find all Islamic posts in English Roman urdu and Hindi related to Quran,Namz,Hadith,Ramadan,Haz,Zakat,Tauhid,Iman,Shirk,daily hadith,Islamic fatwa on various topics,Ramzan ke masail,namaz ka sahi tareeqa

Girl friend aur Boy Friend Musalmano ka culture nahi hai.

Kya Girl Friend aur Boy Friend Musalmano ka tarika hai?
Islam aise rishte ke bare me kya kahta hai?


गर्ल फ्रेंड और बॉय फ्रेंड का इसलाम में अहमियत.
किसी शायर ने सही कहा है
हो जाता है जब जिस्म का इश्क मुकम्मल
तो तोहफ़े लोग अक्सर कचरे में फेंक देते है
वेलेंटाइन डे के दिन लोग अपनी मुहब्बत जाहिर करने के लिए , साबित करने के लिए जिस्म की आग बुझाते है क्या यही मुहब्बत है या फिर जरूरत है जो खतम होने के बाद अपने अपने रास्ते तलाश करने लगते है?

گرل اور بوائے فرینڈ مسلمانوں کا کلچر ہی نہیں ، مسلمانوں کا کلچر صرف نکاح ہے ، جس میں اللہ پاک ﷻ نے عزت اور برکت رکھی ہے ۔

نکاح کے بغیر فرینڈ شپ ، محبت ، خلوص اور وفا وغیرہ سب جھانسے ہیں ۔

خلیل الرحمان قمر نے کہا تھا :

" لڑکے اور لڑکی میں دوستی نہیں ہوتی ، ( دوستی کے نام پر ) یہ جھوٹ ہے ؛ مرد گھات پر بیٹھا ہوا چور ہے ، جو ویٹ کرے گا کہ کس دن مان جائے گی ۔۔۔۔۔۔۔ "

میں کہتاہوں لڑکا ہی نہیں ، جو لڑکی بھی نکاح کے بغیر دوستی اور محبت کا دعوی کرتی ہے وہ جھوٹی ہے ، دھوکے باز ہے ؛ وہ بیوی کسی اور کی بنے گی ، استعمال کسی اور کو کرے گی ۔

ولی کامل ، عالم ربانی میاں محمد بخش قادری رحمہ اللہ نے ایسی لڑکیوں کے لیے ہی کہاتھا ؎

نارِیں سَو جو شہوت بَھریاں تاڑن ڈَنڈ جَواناں
ہِک چَکّھن ، پھر دُوجا رَکّھن ، لِکھن بُرا پُراناں

( شہوت پرست عورتیں جن کا کام نوجوانوں کو تاڑنا ہے ۔
یہ ایک کو چکھیں گی ، پھر اسے بُرا بھلا کَہ کر دوسرے کی طرف مائل ہو جائیں گی ۔
مطلب:  فرینڈ شپ کسی اور کے ساتھ نبھاتی رہیں گی اور بیوی کسی اور کی بنیں گی ۔ )

ایسی عورتوں سے بچ کر رہو ، اور یاد رکھو ؎

کَد کِسے دی سَکی ہَوئی جس نے نار سَدایا
سَے بَرساں اَگ پُوجے کوئی ، پِھر سَاڑے ہَتھ لایا

( ایسی عورتیں کسی کی وفادار نہیں ہوتیں ، انھیں نار کہا جاتا ہے اور نار ( آگ ) کی چاہے کوئی‌سو برس پوجا کرلے ، پھر بھی جب ہاتھ لگائے گا تو جلا کے رکھ دے گی )

مرد وہی قابل اعتبار ہیں جو پاکیزہ سیرت ہیں ۔۔۔۔۔۔ جو نکاح کے علاوہ کسی قسم کا ناجائز رشتہ قبول نہیں کرتے ۔
اور عورتیں بھی وہی سچی ہیں جو اللہ پاک سے ڈرتے ہوئے کسی غیر مرد سے کوئی دوستی نہیں کرتیں ۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔ باقی سب کُوڑ کہانی ہے ۔

اللہ پاک پاکیزہ مردوں ، اور پاک دامن عورتوں کے طفیل ہماری خطائیں معاف فرمائے !

✍️لقمان شاہد

   آپ کی پہلی اور آخری محبت آپ کی بیوی ہے باقی سب فریب ہے نکاح کے بغیر نا محرم سے تعلق کا اسلام میں کوئی تصور نہیں ہے پاکیزہ مرد پاکیزہ عورتوں کے لیے جبکہ پاکیزہ عورتیں پاکیزہ مردوں کے لیے ہیں نکاح ایک بہترین سنت ہے جس میں برکت ہے اللہ کا ڈر دل میں رکھنے والے ہمیشہ درست راستہ ہی اختیار کرتے ہیں.
نقل کیا ہوا۔

Share:

Aaj ki Nawjawan nasal kal Europe ki gulami karegi.

Aaj Ki nawjawan nasl kal Europe ki gulami karenge.
आज के लड़के लड़कियों को मां बाप के पैसे भी चाहिए और अमेरिका के जैसा कल्चर भी।


20-30 साल पहले 10–20% लड़के लड़कियों को फंसाने में लगे रहते थे, लेकिन लड़कियों की तरफ से पाबन्दी रहने से पहल न होने से इन लड़कों को भी खुराफात का मौका 5 फ़ीसदी से ज्यादा नहीं मिलता था

जिसका नतीजा यह होता था के समाज में इतनी बुराइयां और बेहयाई आम नहीं थी मगर जैस जैसेे लोग डिजिटल होते गए वैसे वैसे बुराई और बेशर्मी भी अच्छाई, जादिदियत और आजाद ख़यालो में तब्दील होती गई।

फिर शुरू हुआ दौर फेमिनिज्म , उदारवाद , स्वतंत्रता ,  आत्मनिर्भरता का जिसमें जिस्म से कितना भोग लिया जाय इसकी कंपटीशन और मीडिया फिल्मी दुनिया का  प्रचार ।

लड़कियों के पहल करने से हुआ यह कि लड़कों का काम आसान हो गया और जब यह तादाद 50फ़ीसदी से ऊपर पहुंच गया तो वह आम हो गया. अब तो मां , बाप अगर कुछ कहें तो उसे पिछड़ापन, पुराने ख़यालो वाला, आजादी का दुश्मन,  और इस सबको अमेरिका का मिशाल दे कर मीडिया, टीवी शो आधुनिकता बता कर जस्टिफाई करता है ।
जिस लड़की या लड़के का गर्लफ्रैंड या ब्वॉयफ्रेंड न हो , वह भोंदू, पुराने ख़यालो वाला, जाहिल - गवांर , बेवकूफ, रूढ़िवादी सोच रखने वाला, संकीर्ण और विकृत मानसिकता वाला  माना जाता है ।

जिस उम्र में नवजवान पीढ़ी को पढ़ाई, नयी नयी चीजें को सीखने , बिज़नेस की बारीकियों को सीखना चाहिए , उसमें सोशल मीडिया, इंटरनेट पर घण्टों बर्बाद हो रहे हैं और रातें काली की जा रही हैं , आंखें और सेहत खराब हो रहे हैं । फिर उसके बाद हाथो में हाथें डाल कर रोज़ शाम को, पार्क, कॉलेज, होटल , रेस्तरां में मिलना है और फिर जिस्म की आग बुझाना जिसे मॉडर्न जुबान  में one night stand या Live in relationship कहते है

उसके बाद शादी के बारे में सोचा जाता है जबकि नौकरी , पैसा कमाने के बारे में मेहनत करने की बात छोड़ो , सोचा तक नहीं जाता है । इसलिए ऐसे लोगो को हकीकत का सामना होता है फिर होश के नाखून लेते है, पैसे खत्म होते हैं तो ब्रेक अप हो जाता है क्योंकि ऐश व इशरत (सहूलियत और पैसा) की ज़िन्दगी तो मां बाप के यहां ही मिलता है । तो फिर पुरानी लड़की छोड़कर दूसरी ढूंढ ली जाती है क्योंकि यह सांस लेने से भी ज्यादा जरूरी होता है । कुछ मामलों में भाग कर शादी कर ली जाती है और बाद में अफसोस करना पड़ता है, ज़िन्दगी भर लड़के को उस लड़की कि जिसे वह भगा कर लाया होता है उसकी गालियां, ताने और गुस्से बर्दास्त करने पड़ते है और अगर लड़का अपने परिवार के साथ रहता है, लड़की को भी साथ में रखना चाहता तो उस हालत में लड़की अपनी असलियत जाहिर कर ही देती है, 15 फ़ीसदी लड़किया ही लड़के के परिवार वालो के साथ एडजस्ट कर पाती वरना उसे अलग घर किराए, घूमने के लिए कार, हफ्ते में शॉपिंग कराने ले जाना, उसके लिए दो तीन खादिमा जो उसकी सारी जरूरियत का समान हमेशा लिए हुए उसके दाएं बाएं खरी हो और अगर यह सब नहीं हुआ तो ..... लड़के को गाली दो, ...तुम्हारे घर में मुझे आराम ही कब मिला.. , फिर घर वालो के साथ झनझट, लड़के की आमदनी कोई फिल्मी हीरो के इतना है नहीं, और अगर यह सब नहीं हुआ तो...  दिन रात लड़के के साथ झगड़ा करना, उसके पूरे खानदान को गालियां देना, इस बात की धमकी देना के मै दहेज प्रथा का केस कर दूंगी और फिर तुम जेल में हवा खाओगे , अब लड़का करे तो क्या करे? उसे अपनी आमदनी बढ़ानी चाहिए अगर यह नहीं हुआ तो वह अपनी वाइफ को क्या जवाब देगा जो शादी से पहले उसकी गर्ल फ्रेंड रह चुकी है।
आमतौर पे होता यह है के अगर लव मैरेज में लड़का अगर उस लड़की की फरमाइश पूरी नहीं कर पाता है तो लड़की अपने हसबैंड को छोड़ किसी और के साथ चली जाती है फिर लड़का का सच्चाई से सामना होता है तब उसका अकल काम करने लगता है।

आज की नवजवान नस्ल यह भूल जाती है कि परिवार नाम की जिस निजाम से फायदा उठा कर वह कमाने या एन्जॉय करने लायक बनी है वह पुराने ख्यालों और नामनिहाद बेवकूफ मां बाप के कुर्बानियों के वजह से ही मुमकिन हो पाया है।

अगर इस जेनरेशन ने भी आज की नस्ल की तरह मजे मारने को और जिस्मानी सुकून हासिल करने का मकसद बनाया होता तो  यहां भी अमेरिका की तरह डॉक्टर , इंजीनियर , विशेषज्ञ दूसरे देशों से बुलाए जाते , लड़के सड़क पर नशा करते, लड़कियां वक्त से पहले हामीला होती  जो यतीम खाने में परवरिश पाते, वैसी ही औलाद आगे चलकर बरो को गालियां देती, के तुमने मेरे लिए क्या किया? वैसी ही औलाद बड़ा होकर बलात्कारी बनता और मुआशरे में हराम कामों को आम करता, जो खुद बेबुनियाद है वह दूसरों को भी अच्छाई की तरफ से हटा कर बुराई की तरफ ले जाता।

आधी आबादी झुंझलाहट, परेशानी और तंगहाली में रहती । लेकिन यहां मां बाप पेट काट कर, ज़मीन बेच कर, कर्ज लेकर पैसे अपने औलाद को पढ़ाते है ताकि यह पढ़ कर कमाने लायक बन जाए जो आगे चलकर हमारा सहारा बन सके।

नयी नस्ल यह भी भूल जाती है कि अमेरिका में 14 साल के बाद मां बाप को बच्चों की पढ़ाई लिखाई और परवरिश का खर्च उठाना जरूरी नहीं है जबकि भारत में कई बार 30 साल की उम्र और शादी के बाद तक मां बाप पर आर्थिक निर्भरता दिखाई पड़ जाती है । अमेरिका में बी टेक , एम टेक , पीएचडी या लड़की घुमाने का खर्चा खुद कमा कर उठाया जाता है , बाप के पैसे से नहीं किया जाता है ।

नयी जेनरेशन अमेरिकी और भारतीय संस्कृति के फायदे दोनो एक साथ उठाना चाहती है और जिम्मेदारी से भाग रही है । उसे अमेरिका के जैसा आजाद ख्याल और अपनी मर्जी से ज़िन्दगी भी चाहिए और भारतीय मां , बाप का सामाजिक और आर्थिक संरक्षण भी चाहिए लेकिन उनकी बात मानने से परहेज है।
मगर खुद कामचोर और निकम्मा क्यों ना हो?
अमेरिका में पढ़ाई के लिए कर्ज अदा करने में सालो लग जाते है।

आज कल लड़कियां, लड़के 35 साल की उम्र तक मजा लेने के चक्कर में शादी से भागते रहते हैं , फिर 40 के होने पर अकेलेपन और डिप्रेशन की बीमारियों से घबरा कर शादी के लिए बेचैन हो जाते हैं लेकिन तब कोई मिलता नहीं है ।

इस नस्ल को अपने किए हुए का फल आज से 15 _ 20 साल बाद मिलेगा लेकिन तब तक अमेरिका की तरह सब कुछ बरबाद हो चुका होगा , यहां भी सरकार जनसंख्या बढ़ाने के लिए अखबारों और सोशल मीडिया पर एडवर्टाइज देगी जैसे आज यूरोप में हो रहा है।
आज की निकम्मी औलाद खुद तो कुछ कर नही सकती मगर सारी गलतियों का जिम्मेदार मां बाप को देती है, और यह कहते है के तुमलोगो ने मेरे लिए क्या किए हो?
यह लोग सिर्फ इस जमीन पर बोझ है जो मां बाप को बदनाम करते है और उनका मजाक बनाते  है।

Share:

Musalman kyu likhte hai 786 number?

786 number Likhne se kya hota hai?

Aksar Musalman 786 number kyu likhte hai?
Kya 786 Likhne se hamare Ghar me Barkat hoti hai?
Kya islam 786 Likhne ko kahta hai?

*Hadees:-"786" aik number hai bus, Islam me Eski koi Ahmiyat  nahi, esko "Bismillah" ke liye Estamal krna jayz nahi*.❌
----------------------------------------
786 ke bare me *koi bhi hadees Rasoolullah ﷺ ,Sahaba (r) ya  salafe saleheen se nahi milti jisme ye kaha gya ho ki tum Bismillah ke liye 786 Estamal krna,* jab unhone  nahi kiya to hum kyu kre,? kya hum unse zayada samjhte hai, bikul nahi.
 *Hme wahi krna hai jo Allah ke Rasoolullah ﷺ ,Sahaba(r) ya Salafe saleheen ne kiya*.
Rasool Allah  ﷺ  ne farmaya:-
 *Har bidat (deen me nyi cheez) gumrahi hai or har gumrahi ka thekana jahnnam hai.*
 [Sahi Muslim #867]
( *हर बात दलील के साथ*)

Share:

Juma Mubarak kahna Biddat hai kaise?

Juma Mubarak kahna Kaisa hai?
Kya Kisi Musalman ko Juma Mubarak kahna chahiye?
Juma Mubarak kahna Biddat hai.
جمعہ مبارک کہنا کیسا ہے ؟*
️📖جواب*

*آجکل سوشل میڈیا پر کثرت سے جمعہ مبارک کی پوسٹ کی جاتی ہیں، جمعہ یقیناً مبارک دن ہے عبادت کے لحاظ سے ، لیکن جمعہ کی مبارک باد دینے کی کوئی دلیل قرآن و حدیث سے نہیں ملتی، ما سوائے اسکے کہ اس دن کو سب دنوں سے افضل کہا گیا ہے...*

*ابن قیم رحمہ اللہ نے کہا ( جمعے کے خصوصی فضائل بیان کرتے ہوئے):*

✨تیرہ: یہ عید کا دن ہےجو ہر ہفتے دہرایا جاتا ہے.

زاد المعاد، 1/369

*🍄🍃اس طرح مسلمانوں کی 3 عیدیں ہیں۔ عید الفطر اور عید الاضحی، جو سال میں ایک بار آتی ہیں۔ اور جمعہ جو ہر ہفتے میں ایک بار دہرایا جاتا ہے۔*

مسلمانوں کا عید الفطر اور عید الاضحی کے مواقع پر ایک دوسرے کو مبارک باد دینا صحابہ (ر۔ض)  سے روایت ہے۔

*☝📛لیکن جہاں تک جمعے کے دن ایک دوسرے کو مبارک باد دینے کا تعلق ہے، یہ ثابت نہیں ہے۔ کیونکہ حقیقت میں جمعہ عید ہے یہ صحابہ (ر۔ض) جانتے تھے، اور وہ اس کے فضائل کے بارے میں ہم سے زیادہ علم رکھتےتھے،اور وہ اِس کا احترام کرتے تھے۔ مگر ایسی کوئی روایت نہیں ہے کہ جس سے ثابت ہو، کہ وہ ایک دوسرے کو جمعے کی مبارکباد دیتے تھے۔ اور تمام نیکی ان کی پیروی میں ہے (اللہ ان سے راضی ہو )*

🔹الشیخ صالح بن الفوزان سے پوچھا گیا:

️ہر جمعہ کو ٹیکسٹ پیغامات بھیجنا اوراس جملے پر اختتام کرنا "جمعہ مبارک" ،کے بارے میں کیا حکم ہے؟*

انہوں نے جواب دیا:

*🔖ابتدائی نسل جمعہ کو ایک دوسرے کو مبارک باد نہیں دیتی تھی تو ہمیں وہ متعارف نہیں کرانا چاہیے جو انہوں نے نہیں کیا۔*
( انتہی )

📚اسی طرح کا ایک فتوی شیخ سلیمان رحمہ الماجد  کی طرف سے جاری کیا گیا تھا جب انہوں نے کہا:

*📘🍃ہم نہیں سوچتے کہ اس طرح ایک دوسرے کو جمعہ مبارک کہنا درست ہے، کیونکہ یہ دعاؤں اور ذکر میں آتا ہے، جس کی بنیاد (قرآن/سنت) پر ہونی چاہیے۔ کیونکہ یہ خالصتا عبادت کا معاملہ ہے۔ اوراگر یہ اچھا ہے، تو نبی (صلی اللہ اللہ کی صلی اللہ علیہ وسلم) اور ان کے صحابہ (اللہ ان سے راضی ہو ) نے ہم سے پہلے کیا ہوتا۔*

💠✨اگر کوئی بھی یہ مشورہ دیتا ہے کہ اِس کی اجازت ہےتو اِس کا مطلب ہے کہ ہمیں پنجگانہ نماز اور دوسری عبادات کے بعد بھی دعا اور مبارکباد دینی چاہیے۔ اور ابتدائی نسلوں نے اِن مواقع پر دعائیں نہیں دی تھی۔
( انتہی )

*☝لہٰذا بجائے اسکے کہ ہم جمعہ کی مبارک باد دیں ، جسکا کوئی ثواب نہیں ، کیوں نہ ہم وہ کام جمعہ کے روز کریں جنکے کرنے سے اللہ بھی راضی ہو اور اعمال نامہ بھی بھاری ہو اور سنت رسول صلی اللہ علیہ وسلم پر بھی عمل ہو۔*

📝🍃مثلاََ

*1- جمعہ کے روز غسل کا اہتمام کرنا۔*
*2- سورہ کہف کی تلاوت*
*3- درود شریف کثرت سے پڑھنا*
*4- خوشبو لگانا*
*5- مسجد میں سب سے پہلے پہنچ کر اونٹ جتنی قربانی کا ثواب حاصل کرنا اور امام کے قریب بیٹھ کر خطبہ سننا۔*
*6- مسواک کرنا گو کہ یہ جمعہ کے لئے خاص نہیں اسکا اہتمام ہر روز بلکہ ہر نماز سے پہلے کرنا چاہیے ۔*
*7- امام کا خطبہ خاموشی سے سننا۔*
*8- دعاؤں کی کثرت کرنا۔*

💠✨یہ تھی وہ مختصر تفصیل جس سے کم و بیش ہر بندہ واقف ہوگا تو کیا ان کاموں سے بھی بڑھ کر ہےجمعہ کی مبارک باد دینا؟؟؟

*پیارے بھائیو اور بہنو! اللہ سبحانہ و تعالٰی آپکے درجات بلند فرمائے اس فیس بک کی بدعت کو چھوڑ کر اللہ کو راضی کرنے والے کام کریں ۔*

اللہ سبحانہ و تعالٰی آپ کو اور ہم سب کو صحیح اور خالص دین پر چلنے اور عمل کرنے والا بنائے ۔ آمین یارب العالمین.

╼ ⃟ ⃟⃟ ╼𖣔╼ ⃟ ⃟╼𖣔╼ ⃟ ⃟  ╼𖣔╼ ⃟ ⃟╼𖣔

Share:

Christmas day kab se manaya jane laga? history of christmas day

25 December ko Hi christmas day kyu manaya jata hai?

kYa 25 December se din badhna shuru ho jata hai?
25December ko bara Din kyu kahte hai?
Christmas day kab se manane jane laga?
Christmas tree ki asal hakikat kya hai?
Christmas day Manane ke piche ki kahani.


کرسمس کی حقیقت
(Christmas)

کرسمس در اصل دو لفظوں یعنی کرائسٹ (Christ) اور ماس (Mass)کا مجموعہ ہے۔کرائسٹ کہتے ہیں حضرت عیسیٰ علیہ السلام کو اور ماس کے معنی ہیں اجتماع کے، اورعیسائیوں کے دعویٰ کے مطابق 25/ دسمبر کو حضرت عیسیٰ علیہ السلام کی ولادت ہوئی تھی، لہٰذا کرسمس کا مفہوم ہے : یوم میلاد مسیح۔اس لفظ کا چلن چوتھی صدی عیسوی سے شروع ہوا،اور چونکہ حضرت عیسیٰ کی ولادت کا دن بہت ہی اہم اور مقدس دن تھا اس لیے اسے ’’بڑا دن‘‘ بھی کہتے ہیں۔
یہ تو ہوا ظاہری سبب جو کرسمس کے سلسلہ میں بیان کیا جاتا ہے، لیکن حقیقت یہ ہے کہ عیسائیوں کو حضرت عیسیٰ کا یوم ولادت تو دور کی بات ان کا سن ولادت بھی نہیں معلوم۔اور اس سلسلہ میں ان کے یہاں اختلافات موجود ہیں، چنانچہ مشرقی آرتھوڈکس کلیسا کا کہنا ہے کہ حضرت عیسیٰ کا یوم ولادت 6جنوری ہے، جبکہ آرمینی کلیسا 19جنوری کو یوم ولادت مناتا ہے۔
25دسمبر کاآغازشاہ قسنطین نے 325ء میں کیا جس نے بت پرستی ترک کرکے عیسائیت اختیار کی تھی، اور عیسائیت کو پہلی بار حکومت کی سرپرستی حاصل ہوئی تھی۔لیکن اس وقت بھی اس دن کو تہوار کے طور پرتسلیم نہیںکیا گیا۔
530ء میں روم(اٹلی) نے اس سلسلہ میں خاصی دلچسپی لی، اورحضرت عیسیٰ علیہ السلام کی تاریخ پیدائش کی تحقیق وتعین کی ذمہ داری سیتھیا اکسیگزنامی ایک راہب کو دی گئی جو کہ علم نجوم میں بھی ماہر تھا۔چنانچہ اس نے 25دسمبرکو حضرت عیسیٰ کی ولادت کی تاریخ مقرر کردی،جس کے پیچھے مقصد یہ تھا کہ یہ دن حضرت عیسیٰ کی ولادت سے قبل نہایت بابرکت اور رومیوں کے مذہبی تہوار کے طور پر مشہور تھا، یہ دن بہت سے دیوتاؤں کا یوم پیدائش بھی تھا اور سورج کے راس الجدی پر پہنچنے کا وقت بھی جس کی وجہ سے اس تہوار کو ’’جشن زحل‘‘ (Saturnalia) کہتے تھے، اس دن خوب رنگ رلیاں منائی جاتی تھیں،دیوتاؤں کی اور خاص کر سورج کی پرستش کی جاتی تھی، چنانچہ راہب نے آفتاب پرست ا ورمشرک قوم میں عیسائیت کومقبول بنانے کے لیے 25دسمبر کی تاریخ متعین کردی، اورپھر یہیں سے اس مذہبی رسم کا آغاز ہوا۔
قرآن مجیدکے مطالعہ سے ثابت ہوتا ہے کہ 25دسمبر کو حضرت عیسیٰ علیہ السلام کا یوم ولادت تسلیم کرنا بالکل غلط ہے، کیونکہ قرآن مجید میں اس کی وضاحت ہے حضرت مریم جب درد زہ میں مبتلا ہوئی تھیں تو ایک کھجور کے پیڑ کے نیچے پہنچی تھیں اور اس میںپکی کھجوریں لگی ہوئی تھیں۔
اس بات پر سب کا اتفاق ہے کہ حضرت عیسیٰ علیہ السلام کی ولادت بیت اللحم شہر میں ہوئی تھی ، اور اس علاقہ میں جولائی واگست کا مہینہ ہی ایسی گرمی کا مہینہ ہے جس میں کھجوریں پکتی ہیں۔چنانچہ یہی حقیقت ہے کہ 25دسمبر کو حضرت عیسیٰ علیہ السلام کی ولادت کا دن نہیں ہے بلکہ یہ صدیوں پرانا رومی تہوار کا دن ہے جس میں شرک وبت پرستی ہوتی تھی،اخلاق سوز حرکتیں اور خرافات ہوتی تھیں جسے عیسائیوں نے چالاکی سے اپنے مذہبی تہوار کے طور پر اختیار کرلیا۔
مغربی معاشرہ میں جب ڈراموں کو مقبولیت حاصل ہوئی تو حضرت عیسیٰ علیہ السلام کی ولادت کے منظر کو بھی پیش کیا جانے لگاجس کا واحد مقصد عیسائیت کا تعارف اور اس کی اشاعت ہوتا تھا، اس ڈرامہ کوملک میں رائج ’’رام لیلا‘‘ کے ڈرامہ سے بھی تشبیہ دی جاسکتی ہے،اس میں حضرت مریم علیہا السلام کی تکلیفوں، تنہائیوں اور پرشیانیوں کو بیان کیا جاتا، پورے ڈرامہ میں اسٹیج پر ایک درخت بھی بنایا جاتا جسے حضرت مریم کے ساتھی کے طور پر پیش کیا جاتا ، حضرت مریم اس درخت کے پاس بیٹھ کر اپنی تنہائی اور اداسی کے ایام گذارتیں، ڈرامہ کے اختتام پر عقیدت مند اس درخت کے پتے اور ٹہنیاں توڑکر اپنے ساتھ لے جاتے اور اپنے گھروں میں تبرک کے طور پر رکھ لیتے، یہ رسم آہستہ آہستہ اس تہوار کا ایک حصہ بن گیا اور کرسمس ٹری (Christmas-Tree) کا اضافہ ہوگیا۔لوگوں نے اپنے گھروں میں بھی کرسمس ٹری منانے اور سجانے شروع کردیے، اس ارتقائی عمل کے دوران کسی من چلے نے کرسمس ٹری پر بچوں کے لیے کچھ تحفے بھی لگا دیے جو کہ آگے چل کر اس کا حصہ بن گئے۔
کرسمس ٹری کا آغاز جرمنی سے ہوا تھا،پھرجب 1847ء میں برطانوی ملکہ وکٹوریہ کا خاوند جرمنی دورے پر گیا ،اور اسے وہیں کرسمس کا تہوار منانا پڑاتو اس نے پہلی مرتبہ لوگوں کو کرسمس ٹری بناتے اور سجاتے دیکھا، اسے یہ رسم بہت پسند آئی، چنانچہ واپسی میں وہ اپنے ساتھ ایک ٹری بھی لے گیا،پھر اگلے سال 1848ء میں پہلی مرتبہ لندن میں کرسمس ٹری بنایا گیا، یہ ایک دیو ہیکل ٹری تھا جو شاہی محل کے باہر آویزاں کیا گیا تھا،اسے دیکھنے کے لیے ایک بھیڑ امنڈ پڑی، لوگ بڑی دیر تک اسے حیرت سے دیکھتے رہے اور تالیاں بجاتے رہے، اس کے بعد سے پورے یورپ میںبلکہ ہر عیسائی گھر میں کرسمس ٹری کا چلن ہوگیا، اور آج پوری عیسائی دنیا بڑے دھوم دھام سے کرسمس ٹری کے ساتھ ہی کرسمس ڈے مناتی ہے۔

کرسمس کے اس تہوار کا مقصد عیسائیت کا فروغ اور لوگوں میں مذہبی رجحان پیدا کرنا تھالیکن کرسمس ٹری کے ساتھ ہی اس میں فضول خرچیاں بھی شامل ہوگئیں، صرف برطانیہ میں کرسمس ٹری پر ہر سال کروڑوںپاؤنڈ خرچ ہوتے ہیں۔پھرلوگوں کی دلچسپی کو برقرار رکھنے کے لیے اس میں رقص و موسیقی بھی شامل کردی گئی جو کہ مغربی تہذیب کا ایک حصہ بھی ہے۔ حضرت عیسیٰ سے عقیدت کے اظہار اور چرچوں میں بندگی کے وقت ایک خاص سماں پیدا کرنے کے لیے ہلکی روشنی کا نظم کیا جانے لگا جس کے لیے موم بتی کا استعمال عام ہوتا گیا، اور آج یہ موم بتی بھی کرسمس ڈے کا ایک اہم جزء ہے۔ یہاںتک تو ساری باتیں قابل برداشت تھیں لیکن جب اس میں شراب بھی شامل ہوگئی تو یہ تہوار عیاشی کی شکل اختیار کرگیا، اور اس کے نتیجہ میں جو تباہی برپا ہوئی اس سے خود مغربی معاشرہ کی بنیادیں ہل گئیں اور حکومت کو ایسے قوانین وضع کرنے پڑے جن کی بنیاد پر شہریوں سے کہا جاتا ہے کہ کرسمس کے موقع پر اپنے گھروں سے قریب چرچ جائیں اور وہاں عبادت کریں، اور اگر شراب پینے کی خواہش ہو تو اپنے گھروں میں ہی شراب پئیں، شراب پی کر گھر سے باہر نہ نکلیں۔

25/ دسمبر کا یہ دن جس کی نسبت حضرت عیسیٰ علیہ السلام کی جانب کی جاتی ہے آج عیاشی اور ہر طرح کی اخلاقی وقانونی آزادی کا دن شمار کیا جاتا ہے، اس دن مغربی ممالک میں کئی ارب کی شراب پی جاتی ہے اور کروروں کا جوا کھیلا جاتا ہے، اس کے بعد لڑائی جھگڑوں اور مارکاٹ کے ہزاروں واقعات درج ہوتے ہیں،ٹریفک نظام معطل سا ہوجاتاہے، عزتیں پامال ہوتی ہیں، جنسی زیادتی کے سیکڑوں واقعات رونما ہوتے ہیں،اس پر طرفہ یہ کہ ملٹی نیشنل کمپنیوں نے اس دن کو آمدنی کا بہترین ذریعہ بنا لیا ہے،جس کی وجہ سے بداخلاقی اور بے حیائی کو خوب فروغ حاصل ہوتا ہے۔یقینا عیسائی دنیا میں کرسمس سے بڑھ کر اس قدر حیا سوز ، اخلاق سوز اور انسانیت سوزکوئی اور دن نہیں ہوگا! جبکہ خود انجیل کی تعلیمات ان بد اخلاقیوں کے سخت خلاف ہیں ۔

اسلامی تعلیمات ایسی’’ نام نہاد خوشی‘‘ میں شریک ہونے کی قطعاً اجازت نہیں دیتیں، اور نہ اس بات کی اجازت دیتی ہیں کہ ایسے اخلاق وحیاسوز  تہوار کی مبارک دی جائے،کیونکہ یہ وہ دن ہے جس میں سور ج ،ستارہ اور بتوں کے کی پرستش کی جاتی تھی اور ان کے نام پر جشن منایا جاتا تھا،اس کے علاوہ آج اس دن کی نسبت ضرور حضرت عیسیٰ علیہ السلام کی جانب کی جاتی ہے لیکن اس سے بھی انکار نہیں کہ خود عیسائیوں کے نزدیک حضرت عیسیٰؑ کی تاریخ پیدائش کی سن پیدائش میں بھی زبردست اختلاف ہے، ان سب کے باوجود اگر ہم مان لیں کہ اسی دن حضرت عیسیٰ کی ولادت ہوئی تھی تو یہ کیسے تسلیم کرلیں کہ حضرت عیسیٰ نعوذ باﷲ اﷲ کے بیٹے تھے، کیونکہ عیسائیوں کا یہی عقیدہ ہے کہ وہ اﷲ کے بیٹے تھے اور اپنی جان کے بدلہ انھوں نے پوری عیسائی دنیا کے گناہوں کا کفارہ ادا کردیا، اور آج عیسائی دنیا کرسمس میں اﷲ کے نبی کی ولادت کا جشن نہیں مناتی بلکہ’’اﷲ کے بیٹے‘‘ کی ولادت کا جشن مناتی ہے جو اسلام کی نظر میں کھلا ہوا شرک ہے، اورایسے شرکیہ تہوار میں شرکت کسی بھی صورت میں جائز نہیں۔اس لیے مسلمانوں کو نہ صرف اس دن کی حقیقت سے باخبر ہونا ضروری ہے بلکہ ہر طرح کے تحفے تحائف لینے دینے،پارٹیوں میں اور مجلسوں میں شرکت کرنے اور مبارک بادیوں سے گریز کرنا چاہیے تاکہ سنگین گناہوں سے بچنا آسان ہو۔ واﷲ ہو الموفق۔
Nafees Nadwi

Share:

Mard aur Aurat ka Ek sath Jamat banakar Namaj padhna.

Kya Ghar me Aurat aur Mard Ek sath Jamat banakar Namaj padh sakte hai?

Kya Mard Aur Aurat ek sath Namaj padh sakte hai?


Kya ghar me Aurat or mard ek Sath Jamat bana kar Namaz padh Sakte hain?*‍‍‍

----------------------------------------
*Padh Sakte hain*✔️✔️✔️
-----------------------------------
 Usme *Imam Mard hoga, Or Mard ki Saf (Line) Aage lgegi or Aurto ki saf (Line) uske baad se lagegi (Chahe 1 hi Aurat kyu na ho)*
---------------------------------------
 Hazrat Anas Bin Malik Se Riwayat Hai Ke Unki Nani Malika Ne Rasool'Allah ﷺ Ko Khana Taiyar Karke Khane ke Liye Bulaya. *Aap ﷺ Ne Khane Ke Bad Farmaya Ke Aao Tumhen Namaz Padha Dun. Anas (Razi Allahu Anhu) Ne Kaha Ke Maine Apne Ghar Se Ek Boriya Uthaya Jo Kasrat istemal Se Kala Ho Gaya Tha. Maine Uspar Pani Chidka Phir Rasool'Allah ﷺ Namaz Ke Liye (Use Boriye Par) Khade Hue Or Mai Or Ek Yateem (Ke Rasool'Allah ﷺ Ke Ghulam Abu Zameerah Ke Lakde Zameerah) Aap Ke Piche Safa Band Kar khade Ho Gaye. Or Buddhi Aurat (Anas Razi Allahu Anhu Ki Nani Malika) Hamare Piche Khadi Hui. Phir Rasool'Allah ﷺ Ne Hamen Do Rakat Namaz Padhai Or Wapas Ghar Tashreef Le Gaye.*
 (Sahih Bukhari: 380)
( *हर बात दलील के साथ*)

Share:

Kisi Na Mehram Ladka ya Ladki se tanhai me baithkar batein karna.

Jab Koi ladka aur ladki rahati hai to undono ke bich Tisara kaun hota hai?

Kisi Gair-Mahram (Ladki ya Ladka) se Akele me Milna Haram hai*❌
------------------------------------------
Rasoolullah ﷺ ne Farmaya:-
👉 *Mai Tumhe apne Sahaba ki Pairwi ki Waseeyat karta hu*, or Aage
👉Farmaya:- *Khabardar koi Mard-Aurat Akele me Na mile, Kyuki beech me Teesra Shaitan hota hai.* (MATLAB:- Shaitan Bhatka kar Galat Raste pe le ja sakta hai, or Esse wo Mard-Aurat Galat Raste pe ja sakte hain esi liye Nabi ﷺ ne mna Farmaya)

👆 *Aaj Kyi Aise Fitne Gair Mahram se Akele me Milne baat krne ki wajah se hote hain, Esi liye Esko Mamooli na Samjhe*
📚(Jam e Tirmazi#2165)
( *हर बात दलील के साथ*)

Share:

Wah Ladki jo roj Ek Gareeb ladke ke liye rotiyan chori karti thi.

Ehsas Kise kahte hai?
Kisi Gareeb ki madad karna hamara farz hai?
Gareeb Bache apna Shauk kaha se puri karte hai?
एहसास किसे कहते है, इस वाकया से समझे?
गरीब के बच्चे कैसे अपनी ज़िन्दगी गुजारते है?
वह लड़की जो रोज़ घर से रोटियां छुपा कर एक गरीब लड़के को खिलाने  जाती थी।

                   *احساس*
وہ ناشتہ کر رھی تھی. مگر اس کی نظر امی پر جمی ھوئی تھی. ادھر امی ذرا سی غافل ھوئی. ادھر اس نے ایک روٹی لپٹ کر اپنی پتلون کی جیب میں ڈال لی. وہ سمجھتی تھی کہ امی کو خبر نہیں ھوئی. مگر وہ یہ بات نہیں جانتی تھی کہ ماؤں کو ہر بات کی خبر ھوتی ھے. وہ سکول جانے کے لئے گھر سے باہر نکلی .اور پھر تعاقب شروع ھو گیا. تعاقب کرنے والا ایک آدمی تھا. وہ اپنے تعاقب سے بے خبر کندھوں پر سکول بیگ لٹکائے اچھلتی کودتی چلی جا رھی تھی. جب وہ سکول پہنچی تو,, دعا,,شروع ھو چکی تھی. وہ بھاگ کر دعا میں شامل ھو گئی. بھاگنے کی وجہ سے روٹی سرک کر اس کی جیب میں سے باہر جھانکنے لگی. اس کی سہیلیاں یہ منظر دیکھ کر مسکرانے لگیں. مگر وہ اپنا سر جھکائے، آنکھیں بند کیے پورےانہماک سے جانے کس کے لئے دعا مانگ رھی تھی. تعاقب کرنے والا اوٹ میں چھپا اس کی ایک ایک حرکت پر نظر رکھے ھوئے تھا .دعا کے بعد وہ اپنی کلاس میں آ گئی .باقی وقت پڑھنے لکھنے میں گزرا .مگر اس نے روٹی نہیں کھائی. گھنٹی بجنے کے ساتھ ھی سکول سے چھٹی کا اعلان ھوا. تمام بچے باہر کی طرف لپکے. اب وہ بھی اپنے گھر کی طرف روانہ ہوئی. مگر اس بار اس نے اپنا راستہ بدل لیا تھا. تعاقب کرنے والا اب بھی تعاقب جاری رکھے ھوئے تھا .پھر اس نے دیکھا .وہ بچی ایک جھونپڑی کے سامنے رکی .جھونپڑی کے باہر ایک بچہ منتظر نگاھوں سے اس کی طرف دیکھ رہا تھا. اس بچی نے اپنی پتلون کی جیب میں سے روٹی نکال کر اس بچے کے حوالے کر دی. بچے کی آنکھیں جگمگانے لگیں .اب وہ بے صبری سے نوالے چبا رہا تھا. بچی آگے بڑھ گئی. مگر تعاقب کرنے والے کے پاؤں پتھر ھو چکے تھے.وہ آوازوں کی باز گشت سن رہا تھا
جو کے اس کے بیوی نے صبح اس کو کھا تھا.
,,لگتا ھے کہ اپنی,, منی,,بیمار ھے...,,
,,کیوں...کیا ھوا ؟؟؟
,,اس کے پیٹ میں کیڑے ھیں...ناشتہ کرنے کے باوجود ایک روٹی اپنے ساتھ سکول لے کر جاتی ھے. وہ بھی چوری سے....,, یہ اس کی بیوی تھی.
,,کیا آپ کی بیٹی گھر سے کھانا کھا کر نہیں آتی؟؟
,,کیوں...کیا ھوا؟؟
,,روزانہ اس کی جیب میں ایک روٹی ھوتی ھے یہ کلاس ٹیچر تھی
وہ جب اپنے گھر میں داخل ھوا. تو اس کا سر فخر سے بلند تھا
اسے اپنی منی پر پیار آ رھا تھا
اتنی سے عمر میں اتنی بڑی سوچ غریب بچوں کے لئی احساس
,,ابو جی... ابو جی...,, کہتے ھوئے منی اس کی گود میں سوار ھو گئی.
,,کچھ پتا چلا...,, اس کی بیوی نے پوچھا.
ھاں....پیٹ میں کیڑا نہیں ھے.
درد دل کا مرض ھے
ابو کا دل بھر آیا .منی کچھ سمجھ نہیں پائی تھی...

اللہ ہم سب کو بھی احساس کرنے والا دل دے آمین....

Share:

Duniya me Khush Rahne ke liye Kuchh nasihatein.

Sheikh Safik ka Apne Shagird Hatim ko nasihat.
Duniya me har ek ka Mahboob hota maine apna Mahboob nekiyon ko bana liya hai.
Duniya ki Maal o daulat ka lalach rakhne wala Sabse bewkoof insan hai.

ایک روز شیخ شفیق بلخیؒ نے اپنے شاگرد حاتمؒ سے پوچھا.. "حاتم! تم کتنے دنوں سے میرے ساتھ ہو..؟" 

حاتم نے کہا.. "بتیس برس سے.."

شیخ نے پوچھا.. "بتاؤ اتنے طویل عرصے میں تم نے مجھ سے کیا سیکھا..؟"

حاتم نے کہا.. "صرف آٹھ مسئلے.."

شیخ نے کہا.. "انا للہ وانا الیہ راجعون.. میرے اوقات تیرے اوپر ضائع چلے گئے.. تُو نے صرف آٹھ مسئلےسیکھے..؟"

حاتم نے کہا.. "استادِ محترم!  زیادہ نہیں سیکھ سکا اور جھوٹ بھی نہیں بول سکتا.."

شیخ نے کہا.. "اچھا بتاؤ کیا سیکھا ہے..؟"

حاتمؒ نے کہا.. "میں نے مخلوق کو دیکھا تو معلوم ہوا ہر ایک کا محبوب ہوتا ہے قبر میں جانے تک.. جب بندہ قبر میں پہنچ جاتا ہے تو اپنے محبوب سے جدا ہو جاتا ہے.. اس لیے میں نے اپنا محبوب "نیکیوں" کو بنا لیا ہے کہ جب میں قبر میں جاؤں گا تو یہ میرا محبوب میرے ساتھ قبر میں رہے گا..

2: لوگوں کو دیکھا کہ کسی کے پاس قیمتی چیز ہے تو اسے سنبھال کر رکھتا ہے اور اس کی حفاظت کرتا ہے.. پھر فرمانِ الہی پڑھا..

"جو کچھ تمہارے پاس ہے وہ خرچ ہو جانے والا ہے.. جو کچھ اللہ کے پاس ہے وہی باقی رہنے والا ہے.."
(سورۃ النحل آیت 96)

تو جو چیز مجھے قیمتی ہاتھ آئی اسے اللہ کی طرف پھیر دیا تا کہ اس کے پاس محفوظ ہو جائے جو کبھی ضائع نہ ہو..

3: میں نے خدا کے فرمان پر غور کیا..
"اور جس نے اپنے رب کے سامنے کھڑے ہونے کا خوف کیا اور نفس کو بُری خواہشات سے باز رکھا' جنت اسی کا ٹھکانہ ہو گا.."
(سورۃ النازعات آیت 40)

تو اپنے نفس کو بُرائیوں سے لگام دی.. خواہشاتِ نفسانی سے بچنے کی محنت کی , یہاں تک کہ میرا نفس اطاعتِ الٰہی پر جم گیا..

4: لوگوں کو دیکھا ہر ایک کا رجحان دنیاوی مال، حسب نسب، دنیاوی جاہ و منصب میں پایا.. ان امور میں غور کرنے سے یہ چیزیں ہیچ دکھائی دیں.. اُدھر فرمان الٰہی دیکھا..

"درحقیقت اللہ کے نزدیک تم میں سب سے زیادہ عزت والا وہ ہے جو تمہارے اندر سب سے زیادہ پرہیزگار ہے.."
(سورۃ الحجرات آیت 13)

تو میں نے تقوٰی اختیار کیا تاکہ اللہ کے  ہاں عزت پاؤں..

5: لوگوں میں یہ بھی دیکھا کہ آپس میں گمانِ بد رکھتے ہیں، ایک دوسرے کو بُرا کہتے ہیں.. دوسری طرف اللہ کا فرمان دیکھا..

"دنیا کی زندگی میں ان کی بسر اوقات کی ذرائع تو ہم نے ان کے درمیان تقسیم کیے ہیں.."
(سورۃ الزخرف آیت 32)

اس لیے میں حسد کو چھوڑ کر خلق سے کنارہ کر لیا اور یقین ہوا کہ قسمت صرف اللہ کے ہاتھ میں ہے.. خلق کی عداوت سے باز آگیا..

6: لوگوں کو دیکھا کہ ایک دوسرے سے سرکشی اور کشت و خون کرتے ہیں.. اللہ کی طرف رجوع کیا تو فرمایا..

"درحقیقت شیطان تمہارا دشمن ہے اس لیے تم بھی اسے اپنا دشمن سمجھو۔"
(سورۃ فاطر آیت 6)

اس بنا پر میں نے صرف اس اکیلے شیطان کو اپنا دشمن ٹھہرا لیا اور اس بات کی کوشش کی کہ اس سے بچتا رہوں..

7: لوگوں کو دیکھا پارہ نان (روٹی کے ٹکرے) پر اپنے نفس کو ذلیل کر رہے ہیں، ناجائز امور میں قدم رکھتے ہیں.. میں نے ارشادِ باری تعالٰی دیکھا..

"زمین پر چلنے والا کوئی جاندار ایسا نہیں ہے جس کا رزق اللہ کے ذمے نہ ہو.."
(سورۃ ہود آیت6)

پھر میں ان باتوں میں مشغول ہوا جو اللہ کے حقوق میرے ذمے ہیں.. اس رزق کی طلب ترک کی جو اللہ کے ذمے ہے..

8: میں نے خلق کو دیکھا، ہر ایک کسی عارضی چیز پر بھروسہ کرتا ہے.. کوئی زمین پر بھروسہ کرتا ہے، کوئی اپنی تجارت پر، کوئی اپنے پیشے پر، کوئی بدن پر، کوئی ذہنی اور علمی صلاحیتوں پر بھروسہ کیے ہوئے ہے.. میں نے خدا کی طرف رجوع کیا.. یہ ارشاد دیکھا..

"جو اللہ پر بھروسہ کرے اس کے لیے وہ کافی ہے.."
(سورۃ طلاق آیت3)

تو میں نے اپنےخدا پر توکل کیا.. وہی مجھے کافی ہے.."

شیخ بلخیؒ نے فرمایا..
"اے میرے پیارے شاگرد حاتم! خدا تمہیں ان کی توفیق نصیب کرے.. میں نے قرآن کے علوم پر  مطالعہ کیا تو ان سب کی اصل جڑ انہی آٹھ مسائل کو پایا.. ان پر عمل کرنے والا گویا چاروں آسمانی کتابوں کا عامل ہوا.."

📚احیاء العلوم.. امام غزالیؒ@

Share:

Balo ka joora banakar Namaj padhna dururst nahi hai.

Balo ko gol karke Namaj padhna kaisa hai?
Balo ka joora banakar Namaj padhna kaisa hai?
*بالوں کو جوڑا باندھ کر نماز پڑھنا*

الحمد لله، والصلاة والسلام علىٰ رسول الله، أما بعد!

جوڑا باندھ کر نماز پڑھنا درست نہیں ہے۔
چنانچہ صحیح بخاری میں حدیث ہے کہ:

’ وَلَا یَکُفُّ ثَوبَهٗ، وَ لَا شَعرَهٗ  ‘صحیح البخاری، بَابُ لاَ یَکُفُّ شَعَرًا،رقم:۸۱۵
’’ کوئی آدمی اپنے کپڑے اور بالوں کو اکٹھا نہ کرے۔‘‘

’’سنن ابی داؤد‘‘ میں بسند جید مروی ہے، کہ ابو رافعt نے حسن بن علی کو دیکھا کہ وہ اپنی گدی پر بال باندھ کر نماز پڑھ رہے تھے ، تو انہوں نے کھول دیئے، اور کہا کہ میں نے رسول اﷲ صلی اللہ علیہ وسلم   سے سنا ہے، کہ ’’ یہ شیطان کے بیٹھنے کی جگہ ہے:’ بَابٌ : اَلرَّجُلُ لَا یُصَلِّی عَاقِصًا شَعرَهٗ۔‘ فتح الباری:۲/۲۹۹

اس واقعے کا تعلق اگرچہ مَرد سے ہے، لیکن اصلاً شرعی احکام و مسائل میں مرد و زن سب برابر ہیں، اِلَّایہ کہ تخصیص کی کوئی دلیل ہو، جو یہاں نہیں ہے۔

امام نووی رحمہ اللہ فرماتے ہیں:کہ اس فعل کی ممانعت پر علماء کا اتفاق ہے۔ مگر یہ کراہت تنزیہی ہے۔ اگر کوئی شخص اس حالت میں نماز پڑھ لے۔ تو نماز درست ہو گی۔ البتہ یہ کام ہے مکروہ(ناپسندیدہ) عون المعبود: ۱/۲۴۶

’’فتح الباری‘‘میں ہے کہ ’ وَاتَّفَقُوا عَلٰی أَنَّهٗ لَا یُفسِدُ الصَّلَاةَ ‘ (۲/۲۹۶) ’’علماء کا اس بات پر اتفاق ہے کہ فعل ہذا سے نماز فاسد نہیں ہوتی۔‘‘

  ھذا ما عندی والله اعلم بالصواب

Share:

Kya Shadi Se pahle sex karne par Hamal giraya ja sakta hai?

Agar Koi Ladki Zina kar le aur hamila (Pregnant) ho jaye to kya Hamal giraya ja sakta hai?
Kuwari Ladki agar zina kar le to uski Sza kya hai?
#liv_in_relationship
#one_night_stand
लड़की जीना कर ली है, कुंवारी है जीना कर ली अब हामिला है गई है क्या इज़्ज़त बचाने के लिए यह हमल जाया कर सकते है।

لڑکی سے غلطی ہو گئی ہے کنواری ہے زنا کر لیا اب حاملہ ہو گئی ہے کیا عزت بچانے کی خاطر یہ حمل ضائع کروا سکتے ہیں ؟

*جواب تحریری

فقھاء کرام کی عمومی طور پر اسقاط حمل اور اس کے حکم اوراس سے پیدا ہونے والے مسائل میں بہت ساری جھود و اجتھادات پاۓ جاتےہیں ، لیکن انہوں نےغیرشرعی حمل میں تفاصیل کا اہتمام نہیں کیا ۔

اورہوسکتا ہے انہوں نے اسے نکاح صحیح سے ہونے والے حمل کے اسقاط کے تابع اوراس میں شریک ہی سمجھا ہو ، تواگر نکاح صحیح سے ہونے والے حمل کا اسقاط عمومی حالت میں حرام ہے توغیرشرعی طریقے سے ہونے والےحمل کی حرمت توبالاولی زیادہ اورشدید ہوگی ۔

اس لیے کہ غیرشرعی طریقے سے ہونے والے حمل کے اسقاط کومباح کرنے سے فحاشی اوررذیل کام کرنے کی تشجیع ہوگی اوراس کا راستہ کھلے گا ، اورشریعت اسلامیہ کے قواعد میں یہ شامل ہے کہ اسلام ہراس وسیلہ اورسبب کوبھی حرام کرتا ہے جوفحاشی اورگناہ کا با‏عث ہو مثلا بے پردگی اور مرد وعورت کا آپس میں اختلاط و میل جول وغیرہ ۔

اوراس پر مستزاد یہ کہ ایک ایسے پیدا ہونے والے بے گناہ بچے کوکسی دوسرے کے گناہ پر ذبح نہیں کیا جاۓ گا ۔

اورپھر اللہ سبحانہ وتعالی کا بھی فرمان ہے :

کوئی بھی کسی دوسرے کا بوجھـ نہیں اٹھاۓ گا الاسراء ( 15 ) ۔

اوریہ بھی معلوم ہے کہ نبی صلی اللہ علیہ وسلم نےغامدی قبیلہ کی زنا سے حاملہ عورت کوواپس کردیا تھا کہ وہ ولادت کے بعد آۓ اورجب وہ ولادت کے بعد آئي تونبی صلی اللہ علیہ وسلم سے اسے پھر دوبارہ واپس کردیا کہ اس بچے کودودھ پلا‎ؤ حتی کہ یہ کھانے پینے کے قابل ہوجاۓ اوردودھ چھوڑ دے ۔

جب وہ تیسری مرتبہ آئي تو بچے کے ہاتھ میں روٹی کا ٹکڑا تھا لھذا اس وقت نبی صلی اللہ علیہ وسلم نے اس بچے کوایک صحابی کے سپرد کردیا اورپھر اسے رجم کا حکم دیا گیا تواس کے سینہ تک ایک گڑھا کھود کر لوگوں اسے سنگسار کرنے کا حکم دیا ۔

امام نووی رحمہ اللہ تعالی اس حدیث کے بارہ میں کہتے ہیں :

حاملہ عورت کو وضع حمل سے قبل سنگسار نہیں کیا جاۓ گا چاہے وہ حمل زنا کا ہو یا زنا کے بغیر ۔ اسی پر علماء کا اتفاق ہے تا کہ اس کا بچہ قتل نہ ہو ، اور اسی طرح اگر اس کی حد کوڑے ہيں تو حمل کی حالت میں بھی اسےبالاجماع وضع حمل سے قبل کوڑے نہیں لگاۓ جائيں گے ۔

دیکھیں صحیح مسلم شرح نووی ( 11 / 202 ) ۔

اس واقعہ سے ہمیں شریعت اسلامیہ کا بچے کے بارہ میں اہتمام ظاہر ہوتا ہے اگرچہ وہ بچہ زنا سے ہی کیوں نہ ہو ، جبکہ نبی صلی اللہ علیہ وسلم نے اس بچے کی حفاظت کے لیے اس کی ماں سے حد کو مؤخر کردیا تا کہ بچے کی زندگی کو خطرہ نہ پیدا ہو ۔

توکیا اس کے بعد بھی یہ تصور کیا جاسکتا ہے کہ شارع لوگوں کی خواہشات و شھوات اور غلط رغبات کو پورا کرنے کے لیے اسقاط حمل کے ساتھ بچوں کے قتل کو جائز قرار دے سکتا ہے ؟

اس پر ہم یہ اضافہ کرتے جائيں کہ جن لوگوں نے صحیح نکاح کی حالت میں ہونے والے حمل کے پہلے چالیس روز کے اندر اندر حمل کے اسقاط کی اجازت دی ہے انہوں نے مشروع رخصت کولیتے ہوۓ اس پر اجتھاد کیا ہے مثلا رمضان المبارک میں شر‏عی عذر والے کورخصت ہے کہ وہ روزہ نہ رکھے ، اوراسی طرح مسافر کے لیے رخصت ہے کہ وہ چار رکعتی نماز کوقصر کرے ۔

لیکن یہ بات تو شریعت میں مقرر شدہ ہے کہ معاصی اور گناہ کے لیے رخصتوں کا سہارا نہیں لیا جاسکتا ۔

امام قرافی رحمہ اللہ تعالی کا کہنا ہے :

معاصی اور گناہ رخصتوں کے لیے سبب نہيں بن سکتیں ، اسی لیے گناہ کرنے کے لیے جانے والا مسافر نماز قصر نہيں کرے گا اورنہ ہی وہ روزہ افطار کرے گا اس لیے کہ اس صورت میں سبب معصیت ہے لھذا رخصت پر عمل کرنا مناسب نہيں ۔

کیونکہ مکلف کواس کی رخصت دینا اس معصیت کی زیادتی اورتکثیر کا باعث بنے گی اوراس میں وسعت کی کوشش ہے ۔ الفروق ( 2 / 33 ) ۔

تواس طرح شریعت اسلامیہ کے قواعد زنا سے حاملہ عورت کو وہی رخصت نہيں دیتے جوکہ نکاح صحیح سے حاملہ عورت کوملتی ہیں تا کہ وہ اس معصیت اورگناہ پر معاون و ممد ثابت نہ ہو ، اورنہ ہی اس شنیع اور قبیح کام سےخلاصی حاصل کرنے کے راستے ہی آسان کرتی ہے ۔

اس حالت میں بچہ والدین کی ولایت بھی کھو بیٹھے گا اوراس کا کوئی ولی نہيں اس لیے کہ شریعت میں والد کا اطلاق اس پر ہوتا ہے جس کا عورت کے ساتھ صحیح اورشرعی نکاح ہونےکی بنا پر بچہ پیدا ہو اورنبی صلی اللہ علیہ وسلم کے فرمان کا بھی یہی معنی ہے :

فرمان نبوی صلی اللہ علیہ وسلم ہے :

( بچہ بستر والے کے لیے ہے اورزانی کے لیے پتھر ہیں ) صحیح بخاری و صحیح مسلم ۔

تواس حالت میں اس بچے کا ولی حکمران ہوگا کیونکہ جس کا کوئی ولی نہ ہو اس کا ولی حکمران ہوتا ہے ، اورحکمران کا تصرف مصلحت کے ساتھ منسلق ہے ، والدہ کی مصلحت کی حفاظت کی بنا پر بچے کی روح کوختم کرنے میں کوئی بھی مصلحت نہیں پائي جاتی ، اس لیے کہ اس میں اس قبیح اورشنیع فعل کرنے والی عورت کواس فعل کے کرنے پر ابھارنا ہے جوکہ صحیح نہیں ۔

اور زانی عورت جوکہ اس قبیح اور شنیع فعل کی مرتکب ہوئي ہے اس کا اسقاط حمل اس وقت کروانا ممکن ہے جب وہ صحیح اور سچی توبہ کرنے کا ارادہ کرے اور اسے بہت ہی شدید قسم کا خوف ہو جوکہ شریعیت اسلامیہ کا ایک بہت ہی سنہرا اصول اور قاعدہ ہے ۔

زنا اور لواطت

Share:

Translate

youtube

Recent Posts

Labels

Blog Archive

Please share these articles for Sadqa E Jaria
Jazak Allah Shukran

Most Readable

POPULAR POSTS