबसे बढ़ कर रहम करने वाला है,  तो हमने उनकी दुआ क़ुबूल कर ली और जो उनको तकलीफ़ थी वो दूर कर दी और उनके घर वाले भी अता फरमा दिए और अपनी मेहरबानी के साथ उतना ही और भी दिया और ईबादत करने वालों के लिए ये नसीहत है
सुरह अल अम्बिया (21), 83-84

Al Quran : And (remember) Ayyub Alaihi Salam, when he cried to his Lord (Oh Allah) Verily, distress has seized me, and You are the Most Merciful of all those who show mercy.So We answered his call, and We removed the distress that was on him, and We restored his family to him (that he had lost) and the like thereof along with them as a mercy from Ourselves and a Reminder for all those who worship Us.
Surah Al Anbiya (21), 83-84
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Jo Bhi Hadis Aapko Kam Samjh Me Aaye Aap Kisi  Hadis Talibe Aaalim Se Rabta Kare.
JazakAllah  Khaira Kaseera

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Fatima Binte Asad Se Joodi Zaeef Hadees.

Tahqeeq Fatima Bint-E-Mohammad Saw

محترم برادر حافظ جنید کمبوہ
یہ واقعہ حافظ زبیر علی زئی رحمہ اللہ نے فتاویٰ علمیہ میں درج کیا ہے اور اس پر مفصل جرح کر کے اس کو ضعیف ثابت کیا ہے ۔ اور بھائی کو یہ بھی بتادوں کہ ان اعتراضات کو موصوف رضاءالعسقلانی نے جو اپنے آپ کو خادم حدیث شریف کہتے ہیں نہایت بودے اور تارِ عنکبوت دلائل سے رد کرنے کی ناکام کوشش کی ہے ۔
محترم حافظ زبیر علی زئی رحمہ اللہ اپنی کتاب فتاویٰ علمیہ (توضیح الاحکام) ج2 ص 542 پر لکھتے ہیں :⏬
روح بن صالح کی بیان کردہ ایک روایت میں آیا ہے:
’’حدثنا سفیان الثوری عن عاصم الاحول عن انس بن مالک قال:
لما ماتت فاطمة بنت اسد بن هاشم ام علی، دخل علیها رسول الله صلی الله علیه وسلم فجلس عند راسها فقال: رحمک الله یا امی، کنت امی بعد امی، تجوعین و تشبعینی و تعرین و تکوسننی و تمنعین نفسک طیب الطعام و تطمعینی، تریدین بذلک وجه الله والدار الآخرة، ثم امر ان تغسل ثلاثا و ثلاثا، فلما بلغ الماء الذی فیه الکافور سکبه علیها رسول الله صلی الله علیه وسلم بیده، ثم خلع رسول الله صلی الله علیه وسلم قمیصه فالبسه ایاه و کفنت فوقه، ثم دعا رسول الله صلی الله علیه وسلم اسامة بن زید و ابا ایوب الانصاری و عمر بن الخطاب و غلاما اسود لیحفروا فحفروا قبرها فلما یلغوا اللحمد حفره رسول الله صلی الله علیه وسلم بیده و اخرج ترابه بیده، فلما فرغ دخل رسول الله صلی الله علیه وسلم فاضجع فیه وقال:
الله الذی یحیی و یمیت و هو حی لایموت، اغفرلامی فاطمة بنت اسد و لقنها حجتها و وسع علیها مدخلها بحق نبیک والانبیاء الذین من قبلی، فانک ارحم الراحمین، ثم کبر علیها اربعا، ثم ادخلوها القبر هو والعباس وابوبکر الصدیق رضی الله عنهم۔‘‘
ہمیں سفیان ثوری نے حدیث بیان کی، انھوں نے (عن کے ساتھ) عاصم الاحول سے، انھوں نے انس بن مالک (رضی اللہ عنہ) سے، انھوں نے فرمایا:
جب علی رضی اللہ عنہ کی والدہ: فاطمہ بنت اسد بن ہاشم (رضی اللہ عنہما) فوت ہوئیں تو رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم ان کے پاس تشریف لائے پھر آپ ان کے سر کی طرف بیٹھ گئے تو فرمایا: اے میری ماں! اللہ تجھ پر رحم کرے، میری (حقیقی) ماں کے بعد تو میری ماں تھی، تو خود بھوکی رہتی اور مجھے خوب کھلاتی، تو کپڑے (چادر) کے بغیر سوتی اور مجھے کپڑا پہناتی، تو خود بہترین کھانا نہ کھاتی اور مجھے کھلاتی تھی، تمھارا مقصد اس (عمل) سے اللہ کی رضامندی اور آخرت کاگھر تھا۔
پر آپ نے حکم دیا کہ انھیں تین، تین دفعہ غسل دیا جائے، پھر جب اس پانی کا وقت آیا جس میں کافور (ملائی جاتی) ہے تو رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم نے خود اپنے ہاتھ سے ان پر پانی بہایا پھر رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم نے اپنی قمیص اتار کر انھیں پہنا دی اور اسی پر انھیں کفن دیا گیا۔
پھر رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم نے اسامہ بن زید، ابو ایوب الانصاری، عمر بن الخطاب اور ایک کالے غلام کو بلایا تاکہ قبر تیار کریں پھر انھوں نے قبر کھودی، جب لحد تک پہنچے تو رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم نے اسے اپنے ہاتھ سے کھودا اور اپنے ہاتھ سے مٹی باہر نکالی پھر جب فارغ ہوئے تو رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم اس قبر میں داخل ہوکر لیٹ گئے اور فرمایا:
اللہ ہی زندہ کرتا اور مارتا ہے اور وہ زندہ جاوید ہے کبھی نہیں مرے گا۔
(اے اللہ!) میری ماں فاطمہ بنت اسد کو بخش دے اور اس کی دلیل انھیں سمجھا دے، اپنے نبی اور مجھ سے پہلے نبیوں کے (وسیلے) سے ان کی قبر کو وسیع کردے، بے شک تو ارحم الراحمین ہے۔
پھر آپ نے ان پرچار تکبیریں کہیں، پھر آپ (صلی اللہ علیہ وسلم)، عباس اور ابوبکر الصدیق رضی اللہ عنہما (تینوں) نے اسے قبر میں اتار دیا۔
(المعجم الاوسط للطبرانی ۱۵۲/۱۔ ۱۵۳ ح۱۹۱، وقال: ’’تفروبہ روح بن صلاح‘‘ و عنہ ابو نعیم الاصبہانی فی حلیۃ الاولیء ۱۲۱/۳، و عندہ: یرحمک اللہ… الحمدللہ الذی یحیی…، وعنہ ابن الجوزی فی العلل المتناہیہ ۲۶۸/۱، ۲۶۹ ح۴۳۳)
➖زبیرعلی زئی رحمہ اللہ لکھتے ہیں⏬
یہ روایت دو وجہ سے ضعیف ہے و مردود ہے:
اول: اس کا راوی روح بن صلاح جمہور محدثین کے نزدیک ضعیف و مجروح ہے۔
ابن عدی نے کہا: ’’وفی بعض حدیثہ نکرۃ‘‘
اور اس کی بعض حدیثوں میں منکر روایات ہیں۔
(الکامل ۱۰۰۶/۳، دوسرا نسخہ ۶۳/۴)
➖ ابن یونس المصری نے کہا: ’’روت عنہ مناکیر‘‘ اس سے منکر روایتیں مروی ہیں۔ (تاریخ الغرباء بحوالہ لسان المیزان ۴۶۶/۲، دوسرا نسخہ ۱۱۰/۳)
➖ امام دارقطنی نے کہا: ’’کان ضعیفا فی الحدیث، سکن مصر‘‘
وہ حدیث میں ضعیف تھا، مصر می رہتا تھا۔ (الموتلف و المختلف ۱۳۷۷/۳)
➖ حافظ ذہبی نے کہا: ’’لہ مناکیر‘‘ اس کی منکر روایتیں ہیں۔ (تاریخ الاسلام ۱۶۰/۱۷)
➖ ابن الجوزی نے روح بن صلاح کو اپنی کتاب المجروحین (۲۸۷/۱) میں ذکر کیا اور اس کی بیان کردہ حدیث مذکور کو ’’الاحادیث الواھیۃ‘‘ یعنی ضعیف احادیث میں ذکر کیا۔ (دیکھئے العلل المتاہیہ: ۴۳۳)
➖ احمد بن محمد بن زکریا ب ابی عتاب ابوبکر الحافظ البغدادی، اخومیمون (متوفی ۲۹۶ھ) نے کہا: ہمارا اس پر اتفاق ہوا کہ مصر میں علی بن الحسن السامی، روح بن صلاح اور عبدالمنعم بن بشیر تینوں کی حدیثیں نہ لکھیں۔ (لسان المیزان ۲۱۳/۴۔ ۲۱۴، سوالات البرقانی الصغیر: ۲۰، بحوالہ المکتبۃ الشاملۃ و سندہ صحیح)
➖ ابن عدی، ابن یونس، دارقطنی، ابن ماکولا، ذہبی، ابن جوزی اور احمد بن محمد بن زکریا البغدادی (سات محدثین) کے مقابلے میں حافظ ابن حبان نے روح بن صلاح کو کتاب الثقات میں ذکر کیا۔ (۲۴۴/۸)
حاکم نے کہا: ’’ثقہ مامون، من اھل الشام‘‘ (سوالات مسعود بن علی السجزی: ۶۸، ص۹۸)
اور یعقوب بن سفیان الفارسی نے اس سے روایت لی۔ (موضح اوہام الجمع و التفریق للخطیب ۹۶/۲، و فیہ علی بن احمد بن ابراہیم البصری شیخ الخطیب)
مختصر یہ کہ جمہور علماء کی جرح کے مقابلے میں تین کی توثیق مردود ہے۔
روح بن صلاح (ضعیف) ااگر بفرض محال ثقہ بھی ہوتا تو یہ سند سفیان ثوری (مدلس) کی تدلیس (عن) کی وجہ سے ضعیف ہے۔
سفیان ثوری کے بارے میں محمد عباس رضوی بریلوی نے کہا:
’’یعنی سفیان مدلس ہے اور روایت انہوں نے عاصم بن کلیب سے عن کے ساتھ کی ہے اور اصول محدثی کے تحت مدلس کا عنعنہ غیرمقبول ہے جیسا کہ آگے انشاء اللہ بیان ہوگا۔‘‘ (مناظرے ہی مناظرے ص۲۴۹)
سفیان ثوری کی تدلیس کے بارے میں مزید تفصیل کے لئے دیکھئے ماہنامہ الحدیث حضرو: ۶۷ ص۱۱۔۳۲
الخلاصۃ التحقیق یہ ہے کہ سوال میں روایت مذکورہ غیر ثابت ہونے کی وجہ سے ضعیف و مردود ہے۔
نیز دیکھئے سلسلۃ الاحادیث الضعیفۃ والموضوعۃ للالبانی (۳۲/۱۔ ۳۴ ح۲۳ وقال: ضعیف)
ھٰذٙا مٙا عِنْدِی وٙاللہُ تٙعٙالیٰ اٙعْلٙمْ بِالصّٙوٙاب
فتاویٰ علمیہ (توضیح الاحکام)
وَالسَّــــــــلاَم عَلَيــْـــــــكُم وَرَحْمَــــــــــةُاللهِ وَبَرَكـَـــــــــاتُه
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Jihad Ke bad Mal-E-Ganimat Me Aaj Ke Daur Me Kisi Ko Gulam Bnaya Ja Sakta Hai?

Mal-E-Ganimat Me Kya Kisi Ko Kanij Bnaya Ja Sakta Hai?
ہر دور میں مسلم امہ میں موجود ملحدیں یا مسلمان نما ملحدین کا ہمیشہ سے یہ وطیرہ رہا ہے کہ حیلے بہانوں اور نفس کی پلیدگی کے ہاتھوں مجبور ہوکر اسلامی تعلیمات میں تحریفات کرنا بہترین شغل جانتے ہیں ۔ ان لغویات سے سچے مسلمان مومن مردوزن دور ہیں ۔
جو لوگ یہ سمجھتے ہیں کہ وہ دشمن کافر ملک سے جنگ کے بعد حاصل شدہ مالِ غنیمت میں آئی عورتوں کو لونڈیاں بنالیں گے تو ان سے سوال ہے کہ کیا لونڈی کے حصول کی طلب روحِ جہاد ہے ؟ ایسے لوگ اسلام کی شان کو ملیامیٹ کرتے ہیں ، مجاہد دشمن پر غلبے کی بات کرتا ہے لونڈیوں پر نہیں ۔ افسوس ایسے لوگ اپنے ایمان کی عمارت دین کے عناصر سے نہیں بلکہ دنیا کے عناصر سے تعمیر کرتے ہیں
جان لیجیے برادر عبدالرحیم کہ آج کے دور میں کنیز یا لونڈی کا کلچر موجود ہی نہیں ہے۔ یہ صورت اس وقت ہو سکتی ہے، جب اسلام اور کفار کے درمیان اس قسم کی جنگیں لڑی جائیں، جیسے آپ صلی اللہ علیہ وآلہ وسلم کے زمانہ حیات میں لڑی گئی تھی۔ پھر ان جنگوں میں کفار کی عورتیں اور مرد قیدی بن کر آئیں اور یہ مجاہدین اسلام میں بطور غنیمت تقسیم کی جائیں۔ پھر اگر وہ چاہیں تو ان لونڈیوں اور کنیزوں کے ساتھ تعلقات قائم کر سکتے ہیں۔ لونڈیوں کے مسائل کا تعلق مسئلہ جہاد سے ہے اور جان لیا جائے کہ روح جہاد ختم ہونے پرآج یہ مسائل بھی ناپید ہیں ۔لونڈیوں کے مسائل جب تک موجود تھے جب تک عملی نمونہ جہاد مسلما نوں میں موجو د رہا ۔
جو لوگ شریعت کی آڑ لے کر یہ خرافات بولتے ہیں کہ حدیث کے مطابق ہم دشمن ملک کی اداکاراوں کو لونڈیاں بنائیں گے تو ان لوگوں کو معلوم ہونا چاہیے کہ یہی شریعت لونڈیوں کو آذاد کر کے اپنی زوجیت میں لینے کی ترغیب بھی دیتی ہے ۔اور یہی شریعت کہتی ہے کہ نبی کریم ﷺ نے فرمایا : جس شخص کے پاس لونڈی ہو وہ اسے تعلیم دے اور خوب اچھی طرح دے ، اسے ادب سکھا ئے اور پوری کوشش اور محنت کے ساتھ سکھائے اور اس کے بعد اسے آزاد کر کے اس سے شادی کر لے تو اسے دہر اثواب ملتا ہے اور اہل کتاب میں سے جو شخص بھی اپنے نبی پر ایمان رکھتا ہو اور مجھ پر ایما ن لائے تو اسے دوہر ا ثواب ملتا ہے اور جو غلام اپنے آقا کے حقوق بھی ادا کرتا ہے اور اپنے رب کے حقوق بھی ادا کرتا ہے اسے دہرا ثواب ملتا ہے عامر شعبی نے ( اپنے شاگرد سے اس حدیث کو سنا نے کے بعد کہا کہ بغیر کسی مشقت اورمحنت کے اسے سیکھ لو ۔ اس سے پہلے طالب علموں کو اس حدیث سے کم کے لئے بھی مدینہ تک کا سفر کرنا پڑتا تھا ۔ اور ابوبکرنے بیان کیا ابو حصین سے ، اس نے ابوبردہ سے ، اس نے اپنے والد سے اور انہوں نے نبی کریم ﷺ سے کہ ” اس شخص نے باندی کو ( نکاح کرنے کے لئے ) آزادکر دیا اور یہی آزادی اس کا مہر مقرر کی ۔ “ صحیح بخاری
اگر وہ شریعت کے👆 اس حکم کو نظر انداز کرتے ہیں تو یہ ثابت ہوجاتا ہے کہ وہ شریعت کی نہیں بلکہ اپنے اخلاقِ رذیلہ کا ثبوت دے رہے ہیں ۔
وَاَلسَلامُ عَلَيْكُم وَرَحْمَةُ اَللهِ وَبَرَكاتُهُ‎

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Allah Ke Liye Shadid Mohabbat Aur Shadid Khawahish

شدید محبت اور شدید خواہش۔ یہ دو الفاظ دین کی اس دعوت کا خلاصہ ہیں جسے لے کر سوا لاکھ کے قریب انبیا تشریف لائے اور جس کی آخری شکل سرکار دو عالم صلی اللہ علیہ وسلم کی تعلیمات میں ہمیشہ کے لیے محفوظ کر دی گئی ہیں۔
شدید محبت سے مراد اللہ کی محبت ہے۔ اس سے مراد اللہ کی یاد میں کھوئے رہنا نہیں، بلکہ یہ ہے کہ اللہ کی محبت پر کوئی دوسری محبت غالب نہ ہوسکے۔ مال، اولاد، بیوی اور سب سے بڑھ کر اپنا نفس اس کی رضا کے خلاف کچھ نہ کرا سکیں۔ اور غلطی ہوجائے تو فوراً تڑپ کر اس کی طرف رجوع کیا جائے۔
شدید خواہش سے مراد جنت کی شدید خواہش ہے۔ اوپر جن چیزوں کا ذکر ہے یعنی مال اولاد وغیرہ کی طلب بالکل فطری ہے۔ مگر قرآن مجید یہ بتاتا ہے کہ جنت سے پہلے یہ چیزیں آزمائش کے لیے دی گئی ہیں اور بہت جلد لے لی جائیں گی۔ جبکہ جنت کے بعد یہ بطور انعام دی جائیں گی اور ہمیشہ پاس رہیں گی۔ اس لیے ان چیزیوں کی خواہش غلط نہیں بلکہ غلطی دنیا کی خواہش میں مبتلا ہونا ہے۔ جبکہ کرنے کا کام خواہش کا رخ جنت کی طرف پھیرنا ہے۔
بدقسمتی سے ہمیشہ اکثر لوگ اللہ کے بجائے غیر اللہ کی محبت میں جیتے ہیں جنت کے بجائے دنیا کے طلبگار رہتے ہیں۔ اس لیے کہ خدا نظر آتا ہے نہ جنت۔ لیکن نظر نہ آنے والے اللہ کی شدید محبت اور نظر نہ آنے والی جنت کی شدید خواہش ہی آخر کار یہ معجزہ جنم دے گی کہ فانی انسان ابدیت کا قالب اوڑھ کر فردوس بریں کو آباد کرے گا۔
ہم سب لوگوں کو ابدی بادشاہی حاصل کرنے کا یہ عظیم موقع ملا ہے۔ خوش نصیب ہیں وہ جو اس موقع کر پہچان کر اللہ کی شدید محبت اور جنت کی شدید خواہش کو اپنی زندگی بنالیں۔

ن کلمہ یاد آتا ہے ن دل لگتا ہے نمازوں میں اقبال
کافر بنا دیا ہے لوگو کو دو دن کی محبت نے

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MASJID Me Auraton Ke Jane Ke 10 Dalail (Reference)

Khawateen Ke MAsjid Me JAne Ke 10 Dalail

مساجد میں عورتوں کی نماز کے دس دلائل
مساجد میں مردوں کے پیچھے عورتوں کی نماز باجماعت کا جواز احادیثِ صحیحہ اور آثارِ سلف صالحین سے ثابت ہے، جس میں سے بعض دلائل درج ذیل ہیں:
1) سیدنا عبداللہ بن عمر رضی اللہ عنہ سے روایت ہے کہ نبی ﷺ نے فرمایا: اگر تمھاری عورتیں تم سے رات کو مسجد جانے کی اجازت مانگیں تو انھیں اجازت دے دو۔ (صحیح بخاری: 865، صحیح مسلم: 442، ترقیم دارالسلام: 988)
حافظ ابن عبدالبر نے فرمایا: اس حدیث میں یہ فقہ ہے کہ عورت کے لئے رات کو مسجد جانا جائز ہے اور اس (کے عموم) میں ہر نماز داخل ہے۔ إلخ (التمہید ج 24 ص 281)
2) ام المومنین سیدہ ام سلمہ رضی اللہ عنہا سے روایت ہے کہ رسول اللہ ﷺ کے زمانے میں جب عورتیں فرض نماز کا سلام پھیرتیں تو اُٹھ کھڑی ہوتی تھیں، رسول اللہ ﷺ اور مرد (صحابہ) بیٹھے رہتے تھے پھر جب رسول اللہ ﷺ کھڑے ہوتے تو مرد بھی کھڑے ہو جاتے تھے۔ (صحیح بخاری: 866)
3) ام المومنین سیدہ عائشہ رضی اللہ عنہا سے روایت ہے کہ رسول اللہ ﷺ صبح کی نماز پڑھاتے تو عورتیں اپنی چادروں میں لپٹی ہوئی جاتی تھیں، اندھیرے کی وجہ سے پہچانی نہیں جاتی تھیں۔ (صحیح بخاری: 867، صحیح مسلم: 645، موطأ امام مالک 1/ 5ح3، روایۃ ابن القاسم : 494)
اس حدیث سے ظاہر ہے کہ عورتوں کا مساجد میں نماز ادا کرنا جائز ہے۔
سیدہ عائشہ رضی اللہ عنہا سے دوسری روایت میں آیا ہے کہ نبی ﷺ نے فرمایا: عورتوں کو مسجدوں سے نہ روکو، اور انھیں بغیر خوشبو کے سادہ کپڑوں میں نکلنا چاہئے۔ سیدہ عائشہ (رضی اللہ عنہا) نے فرمایا: اگر آپ آج کل کی عورتوں کا حال دیکھتے تو انھیں منع کر دیتے۔ (مسند احمد 6/69، 70 وسندہ حسن)
سیدہ عائشہ رضی اللہ عنہا سے ایک اور روایت میں آیا ہے کہ اگر رسول اللہ ﷺ وہ کام دیکھتے جو عورتوں نے نکال لئے ہیں تو انھیں منع کر دیتے، جس طرح کہ بنی اسرائیل کی عورتوں کو منع کر دیا گیا تھا۔ (صحیح بخاری: 869، صحیح مسلم: 445)
اس حدیث سے معلوم ہوا کہ عورتوں کو مسجد میں نماز پڑھنے سے منع والا حکم (جو کہ سابقہ شریعتوں میں تھا) منسوخ ہے۔ اب بنی اسرائیل کی منسوخ شریعت پر عمل نہیں بلکہ قیامت تک نبی کریم خاتم النبیین ﷺ کی شریعت پر ہی عمل ہو گا۔
4) سیدنا ابو قتادہ الانصاری رضی اللہ عنہ سے روایت ہے کہ رسول اللہ ﷺ نے فرمایا: میں نماز کے لئے کھڑا ہوتا ہوں اور لمبی نماز پڑھنا چاہتا ہوں پھر بچے کے رونے کی آواز سن کر نماز مختصر کر دیتا ہوں تاکہ اُس کی ماں کو تکلیف نہ ہو۔ (صحیح بخاری: 868)
5) سیدنا انس بن مالک رضی اللہ عنہ سے روایت ہے کہ نبی ﷺ نے فرمایا: میں نماز میں داخل ہوتا ہوں اور لمبی نماز پڑھنے کا ارادہ کرتا ہوں پھر میں کسی بچے کے رونے کی آواز سنتا ہوں تو اپنی نماز مختصر کر دیتا ہوں، کیونکہ میں جانتا ہوں کہ اُس کے رونے کی وجہ سے اُس کی ماں کو تکلیف ہو گی۔ (صحیح بخاری: 709، صحیح مسلم: 470 )
6) سیدہ زینب الثقفیہ رضی اللہ عنہا (سیدنا ابن مسعود رضی اللہ عنہ کی بیوی) سے روایت ہے کہ رسول اللہ ﷺ نے فرمایا: اگر تم عورتوں میں سے کوئی عورت عشاء کی نماز کے لئے مسجد میں حاضر ہو تو خوشبو نہ لگائے۔ (صحیح مسلم: 443)
7) سیدنا ابو ہریرہ رضی اللہ عنہ سے روایت ہے کہ نبی ﷺ نے فرمایا: عورتوں کو مسجدوں سے منع نہ کرو اور انھیں بغیر خوشبو کے سادہ کپڑوں میں جانا چاہئے۔ (مسند احمد 2/ 438 ح 9645 وسندہ حسن واللفظ لہ، سنن ابی داود: 565 وصححہ ابن خزیمہ: 1679، و ابن حبان: 2214)
8) سیدنا ابو سعید الخدری رضی اللہ عنہ سے روایت ہے کہ رسول اللہ ﷺ نے فرمایا: اے عورتو! جب مرد سجدہ کریں تو تم اپنی نظروں کی حفاظت کرو۔ (صحیح ابن خزیمہ : 1694، وسندہ صحیح، صحیح ابن حبان: 402 وصححہ الحاکم علیٰ شرط الشیخین 1 /191، 192، ووافقہ الذہبی)
یعنی مردوں کے تنگ تہبندوں کی وجہ سے کہیں تمھاری نظریں اُن کی شرمگاہ پر نہ پڑ جائیں۔
9) سیدنا سہل بن سعد رضی اللہ عنہ سے روایت ہے کہ رسول اللہ ﷺ کے زمانے میں عورتوں کو حکم دیا جاتا تھا کہ مردوں سے پہلے (سجدے، رکوع سے) سر نہ اُٹھائیں۔ إلخ (صحیح ابن خزیمہ: 1695، صحیح ابن حبان: 2216 وسندہ صحیح )
نیز دیکھئے صحیح بخاری (362، 814، 1215) اور صحیح مسلم (441)
10) سیدنا زید بن خالد الجہنی رضی اللہ عنہ سے روایت ہے کہ رسول اللہ ﷺ نے فرمایا: اللہ کی بندیوں (عورتوں) کو اللہ کی مسجدوں سے منع نہ کرو، اور انھیں بغیر خوشبو کے سادہ لباس میں نکلنا چاہئے۔ (صحیح ابن حبان: 2208 وسندہ حسن، دوسرا نسخہ: 2211 وحسنہ الہیثمی فی مجمع الزوائد 2/ 33)
ان احادیث مذکورہ اور دیگر احادیث کا خلاصہ یہ ہے کہ عورتوں کے لئے مسجد میں نماز پڑھنا جائز ہے بشرطیکہ کسی فتنے کا اندیشہ نہ ہو اور بہتر یہ ہے کہ عورتیں اپنے گھروں میں ہی نماز پڑھیں کیونکہ اُن پر نماز باجماعت فرض نہیں ہے۔
سیدنا عمر رضی اللہ عنہ کی بیوی عشاء کی نماز مسجد میں پڑھنے کے لئے جاتی تھیں اور سیدنا عمر رضی اللہ عنہ انھیں منع نہیں کرتے تھے۔ دیکھئے صحیح بخاری (900)
سیدنا ابن عمر رضی اللہ عنہ تو اس مسئلے میں اتنی سختی کرتے تھے کہ جب اُن کے ایک بیٹے نے کہا: ’’ہم تو عورتوں کو (مسجد سے) منع کریں گے۔‘‘ تو انھوں نے اپنے بیٹے کو شدید الفاظ کے ساتھ ڈانٹا اور اُس کی پٹائی کر دی۔ دیکھئے صحیح مسلم (442)
ایک عورت نے نذر مانی تھی کہ اگر اُس کا شوہر جیل سے باہر آ گیا تو وہ بصرے کی ہر مسجد میں دو رکعتیں پڑھے گی۔ اس کے بارے میں حسن بصری (رحمہ اللہ) نے فرمایا: اسے اپنی قوم کی مسجد میں نماز پڑھنی چاہئے۔ الخ دیکھئے مصنف ابن ابی شیبہ (2/ 484 ح 7617 وسندہ صحیح)
یعنی اُسے تمام مسجدوں میں نہیں بلکہ صرف اپنی (محلے کی) مسجد میں نماز پڑھ کر یہ نذر پوری کر لینی چاہئے۔
سیدنا ابو ہریرہ رضی اللہ عنہ نے فرمایا: عورتوں کی بہترین صف آخری صف ہے اور سب سے بُری صف پہلی صف ہے۔ (مصنف ابن ابی شیبہ 2/ 385 ح 7623 وسندہ حسن)
عروہ بن الزبیر رحمہ اللہ نے فرمایا: یہ کہا جاتا تھا کہ عورتوں کی بہترین صف آخری صف ہے اور سب سے بُری صف پہلی صف ہے۔ (مصنف ابن ابی شیبہ 2/385 ح 7624 وسندہ صحیح)
امام ابو بکر محمد بن ابراہیم بن المنذر النیسابوری رحمہ اللہ نے فرمایا: اہلِ علم کا اس پر اجماع ہے کہ عورتوں پر جمعہ (ضروری) نہیں ہے اور اس پر بھی اجماع ہے کہ اگر وہ حاضر ہو کر امام کے ساتھ نماز پڑھ لیں تو یہ اُن کی طرف سے کافی ( یعنی جائز) ہے۔ دیکھئے الاوسط (ج4ص16م 492، 493)
عینی حنفی نے امام شافعی رحمہ اللہ سے نقل کیا کہ ’’یباح لھن الخروج‘‘ عورتوں کے لئے (مسجد کی طرف نماز کے لئے) خروج مباح (جائز) ہے۔ دیکھئے عمدۃ القاری (ج 6 ص 156 تحت ح 864)
احادیثِ صحیحہ اور آثارِ سلف صالحین سے ثابت ہوا کہ عورتوں کا مسجد میں نماز پڑھنا جائز ہے بشرطیکہ وہ آدابِ شرعیہ اور پردے وغیرہ کا بہت التزام کریں۔ جمعہ کے دن گھروں میں بیٹھے رہنے سے بہتر یہ ہے کہ وہ مسجد جا کر امام کے پیچھے نمازِ جمعہ پڑھیں اور خطبہ سنیں تاکہ دین کی باتیں سیکھ لیں۔
حیرت ہے اُن لوگوں پر جو عورتوں کی تبلیغی جماعتیں نکالتے ہیں اور پھر عورتوں کو مسجد میں نماز پڑھنے سے منع کرتے ہیں تاکہ وہ لا علم کی لاعلم رہیں اور دینی تعلیم سے دُور رہیں۔ اگر یہ لوگ اپنی عورتوں کو مسجد حرام اور مسجد نبوی سے بھی دُور رکھیں گے تو پھر بے چاری عورتیں طواف اور فضائل الحرمین سے محروم رہیں گی بلکہ ارکانِ حج بھی ادا کرنے سے قاصر رہیں گی اور اس کا غلط ہونا ظاہر ہے۔
اصل مضمون کے لئے دیکھیں: ماہنامہ الحدیث شمارہ 62 صفحہ 40 تا 43
اسی طرح یہ مضمون تحقیقی اور علمی مقالات جلد 3 صفحہ 199 پر بھی موجود ہے۔
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Kya Larki Apni Shadi Ke liye Apni Marzi Se Larke Dekh Sakti Hai.

Nikah me Ladki ko kitna haque hai Ladka choose karne Ka. Jab ghar wale ladka dekhte ha inko Pasand bi hoga,Kya Ladki ko haque Hai bolne ka ager usko pasand Nahi Ho Aur Ager Ladka Ladki nahi dekhna Chahta ho Lekin Ladki Chahti Ho Dekhna or Ladke ke Saath kuch Deeni Shariyat Rakhna Chahti ho kya Ladki bol Sakhti Ha.
الجواب بعون رب العباد:
كتبه:أبوزهير محمد يوسف بٹ بزلوی ریاضی۔
خریج جامعہ ملک سعود ریاض سعودی عرب۔
جو شخص کسی عورت کو پیغام نکاح اسکے لئے جائز ہے کہ وہ اس عورت کو پہلے دیکھے اگر اسے پسند آئے تو اسے نکاح کرلے اگر پسند نہ آئے تو نہ کرے۔
دلیل:رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا کہ اگر تم میں کا کوئی کسی عورت کو پیغام دے اگر اسے اسکو دیکھنے کی طاقت ہو تو اسے چاھئے کہ وہ اسے دیکھے۔[رواه أبو داود2082 ، حافظ ابن حجر رحمہ اللہ نے اس حدیث کو حسن کہا ہے ، فتح الباری 181/9]۔
علامہ ابن عثیمن رحمہ اللہ فرماتے ہیں کہ مرد کے لئے اس مخطوبہ عورت کو کئی بار نکاح کی غرض سے دیکھنا جائز ہے۔[ الشرح الممتع 21/12]۔
ابن باز رحمہ اللہ فرماتے ہیں کہ مرد کے لئے عورت کو دیکھنا اسے بات کرنا جائز ہے خاص کر جب شادی کے متعلق ہو لیکن اسکے لئے اس مخطوبہ عورت سے خلوت میں ملنا جائز نہیں ہے۔[مجموع الفتاوى429/20]۔
دوسری دلیل:حضرت ابوھریرہ رضی اللہ عنہ سے مروی ہے کہ ایک شخص نے ایک عورت کو پیغام نکاح دیا نبی علیہ السلام نے اس شخص سے فرمایا کہ اسے دیکھو اسلئے کہ انصار کی آنکھوں میں کچھ ہوتا ہے۔[مسند احمد]۔
اس حدیث سے بھی ثابت ہوا کہ مخطوبہ عورت کو دیکھنا حکم نبوی ہے اسلئے جو شخص کسی عورت کو پیغام دے اسکے لئے مسنون ہے کہ وہ اس عورت کو دیکھے پہر اگر اسے پسند آئے تو اسے نکاح کرے اور اگر اسے اچھی نہ لگے تو نہ کرے۔
البتہ مخطوبہ عورت کو دیکھنے کی کچھ شرطیں ہیں:
نمبر ایک: مرد کو اس عورت سے شادی کرنے کا ارادہ ہے نہ کہ کسی اور غرض سے وہ اسے دیکھے۔
نمبردو: دیکھنا خلوت اور فتنہ سے خالی ہو۔
نمبر تین: وہ صرف عورت کی ان جگہوں کو دیکھے جنکا دیکھنا شرعی نقطہ نظر سے جائز ہو جیسے کہ اسکے چہرے ، اسکی آنکھوں اور اسکے ہاتھ پیر کو دیکھے اسکے علاوہ عورت کی کسی اور چیز کو دیکھنا اسکے لئے جائز نہیں ہے۔
اسی طرح عورت کو اگر کوئی مرد پیغام نکاح دے اسکے لئے بھی جائز ہے کہ وہ اس مرد کو دیکھے جس نے اسے پیغام نکاح دیا ہے اگر عورت اس مرد کو چاھئے کہ وہ پہلے اپنے ہونے والے شوہر کو دیکھے یا اسے خلوت کے بغیر باتیں کرے تو اس میں بھی کوئی حرج نہیں ہے لیکن یاد رہے عورت اس مرد سے اپنے کسی محرم کی موجودگی میں ملے اور اسی طرح مرد بھی اس عورت سے مل سکتا ہے لیکن جب اس عورت کے ساتھ اسکا باپ اسکا بھائی یا اسکی ماں اسکی خالہ وغیرہ موجود ہو ان دونوں کا خلوت میں ملنا جائز نہیں بلکہ ایسا کرنا حرام اور ناجائز ہے۔
عورت بھی مرد کو دیکھ سکتی ہے اور پسند کرسکتی ہے۔
دلیل:نبی علیہ السلام نے فرمایا کہ کنواری لڑکیوں کی شادی اسکی اجازت لئے بغیر نہ کرو۔ ۔ ۔ ۔ [متفق علیہ]۔
اس حدیث میں نبی علیہ السلام نے عورت کے ولیوں کو انکی اجازت کے بغیر نکاح کرنے سے روکا ہے جسے معلوم ہوا کہ جب تک لڑکی اس مرد کے ساتھ شادی کرنے کے لئے راضی ہو تب تک اسکی شادی اس مرد کے ساتھ کرنا جائز نہیں ہے اور یہ تب ہی ممکن ہے جب عورت اس مرد کو دیکھے اسلئے کہ جب وہ اس مرد کو دیکھے اگر اسے وہ مرد پسند آئے تو وہ اسکے ساتھ شادی کرنے کے لئے راضی ہوگی اور جب اسے پسند نہ آئے تو وہ عورت اس مرد کے ساتھ شادی کرنے کے لئے راضی نہیں ہوگی
اسلئے اگر عورت اس مرد کو دیکھنے کی خواھش ظاھر کرے تو اسے اسکو روکنا نہیں چاھئے اور دوسری بات جب اسے مرد دیکھے گا تو عورت بھی اسے ادھر دیکھ لے گی
ثابت ہوا کہ عورت کے لئے بھی دیکھنے کی ممانعت ثابت نہیں اسلئے عورت کو بھی اختیار ہے کہ وہ اس مرد کو پہلے دیکھے۔
علامہ ابن باز رحمہ اللہ فرماتے ہیں کہ والد اور لڑکی کے دوسرے اولیا کے لئے جائز نہیں کہ وہ اپنی لڑکی کو کسی کے ساتھ شادی کرنے پر مجبور کریں الاکہ اگر وہ راضی ہو انہیں چاھئے کہ وہ اسکی شادی کسی نیک مسلمان شخص سے شادی کرائیں لیکن اسے پہلے اجازت لیں جیساکہ نبی علیہ السلام نے فرمایا کہ ان کی اجازت کی بغیر ان کی شادی نہ کرو۔[مجموع فتاوی ابن باز]۔
خلاصہ کلام:جس طرح مرد کو اختیار ہے کہ وہ اپنی مخطوبہ کو دیکھے اسی طرح عورت کو بھی یہ اختیار حاصل ہے کہ وہ پہلے اس سے دیکھے اور شریعت میں کوئی ایسی ممانعت کی دلیل موجود نہیں کہ عورت اس مرد کو نہ دیکھے جو اسکے ساتھ شادی کرنے کی خواھش رکھتا ہے۔
جو لوگ ممنوع کے قائل ہوں انکے لئے ضروری ہے کہ وہ اسکی دلیل پیش کریں۔
هذا ماعندي والله أعلم بالصواب.
وصلى الله وسلم على نبينا محمد وعلى آله وأصحابه أجمعين.

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