find all Islamic posts in English Roman urdu and Hindi related to Quran,Namz,Hadith,Ramadan,Haz,Zakat,Tauhid,Iman,Shirk,daily hadith,Islamic fatwa on various topics,Ramzan ke masail,namaz ka sahi tareeqa

Rulling on fire Crackers and Fireworks.

Ruling on fire crackers and fireworks | Shaykh Abdul Muhsin al-Abbad al Badr حفظه الله

Question: What is the ruling on using fire crackers and fireworks during the Eid and other days?

Shaykh Abdul Muhsin: There is no doubt that there is harm in this upon the children who use them. 

It is also harmful upon the people by alarming them and preventing them from relaxing. 
They are not able to rest during their sleep and rest periods due to these disturbing noises. In reality it is evil. It is not befitting to use them.

Translated by Rasheed ibn Estes Barbee
Share:

B. S. E. B. 10th Urdu Darakhshan Chapter 17 Manazir Qudrat Question Answer | Bihar Board Urdu Sawal Jawab

B. S. E. B. 10th Urdu Darakhshan Chapter 17 Manazir Qudrat | Chakbast | Question Answer | Bihar Board Urdu Question Answer | Class 10 Urdu Question Answer  | Bihar Board Urdu Sawal Jawab | Manazir Qudrat | Bihar Board 10th Urdu Question Answer Chapter 17

#BSEB #10th #Urdu #GuessPaper #UrduGuide #BiharBoard #SawalKaJawab #اردو #مختصر_سوالات #معروضی_سوالات #بہار#  مناظر_قدرت # اردو_سوال_جواب

| Bihar Board 10th Urdu question Answer

BSEB 10th Urdu Darakhshan Chapter 17 , bihar board urdu Swal Jawab, Urdu question Answer, Matric Urdu Question Answer, Darakhshan Swal Jawab, Urdu gue
B. S. E. B. 10th Urdu Darakhshan Chapter 17 Manazir Qudrat

مختصر ترین سوالات

(1) چکبست کا انتقال کب اور کہاں ہوا تھا؟
جواب - 1926 رائے بریلی کے اسٹیشن پر انکو فالج کا اثر ہوا اور وہیں انتقال فرما گئے۔


(2) چکبست نے کون کوں سے ڈگریاں حاصل کی؟
جواب - اویکینگ کالج میں داخلہ لیا۔ 1905 میں B A پاس کیا اور 1908 میں وکالت کا امتحان پاس کیا۔


(3) چکبست کا انتقال کس بیمار سے ہوا؟
جواب - فالج کی بیماری سے


(4) چکبست کی کون سی نظم ہمارے نصاب میں شامل ہے؟
جواب- مناظر قدرت 


(5) چکبست کا پورا نام کیا تھا؟
جواب - پنڈت برج ناراین اور چکبست تخلص ہے۔


(6) چکبست کی پیدائش کہاں اور کب ہوئی؟
جواب - اُن کی پیدائش 1882 میں فیض آباد اُتر پردیش میں ہوئی۔


(7) چکبست کی ابتدائی تعلیم کہاں ہوئی؟
جواب - اُن کی ابتدائی تعلیم لکھنؤ میں ہوئی۔

مختصر سوالات

(1) چکبست کے بارے میں پانچ جملے لکھیے۔
جواب - چکبست کی پیدائش 1882 میں اُتر پردیش کے فیض آباد میں ہوئی۔ اُن کے آباء واجداد لکھنؤ سے تعلّق رکھتے تھے اس لیے چکبست بچپن میں ہی لکھنؤ آگئے۔ اویکنگ کالج لکھنؤ سے 1905 میں B A پاس کیا اور 1908 میں وکالت کا امتحان پاس کیا۔ اُنہونے پہلی غزل 10 - 9 سال کی عمر میں کہیں۔ اُن کی وفات 1926 میں رائے بریلی کے اسٹیشن پر ہوئی اور لاش کو لکھنؤ لاکر آخری رسوم ادا کر دی گئی۔

(2) جدید اردو نظم کی مختصر تعریف کیجئے۔
جواب - جدید اردو نظم کا پیش رو حالی اور آزاد کو مانا جاتا ہے۔ اس دور میں جدید نظم نگار کی حیثیت سے جن نظم نگاروں کو شہرت و مقبولیت حاصل ہوئی اُن میں اسماعیل میرٹھی، ڈپٹی نذیر احمد، شبلی نعمانی، عبدالحلیم شرر، اور اکبر الہ آبادی خاص طور سے قابل ذکر ہے۔ ان شاعروں نے جدید اردو نظم نگاری کی روایت کو مضبوط بنانے میں اپنی بھرپور صلاحیتوں کا استعمال کیا ہے۔
-------------------------
اگر آپ مزید تحاریر پڑھنا چاہتے ہیں تو یہاں کلک کریں۔  سوال و جواب
Share:

Khilafat Aandolan kyu hua tha Bharat me?

Khilafat Aandolan (Movement) kyu hua tha?
खिलाफत आन्दोलन के कारण और परिणामों का वर्णन करें।
खिलाफत आंदोलन भारत में क्यों किया गया था?

प्रथम महायुद्ध में अंग्रेजो ने मुसलमानों के साथ अच्छा सुलूक करने का वादा कर मुसलमानों ने मदद हासिल की थी। लेकिन लड़ाई खतम होने के बाद अंग्रेजो ने अपने वायदे की फिकर ना कर सिर्यास की संधि में तुर्की सल्तनत ( उस्मानिया सल्तनत ) को तबाह कर दिया।

 जिससे भारत के मुसलमान अंग्रेजो के दुश्मन बन गए। उन्होंने अंग्रेजो के खिलाफ आंदोलन शुरू कर दिया जिसे इतिहास में "खिलाफत आंदोलन" कहते है।

मुख्य कारण

(i) तुर्की के सुल्तान ने प्रथम विश्व युद्ध में अंग्रेजो के खिलाफ जर्मनी का साथ दिया था इसलिए अंग्रेज मुसलमानों से नाराज थे।

(ii) मुसलमानों को अंग्रेजो से डर था।

(iii) प्रथम विश्व युद्ध के बाद अंग्रेजो ने वादा तोड़कर तुर्की सल्तनत में तोड़ फोड़ की थी।

(iv) वायसराय ने मुस्लिम शिष्ट मंडलो को कोई संतोषजनक जवाब नहीं दिया था।

(v) कांग्रेस और मुस्लिम लीग के समझौते से भी अंग्रेज मुसलमानों के खिलाफ थे।

आंदोलन की प्रगति: महात्मा गांधी के नेतृत्व में हिंदुओ ने खिलाफत आंदोलन में मुसलमानों का साथ दिया था।

 इसी वक्त मौलाना महमूद उल हसन ने जमीयत उल उलेमा की स्थापना की और सरकार की नीति की आलोचना की। फरवरी 1920 में डॉक्टर अंसारी के नेतृत्व में मुसलमानों का एक प्रतिनिधि मंडल वायसराय से मिला। उस मंडल ने सरकार को अपना नजरिया समझाने की कोशिश किया , लेकिन इस मंडल के प्रयास सफल नहीं हुए। मुसलमानों का प्रतिनिधि मंडल इंग्लैंड भी गया लेकिन उसे भी कोई खास कामयाबी नहीं मिली। 

आंदोलन को कांग्रेस का समर्थन: सितंबर 1920 में कांग्रेस का एक अतिरिक्त अधिवेशन कोलकाता में हुआ।

 इस अधिवेशन में कांग्रेस ने सहयोग का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया और खिलाफत आंदोलन का समर्थन किया।
 1921 में कांग्रेस और मुस्लिम लीग ने मिलकर काम किया। आजादी हासिल करने के लिए हजारों लोग जेल गए। कांग्रेस और मुस्लिम लीग दोनो ने ही सरकार को सहयोग न देने का फैसला कर लिया।

आंदोलन में हिंसात्मक करवाई: गांधी जी ने खिलाफत आन्दोलन में पूरा सहयोग दिया लेकिन गांधी जी ने चोरा चोरी नामक स्थान पर हिंसात्मक कारवाई हो जाने के कारण अपने आंदोलन को बंद कर दिया। इसी समय गांधी जी को 6 साल के लिए कारावास दंड दिया गया।
 गांधी जी के जेल चले जाने से आंदोलन ठंडा पड़ गया।

 1921 में मुस्लिम लीग का अधिवेशन अहमदाबाद में हुआ। इस अधिवेशन में गांधी जी के असंतोष के विषय में कोई प्रस्ताव पास नही किया गया। इस तरह गांधी जी की जेल यात्रा से मुस्लिम लीग और कांग्रेस के संबंध नरम पड़ गए और खिलाफत आन्दोलन भी कमजोर पड़ गया।

मोपला हत्याकांड और धार्मिक एकता की समाप्ति: खिलाफत आन्दोलन में हिंदुओ और मुसलमानों ने मिलकर एक साथ काम किया था। हिंदुओ ने खिलाफत आन्दोलन में सहयोग दिया और मुसलमानों ने कांग्रेस के सहयोग के प्रस्ताव को स्वीकार किया। 

मालाबार में मुसलमानों की संख्या ज्यादा थी , यहां के मुसलमानों को मोप्ला कहते थे। मालाबार में हिंदुओ ने खिलाफत आन्दोलन में मुसलमानों का साथ दिया।

 मोपला लोगो की संख्या अधिक होने की वजह से खिलाफत आन्दोलन उग्र रूप धारण कर लिया। सरकार ने इस आंदोलन को कठोरता से दमन किया। यह आंदोलन शुरवात में राजनीतिक था लेकिन बाद में यह आंदोलन धार्मिक रूप ले लिया। 

इसलिए इस आंदोलन में सैंकड़ों निपराध हिंदू मारे गए। इस आंदोलन का असर उत्तरी भारत पर भी पड़ा जिससे भारत में सांप्रदायिक एकता खतम हो गई।

खिलाफत आंदोलन का महत्व:

(i) खिलाफत आंदोलन मुस्लिम लीग और कांग्रेस का एक सम्मिलित कार्य क्रम था। इसलिए इस आंदोलन से आरंभ में भारत में सांप्रदायिक एकता की नीव पड़ी।

(ii) खिलाफत आंदोलन के कारण भारत में मुस्लिम संगठन संभव हो सका।

(iii) खिलाफत आंदोलन के बाद अंग्रेजो की नीति में बदलाव आया और कांग्रेस तथा मुस्लिम लीग के पारस्परिक मेल को तोड़ने के लिए वे योजना बनाने लगे। 
(iv) मोपला हत्याकांड खिलाफत आन्दोलन का अंतिम चरण था। इसमें धार्मिकता आ जाने के कारण बहुत से मासूम लोग मरे गए, जिससे भारत में सांप्रदायिक एकता खतम हो गया।

(v) मोपला हत्याकांड का असर उत्तरी भारत में भी पड़ा जिसके कारण भारत में सांप्रदायिक दंगे की नीव पड़ी।


(vi) खिलाफत आंदोलन के बाद अंग्रेजो ने अपनी विभेद नीति के आधार पर हिंदू मुसलमान में फुट डलवाने की कोशिश की। जिसका नतीजा हिंदू मुसलमान दंगो के रूप में सामने आया। 

(vii) खिलाफत आंदोलन के कारण मुस्लिम लीग का प्रभाव कम पड़ने लगा।

परिणाम

महात्मा गांधी के नेतृत्व में 1920 के असहयोग आन्दोलन की एक महत्वपूर्ण घटना खिलाफत आन्दोलन थी। इस आंदोलन की शुरुवात प्रथम विश्व युद्ध के बाद हुआ। प्रथम विश्व युद्ध में तुर्की , जर्मनी का साथ दे रहा था। 
इसलिए प्रथम विश्व युद्ध में जर्मनी के हार के साथ उसकी भी हार हो गई। युद्ध के दौरान अंग्रेजी सरकार ने यह उम्मीद दिलाई थी के न तो तुर्की सल्तनत का विघटन किया जाएगा और न खिलाफत की। लेकिन जंग खतम होते ही उस्मानिया सल्तनत के ऐशियाई प्रदेशों को इंग्लैंड और फ्रांस ने आपस में बांट लिया।

मित्र राष्ट्रों द्वारा खलीफा ( खिलाफत करने वाला ) का मजाक उड़ाया गया, उनका अपमान किया गया। 

इसके साथ ही इस्लामिक जगह यानी फिलिस्तीन जहां मस्जिद ए अक्सा है वहां पर कब्जा कर लिया। 

हिंदुस्तानी मुसलमानों का इससे क्षुब्द होना स्वाभाविक था। इसलिए उन लोगो ने सरकार से असहयोग प्रारंभ किया जो खिलाफत आन्दोलन से मशहूर है।

खिलाफत आंदोलन का मकसद इस्लाम के खलीफा सुल्तान को फिर से शक्ति देना था।
 लड़ाई के समय से ही मुस्लिम लीग और कांग्रेस में ताल मेल स्थापित हो चुका था। जिससे मुस्लिम लीग और राष्ट्रवादियों का असर पूरी तरह से कायम हो गया था।

 इसलिए मुस्लिम नेता सभी खिलाफत आंदोलन के समर्थक बन गए। 1919 में दिल्ली में हुए मुस्लिम लीग के अधिवेशन का सभापतित्व करते हुए डॉक्टर M A अंसारी ने जोरदार शब्दो में खिलाफत आंदोलन का समर्थन किया था। इस अधिवेशन में मुस्लिम लीग ने जोरदार शब्दो में स्वशासन स्थापित करने की मांग की। 

ज्यादातर उलेमा संप्रदाय ने मौलाना मुहम्मद उल हसन के नेतृत्व में राजनीति में प्रवेश किया। उनके द्वारा स्थापित संस्था को " उल उलमाए हिंदी " का नाम दिया गया।

नवंबर 1919 में गांधी जी ने हिंदू मुसलमान नेताओ का एक सम्मेलन दिल्ली में बुलाया, जिसमे खिलाफत आंदोलन का पूरी तरह से समर्थन करने का निश्चय किया गया। 19 जनवरी 1920 को डॉक्टर अंसारी के नेतृत्व में एक शिष्टमंडल , जिसका आयोजन गांधी जी के आदेश पर किया गया था, ने भारत के गवर्नर जनरल चेम्सफोर्ड से भेंट की। साथ ही एक शिष्टमंडल गांधी जी के ही आदेशों पर , मोहम्मद अली के नेतृत्व में इंग्लैंड भी गया।

 इन शिष्टमंडलो को सफलता नहीं मिली जिसके बाद गांधी जी ने खिलाफत आन्दोलन का बड़े पैमाने पर समर्थन किया और हिंदू मुसलमान एकता के लिए इस आंदोलन को बड़ा व्यापक और लोकप्रिय बनाया। 
मगर यह आंदोलन ज्यादा दिनों तक नहीं चलाया जा सका। तुर्की में जब कमाल पाशा के नेतृत्व में धर्म निरपेक्ष (सेक्युलर) राज्य की स्थापना हुई और खिलाफत को खतम कर दिया गया।

 मुस्तफा कमालपाशा ने मित्र राष्ट्रों के साथ एक संधि कर ली। इस तरह तुर्की में खिलाफत के हल के साथ ही भारत में भी खिलाफत आन्दोलन समाप्त हो गया।



Share:

Har Aatankwadi Musalman nahi aur Har Musalman Aatankwadi nahi.

Bura Islam nahi Balke ise Afwah bnaya jata hai.

Islam ke nam par Kitni jhooti Afwahe failayi gayi hai?


मुस्लिम नाम आते ही लोगों के सोचने का ढंग बदल जाता है आतंकवादी, बेरहम , कट्टरवादी ना जाने कैसे केसे लकब से नवाजा जाता है. इनको कुछ भी कहो मगर ये अपने माँ बाप को ओल्डएज होम नही भेजते बुरा सुलूक नही करते बल्कि उनके कदमों के नीचे जन्नत मानते हैं ओर उनके साये से खुद को महफ़ूज़ समझते हैं.

इस्लाम एक ऐसा धर्म है जिसके बारे में समाज में तरह तरह की बातें फैली हुई हैं जिनमे से अधिकतर या तो इसे बदनाम करने के लिए फैलाई गयी हैं या कुछ खुद को पैदायशी मुसलमान कहने वालों की अज्ञानता के कारण फैली हैं | वैसे भी  अच्छे को बुरा साबित करना दुनिया की पुरानी आदत है |



इस्लाम को बुरा साबित करने की कोशिश करने वालों का मुह बंद करने का आसान तरीका यह है कि इसके बताये कानून पे ईमानदारी से  चलके दिखाओ |

इस्लाम धर्म आदम के साथ आया और इसके कानून पे चलने वाला मुसलमान कहलाया |अज्ञानी को ज्ञानी बनाने का काम इस्लाम ने किया | इंसान को अल्लाह ने बनाया और जब हज़रत आदम को दुनिया में भेजा तो कुछ कानून उन्हें बताये. जैसे कि कैसे जीवन गुजारो ?

 ऐसे ही तकरीबन एक लाख चौबीस हज़ार पैगम्बर आय और अल्लाह उनके ज़रिये इंसानों को इंसानियत का पैगाम देता रहा | एक इंसान में इर्ष्या ,हसद,लालच,जैसी न जाने कितनी बुराईयाँ हुआ करती हैं और इनपे काबू करते हुई जो अपना जीवन गुज़ार देता है सही मायने में इंसान कहलाता है या कहलें की सही मायने में मुसलमान कहलाता है |


यह तो कुछ लोगो ने समाज में फैला दिया है की नमाज़ ,रोज़ा ,हज्ज ,दाढ़ी,का नाम मुसलमान है|

जबकि मुसलमान नाम है इस्लाम के बताये कानून पे चलने का और यह कानून बताते हैं की, लोगों पे ज़ुल्म न करो ,इमानदार रहो ,इर्ष्या ,हसद और लालच से बचो|
इस्लाम अपराध करने वाले जालिमो का साथ देने,उनसे सहानभूति करने वालों और ज़ुल्म देख के चुप रहने वालों को भी अपराधी करार देता है |आप कह सकते हैं की इस्लाम न अपराध करने वालों को पसंद करता है और न ही अपराध को बढ़ावा देने वालों को पसंद करता है | 

यह फ़िक्र करने की बात है कि इंसानियत का सबक सिखाने वाला इस्लाम आज आतंकवादियों के शिकंजे में कैसे फँस गया ?

इंसान की फितरत है की वो दौलत, शोहरत ,ऐश ओ आराम के पीछे भागता है और अल्लाह कहता है की इसके पीछे न भागो वरना ज़िन्दगी जहन्नुम बन जाएगा |

 हमें बात समझ नहीं आती और हम लगते हैं दूसरों का माल लूटने, दहशत फैलाने , बलात्कार करने और नतीजे में इंसानियत का क़त्ल होता जाता है |

पैगम्बर इ इस्लाम हज़रत मुहम्मद ﷺ  के इस दुनिया से जाने के बाद ऐसे बहुत से ताक़तवर लोग थे जिनका मकसद था दौलत, शोहरत ,ऐश ओ आराम हासिल करना और वही लोग ताक़त और मक्कारी के दम पे बन बैठे इस्लाम के ठेकेदार | 

नतीजे में हक की राह पे चलने वाले मुसलमानों और गुमराह करने वाले मुसलमानों में आपस में जंग होने लगी | 
कर्बला की जंग इसकी बेहतरीन मिसाल है | 
जहां एक तरफ यजीद था जो मुसलमानों का खलीफा बना बैठा था और दुनिया में आतंक फैलता नज़र आता था|
 ज़ुल्म और आतंक की ऐसी मिसाल आज तक नहीं देखने को मिली | और दुसरी तरफ थे पैगम्बर इ इस्लाम के नवासे इमाम हुसैन (अ.स) जिन्होंने दुनिया को सही इस्लाम सिखाया, इंसानियत और सब्र का पैगाम दिया | नतीजे में उनको जालिमो ने शहीद कर दिया |


आज भी इस समाज में खुद को मुसलमान कहने वाले दो तरह के लोग हुआ करते हैं | 

एक वो जो नाम से तो मुसलमान लगते हैं ,नाम,रोज़ा ,हज ,ज़कात के पाबंद दिखते तो हैं लेकिन इस्लाम के बताये कानून पे नहीं चलते | यह वो लोग हैं जो इस्लाम का साथ तभी तक देते हैं जब तक इनका कोई नुकसान न हो |

जैसे ही इनके सामने दौलत ,शोहरत आती है यह इस्लाम के बताये कानून को भूल जाते हैं और जब्र से,मक्कारी से,झूट फरेब से दौलत,शोहरत को हासिल कर लिया करते हैं | कुरान मे�� इन्हें मुनाफ़िक़ कहा गया है और इनसे दूर रहने का हुक्म है |

ऐसे फरेबियों का हथियार होते हैं समाज के अज्ञानी लोग |

एक उदाहरण है इस्लाम में परदे का हुक्म| यह सभी जानते हैं की औरत के शरीर की तरफ मर्द का और मर्द के शरीर की तरफ औरत का आकर्षित होना इन्सान की फितरत है | इसी वजह से इस्लाम में इसको उस वक़्त तक छुपाने का हुक्म दिया है जब तक की दोनों को एक दुसरे से शारीरिक सम्बन्ध न बनाना  हो | 
इस्लाम में शारीरिक सम्बन्ध बनाने  के भी कुछ कानून हैं |
शायरों को भी कहते सुना जाता है की “चेहरा छुपा लिया है किसी ने हिजाब में,जी चाहता है आग लगा दूँ नक़ाब में |
 इसका मतलब साफ़ है की पर्दा उसे बुरा लगता है जो औरत के शरीर को खुला देखना चाहता है।

इस्लाम में एक दुसरे का “महरम” उसे कहते हैं जिसके साथ शादी न हो सके .जैसे माँ ,बहन,बेटी,दादी,नानी इत्यादि | और जिसके साथ शादी हो सकती है उसे “नामहरम”कहते हैं और नामहरम का एक दुसरे से शरीर का छिपाना आवश्यक है |
 संसार की सभी सभ्यताओं में ऐसा ही कानून है बस इस परदे का अलग अलग तरीका है |

वोह औरतें या मर्द जो जानवरों की तरह कहीं भी ,कभी भी, किसी से भी ,शारीरिक सम्बन्ध बना लेने को गलत नहीं समझते यदि अपने शरीर का प्रदर्शन करते दिखाई दें तो बात समझ में आती है लेकिन आश्चर्य तो उस समय होता है जब वो लोग जो इस्लाम के कानून को मानने का दावा करते हैं अपने शरीर का प्रदर्शन करते नजर आते हैं|

कई बार तो महरम और नामहरम की परिभाषा भी यह बदल देते हैं |कभी किसी नामहरम के करीब जाते हैं तो कहते हैं बेटी जैसी है, कभी कहते हैं बहन जैसी है | 
वहीं इस्लाम कहता है यह नामहरम है इस से पर्दा करो |

“अल्लाह ओ अकबर “ का नारा लगाने वाले ऐसे दो चेहरे वाले मुसलमानों के यहाँ होता वही है जो यह चाहते हैं या जो इनका खुद का बनाया कानून कहता है।

क्योंकि सवाल नामहरम औरत की कुर्बत का है| अल्लाह कहता है दूर रहो ,इंसान का दिल कहता है औरत के करीब रहो |जीत इन्सान के दिल की गलत ख्वाहिशों की होती है और नतीजे में कभी बलात्कार होता है कभी व्यभिचार होता है।

जब औरत के शरीर के करीब रहने की लालच इंसान को अल्लाह से दूर कर देती है, इस्लाम के कानून को भुला देता है तो दौलत और शोहरत की लालच के आड़े आने वाले इस इस्लाम के कानून को भुला देने में कितनी देर लगेगी |

यदि आप को यह पहचानना हो कि यह शख्स इस्लाम को मानने वाला है या नहीं | 
मुसलमान है या नहीं ? तो उसके सजदों को न देखो, न ही उसकी नमाज़ों को देखो बल्कि देखो उसके किरदार को ,उसकी सीरत को ,और यदि वो हज़रत मुहम्मद (स.अ.व) से मिलती हो,या वो शख्स समाज में अमन और शांति फैलाता दिखे या वो शख्स इंसानों में आपस में मुहब्बत पैदा करता दिखे तो समझ लेना मुसलमान है.

सलात (नमाज) रोज़ा यह सब इस्लाम की बुनियादी चीजें है इसलिए यह बहुत ही जरूरी है कयामत के दिन सबसे पहले नमाज का ही सवाल होगा फिर बाद में कुछ और होगा, पांच वक़्त का नमाज फ़र्ज़ है इसलिए हमें अफजल वक़्त पे नमाज अदा करनी चाहिए मगर नमाज ही क्यू हमें अपने नबी जैसा अखलाक भी बनाना चाहिए और वैसा किरदार भी यह बहुत ही जरूरी है। 
अल्लाह हम सब को अपने नबी के सीरत पे चला, हमें नेक और पक्का सच्चा मुसलमान बना। आमीन सूम्मा आमीन
ज़ालिम,नफरत का सौदागर कभी  मुसलमान नहीं हो सकता |

बुरा इस्लाम नहीं बल्कि उसका इकरार करने के बाद भी उसके कानून को ना मानने वाला इंसान है |

कहीं टाइपिंग में गलत हो गया हो तो कमेंट जरुर करे सुधार कर दिया जायेगा।
Share:

B. S. E. B. 10th Urdu Darakhshan Chapter 12 Fahmida Aur Manjhli Beti Hamida Ki Guftgu Question Answer | Bihar Board Urdu Sawal Jawab

B. S. E. B. 10th Urdu Darakhshan Chapter 12 Fahmida Aur Manjhli Beti Hamida Ki Guftgu  | Deputy Nazir Ahmad |Question Answer | Bihar Board Urdu Question Answer | Class 10 Urdu Question Answer

 Bihar Board Urdu Sawal Jawab | Fahmida Aur Manjhli Beti Hamida Ki Guftgu| Bihar Board 10th Urdu Question Answer Chapter 12

#BSEB #10th #Urdu #GuessPaper #UrduGuide #BiharBoard #SawakJawab #اردو #مختصر_سوالات #معروضی_سوالات #بہار#  DeputyNazirAhmad# اردو_سوال_جواب | Bihar Board 10th Urdu question Answer, 

BSEB 10th Urdu Darakhshan Chapter 12 , bihar board urdu Swal Jawab, Urdu question Answer, Matric Urdu Question Answer, Darakhshan Swal Jawab, Urdu gue
B. S. E. B. 10th Urdu Darakhshan Chapter 12

فہمیدہ اور منجھلی بیٹی حمیدہ کی گفتگو۔ 12
ڈپٹی نذیر احمد 

(1) نذیر احمد کب اور کہاں پیدا ہوئے؟
جواب - 6 دسمبر 1836 کو ضلع بجنور کے افضل گڑھ پرگنہ کی بستی کورئیر میں ہوئی۔

(2) نذیر احمد کے کسی دو ناولوں کے نام لکھے۔
جواب - ابن الوقت اور رویاے صادقہ 

(3) فہمیدہ اور حمیدہ نصوح کی کون تھی؟
جواب - فہمیدہ نصوح کی بیوی تھی اور حمیدہ نصوح کی بیٹی تھی۔

(4) نذیر احمد نے کس کی تعلیم و تربیت کے لیے ناول لکھیں۔
جواب - اپنے بچوں کی تعلیم و تربیت کے لیے 

(5) زیرِ نصاب ناول کے اقتباس سے دو کرداروں کے نام لکھے۔
جواب - فہمیدہ اور حمیدہ

(6) ڈپٹی نذیر احمد کی شادی كس سے ہوئی؟
جواب - مولوی عبدالخالق کی پوتی سے نذیر احمد کی شادی ہوئی۔

(7) مراۃ العروس ناول کب سایہ ہوا؟
جواب - 1869 میں سایہ ہوئی، اس کے دو کردار ابھی بھی زندہ ہے اکبری اور اصغری

(8) اُن کی وفات کب ہوئی؟
جواب - 28 دسمبر 1910 کو فالج کی وجہ سے۔

مختصر سوالات۔

(1) نذیر احمد کے بارے میں پانچ جملے لکھیے۔
جواب - نذیر احمد کی پیدائش 6 دسمبر 1836 کو ضلع بجنور کے افضل گڑھ پرگنہ کی بستی کورئیر میں ہوئی۔ اُن کے والد کا نام سعادت علی تھا۔ ابتدائی تعلیم گاؤں کے مکتب میں ہوئی۔ اعلیٰ تعلیم حاصل کرنے دہلی چلے گئے۔ اُنکی شادی مولوی عبدالخالق کی پوتی سے ہوئی۔ انہیں اردو کا اولین ناول نگار تعلیم کیا جاتا ہے۔ اُنکی وفات 28 دسمبر 1910 کو فالج کے وجہ سے ہوئی۔

(3) اردو کے کسی پانچ ناولوں کا نام لکھیے۔
جواب -
(الف) فہمیدہ اور منجھلی بیٹی حمیدہ کی گفتگو

(بِ) مراۃ العروس

(ت) صورت الخیالی

 (ٹ) مجالس انساء

(ٹ) ‌ اصلاح انساء




Share:

Waise Mard Aurat jo khud ko bure kamon se Sambhal kar rakhte hai

We log jo Khud ko Sambhal kar rakhte hai Bure Kamon se.

محبت میں پہل کیجئے

آج کل شوہر سے مقابلے کا رواج بہت پروان چڑھ رہا ہے. نئی نسل کی دوشیزائیں خود کو زیادہ لبرل منوانے کے چکر میں شوہر کے حقوق کی ادائیگی میں کوتاہی کے ساتھ ساتھ محبت میں پہل کرنے سے بھی کترانے لگی ہیں .

اس رشتے میں محبت، ایثار اور قربانی کہیں گم ہو گئی ہے یوں کہنا بھی غلط نہیں کہ یہ جذبات ناپید ہوتے جا رہے ہیں. یا شاید انا آڑے آجاتی ہے کہ میں کیوں پہل کروں محبت کے اظہار میں. میں تو عورت ہوں اور پہل کرنا تو مرد کا کام ہے..

عورت چاہے تو مقابلے بازی میں زندگی گزار دے کہ تم کماتے ہو تو میں بھی گھر کے کام کرتی ہوں اور چاہے تو اپنائیت اور محنت سے گھر کو جنت بنا لے . محنت کبھی رائیگاں نہیں جاتی..
اور پھر دیکھا جائے تو مرد بھی گرمی سردی کی پرواہ کیے بغیر کمانے جاتا ہے اسے خود سے زیادہ اپنے پہ انحصار کرنے والوں کی فکر رہتی ہے کہ انکی ضروریات پوری کی جائیں.. پورے مہینے کی محنت کے بعد ملنے والی تنخواہ خوشی سے گھر والوں کے ہاتھ پہ رکھتا ہے...
یہ بھی تو ہوسکتا ہے کہ ذمہ داریوں کو ادا کرنے کی تگ و دو میں وہ زندگی کے ان رنگوں سے نا آشنا ہو تو پھر ایک چھوٹی سی پہل کرنے میں کیا حرج ہے....


بہت انمول ہوتے ہیں وہ مسلمان مرد اور عورتیں جو اپنے آپ کو سنبھال کر رکھتے ہیں کسی قیمتی موتی کی طرح جو اپنے رب کا احکام اپنے آپ پر لاگو کرکے اپنے رب سے محبت کا حق ادا کرتے ہیں. 

🌼 ایک مسلمان مرد اور عورت کو اپنے کردار میں اتنا پاکیزہ اور مضبوط ہونا چاھیے کہ کوئی اپنی سوچوں میں بھی اسے گندہ نہ کرسکے، اپنے کردار کو اس قدر مضبوط اور صاف رکھو کہ سفرحیات آسانی سے گزر جاۓ حقیقی پاک دامن وہی ھے جسے گناہ کا موقع بھی ملے اور وہ گناہ نہ کرے.

*دِل اور موبائل اتنے پاک ہوں کہ اگر کوئی کھول کر دیکھ لے تو شرمندگی نہ ہو*

یاد رکھیں موت بتا کر نہیں آئے گی لہذا جس حد تک اور جیسے بھی ممکن ہو اللّٰه کے راستے پر چلتے رہیں کیونکہ نیکی رہ جاتی ھے، اور مشقت ختم ہوجاتی ھے گناہ رہ جاتا ھے، اور مزہ ختم ہوجاتا ھے

 حضرت علی کرم وجہہ کا فرمان ھے کہ جانور میں خواہش اور فرشتے میں عقل ہوتی ھے مگر انسان میں دونوں ہوتی ہیں اگر وہ عقل دبا لے تو جانور اور اگر خواہش کو دبا لے تو فرشتہ

’’شیطان کا پہلا ہدف حیا ہوتی ھے۔ جب ایک بار بندہ بے حیا ہو جائے، پھر اسے کوئی برائی، برائی لگتی ہی نہیں۔‘‘

 برائی کی طرف انسان دوڑ کر جاتا ھے، اور نیکی کی طرف اسے گھسیٹ کر لانا پڑتا ھے

 ایک راستہ ایسا بھی ھے کہ گناہ خود چھوڑ جائے گا اللّٰه والوں کے ساتھ رہو اہل تقوی کے ساتھ رہو اہل یقین کے ساتھ رہو اہل محبت  کے ساتھ.

غیر مسلم قرآن نہیں پڑھتے، نہ ہی حدیث پڑھتے ہیں، بلکہ وہ آپ کو پڑھتے ہیں۔ اس لئے اسلام کے اچھے با عمل سفیر بنیں۔
Share:

Sarkar Shadi ki Umar Badhane se Bachen.

Shadi ke liye umar Badhane se Parhej kare.
निकाह़ की आयु तय करने से परहेज़ करे*
मौलाना ख़ालिद सैफ़ुल्लाह रह़मानी _(महासचिव ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड)_ का वक्तव्य
----------------------------------------------
_नई दिल्ली: 20 दिसम्बर 2021 ई0_
   महासचिव ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड हज़रत मौलाना ख़ालिद सैफ़ुल्लाह रह़मानी साहब ने अपने प्रेस नोट में कहा कि निकाह़ मानव जीवन की एक महत्वपूर्ण आवश्यकता है, लेकिन निकाह़ किस आयु में हो इसके लिए किसी नियत आयु को मानक नहीं बनाया जा सकता, इसका सम्बन्ध स्वास्थ्य से भी है और समाज में नैतिक मूल्यों की सुरक्षा और समाज को अनैतिकता से बचाने से भी, इसलिए न केवल इस्लाम बल्कि अन्य धर्मों में भी निकाह़ की कोई आयु तय नहीं की गयी है, बल्कि इसको उस धर्म के मानने वालों के स्वविवेक पर रखा गया है, यदि कोई लड़का या लड़की 21 वर्ष से पूर्व निकाह़ की आवश्यकता महसूस करता है और निकाह़ के बाद के दायित्व का निर्वहन करने में सक्षम है तो उसको निकाह़ से रोक देना अत्याचार और एक वयस्क व्यक्ति की स्वतंत्रता में हस्तक्षेप है, समाज में इसके कारण अपराध को बढ़ावा मिल सकता है, 18 वर्ष या 21 वर्ष शादी की न्यूनतम आयु तय कर देना और इससे पूर्व निकाह़ को क़ानून के विरूद्ध घोषित करना न लड़कियों के हित में और न ही समाज के लिए लाभदायक है बल्कि इससे नैतिक मूल्यों को हानि पहुँच सकती है, वैसे भी कम आयु में निकाह़ का रिवाज धीरे-धीरे समाप्त होता जा रहा है लेकिन कुछ परिस्थितियाँ ऐसी आती हैं कि तय आयु से पूर्व ही निकाह़ कर देने में लड़की का हित होता है, इसलिए ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड सरकार से मांग करता है कि वह ऐसे बिना लाभ के बल्कि हानिकारक क़ानून बनाने से परहेज़ करे।

              जारीकर्ता
डॉ. मुहम्मद वक़ारुद्दीन लतीफ़ी
           कार्यालय सचिव
Share:

Describe the conditions which led to the Partition of India.

Describe the conditions which led to the Partition of the India. What are its Results?

भारत का बंटवारा किन कारणों से हुआ?

भारत विभाजन के उत्तरदाई कारणों पर प्रकाश डालें।
देश विभाजन के उत्तरदाई प्रीस्तिथियों या कारणों का वर्णन करें। इसके क्या परिणाम हुए?


किन कारणों से भारत देश का बंटवारा हुआ?


जवाब: 1947 से पहले के इतिहास को देखते समय जब भी भारत के बंटवारे की बात रखी जाती थी तो किसी को भी यह बात ना मुमकिन लगता था। ज्यादातर भारतीय जिसमे सभी संप्रदाय के लोग थे वे बंटवारा के खिलाफ थे फिर भी तत्कालीन प्रीस्तिथियो में यह संभव नहीं था के बंटवारा को टाला जा सके। बंटवारे यानी विभाजन के लिए निम्नलिखित वजहों को उत्तरदाई समझा जा सकता है।

(1) सांप्रदायिक कट्टरता : बंटवारे की सबसे बड़ी वजह बहुत ही पुरानी थी और वह था सांप्रदायिक कट्टरता।
 सभी धर्मो के नेता कट्टर संप्रदायिकवादी थे। आम जनता चाहे वह हिंदू हो या मुस्लिम सहिष्णु थे लेकिन उनके नेता हमेशा उन्हें उकसाते रहते थे। 

सांप्रदायिक भावनाओ को उभारने का नतीजा यह हुआ के हिंदुओ और मुसलमानों के बीच नफरत, मतभेद, असंतोष, प्रस्पर अविश्वास, सांप्रदायिक दंगे, असहिशुंता वगैरह तेजी से फैलते गए और यह सोच निकलने लगा के हिंदू और मुसलमान एक ही देश में नहीं रह सकते।

(2) जिन्ना की ज़िद: हिंदुस्तान के बंटवारे की दूसरी वजह थी मुस्लिम लीग के नेता मोहम्मद अली जिन्ना की ज़िद। जिन्ना जिस वक्त मुस्लिम लीग में शामिल हुआ उस समय तक किसी मुसलमान के दिमाग में पाकिस्तान की कल्पना भी नहीं थी लेकिन जिन्ना जो के कट्टर जिद्दी और संघर्ष के लिए तैयार रहने वाला शख्स था उसने पाकिस्तान की मांग उठाई और हर ऐसी योजना को नामंजूर कर दिया जिसमे पाकिस्तान का जिक्र नही था। इसलिए वह सारे हिंदुस्तान के मुसलमानों का नेता खुद को समझता था और उसने पाकिस्तान निर्माण के लिए जिद पर अड़ा रहा।

(3) कांग्रेस की तुष्टिकरण की नीति : भारत के बंटवारे के लिए कांग्रेस भी कम जिम्मेदार नहीं थी। कांग्रेस की नीतियां हमेशा मुस्लिम लीग को खुश करने में लगी रही। गांधी जी जिन्ना और मुस्लिम लीग के सामने हथियार डाल रखे थे। 

वे अंग्रेजो से किसी भी समझौते से पहले यह चाहते थे के जिन्ना भी इससे सहमत हो जाए और वे इसके लिए हर बड़ी से बड़ी कुर्बानी देने के लिए तैयार थे। ऐसा लगता था के कांग्रेस भी जिन्ना को एकमात्र प्रतिनिधि मानते थे नही तो फिर मुसलमानों के हितों के लिए सिर्फ जिन्ना को ही महत्त्व क्यों दिया गया जबकि दूसरे राष्ट्रवादी नेता भी मौजूद थे।

 कांग्रेस को खुद के सभी वर्गों की संस्था होने पर शक था। अगर ऐसा नहीं तो कांग्रेस के नेताओ को ब्रिटिश सरकार से कहना चाहिए था की उनकी संस्था संपूर्ण राष्ट्र और सभी संप्रदायो का प्रतिनिधित्व करती है। इसलिए उनके साथ ही वार्ता और समझौता किया जाए। इसके विपरित कांग्रेस ने मुस्लिम लीग और जिन्ना को जरूरत से ज्यादा महत्व देकर उसे खुश करने की कोशिश किया।


(4) ब्रिटिश सरकार की घटिया नीति: भारत के बंटवारे के लिए ब्रिटिश सरकार भी पूरे तरह से जिम्मेदार थी। जिन्ना और मुस्लिम लीग को इतना महत्व देना ब्रिटिश नीति की एक चाल थी। 

   अंग्रेज जानते थे के जब तक वे हिंदू और मुसलमान की राजनीति करेंगे यानी हिंदुओ और मुसलमानों में फुट डाले रखेंगे तब तक इस देश में उनके शासन को कोई खतरा नहीं है। 

अंग्रेजो ने "फुट डालो और राज करो" की नीति सांप्रदायिक चुनाव पद्धति, और अल्पसंख्यकों को प्रतिनिधित्व देने की नीतियां अपनाकर भारत के सभी संप्रदायों में फुट डालने का सफल प्रयास किया। मुस्लिम लीग को हर जगह जरूरत से ज्यादा प्रतिनिधित्व दिया गया। चाहे विधापरिषद का निर्वाचन हो या गवर्नर जनरल की कार्यकारिणी या अंतिम सरकार, मुसलमानों को उनकी संख्या के अनुपात से कहीं अधिक स्थान प्रदान किए गए।

 इसके अलावा भी ब्रिटिश सरकार की यह नीति थी के अगर हिंदुस्तान एक ही राष्ट्र बना रहा तो यह बहुत ज्यादा शक्तिशाली हो जायेगा इसलिए भारत को कमजोर बनाने के लिए उसको बांट दिया जाए। विभाजित राज्य आपस में हमेशा लड़ते रहेंगे और कभी शक्तिशाली नहीं बन पायेंगे। 


(5) अंतिम सरकार की असफलता: 1946 के शुरुवात में बनाई गई अंतरिम सरकार में पहले कांग्रेस शामिल हुई और फिर बाद में मुस्लिम लीग भी शामिल हो गई। 
आपसी वैमनस्य , द्वेस, अविश्वास और असंतोष के कारण कांग्रेस और मुस्लिम लीग की यह अंतरिम सरकार असफल हो गई जिससे यह साबित हो गया के हिंदू और मुसलमान एक साथ मिलकर काम नहीं कर सकते इसलिए देश का बंटवारा कर दिया जाए।

(6) विभाजन एक आवश्यक बुराई: तत्कालीन परिस्थितियों में एक बुराई होते हुए भी विभाजन आवश्यक हो गया था। जिन्ना और उसके नेतृत्व में मुसलमान पाकिस्तान बनाने के लिए हर संभव प्रयास करने लगे। 

अंग्रेजो ने भी मुसलमानों को भड़काने का सफल कोशिश किया। ऐसे में कांग्रेस और दूसरी राष्ट्रवादी पार्टियां भारत की एकता का प्रयास करते तो पूरे राष्ट्र में आराजकता फैल जाती और देश के सैकड़ों टुकड़े हो जाते। इसलिए कांग्रेस ने एक आवश्यक बुराई होने के नाते इसे स्वीकार किया। 

(7) राष्ट्रवादी मुसलमानों की गलत नीति: राष्ट्रवादी मुसलमान जो धार्मिक रूप से उदार थे देश की एकता के लिए सभी कांग्रेस में ही शामिल हो गए थे। 

जिसका नतीजा यह हुआ के सभी विभाजनवादी मुस्लिम नेता ही मुस्लिम लीग में रह गए। मुस्लिम लीग को देश की अखंडता के लिए तैयार करते और विभाजनवादी नेताओ को दबाकर लीग का स्वरूप राष्ट्रवादी और देश की अखण्डता का समर्थक बताते तो यह संभव था की देश का विभाजन नहीं होता।


(8) लॉर्ड इटली की घोषणा और माउंटबेटन का प्रभाव: लॉर्ड इटली ने घोषणा की थी के अगर भारत के राजनीतिक गतिरोध का कोई समाधान नहीं निकला तो ब्रिटिश सरकार किसी को भी सत्ता सौंपने के लिए तैयार होगी और जरूरत के मुताबिक सत्ता हस्तांतरित कर देगी। इसके लिए जून 1948 तक भी इंतजार न करके 1947 में सत्ता हस्तांतरित करने की बात कही गई थी।

 इसी घोषणा से कांग्रेस और दूसरे राष्ट्रवादी पार्टियों ने विचार किया की अगर ब्रिटिश सरकार ने घोषित नीति पर अमल किया तो देश में अराजकता फेल जायेगी इसलिए उन्होंने विभाजन को स्वीकार कर लिए।
                    इसके अलावा लॉर्ड माउंटबेटन का प्रभाव भी कांग्रेस द्वारा विभाजन को स्वीकार करने में निर्णायक रहा। लॉर्ड माउंटबेटन मार्च 1947 में भारत में गवर्नर जनरल बनकर आया था। 

एक दो महीने में ही भारत की तत्कालीन स्थिति का अध्ययन कर उसने निष्कर्ष निकाला के बिना विभाजन के भारत की समस्या का समाधान निकालना संभव नहीं , इसलिए उसने जवाहर लाल नेहरू और सरदार पटेल को अपने ठोस तर्को से विभाजन स्वीकार करने के लिए तैयार किया।

विभाजन के लिए उत्तरदाई उपरोक्त वर्णित कार्यों का अध्ययन करने के बाद इस प्रश्न का उत्तर यही है की विभाजन अनिवार्य था। यह माना जा सकता है के विभाजन एक बुराई थी, इससे देश विभाजित और कमजोर हुआ, करोड़ों लोग बेघर और संपतिहीन हो गए।

 हजारों लोगों की जाने चली गई लेकिन तत्कालीन परिस्थितियों के कारण अगर हिंदुस्तान का बंटवारा नहीं किया जाता तो भारत की स्थिति इतनी भयावह होती के उसकी कल्पना करना भी मुश्किल है।
Share:

Discuss the Career , work and Achievements Of Tipu Sultan.

Discuss the Career , work and Achievements Of Tipu Sultan.



टीपू सुल्तान की जीवनी , कार्य और उपलब्धियों का वर्णन करें।

जवाब - 6 दिसंबर 1872 को हैदर अली की मौत के बाद शासन की बागडोर टीपू सुलतान के हाथो में मिला। 1783 में टीपू सुल्तान ने वेदनूर पर अधिकार कर लिया। इधर उत्तर पश्चिम की ओर से इनपर हमले हुए , जब तक वह अंग्रेजो की ओर ध्यान देते तब तक अंग्रेजो ने पुलर्तन कोयंबटूर पर अधिकार कर लिया। इधर टीपू सुल्तान श्रीरंगापटनम की और बढ़ रहे थे जिससे अंग्रेज बहुत है फिक्रमंद थे। चूंकि टीपू सुल्तान और अंग्रेज दोनो ही परेशानी में थे। दोनो मे मंगलौर नमक जगह पर 17 मार्च 1784 को एक संधि हुई। दोनो ने एक दूसरे के जीते हुए इलाके को छोड़ दिया और कैदियों को आजाद कर दिया। मंगलौर के समझौते के बाद भी टीपू सुल्तान और अंग्रेजो में गुस्से का माहौल बना रहा। लॉर्ड वेलेजली के वक्त में टीपू और अंग्रेजो के बीच तीन मैसूर युद्ध हुआ।
तीसरे युद्ध में टीपू सुलतान की हार हुई मगर वे हौसला नहीं हारे। उन्होंने फ्रांसिसियों से दोस्ती कर ली और लगातार अपनी ताकत बढ़ाते रहे। इस से अंग्रेज बहुत घबरा गए और चौथा मैसूर युद्ध हुआ। जिसमे टीपू सुल्तान शहीद हो गए। मैसूर राज्य को अंग्रेजो ने तहस नहस कर दिया और वहां प्राचीन हिंदू राजवंश के एक बेटे को वहां का अधिनस्थ राजा बना दिया।

टीपू सुल्तान के चरित्र और कार्य: टीपू सुल्तान के जिंदगी को हम तीन हिस्सों में बांट सकते है।

(i) व्यक्ती के रूप में: टीपू सुल्तान बहुत ही बहादुर, होशियार और तजुर्बेकार शख्स था। वह हर काम नियमित ढंग से किया करता था। वह उच्च कोटि का विद्वान और जिज्ञासु प्रवृति का था। वह आधुनिक ज्ञान प्राप्त करने में बहुत दिलचस्पी रखता था।

 वह हिंदी , फारसी और कन्नड़ का योग्य वक्ता था और पढ़ने लिखने में बहुत ही दिलचस्पी रखता था। 
उसे विज्ञान, वैधक, धर्म ओ शासन के विभिन्न विषयों का अच्छा ज्ञान था जिसपर वह समय समय पर विचार प्रकट किया करता था। 

उसने एक बहुत बड़ा पुस्तकालय बनवाया था, जिसमे विभिन्न विषयों पर पांडुलिपियां मौजूद थी। उसने अनेक पत्र भी लिखे थे। वे स्वामी भक्तो और राज्य भक्तो के प्रति बहुत ही उदार और दयालु था। उसमे अदमय उत्साह और नैतिक बल था। अंग्रेजो को लेकर वह हमेशा होशियार रहता था, आखिरी सांस तक उसने अंग्रेजो से मुकाबला किया और अपना लोहा मनवाया। 

 टीपू सुल्तान का चिन्ह बाघ था जो उसके बहादुरी और निडरता को परिभाषित करता था। वह बहुत ही शक्की मिजाज का आदमी था। वह कभी भी किसी पर जल्द विश्वास नहीं करता था। वह कभी किए हुए वादे से पीछे नहीं हटता था और हमेशा अपने दुश्मनों के साजिश को नाकाम बनाने में लगा रहता था। उसे खुदा (ईश्वर) पर बहुत ही विश्वास था।

विद्वानों ने उसे अति विद्वान और धर्मांध बताया है। इंग्लैड की औरतें अपने बच्चे को टीपू सुल्तान का नाम लेकर डराया करती थी। 
उसे अपने आप पर गर्व था।
 एक बार उसने अपने फ्रांसीसी सलाहकार से कहा के अकेला पड़ने पर और बहुत सारी मुसीबतों से घिरा होने पर भी खुद को अकेला महसूस नहीं करता था क्योंकि खुदा ( ईश्वर ) और खुद की बहादुरी तथा उससे मिली मदद पर उसे पूरा यकीन था। यह आत्मविश्वास उसका एक खास खूबी था।

उसे खुद पर पर बहुत गर्व था, वह खुद को सर्वाधिक ज्ञानी, विद्वान, बुद्धिमान, वीर और साहसी समझता था। मुनरो ने लिखा है " उसमे अदमय उत्साह और शक्ति थी और वह अपने सभी कामों को नियमित ढंग से किया करता था। उसमे अदमय शारीरिक वा मानसिक शक्ति थी "।

(2) सैनिक के रूप में: शुरत्व और आत्मसम्मान टीपू के ऐसे गुण थे, जिन्होंने उसे सफल सैनिक रूप में इतिहास में ख्याति दिलवाई। वह बहुत ही बहादुरी से लड़ते हुए शहीद हुए। 

 टीपू एक अत्यंत योग्य और कुशल सेनानायक था। सच तो यह है के उसमे सैन्य संचालन में अपूर्व प्रतिभा थी। व्यूह रचना और रणकौशल में वह उच्चकोटि का परवीन व्यक्ति था। उसने अपनी ताकत के नशे में अपनी योग्यता पर ज्यादा विश्वास कर लिया जिससे उसे खतरनाक अंजाम भुगतने पड़े। 

उसकी एक बड़ी भूल थी के उसने हमेशा अपने घुड़सवार सेना को नजरंदाज किया। वह हमेशा तोप खाने की तरक्की में लगा रहता था। इसमें कोई शक नही के वह बहुत ही बहादुर था जिसने अंग्रेजो को कई बार हराया, अगर देशी नरेश टीपू सुल्तान का  साथ देते तो अंग्रेज कभी भारत पर हुकूमत नहीं कर पाता। जिस तरह निजाम, मराठा ने टीपू के खिलाफ अंग्रेजो का साथ दिया उसे भारतीय इतिहास कभी नहीं भूलेगा।

(3) एक शासक के रूप में: टीपू सुल्तान बहुत ही उदार और दयालु शासक था। उसके राज्य में आर्थिक संपन्नता चारो ओर मौजूद थी। कृषि , व्यापार और कारोबार तरक्की पर थे। उसकी प्रजा खुशहाल जिंदगी जी रही थी। वह अपनी प्रजा को खुश रखने के लिए बहुत मेहनत किया करता था। टीपू सुल्तान मुसलमान होते हुए भी अपने हिंदू प्रजा के साथ बहुत ही उदार व्य था। 
उनके सुख दुख का पूरी तरह से ख्याल रखता था। उसने मंदिर बनवाने के लिए हमेशा हिंदुओ की मदद किया करता था, उसने हिंदुओ को सरकारी नौकरियों की भी आजादी दे रखी थी। वह कई बार उच्च पदों पर भी हिंदुओ को भी नियुक्त कर देता था। टीपू का मस्तिष्क बहुत ही उर्वर और सक्रिय था। उसमे सुधार करने की तीव्र प्रवृति थी। चारित्रिक प्रबलता और निष्कलंकता उसमे महान गुण था।
Share:

Modi Sarkar Ab Ladkiyo ki Shadi ki Umar 18 se 21 Karegi.

Shadi ki Umar kitni honi chahiye?


मोदी सरकार अब लड़कियों की शादी की उम्र 21 साल करेगी जिसका मुस्लिम नेताओं ने किया विरोध।

लड़कियों के शादी की उम्र कितनी होनी चाहिए?

आपको बता दें के भारत सरकार  एक कानून बनाने वाली है जिसके तहत अब लड़कियों को भी लड़के के जैसा ही 21 साल या उससे ज्यादा उम्र में शादी करनी होगी , 21 साल से पहले नही।
क्या शादी की उम्र बढ़ाने से देश की तरक्की होगी?
 
लड़कियों की शादी के लिए न्यूनतम आयु को 18 से बढ़ाकर 21 किए जाने के प्रस्ताव को केंद्रीय मंत्रिमंडल की मंज़ूरी का एआईएमआईएम सांसद असदुद्दीन ओवैसी समेत कई नेताओं ने विरोध किया है.

लोकसभा सांसद ओवैसी ने ट्वीट करके कहा है कि '18 साल की आयु के महिला-पुरुष व्यापार शुरू कर सकते हैं, समझौते पर हस्ताक्षर कर सकते हैं, प्रधानमंत्री चुन सकते हैं लेकिन शादी नहीं कर सकते हैं.'
दूसरी तरफ़ इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल) ने शुक्रवार को संसद में लड़कियों की शादी की उम्र 18 से 21 साल करने के सरकार के प्रस्ताव का विरोध करते हुए स्थगन प्रस्ताव का नोटिस दिया था. IUML ने कहा है कि यह मुस्लिम पर्सनल लॉ में अतिक्रमण है.

IUML के नेता और राज्यसभा सांसद अब्दुल वहाब ने लिखा है, ''लड़कियों की शादी की उम्र 18 से बढ़ाकर 21 साल करने का प्रस्ताव, जिसे कैबिनेट ने मंज़ूरी दे दी है, उसका मक़सद मुस्लिम पर्सनल लॉ में अतिक्रमण करना भी है.''

केरल के भी कई मुस्लिम संगठनों ने उम्र बढ़ाने का विरोध किया है. मुस्लिम लीग नेता ईटी मोहम्मद बशीर ने शुक्रवार को लोकसभा में लड़कियों की शादी की उम्र बढ़ाने के ख़िलाफ़ स्थगन प्रस्ताव का नोटिस दिया था. उन्होंने कहा कि यह फ़ैसला मुस्लिम पर्सनल लॉ के ख़िलाफ़ है और यूनिफॉर्म सिविल कोड की तरफ़ सरकार ने एक और क़दम बढ़ा दिया है. 

उन्होंने कहा, ''हम इसका विरोध करेंगे. सरकार संघ परिवार को पसंदीदा एजेंडा यूनिफॉर्म सिविल कोड को लागू करने की कोशिश कर रही है. मुस्लिम पर्सनल लॉ बोड में शादी, तलाक़ और संपत्ति के अधिकार की व्याख्या है. ये मुद्दे हमारी आस्था से जुड़े हैं.''

हैदराबाद से लोकसभा के सदस्य असदुद्दीन ओवैसी ने सिलसिलेवार ट्वीट करके केंद्रीय मंत्रिमंडल के इस फ़ैसले पर नाराज़गी जताई है.

उन्होंने ट्वीट किया, "महिलाओं की शादी की उम्र बढ़ाकर 21 करने का फ़ैसला मोदी सरकार ने लिया है. यह एक ख़ास पितृत्ववाद है, जिसकी हम सरकार से उम्मीद करते आए हैं. 18 साल के पुरुष और महिला समझौते पर हस्ताक्षर कर सकते हैं, व्यापार शुरू कर सकते हैं, प्रधानमंत्री, विधायक, सांसद चुन सकते हैं लेकिन शादी नहीं कर सकते?

वे सहमति से शारीरिक संबंध बना सकते हैं और लिव-इन पार्टनर के तौर पर रह सकते हैं लेकिन अपना जीवनसाथी नहीं चुन सकते हैं?
 पुरुषों और महिलाओं के क़ानूनी विवाह की उम्र 18 होने की अनुमति देनी चाहिए जैसा कि उन्हें बाक़ी सभी उद्देश्यों के लिए क़ानून द्वारा वयस्क माना जाता है."

"क़ानून होने के बावजूद बाल विवाह बड़े पैमाने पर हो रहे हैं. भारत में हर चौथी महिला 18 साल की होने से पहले ब्याह दी जाती है लेकिन सिर्फ़ 785 आपराधिक मामले ही दर्ज होते हैं. अगर बाल विवाह पहले कि तुलना में कम हुए हैं तो यह सिर्फ़ शिक्षा और आर्थिक प्रगति की वजह से हुए हैं न कि आपराधिक क़ानून की वजह से."

ओवैसी ने कई ट्वीट करके केंद्रीय मंत्रिमंडल के इस फ़ैसले पर नाराज़गी जताई है. उनके अलावा समाजवादी पार्टी, इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग, सीपीएम और कांग्रेस के नेताओं ने भी इस क़ानून को लेकर नाराज़गी ज़ाहिर की है.

कांग्रेस ने केंद्रीय मंत्रिमंडल के इस फ़ैसले पर अभी तक अपनी कोई राय ज़ाहिर नहीं की है लेकिन पार्टी प्रवक्ता शक्ति सिंह गोहिल ने इस पर कहा है कि यह 'मोदी सरकार की एक चाल है ताकि किसानों के मुद्दे और केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा टेनी को हटाने की विपक्ष की मांग से ध्यान हटाया जा सके.'

वहीं समाजवादी पार्टी सांसद शफ़ीक़ुर्रहमान बर्क़ ने कहा है कि 'भारत एक ग़रीब देश है और हर कोई अपनी बेटियों की शादी जल्दी करना चाहता है. मैं संसद में इस क़ानून का समर्थन नहीं करूंगा.'


सीपीएम नेता बृंदा करात ने सरकार के प्रस्ताव पर कहा कि यह महिला सशक्तीकरण में मदद नहीं करेगा बल्कि यह वयस्कों की व्यक्तिगत पसंद का अपराधीकरण करेगा.

उन्होंने सलाह दी कि मोदी सरकार को लैंगिक समानता सुनिश्चित करते हुए पुरुषों के शादी की उम्र 21 से घटाकर 18 करनी चाहिए.

उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार को लड़कियों की शिक्षा और महिलाओं का पौष्टिक भोजन सुनिश्चित करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए न कि 'असली मुद्दों से ध्यान हटाने पर.'


Share:

Saudi Arab me Tablighi jamat par Pabandi Sahi ya Galat?

Janiye Saudi Arabia ne kyu Tablighi jamat par pabandi lagaya?

Tablighi Jamat par pabandi Sahi ya Galat?
سعودی عرب میں تبلیغی جماعت پر پابندی صحیح یا غلط؟

سعودی عرب مغربی ایشیا کا ایک عظیم ملک ہے جو کہ جزیرہ نمائے عرب کی وسیع اکثریت پر پھیلا ہوا ہے،یہ مشرق وسطی (Middle East ) کا سب سے بڑا ملک اور عالم عرب کا دوسرا سب سے بڑا ملک ہے،موجودہ سعودی ریاست کا ظہور ۱۷۵۰ء میں شیخ محمد بن سعود اور شیخ محمد بن عبدالوہاب کی قیادت میں شروع ہوا تھا،اگلے ڈیڑھ سو سالوں میں آل سعود کے مصر، سلطنت عثمانیہ اور دیگر عرب خاندانوں سے تصادم ہوئے اور بعد ازاں شاہ عبدالعزیز المعروف بسلطان ابن السعود کے ہاتھوں اسکا باقاعدہ قیام عمل میں آیا،شاہ عبدالعزیز نہایت پارسا اور باحوصلہ انسان تھے،انہوں نے حرمین شریفین پر قبضہ کرنے کے بعد ۱۳ تا ۱۹ مئی 1926ء کے درمیان پوری دنیا کے مسلم رہنماؤں پر مشتمل ایک موتمر اسلامی طلب کی جس میں ۱۳ اسلامی ملکوں نے شرکت کی،خلافت عثمانیہ کے سقوط کے بعد اتحاد اسلامی کی یہ پہلی سعی تھی یہی وجہ ہے کہ اسلامی ہند کے وفد کی سب سے ممتاز شخصیت محمد علی جوہر نے کہا تھا کہ اس موتمر کو تحریک اسلامی اتحاد کی راہ میں ایک سنگ میل کی حیثیت قرار دیا جاسکتا ہے،

ابن سعود اور انکے ہمنوا چونکہ وہابی تحریک کے پیرو تھے لہذا انہوں نے اپنی حکومت کی بنیاد توحید خالص اور اسلامی تعلیمات پر رکھی، قرآن کو ملک کا آئین بنایا اور اپنے تمام اعمال کو انجام دینے کے لئے علماء موحدین کی ایک مجلس قائم کی،چنانچہ وہ تمام غیر اسلامی اعمال جو ترکوں کے عہد سے جاری تھے ان پر یک لخت پابندی عائد کردی گئی مثال کے طور شراب کی خرید وفروخت،قبر پرستی،حجاج کرام سے بیجا ٹیکس لینا وغیرہ،شیخ ابن سعود کے ان اقدامات کے سبب ملک میں اسلامی تہذیب وتمدن کا رواج ہوا اور غیر اسلامی افعال جیسا کہ شرک،بت پرستی اور بدعات وخرافات کا خاتمہ ہوا، 

شیخ محمد بن عبدالوہاب کی جماعت کی بنیادی دعوت چونکہ توحید خالص،شرک کے مراسم سے دوری،قبر پرستی سے بیزاری اور بدعات وخرافات سے تنفر پر تھی جو کہ تمام انبیاء ورسل کی دعوت ہوا کرتی ہے لہذا دنیا کے مختلف خطوں میں بدعتی گروہوں اور منحرف فرقوں نے اس جماعت کو سرے سے خارج از اسلام قرار دے دیا،ظاہر سی بات تھی کہ مملکت توحید کو بھی اس عتاب کی زد میں آنا تھا لہذا از ابتدا یہ حکومت تمام فرق ضالہ کے لعن طعن کا شکار رہی،اور اس آگ پر مزید گھی ڈالنے کا کام مملکت توحید کے تبلیغی جماعت پر پابندی لگانے کے حالیہ فیصلہ نے کیا،حالانکہ اہل بصیرت سے یہ مخفی نہیں ہے کہ تبلیغی جماعت پر پابندی کوئی نئی نہیں ہے بلکہ تمام ائمہ مساجد کو اس جماعت کے خلاف خطبات کی ہدایت دراصل پرانی پابندی کا اعادہ ہے،اور اس ماجرے کو سمجھنے کے لئے پہلے ہمیں سعودی عرب میں جاری نظام کو سمجھنا ہوگا جو مختصرا یہ ہے کہ چونکہ اس ملک میں ملوکیت قائم ہے اس وجہ سے کسی بھی سیاسی اور مذہبی جماعت کو قانون کے تحت کام کرنے کی کوئی اجازت نہیں ہے،بلکہ حکومت کی جانب سے ایک ادارہ" وزارة الشؤون الإسلامية والدعوة والإرشاد"اس اہم فریضہ کی ادائیگی کے لئے مختص کیا گیا ہے،جو ملک کے تمام مذہبی امور کی نگرانی کرتا ہے اور دعوت و تبلیغ کے فرائض انجام دیتا ہے،مگر تبلیغی جماعت نے اس عام حکمنامہ کی خلاف ورزی کرتے ہوئے ملک میں خفیہ طریقہ سے جماعتی سرگرمیوں کو پھیلانا شروع کردیا تھا اور اور حکام کی نظر سے بچنے کے لئے تبلیغی جماعت کے بجائے "احباب "کا نام اختیار کرلیا تھا، علاوہ ازیں ایسی تنظیمیں جن پر سعودی عرب نے پابندی عائد کر رکھی ہے وہ بھی تبلیغی جماعت یا احباب کے نام سے اپنی سرگرمیوں کو جاری رکھے ہوئے تھیں،جیسا کہ محمد سرور زین العابدین کی تنظیم"السلفیۃ السروریۃ " (جس پر اسی سال اکتوبر کے اواخر میں پابندی لگائی گئی ہے) سے وابستہ بعض افراد کے سلسلہ میں حکومت کو یہ اطلاع ملی کہ یہ جماعت "الاحباب" میں شامل ہوگئے ہیں،اسی طرح الاخوان المسلمون کا معاملہ سامنے آیا، ان تمام معاملات سے اگر چشم پوشی کربھی لی جائے پھر بھی تبلیغی جماعت کی جو گمراہیاں اور ضلالتیں ہیں وہ قطعا اس بات کی اجازت نہیں دیتیں کہ کسی توحید پرست ملک میں یہ جماعت پھلے پھولے اور نہ صرف یہ کہ عوام الناس کے صحیح عقائد واعمال میں فساد پیدا کرے،بلکہ باطل تصوف اور رہبانیت کی جانب لوگوں کے ذہنوں کو مائل کرے،اگرچہ اس سے متعلق تمام اعمال اسلام ہی کا حصہ معلوم ہوتے ہیں،مگر درحقیقت یہ اسلام کے نام پر بدترین دھوکہ ہے،مسلمانوں میں شرک و بدعت کو رواج دینا اور انکے عقیدہ و اعمال میں فساد پیدا کرنا دشمنان اسلام کی سوچی سمجھی سازش ہے، جسکا واحد مقصد اس امت کو ٹکڑے ٹکڑے کرکے اس کا وجود ختم کر دینا ہے۔

   حافظ عبدالسلام ندوی
Share:

Shadi se Pahle apni betiyo ko Taharat ke Masail Jarur Samjhaye.

Shadi se Pahle Apni betiyo ko Taharat ke masail jarur samjhaye.

السلام علیکم ورحمۃ اللہ و برکاتہ

وقت نکال کر ضرور پڑھیں!

اپنی بیٹیوں کو شادی سی پہلے طہارت کے مسائل سکھا کر رخصت کریں.
 
ہمارے معاشرے میں پڑھے لکھے ان پڑھوں کی تعداد روز بروز بڑھ رہی ہے۔ آۓروز ہم دیکھتے ہیں کہ ہمارے ارد گرد کٸی لوگوں کی شادیاں ہوتی ہیں اورکئی لڑکیاں نیل پالش لگائے ہوئے غسل کر لیتی ہیں۔ جب کہ کئی کئی دن وہ ناپاک رہتی ہیں، اور کچھ نے تو آرٹیفشل نیلز فکس کروائے ہوتے ہیں جو ایک یا دو دن کے لیے ہوتے ہیں جس کی وجہ سے وہ پاک ہی نہیں ہوتیں.
 ماؤں کا فرض بنتا ہے انہیں یہ سب کچھ شادی سے پہلے سکھا کر شوہر کے گھر بھیجیں. 
شادی کی تیاری میں آپ کو کلر کنڑاسٹ سے لےکر ہر بوتیک، ہر برانڈ اور اچھا پارلر سب یاد رہتا ہے. پوری دیانت داری سے اپنا وقت کپڑوں اور جیولری سلیکشن میں صرف کرتی ہیں۔ اپنے مطلب کی ایک ایک چیز ڈھونڈنے میں پورے دن کا ضیاع بھی گوارا ہے. میچنگ کے چکر میں گھنٹوں برباد ہوں تو خیر ہے۔۔۔۔ مگر وقت نہیں تو دین کے چند بنیادی مساٸل سیکھنے کا۔۔۔۔ طہارت کے مساٸل جاننے کا۔۔۔ 

 یادرکھیں:
ظاہری طہارت کی بھی تین قسمیں ہیں۔ ایک نجاست سے طہارت، دوسرے حدث و جنابت سے طہارت اور تیسرے ان چیزوں سے طہارت جو بدن میں بڑھ جاتی ہیں، جیسے ناخن اور ناپسندیدہ بال وغیرہ۔

پہلی قسم ظاہری نجاست اور پلیدگی سے جسم، لباس اور جگہ کو پاک و صاف کرنا ہے۔ دوسری قسم جن حالتوں میں غسل یا وضو واجب ہے، ان حالتوں میں غسل یا وضو کرکے شرعی طہارت و پاکیزگی حاصل کرنا ہے۔ اور تیسری قسم جسم کے مختلف حصوں میں جو گندگی اور میل پیدا ہوتا رہتا ہے اس کی صفائی کرنا ہے، جیسے ناک، دانتوں اور ناپسندیدہ بالوں کی صفائی۔

اسلامی عقائد میں جو اہمیت توحید کی ہے وہی حیثیت عبادت میں طہارت کی ہے۔ جیسے توحید کے بغیر کوئی عمل قبول نہیں ہو سکتا، ویسے ہی طہارت کے بغیر کوئی عبادت قبول نہیں ہوسکتی۔ جس طرح ہم توحید کو مذہبی اعتقادات کا اصل الاصول سمجھتے ہیں اسی طرح طہارت پر اپنی عبادات کا دار و مدار بھی مانتے ہیں۔

حدیث نبوی صلی اللہ علیہ وسلم ہے:
"لا يَقْبَلُ اللَّهُ صَلاةٌ بِغَيْرِ طُهُورٍ " (مسلم)
ترجمہ:
"اللہ تعالیٰ طہارت کے بغیر نماز قبول نہیں کرتا ہے۔"

یہی وجہ ہے کہ اسلام میں سب سے پہلے طہارت کا باب پڑھایا جاتاہے۔کیونکہ طہارت نماز کی کنجی ہے۔اللہ تعالیٰ نے قرآن مجید میں ان لوگوں کی متعدد مقامات پر تعریف کی ہے جوصفائی کا خاص خیال رکھتے ہیں۔اس صفائی کی وجہ سے اللہ ان سے محبت بھی کرتا ہے۔

اللہ فرماتا ہے :
{إِنَّ اللَّهَ يُحِبُّ التَّوّ‌ٰبينَ وَيُحِبُّ المُتَطَهِّرينَo} [سورةالبقرہ:٢٢٢]
ترجمہ:
"بلاشبہ اللہ تعالیٰ توبہ کرنے والوں اور طہارت اختیار کرنے والوں کو پسند کرتا ہے۔"

اللہ تعالیٰ ہمیں عقائد و اعمال کی پاکیزگی کے ساتھ ساتھ ظاہری و باطنی ہر قسم کی نجاستوں سے طہارت و پاکیزگی اختیار کرنے کی توفیق سے نوازے۔ آمین

جزاک اللہ خیرا واحسن الجزاء 

اے ماؤں۔۔۔!
اللہ کے لئےکچھ وقت نکال کر اپنی بیٹیوں کو جنابت و طہارت کے مسائل بھی سکھادیا کریں۔
نقل کیا ہوا۔
┄┄┅┅✪❂✵✵❂✪┅┅┄┄
Share:

Translate

youtube

Recent Posts

Labels

Blog Archive

Please share these articles for Sadqa E Jaria
Jazak Allah Shukran

Most Readable

POPULAR POSTS