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vedo Me Tauheed Ka Paigham.

Kahi Hm La ilmi Ke Wajah Se Gumrah Na Ho Jaye.
अज्ञानता वस कहीं हमारा जीवन हमारी धार्मिक पुस्तको में लिखे ईश्वरीय निर्देशों के विपरीत तो नहीं ?? यह जीवन परलौकिक जीवन को सुखमय व सफल बनाने के लिये उस मालिक ने हमें परीक्षा हेतु दिया है ,अतः हमें सफलता तभी प्राप्त हो सकती है जब हम सत्य क्या है यह जानने का प्रयत्न करेगें और ईश्वर के बताये हुये दिशा निर्देशों अनुसार जीवन यापन करेगें , अन्यथा परलौकिक जीवन में हमें नर्कीय और बहुत ही कष्ट दायक जीवन जीने से कोई नहीं बचा पायेगा ।*

स्वामी विवेकानंद जी के अनुसार जो लोग वेदों को मानते है यैसे लोग वेदान्तिष्ट या सनातनी हैं।
तो आइये अब देखते हैं कि सनातन धर्म के धर्म शास्त्र हमें क्या शिक्षा प्रदान करते  हैं।

*एकम अव्दितीयम*
【छन्दोग्य उपनिषद, अध्याय-06, श्लोक-01】

*अर्थात*: ईश्वर एक ही है दूसरा नहीं है।

*ना चष्य काशिद जनिता न चदीपा*
【श्वेताश्वतारा उपनिषद, अध्याय-06, श्लोक-09】

*अर्थात*: उस ईश्वर के कोई ना माता-पिता है और ना ही कोई उसका पालनहार (रब्ब) है।

*ना तस्य प्रतिमास्ति*
【श्वेताश्वतारा उपनिषद, अध्याय-04, श्लोक-19】

*अर्थात*: उसके जैसा कोई भी नहीं है।

*जो लोग दुनियावी चीजों के पीछे भागते हैं वो लोग गलत ईश्वर की पूजा या उपासना करते है।*
【भागवत गीता, अध्याय-07, श्लोक-20】

*उस ईश्वर ने ना किसी को पैदा (जना) किया है और ना किसी को करेगा और वह ईश्वर सबसे ताकतवर है।
【भागवत गीता, अध्याय-10, श्लोक-03】

*ना तस्य प्रतिमास्ति
【यजुर्वेद, अध्याय-32, श्लोक-03】

अर्थात उसकी न कोई तस्वीर, फ़ोटो, पेंटिंग, मूर्ति, प्रतिमा, छाया, चित्र इत्यादि नहीं है।

अन्ध्यात्म प्रविशन्ति या असंभूति उपासते
【यजुर्वेद, अध्याय-40, श्लोक-09】

अर्थात*: वो लोग अंधकार में जा रहे हैं जो असंभूति (कुदरती वस्तु) की उपासना या पूजा करते हैं। घोर अंधकार में जा रहे हैं वो लोग जो सम्भूति (इंसानों द्वारा निर्माण की गई वस्तुयें) की उपासना या पूजा करते हैं।

*एकं सत विप्रबहुधावेदांते*
【ऋग्वेद, किताब-01, हिम्म-164, श्लोक-46】

*अर्थात*: सत्य एक ही है, ईश्वर (खुदा) एक ही है और संत लोग उसे कई नामों से पुकारते हैं।

*तैंतीस नाम ईश्वर को पुकारने के लिए दिए गए हैं*.......
【ऋग्वेद, किताब-02, हिम्म-01】

*ईश्वर के नाम*:
1. ब्रम्हा (रचियता, बनाने वाला, ख़ालिक़, क्रिएटर)
2. विष्णु (पालनहार, रब्ब, सस्टैंनर, चैरिशर)

*मा च नदी संसद*
【ऋग्वेद, किताब-08, हिम्म-45, श्लोक-16】

*अर्थात* सिर्फ एक ही ईश्वर (ख़ुदा) की पूजा या उपासना करो।

*एकम ब्रम्हम ड्यूता नाश्ति नैहना नाश्ति किंचम*
【हिन्दू वेदांत का ब्रम्ह सूत्र】

*अर्थात*: एक ही परब्रम्ह है दूसरा नहीं है नहीं है कदापि नहीं है ।

तो आइए हम सब उस एक ही निराकार परब्रम्ह (अल्लाह, ईश्वर, प्रभु, परमात्मा, भगवान, खुदा, पालनहार, रब्ब, ख़ालिक़, मालिक, एक ओम कार इत्यादि) की पूजा, अर्चना, इबादत, उपासना, करें।
और मूर्ति पूजा बंद करे,
क्यों कि मूर्ति पूजा घोर अज्ञानता के सिवा और कुछ नहीं जिसका करने वाला हमेशा नर्क का वासी होगा ।।

*इन्ही शिक्षाओं के साथ उस ईश्वर ने समस्त संसार में समस्त भाषाओं में समस्त कबीलों में अपने अवतार पैगम्बर ,मार्गदर्शक भेजे ,अब जिसने भी वर्तमान समय के  अवतार पैगम्बर को माना ,वो सफल होगा और जिसने उस अवतार को मानने से इनकार कर दिया वो पथ से भटक गया ,चाहे उसके पास प्राचीन पैगम्बरों के उपदेश हो और वो उनका पालन भी करता हो ।

नोट:-अतएव कुरआन अंतिंम ईश्वरीय संदेश एवं ईश्वरीय किताब है,अगर हमें परलोक में नर्क और तमाम यानाओं से बचना है और सवर्ग की प्राप्ति और सदमार्ग पर जीवन जीना चाहते है जिससे वो परमेश्वर हमसे हमेशा को राजी हो जाये तो अन्तिम बेद और अन्तिम ईश्वरीय किताब कुरआन और अन्तिम ईश्वरीय संदेष्ठा मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम को मानना और उनके बताये मार्ग पर चलना अति अनिवार्य हैं ।।
और इसका प्रथम और पहला मंत्र है ,
लाइलाहा इललल्लाहू
मुहम्मदुर्र_रसूलउल्लाह ,
(सललल्लाहो अलैहि वसल्लम)

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Wo Kaunse Log Honge Jinse Qyamat Ke Din Ambiya Bhi Rashk Karenge.

WOH KAUN SE Log HAI Jin Se Qayamat KE DIN AMBIYAA AUR SHUHADA BHI UN PAR RASHK (Jealousy) karenge.

Ye Woh Log Hai Jo "AL-WaLaa WaL-Baraa" Par 'AmaL Karte Hai.
'Umar Bin AL-Khattaab (RaziALLaahu 'Anhu) Se Rivaayat Hai :
Nabi (SaLLaLLaahu 'ALaihi WasaLLam) Ne Farmaaya

"‏ إِنَّ مِنْ عِبَادِ اللَّهِ لأُنَاسًا مَا هُمْ بِأَنْبِيَاءَ وَلاَ شُهَدَاءَ يَغْبِطُهُمُ الأَنْبِيَاءُ وَالشُّهَدَاءُ يَوْمَ الْقِيَامَةِ بِمَكَانِهِمْ مِنَ اللَّهِ تَعَالَى ‏"‏ ‏.‏
“ Allah Ke Bandon Mein Kuch Log Aisey Bhi Hongey Jo NABI Hongey Na SHAHEED , Magar Qayamat Ke Roz Allah Ke Haan (BuLand) Maraatib (Martabah) Wa ManaaziL Ki Wajah Se AMBIYAA Wa SHUHADAA Bhi Un Par Rashk (Envy/Jealousy) Kareyngey.”

Sahaabah Ne Kaha : Aye ALLaah Ke RasooL ! Humein Batayein , Woh Kaun Log Hongey ?

Aap (SaLLaLLaahu 'ALaihi WasaLLam) Ne Farmaaya
‏"‏ هُمْ قَوْمٌ تَحَابُّوا بِرُوحِ اللَّهِ عَلَى غَيْرِ أَرْحَامٍ بَيْنَهُمْ وَلاَ أَمْوَالٍ يَتَعَاطَوْنَهَا فَوَاللَّهِ إِنَّ وُجُوهَهُمْ لَنُورٌ وَإِنَّهُمْ عَلَى نُورٍ لاَ يَخَافُونَ إِذَا خَافَ النَّاسُ وَلاَ يَحْزَنُونَ إِذَا حَزِنَ النَّاسُ ‏"‏ ‏.‏ وَقَرَأَ هَذِهِ الآيَةَ ‏{‏ أَلاَ إِنَّ أَوْلِيَاءَ اللَّهِ لاَ خَوْفٌ عَلَيْهِمْ وَلاَ هُمْ يَحْزَنُونَ ‏}‏ ‏.‏
“ Ye Woh Loag Hongey Jo Aapas Mein Allah Ki Kitaab (Ya ALLaah Ke Saath Muhabbat) Ki Bina Par (Ek Doosre Se) Muhabbat Kartey They (they are people who love one another in the spirit of ALLAAH). HaaLaan Ke Un Ka Aapas Mein Koi RISHTA NAATAA Ya MAALI LEYN DEYN (financial interests) Na Tha.

ALLAAH Ki Qasam ! Un Ke Chehrey NOOR Hongey Aur Woh Log NOOR Par Hongey. Jab Log Khauf Zadah Ho Rahey Hongey , Tou Unhein Koi Khauf Na Hoga.

Jab Log Ghumgeen Wa Pareyshaan Ho Rahey Hongey , Tou Unhein Koi Ghum Aur Pareshani Na Hogi.”

Aap (SaLLaLLaahu 'ALaihi WasaLLam) Ne Ye Aayat-e-Kareemah TiLaavat Farmaai
اَلَاۤ اِنَّ اَوۡلِیَآءَ اللّٰہِ لَا خَوۡفٌ عَلَیۡہِمۡ وَ لَا  ہُمۡ  یَحۡزَنُوۡنَ
“Aagaah Raho ! ALLAAH Ke WaLiyon Ko Koi Khauf Hoga Na Woh Ghum Khayenge.” [ Surah Yoonus : 62]

Sunan Abu Daawood , Kitaab-UL-Ijaarah (Wages) , Hadees [Saheeh] : 3527

NOTE : Aey Logon Allah Ke Liye Dosti Aur Allah Ke Liye Dushmani Karo. Kyun Ke Ye Emaan Ki Mazboot Tareen Zanjeer Hai.

ALLaah Hum Sab Ko Kufr-Bit-Taaghoot, Aur Allah Ke Liye Dosti Aur Allah Ke Liye Dushmani Karne WaaLa Banaaey.

Aur ALLaah Aaj Ke MunaafiQon Ko Hidaayat De, Ya Un Ko Battareen Maut De.
آمين يارب العالمين ...

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Kya Garden Pe Masah Karna Nabi Ki Sunnat Hai?

Wuzu Karne Me Garden Pe Masah Karna Kaisa Tarika Hai

 شيخ الاسلام ابن تيميہ رحمہ اللہ كہتے ہيں:
" يہ صحيح نہيں كہ نبى كريم صلى اللہ عليہ وسلم نے وضوء ميں گردن كا مسح كيا، بلكہ كسى صحيح حديث ميں بھى اس كا ثبوت نہيں ملتا، بلكہ جن صحيح احاديث ميں نبى كريم صلى اللہ عليہ وسلم كے وضوء كا طريقہ بيان ہوا ہے اس ميں ذكر نہيں كہ نبى كريم صلى اللہ عليہ وسلم گردن كا مسح كيا كرتے تھے، اس ليے جمہور علماء كرام امام مالك، امام شافعى، امام احمد كے ظاہر مسلك ميں گردن كا مسح كرنا مستحب نہيں.
اور جس نے اسے مستحب قرار ديا ہے اس نے ابو ہريرہ رضى اللہ تعالى عنہ كے مروى اثر يا ضعيف حديث جس كا نقل كرنا ہى صحيح نہيں سے استدلال كيا ہے، كہ انہوں نے گدى تك گردن كا مسح كيا " اس طرح كا اثر يا حديث قابل حجت نہيں، اور صحيح احاديث كے مقابلہ ميں پيش نہيں ہو سكتى، علماء كرام اس پر متفق ہيں كہ گردن كا مسح نہ كرنے سے وضوء صحيح ہے " انتہى.
ديكھيں: مجموع الفتاوى ( 21 / 127 ).
يہ حديث :
" نبى كريم صلى اللہ عليہ وسلم نے گدى تك گردن كا مسح كيا " اسے ابو داود نے حديث نمبر ( 132 ) ميں روايت كيا ہے، اور علامہ البانى رحمہ اللہ تعالى نے ضعيف ابو داود ميں اسے ضعيف كہا ہے.
امام نووى رحمہ اللہ تعالى نے " المجموع " ميں گردن كے مسح ميں امام شافعى كے اصحاب كا اختلاف ذكر كرنے كے بعد كہا ہے:
" ان كے اقوال كا يہ اختصار ہے، جس كا ماحاصل چار وجہيں ہيں:
پہلى:
نئے پانى كے ساتھ مسح كرنا مسنون ہے.
دوسرى:
مسنون نہيں بلكہ مستحب ہے.
تيسرى:
سر اور كانوں كے مسح سے باقى مانندہ پانى سے مسح كرنا مستحب ہے.
چوتھى:
نہ تو مستحب ہے اور نہ ہى مسنون.
يہ آخرى اور چوتھى وجہ ہى صحيح ہے، اسى ليے امام شافعى رحمہ اللہ نے اس كا ذكر كيا ہے، اور نہ ہى ہمارے متقدم اصحاب نے، اور اكثر مصنفين نے بھى اس كا ذكر نہيں كيا، اور اس سلسلے ميں نبى كريم صلى اللہ عليہ وسلم سے بھى كوئى ثبوت نہيں ملتا.
بلكہ صحيح مسلم وغيرہ ميں نبى كريم صلى اللہ عليہ وسلم كا يہ فرمان ہے:
" اس كے سب سے برے امور بدعات ہيں، اور ہر بدعت گمراہى ہے "
اور صحيح بخارى اور صحيح مسلم ميں نبى كريم صلى اللہ عليہ وسلم كا فرمان ہے:
" جس نے بھى ہمارے اس دين ميں كوئى ايسا كام ايجاد كيا جو اس ميں سے نہيں تو وہ مردود ہے "
اور صحيح مسلم كى روايت ميں ہے:
" جس نے بھى كوئى ايسا عمل كيا جس پر ہمارا حكم نہيں تو وہ كام مردود ہے "
اور جو حديث طلحہ بن مصرف عن ابيہ عن جدہ كے طريق سے مروى ہے كہ انہوں نے رسول كريم صلى اللہ عليہ وسلم كو گدى تك اور گردن كےآگے تك گردن كا مسح كرتے ہوئے ديكھا "
يہ حديث متفقہ طور پر ضعيف ہے.
اور غزالى رحمہ اللہ كا يہ قول: " گردن كا مسح كرنا نبى كريم صلى اللہ عليہ وسلم كى سنت ہے "
" گردن كا مسح كرنا طوق سے امان ہے "
يہ صحيح نہيں، كيونكہ يہ موضوع اور من گھڑت ہے، نبى كريم صلى اللہ عليہ وسلم كى كلام نہيں ہے " انتہى.
ديكھيں: المجموع للنووى ( 1 / 489 ).
الغل: طوق اور زنجير اور بيڑيوں كو كہتے ہيں، جو گردن ميں ڈالى جائيں، اللہ سبحانہ وتعالى كا فرمان ہے:
يہ وہ لوگ ہيں جنہوں نے اپنے رب كے ساتھ كفر كيا اور يہى ہيں جن كى گردنوں ميں طوق ڈالے جائينگے الرعد ( 5 ).
اور ايك دوسرے مقام پر ارشاد بارى تعالى ہے:
اور جنہوں نے كفر كا ارتكاب كيا ہم نے ان كى گردنوں ميں طوق ڈال ديے وہ جو كچھ عمل كرتے رہے انہيں اسى كى سزا دى جائيگى سبا ( 33 ).
اور ابن قيم رحمہ اللہ تعالى كہتے ہيں:
" اور گردن پر مسح كرنے ميں نبى كريم صلى اللہ عليہ وسلم سے بالكل كوئى حديث ثابت نہيں " انتہى.
ديكھيں: زاد المعاد لابن قيم ( 1 / 195 ).
اور شيخ ابن باز رحمہ اللہ تعالى كہتے ہيں:
" گردن كا مسح كرنا نہ تو مستحب ہے اور نہ ہى مشروع، بلكہ صرف سر اور دونوں كانوں كا مسح كيا جائيگا، جيسا كہ كتاب و سنت سے ثابت ہے " انتہى.
ديكھيں: مجموع فتاوى ابن باز ( 10 / 102 ).
واللہ اعلم .
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Jazak Allahu Khair Ka Jwab Kya De?

بسْــــــــــــــمِﷲِ الرَّحْمَنِ الرَّحِيم
  Jazak Allahu Khairan - Allah Aap Ko Achcha Sila Ata Farmaye
Jazak Allahu Khairan - May Allah Reward You In Goodness
Usamah Bin Zaid Radi Allahu Anhu Se Riwayat Hai Ki RasoolAllah Sαℓℓαℓℓαнυ αℓαyнє ωαѕαℓℓαм Ne Farmaya
"Agar Kisi Ke Saath Koyi Neki Ka Suluq Kiya Gaya  Aur Usne Neki Karne Wale Se Kaha  جَزَاكَ اللَّهُ خَيْرًا - *Jazak Allahu Khairan* ( Allah Aap Ko Acha Sila Ata Farmaye),  To Usne Uski Puri Tarif Kar Di."
📚Jamia Tirimizi, Jild 1, : 2101 Hasan

Umar ibn Khattaab Radi Allahu Anhu Ne Farmaya
Agar Logo Ko Jazak Allahu Khairan Kahne Ka Sawab Malom Hojaye To Wo Ek Dusre Ko Ye Bahut Ziyada Kahne Lag Jayenge.
📚Musannaf Ibn Abi Shaybah, : 26519

Ek Baar Usaid Bin Haider Radi Allahu Anhu Ne Rasool-Allah Sαℓℓαℓℓαнυ αℓαyнє ωαѕαℓℓαм Se Farmaya

" Ya RasoolAllah Sαℓℓαℓℓαнυ αℓαyнє ωαѕαℓℓαм  جَزَاكَ اللَّهُ خَيْرًا Jazak Allahu Khairan (Allah Aap Ko Acha Sila Ata Farmaye) To Unke Jawab Mein Rasool-Allah ﷺ Ne Farmaya - وَأَنْتُمْ فَجَزَاكُمُ اللَّهُ خَيْرًا - *Wa Antum Fa Jazakum Allahu Khairan* (Aur Aap Ko Bhi, Allah Acha Sila Ata Farmaye).

*📚Sahih Ibn Hibban, 7436 Hasan
Abu Hurairah Radi Allahu Anhu Se Riwayat Hai Ki Rasoollallah Sαℓℓαℓℓαнυ αℓαyнє ωαѕαℓℓαм Ne Farmaya:-_

Wo Allah Ka Shukr Ghuzar Nahi Ho Sakta Jo Bando Ka Shukr Guzar Na Ho.

*📚Sunan Abu Dawud, Vol 3, : 1383 (Sahih)
___________________________________
ENGLISH TRANSLATION
Narrated By Usamah Bin Zaid Radi Allahu Anhu Rasool-Allah Sαℓℓαℓℓαнυ αℓαyнє ωαѕαℓℓαм Said:
"Whoever Some Good Was Done To Him, And He Says: جَزَاكَ اللَّهُ خَيْرًا - *Jazak Allahu Khairan*  (May Allah Reward You In Goodness) Then He Has Done The Most That He Can Of Praise."

*📚Jamia Tirimizi, Book 1, Hadith : 2035 Hasan
Umar ibn Khattaab Radi Alahu Anhu Said
" If One Of You Knew What Is The Reward Of Saying To His Brother, *Jazak Allahu khayran,* You Would Say It a Great Deal To One Another."
📚Musannaf Ibn Abi Shaybah, : 26519

Once Usaid Bin Haider Radi Allahu Anhu Said To The Rasool-Allah Sαℓℓαℓℓαнυ αℓαyнє ωαѕαℓℓαм:-_

" Ya RasoolAllah Sαℓℓαℓℓαнυ αℓαyнє ωαѕαℓℓαм جَزَاكَ اللَّهُ خَيْرًا Jazak Allahu Khairan (May Allah Reward You In Goodness), RasoolAllah  ﷺ  Replied To Him.
وَأَنْتُمْ فَجَزَاكُمُ اللَّهُ خَيْرًا
Wa antum Fa Jazakum Allahu Khairan (And You Too, May Allah Reward You Too With Good).

📚Sahih Ibn Hibban : 7436 Hasan

Narrated By Abu Hurairah Radi Allahu Anhu The Prophet (peace_be_upon_him) Said:
"He Does Not Thank Allah Who Does Not Thank People."
📚Sunan Abu Dawud, Book 41, Number : 4793 (Sahih)

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Tawaif ko Islam Ki Dawat Aur Uski Islah.

 Shah Saheb Ka Tawaifo Ki Islah Karna

یہ لڑکیاں سب سے بے نیاز اپنی اداؤں سے سب کو گھائل کرتی مدرسہ عزیزیہ کے دروازے سے گزر رہی تھیں کہ
حضرت شاہ محمد اسماعیل رحمہ اللہ کی نظر ان پر پڑ گئی!
حضرت نے اپنے ساتھیوں سے پوچھا یہ کون ہیں؟... سا تھیوں نے بتایا کہ حضرت یہ طوائفیں ہیں اورکسی ناچ رنگ کی محفل میں جا رہی ہیں۔
حضرت شاہ صاحب نے فرمایا..اچھا یہ تو معلوم ہوا،
لیکن یہ بتاؤ کہ یہ کس مذھب سے تعلق رکھتی ہیں؟
انہوں نے بتایا کہ جناب یہ دین اسلام ہی کو بدنام کرنے والی ہیں..اپنے آپ کو مسلمان کہتی ہیں۔
شاہ صا حب نے جب یہ بات سنی تو فرمایا:
مان لیا کہ بدعمل اور بدکردار ہی سہی لیکن کلمہ گو ہونے کے اعتبار سے
ہو ئیں تو ہم مسلمانوں کی بہنیں ہی. لہٰذا ہمیں انھیں نصیحت کرنی چا ہیے،
ممکن ہے کہ گناہ سے باز آجاءئیں...
ساتھیو ں نے کہا ان پر نصیحت کیا خاک ا ثر کرے گی؟
بلکہ ان کو نصیحت کرنے والا تو الٹا خود بدنام ہو جاءے گا
شاہ صاحب نے فرمایا:
تو پھر کیا ہوا؟..
میں تو یہ فریضہ ادا کر کے رہوں گا خواہ کوئی کچھ سمجھے!
ساتھیوں نے عر ض کیا۔ حضرت!
آپ کا ان کے پاس جانا قرین مصلحت نہیں ہے..
آپ کو پتا ہے کہ شہر کے چاروں طرف آپ کے مذ ہبی مخالفین ہیں..
جو آپ کو بد نام کرنے کا کوئی موقع نہیں چھوڑتے..
آپ نے فرمایا مجھے ذرہ بھر پروا نہیں..
میں انھیں ضرور نصیحت کرنے جاؤں گا!
اس عزم صمیم کے بعدآپ تبلیغ حق و اصلا ح کا عزم صادق لے کر گھر میں تشریف لائے..
درویشانہ لباس زیب تن کیا اور تن تنہا نایکہ کی حویلی کے دروازے پر پہنچ گے
اور صدا لگائ ی..
اللہ والیو! دروازہ کھولو اور فقیر کی صدا سنو!
آپ کی آواز سن کر چند لڑکیاں آئیں...
انھوں نے دروازہ کھولا تو دیکھا باہر درویش صورت بزرگ کھڑا ہے...
انھوں نے سمجھا کہ یہ کوئی گدا گر فقیر ہے سو انہوں نے چند روپے لا کر تھما دیے،لیکن اس نے اندر جانے کا اصرار کیا اور پھر اندر چلے گئے!
شاہ صاحب نے دیکھا کہ چاروں طرف شمعیں اور قند یلین روشن ہیں.. طوائفیں،
طبلے اور ڈھولک کی تھاپ پر تھرک رہی ہیں..
ان کی پازیبوں اور گھنگھروں کی جھنکار نے عجیب سماں باندھ رکھا ہے..
جونہی نائیکہ کی نگاہ اس فقیر بے نوا پر پڑی اس پرہیبت طاری ھو گئی..
وہ جانتی تھی کہ اس کے سامنے فقیرانہ لباس میں گداگر نہیں،
بلکہ شاہ اسماعیل کھڑے ہیں...
وہ جو
حضرت شا ہ ولی اللہ کے پوتے اور شا ہ عبدالعز یز،شاہ رفیع الدین اور شاہ عبدالقادر کے بھتیجے ہیں..
نائیکہ تیزی سے اپنی نشست سے اٹھی اور احترام کے ساتھ ان کے سامنےجا کھڑی ہوئی.. بڑے ادب سے عرض کیا:
حضرت آپ نے ہم سیاہ کاروں کے پاس آنے کی زحمت کیوں کی؟...
آپ نے پیغام بھیج دیا ہوتا تو ہم آپ کی خدمت میں حاضر ہو جاتیں!
آپ نے آنکھیں بند کیے بغیر نامحرم سےکہا:
بڑی بی تم نے ساری زندگی لوگوں کو راگ و سرور سنایا ہے..
آج زرا کچھ دیر ہم فقیروں کی صدا بھی سن لو!
جی سنایئے ہم مکمل توجہ کے ساتھ آپ کا بیان سنیں گی!
یہ کہہ کر اس نے تمام طوائفوں کو پازیبیں اتارنے
اور طبلے ڈھولکیاں بند کر کے وعظ سننے کا حکم دے دیا..
وہ ہمہ تن گوش ہو کر بیٹھ گئیں۔
شاہ اسما عیل (رحمہ اللہ) نے حمائل شریف نکال کر سورۃ التين
تلاوت فر مائی...
آپ کی تلاوت اس قدر وجد آفریں اور پر سوز تھی کہ طوائفیں بے خود ہو گئیں...
اس کے بعد آپ نے آیات مبارکہ کا دلنشین رواں ترجمہ کرکے بیان شروع کر دیا!
ان کا یہ خطاب زبان کا کانوں سے خطاب نہ تھا بلکہ یہ دل کا دلوں سے اور روح کا روحوں سے خطاب تھا...
یہ خطاب دراصل اس الہام ربانی کا کرشمہ تھا جو شاہ صاحب جیسے مخلص دردمندوں اور امت مسلمہ کے حقیقی خیرخوا ہوں کے دلوں پر اترتا ہے!
جب طوا ئفوں نے شاہ صاحب کے دلنشین انداز میں سورت کی تشریح سنی تو ان پر لرزہ طاری ہو گیا..روتے روتے اُن کی ہچکیاں بندھ گئیں۔
شاہ صاحب نے جب ان کی آنکھوں میں آنسوؤں کی جھڑیاں دیکھیں تو انہوں نے بیان کا رخ توبہ کی طرف موڑ دیا اور بتایا کہ جو کوئی گناہ کر بیٹھے تو اللہ  سے اس کی معافی مانگ لے تو اللّٰہ بڑا رحیم ہے...
وہ معاف بھی کر دیتا ہے بلکہ اسے تو اپنے گنہگار اور سیاہ کار بندوں کی توبہ سے بے حد خوشی ہوتی ہے..
آپ نے توبہ کے اتنے فضائل بیان کیے کہ ان کی سسکیاں بندھ گئیں...
کسی زریعے سے شہر والوں کو اس وعظ کی خبر ہو گئی..
وہ دوڑے دوڑے آئے اور مکانوں کی چھتوں
دیواروں چوکوں اور گلیوں میں کھڑے ہو کر وعظ سننے لگے،
تاحدِنگاہ لوگوں کے سر ہی سر نظر آنے لگے!
شاہ صاحب نے انھیں اٹھ کروضو کرنے اور دو رکعت نوافل ادا کرنے کی ہدایت کی۔
راوی کہتا ہے کہ جب وہ وضو کر کے قبلہ رخ کھڑی ہوئیں اور نماز کے دوران سجدوں میں گریں تو
شاہ صاحب نے ایک طرف کھڑے ہو کر اللہ کے سامنے ہاتھ پھیلا دیے اور عرض کیا:
اے مقلب القلوب!
اے مصرف الاحوال!
میں تیرے حکم کی تعمیل میں اتنا کچھ ہی کر سکتا تھا یہ سجدوں میں پڑی ہیں، تو ان کے دلوں کو پاک کر دے، گناہوں کو معاف کردے اور انہیں آبرومند بنا دے تو تیرے لیے کچھ مشکل نہیں، ورنہ تجھ پر کسی کا زور نہیں،
میری فریاد تو یہ ہے کہ انھیں ہدایت عطا فرما انھیں نیک بندیوں میں شامل فرما!
ادھر شاہ صاحب کی دعا ختم ہوئی اور ادھر ان کی نماز...
وہ اس حال میں اٹھیں کہ دل پاک ہو چکے تھے!
اب شاہ صاحب نے عفت مآب زندگی کی برکات اور نکاح کی فضیلت بیان کرنی شروع کر دی اور اس موضوع کو اس قدر خوش اُسلوبی سے بیان کیا کہ تمام طوائفیں گناہ کی زندگی پر کفِ افسوس کرنے لگیں اور نکاح پر راضی ہو گئیں... چنانچہ ان میں سے جوان عورتوں نے نکاح کرا لیے اور ادھیڑ والیوں نے گھروں میں بیٹھ کر محنت مزدوری سے گزارا شروع کر دیا۔
کہتے ہیں کہ ان میں سے سب سے زیادہ خوبصورت موتی نامی خاتون کو جب اس کے سابقہ جاننے والوں نے شریفانہ حالت اور سادہ لباس میں مجاہدین کے گھوڑوں کے لیے ہاتھ والی چکی پر دال پیستے دیکھا تو پوچھا:
وہ زندگی بہتر تھی جس میں تو ر یشم و حریر کے ملبو سات میں شاندار لگتی اور تجھ پر سیم وزرنچھاور ہوتے تھے یا یہ زندگی بہتر ہے جس میں تیرے ہاتھوں پر چھالے پڑےہوئے ہیں؟
کہنے لگی اللہ کی قسم! مجھے گناہ کی زندگی میں کبھی اتنا لطف نہ آیا جتنا مجاہدین کے لیے چکی پر دال دلتے وقت ہاتھوں میں ابھرنے والے چھالوں میں کانٹے چبھو کر پانی نکالنے سے آتا ہے!

(یہ قصہ تذکرہ الشہید سے ماخوذ ہے)
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Newziland me Musalmano Pe Kiye Gye Hamle Ka Jayeja.

سانحہ نیوزی لینڈ: دہشت گردی کا پس منظر سمجھیے

نیوزی لینڈ کے شہر کرائسٹ چرچ کی دو مساجد میں نماز جمعہ کے وقت ہونے والی  پچاس کے قریب نمازیوں کی شہادت کو مغربی ذرائع ابلاغ دہشت گردی کے بجائے shootings کا نام دے رہے ہیں جبکہ دہشت گرد کو ذہنی مریض بتایا جارہاہے..
حالانکہ ذرا سا غور و فکر کیا جائے تو معلوم ہوجائے گا کہ یہ کسی ذہنی مریض کا انفرادی حملہ نہیں بلکہ ایک انتہاپسند مذہبی جنونی کا پوری پلاننگ سے کیا گیا حملہ ہے جس کے پس منظر میں مکروہ سوچ اور اس کے ساتھ پورا گروہ ملوث ہے. .
حملہ آور کی گن ,میگزین اور بلٹ پروف جیکٹ پر مختلف نام اور کچھ واقعات بمعہ تاریخ لکھے ہیں جس کا پس منظر دیکھا جائے تو معلوم ہوگا کہ مغرب میں انتہا پسندی کن حدوں کو چھو رہی ہے..
بندوق کے میگزین پر tours 732 لکھا ہے.. وہی جنگ ٹورس جو تاریخ کی دس سب سے زیادہ فیصلہ کن جنگوں میں سے ایک ہے جس میں خلافت بنو امیہ کے عظیم جرنیل عبدالرحمان الغفیقی کی قیادت میں مسلم لشکر فرانس کے شہر ٹورس میں مغربی فوجوں سے ٹکرایا تھا مگر بدقسمتی سے اس میں مسلم فوجوں کو شکست ہوئی تھی.. تاریخ دانوں کے مطابق اگر اس جنگ میں مسلمان فاتح رہتے تو پورے یورپ پر آج تک مسلمانوں کا قبضہ ہوتا اور تاریخ کا دھارا مختلف ہوتا مگر مغربی فوجوں کے سالار charles  martel کی شجاعت و بہتر حکمت عملی کی بدولت مسلم لشکر پھر کبھی یورپ میں اس سے آگے نہ بڑھ سکے اسی لئے ٹورس میں آج بھی مقام جنگ کے میدان پر کتبہ لگا ہے جس پر کچھ یوں لکھا ہے "یہاں شیطان کے قدم روک دیے گئے"  مسجد پر حملہ کرنے والے دہشتگرد نے  بھی charles  martel کا نام اپنی بندوق کی نالی پر لکھا ہے.. جنگ ٹورس میں مسلم امیر لشکر سمیت ہزاروں مسلمانوں کی شہادت کی بدولت ہی عربی میں اسے "معرکہ بلاط شہدا" بھی کہا جاتا ہے.
بندوق پر sigismund of luxemburg کا نام بھی لکھا ہے. اس بادشاہ نے سلطنت عثمانیہ کےخلاف "جنگ نکو پولس" میں صلیبی لشکر کی قیادت کی تھی اور بلغاریہ کو ترکوں سے آزاد کروایا تھا.. بعدازاں اس نے مسلمانوں سے لڑنے کیلئے مسیحی فوجوں کے مستقل اتحاد order of the dragon بھی تشکیل دیا تھا..
حملہ آور کی بندوق پر ایک اور نام feliks kazimiers potocki کا بھی ہے اس پولش جنگجو نے عثمانی ترکوں کے خلاف لڑائیوں میں شمولیت سے شہرت حاصل کی تھی اور بعدازاںbattle of podhajce میں اس نے مسلم تاتایوں کو فیصلہ کن شکست دی تھی..۔ اسی طرح ایک اور نام josue estabnez کا بھی ہے اس سپینی نیشلنسٹ نوجوان کا مہاجرین نے 2007 میں قتل کردیا تھا ۔۔۔ حملہ آور کی بندوق پر ایک اور نام sebestiano venier کا ہے یہ مشہور بحری جنگ battle of lepanto میں صلیبی فوجوں کا امیر بحر تھا اور اسکی قیادت میں عثمانی بحریہ کو شکست دی گئی تھی..
ایک اور نام جو ہمیں بندوق پر لکھا نظر آتا ہے  anton lundin petterson کا ہے اس اکیس سالہ سویڈش نوجوان نے سکول میں حملہ کرکے 2015 میں دو مہاجر اساتذہ اور ایک طالب علم کو مار دیا تھا بعدازاں خود بھی پولیس کے ساتھ مقابلہ میں مارا گیا تھا.
حملہ آور کی بندوق پر ایک اور نام Skanderberg کا بھی لکھا ہے. ماضی میں ترک فوج کے افسر رہنے والے اس البانوی جنگجو نے نیپلز اور وینس کی فوجوں کے ساتھ مل کر پندرہویں صدی کے وسط میں مقدونیہ اور البانیہ میں سلطنت عثمانیہ کے خلاف بغاوتوں میں اہم کردار ادا کیا تھا.
حملہ آور کے میگزین پر ایک چھوٹا سا غیر واضح نام bragadin کا بھی لکھا ہے antonio marco bragadin ریاست وینس مشہور عسکری کمانڈر تھا جس نے عثمانیوں کی جانب سے کیے گئے محاصرہ فیما گسٹا " seige of famagusta" کے دوران ایک معاہدہ توڑتے ہوئے سینکڑوں ترک فوجیوں کو مار ڈالا تھا اور بعدازاں ترکوں کے ہاتھوں ہی عبرت ناک موت سے دوچار ہوا تھا.
بندوق کی ٹریگر پر alexendere bissonate کا نام ہے جس نے 2017 میں کینیڈا کے شہر کیوبک میں مسجد پر حملہ کرکے چھ نمازیوں کو شہید کردیا تھا..
بندوق پر viana 1683 بھی لکھا ہے جو کہ سلیمان عالی شان کی جانب سے کیے جانے والے مشہور محاصرہ ویانا کی یاد دلاتا ہے.... جس کی قیادت مصطفیٰ پاشا نے کی تھی اور یہ عثمانیوں کی جانب سے تسخیر یورپ کی آخری بڑی کوشش تھی جسے یورپی  اتحاد کے سربراہ johm 3 sobieski کی قیادت میں سخت مقابلے کے بعد صلیبیوں نے ناکام بنادیا تھا.. یورپ میں آج بھی اس محاصرے کو یاد کیا جاتا ہے..
حملہ آور نے بندوق کے ایک میگزین پر acre 1189 بھی لکھا جو کہ مشہور محاصرہ ایکر کی یاد دلاتا ہے جب یروشلم کے صلیبی بادشاہ king guy نے سلطان صلاح الدین ایوبی کے خلاف جوابی حملہ کیا تھا یہ محاصرہ دو سال تک جاری رہا جس میں صلیبیوں کو کامیابی ملی بعدازاں یہ تیسری صلیبی جنگ کا باعث بنا..
حملہ آور کی بندوق پر iosif gurko کا نام بھی لکھا ہے جو کہ انیسویں صدی کا روسی فیلڈ مارشل تھا اس نے ترکوں کے خلاف مختلف جنگوں اور خاص کر جنگ کرائمیا میں عثمانی فوجوں کے خلاف داد شجات دکھائی تھی... حملہ آور نے بندوق کی نالی پر refugees welcome in hell بھی لکھا ہے جس میں مہاجرین کو مغربی ممالک میں آنے پر جہنم  پہنچانے کی دھمکی دی ہے...
حملہ آور نے  اپنا انجام جانتے ہوئے یہ سب باتیں انتہائی باریکی سے لکھی ہیں جو مسلمانوں سے شدید نفرت اور ماضی کی صلیبی جنگوں سے محبت اور ان کے دوبارہ آغاز کا واضح پیغام دے رہی ہیں  اور یہ مائند سیٹ خاص کر مغرب میں رہنے والے مسلمانوں کیلئے سنگین خطرے کی گھنٹی ہے...
ایک اور قابل غور بات یہ ہے کہ بندوق پر جن جنگجوؤں کے نام لکھے ہیں وہ قومیتوں کے اعتبار سے پولش, روسی, سپینی , کینیڈین,رومی, جرمن لکسمبرگ اور فرانسیسی ہیں مگر ان سب میں مشترک بات اسلام دشمنی تھی یعنی حملہ آور تمام مسیحیوں کو ایک ملت سمجھتا ہے...
فرقوں اور فقہی مسلئوں میں الجھی امت مسلمہ کیلئے یہ مقام عبرت ہے کہ آپ کا دشمن ہزار سال بعد بھی کچھ نہیں بھولا وہ اپنی تاریخ سے آشنا بھی ہے اور اس کے لئے اب بھی دشمن بھی آپ ہی ہیں .. اسے اپنی فتوحات پر ناز بھی ہے اور اپنے سالاروں کی بہادری کی داستانوں پر فخر بھی..
کہہں پڑھا تھا کہ lawrence of arabia کو بھی بچپن سے knights templers کی داستانوں سے لگاؤ اور شام میں موجود صلیبی قلعوں کی باقیات سے شدید محبت تھی... اور جب جنگ عظیم اول میں اتحادی فوجوں نے معرکہ حطین میں عبرت ناک شکست کے سات سو سال بعد دوبارہ یروشلم کو فتح کیا اور بلاد شام میں فاتح فرانسیسی جنرل ہنری گراؤڈ نےدمشق میں داخل ہوتے ہی سے سب سے پہلے جامعہ امیہ کے عقب میں سلطان صلاح الدین ایوبی کے مقبرے پر قدم رکھا تو یہ تاریخی الفاظ کہے.
"awake Saladin we're back"
مگر خیر ہمیں تاریخ سے کیا رغبت.....
کبھی اے نوجواں مسلم! تدبّر بھی کِیا تُو نے.
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HM Musalman Kaha They Aur Ab Kaha Hai.

Deen Se Pichhe Hatne Ka Natija

انگریزوں کے پاپا........
God Helps those who Help themselves
 آپ کو پتہ ہے انگریزوں کے پاپا جی نہایا نہیں کرتے . ڈاکٹر محمد اعظم رضا تبسم کی کتاب ترقی کے راز سے انتخاب ۔سیدہ مسکان رومی
ﯾﻮﺭﭖ ﻣﯿﮟ ﻧﮩﺎﻧﮯ ﮐﻮ ﮐﻔﺮ ﺳﻤﺠﮭﺎ ﺟﺎﺗﺎ ﺗﮭﺎ،
ﯾﻮﺭﭖ ﮐﮯ ﻟﻮﮔﻮﮞ ﺳﮯ ﺳﺨﺖ ﺑﺪﺑﻮ ﺁﺗﯽ ﺗﮭﯽ ! ﺭﻭﺱ ﮐﮯ ﺑﺎﺩﺷﺎﮦ ﻗﯿﺼﺮ ﮐﯽ ﺟﺎﻧﺐ ﺳﮯ ﻓﺮﺍﻧﺲ ﮐﮯ ﺑﺎﺩﺷﺎﮦ ﻟﻮﺋﯿﺲ ﭼﮩﺎﺭﺩﮨﻢ ﮐﮯ ﭘﺎﺱ ﺑﮭﯿﺠﮯ ﮔﺌﮯ ﻧﻤﺎﺋﻨﺪﮮ ﻧﮯ ﮐﮩﺎ ﮨﮯ ﮐﮧ ":
ﻓﺮﺍﻧﺲ ﮐﮯ ﺑﺎﺩﺷﺎﮦ ﮐﯽ ﺑﺪﺑﻮ ﮐﺴﯽ ﺑﮭﯽ ﺩﺭﻧﺪﮮ ﮐﯽ ﺑﺪﺑﻮ ﺳﮯ ﺯﯾﺎﺩﮦ ﻣﺘﻌﻔﻦ ﮨﮯ "،
ﺍﺱ ﮐﯽ ﺍﯾﮏ ﻟﻮﻧﮉﯼ ﺗﮭﯽ ﺟﺲ ﮐﺎ ﻧﺎﻡ "ﻣﻮﻧﭩﯿﺎﺳﺒﺎﻡ" ﺗﮭﺎ ﺟﻮ ﺑﺎﺩﺷﺎﮦ ﮐﯽ ﺑﺪﺑﻮ ﺳﮯ ﺑﭽﻨﮯ ﮐﮯ ﻟﯿﮯ ﺍﭘﻨﮯ ﺍﻭﭘﺮ ﺧﻮﺷﺒﻮ ﮈﺍﻟﺘﯽ ﺗﮭﯽ ۔
ﺩﻭﺳﺮﯼ ﻃﺮﻑ ﺧﻮﺩ ﺭﻭﺳﯽ ﺑﮭﯽ ﺻﻔﺎﺋﯽ ﭘﺴﻨﺪ ﻧﮩﯿﮟ ﺗﮭﮯ، ﻣﺸﮩﻮﺭ ﺳﯿﺎﺡ ﺍﺑﻦ ﻓﻀﻼﻥ ﻧﮯ ﻟﮑﮭﺎ ﮨﮯ ﮐﮧ " ﺭﻭﺱ ﮐﺎ ﺑﺎﺩﺷﺎﮦ ﻗﯿﺼﺮ ﭘﯿﺸﺎﺏ ﺁﻧﮯ ﭘﺮ ﻣﮩﻤﺎﻧﻮﮞ ﮐﮯ ﺳﺎﻣﻨﮯ ﮨﯽ ﮐﮭﮍﮮ ﮐﮭﮍﮮ ﺷﺎﮨﯽ ﻣﺤﻞ ﮐﯽ ﺩﯾﻮﺍﺭ ﭘﺮ ﭘﯿﺸﺎﺏ ﮐﺮ ﺗﺎ ﮨﮯ، ﭼﮭﻮﭨﮯ ﺍﻭﺭ ﺑﮍﮮ ﭘﯿﺸﺎﺏ ﺩﻭﻧﻮﮞ ﮐﮯ ﺑﻌﺪ ﮐﻮﺋﯽ ﺍﺳﺘﻨﺠﺎ ﻧﮩﯿﮟ ﮐﺮﺗﺎ، ﺍﯾﺴﯽ ﮔﻨﺪﯼ ﻣﺨﻠﻮﻕ ﻣﯿﮟ نےﻧﮩﯿﮟ ﺩﯾﮑﮭﯽ " ۔
ﺍﻧﺪﻟﺲ ﻣﯿﮟ ﻻﮐﮭﻮﮞ ﻣﺴﻠﻤﺎﻧﻮﮞ ﮐﻮ ﻗﺘﻞ ﮐﺮﻧﮯ ﻭﺍﻟﯽ ﻣﻠﮑﮧ " ﺍﯾﺰﺍﺑﯿﻼ "ﺳﺎﺭﯼ ﺯﻧﺪﮔﯽ ﻣﯿﮟ ﺻﺮﻑ ﺩﻭ ﺑﺎﺭ ﻧﮩﺎﺋﯽ، ﺍﺱ ﻧﮯ ﻣﺴﻠﻤﺎﻧﻮﮞ ﮐﮯ ﺑﻨﺎﺋﮯ ﮨﻮﺋﮯ ﺗﻤﺎﻡ ﺣﻤﺎﻣﻮﮞ ﮐﻮ ﮔﺮﺍ ﺩﯾﺎ ۔
*ﺍﺳﭙﯿﻦ ﮐﮯ ﺑﺎﺩﺷﺎﮦ " ﻓﻠﯿﭗ ﺩﻭﻡ " ﻧﮯ ﺍﭘﻨﮯ ﻣﻠﮏ ﻣﯿﮟ ﻧﮩﺎﻧﮯ ﭘﺮ ﻣﮑﻤﻞ ﭘﺎﺑﻨﺪﯼ ﻟﮕﺎ ﺭﮐﮭﯽ ﺗﮭﯽ* ، ﺍﺱ ﮐﯽ ﺑﯿﭩﯽ ﺍﯾﺰﺍﺑﯿﻞ ﺩﻭﺋﻢ ﻧﮯ ﻗﺴﻢ ﮐﮭﺎﺋﯽ ﺗﮭﯽ ﮐﮧ ﺷﮩﺮﻭﮞ ﮐﺎ ﻣﺤﺎﺻﺮﮦ ﺧﺘﻢ ﮨﻮﻧﮯ تک ﺩﺍﺧﻠﯽ ﻟﺒﺎﺱ ﺑﮭﯽ ﺗﺒﺪﯾﻞ ﻧﮩﯿﮟ ﮐﺮﮮ ﮔﯽ۔ ﺍﻭﺭ ﻣﺤﺎﺻﺮﮦ ﺧﺘﻢ ﮨﻮﻧﮯ ﻣﯿﮟ ﺗﯿﻦ ﺳﺎﻝ ﻟﮕﮯ، ﺍﺳﯽ ﺳﺒﺐ ﺳﮯ ﻭﮦ ﻣﺮﮔﺌﯽ ۔ﯾﮧ ﺍﻥ ﮐﯽ ﻋﻮﺍﻡ ﮐﮯ ﻧﮩﯿﮟ ﺑﺎﺩﺷﺎﮨﻮﮞ ﺍﻭﺭ ﺣﮑﻤﺮﺍﻧﻮﮞ ﮐﮯ ﻭﺍﻗﻌﺎﺕ ﮨﯿﮟ ﺟﻮ ﺗﺎﺭﯾﺦ ﮐﮯ ﺳﯿﻨﮯ ﻣﯿﮟ ﻣﺤﻔﻮﻅ ﮨﯿﮟ،
*ﺟﺐ ﮨﻤﺎﺭﮮ ﺳﯿﺎﺡ ﮐﺘﺎﺑﯿﮟ ﻟﮑﮫ ﺭﮨﮯ ﺗﮭﮯ،*
ﺟﺐ ﮨﻤﺎﺭﮮ ﺳﺎﺋﻨﺴﺪﺍﻥ ﻧﻈﺎﻡ ﺷﻤﺴﯽ ﭘﺮ ﺗﺤﻘﯿﻖ ﮐﺮ ﺭﮨﮯ ﺗﮭﮯ۔
*ﺍﻥ ﮐﮯ ﺑﺎﺩﺷﺎﮦ ﻧﮩﺎﻧﮯ ﮐﻮ ﮔﻨﺎﮦ ﻗﺮﺍﺭ ﺩﮮ ﮐﺮ ﻟﻮﮔﻮﮞ ﮐﻮ ﻗﺘﻞ ﮐﺮﺗﮯ ﺗﮭﮯ،*
*ﭘﮭﺮ ﮨﻤﯿﮟ ﺍﻥ ﮐﮯ ﺑﺎﺩﺷﺎﮨﻮﮞ ﺟﯿﺴﮯ ﺣﮑﻤﺮﺍﻥ ﻣﻠﮯ ﺗﻮ ﺣﺎﻝ ﺩﯾﮑﮭﯿﮟ !!*
ﺟﺐ ﻟﻨﺪﻥ ﺍﻭﺭ ﭘﯿﺮﺱ ﮐﯽ ﺁﺑﺎﺩﯾﺎﮞ 30 ﺍﻭﺭ 40 ﮨﺰﺍﺭ ﺗﮭﯿﮟ ﺍﺱ ﻭﻗﺖ ﺍﺳﻼﻣﯽ ﺷﮩﺮﻭﮞ ﮐﯽ ﺁﺑﺎﺩﯾﺎﮞ ﺍﯾﮏ ﺍﯾﮏ ﻣﻠﯿﻦ ﮨﻮﺍ ﮐﺮﺗﯽ ﺗﮭﯿﮟ،
ﻓﺮﻧﭻ ﭘﺮﻓﯿﻮﻡ ﺑﮩﺖ ﻣﺸﮩﻮﺭ ﮨﯿﮟ ﺍﺱ ﮐﯽ ﻭﺟﮧ ﺑﮭﯽ ﯾﮩﯽ ﮨﮯ ﮐﮧ ﭘﺮﻓﯿﻮﻡ ﻟﮕﺎﺋﮯ ﺑﻐﯿﺮ ﭘﯿﺮﺱ ﻣﯿﮟ ﮔﮭﻮﻣﻨﺎ ﻣﻤﮑﻦ ﻧﮩﯿﮟ ﺗﮭﺎ ۔
ﺭﯾﮉ ﺍﯾﮉﯾﻦ ﯾﻮﺭﭘﯿﻮﮞ ﺳﮯ ﻟﮍﺗﮯ ﮨﻮﺋﮯ ﮔﻼﺏ ﮐﮯ ﭘﮭﻮﻝ ﺍﭘﻨﯽ ﻧﺎﮎ ﻣﯿﮟ ﭨﮭﻮﻧﺲ ﺩﯾﺘﮯ ﺗﮭﮯ ﮐﯿﻮﮞ ﯾﻮﺭﭘﯿﻮﮞ ﮐﯽ ﺗﻠﻮﺍﺭ ﺳﮯ ﺯﯾﺎﺩﮦ ﺍﻥ ﮐﯽ ﺑﺪﺑﻮ ﺗﯿﺰ ﮨﻮﺗﯽ ﺗﮭﯽ!!
ﻓﺮﺍﻧﺴﯿﺴﯽ ﻣﻮﺭﺥ " ﺩﺭﯾﺒﺎﺭ " ﮐﮩﺘﺎ ﮨﮯ ﮐﮧ ":ﮨﻢ ﯾﻮﺭﭖ ﻭﺍﻟﮯ ﻣﺴﻠﻤﺎﻧﻮﮞ ﮐﮯ ﻣﻘﺮﻭﺽ ﮨﯿﮟ، ﺍﻧﮩﻮﮞ ﻧﮯ ﮨﯽ ﮨﻤﯿﮟ ﺻﻔﺎﺋﯽ ﺍﻭﺭ ﺟﯿﻨﮯ ﮐﺎ ﮈﮬﻨﮓ ﺳﮑﮭﺎ ﯾﺎ، ﺍﻧﮩﻮﮞ ﻧﮯ ﮨﯽ ﮨﻤﯿﮟ ﻧﮩﺎﻧﺎ ﺍﻭﺭ ﻟﺒﺎﺱ ﺗﺒﺪﯾﻞ ﮐﺮﻧﺎ ﺳﮑﮭﺎﯾﺎ، ﺟﺐ ﮨﻢ ﻧﻨﮕﮯ ﺩﮬﮍﻧﮕﮯ ﮨﻮﺗﮯ تھے، ﺍﺱ ﻭﻗﺖ ﻭﮦ ﺍﭘﻨﮯ ﮐﭙﮍﻭﮞ ﮐﻮ ﺯﻣﺮﺩ، ﯾﺎﻗﻮﺕ ﺍﻭﺭ ﻣﺮﺟﺎﻥ ﺳﮯ ﺳﺠﺎﺗﮯ ﺗﮭﮯ، ﺟﺐ ﯾﻮﺭﭘﯽ ﮐﻠﯿﺴﺎ ﻧﮩﺎﻧﮯ ﮐﻮ ﮐﻔﺮ ﻗﺮﺍﺭ ﺩﮮ ﺭﮨﺎ ﺗﮭﺎ۔ *ﺍﺱ ﻭﻗﺖ ﺻﺮﻑ ﻗﺮﻃﺒﮧ ﺷﮩﺮ ﻣﯿﮟ 300 ﻋﻮﺍﻣﯽ ﺣﻤﺎﻡ ﺗﮭﮯ*
"پھر وقت پلٹ گیا اور وہ ہم سے ہماری سائنس ہمارا علم ہماری ترقی کے راز لے گئے .
ہمیں بدلے میں احساس کم تری دے دی .ہمیں فیشن نامی لفظ کے ساتھ بے ہودگی دے دی ہمین ماڈرن بنانے کے نام پر بے حیائی دے دی ہم نے ان کی دی ہر اس پراڈکٹ کا ویلکم کیا جس سے ہم بری طرح تباہ ہو سکتے تھے *انہوں نے ہمیں آزادی کا نام اور ساتھ غلط تعبیریں دے دیں* ہم نے اپنے نصابوں میں بغاوت کے اصولوں کو آزادی کے اصول قرار دے کر پڑھانا شروع کر دیا . **پھر ایسا ہوا کہ ہم نے عیاشی کو کامیاب زندگی سمجھنا شروع کر دیا* پھر ایسا ہوا کہ وہ چاند پر جا رہے تھے ہم انبیاء  کی حیات ممات پر بحث کر رہے ہیں .وہ مریخ کا سفر کر رہے ہیں ہم 1300 سال پہلے صحابہ کے مسلمان ہونے نا ہونے پر بحث کر رہے ہیں.انہوں نے سمندر میں پٹرول کے ذخائر بنانے شروع کر دئے ہم نے پٹرول سے جلاو گیھراو آگ لگاو تحریکیں چلانا شروع کردی .رکیں رکیں ابھی ڈاکٹر محمد اعظم رضا تبسم کی بات پوری نہین ہوئی .انہون نے ادب میں ایسے شاہکار تخلیق کرنے شروع کیے جو افکار بدل دیں *ہم نے لب و رخسار
 چائے کی پیالی
کالج کی لڑکی لکھنا
 شروع کر دیا .
انہوں نے قرآن کو اپنی لیبارڑری کا حصہ بنا لیا اور ہم نے اچھے قیمتی غلاف بنانا شروع کر دیے اور طاق کی سجاوٹ کے مقابلے شروع کر دئے .
جناب یوں ہوا وقت نے پلٹا کھایا انہوں نے ممالک فتح کرنا شروع کر دئے ہم نے اپنی فوج کو گالیاں دینا شروع کر دیں۔
*انہوں نے عمر فاروق کی سادگی اپنا لی ہم نے عیاشی اپنا لی.
جب وہ اپنے بچوں کو زندگی کی حقیقت سکھا رہے ہیں ہم سکول کالج یونیورسیٹوں مین فرسٹ سکینڈ تھرڈ پوزیشن لینے کے گر بتا رہے ہیں ۔
*پیر محمد کرم شاہ الازہری رح فرمایا کرتے تھے ۔آٸندہ جنگیں میدان جنگ میں نہیں کلاس رومز میں لڑی جاٸیں گی ۔*
آج ہم نٸی نسلوں کو مادیت پرستی کی جس بھٹی میں جھونک رہے ہیں اس کا آغاز  ماڈرن ۔ جدت ۔ ترقی کے الفاظ سے کر رہے ہیں ۔ تن آسانی کو سکون کا نام دیا جا رہا ہے پیسے کو ترقی اور کامیابی کا ۔بد تہذیبی کو سٹاٸل کا ۔
*وہ جینا بتا رہے ہیں ہم آپس میں جیتنا سکھا رہے ہیں.*
وہ ہنر اور فنون کے مقابلے کر رہے تھے ہم ڈانس شوز اور رمضان ٹرانسمیشنز میں ڈانس شوز کے مقابلے کر رہے تھے ۔
ان کے بچے ساٸنسی ایجادات میں دنیا سے آگے نکل رہے تھے ہمارے بچے ڈانس سنگنگ میں مسٹر ولڈ بن رے تھے ۔
*انہوں نے اپنی بے حیاٸی اور خواہشات کے سامان کو کم کر کے 14 فروری ویلن ٹاٸن ڈے میں جمع کر دیا اور ہم نے اس کو منانے کے لیے میچورٹی کا نیا نعرہ لگایا ۔*
جب انہوں نے شکیسپیر اور گوٸٹے کے کلام کو الہامی روحانی کلام ثابت کرنے کی کوشش کی عین اس وقت ہم نے اقبال کو مشکل قرار دے کر اپنی نسل کو تن آسان بنانا شروع کر دیا ۔
یہ ہے وقت کا پلٹا جو ہمیں خدا نے نہیں دیا ہم خدا پر الزام لگا رہے ہیں خدا وہی ہے زمانہ وہی ہے معیار بدل گئے ہیں اگر مجھ سے ڈاکٹر محمد اعظم رضا تبسم سے آپ ان حالات کی وجہ پوچھو گے تو میں آپ کو سیدھا قلندر لاہوری کی بارگاہ میں لے جاوں گا.اور کہوں گا شکوہ جواب شکوہ پڑھیں.ساری بات سمجھ آجائے گی .میٹرک کے نصاب کا حصہ بنا لیں آپ کی آئندہ نسلیں ضائع ہونے سے بچ جائیں گی.
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Jo Jisse Mohabbat Karta Hai Qyamat Ke Din O Usi Ke Sath Uthaya Jayega.

▁▁▂▃★━╯﷽╰━★▃▂▁▁                                          رَبِّ زِدْنِی عِلْماً.۔۔

  السَـلاَمُ  عَلَيــْكُم وَرَحْمَةُ اللهِ وَبَرَكـَاتُہ
روزِ قیـامت آدمی اس کے ساتھ ہوگا جــس سے اسکو محـــبت ہوگی
  سیدنا انس ‌رضی ‌اللہ ‌عنہ سے مروی ہے، وہ کہتے ہیں:ہم اس بات کو پسند کرتے تھے کہ کوئی دیہاتی آدمی آئے اور رسول اللہ ‌صلی ‌اللہ ‌علیہ ‌وسلم سے سوال کرے، پس ایک بدّو آیا اور اس نے کہا: اے اللہ کے رسول! قیامت کب آئے گی؟
اتنے میں نماز کے لیے اقامت کہہ دی گئی اور آپ ‌صلی ‌اللہ ‌علیہ ‌وآلہ ‌وسلم نے نماز شروع کر دی، جب آپ ‌صلی ‌اللہ ‌علیہ ‌وآلہ ‌وسلم نماز سے فارغ ہوئے تو فرمایا: قیامت کے بارے میں سوال کرنے والا کہاں ہے؟ اس نے کہا: جی میں ہوں، اے اللہ کے رسول!
آپ ‌نے اس سے پوچھا: اور تو نے اس کے لیے کیا تیـاری کر رکھی ہے؟
اس نے کہا: میں نے اس کے لیے زیادہ عمل تو نہیں کیے، نہ زیادہ نماز ہے اور نہ زیادہ روزے ہیں،
البتہ میں اللہ تعالیٰ اور اس کے رسول سے محــــبت* کرتا ہوں،
♥رسول صلی اللہ ‌علیہ ‌وآلہ ‌وسلم نے فرمایا: آدمی اس کے ساتھ ہو گا، جس سے وہ محبت کرے گا۔*
ایک روایت میں: پس بیشک تو اسی کے ساتھ ہو گا، جس سے تو محبت کرتا ہے اور تیرے لیے وہی کچھ ہے، جو تو پسند کرتا ہے۔
سیدنا انس ‌رضی ‌اللہ ‌عنہ نے کہا: میں نے نہیں دیکھا کہ مسلمان قبولیت ِ اسلام کے بعد اتنے زیادہ خوش ہوئے ہوں، جتنے اس دن ہوئے تھے۔
مسند احمــد:: 9429
✿حکـــم:: صحیصحی
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Taweej Latkana Ya Dam Karna Shariyat Ki Raushani Me.

Kya Dua Likh kar ya Dam Karna Jayez Hai

 کیا تعویز لٹکانا شرک ھے اور کیا ہر قسم کا تعویز لٹکانا شرک کے زمرے میں آئے گا جیسا کہ بعض لوگ ہندسے یا شرکیہ کلمات پر مشتمل تعویز گلے میں پہنتے ھیں وہ تو بلاشک وشبہ شرک ھوگا لیکن جو لوگ کسی قرآنی آیت یا آیت الکرسی یا صبح شام کے اذکار میں سے کوئی دعا لکھ کر گلے میں پہن لیں تو کیا وہ بھی شرک کے زمرے میں آئے گا؟
دوم۔۔
کیا دم کرنا شرک ھے جو لوگ آیت الکرسی قرآنی آیات معوذتین یا صبح شام کے اذکار پر مشتمل دعائیں پڑھ کر خود پر اپنے گھر پر یا بچوں پر پھونک مارتے ھیں کیا وہ شرک کے مرتکب ھوتے ہیں؟؟
جو دم جائز اور صحیح ھے اور جو تعویز صحیح اور جائز ھے اسکے بارے مکمل رہنمائی کی درخواست ھے اور جو تعویز اور دم شرک کے زمرے میں آتے ھیں انکی بھی مکمل تفصیل درکار ہے
--------------------------------------------------
قرآنی آیات اور اسمائے و صفات باری تعالی کے علاوہ تعویذ پہننا جائز نہیں ہے اور یہ شرک میں داخل ہے جبکہ قرآنی اور اسماء وصفات باری تعالی پر مشتمل تعویذ کے بارے اختلاف ہے۔ اس میں بھی راجح موقف یہی ہے کہ اسے بھی نہ پہنا جائے اور صرف دم پر بھی اکتفا کیا جائے۔
فتاوی اللجنہ الدائمہ کا یہی موقف ہے۔ کیونکہ قرآنی تعویذ پہننے میں اس کی عدم تعظیم کا پہلو نکلتا ہے مثلا واش روم میں تعویذ پہن کر داخل ہونا یا حالت جنابت و حالت حیض و نفاس میں تعویذ کو اپنے جسم سے لگانا وغیرہ۔
وقال علماء اللجنة الدائمة :
اتفق العلماء على تحريم لبس التمائم إذا كانت من غير القرآن ، واختلفوا إذا كانت من القرآن ، فمنهم من أجاز لبسها ومنهم من منعها ، والقول بالنهي أرجح لعموم الأحاديث ولسدِّ الذريعة .
الشيخ عبد العزيز بن باز ، الشيخ عبد الله بن غديان ، الشيخ عبد الله بن قعود .
" فتاوى اللجنة الدائمة " ( 1 / 212 ) .
➖ امام احمد بن حنبل سے (تعویزکے طور پر ) قرآن مجید لٹکانے کے بارے میں پوچھا گیا تو انھوں نے فرمایا : التعليق كلها مكروه:ہر قسم کے تعویز لٹکانے مکروہ ہیں ـ (مسائل الامام احمد واسحاق ، روايه اسحق بن منصور الکوسج 1/193 فقره : 382)
شرکیہ جھاڑ ، پھونک وہ ہیں جو مبہم لکیروں اور غیر مفہوم سمجھ میں نہ آنے والی عبارتوں پر مشتمل ہوں اور ہر بیماری کے اکتشاف یاجادو چھڑانے یا تعویزوں کے بنانے میں جنوں سےمدد طلب کی گئی ہو۔
شرعی رقیہ (جھاڑ پھونک ، دم) بالاتفاق مشروع ہے ، اس کے جواز اور مشروعیت کی دلیلیں بے شمار ہیں، چند دلیلیں درج ذیل ہیں:
➖ ۱- ارشاد باری تعالیٰ:﴿وننزل من القرآن ما ھو شفاء ورحمة للموٴمنین، ولا یزید الظالمین الا خساراً﴾ ۔
”اور ہم قرآن کریم سے ایسی چیزیں اتارتے ہیں جو مومنوں کے لیے شفااور رحمت ہیں، اور ظالموں کو نقصان کے اور کوئی زیادتی نہیں ہوتی“۔ (الاسراء:82)
➖ ۲- حضرت اماں عائشہ رضی شعنہا فرماتی ہیں کہ جب رسول ش ﷺ کو تکلیف ہوتی تو حضرت جبریلں یہ دعا پڑھ کر دم کرتے :”بسم اللہ یبریک ومن کل داءٍ یشفیک ومن شر حاسدٍ اذا حسد، وشرکل عین“، ” شکے نام سے وہ آپ کو بری کرے گا، ہر بیماری سے شفا دے گا، اور ہر حاسد کے حسد کے شر سے، اور ہر نظربد کے شر سے محفوظ رکھے گا“(مسلم)۔
➖ ۳- حضرت عائشہ ہی سے مروی ہے کہ جب آپ کے اہل خانہ میں سے کوئی بیمار ہوتا تو آپ اس پر معوذتین (سورة الفلق وسورةالناس) پڑھ کر دم کرتے، اور جب آپ مرض الموت میں تھے تو میں آپ پر پڑھ کر دم کیا کرتی تھی اور خود آپ کے دست مبارک کو آپ پر پھیرتی تھی، کیونکہ آپ کا دست مبارک میرے ہاتھوں سے زیادہ با برکت تھا(مسلم)۔
➖ ۴- حضرت عثمان بن ابو العاص صنے رسول ش ﷺ سے درد کی شکایت کی تو آپ ﷺ نے فرمایا، اپنا ہاتھ درد کی جگہ پر رکھو اور تین مرتبہ بسم شکہو، پھرسات بار یہ دعا پڑھو:”أعوذ باللہ وقدرتہ من شر ما أجد وأحاذر“… ”میں شاور اس کی قدرت کی پناہ مانگتا ہوں اس چیزسے جو میں پاتا ہوں اور جس چیز سے میں خائف ہوں “(مسلم)۔
یہ اور اس طرح کی دیگر آیات واحادیث سے معلوم ہوتا ہے کہ قرآنی آیات وادعیہ ماثورہ سے دم کرنا مشروع ومستحب ہے، بلکہ بعض روایات میں آپ نے اس کا حکم بھی دیا ہے ، چنانچہ آپ نے ایک لونڈی کا چہرہ متغیر دیکھا تو فرمایا ، اس پر دم کرو کیونکہ اسے نظر بد لگی ہے(بخاری)، نیزدم کے سلسلہ میں کیے گئے ایک سوال کے جواب میں آپ نے فرمایا، جو شخص اپنے بھائی کو فائدہ پہنچا سکتا ہو اسے چاہیے کہ فائدہ پہنچائے(مسلم)
⛔ تعویذ گنڈے :
تعویز گنڈے سےمراد وہ دھاگہ یا گھٹری ہے جو کسی انسان یا جانور کولٹکا دی جائے اگر ان میں کتاب و سنت کے منافی بدعیہ چیزیں لکھی ہوئی ہوں تو وہ اہل علم کے اتفاق کے ساتھ جائز نہیں ہیں بلکہ اہل علم کے صحیح قول کے مطابق کتاب و سنت کی دعاؤں پر مشتمل تعویز بھی درست نہیں ہیں کیوں کہ یہ شرک کے اسباب میں سے ہیں۔
رسول اللہ ﷺ نے فرمایا : ‘‘ جھاڑ پھونک تعویز اور محبت کامنتر یہ سب شرک ہیں ’’۔
حَدَّثَنَا مُحَمَّدُ بْنُ الْعَلَاءِ حَدَّثَنَا أَبُو مُعَاوِيَةَ حَدَّثَنَا الْأَعْمَشُ عَنْ عَمْرِو بْنِ مُرَّةَ عَنْ يَحْيَى بْنِ الْجَزَّارِ عَنْ ابْنِ أَخِي زَيْنَبَ امْرَأَةِ عَبْدِ اللَّهِ عَنْ زَيْنَبَ امْرَأَةِ عَبْدِ اللَّهِ عَنْ عَبْدِ اللَّهِ قَالَ سَمِعْتُ رَسُولَ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ يَقُولُ إِنَّ الرُّقَى وَالتَّمَائِمَ وَالتِّوَلَةَ شِرْكٌ قَالَتْ قُلْتُ لِمَ تَقُولُ هَذَا وَاللَّهِ لَقَدْ كَانَتْ عَيْنِي تَقْذِفُ وَكُنْتُ أَخْتَلِفُ إِلَى فُلَانٍ الْيَهُودِيِّ يَرْقِينِي فَإِذَا رَقَانِي سَكَنَتْ فَقَالَ عَبْدُ اللَّهِ إِنَّمَا ذَاكَ عَمَلُ الشَّيْطَانِ كَانَ يَنْخُسُهَا بِيَدِهِ فَإِذَا رَقَاهَا كَفَّ عَنْهَا إِنَّمَا كَانَ يَكْفِيكِ أَنْ تَقُولِي كَمَا كَانَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ يَقُولُ أَذْهِبْ الْبَأْسَ رَبَّ النَّاسِ اشْفِ أَنْتَ الشَّافِي لَا شِفَاءَ إِلَّا شِفَاؤُكَ شِفَاءً لَا يُغَادِرُ سَقَمًا
صحیح : سنن ابی داود / رقم الحدیث : 3883
كِتَابُ الطِّبِّ
بَاب فِي تَعْلِيقِ التَّمَائِمِ
کتاب: علاج کے احکام و مسائل
تعویذ گنڈے لٹکانا ۔
ترجمہ : سیدنا عبداللہ بن مسعود رضی اللہ عنہ کہتے ہیں کہ میں نے رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم کو فرماتے ہوئے سنا ” دم جھاڑ ‘ گنڈے منکے اور جادو کی چیزیں یا تحریریں شرک ہیں ۔ “ ان کی اہلیہ نے کہا : آپ یہ کیوں کر کہتے ہیں ؟ اللہ کی قسم ! میری آنکھ درد کی وجہ سے گویا نکلی جاتی تھی تو میں فلاں یہودی کے پاس جاتی اور وہ مجھے دم کرتا تھا ۔ جب وہ دم کرتا ہو میرا درد رک جاتا تھا ۔ سیدنا عبداللہ رضی اللہ عنہ نے کہا : یہ شیطان کی کارستانی ہوتی تھی ۔ وہ تیری آنکھ میں اپنی انگلی مارتا تھا ‘ تو جب وہ ( یہودی ) دم کرتا تو ( شیطان ) باز آ جاتا تھا ۔ حالانکہ تجھے یہی کچھ کہنا کافی تھا جیسے کہ رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم کہا کرتے تھے «أذہب الباس رب الناس ، اشف أنت الشافی ، لا شفاء إلا شفاؤک ، شفاء لا یغادر سقما» ” اے لوگوں کے رب ! دکھ دور کر دے ‘ شفاء عنایت فرما ‘ تو ہی شفاء دینے والا ہے ‘ تیری شفاء کے سوا کہیں کوئی شفاء نہیں ‘ ایسی شفاء عنایت فرما جو کوئی دکھ باقی نہ رہنے دے ۔ “
اسی طرح کسی کاغذ تانبے یالوہے کے ٹکڑے پر اللہ کانام یا آیت الکرسی لکھ کر گاڑیوں میں لٹکانا یا قرآن شریف گاڑی کے اندر اس اعتقاد سے رکھنا کہ اس سے گاڑی ہر طرح کی آفت و بلا اور نظر بد وغیرہ سے محفوظ رہے گی شرک کی قبیل سے ہے۔
اسی طرح ہتھیلی کی شکل کاکوئی لوہا یااس میں آنکھ کی شکل بناکر نظر بد سے حفاظت کے لئے گھر یاگاڑی میں رکھنا قطعاً درست نہیں ہے، رسول اللہ ﷺ نے فرمایا ‘‘ جس نے کوئی چیز لٹکائی وہ اسی کے سپرد کر دیا گیا’’ (احمد ترمذی حاکم )۔
1- اگر تعویذات کی عبارت میں کفر یا شرک ہو تو ایسے تعویذات کفر یا شرک ہیں
2- اگر تعویذات کی عبارت میں کفر یا شرک نہ ہو مثلا آیات قرآنی یا دیگر ادعیہ وغیرہ تو کفر یا شرک نہیں البتہ حرام ہیں
3- تمیمہ کو رسول اللہ صلى اللہ علیہ وسلم نے شرک قرار دیا ہے اور بعض لوگ تمیمہ کا معنى تعویذ کرتے ہیں جو کہ صحیح نہیں تمیمہ تعویذ کو نہیں کہا جاتا بلکہ وہ چیزے دیگری ہے۔
4- تمیمہ کا معنى ہے وہ منکے یا چمڑے کے ٹکڑے جنہیں نظر بد یا بیماری سے بچنے کے لیے لٹکایا جاتا ہے
جسطرح آپ کے علاقے کے لوگ گاڑی نئی لیں تو جوتا لٹکا دیتے ہیں مکان نیا بنائیں تو کالی ہنڈیا رکھ دیتے ہیں وغیرہ وغیرہ
5- جی ہاں ۔ تعویذات بہر صورت حرام ہیں خواہ کفر یا شرک بنیں یا نہ ۔
جہاں تک پھونک مار کر دم کرنے کی بات ہے تو انسان قرآن مجید پڑھ کر دم کرے اورپھونک مارے ، مثلا سورۃ الفاتحہ پڑھے ، اورسورۃ الفاتحہ تو ایک دم ہے جس کے ناموں میں رقیہ بھی شامل ہے اوریہ ایسی سورۃ ہے جو مریض کے لیے سب سے بڑا دم ہے ، تواس لیے اگر سورۃ الفاتحہ پڑھ کرپانی میں پھونک ماری جائے تو اس میں کوئی حرج نہیں ، بعض سلف صالحین بھی ایسا کیا کرتے تھے ۔
ایسا کرنا مجرب ہے اوراللہ تعالی کے حکم سے نافع بھی ہے ، اورنبی صلی اللہ علیہ وسلم کا سوتے وقت یہ عمل ہوتا تھا کہ آپ سورۃ قل ھو اللہ احد ، قل اعوذ برب الفلق ، قل اعوذ برب الناس پڑھ کراپنے دونوں ہاتھوں پر پھونکتےاوراپنے چہرے اورجہاں تک ہاتھ پہنچتا جسم پر اپنے ہاتھ پھیرتے تھے ۔
➖ فتاوی ابن باز رحمہ اللہ کے مطابق 
جس جھاڑ پھونک سے منع کیا گیا ہے۔اس سے مراد وہ ہے۔جس میں شرک ہو یا غیر اللہ کے ساتھ توسل(وسیلہ پکڑنا) ہو یا ایسے مجہول الفاظ ہوں۔جن کے معنی معلوم نہ ہوں۔باقی رہے وہ دم جھاڑ جو ان سے پاک ہوں۔تو وہ شرعا جائز اور شفاء کا ایک بڑا سبب ہیں۔کیونکہ نبی کریمﷺ نے فرمایا ہے:
الا باس بالرقي ما لم يكن شركا
(صحيح مسلم كتاب السلام باب لا باس بالرقي ح :2200)
''جس دم جھاڑ میں شرک نہ ہو اس میں کوئی حرج نہیں''
نیز آپﷺ نے فرمایا ہے۔:
من استطاع منكم ان ينفع اخاه فلينفعه
(صحیح مسلم کتاب السلام باب استحباب الرقیۃ من العین والنعلۃ ۔۔۔ح:5729)
''جو شخص اپنے بھائی کو فائدہ پہنچا سکتاہو اسے ضرور پہنچانا چاہیے۔''
ان دونوں حدیثوں کو امام مسلم نے اپنی ''صحیح'' میں بیان فرمایا ہے۔نیز نبی کریمﷺ نے فرمایا ہے کہ:
لارقية الا من عين او حمة
(صحيح بخار کتاب الطب باب من اکتوی او کری ح:5705 وصحیح مسلم کتاب الایمان باب لدلیل علی دخول طوائف ۔۔۔ح:220)
''دم جھاڑ نظر بد اور ڈسے جانے سے ہوتا ہے۔''
اس کے معنی یہ ہیں کہ ان دونوں باتوں میں دم جھاڑ زیادہ بہتر اور زیادہ شفاء بخش ہوتا ہے۔اور نبی کریمﷺ نے خود دم کیا بھی ہے۔اور کرایا بھی باقی رہا مریضوں یا بچوں کے گلے میں تعویز لٹکانا تو یہ جائز نہیں جو تعویز لٹکائے جایئں انہیں تمائم حروز اور جوامع کے نام سے موسوم کیاجاتاہے۔اوران کے بارے میں صحیح بات یہ ہے کہ یہ حرام اور شرک کی انواع واقسام میں سے ایک ہیں۔ کیونکہ نبی کریمﷺ کا فرمان ہے:
((من لبس تميمة فلااتم الله له’ومن تعلق ودعة فلا ودع الله له))
(مسند احمد 154/4 مجمع الزوائد /103 وابو یعلی فی المسند رقم 1759)
‘‘جو شخص تعویذ لٹکائے ،اللہ تعالیٰ اس کی خواہش کو پورا نہ فرمائے اورجو سیپی وغیرہ لٹکائے ،اللہ تعالیٰ اسے آرام نہ دے۔’’
نیز آپﷺ نے ارشاد فرمایا:
((من تعلق تميمة فقد اشرك))
‘‘جس نے تعویذ لٹکایا اس نے شرک کیا۔’’
نیز فرمایا:
ان الرقي والتمائم والتولة شرك( سنن ابی دائود کتاب الطب باب فی تعلیق التمائم ج ؛ 3883۔مسند احمد 1/381)
جو تعویذ قرآنی آیات اور جائز دعائوں پر مشتمل ہوں۔ان کے بارے میں علماء کا اختلاف ہے۔کہ یہ حرام ہے یا نہیں؟ صحیح بات یہ ہے کہ وہ بھی حرام ہیں۔ اور اس کے دو سبب ہیں:
1۔مذکورہ احادیث کے عموم سے معلوم ہوتا ہے۔کہ ہر طرح کے تعویز حرام ہیں۔خواہ وہ قرآنی آیات پر مشتمل ہوں۔یا غیر قرآنی کلمات پر!
2۔شرک کے سد باب کے لئے یہ بھی حرام ہیں۔ کیونکہ اگر قرآنی آیات پر مشتمل تعزیزوں کوجائز قرار دے دیاجائے تو ان میں دوسرے بھی شامل ہوکر معاملے کو مشتبہ بنادیں گے اور ان تعویزوں کے لٹکانے سے شرک کا دروازہ کھل جائےگا۔ اور یہ بات معلوم ہے کہ جو زرائع شرک اور گناہوں تک پہنچانے والے ہوں۔ان کا بند کردینا قواعد شریعت میں سے ایک بہت بڑا قاعدہ ہے۔اور توفیق عطا فرمانے والا تو اللہ ہی ہے۔!
فتاوی بن باز رحمہ اللہ​/جلددوم
➖ سوال یہ پیدا ہوتا ہے کہ 
جھاڑ پھونک کے بارے میں ایک حدیث ممانعت کی ہے دوسری جواز کی ۔ ان دونوں میں تطبیق کی کیا صورت ہے؟ اگر کوئی بیمار شخص اپنے سینے پر قرآن کی آیات والا تعویذ لٹکائے تو اس کا کیا حکم ہے؟
الشیخ ابن بازرحمہ اللہ فرماتے ہیں 
جس جھاڑ پھونک سے منع کیا گیا ہے وہ وہ ہے جس میں شرک ہو یا غیر اللہ سے توسل ہو ، یا اس کے الفاظ مجہول ہوں جن کی سمجھ نہ آسکے۔
رہا کسی ڈسے ہوئے آدمی کو دم جھاڑ کرنے کا مسئلہ تو یہ جائز ہیاور شفاء کا بڑا ذریعہ ہے کیونکہ نبیﷺ نے فرمایاہے:
((لا بأسَ بالرُّقی ماَلَم تکُنْ شرکاً))
’’جس دم جھاڑ میں شرک نہ ہو اس میں کوئی حرج نہیں ‘‘
نیز آپ ﷺ نے فرمایا:
((منِ اسْتطاَعَ أَنْ یَنفعَ أخَاہ فَلَیَنْفَعَہُ))
’’ جو شخص اپنے بھائی کو فائدہ پہنچا سکتا ہو اسے وہ کام کرنا چاہئے‘‘
ان دونوں احادیث کی مسلم نے اپنی صحیح میں تخریج کی ہے۔نیز آپﷺ نے فرمایا:
((لا رُقیۃَ إِلا مِن عین أَوحُمَۃٍ))
’’ دم جھاڑ نظر بد اور بخار کے لیے ہی ہوتا ہے‘‘
جس کا معنی یہ ہے کہ ان دو باتوں میں ہی دم جھاڑ بہتر اور شفابخش ہوتا ہے اور نبیﷺ نے خود دم جھاڑ کیا بھی ہے اور کرایا بھی ہے
رہادم جھاڑ یا تعویذ کو مریضوں اور بچوں کے گلے میں لٹکانا تو یہ جائز نہیں ۔ ایسے لٹکائے ہوئے تعویذ کو تمائم بھی کہتے ہیں اور حروز اور جو امع بھی ۔اورحق بات یہ ہے کہ یہ حرام اور شرک کی اقسام میں سے ایک قسم ہے کیونکہ نبیﷺ نے فرمایا ہے:
((مَنْ تعلَّق تمیمۃ فلاَ أَتمَّ اللَّہُ لَہ، ومَنْ تعلَّق وَدعۃً فَلَا وَدَع اللّٰہُ لہ۔))
’’ جس شخص نے تعویذ لٹکایا اللہ تعالی اس کا بچاؤ نہیں کر ے گا اور جس نے گھونگا باندھا وہ اللہ کی حفاظت میں نہ رہا‘‘
نیز آپ ﷺ نے فرمایا:
((مَنْ تعلَّق تمیمۃً فقد أَشرْکَ))
’’ جس نے تعویذ لٹکایا اس نے شرک کیا‘‘
نیز آپ ﷺ نے فرمایا:
((إِنَّ الرُّقی وَالتَّمائِمَ والتَّولۃَ شِرْکٌ))
دم جھاڑ، تعویذ اور گنڈا شرک ہے‘‘
ایسے تعویذ جن میں قرآنی آیات یا مباح دعائیں ہوں ان کے بارے علماء کا اختلاف ہے کہ آیا وہ حرام ہیں یانہیں ؟ اور راہ صواب یہی ہے کہ وہ دو وجوہ کی بنا پر حرام ہیں ۔
ایک وجہ تو مذکورہ احادیث کی عمومت ہے کیوں کہ یہ احادیث قرآنی اور غیر قرآنی ہر طرح کے تعویذوں کے لیے عام ہیں ۔
اور دوسری وجہ شرک کا سدباب ہے کیونکہ جب قرآنی تعویذوں کو مباح قرار دے جائے توان میں دوسرے بھی شامل ہو کر معاملہ کو مشتبہ بنادیں گے اور ان سے مشرک کا دروازہ کھل جائے گا۔ جبکہ یہ بات معلوم ہے کہ جو ذرائع شرک یا معاصی تک پہنچانے والے ہوں ان کا سدباب شریعت کے بڑے قواعد میں سے ایک قاعدہ ہے اور توفیق تو اللہ ہی سے ہے۔​
​فتاوی بن باز رحمہ اللہ /(جلداول -صفحہ 32)
وَبِاللّٰہِ التَّوْفِیْقُ
ھٰذٙا مٙا عِنْدِی وٙاللہُ تٙعٙالیٰ اٙعْلٙمْ بِالصّٙوٙاب
وَالسَّــــــــلاَم عَلَيــْــــكُم وَرَحْمَـــــــةُاللهِ وَبَرَكـَـــــــاتُه
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Udhar Ya Udhar Kharid Farokht Karna Kaisa Hai?

Udhar aur naqad ke kharid wo farokht Qisto Par
ادھار اور نقد بیع میں فرق کرنا شریعت کی رو سے کیسا ھے۔ مدلل جواب مطلوب ھے۔ مثال کے طور پر ایک چیز کی نقد قیمت لاکھ روپے ھے جبکہ 3ماہ کے ٹائم پر یہی چیز ایک لاکھ پچاس ہزار کی فروخت ہوتی ہے۔ کیا ایسا کرنا جائز ہے۔ اللہ کریم آپ کو جزائے خیر عطا فرمائے۔ آمین۔
۔_________________________
وَعَلَيْكُم السَّلَام وَرَحْمَةُ اَللهِ وَبَرَكاتُهُ‎
دور حاضر میں جن معاملات کووسیع پیمانے پر فروغ حاصل ہوا ہے ان میں قسطوں پر خرید و فروخت بھی شامل ہے اس کو عربی میں البيع بالتقسيط کہا جاتا ہےجس کا مفہوم یہ ہے کہ چیز تو فورا مشتری کےحوالے کردی جائے مگر اس کی قیمت طے شدہ اقساط میں وصول کی جائے
اس کا رواج تو عہد رسالت و صحابہ میں بھی موجود تھا جیساکہ ذیل کے دو واقعات سے ثابت ہوتا ہے ۔​
"عَنْ عَمْرِو بْنِ الشَّرِيدِ، قَالَ: وَقَفْتُ عَلَى سَعْدِ بْنِ أَبِي وَقَّاصٍ، فَجَاءَ المِسْوَرُ بْنُ مَخْرَمَةَ، فَوَضَعَ يَدَهُ عَلَى إِحْدَى مَنْكِبَيَّ، إِذْ جَاءَ أَبُو رَافِعٍ مَوْلَى النَّبِيِّ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ، فَقَالَ: يَا سَعْدُ ابْتَعْ مِنِّي بَيْتَيَّ فِي دَارِكَ؟ فَقَالَ سَعْدٌ: وَاللَّهِ مَا أَبْتَاعُهُمَا، فَقَالَ المِسْوَرُ: وَاللَّهِ لَتَبْتَاعَنَّهُمَا، فَقَالَ سَعْدٌ: وَاللَّهِ لاَ أَزِيدُكَ عَلَى أَرْبَعَةِ آلاَفٍ مُنَجَّمَةً، أَوْ مُقَطَّعَةً، قَالَ أَبُو رَافِعٍ: لَقَدْ أُعْطِيتُ بِهَا خَمْسَ مِائَةِ دِينَارٍ، وَلَوْلاَ أَنِّي سَمِعْتُ النَّبِيَّ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ يَقُولُ: «الجَارُ أَحَقُّ بِسَقَبِهِ»، مَا أَعْطَيْتُكَهَا بِأَرْبَعَةِ آلاَفٍ، وَأَنَا أُعْطَى بِهَا خَمْسَ مِائَةِ دِينَارٍ، فَأَعْطَاهَا إِيَّاهُ "( صحيح البخاري ، رقم 2258 ، بَابُ عَرْضِ الشُّفْعَةِ عَلَى صَاحِبِهَا قَبْلَ البَيْعِ )​
'' عمرو بن شرید کہتے ہیں کہ میں سعد بن ابی وقاص رضی اللہ عنہ کے پاس کھڑا تھا ، اتنے میں مسور بن مخرمۃ آئے انھوں نے اپنا ہاتھ میرے کندھے پر رکھا ۔ اتنے میں نبی صلی اللہ علیہ وسلم کے غلام ابو رافع آگئے ۔ انہوں نے کہا : اے سعد آپ کے محلے میں میرے موجود دو گھر ہیں وہ آپ خرید لیں ۔ سعد نےکہا : اللہ کی قسم میں نہیں خریدتا ۔ حضرت مسور نےکہا کہ اللہ کی قسم آپکو ضرور خریدنا ہوں گے ۔ تب سعد نے کہا میں چار ہزار درہم سے زیادہ نہیں دوں گا وہ بھی قسطوں میں ۔ ابو رافع نےکہا کہ مجھے ان گھروں کے پانچ سو دینار ( نقد ) ملتے تھے اور اگر میں نے بنی صلی اللہ علیہ وسلم کویہ فرماتے نہ سنا ہوتا کہ پڑوسی اپنے قرب کی وجہ سے زیادہ حق دار ہے تو میں آپ کو یہ گھر چار ہزار درہم میں بھی نہ دیتا ۔ جب کہ مجھے ان کے پانچ سو دینار ( نقد ) ملتے تھے ۔ ''​
قسطوں پر خریداری کی مختلف صورتیں :​
1۔ نقد اور ادھار دونوں صورتوں میں ایک ہی قیمت ہو ۔ ایسا شاذ و نادر ہوتا ہے ۔ تاہم اس کے جواز میں کوئی کلام نہیں ۔​
2۔ ادھار میں نقد سے زیادہ قیمت وصول کی جائے ۔ مثلا یوں کہا جائے کہ یہ چیز نقد سو روپے کی اور ادھار ایک سودس کی ہوکی ۔ اس کے بارہ میں تین نقطہ نظر ہیں :​
(1)​جمہور فقہاء و محدثین رحمہم اللہ کی رائے میں یہ جائز ہے ۔ چنانچہ امام شوکانی علیہ الرحمہ فرماتے ہیں :​
(( و قالت الشافعیة والحنفية و زيد بن علي والمؤيد بالله والجمهور إنه يجوز )) ( نيل الأوطار ج 8 ص 201 )​
اهل حديث علماء میں سے سید نذیر حسین محدث دہلوی ، نواب صدیق حسن خان اور حافظ عبد اللہ محدث روپڑی رحمہم اللہ جمیعا بھی اس کو جائز قرار دیتے ہیں ۔ ( فتاوی نذیریہ ج 2 ص 162 و الروضۃ الندیۃ ج 2 ص 89 و فتاوی اہل حدیث ج 2 ص 663 ، 664 )​
(2)​امام ابن حزم ، امام ابن سیرین اور زین العابدین عدم جواز کے قائل ہیں ۔​
محدث البانی رحمہ اللہ بھی اسی نقطہ نظر کے حامی ہیں ۔ ( سلسلة الأحاديث الصحيحة ج 5 )​
(3)​حضرات طاؤس ، ثوری ، اور اوزاعی کی رائے میں یہ ہے تو ناجائز لیکن اگر بائع اس طرح ہونے کے بعد دو قیمتوں میں سے کم یعنی نقد والی قیمت وصول کرے تو جائز ورنہ نا جائز ۔
( سلسلة الأحاديث الصحيحة ج 5 )​
🌀قائلین جواز کے دلائل :​
جو حضرات اس کے حق میں ہیں ان کا استدلال ایک تو اس بات سے ہے کہ معاملات میں اصل اباحت ہے ۔ یعنی کاروبار کی ہر وہ صورت جائز ہے جس سے شریعت نے منع نہ کیا ہو ۔ قرآن حکیم کی آیت : ( وَأَحَل اللہُ البیعَ ) '' اللہ تعالی نے بیع کو حال کیا ہے '' سے بھی یہ ثابت ہوتا ہے کہ سوائے ان بیوع کے جن کی حرمت قرآن وحدیث میں واضح کردی گئی ہے ، ہر قسم کی بیع جائز ہے ، اور قرآن و حدیث میں کوئی ایسی نص موجود نہیں جس سے اس کی ممانعت ثابت ہوتی ہو ۔
ان حضرات کی دوسری دلیل ذیل کاواقعہ ہے :
((عَنْ عَبْدِ اللَّهِ بْنِ عَمْرٍو: «أَنَّ رَسُولَ اللَّهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ أَمَرَهُ أَنْ يُجَهِّزَ جَيْشًا فَنَفِدَتْ الْإِبِلُ فَأَمَرَهُ أَنْ يَأْخُذَ فِي قِلَاصِ الصَّدَقَةِ»، فَكَانَ يَأْخُذُ الْبَعِيرَ بِالْبَعِيرَيْنِ إِلَى إِبِلِ الصَّدَقَةِ)) ( سنن أبی داؤد رقم 3357 ، کتاب البیوع ، باب فی الرخصة في ذلك ) ( شيخ الباني رحمه الله نے اس روایت کو ضعیف قراردیا ہے ۔از خضرحیات)​
'' حضرت عبد اللہ بن عمرو رضی اللہ عنہ سے روایت ہے کہ نبی کریم صلی اللہ علیہ وسلم نے ان کو جیش تیار کرنے کا حکم دیا تو اونٹ کم پڑگئے ، اس پر آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا کہ صدقے کے اونٹ آنے تک ادھار لے لو ۔ تو انہوں نے لوگوں سے اس شرط پر اونٹ لے کہ جب صدقے کے اونٹ آئیں گے تو ایک کے بدلے دد دد دیے جائیں گے ۔ ''​
🌀مانعین کے دلائل :​
جو حضرات اس کی ممانعت کے قائل ہیں ان کی پہلی دلیل یہ ہے :​
ادھار کی صورت میں اضافی رقم اصل میں مدت کا معاوضہ ہے اور مدت کا معاوضہ لینا سود ہے ۔
اس رائے کے حق میں دوسری دلیل وہ روایات ہیں جن میں ایک بیع میں دو بیعوں کی ممانعت بیان ہوئی ہے ۔ مثلا :​
(( نهى رسول الله صلي الله عليه وسلم عن بيعتين في بيعة ))​
( ترمذي : كتاب البيوع ، باب ما جاء في النهي عن بيعتين في بيعة )​
​'' رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم نے ایک بیع میں دو بیعوں سے منع کیا ہے ۔ ''​
((نهى رسول الله صلي الله عليه وسلم عن صفقتين في صفقة واحدة )) ( مسند احمد بن حنبل ج 8 ص 383 )​
'' رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم نے ایک سودے میں دو سودوں سے منع کیا ہے ۔ ''​
حضرت عبد اللہ بن مسعود رضی اللہ عنہ اس کی تشریح میں فرماتے ہیں کہ انسان یہ کہے :​
(( وإن کان بنقد فبكذا وإن كان بنسيئة فبكذا )) ( مصنف ابن أبي شيبة ج 5 ص 54 )​
'' اگر نقد ہو تو اتنے اور ادھار ہو تو اتنے کی ۔
🌀راجح نقطہ نظر
ہمارے خیال میں حسب ذیل وجوہ کے باعث ان لوگوں کی رائے زیادہ وزنی ہے جوجواز کے حق میں ہیں :
ادھار کی صورت میں اضافے کا جواز خود قرآن کی آیت ( وَأَحَل اللہُ البیعَ ) '' اللہ تعالی نے بیع کو حال کیا ہے '' سے ثابت ہے ۔ کیونکہ یہ آیت ان لوگوں کے رد میں نازل ہوئی ہے جیساکہ ابن جریر طبری ، علامہ ابن العربی اور امام رازی رحمہم اللہ نے بیان کیا ہے ۔ جن کا اعتراض یہ تھا کہ جب عقد بیع کے وقت ادھار کی زیادہ قیمت مقرر کی جاسکتی ہے تو پھر وقت پر ادائیگی نہ کرنے کی صورت میں اضافہ کیوں نہیں کیا جاسکتا ۔ وہ کہتے دونوں صورتیں یکساں ہیں ۔
واللہ تعالیٰ اعلم
وَاَلسَلامُ عَلَيْكُم وَرَحْمَةُ اَللهِ وَبَرَكاتُهُ‎
سسٹر میسز اے انصاری

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Allah ke Nabi Apni Biwiyo Ke Sath Kaise Rahte They.

Nabi-E-Akram Sallahu Alaihe Wasallam ki Ajdwaji Zindagi Kaisi Thi

ازدواجی زندگی خوشگوار بنانے کے نبوی نسخے اور نصائح:
1 نبی صلی اللہ علیہ وسلم امی عائشہ رضی اللہ عنہا* کی ران پر سر مبارک رکھ کر سو جایا کرتے تھے.
بخاری:334  سنن
2 نبی صلی اللہ علیہ وسلم* گھر کے کام کاج میں اپنی بیویوں کا ھاتھ بٹاتے تھے.
بخاری:676
3 نبی صلی اللہ علیہ وسلم* اپنی بیویوں کی کڑوی کسیلی باتیں اور طرز_عمل خندہ پیشانی سے برداشت کرتے تھے.
*بخاری:2581 اور 4913
4 نبی صلی اللہ علیہ وسلم امی عائشہ رضی اللہ عنہا* کو Nick Name عائش سے پکارتے تھے.
بخاری:3768
*5 نبی صلی اللہ علیہ وسلم* اپنی بیویوں کی بیماری میں بیمار پرسی کرتے تھے.
*بخاری:4141
6 ایک مرتبہ ایک سفر میں *آپ صلی اللہ علیہ وسلم* کی بیویاں بھی آپ کے ہمراہ تھیں. حدی خوان اونٹوں کو تیز تیز ہانکنے لگا تو آپ نے اسے حکم دیا:
آہستہ چلو, آبگینے/شیشے ٹوٹنے نہ پائیں.
گویا *آپ صلی اللہ علیہ وسلم* نے عورتوں کی نرمی کے لیۓ آبگینے کا استعارہ استعمال کیا.
بخاری:6149, 6161, 6210, 6211
*7 نبی صلی اللہ علیہ وسلم* جب گھر تشریف لاتے تو سب سے پہلے مسواک کرتے
(تاکہ بیوی کے لیۓ باعث_طہارت ہو)
*مسلم:591*
8 برتن میں جس جگہ امی عائشہ رضی اللہ عنہا ہونٹ لگا کر پانی پیتیں *آپ صلی اللہ علیہ وسلم* بھی اسی جگہ ہونٹ مبارک لگا کر پانی پیتے.
*مسلم:692
9  ایک مرتبہ عید کے دن *نبی صلی اللہ علیہ وسلم* نے امی عائشہ رضی اللہ عنہا کا دل بہلانے کے لیۓ اپنے جسم مبارک کے پردہ کی اوٹ سے حبشیوں کے کرتب (نیزہ بازی وغیرہ) دکھاۓ.
*مسلم:2064 , 2066
10 نبی صلی اللہ علیہ وسلم* نے کسی کھانے میں کبھی عیب نہیں نکالا.
*مسلم:5380
11 نبی صلی اللہ علیہ وسلم* نے کسی بیوی یا خادم کو کبھی نہیں مارا.
*مسلم:6050 ابن ماجہ:1984*
12 نبی صلی اللہ علیہ وسلم امی خدیجہ رضی اللہ عنہا* کی وفات کے بعد بھی ان کی بزرگ سہیلیوں سے حسن_ سلوک فرماتے اور ان کو تحائف بھجواتے.
*ترمذی:2017
13 نبی صلی اللہ علیہ وسلم* نے تفنن طبع کے لیۓ زندگی میں دو مرتبہ امی عائشہ رضی اللہ عنہا سے دوڑ لگائی.
پہلی مرتبہ امی عائشہ جیت گئیں
اور دوسری مرتبہ *آپ صلی اللہ علیہ وسلم* جیت گئے.
جب *آپ صلی اللہ علیہ وسلم* دوسری بار جیت گئے تو *آپ صلی اللہ علیہ وسلم* نے فرمایا :
عائشہ ! حساب برابر ہو گیا.
ابوداؤد:2578  السلسلہ الصحیحہ:1945
14جب *نبی صلی اللہ علیہ وسلم* کی روح مبارک قبض ہوئی اس وقت آپ کا سر مبارک امی عائشہ کی گود میں تھا.
بخاری:2741 مسلم:4231
نبوی نصیحتیں*
*1 نبی صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا:
بیوی بچوں پر خرچ کرنا بھی باعث_ثواب ہے.
*بخاری:55
2 بیوی کے منہ میں کھانے کا لقمہ ڈالنا بھی باعث_ثواب ہے.
*بخاری:56
*3 نبی صلی اللہ علیہ وسلم* اس بات کو پسند فرماتے کہ مومن اپنی بیوی کے ساتھ ہنسے اور کھیل کود کرے.
*بخاری:6387
4 جو مومن اللہ تعالی اور یوم_آخرت پر یقین رکھتا ہے وہ جب (اپنی بیوی) میں ناپسندیدہ معاملہ دیکھے تو اچھے طریقے سے کہے یا خاموش رہے. عورتوں کے ساتھ اچھا سلوک کرو کیونکہ عورت پسلی سے پیدا کی گئی ہے تم اسے سیدھا کرنے لگو گے تو توڑ بیٹھو گے, عورتوں کے ساتھ اچھا سلوک کرو.
*مسلم:3644
5 آدمی اپنی بیوی سے بغض نہ رکھے کیونکہ اگر اس کی کوئی عادت ناپسند ہو گی تو  کوئی دوسری عادت پسند ہوگی.
*مسلم:3645
6 دنیا کی بہترین متاع نیک بیوی ہے.
*مسلم:3649
7 نبی صلی اللہ علیہ وسلم* نے بیوی کی کمزوریاں تلاش کرنے سے منع فرمایا ہے.
مسلم:4969
8 تم میں بہتر مومن وہ ہے جو اپنی بیوی کے حق میں بہتر ہو.
ترمذی:1162
سبب_تالیف:
اس پوسٹ/میسج کو تالیف/تحریر کرنے کا مقصد درج ذیل حدیث ہے.
شیطان سب سے زیادہ جس بات سے خوش ہوتا ہے وہ میاں بیوی میں تفریق ڈلوانا یعنی *طلاق* دلوانا ہے.
مسلم:71
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