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Hind ke Musalman itne Zahil (uneducated) aur Pichhde (Dropdown classes) kyo hai?

India ke Musalmano ka Maujuda Hal byaan karti yah Tahrir.

Hindustan ke Musalmano ki Khamiyaa aur Kamzoriya.


हिंद के मुसलमानो का ज़वाल लेकिन ज़िम्मेदार कौन?
मै मुसलमान हूँ, प्रधान मंत्री नही बन सकता, वज़ीर ए आला नही बन सकता इसलिए के मुझे कोई वोट नही देगा, मुझे कोई स्पोर्ट नही करेगा इसलिए के मेरी तादाद कम है और यहाँ जात परस्ती और धर्म के नाम पर सियासत होता है। यहाँ मुसलमान मुखालिफ् नारे लगाय जाते है और कानून बनाई जाती है जिससे गैर कौम खुश होकर वैसे शख्स को वज़ीर ए आज़म बनाता है जो मुसलमानो के खिलाफ काम करने वाला हो ... लेकिन पुलिस, कलेक्टर, कमिस्नॉर् और टीचर क्यों नही बन सकते है?

Urdu ka Zawal lekin Mujrim kaun?

इससे किस ने रोका, पिछले 150 सालों मे मुसलमानो ने सबसे पिछडा हुआ रहने का रिकॉर्ड बनाया है। सारी दुनिया के मुसलमानो का आज यही हाल है लेकिन हिंद के मुसलमानो तो सबसे बुरा हाल है।

इसलिए के मै बेकार हूँ, मै घंटो पढाई नही कर सकता, अगर पढाई शुरू कर दूँ तो चौराहे की खूबसूरती खतम हो जायेगी, जो मै होने नही दूंगा।

अगर पढाई करूँगा तो उसके लिए मुझे वक़्त निकालना होगा इसलिए खेल तमाशा के लिए वक़्त मिलेगा नही, जो मै होने नही दूंगा।

अगर पढ़ता हूँ तो गुटका और जूवा छोड़ना होगा जो मै होने नही दूंगा।

पढाई करता हूँ तो मुहल्ले की रौनक खत्म हो जायेगी, मै दिन भर इसी मुहल्ले मे घूमता रहता हूँ।

हां मुझे कोई काम नही है, और पैसे कमाने की बात है तो बाहर जाकर कोई काम सिख लूंगा फिर पैसे कमाने लगूँगा.. कोई पढाई करने वाला पढ़ते ही रहेगा जबतक मै पैसे कमाना शुरू कर दूंगा इससे मेरा घरवाला भी पढाई का न सोच कर कमाने बाहर भेज देगा।

हां मै मुसलमान हूँ और मेरी पैदाइश के वक़्त मेरी तकदीर पर मुहर लग गयी थी के मै टायर फिट्टर बनूँगा, पंक्चर की दुकान खोल कर बैठ जाऊंगा या गाड़ियों की मरम्मत करूँगा नही तो गाड़ी चलाना सिख लूंगा जिससे दो वक़्त की रोटी मिल जायेगी।

हाँ मै पैदाइशी मुसलमान हूँ, जाहिल रहना मेरा काम है पैसे किसी तरह कमा लूंगा और भाईयो की टाँगे  खींचना और गैरो का मुसाबिहात् इख़्तियार करना मेरा फ़र्ज़ है।

मैने पढाई क्यो नही की? या पढाई क्यों नही कर सका?

ऐसा सवाल मेरे ख्याल मे आया भी नही और मेरे बच्चे होंगे वह भी ऐसे ही करते जायेगा, इसमे कोई शक नही के मै अनपढ़ हूँ और मेरे बच्चे भी मुझ जैसा अनपढ़ होगा। लेकिन दुसरो का कल्चर और रिवायत कॉपी करना मेरा सबसे अहम काम होगा।

मै हिंदुस्तान का 30 करोड़ मुसलमानो का ही हिस्सा हूँ, ज्यादतर गरीब और कच्ची आबादियों मे रहता हूँ। मै चाहता हूँ के हुकूमत मेरे घर मे फर्श पर झाड़ू देने आये।
मै मुसलमान हूँ मेरा काम दुसरो का नकल करना और दुसरो की बुराई करना है, मै किसी अच्छे कामो मे शामिल नही हो सकता और न वह काम होने दूंगा बल्कि मेरा इलाका पिछडा है और रहेगा। 15 फिट सड़को को 8 फिट करने का माहिर हूँ, 8 फिट सड़क को मजिद कम करना मेरा हक है।

मै मुसलमान हूँ, जिसका दिन सबसे पहले "इकरा" से शुरू होता है, तालीम हासिल करने को कहता है लेकिन इसपर मैने कभी अमल कीया नही अगर किया भी तो गैरो के नरसरी के पालतू बन गए।

मै हमेशा सऊदी अरब और दूसरे मुल्को की बात करके अपनी तारीफ करता हूँ लेकिन अपने इस हाल पर कभी सोचा नही?

खुद का मुहासबा किया नही?

आखिर हुकुमत तो हमारी ही थी फिर खतम कैसे हुई?
हमारे अंदर क्या कमिया थी और आज हैं, इतने जलील वे रुस्वा क्यो हो रहे है?
हां मै मुसलमान हूँ। मै अनपढ़ हूँ, इसलिए के मेरे माँ बाप मुझे बचपन मे गैरेज मे काम करने के लिए भेज दिये और मै गरीब घराने से हूँ।
वालिदैन के पास बेहतर तालीम देने के पैसे नही थे,और मेरे समाज तालीम से ज्यादा दिखावा और शौक पर खर्च करने मे यकीं रखता है। क्योंके यह अमीर ही नही और गरीब दिखना नही चाहते बल्कि नवाबों के जैसा दिखना चाहते है चाहे कर्ज क्यो न लेना पड़े, गरीबो की मदद करने के बजाए उसको जलील करने और मज़ाक बनाने पर फ़ख़्र समझती है।

मै मुसलमान हूँ। अपने भाईयो को नीचा दिखाने मे और खुद को बड़ा साबित करने मे कोई मौका नही छोड़ता, दुसरो को ज़ालिल करना अपना फन समझता हूँ। रीकशा चलता हूँ, दूध बेचता हूँ, वेल्डिंग और प्लंबिंग का काम करता हूँ.. गैरेज मे गाड़ियां बनाता हूँ, चौराहे पर बैठे कर सिग्रेट पिता हूँ, ताश खेलता हूँ और जो कोई नही खेलना जानता उसे फ्री कोचिंग भी देता हूँ। क्योंके यह मेरा फर्ज़ है।

इसलिए के मै  ना ख्वांदा हूँ। सिर्फ दो वज़हो से।
वालिदैन की गफलत और मुआशरे के दनिश्वरो की गफलत।
मेरे वालिदैन बेबस थे लेकिन मेरा मुआशेरा बेबस नही था और नही है।
मैने अपने आँखो से लाखो रुपये शादियों मे फिज़ूल खर्ची करते देखा है।

मुशायरे और कौवालियो पर पैसों की बारिश करते देखा है,
गली मुहल्ले मे अपनी मौजूदगी ज़ाहिर करने के लिए पानी के जैसे पेट्रोल खर्च करते देख है,
दिखावे और यहूद व नसारा के नकश् ए कदम पर चलते हुए खुद को कूल व मॉडर्न साबित करने के लिए पार्टिया और यौम ए पैदाइश मनाते देखा है।

शादियों मे नाच गाने और आर्केस्ट्रा मंगाने वाला गरीब कैसे हो सकता है? इसे यह साबित होता है के हमे किसकी जरूरत है और कैसा बनना है?

अगर सिर्फ मेरे वालिदैन और मेरा समाज तालीम/शिक्षा को लेकर फ़िक्रमंद होती तो आज वज़ीर ए आज़म और वज़ीर  ए आला नही होता लेकिन IPS और IAS जरूर होता। वोट लिए बगैर भी मै सुरखुरु होता, या कम अज कम डॉक्टर, इंजीनियर, वकील और दीनदार शख्स जरूर होता। लेकिन बचपन से ही मेरे ज़ेहन मे यह डाल दिया गया के बड़ा होकर सिर्फ पैसे कमाना है और पढ़े लिखे लोगो के जैसे दिखावा करना है क्योंके हम उनके लायक है नही इसलिए सिर्फ ज़हिरी तौर पर उसके जैसा बनना है।

ये मुसलमां है जिसे देख शर्माए यहूद।

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Mani Aur Maji kya hai? Mani ya Maji khariz ho jane se Ghusal wazib hai ya nahi? Napaki aur Ghusl ke Masail.

Mard ya Aurat Napak Kaise Ho jate hai?

Mani aur Maji me fark kya hai?
Inke khariz hone se Jism aur Kapdo ki taharat ka kya hukm hai?
Kya mani khariz Hone se Sirf Ghusal karna hoga ya kapde bhi tabdil karna jaruri hai?
Kya Maji khariz hone se bhi Ghusal farj hota hai?

#NAPAKI KE masail, #ghusl ki dua, #ghusl ki dua after sex, #ghusl ki dua after periods, #how to perform ghusl, #ghusl ki duwa in english, #ghusl steps, #ghusl ke faraiz, #how to do ghusl after period, #ghusl janabat ki dua, #ghusl after sex for female dua, #ghusl after periods in islam, #ghusl after delivery,
Mani aur Maji kya hai? Mani nikalne se kya Napak Ho jayenge?

“سلسلہ سوال و جواب -37″
سوال_منی، اور مذی میں کیا فرق ہے؟
انکے خارج ہونے سے جسم اور کپڑوں کی طہارت کا کیا حکم ہے؟ کیا منی خارج ہونے سے صرف غسل کرنا پڑے گا یا کپڑے بھی تبدیل کرنا ضروری ہیں؟نیز کیا مذی خارج ہونے سے بھی غسل فرض ہو جاتا ہے..؟

جواب۔۔!!

الحمدللہ۔۔

تمام مسلمانوں سے گزارش ہے کہ اس تحریر کو ضرور پڑھیں، کیونکہ ہمارے ہاں پاکیزگی اور طہارت بہت اہمیت کی حامل ہے، جب تک ہم ٹھیک سے طہارت نہیں حاصل کر لیتے ہماری عبادات بھی درست نہیں ہوتیں، چونکہ یہ ایک اہم مسئلہ ہے ہم اس مسئلہ کو سمجھنے کے لیے  مختلف سوالوں کی شکل دیتے ہیں، جو اکثر اوقات مرد و خواتین شرم کی وجہ سے کسی سے پوچھ نہیں پاتے.

#سوال_1
منی اور مذی کسے کہتے ہیں۔۔؟

جواب_

منی
وہ گھاڑھا مادہ جو میاں بیوی کے جماع کے دوران یا احتلام کے وقت مرد و خواتین کی شرمگاہ سے نکلتا ہے، اسے منی کہتے ہیں،

مذی
وہ پتلا لیس دار مادہ جو میاں بیوی کے بوس و کنار کے وقت یا رومانوی قصے کہانیاں اور جنسی ویڈیوز وغیرہ دیکھنے سے مرد و خواتین کی شرمگاہ  سے نکلتا ہے،
اسے مذی کہتے ہیں،
_______&&&&&________

#سوال_2
ہمیں کس طرح پتا چلے گا کہ خارج ہونے والی چیز منی ہے۔۔۔۔؟ اور مرد و خواتین کی منی کی علامات کیا ہیں۔۔؟؟

جواب_
مرد كا مادہ منويہ گاڑھا اور سفيد ہوتا ہے، ليكن عورت كى منى پتلى اور زرد رنگ كى ہوتى ہے.

اس كى دليل درج ذیل احادیث ہیں،

ام سليم رضى اللہ تعالى عنہا بيان كرتى ہيں كہ ميں نے رسول كريم صلى اللہ عليہ وسلم سے پوچھا کہ اگر عورت خواب میں وہی دیکھے جو مرد دیکھتا ہے تو کیا اس پر بھی غسل فرض ہو جائے گا؟
تو رسول كريم صلى اللہ عليہ وسلم نے فرمايا:
” جب عورت ايسا خواب ميں ديكھے تو وہ غسل كرے ”
ام سليم رضى اللہ تعالى عنہا كہتى ہيں: ـ مجھے اس سے شرم آ گئى ـ اور ميں نے عرض كيا،
كيا ايسا ہوتا ہے ؟
تو رسول كريم صلى اللہ عليہ وسلم نے فرمايا:
تو پھر مشابہت كس طرح ہوتى ہے ؟ بلا شبہ مرد كا مادہ گاڑھا اور سفيد، اور عورت كا مادہ پتلا اور زرد ہوتا ہے، دونوں ميں سے جو بھى اوپر ہو جائے، يا سبقت لے جائے اس كى مشابہت ہو جاتى ہے ”
(ﺻﺤﻴﺢ ﻣﺴﻠﻢ- ﻛﺘﺎﺏ اﻟﺤﻴﺾ – ﺑﺎﺏ ﻭﺟﻮﺏ اﻟﻐﺴﻞ ﻋﻠﻰ اﻟﻤﺮﺃﺓ ﺑﺨﺮﻭﺝ اﻟﻤﻨﻲ ﻣﻨﻬﺎ، حدیث _311)
(سلسلہ احادیث الصحیحہ، حدیث _453)

صحيح مسلم كى شرح ميں امام نووى رحمہ اللہ تعالى كہتے ہيں:
قولہ رسول اللہ صلى اللہ عليہ وسلم:
” مرد كا مادہ منويہ گاڑھا سفيد ہوتا ہے، اور عورت كا پانى پتلا زرد ہوتا ہے ”
يہ منى كى صفت كے بيان ميں عظيم دليل ہے، تندرستى اور عام حالات ميں منى كى حالت اور صفت يہى ہے.

علماء كرام كا كہنا ہے: تندرستى اور صحت كى حالت ميں مرد كى منى گاڑھى سفيد ہوتى ہے اور اچھل اچھل كر خارج ہوتى ہے، اور اس كے خارج ہوتے وقت لذت آتى ہے، اور جب منى خارج ہو چكے تو خارج ہونے كے بعد فتور اور ٹھراؤ پيدا ہوتا اور اس كى بو تقريبا كھجور كے شگوفہ اور گوندھے ہوئے آٹے كى بو كى طرح ہوتى ہے…

( بعض اوقات كسى سبب كے باعث منى كى رنگت تبديل ہو جاتى ہے مثلا ) بيمار ہو تو اس كى پانى پتلى زرد ہو گى، يا پھر منى والى جگہ ميں استرخاء( يعنى ڈھيلا پن ) پيدا ہو جائے تو بغير لذت اور شہوت ہى خارج ہونا شروع ہو جاتى ہے، يا پھر جماع كثرت سے كيا جائے تو منى سرخ ہو كر گوشت كے پانى كى طرح ہو جاتى ہے، اور بعض اوقات تو تازہ خون ہى خارج ہوتا ہے…

*پھر منى  كے تين خواص ہيں جس سے منى با اعتماد شمار ہوتی ہيں یعنی یہ یقین کیا جاتا یے کہ یہ واقع ہی منی خارج ہوئی، ان علامتوں سے آپ منی کہ پہچان کر سکتے ہیں*

#پہلا خاصہ:
شہوت سے خارج ہونا، اور بعد ميں فتور یعنی ڈھیلا پن،سستی پيدا ہو جانا

#دوسرا خاصہ:
اس كى بو كھجور كے شگوفہ كى طرح ہوتى ہے جيسا كہ بيان كيا جا چكا ہے.

#تيسرا خاصہ:
اچھل كر خارج ہونا.

ان تين علامتوں ميں سے كسى ايک علامت كا پايا جانا منى ہونے كے ليے كافى ہے،
تينوں كا بيک وقت پايا جانا شرط نہيں،
اور اگر ان تينوں ميں سے كوئى بھى نہ ہو تو پھر وہ منى نہيں ہو گى، اور ظن غالب كا ہونا بھى منى كے ثبوت كے ليے كافى نہيں،
يہ سب باتیں  تو مرد كى منى كے متعلقہ تھیں،

رہا عورت كى منى كا مسئلہ تو وہ پتلى زرد ہوتى ہے.

اور بعض اوقات اس كى قوت و طاقت بڑھ جانے كى بنا پر سفيد بھى ہو جاتى ہے، اس كے دو خاصے ہيں، اگر ان ميں سے كوئى ايك بھى ہو تو وہ منى شمار ہو گى:

#پہلا:
اس كى بو مرد كى منى جيسى ہو گی (یعنی کجھور کے شگوفے یا گندھے آٹے کی بو جیسی ہو گی،)
#دوسرا:
خارج ہوتے وقت لذت آئے، اور بعد ميں فتور (ڈھیلا پن) پيدا ہو.

ديكھيں:
(شرح مسلم للنووى ( 3 ج/ 222 ص)

*یہ تو تھیں مرد و عورت کی منی کی علامات، کہ ان علامتوں سے ہم یہ پہچان سکتے ہیں کہ نکلنے والا مادہ  منی ہی تھا یا کچھ اور ؟

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#سوال_3
*اگر منی خارج ہو جائے تو پھر جسم اور کپڑوں کی طہارت کا کیا حکم ہو گا..؟

جواب_
اگر منی خارج ہو جائے، وہ خواب میں احتلام کی صورت میں خارج ہو یا بیوی سے ہمبستری کے ذریعے یا مشت زنی وغیرہ کے ذریعے کوئی خارج کرے تو اس پر غسل واجب ہو جائے گا،

اسی طرح اگر احتلام کے بعد کپڑوں پر منی کی نشان نظر آئیں تو غسل فرض ہو گا ، اگرچہ اسے احتلام یاد نا بھی ہو،

لیکن اگر خواب میں احتلام دیکھا مگر کپڑوں پر منی کے نشانات نظر نہیں آئے تو پھر غسل واجب نہیں ہو گا،

جیسا کہ رسول اللہ صلی الله علیہ وسلم سے اس شخص کے بارے میں پوچھا گیا جو (کپڑوں پر)  تری دیکھے لیکن اسے احتلام یاد نہ آئے،
آپ نے فرمایا: ”وہ غسل کرے“
اور اس شخص کے بارے میں ( پوچھا گیا ) جسے یہ یاد ہو کہ اسے احتلام ہوا ہے لیکن وہ تری نہ پائے تو آپ نے فرمایا: ”اس پر غسل نہیں“
ام سلمہ نے عرض کیا: اللہ کے رسول!
کیا عورت پر بھی جو ایسا دیکھے غسل ہے؟
آپ نے فرمایا: عورتیں بھی ( شرعی احکام میں ) مردوں ہی کی طرح ہیں۔
(سنن ترمذی، حدیث _113) صحیح
(سنن ابو داؤد،حدیث _236)حسن

*اور کپڑوں پر جس جگہ منی لگی ہو اگر وہ خشک ہے تو اسکو کھرچ لینا کافی ہے، اگر گیلی ہے تو کپڑے کو اس جگہ سے دھو لینا کافی ہے،سارے کپڑے تبدیل کرنا ضروری نہیں*

جیساکہ،
حضرت عائشہ رضی اللہ عنہا سے اس منی کے بارے میں پوچھا گیا جو کپڑے کو لگ جائے۔
تو عائشہ رضی اللہ عنہا نے فرمایا کہ میں منی کو رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم کے کپڑے سے دھو ڈالتی تھی پھر آپ نماز کے لیے باہر تشریف لے جاتے اور دھونے کا نشان ( یعنی کپڑے کو دھونے سے ) پانی کے دھبے آپ صلی اللہ علیہ وسلم کے کپڑے میں باقی ہوتے۔
(صحیح بخاری،حدیث _230)

اور ایک روایت میں یہ بات ملتی ہے کہ،
ام المؤمنین  عائشہ رضی الله عنہا کے ہاں ایک مہمان آیا تو انہوں نے اسے ( اوڑھنے کے لیے ) اسے ایک زرد چادر دینے کا حکم دیا۔
وہ اس میں سویا تو اسے احتلام ہو گیا،
ایسے ہی بھیجنے میں کہ اس میں احتلام کا اثر ہے اسے شرم محسوس ہوئی، چنانچہ اس نے اسے پانی سے دھو کر بھیجا،
تو عائشہ رضی الله عنہا نے کہا:
اس نے ہمارا کپڑا کیوں خراب کر دیا؟
اسے اپنی انگلیوں سے کھرچ دیتا، بس اتنا کافی تھا، بسا اوقات میں اپنی انگلیوں سے رسول اللہ صلی الله علیہ وسلم کے کپڑے سے اسے کھرچ دیتی تھی۔ امام ترمذی کہتے ہیں:
۱- یہ حدیث حسن صحیح ہے،
۲- صحابہ کرام، تابعین اور ان کے بعد کے فقہاء میں سے سفیان ثوری، شافعی، احمد اور اسحاق بن راہویہ کا یہی قول ہے کہ کپڑے پر منی لگ جائے تو اسے کھرچ دینا کافی ہے، اگرچہ دھویا نہ جائے،
(سنن ترمذی،حدیث _116)
(سنن ابن ماجہ، حدیث _538)
(صحیح مسلم،کتاب الطہارہ، حدیث _288)

ایک روایت میں یہ الفاظ بھی ہیں کہ ،

عائشہ رضى اللہ تعالى عنہا بيان كرتى ہيں كہ رسول كريم صلى اللہ عليہ وسلم اپنے كپڑوں سے اذخر كے تنكوں كے ساتھ (گیلی) منى كو پونچھ ديا كرتے تھے، اور پھر اسى لباس ميں نماز ادا كرتے، اور اپنے كپڑوں سے خشك منى كو كھرچ كے نماز ادا كرتے تھے ”
(مسند احمد، ج6/ص243)
(صحيح ابن خزيمہ،حدیث _288)
(علامہ البانى رحمہ اللہ تعالى نے
ارواء الغليل ( 1 / 197 ) ميں اسے حسن قرار ديا ہے)

*ان احادیث سے یہ بات ثابت ہوتی ہے کہ منی لگے کپڑے کو تبدیل کرنا یا دھونا واجب نہیں، اگر خشک اور موٹی تہہ ہو تو خرچ کر صاف کر دے پھر اسی میں نماز پڑھ سکتا اور اگر گیلی ہو تو کسی چیز سے صاف کر دے یا کھرچنے کے قابل نا ہو تو پھر وہاں سے اتنا حصہ دھو لے جہاں منی لگی ہو ، اور اسی کپڑے میں نماز پڑھ سکتا ہے،اکثر مرد و خواتین صحبت یا احتلام کے بعد کپڑے تبدیل کرنا فرض سمجھتے ہیں ،جب کہ کپڑے تبدیل کرنے کی ضرورت نہیں،*

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#سوال_4
*مذی کی پہچان کیا ہے؟*

جواب:
مذى سفيد رنگ كا ليس دار مادہ ہوتا ہے، جو میاں بیوی کے گلے لگنے ،یا بوس و کنار کرنے سے یا  جماع كى سوچ يا اردہ كے وقت خارج ہوتا ہے،
یا بعض اوقات رومانوی قصے کہانیاں پڑھنے اور فحش ویڈیوز وغیرہ دیکھنے سے خارج ہوتا ہے،
یہ اچھل کر خارج نہیں ہوتا ہے،اور نہ ہى نكلنے كے بعد فتور پيدا ہوتا ہے، يعنى جسم ڈھيلا نہيں پڑتا.
اور مرد و عورت دونوں سے ہى مذى خارج ہوتى ہے، ليكن مردوں كى بنسبت عورتوں ميں زيادہ یہ مسئلہ ہوتا ہے.۔.!
(ديكھيں: شرح مسلم للنووى ( 3 / 213 )

__________&&&__________

#سوال_5
*اگر مذی خارج ہو جائے تو جسم اور کپڑوں کی طہارت کا کیا حکم ہے؟*

جواب_
مذى خارج ہونے سے شرمگاہ کو دھو کر صرف وضو ہى كرنا ہو گا، اس سے غسل فرض نہیں ہوتا،
اس كى دليل على رضى اللہ تعالى عنہ كى درج ذيل حديث ہے،

علی رضی اللہ عنہ فرماتے ہیں کہ ،
مجھے مذی بکثرت آتی تھی، چونکہ میرے گھر میں نبی کریم صلی اللہ علیہ وسلم کی صاحبزادی ( فاطمۃالزہراء رضی اللہ عنہا ) تھیں۔ اس لیے میں نے(شرم کی وجہ سے) ایک شخص ( مقداد بن اسود اپنے شاگرد ) سے کہا کہ وہ آپ ﷺ  سے اس مذی کے متعلق مسئلہ معلوم کریں انہوں نے پوچھا تو آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا کہ مذی نکلنے پر شرمگاہ کو دھو لو اور وضو کرو،
(صحیح بخاری، حدیث _269)

*یعنی مذی خارج ہونے سے غسل کرنا واجب نہیں ، بلکہ صرف وضو ٹوٹ جاتا ہے،*

ابن قدامہ رحمہ اللہ نے ” المغنى ” ميں علماء كرام كا اجماع نقل كيا ہے كہ مذى خارج ہونے سے وضوء ٹوٹ جاتا ہے.
(ديكھيں:
(المغنى ابن قدامہ المقدسى ( 1 / 168 )

*يہاں ايک چيز پر متنبہ رہنا ضرورى ہے كہ مذى نجس اور پليد ہے اس ليے بدن كو جہاں لگے اسے دھونا ہو گا،جیسا کہ اوپر والی حدیث میں یہ بات ذکر ہوئی، ليكن لباس كو جہاں لگے تو اسے پاک كرنے كے ليے شريعت مطہرہ نے مشقت دور كرتے ہوئے تخفيف كى ہے كہ صرف اتنا ہى كافى ہے كہ آپ ايک چلو پانى لے كر مذى لگنے والى جگہ پر چھڑک ديں تو وہ كپڑا پاک ہو جائيگا، كيونكہ رسول كريم صلى اللہ عليہ وسلم نے مذى لگے ہوئے كپڑے كو پاک كرنے كى كيفيت بيان فرمائی ہے،*

سھل بن حنيف رضى اللہ تعالى عنہ بيان كرتے ہيں:
مجھے بہت زيادہ مذى آتى اور ميں كثرت سے غسل كيا كرتا تھا، چنانچہ ميں نے اس كے متعلق رسول كريم صلى اللہ عليہ وسلم سے دريافت كيا تو رسول كريم صلى اللہ عليہ وسلم نے فرمايا:
” آپ كو اس سے وضوء كرنا كافى ہے ”
ميں نے عرض كيا:
اے اللہ تعالى كے رسول صلى اللہ عليہ وسلم ميرے لباس ميں جہاں لگى ہوئى ہو اسے كيا كروں؟
تو رسول كريم صلى اللہ عليہ وسلم نے فرمايا:
” آپ كے ليے اتنا ہى كافى ہے كہ چلو بھر پانى لے كر جہاں لگى ہو اس پر چھڑك دو ”
(سنن ترمذی،حدیث _115)
(سنن ابو داؤد،حدیث _210)
(سنن ابن ماجہ،حدیث _506)

تحفۃ الاحوذى ميں ہے:
اس حدیث سے يہ ستدلال كيا جاتا ہے كہ اگر كپڑے كو مذى لگ جائے تو اس پر پانى چھڑكنا كافى ہے، اور دھونا واجب نہيں.
ديكھيں: تحفۃ الاحوذى ( ص1 / 373ج )

*اگر کوئی کپڑا بھی دھونا چاہے تو دھو لے اسکی مرضی ہے*

*اللہ پاک ہم سب کو صحیح معنوں میں قرآن و حدیث کو سمجھنے اور عمل کرنے کی توفیق عطا فرمائیں آمین ثم آمین*

((( واللہ تعالیٰ اعلم باالصواب )))

کیا مرد و خواتین کیلئے جنابت کی حالت میں غسل کے بنا سونا،کھانا پینا یا روزہ رکھنا جائز ہے؟ نیز کیا غسل جنابت سے پہلے عورت کھانا وغیرہ بنا سکتی اور بچے کو دودھ پلا سکتی؟
((دیکھیں سلسلہ -55))

کیا بے وضو، حائضہ اور جنبی کیلئے قرآن مجید کو چھونا اور پڑھنا جائز ہے؟
((دیکھیں سلسلہ -94))

اپنے موبائل پر خالص قرآن و حدیث کی روشنی میں مسائل حاصل کرنے کے لیے “ADD” لکھ کر نیچے دیئے گئے پر سینڈ کر دیں،

آپ اپنے سوالات نیچے دیئے گئے پر واٹس ایپ کر سکتے ہیں جنکا جواب آپ کو صرف قرآن و حدیث کی روشنی میں دیا جائیگا,
ان شاءاللہ۔۔!!

⁦  سلسلہ کے باقی سوال جواب پڑھنے۔ 
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22 January aur 6 December: Musalmano ko 22 December ko kya karna Chahiye?

Musalman 22 January ko kya kare?

6 December 1992 ko Babri Masjid jab Shaheed kar diya gaya tab Secular Hukumat thi, Jab Babri maszid me Boot rakha gaya tab Nehru ka daur tha.


22جنوری کو مسلمان کیا کریں ؟

❶ مسلمان اس دن اپنے گھروں میں اپنے بچوں کو بابری مسجد کی تاریخ یاد کرائیں.

اپنے بچوں کو بتائیں کہ اس جگہ بابری مسجد تھی جسے ہندتوا غنڈوں نے منہدم کرکے مندر بنایا ہے،

❷ توحید پر مبنی قرآنی آیتوں اور کلمہءشہادت کو دن بھر پڑھتے رہیں،

❸ رام مندر سے متعلق کسی بھی پروگرام کسی بھی نعرہ بازی میں شریک نہ ہوں، اپنے بچوں کے اسکولوں پر نظر رکھیں کہ کہیں انہیں اسکولوں میں رام مندر کےنام پر ہندوانہ عقائد اور ہندو رسومات کی عادت تو نہیں ڈلوائی جارہی؟
اگر ایسا ہو تو بچوں کو گھروں پر سمجھائیں کہ اسلام کا نظریہ ایمان اور توحید ہے جو کسی بھی طرح سے دوسرے مذاہب کی عبادت، نعروں اور رسومات میں شرکت سے منع کرتا ہے اگر ہم رام۔مندر سے متعلقہ کسی بھی پروگرام میں شرکت کریں گے یا ۲۲ جنوری کو دیپ جلائیں گے تو اللہ ہم سے ناراض ہوگا اور ہم اسلام سے بھی خارج ہو سکتے ہیں، مسلمان اپنی جان تو دےسکتا ہے لیکن ایمانی عقائد سے دستبردار ہو ہی نہیں سکتا ہے۔
شری رام ہوں یا کوئی بھی شخصیت جن کی عبادت ہمارے ملک کے ہندو کرتے ہیں ہم ان کی بےتوقیری نہیں کرتے ہم ان کے مذہب کا بھی احترام کرتے ہیں یعنی ان کی توہین نہیں کرتے لیکن ہم ان کی مذہبی رسومات میں جیسے رام مندر کےنام پر ہونے والی تقریبات میں کسی بھی طرح سے شرکت نہیں کر سکتے ہیں، کوئی بھی مسلمان ایسا نہیں کرسکتا ہے_

❹: رام مندر چونکہ ہماری بابری مسجد توڑ کر بابری مسجد کی جگہ پر بنائی گئی ہے جس میں سینکڑوں مسلمانوں کا خون بھی بہایا گیا رام مندر کےنام پر رتھ یاترا کے نام پر جو فسادات مسلمانوں کےخلاف کیے گئے اس میں ہمارے معصوموں کا خون بہا ہے، اس لیے بھی اس تقریب میں مسلمانوں کی شرکت مزید ناجائز اور ملّت سے غدّاری کہلائے گی_

❺: مسلمان اپنے اپنے مقام پر اپنی مقامی مسجدوں کو آباد کرنے کا عہد کریں، مسلمان ویسے بھی مسجد جاتے ہیں اب مزید عہد کریں اور پہلے سے زیادہ مسجدوں میں جائیں،

❻: مسلمان آپسی اتحاد کو ہرسطح پر بڑھائیں، اور سب مل کر اس ملک میں ہندوتوا طاقتوں کے ظلم و ستم کو بند کروانے کے لیے متحدہ محاذ بنائیں، اس ملک میں قانون و انصاف کی بالادستی کو قائم کرنے کے لیے اور ہندوتوا کے ظالمانہ پنجوں سے مسلمانوں کو بچنا ہے تو چند کام ضروری ہیں.

ایک۔  ایمان سے سمجھوتہ کبھی نہیں کرنا ہے، ایمانی نظریات سے کوئی کمپرومائز ہرگز نہیں۔
۲۔ مسلکی زنجیروں سے اوپر اٹھ کر اتحاد کریں ہر کلمہ پڑھنے والے سے اتحاد کریں، آپس میں مسلک کی وجہ سے لڑنا جھگڑنا چھوڑ دیجیے،
۳۔ ظلم پر خاموش نہ رہیں، مسلمان تاجروں، انجینئروں اور سیاستدانوں کی حمایت کریں انہیں مضبوط بنائیں۔۔
4. اپنی قوت کو یکجا کریں،
۲۲ جنوری کو یہ عہد سماجی میدانوں میں اتارنے کا سب سے اچھا دن ہے_

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Rooh Kabz hone ka Bayan Quran O Hadees me, Rooh kaise Kabz karte hai Farishte?

Quran o Hadees me Marne wale ki Rooh kabz hone ka bayan.

Jis Shakhs ki maut hoti hai uske Rooh kabz hone ka Zikr Quran o Hadees me.


قرآن و حدیث میں مرنے والے کی روح کے قبض ہونے کا بیان:
…ﷲ تعالیٰ انسانوں کی موت کے وقت روح قبض کرنے کیلئے فرشتے بھیجتا ہے، وہ اس کی روح قبض کرکے اﷲ تعالیٰ کی طرف لے جاتے ہیں۔
( الانعام : ۶۱۔۶۲)

…فرشتے انسان کے جسم میں تیرتے ہوئے، ڈوب کر آگے بڑھ کر اس کی روح کھینچ لیتے ہیں۔
( نازعات: ۱ تا ۴)

ظالم لوگوں کی روح نکالتے ہوئے فرشتے ہاتھ بڑھا بڑھا کر کہہ رہے ہوتے ہیں نکالو اپنی روحوں کو۔ مرنے والے کی روح یہ جسم و دنیا سب کچھ چھوڑ کر اﷲ تعالیٰ کے پاس چلی جاتی ہے۔
( الانعام: ۹۳۔۹۴)

جان کنی کے وقت جان گلے تک پہنچ جاتی ہے، پنڈلی سے پنڈلی مل جاتی ہے جان لیاجاتا ہے کہ اب جدائی کا وقت ہے اپنے رب کے پاس جانے کا وقت ہے۔
(القیامۃ:۲۶۔۳۰)

جب روح گلے میں آپہنچتی ہے انسان اس حالت کو دیکھ رہے ہوتے ہیں لیکن بے بس ہوتے ہیں۔
( الواقعہ: ۸۳ تا ۸۷)

نبی صلی اﷲ علیہ و سلم نے فرمایا:
…جب روح نکلتی ہے تو بصارت اس کے پیچھے نکل جاتی ہے۔ 
( مسلم۔ کتاب
الجنائز)

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Aurat Ke liye Bazaro me Dance karna hai aur Kya Biwi apne Shauhar Ke Samne Raks kar sakti hai?

Kya Koi Aurat Apne Shauhar ke Samne Raksh (Dance) kar sakti hai?

Kya Koi Aurat Kahi par Dance kar sakti hai?


اَلسَلامُ عَلَيْكُم وَرَحْمَةُ اَللهِ وَبَرَكاتُهُ‎

عورت کا اپنے خاوند کےسامنے رقص کرنا :

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: مســــــــــز انصــــــــــاری

اپنے شوہر کے سامنے، چاہے شوہر مطالبہ کرے یا نا کرے عورت کا رقص کرنے میں کوئی گناہ یا عیب کی بات نہیں ہے ، بلکہ یہ خوش طبعئی کا ایسا انداز ہے جس سے خاوند كا دل خوش ہوگا، اس کے دل میں بیوی کی محبت بڑھے گی اور اپنی بیوی سے فائدہ اٹھانے کی رغبت بڑھے گی اور بیوی کے دل میں بھی اپنے خاوند کے لیے محبت میں اضافہ ہوگا ۔

شيخ محمد بن صالح العثيمين رحمہ اللہ كہتے ہيں:

عورت كا اپنے خاوند كے سامنے ناچنا اور رقص كرنا جبكہ ان دونوں كے پاس كوئى اور نہ ہو تو اس ميں كوئى حرج نہيں؛ كيونكہ ہو سكتا ہے ايسا كرنا خاوند كے ليے اپنى بيوى ميں اور زيادہ رغبت كا باعث ہو، اور ہر وہ كام جو خاوند كے ليے اپنى بيوى ميں رغبت كا باعث بنے وہ اس وقت تك مطلوب ہے جب تك وہ بعينہ حرام نہ ہو.
اسى بنا پر خاوند كے ليے عورت كا بناؤ سنگھار اور بن سنور كر سامنے آنا مسنون ہے، اسى طرح خاوند كے ليے بھى مسنون ہے جس طرح بيوى اس كے ليے بناؤ سنگھار كرتى ہے وہ بھى بيوى كے ليے كرے " انتہى
[ ديكھيے : اللقاء الشھرى ١٢ |سوال : ۹ ]

علامہ ناصر الدين البانى رحمہ اللہ سے درج ذيل سوال كيا گيا:

كيا بيوى كا خاوند كے سامنے تھيٹروں ميں ناچنے اور گانے واليوں جيسا لباس پہننے ميں ان كے عمل سے محبت اور جو وہ كرتى ہيں اس كا اقرار نہيں ہے ؟

شيخ رحمہ اللہ كا جواب تھا:
اگر تو يہ چيز صرف خاوند اور بيوى ميں ہو اور انہيں كوئى دوسرا نہيں ديكھ رہا تو جائز ہے.
شيخ رحمہ اللہ نے بيان كيا كہ يہ لباس مذموم تشبہ ميں شامل نہيں ہوگا، اور وہ ناچنے گانے والياں تو اعلانيہ طور پر دوسرے غير محرم لوگوں كے سامنے ناچتى ہيں، ليكن يہ عورت تو صرف اپنے خاوند كے سامنے ہے، ان دونوں ميں بہت فرق ہے.
[ دیکھیے : سلسلۃ " الھدى والنور " | كيسٹ نمبر( ٨١۴) ]

البتہ کچھ باتوں کا خیال رکھنا ضروری ہے

✦- اس رقص ميں موسيقى اور آلات موسيقى استعمال نہ كيے جائيں، موسیقی کے آلات اور سازوں کے ساتھ گانا حرام ہے ، یہ شیطان کے باجے ہوتے ہیں ، چاہے گانے والا مرد ہو یا عورت، اور مجلس میں گائے یا تنہائی میں، بیوی شوہر کے سامنے گائے یا شوہر بیوی کے سامنے ، آلاتِ موسیقی سے اجتناب ضروری ہے۔ آیات قرانیہ اور احادیث نبویﷺ میں گانے بجانے اور آلات موسیقی کے استعمال کی مذمت کی گئی ہے ، ان کا استعمال اسباب ضلالت اور اللہ کی آیات کا مذاق اڑانے کے مترادف ہے،ارشاد باری تعالی ہے،
﴿وَمِنَ النّاسِ مَن يَشتَر‌ى لَهوَ الحَديثِ لِيُضِلَّ عَن سَبيلِ اللَّهِ بِغَيرِ‌ عِلمٍ وَيَتَّخِذَها هُزُوًا ۚ أُولـٰئِكَ لَهُم عَذابٌ مُهينٌ ﴿٦﴾... سورة لقمان
’’اور لوگوں میں بعض ایسا  ہے جو بے حودہ حکایتیں خریدتا ہے تاکہ [لوگوں] کو بغیر علم کے اللہ کے راستے سے گمراہ کرے اور اس سے استہزاء کرے یہی وہ لوگ ہیں جنکو ذلیل کرنے والا عذاب ہوگا۔‘

ليكوننَّ من أمتي أقوامٌ يستحِلُّونَ الحِرَ والحريرَ والخمرَ والمعازفَ ولَينزلنَّ أقوامٌ إلى جنبِ عَلَمٍ يروحُ عليهم بسارحةٍ لهم تأتيهم الحاجةُ فيقولون ارجعْ إلينا غدًا فيُبَيِّتُهم اللهُ ويضعُ العِلمَ ويَمسخُ آخرين قِردةً وخنازيرَ إلى يومِ القيامةِ

الراوي : أبو مالك الأشعري | المحدث : ابن القيم | المصدر : تهذيب السنن | الصفحة أو الرقم : 10/153 | خلاصة حكم المحدث : صحيح | التخريج : أخرجه البخاري موصولا وصورته معلقاً بصيغة الجزم (5590) باختلاف يسير

   صحیح حدیث میں ہے :

لَيَكونَنَّ مِن أُمَّتي أقْوامٌ يَسْتَحِلُّونَ الحِرَ والحَرِيرَ، والخَمْرَ والمَعازِفَ، ولَيَنْزِلَنَّ أقْوامٌ إلى جَنْبِ عَلَمٍ، يَرُوحُ عليهم بسارِحَةٍ لهمْ، يَأْتِيهِمْ -يَعْنِي الفقِيرَ- لِحاجَةٍ، فيَقولونَ: ارْجِعْ إلَيْنا غَدًا، فيُبَيِّتُهُمُ اللَّهُ، ويَضَعُ العَلَمَ، ويَمْسَخُ آخَرِينَ قِرَدَةً وخَنازِيرَ إلى يَومِ القِيامَةِ.
یعنی رسول اللہ ﷺ نے فرمایا: عن قریب میری امت میں ایسے لوگ پیدا ہوں گے جو زنا، ریشم ،شراب اور باجوں کو حلا ل سمجھیں گے۔ اور ایک روایت میں یہ الفاظ مروی ہیں عن قریب میری امت کے کچھ لوگ شراب پییں گے اور اس کا نام بد ل دیں گے ۔ ان کے سروں پر ناچ گا نے ہوں گے ۔اللہ تعالیٰ ایسے لوگوں کو زمین میں دھنسا دے گا اور ان میں سے بعض کو خنزیر  اور بندر بنا دے گا ۔

الراوي : أبو مالك الأشعري | المحدث : البخاري | المصدر : صحيح البخاري | الصفحة أو الرقم: 5590 | خلاصة حكم المحدث : [صحيح] | التخريج : أخرجه البخاري موصولا وصورته معلقاً بصيغة الجزم (5590) ]

نوٹ : یاد رہے یہاں مراد لھوالحدیث نہیں ہے ، واضح رہے کہ لہو الحدیث سے مراد گانا بجانا ہوتا ہے ، ناہی مراد وہ عشقیہ کفریہ اور شرکیہ گانے ہیں جو منکر ہیں اور معصیت کی رغبت دلاتے ہیں ، بلاشبہ جدید ترین ایجادات ریڈیو ٹی وی وغیرہ یا ویڈیو فلموں وغیرہ سے بے راہ روی کا درس لینا اپنی عاقبت کو خراب کرنا ہے ، کیونکہ فلمی گانے یا دوسرے بیہودہ گانے درست نہیں ہوتے ، البتہ اگر اظہار محبت پر مشتمل کوئی اشعار غزل ہو تو وہ میاں بیوی ایک دوسرے کے سامنے گا سکتے ہیں، اسی کو گانا کہاگیا ہے ۔
لہٰذا بلاکفریہ اور شرکیہ کلمات کے گیت اور غزل اختیارکرتے ہوئے اپنے شوہر کے لیے گنگنانے یااشعار کہنے  میں فی نفسہ  کوئی قباحت نہیں،بشرطیکہ ان اشعار میں شریعت کے خلاف کوئی  مضمون نہ ہو ۔
جیسے شادی وغیرہ میں عام گانا جس میں کسی حرام چیز کی دعوت نہ ہو نہ اس میں کسی حرام چیز کی مدح ہو، تو ایسے گانے گانا اور دف بجانا مشروع ہے ۔

✦- بشمول گانے کے رقص میں خیال رکھا جائے کہ بعض اشعار کفریہ اور شرکیہ ہوتے ہیں جو بےحیائی اور گناہ و معصیت کی دعوت دیتے ہیں، ایسے کفریہ و شرکیہ اشعار اسی طرح گناہ ہیں جس طرح آلاتِ موسیقی حرام ہے ۔

✦- اپنی اولاد کے سامنے یہ خوش طبعئی نا کی جائے، والدین بچوں کے لیے نقشِ پا ہوتے ہیں، زندگی کے پیچ و خم پر روانی سے چلنے کے لیے والدین اولاد کے لیے رول ماڈلز ہوتے ہیں، مبادا ان کے کچے ذہنوں پر منفى اثر پڑے اور ناصرف وہ اپنے والدین كى تعظيم اور قدر کھو دیں بلکہ رقص و موسیقی کے غلط استعمال کی طرف بھی راغب ہوسکتے ہیں، والدین کے کچھ مباح امور ہرگز یہ معنی نہیں رکھتے کہ انہیں اولاد كے سامنے کیا جائے ۔

فقط واللہ تعالیٰ اعلم بالصواب

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Shamshi Calender (Angrezi Saal) Kab se Shuru hua aur Iske mahino ke Naam kaise Pada? New Year Ki shuruwat kab se hui?

Shamshi Calender ki tarikh.

Angrezi Mahino ke Naam kab aur kaise Pada?
1January Ya New Year Kab se Shuru hua?

Kisi Musalman ke liye Angrezi ya Arabi saal ki pahli tarikh par Jashn manana kaisa hai? 

1 January ko Naya Saal ka jashn manana aur Mubarakbad dena Musalman ke liye Jayez nahi. 

Sari Duniya angrezi saal ke aamad me jashn mana rahi hai Aatishbazi kar ke jabki Gaza me Salebi o Sahyuni Bombari karke Jashn mana raha hai?. 

اَلسَلامُ عَلَيْكُم وَرَحْمَةُ اَللهِ وَبَرَكاتُهُ‎

شمسی تقویم، تاریخ کے تناظر میں ::
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️: مســــزانصــــاری

ہر عیسوی سال کے آغاز میں مسلمانوں کا ایک خاص طبقہ فکر جب ہجری تقویم کی افادیت اور اہمیت اجاگر کرتا ہے تو چند بے وقوف عیسوی سال کی حمایت میں مختلف دلائل دیتے نظر آتے ہیں ، یہ کہ شمس و قمر اللہ ہی کے ہیں تو شمسی تقویم میں برائی کیا ہے، کیا گریگورین کیلنڈر کے آزادانہ استعمال کے حق میں دلائل دینے والے یہ بے عقل لوگ جانتے ہیں کہ یہ عیسوی تقسیم گریگورین کیلنڈر کے نام سے پوپ گریگوری ہشتم نے متعارف کرایا تھا اور کیتھولک ممالک میں یکم جنوری کو نئے سال کے طور پر از سر نو بحال کیا گیا۔
گریگورین کیلنڈر کے زیادہ تر مہینوں کے نام رومی دیوتاؤں کے ناموں اور اعزازوں میں مقرر کیے گئے۔

❶- جنوری :
جنوری کا ماخذ آگے پیچھے دو چہرے والے ایک رومن دیوتا کا نام ”جانوس“(Janus)ہے۔
(دنیائے معلومات / صفحہ : ١۶۰)

❷- فروری :
قدیم رومن باشندے 15فروری کو گناہوں سے بخشش کا دن مناتے تھے۔ اسی دن یا تہوار کا نام فیبروور(Februare) تھا۔ اسی تہوار کی نسبت سے اس کا نام فیبروری(February)پڑ گیا ۔

❸- مارچ :
مارچ کا نام قدیم رومی دیوتا مارس(Mars)کے نام کی نسبت سے رکھا گیا ہے۔

❹- اپریل :
قدیم رومی زبان میں اپریل اپریلیس کہلاتا ہے جس کا منبع ایپرائر(Aperire) ہے جس کے معنی کھلنا(open) کے ہیں۔ چونکہ اپریل میں بہار آتی ہے اسی لیے اس مہینے کا نام اپریل رکھا گیا۔

❺- مئی :
مئی کا نام قدیم روم کی دیوی میا(Maia) کے نام کی نسبت سے رکھا گیا ہے۔ جو دیوتا جیوپیٹر(Jupiter) کی بیوی تھی ۔

❻- جون :
جون قدیم روم کی سب سے بڑی دیوی کے نام پر رکھا گیا جس کا نام جونو تھا ۔

❼- جولائی :
قیصرِ روم " جولیس سیزر " 44قبل مسیح میں پیدا ہوا چنانچہ اس کے نام کے نسبت سے اس مہینے کا نام جولائی رکھ دیا گیا۔

❽- اگست :
قدیم روم میں اگست کا نام سکسٹیلیس (Sextilis) تھاجسے 8قبل مسیح میں تبدیل کرکے اس وقت کے رومی حکمران آگسٹس سیزر(قیصر روم آگسٹس) کے نام پر آگسٹ کر دیا گیا ۔

❾- ستمبر :
ستمبر لاطینی لفظ سیپٹیم(Septem)سے ماخوذ ہے۔اس مہینے میں جولیس سیزر کی حکومت قائم ہوئی تھی۔

❿- اکتوبر :
اکتوبر لاطینی لفظ اوکٹو(Octo)سے ماخوذ ہے جس کے معنی 8کے ہیں ۔

⓫- نومبر :
نومبر لاطینی لفظ نویم(Novem) سے نکلا ہے جس کے معنی 9کے ہیں ۔

⓬- دسمبر :
اکتوبر اور نومبر کی طرح دسمبرکا منبع بھی لاطینی لفظ ڈیسیم(Decem) ہے جس کے معنی 10کے ہیں۔

اسلامی ہجری تقویم میں ہفتہ کے ایام کے ناموں میں شرک، نجوم پرستی یا بت پرستی نہیں پائی جاتی جبکہ عیسوی اور دوسری تقویم میں مہینوں اور دنوں کے نام دیوتاؤں کی دیوتائی اور سیاروں کی فرمانروائی کی یاد تازہ کرنے کے لیے رکھے جاتے ہیں۔
سن ہجرت کی ابتداءکے متعلق قاضی سلیمان منصور پوری، علامہ شبلی نعمانی سے کچھ اختلافات رکھتے ہیں ” رحمة للعالمین“ میں لکھتے ہیں

” اسلام میں سنہ ہجرت کا استعمال حضرت عمر فاروق رضی اللہ عنہ کی خلافت میں جاری ہوا، جمعرات 30 جمادی الثانی 17 ہجری: مطابق 9/12 جولائی 638ءحضرت علی رضی اللہ عنہ کے مشورہ سے محرم کو حسب دستور پہلا مہینہ قرار دیا گیا۔

مزید تحقیق سے یہ معلوم ہوتا ہے کہ واقعہ ہجرت سے سنین کے شمار کی ابتداءاس سے بھی بہت پہلے ہو چکی تھی۔ ( تاریخ ابن عساکر جلد اول رسالہ التاریخ للسیوطی بحوالہ تقویم تاریخ )

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شمسی تقویم، تاریخ کے تناظر میں

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فقط واللہ تعالیٰ اعلم بالصواب

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Aasmani Kitabein Kitni hai? Quran Kis Nabi par Nazil hua? Yahudis, Christanity aur Islam.

Allah Ne Kitni Aasmani kitabein Nazil ki hai?

Aasmani kitabon ki Tadad kitni hai?

اَلسَلامُ عَلَيْكُم وَرَحْمَةُ اَللهِ وَبَرَكاتُهُ‎

اللّٰـــــہﷻ نے کتنی آسمانی کتابیں نازل فرمائی ہیں؟
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️: مســــــز انصــــــاری

گزشتہ روز وال پر شيخ الإســـــلام ابن تيميـــــة رحمـــــةاللہ تعـــــالیٰ رحمة واسعة ( كان عالما على منهج الكتاب والسنة ) کا ایک قول شئیر کیا تھا، جس میں ١۰۴ آسمانی کتابوں کا ذکر ہے

‏يقــــول شيخ الإســـــلام ابن تيميـــــة رحمـــــةاللہ تعـــــالیٰ :
أن الله أنزل مـــــــائة كتاب وأربعـــــــة كتــــب جمـــــــع علمـــــــها في الكـــتب الأربعـــــــة وجمع الكتب الأربعـــــة في الــــقرآن وجمـــــع علـــــم القـــــرآن في فاتـــــــحة الكـــــتاب وجمــــع علـــــم فاتحـــــة الكــــتاب في قـــــــوله تعـــــــالى:
{ إيَّـــــــاكَ نَعْـــــبُدُ وَإِيَّـــــاكَ نَسْـــــتَعِينُ } .

شيخ الإسلام ابن تيمية رحمةاللہ تعالیٰ نے فرمایا :

اللّــــــہﷻ نے ایک سو چار کتابیں نازل فرمائیں ⇲
ان سب کا علم چار کتابوں میں جمع کر دیا، ⇲
پھر ان چاروں کا علم قرآنِ مجید میں جمع کر دیا، ⇲
پھر پورے قرآن کا علم سورۂ فاتحہ میں سمیٹ دیا ⇲
اور سورۃ الفاتحہ کا علم اس ایک آیت میں جمع کر دیا ⇲

⇐⇐⇐《إيَّـــــاكَ نَعْـــــبُدُ وَإِيَّـــــاكَ نَسْـــــتَعِينُ》⇒⇒⇒
ہم تیری ہی عبادت کرتے ہیں اور تجھ سے ہی مدد مانگتے ہیں
【 شیخ الاسلام ابن تیمیہ رحمہ اللّٰہ || مجموع الفتاوى(22|607) 】

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بلا شبہ اللہ تعالٰی نے اپنے بندوں کی اصلاح وفلاح کے لیے مختلف انبیاء و رسل پر کتب و صحیفے نازل فرمائے ، بعض انبیاء کو مکمل کتابیں دیں اور بعض کو چھوٹے چھوٹے صحیفے عطا فرمائے، واضح رہے کہ مختصر مختصر سی چھوٹی چھوٹی کتابیں یا اوراق ، جو قرآن مجید سے پہلے اتارے گئے ، انہیں صحیفے کہتے ہیں ، مختلف مصادرِ اسلامی میں ان آسمانی کتابوں کی تعداد ١۰۴ ذکر ہے۔ نیز حضرت ابوذر غفاری سے مروی ہے اُنھوں نے کہا کہ :

" میں نے سورۃ الاعلیٰ کے نزول کے بعد رسول اﷲﷺ سے دریافت کیا کہ اﷲ تعالیٰ نے کتنی کتابیں نازل کیں تو آپ ﷺ نے فرمایا : اﷲ تعالیٰ نے ۱۰۴/ کتابوں کو نازل فرمایا ۔ ان میں سے دس صحیفے حضرت آدم پر نازل کئے، پچاس صحیفے حضرت شیث پر نازل ہوئے، تیس صحیفے حضرت ادریس پر نازل ہوئے، دس صحیفے حضرت ابراھیم پر اور چار کتابیں تورات، زبور ، انجیل اور قرآن مجید نازل ہوئے۔"
[ حیاۃِ ابراہیم : احمد شلبی ،صفحہ ۴٢٨ || قصص الانبیاء : ثعلبی ،صفحہ ١۰۶ ]

١۰۴ آسمانی کتابوں کی تعداد سے متعلق شیخ بن باز رحمہ اللہ فرماتے ہیں :

" حضرت ابو زر رضی اللہ تعالیٰ ٰ عنہ  سے مروی ایک طویل حدیث میں ان کی  تعداد ایک سو چار بیان کی گئی ہے۔جیسا کہ حافظ ابن کثیر رحمۃ اللہ علیہ  نے تفسیر میں مذکورہ آیت کے  تحت لکھا ہے "
[ فتاوی بن باز رحمہ اللہ/ جلددوم ]

لہٰذا دلائل سے ثابت ہے کہ  اللہ تعالی نے انسانوں کی اصلاح و فلاح کے لیے دنیا میں  کم و بیش ایک لاکھ چوبیس ہزار انبیاء کرام علیھم الصلوۃ والسلام مبعوث فرمائے،جن میں سے بعض  پرکتابیں نازل ہوئی اوربعض پیغمبروں کو صحیفے دیے گئے،صحیفوں کی تعدادکم وبیش ١۰۰ ہے،جن میں سے

- ١۰ صحیفے حضرت آدم علیہ السلام پراترے،
- ۵۰ صحیفے شیث علیہ السلام پر،
- ٣۰ صحیفے حضرت ادریس علیہ السلام پر
- اور ١۰ صحیفے حضرت ابراہیم علیہ السلام پراتریں،مشہور آسمانی  کتابیں چار ہيں:

ان میں سے چار مشہور کتابیں یہ ہیں جو اللہ تعالیٰ نے اپنے پیغمبروں پر نازل فرمائیں۔

١- توریت : حضرت موسیٰ علیہ السلام پر نازل کی گئی۔
٢- زبور : حضرت داؤد علیہ السلام پر نازل کی گئی۔
٣- انجیل : حضرت عیسیٰ علیہ السلام پر نازل کی گئی۔
۴- قرآن حکیم : اللہ تعالیٰ کی آخری اور افضل و اکمل کتاب ہے جو اللہ تعالیٰ نے اپنے پیارے محبوب نبی خاتم الانبیاء و المرسلین حضرت محمد صلی اللہ علیہ وسلم پر نازل ہوا ۔

فقط واللہ تعالیٰ اعلم بالصواب

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Gam, Pareshani, Musibat, Khauf aur Kamzori me Padhi jane wali Dua.

Mayusi, Kamzori, Be Qarai ko door karne ki Dua.


زیادہ سے زیادہ لوگوں تک یہ آیات پہنچائیے، اللہ تعالیٰ اس کے عوض ان شاءاللہ آپ کی زندگی میں سکون پیدا فرمائے گا ۔۔۔۔ آمین یارب العالمین

اَلسَلامُ عَلَيْكُم وَرَحْمَةُ اَللهِ وَبَرَكاتُهُ‎

غم، کمزوری، اضطراب، بے قراری اور شیطانی ارواح کے غلبہ کو دور کرنے کے لیے سکینت والی آیات :-
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ابن القیم رحمہ اللہ فرماتے ہیں :
جب کبھی شیخ الاسلام ابنِ تیمیہ رحمہ اللہ پر معاملات شدت اختیار کر لیتے (مشکلات آتیں) تو وہ آیاتِ سکینہ کی تلاوت فرماتے۔ ایک بار انہیں ایک حیرت انگیز اور ناقابل فہم واقعہ انکی بیماری میں پیش آیا جب شیطانی ارواح کمزوری کی حالت میں ان پر غالب آئیں، میں نے انہیں کہتےسنا، وہ فرماتے ہیں، "جب یہ معاملہ زیادہ زور پکڑ گیا تو میں نے اپنے رشتے داروں اور ارد گرد کے لوگوں سے کہا، "آیاتِ سکینہ پڑھو"۔ کہتے ہیں، "پھر میری یہ کیفیت ختم ہو گئی، اور میں اٹھ کر بیٹھ گیا ( ٹھیک ہو گیا) اور مجھے کوئی بیماری باقی نہ رہی"۔
اسی طرح، میں نے بھی اضطراب قلب دور کرنے کے لئے ان آیات کی تلاوت کا تجربہ کیا۔ اور حقیقتاً اس میں سکون اور اطمینان کے حوالے سے بڑی تاثیر پائی۔ سکینت اصل میں وہ اطمینان، وقار اور سکون ہے جو اللہ اپنے بندے کے دل پر اس وقت اُتارتا ہے جب وہ شدتِ خوف کی وجہ سے لاحق اضطراب کے باوجود اس سے خفا نہیں ہوتا۔ اور اِس سے اُس کے ایمان، قوتِ یقین اور مثبت سوچ میں اضافہ ہوتا ہے۔

[ دیکھیے : تہذیب مدارج السالکین از ابن القیّم رحِمهُ اللّٰه (باب: منزلة السکینة، ج: 2، ص: 502) ]

آیات سکینۃ یہ ہیں:
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❶- ( وَقَالَ لَهُمْ نِبِيّهُمْ إِنّ آيَةَ مُلْكِهِ أَن يَأْتِيَكُمُ التّابُوتُ فِيهِ سَكِينَةٌ مّن رّبّكُمْ وَبَقِيّةٌ مّمّا تَرَكَ آلُ مُوسَىَ وَآلُ هَارُونَ تَحْمِلُهُ الْمَلآئِكَةُ إِنّ فِي ذَلِكَ لاَيَةً لّكُمْ إِن كُنْتُـم مّؤْمِنِينَ)
[البقرة: 248]
⓵- اور ان کے نبی نے ان سے فرمایا کہ اس کی بادشاہت کی علامت یہ ہو گی کہ تمہارے پاس وہ تابوت (واپس) آجائے گا جس میں تمہارے رب کی طرف سے تسکین بھی ہے اور آل موسیٰ اور آلِ ہارون کے چھوڑے ہوئے بقیہ جات بھی ہیں جسے فرشتے اٹھائے ہوئے ہوں گے۔ یقینا اس میں تمہارے لیے ایک (بڑی) نشانی ہے اگر تم ایمان لانے والے ہو۔ [البقرہ : 248]

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❷- ( ثُمّ أَنَزلَ اللّهُ سَكِينَتَهُ عَلَىَ رَسُولِهِ وَعَلَى الْمُؤْمِنِينَ وَأَنزَلَ جُنُوداً لّمْ تَرَوْهَا وَعذّبَ الّذِينَ كَفَرُواْ وَذَلِكَ جَزَآءُ الْكَافِرِينَ)
[التوبة:26]

⓶- پھر اللہ (سبحانہ و تعالیٰ) نے اپنے رسول اور مومنوں پر اپنی سکینت نازل کی اور ایسے لشکر بھیجے جنہیں تم نہیں دیکھ سکتے تھے، اور کافروں کو عذاب دیا، اور کافروں کا یہی بدلہ ہے [التوبہ : 26]

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❸- ( إِلاّ تَنصُرُوهُ فَقَدْ نَصَرَهُ اللّهُ إِذْ أَخْرَجَهُ الّذِينَ كَفَرُواْ ثَانِيَ اثْنَيْنِ إِذْ هُمَا فِي الْغَارِ إِذْ يَقُولُ لِصَاحِبِهِ لاَ تَحْزَنْ إِنّ اللّهَ مَعَنَا فَأَنزَلَ اللّهُ سَكِينَتَهُ عَلَيْهِ وَأَيّدَهُ بِجُنُودٍ لّمْ تَرَوْهَا وَجَعَلَ كَلِمَةَ الّذِينَ كَفَرُواْ السّفْلَىَ وَكَلِمَةُ اللّهِ هِيَ الْعُلْيَا وَاللّهُ عَزِيزٌ حَكِيمٌ)
[التوبة:40]

⓷- اگر تم اسکی مدد نہیں کرو گے تو اللّٰہ (سبحانہ وتعالیٰ) اسکی مدد اسوقت بھی کر چکے ہیں جب انہیں کافروں نے نکال دیا تھا، جب وہ ان دو میں سے ایک تھا۔ جب وہ دونوں غار میں تھے، اسوقت وہ اپنے ساتھی سے کہہ رہا تھا "غم نہ کرو، بے شک اللہ ہمارے ساتھ ہے"، تو اللّٰہ نے اس پر اپنی سکینت اتار دی اور نظر نہ آنے والے لشکروں کے ذریعے اس کی مدد فرمائی اور کافروں کی بات کو پست کر دکھایا اور اللہ ہی کی بات بلند ہے اور اللّٰہ بہت زبردست، خوب حکمت والا ہے [التوبہ : 40]

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❹- ( هُوَ الّذِيَ أَنزَلَ السّكِينَةَ فِي قُلُوبِ الْمُؤْمِنِينَ لِيَزْدَادُوَاْ إِيمَاناً مّعَ إِيمَانِهِمْ وَلِلّهِ جُنُودُ السّمَاوَاتِ وَالأرْضِ وَكَانَ اللّهُ عَلِيماً حَكِيماً )
[الفتح:4]

⓸- وہی ذات ہے جس نے مومنوں کے دلوں میں سکینت اتاری تاکہ وہ اپنے ایمان میں اضافہ کریں اور اللّٰہ ہی کے لیے زمین و آسمان کے لشکر ہیں اور اللّٰہ تعالیٰ بہت علم والا، خوب حکمت والا ہے [الفتح : 4]

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❺- ( لّقَدْ رَضِيَ اللّهُ عَنِ الْمُؤْمِنِينَ إِذْ يُبَايِعُونَكَ تَحْتَ الشّجَرَةِ فَعَلِمَ مَا فِي قُلُوبِهِمْ فَأنزَلَ السّكِينَةَ عَلَيْهِمْ وَأَثَابَهُمْ فَتْحاً قَرِيباً )
[الفتح:18]

⓹- اللہ تعالیٰ ان مومنین سے اسی وقت راضی ہو چکا تھا جب وہ درخت کے نیچے بیعت کر رہے تھے، وہ ان کے دلوں کے حال سے واقف تھا، پھر اس نے ان پر سکینت اتاری اور قریبی فتح سے ہم کنار کیا [الفتح : 18]

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❻-( إِذْ جَعَلَ الّذِينَ كَفَرُواْ فِي قُلُوبِهِمُ الْحَمِيّةَ حَمِيّةَ الْجَاهِلِيّةِ فَأَنزَلَ اللّهُ سَكِينَتَهُ عَلَىَ رَسُولِهِ وَعَلَى الْمُؤْمِنِينَ وَأَلْزَمَهُمْ كَلِمَةَ التّقْوَىَ وَكَانُوَاْ أَحَقّ بِهَا وَأَهْلَهَا وَكَانَ اللّهُ بِكُلّ شَيْءٍ عَلِيماً )
[الفتح:26]

⓺- جب کافروں نے اپنے دلوں میں جاہلیت والی ضد پال لی تو اللّٰہ تعالیٰ نے اپنے رسول اور مومنوں پر اپنی سکینت اتاری اور انکو تقوی کی بات پر جما دیا جس کے وہ سب سے زیادہ حقدار اور اہل تھے، اور اللّٰہ ہر چیز کو خوب جاننے والا ہے [الفتح : 26]

فقط واللہ تعالیٰ اعلم بالصواب

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Islamic History: Karbala ke jung ke Bad Jung-E-Hurra kyo hua? Yazeed ki fauj ne Auraton ke sath kya kiya?

Karbala ke Jung ke bad dusra sabse bada Jung kaun sa tha?

Kya Yazeed ke Hukm se Madina me khwateen ki izzat looti gayi?
Kya Yazeed ne Makka par hamla kar ke Baitullah Jalaya?
Yazeed ke bare me Musalmano ka Khyal kya hona Chahiye?


آج کے سلسلہ میں ہم پڑھیں گے کہ
سانحہ کربلا کے بعد  دوسرا بڑا سانحہ حرہ کیسے پیش آیا؟
کیا یزید کے حکم سے مدینہ میں خواتین کی عصمت دری کی گئی؟
کیا یزید نے مکہ پر حملہ کر کے بیت اللہ جلایا؟
یزید کے بارے ہمارا مؤقف کیا ہونا چاہیے؟
اور آخر پر باغی تحریک نے کیا حکمت عملی اختیار کی؟؟
"سلسلہ سوال و جواب نمبر-215"
سوال_یزید کے دور حکومت میں پیش آنے والا سانحہ حرہ اور بیت اللہ پر حملہ کی کیا حقیقت ہے؟ یزید کے بارے ہمارا مؤقف کیا ہونا چاہیے؟ نیز اسکے بعد باغی تحریک نے کیا حکمت عملی اختیار کی؟

Published Date: 2-3-2019

*جیسا کہ آپ جانتے ہیں کہ ہر جمعہ کے دن ہم تاریخ اسلام کے مشہور واقعات اور صحابہ کرام رضوان اللہ علیہم اجمعین پر کیے جانے والے اعتراضات اور انکے جوابات پڑھتے ہیں،پچھلے سلسلہ جات نمبر

*87٫88،92٫96٫102 131،133٫134، 139،145،151،156,166

*میں سب سے پہلے ہم نے تاریخ کو پڑھنے اور اور جانچنے کے کچھ اصول پڑھے پھر یہ پڑھا کہ خلافت کی شروعات کیسے ہوئی؟ اور خلیفہ اول حضرت ابوبکر صدیق رض کی خلافت اور ان پر کیے جانے والے اعتراضات کا جائزہ لیا، اور یہ بھی پڑھا کہ واقعہ فدک کی حقیقت کیا تھی؟ اور یہ بھی پڑھا کہ حضرت عمر فاروق رض کو کس طرح خلیفہ ثانی مقرر کیا گیا،اور حضرت عمر فاروق رض کے دور حکومت کے کچھ اہم مسائل کے بارے پڑھا ،کہ انکے دور میں فتنے کیوں نہیں پیدا نہیں ہوئے اور ،حضرت خالد بن ولید رض کو کن وجوہات کی بنا پر سپہ سالار کے عہدہ سے ہٹا کر ابو عبیدہ رض کی کمانڈ میں دے دیا،اور خلیفہ دوئم کی شہادت کیسے ہوئی، اور پھر سلسلہ 133٫134 میں ہم نے پڑھا کہ تیسرے خلیفہ راشد کا انتخاب کیسے ہوا؟اور کیا حضرت علی رضی اللہ عنہ نے بیعت نہیں کی تھی؟اور کیا حضرت علی رضی اللہ عنہ کے ساتھ اس موقع پر بے انصافی ہوئی؟ اور دور عثمانی کی باغی تحریک کیسے وجود میں آئی؟ انہوں نے کس طرح عثمان رض کو شہید کیا اور صحابہ کرام نے عثمان رض کا دفاع کیسے کیا؟اور پھر سلسلہ نمبر-139 میں ہم نے پڑھا کہ باغی تحریک نے کس طرح عثمان غنی رض پر الزامات لگائے اور انکی حقیقت بھی جانی،  اور پھر سلسلہ_145 میں ہم نے پڑھا کہ عثمان غنی رض کو شہید کرنے کے بعد فوراً صحابہ نے باغیوں سے بدلہ کیوں نا لیا؟ چوتھے خلیفہ راشد کا انتخاب کیسے ہوا؟*
*کیا صحابہ کرام سے زبردستی بیعت لی گئی؟اور کیا علی رض  باغیوں سے بدلہ لینے کے حق میں نہیں تھے؟اور کیا علی (رض) نے عثمان رض کے قاتلوں کو خود حکومتی عہدے دیے تھے؟ اس ساری تفصیل کے بعد سلسلہ نمبر-151 میں ہم نے جنگ جمل کے بارے پڑھا کہ وہ جنگ* *باغیوں کی منافقت اور دھوکے کہ وجہ سے ہوئی تھی، جس میں باغیوں کی کمر تو ٹوٹی مگر ساتھ میں بہت سے مسلمان بھی شہید ہوئے، اور پھر سلسلہ نمبر_156 میں ہم نے جنگ صفین کے بارے پڑھا کہ جنگ صفین کیسے ہوئی،اسکے اسباب کیا تھے، اور پھر مسلمانوں کی صلح کیسے ہوئی اور پھر سلسلہ نمبر-166 میں ہم نے جنگ صفین کے بعد واقع تحکیم یعنی مسلمانوں میں صلح کیسے ہوئی، کون سے صحابہ فیصلہ کرنے کے لیے حکم مقرر کیے گئے اور حضرت علی و معاویہ رضی اللہ عنھما کے مابین تعلقات کیسے تھے،*
*اور پھر پچھلے سلسلہ نمبر-171 میں ہم نے  یہ پڑھا کہ خوارج کیسے پیدا ہوئے اور باغی جماعت میں گروپنگ کیسے ہوئی؟
خوارج کا نقطہ نظر کیا تھا؟*
*حضرت علی نے خوارج سے کیا معاملہ کیا؟خوارج سے جنگ کے نتائج کیا نکلے؟اور بالآخر مصر کی باغی پارٹی کا کیا انجام ہوا؟*
*اور سلسلہ نمبر 176 میں ہم نے پڑھا کہ حضرت علی (رض) کیسے شہید ہوئے؟ حضرت علی (رض) کی شہادت کے وقت صحابہ کرام اور باغیوں کے کیا حالت تھی؟حضرت علی( رض) کی شہادت پر صحابہ کے تاثرات کیا تھے؟حضرت علی(رض) کے دور میں فرقوں کا ارتقاء کیسے ہوا؟حضرت علی (رض) کی خلافت کس پہلو سے کامیاب رہی؟حضرت علی (رض) کے دور میں بحران کیوں نمایاں ہوئے؟ اور اسی طرح سلسلہ نمبر 181 میں ہم نے پڑھا کہ حضرت علی رض کی شہادت کے بعد خلیفہ کون بنا؟ حضرت حسن اور معاویہ رض کا اتحاد کن حالات میں ہوا؟
اس کے کیا اسباب تھے اور اس کے نتائج کیا نکلے؟اور کیا معاویہ رض نے زبردستی اقتدار پر قبضہ کیا تھا؟اور حضرت معاویہ کی کردار کشی کیوں کی گئی؟ معاویہ پر کیا الزامات عائد کیے گئے اور ان کا جواب کیا ہے؟ اور حضرت معاویہ نے قاتلین عثمان کی باغی پارٹی کے ساتھ کیا معاملہ کیا؟سلسلہ نمبر-188 میں ہم نے پڑھا کہ کس طرح باغی راویوں نے جھوٹی روایتوں سے یہ مشہور کر دیا کہ حضرت امیرمعاویہ (رض) خود بھی حضرت علی (رض) پر سب وشتم کرتے اور اپنےگورنروں سے بھی کرواتے تھے، اور سلسلہ نمبر-194 میں ہم نے استلحاق کی حقیقت جانی،اور پھر سلسلہ نمبر-197 میں ہم نے پڑھا کہ باغی راویوں نے امیر معاویہ رض پر جو الزامات لگائے انکی کیا حقیقت تھی؟ جیسے کہ کیا حضرت امیر معاویہ (رض ) کے گورنر رعایا پر ظلم کرتے تھے؟اور کیا معاویہ (رض) نے عمار (رض) کا سر کٹوایا تھا؟اور یہ بھی پڑھا کہ کیا واقعی حضرت معاویہ رض نے حسن (رض) سمیت سیاسی مخالفین کو زہر دلوایا تھا؟اور پچھلے سلسلہ نمبر-201 میں ہم نے پڑھا کہ کیا حضرت امیر معاویہ رض نے اپنے بیٹے یزید کو ولی عہد نامزد کر کے خلافت کو ملوکیت میں تبدیل کر دیا تھا؟*اور کیا یزید کو مشورے کے بنا زبردستی ولی عہد مقرر کیا گیا؟اور کیا یزید بے نماز،شرابی اور ہم جنس پرست تھا؟ اور پھر پچھلے سلسلہ نمبر 205 میں ہم نے پڑھا  کہ کیا بنو ہاشم اور بنو امیہ ایک دوسرے کے دشمن تھے؟ اور حضرت علی(رض)کی بنو امیہ کے بارے کیا رائے تھی؟اور کیا معاویہ (رض) نے غزوہ بدر کا انتقام جنگ صفین کی صورت میں لیا؟اور کیا معاویہ(رض) نے بنو امیہ کا اقتدار مضبوط کرنے کے لیے زیادہ حکومتی عہدے اپنے لوگوں کو دیے؟اور یہ کہ معاویہ(رض) کا دور حکومت خلافت کا دور تھا یا ملوکیت کا؟اور یہ بھی پڑھا کہ کیا خلافت صرف حضرت علی(رض)  تک قائم رہی؟اور  سلسلہ نمبر-208 میں ہم نے معاویہ (رض ) کے فضائل و مناقب صحیح حدیث سے پڑھے، اور ناقدین کے اعتراضات کا جواب بھی دیا ،آپکے شاندار  کارنامے پڑھے اور آخر پر یہ بھی پڑھا کہ صحابہ کرام کی آپکے بارے کیا رائے تھی؟* اور پچھلے سلسلہ نمبر-211 میں ہم نے پڑھا کہ حضرت حسین رضی اللہ عنہ کے اقدام کی اصل نوعیت کیا تھی؟سانحہ کربلا کیسے وقوع پذیر ہوا؟ سانحہ کربلا کا ذمہ دار کون تھا؟سانحہ کربلا کے کیا نتائج امت مسلمہ کی تاریخ پر مرتب ہوئے؟دیگر صحابہ نے حضرت حسین رضی اللہ عنہ کے ساتھ شمولیت اختیار کیوں نہ کی؟یزید نے قاتلین حسین کو سزا کیوں نہ دی؟شہادت عثمان کی نسبت شہادت حسین پر زیادہ زور کیوں دیا گیا؟ اور سانحہ کربلا کے بارے میں بعد کی صدیوں میں کیا رواج پیدا ہوئے؟

آج کے سلسلہ میں ہم پڑھیں گے کہ
سانحہ کربلا کے بعد  دوسرا بڑا سانحہ حرہ کیسے پیش آیا؟
کیا یزید کے حکم سے مدینہ میں خواتین کی عصمت دری کی گئی؟
کیا یزید نے مکہ پر حملہ کر کے بیت اللہ جلایا؟
یزید کے بارے ہمارا مؤقف کیا ہونا چاہیے؟
اور آخر پر باغی تحریک نے کیا حکمت عملی اختیار کی؟؟

*سانحہ حرہ*

یزید کے دور میں تین افسوسناک سانحے ہوئے: سانحہ کربلا، سانحہ حرہ اور مکہ مکرمہ پر حملہ۔ 

سانحہ کربلا کے بعد  اب ہم سانحہ حرہ کی تفصیلات بیان کرتے ہیں اور دیکھتے ہیں کہ یہ واقعہ کیسے پیش آیا۔  ہمارے ہاں اردو کتب تاریخ میں اس معاملے میں بڑا مبالغہ  کیا گیا ہے کہ سرکاری فوج نے مدینہ منورہ پر حملہ کیا ، ہزاروں لوگوں کو قتل کیا اور خواتین کی عصمت دری کی جبکہ حقیقت اس سے مختلف ہے۔ 

تاریخ طبری میں اس سانحے کی تقریباً تمام  تفصیلات  ابو مخنف ہی کی بیان کر دہ ہیں۔ ابو مخنف کی روایت کے مطابق ہوا یوں کہ یزید نے ایک اموی نوجوان عثمان بن محمد بن ابی سفیان کو مدینہ منورہ کا گورنر بنا کر بھیجا۔ یہ ناتجربہ کار تھے اور حکومتی معاملات کو صحیح طرح سنبھال نہ پائے۔ اس پر اہل مدینہ کا ایک وفد یزید کے پاس روانہ ہوا۔ اس کے بعد جو ہوا، وہ ابو مخنف کی زبانی سنیے:

ذكر لوط بن يحيى، عن عبد الملك بن نوفل ابن مساحق، عن عبد الله بن عروة: ۔۔۔ اہل مدینہ نے ایک وفد یزید کے پاس روانہ کیا۔ اس میں عبداللہ بن حنظلہ انصاری غسیل الملائکہ رضی اللہ عنہ، عبداللہ بن عمرو مخزومی، منذر بن زبیر اور بہت سے لوگ اشراف مدینہ  سے ان کے ساتھ تھے۔ یہ لوگ یزید کے پاس آئے تو وہ اکرام و احسان سے پیش آیا۔ سب کو انعام  و اکرام دیا۔ وہاں سے سوائے منذر بن زبیر کے، یہ سب لوگ مدینہ چلے گئے جبکہ منذر بصرہ میں ابن زیاد کے پاس چلے گئے۔ انہیں بھی یزید نے ایک لاکھ درہم انعام دیا تھا۔

(جو لوگ مدینہ آئے) انہوں نے اہل مدینہ کے سامنے یزید کو سب و شتم شروع کردیا اور کہا: "ہم ایسے شخص کے پاس سے آئے ہیں، جو کوئی دین نہیں رکھتا، شراب پیتا ہے، ساز بجاتا ہے اور اس کی صحبت میں گلو کارائیں گاتی ہیں۔ کتوں سے کھیلتا ہے، لفنگوں اور لونڈیوں کے ساتھ اٹھتا بیٹھتا ہے۔ آپ لوگ گواہ رہیں کہ ہم نے اسے خلافت سے معزول کیا۔ یہ سن کر کچھ اور لوگ بھی ان کے ساتھ مل گئے۔ ۔۔

یزید کو خبر ہوئی کہ وہ اس کے بارے میں یہ پراپیگنڈا کر رہے ہیں تو وہ کہنے لگا: "یا اللہ! میں نے تو ان کے ساتھ احسان کیا اور ان لوگوں نے جو کچھ کیا، وہ بھی آپ کے سامنے ہے۔ " پھر اس نے ان لوگوں کے جھوٹ اور قطع رحمی کا ذکر کیا،
(طبری _ 4/252 - 253)

ابو مخنف کے بیان کے مطابق اب یزید نے حضرت نعمان بن بشیر انصاری رضی اللہ عنہما کو مدینہ بھیجا جنہوں نے اہل مدینہ کو سمجھایا کہ وہ بغاوت نہ کریں تاہم انہوں نے اس سے انکار کر دیا۔
سن 63ھ/ع683 میں ایک ہزار کے قریب آدمیوں نے بغاوت کر دی اور مدینہ میں موجود بنو امیہ پر حملہ کر دیا۔ یہ اموی مروان بن حکم کے گھر میں اکٹھے ہوئے تو ان لوگوں نے ان کا محاصرہ کر لیا۔ بنو امیہ نے یزید کو خط لکھ کر آگاہ کیا۔
(طبری ۔ 4/1-254)

اس کے بعد یزید نے مسلم بن عقبہ کی سرکردگی میں ایک فوج مدینہ کی طرف بھیجی جس نے ایک مختصر سی لڑائی کے بعد اس بغاوت پر قابو پا لیا۔

*سانحہ حرہ کے موقع پر اکابر صحابہ کا کردار کیا تھا؟*

اس بغاوت کے موقع پر اکابر صحابہ نے اس سے علیحدگی اختیار کی اور اسے اچھی نظر سے نہ دیکھا۔

صحیح بخاری میں حضرت عبداللہ بن عمر رضی اللہ عنہما کے بارے میں نقل ہوا ہے:
نافع بیان کرتے ہیں کہ جب اہل مدینہ (کے بعض لوگوں نے) یزید بن معاویہ کے خلاف بغاوت کی تو ابن عمر رضی اللہ عنہما نے اپنے ساتھیوں اور اولاد کو جمع کر کے فرمایا: "میں نے نبی صلی اللہ علیہ وسلم کو فرماتے سنا ہے کہ 'قیامت کے دن ہر معاہدہ توڑنے والے کے لیے ایک جھنڈا نصب کیا جائے گا۔' ہم لوگ اللہ اور رسول کے نام پر اس شخص  (یزید) کی بیعت کر چکے ہیں۔میں نہیں جانتا کہ اللہ اور رسول کے نام پر کی گئی بیعت کو توڑنے  اور بغاوت کرنے سے بڑھ کر کوئی معاہدے کی خلاف ورزی ہو سکتی ہے۔  ہر ایسا شخص جو اس بیعت سے الگ ہو جائے  اور اس معاملے (بغاوت) کا تابع ہو جائے،  تو اس کے اور میرے درمیان علیحدگی ہے۔
(بخاری، کتاب الفتن، حدیث 7111)

حضرت محمد بن علی  رضی اللہ عنہما کے بارے میں روایت ہے کہ  واقعہ حرہ  کے موقع پر عبداللہ بن مطیع اور ان کے ساتھی حضرت محمد بن علی رحمہ اللہ کے پاس گئے اور ان سے کہا:

"ہمارے ساتھ نکلیے کہ ہم یزید سے جنگ کریں۔‘‘ محمد بن علی نے ان سے کہا: ’’کس بات پر میں اس سے جنگ کروں اور  اسے منصب خلافت سے ہٹاؤں؟‘‘ وہ بولے: ’’وہ کفر اور فسق و فجور میں مبتلا ہے، شراب پیتا ہے اور دین کے معاملے میں سرکشی کرتا ہے۔"

اس کے جواب میں انہوں نے فرمایا: "کیا آپ لوگ اللہ سے نہیں ڈرتے۔ کیا آپ میں سے کسی نے اسے ایسا کرتے دیکھا ہے جو آپ ذکر کر رہے ہیں۔ میں اس کے پاس رہا ہوں اور میں نے اس میں کوئی برائی نہیں دیکھی۔" وہ کہنے لگے: ’’اس نے آپ کو اپنے اعمال کی خبر نہ ہونے دی ہو گی۔‘‘ محمد بن علی نے فرمایا: ’’تو کیا اس نے آپ لوگوں کو خبر کر کے یہ برائیاں کی ہیں؟ اس صورت میں تو آپ بھی اس کے ساتھی رہے ہوں گے۔ اگر اس نے آپ کو نہیں بتایا تو پھر تو آپ لوگ بغیر علم کے گواہی دینے چل پڑے ہیں۔‘‘

ان لوگوں کو یہ خوف ہوا کہ محمد بن علی کے بیٹھ رہنے سے لوگ (بغاوت کے لیے اٹھنے پر) آمادہ نہ ہوں گے۔ انہوں نے ان کو پیشکش کی کہ اگر آپ ابن زبیر کی بیعت نہیں کرنا چاہتے تو ہم آپ کی بیعت کرنے کو تیار ہیں۔ ‘‘ انہوں نے فرمایا: ’’میں نہ تو لیڈر بن کر جنگ کرنا چاہتا ہوں اور نہ ہی پیروکار بن کر۔‘‘ وہ بولے: ’’آپ نے اپنے والد (علی) کے ساتھ مل کر بھی تو جنگ کی تھی؟‘‘ انہوں نے فرمایا: ’’آج کل کون میرے والد جیسا ہے؟‘‘

ان لوگوں نے جبر کر کے محمد بن علی کو نکالا اور ان کے مسلح بیٹے ان کے ساتھ تھے ۔ انہوں نے گلابی رنگ کی جوتی پہن رکھ تھی اور کہہ رہے تھے: ’’اے قوم! اللہ سے ڈرو اور خون مت بہاؤ۔ ‘‘ جب ان لوگوں نے دیکھا کہ  آپ کسی لیڈری پر تیار نہیں ہیں تو انہیں چھوڑ دیا۔
( بلاذری۔ انساب الاشراف۔ 3/471۔ باب محمد بن حنفیہ)

حضرت زین العابدین  بن حسین رضی اللہ عنہما نے  نہ صرف بغاوت سے علیحدگی اختیار کی بلکہ بنو امیہ کی مدد بھی کی۔ 

طبری کی روایت یہ ہے:
قال عبد الملك بن نوفل: حدثني حبيب:

بنو امیہ  جب شام کی طرف روانہ ہوئے تو مروان بن حکم کی اہلیہ  عائشہ بنت عثمان بن عفان رضی اللہ عنہما نے مروان کے تمام ساز و سامان کے ساتھ علی بن حسین رضی اللہ عنہما کے یہاں آ کر  پناہ لی تھی۔

وقد حدثت عن محمد بن سعد، عن محمد بن عمر، قال: 
بنو امیہ  مدینہ سے نکالے گئے تو مروان نے ابن عمر رضی اللہ عنہما سے کہا: "میرے اہل و عیال کو آپ اپنے پاس چھپا لیجیے۔" انہوں نے (کسی وجہ سے) منع کر دیا۔ علی بن حسین رضی اللہ عنہما سے مروان نے کہا: "میں آپ کا رشتے دار ہوں۔ میرے اہل بیت کو اپنے اہل بیت کے ساتھ رکھ لیجیے۔"  تو انہوں نے اسے منظور کر لیا۔  مروان نے اپنے اہل و عیال کو علی بن حسین کے گھر بھیج دیا۔ یہ ان لوگوں کو اپنے اہل و عیال کے ساتھ لے کر ینبوع چلے آئے اور وہیں سب کو رکھا۔ مروان ان کا شکر گزار تھا اور ان دونوں میں بہت پرانی محبت تھی۔

علی بن حسین کی کچھ زمین مدینہ کے قریب تھی اور (بغاوت کے وقت) وہ شہر سے نکل کر یہیں گوشہ نشین ہو گئے تھے تاکہ وہاں کے کسی معاملے میں شریک نہ ہوں۔ عائشہ (مروان کی اہلیہ جو ان کے گھر پناہ گزین تھیں) جب طائف جانے لگیں تو آپ نے کہا: "میرے بیٹے عبداللہ کو اپنے ساتھ طائف لیتی جائیے۔ " عائشہ اپنے ساتھ عبداللہ کو طائف لے آئیں اور اپنے ہی پاس اس وقت تک رکھا جب تک کہ اہل مدینہ  کا معاملہ ٹھنڈا نہ پڑ گیا۔
( طبری۔ 4/1-256)

*اس سے یہ بھی معلوم ہوتا ہے کہ مروان کی جانب سے حضرت علی رضی اللہ عنہ پر سب و شتم کی روایات بھی جعلی ہیں ورنہ یہ کیسے ممکن ہے کہ مروان تو حضرت علی کو معاذ اللہ گالیاں دیتے ہوں اور ان کے پوتے حضرت زین العابدین رحمہ اللہ، کی مروان سے پرانی محبت چلی آ رہی ہو اور وہ بنو امیہ کی اس درجے میں مدد کریں؟*

*کیا مدینہ منورہ کو تین دن کے لیے مباح کیا گیا؟*

طبری میں واقعہ حرہ کی تمام تر روایات ابو مخنف اور ہشام کلبی کی روایت کردہ ہیں جن کا بنو امیہ سے بغض اور تعصب مشہور ہے۔ اس وجہ سے ان کی بیان کردہ ان تفصیلات پر اعتماد  نہیں کیا جا سکتا ہے کہ  جن میں انہوں نے ظلم کو بنو امیہ کی طرف منسوب کیا ہے۔  یہ لوگ بیان کرتے ہیں کہ بغاوت پر قابو پا لینے کے بعد مدینہ منورہ کو تین دن تک کے لیے مباح کر دیا گیا، شہریوں کا مال لوٹا گیا اور لوگوں کو بے جا قتل کیا گیا۔ اگر ایسا ہوا ہوتا تو یہ کوئی معمولی واقعہ نہ تھا۔ پھر اس کا بیان کرنے والا اکیلا ابو مخنف نہ ہوتا بلکہ اور بھی بہت سے لوگ اسے بیان کر رہے ہوتے۔ اس سے معلوم ہوتا ہے کہ یہ تفصیلات بھی بنو امیہ کے خلاف اس پراپیگنڈے کا حصہ تھیں جو ان کی حکومت کو گرانے کے لیے کیا گیا۔ ممکن ہے کہ سرکاری فوجوں نے کچھ زیادتیاں کی ہوں لیکن اس بارے میں یقین کے ساتھ کوئی بات نہیں کہی جا سکتی ہے کیونکہ ان روایات کا راوی صرف ایک ہی شخص ہے اور وہ ناقابل اعتماد ہے۔ 

رہی یہ بات کہ تین دن کے لیے مدینہ شہر میں فوجیوں نے ہزاروں  خواتین کو ریپ کیا  اور  اس کے نتیجے میں ایک ہزار خواتین حاملہ ہوئیں، ایسی بے بنیاد بات ہے کہ ابو مخنف کو بھی اس کا خیال نہیں آیا۔ اگر اس میں کچھ بھی حقیقت ہوتی، تو جہاں ابو مخنف نے ڈھیروں دوسری روایتیں  وضع کی ہیں، وہاں اس کو وہ کیسے چھوڑ دیتا؟ پھر اگر یہ واقعہ ہوا ہوتا تو ہر ہر شہر میں یزید کے خلاف بغاوت اٹھتی جاتی۔ عربوں کے بارے میں تو دور جاہلیت میں بھی یہ گمان مشکل ہے کہ ان کی خواتین پر کوئی ہاتھ ڈالے تو وہ خاموشی سے دیکھتے رہیں کجا یہ کہ دور اسلام میں ایسا ہو ، اور پھر صحابہ کرام کی عزتیں ہوں اور سب لوگ تماشا دیکھتے رہیں۔ 
آج کے دور میں اگر کوئی صحابہ کے بارے بری بات کر دے، تو لوگ جان لینے تک چلے جاتے ہیں کیا اس وقت عزتوں سے کھیلا گیا اور لوگ برداشت کرتے رہے؟؟
نعوذباللہ کیا صحابہ میں غیرت نہیں تھی؟؟
خدا کی پناہ ایسےجھوٹ گھڑنے والوں سے،

ان باتوں کی کوئی حقیقت نہیں ہے حتی کہ ابو مخنف جو جھوٹ گھڑنے میں ماہر ہے اس نے بھی انہیں بیان  نہیں کیا ہے۔

  یہ روایت ابن کثیر (701-774/1301-1372)نے مدائنی (135-225/752-840)کے حوالے سے البدایہ و النہایہ میں درج کی ہے اور ساتھ واللہ اعلم لکھ کر اس واقعے سے متعلق شک کا اظہار کیا ہے۔
  مدائنی نے بھی اس کی سند یہ بیان کی ہے: قال المدائني عن أبي قرة قال۔

اب معلوم نہیں کہ یہ ابو قرۃ کون صاحب ہیں اور کس درجے میں قابل اعتماد ہیں۔  اور وہ خود واقعہ حرہ کے ساٹھ سال بعد پیدا ہوئے۔ وہ واقعے کے عینی شاہد نہیں تھے۔  اگر یہ خواتین اس طرح ریپ ہوئی ہوتیں  اور اس کے نتیجے میں ایک ہزار ولد الحرام پیدا ہوئے ہوتے تو انساب کی کتابوں میں تو اس کا ذکر ملتا کہ یہ وہ لوگ ہیں جن کے باپ کا نام معلوم نہیں ہے لیکن ایسا کچھ نہیں ہے۔ ابن کثیر  نے بھی اس روایت کو محض  نقل کیا ہے اور اس پر اپنے شکوک و شبہات کا اظہار کیا ہے۔

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*مکہ مکرمہ پر حملہ کیسے ہوا؟*

مکہ مکرمہ میں اس وقت حضرت عبداللہ بن زبیر رضی اللہ عنہما موجود تھے جنہوں نے یزید کی بیعت نہ کی تھی مگرا نہوں نے اپنی خلافت کا اعلان بھی نہ کیا تھا۔  مدینہ منورہ سے فارغ ہو کر مسلم بن عقبہ کا یہ لشکر مکہ مکرمہ کی طرف بڑھا۔  اس وقت تک 64ھ/ع684 کا آغاز ہو چکا تھا۔ راستے میں مسلم کے مرنے کے بعد حصین بن نمیر اس لشکر کا سربراہ بنا۔ اس لشکر نے آ کر مکہ مکرمہ کا محاصرہ کر لیا جو کہ 40 یا بروایت دیگر 64 دن جاری رہا۔  فریقین کے درمیان کچھ جھڑپیں بھی ہوئیں۔ اس زمانے میں خانہ کعبہ کا غلاف جل گیا۔ 

*اس معاملے میں طبری نے دو متضاد روایتیں نقل کی ہیں:*

·   ایک روایت کے مطابق سرکاری فوج نے منجنیق سے  خانہ کعبہ پر پتھر پھینکے جس سے اس کا غلاف جل گیا۔ یہ ہشام کلبی کی روایت ہے۔

·  دوسری روایت کے مطابق لوگ رات کو آگ جلاتے  تھے۔ اس کی کچھ چنگاریاں ہوا سے اڑ کر خانہ کعبہ پر پڑیں جس سے اس کا غلاف جل گیا۔ یہ روایت  محمد بن عمر الواقدی نے بیان کی ہے۔

ان دونوں مورخین کے بارے میں  مشہور ہے کہ یہ دونوں جھوٹی روایتیں بیان کرتے ہیں۔ اللہ تعالی ہی بہتر جانتا ہے کہ حقیقت کیا تھی؟

ربیع الاول 64/684 میں محاصرہ ابھی جاری تھا کہ یزید کے مرنے کی اطلاع  مکہ پہنچی۔  یہ سن کر جنگ بندی ہو گئی اور  سرکاری فوج کے کمانڈر حصین بن نمیر نے حضرت عبداللہ بن زبیر رضی اللہ عنہما سے ملاقا ت کی۔ ہشام کلبی نے اس واقعے کو یوں بیان کیا ہے:

وأما عوانة بن الحكم فإنه قال - فيما ذكر هشام، عنه:
  ابن نمیر نے  یہ سن کر ابن زبیر رضی اللہ عنہما کو کہلا بھیجا کہ آج رات مجھ سے مقام ابطح میں ملیے۔ دونوں اکٹھے ہوئے تو حصین بن  نمیر نے کہا: "اگر یزید فوت ہو گیا ہے تو آپ سے زیادہ کوئی خلافت کا حق دار نہیں ہے۔ آئیے! ہم آپ کی بیعت کر لیتے ہیں۔ اس کے بعد آپ میرے ساتھ چلیے۔ یہ لشکر جو میرے ساتھ ہے، اس میں شام کے تمام رؤساء اور سردار شامل ہیں۔ واللہ! دو افراد بھی آپ کی بیعت سے انکار نہیں کریں گے۔ شرط یہ ہے کہ آپ سب کو امان دے کر مطمئن کر دیجیے۔ ہمارے اور آپ کے درمیان اور ہمارے اور اہل حرہ کے درمیان جو خونریزی ہوئی ہے، اس سے چشم پوشی کیجیے۔

ہشام کلبی کے بیان کے مطابق حضرت عبداللہ بن زبیر رضی اللہ عنہما نے اس آفر کو ٹھکرا دیا اور کہا: "اگر میں ایک ایک شخص کے بدلے دس دس آدمیوں کو قتل کروں ، تب بھی مجھے چین نہ آئے گا۔"
(طبری۔ 4/1-267)

چونکہ ہشام کلبی صحابہ کرام بالخصوص حضرت زبیر رضی اللہ عنہ کی اولاد کے بارے میں  متعصب مورخ ہیں، اس وجہ سے  ان کی اس بات کو قبول نہیں کیا جا سکتا ہے۔ حضرت عبداللہ بن زبیر کے بارے میں یہ جملہ سوچا بھی نہیں جا سکتا کہ آپ ایک آدمی کے عوض دس افراد کے قتل کو جائز سمجھتے ہوں گے۔

 ہشام کلبی کے بیان کے مطابق حصین بن نمیر نے مکہ کا محاصرہ اٹھا دیا اور فوج شام کی طرف واپس چلی گئی۔ جب یہ مدینہ پہنچی تو اس کی ملاقات حضرت زین العابدین رحمہ اللہ سے ہوئی۔ ابن نمیر کے گھوڑے بھوکے تھے اور اس کے پاس چارہ ختم ہو گیا تھا۔ حضرت زین العابدین رحمہ اللہ نے اس کے گھوڑوں کو چارہ فراہم کیا۔
(طبری۔ 4/1-268)

اس سے معلوم ہوتا ہے کہ آپ اپنے جلیل القدر والد کی شہادت کا ذمہ دار حکومت اور بنو امیہ کو نہ سمجھتے تھے  بلکہ کربلا کو محض ایک سانحہ اور حادثہ سمجھتے تھے۔ اگر  آپ کی رائے مختلف ہوتی تو کم از کم آپ سرکاری افواج سے اتنا تعاون نہ کرتے۔ اس سے معلوم ہوتا ہے کہ اس دور کے مسلمانوں میں جو بھی اختلافات تھے، وہ محض سیاسی تھے اور دینی اعتبار سے ان میں کوئی ایسا اختلاف نہ تھا ، جس کی بنیاد پر ایک فریق کو کافر قرار دیا جائے۔

*یزید کے دور میں یہ تین سانحات کیونکر پیش آئے؟

یزید کے دور کے ان تینوں سانحات کے بارے میں یہی کہا جا سکتا ہے کہ یہ اس کی عاقبت نا اندیشی کی وجہ سے پیش آئے۔ اسے چاہیے تھا کہ مذاکرات کے ذریعے ان مسائل کو حل کرنے کی کوشش کرتا۔ اگر وہ حکومت سنبھالنے کے بعد  مدینہ اور مکہ کا سفر کرتا اور یہاں خود حضرت حسین، عبداللہ بن زبیر اور دیگر صحابہ رضی اللہ عنہم سے مل کر ان سے براہ راست معاملات طے کر لیتا تو شاید یہ تینوں سانحے وقوع پذیر نہ ہوتے۔  ان حضرات کے بارے میں یہ بدگمانی درست نہیں ہے کہ یہ حکومت کے طالب تھے اور اس کے لیے مسلمانوں میں افتراق  و انتشار کو جائز سمجھتے تھے۔ حضرت حسین رضی اللہ عنہ تو براہ راست شام جا کر یزید سے بیعت کے لیے تیار تھے۔ حضرت عبداللہ بن زبیر رضی اللہ عنہما سے بھی اس کی بات چیت ہو جاتی، یزید ان کے مطالبات مان لیتا اور جن امور کی وہ اصلاح چاہتے تھے، ان پر عمل کر لیتا تو معاملہ اتنا نہ بڑھتا۔ 

افسوس کہ یزید نے اپنے جلیل القدر والد حضرت معاویہ رضی اللہ عنہ جیسے حلم اور تدبر کا مظاہرہ نہ کیا اور ضرورت سے زیادہ طاقت کا استعمال کر دیا۔ پہلے ابن زیاد کی افواج نے طاقت کا بے جا استعمال کر کے حضرت حسین رضی اللہ عنہ کو شہید کیا اور یزید نے اس کے خلاف کوئی کاروائی نہ کی۔ اس کے بعد مدینہ کے کچھ لوگوں کی بغاوت کو کچلنے کے لیے سرکاری فوج نے ضرورت سے زیادہ طاقت استعمال کی اور پھر مکہ مکرمہ پر حملہ کر کے حکومت کی رہی سہی ساکھ بھی ختم کر دی۔ 
64ھ/ع684 یزید کے مرتے ہی خانہ جنگیوں کا ایک طویل سلسلہ شروع ہوا جو کہ اگلے  نو برس جاری رہا۔

*یزید کے بارے میں کیا رائے رکھنی چاہیے؟*

اس معاملے میں مسلمانوں کے ہاں تین نقطہ ہائے نظر پائے جاتے ہیں:

1۔ عام طور پر یزید کو سانحہ کربلا، سانحہ حرہ اور مکہ مکرمہ پر حملے کا مجرم قرار دے کر اس  پر لعن طعن کی جاتی ہے۔  بعض لوگ اسے اسلام دشمن ، کافر ، منافق، فاسق و فاجر کے لقب سے یاد کرتے ہیں۔  ہمارے دور میں بہت سے لوگوں کا یہی موقف ہے۔  یہ حضرات بالعموم تمام تاریخی روایتوں کو من و عن قبول کر کے یزید پر لعنت کرتے ہیں۔  اس نقطہ نظر پر سوال یہ پیدا ہوتا ہے کہ اگر ایسا ہی تھا تو پھر یزید کے دور میں موجود جلیل القدر صحابہ خاص کر ابن عباس اور ابن عمر رضی اللہ عنہم نے  اس کے خلاف کوئی تحریک پیدا کیوں نہیں کی اور ان حضرات نے حضرات حسین اور ابن زبیر رضی اللہ عنہم کا ساتھ کیوں نہیں دیا؟

2۔ ایک اقلیتی گروہ کا موقف یہ ہے کہ یزید ایک جلیل القدر تابعی تھا۔ وہ اس کے نام کے ساتھ "رحمۃ اللہ علیہ" بلکہ بعض اوقات "رضی اللہ عنہ" بھی لگا دیتے ہیں۔  یہ حضرات سانحہ کربلا، حرہ اور مکہ کی ایسی توجیہ کرتے ہیں جس سے قصور سراسر حضرت حسین اور عبداللہ بن زبیر رضی اللہ عنہم کا نکلتا ہے۔  اگر اس نقطہ نظر کو درست مان لیا جائے تو پھر حضرت حسین اور ابن زبیر رضی اللہ عنہم جیسے جلیل القدر بزرگوں پر تہمت کا دروازہ کھلتا ہے۔

3۔ ایک تیسرا موقف یہ ہے کہ یزید کے بارے میں خاموشی اختیار کرنی چاہیے۔ اس نقطہ نظر کے حاملین کا کہنا یہ ہے کہ ہمارے پاس کوئی ایسا پیمانہ موجود نہیں ہے جس سے اس بات کا ٹھیک ٹھیک تعین کیا جا سکے کہ ان تینوں سانحات میں یزید یا کسی اور شخص کا قصور کتنا تھا؟ تینوں سانحات سے متعلق جو تاریخی روایتیں ہمیں ملتی ہیں، وہ  ابو مخنف ، ہشام کلبی اور واقدی کی روایت کردہ ہیں۔ ابو مخنف اور کلبی کے بارے میں مشہور ہے کہ یہ لوگ بنو امیہ کے دشمن تھے اور ان سے شدید تعصب رکھتے تھے۔ دوسری طرف واقدی پر بھی کذاب ہونے کا الزام عائد کیا گیا ہے۔ اس وجہ سےہم قطعی طور پر یہ نہیں کہہ سکتے ہیں کہ ان واقعات کی اصل شکل کیا تھی اور اس میں کس شخص کا قصور کتنا تھا؟ ہونا یہ چاہیے کہ  ہم اس معاملے میں خاموشی اختیار کریں اور اس معاملے کو اللہ تعالی پر چھوڑ دیں۔

اس تیسرے نقطہ نظر کی نمائندگی کرتے ہوئے امام غزالی (d. 505/1111) کہتے ہیں:

جو شخص یہ گمان کرتا ہے کہ یزید نے قتل حسین کا حکم دیا تھا یا اس پر رضا مندی کا اظہار کیا تھا، تو جاننا چاہیے کہ وہ شخص پرلے درجے کا احمق ہے۔ اکابر و وزراء اور سلاطین میں سے جو جو اپنے اپنے زمانہ میں قتل ہوئے، اگر کوئی شخص ان کی یہ حقیقت معلوم کرنا چاہے کہ قتل کا حکم کس نے دیا تھا، کون اس پر راضی تھا اور کس نے اسے ناپسند کیا، تو اس پر قادر نہ ہو گا کہ اس کی تہہ تک پہنچ سکے خواہ یہ قتل اس کے پڑوس میں اور اس کے زمانے اور موجودگی میں ہی کیوں نہ ہوا ہو۔ پھر تو اس واقعہ تک کیسے رسائی ہو سکتی ہے جو دور دراز شہروں اور قدیم زمانہ میں گزرا ہو۔ پس کیسے اس واقعے کی حقیقت کا پتہ چل سکتا ہے جس میں چار سو برس (اب تقریباً ساڑھے تیرہ سو برس) کی طویل مدت حائل ہو اور مقام بھی بعید ہو۔ امر واقعہ یہ ہے کہ اس بارے میں شدید تعصب کی راہ اختیار کی گئی ہے، اسی وجہ سے اس واقعہ کے بارے میں مختلف گروہوں  کی طرف سے بکثرت روایتیں مروی ہیں۔ پس یہ ایک ایسا واقعہ ہے جس کی حقیقت کا ہرگز پتہ نہیں چل سکتا اور جب حقیقت تعصب کے پردوں میں روپوش ہے تو پھر ہر مسلمان کے ساتھ حسن ظن رکھنا واجب ہے، جہاں حسن ظن کے قرائن ممکن ہوں۔
( شمس الدین ابن طولون (880-953/1475-1546)۔ قید الشرید من اخبار الیزید۔  47۔ www.archive.org/details/qsmay (ac. 13 Aug 2012)

مزید دیکھیے:
( غزالی، احیاء العلوم الدین (اردو ترجمہ: ندیم الواجدی)۔ 3/199۔  کراچی: دار الاشاعت۔).

امام غزالی کے یہ دلائل اس درجے  میں مضبوط ہیں کہ ہمیں ہر تاریخی شخصیت کے بارے میں یہی رویہ رکھنا چاہیے۔ تاریخ کی کتب میں جو کچھ لکھا ہو، وہ ہم پڑھیں اور بیان کریں تو ساتھ ہی یہ وضاحت بھی ضرور کر دیں کہ حقیقت کا علم اللہ تعالی ہی کو ہے اور ہم تمام سابقہ لوگوں کے بارے میں حسن ظن کا رویہ رکھتے ہیں۔ ان تاریخی سلسلوں میں بھی ہم نے یہی کوشش کی ہے۔ جن لوگوں کے نام قاتلین عثمان میں آتے ہیں یا قاتلین حسین، ان کا تذکرہ کرتے وقت ہم نے اس بات کا اظہار کیا ہے کہ یہ باتیں تاریخی روایات ہی سے ملتی ہیں جن کی صحت مشکوک ہے۔ ہاں نام لیے بغیر اجمالی طور پر قاتلین عثمان اور قاتلین حسین کی مذمت کی جا سکتی ہے۔ 

جب یکساں درجے کی منفی اور مثبت تاریخی روایات موجود ہوں تو پھر ایک مثبت ذہنیت کے حامل شخص سے یہی توقع ہونی چاہیے کہ وہ مثبت پہلوؤں ہی پر توجہ دے۔ منفی پہلوؤں پر سوچنے سے دنیا میں سوائے فرسٹریشن اور آخرت میں سوائے مواخذہ کے کچھ حاصل نہ ہو گا۔اللہ تعالی ہم سے آخرت میں ہمارے ہی اعمال سے متعلق سوال کریں گے اور کسی بھی تاریخی شخصیت کے اعمال کا حساب ہم سے نہ لیا جائے گا۔ حسن ظن اور بدگمانی، مثبت ذہنیت  یا منفی رویہ ہمارا اپنا  عمل ہے، جس کے لیے ہم اللہ تعالی کے حضور جواب دہ ہوں گے۔

*سانحہ کربلا کے بعد باغی تحریک نے کیا حکمت عملی اختیار کی؟*

سانحہ کربلا کے بعد باغی تحریک بالکل دب کر رہ گئی تاہم انہوں نے اندر ہی اندر اپنے پراپیگنڈے کا جال پھیلا دیا۔ انہوں نے حضرت حسین رضی اللہ عنہ کے نام کو خوب کیش کروایا لیکن یزید کے بقیہ دور میں کوئی بغاوت برپا نہ کی۔ یہ سلسلہ تین برس تک جاری رہا۔ طبری ، ہشام کلبی اور ابو مخنف کے حوالے سے بیان کرتے ہیں:

قال أبو مخنف لوط بن يحيى، عن الحارث بن حصيرة، عن عبد الله بن سعد بن نفيل، قال:
حسین رضی اللہ عنہ کی شہادت کے بعد ہی 61ھ میں ان لوگوں (باغی تحریک) نے اپنا کام شروع کر دیا تھا۔ آلات حرب و سامان جنگ کے جمع کرنے میں یہ لوگ مشغول تھے اور پوشیدہ طور پر شیعہ اور غیر شیعہ کو انتقام لینے پر آمادہ کرتے رہتے تھے۔ لوگ ان سے ملتے جاتے تھے۔ ایک گروپ کے بعد دوسرا گروپ ان کے ساتھ شریک ہو جاتا تھا۔ یہ لوگ اسی کام میں منہمک تھے کہ یزید 14ربیع الاول 64ھ کو فوت ہو گیا۔ حضرت حسین رضی اللہ عنہ کی شہادت اور یزید کے فوت ہونے میں تین سال، دو ماہ اور چار دن کا فرق تھا۔ اس وقت ابن زیاد عراق کا گورنر تھا جو کہ بصرہ میں تھا۔ کوفہ میں اس کی طرف سے عمرو بن حریث مخزومی تھا۔

سلیمان بن صرد (باغی تحریک کے اس وقت کے لیڈر) کے پاس شیعوں نے آ کر کہا: "وہ فرعون تو مر گیا ہے اور اس وقت حکومت کمزور ہو رہی ہے۔ آپ کی رائے ہو تو ابن حریث پر حملہ کر کے گورنریٹ سے ہم لوگ اسے نکال دیں۔ اس کے بعد خون حسین کو بدلہ لینا شروع کر دیں اور ان کے قاتلوں کو ڈھونڈ ڈھونڈ کر نکالیں۔ لوگوں کو اہل بیت کی طرف آنے کی دعوت دیں جو کہ مظلوم اور اپنے حق سے محروم ہیں۔" اس سلسلے میں لوگوں نے بہت اصرار کیا۔
( طبری۔ 4/1-309)

سلیمان بن صرد نے انہیں مشورہ دیا کہ وہ خفیہ طور پر اپنی سرگرمیاں جاری رکھیں اور تیاری کرتے رہیں۔  ان سلیمان بن صرد کے بارے میں تاریخ طبری میں لکھا ہے کہ یہ صحابی ہیں حالانکہ ان کے صحابی ہونے کے بارے میں اختلاف ہے۔ عہد رسالت کی کسی جنگ یا اہم واقعے میں ان کا کوئی سراغ نہیں ملتا ہے۔ ابن عبد البر (368-463/979-1071)نے الاستیعاب میں انہیں ایک جگہ صحابی اور ایک جگہ تابعی قرار دیا ہے اور ان کی یہ کتاب قابل اعتماد نہیں ہے کیونکہ وہ سند درج نہیں کرتے ہیں۔

مشہور محدث اور مورخ ابن حجر عسقلانی (773-852/1371-1448)نے الاصابہ میں انہیں صحابی قرار دینے کو غلط کہا ہے۔
( ابن حجر۔ الاصابہ 5/42۔ شخصیت نمبر 3812)

ویسے بھی  ہم کسی صحابی کے بارے میں یہ بدگمانی نہیں کر سکتے کہ وہ باغی تحریک کا حصہ رہے ہوں گے۔

کچھ عرصے بعد ان لوگوں نے کوفہ کے گورنر عمرو بن حریث کو مار کر نکال دیا ۔ اس وقت حضرت عبداللہ بن زبیر رضی اللہ عنہما اپنی خلافت کا اعلان کر چکے تھے اور انہوں نے عبداللہ بن یزید الانصاری کو گورنر بنا کر کوفہ میں بھیج دیا۔  اسی زمانے میں مختار ثقفی کوفہ میں وارد ہوا۔

مختار کے بارے میں ہم پہلے بیان کر چکے ہیں کہ حضرت علی رضی اللہ عنہ کی شہادت کے وقت یہ نوجوان تھا اور اس کے چچا مدائن کے گورنر تھے۔ اس وقت اس نے اپنے چچا کو مشورہ دیا تھا کہ ہم حضرت حسن کو گرفتار کر کے حضرت معاویہ رضی اللہ عنہما کے سامنے پیش کر دیتے ہیں تو چچا نے اسے جھڑک دیا تھا۔ اسی نے حضرت حسن رضی اللہ عنہ پر برچھی سے وار کیا تھا۔  اسے سانحہ کربلا کے بعد یزید نے گرفتار کر لیا تھا لیکن پھر حضرت عبداللہ بن عمر رضی اللہ عنہما کی سفارش سے اس کی جان بخشی کر دی تھی کیونکہ یہ ان کا برادر نسبتی تھا۔  یزید کے مرنے کے بعد یہ حضرت عبداللہ بن زبیر رضی اللہ عنہما کے پاس چلا گیا۔ انہوں نے اسے کوئی عہدہ نہ دیا۔ اس نے ان کے ساتھ اپنی من مانی کرنا چاہی تو انہوں نے اسے بھگا دیا۔(طبری۔ 4/1-323)

اب یہی مختار ثقفی اہل بیت کا ہمدرد بن کر کوفہ میں آیا۔ اس نے جو سرگرمیاں شروع کیں، انہیں طبری نے ابو مخنف کے حوالے سے کچھ یوں بیان کیا ہے:

قال هشام: قال أبو مخنف: وحدثنا الحصين بن يزيد، عن رجل من مزينة قال: عبداللہ بن یزید سے آٹھ دن پہلے مختار کوفہ میں آ گیا تھا مگر تمام رؤسائے شیعہ سلیمان بن صرد کے پاس جمع تھے۔ کوئی مختار کو ان کے برابر نہ سمجھتا تھا۔ مختار شیعوں کو دعوت دیتا تھا کہ میرے پاس خون حسین کا انتقام لینے کے لیے آؤ۔ وہ جواب دیتے تھے کہ شیخ الشیعہ تو سلیمان بن صرد ہیں۔ سب نے انہی کی اطاعت کر لی ہے اور انہی کے پاس اکٹھے ہیں۔ اس کے جواب میں وہ کہتا تھا: "میں مہدی وقت محمد بن علی (حضرت حسین کے بھائی) کے پاس سے آیا ہوں۔ انہوں نے مجھے اپنا وزیر، امین اور  قابل  اعتماد ساتھی بنا کر بھیجا ہے۔ " شیعوں سے اسی طرح کی باتیں کرتے ہوئے آخر اس نے کچھ لوگوں سلیمان بن صرد کے گروپ سے علیحدہ کر لیا۔ اب یہ لوگ اس کی تعظیم  کرنے لگے، اس کی بات سننے لگے اور اس کے حکم کے منتظر رہنے لگے۔ مگر اب بھی شیعوں کی بڑی جماعت ابن صرد کے ساتھ تھی۔ اس وجہ سے مختار اپنے کام میں ابن صرد کو سب سے بڑی رکاوٹ سمجھتا تھا اور اپنے ساتھیوں سے کہتا تھا: "تمہیں معلوم بھی ہے کہ ان صاحب یعنی سلیمان بن صرد کا کیا ارادہ ہے؟  ان کا ارادہ یہ ہے کہ لڑنے کو نکلیں، اپنے آپ کو بھی قتل کروائیں اور ساتھ تمہیں بھی۔ نہ انہیں جنگ کا تجربہ ہے اور نہ اس فن کا علم ہے۔  (طبری ۔ 4/1-311 )

ابو مخنف کے بیان کے مطابق اب کوفہ کی باغی تحریک دو حصوں میں تقسیم ہوگئی: ایک سلیمان گروپ اور دوسرا مختار گروپ۔ چونکہ ابو مخنف خود اس تحریک کا حصہ رہے ہیں، اس وجہ سے  اس تحریک کے اندرونی اختلافات کے بارے میں ان کا بیان زیادہ معتبر ہے۔ 

سلیمان بن صرد نے 65ھ/ع685 میں اعلان بغاوت کیا اور یہ لوگ "توابین" کہلائے۔  اس کی وجہ تسمیہ یہ تھی کہ انہوں نے اس بات پر توبہ کا اعلان کیا کہ انہوں نے حضرت حسین رضی اللہ عنہ کو بلا کر ان کا ساتھ نہ دیا تھا۔ ان کی پارٹی کے 16000 لوگوں نے ان کی بیعت کر رکھی تھی لیکن بغاوت کے وقت صرف 4000 افراد اکٹھے ہوئے۔ مدائن اور بصرہ کی باغی تحریک کے لوگ بھی شریک نہ ہوئے۔  یہ لوگ حضرت حسین رضی اللہ عنہ کی قبر پر اکٹھے ہوئے اور وہاں گریہ و زاری کی۔  ابن زیاد نے ان کے مقابلے پر 12000 کا لشکر بھیجا۔ شدید جنگ ہوئی جس میں توابین کو شکست ہوئی اور ان کی پارٹی کا بڑا حصہ اس جنگ میں کام آیا۔
(طبری ۔ 344_4 / 1- 311 )

*مختار ثقفی کی تحریک کی نوعیت کیا تھی؟*

مختار گروپ نسبتاً زیادہ کامیاب رہا۔ شروع میں ابن زبیر کے گورنر کوفہ، عبداللہ بن یزید انصاری نے اس کے ساتھ اچھا سلوک کیا۔ سلیمان گروپ کی شکست کے بعد ان  کے  باقی ماندہ لوگ مختار گروپ میں شامل ہو گئے۔  مختار چونکہ یہ دعوی کرتا تھا کہ وہ حضرت حسین رضی اللہ عنہ کے بھائی محمد بن حنفیہ رحمہ اللہ  کا نائب ہے، اس وجہ سے جو لوگ اس کے دعوے پر یقین کرتے تھے، وہ اس سے آن ملتے تھے۔باغی پارٹی کے بعض لوگوں نے ایک وفد محمد بن حنفیہ کے پاس بھیجا۔ انہوں نے واضح الفاظ میں مختار کو اپنا نمائندہ نہ کہا البتہ یہ فرمایا: "میں چاہتا ہوں کہ اللہ اپنی مخلوق میں سے جس سے بھی چاہے، ہمارے دشمنوں سے بدلہ لے لے۔ اس کے بعد میں اپنے اور آپ کے لیے مغفرت کی دعا کرتا ہوں۔" اس وفد کا سن کر مختار بہت پریشان ہوا تاہم جب یہ وفد واپس آیا تو اس کی حمایت میں بہت اضافہ ہو گیا۔  اب مختار نے حضرت محمد بن حنفیہ کی جانب سے متعدد جعلی خطوط لکھ کر لوگوں کو اپنی جانب مائل کیا جن میں مالک الاشتر کے بیٹے ابراہیم بن اشتر بھی شامل تھے۔
( طبری ۔ 370_4 /1- 367  )

مختار نے مقبولیت حاصل کرنے کے لیے ایک دلچسپ طریقہ یہ نکالا کہ اس نے ایک کرسی کو  حضرت علی رضی اللہ عنہ کی کرسی قرار دے کر اسے مقدس حیثیت دے دی۔  اس کے بعد اس نے اس کرسی پر ریشم و دیباج لپیٹ کر اس کا جلوس نکالا۔ یہ واقعہ کیسے ہوا،  اس کی تفصیل ہم یہاں اس لیے بیان کر رہے ہیں کہ موجودہ دور میں بھی بعض حضرات اس قسم کے ہتھکنڈے استعمال کر کے لوگوں کے جذبات سے کھیلتے ہیں۔ اسے طبری نے کچھ یوں نقل کیا ہے:

حدثني به عبد الله بن أحمد بن شبويه، قال:حدثني أبي، قال: حدثني سليمان، قال: حدثني عبد الله ابن المبارك، عن إسحاق بن طلحة، قال: حدثني معبد بن خالد، قال: حدثني طفيل بن جعدة بن هبيرة، قال: طفیل بن جعدہ بن ہبیرہ
(حضرت علی رضی اللہ عنہ کے بھانجے کے بیٹے) کا کہنا ہے کہ میں ایک مرتبہ بالکل ہی غریب ہو گیا تھا اور بہت تنگ دست تھا کہ ایک دن میں نے تیل کا کاروبار کرنے والے اپنے ایک پڑوسی کے پاس ایک کرسی دیکھی جس پر اتنا تیل جما ہوا تھا کہ لکڑی نظر نہ آتی تھی۔  میں نے دل میں سوچا کہ چلو اس کے متعلق چل کر مختار سے بات کروں۔ میں وہ کرسی تیلی کے گھر سے  اپنے یہاں منگوائی اور مختار سے آ کر کہا: "میں ایک بات آپ سے کہنا تو نہیں چاہتا تھا مگر پھر مناسب سمجھا کہ کہوں۔" مختار نے پوچھا: "کیا بات ہے؟" میں نے کہا: "جس کرسی پر (میرے والد) جعدہ بن ہبیرہ بیٹھتے تھے، وہ موجود ہے۔ اس کے متعلق خیال ہے کہ اس میں ایک خاص اثر ہے۔" مختار نے کہا: "سبحان اللہ! تم نے آج تک یہ بات کیوں نہیں بتائی۔ اسے ابھی یہاں منگواؤ۔ اسے جب دھویا گیا تو بہت عمدہ لکڑی نمایاں ہوئی اور چونکہ اس نے خوب زیتون کا تیل پیا تھا ، اس لیے وہ چمک رہی تھی۔ یہ کپڑے سے ڈھانپ کر مختار کے پاس لائی گئی۔ مختار نے مجھے 12000 درہم دلائے اور پھر سب لوگوں سے کہا کہ نماز میں شرکت کریں۔

معبد بن خالد  کا بیان ہے مختار میرے، اسماعیل بن طلحہ اور شبث بن ربعی کے ساتھ مسجد آیا۔ تمام لوگ جوق در جوق مسجد میں جمع ہو رہے تھے۔ مختار نے تقریر کی اور کہا: "سابقہ اقوام میں کوئی بات ایسی نہیں ہوئی تھی جو ہمارے ہاں موجود نہ ہو۔ بنی اسرائیل کے پاس ایک تابوت تھا، جس میں آل موسی اور آل ہارون علیہما الصلوۃ والسلام کے تبرکات موجود تھے۔ اسی طرح ہمارے پاس بھی ایک چیز موجود ہے۔ مختار نے کرسی برداروں کو حکم دیا کہ اسے کھولا جائے۔ کپڑے کا غلاف ہٹایا گیا تو اس پر سبائیہ فرقے کے لوگ کھڑے ہو گئے اور انہوں نے ہاتھ اٹھا کر تین تکبیریں کہیں۔ شبث بن ربعی نے کھڑے ہو کر کہا: "اے قبیلہ مضر کے لوگو! کافر نہ ہو جاؤ۔" لوگوں نے اسے دھکے دے دے کر مسجد سے نکال دیا۔ ۔۔ اس کے کچھ زمانہ بعد یہ خبر مشہور ہوئی کہ عبیداللہ بن زیاد شامیوں کے ساتھ باجمیرہ کے مقام پر پہنچ گیا ہے۔ 

شیعوں نے ایک خچر پر اسی کرسی کا جلوس نکالا اور اس پر غلاف پڑا ہوا تھا۔ سات آدمی دائیں طرف اور سات بائیں طرف اس کی حفاظت کر رہے تھے۔ چونکہ اس جنگ میں اہل شام اس بری طرح قتل کیے گئے تھے کہ اس سے پہلے انہیں کبھی ایسا دن دیکھنا نصیب نہیں ہوا تھا۔ اس وجہ سے اس کرسی پر ان (مختار کے ساتھیوں) کا اعتقاد اور بھی جم گیا تھا اور اس میں ان کی انتہا پسندی کفر صریح تک پہنچ گئی تھی۔ (طفیل کہتے ہیں کہ) میں اپنے کیے پر شرمندہ ہوا کہ میں نے یہ کیا فتنہ پیدا کر دیا۔ اس کے متعلق لوگوں میں طرح طرح کی باتیں شروع ہو گئیں جس کی وجہ سے کرسی کو کہیں چھپا دیا گیا اور اس کے بعد میں نے اسے نہیں دیکھا۔

ہشام کلبی کا بیان یہ ہے:
عن هشام بن محمد. عنه، قال: حدثنا هشام بن عبد الرحمن وابنه الحكم بن هشام:مختار نے جعدہ بن ہبیرہ،  جن کی والدہ ام ہانی بنت ابی طالب ، حضرت علی رضی اللہ عنہما کی حقیقی بہن تھیں،  کی اولاد سے  کہا: "مجھے علی بن ابی طالب کی کرسی لا دو۔" انہوں نے کہا: "نہ وہ ہمارے پاس ہے اور نہ ہم جانتے ہیں کہ کہاں سے لائیں۔" مختار نے کہا: "احمق نہ بنو اور مجھے لا کر دو۔" اس جواب سے انہوں نے سمجھ لیا کہ یہ لوگ جو کرسی بھی لا دیں گے، مختار اسے قبول کر لے گا۔ چنانچہ یہ لوگ ایک کرسی مختار کے پاس لے آئے اور کہا کہ یہ حضرت علی کی کرسی ہے۔ مختار نے اسے قبول کر لیا۔ اس کے بعد بنی شبام، بنی شاکر اور مختار کے اور سرداروں اس کرسی پر ریشم اور دیباج کا کپڑا لپیٹ کر  اس کا جلوس نکالا۔
( طبری ۔ 424_ 4/1- 423 )

اس کے بعد انہوں نے بغاوت کر دی جو کہ کامیاب رہی۔  ایک شدید جنگ میں اس نے ابن زیاد کی فوج کو شکست دی اور اس کے بعد ابن زیاد، شمر، خولی بن یزید اور ان تمام لوگوں کو قتل کر دیا گیا جو حضرت حسین رضی اللہ عنہ کی شہادت میں شریک تھے یا ان پر شہادت حسین میں شریک ہونے کا الزام موجود تھا۔  اس نے عمر بن سعد سے البتہ امان دینے کا معاہد ہ کر لیا تاہم کچھ عرصے بعد اس معاہدے کو توڑ کر انہیں ان کے بیٹوں سمیت قتل کروا دیا۔
( طبری۔ 4/1-408)

اس نے ایک پارٹی کو حضرت عبداللہ بن زبیر رضی اللہ عنہما کے قتل کے لیے مکہ بھیجا اور دوسری طرف انہیں ایک خط بھی لکھا جس میں خود کو ان کا فرمانبردار ظاہر کیا۔
(طبری۔ 4/1-413)

مختار ثقفی کی تحریک کو کافی کامیابی ملی۔ اس نے ابن زیاد اور قاتلین حسین کو قتل کرنے میں کامیابی حاصل کر لی تو اس کی مقبولیت میں اضافہ ہو گیا اور عراق کے کچھ حصے پر اس کا اقتدار قائم ہو گیا۔ اب مختار نے اپنی تحریک کے اگلے مرحلے کا آغاز کیا اور طرح طرح کی پیش گوئیاں کرنا شروع کر دیں۔ اس کے معتقدین نے اسے غیب دان ماننا شروع کر دیا۔ طبری نے اس سلسلے میں ابو مخنف کی ایک روایت نقل کی ہے۔

قال هشام: قال أبو مخنف: حدثني فضيل بن خديج، قال: قتل شرحبيل بن ذي الكلاع، فادعى قتله ثلاثة: سفيان بن يزيد بن قال أبو مخنف: حدثني المشرقي، عن الشعبي: ۔۔۔۔ شعبی کہتے ہیں  کہ (جب مختار کوفہ سے نکلا تو) میں اور میرے والد بھی اس کے ساتھ تھے۔ اس نے کہا: "آج یا کل ہمیں ابراہیم (بن اشتر) کی جانب سے فتح کی خوشخبری ملنے والی ہے۔ اس کی فوج  نے ابن زیاد کی فوج کو شکست فاش دے دی ہے۔"  مختار سائب بن مالک  الاشعری کو کوفہ پر اپنا جانشین مقرر کر کے خود اپنے ساتھیوں کے ساتھ روانہ ہوا اور ساباط میں قیام کیا۔ ۔۔۔ جب ہم لوگ مدائن پہنچے تو لوگ مختار کے گرد جمع ہو گئے۔ مختار اب منبر پر خطبہ پڑھنے کے لیے کھڑا ہوا اور ہمیں سوچ سمجھ کر کام کرنے، جدوجہد کرنے ، اطاعت امیر میں ثابت قدم رہنے اور اہل بیت رسول کے خون کا بدلہ لینے کے لیے کہہ رہا تھا۔ اتنے میں متواتر کئی قاصد ابن زیاد کے قتل، اس کی فوج کے شکست کھانے، گرفتار کیے جانے اور اہل شام کے بڑے سرداروں کے قتل کی خوشخبری لائے۔ اس پر مختار نے کہا: "اے اللہ کے گروہ! کیا میں نے اس واقعے سے پہلے اس فتح کی تمہیں خوش خبری نہ دی تھی؟" سب نے کہا: "بے شک آپ نے یہی کہا تھا۔"

شعبی کا بیان ہے کہ اس وقت ان کے ایک پڑوسی، جس کا تعلق ہمدان سے تھا، نے ان سے کہا: "شعبی! کیا اب تم ایمان لے آؤ گے؟" میں کہا: "کس چیز پر ایمان لاؤں؟ کیا اس بات پر ایمان لاؤں کہ مختار کو غیب کا علم ہے؟ اس پر تو میں ہرگز ایمان نہ لاؤں گا۔ " اس پر اس نے کہا: "کیا مختار نے ہم سے یہ نہیں کہہ دیا تھا کہ ہمارے دشمنوں کو شکست فاش ہوئی؟" میں نے جواب دیا: "اس نے یہ کہا تھا کہ مقام نصیبین پر  انہیں شکست ہوئی حالانکہ یہ واقعہ تو موصل کے علاقے خاذر میں پیش آیا ہے۔ " اس نے کہا: "شعبی! واللہ! جب تک تم درد ناک عذاب نہ دیکھو گے تو ایمان نہ لاؤ گے۔"
( طبری ۔ 4/1-457)

اس وقت حضرت عبداللہ بن زبیر رضی اللہ عنہما کی حکومت حجاز اور عراق پر قائم ہو چکی تھی۔ انہیں یہ خطرہ تھا کہ کہیں مختار پورے عراق پر قبضہ نہ کر لے۔ انہوں نے اپنے بھائی مصعب بن زبیر، جو کہ حضرت حسین رضی اللہ عنہ کے داماد تھے، کو بصرہ کا گورنر بنا کر بھیجا۔  انہوں نے مختار سے شدید جنگ کر کے رمضان 67ھ/687 میں اس کا خاتمہ کر دیا۔  مختار نہایت بہادری سے لڑتا ہوا مارا گیا اور اس کے ساتھ ہی اس کی دو سالہ حکومت اور غیب دانی کا خاتمہ بھی ہو گیا۔

توابین اور مختار کی بغاوتوں کے بعد اہل کوفہ کی باغی تحریک بالکل کمزور پڑ گئی  اور اس کے بعد 55 برس تک سر نہ اٹھا سکی۔

*یہاں پر یزید کا دور حکومت ختم ہوا اور تاریخ کے اگلے سلسلے میں ہم عبداللہ بن زبیر (رض) کے دور کا مختصر مطالعہ کریں گے ،ان شاءاللہ*

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