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Mera Sabse pasandida Leader Hai Barak obama. Malala Yusufajai

Europe Ke god me Baithkar zehar ugalne wali aasteen ke saanp.

क्या आप जानते है मलाला यूसुफजई कौन है?

यूरोप मुस्लिम महिलाओं को बिकनी पहनाकर क्या साबित करना चाहता है?

" मेरा जिस्म मेरी मर्ज़ी " यह है इंसानियत के थिकेदारो का नारा।

एक ईसाई शख्स जिन्हें इस्लाम कुबूल करने की वजह से मौत की सजा दी गयी।

मलाला यूसुफजई और उनके वालिद के हवाले से बहुत कुछ ऐसा है जिसे आपको जरूर जानना चाहिए।

मलाला के लिए अमेरिका और सलेबी इतना मेहरबान क्यों? 

मलाला मीडिया कॉवेराज के लिए, सलेबियो को खुश कर के अवार्ड पाने के लिए हमेशा इस्लाम के खिलाफ औरतों के हुकुक के नाम पर बयाँ देती है। 

मलाला की किताब "आई एम मलाला" लिखने में उनकी मदद क्रिस्टियानो लिंब नाम की जर्नलिस्ट ने की।

 
क्रिस्टियानो लिंब को इसलिए शोहरत मिली क्योंकि वह पाक फौज और पाकिस्तान की विरोधी है। इसलिए क्रिस्टियानो लिंब पर पाकिस्तान सरकार के तरफ से पाबंदी भी है।

मलाला यूसुफजई सलमान रुश्दी की गुस्ताखाना किताब " शैतानी आयात " के बारे में लिखती है के "उसके वालिद के ख्याल में वह आजादी इजहार (freedom of expression) है" ।

मलाला यूसुफजई अपनी किताब में कुरान पर टिप्पणी करती है और उसमे खवातीन से मुतल्लिक मौजूद क्वानिन से वह इत्तेफाक नहीं रखती।

मसलन वह एक मर्द और दो औरत की गवाही को गलत कहती है जो के कुरान का हुक्म है ।

इसी तरह जीना (illegal Sex) से मुतल्लिक चार लोगो की गवाही को भी दुरुस्त नहीं समझती।
   (आई एम मलाला पेज 24 और 79)

इसी किताब के पेज 28 पर वह इस्लाम का सेकुलरिज्म और लिबरलिज्म से तुलना करते हुए दीन ए इस्लाम को दहशतगर्द करार देती है।  नौजोबिल्लाह

वह तसलीमा नसरीन को अपनी लाडली बहन करार देती है। यह दोनो के अच्छे ताल्लुकात है।

तसलीमा नसरीन को बांग्लादेश हुकूमत ने  गुस्ताख ए रसूल  की वजह से पाबंदी लगा रखा है।

मलाला ने अपनी पूरी किताब में अल्लाह के लिए लफ्ज़ " गॉड " इस्तेमाल किया है और नबी ए अकरम सल्लाहू अलीहे वसल्लम के लिए सिर्फ नाम लिखा है जैसे गैर मुस्लिम और काफिर लिखा करते है। इसने कही भी नबी सल्लाहु अलैहे वसल्लम के लिए " दुरुद " या " पीस बी अपॉन हिम " (PBUH) नही लिखा है।

मलाला यूसुफजई गुस्ताख ए रसूल पर सजा ए मौत वाले कानून के खिलाफ है।

मलाला यूसुफजई के मुताबिक पाकिस्तान रात के अंधेरे में बना था। इसके किताब में ये अल्फाज पढ़कर यह मतलब निकाला जा सकता है गोया रात के अंधेरे में कोई गुनाह या जुर्म हुआ था।

मलाला यूसुफजई के मुताबिक इन के वालिद जियाउद्दीन यूसुफजई पाकिस्तान के यौम ए आजादी के दिन (14 अगस्त) को काली रिबन बांधी थी जिसपर वह गिरफ्तार किए गए थे और जुर्माना देना पड़ा था।

वह कहती है पहले मैं स्वाति हूं, फिर पश्तून और तब मैं पाकिस्तानी हूं। अपने मुसलमान होने का जिक्र कहीं भी नही करती।

मलाला के वालिद जियाउद्दीन यूसुफजई का कहना है के अगर मुझे किसी मुल्क का शहरी (नागरिक) बनने की ख्वाहिश है तो वह अफगानिस्तान है।

वह अपने मुल्क के कानून का मजाक बनाते हुए कहती है के अहमदी खुद को मुस्लिम कहते है लेकिन यहां का कानून उसे गैर मुस्लिम करार दिया है। (पेज 72)

मलाला और उनके वालिद शकील आफरीदी की हिमायत करते है जो पाकिस्तानी सरकार के मुताबिक गद्दार और जासूस है और इस वक्त सजा काट रहा है।

मलाला की तकरीर उसके वालिद लिखते थे जबकि ब्लॉग अब्दुल हई काकर नामी बीबीसी का नुमाइंदा लिखता था जैसा के वह अपनी किताब में यह सब का जिक्र कर चुकी है।

एडम बि एलेक नाम का सीआईए (CIA) एजेंट कई महीनो तक अपनी शक्ल बदल कर मलाला के घर रहा और उनके वालिद के साथ मिलकर मलाला की तरबियत की ताकि उसको आने वाले वक्त के लिए तैयार किया जा सके। (यह खबर भी फैली के उसने बाद में मलाला से नोबेल इनाम में अपना हिस्सा मांगा था)

मलाला के मुताबिक उनके वालिद जियाउद्दीन यूसुफजई बिजली चोरी में कई बार पकड़े गए थे जिसकी वजह से जुर्माना भी हुआ था।

मलाला की पसंदीदा शक्सियत "बराक ओबामा" है । (हो सकता है अब ट्रंप और बाइडेन हो)

मलाला के मुताबिक वह भेष (रूप) बदल कर यानी बगैर यूनिफॉर्म के ही स्कूल जाती थी क्योंकि तालिबान से खतरा था।

जबकि जहां मलाला रहती थी वहां कोई स्कूल बंद नहीं था। तालिबान मट्ठा के इलाके में ही पाबंदी लगा सके थे। जहां कुछ ही  स्कूल बंद किए गए थे। खास बात यह है के वह जिस वक्त की बात कर रही है उस वक्त वह अपने बाप जियाउद्दीन यूसुफजई के ही स्कूल में जेरे तालीम थी। जो उन्ही के घर के निचले छत में था।

तो क्या वह ऊपर वाले छत से नीचे आने के लिए अपना भेष बदलती थी?

यह है मलाला और उसका असल चेहरा जो आज पाकिस्तान और दुनिया भर के लिबरल टोला वाले की अगुवाई कर रही है।

यह वही मलाला है जो हमेशा मुसलमान हुक्मरानों को औरतों  की आजादी के लिए नसीहत करती है।

यह वही शख्स है जो तसलीमा नसरीन को बहन बताती है और खुद को मुस्लिम औरतों की नुमाइंदा बनती है।

क्या हम एक ऐसे मुस्लिम मुआश्रे की बुनियाद देना चाहते है जिसमे आस्तीन के सांपो को पनाह मिले और इस्लामी निजाम को बर्बाद करने के लिए दिन रात कोशिश करते रहे?

इन को इस्लामी निजाम से नफरत है , हमारे नबी, साहाबा और अल्लाह का कलाम से इन लोगो को दुश्मनी है और यही लोग मुस्लिम खवातीन् के हक़ की बात करते है।

आप सब से गुजारिश है के ऐसे लोगो का बॉयकॉट किया जाए, सोशल मीडिया पर अन फॉलो कीजिये और इनका सामाजिक बॉयकॉट कीजिये। या लोग फिरंगियों के गोद मे बैठ कर मुसलमानो के खिलाफ जहर उगलते है। इन के बहकावे मे न आवे। जो इस्लाम का नही वह भला मुसलमानो का नुमाइंदा कैसे हों सकता है।

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Talaq (Divorce) tak naubat kaise aayi, Meri talak kaise hui?

Aakhir Meri talak kaise hui isme galti kiski thi?

Talak tak naubat kaise aayi?

طلاق تک نوبت كيسے آئی ؟؟

میں یہ تحریر صرف اس لیے لکھ رہی ہوں تاکہ کوئی میرے جیسی سچویشن سے گزر رہا ہے تو اس کو رہنمائی مل سکے۔

میری عمر چھتیس سال ہے۔ میری لو میرج ہوئی تھی۔

ہم کلاس فیلوز تھے اور ایک دوسرے کو چھ سال سے جانتے تھے۔

اس دورانِ تعلیم ہی ہم نے فیصلہ کرلیا تھا کہ میرے شوہر کے جاب میں سیٹل ہونے کے بعد گھر والوں کی رضامندی سے ہم شادی کرلیں گے.
میرے شوہر کی جاب کے بعد ہمارے گھر والے ملے اور ہماری شادی ہوگئی.

اللہ نے ہمیں ایک بیٹے سے نوازا۔

مجھے کالج کے زمانے سے ہی اندازہ تھا کہ میرے شوہر مزاج کے تیز ہیں.

انہیں غصہ جلدی آتا ہے.
لیکن ساتھ رہنے پر اندازہ ہوا کہ جب بھی انہیں غصہ آتا ہے ہمارا ہمیشہ جھگڑا ہوتا ہے.
مجھے ہمیشہ یہ فیل ہوتا تھا کہ وہ مجھے کنٹرول کرنے کی کوشش کرتے ہیں.

جب بھی جھگڑا زیادہ ہوتا میں اپنے بچے کو لے کر میکے چلی جاتی.

میرے میکے والے مجھے سہارا دیتے، تسلیاں دیتے کہ اس نے تمہیں کیا لاوارث سمجھ رکھا ہے.
میری بہنیں فون پہ میرے شوہر کو بے نقط سناتیں.

بہرحال صلح صفائی ہو جاتی اور میں گھر آجاتی.

لیکن یہ بات ہم دونوں جانتے تھے کہ ہم دونوں ایک دوسرے سے پیار کرتے ہیں اور میں اپنے شوہر کو کبھی بھی نہیں چھوڑنا چاہتی.

لیکن ہر جھگڑے کے دوران انہیں یہ ضرور کہتی کہ اگر مجھے چھوڑنا ہے تو چھوڑ دیں.
مجھے علم ہے کہ یہ سب میں صرف اپنی انا کو بلند رکھنے کے لیے کہتی تھی.

ایک بار ہمارا جھگڑا اتنا بڑھا کہ انہوں نے پہلی بار مجھ پہ ہاتھ اٹھایا اور گھر سے باہر نکال دیا.

میں سیدھا اپنے میکے گئی.

میرے گھر والے مجھے لے کر سیدھا پولیس اسٹیشن گئے.
میرے شوہر اریسٹ ہو گئے.
سسرال والوں نے مجھے کیس واپس لینے کے لیے کہا.

میرے شوہر نے مجھ سے معافی مانگی اور کہا کہ آئندہ یہ سب نہیں ہوگا.
میں نے کیس واپس لے لیا اور واپس اپنے گھر چلی گئی۔

تین ماہ بعد ہمارا پھر سے جھگڑا ہوا اور میں ہمیشہ کی طرح بچہ اٹھا کر اپنے میکے چلی آئی.
دو دن بعد مجھے خبر ملی کہ میرے شوہر اسپتال میں ہیں.
میرے گھر والوں نے مشورہ دیا کہ مجھے انہیں دیکھنے جانے کی کوئی ضرورت نہیں بلکہ میری بہنوں کا کہنا تھا کہ یہ سب ڈرامہ ہے تمہیں ایموشنلی بلیک میل کرنے کے لیے.

وہ ایک ہفتہ اسپتال میں رہے. نہ میں ملنے گئی اور نہ ہی کال کی.

کچھ دنوں بعد مجھے طلاق کا سمن ملا.

مجھے طلاق نہیں چاہیے تھی.
مجھے اپنے شوہر سے محبت تھی. میں اپنا گھر خراب نہیں کرنا چاہتی تھی لیکن میری انا آڑے آ رہی تھی.

مجھے لگا کہ طلاق کا منع کر کے میں نیچی ہو جاؤں گی. میں نے انہیں کال کی کہ میں بھی اس جہنم میں نہیں رہنا چاہتی.

کورٹ میں ہمارا کیس آسانی سے نمٹ گیا.

میرے شوہر نے میری ساری ڈیمانڈز، بچے کی کسٹڈی اور خرچہ دینا قبول کرلیا.
ان کا کہنا تھا کہ وہ میری سب باتیں ماننے کے لیے تیار ہیں۔

اس طرح جولائی دو ہزار نو میں میری طلاق ہوگئی.

میرے شوہر نے کچھ عرصے بعد دوسری شادی کرلی.

ان کے بچے بھی ہوگئے لیکن میرے بچے سے ملنے اکثر آتے ہیں.
اس کی ہر ضرورت کا خیال رکھتے ہیں.
بچے کا خرچہ مجھے پابندی سے ملتا ہے بلکہ میرا گزارا بھی انہی پیسوں سے ہوتا ہے.

میں اپنے بچے کے ساتھ میکے میں رہتی ہوں. میرے تمام بہن بھائی اپنی اپنی زندگی میں خوش ہیں.

میری وہ بہنیں جو خود فون کر کے میرے شوہر کو باتیں سنایا کرتی تھیں وہ اب مجھے موردِ الزام ٹہراتی ہیں.

مجھے اب احساس ہوتا ہے کہ میں اپنی شادی بچا سکتی تھی اگر میں نے ہر بات میں دوسروں کو نہ انوالو ( شامل) کیا ہوتا.
کبھی کبھی ہمارے خیرخواہ ہی ہمیں ڈبوتے ہیں.
میں ابھی بھی یہ نہیں کہہ رہی کہ میرے شوہر یا میری غلطی نہیں تھی لیکن ہمارے جھگڑے اتنے بڑے نہیں تھے جن کی وجہ سے طلاق لی جاتی.

 یہ میری درخواست ہے سارے کپلز سے کہ جہاں تک ہوسکے اپنے معاملے خود نمٹائیں.

آپ کا خود سے بڑھ کر کوئی خیرخواہ نہیں۔ اور اپنے گھر کو ہر ممکن بچانے کی کوشش کریں۔
اگر آپ خود اپنا گھر بچانا چاہیں گے تو کوئی اسے توڑ نہیں سکتا۔ یہ میری کہانی نہیں میں پوسٹ کر رہی ہوں
اللہ کریم ہم سب کو عمل کرنے کی توفیق عطا فرمائے.

آمیـــــــــــــــــن ثم آمیـــــــــــــــــن

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A Christian man who converted to islam, Heart TOUCHING and Real story.

A Christian who converted to Islam.

HEART TOUCHING AND REAL LIFE STORY.

Noah Cabarino was a Christian and converted to Islam during his work in Saudi Arabia where he learned Arabic and memorized the Qur'an, interpretation and biography in only 7 years.

He returned to his home country, the Philippines, and he is an advocate of Islam.

He held debates with priests, and more than 70,000 Christians converted to Islam in a few years.

Even the American ambassador in the Philippine capital, Manila, indicated to him in one of the seminars that he wanted to bring extremist Islam back to the Philippines!!

And when the Christians failed to confront him with the argument and proof, they assassinated him (may Allah accept him) with bullets while he was prostrating the afternoon prayer in one of the mosques in Manila in 2016.

He did not know who assassinated him. His followers accused America , while some newspapers accused Iran . and others accused Christian association.

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Ek Empowered Khatoon ka waqya Jinhone Shadi ke bad Apne bacho ki parwarish karna behtar Samjha?

Aaj Modern Auratein Ghaar ke kamo se kyu bhagati hai?
Kyu Ghar ke kam karna Aaj ki ladkiyo ke liye Mushkil hota ja raha hai?



ایسی تحریروں کی جتنی ضرورت آج ہے پہلے کبھی نہ تھی۔

ایک ورکنگ وومن نے اپنی جاب اور خاندان میں سے ترجیحات کا درست انتخاب کر کے بروقت درست فیصلے ، جن کی بنا پر ان کو پچھتانا نہیں پڑا۔
ان کی داستان ان کی زبانی:
۔۔۔۔۔۔
تحریر: جویریہ ساجد

میں نے جس سال اکنامکس میں ماسٹرز کیا اسی سال میری جاب ھو گئی جس کالج سے میں نے بی کام کیا تھا وہ اس وقت ھمارے شہر کا واحد اور بڑا پرائیویٹ کالج تھا انہی نے مجھے لیکچرر شپ آفر کی اور میں نے فوری جوائن کر لیا سب سے پہلی کلاس جو مجھے پڑھانے کو ملی وہ بی کام پارٹ ٹو یعنی فورتھ ائیر کی لڑکے لڑکیوں کی کمبائن کلاس تھی جن کو میں نے میکرو اکنامکس اور انکم ٹیکس لاء پڑھانا تھا۔
جبکہ تھرڈ ائیر کو مائیکرو اکنامکس پڑھانے کو ملی۔

وہ بہت محنت کا سال تھا میرے اپنے اساتذہ جو اب میرے کولیگ تھے انہوں نے میری بہت راہنمائی کی۔

پہلے ھی سال پڑھانے کے ڈنکے بجنے لگے مجھے میرے کالج نے ایم بی اے ایگزیکٹو کلاس کے بھی لیکچر دے دیے جہاں مجھے پروفیشنلز کو ہائی لیول پہ اکنامکس پڑھانی تھی۔

رات رات بھر لیکچرز تیار کرنا، سارا سارا دن ٹاپک سے ریلیٹڈ مختلف کتابیں پڑھنا، اخبارات کھنگالنا، مدعا مختصر محنت رنگ لائی نام بنا شہر میں تیزی سے کھلتے بڑے پرائیویٹ کالجز سے جاب آفر آنی شروع ھوئیں شہر کے تقریباً تمام بڑے کالجز میں وزیٹنگ لیکچرر کے طور پہ انوائیٹ کیا جانے لگا۔
شہر میں یونیورسٹی کا کیمپس بنا تو وہاں بھی لیکچر دینے شروع کیے یونیورسٹی میں جاب کے دوران کئی سیمینار ارینج کیے ورکشاپس کروائیں۔

جب میری شادی ھوئی اس وقت میں کمائی اور نام کی وجہ سے اپنے کیرئیر کے عروج پہ تھی ایک بڑے ادارے میں ھیڈ آف ڈپارٹمنٹ تھی بہت اچھا کماتی تھی ایک لمبے عرصے سے کمائی اور اخراجات میں خود کفیل تھی وہ میں کیرئیر کا عروج تھا شہر کے ھر چھوٹے بڑے ادارے میں میرے سٹوڈنٹ موجود ھوتے تھے بنک ھو یا نادرہ، پاسپورٹ آفس ھو یا چیمبر آف کامرس۔

شادی ھوئی تو شہر چھوڑنا تھا اپنے شہر کے اداروں کو بھی خیر آباد کہنا تھا سرکاری نوکری کی طرف میرا رجحان کبھی بھی نہیں رھا۔

جب شادی ھوئی تو میرے آگے ایک بہت بڑا سوالیہ نشان تھا کہ جاب جاری رکھنی ھے یا نہیں۔
یہ میرے لیے ایک مشکل فیصلہ تھا مگر میں نے فوری جاب نہیں کی ایک سال بعد محمد بن کبیر ھماری زندگی میں آئے مجھے کالجز سے آفر آنا شروع ھوئیں میرے میاں نے
مجھ پہ کوئی پابندی نہیں لگائی وہ ایک کوآپریٹیو اور روشن خیال انسان ھیں ان کے نزدیک یہ فیصلہ میرا اپنا تھا وہ ہر دو صورتوں میں تعاون کریں گے۔

ایک طرف میرا کیرئیر تھا میری اپنی ھینڈ سم کمائی، میری شناخت، میرا وقار میرا زعم کہ میں خود کماتی ھوں۔

دوسری طرف میرا گھر میرا شوہر اور بچہ۔

جوائنٹ فیملی میں تھی گھر تو چل ھی رھا تھا میاں کوآپریٹیو، اصل بات بچے کی تھی کہ میں چھ گھنٹے کے لیے اپنا دو ماہ کا بچہ گھر چھوڑ کے جاؤں تو کیوں جاؤں۔
میں نے سوچا میری زندگی میں کیا کمی ھے مجھے جاب کر کے کیا اچیوو ھوگا اس سوال کا جواب سوچا تو جانا کہ سب کے سب فائدے میری ذات تک تھے.

مجھے کھلی ھوا میں سانس آئے گا میری شخصیت بہتر ھوگی، میرا وقت اچھا گزرے گا، میرا کیرئیر مضبوط ھوگا۔ میری شخصیت کا اعتماد بحال ھوگا کہ میں اب بھی خود کما رھی ھوں چار برانڈڈ سوٹ مذید بناؤں گی، مہنگے جوتے، بیگز، پرفیومز کی تعداد بڑھ جائے گی۔

مگر مجھے اسکی قیمت کیا ادا کرنی پڑے گی میرا چھوٹا معصوم بچہ چھ گھنٹے مجھ سے الگ رھے گا۔ ایک ماں کے لیے یہ بہت بڑی قربانی ھے.

میں نے اپنے بچے کو سینے سے لگایا اور اپنی شخصیت کو ایک اچھی ماں کے طور پہ گروم کرنے کا فیصلہ کیا۔

اس کے بعد دو اور بچے میری جھولی میں آئے اور میری زندگی کا اوڑھنا بچھونا یہی بن گیا تیسرے بیٹے کی پیدائش کے بعد میں نے یونیورسٹی دوبارہ جوائن کی اور ویکلی تین چار لیکچر لینے لگی۔

اب جب تینوں بچے سکول جاتے ھیں میں تینوں بچوں کو خود پڑھاتی ھوں۔

آج جب میں پیچھے مڑ کے دیکھتی ھوں اور اپنے اس وقت کے فیصلے پہ نظر دوڑاتی ھوں تو مجھے احساس ھوتا ھے کہ میرا اس وقت کا فیصلہ ایک بہترین فیصلہ تھا۔

میں نے دو کشتیوں کا سوار بننے کا راستہ نہیں چنا۔
میں نے خود کو کیرئیر اور گھر داری میں کنفیوز نہیں کیا۔
میرا مقصد واضح تھا میں نے اپنے بچوں کے لیے بہت کچھ سیکھا۔
سب سے پہلے میں نے اپنے بچوں کے لیے محمد کے پیدا ھوتے ھی قرآن پاک کو مکمل تجوید کے ساتھ دوبارہ سے سیکھا تاکہ میں اپنے بچوں کو صحیح طریقے سے قرآن پاک خود پڑھا سکوں۔

میں نے ترجمہ تفسیر، سیرت پڑھنی شروع کی۔
میں نے پیرنٹنگ کے کورسز کیے۔

سب سے بڑھ کے جب میں فوکسڈ تھی تو میں نے یہ سیکھا کہ میرا مثبت قدم اور مثبت شخصیت میرے بچوں کے لیے کس قدر فائدہ مند ثابت ھوگی۔ اس لیے خود کو مزید مثبت بنانے پہ توجہ دی۔

میں اپنی شخصیت کی تراش خراش کرتی گئی۔
میں نے انگلش کرائمر پہ دھیان دینا شروع کیا۔
اب ملٹی لینگویجز سیکھنا شروع کر رھی ھوں۔

آج جب میں پیچھے مڑ کے دیکھتی ھوں تو میں ایک کامیاب کیرئیر وومن کی نسبت اپنے آپ کو ذیادہ مثبت، ذیادہ مضبوط، ذیادہ گرومڈ پاتی ھوں ذیادہ فوکسڈ، ڈٹرمنڈ، کلئیر

Focused, determined, clear in thinking

جس کا فائدہ میرے بچوں کو بھی ھوا میں نے اپنی ذات سے نکل کے ذیادہ وسیع کینوس پہ محنت شروع کی۔
میں نے خود کو اندھا دھن بھاگنے میں نہیں تھکایا۔

میری تعلیم نے مجھے یہ سیکھایا کہ زندگی میں ترجیحات بدلنے کے ساتھ خود کو بدلنا ھی بہترین فیصلہ ھے۔

میری تربیت نے مجھے یہ سیکھایا کہ کسی بڑے مقصد کے لیے قناعت پسندی کے ساتھ جینا، کسی وقت میں اپنے لائف سٹائل پہ کمپرومائز کر لینا، کچھ کم اشیا پہ گزارا کر لینا کوئی بہت بڑی قربانی نہیں ھے میں نے ایک جگہ طنزیہ فقرہ پڑھا کہ پڑھی لکھی بیوی کے شوہر تندور سے روٹیاں ھی لگواتے پائے جاتے ھیں۔ جبکہ میں سمجھتی ھوں کہ ان پڑھ لڑکیوں کے شوہر بچوں کی ٹیوشن کے چکر لگاتے عمر گزارتے ھیں۔ فیصلہ ھمارا اپنا ھے۔

ایک شادی شدہ عورت کے لیے جاب کرنا کسی بھی طرح آسان نہیں ھے جس کی قیمت وہ کسی نا کسی صورت ادا ضرور کرتی ھے جس سے شخصیت الجھ جاتی ھے میں نے اپنے بچوں کو اپنا بیسٹ دیا جو میری بساط تھی۔

جاب کرتی ھوئی عورت کچھ بھی کر لے اس گلٹ میں رھتی ھے کہ میں بیسٹ نہیں دے پائی۔

اپنی شخصیت سنوارتے کرئیر بناتے اپنا وقار بڑھاتے جب بچے چپڑ چپڑ کرکے کھانا کھاتے ھیں، گھگیا گھگیا کے بولتے ھیں، تھرل کے نام پہ لڑکیوں سے پڑس چھیننا، ہنگامے کرنا، کلاس میں نسوار جسکا ماڈرن نام مجھے نہیں پتہ رکھتے ھوئے پائے جاتے ھیں تب جو ٹینشن کے اٹیک ھم ماؤں کو ھوتے ھیں وہ اس تمام میڈلوں اور انعامات سے کہیں ذیادہ خوفناک ھیں جو کیرئیر ومن کو ملتے ھیں۔

اس کے علاوہ میں ان تمام خواتین کو بہت قدر کی نگاہ سے دیکھتی ھوں جو ضرورت اور مجبوری کے تحت شادی کے بعد جاب کرتی ھیں اور چاھتے ھوئے بھی اپنے بچوں کو ٹائم نہیں دے سکتیں۔

بچے تو بچے ان کی اپنی صحت بھی توجہ طلب ھو جاتی ھے اور وہ ٹائم نہیں نکال سکتیں۔

اس کے ساتھ ھی میں ان تمام خواتین کو بھی پسند نہیں کرتی جو جاب تو نہیں کرتیں مگر بچے سکول بھیج کے آدھا دن سوتی ھیں،
بچے ٹیوشن بھیج کے ڈرامے دیکھتی ھیں، صبح شام میکوں کے چکر لگاتی ھیں،
بازاروں میں ونڈو شاپنگ کرتی ھیں،
فون کالز پہ پورے خاندان کو تگنی کا ناچ نچاتی ھیں۔

میں آپ سب خواتین سے یہ کہنا چاھتی ھوں آپ جاب کرتی ھیں یا نہیں اپنی زندگی کو با مقصد، معیاری اور مثبت کاموں میں صرف کریں۔

اپنی ترجیحات کا درست تعین درست وقت پہ کریں۔

جاب کریں یا گھر پہ رھیں اپنی شخصیت سنوارنے پہ بھرپور توجہ دیں۔ وقت اور صحت کی شدید قدر کریں۔
شخصیت گھر پہ رہ کے بھی نکھر سکتی ھے۔
اپنے بچوں کی تربیت کو ترجیحات میں سب سے اوپر رکھیں۔
صرف مردوں کو نیچا دیکھانے کے لیے جاب مت کریں۔
صرف اپنے آپ کو ثابت کرنے کے لیے خود کو خوار مت کریں۔
گزارا اچھا ھو رھا ھے ٹھیک ھے۔ لائف سٹائل کوئی چیز نہیں ھے جس کے لیے بچوں کو نسوار کا عادی کر دیا جائے۔
مردوں سے برابری کرنے کے لیے بیٹوں کو اپنی بے توجہی سے مت بگاڑیں۔

مخصوص قسم کے لبرل بیانیے بہت مضحکہ خیز ھیں ان کو پہچانیں۔
یہ ایک طرف لڑکیوں کو آزادی دینے کی بات کرتے ھیں دوسری طرف لڑکوں کی تربیت کی ان سے پوچھیں عورت کو تو آپ نے گھر کی ذمہ داریوں سے آزاد کر دیا تربیت کون کرئے گا۔

یہ آپ کو آئیں بائیں شائیں کریں گے
ہر چمکتی ھوئی چیز سونا نہیں ھوتی انگارہ بھی ھو سکتی ھے۔

تحریر: جویریہ ساجد

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Agar Aap liberal hai to Yah Jism aapka hai isliye ikhtiyaar bhi aapka hi hai.

Aapka jism hai isliye marzi bhi aapaki hi chalegi.
Agar aap liberal aur extremist liberal hai to yah jism aapka hi hai chahe jaise kare.
#Mera Jism Meri Marji
#liberal #Extremist #FakeModernism

 


آپکا جسم، آپکی مرضی...
(ڈاکٹر رضوان اسد خان)
............

جی بالکل...

اگر آپ لبرل ہیں تو یہ آپکا ہی جسم ہے، آپ ہی کی ملکیت ہے اور آپ ہی کی مرضی اس پر چلے گی....

.. خواہ اسقاط حمل کروائیں،

.. مصنوعی پلکیں لگائیں،

.. بھنویں کتروائیں،

.. ٹیٹو بنوائیں،

.. کاسمیٹک سرجری سے جسم کو خوبصورت بنوائیں،

.. زیب و زینت کے ساتھ دنیا کے سامنے اسکی نمائش کریں،

.. اسے پارٹی، شادی بیاہ، سکول، کالج وغیرہ میں نچوائیں،

.. اسکی نمائش سے کمائیں یا اسے جنسی بھوکوں کے آگے بیچ کر کمائی کریں،

.. کوئی حصہ، مثلاً بچہ دانی، فالتو لگے تو نکلوا دیں،

.. یا کسی اور جوڑے کا حمل اس میں رکھوا کر اسے کرائے پر چڑھا دیں، یعنی سروگیٹ مدر بن جائیں،

.. اپنی جنس پسند نہ ہو تو خواہ اس جسم میں رد و بدل کروا کے مخالف جنس اختیار کر لیں،

.. اسکے اعضاء بیچ ڈالیں،

.. مرنے کے بعد جلا کر بھسم کرنے کی وصیت کر جائیں،

.. اور اگر بالکل مایوس ہو جائیں تو بیشک اس جسم سے جان کا تعلق ختم کر ڈالیں....

جی بالکل،

یہ آپ ہی کا جسم ہے اور آپ ہی کی مرضی.... کیوں کہ اسکے خالق نے وقت مقرر تک اسے آپ کی مرضی کے اختیار میں دے دیا ہے...

مرنے کے بعد کیا ہوتا ہے اور وہ آپ کے جسم اور اس پر چلائی گئی آپکی مرضی کا کیسے حساب لیتا ہے....
"دیکھا جائے گا....!!!"

لیکن اگر آپ مسلم ہیں،

مصدر جسکا "تسلیم و رضا"

اور مفہوم جس کا: خالق، مالک، رب اور معبود کے ہر حکم کے آگے سر تسلیم خم کرنا ہے،

تو نہ یہ جسم آپکا ہے اور نہ اس پر مرضی آپکی چل سکتی ہے... جس نے اسے بنایا ہے، مرضی چلانے کا اختیار بھی اسی کے پاس ہے.

اب لبرل بننا ہے یا مسلم؟
آپکا جسم، آپکی مرضی...!!!

(رضوان اسد خان)

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Aaj Ukraine Apne Army me Sirf Mardo ko kyu Shamil kar raha hai Auraton ko nahi?

Ham sab Un Se mutalba karte hai wah Ukraine par Human Rights ke khilafwarzi ka mukadma chalaye.
Ukraine kyu Army me Mardo ko Shaamil kar raha hai Aurato ko nahi?

 



(حقوق نسواں)

✍ : طالب العلم معاذ عثمان

ہم پرزور مطالبہ کرتے ہیں کہ اقوامِ متحدہ یوکرین پر سنگین پابندیاں عائد کرے کیونکہ یوکرین نے انسانی حقوق کی خلاف ورزی کی ہے، یوکرینی حکومت کی طرف سے
پیغام جاری کیا گیا ہے کہ یوکرین کا ہر مرد جس کی عمر 18 سال سے لے کر 60 سال تک ہے، وہ ملکی دفاع کے خاطر
ہتھیار اٹھائے۔

ہتھیار بھی خود حکومت فراہم کرے گی.

جبکہ عورتوں اور بچوں کو با حفاظت محفوظ جگہ پر منتقل کر دیا گیا ہیں۔

یوں تو یوکرینی فوج میں مرد و خواتین دونوں شامل ہیں، مگر عام عوام کو پیغام میں یوکرینی صدر زلنسکی نے نہایت واضع الفاظ میں صرف یوکرینی مردوں کو پیغام دیا ہے کہ وہ ہتھیار اٹھائے۔

یوکرینی صدر کے اس پیغام کے بعد چند سوالات کا اٹھنا فطری ہیں کیونکہ یوکرینی حکومت نے عورتوں کے حقوق کو خاک میں ملا دیا ہے۔

وہ سوالات ہیں، کیا عورتیں مردوں سے کمزور ہے؟

کیا عورتوں میں حب الوطنی کا جزبہ نہیں ہوتا ؟
کیا یوکرینی عورتیں بزدل ہیں؟؟؟

اگر یورپ (یوکرین) میں عورتوں کو مردوں کے سنگ ملک و وطن کی دفاع کی خاطر لڑنے نہیں دیا جاتا تو پھر کیا یہ اندازہ لگانا درست ہے کہ یورپ میں خواتین کو حقیر سمجھا جاتا ہے ؟؟؟

اگر حقیر نہیں سمجھا جاتا اور عورت کو مرد کے برابر اور ہم پلّہ سمجھا جاتا ہے تو پھر یہ دہرا معیار کیوں؟

یا ماجرا کچھ اور ہے جیسا کہ عام طور پر ہمارے معاشرے کا تصوّر ہے کہ حقوق سب کے برابر ہیں مگر کرنے کے کام مختلف۔۔۔

بات عورتوں کے حقوق کی ہو رہی ہو اور ہمارے معاشرے کے مغرب زدوں کو یاد نہ کیا جائے، کوئی جواز ہی نہیں بنتا!

عموماً ہمارے معاشرے کے مغرب زدہ لوگ بڑے رشک بھری نظروں سے یورپی معاشرے کو دیکھتے ہیں۔

یورپی معاشرے میں سب سے زیادہ دلکش چیز جو انہیں لگتی ہے وہ ہے عورتوں کی آزادی یا بالفاظ دیگر ،حقوق نسواں۔۔۔

حقوق نسواں مطلب و مقصد ہی یہی ہے کہ عورتوں کو حقیر نہ سمجھا جائے، ہر عورت کو ان کا حق فراہم کیا جائے، خواتین کو تعلیم سے ہرگز محروم نہ کیا جائے، زبردستی شادیاں نہ کرائے جائیں، اگر عورتیں کو جاب وغیرہ کرے تو منع نہ کیا جائے، اس سے یہ معلوم ہوتا ہے کہ یہ تو در حقیقت وہی بات کر رہے ہیں جو رحمت اللعالمین صلی اللّٰہ علیہ وسلم نے بہت پہلے کی تھی، یعنی وہ محمد رسول اللّٰہ ہی تھے جنہوں نے جاہلیت کے زمانے میں عورتوں کو وہ حقوق دئے جو روز روشن کی طرح واضح ہیں اور بیان کرنے کی ضرورت نہیں ہیں کیونکہ ہر شخص (بالخصوص مسلمان) اس سے واقف ہے۔

درحقیقت معاملہ اس وقت سمجھ سے بالا تر ہو جاتا ہے کہ یہ لوگ جو حقوق مانگ رہے ہیں، یہ حقوق تو پہلے ہی سے آئین شریعت نے فراہم کی ہیں۔

اگر بات یہ ہی ہے کہ شریعت پر عملدرآمد نہیں ہو رہی تو واضح بتائے تاکہ فقط چند لوگ نہیں بلکہ پورا عوام اس تحریک میں شامل ہو جائے اور اسلام پسند سیاسی پارٹیاں بھی حمایت کر دے۔

مگر بات حقوق کے حصول کی نہیں ہے یہ تو محظ ایک بہانہ ہے اور حصول حقوق کے نام پر بےحیائی برائیوں کو فروغ دینے کا کام یا تو چاہتے ہوئے اور یا نہ چاہتے ہوئے سر انجام دے رہے ہیں۔

ان لوگوں کے بارے میں میں وہ الفاظ استعمال کرنا پسند کرونگا جو سید قطب نے اپنے ملک کے اشتراکیت زدوں کے بارے میں عرض کئے تھے کہ "بات تو ان کی ٹھیک ہیں مگر مقصد غلط ہے۔" کیونکہ ان کے قول و فعل کا تضاد ہی ان کے مقصد کو واضح کرتا ہے۔

اگر آپ ماضی قریب کے چند لمحوں کا مشاہدہ کریں تو سب کچھ عیاں ہو جائے گا۔

جیسا کہ ہر سال مارچ کے مہینے میں چند لوگ عورت مارچ کے نام سے ایک جلوس منعقد کرتے ہیں جس میں وہ جو نعرہ بازی کرتے ہیں وہ بھی سب کو خوب معلوم ہیں، جو اس بات کو واضح کرتی ہے کہ اصل مقصد عورتوں کے حقوق کے لیے جدوجہد نہیں بلکہ کچھ اور ہے۔

اسی مارچ کو ہر سال ہمارے معاشرے کے مغرب زدہ لوگ خوب بڑھا چڑھا کر پیش کرتے ہیں۔

درحقیقت یہ لوگ ہمارے معاشرے میں مغربی معاشرے کے دلال بن کر مغربی تہذیب کی اچھائی بیان کرنے میں مصروف رہتے ہیں۔

چند مہینے پہلے جب گوادر کی بیٹیوں اور ماؤں نے نہایت عظیم الشان ریلی نکالی تھی تو اس ریلی پر سب کو سانپ سونگھ گیا تھا۔

بی بی سی کے رپورٹ کے مطابق یہ گوادر کی سب سے بڑی ریلی تھی۔ جبکہ کچھ ملکی و غیر ملکی خبر رساں اداروں کے مطابق یہ ریلی بلوچستان کے تاریخ کی سب سے بڑی ریلی تھی۔
مگر اس پر کسی نے بھی یہاں تک کہ بڑے بڑے اینکروں نے بھی اس ریلی کے لیے کچھ بولنا تک بھی پسند نہ کیا۔

معروف عالم الدین اور بیسویں صدی کا محقق و مصنف سید ابوالاعلی مودودی نے اپنی کتاب "دین اور خواتین" میں عورتوں کے حقوق کے بارے میں اور عورتوں کی آزادی کے بارے میں نہایت مدلل انداز میں لکھا ہے کہ "ہم مسلمان عورتوں کو ضروری فوجی تعلیم دینے کا بھی انتظام کریں گے اور یہ بھی ان شاءاللہ اسلامی حدود کو باقی رکھتے ہوئے ہوگا۔

میں بارہا اپنے رفقا سے کہہ چکا ہوں کہ اب قومیت کی لڑائیاں حد سے بڑھ چکی ہیں اور انسان درندگی کی بدتر سے بدتر شکلیں اختیار کر رہا ہے۔

ہمارا سابقہ ایسی ظالم طاقتوں سے ہے جن میں انسانیت کی کسی حد کو بھی پھاند جانے میں تامل نہیں ہے۔
کل اگر خدانخواستہ کوئی جنگ پیش آجائے تو معلوم کیا کیا درندگی اور وحشت ان سے صادر ہو۔

اس لیے یہ ضروری ہے کہ ہم اپنی عورتوں کو مدافعت کے لیے تیار کریں اور ہر مسلمان عورت اپنی جان و مال اور آبرو کی حفاظت کرنے پر قادر ہو۔

انھیں اسلحے کا استعمال سیکھنا چاہیے، وہ سواری کر سکتی ہوں، سائیکل اور موٹر چلا  سکیں، فسٹ ایڈ [ابتدائی طبی امداد ] جانتی ہوں، پھر صرف اپنی ذاتی حفاظت ہی کی تیاری نہ کریں، بلکہ ضرورت ہو تو جنگ میں مردوں کا ہاتھ بٹاسکیں۔

ہم یہ سب کچھ کرنا چاہتے ہیں لیکن اسلامی حدود کے اندر اندر کرنا چاہتے ہیں، ان حدود کو توڑ کر نہیں کرنا چاہتے۔
قدیم زمانے میں بھی مسلمان عورتوں نے اسلحے کے استعمال اور مدافعت کے فنون کی تربیت حاصل کی تھی لیکن اُنھوں نے پورے فنون سپہ گری اپنے باپوں، بھائیوں اور شوہروں سے سیکھے تھے اور پھر عورتوں نے عورتوں کو تربیت دی تھی۔

اب بھی یہ صورت بآسانی اختیار کی جاسکتی ہے کہ فوجی لوگوں کو اپنی محرم خواتین کی تربیت پر مامور کیا جائے اور پھر جب عورتیں کافی تعداد میں تیار ہو جائیں تو ان کو دوسری عورتوں کے لیے معلم بنا دیا جائے۔ "

تو ضرورت اس امر کو سمجھنے کی ہے کہ اس دنیا میں جو بھی انسان ہو؛ چاہے وہ مرد ہو یا عورت, اس شخص کو اس دنیا میں ان اصولوں ، قاعدوں ، پابندیوں اور آزادیوں کے محدود لکیروں کے اندر ہی زندگی گزارنی چاہیے جن لکھیروں کو خالق سماوات و الارض نے مقرر کئے ہیں۔ چاہے وہ مرد ہو یا عورت ، عربی ہو یا عجمی ، یورپ کا باشندہ ہو یا برصغیر کا وہ رب کے مقرر کردہ اصولوں سے مبرّا نہیں ہے بلکہ عین اس کا پابند ہے۔

جو بھی کام ہو شریعت کے دائرے میں رہ کر ہو, ایسا  نا  ہو جس سے اللہ اور اسکے رسول کی نا فرمانی ہو۔

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Europe Muslim Auraton ko bikni pehna kar use kis layek banana chahata hai, Europe ko Muslim khawateen ki itni fikr kyu?

Europe Auraton ko bikni pehna kar use kis layek bana raha hai?

Islam me Auraton ke huqooq aur European culture.

آپ کی بیوی ، بیٹیاں اور بہنیں آپ کی عزت و وقار ہیں انکو بے پردہ رکھ کر عیاش لوگوں کی ہوس کی تسکین کا سامان نہ بنائیں ! جزاك اللهُ خير.

عورت کے تعلق سے فکر کا ایک اہم زاویہ ۔

اس وقت خواتین کو سب سے زیادہ ٹارگٹ کیا جارہا ہے، اگرچہ انہیں تعمیر و ترقی اور عملی میدان میں آگے بڑھنے؛ نیز مردوں کے ہم پلہ کھڑا کردینے کے خواب دکھائے جارہے ہیں، مگر حقیقت یہ ہے کہ انہیں ایک object کی طرح استعمال کر کے شیطانی و دجالی طاقتیں اپنا مفاد نکال رہی ہیں.

ایک زمانے تک عورت کو چھوا چھوت اور سماجی زندگی کیلئے ایک لونڈی و کام کاج کی مورت بنا کر استحصال کرتے رہے، انہیں ناپاک اور گھٹیا بتا کر ان کے سایہ سے بھی دور بھاگتے رہے، تقدس اور نیکی میں انہیں خلل جان کر سوسائٹی سے الگ تھلگ کرتے رہے؛ لیکن اب اس کے برعکس انہیں استعمال کر کے، سنہرے خواب دکھا کر مفاد نکالا جارہا ہے، آپ غور کیجئے! ملک میں جتنے بھی مسائل اٹھائے گئے وہ کن سے متعلق ہیں، تین طلاق، پردہ، چار شادیاں، حلالہ، نان و نفقہ کا مسئلہ وغیرہ وغیرہ - - -

پھر یورپ نے خواتین کے سلسلہ میں جو سلوگن بنائے وہ کیا تھے؟ یہی کہ کیا مرد و عورت برابر نہیں؟

کیا انہیں باہر کام کاج کی اجازت نہیں؟
انہیں مَن مرضی لباس پہننے، شراب نوشی، جوا اور سٹے بازی کرنے کی اجازت نہیں؟
خواہشات کے مطابق اپنی ہوس پوری کرنے اور اس سلسلہ میں قیود و بند سے آزاد ہوجانے کی اجازت نہیں؟

عورت ہی بچے پیدا کیوں کرے؟ وہی گھر کیوں سنبھالے؟
دراصل یہ خبیث دماغ جانتے ہیں کہ خاتون ہر گھر اور معاشرے کی سب سے مقدس اور لطیف شخصیت ہے، اسے اگر عریانی کا لباس پہنا دیا، فحاشیت اور شیطانیت کا ہمنوا بنا دیا تو پھر پورا معاشرہ ان کے ہاتھوں کا کھلونا ہے، آپ دیکھئے! یورپ، امریکہ، رَشیا جیسے ممالک کس رخ پر ہیں؟

ان کا معاشرتی ڈھانچہ برباد ہے، اولڈ ایج ہاؤس، ڈپریشن، حرارت قلب کا بند ہوجانا، کینسر، ایڈژ جیسی مہلک بیماریوں کی بھرمار ہے، آئے دن خواتین کے ساتھ زنا بالجبر، قتل اور بیوی یا کسی بھی خاتون کو دوستی کے نام پر ایک مدت معینہ تک استعمال کر کے بے گھر چھوڑ دینے کے واقعات سامنے آتے رہتے ہیں، یہی حال اب ہندوستان کا ہوتا نظر آتا ہے.

اپنی معاشرت تباہی دہانے پر پہنچا کر اب یہ ہر ممکن کوشش کر رہے ہیں کہ مسلمان جنہیں پردہ و عزت کا تحفہ دیتے ہیں؛
انہیں یہ sex object اور کام کرنے والی محض ایک عام شخصیت کا روپ دے کر مردوں کی دنیا کا شکار بنالیں، اس کام میں ایک سب سے بڑا فیکٹر یہ ہوتا ہے کہ وہ عورتوں کو مرد کی برابری کا لالچ دیتے ہیں.

کس قدر افسوس کی بات ہے کہ یہ ظالم مرد اپنا کام چھوڑ کر خواتین سے نہ صرف اپنا؛ بلکہ ان کا کام بھی کروانا چاہتے ہیں، وہ بچے بھی پالے اور روزی روٹی کا بھی بندوبست کرے.

       مولانا سید ابوالاعلیٰ مودودی رحمہ اللہ نے مشرق و مغرب کے میخانے دیکھے اور ان کی تنقیدی نگاہوں نے دونوں عالم سے خوب سیرابی حاصل کی تھی؛ بالخصوص مغربی معاشرے کی جڑ تک پہنچے ہوئے تھے، وہ جانتے تھے کہ خواتین کو ترقی کی آڑ میں کس طرف دھکیلا جارہا ہے، انہیں اسکرٹ پہنا کر کن کاموں کے لائق بنایا جارہا ہے، اعلی عہدے، صدارت و وزارت سے دور رکھ کر محض کلرک، پرکشش مقامات اور تلذذ کی دنیا میں جھونک کر ان سے کیا خواہش کی جارہی ہے، عجیب بات ہے کہ انٹلکچول خواتین بھی اسے سمجھنے کو تیار نہیں، اسلام یقیناً ایک خاص دائرے میں انہیں ہر جائز کام کرنے اور ترقی کی اجازت دیتا ہے، اور ناجائز چیزوں سے روکتا ہے اس میں انہیں کیلئے خیر ہے، ایسا نہیں ہے کہ مردوں کیلئے کوئی قیود نہیں؛ بلکہ انہیں بھی جائز و ناجائز کی شرطیں ملحوظ رکھنی ہیں، اگر موازنہ کی کیفیت سے نکل کر اپنا اپنا دائرہ عمل سمجھ لیا جائے تو بات ہی ختم ہوجائے گی، مولانا کا تجزیاتی بیان یہ ہے کہ مغرب نے عورت کو جو کچھ دیا ہے وہ مرد بنا کر دیا ہے، بحیثیت عورت وہ آج بھی ذلیل ہے - -

اسی طرح پڑوسی ملک کے مولانا عمار خاں ناصر صاحب (سابق استاد جامعہ نصرۃ العلوم گوجرانوالہ) نے ٨/ ٣/ ٢٠٢٢ء کو ایک تحریر میں اہم نقطہ کی طرف متوجہ کیا ہے، مولانا لکھتے ہیں: "عورت کے لیے بطور عورت تکریم کو معاشرتی قدر بنانے پر محنت کی ضرورت ہے۔ اسی لیے ہمیں اصرار ہے کہ "آزادی" کا مغربی فلسفہ اور جسم اور مرضی جیسے سلوگن ہمارے سیاق میں مددگار نہیں، بلکہ الٹا نتیجہ پیدا کرنے والے ہیں۔ ان کا پیغام اور تاثیر عورت کی تکریم نہیں جو ایک اخلاقی احساس ہے۔

ان کا پیغام ایک طرف انفرادیت کے نفسی احساس اور صنفین کے مابین بے گانگی اور منافرت کو فروغ دینا اور دوسری طرف نسوانی جسم کو جنس بازار بنانے میں سرمایہ دارانہ منڈی کو سہولت فراہم کرنا ہے تاکہ اس کی خرید وفروخت کرنے والے کسی اخلاقی ججمنٹ کا موضوع نہ بنائے جا سکیں اور "آزادی" کی قدر کے تحت ان کو قانونی اور سماجی تحفظ فراہم کیا جا سکے۔

تکریم کو معاشرتی قدر بنانا انسانوں کے باہمی تعلق کو ایک اخلاقی اصول پر استوار کرنا اور سماج میں محاسبے کا ایک خودکار میکنزم تشکیل دینا ہے۔

آزادی کو نقطہ حوالہ بنانا اس کے برعکس صنفین میں ایک بے گانگی اور کشمکش پیدا کرنا ہے جس میں تحفظ کی بنیادی ضمانت ریاست کا ڈنڈا ہے۔

جہاں ریاست یہ تحفظ مہیا کرنے کی پوزیشن میں نہ ہو، وہاں عدم تحفظ کے مظاہر پر صرف لعن طعن ہو سکتا ہے یا کچھ قوانین بنوا کر حصول طاقت کا نفسیاتی احساس پیدا کیا جا سکتا ہے۔

دونوں طریقے نتیجے میں غیر موثر رہتے ہیں اور صرف فرسٹریشن کو بڑھانے کا ذریعہ بنتے ہیں۔

آئیے، اپنے معاشرے کو، اپنی اقدار کو، اپنی ریاست کو اور معاشرے کی بہتری کے لیے اپنے وسائل کو خود اپنی نظر سے دیکھنا سیکھیں۔
مستعار اور اجنبی تصورات کے سحر میں گرفتار ہو کر خود کو تباہ نہ کریں۔"

✍️ محمد صابر حسین ندوی ۔

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Mera Jism Meri marji (My body My Choice) fitrat ke khilaf lagaya hua nara hai.

"Mera jism Meri Marji" Ka nara lagane walo ko log kis nigah se dekhte hai?

Mera Jism meri marji ek fitrat ke khilaf nara hai?

الإستسلام لله الأحد ** الله كي مرضي
السَّلاَمُ عَلَيْكُمْ وَرَحْمَةُ اللهِ وَبَرَكَاتُهُ
میرا جسم میری مرضی ، ایک خلافِ فطرت نعرہ :
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 : محمد عالم بن نذیر احمد المدنی (دعوت الارشاد توعیةالجالیات الدمام)

عورت ، خصوصًا دورِ حاضر کی عورت کی فتنہ انگیزی ایک ایسی اظہر من الشمس حقیقت ہے جس کے بارے میں کوئی دو رائے نہیں ۔ اس بات کو ملحوظ رکھا جائے کہ عورت کو فتنہ برائی کے معنوں میں نہیں کہا گیا ہے ، نا ہی عورت بذاتِ خود مجسمہ فتنہ ہے ، بلکہ فتنہ کا مطلب آزمائش ہے ۔

اُسامہ بن زید رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم کا یہ قول روایت کرتے ہیں:

ما ترکت بعدی فتنة هی أضر علی الرجال من النساء
[صحیح بخاری:5096 / مسلم: 27400]
’’میں اپنے بعد مردوں کے لئے عورتوں سے بڑھ کر کوئی فتنہ نہیں چھوڑ کر جا رہا۔‘‘

ابو سعید خدری روایت کرتے ہیں کہ رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا:

إن الدنیا حلوة خضرة وان اللّٰه مستخلفكم فیها فينظر کیف تعملون فاتقوا الدنیا و اتقوا النساء فإن أوّل فتنة بنی إسرائیل کانت فی النساء
[صحیح مسلم: 2742/49]

’’یقیناً یہ دنیا میٹھی اور سرسبز ہے۔ اللہ تعالیٰ تمہیں اس میں بھیج کر دیکھیں گے کہ تم کیا عمل کرتے ہو۔پس تم دنیا اور عورتوں کے معاملے میں تقویٰ اختیار کرو۔ بنی اسرائیل کا پہلا فتنہ عورتوں کے بارے میں تھا۔‘‘

8 مارچ کو گلوبل سکیل پر یومِ نسواں منایا جاتا ہے ، حالانکہ کسی بھی کام کے لیے کسی دن کو خاص کرنا اور منانا ایک مذموم بدعت ہے ، یہ اسلام مخالف اقوام کا اپنا ایجاد کردہ رواج ہے جیسے مدر ڈے ، بچوں کا عالمی دن ، عالمی یومِ سرطان ، عالمی یوم برائے معذور افراد، اور اقوام کے قومی دن کے علاوہ بہت سے دوسرے ایام جن کی فہرست طویل ہے ۔

غور طلب بات یہ ہے کہ دنوں کو خاص کر کے اب تک کون سے فوائد حاصل ہوئے ہیں ؟

اسی طرح آج کل سوشل میڈیا پر عورت مارچ کے حوالے سے ایک واویلا مچا ہوا ہے اور اس کے لیے ایک سلوگن استعمال ہو رہا ہے " میرا جسم میری مرضی "

عورت کے عالمی دن پر دو سال سے آزادی نسواں کا نعرہ بلند کرنے والی مخصوص عورتوں کا میرا جسم میری مرضی کے مرکزی مقصد کے تحت مارچ کیا جاتا ہے جس میں ایک طوفانِ بدتمیزی برپا ہوتا ہے ۔

اگر اس مارچ کا مقصد مظلوم عورت کو انصاف دلانا یا اسی طرح کا کوئی دوسرا مقصد ہے تو حقیقت کے برعکس عورت مارچ میں کہیں کوئی مظلوم عورت نظر نہیں آتی سوائے فحاشی میں مبتلا وہ عورتیں جن کو دیکھ کر انسانیت بھی شرما جاتی ہے ۔

اسلام میں مسلمان عورت کا مقام بلند اور موثر کردار ہے ۔ مغربی معاشرے سے متاثر عورت کا دینِ محمدی ﷺ سے انحراف نہایت شرمناک ہے ۔

یورپی شماریاتی آفس "یورو سٹیٹ" کی سال 2017 کے اعداد و شمار سے تیار کردہ رپورٹ کے مطابق یورپی یونین کے رکن ممالک میں سے فرانس، جرمنی اور برطانیہ میں عورتوں کے قتل کی شرح سب سے بلند رہی اور ان میں بھی فرانس پہلے نمبر پر رہا۔

فرانس میں ایک سال کے دوران 6011 عورتوں کو قتل کر دیا گیا اور برطانیہ میں ہر تین میں سے ایک عورت کو تشدد کا نشانہ بنایا گیا۔

جرمنی میں 380، برطانیہ میں 227 اور اسپین میں 1133 عورتیں مردوں کے ہاتھوں قتل ہوئیں۔

اٹلی میں سال 2018 کے دوران قتل ہونے والی عورتوں کی تعداد 142 رہی۔

ترکی کی قومی اسمبلی کے عورت مرد مساوی مواقع کمیشن کی رپورٹ کے مطابق یورپی یونین ممالک میں 15 سال سے بڑی ہر 3 عورتوں میں سے ایک، مردوں کے ہاتھوں جسمانی یا جنسی تشدد کا سامنا کر رہی ہے۔

جبکہ سوشل میڈیا پر حالیہ دنوں 19300کی دہائی کی ایک تصویر مغربی معاشرے کا منہ بولتا ثبوت ہے جس میں ایک گورا افسر ایک بنگالی عورت کے کندھوں پر بیٹھا سواری کر رہا ہے، یاد رہے کہ وہ زمانہ جاہلیت کا زمانہ نہیں تھا بلکہ یورپ کے عروج کا دور تھا۔ اور آج یہی گورے ہمیں ہماری عورتوں کے حقوق کا درس دیتے ہیں۔

یہ تمام ثبوت مغربی اقدار کا بھیانک اور بھونڈا چہرہ ہے جسے آئیڈیل بنا کر مسلمان عورتیں اللہ تعالیٰ کے دین ، نبی ﷺ کی تعلیمات اور مسلم معاشرتی اقدار کا مذاق نہیں اُڑا سکتیں ۔

میرا جسم میری مرضی کے نعرے لگانے والی عورتوں کو کیا خبر کہ کتنے مومن غیرتمند ، عورت کو عزت و احترام دینے والے ، عورتوں پر نظریں نیچی کرنے والے اور ایمان والے شریف النفس بھائیوں پر کیا قیامت گزرتی ہے ، ہر ہر نئے برہنہ نعرے پر وہ خود کو برہنہ محسوس کرتے ہیں ، شاید دیوسیت کے ماحول نے انہیں یہ سوچنے کے قابل ہی نہیں چھوڑا کہ اسلام میں عورت ایک پوشیدہ چیز کا نام ہے جس کی پوشیدگی پاکیزگی کی ضمانت ہے ۔

یہ دین بیزار اور مشکوک تربیت والی عورتیں جب سڑکوں پر دندناتی ہیں اور ان کے جسموں کے محاسن کئی غلیظ نظروں کے لیے لطف کا باعث بنتے ہیں تو باحجاب عورتوں کے دل بھی کانپ اٹھتے, کہ قریب ہے دینی قیود سے حصولِ آزادی کے نعرے لگانے والی ان عورتوں پر آسمان سے عذاب نازل ہو جائے یا زمین ان کے جسموں پر اپنی مرضی کے قوانین چلا کر ان کی قبریں بنا دے ۔

8 مارچ کو ہونے والے عورت مارچ کا مقصد ناصرف قوم کی تہذیب و ثقافت اور نظریاتی اساس کو سبوتاژ کرنا ہے بلکہ اسلامی شعائر کے ساتھ یہ سراسر کھلواڑ ہے ۔

اِنْ اُرِیْدُ اِلَّا الْاِصْلَاح مَا اسْتَطَعْتُ وَمَا تَوْفِیْقِیْ اِلَّا بِاللّٰہِ
اللہ عز و جل اھل اسلام کو شیاطین اور سازشی عناصر کے شر سے محفوظ رکھے ۔

آمیــــــــــــــن

وٙالسَّلاَمُ عَلَيْكُمْ وَرَحْمَةُ اللهِ وَبَرَكَاتُهُ

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Auraton ki Aazadi ki Aawaz buland karne wale kaun log hai?

Aurat Ki Aazadi aur Aaj ka Modern Culture.

Auraton ki aazadi ke liye aawaz uthane wale log kaun hai?

السَّــــــــلاَم عَلَيــْــكُم وَرَحْمَـــــــةُاللهِ وَبَرَكـَــــاتُه
 : مسز انصاری

عورت جس آزادی کے لیے آواز بلند کرتی ہے وہ معاشرے کے مظالم نہیں ہیں ، وہ اس کی حق تلفیاں بھی نہیں ہیں بلکہ شریعت مطہرہ کی وہ قیود ہیں جن سے آزادی درندوں کی شکم سیری ، زوال النساء اور مرگ النساء ہے ۔ معاشرے کے مظالم سے تو ناصرف مرد آزاد نہیں ہیں بلکہ معصوم بچے بھی محفوظ نہیں ہیں ۔

جس معاشرے کا ہر فرد ظلم سہہ رہا ہو اس معاشرے کے لوگوں کو اپنی زندگیوں کا جائزہ لینا چاہیے کہ آیا وہ کون سا راستہ ہے جسے اختیار کر کے معاشرے کا ہر طبقہ لہو لہو ہے ۔
وہ کون سا راستہ ہے جس نے عورت کی زبانیں دراز کر دیں ، کس راستے پر ہم چل رہے ہیں کہ جہاں ہمارے معصوم بچے درندگی کا شکار ہو رہے ہیں ، کون سا ہے وہ راستہ جو عہدِ جاہلیت کی یادیں تازہ کر رہا ہےجہاں چند دنوں کی بیٹیاں دفنا دی جاتی تھیں ، آج ہم کس راستے پر ہیں کہ ماوں کی نوزائیدہ بیٹیاں ماوں کے سامنےخون میں نہلادی جاتی ہیں ، کون سا ہے وہ راستہ جہاں گھروں کے کفیل خوبصورت دنیا اور پیارے رشتوں پر خودکشیوں کو ترجیح دیتے ہیں ، کون سا ہے وہ راستہ جہاں رشتوں کے بلند و بالا محل لمحوں میں مسمار ہو جاتے ہیں ، کون سا ہے وہ راستہ جہاں بیٹیاں ماں باپ کے سروں کو جھکا دیتی ہیں ، وہ کون سا راستہ ہے جو میرے گھروں میں قرآن و مصلہ پر ریت کی تہیں چڑھا دیتا ہے ، کون سا راستہ ہے وہ جس نے میرے پروردگار کے گھروں کو ویران اور مردوں کی قبروں کو رونقیں بخش دیں ، آخر وہ کون سا راستہ ہے جس پر چل کر ہمارے گھروں کو نفرتوں کی آگ جلا رہی ہے ، آج ہم کس راستے پر ہیں جہاں رشتوں کو محبت کا یقین دلانے کے لیے وارثین وراثت سے دستبردار ہو جاتے ہیں ، کس راستے پر چل کر اولاد کو یہ حوصلے ملے کہ ان عظیم ہستیوں کو لاچار لوگوں کی کفالت کرنے والوں کے سپرد کر دیں جن کی محبت و شفقت نے انہیں دو فٹ کے نوزائیدہ پودے سے بیس فٹ کا تناور درخت بنا دیا اور وہ کون سا راستہ ہے کہ آج ہم حکمرانوں کے ظلموں کی تاب نا لا کر عمر بن الخطاب کے عدل و انصاف کو یاد کر کے آہ و بکا کرتے ہیں ۔۔۔۔۔۔

آج کے وقت میں معاشرے کے ہر فرد کے لا متناہی مصائب و آلام کے سلسلہ کا واحد سبب سَبِيلِ الطَّاغُوتِ (شیطان کا راستہ) ہے ۔

" تمسكوا بدين الله"
اللہ کے دین کو مضبوط پکڑ لو ۔
مپندار سعدی کہ راہ صفا نواں رفت جز درپے مصطفےٰ
بغیرتابعداری سنت رسول اللہﷺ کے ہرگز نجات نہیں ہوگی
(شیخ سعدی رحمہ اللہ)
وَمَا ذٰلِکَ عَلَی اللّٰہِ بِعَزِیْزٍ

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Laapata (lost) Shauhar ka Kab tak Intejar Kar sakti hai Ek Aurat?

Agar Kisi Aurat ka Shauhar Laapta ho jaye to wah kab tak intejar karegi?
Sawal: Agar kisi aurat ka Shauhar Laapata (lost) ho jaye to wah kitne dino tak uska intejar karegi? Kya wah kisi aur se Dusri Shadi kar sakti hai? Agar dusre Shakhs se Nikah ke bad pahla Shauhar wapas aa jaye to wah kis ke sath rahegi?

"سلسلہ سوال و جواب نمبر-372"

سوال- اگر کسی عورت کا شوہر لا پتہ ہو جائے تو وہ کتنی دیر تک اسکا انتظار کرے؟  کیا وہ کسی اور سے دوسرا نکاح کر سکتی ہے؟ نیز اگر دوسرے شخص سے نکاح کے بعد پہلا شوہر واپس آ جائے تو وہ کس کے ساتھ رہے گی؟

Published Date: 06-3-2022

جواب..!
الحمدللہ..!

*لاپتہ،گمشدہ ،شوہر کی کم ازکم دو صورتیں بنتی ہیں*

*(پہلی صورت)*

شوہر لاپتہ (بمعنی غائب) یعنی بیوی کو چھوڑ کے چلا گیا ہو، وہ اصلاً زندہ ہو، اس سے رابطہ بھی ممکن ہومگر کسی وجہ سے بیوی سے لاتعلق ہوکر کہیں چلا گیا ہو ۔ایسی صورت میں بیوی شوہر سے رابطہ کرے اور درمیانی دوری ختم کرنے کی کوشش کرے ۔ اگرشوہر بیوی سے الگ رہنا چاہتا ہے ، بیوی کو نان و نفقہ سے محروم کر رکھا ہے اور مطالبہ پہ بھی نہیں دیتا تو بیوی حاکم وقت سے نکاح فسخ کرا لے ۔ اس کے بعد اختیار ہے کہ وہ دوسرے مرد سے شادی کر لے۔

*(دوسری صورت)*

واقعی شوہر گم ہوگیا ہو اور اس کی کوئی خبر یا اس سے کوئی رابطہ نہ ہو اور اس کے متعلق زندہ یا مردہ ہونا معلوم نہ ہو۔

ایسی عورت شرعی عدالت میں اپنے شوہر کے لاپتہ ہونے کی خبر درج کرائے ۔ عدالت حالات و واقعات کو سامنے رکھتے ہوئے اس کے لئے شوہر کے فوت ہونے کا حکم لگائے گی ۔ اور پھر عورت عدت گزار کر دوسری جگہ نکاح کر سکتی ہے، یہاں تک مسئلہ میں کسی کو اختلاف نہیں،

*لیکن عدالت میں خبر دینے کے بعد بیوی کب تک انتظار کرے ؟ اسکے متعلق علماء کرام کا اختلاف ہے، یہاں ہم راجح قول کے چند ایک فتوے نقل کرتے ہیں*
______&_____

📙ایک عورت جس کا خاوند گم ہوجائے وہ کتنی دیر تک اس کا انتظار کرنے کے بعد دوبارہ نکاح کرسکتی ہے؟ قرآن وسنت کی روشنی میں فتویٰ صادر فرمائیں۔ (سائل :عبد الجبار چک نمبر 493 گ ۔ب۔تحصیل سمندری ضلع فیصل آباد)
۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔

📚الجواب بعون الوهاب بشرط صحة السؤال
وعلیکم السلام ورحمة اللہ وبرکاته!الحمد لله، والصلاة والسلام علىٰ رسول الله، أما بعد!

بشرط صحت سوال صورت مسئولہ میں واضح ہو کہ اگر واقعی شوہر کی گمشدگی کے بعد اس کے زندہ ہونے یا فوت ہونے کا پتہ نہ چل سکے۔نہ اس کے ددھیال کے کسی مرد اور عورت کو اس کی زندگی میں یاموت کا علم ہو اور اس کے سسرال دوستوں اور جاننے والوں میں سے کسی کو اس کے متعلق کچھ علم نہ ہو تو اس کی بیوی حضرت عمرفاروق رضی اللہ تعالیٰ عنہ کے مشہورقول کے مطابق چار برس اور چار ماہ دس دن تک اس کا انتظار کرے ۔چار برس اس کے انتظار کے لئے ہیں۔اس مدت کے گزر جانے پر اس کو فوت شدہ قرار دیا جائےگا۔ اور پھر چار ماہ دس دن بیوگی کی عدت منظو ر ہوگی ازاں بعد وہ بی بی اپنے مستقبل کا فیصلہ کرنے میں شرعا مختار اور آزاد ہوگی جیسا کہ

📚سبل السلام میں ہے:
''حضرت عمر رضی اللہ تعالیٰ عنہ نے فرمایا جس عورت کا شوہر گم ہوجائے دو چار برس تک انتظار کرے۔جب چار برس پورے ہوجائیں( تو گویا وہ فوت ہوچکا ہے اور اسکی بیوی بیوہ قرار پائی) لہذا اب وہ وفات کی عدت چار ماہ دس دن پوری کرے اس کے بعد وہ جہاں چاہے اپنے شرعی ولی سے مشورہ کرکے نکاح کرسکتی ہے۔''
(سبل السلام ج2)

📚''جناب سعید بن مسیب سے روایت ہے کہ عمرفاروق رضی اللہ تعالیٰ عنہ نے فرمایا کہ جونہی عورت کاشوہر گم ہوجائے اور اسکےبارے میں علم نہ ہو کہ وہ زندہ ہے یا مرچکا ہے۔کہ جس روز سے اس کی خبر بندہوئی چار برس عورت اس کا انتظار کرے۔اور چار برس پورنے ہونے کے بعد چار ماہ دس دن اپنی بیوگی کی عدت گزار کر چاہے تو نکاح کرسکتی ہے۔''(موطا امام مالک)

صحیح بخاری میں جناب سعید بن مسیب تابعی کا اپنا فتویٰ یہ ہے کہ وہ عورت گمشدگی کے ایک برس بعد اپنے مستقبل کا فیصلہ کرنے کی مجاز ہے۔اور حضرت عبدا للہ بن مسعود رضی اللہ تعالیٰ عنہ اسی مدت کے قائل ہیں۔

📚'' کہ ابن مسیب تابعی نے فرمایا کہ جب کوئی سپاہی میدان دغا میں گم ہوجائے تو اس کی بیوی اس کا ایک برس تک انتطار کرے۔''
(صحیح بخاری الطلاق باب نمبر 23)

📚'' کہ حضرت عبدا للہ بن مسعود رضی اللہ تعالیٰ عنہ نے کسی سے ادھار لونڈی خریدی پھر لونڈی کا مالک گم(غائب) ہو گیا تو حضرت عبداللہ بن مسعود رضی اللہ تعالیٰ عنہ نے اس کا ایک برس انتظا رکیا۔
(صحیح بخاری الطلاق باب نمبر 22)

امام بخاری رحمۃ اللہ علیہ کا رجحان بھی اسی طرف معلوم ہوتا ہے۔اور موجودہ ظروف احوال کے مطابق یہ موقف قرین قیاس بھی ہے۔اب چونکہ زرائع مواصلات اور میڈیا اتنا وسیع اور مستحکم ہوچکا ہے کہ اس ترقی یافتہ دور میں ایک برس کاانتطار بظاہر کافی معلوم ہوتا ہے۔حضرت عمرفاروق رضی اللہ تعالیٰ عنہ کافتویٰ اس دور کے ساتھ تعلق رکھتا ہے۔جس میں آج کی طرح معلومات عامہ اور شعبہ مواصلات یعنی اخبار ریڈیو ٹیلی ویژن وغیرہ موجودہ دور کی فراہم کردہ اطلاعی سہولتیں ہرگز میسر نہ تھیں۔لہذا اب اس دور میں ایک سال کاانتظار کافی معلوم ہوتا ہے۔ ورنہ پرانا فتویٰ تو اپنی جگہ جمہور علمائے اسلام اور مفتیان کرام کے نزدیک بہرحال دائر اور رائج چلا آرہا ہے۔

ھذا ما عندی واللہ اعلم بالصواب
فتاویٰ اصحاب الحدیث
ج1ص398
محدث فتویٰ
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*دوسرا فتویٰ ملاحظہ فرمائیں!*

📙سوال

السلام عليكم ورحمة الله وبركاته

کیا فرماتے ہیں علمائے دین اس مسئلے کے بارے میں کہ ہندہ کی زید کےساتھ شادی ہوئی کو سات سال کاعرصہ ہو چکا ہے۔زید تقریبا چھ سال سےلا پتہ ہےاور کوئی خرچ وغیرہ بھی نہیں بھیجا اور نہ ہی کوئی اس کا پتہ معلوم  ہوا ہے کیا ہندہ اب سات سال کے بعد کسی اور جگہ شادی کر سکتی ہے؟ اگر کرے تو نکاح سے پہلے کتنی عدت گزارنی پڑےگی؟ایک سائلہ )

📚الجواب بعون الوهاب بشرط صحة السؤال
وعلیکم السلام ورحمة اللہ وبرکاته!
الحمد لله، والصلاة والسلام علىٰ رسول الله، أما بعد!
بشرط صحت سوال اگر شوہر واقعی عرصہ سات سال سے لا پتہ ہے اور اس کی زندگی اور موت کےبارے میں اس کےورثاء اور اقرابا ء کو بھی کچھ علم نہیں تو پھر عورت بعد یاس و نا امیدی کے اپنا دوسرا نکاح کر لینے کی شرعا مجاز و مختار ہے ۔حضرت عمر ، حضرت عثمان ،حضرت عبداللہ بن عمر ،حضرت ابن عباس ،حضرت عبداللہ بن مسعود رض اور تابعین عظام کی ایک جماعت کا یہی قول اور فتوی ٰ ہے ۔موطا امام مالک میں ہے : عن سعید بن المسیب ان عمر ابن الخطاب رضی اللہ عنه قال أیما إمراة فقدت زوجھا فلم تدر این ھو فإنھا تنتظر اربع سنین ثم اربعة اشھر وعشرا ثم تحل. 
(موطا باب عدة التی تفتقد زوجھا)
(وسبل السلام ج3ص207،208)
(ونیل الاوطار)

📚جناب سعید بن مسیب تابعی حضرت عمر بن خطاب ؓ  سے روایت کرتے ہیں کہ آپ نے فرمایا کہ جو عورت اپنے شوہر کو گم پائے اور اس کا کوئی پتہ نشان نہ ملے تو اس کو چاہیے کہ چار سال تک اس کا انتظار کرے بعد ازاں چار ماہ  دس دن عدت وفات میں بیٹھے ،پھر نکاح کرالے ۔

اگرچہ یہ حدیث بظاہر موقوف ہے لیکن حکما مرفوع ہے کیونکہ تحدیدات اور تقدیرات میں جہاں قیاس اور اجتہاد کی گنجائش نہ ہو توایسی موقوف حدیث مرفوع حدیث کے حکم میں ہوتی ہے ۔

📚فتح الباری ج9ص355 میں ہےکہ امام زہری کامذہب یہ ہے کہ وہ چار برس انتظار کرے۔امام عبدالرزاق اور امام سعید بن مسیب کہتے ہیں کہ حضرت عمر  اور حضرت عثمان نےیہی فیصلہ کیاتھا ۔محدث سعید بن منصور کی سنن میں روایت سے ہے کہ حضرت عبداللہ بن مسعود  سے بھی ایسا مروی ہے ۔تابعین کی ایک  جماعت اسی کی قائل ہے ۔مثلا امام ابراہیم نخعی ،امام عطاء ،امام زہری ،امام مکحول اور امام عامر شعبی وغیرہ اور یہ چار سال کی مدت اس روز سےشمار ہوگی جس دن سے اس نے مقدمہ پیش کیا اور حاکم نے فیصلہ کیا کہ چار سال کے بعد عدت وفات گزارے
۔اور سبل السلام ج3 ص208 میں ہے کہ ابو الزناد کہتے ہیں کہ میں نے امام سعید بن مسیب سے اس شوہر کے بارے میں پوچھا جواپنی بیوی کا نان ،نفقہ نہیں دے سکتا ۔تو فرمایا ان میں تفریق کرادی جائے ۔کہا یہ سنت ہے ؟کہا ہاں سنت ہے ۔امام شافعی کہتے ہیں کہ سعید بن مسیب کا ارشاد ہے کہ یہ سنت ہے ،اس سے سنت رسول مراد ہے۔اس سےثابت ہواکہ جو شوہر اپنی بیوی کے اخراجات کا متحمل نہ ہو تو اس جوڑے میں تفریق کرا دینا سنت ہے ۔جب محض اخراجات مہیا نہ کرسکنے  پر تفریق سنت ہے تو پھر مفقود کی بیوی تو تفریق کی اس سے بھی زیادہ مستحقہ ہے کیونکہ اسکی تکلیف تو غریب شوہر کی بیوی کی تکلیف سے کہیں زیادہ ہے۔بہرحال صحابہ کرام رضوان اللہ علیہم اجمعین  کے ان فیصلوں اور تابعین عظام کے فتاویٰ اور ائمہ کرام کی آراء قضایا کے مطابق عورت اپنے مستقبل کا فیصلہ کرنے کی بلاشبہ حقدار ہے اور اس کا یہ حق اس سے چھننا یا کسی قانون کی بنیاد پر اس کو مزید آزمائش میں ڈالنا جائز جائز نہیں ،کہ پہلے ہی سات بر س خون کے گھونٹ پی کر اپنی کے دن پورے کر رہی ہے 

ھذا ما عندي واللہ أعلم بالصواب

(فتاویٰ محمدیہ ج1ص757_ محدث فتویٰ)

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*تیسرا فتویٰ*

📙سوال

السلام عليكم ورحمة الله وبركاته
ایک عورت جس کی شادی آج سے اٹھارہ سال قبل ہوئی، اس کے ہاں تین بچے بھی پیدا ہوئے، تقریباً پانچ ماہ قبل اس عورت کا خاوند، بیوی بچوں کو چھوڑ کر کہیں روپوش ہو گیا، اس کے اہل خانہ کو اس کے متعلق کوئی سراغ نہیں ملا اور نہ ہی اس نے کوئی اطلاع دی ہے، بچوں کو خرچہ بھی نہیں بھیجا، ایسے حالات میں عورت، کتنی مدت تک کے لیے اپنے خاوند کا انتظار کرے، کتنی مدت کے بعد وہ دوسرا نکاح کرنے کی مجاز ہے؟ قرآن و حدیث کے مطابق سوال کا جواب دیں۔

📚الجواب بعون الوهاب بشرط صحة السؤال

وعلیکم السلام ورحمة الله وبرکاته!
الحمد لله، والصلاة والسلام علىٰ رسول الله، أما بعد!
فقہی اصطلاح میں لا پتہ شخص کو مفقود الخبر کہتے ہیں یعنی ایسا شخص جس کی زندگی یا موت کے متعلق تلاش کے باوجود کوئی سراغ نہ مل سکے آیا وہ زندہ موجود ہے یا دنیا سے چل بسا ہے۔ دورِ حاضر میں اکثر و بیشتر ایسا ہوتا ہے کہ ملکی یا غیر ملکی ایجنسیاں کسی آدمی کو چپکے سے اٹھا لیتی ہیں۔ پھر سالہا سال تک اس کا کوئی پتہ نہیں چلتا۔ اخبارات میں بکثرت اس طرح کی خبریں ہم روزانہ پڑھتے ہیں، چونکہ اس کے متعلق رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم سے کوئی صحیح حدیث مروی نہیں ہے تاکہ اس کی روشنی میں اس کے متعلق کوئی دو ٹوک فیصلہ کیا جا سکے، اس بنا پر متقدمین میں خاصا اختلاف پایا جاتا ہے

📚 البتہ ایک من گھڑت اور خود ساختہ حدیث مروی ہے، حضرت مغیرہ بن شعبہ رضی اللہ عنہ بیان کرتے ہیں کہ رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: ’’لا پتہ شوہر کی بیوی اس وقت تک اس کی بیوی ہی رہے گی جب تک کہ گمشدہ آدمی کے متعلق کوئی واضح اطلاع نہ موصول ہو جائے۔‘‘
( دارقطنی، ص: ۳۱۲،ج۳۔ )

🚫 اس حدیث کی سند میں محمد بن شرحبیل صمدانی ایک راوی ہے جسے محدثین نے متروک قرار دیا ہے اور وہ حضرت مغیرہ بن شعبہ رضی اللہ عنہ سے منکر اور باطل روایات بیان کرنے میں مشہور ہے، پھر اس سے بیان کرنے والا سوار بن مصعب بھی اسی قسم کا ہے بہرحال یہ روایت ناقابل حجت اور نکارہ ہے۔
(التعلیق المغنی،ص: ۳۱۲،ج۳۔ )

 📙اس مسئلہ کے متعلق کچھ حضرات نے یہ مؤقف اختیار کیا ہے کہ ایسے شخص کی بیوی طویل عرصہ تک انتظار کرے تاوقتیکہ لا پتہ شوہر کی عمر ایک سو بیس سال کی ہو جائے مثلاً ایک اٹھارہ سال کی لڑکی کا نکاح بیس سالہ لڑکے سے ہوا، وہ لڑکا چند روز بعد لا پتہ ہو گیا اور اس کا کوئی سراغ نہیں مل سکا تو ان حضرات کے نزدیک وہ لڑکی سو سال تک اپنے لا پتہ خاوند کا انتظار کرے تاآنکہ اس کی عمر ایک سو بیس برس ہو جائے، اس کے بعد فیصلہ کیا جائے گا وہ فوت ہو چکا ہے پھر وہ عدتِ وفات چار ماہ دس دن انتظار کر کے کسی دوسرے سے نکاح کرنے کی مجاز ہو گی۔ 
(ہدایہ کتاب المفقود۔ )

 لیکن مذکورہ مؤقف اختیار کرنے میں جو مفاسد پوشیدہ ہیں وہ کسی صاحب عقل سے مخفی نہیں ہیں کہ ایک لڑکی کا جب خاوند لا پتہ ہو اتو لڑکی کی عمر اٹھارہ سال تھی پھر اسے اٹھانوے سال اپنے لا پتہ شوہر کے انتظار میں گزارنے ہوں گے تاآنکہ اس کی موت یقینی ہو جائے، اس عمر میں وہ خاک شادی کرے گی، اس مؤقف کی سنگینی کو خود اختیار کرنے والوں نے محسوس کیا اور اس کے غیر معقول ہونے کا فیصلہ دیا،

📙چنانچہ مولانا اشرف علی تھانوی نے ایسی مظلومہ کے لیے ایک کتاب ’’الحیلۃ الناجزۃ‘‘ لکھی وہ اس میں فرماتے ہیں: ’’فقہاء حنفیہ میں سے بعض متاخرین نے وقت کی نزاکت اورفتنوں پر نظر رکھتے ہوئے اس مسئلہ میں حضرت امام مالک رحمۃ اللہ علیہ کے مذہب پر فتویٰ دیا ہے، ایک عرصہ سے ارباب فتویٰ اہل ہندو بیرون ہند تقریباً سب نے اس قول پر فتویٰ دینا اختیار کر لیا ہے اور یہ مسئلہ اس وقت ایک حیثیت سے فقہ حنفی ہی میں داخل ہو گیا۔
( الحیلة الناجزہ،ص: ۵۰)

📚 امام مالک رحمۃ اللہ علیہ نے لا پتہ شوہر کی بیوی کے متعلق یہ فیصلہ دیا ہے کہ وہ خاوند کے لاپتہ ہونے کے وقت سے چار سال گزر جانے تک انتظار کرے پھر اس خاوند پر فوت ہونے کا حکم لگایا جائے گا، اس کے بعد عدت وفات چار ماہ دس دن گزارے گی، پھر اسے دوسرا نکاح کرنے کی اجازت ہو گی۔
( مؤطا امام مالک، کتاب الطلاق۔  )

📚 امام مالک رحمۃ اللہ علیہ نے مزید لکھا ہے کہ اگر نکاح ثانی سے پہلے پہلے لا پتہ خاوند گھر آجائے تو وہ بیوی اسی کی ہو گی اور اگر وہ نکاح ثانی کر لینے کے بعد بازیاب ہو تو اسے بیوی سے محروم ہونا پڑے گا، اگرچہ بعض لوگوں کا کہنا ہے کہ ان حالات میں اسے حق مہر اور بیوی میں سے ایک کا اختیار دیا جائے گا لیکن پہلا مؤقف ہی زیادہ قرین قیاس ہے۔ یعنی اگر اس کی بیوی نکاح ثانی کر لیتی ہے تو اسے اپنی بیوی سے محروم ہونا پڑے گا۔ دراصل امام مالک رحمۃ اللہ علیہ نے لا پتہ شوہر کے متعلق جو مؤقف اختیار کیا ہے انہوں نے حضرت عمر رضی اللہ عنہ کے ایک فیصلے کو بنیاد بنایا ہے۔ ان کے ہاں اس طرح کا ایک معاملہ آیا تو انہوں نے فرمایا: ’’لا پتہ آدمی کی بیوی چار سال انتظار کرے، پھر شوہر کے فوت ہونے کی عدت گزارے یعنی چار ماہ دس دن، اس کے بعد اگر چاہے تو شادی کرے۔‘‘
( بیہقی،ص: ۴۴۵،ج۷۔)

 📚بعض روایات سے پتہ چلتا ہے کہ حضرت عمر رضی اللہ عنہ کے بعد حضرت عثمان رضی اللہ عنہ نے بھی اسی مؤقف کو اختیار کیا تھا اور اس کے مطابق فیصلہ دیا تھا۔
(مصنف عبدالرزاق، ص: ۸۵،ج۷۔)

 📚حضرت ابن عباس رضی اللہ عنہ نے اسی مؤقف کو اپنایا ہے۔ 
(بیہقی،ص: ۴۴۵،ج۷۔)

 📚حضرت سعید بن مسیب رحمۃ اللہ علیہ فرماتے ہیں کہ اگر شوہر دوران جنگ لا پتہ ہو جائے تو اس کی بیوی ایک سال انتظار کرے اور اگر جنگ کے علاوہ کسی دوسری جگہ لا پتہ ہو جائے تو چار سال انتظار کرے۔ 
( مصنف عبدالرزاق،ص: ۸۹،ج۷۔ )

 📚بہرحال قرآن کریم نے عورتوں کے متعلق فرمایا ہے کہ تم ان کے ساتھ اچھے انداز سے زندگی گزارو۔ (سورہ النساء:۱۹۔ )

📚 نیز فرمایا کہ انہیں محض تکلیف دینے کے لیے اپنے گھروں میں مت بند کرو۔‘‘ 
(سورہ بقرہ 231)

 ان دو آیات میں عورتوں کے حقوق کو بڑے عمدہ اور جامع انداز میں بیان کیا گیا ہے، ممکن ہے کہ حضرت عمر رضی اللہ عنہ کے فیصلے کی بنیاد یہی دو آیات ہوں، کیونکہ لا پتہ شوہر کی بیوی کو بلاوجہ طویل مدت تک انتظار کرنے کا پابند کرنا حسن معاشرت کے منافی اور اسے تکلیف دینے کے مترادف ہے، ہمارے رجحان کے مطابق امام مالک رحمۃ اللہ علیہ کا مؤقف صحیح ہے کیونکہ اسے حضرت عمر رضی اللہ عنہ دیگر صحابہ کرام رضی اللہ عنہم کے ایک فیصلے کی تائید حاصل ہے، معاشرتی حالات بھی اس کا تقاضا کرتے ہیں لیکن مدت انتظار کا تعین حالات و ظروف کے تحت کیا جا سکتا ہے۔ موجودہ دور میں ذرائع مواصلات اس قدر وسیع اور سریع ہیں جن کا تصور زمانہ قدیم میں محال تھا۔ آج ہم کسی شخص کے گم ہونے کی اطلاع ریڈیو اور اخبارات کے ذریعے ایک دن میں ملک کے کونے کونے تک پہنچا سکتے ہیں بلکہ انٹرنیٹ کے ذریعے چند منٹوں میں گم شدہ شخص کی تصویر بھی دنیا کے چپہ چپہ تک پہنچائی جا سکتی ہے، اس بنا پر چار سال کی مدت انتظار کو مزید کم کیا جا سکتا ہے۔

📚امام بخاری رحمۃ اللہ علیہ کا رجحان ایک سال مدت انتظار کی طرف سے معلوم ہوتا ہے۔ چنانچہ انہوں نے اپنی صحیح میں ایسے شخص کے متعلق ایک عنوان بایں الفاظ قائم کیا ہے۔
 ’’مفقود الخبر کی بیوی اس کے مال و متاع کا حکم‘‘ 
(صحیح بخاری، الطلاق، باب نمبر۲۲)

 لیکن آپ نے واضح طور پر دو ٹوک الفاظ میں اس کے متعلق کوئی فیصلہ نہیں کیا، البتہ پیش کردہ احادیث و آثار سے آپ کا رجحان معلوم کیا جا سکتا ہے۔ چنانچہ امام بخاری رحمۃ اللہ علیہ نے حضرت سعید بن مسیب کا فتویٰ نقل کیا ہے کہ جب کوئی سپاہی میدان جنگ میں گم ہو جائے تو اس کی بیوی ایک سال تک انتظار کرے، حضرت عبداللہ بن مسعود رضی اللہ عنہ کے متعلق بیان کیا ہے کہ انہوں نے کسی سے ادھار لونڈی خریدی پھر لونڈی کا مالک گم ہو گیا تو حضرت عبداللہ بن مسعود رضی اللہ عنہ نے ایک سال تک اس کا انتظار کیا۔ امام بخاری رحمۃ اللہ علیہ نے اپنا رجحان بیان کرنے کے لیے حدیث لقطہ کو ذکر کیا ہے کہ اگر کسی کو گرا پڑا سامان ملے تو وہ اس کا سال بھر اعلان کرے۔
( صحیح بخاری، الطلاق، حدیث نمبر: ۵۲۹۲۔)

 ان آثار سے معلوم ہوتا ہے کہ امام بخاری رحمۃ اللہ علیہ کے نزدیک زوجہ مفقود کے لیے انتظار کا وقت ایک سال مقرر کیا جا سکتا ہے، موجودہ احوالِ و ظروف کے مطابق یہ مؤقف قرین قیاس بھی ہے لہٰذا ذرائع مواصلات اور میڈیا کے پیش نظر دورِ حاضر میں ایک سال کا انتظار کافی معلوم ہوتا ہے، بصورت دیگر قدیم فتویٰ تو اپنی جگہ جمہور علما اسلام اور مفتیانِ کرام کے ہاں رائج چلا آ رہا ہے لیکن عقد نکاح کوئی کچا دھاگہ نہیں ہے جسے آسانی سے توڑ دیا جائے اور یہ ایک ایسا حق ہے جو خاوند کے لیے لازم ہو چکا ہے۔ اس بنا پر اس عقد نکاح کو کھولنے کا مجاز عورت کا شوہر ہے لیکن دفع مضرت کے پیش نظر عدالت، خاوند کے قائم مقام ہو کر فسخ کرنے کی مجاز ہے جیسا کہ خلع وغیرہ میں ہوتا ہے۔ اس لیے گم شدہ خاوند سے خلاصی کے لیے یہ طریقہ اختیار کیا جائے کہ عورت عدالت کی طرف رجوع کرے، رجوع سے قبل جتنی مدت گزر چکی ہو گی اس کا کوئی اعتبار نہیں کیا جائے گا، ہمارے ہاں بعض عورتیں مدت دراز انتظار کرنے کے بعد عدالت کے نوٹس میں لائے بغیر یا اس کا فیصلہ حاصل کرنے سے قبل محض فتویٰ لے کر نکاح کر لیتی ہیں، ان کا یہ اقدام صحیح نہیں ہے،

📚 امام مالک رحمۃ اللہ علیہ سے پوچھا گیا کہ اگر کوئی عورت عدالت کے نوٹس میں لائے بغیر اپنے مفقود شوہر کا انتظار چار سال تک کرے تو اس مدت کا اعتبار کیا جائے گا؟ امام مالک رحمۃ اللہ علیہ نے جواب دیا اگر وہ اس طرح بیس سال بھی گزار دے تو بھی اس کا کوئی اعتبار نہیں ہو گا۔
(المدونة الکبریٰ،ص: ۹۳،ج۲۔  )

 اس بنا پر ضروری ہے کہ جس کا خاوند لاپتہ ہو جائے وہ فوری طور پر عدالت کی طرف رجوع کرے پھر اگر عدالت اس نتیجہ پر پہنچے کہ واقعی مفقود الخبر ہے تو وہ عورت کو ایک سال انتظار کرنے کا حکم دے گی، اگر اس مدت تک شوہر نہ آئے تو ایک سال کے اختتام پر عدالت نکاح فسخ کر دے گی، پھر عورت اپنے شوہر کو مردہ تصور کر کے عدتِ وفات یعنی چارہ ماہ دس دن گزارنے کے بعد نکاح ثانی کرنے کی مجاز ہو گی، اگر عدالت بلاوجہ معاملہ کو طول دے اور عورت مجبور ہو اور وہ صبر نہ کر سکے تو مسلمانوں کی ایک جماعت تحقیق کر کے فیصلہ کرے، ایسے حالات میں پنچائتی فیصلہ بھی عدالت کا فیصلہ ہی تصور ہو گا۔

ھذا ما عندي والله أعلم بالصواب

(فتاویٰ اصحاب الحدیث
جلد:3، صفحہ نمبر:322محدث فتویٰ)

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*اگر لاپتہ ہونے والا پہلا شوہر واپس آ جائے تو بیوی دوسرے شوہر ساتھ رہے گی یا پہلے ساتھ اس بارے بھی علماء کرام کے مختلف اقوال ہیں،
چند ایک ملاحظہ فرمائیں..!*

📙قَالَ مَالِك وَإِنْ تَزَوَّجَتْ بَعْدَ انْقِضَاءِ عِدَّتِهَا فَدَخَلَ بِهَا زَوْجُهَا أَوْ لَمْ يَدْخُلْ بِهَا فَلَا سَبِيلَ لِزَوْجِهَا الْأَوَّلِ إِلَيْهَا قَالَ مَالِك وَذَلِكَ الْأَمْرُ عِنْدَنَا وَإِنْ أَدْرَكَهَا زَوْجُهَا قَبْلَ أَنْ تَتَزَوَّجَ فَهُوَ أَحَقُّ بِهَ ))
ترجمہ :
امام مالکؒ نے فرمایا کہ :(جس عورت کا خاوند گم ہوگیا ہو ) اور اس نے عدت گزرنے کے بعد دوسرا نکاح کرلیا ، تو پھر پہلے خاوند کو اختیار نہ رہے گا۔ خواہ دوسرے خاوند نے اس سے صحبت کی ہو یا نہ کی ہو ہمارے نزدیک بھی یہی حکم ہے۔
اوراگردوسری شادی سے پہلے ہی (گم شدہ خاوند ) واپس آجائے تو وہی اس عورت کا حقدار ہے ۔

📚قَالَ مَالِك وَأَدْرَكْتُ النَّاسَ يُنْكِرُونَ الَّذِي قَالَ بَعْضُ النَّاسِ عَلَى عُمَرَ بْنِ الْخَطَّابِ أَنَّهُ قَالَ يُخَيَّرُ زَوْجُهَا الْأَوَّلُ إِذَا جَاءَ فِي صَدَاقِهَا أَوْ فِي امْرَأَتِهِ
امام مالکؒ نے فرمایا : میں نے لوگوں کو اس کا انکار کرتے ہوئے پایا ،جس نے یہ دعوی کیا کہ حضرت عمر رضی اللہ عنہ نے فرمایا کہ پہلا خاوند جب بھی آئے اسے مہر یا اپنی بیوی لینے کا اختیار دیا جائے گا ۔
(یعنی یہ روایت غلط ہے)

📚قَالَ مَالِك وَبَلَغَنِي أَنَّ عُمَرَ بْنَ الْخَطَّابِ قَالَ فِي الْمَرْأَةِ يُطَلِّقُهَا زَوْجُهَا وَهُوَ غَائِبٌ عَنْهَا ثُمَّ يُرَاجِعُهَا فَلَا يَبْلُغُهَا رَجْعَتُهُ وَقَدْ بَلَغَهَا طَلَاقُهُ إِيَّاهَا فَتَزَوَّجَتْ أَنَّهُ إِنْ دَخَلَ بِهَا زَوْجُهَا الْآخَرُ أَوْ لَمْ يَدْخُلْ بِهَا فَلَا سَبِيلَ لِزَوْجِهَا الْأَوَّلِ الَّذِي كَانَ طَلَّقَهَا إِلَيْهَا قَالَ مَالِك وَهَذَا أَحَبُّ مَا سَمِعْتُ إِلَيَّ فِي هَذَا وَفِي الْمَفْقُودِ
ترجمہ :
کہا مالک نے مجھے حضرت عمر سے پہنچا آپ نے فرمایا جس عورت کا خاوند کسی ملک میں چلا گیا ہو وہاں سے طلاق کہلا بھیجے اس کے بعد رجعت کر لے مگر عورت کو رجعت کی خبر نہ ہو اور وہ دوسرا نکاح کر لے اس کے بعد پہلا خاوند آئے تو اس کو کچھ اختیار نہ ہو گا خواہ دوسرے خاوند نے صحبت کی ہو یا نہ کی ہو۔

📙امام ابوعمر ابن عبدالبرؒ "الاستذکار " میں اس کے متعلق فرماتے ہیں :
وَأَمَّا بَلَاغُ مَالِكٍ عَنْ عُمَرَ في الذي طلق فأعلنها فَارْتَجَعَ وَلَمْ يُعْلِمْهَا حَتَّى رَجَعَتْ نَكَحَتْ فَهُوَ غَيْرُ مَشْهُورٍ عَنْ عُمَرَ مِنْ رِوَايَةِ أَهْلِ الْحِجَازِ وَأَهْلِ الْعِرَاقِ
یعنی امام مالکؒ کے اس بلاغ (یعنی جس میں وہ اسناد کے بغیر کہتے ہیں کہ مجھے یہ بات پہنچی )کہ سیدنا عمر رضی اللہ عنہ نے اس شخص کے بارےفرمایا جو اپنی بیوی کو دوسرے ملک سے طلاق بھجوائے ،پھر رجوع کرلے اور رجوع کی بابت بیوی کو آگاہ نہ کرے ۔۔ ۔
تو یہ بات اہل حجاز واہل عراق کی روایات میں مشہور نہیں ۔

📚جبکہ امام عبدالرزاقؒ نے​
وَذَكَرَ عَبْدُ الرَّزَّاقِ قَالَ أَخْبَرَنَا مَعْمَرٌ عَنْ عَبْدِ الْكَرِيمِ الْجَزَرِيِّ عَنْ سَعِيدِ بْنِ الْمُسَيَّبِ وَمَعْمَرٍ عَنْ مَنْصُورٍ عَنْ إِبْرَاهِيمَ أَنَّ أَبَا كَنَفٍ طَلَّقَ امْرَأَتَهُ ثُمَّ خَرَجَ مُسَافِرًا وَأَشْهَدَ عَلَى رَجَعَتِهَا قَبْلَ انْقِضَاءِ عِدَّتِهَا وَلَا أَعْلَمُ لَهَا بِذَلِكَ حَتَّى تَزَوَّجَتْ فَسَأَلَ عَنْ ذَلِكَ عَلَى رَجْعَتِهَا قَبْلَ انْقِضَاءِ الْعِدَّةِ وَلَا عِلْمَ لَهَا بِذَلِكَ حَتَّى تَزَوَّجَتْ فَسَأَلَ عَنْ ذَلِكَ عُمَرَ بْنَ الْخَطَّابِ فَقَالَ إِنْ دَخَلَ بِهَا فَهِيَ امْرَأَتُهُ وَإِلَّا فَهِيَ امْرَأَتُكَ إِنْ أَدْرَكْتَهَا قَبْلَ أَنْ يَدْخُلَ بِهَا
ترجمہ :
ابراہیم بیان کرتے ہیں: ابوکنف نے اپنی اہلیہ کو طلاق دے دی اور سفر پر روانہ ہو گئے پھر انہوں نے اس خاتون کی عدت گزرنے سے پہلے اس سے رجوع کرنے پر گواہ قائم کر لی لیکن عورت کو اس بات کا پتا نہیں چل سکا یہاں تک کہ اس عورت کی دوسری شادی ہوگئی تو پہلے شوہر نے یہ مسئلہ سیدنا عمر بن خطاب رضی اللہ عنہ سے پوچھا ،تو انہوں نے فرمایا : اگر دوسرے شوہر نے اس عورت کے ساتھ صحبت کر لی ہے تو یہ دوسرے شوہر کی بیوی شمار ہوگی اوراگر اس نے صحبت نہیں کی تو وہ تیری بیوی ہے ۔ انتہیٰ ۔۔
یہی روایت امام عبدالرزاق ؒ نے بھی روایت کی ہے
دیکھئے :
https://archive.org/stream/Almosanaf/5#page/n345/mode/2up

📚اور امام ابوعمرابن عبدالبرؒ " الاستذکار " میں فرماتے ہیں :
فهو عن عمر منقول بنقل العدول من رواية أهل الحجاز وأهل العراق
ذكر عبد الرزاق عن معمر عن الزهري عن بن المسيب أن عمر وعثمان قضيا في المفقود أن امرأته تتربص أربع سنين وأربعة أشهر وعشرا بعد ذلك ثم تزوج فإن جاء زوجها الأول خير بين الصداق وبين امرأته ))
یعنی یہ بات تو سیدنا عمر رضی اللہ عنہ سے اہل حجاز واہل عراق کی روایت کے ثقہ رواۃ سے منقول ہے ،
امام عبدالرزاقؒ نے معمر ،زہریؒ کی سند سے سیدنا سعید ابن المسیبؒ سے روایت کیا ہے کہ سیدنا عمر اور سیدنا عثمان رضی اللہ عنہما نے گم شدہ شوہر والی عورت کے بارے فیصلہ دیا تھا کہ وہ چار سال ،اور چار ماہ دس دنوں تک انتظار کرے ، اس کے بعد دوسرا نکاح کرلے ،اور اس کے بعد اگر پہلا خاوند واپس آجائے تو​
اسے مہر یا اپنی بیوی لینے کا اختیار دیا جائے گا ۔

https://archive.org/stream/Almosanaf/6#page/n47/mode/2up
نیز دیکھئے :
صحيح فقه السنة وأدلته وتوضيح مذاهب الأئمة (جلد 3 ص411)

*ہمارے علم کے مطابق حضرات عمر و عثمان رضی اللہ عنھما  کا فتویٰ درست ہے ، کہ پہلے شوہر کو ہی اختیار دیا جائے کہ اگر وہ واپس اپنی بیوی کو لینا چاہتا تو لے سکتا یا پھر بیوی سے اپنا حق مہر لے سکتا جو اس نے نکاح کے وقت دیا تھا*

📚اس پر استاذ العلماء شیخ عبدالمنان نورپوری رحمہ اللہ کا فتویٰ بھی موجود ہے

📙السلام عليكم ورحمة الله وبركاته
میاں بیوی پر سکون زندگی گزار رہے تھے کہ خاوند گھر سے چلا گیا اور چار سال تک کوئی خبر نہ آئی کہ زندہ ہے یا مردہ؟ چار سال کے بعد عورت نے نئی شادی کرلی۔ اور اب 5 سال بعد پہلا خاوند واپس آگیا ہے۔ اب بیوی کس خاوند کے پاس رہے؟ نیز مفقود الخبرکی بیوی کتنا انتظار کرے؟

📚 الجواب بعون الوهاب بشرط صحة السؤال
وعلیکم السلام ورحمة اللہ وبرکاته
الحمد لله، والصلاة والسلام علىٰ رسول الله، أما بعد.....!
حضرات صحابہ جناب عمر ، عثمان ، ابن عمر ، ابن عباس، ابن مسعود اور متعدد صحابہ رضوان اللہ علیھم اجمعین سے باسانید صحیحہ مروی ہے، ان کو سعید بن منصور اور عبدالرزاق نے نکالا کہ مفقود کی عورت چار برس تک انتظار کرے۔ اگر اس عرصہ تک اس کی خبر نہ معلوم ہو تو اس کی عورت دوسرا نکاح کرلے۔ اگر عورت دوسرا نکاح کرلے ، اس کے بعد پہلے خاوند کا حال معلوم ہو کہ وہ زندہ ہے تو پہلے ہی خاوند کی عورت ہوگی۔ اور شعبی نے کہا: دوسرے خاوند سے قاضی اس کو جدا کردے گا۔ وہ عدت پوری کرکے پھر پہلے خاوند کے پاس رہے۔ ]
(قرآن وحدیث کی روشنی میں احکام ومسائل
جلد 02 ص 488)

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*مزید احکام ومسائل*

1_ایک سال کی مدت حتمی نہ مانی جائے کیونکہ اس میں آگے پیچھے کا امکان ہے ، اس لئے مدت کے متعلق حتمی فیصلہ قاضی کا ہوگا وہ حالات و ظروف دیکھ کر مدت کی تعیین کریں گے ۔

2_جس وقت قاضی کے پاس شوہر لاپتہ ہونے کی خبر جائے اس وقت سے مدت شمار ہوگی ، اس سے پہلی والی مدت کا کوئی اعتبار نہ ہوگا۔

3_ عورت پہلے قاضی کی طرف سے دیا گیا وقت گذارے پھرقاضی نکاح فسخ کر دے ۔ اس کے بعد بیوی چار مہینے دس دن وفات کی عدت گذارے ،پھر دوسرے مرد سے شادی کرنا جائز ہوجائے گا۔

4_ بلاوجہ قاضی/حاکم کا عورت کو انتظار میں تاخیر کرانا صحیح نہیں ہے ، اگر ایسی صورت ظاہر ہو تو دوسرے سے فیصلہ کرائے ۔

5_ایسے بھی حالات ہوسکتے ہیں کہ عورت کو مزید انتظار کرنے کی نوبت نہ پڑے ۔ ایسے حالات میں قاضی بالفور نکاح فسخ کردے ۔

6_لاپتہ شوہر اگر انتظار کے وقت یا عدت گزارتے وقت لوٹ آئے تو وہی عورت اس کی بیوی ہوگی ۔ اسے نکاح کرنے یا دوسرے سے شادی کرنے کی ضرورت نہیں ۔

7_لاپتہ شوہر اگر بیوی کا دوسرے مرد سے شادی کے بعد واپس آیا تو اسے اختیار ہے چاہے تو وہ بیوی کو دوسرے شوہر کے نکاح پہ باقی رکھے یا پھر اسے واپس لا کر اپنی زوجیت میں رکھے ۔

8_ لاپتہ شخص نے اگر مال چھوڑا ہے تو قاضی جس وقت اس کی موت کا حکم لگائے گا ، اس کے بعد میراث تقسیم کرسکتے ہیں۔

( مآخذ : محدث فورم)
( محدث فتویٰ )

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