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Mard Sirf Jeans Skirt hi nahi Nakab wali Auraton ko bhi Ghoorte hai.

Aurat Ki Izzat Aurat ne hi lutwai hai.

वह अच्छी नेक सीरत लड़कियां जो आज यह कहने पर मजबूर है के उनको बुर्के , नकाब में भी मर्द घूर घूर कर देखते है ..... वह उस जुर्म की सजा भूघत रही है जो औरत मार्च वाला टोला ने आजादी के नाम पे किए है।

इस्लाम मर्दों को हुक्म देता है के वह अपनी निगाहें नीची रखें और औरतों को हुक्म देता है के अपना जिस्म जहां तक हो सके उसे कपड़े से छिपा कर रखे।

कुछ दिनों पहले की बात है

पाकिस्तान के वजीर ए आजम इमरान खान ने पर्दा और ईमान की बातें की, उनका कहना था के रेप और बलात्कार इसलिए भी होता है के औरतें अधनंगी और हाफ आस्तीन के कपड़े पहनना शुरू कर दी है, हमारे दीन में क्यों पर्दे का कॉन्सेप्ट है? इसलिए के मुआशरे में बिगाड़ पैदा न हो, फहाशि ना फैले। अब कोई छोटे छोटे कपड़े पहनेगा तो उसका कुछ तो असर पड़ेगा।

इतना कहना था के हुकूक ए निसवा के पैरोकार इमरान खान को ट्रॉल करने लगे, वहां के न्यूज देखने से पता चला के औरतों ने " मेरा जिस्म मेरी मर्जी " का नारा जोर शोर से लगाया और इमरान खान को खूब गालियां दी गई। कुछ न्यूज विडियोज में तो यह भी देखा के पाकिस्तानी औरतें इमरान खान को जूते - चप्पल से मारने को कह रही थी।

पाकिस्तान एक इस्लामिक रियासत है, अब अगर इस्लामिक रियासत में ही मुल्क के सरबराह को दीन की बातें कहने पर जूते चप्पल पड़ते हो तो समझ जाएं के वह कितने ईमान वाले मुसलमान होंगे?

जिस तरह बोलने की आजादी हर किसी को है , फिर मुल्क का सरबराह क्या अपनी राय का इजहार नही कर सकता है?

इस्लामिक रियासत में जब मुस्लिम हुक्मरान का यह हाल है पर्दा पर बोलते हुए , तो फिर दूसरे मुल्कों में आम गैरतमंद मुसलमानों का क्या हाल होगा?

वह हदीस याद कीजिए जब

उमर फारूक  राजियाल्लाहू अनाहू ने एक बार एक मजलिस में कहा था के बताओ अगर मैं कुरान व सुन्नत के खिलाफ कोई हुक्म दूं तो क्या तुम मेरा हुक्म मानोगे?
मजलिस में खामोशी छा गई , कुछ देर बाद एक नौजवान उठ खड़ा हुआ और बोला " उमर ( राजियाल्लाहु अनाहु ) मै तेरी तलवार खींच कर तेरी गर्दन उड़ा डालूंगा " । यह सुनकर उमर फारूक रज ने उस नौजवान के लिए दुआएं की।

कुरान व हदीस से हटकर कौन कह रहे है बात करने के लिए? उमर फारूक राजियाल्लाहू अनहु , जो दूसरे अमीरूल मोमेनिन है , मुसलमानों के दूसरे खलीफा है।
जिनको दुनिया में ही जन्नत की खुशखबरी सुना दी गई हो।

और आज मुल्क का सरबराह पर्दे के अदब वा एहतराम पर बोल दे या फहशि पर बोल दे तो जूते चप्पल बरसने लगते है, एहतेजाज होने लगता है, सड़को पर हुकूमत के खिलाफ नारेबाजी शुरू हो जाता है। इससे साफ जाहिर होता है के  इस्लामिक रियासत के मुसलमान खुद अब अपने ऊपर काफिरों और मुशरिको की हुक्मरानी चाहते है ताकि उसे कोई दीन की बातें न बताए बल्कि उसकी जगह पर उसे यहुद व नशारा वाली तहजीब को अपनाने को कहे।

जब मुसलमान खुद अपने ऊपर फाजीर वा फाशिक हुक्मरान चाहता है तो अल्लाह ताला भी उसकी मुरादें जल्द ही पूरा कर देगा। क्योंकि अल्लाह हमारे अमल के मुताबिक ही हमारे ऊपर हाकिम मुसल्लत करता है।

इजरायल फिलिस्तीनियो पर बॉम बरसाता है तो हम फिलिस्तीन के लोगो का साथ देते है और इजरायल का बॉयकॉट करते है?  जबकि अपने मुल्क के अंदर उसी यहूद व नशारा के तहजीब के लिए हुकूमत के खिलाफ तहरीक चलाते है।

म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों को मार कर भगा दिया जाता है तो हम बर्मा को गलत कहते है, के म्यांमार की सेना मुसलमानों को मार रही है, फिर जब इस्लामिक रियासत में भी वैसे ही मुसलमानों का कत्लेआम होगा तो क्या कहोगे क्योंकि खुद मुसलमान यहां वैसा ही कानूनी निजाम चाहता है जैसा अमेरिका यूरोप, इजरायल में है। उन्हें इस्लामिक कानून अच्छा नहीं लगता, काफिरों और मुशरिको की गुलामी अच्छी लगती है।

عورت کی عورت نے عزت لٹوائی ہے ۔۔

وہ اچھی نیک سیرت لڑکیاں جو آج یہ کہنے پر مجبور ہیں کہ انکو بُرقعے میں بھی مرد تاڑتے ہیں.... وہ اس جرم کی سزا بھگت رہی ہیں جو دوسری عورتوں نے کیئے ہیں...

مرد کو اپنی مردانگی یا حیوانگی آج سے 20 یہ 25 سال پہلے تک کیوں نہیں کچھ کر سکی تھی؟
کیونکہ تب تک کچھ ایک ہی چینل ہوتا تھا اور ماؤں کی توجہ کا مرکز بھی بیٹیاں ہوتیں تھیں....

پھر چند عورتیں...... عورتوں کے حقوق کے نام سے نکلیں، بُرقعہ اتار دیا... بڑی سی چادر لے لی.... کچھ دن لوگوں کو معیوب لگا پھر عادت ہوگئی.... پھر چادر اتار دی چھوٹا سا دوپٹہ لے لیا... کچھ دن عجیب لگا پھر عادت ہوگئی....

جیسے جیسے جدید ہوتے گئے ویسے ویسے کپڑے چھوٹا ہوتا گیا۔ مگر یہ لوگ یہی کہینگے کے کپڑے چھوٹے نہیں ہے سوچ چھوٹی ہے، اُن سے پوچھنا چاہتا ہوں کے پہلے 10 میٹر لمبی سوچ ہوتی تھی کیا کو اب 5میٹر ہو گئی؟

پھر وہ دوپٹہ اور چھوٹا ہوگیا اور گلے میں لینے لگیں، عجیب لگا پھر عادت ہوگئی.... پھر وہ دوپٹہ بھی غائب ہوگا، عادت ہوگئی.... جینز پہن لی عجیب لگا پھر سمجھ آگئی..... اب چھوٹی سی کاٹن کے باریک کپڑے والی ریڈی میڈ شرٹیں آگئیں، جن کو پہن کر جسم اتنا نمایاں ہوتا ہے کہ پہنا نا پہنا ایک برابر ہے.... دیکھ دیکھ کر اب عادت ہوگئی ہے......

اب مرد ان سالوں میں ان عورتوں کو ایسا دیکھ دیکھ کر ٹک ٹاک پر بے حیائی دیکھ دیکھ کر ہر دوسری لڑکی کو ٹائٹ قمیض شلوار پہنی دیکھ دیکھ کر کس طرح اپنے آپکو کنٹرول کریں؟

تو یہاں ضرورت اس امر کی ہے کہ اگر تو واقعی میں ہم نے بہنوں بیٹیوں کی آئے دن عزت لٹوانے ریپ ہونے سے روکنا ہے تو واپس جانا ہوگا جہاں مردوں کی نظریں اسلیئے نیچے ہوتی تھیں کیونکہ سامنے والی لڑکیوں کا پردہ انکو انکی بہن بیٹی اور ماں کی یاد دلاتا تھا...

مگر 20 سالوں میں ہر طرف ننگے جسم، بناوٹی چال، چھوٹی چھوٹی بچیوں کے ہونٹوں پر لپ اسٹک.... یہ سب دیکھ کر مرد حیوان بن جاتے ہیں اور پھر جو ہاتھ لگے تباہ کر دیتے ہیں چاہے وہ کوئی معصوم بچہ ہو، بچی ہو یا کوئی برقعہ پہنی لڑکی...

اللہ پاک ہمیں سمجھ بوجھ دے اور سبکی عزتیں محفوظ رکھے... آمین...

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