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Quran Ki 24 Aayatein jiske Jariye Logo me Nafrat Failaya Ja raha Hai? क्या इस्लाम आतंकवाद की शिक्षा देता है? (Part 51)

Quran Majeed Ki wo 24 Aayatein jinka Galat Matlab Nikal kar logo me Nafrat Failane ki koshis ki ja rahi hai?
बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम
अस्सलामुअलैकुम वरह् मतुल्लाही वबरकातुहु
   क्या इस्लाम आतंकवाद की शिक्षा देता है?
*सभी मुस्लिम और गैर मुस्लिम भाइयो से अपील है कि इस पोस्ट को ज़रूर पढ़े ये एक महत्वपूर्ण जानकारी है जो आपको दी जा रही है
नोट यह पोस्ट किसी को नीचा दिखाने या किसी का अपमान करने के लिए नही है.
पार्ट नंबर, 51
पवित्र कुरआन की वे चौबीस आयतें
23 पैम्फलेट में लिखी 23वें क्रम की आयत है:-
*वे चाहते हैं कि जिस तरह से वे 'काफ़िर' हुए हैं उसी तरह से तुम भी 'काफ़िर' हो जाओ, फिर तुम एक जैसे हो जाओ; तो उनमें से किसी को अपना साथी न बनाना जब तक वे अल्लाह की राह में हिजरत न करें, और यदि वे इससे फिर जावें तो उन्हें जहां कहीं पाओ पकड़ो और उनका वध (क़त्ल) करो। और उनमें से किसी को साथी और सहायक मत बनाना।”(कुरआन, सूरा-4, आयत- 89)
    इस आयत को इसके पहले वाली 88 वीं आयत के साथ मिलाकर पढ़ें, जो निम्न है.
"तो क्या वजह है कि तुम मुनाफ़िक़ों के बारे में दो गिरोह [यानी दो भाग] हो रहे हो? हाल यह है कि खुदा ने उनके करतूतों की वजह से औंधा कर दिया है। क्या तुम चाहते हो कि जिस शख्स को खुदा ने गुमराह कर दिया है, उसको रास्ते पर ले आओ?" (कुरआन, सूरा-4, आयत- 88)*
       *स्पष्ट है कि इससे आगे वाली 89वीं आयत, जो पर्चे में दी है मुनाफिकों (यानी कपटाचारियों) के सन्दर्भ में है, जो मुसलमानों के पास कहते हैं कि हम 'ईमान' ले आए और मुसलमान बन गए और मक्का में काफिर के पास जाकर कहते कि हम अपने बाप-दादा के धर्म में ही हैं, बुतों को पूजने वाले हम तो मुसलमानों के बीच भेद लेने जाते हैं, जिसे हम आप को बताते हैं ये मुसलमानों के बीच बैठकर उन्हें अपने बाप-दादा के धर्म 'बुत-पूजा' पर वापस लौटने को भी कहते। इसी लिए यह आयत उतरी कि इन कपटाचारियों को दोस्त न बनाना क्योंकि यह दोस्त हैं ही नहीं, तथा इनकी सच्चाई की परीक्षा लेने के लिए इनसे कहो कि तुम भी मेरी तरह वतन छोड़कर हिजरत करो अगर सच्चे हो तो। यदि न करें तो समझो कि ये नुक़सान पहुंचाने वाले कपटाचारी जासूस हैं, जो काफ़िर दुश्मनों से अधिक ख़तरनाक हैं। उस समय युद्ध का माहौल था, युद्ध के दिनों में सुरक्षा की दृष्टि से ऐसे जासूस बहुत ही ख़तरनाक हो सकते थे, जिनकी एक ही सज़ा हो सकती थी; मौत । उनकी सन्दिग्ध गतिविधियों के कारण ही मना किया गया है कि उन्हें न तो अपना साथी बनाओ और न ही मददगार, क्योंकि ऐसा करने पर धोखा ही धोखा है।
   यह आयत मुसलमानों की आत्मरक्षा के लिए उतरी न कि झगड़ा कराने या घृणा फैलाने के लिए।
HAMARI DUAA
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Kya Quran Me Yahoodi Aur Nasara ko marne ka hukm diya hai? क्या इस्लाम आतंकवाद की शिक्षा देता है? (Part 48)

Kya Quran Ne Yahoodi Aur Christian se Jhhagre karne ko kaha hai?
बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम
अस्सलामुअलैकुम वरह् मतुल्लाही वबरकातुहु
  क्या इस्लाम आतंकवाद की शिक्षा देता है?
सभी मुस्लिम और गैर मुस्लिम भाइयो से अपील है कि इस पोस्ट को ज़रूर पढ़े ये एक महत्वपूर्ण जानकारी है जो आपको दी जा रही है
नोट यह पोस्ट किसी को नीचा दिखाने या किसी का अपमान करने के लिए नही है
*पार्ट नंबर 48
पवित्र कुरआन की वे चौबीस आयतें
20 *पैम्फलेट में लिखी 20वें क्रम की आयत है:
    *हे ईमान लानेवालो (मुसलमानो) तुम यहूदियों' और 'ईसाइयों को मित्र न बनाओ। ये आपस में एक दूसरे के मित्र हैं। और जो कोई तुममें से उनको मित्र बनाएगा, वह उन्हीं में से होगा। नि:सन्देह अल्लाह जुल्म करनेवालों को मार्ग नहीं दिखाता।''(कुरआन, सूरा-5, आयत-51)
      यहूदी और ईसाई ऊपरी तौर पर मुसलमानों से दोस्ती की बात करते थे लेकिन पीठ पीछे कुरैश की मदद करते और कहते, मुहम्मद से लड़ो हम तुम्हारे साथ हैं। उनकी इस चाल को नाकाम करने के लिए ही यह आयत उतरी जिसका उद्देश्य मुसलमानों को सावधान करना था, न कि झगड़ा कराना। इसके प्रमाण में कुरआन मजीद की यह आयत देखें:-.  खुदा उन्हीं लोगों के साथ तुमको दोस्ती करने से मना करता है, जिन्होंने तुमसे दीन के बारे में लड़ाई की और तुमको तुम्हारे घरों से निकाला और तुम्हारे निकालने में औरों की मदद की, तो जो लोग ऐसों से दोस्ती करेंगे, वही ज़ालिम हैं।(कुरआन, सूरा-60, आयत-9)
    अल्लाह की यह आयत बुराई पर अच्छाई की जीत ओर समाज मे शांति के लिए उतरी न कि लड़ाई-झगड़ा कराने के लिए।
*HAMARI DUAA* ⬇⬇⬇
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Kya Allah ke Nabi ﷺ Musalmano ko Jhhagra karne ka Hukm Dete they? क्या इस्लाम आतंकवाद की शिक्षा देता है? (Part 47)

Quran ki Aayaton Galat Matlab Samjhane ki sazish.
बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम*
*अस्सलामुअलैकुम वरह् मतुल्लाही वबरकातुहु
क्या इस्लाम आतंकवाद की शिक्षा देता है?
*सभी मुस्लिम और गैर मुस्लिम भाइयो से अपील है कि इस पोस्ट को ज़रूर पढ़े ये एक महत्वपूर्ण जानकारी है जो आपको दी जा रही है
*नोट यह पोस्ट किसी को नीचा दिखाने या किसी का अपमान करने के लिए नही है ।
*पार्ट नंबर 47
पवित्र कुरआन की वे चौबीस आयतें
19 पैम्फलेट में लिखी 19वें क्रम की आयत है:
       *हे नबी ! 'ईमान' वालों (मुसलमानों) को लड़ाई पर उभारो। यदि तुम में 20 जमे रहने वाले होंगे तो वे 200 पर प्रभुत्व प्राप्त करेंगे, और यदि तुममें 100 हों तो 1000‘काफ़िरों पर भारी रहेंगे, क्योंकि वे ऐसे लोग हैं जो समझ-बूझ नहीं रखते।''(कुरआन, सूरा-8, आयत- 65)
        मक्का के अत्याचारी कुरैश व अल्लाह के रसूल (सल्ल0) के बीच होनेवाले युद्ध में कुरैश की संख्या अधिक होती और सत्य के रक्षक मुसलमानों की कम।
     *ऐसी हालत में मुसलमानों का हौसला बढ़ाने में उन्हें युद्ध में जमाए रखने के लिए अल्लाह की ओर से यह आयत उतरी। यह युद्ध अत्याचारी व आक्रमणकारी काफ़िरों से था न कि सभी काफ़िरों या गैर-मुसलमानों से। अत: यह आयत अन्य धर्मावलम्बियों से झगड़ा कराने का आदेश नहीं देती। इसके प्रमाण में हम एक आयत दे रहे हैं:-*
*जिन लोगों (यानी काफ़िरों ने तुमसे दीन के बारे में जंग नहीं की और न तुमको तुम्हारे घरों से निकाला, उनके साथ भलाई और इंसाफ का सुलूक करने से खुदा तुमको मना नहीं करता। खुदा तो इंसाफ़ करनेवालों को दोस्त रखता है(कुरआन, सूरा-60, आयत- 8)
*HAMARI DUAA⬇⬇⬇
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Salat (Namaj) Nahi Parhne walo ki Sza?

Namaj Nahi Padhne wale Musalman Kaise Hai?
अब्दुल बासित. #Namaj #BeNamaji
नमाज़ ना पढ़ने वालो का हाल क़ुरान और ह़दीस की रौशनी मे
इस्लाम की बुनियाद पाँच चीज़ो पर की गई जिसमे दूसरी चीज़ नमाज़ है!
अल्लाह ने अपने बन्दो पर दिन मे पाँच वक़्त नमाज़ फर्ज़ की है,
जिसे किसी भी हाल मे छोड़ना जायज़ नही, यहा तक की हम सफर मे हो या जंग के मैदान मे भी हो जब भी नमाज़ नही छोड़नी है!

अल्लाह क़ुरान मे फरमाता है:-
बेशक मुस्लमान पर नमाज़ फर्ज़ है, अपने मुक़र्रर वक़्तो मे!  सूरहः निसा आयत नं० 103
यानी जो वक़्त अल्लाह ने मुकर्रर किये है, उनमे नमाज़ फर्ज़ है, ये नही की अपनी अक़्ल से किसी भी वक़्त फर्ज़ नमाज़ अदा करलो, सिर्फ जो वक़्त अल्लाह ने मुकर्रर किये है उनमे ही फर्ज़ नमाज़ अदा करनी है!

लेकिन जब अज़ान दी जाती है तो लोग उस वक़्त भी अपने कामो मे मशगूल (Busy) रहते है और कुछ बे-अक़्ल लोग तो एसे है जो अज़ान/नमाज़ के वक़्त को हँसी-खेल मे गुज़ार देते है, नमाज़ की तरफ ध्यान नही देते, इसकी वजह ये है की वह लोग नमाज़ की अहमियत नही जानते, अल्लाह ने क़ुरान मे उन लोगो को बे-अक़्ल कहा है!!

अल्लाह फरमाता है:-
*और जब तुम नमाज़ के लिए बुलाते हो तो वे लोग उसको मज़ाक और खेल बना लेते हैं, इसकी वजह यह है कि वे अक़्ल नहीं रखते।
सूरहः माईदाह आयत नं० 58

दूसरी जगह फरमाया:-
नमाज़ क़ायम करो और अल्लाह से डरो,
सूरहः अल-अनआम आयत नं० 72

अल्लाह ने फरमाया की नमाज़ क़ायम करो और उसके साथ साथ अल्लाह से भी डरो,
ये नही की सिर्फ नमाज़ अदा करली अब अल्लाह का खोफ भूल कर बेहयाई के काम करो, गन्दे काम करो, दीन सिर्फ नमाज़ अदा करने तक ही नही है, बल्की उसके साथ अल्लाह से डरते हुए, अल्लाह का खोफ दिल मे रखते हुए जिन्दगी गुज़ारनी है!

और नमाज़ हमे सिर्फ अल्लाह के लिये ही अदा करनी है किसी को दिखाने या कोई कर्ज़ जैसा उतारने के लिये नमाज़ नही पढ़नी, की नमाज़ के लिये खड़े हुए और जल्दी जल्दी उठक-बैठक लगाई और हो गया फर्ज़ पूरा, या कोई दोस्त या रिश्तेदार नमाज़ पढ़ रहा है तो उसको दिखाने के लिये हम भी नमाज़ अदा करले,,
बल्की नमाज़ सिर्फ अल्लाह के लिये ही है!!

अल्लाह फरमाता है:-
कह दीजिए कि मेरी नमाज़ और मेरी क़ुर्बानी, मेरा जीना और मेरा मरना अल्लाह के ख़ातिर है जो सारे जहानों का रब है।
सूरहः अल-अनआम आयत नं० 162

नमाज़ एक ऐसी इबादत है जो हमे बुराई और गलत कामो से रोकती है, और हक़ बात है की जब बन्दा दिन मे पाँच वक़्त नमाज़ अदा करेगा और उसके दिल मे नमाज़ की मुहब्बत होगी तो वह गलत कामो की तरफ जाएगा ही नही!

जैसा की अल्लाह फरमाता है:-
*बेशक नमाज़ बेहयाई और बुराई से रोकती है।
सूरहः अल-अनकाबूत आयत नं० 45

अल्लाह ने क़ुरान मे कई बार नमाज़ क़ायम करने को कहा है, और ये भी फरमाया की नमाज़ बुराई से रोकती है, लेकिन अफसोस हम इतनी क़ीमती दौलत को छोड़ बेठै है!
नमाज़ की फज़ीलत के बारे मे रसूलल्लाह के फरमान देखते है, आपने क्या फरमाया है!
अबू हुरैराह रज़ि० से रिवायत है की रसूलल्लाह ने फरमाया:-
*मुझे बताओ की अगर तुम मे से किसी शख्स के घर के सामने नहर हो और वो उसमे हर रोज़ पाँच बार ग़ुस्ल करता हो तो क्या उसके जिस्म पर कोई मैल(गन्दगी) रह जाएगी?
*सहाबा रज़ि० ने जवाब दिया की उसके जिस्म पर कोई मैल बाकी नही रहेगी!*
*आपने फरमाया:- यही पाँच नमाज़ो की मिसाल है, अल्लाह उनके ज़रिये खताए (गलतियाँ) मिटा देता है!
मिश्कातुल मसाबिह हदीस नं० 565

दूसरी हदीस मे आपने फरमाया:-
*हज़रत जाबिर रज़ि० बयान करते है की रसूलल्लाह ने फरमाया:-
मोमिन बन्दे और कुफ्र के दरमियान का फर्क नमाज़ को छोड़ना है
मिश्कातुल मसाबिह हदीस नं० 569
इस हदीस का मतलब है, जो शख्स नमाज़ ना पढ़े तो उसमे और काफिर मे कोई फर्क नही, दोनो बराबर है!.

हज़रत बुरैदाह रज़ि० बयान करते है की रसूलल्लाह ने फरमाया:-
हमारे और मुनाफिक़ो के बीच नमाज़ अहद (आड़) है, तो जिसने नमाज़ छोड़दी उसने कुफ्र किया!
मुसनद अहमद
तिर्मिज़ी
नसाई
इब्ने माजाह
मिशकातुल मसाबिह हदीस नं० 574

ये कुछ हदीसे आपने पढ़ी जिसमे रसूलल्लाह ने फरमाया की नमाज़ का छोड़ना कुफ्र है, अब क़ुरान मे नमाज़ ना पढ़ने वालो के लिये अल्लाह क्या फरमाता है, वो देखते है!_

नमाज़ ना पढ़ने वालो के बारे मे क़ुरान का फरमान
जो लोग नमाज़ छोड़ते है उनके बारे मे अल्लाह ने क़ुरान मे फरमाया:-
सूरहः मुदस्सिर आयत नं० 40-43
वे जन्नत वाले लोग,  मुजरिमो से (जहन्नम वालो से) पूछेंगे, तुम्हे क्या चीज़ (जहन्नम) में ले आई? वे कहेंगे, "हम नमाज़ अदा करने वालों में से न थे।

इन आयतो की तफ्सीर मे इमाम मोदूदी रह० फरमाते है:-
*ये लोग कहेंगे की हम उन लोगो मे से ना थे जिन्होने खुदा और उसके रसूल और उसकी किताब को मान कर खुदा का वो पहला हक़ अदा किया हो जो हर इंसान पर फर्ज़ है, यानी नमाज़!
यहाँ ये बात समझनी चाहिये की कोई इंसान उस वक़्त तक नमाज़ पढ़ ही नही सकता जब तक वो ईमान ना लाया हो लेकिन सिर्फ नमाज़ न पढ़ने की वजह बता कर ये बात वाज़ेह कर दी गई की ईमान ला कर भी आदमी जहन्नम से नही बच सकता अगर वो नमाज़ को छोड़ता हो!

यानी ईमान लाने के साथ-साथ नमाज़ अदा करना भी ज़रूरी है, ये नही की सिर्फ मुस्लिम नाम रखलो, ईद मनालो और मुसलमान हो गये, के साथ नमाज़ भी अदा करनी है!! दिखावे का मुसलमान होना नहीं बल्कि दिल और जुबान से इकरार करना और अमल से भी जाहिर होना चाहिए, किसके दिल मे क्या है किसे मालूम और जुबान से तो हर कोई खुद को मुसलमान और ईमान वाला कहता है मगर अमल से वैसा है क्या?

अल्लाह दूसरी जगह फरमाता है:-
सूरहः नं० 107 सूरहः अल माऊन आयत नं० 4-5
तबाही है उन नमाज़ियों के लिए,जो अपनी नमाज़ से ग़ाफिल (असावधान) हैं,

इन आयत के बारे मे तक़ी उसमानी साहब लिखते है:-
*नमाज़ो से ग़ाफिल होने का मतलब ये है की नमाज़ पढ़ते ही नही और ये भी, की नमाज़ो को सही तरीके से नही पढ़ते!!
यानी इन आयतो से मतलब है की नमाज़ मे सुक़ून इख्तियार नही करना, जल्दी जल्दी उल्टी-सीधी नमाज़ पढ़ना, सही वक़्त पर नमाज़ ना पढ़ना, रसूलल्लाह के तरीके पर नमाज़ ना पढ़ना, रूकू सज्दे सही से ना करना,

इमाम मोदूदी रह० इन आयत की तफ्सीर मे लिखते है:-
वह लोग कभी नमाज़ पढ़ते है और कभी नमाज़ नही पढ़ते,
पढ़ते है तो इस तरह की उसके सही वक़्त को टालते रहते है और जब वक़्त खत्म होने लगता है तो उठ कर चार ठोंगे मार लेते है, या नमाज़ पढ़ने के लिये जाते है तो नाखुशी से जाते है जैसे उन पर कोई मुसीबत आ गई हो, नमाज़ पढ़ते हुए कपड़ो से खेलते है, जम्बाईयाँ लेते है, खुदा की याद की कोई फिक्र उनके दिल मे नही होती, नमाज़ मे ना उनको ये खयाल होता है की वो नमाज़ पढ़ रहै है और ना ये याद रहता की उन्हेने क्या पढ़ा,
नमाज़ ऐसे मारा-मार पढ़ते है की ना क़याम ठीक से करते है, ना रूकू और ना सज्दे,
बस किसी तरह नमाज़ की शक्ल बना कर जल्दी से जल्दी फारिग़ हो जाने की कोशिश करते है, और बहुत लोग तो ऐसे है की अगर कही फँस गये तो नमाज़ पढ़ली, वरना इस इबादत का कोई मक़ाम उनकी ज़िन्दगी मे नही होता,
नमाज़ का वक़्त आता है तो उन्हे महसूस नही होता की ये नमाज़ का वक़्त है, मौअज़्ज़न की आवाज़ उनके कानो मे तो आती है लेकिन उन्हे ये नही पता होता की यह क्या कह रहा है,
नमाज़ से ग़ाफिल होने का मतलब ये है की आदमी नमाज़ के लिये खड़ा होता है, खुदा की याद का इरादा उसके दिल मे नही होता, नमाज़ शुरू करने से सलाम फेरने तक एक पल के लिये भी उसका दिल खुदा की याद की तरफ नही झुकता, और जिस खयालात को लेकर वह नमाज़ शुरू करता है, बस उन्ही मे उलझा रहता है........!!

जो लोग नमाज़ को खुदा के लिये नही पढ़ते और नमाज़ को गलत-सलत पढ़ते है उन्ही लोगो के बारे मे इन आयतो मे बताया गया है!!_
_आप सब से गुजारिश है की नमाज़ को सही तरीके से और सही वक़्त पर अदा कीजिये!!

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Hm Un kafiro Ko Jarur Sza Denge Quran ki aayat Ka Sahi Tafseer. (Part 44)

Quran Ki Aayat Ka Galat Meaning Samjha kar Logo me Nafrat Failane ki Saazish.
*बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम*
*अस्सलामुअलैकुम वरह् मतुल्लाही वबरकातुहु
  क्या इस्लाम आतंकवाद की शिक्षा देता है?
*सभी मुस्लिम और गैर मुस्लिम भाइयो से अपील है कि इस पोस्ट को ज़रूर पढ़े ये एक महत्वपूर्ण जानकारी है जो आपको दी जा रही है
नोट यह पोस्ट किसी को नीचा दिखाने या किसी का अपमान करने के लिए नही है ।
पार्ट नंबर 44
पवित्र कुरआन की वे चौबीस आयतें
15 पैम्फलेट में लिखी 15वें क्रम की आयत है:
  तो अवश्य हम ‘कुफ़ करने वालों को यातना का मज़ा चखाएंगे, और अवश्य ही हम उन्हें सबसे बुरा बदला देंगे उस कर्म का जो वे करते थे।(कुरआन, सूरा-41, आयत-27)
   उस आयत को तो लिखा जिसमें अल्लाह काफ़िरों को दण्डित करेगा, लेकिन यह दण्ड क्यों मिलेगा? इसकी वजह इस आयत के ठीक पहले वाली आयत (जिसकी यह पूरक आयत है) में है, उसे ये छिपा गए। अब इन दोनों आयतों को हम एक साथ दे रहे हैं। पाठक स्वयं देखें कि इस्लाम को बदनाम करने की साज़िश कैसे रची गई है?:
      और काफ़िर कहने लगे कि इस कुरआन को सुना ही न करो और (जब पढ़ने लगें तो) शोर मचा दिया करो, ताकि ग़ालिब रहो सो हम भी काफ़िरों को सख्त अज़ाब के मज़े चखाएंगे, और बुरे अमल की जो वे करते थे सज़ा देंगे (कुरआन, सूरा-41, आयत-26, 27)
अब यदि कोई अपनी धार्मिक पुस्तक का पाठ करने लगे या नमाज़ पढ़ने लगे, तो उस समय बाधा पहुँचाने के लिए शोर मचा देना क्या दुष्टतापूर्ण कर्म नहीं है? इस बुरे कर्म की सज़ा देने के लिए ईश्वर कहता है, तो क्या वह झगड़ा कराता है?
*मेरी समझ में नहीं आ रहा कि पाप कर्मों का फल देनेवाली इस आयत में झगड़ा कराना कैसे दिखाई दिया?
16 पैम्फलेट में लिखी 16वें क्रम की आयत है:
*यह बदला है अल्लाह के शत्रुओं का (‘जहन्नम' की) आग। इसी में उनका सदा घर है, इसके बदले में कि हमारी आयतों' का इन्कार करते थे।(कुरआन, सूरा-41, आयत-28)
    यह आयत ऊपर पन्द्रहवें क्रम की आयत की पूरक है जिसमें काफ़िरों को मरने के बाद नरक का दण्ड है, जो परलोक की बात है इसका इस लोक में लड़ाई-झगड़ा कराने या घृणा फैलाने से कोई सम्बन्ध नहीं है।
HAMARI DUAA
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Allah ke alawa kisi aur ki Ebadat karne wala. क्या इस्लाम आतंकवाद की शिक्षा देता है? (Part 41)

Pamplate ki 10 Number wali aayat "Jo Allah ke alawa kisi aur ki Ebadat karta hai use Jarur Sza milega"
*बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम*
*अस्सलामुअलैकुम वरह् मतुल्लाही वबरकातुहु*
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*पार्ट नंबर 41
पवित्र कुरआन की वे चौबीस आयतें
   10 पैम्फ़लेट में लिखी 10वें क्रम की आयत है:
     (कहा जाएगा) : निश्चय ही तुम और वह जिसे तुम अल्लाह के सिवा पूजते थे जहन्नम' का ईंधन हो। तुम अवश्य उसके घाट उतरोगे।(कुरआन, सूरा-21, आयत-98)
        इस्लाम एकेश्वरवादी मज़हब है, जिसके अनुसार एक ईश्वर अल्लाह के अलावा किसी दूसरे को पूजना सबसे बड़ा पाप है। इस आयत में इसी पाप के लिए अल्लाह मरने के बाद जहन्नम (यानी नरक) का दण्ड देगा।
पैम्फलेट में लिखी पांचवें क्रम की आयत में हम इस विषय में लिख चुके हैं। अत: इस आयत को भी झगड़ा करानेवाली आयत कहना न्यायसंगत नहीं है।
*HAMARI DUAA* ⬇⬇⬇
*इस पोस्ट को हमारे सभी गैर मुस्लिम भाइयो ओर दोस्तो की इस्लाह ओर आपसी भाईचारे के लिए शेयर करे ताकि हमारे भाइयो को जो गलतफहमियां है उनको दूर किया जा सके अल्लाह आपको जज़ाये खैर दे आमीन।
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Hm Apne Call Record Kar Sakte Hai to kya Allah Hmare Aamal Ka Record Nahi rakh Sakta?

Aaj kal Technology itni Aage chali Gayi ke Hm Sb Jo Kuchh bhi karte hai O sab Ko Apne Mobile Phone me Record kar sakte hai to kya Allah hamare sare Aamal ka Record Nahi rakh sakta hai? Hm to insaan hai Hme Jisne Paida Kiya hmari Takhliq Ki Aur hmne itni Sari Technology izaad kar liya, hm apne dimag se aaj chand pe pahuch chuke, Hajaron Kilometer ka Safer 1-2 Ghante me hi Kar lete hai aur Saat Samundar par kar Ek mulk se Dusre Mulk Chale Jate hai, hm apni Sari Record Bna lete hai to jisne Hme  Paida kiya Jisne hme khubsurat Dil diya aur Aala Dimag Ata kiya jiski Madad Se Hm Chand pe pahuch chuke hai to Hme Dil aur Dimag jisne diya O kitna Powerful hoga? O Kitna Hikmat Wala hoga kya wah hmare sare Aamal Ka record nahi rakh sakta hm kya kar rahe hai, apni Zindagi me Kaha kaha hmne Kya kya Kiya Kya O yah Sab Nahi Janta hoga?
کال ریکارڈر،
ایک سبق آموز واقعہ لازمی پڑھیں، اور دوسروں سے بھی شیئر کریں۔
تحریر: زمان احمد سلفی ،
موبائل فون دورِ جدید کی ایک مفید ایجاد ہے۔ اس کی مدد سے کسی بھی شخص سے مستقل رابطے میں باآسانی رہا جا سکتا ہے۔  میرے پاس جو موبائل فون ہے، اُس میں ایک خصوصیت یہ بھی ہے کہ اس کے ذریعے سے اپنی آواز ریکارڈ کی جا سکتی ہے۔ پچھلے دنوں مجھے اپنے موبائل فون کی ایک اور خصوصیت کا علم ہوا۔ وہ یہ کہ اس پر فون کال ریکارڈ کی جا سکتی ہے۔
ہوا یہ کہ میں اپنے بعض ریکارڈ شُدہ خیالات موبائل فون پر سُن رہا تھا۔ اُسی عمل میں مجھے یہ معلوم ہوا کہ میری بعض فون کالز ساؤنڈ ریکارڈ میں موجود تھیں۔
مجھے نہیں معلوم کہ یہ کیسے ہوا، لیکن جب میں نے انہیں سُننا شروع کیا تو معلوم ہوا کہ بعض دوست احباب سے کی ہوئی گفتگو بعینہٖ وہاں موجود تھی۔
میں اس گفتگو کو اُس میں بولے گئے اپنے الفاظ کو بلکل بھول چُکا تھا۔ مگر جب سُنا تو سب یاد آگیا۔
اپنی ریکارڈ شُدہ آواز سُننا میرے لئے کوئی نیا تجربہ نہ تھا، مگر یہ جس طرح غیر متوقع طور پر ہوا تھا اُس نے مجھ پر سکتہ طاری کر دیا۔
مجھے فوراً یہ خیال آیا کہ نامعلوم طریقے پر ریکارڈ ہونے والی اس فون کال کے ذریعے سے اللہ تعالیٰ نے مجھے یہ بتایا ہے کہ وہ انسانوں کے ایک ایک عمل کی ویڈیو بنا رہا ہے۔ وہ اُن کی زبان سے نکلے ہوئے ایک ایک لفظ کو ریکارڈ کر رہا ہے۔ انسان اپنا کہا سُنا اور بولا بھول جاتے ہیں۔ مگر اللہ تعالیٰ کچھ بھی نہیں بھولتا۔  وہ سب محفوظ کر لیتا ہے اور قیامت کے دن انسان کے سامنے اُس کے ہر ایک قول و فعل کی آڈیو ویڈیو پیش کر دی جائے گی۔
میں نے یہ باتیں قرآنِ مجید میں بار بار پڑھی تھی۔
لیکن اس روز جو تجربہ ہوا، اُس نے روزِ قیامت کی پیشی کو میرے سامنے گویا مجسم کر دیا۔
جوکہ درج ذیل آیات یہ ہیں:
ارشادِ باری تعالیٰ ہے کہ:
وإن عليكم لحافظين ، كراماً كاتبين ، يعلمون ما تفعلون

یقیناً تم پر حفاظت کرنے والے عزت دار لکھنے والے مقرر ہیں جو کچھ تم کرتے ہو وہ جانتے ہیں ۔
(سورۃ الانفطار: ۱۰ تا ۱۲)

یہ فرشتے انسان کی اچھائی برائی جانتے ہیں اور اسے ہمیشہ لکھتے رہتے ہیں ، اس لئے انسان کو ہر عمل سے پہلے سوچ لینا چاہئے کہ وہ اچھا ہے یا برا؟

اسی فرمانِ الہٰی ہے کہ:
اَلۡیَوۡمَ نَخۡتِمُ عَلٰۤی اَفۡوَاہِہِمۡ وَ تُکَلِّمُنَاۤ اَیۡدِیۡہِمۡ وَ تَشۡہَدُ اَرۡجُلُہُمۡ بِمَا کَانُوۡا یَکۡسِبُوۡنَ

ہم آج کے دن ان کے منہ پر مہر لگا دیں گے اور ان کے ہاتھ ہم سے باتیں کریں گے اور ان کے پاؤں گواہیاں دیں گے ،  ان کاموں کی جو وہ کرتے تھے۔
(سورۃ یس:۶۵)

نیز ایک اور مقام پر اللہ تعالیٰ کا فرمان ہے کہ:
وَ وُضِعَ الۡکِتٰبُ فَتَرَی الۡمُجۡرِمِیۡنَ مُشۡفِقِیۡنَ  مِمَّا فِیۡہِ وَ یَقُوۡلُوۡنَ یٰوَیۡلَتَنَا مَالِ ہٰذَا الۡکِتٰبِ لَا یُغَادِرُ صَغِیۡرَۃً وَّ لَا کَبِیۡرَۃً  اِلَّاۤ  اَحۡصٰہَا ۚ وَ  وَجَدُوۡا مَا عَمِلُوۡا حَاضِرًا ؕ وَ لَا یَظۡلِمُ  رَبُّکَ  اَحَدًا           

اور نامہ اعمال سامنے رکھ دیئے جائیں گے۔  پس تو دیکھے گا گنہگار اس کی تحریر سے خوفزدہ ہو رہے ہونگے اور کہہ رہے ہونگے ہائے ہماری خرابی یہ کیسی کتاب ہے جس نے کوئی چھوٹا بڑا بغیر گھیرے کے باقی ہی نہیں چھوڑا ،  اور جو کچھ انہوں نے کیا تھا سب موجود پائیں گے اور تیرا رب کسی پر ظلم و ستم نہ کرے گا۔ 
(سورۃ الکھف:۴۹)

آہ! اِس آیت کے مائنڈ میں آتے ہیں میرے چودہ طبق روشن ہو گئے کہ میں اپنی کہی باتیں ہی فون پر بھول چُکا تھا جو کال ریکارڈ سُننے کے بعد مجھے یاد آئی۔
چنانچہ فرمانِ الہٰی ہے کہ:
یَوۡمَ یَبۡعَثُہُمُ اللّٰہُ جَمِیۡعًا فَیُنَبِّئُہُمۡ بِمَا عَمِلُوۡا ؕ اَحۡصٰہُ  اللّٰہُ وَ نَسُوۡہُ ؕ وَ اللّٰہُ عَلٰی کُلِّ  شَیۡءٍ شَہِیۡدٌ        

  جس دن اللہ تعالٰی ان سب کو اٹھائے گا پھر انہیں ان کے کئے ہوئے عمل سے آگاہ کرے گا جسے اللہ نے شمار  رکھا ہے اور   جسے یہ بھول گئے تھے  اور اللہ تعالٰی ہرچیز سے واقف ہے۔ 
(سورۃ المجادلۃ:۶)

نیز اللہ تعالیٰ نے فرمایا:
اِقۡرَاۡ کِتٰبَکَ ؕ  کَفٰی بِنَفۡسِکَ الۡیَوۡمَ عَلَیۡکَ  حَسِیۡبًا

لے! خود ہی اپنی کتاب آپ پڑھ لے۔ آج تو تو آپ ہی اپنا خود حساب لینے کو کافی ہے ۔ 
(سورۃ بنی اسرائیل:۱۴)

ان تمام آیات نے میرے رونگٹے کھڑے کر دئیے ریکارڈ شُدہ کالیں سُنتے ہوئے جب مجھے یہ آیات یاد آئی تو آنکھیں نم ہو گئی کہ جب حساب کتاب کے دن اللہ تعالیٰ ہمارے حساب کی کتاب ہمارے ہاتھ میں تھمائے گا، تو اس میں ہماری ہر طرح کی چھوٹی بڑی باتیں لکھی ہونگی۔اور ہم خود ہی اپنے نیک و بد اعمال کا خام زادہ لگا لیں گے۔
جب ایک ایک انسان کو اکیلے تنہا اللہ تعالیٰ کے سامنے پیش ہوکر زندگی کے ہر عمل کا حساب دینا ہو گا۔ انسان چاہے گا بھی تو اپنے اعمال سے اپنے الفاظ سے مُکر نہیں سکے گا۔
قیامت کا دن انسانوں کے احتساب کا دن ہے۔ اُس دن انسان کو اُس کی زبان سب سے زیادہ رسوا کروائے گی۔ عقلمند وہ ہے جو اِس زبان کو سوچ سمجھ کر استعمال کرے۔
ہم میں سے بعض ایسے بھی شَر پسند لوگ موجود ہے، جو کال ریکارڈ محض دوسروں کو نیچا دیکھانے بلیک میل کرنے، اور ہنستے بستے گھروں کو اُجاڑنے کیلئے استعمال کرتے ہیں۔ ایسے عناصر کو چاہئے کہ اپنا محسابہ کریں۔ اور درج بالا آیات کی روشنی میں آخرت کو یاد کر کے عبرت حاصل کریں۔

زمان احمد سلفی

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