Aaj Ki nawjawan nasl kal Europe ki gulami karenge.
आज के लड़के लड़कियों को मां बाप के पैसे भी चाहिए और अमेरिका के जैसा कल्चर भी।
20-30 साल पहले 10–20% लड़के लड़कियों को फंसाने में लगे रहते थे, लेकिन लड़कियों की तरफ से पाबन्दी रहने से पहल न होने से इन लड़कों को भी खुराफात का मौका 5 फ़ीसदी से ज्यादा नहीं मिलता था
जिसका नतीजा यह होता था के समाज में इतनी बुराइयां और बेहयाई आम नहीं थी मगर जैस जैसेे लोग डिजिटल होते गए वैसे वैसे बुराई और बेशर्मी भी अच्छाई, जादिदियत और आजाद ख़यालो में तब्दील होती गई।
फिर शुरू हुआ दौर फेमिनिज्म , उदारवाद , स्वतंत्रता , आत्मनिर्भरता का जिसमें जिस्म से कितना भोग लिया जाय इसकी कंपटीशन और मीडिया फिल्मी दुनिया का प्रचार ।
लड़कियों के पहल करने से हुआ यह कि लड़कों का काम आसान हो गया और जब यह तादाद 50फ़ीसदी से ऊपर पहुंच गया तो वह आम हो गया. अब तो मां , बाप अगर कुछ कहें तो उसे पिछड़ापन, पुराने ख़यालो वाला, आजादी का दुश्मन, और इस सबको अमेरिका का मिशाल दे कर मीडिया, टीवी शो आधुनिकता बता कर जस्टिफाई करता है ।
जिस लड़की या लड़के का गर्लफ्रैंड या ब्वॉयफ्रेंड न हो , वह भोंदू, पुराने ख़यालो वाला, जाहिल - गवांर , बेवकूफ, रूढ़िवादी सोच रखने वाला, संकीर्ण और विकृत मानसिकता वाला माना जाता है ।
जिस उम्र में नवजवान पीढ़ी को पढ़ाई, नयी नयी चीजें को सीखने , बिज़नेस की बारीकियों को सीखना चाहिए , उसमें सोशल मीडिया, इंटरनेट पर घण्टों बर्बाद हो रहे हैं और रातें काली की जा रही हैं , आंखें और सेहत खराब हो रहे हैं । फिर उसके बाद हाथो में हाथें डाल कर रोज़ शाम को, पार्क, कॉलेज, होटल , रेस्तरां में मिलना है और फिर जिस्म की आग बुझाना जिसे मॉडर्न जुबान में one night stand या Live in relationship कहते है
उसके बाद शादी के बारे में सोचा जाता है जबकि नौकरी , पैसा कमाने के बारे में मेहनत करने की बात छोड़ो , सोचा तक नहीं जाता है । इसलिए ऐसे लोगो को हकीकत का सामना होता है फिर होश के नाखून लेते है, पैसे खत्म होते हैं तो ब्रेक अप हो जाता है क्योंकि ऐश व इशरत (सहूलियत और पैसा) की ज़िन्दगी तो मां बाप के यहां ही मिलता है । तो फिर पुरानी लड़की छोड़कर दूसरी ढूंढ ली जाती है क्योंकि यह सांस लेने से भी ज्यादा जरूरी होता है । कुछ मामलों में भाग कर शादी कर ली जाती है और बाद में अफसोस करना पड़ता है, ज़िन्दगी भर लड़के को उस लड़की कि जिसे वह भगा कर लाया होता है उसकी गालियां, ताने और गुस्से बर्दास्त करने पड़ते है और अगर लड़का अपने परिवार के साथ रहता है, लड़की को भी साथ में रखना चाहता तो उस हालत में लड़की अपनी असलियत जाहिर कर ही देती है, 15 फ़ीसदी लड़किया ही लड़के के परिवार वालो के साथ एडजस्ट कर पाती वरना उसे अलग घर किराए, घूमने के लिए कार, हफ्ते में शॉपिंग कराने ले जाना, उसके लिए दो तीन खादिमा जो उसकी सारी जरूरियत का समान हमेशा लिए हुए उसके दाएं बाएं खरी हो और अगर यह सब नहीं हुआ तो ..... लड़के को गाली दो, ...तुम्हारे घर में मुझे आराम ही कब मिला.. , फिर घर वालो के साथ झनझट, लड़के की आमदनी कोई फिल्मी हीरो के इतना है नहीं, और अगर यह सब नहीं हुआ तो... दिन रात लड़के के साथ झगड़ा करना, उसके पूरे खानदान को गालियां देना, इस बात की धमकी देना के मै दहेज प्रथा का केस कर दूंगी और फिर तुम जेल में हवा खाओगे , अब लड़का करे तो क्या करे? उसे अपनी आमदनी बढ़ानी चाहिए अगर यह नहीं हुआ तो वह अपनी वाइफ को क्या जवाब देगा जो शादी से पहले उसकी गर्ल फ्रेंड रह चुकी है।
आमतौर पे होता यह है के अगर लव मैरेज में लड़का अगर उस लड़की की फरमाइश पूरी नहीं कर पाता है तो लड़की अपने हसबैंड को छोड़ किसी और के साथ चली जाती है फिर लड़का का सच्चाई से सामना होता है तब उसका अकल काम करने लगता है।
आज की नवजवान नस्ल यह भूल जाती है कि परिवार नाम की जिस निजाम से फायदा उठा कर वह कमाने या एन्जॉय करने लायक बनी है वह पुराने ख्यालों और नामनिहाद बेवकूफ मां बाप के कुर्बानियों के वजह से ही मुमकिन हो पाया है।
अगर इस जेनरेशन ने भी आज की नस्ल की तरह मजे मारने को और जिस्मानी सुकून हासिल करने का मकसद बनाया होता तो यहां भी अमेरिका की तरह डॉक्टर , इंजीनियर , विशेषज्ञ दूसरे देशों से बुलाए जाते , लड़के सड़क पर नशा करते, लड़कियां वक्त से पहले हामीला होती जो यतीम खाने में परवरिश पाते, वैसी ही औलाद आगे चलकर बरो को गालियां देती, के तुमने मेरे लिए क्या किया? वैसी ही औलाद बड़ा होकर बलात्कारी बनता और मुआशरे में हराम कामों को आम करता, जो खुद बेबुनियाद है वह दूसरों को भी अच्छाई की तरफ से हटा कर बुराई की तरफ ले जाता।
आधी आबादी झुंझलाहट, परेशानी और तंगहाली में रहती । लेकिन यहां मां बाप पेट काट कर, ज़मीन बेच कर, कर्ज लेकर पैसे अपने औलाद को पढ़ाते है ताकि यह पढ़ कर कमाने लायक बन जाए जो आगे चलकर हमारा सहारा बन सके।
नयी नस्ल यह भी भूल जाती है कि अमेरिका में 14 साल के बाद मां बाप को बच्चों की पढ़ाई लिखाई और परवरिश का खर्च उठाना जरूरी नहीं है जबकि भारत में कई बार 30 साल की उम्र और शादी के बाद तक मां बाप पर आर्थिक निर्भरता दिखाई पड़ जाती है । अमेरिका में बी टेक , एम टेक , पीएचडी या लड़की घुमाने का खर्चा खुद कमा कर उठाया जाता है , बाप के पैसे से नहीं किया जाता है ।
नयी जेनरेशन अमेरिकी और भारतीय संस्कृति के फायदे दोनो एक साथ उठाना चाहती है और जिम्मेदारी से भाग रही है । उसे अमेरिका के जैसा आजाद ख्याल और अपनी मर्जी से ज़िन्दगी भी चाहिए और भारतीय मां , बाप का सामाजिक और आर्थिक संरक्षण भी चाहिए लेकिन उनकी बात मानने से परहेज है।
मगर खुद कामचोर और निकम्मा क्यों ना हो?
अमेरिका में पढ़ाई के लिए कर्ज अदा करने में सालो लग जाते है।
आज कल लड़कियां, लड़के 35 साल की उम्र तक मजा लेने के चक्कर में शादी से भागते रहते हैं , फिर 40 के होने पर अकेलेपन और डिप्रेशन की बीमारियों से घबरा कर शादी के लिए बेचैन हो जाते हैं लेकिन तब कोई मिलता नहीं है ।
इस नस्ल को अपने किए हुए का फल आज से 15 _ 20 साल बाद मिलेगा लेकिन तब तक अमेरिका की तरह सब कुछ बरबाद हो चुका होगा , यहां भी सरकार जनसंख्या बढ़ाने के लिए अखबारों और सोशल मीडिया पर एडवर्टाइज देगी जैसे आज यूरोप में हो रहा है।
आज की निकम्मी औलाद खुद तो कुछ कर नही सकती मगर सारी गलतियों का जिम्मेदार मां बाप को देती है, और यह कहते है के तुमलोगो ने मेरे लिए क्या किए हो?
यह लोग सिर्फ इस जमीन पर बोझ है जो मां बाप को बदनाम करते है और उनका मजाक बनाते है।