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Jab koi Shakhs Dua karta hai to Allah jarur Sunta hai?

Jab koi Shakhs Allah se hath utha kar Dua maangta hai to Allah uske Fariyad ko kaise Sunta hai?
بِسۡمِ اللّٰہِ الرَّحۡمٰنِ الرَّحِیۡمِ

اِلَّا مَنۡ خَطِفَ الۡخَطۡفَۃَ فَاَتۡبَعَہٗ شِہَابٌ  ثَاقِبٌ ﴿۱۰﴾

مگر جو کوئی شیطان اچانک اُچک لے تو ایک چمکتا ہوا شعلہ اُس کا پیچھا کرتا ہے۔
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मगर जो कोई शैतान अचानक उचक ले तो एक चमकता हुवा शोला उसका पीछा करता है.
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*Magar jo koi Shaitaan achanak Oochak le toh Ek Chamakta huwa Shola peecha karta hain.
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📙Surah AsSaffaat 10

فَاسۡتَفۡتِہِمۡ  اَہُمۡ اَشَدُّ خَلۡقًا اَمۡ مَّنۡ خَلَقۡنَا ؕ اِنَّا خَلَقۡنٰہُمۡ مِّنۡ طِیۡنٍ لَّازِبٍ ﴿۱۱﴾

اب ذرا  ان کافروں سے پوچھو کہ ان کی تخلیق زیادہ مشکل ہے یا ہماری پیدا کی ہوئی دوسری مخلوقات کی؟  ان کو تو ہم نے لیس دار گارے سے پیدا کیا ہے ۔
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आप ज़रा इन काफिरो से पूछो के इनकी तख़लीक़ ज़्यादा मुश्किल है या हमारी पैदा की हुवी दूसरी मख़लूक़ात की इनको तो हमने लेसदार गारे से पैदा किया हैं
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*Aap zara in kaafiro se pucho ke inki takhleeq zyada mushkil hain ya Hamari paida ki huwi Dusri  makhlooqat ki inko toh humne laisdar gaare se paida kiya hain*
*📘Surah AsSaffaat 11

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*✒Farmaan e Rasool (ﷺ)
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*SHAAFI E MEHESHAR MOHAMMAD E KARIM( ﷺ) Ne farmaya tumhara RAB bahut Ba Haya aur Karim hain jab iska Banda iske Saamne Dono Hath ko Uthata hain toh inhe Khaali Lautatey huwe usey apne Bande Se Sharm Aati hain.
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शाफी ए महशर मोहम्मद ए करीम (ﷺ) ने फ़रमाया तुम्हारा रब बहुत बा हया और करीम है जब इसका बंदा इसके सामने अपने दोनों हाथ उठाता हैं तो इन्हें खाली लौटाते हुवे उसे अपने बंदे से शर्म आती है.
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رسول اللہ  ﷺ  نے فرمایا   تمہارا رب بہت باحیاء اور کریم     ہے، جب اس کا بندہ اس کے سامنے اپنے دونوں ہاتھ اٹھاتا ہے تو انہیں خالی لوٹاتے ہوئے اسے اپنے بندے سے شرم آتی ہے.
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The Prophet mohammad e karim (ﷺ) said Your Lord is munificent and generous, and is ashamed to turn away empty the hands of His servant when he raises them to Him.
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📚Abu Dawood 📚 1488

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Kis Ungali Se Ishara kar ke Dua Mangna Chahiye?

Jab Logo ko Nasihat ki jati hai tab Wah kaise Jhootla Dete hai?
بَلۡ عَجِبۡتَ وَ  یَسۡخَرُوۡنَ ﴿۪۱۲﴾
اے پیغمبر  حقیقت تو یہ ہے کہ تم  ان کی باتوں پر  تعجب کرتے ہو ،  اور یہ ہنسی اڑاتے ہیں ۔
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*ए पैगम्बर हक़ीक़त तो ये है के तुम इनकी बातो पर ताज्जुब करते हो और ये हंसी उड़ाते है*
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*Aye Paigamber Haqiqat to yeh hain ke tum inki Bato'n par Tajjub karte ho aur yeh Hansi Udhate hain.
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*📙Surah AsSaffaat 12

وَ  اِذَا  ذُکِّرُوۡا لَا  یَذۡکُرُوۡنَ ﴿۪۱۳﴾

اور جب انہیں نصیحت کی جاتی ہے تو نصیحت مانتے نہیں ۔
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*और जब इन्हें नसीहत की जाती हैं तो नसीहत मानते नहीं*
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*Aur Jab Inhe Nasihat ki Jaati hain toh Nasihat Maante Nahi
*📘Surah AsSaffaat 13
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*✒Farmaan e Rasool (ﷺ)
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*Saad bin abi waqaas (rza)kahte hain ke*
*IMAAM UL AMBIA MOHAMMAD E ARBI (ﷺ) mere paas se Guzre main is waqt apni dono ungliyo se ishaara karte huwe Dua Maang raha tha Aap (ﷺ) ne farmaya Ek ungli se karo Ek ungli se karo aur Aap (ﷺ) ne shahadat ki ungli se ishaara kiya*
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*साद बिन आबि वकास (rza) कहते हैं के इमाम उल अम्बिया मोहम्मद ए करीम (ﷺ) मेरे पास से गुज़रे मैं इस वक़्त अपनी दोनों उंगलियो से इशारा करते हुवे दुआ मांग रहा था आप (ﷺ) ने फ़रमाया एक ऊँगली से करो एक ऊँगली से करो और आप (ﷺ) ने शहादत की ऊँगली से इशारा किया.
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سعد بن ابی وقاص (رض) کہتے ہیں کہ  نبی اکرم  ﷺ  میرے پاس سے گزرے، میں اس وقت اپنی دو انگلیوں سے اشارہ کرتے ہوئے دعا مانگ رہا تھا، آپ  ﷺ  نے فرمایا   ایک انگلی سے کرو، ایک انگلی سے کرو اور آپ نے شہادت کی انگلی سے اشارہ کیا۔   
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*Narrated Sad ibn AbuWaqqas (RA)  The Prophet mohammad (ﷺ) passed by me while I was supplicating by pointing with two fingers of mine. He said Point with one finger; point with one finger. He then himself pointed with the forefinger.
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Sunan Abu Dawood 1499

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Imam Menhdi ( امام مہدی ) Kab Aayenge? (Part 01 Hindi)

Imam Mehdi Kab aayenge aur Unka Nam kya Hoga?
ﺑِﺴْـــــــــــــﻢِﷲِﺍﻟﺮَّﺣْﻤَﻦِﺍلرَّﺣِﻴﻢ

*पोस्ट :-1 :->
️इमाम महदी (अलैहिस्सलाम)

أَعُوذُ بِاللَّهِ مِنَ الشَّيْطَانِ الرَّجِيم
        ‎بِسْمِ الْلّٰهِ الْرَّحْمٰنِ الرَّحِيْم
____________________________ 
السَّلاَمُ عَلَيْكُمْ وَرَحْمَةُاللهِ وَبَرَكَاتُهُ

*सब तारीफे अल्लाह तआला के लिए है, जो सारे जहान का इकलौता पालनेवाला है, हम उसी से मदद और हमारे उस कि माफी चाहते है, और अल्लाह की लातादाद रहमते और बरकते नाजिल हो हुज़ूर मुहम्मद-ए-अरबी (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) पर, आप की आल औलाद,और आप के सिहाबा इकराम पर।*

*आज मुस्लिम उम्मत हर जगह परेशान है और सब के दिल से दुआ यही निकलती है कि ईमाम महंदी (अलैहिस्सलाम) कब आएंगे और उनकी क्या पहचान होगी और वो कैसे इस दुनिया में इंसाफ करेगे इस बात को बहुत तहक़ीक़ करके हमने समझाने की कोशिश की है पोस्ट टुकड़ो में होगी ताकि इंशाअल्लाह आपको समझने में आसानी हो ।*

*जिस तरह हेडिंग से पता चलता है, ये मौजू  कुर्बे-कयामत कि निशानियो मै से एक निशानी इमाम महदी(अलैहिस्सलाम) के बारे में गुफ्तगु पर मुस्तम्मिल है, तो अल्लाह का नाम लेकर शुरू करते है।*

*इमाम महदी(अलैहिस्सलाम) कि आमद अलामते कयामत मै से एक है, अल्लाह के रसूल(सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) के कहे के मुताबिक कयामत से पहले जो बड़ी निशानियां  जाहिर होगी उन्हीं मै से एक इमाम  महदी(अलैहिस्सलाम) का जाहिर होना भी है। आप (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) ने कई दफा अलग-अलग तरीकों से इस बारे मै उम्मत को खबर दी है।*

*इमाम महदी(अलैहिस्सलाम) अपने वक़्त मै उम्मते मोहम्मदिया (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) की इस्लाह करेंगे। तजदीद अहयाए दीन करेंगे। जुल्म व नाइंसाफी से सिसकती दुनिया को अदल व इंसाफ़ से भर देंगे। जुल्म का खात्मा करेंगे और दीन को कायम करेंगे। आप ही के जमाने में दज्जाल निकलेगा और आसमान से ईसा (अलैहिस्सलाम) का नुजूल होगा, इमाम महदी के बारे में अहले सुन्नत वल जमात का अकीदा है , कि वो आखरी जमाने में पैदा होंगे। यह नहीं कि वह पैदा हो चुका है, मौजूद है ,और कहीं किसी गार में है, या गायब है। और यह कि वह खुद महदी होने का दावा नहीं करेंगे, बल्कि अल्लाह की मदद से दावत व जिहाद का फरिजा ऐसी हिकमत से अंजाम देंगे, कि उन्हें कामयाबी नसीब होगी।*
*मुसलमानों को इमाम महदी(अलैहिस्सलाम) ही की जिंदगी में यकीन हो जाएगा कि वो महदी है ।*

*इमाम महदी का नाम-व-नसब---*

*अब्दुल्लाह इब्न मस‌ऊद रजि. कहते है, कि अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम) ने फरमाया "अगर दुनिया का एक दिन भी बाकी होगा तो अल्लाह उस दिन को इतना बड़ा कर देगा कि उसमें एक ऐसे शख्स को भेजेगा जो मुझसे होगा यानी मेरे अहले बेएत से होगा। उस का नाम मेरे नाम सा (मुहम्मद) और उसके वालिद का नाम मेरे वालिद के नाम (अब्दुल्लाह) के मुताबिक होगा।"*
*(Sunan Abu Dawood Hadees No. 4282)*
*(Jamia-At-Tirmizi Hadees No. 2230)*

*इमाम महदी (अलैहिस्सलाम) के बारे मै अहादिसे मुबारक---*
*इस बारे मै रसूल (सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम) से दो तरह की अहादीस मिलती है---*
*1.जिन में महदी का ज़िक्र साफ-साफ मौजूद है।*
*2.जिनमें महदी कि सिर्फ सिफात बयान हुईं है।*

*यूं तो महदी के बारे मै, 50 अहादीस मर्वी है, उनमें से कुछ सही, कुछ हसन, और कुछ ज़ईफ़ है। इस बारे मै, आसारे सहाबा रजी. की तादाद 28 है।उनमें से कुछ मुलाहिजा फरमाए---*
*1.अली रजी. का बयान है, कि रसूल (सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम) ने फरमाया "महदी हममें से होगा, अल्लाह तआला एक ही रात मै उसकी इसलाह कर देगा"।*
*(Sunan-Ibn-Majah Hadees No.4085)*

*2.उम्मल मो'मिनीन उम्मे सलमा रजि. कहती है, कि मैने रसूल (सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम) को फरमाते हुए सुना कि "महदी मेरी नसल से, फातिमा की औलाद मै से होगा"।*
*(Sunan Abu Dawood Hadees No.4284)*

3. अबू हुरैरा रजी. ने बयान किया है, कि रसूलुल्लह (सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम) ने फरमाया "तुम्हारा उस वक्त क्या हाल होगा जब ईशा इब्ने मरियम तुम में उतरेंगे और तुम्हारा इमाम तुम ही में से होगा"।*
*(Sahih Al-Bukhari Hadees No.3449)
*(Sahin Muslim Hadees No.392)

आगे की पोस्ट में और पढेंगे इंशाअल्लाह :-
पोस्ट जारी है---->

अल-फुरकान दावा सेंटर सादुलपुर

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  ilm ( Education) ko Chupane Wala Shakhs
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Hadees : Hazrat Abu Hurairah Radi allahu anhu se rivayat hai ki Rasoolullah ﷺ ne farmaya jis shakhs ke paas koi ilm mehfuz ho aur wo usey chupaye to qayamat ke din usey dozakh ki aag ki lagam daal kar laya jayega.
📔 (Ibne Maaja, 261)

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मै कौन हूं? एक सत्य सनातन धर्म का मानने वाला। (Part 30)

Kalki Avatar Kab aur Kaha Aayenge?
Allah ke nabi Mohammad Sallahu Alaihe Wasallam Vedo ki Raushani me.
Vedo me Mohammad ﷺ  ka Zikr.
बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम
*अस्सलामुअलैकुम वरह् मतुल्लाही वबरकातुहु*
*पार्ट:- 30
       मैं कौन हूँ:-एक सत्य सनातन धर्म*
      इस्लाम
कल्कि का अवतार - स्थान
  *कल्कि के अवतार का स्थान शम्भल ग्राम में होने का उल्लेख कल्कि एवं भागवत पुराण में किया गया है । यहाँ यह निश्चय करना आवश्यक है कि शम्भल ग्राम का नाम है या किसी ग्राम का विशेषण।*
 
     *डा. वेद प्रकाश उपाध्याय के मतानुसार शम्भल किसी ग्राम का नाम नहीं हो सकता, क्योंकि यदि केवल किसी ग्राम विशेष को शम्भल नाम दिया गया होता तो उसकी स्थिति भी बताई गई होती।*
 
      *भारत में खोजने पर यदि कोई शम्भल नामक ग्राम मिलता है तो वहाँ आज से लगभग चौदह सौ वर्ष पूर्व कोई पुरुष ऐसा पैदा नहीं हुआ जो लोगों का उद्धारक हो।*
 
    फिर अंतिम अवतार कोई खेल तो नहीं है कि अवतार हो जाए और समाज में जरा सा परिवर्तन भी न हो, अत: शम्भल शब्द को विशेषण मानकर उसकी व्युत्पत्ति पर विचार करना आवश्यक है।

*1. शम्भल शब्द शम् (शांत करना) धातु से बना है अर्थात, जिस स्थान में शांति मिले।*

*2. सम् उपसर्गपूर्वक वृ धातु में अप् प्रत्यय के संयोग से निष्पन्न शब्द संवर हुआ।*

*वबयोरभेदः और रलयोरभेद: के सिद्धांत से शम्भल शब्द की निष्पत्ति हुई, जिसका अर्थ हुआ जो अपनी ओर लोगों को खींचता है या जिसके द्वारा किसी को चुना जाता है।*

*3. शम्वर शब्द का निघण्टु (1/12/88) में उदकनामों का पाठ है। रे और ल में अभेद होने के कारण शम्भल का अर्थ होगा जल का समीपवर्ती स्थान,(कल्कि अवतार और मुहम्मद साहब, पृष्ठ : 30)*

   *इस प्रकार वह स्थान जिसके आस-पास जल हो और जो स्थान अत्यंत आकर्षक एवं शांतिदायक हो, वही शम्भल होगा। अवतार की भूमि पवित्र होती है।*

    *शम्भल का शाब्दिक अर्थ है-शांति का स्थान।*
*मक्का को अरबी में दारुल अमन भी कहा जाता है, जिसका अर्थ शांति का घर होता है। मक्का मुहम्मद साहब का कार्यस्थल रहा है।*

*नोट:-अगर आप में से किसी भी भाई या बहन को हिंदी में कुरान चाहिए तो प्लीज अपने लिए एक निशुल्क प्रति प्राप्त करे*
*9530233633 पर सम्पर्क करें*
*इस स्टेटस को आगे शेयर करे*

*HMARI DUAA*⬇️⬇️⬇️

*THE WAY OF JANNAH INSTITUTE  को सपोर्ट करने ओर हमारे साथ ग्रुप में जुड़े रहने के लिये अल्लाह आपको जज़ाये खैर दे आमीन।

Note: Yah Message Copy/paste kiya hua hai mager isme kisi qism ki koi tabdeeli nahi ki gayi hai yah Tahreer The way of Jannah Institute ke whatsapp Gurupe se liya gya hai, Isme Aashiyana-E-Haqeeqat ka koi ahem kiradar nahi hai sirf Yaha Publish kiya gya hai.

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Namaj E Nabwi Sunnat Ki Raushni Me ! Namaj Padhne Ka Sahih Tariqa

Namaj E Nabwi Sunnat Ki Raushi Me, Namaj Padhne Ka Sunnat Tariqa, Namaj Ka Byan Urdu Post

Namaj E Nabwi Sunnat Ki Raushi Me, Namaj Padhne Ka Sunnat Tariqa, Namaj Ka Byan Urdu Post

نماز نبوی ﷺ بادلائل سنت ِنبوی ﷺ کی روشنی میں

1.    باب اوّل
احکامِ وضو وتیمم

وضو کا مختصر طریقہ
وضو کا مفصل طریقہ
موزوں اور جرابوں پر مسح
تیمم
وضو کے چند دیگر مسائل

1. مختصر طریقہ وضو
o        وضو کی ا بتدا بسم اللہ سے کریں۔
o        دونوںہاتھوں کو دھوئیں۔
o        ہاتھوں کی انگلیوں میں خلال کریں۔
o        دائیں ہاتھ سے ایک چلو پانی لے کر کلی کریں اور ناک میں پانی چڑھا کر جھاڑیں، ناک کو بائیں ہاتھ سے جھاڑا جائے۔
o        اُوک بھر پانی لے کر منہ دھوئیں۔
o        ٹھوڑی کے نیچے سے پانی داخل کر کے داڑھی میں خلال کریں۔
o        دونوں ہاتھوں کو کہنیوں تک دھوئیں۔
o        دونوں ہاتھوں کو ملا کر سر کا مسح کریں اگر پگڑی سر پر ہے تو پگڑی کے اوپر سے مسح کیا جا سکتا ہے۔
o        دونوں پاؤں دھوئیں دائیں پاؤں سے ابتدا کریں اور پاؤں کی انگلیوں کا چھنگلی کے ساتھ خلال کریں۔
o        اگر پاؤں پر جراب یا موزہ ہو تو اس پر مسح کیا جا سکتا ہے۔
o        مسح سر کے سوا اعضا کو زیادہ سے زیادہ تین اور کم از کم ایک مرتبہ دھونا سنت ہے۔
o        آخر میں سامنے سے کپڑا اٹھا کر شرمگاہ پر چھینٹے ماریں اور مسنون دعا پڑھیں۔
2. مفصل طریقہ وضو

نیند سے بیداری پر
نیند سے بیداری پر برتن میں ہاتھ ڈالنے سے پہلے ہاتھ دھو لیں۔ آپ نے اس کا حکم دیا ہے۔
دلیل: ابوہریرہ روایت کرتے ہیں کہ رسول اللہﷺ نے فرمایا:
((إذا استیقظ أحدکم من نومہ فلیغسل یدہ قبل أن یدخلہا فی وضوئہ فإن أحدکم لا یدری أین باتت یدہ)) (صحیح بخاری:۱۶۲)
’’جب تم میں سے کوئی نیند سے جاگے تو پانی کے برتن میں ہاتھ ڈالنے سے پہلے دھولے، کیونکہ اسے علم نہیں کہ اس کے ہاتھ نے رات کہاں بسر کی۔‘‘
انہی سے روایت ہے کہ نبی نے فرمایا:
إذا استیقظ أحدکم من منامہ فلیستنثر ثلاث مرات فإن الشیطان یبیت علی خیاشیمہ (صحیح مسلم:۵۶۴)
’’جب تم میں سے کوئی شخص اپنی نیند سے بیدار ہو تو تین دفعہ ناک میں پانی چڑھا کر جھاڑ لے بے شک شیطان ناک کی جڑوں میں رات گزارتا ہے۔‘‘
1. ترتیب ِوضو

وضو کے شروع میں بسم اﷲ کہنا ضروری ہے ،کیونکہ نبی نے اس کا حکم دیا ہے ۔
دلیل: آپ نے فرمایا: (( توضؤوا باسم اﷲ)) (صحیح نسائی:۷۶)
’’وضو (کی ابتدا) بسم اللہ کے ساتھ کرو۔ ‘‘
اور آپ (ﷺ) نے فرمایا: لاصلوٰۃ لمن لا وضوء لہ ولا وضوء لمن لم یذکر اسم اﷲ تعالیٰ علیہ (صحیح ابوداود:۹)
’’جس کا وضو نہیں اس کی نما زنہیں اور جس نے اللہ کا نام نہ لیا، اس کا وضو نہیں۔‘‘
شاکر, کلیم حیدر, انس نضر اور 1 دوسرے احباب نے اس پوسٹ کو پسند کیا ہے۔
1. دونوں ہاتھوں کا دھونا

دونوں ہاتھ پہنچوں تک تین دفعہ دھوئیں۔
دلیل: مولی عثمان، عثمان کے مسنون وضو کا طریقہ یوں بیان کرتے ہیں :
’’فأ فرغ علی کفیہ ثلاث مرار فغسلہما‘‘ (صحیح بخاری:۱۵۹)
’’اُنہوں نے تین دفعہ اپنے ہاتھوں پرپانی ڈالا اور ان کو دھویا۔‘‘
1. انگلیوں میں خلال

ہاتھ دھوتے ہوئے انگلیوں کا خلال کرنا چاہئے۔
دلیل: نبی کریم ﷺنے فرمایا:
أسبغ الوضوء وخلل بین الأصابع (صحیح ابوداود:۱۲۹)
’’وضو پورا کرو، انگلیوں کے درمیان خلال کیا کرو۔‘‘
1. کلی کرنا اور ناک جھاڑنا

(دائیں ہاتھ کے) ایک ہی چلو سے کلی اور ناک میں پانی چڑھائیں(جھاڑیں) اور یہ عمل تین مرتبہ کریں۔
دلیل: عبداللہ بن زید نے رسول اللہﷺ کے وضو کا طریقہ بتلانے کے لئے پانی منگوایا تین مرتبہ اپنے ہاتھ دھوئے پھر برتن میں اپنا ہاتھ ڈالا
’’فمضمض واستنثر ثلاث مرات من غرفۃ واحدۃ‘‘(صحیح بخاری:۱۹۹)
’’پھر تین مرتبہ ایک ہی چلو سے کلُی اور ناک (میں پانی چڑھاکر) جھاڑا۔‘‘
ناک کس ہاتھ سے جھاڑا جائے

ناک بائیں ہاتھ سے جھاڑا جائے جیسا کہ علی نے نبی کے وضو کا طریقہ بتلانے کے لئے پانی منگوایا
’’فتمضمض واستنشق ونثر بیدہ الیسریٰ،ففعل ھذا ثلاثا ثم قال: ھذا طھور نبي اﷲﷺ‘‘ (صحیح نسائی:۸۹)
’’پھرکلی کی اور ناک میں پانی چڑھایا اور بائیں ہاتھ سے ناک کو جھاڑا یہ عمل تین مرتبہ کیا
منہ کا دھونا

اس کے بعد تین مرتبہ اُوک بھر پانی لے کر اپنے منہ کو دھویا جائے۔
دلیل: عبداللہ بن زید نے نبی کے وضو کا طریقہ بتلاتے ہوئے یہ عمل بھی کیا کہ’’غسل وجھہ ثلاثا‘‘ (صحیح بخاری:۱۸۵) ’’تین دفعہ اپنا چہرہ دھویا۔‘‘
چہرہ میں کان شامل نہیں، کیونکہ اس کے لئے مسح کا الگ عمل موجود ہے جو آگے ذکر کیا جائے گا۔
داڑھی کا خلال

منہ دھونے کے بعد چلو میں پانی لے کر اسے ٹھوڑی کے نیچے سے داڑھی میں داخل کریں اور داڑھی کا اپنی انگلیوں سے خلال کریں۔
دلیل: انس بن مالک سے روایت ہے کہ
أن رسول اﷲ کان إذا توضأ أخذ کفا من مائٍ فأدخلہ تحت حنکہ فخلل بہ لحیتہ وقال: ((ھکذا أمرنی ربی عزوجل)) (صحیح ابوداود:۱۳۲)
’’اللہ کے رسول جب چہرہ دھو لیتے تو چلو میں پانی لیتے اور ٹھوڑی کے نیچے سے پانی کو داخل کرتے داڑھی کا خلال کرتے اور آپ نے فرمایا: میرے رب عزوجل نے مجھے اس امر کا حکم دیا ہے۔
1. کہنیوں تک دونوں ہاتھوں کا دھونا

داڑھی کے خلال کے بعد کہنیوں تک دونوں ہاتھوں کو دھوئیں پہلے دایاں ہاتھ تین مرتبہ دھوئیں پھر بایاں ہاتھ تین مرتبہ دھوئیں۔
دلیل: عثمان کا مسنون وضو کرکے دکھانا جس میں یہ عمل بھی ہے کہ
’’ثم غسل یدہ الیمنی إلی المرفق ثلاثا،ثم غسل یدہ الیسری إلی المرفق ثلاثا‘‘ (صحیح بخاری:۱۹۳۴)
’’پھر انہوں نے اپنا دایاں ہاتھ کہنی تک تین مرتبہ دھویا، پھر بایاں ہاتھ کہنی تک تین مرتبہ دھویا۔‘‘
1. سر کا مسح

دونوں بازو دھونے کے بعد دونوں ہاتھوں کو تر کرکے سرکا مسح کریں اور سر کا مسح دو حالتوں میں ہوتا ہے:
1.    ننگے سر پر
2.    ڈھانپے ہوئے سر پر
2. ننگے سر پر


اگر سر ننگا ہو تو دونوں ہاتھوں کو سر کی پیشانی کے بالوں سے شروع کرکے مسح کرتے ہوئے گدی تک لے جائیں پھر اسی طرح ہاتھوں کو واپس جہاں سے شروع کیا تھا وہیں لے آئیں۔
دلیل: عبداللہ بن زید نے نبی کے وضو کا طریقہ سکھلاتے ہوئے مسح کا طریقہ عملی طور پر یوں بیان کیا:
’’ثم مسح راسہ بیدیہ فأقبل بھما وأدبر،بدأ بمقدم راسہ حتی ذھب بھما إلی قفاہ، ثم ردھما إلی المکان الذی بدأ منہ‘‘
’’پھر آپ نے اپنے دونوں ہاتھوں سے سر کا مسح کیا پس ان دونوں ہاتھوں کوآگے سے پیچھے اور پیچھے سے آگے لے کر گئے سر کے آگے سے شروع کیا یہاںتک کہ ہاتھوں کو گدی تک لے گئے پھر ان دونوں ہاتھوں کو جہاں سے شروع کیا تھا اسی جگہ واپس لے آئے۔‘‘ (صحیح بخاری:۱۸۵)
1. ڈھانپے ہوئے سر پر

اگر سر پر پگڑی وغیرہ ہو تو اس کے مسح کی دو صورتیں ہیں :
پگڑی کے اوپر سے اس طرح مسح کرلیا جائے جس طرح ننگے سرپرکیا جاتا ہے۔
دلیل: عمرو بن امیہ فرماتے ہیں:
’’رأیت النبي یمسح علی عمامتہ وخفیہ‘‘ (صحیح بخاری:۲۰۵)
’’میں نے نبی کو اپنی پگڑی اور موزوں پر مسح کرتے دیکھا۔‘‘
پگڑی پرمسح اس طرح بھی سنت ہے کہ پیشانی کے بالوں پرمسح کرتے ہوئے باقی مسح پگڑی کے اوپر سے کرلیا جائے۔
دلیل: مغیرہ بن شعبہ نبی کا عمل بیان کرتے ہیں کہ’’أن نبی اﷲ مسح علی الخفین ومقدم راسہ وعلی عمامتہ‘‘ (صحیح مسلم:۲۷۴)
’’بے شک نبی نے دونوں موزوں پر مسح کیا اور اپنے سر کے اگلے حصے (پیشانی کے بالوں) پر اور اپنی پگڑی پر مسح کیا۔‘‘
اسی طرح اگر زخم وغیرہ پر پٹی بندھی ہوئی ہو تو اس پر مسح کیاجاسکتا ہے۔ صحابہ کرام کا اس پر عمل تھا۔
دلیل: عبداللہ بن عمر فرماتے ہیں:
’’من کان لہ جرح معصوب علیہ توضأ ومسح علی العصائب ویغسل ماحول العصائب‘‘ (بیہقی:۱؍۲۲۸)
’’اگر زخم پر پٹی بندی ہوئی ہو تو وضو کرتے وقت پٹی پر مسح کرکے ارد گرد کو دھولے۔‘‘
1. کانوں کا مسح

سر کے مسح کے بعد کانوں کے مسح کے لیے شہادت کی دونوں انگلیاں دونوں کانوں کے سوراخوں میں پھیر کر کانوں کی پشت پر انگوٹھوں کے ساتھ مسح کریں۔
دلیل: ابن عباس فرماتے ہیں کہ
أن رسول اﷲ مسح أذنیہ داخلھما بالسبابتین وخالف إبھامیہ إلی ظاھر أذنیہ فمسح ظاھرھما وباطنھما (صحیح ابن ما جہ:۳۵۳)
’’بے شک رسول اللہ(ﷺ) نے شہادت کی دونوں انگلیوں کو کانوں میں داخل کرکے انگوٹھوں کو کانوں کی پشت پر رکھتے ہوئے کانوں کے اندر اور باہر (انگلیوں اور انگوٹھوں کی ایسی حالت) سے مسح کیا۔‘‘
کانوں کے مسح کے لئے نیا پانی لینے کی ضرورت نہیں۔
1. دونوں پاؤں کو دھونا

مذکورہ بالا اعمال کے بعد تین تین دفعہ بالترتیب دائیں اور بائیں پاؤں کو ٹخنوں تک دھوئیں۔
دلیل: عثمان سے مسنون عمل یوں مذکور ہے:
ثم غسل رجلہ الیمنی ثلاثا، ثم الیسری ثلاثا (صحیح بخاری: ۱۹۳۴)
’’پھر آپ نے اپنا دایاں پاؤں تین مرتبہ دھویا اور اس کے بعد بایاں پاؤں تین مرتبہ دھویا۔‘‘
1. پاؤں کی انگلیوں کاخلال

پاؤں کو دھوتے ہوئے چھنگلی سے انگلیوں کا خلال کیا جائے۔
دلیل: مستورد بن شداد فرماتے ہیں کہ میں رسول اللہﷺکو دیکھا کہ
’’إذا توضأ یدلک أصابع رجلیہ بخنصرہ‘‘ (صحیح ابوداود:۱۳۴)
’’جب آپ وضو کرتے تو اپنے(دائیں) ہاتھ کی چھنگلی سے اپنے پاؤں کی انگلیوں کا خلال کرتے۔‘‘
1. موزوں اور جرابوں پر مسح

اگر پاؤں پر موزے یاجرابیں پہنی ہوں تو ان پر مسح کرنا کافی ہے، لیکن شرط یہ ہے کہ موزے وغیرہ وضو کرکے پہنے گئے ہوں۔ (صحیح بخاری ۲۰۶) یعنی ایک دفعہ وضو کرکے موزے پہننے سے باربار مسح کیا جاسکتا ہے جب تک کوئی ایسا امر واقع نہ ہو جس سے غسل واجب ہو مثلا ً مباشرت ، احتلام، حیض اور نفاس کی حالت۔
مسح کی مدت

موزوں اور جرابوں پر مسح کی مدت مقیم کے لئے ایک دن اور ایک رات اور مسافر کے لئے تین دن اور تین راتیں ہے۔
دلیل: شریح بن ہانی نے عائشہ کی ترغیب پر علی سے موزوں پر مسح کرنے کی مدت کے متعلق پوچھا تو علی نے فرمایا:
جعل رسول اﷲ ثلاثۃ أیام ولیالیھن للمسافر ویوما ولیلۃ للمقیم (صحیح مسلم:۲۷۶)
’’نبی نے تین دن اور تین راتیں مسافر کے لئے، ایک دن اور ایک رات مقیم کے لئے (مسح کی مدت مقرر کی)
مسح کی مدت مسح کرنے سے ہی شروع ہوجاتی ہے، یعنی اگر ظہر کی نماز کے وقت آپ نے مسح کیا تو دوسرے دن ظہر کی نماز تک یہ مسح برقرار رہا اب ظہر کی نماز موزے اتار کر وضو کرکے پڑھی جائے گی اسی پر تین دن اور تین راتوں کو قیاس کریں۔

موزے اور جراب میں فرق

موزہ نرم چمڑے کی اس تھیلی کو کہتے ہیں جو سردی سے بچنے کے لئے پاؤں پر چڑھائی جاتی ہے۔ عربی میں اسے خف کہتے ہیں جس طرح عمرو سے روایت ہے کہ ’’
رأیت النبی یمسح علی عمامتہ وخفیہ‘‘ (صحیح بخاری:۲۰۵)
’’میں نے نبی کو دیکھا کہ آپ نے (وضو میں) اپنی پگڑی اور موزوں پر مسح کیا۔‘‘
اس طرح جراب عربی لغت میں ہر اس چیز کو کہتے ہیں جو پاؤں میں پہنی جائے چمڑے سے بنی ہو تو موزا اور اگر سوت وغیرہ سے بنی ہو تو اردو میں جراب کہہ دیتے ہیں۔ جراب پر مسح کے متعلق مغیرہ بن شعبہ سے روایت ہے کہ
’’أن رسول اﷲ توضأ ومسح علی الجوربین والنعلین‘‘ (صحیح ابوداود:۱۴۳)
’’رسول اللہﷺ نے وضو فرمایااور اپنے دونوں جرابوں اور جوتوں پر مسح کیا۔‘‘
اس روایت سے معلوم ہوا کہ جوتوں پر بھی مسح ہوسکتا ہے، لیکن اس کے لئے بھی شرط ہے کہ پہلے وضو کرکے پہنے ہوں۔
1. اعضا کو کتنی مرتبہ دھویاجائے

وضو کرتے ہوئے اعضا کو ایک ایک، دو دو اور تین تین مرتبہ دھونا سنت سے ثابت ہے لہٰذا مذکورہ تعداد میں سے کوئی بھی اختیار کی جاسکتی ہے۔
ایک، ایک مرتبہ کے لئے

دلیل: عن ابن عباس قال: ’’توضأ النبي مرۃ مرۃ‘‘ (صحیح بخاری:۱۵۷)
’’ عباس فرماتے ہیں کہ نبی نے وضو میں ایک ایک بار اعضا دھوئے۔‘‘

دو دو مرتبہ

دلیل: عن عبد اﷲ بن زید أن النبيﷺ توضأ مرتین مرتین
’’عبداللہ بن زید فرماتے ہیں کہ نبی نے وضو میں دو دو مرتبہ اپنے اعضا دھوئے۔‘‘(صحیح بخاری:۱۵۸)
تین تین مرتبہ

دلیل: حمران نے عثمان کا مسنون وضو یوں بیان کیا ہے کہ آپ نے وضو کے لئے پانی منگوایا
’’فأفرغ علی کفیہ ثلاث مرار فغسلھما، ثم أدخل یمینہ فی الإناء فمضمض واستنثر ثم غسل وجھہ ثلاثا ویدیہ إلی المرفقین ثلاث مرار،ثم مسح براسہ ثم غسل رجلیہ ثلاث مرار إلی الکعبین‘‘ (صحیح بخاری:۱۵۹)
’’پھر آپ نے اپنے دونوں ہاتھوں کو تین مرتبہ دھویا، پھر دایاں ہاتھ برتن میں ڈالا اور کلُی کی اور ناک میں پانی ڈالا اس طرح منہ کو تین مرتبہ دھویا اور اپنے دونوں ہاتھوں کو کہنیوں تک تین مرتبہ دھویا پھر سر کا مسح کیا اور پھر اپنے دونوں پاؤں کو ٹخنوں تک تین مرتبہ دھویا۔‘‘
1. شرمگاہ پر چھینٹے مارنا

وضو تو مکمل ہوچکا ۔اب مذکورہ بالا اعمال کے بعد شرم گاہ پر پانی کے چھینٹے مارنا سنت ہے۔
دلیل: حکم فرماتے ہیں کہ
’’أنہ رأی رسول اﷲ !توضأ ثم أخذ کفا من مائٍ فنضح بہ فرجہ‘‘ (صحیح ابن ماجہ:۳۷۴)
’’انہوں نے رسول اللہﷺ کودیکھا کہ آپ نے وضو کیا پھر چلو میں پانی لیا اور اپنی شرمگاہ پر چھینٹ دیا۔‘‘
دوسری روایت میں ہے کہ رسول اللہﷺ فرماتے ہیں:
((علمني جبرائیل الوضوئ،وأمرنی أن أنضح تحت ثوبي))(ایضاً:۳۷۵)
’’جبرائیل نے مجھے وضو کا طریقہ سکھلایا اور مجھے حکم کیا کہ میں اپنے کپڑے کے نیچے چھینٹے ماروں۔‘‘
وضو کی تکمیل پر دعا

آپ نے فرمایا:جوشخص وضو کرنے کے بعد یہ دعا: (( أَشْہَدُ أنْ لَّا إلہ إلَّا اﷲُ وَأَنَّ مُحَمَّدًا عَبْدُہٗ وَرَسُوْلُہٗ،[اَللّٰہُمَّ اجْعَلْنِیْ مِنَ التَّوَّابِیْنَ وَاجْعَلْنِیْ مِنَ الْمُتَطَہِّرِیْنَ])) (صحیح مسلم:۲۳۴،صحیح ترمذی:۴۸)
’’ میں گواہی دیتا ہوں کہ اللہ کے سوا کوئی معبود برحق نہیں ا ور بے شک محمد اس کے بندے اور رسول ہیں۔اے اللہ! مجھے ان لوگوں میں شامل کر جو توبہ کرتے رہتے ہیں اور جو ہر وقت پاک صاف رہتے ہیں۔‘‘
پڑھ لیتا ہے تو اس کے لیے جنت کے آٹھوں دروازے کھول دیے جاتے ہیں جس میں سے چاہے وہ داخل ہو۔
وضو کے بعدمذکورہ دعا انگشت ِشہادت بلند کرکے آسمان کی طرف دیکھ کرپڑھنا صحیح حدیث سے ثابت نہیں ہے۔
نواقض وضو

چند ایسے اعمال ہیں جن کے صدور سے وضو ٹوٹ جاتاہے:

پیشاب و پاخانہ کرنے سے وضو ٹوٹ جاتا ہے۔ (المائدۃ:۶)
ریح وغیرہ کے خارج ہونے سے۔ (صحیح بخاری:۱۳۷)
(چت لیٹ کر) سونے سے۔ (صحیح ابوداود:۱۸۸)
شرم گاہ کو چھونے سے ۔ (صحیح ابوداود:۱۶۶)
اونٹ کا گوشت کھانے سے۔ (مسلم:۳۶۰)


اور مندرجہ ذیل اُمور جن سے وضو نہیں ٹوٹتا :

جسم سے خون نکلنے سے۔
نکسیر و قے آجانے سے۔
بغیر ٹیک لگائے سونے سے۔
تیمم


تیمم غسل جنابت یا وضو کا قائم مقام ہے اور یہ پانی نہ ملنے کی صورت میں طہارت حاصل کرنے کے لئے پاک مٹی سے کیا جاتا ہے۔ اس کے علاوہ تیمم شدید عذر اور ایسی بیماری کی حالت میں بھی کیا جاسکتا ہے کہ جس میں جان جانے کا خطرہ ہو۔ جیساکہ اللہ تعالیٰ قرآن میں فرماتا ہے:
}وَإنْ کُنْتُمْ مَرْضٰی أوْ عَلیٰ سَفَرٍ أوْ جَآئَ أَحَدٌ مِّنْکُمْ مِّنَ الْغَآئِطِ أَوْ لـمَسْتُمُ النِّسَآئَ فَلَمْ تَجِدُوْا مَآئً فَتَیَمَّمُوْا صَعِیْدًا طَیِّبًا فَامْسَحُوْا بِوُجُوْھِکُمْ {
’’اگر تم مریض یاسفر پر ہو یاتم قضائے حاجت سے فارغ ہوئے ہو یا تم عورتوں سے مل چکے ہو پھر تمہیں پانی میسر نہ آئے تو پاک مٹی سے تیمم کرو، پس اپنے چہروں اور ہاتھوں کامسح کرو۔‘‘ (النساء:۴۳، المائدۃ:۶(
قرآن کی مذکورہ بالا آیت کی روشنی میں درج شدہ عوارض یا ان جیسے معاملات میں تیمم کیا جاسکتا ہے۔
طریقہ تیمم

اس کے دو طریقے نبی ﷺسے منقول ہیں:
روایت ہے کہ
’’وضرب النبي! بکفیہ الأرض ونفخ فیھما،ثم مسح بھما وجھہ وکفیہ‘‘ (صحیح بخاری :۳۳۸)
’’اور آپ نے اپنے دونوں ہاتھوں کو زمین پر مارا اور ان دونوں پر پھونکا پھر اپنے چہرے اور اپنے دونوں ہاتھوں (کی پشت) پرپھیرے۔ ‘‘
دوسراطریقہ آپ سے یوں منقول ہے کہ
’’فضرب بکفہ ضربۃ علی الارض ثم نفضھا ثم مسح بھا ظھر کفہ بشمالہ، أو ظھر شمالہ بکفہ، ثم مسح بھا وجھہ‘‘ (صحیح بخاری:۳۴۷)
’’آپ نے اپنا ہاتھ زمین پر مارا پھر اس کو جھاڑ دیا پھر بائیں ہاتھ کو دائیں ہاتھ کی پشت پر پھیرا اور دائیں کو بائیں ہاتھ پر پھیرا پھر ان سے اپنے چہرے پر مسح کیا۔‘‘
تیمم کن چیزوں اور کتنی مدت تک ہوتا ہے؟

تیمم کے لئے پاک مٹی کا ہونا ضروری ہے۔آپ(ﷺ) نے فرمایا:
الصعید الطیب وضوء المسلم ولو إلی عشر سنین
’’پاک مٹی مسلمانوں کا وضو ہے اگرچہ دس برس پانی نہ پائے۔‘‘(صحیح ابو داود:۳۲۱)
اس کے علاوہ مٹی کے نہ ہونے کی صورت میں اس کی مختلف اقسام مثلاً کلرشدہ مٹی، پتھراور ریت وغیرہ سے بھی تیمم کیا جاسکتا ہے۔
تیمم چونکہ پانی نہ ہونے کی وجہ سے یا پھر کسی انتہائی عذر کی وجہ سے کیا جاتا ہے لہٰذا پانی وغیرہ کی موجودگی یا عذر دو رہوجانے کی وجہ سے تیمم ختم ہوجاتا ہے وگرنہ ایسا کوئی عارضہ لاحق نہ ہونے کی وجہ سے کہ جس سے وضو ٹوٹ جاتا ہو تیمم کی مدت وضو کی طرح ہی ہے۔
1. وضو کے چند دیگر مسائل

شک کا وضو
صرف شک کی بنا پر دوبارہ وضو ضروری نہیں ہے۔
ابوہریرہ (رضی اللہ عنہ )سے روایت ہے کہ آپ (ﷺ)نے فرمایا:
إذا وجد أحدکم فی بطنہ شیئا فأشکل علیہ أخرج منہ شئ أم لا فلا یخرجن من المسجد حتی یسمع صوتا أویجد ریحا
’’جب تم میں سے کوئی اپنے پیٹ میں گڑبڑ محسوس کرے اور فیصلہ نہ کرپارہا ہو کہ ریح خارج ہوئی ہے یا نہیں تو وہ تب تک مسجد سے نہ نکلے جب تک اس کی آواز نہ سن لے یا بومحسوس نہ کرلے۔‘‘ (صحیح مسلم:۳۶۲)
عورت کے ساتھ بوس وکنار سے وضو
عورت کا مجردبوسہ وغیرہ لینے سے وضو نہیں ٹوٹتا جب تک مذی کا اخراج نہ ہو۔
عائشہ فرماتی ہیں:
أن النبی! قبّل بعض نسائہ ثم خرج إلی الصلاۃ ولم یتوضأ (صحیح ترمذی:۷۵)
’’نبی نے اپنی بیویوں میں سے کسی کا بوسہ لیا پھرنماز کے لئے چلے گئے اور وضو نہیں کیا۔‘‘
ناخن پالش اور وضو
ناخن پالش اگر لگی ہوئی ہو تو وضو نہیں ہوتا،کیونکہ وضو کے پانی کا وضو کے اعضا تک پہنچنا ضروری ہے جبکہ نیل پالش کی تہ موٹی اور واٹر پروف ہوتی ہے اس لئے نہ تو پانی کا اندر جانے کا امکان ہوتا ہے اور نہ ہی جذب ہونے کا، لہٰذا عضو کے اس حصہ کے خشک رہ جانے سے وضو نہیں ہوتا۔ ابوہریرہ سے روایت ہے:
أن النبي ﷺ رأی رجلا لم یغسل عقبہ فقال: ویل للأعقاب من النار (صحیح مسلم:۲۴۲)
’’نبی نے ایک آدمی کو دیکھاکہ اس نے (وضو کرتے ہوئے)ایڑی نہ دھوئی تھی۔ آپ نے فرمایا: ایڑیوں کی آگ سے ہلاکت ہے۔‘‘
اسی طرح مہندی اور اس طرح کی کوئی بھی چیز جس میں سے پانی جذب ہوجائے استعمال کی جاسکتی ہے اور اس طرح ناخن پالش جیسی تمام چیزیں جو جلد تک پانی کے پہنچنے میں رکاوٹ ہوتی ہیں وضو کے ا عضا پر لگانے سے وضو نہیں ہوتا۔
1. باب دوم

نماز اور اس کے احکام
اوقاتِ نماز
پانچ نمازوں کی تعدادِ رکعات
نماز کے چند ضروری مسائل
نماز کا مختصرطریقہ
نماز کا مفصل طریقہ
1. اَوقاتِ نماز

اللہ تعالیٰ نے مسلمانوں پر دن رات میں پانچ وقت نماز فرض کی ہے اور اسی طرح ہر نماز کو بھی اس کے وقت پر پڑھنے کا حکم فرمایا جیساکہ اس کا ارشاد ہے:
إنَّ الصَّلـوۃَ کَانَتْ عَلَی الْمُوْمِنِیْنَ کِتَابًا مَّوْقُوْتًا (النساء:۱۰۳)
’’بے شک مومنوں پر نماز مقرر ہ وقت میں فرض کی گئی ہے۔‘‘
1. پانچوں نمازوں کا ابتدائی وقت

جابر بن عبداللہ فرماتے ہیں:
فصلی الظہر حین زالت الشمس وکان الفئ قدر الشراک ثم صلی العصر حین کان الفئ قدر الشراک وظل الرجل ثم صلی المغرب حین غابت الشمس ثم صلی العشاء حین غاب الشفق ثم صلی الفجر حین طلع الفجر (صحیح نسائی:۵۱۰)
’’آپ نے ظہر کی نماز سورج ڈھلنے کے بعد جبکہ زوال فئ کا سایہ جو تے کے تسمے کے برابر تھا اس وقت پڑھائی پھر عصر کی نماز اس وقت پڑھائی جب زوال فئ کا سایہ تسمے اور آدمی کے برابر ہوگیا پھر مغرب کی نماز پڑھائی جس وقت سورج غروب ہوگیا پھر عشاء کی نماز سرخی غائب ہوجانے پر پڑھائی پھر جب فجر طلو ع ہوئی تو فجر کی نماز پڑھائی۔‘‘
مندرجہ بالا روایت سے معلوم ہوا کہ
ظہر
جب جوتے کے تسمہ کے برابر زوال کا سایہ پہنچ جائے
عصر
جب آدمی کے برابر سایہ پہنچ جائے
مغرب
سورج غروب ہونے پر
عشا
سرخی غائب ہونے پر
فجر
طلوعِ فجر سے
1. پانچوں نمازوں کا اوّل و آخر وقت

ابوہریرہ (رضی اللہ عنہ ) سے روایت ہے کہ نبی(ﷺ) نے فرمایا:
للصلاۃ أولاً وآخراً وإن أول وقت صلاۃ الظہر حین تزول الشمس وآخر وقت حین یدخل وقت العصر وإن أول وقت صلاۃ العصر حین یدخل وقتھا وإن آخر وقتھا حین تصفر الشمس وإن أول وقت المغرب حین تغرب الشمس وإن آخر وقتھا حین یغیب الافق وإن أول وقت العشاء الآخرۃ حین یغیب الافق وإن آخر وقتھا حین ینتصف اللیل وإن أول وقت الفجر حین یطلع الفجر وإن آخر وقتھا حین تطلع الشمس(صحیح ترمذی:۱۲۹)
’’بے شک ہر نماز کے لئے اول اور آخری وقت ہے ظہر کی نماز کا ابتدائی وقت جب سورج ڈھل جائے اور آخری وقت جب نماز عصر کا وقت شروع ہو عصر کی نماز کا اول وقت وہی ہے جب یہ اپنے وقت میں داخل ہوجائے اور آخری وقت جب سورج زرد ہوجائے مغرب کی نماز کا اول وقت جب سورج غروب ہوجائے اور آخری جب سرخی غائب ہوجائے عشاء کا اول وقت جب سرخی غائب ہوجائے اور آخری وقت جب آدھی رات گزر جائے۔‘‘
ابن عباس سے روایت ہے کہ نبی(ﷺ) نے فرمایا کہ جبرائیل ؑ نے کعبہ کے پاس دو مرتبہ نماز میں میری امامت کی:
فصلی الظہر فی الاولی منھما حین کان الفئ مثل الشراک،ثم صلی العصر حین کان کل شئ مثل ظلہ،ثم صلی المغرب حین وجبت الشمس وأفطر الصائم،ثم صلی العشاء حین غاب الشفق ثم صلی الفجر حین برق الفجر وحرم الطعام علی الصائم وصلی المرۃ الثانیۃ الظہر حین کان ظل کل شئ مثلہ لوقت العصر بالامس ثم صلی العصر حین کان ظل کل شئ مثلیہ،ثم صلی المغرب لوقتہ الاول ثم صلی العشاء الآخرۃ حین ذہب ثلث اللیل ثم صلی الصبح حین اسفرت الأرض ثم التفت إلیّ جبریل فقال یا محمد! ھذا وقت الانبیاء من قبلک والوقت فیما بین ھذین الوقتین (صحیح ترمذی:۱۲۷)
’’پس اُنہوں نے ظہر کی نماز پہلی مرتبہ جب زوال فئ کا سایہ جوتے کے تسمے کے برابر ہو تب پڑھائی ، پھر عصر کی نماز اس وقت پڑھائی جب ہر چیز کا سایہ اس کے مساوی ہوگیا پھر مغرب کی اس وقت کہ جب سورج غروب ہوگیا اور روزہ دار نے روزہ کھول لیا پھر شفق (سرخی) ختم ہونے پر عشاء کی نماز پڑھائی، پھر عشاء کی نماز اس وقت پڑھائی جب پوہ پھوٹ پڑی اور صائم پر کھانا پینا حرام ہوجاتا ہے۔اور دوسری مرتبہ ظہر کی نماز اس وقت پڑھائی جب ہر چیز کا سایہ اس کی مثل ہوگیا پھر عصر کی نماز جب ہر چیز کا سایہ دو مثل ہوا پڑھائی، پھر مغرب کی نماز اس کے اول وقت میں پڑھائی، پھر عشاء کی نماز ثلث لیل کو پڑھی، پھر فجر کی نماز جب زمین روشن ہوگئی اس وقت پڑھی،پھر جبریل ؑ نے میری طرف توجہ کی اور بولے اے محمد! یہ اوقات تجھ سے پہلے انبیاء میں تھے اور (نماز) کا وقت ان دو اوقات کے درمیان میں ہے۔‘‘
1. حاصل نکات
نماز
اول وقت
آخر وقت
ظہر

زوال کے فورا بعد یا سایہ تسمہ کے برابر ہو
ہرچیز کا سایہ ایک مثل ہو
عصر
ایک مثل سایہ ہودو مثل سایہ ہو
سورج زرد ہونے تک
مغرب
سورج غروب
سرخی غائب ہونے تک
عشاء
سرخی غائب ہونے سے
نصف یا ثلث لیل تک
فجر
طلوع فجر
سورج طلوع تک
جمعہ
ظہر کا وقت ہی ہے
1.    سفر میں ظہر کی نماز ٹھنڈا کرکے پڑھنا
ابوذرغفاری فرماتے ہیں کہ ایک دفعہ ہم نبی کے ساتھ سفر پر تھے مؤذن نے ظہر کی اذان کہنا چاہی:
فقال النبي! (أبرد)ثم أراد أن یوذن فقال لہ (أبرد) حتی رأینا فئ التلول فقال النبی! (إن شدۃ الحر من فیح جھنم فإذا اشتد الحرفأبردوا بالصلاۃ) (صحیح بخاری:۵۳۹)
’’آپ نے فرمایا ٹھنڈا کرو۔ پھر موذن نے ارادہ کیا کہ اذان کہے تو آپ نے اسے پھر فرمایا کہ ٹھنڈا کرو یہاں تک کہ ہم نے ٹیلوں کا سایہ دیکھ لیا پھر آپ نے فرمایا: بے شک گرمی کی شدت جہنم کے سانس میں سے ہے، پس جب گرمی زیادہ ہو تو نماز ٹھنڈے وقت میں پڑھا کرو۔‘‘
1.    عشاء کی نماز میں تاخیر

عشاء کی نماز تاخیر سے پڑھنا افضل ہے۔ آپ نے اس کی ترغیب دلائی ہے۔ ابوہریرہ سے روایت ہے کہ آپ(ﷺ) نے فرمایا:
(لولا أن اشق علی أمتی لأمرتھم أن یؤخروا العشاء إلی ثلث اللیل أو نصفہ) (صحیح ترمذی:۱۴۱)
’’اگر مجھے اپنی اُمت پر مشقت کا ڈر نہ ہوتا تو میں انہیں عشاء کی نماز ایک تہائی یا آدھی رات تک مؤخر کرنے کا حکم کرتا۔‘‘
عبداللہ بن عمر سے روایت ہے:
مکثنا ذات لیلۃ ننتظر رسول اﷲ لصلاۃ العشاء فخرج إلینا حین ذھب ثلث اللیل أو بعدہ فلا ندري أشئ شغلہ أم غیر ذلک فقال حین خرج : (أتنتظرون ھذہ الصلاۃ؟ لولا أن تثقل علی أمتي لصلیت بھم ھذہ الساعۃ) ثم أمر المؤذن فأقام الصلاۃ (صحیح ابوداود:۴۰۵)
’’ایک رات ہم نبی کے پاس تھے اور آپ عشاء کی نماز کے لئے انتظار کررہے تھے پس وہ ہماری طرف اس وقت آئے جب رات آدھی یا اس سے کچھ زیادہ ہوچکی تھی نامعلوم آپ کس چیزمیں مصروف تھے یا کچھ اور کررہے تھے جب آپ نکلے تو فرمایا: کیا تم اس نماز کا انتظار کررہے ہو اگر یہ نہ ہو تاکہ یہ میری امت پربھاری ہوجائے گا تو میں ان کو اس وقت نماز پڑھاتا پھر آپ نے اذان کا حکم دیا اور نماز کھڑی کی۔‘‘
مندرجہ بالا روایات سے معلوم ہوا کہ عشاء کی نماز تاخیر سے پڑھنا افضل ہے جبکہ باقی نمازوں کا اپنے اول وقت میں پڑھنا افضل ہے جیسا کہ عبداللہ بن مسعود کہتے ہیں کہ میں نے نبی سے افضل عمل کے متعلق پوچھا تو فرمایا:
(الصلاۃ في أول وقتھا) ’’اول وقت میں نماز پڑھنا‘‘ (صحیح ابن خزیمہ:۳۲۷)
1.    عصرکا وقت معلوم کرنے کا طریقہ
پہلا طریقہ
ایک لکڑی لے کرزوال سے تھوڑی دیر پہلے سپاٹ زمین پر گاڑ دیں سایہ گھٹ رہا ہوگا،گھٹتے گھٹتے جب ایک جگہ رک جائے یہی زوال کا وقت ہے جو چند ثانیے تک رہتا ہے رکے ہوئے سایہ کی پیمائش کرلیں سایہ جب لکڑی کے برابر ہوجائے پیمائش کئے ہوئے فاصلے کو لکڑی کے برابر کے آئے ہوئے سایہ سے ملا کر نشان لگا لیں اب جب سایہ اس نشان پر پہنچے گا تو یہ ظہر کا آخری اور عصر کا اول وقت ہوگا اور ایک مثل ہوگا۔
دوسرا طریقہ
لکڑی کو گاڑ دیا جائے اور زوال کا سایہ جب رُک جائے تو اس لکڑی کو نکال کر سایہ کی انتہا پر گاڑ دیا جائے جب سایہ بڑھنا شروع ہو اور لکڑی کے مثل ہوجائے بس یہی عصر کا اول وقت ہے۔
سایہ پیمائش کرتے ہوئے کسی بھی صورت میں زوال کا سایہ مثل میں شمار نہیں ہوگا۔
1.    نماز کے مکروہ اوقات اورمقامات
مکروہ اَوقات
عقبہ بن عامر جہنی سے روایت ہے کہ
ثلاث ساعات کان رسول اﷲ! ینھانا أن نصلي فیھن،أو أن نقبر فیھن موتانا،حین تطلع الشمس بازغۃ حتی ترتفع،وحین یقوم قائم الظہیرۃ حتی تمیل وحین تضیف الشمس للغروب حتی تغرب (صحیح نسائی :۵۴۶)
’’نبی نے ہمیں تین اوقات میں نماز پڑھنے سے منع فرمایا، جب سورج طلوع ہورہا ہو یہاں تک کہ بلندہوجائے۔جب سورج نصف آسمان پر ہویہاں تک کہ وہ ڈھل جائے (یعنی زوال کا وقت) اور جس وقت سورج غروب ہونا شروع ہوجائے۔‘‘
ابوہریرہ سے روایت ہے کہ
نہی رسول اﷲ! عن صلاتین: بعد الفجر حتی تطلع الشمس،وبعد العصر حتی تغرب الشمس (صحیح بخاری:۵۸۸)
’’رسول اللہ(ﷺ) نے دو (وقتوں میں) نمازوں سے منع فرمایا فجر (کی نماز) کے بعد یہاں تک کہ سورج نکل آئے اور عصر (کی نماز کے) بعد یہاں تک کہ سورج غروب ہوجائے۔‘‘
لہٰذا مکروہ اوقات یہ ہوئے :
• نماز فجر کے بعد سے جب تک سورج اچھی طرح نکل نہ آئے
• زوال کے وقت
• عصر کی نماز کے بعد سے سورج جب تک غروب نہ ہوجائے
اگر کسی کی صبح کی سنتیں رہ گئی ہوں صرف اس کے لئے اجازت ہے کہ وہ پڑھ لے جیساکہ قیس کہتے ہیں کہ نبی نے مجھے فجر کی نماز کے بعد نما زپڑھتے ہوئے دیکھا تو فرمایا (مھلا یا قیس أصلاتان معا) اے ابو قیس ٹھہر جا! کیا تو دو نمازیں پڑھ رہا ہے۔ میں نے کہا یارسول اللہ صبح کی دو سنتیں مجھ سے رہ گئی تھیں آپ نے فرمایا: (فلا إذن) (تب اجازت ہے)(صحیح ترمذی:۳۴۶)
اسی طرح اگر نماز پڑھتے پڑھتے فجر اور عصر کے وقت سورج طلوع اور غروب ہوگیا اس کی باقی نمازدرست ہوگی۔ ابوہریرہ سے روایت ہے آپ (ﷺ)نے فرمایا:
من أدرک من العصر رکعۃ قبل أن تغرب الشمس فقد أدرک ومن أدرک من الفجر رکعۃ قبل أن تطلع الشمس فقد أدرک (صحیح مسلم:۶۰۹)
’’جس نے عصر کی نماز میں سے سورج غروب ہونے سے ایک رکعت بھی پالی اس نے نماز پالی اور جس نے فجر کی نما زمیں سے سورج طلوع ہونے سے پہلے ایک رکعت بھی پالی اس نے نماز پالی۔‘‘
اسی طرح مسجد حرام ان ممنوعہ اوقات سے مستثنیٰ ہے اس میں دن رات کی کسی بھی گھڑی میں نمازاور کوئی دوسری عبادت کی جاسکتی ہے۔ جبیر بن مطعم سے روایت ہے کہ نبی(ﷺ) نے فرمایا:
(یابني عبد مناف،لا تمنعوا أحدا طاف بہذا البیت وصلی اَیّۃ شاء من لیل أو نہار) (صحیح ترمذی:۶۸۸)
’’اے بنی عبدمناف! کسی کو بیت اللہ کا طواف کرنے اور نماز پڑھنے سے نہ روکو خواہ وہ رات دن کی کسی گھڑی میں بھی (یہ عبادت) کررہا ہو۔‘‘
1.    مکروہ مقامات

قبرستان اور حمام
قبرستان اور حمام میں نبی نے نماز پڑھنے سے منع فرمایا ہے۔
ابوسعید خدری سے روایت ہے کہ آپ نے فرمایا:
(الأرض کلھا مسجد إلا الحمام والمقبرۃ) (صحیح ابوداود:۴۶۳)
’’حمام اور قبرستان کے علاوہ ساری زمین پرسجدہ کیا جاسکتا ہے۔‘‘
اونٹوں کے باڑے میں
اونٹوں کے باڑ ا میں نماز پڑھنا منع ہے۔
براء بن عازب کہتے ہیں کہ نبی سے اونٹوں کے باڑا میں نما زپڑھنے کے متعلق پوچھا گیا تو آپ (ﷺ)نے فرمایا:
(لا تصلوا في مَبَارک الإبل) (صحیح ابوداود:۴۶۴)
’’اونٹوں کے باڑوں میں نماز نہ پڑھو۔‘‘
1.    پانچ نمازوں میں فرض و نفل رکعات کی تعداد

فرائض
ہر دن کی پانچ نمازوں کے فرائض کی تعداد ۱۷ ہے جو صحیح روایات اور اُمت کے عملی تواتر سے ثابت ہیں۔
سنت مؤکدہ
اسی طرح نمازوں کے فرائض سے پہلے یا بعد کے نوافل جو آپ کی عادت اور معمول تھا کی تعداد زیادہ سے زیادہ ۱۲ ہے جس کی تاکید و ترغیب بھی آپ سے منقول ہے۔ اُمّ حبیبہ فرماتی ہیں:
سمعت رسول اﷲ ﷺ یقول: (من صلی اثنی عشرۃ رکعۃ فی یوم ولیلۃ بني لہ بیت فی الجنۃ) (صحیح مسلم:۷۲۸)
’’میں نے رسول اللہﷺ سے سنا جو شخص دن اور رات میں ۱۲ رکعات پڑھ لے، ان کی وجہ سے اس کے لئے جنت میں ایک محل بنا دیا جاتا ہے‘‘
فجر
تعداد رکعات : ۴ ( ۲ نفل+ ۲ فرض)
نوافل
اُمّ المومنین حفصہ فرماتی ہیں کہ
’’کان إذا سکت المؤذن من الأذان لصلاۃ الصبح وبدأ الصبح رکع رکعتین خفیفتین قبل أن تقام الصلاۃ‘‘ (صحیح مسلم:۷۲۳)
’’جب مؤذن اذان کہہ لیتااور صبح صادق شرو ع ہوجاتی تو آپ (ﷺ) جماعت کھڑی ہونے سے پہلے مختصر سی دو رکعتیں پڑھتے۔‘‘
فرائض
ابو برزہ اسلمی سے روایت ہے کہ آپ صبح کی نماز پڑھاتے:
وکان یقرأ فی الرکعتین أو أحدھما ما بین الستین إلی المائۃ
’’ اورآپ دو رکعتوں میں یا کسی ایک میں ساٹھ سے سو تک آیات تلاوت فرماتے تھے۔‘‘ (صحیح بخاری:۷۷۱)
آپ ﷺ سے فجر کے فرائض سے پہلے دو رکعت نماز پرمداومت ثابت ہے جیساکہ عائشہ فرماتی ہیں:
أن النبي ﷺ لم یکن علی شيء من النوافل أشد معاہدۃ منہ علی رکعتین قبل الصبح (صحیح مسلم:۷۲۴)
’’بے شک نبی نوافل میں سے سب سے زیادہ اہتمام صبح کی سنتوں کا کرتے تھے۔‘‘
ظہر
زیادہ سے زیادہ رکعات :۱۲ (۲یا ۴ نفل+۴ فرض+۲ یا ۴ نفل)
نوافل
عائشہ فرماتی ہیں کہ
کان یصلي فی بیتي قبل الظہر أربعا ثم یخرج فیصلي بالناس ثم یدخل فیصلي رکعتین (صحیح مسلم:۷۳۰)
’’آپ میرے گھر میں ظہر سے پہلے چار رکعات نوافل ادا کرتے اور لوگوں کو نماز پڑھانے کے بعد گھر واپس آکر دو رکعات پڑھتے تھے۔‘‘
ابن عمر فرماتے ہیں:
صلیت مع النبيﷺ سجدتین قبل الظہر السجدتین بعد الظہر(صحیح بخاری:۷۲)
’’میں نے نبی ﷺکے ساتھ دو رکعات ظہر سے پہلے اور دو ظہر کی نماز کے بعد پڑھے۔‘‘
اُمّ حبیبہ سے روایت ہے کہ آپ نے فرمایا: (من حافظ علی أربع رکعات قبل الظہر وأربع بعدھا حرم علی النار) (صحیح ابوداود:۱۱۳۰)
’’جس شخص نے ظہر سے قبل اور بعد چار چار رکعات نوافل کا اہتمام کیا، اس پر جہنم کی آگ حرام کردی گئی ہے۔‘‘
مذکورہ بالا روایات سے ظہرکی سنتوں کے بارے میں پتہ چلا کہ وہ زیادہ سے زیادہ ۱۶ ہیں اور ان میں کم از کم ۴ رکعات نوافل موکدہ ہیں جیسا کہ عائشہ صدیقہ فرماتی ہیں:
أن النبی کان لا یدع أربعا قبل الظہر رکعتین قبل الغداۃ (صحیح بخاری:۱۱۸۲)
’’نبی ظہر سے پہلے کی چار رکعات اور فجر سے پہلے کی دو رکعات کبھی نہ چھوڑتے۔‘‘
فرائض
ابوقتادہ سے روایت ہے کہ
’’أن النبي کان یقرأ في الظہر في الأولیین بأم الکتاب وسورتین وفي الرکعتین الأخریین بأم الکتاب… الخ‘‘ (صحیح بخاری:۷۷۶)
’’بے شک نبی(ﷺ) ظہر کی پہلی دو رکعتوں میں سورہ فاتحہ اور ایک ایک سورت پڑھتے اور آخری دو رکعتوں میں سورہ فاتحہ پڑھتے…الخ‘‘
عصر
تعداد رکعات: ۸ (۴ نفل +۴ فرض)
نوافل
علی(رضی اللہ عنہ) سے روایت ہے کہ
کان النبي ﷺ یصلي قبل العصر أربع رکعات( صحیح ترمذی:۳۵۳)
’’نبی عصر سے پہلے چار رکعات نوافل ادا کرتے تھے۔‘‘
ابوسعیدخدری سے روایت ہے، فرماتے ہیں:
کنا نحرز قیام رسول اﷲ فی الظہر والعصر۔۔۔فحزرنا قیامہ في رکعتین الاولیین من العصر علی قدر قیامہ فی الاخریین من الظہر وفي الاخریین من العصر علی النصف من ذلک( مسلم:۴۵۲)
’’ ہم رسول اللہ کے ظہر اور عصر کے قیام کا اندازہ لگایا کرتے تھے… عصر کی نماز کی پہلی دو رکعتوں کے قیام کا اندازہ اس طرح کرتے کہ وہ ظہر کی آخری دو رکعتوں کے قیام کے برابر ہوتا اور آخری دو رکعتوں کا قیام عصر کی پہلی دو رکعتوں سے نصف ہوتاتھاـ۔‘‘
عصر کی فرض نماز سے پہلے چار رکعات نوافل غیر موکدہ ہیں،کیونکہ اس پر آپ کا دوام ثابت نہیں۔البتہ آپ نے ان نوافل کی ترغیب دلاتے ہوئے فرمایا:
رحم اﷲ امرأ صلی قبل العصر أربعا (صحیح ابوداود:۱۱۳۲)
’’جس شخص نے عصر سے قبل چار رکعات نوافل ادا کئے اللہ اس پر رحم فرمائے۔‘‘
ظہر اور عصر کے پہلے چار چار نوافل کو دو دو رکعات کرکے پڑھنا بھی نبی سے ثابت ہے جیسا کہ علی فرماتے ہیں:
یصلي قبل الظہر أربعا وبعدھا رکعتین وقبل العصر أربعا یفصل بین کل رکعتین بالتسلیم (صحیح ترمذی:۴۸۹)
’’اور نبی کریم(ﷺ) نے ظہر سے پہلے چار رکعات نوافل ادا کئے اور دو بعد میں اسی طرح چار رکعات نوافل عصر کی نماز سے پہلے ادا کئے اور آپ نے ہر دو رکعت کے بعد سلام پھیرا۔‘‘
مغرب
تعداد رکعات: ۵ (۳ فرض+ ۲ نفل)
فرائض
سعید بن جبیر کہتے ہیں کہ عبداللہ بن عمرنے (سفر میں) مغرب اور عشاء اکٹھی کیں: فصلی المغرب ثلاثا ثم صلی العشاء رکعتین ثم قال ھکذا رسول اﷲیصنع فی ھذا المکان (صحیح نسائی :۴۷۰)
’’ اور انہو ں نے مغرب کی تین رکعات اور عشاء کی دو رکعات پڑھائیں اور فرمایا کہ اس جگہ رسول اللہنے اسی طرح کیا تھا۔‘‘
نوافل: عائشہ نبی کی فرض نمازوں سے پہلے اور بعد کے نوافل بیان کرتے ہوئے فرماتی ہیں کہ:
وکان یصلي بالناس المغرب ثم یدخل فیصلي رکعتین(صحیح مسلم:۷۳۰)
’’اور وہ لوگوں کو مغرب کی نماز پڑھاتے پھر میرے گھر میں داخل ہوتے اور دو رکعت نماز نوافل ادا کرتے۔‘‘
ملحوظہ: مغرب کی نما زسے پہلے دو رکعت نفل بھی آپ سے ثابت ہیں۔ عبداللہ المزنی سے روایت ہے کہ
أن رسول اﷲصلی قبل المغرب رکعتین (ابن حبان:۱۵۸۶)
’’رسول اللہﷺ نے مغرب کی نماز سے پہلے دو رکعت نفل ادا کیے۔‘‘
لیکن یہ دو رکعت موکدہ نہیں ہیں۔ عبداللہ بن المزنی سے ہی روایت ہے کہ آپ نے فرمایا: (صلوا قبل صلاۃ المغرب)قال فی الثالثۃ (لمن شائ) کراھیۃ أیتخذھا الناس سنۃ (صحیح بخاری:۱۱۸۳)
’’مغرب کی نماز سے پہلے دو رکعت پڑھو تین دفعہ فرمایا اور تیسری مرتبہ فرمایا جو چاہے۔ تاکہ کہیں لوگ اسے موکدہ نہ سمجھ لیں۔‘‘
عشاء
تعداد رکعات + کم از کم ایک وتر: ۷ (۴فرض +۲؍۴نفل+۱ وتر)
فرائض
عمر نے سعد سے اہل کوفہ کی شکایت کے بارے میں پوچھا کہ آپ نماز اچھی طرح نہیں پڑھاتے تو آپ نے جواب دیا:
أما أنا واﷲ فإنی کنت أصلی بہم صلاۃ رسول اللہ ما أخرم عنہا أصلی صلاۃ العشاء فأرکد فی الأولیین،وأخف فی الأخریین قال:ذاک الظن بک یا أبا إسحٰق (صحیح بخاری:۷۵۵)
’’اللہ کی قسم میں انہیں نبی کی نماز کی طرح کی نماز پڑھاتا تھا اور اس سے بالکل روگردانی نہ کرتا تھا۔میں عشاء کی نماز جب پڑھاتا تو پہلی دورکعتوں کو لمبا کرتا اور آخری دو رکعتوں کو ہلکا۔ عمر فرمانے لگے: اے ابو اسحاق تمہارے بارے میرا یہی گمان تھا۔‘‘
عشاء کے فرضوں کے بعد نبی سے ۲ اور ۴ نوافل پڑھنے کا ثبوت ملتا ہے۔
نوافل: عبداللہ بن عمر کہتے ہیں
: صلیت مع النبی… وسجدتین بعد العشائ… الخ (صحیح بخاری؛۱۱۷۲)
’’میں نے نبی کے ساتھ ۔ ۔ ۔ عشاء کے بعد دو رکعات نماز پڑھی۔‘‘
ابن عباس فرماتے ہیں:ایک رات میں نے اپنی خالہ میمونہ کے گھر میں گزاری:
فصلی رسول اﷲ العشاء ثم جاء فصلی أربع رکعات ثم نام
’’آپ نے عشاء کی نماز پڑھائی پھر گھر آئے اور چار رکعات نوافل ادا کئے اور سوگئے۔‘‘ (صحیح بخاری:۶۹۷)
نبی کے عام حکم کہ
(بین کل اذانین صلاۃ بین کل اذانین صلاۃ) ثم قال في الثالثۃ (لمن شائ)(صحیح بخاری:۶۲۷)
’’آپ نے فرمایا ہر دو آذانوں (اذان اور اقامت) کے درمیان نماز ہے ہر دو آذانوں کے درمیان نماز ہے تیسری دفعہ آپ نے فرمایا جو چاہے۔‘‘
ثابت ہوتا ہے کہ ہر نماز کی امامت سے پہلے دو رکعت نماز کی ترغیب ہے۔ لہٰذا اس مشروعیت کے مطابق عشاء کی نماز سے پہلے بھی دو رکعت نوافل ادا کئے جاسکتے ہیں۔
وتر کے بعد دو سنتیں پڑھنا آپ سے ثابت ہے جیسا کہ اُم سلمہ سے روایت ہے کہ: أن النبی کان یصلي بعد الوتر رکعتین (صحیح ترمذی:۳۹۲)
’’آپ وتر کے بعد دو رکعت نوافل ادا کرتے تھے۔‘‘
وتر:آپ کی قولی و فعلی احادیث سے ایک، تین، پانچ ،سات اور نو رکعات کے ساتھ وتر ثابت ہے۔
ایوب انصاری سے روایت ہے کہ آپ نے فرمایا:
الوتر حق علی کل مسلم فمن أحب أن یوتر بخمس فلیفعل ومن أحب أن یوتر بثلاث فلیفعل،ومن أحب أن یوتر بواحدۃ فلیفعل (صحیح ابوداود:۱۲۶۰)
’’وتر ہر مسلمان پر حق ہے جو پانچ وتر ادا کرنا پسند کرے وہ پانچ پڑھ لے اور جو تین وتر پڑھنا پسند کرے وہ تین پڑھ لے اور جو ایک رکعت وتر پڑھنا پسند کرے وہ ایک پڑھ لے۔‘‘
ام سلمہ فرماتی ہیں:
’’کان رسول اﷲ یوتر بسبع أو بخمس… الخ (صحیح ابن ماجہ:۹۸۰)
وتر پڑھنے کا طریقہ
تین وتر پڑھنے کے لئے دو نفل پڑھ کر سلام پھیرا جائے اور پھر ایک وتر الگ پڑھ لیا جائے۔ عائشہ سے روایت ہے : کان یوتر برکعۃ وکان یتکلم بین الرکعتین والرکعۃ ’’آپ ایک رکعت کے ساتھ وتر بناتے جبکہ دو رکعت اور ایک کے درمیان کلام کرتے۔ مزید ابن عمر کے متعلق ہے کہ: ’’صلی رکعتین ثم سلم ثم قال أدخلو إلیّ ناقتي فلانۃ ثم قام فأوتر برکعۃ‘‘(مصنف ابن ابی شیبہ ۲؍۹۱،۹۲)
’’انہوں نے دو رکعتیں پڑھیں پھر سلام پھیر دیاپھر کہا کہ فلاں کی اونٹنی کو میرے پاس لے آؤ پھر کھڑے ہوئے اور ایک رکعت کے ساتھ وتر بنایا۔‘‘

پانچ وتر کا طریقہ یہ ہے کہ صرف آخری رکعت میں بیٹھ کر سلام پھیرا جائے۔ عائشہ فرماتی ہیں: کان رسول اﷲ! یصلي من اللیل ثلاث عشرۃ رکعۃ یوتر من ذلک بخمس لا یجلس فی شیئ إلا فی آخرہا(صحیح مسلم:۷۳۷)
سات وتر کے لئے ساتویں پر سلام پھیرنا۔ عائشہ سے ہی روایت ہے۔ اُم سلمہ فرماتی ہیں کہ: کان رسول اﷲ! یوتر بسبع أو بخمس لا یفصل بینہن بتسلیم ولا کلام (صحیح ابن ماجہ :۹۸۰)
’’نبی سات یا پانچ وتر پڑھتے ان میں سلام اور کلام کے ساتھ فاصلہ نہ کرتے۔‘‘
نو وتر کے لئے آٹھویں رکعت میں تشہد بیٹھا جائے اور نویں رکعت پر سلام پھیرا جائے۔ عائشہ نبی کے وتر کے بارے میں فرماتی ہیں: ویصلي تسع رکعات لایجلس فیھا الا في الثامنۃ … ثم یقوم فیصلي التاسعۃ
’’آپ نو رکعت پڑھتے اور آٹھویں رکعت پر تشہد بیٹھتے …پھر کھڑے ہوکر نویں رکعت پڑھتے اور سلام پھیرتے۔‘‘ (صحیح مسلم:۷۴۶)
قنوتِ وتر
(آخری رکعت میں) رکوع سے پہلے دعائے قنوت پڑھی جاتی ہے۔
دلیل:ابی بن کعب سے روایت ہے:
’’أن رسول اﷲ کان یوتر فیقنت قبل الرکوع‘‘(صحیح ابن ماجہ:۹۷۰)
’’بے شک رسول اللہ وتر پڑھتے تو رکوع سے پہلے قنوت کرتے تھے۔‘‘
(اَللّٰھُمَّ اھْدِنِيْ فِیْمَنْ ھَدَیْتَ وَعَافِنِيْ فِیْمَنْ عَافَیْتَ وَتَوَلَّنِيْ فِیْمَنْ تَوَلَّیْتَ وَبَارِکْ لِيْ فِیْمَا اَعْطَیْتَ وَقِنِيْ شَرَّ مَاقَضَیْتَ فَإنَّکَ تَقْضِيْ وَلَا یُقْضٰی عَلَیْکَ إنَّہٗ لَا یَذِلُّ مَنْ وَّالَیْتَ وَلَا یَعِزُّ مَنْ عَادَیْتَ تَبَارَکْتَ رَبَّنَا وَتَعَالَیْتَ)(صحیح ترمذی:۳۸۳،بیہقی :۲؍۲۰۹)
’’اے اللہ! مجھے ہدایت دے ان لوگوں کے ساتھ جن کو تو نے ہدایت دی، مجھے عافیت دے ان لوگوں کے ساتھ جن کو تو نے عافیت دی، مجھ کو دوست بنا ان لوگوں کے ساتھ جن کو تو نے دوست بنایا۔ جو کچھ تو نے مجھے دیا ہے اس میں برکت عطا فرما اور مجھے اس چیز کے شر سے بچا جو تو نے مقدر کردی ہے، اس لئے کہ تو حکم کرتا ہے، تجھ پر کوئی حکم نہیں چلا سکتا ۔جس کو تو دوست رکھے وہ ذلیل نہیں ہوسکتا اور جس سے تو دشمنی رکھے وہ عزت نہیں پاسکتا۔ اے ہمارے رب! تو برکت والا ہے، بلند و بالا ہے۔‘‘
1.    نماز کے چند ضروری مسائل

کپڑوں کا پاک ہونا
نماز پڑھنے کے لئے ضروری ہے کہ نمازی کے کپڑے پاک ہوں۔
معاویہ نے اُم حبیبہ سے پوچھا: ھل کان رسول اﷲ! یصلی في الثوب الذی یجامعھا فیہ؟ فقالت نعم! إذا لم یرفیہ أذی (صحیح ابوداود:۳۵۲)
’’کیا رسول اللہ1 جن کپڑوں میں مجامعت کرتے انہی کپڑوں میں نماز پڑھ لیتے تھے؟ انہوں نے کہا ہاں جب اس پر گندگی نہ دیکھتے۔‘‘
اللہ تعالیٰ کا ارشاد ہے:{وَثِیَابَکَ فَطَھِّرْ وَالرُّجْزَ فَاھْجُرْ} (المدثر:۴،۵)
’’اپنے کپڑوں کو پاک رکھا کرو اور ناپاکی کو چھوڑ دو۔‘‘
استقبالِ قبلہ
نمازی کے لئے یہ بات بھی ضروری ہے کہ وہ جب نماز کا ارادہ کرے تو قبلہ رخ ہوکر کھڑا ہو۔
آپ نے ایک آدمی کو نماز درست کرواتے ہوئے فرمایا: (إذا قمت إلی الصلاۃ فأسبغ الوضوء ثم استقبل القبلۃ فکبر) (صحیح بخاری:۶۲۵۱)
’’جب تم نماز کا قصد کرو تو اچھی طرح وضو کرلو پھر قبلہ کی طرف منہ کرکے تکبیر کہو۔‘‘
جس وقت اس عمل کو کرنا دشوار ہو وہاں عذر کے باعث اجازت ہے کہ کسی طرف بھی منہ کیا جاسکتا ہے مثلاً جنگل ، صحرا یا ایسی جگہ جہاں قبلہ کی سمت معلوم نہ ہوسکے اسی طرح جنگ کے دوران اور جب قبلہ رخ ہونا ممکن ہی نہ ہو۔
جیسا کہ قرآن میں ارشاد ہے: {فَإنْ خِفْتُمْ فَرِجَالًا أَوْ رُکْبَانًا}
’’اور تم کو خوف ہو تو پیادہ یا سوار (ہرصورت میں نماز ادا کرو)‘‘(البقرہ:۲۳۹)
اس سے معلوم ہوا کہ بھاگتے ہوئے یا لڑتے ہوئے انسان کا رخ کسی طرف بھی ہوسکتا لہٰذا وہ کسی سمت میں نماز ادا کرسکتا ہے اور اسی طرح عام حالات میں سواری پر نفل نماز ادا کرنی ہو تو سواری کا رخ ایک دفعہ قبلہ رخ کرلینا چاہئے اب نماز کے دوران سواری کا رخ بدل بھی جائے تو کوئی مضائقہ نہیں۔ انس بن مالک سے روایت ہے : أن رسول اﷲ کان إذا سافر فأراد أن یتطوع استقبل بناقتہ القبلۃ فکبرثم صلی حیث وجہہ رکابہ (صحیح ابوداو:۱۰۸۴)
’’آپ جب سفر میں ہوتے اور نفل نماز کا ارادہ کرتے تو اپنی اونٹنی کا رخ قبلہ کی طرف کرلیتے اور تکبیر کہتے اورپھر نماز پڑھتے اور سواری کا رخ جدھر ہوتا سو ہوتا۔‘‘
لیکن یہ یاد رہے کہ سواری پر صرف نفل نماز ہوسکتی ہے آپ سے سواری پر فرض نماز ثابت نہیں۔
جابر بن عبداللہ سے روایت ہے کہ : أن النبی کان یصلي علی راحلتہ نحو المشرق فإذا أراد أن یصلي المکتوبۃ نزل فاستقبل القبلۃ (صحیح بخاری:۱۰۹۹)
’’نبیمشرق کی طرف سواری پر نماز پڑھتے اور جب فرض نماز کا ارادہ کرتے تو سواری سے اتر جاتے اور قبلہ کی طرف منہ کرکے کھڑے ہوجاتے۔‘‘
اقتداے امام
امام کی اقتدا فرض ہے امام کی اقتداء نہ کرنے سے نماز باطل ہوجانے کا خطرہ ہوتا ہے۔ اقتداء امام کی تاکیداور اس کے خلاف پر وعید کی بہت سے روایات منقول ہیں، جن میں چند ایک یہ ہیں:
١ ابوہریرہ سے روایت ہے کہ آپ نے فرمایا: (إنما جعل الإمام لیؤتم بہ فإذا کبر فکبروا ولا تکبروا حتی یکبر وإذا رکع فارکعوا ولا ترکعوا حتی یرکع وإذا سجد فاسجدوا ولا تسجدوا حتی یسجد… الخ) (صحیح ابوداود:۵۶۳)
’’امام تو بنایا ہی اس لئے جاتا ہے کہ اس کی اقتداء کی جائے جب وہ تکبیر کہے پھرتم تکبیر کہو اور اس وقت تک تکبیر نہ کہو جب وہ تکبیر نہ کہہ لے اور جب وہ رکوع کرتے تب تم رکوع کرو اور اس وقت تک رکوع نہ کرو جب تک وہ رکوع نہ کرلے اور جب وہ سجدہ کرے تب سجدہ کرو اور اس وقت تک سجدہ نہ کرو جب وہ سجدہ نہ کرلے… الخ‘‘
٢ ابوہریرہ سے ہی روایت ہے کہ آپ نے فرمایا:
(أما یخشی أحدکم إذا رفع رأسہ قبل الإمام أن یجعل اﷲ رأسہ رأس حمار؟ أو یجعل اﷲ صورتہ صورۃ حمار؟) (صحیح بخاری:۶۹۱)
’’تم میں سے کسی کو اس بات کا ڈر نہیں کہ جب وہ امام سے پہلے سراٹھائے تو اللہ اس کے سر کو گدھے کا سر یا اس کی صورت گدھے کی صورت بنا دے؟۔‘‘
c صحابہ کرام امام کی اقتدا کا پورا پورا خیال رکھتے تھے۔ براء بن عازب بیان فرماتے ہیں : کان رسول اﷲ! إذا قال: (سمع اﷲ لمن حمدہ) لم یحن أحد منا ظھرہ حتی یقع النبی! ساجدًا ثم نقع سجوداً بعدہ (صحیح بخاری:۶۹۰)
’’رسول اللہ جب (سمع اﷲ لمن حمدہ) کہتے تو ہم سے ایک بھی شخص اپنی کمر تک نہ جب تک وہ سجدے میں نہ چلے جاتے پھر ہم اس کے بعد سجدہ کیلئے جھکتے۔‘‘
تعدیل ارکان
نماز کے اَرکان کو صحیح طریقے سے بجا لانانماز کی قبولیت کے لئے شرط ہے۔ آپ نے فرمایا: (صلوا کما رأیتموني أصلي)(صحیح بخاری:۶۳۱)
’’نماز ویسے پڑھو جس طرح مجھے پڑھتے دیکھتے ہو۔‘‘
ابوہریرہ سے روایت ہے: ایک شخص مسجدمیں داخل ہوا جبکہ آپ مسجد کے ایک طرف بیٹھے ہوئے تھے۔ اس نے نماز پڑھی اور آکر آپ پر سلام بھیجا۔ آپ نے اس کے سلام کا جواب دیا اور فرمایا: لوٹ جا اور نماز پڑھ تو نے نماز نہیں پڑھی پس وہ لوٹا اور نماز پڑھ کر آیا اور آپ پر سلام بھیجا آپ نے سلام کا جواب دیا اور فرمایا لوٹ جا (دوبارہ) نماز پڑھ تمہاری نماز نہیں ہوئی اس کے بعد اس نے کہا یارسول اللہ مجھے سکھا دیں (کہ میں کیسے نماز پڑھوں) فرمایا:
(إذا قمت إلی الصلاۃ فأسبغ الوضوء ثم استقبل القبلۃ فکبر ثم اقرأ ما تیسر معک من القرآن ثم ارکع حتی تطمئن راکعا ثم ارفع حتی تستوي قائما ثم اسجد حتی تطمئن ساجدا ثم ارفع حتی تطمئن جالسا ثم اسجد حتی تطمئن ساجدا ثم ارفع حتی تطمئن جالسا ثم افعل ذلک في صلاتک کلھا ) (صحیح بخاری:۶۲۵۱)
’’جب تم نماز کا ارادہ کرو تو اچھی طرح وضو کرلو پھر قبلہ کی طرف منہ کرو اور اللہ اکبر کہو پھر قرآن سے جومیسر ہو پڑھ پھر رکوع کر یہاں تک کہ تو اچھی طرح رکوع کرے پھراٹھ حتیٰ کہ تو کھڑے ہوتے ہوئے برابر ہوجائے پھر سجدہ کر یہاں تک کہ اچھی طرح سجدہ کرے پھر سر اٹھا یہاں تک کہ اطمینان سے بیٹھ جائے پھر سجدہ کر حتیٰ کہ اچھی طرح سجدہ کرلے پھر سر اٹھا حتیٰ کہ اطمینان سے بیٹھ جائے پھر اسی طرح تمام نماز میں کرتا رہ۔‘‘
اس روایت سے معلوم ہوا کہ نبی نے مسیء الصلاۃ کو نماز میں تعدیل ارکان کی تاکید فرمائی۔ جس سے ظاہر ہوتا ہے کہ اس آدمی کی نماز میں ایک خرابی یہ بھی تھی ۔
حذیفہ نے ایک آدمی کو دیکھا کہ وہ رکوع و سجود صحیح طور پر نہ کررہا تھا۔ اس کے نماز مکمل کرنے کے بعد آپ نے فرمایا:
لومت مت علی غیر سنۃ محمد ﷺ (صحیح بخاری:۳۸۹)
’’اگر تو (اسی حالت میں) مرگیا تو محمد کی سنت کے علاوہ پر مرے گا۔ ‘‘
1.    عورت کا ننگے سرنما زپڑھنا

یوں تو عورت کا سارا جسم ہی ستر ہے ،کیونکہ اکثر طور پر سر کا حصہ ننگا رکھنے میں سستی ہوجاتی ہے اس لئے اس کے بارے میں تاکید آئی ہے۔ عائشہ سے مروی ہے کہ آپ نے فرمایا:
)لا یقبل اﷲ صلاۃ حائض إلا بخمار( (صحیح ابوداود:۵۹۶)
’’اللہ تعالیٰ بالغ عورت کی نماز بغیر اوڑھنی کے قبول نہیں کرتا۔‘‘
کپڑا یا بال سمیٹنا

نمازمیں کپڑا یا بالوں کو سمیٹنا منع ہے۔ عبداللہ بن عباس سے روایت ہے کہ آپ نے فرمایا: ) أمرت أن أسجد علی سبعۃ أعظم ولا أکف ثوبا ولا شعرا(
(صحیح مسلم:۴۹)
’’میں پابند کیا گیا ہوں کہ سات ہڈیوں پر سجدہ کروں اور (نماز میں) کپڑا اور بالوں کو نہ لپیٹوں ۔‘‘
اسی طرح عبداللہ بن عباس نے ایک آدمی کو نماز پڑھتے دیکھا اور وہ جوڑا کئے ہوئے تھا۔ آپ نے وہ کھول دیا جب نماز کے بعد وہ آیا اور عبداللہ بن عباس سے پوچھنے لگا کہ آپ نے کیوں ایسا کیا ۔ جس پر آپ نے کہا :
إنی سمعت رسول اﷲ یقول إنما سئل ھذا مثل الذي یصلی وھو مکتوف (صحیح مسلم :۴۹۲)
’’میں نے نبی سے سنا ہے کہ اس شخص کی مثال ایسے ہی ہے جیسے وہ ستر کھولے ہوئے ہے۔‘‘
اشتمال الصمائ،سدل اور منہ ڈھانپنا

چادر کی اس طرح بکل مارنا کہ ہاتھوں کو حرکت دینا محال ہوجائے اس سے نبی نے منع فرمایا ہے۔ ابوسعید خدری سے روایت ہے کہ
نہی رسول اﷲ! عن اشتمال الصماء (صحیح بخاری:۳۶۷)
’’ نبی ﷺ نے سختی سے چادر کی بکل مارنے سے منع فرمایا۔‘‘
اسی طرح نما زمیں سدل اور منہ پر کپڑا ڈالنے کی ممانعت ہے۔ کپڑے کے دونوں سروں کو اپنے سامنے لٹکا لینے کو سدل کہتے ہیں۔
ابوہریرہ سے روایت ہے : أن رسول اﷲ نہی عن السدل فی الصلاۃ وأن یغطی الرجل فاہ (صحیح ابوداود:۵۹۷)
’’نبی نے نما زمیں سدل سے منع فرمایا ہے اور یہ کہ آدمی اپنا منہ ڈھانپے۔‘‘
جوتوں سمیت نماز

جوتے پہن کر نماز پڑھنے میں کوئی مضائقہ نہیں یہ عمل آپ سے ثابت ہے۔جس کے دلائل یہ ہیں:
شداد بن اوس سے روایت ہے کہ آپ نے فرمایا: )خالفوا الیہود فإنھم لایصلون فی نعالھم ولا خفافھم( (صحیح ابوداود:۶۰۷)
’’یہود کی مخالفت کرو پس بے شک وہ جوتوں اور موزوں میں نما زنہیں پڑھتے۔‘‘
ابوسلمہ نے انس سے دریافت کیا کہ
أکان النبی یصلي فی نعلیہ قال: نعم (صحیح بخاری:۳۸۶)
’’کیا نبی اپنے جوتوں میں نماز پڑھتے تھے ، کہنے لگے ہاں۔‘‘
لیکن یاد رہے کہ جوتا اگر بالکل صاف ہو یعنی اس پر گندگی نہ لگی ہو تب ہی اس میں نماز ادا ہوسکتی وگرنہ جوتے پہن کر نمازدرست نہیں۔
ابو سعید خدری سے روایت ہے کہ ایک دفعہ آپ صحابہ کرام کو نماز پڑھا رہے تھے۔ آپ نے اپنے جوتے اتار دیئے جب لوگوں نے دیکھا تو انہوں نے بھی اپنے جوتے اتار دیئے نماز کے بعد آپ نے ان سے پوچھا کہ تمہیں کس چیز نے مجبور کیا کہ تم اپنے جوتے اتارو؟ انہوں نے جواب دیا کہ ہم نے دیکھا کہ آپ جوتے اتار رہے ہیں تو ہم نے بھی اپنے جوتے اتار دیئے آپ نے فرمایا: مجھے تو جبریل نے خبر دی کہ تمہارے جوتوں کے نیچے گندگی ہے اور آپ نے فرمایا:
)إذا جاء أحدکم إلی المسجد فلینظر فإن رأی فی نعلیہ قذرا أو أذی فلیمسحہ ولیصل فیھما( (صحیح ابوداود:۶۰۵)
’’جب تم میں سے کوئی مسجد میں آئے تو پہلے اپنے جوتے دیکھ لے اگر ان پرگندگی وغیرہ لگی ہو تو اس کو (زمین پر) رگڑے اور ان میں نماز ادا کرے۔‘‘
لہٰذا جوتا اگر گندگی سے پاک ہو تو ان میں نماز پڑھنادرست ہے۔ تاہم آج کل مسجدوں میں قالین اور صفوں کی صفائی کے پیش نظر جوتے اتارکر نماز پڑھ لینی چاہئے آپ سے جوتے اتار کر نماز پڑھنا بھی ثابت ہے۔
عبداللہ بن عمرو بن العاص کہتے ہیں کہ
رأیت رسول اﷲ یصلي حافیا منتعلاً (ایضاً:۶۰۸)
’’ میں نے رسول اللہ کو ننگے پاؤں اور جوتے سمیت نماز پڑھتے دیکھا ہے۔‘‘
نماز میں آگے سے گزرنے والے کو نمازی روکے

نمازی کے آگے سے اگر کوئی گزر رہا ہو تو نمازی کوحکم ہے کہ وہ اپنے ہاتھ سے اسے روکے بلکہ اگر زبردستی کرنی پڑے تب بھی کوئی حرج نہیں ۔
ابو سعید سے روایت ہے کہ میں نے نبی سے سناکہ انہوں نے فرمایا: (إذا صلی أحدکم إلی شیئ یسترہ من الناس فأراد أحد أن یجتاز بین یدیہ،فلیدفعہ فإن أبی فلیقاتلہ فإنما ھو شیطان ) (صحیح بخاری:۵۰۹)
’’اگر کوئی نمازی کے آگے سے گزرنے کی کوشش کرے تو نمازی کو چاہئے کہ وہ اسے روکے اگر وہ باز نہ آئے تو اس سے لڑے کیونکہ وہ شیطان ہے۔‘‘
1.    نماز میں سلام کا جواب
نماز میں سلام کا جواب صرف ہاتھ کے اشارہ سے دیا جاسکتا ہے چونکہ نماز میں کلام نماز کو باطل کردیتا ہے اس لئے نمازی کا ہاتھ کے اشارہ سے جواب دے دینا ہی کافی ہے یا پھر نماز سے فارغ ہوکر جواب دے دیا جائے۔
عبداللہ کہتے ہیں کہ
کنا نسلم علی النبی! وھو في الصلاۃ فیرد علینا من عند النجاشی سلمنا علیہ فلم یرد علینا وقال )إن فی الصلاۃ شغلا((صحیح بخاری:۱۱۹۹)
’’آپ نماز میں ہوتے اور ہم آپ پر سلام بھیجتے تو آپ پر سلام بھیجتا تو آپ جواب دے دیتے جب ہم نجاشی(حبشہ )سے واپس آئے تو آپ کو سلام کیا آپ نے ہمیںجواب نہ دیا (بعد میں) آپ نے فرمایا کہ میں نماز میں مشغول تھا۔‘‘
صہیب سے روایت ہے کہ میں نبی کے پاس سے گزرا آپ نماز اداکررہے تھے میں نے سلام کیا تو آپ نے سلام کا جواب انگلی کے اشارے سے دیا۔ (صحیح ابوادود:۸۱۸)
1.    غسل ِواجب میں وضو شامل ہے
غسل ِواجب کے بعد دوبارہ وضو کرنا ضروری نہیں کیونکہ وضو اسی غسل میں شامل ہے یا اگر نواقض وضو میں سے کوئی عارضہ لاحق ہوجائے ، مثلاً شرمگاہ کو ہاتھ لگ جانا وغیرہ تو غسل کے بعد نماز کے لئے وضو کرنا ضروری ہوگا۔
میمونہ آپ کے غسل جنابت کا طریقہ یوں بیان کرتی ہیں:
’’فغسل کفیہ مرتین أو ثلاثا ثم أدخل یدہ فی الإناء ثم أفرغ بہ علی فرجہ وغسلہ بشمالہ ثم ضرب بشمالہ الأرض فدلکھا دلکا شدیدا ثم توضأ وضوء ہ للصلوۃ ثم أفرغ علی رأسہ ثلاث حفنات مل ء کفہ ثم غسل سائر جسدہ ثم تنحی عن مقامہ ذلک فغسل رجلیہ‘‘ (صحیح مسلم:۳۱۷)
’’پس آپ نے اپنے دونوں ہاتھ دو یا تین مرتبہ دھوئے پھر اپنا (دایاں) ہاتھ برتن میں ڈالا اور اس کے ساتھ اپنی شرمگاہ پر پانی انڈیلہ اور بائیں ہاتھ سے اسے دھویا پھر بایاں ہاتھ زمین پرمارا اور اسے اچھی طرح رگڑا پھر (سر کے مسح تک) نماز کے وضو کی طرح وضو کیا پھر تین چلو پانی بھر کر سر پر ڈالے پھرسارے بدن کو (پانی ڈال کر) دھویا پھر اپنی جگہ سے ہٹ گئے اور اپنے دونوں پاؤں کو دھویا۔‘‘
عائشہ فرماتی ہیں:’’کان رسول اﷲ یغتسل ویصلي الرکعتین وصلاۃ الغداۃ ولا أراہ یحدث وضوء ا بعد الغسل‘‘(صحیح ابوداود:۲۲۵)
’’آپ غسل کرتے اور دورکعتیں فجر کی دو رکعتیں اور فرض پڑھتے اور غسل کے بعد نیا وضو نہ کرتے تھے۔‘‘
غسل کرتے ہوئے سر کو پہلے دائیں اور پھر بائیں سے دھونا مسنون ہے۔ عائشہ فرماتی ہیں: فبدأ بشق رأسہ الأیمن ثم الأیسر(صحیح بخاری:۲۵۸)
’’پس آپ سر کے دائیں حصے سے (پانی ڈالنا) شروع کرتے پھر بائیں طرف۔‘‘
عورت کے لئے ضروری نہیںکہ وہ اپنی مینڈھیاں کھولے بلکہ اگر وہ گندھے ہوئے بالوں پرہی پانی انڈیل لیتی ہے تو اس کی اجازت ہے۔ اُمّ سلمہ کہتی ہیں کہ میں نے نبی سے پوچھا کہ میں سر پر سختی سے مینڈھیاں باندھنے والی عورت ہوں توکیا غسل جنابت کے لئے میں اس کو کھول لیا کروں۔ آپ نے فرمایا:
)لا إنما یکفیک أن تحثی علی رأسک ثلاث حثیات ثم تفیضین علیک الماء فتطھرین( (صحیح مسلم:۳۳۰)
’’نہیں نہیں یہی کافی ہے کہ تو تین لپ پانی کے اپنے سر پر ڈال لے پھراپنے اوپر پانی بہالے پس تو پاک ہوجائے گی۔‘‘
1.    نماز کی بعض ضروری اصطلاحات

تکبیر تحریمہ:
اسے ’تکبیر اولیٰ‘ بھی کہا جاتا ہے اور یہ نماز میں کھڑے ہوتے وقت اللہ اکبر کہتے ہوئے دونوں ہاتھوں کو کندھوں یا کانوں تک اٹھانا ہے۔
ثنا
دعائے استفتاح کا پڑھنا مثلاً سبحانک اللہم وبحمدک وتبارک اسمک وتعالیٰ جدک ولا الہ غیرک
قیام
تکبیر تحریمہ سے لے کر رکوع تک کا عمل
تعوذ
أعوذ باﷲ من الشیطٰن الرجیم پڑھنا
تسمیہ
بسم اﷲ الرحمن الرحیم پڑھنا
قرا ء ت
قیام میں قرآنِ مجید پڑھنا
سکتہ
نماز میں تکبیر تحریمہ کے بعد اور سورہ فاتحہ کے بعد چند لمحے خاموش رہنا
رکوع
قیام کے بعد گھٹنوں پر دونوں ہاتھ رکھ کر جھکنا
رفع یدین
رکوع جاتے، رکوع سے اٹھتے ہوئے اور تیسری رکعت سے اُٹھ کر دونوں ہاتھوں کو کانوں تک اُٹھانا
قومہ
رکوع کے بعد کھڑا ہونے کے بعد تھوڑی دیر ٹھہرنا
سجدہ
قومہ سے اس حالت میں چہرے کو زمین پر رکھنا کہ آدمی کی ٹیک سات اعضا پر ہو : دونوں ہاتھ، دونوں گھٹنے ،دونوں پاؤں اور چہرہ (ناک،پیشانی)
جلسہ
دو سجدوں کے درمیان تھوڑی دیر ٹھہرے رہنا
جلسہ استراحت
دوسرے سجدے کے بعد نئی رکعت کے لئے اٹھنے سے پہلے اتنی دیر بیٹھنا کہ جوڑ اپنی جگہ پر آجائیں۔
تشہد
نماز میں التحیات کے لئے بیٹھنا
قعدہ اولیٰ
چار رکعتوں والی نماز میں دوسری رکعت کے دوسرے سجدے کے بعد تشہد کے لئے بیٹھنا
قعدہ اخیرہ
آخری رکعت میں سلام کے لیے بیٹھنا
فراش
قعدہ اولیٰ میں دایاں پاؤں کھڑا کرنا اوربائیں پاؤں کو دوہرا کرکے اوپر بیٹھنا
تورّک
آخری قعدہ میں دائیں پاؤں کو کھڑا کرنا اور بائیں پاؤںکو پنڈلی کے نیچے سے نکال کر سیرین پر بیٹھنا
اِرسال
ہاتھوں کو قومہ کے وقت سیدھا چھوڑ دینا
سلام ؍ تحلیل
السلام علیکم کہتے ہوئے نماز کے اختتام پر دائیں بائیں منہ پھیرنا
ذراع کہنی کے سرے سے درمیانی انگلی کے سرے تک کا مکمل ہاتھ
ساعد
کہنی سے ہتھیلی تک کا حصہ
جہری نماز
جس میں امام اونچی آواز سے قراء ت کرتا ہے مثلاًمغرب ،عشائ،فجر وغیرہ
سری نماز
وہ نماز جس میں امام اونچی آواز سے قراء ت نہیں کرتا مثلاًظہر ،عصر وغیرہ
الوسطیٰ
درمیانی انگلی
السبابۃ
انگشت ِشہادت
اِبھام
انگوٹھا
1.    مختصر طریقہ نماز

نماز کے لیے قبلہ رخ کھڑے ہوں اور تکبیر کہ کر دونوں ہاتھ کندھوں یاکانوں تک اٹھائیں اور سینہ پر ہاتھ باندھ لیں۔
ثنا کے بعد سورہ فاتحہ پڑھیں اور تعوذ وتسمیہ کے بعد قرآن میں سے کچھ پڑھیں،سری نمازوں میں آہستہ اور جہری نمازوں میں امام اونچی آواز میں پڑھے۔
سورہ فاتحہ کے بعد تکبیر کہتے ہوئے رفع الیدین کریں اور رکوع میں چلے جائیں اور رکوع کی تسبیح بیان کریں۔
رکوع کے بعد سمع اﷲ لمن حمدہ کہتے ہوئے اور رفع الیدین کرتے ہوئے قومہ میں آ جائیں۔
قومہ میں تھوڑی دیر ٹھہرنے کے بعد تکبیر کہتے ہوئے سجدے میں چلے جائیں۔ سات اعضا(دونوں گھٹنے،دونوں ہاتھ،دونوں پنجے، ناک اور ماتھا) کی ٹیک پر سجدہ کرتے ہوئے تسبیحات واَدعیہ ماثورہ پڑھیں۔
تکبیر کہہ کر سجدے سے سر اٹھائیں اور بائیں پاؤں کو دہرا کر کے دائیں کو گاڑ کر بیٹھ جائیں اور دو سجدوں کے درمیانی جلسہ کی دعا پڑھیں۔
تکبیر کہہ کر سجد ے میں چلے جائیں اور پہلے سجدہ والی دعائیں دہرائیں۔
تکبیر کہہ کر سجدہ سے سر اٹھا لیں اور تھوڑی دیر کے لیے جلسہ اِستراحت کریں اور دوسری رکعت کے لیے اٹھ کھڑے ہوں۔
پہلی رکعت کی طرح دوسری رکعت میں بھی وہی اُمور ملحوظ رکھیں اگر چار رکعت نماز ہے تو دوسری رکعت میں دوسرے سجدے کے بعد تشہد بیٹھ جائیں اس کا طریقہ بھی جلسہ میں بیٹھنے کا ہے کہ دایاں پاؤں کھڑا کریں اور بائیں پاؤں کوبچھا کر بیٹھ جائیں اپنے ہاتھوں کو اپنے گھٹنوں پر رکھیں کہ دائیں ہاتھ کی انگلیاں بند ہوں۔ درمیانی انگلی کے سرے کو انگوٹھے کی جڑ میں رکھ کر شہادت کی انگلی کوسونتتے ہوئے قبلہ کی طرف اشارہ کریں اور انگلی کو تھوڑا سا خمیدہ رکھیں۔
تشہد میں التحیات اور درودشریف پڑھیں۔
تیسری رکعت کے لیے تکبیر کہہ کر کھڑے ہو جائیں اور رفع الیدین کریں۔
باقی سارا عمل پہلی رکعت کی طرح ادا کریں اس طرح چوتھی رکعت میں تشہد میں تورّک کریں اور ہاتھوں کی پوزیشن قعدہ اولیٰ کی طرح رکھیں، لیکن اس میں درود کے بعد انگلی کا اشارہ مسلسل کرتے جائیں۔درود کے بعد دعائیں پڑھیں اور دائیں بائیں السلام علیکم ورحمۃ اﷲ السلام علیکم ورحمۃ اﷲ کہتے ہوئے سلام پھیر دیں۔
مفصل طریقہ نماز
تکبیر تحریمہ
رسول اللہﷺ جب نماز کے لئے کھڑے ہوتے تو قبلہ (خانہ کعبہ) کی طرف رخ کرتے رفع الیدین کرتے اور فرماتے : اﷲ أکبر
دلیل: عن أبی حمید الساعدی قال: کان رسول اﷲ إذا قام إلی الصلاۃ استقبل القبلۃ،ورفع یدیہ وقال: )اﷲ أکبر) (ابن ماجہ:۸۰۳)
اور آپ(ﷺ) نے فرمایا: جب تو نماز کے لئے کھڑا ہو تو تکبیر کہہ۔
دلیل: قال رسول اﷲ! )إذا قمت إلی الصلاۃ فکبر)(صحیح بخاری:۷۵۷، صحیح مسلم: ۳۹۷)
ہاتھوں کے اٹھانے کی کیفیت
آپ اپنے دونوں ہاتھ کندھوں تک اٹھاتے تھے۔
دلیل:عن عبد اﷲ أنہ قال: رأیت رسول اﷲ إذا قام فی الصلاۃ رفع یدیہ حتی تکونا حذو منکبیہ (صحیح بخاری:۷۳۶، صحیح مسلم:۳۹۰)
یہ بھی ثابت ہے کہ آپ اپنے دونوں ہاتھ کانوں تک اٹھاتے۔
دلیل: عن مالک بن الحویرث: أن رسول اﷲ! کان إذا کبر رفع یدیہ حتی یحاذی بھما أذنیہ (صحیح مسلم:۳۹۱)
لہٰذا دونوں طرح جائز ہے، لیکن زیادہ حدیثوں میں کندھوں تک رفع الیدین کرنے کا ثبوت ہے۔ یاد رہے کہ رفع الیدین کرتے وقت ہاتھوں کے ساتھ کانوں کا پکڑنا یا چھونا کسی دلیل سے ثابت نہیں۔مردوں کا ہمیشہ کانوں تک اورعورتوں کا کندھوں تک رفع یدین کرنا کسی صحیح حدیث سے ثابت نہیں ہے۔
آپ(انگلیاں) پھیلا کر رفع یدین کرتے تھے۔
دلیل:عن أبی ہریرۃ قال:کان رسول اﷲ إذا دخل فی الصلاۃ رفع یدیہ مدًا (ابوداود:۷۵۳)
تکبیر تحریمہ کے بعد ہاتھ باندھنا
آپ اپنا دایاں ہاتھ اپنے بائیں ہاتھ پر سینے پر رکھتے تھے۔
دلیل:
(عن الھلب) قال:رأیت النبی! ینصرف عن یمینہ وعن یسارہ ورأیتہ قال:یضع ھذہ علی صدرہ وصف یحیی الیمنی علی الیسری فوق المفصل (مسند احمد:۵؍۲۲۶)
لوگوں کو (رسول اللہﷺ کی طرف سے)یہ حکم دیا جاتاتھا کہ نماز میں دایاں ہاتھ بائیں ذراع پر رکھیں۔
عن سھل بن سعد قال: کان الناس یؤمرون أن یضع الرجل یدہ الیمنی علی ذراعہ الیسری فی الصلاۃ (صحیح بخاری:۷۴۰)
پھر آپ نے اپنا دایاں ہاتھ اپنی بائیں ہتھیلی کلائی اور ساعد پر رکھا۔
دلیل:
عن وائل بن حجر:ثم وضع یدہ الیمنی علی ظھرکفہ الیسری والرسغ والساعد (ابوداود:۷۲۷)
اگر ہاتھ پوری ذراع (ہتھیلی، کلائی اور ہتھیلی سے کہنی تک) پر رکھا جائے تو خود بخود ناف سے اوپر اور سینہ پر آجاتا ہے۔
مردوں کا ناف سے نیچے اور صرف عورتوں کا سینہ پر ہاتھ باندھنا (یہ تخصیص) کسی حدیث سے ثابت نہیں ہے۔
استفتاح
رسول اللہ(ﷺ) تکبیر (تحریمہ) اور قرأت کے درمیان درج ذیل دعا (سراً یعنی بغیر جہر کے) پڑھتے تھے۔
) اَللّٰھُمَّ بَاعِدْ بَیْنِیْ وَبَیْنَ خَطَایَایَ کَمَا بَاعَدْتَ بَیْنَ الْمَشْرِقِ وَالْمَغ

واللہ اعلم۔۔
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Kya Auraton ko Be Parda aur Aazad khyal ka Banane me Mard Jimmedar Nahi hai?

Kya Auraton ko be Parda aur Be Nakab karne me Ham Sharik nahi hai?


Jab hm Ek Shauhar Ke Shakal me Yah Chahte hai ke Meri Biwi ko koi na dekhe aur wah hamesa Parde ka Ehteram kare jabke iske Barakash (ulta) hm Girl Friend wali Na jayez talluqat me Apni Girlfriend se Yah Sb kyu nahi chahte, balke Ulte Use Skirt aur Jeans me Dekhne chahte hai, use kabhi Parde ke bare me nahi kahte ya Salwar Soot Ke bare me bhi nahi kahte balke Uski aur jyada Tarif karte hai aur Hausla Afzai bhi aur Hm fir bhi yahi Ummid rakhte hai ke Meri hone wali Biwi Pak Daman Bahut hi nek aur Farma bardar hongi kyu?

 
Jab Hm hi Dusro ka Daman Dagdar karenge to Hmare Qismat me kaise Pak Daman hongi Jra Soche?


क्या औरतों को आज बे पर्दा और बे हिजाब करने में, उसे बे बाक बनाने में मर्द हजरात जिम्मेदार नहीं है?


जब इसलाम मर्द और औरत दोनों के लिए पर्दे का हुक्म दिया है तो फिर सिर्फ पर्दा औरतों के लिए ही क्यों मर्द को भी निगाहें नीची रखने का हुक्म है लिहाजा उसे भी अपनी नजरें नीची रखनी चाहिए ताकि गैर मेहरम यानी दूसरों की बहन बेटी को मुझ से तकलीफ ना पहुंचे और कोई उसपे बुरी नजर नहीं डाले, अगर आप अपनी घर की औरतों की इज्ज़त आे एहतेराम चाहते है तो दूसरों बहन और बेटी  को भी इज्ज़त ओ एहतराम दीजिए। इंशा अल्लाह आपकी औरतें भी महफूज़ रहेंगी।


کیا عورتوں کو بے پردہ اور بے حجاب کرنے میں آج مرد حضرات ذمّہ دار نہیں ہے؟

 
ﺁﺝ ﮐﯽ ﻋﻮﺭﺕ ﮐﻮ ﺑﮯ ﺣﺠﺎﺏ ﺍﻭﺭ ﺑﮯ ﺑﺎﮎ ﮐﺮﻧﮯ ﻣﯿﮟ ﻣﺮﺩ ﺑﮭﯽ ﺑﺮﺍﺑﺮ ﮐﺎ ﺫﻣﮧ ﺩﺍﺭ ﮨﮯ
ﺍﮐﺜﺮ ﺩﯾﮑﮭﺎ ﮔﯿﺎ ﮨﮯ ﮐﮧ ﻋﻮﺭﺕ ﮐﯽ ﺍﺻﻼﺡ ﮐﮯ ﻟﯿﮯ ﮐﻮﺋﯽ ﺑﺎﺕ ﮐﯽ ﺟﺎﺗﯽ ﮨﮯ ﺗﻮ ﮐﭽﮫ ﻣﺮﺩ ﺣﻀﺮﺍﺕ ﺑﮍﮮ ﺟﻮﺷﯿﻠﮯ ﺍﻧﺪﺍﺯ ﻣﯿﮟ ﺍﻇﮩﺎﺭ ﺧﯿﺎﻝ ﮐﺮﻧﺎ ﺷﺮﻭﻉ ﮐﺮ ﺩﯾﺘﮯ ﮨﯿﮟ ﺟﯿﺴﮯ ﻭﮦ ﻣﻮﻗﻊ ﮐﯽ ﺗﻼﺵ ﻣﯿﮟ ﮨﻮﮞ ﮐﮧ ﮐﺐ ﺍﻧﮩﯿﮟ ﻋﻮﺭﺕ ﺫﺍﺕ ﭘﺮ ﺗﻨﻘﯿﺪ ﮐﺮﻧﮯ ﮐﺎ ﻣﻮﻗﻊ ﻣﻠﮯ ﺍﻭﺭ ﻭﮦ ﺍﭘﻨﺎ ﺯﮨﺮ ﺍُﮔﻠﯿﮟ
ﻣﺜﺎﻝ ﮐﮯ ﻃﻮﺭ ﭘﺮ


ﺁﺝ ﮐﻞ ﮐﯽ ﻋﻮﺭﺗﻮﮞ ﺳﮯ ﷲ ﺑﭽﺎﺋﮯ ۔ ﯾﺎ ﭘﮭﺮ ﯾﮧ ﮐﮧ ﮐﺎﺵ ﺍﻥ ﻋﻮﺭﺗﻮﮞ ﮐﻮ ﺳﻤﺠﮫ ﺁ ﺟﺎﺋﮯ ‛ ﻭﻏﯿﺮﮦ ﻭﻏﯿﺮﮦ

ﺑﻌﺾ ﺍﻭﻗﺎﺕ ﮐﭽﮫ ﻣﺮﺩﻭﮞ ﮐﮯ ﺍﻋﺘﺮﺍﺿﺎﺕ ﭨﮭﯿﮏ ﺑﮭﯽ ﮨﻮﺗﮯ ﮨﯿﮟ ﻣﮕﺮ ﯾﮧ ﺑﮭﯽ ﺳﻮﭼﺎ ﮐﺮﯾﮟ ﮐﮧ ﭘﺎﻧﭽﻮﮞ ﺍﻧﮕﻠﯿﺎﮞ ﺑﺮﺍﺑﺮ ﻧﮩﯿﮟ ﮨﻮﺗﯿﮟ ﺟﯿﺴﮯ ﻣﺮﺩﻭﮞ ﻣﯿﮟ ﺍﭼﮭﮯ ﺍﻭﺭ ﺑُﺮﮮ ﺩﻭﻧﻮﮞ ﻟﻮﮒ ﭘﺎﺋﮯ ﺟﺎﺗﮯ ﮨﯿﮟ ﺑﺎﻟﮑﻞ ﺍﺳﯽ ﻃﺮﺡ ﻋﻮﺭﺗﻮﮞ ﻣﯿﮟ ﺑﮭﯽ ﺁﭖ ﮐﻮ ﻣﺎﮈﺭﻥ ﺍﻭﺭ ﻓﯿﺸﻦ ﺯﺩﮦ ﺧﻮﺍﺗﯿﻦ ﮐﮯ ﺳﺎﺗﮫ ﺍﯾﺴﯽ ﺧﻮﺍﺗﯿﻦ ﺑﮭﯽ ﺩﯾﮑﮭﻨﮯ ﮐﻮ ﻣﻠﯿﮟ ﮔﯽ ﺟﻦ ﮐﯽ ﺯﻧﺪﮔﯽ ﺍﯾﺜﺎﺭ ﻭ ﻗﺮﺑﺎﻧﯽ ﮐﯽ ﺟﯿﺘﯽ ﺟﺎﮔﺘﯽ ﻣﺜﺎﻝ ﮨﻮ ﮔﯽ
ﮨﻤﺎﺭﮮ ﻣﻌﺎﺷﺮﮮ ﮐﺎ ﺍﻟﻤﯿﮧ ﯾﮧ ﮨﮯ ﮐﮧ ﮨﻢ ﻋﻮﺭﺕ ﺳﮯ ﮨﺮ ﺭﻭﭖ ﻣﯿﮟ ﺻﺮﻑ ﻗﺮﺑﺎﻧﯽ ﮨﯽ ﻣﺎﻧﮕﺘﮯ ﮨﯿﮟ ﺍﺳﮯ ﻭﮦ ﻣﻘﺎﻡ ﻧﮩﯿﮟ ﺩﯾﺘﮯ ﺟﻮ ﺍﺳﻼﻡ ﻧﮯ ﺍﺳﮯ ﺩﯾﺎ ﮨﮯ.


ﺍﺳﻼﻡ ﻧﮯ ﺍﭘﻨﮯ ﺩﻭﺭ ﻣﯿﮟ ﻋﻮﺭﺕ ﮐﻮ ﺗﺤﻔﻆ ﺍﻭﺭ ﺣﻘﻮﻕ ﺩﯾﺌﮯ ﺟﺐ ﭘﻮﺭﯼ ﺩﻧﯿﺎ ﻣﯿﮟ ﻋﻮﺭﺕ ﮐﻮ ﭘﺎﺅﮞ ﮐﯽ ﺟﻮﺗﯽ ﺳﮯ ﺑﮭﯽ ﺑﺪﺗﺮ ﺳﻤﺠﮭﺎ ﺟﺎﺗﺎ ﺗﮭﺎ ﺍﺳﻼﻡ ﻣﯿﮟ ﻋﻮﺭﺗﻮﮞ ﮐﮯ ﺣﻘﻮﻕ ﻣﺮﺩﻭﮞ ﮐﮯ ﺑﺮﺍﺑﺮ ﮨﯿﮟ ﺟﻮ ﺍﮐﺜﺮ ﺍﺩﺍ ﻧﮩﯿﮟ ﮐﯿﮯ ﺟﺎﺗﮯ


ﺑﮯ ﺷﮏ ﻋﻮﺭﺕ ﮐﮯ ﺑﺤﺜﯿﯿﺖ ﻣﺎﮞ ۔ ﺑﮩﻦ ۔ ﺑﯿﻮﯼ ﺍﻭﺭ ﺑﯿﭩﯽ ﮐﮯ ﻓﺮﺍﺋﺾ ﮨﯿﮟ ﺟﻨﮩﯿﮟ ﭘﻮﺭﺍ ﮐﺮﻧﺎ ﺍﺱ ﮐﺎ ﺍﻭﻟﯿﻦ ﻓﺮﺽ ﮨﮯ
ﻣﮕﺮ ﺁﭖ ﮐﮯ ﺑﮭﯽ ﺑﺤﺜﯿﯿﺖ ﺑﺎﭖ ﺑﮭﺎﺋﯽ ﺍﻭﺭ ﺷﻮﮨﺮ ﮐﮯ ﺑﮭﯽ ﺑﮩﺖ ﺳﮯ ﻓﺮﺍﺋﺾ ﮨﯿﮟ ﺟﻦ ﺳﮯ ﺁﭖ ﭘﮩﻠﻮ ﺗﮩﯽ ﻧﮩﯿﮟ ﮐﺮ ﺳﮑﺘﮯ


ﺁﭖ ﮐﻮ ﺗﻨﻘﯿﺪ ﮐﺎ ﺣﻖ ﺻﺮﻑ ﺍﺱ ﺻﻮﺭﺕ ﻣﯿﮟ ﺣﺎﺻﻞ ﮨﮯ ﺟﺐ ﺁﭖ ﺑﺤﺜﯿﯿﺖ ﻣﺮﺩ ﺍﭘﻨﮯ ﻓﺮﺍﺋﺾ ﭘﻮﺭﯼ ﻃﺮﺡ ﻧﺒﮭﺎ ﺭﮨﮯ ﮨﻮﮞ
ﺁﺝ ﮐﮯ ﺍﮐﺜﺮ ﻣﺮﺩﻭﮞ ﮐﺎ ﯾﮧ ﺷﮑﻮﮦ ﮨﮯ ﮐﮧ ﺁﺝ ﮐﯽ ﻋﻮﺭﺕ ﺑﮯ ﺑﺎﮎ ﮨﻮ ﮔﺌﯽ ﮨﮯ ﺑﮯ ﺣﺠﺎﺏ ﮨﻮ ﮔﺌﯽ ﮨﮯ ﻣﮕﺮ ﮐﯿﺎ ﮐﺒﮭﯽ ﺁﭖ ﻧﮯ ﯾﮧ ﺑﮭﯽ ﺳﻮﭼﺎ ﮨﮯ ﮐﮧ ﺍﯾﺴﺎ ﮐﯿﻮﮞ ﮨﻮﺍ؟


ﺍﯾﺴﺎ ﮐﺲ ﻟﯿﮯ ﺍﻭﺭ ﮐﺲ ﻃﺮﺡ ﮨﻮﺍ ﮨﮯ؟


ﺁﭖ ﺟﺘﻨﺎ ﺑﮭﯽ ﺍﺱ ﺣﻘﯿﻘﺖ ﺳﮯ ﺍﺧﺘﻼﻑ ﮐﺮﯾﮟ ﻣﮕﺮ ﺍﺱ ﺳﭽﺎﺋﯽ ﮐﻮ ﻧﮩﯿﮟ ﺟﮭﭩﻼﯾﺎ ﺟﺎ ﺳﮑﺘﺎ ‏) ﺟﮭﭩﻼ ﺳﮑﺘﮯ ‏( ﮐﮧ ﺁﺝ ﮐﯽ ﻋﻮﺭﺕ ﮐﻮ ﺑﮯ ﺑﺎﮎ ﺍﻭﺭ ﺑﮯ ﺣﺠﺎﺏ ﮐﺮﻧﮯ ﻭﺍﻟﮯ ﺁﭖ ﻣﺮﺩ ﺣﻀﺮﺍﺕ ﮨﯿﮟ
ﺗﻠﺦ ﺳﮩﯽ ﻣﮕﺮ ﯾﮧ ﺑﺎﺕ ﺳﻮ ﻓﯿﺼﺪ ﺳﭻ ﮨﮯ ﮐﮧ ﻣﺮﺩ ﮐﺎ ﻗﺼﻮﺭ ﯾﮧ ﮨﮯ ﮐﮧ ﻋﻮﺭﺕ ﮐﮯ ﻣﻌﺎﻣﻠﮯ ﻣﯿﮟ ﺑﮩﺖ ﺑﮍﺍ ﻣﻨﺎﻓﻖ ﻭﺍﻗﻊ ﮨﻮﺍ ﮨﮯ
ﻣﻄﻠﺐ ﯾﮧ ﮐﮧ ﻣﺮﺩ ﺧﻮﺩ ﺗﻮ ﭘﻮﺭﯼ ﻋﯿﺎﺷﯽ ﭼﺎﮨﺘﺎ ﮨﮯ ﯾﻌﻨﯽ ﺍﯾﮏ ﺑﮭﺎﺋﯽ ﮐﯽ ﺣﺜﯿﯿﺖ ﮐﮯ ﻃﻮﺭ ﭘﺮ ﻭﮦ ﯾﮧ ﭼﺎﮨﺘﺎ ﮨﮯ ﮐﮧ ﺍﺳﮑﯽ ﺑﮩﻦ ﭘﺮ ﮐﺴﯽ ﮐﯽ ﻧﻈﺮ ﻧﮧ ﭘﮍﮮ ﺍﻭﺭ ﺧﻮﺩ ﮐﺴﯽ ﮐﯽ ﺑﮩﻦ ﮐﻮ ﮔﺮﻝ ﻓﺮﻧﯿﮉ Girl Friend ﺑﻨﺎﻧﮯ ﻣﯿﮟ ﮐﻮﺋﯽ ﻋﺎﺭ ‏) ﺷﺮﻡ ‏( ﻣﺤﺴﻮﺱ ﻧﮧ ﮐﺮﮮ ﺍﻭﺭ ﺍُﺱ ﮐﮯ ﺳﺎﺗﮫ ﮈﯾﭧ ﭘﺮ ﺟﺎﺋﮯ


ﺍﻭﺭ ﺍﯾﮏ ﺷﻮﮨﺮ ﮐﮯ شکل ﻣﯿﮟ ﯾﮧ ﭼﺎﮨﺘﺎ ﮨﮯ ﮐﮧ ﺍﺱ ﮐﯽ ﺑﯿﻮﯼ ﮐﻮ ﮐﻮﺋﯽ ﻧﮧ ﺩﯾﮑﮭﮯ ﺍﻭﺭ ﺧﻮﺩ ﻏﯿﺮ ﻣﺤﺮﻡ ﻋﻮﺭﺕ ﺳﮯ ﺭﺍﮦ ﺭﺳﻢ ﺑﻨﺎﺋﮯ ﺭﮐﮭﮯ


ﮔﺮﻝ ﻓﺮﻧﯿﮉ Girl Friend ﮐﻮ ﻭﮦ ﭨﯽ ﺷﺮﭦ ﺳﮑﺮﭦ ﺍﻭﺭ ﺟﯿﻨﺰ ﻣﯿﮟ ﺩﯾﮑﮭﻨﺎ ﭼﺎﮨﮯ ﺍﻭﺭ ﺍُﺱ ﮐﮯ ﺳﺎﺗﮫ ﮨﺮ ﺟﮕﮧ ﺟﺎ ﺳﮑﺘﺎ ﮨﮯ ﻟﯿﮑﻦ ﺍﭘﻨﯽ ﺑﯿﻮﯼ ﮐﻮ ﻭﮦ ﺷﻠﻮﺍﺭ ﻗﻤﯿﺾ ﻣﯿﮟ ﮨﯽ ﺩﯾﮑﮭﻨﺎ ﭘﺴﻨﺪ ﮐﺮﮮ ﮔﺎ ﺍﻭﺭ ﺳﺐ ﺳﮯ ﺑﮍﮪ ﮐﺮ ﺑﺎﺕ ﺟﺐ ﺍﭘﻨﯽ ﺑﮩﻦ ﮐﯽ ﮨﻮ ﺗﻮ ﭘﮭﺮ ﺍﺱ ﺳﮯ ﺑﮍﺍ ﻏﯿﺮﺕ ﻣﻨﺪ ﺍﻭﺭ ﮐﻮﺋﯽ ﻧﮩﯿﮟ ﮨﻮ ﮔﺎ ﺍﺱ ﮐﺎ ﮐﺴﯽ ﮐﮯ ﺳﺎﺗﮫ ﭼﮑﺮ ﻧﮑﻞ ﺁﯾﺎ ﺗﻮ ﭘﮭﺮ ﻣﺮﻧﮯ ﻣﺎﺭﻧﮯ ﭘﺮ ﺗُﻞ ﺟﺎﺗﮯ ﮨﯿﮟ
ﯾﮧ ﺳﺐ ﮐﯿﺎ ﮨﮯ ؟


ﯾﮧ ﻣﻨﺎﻓﻘﺖ ﮨﯽ ﺗﻮ ﮨﮯ ﻧﺎ؟؟؟؟

ﻋﻮﺭﺕ ﺍﮔﺮ ﻓﺘﻨﮧ ﮨﮯ ﺗﻮ ﺍﺱ ﮐﻮ ﻓﺘﻨﮧ ﺑﻨﺎﻧﮯ ﻣﯿﮟ ﻣﺮﺩﻭﮞ ﮐﺎ ﺑﮭﯽ ﺑﺮﺍﺑﺮ ﮐﺎ ﻋﻤﻞ ﺩﺧﻞ ﮨﮯ ﻟﮩﺰﺍ ﻣﺮﺩ ﺍﭘﻨﮯ ﺁﭖ ﮐﻮ ﺍﺱ ﺍﻟﺰﺍﻡ ﺳﮯ ﺑﺮﯼ ﺍﻟﺬﻣﮧ ﻗﺮﺍﺭ ﻧﮩﯿﮟ ﺩﮮ ﺳﮑﺘﮯ
ﺍﺳﻼﻡ ﻧﮯ ﺟﮩﺎﮞ ﻋﻮﺭﺗﻮﮞ ﮐﻮ ﭘﺮﺩﮮ ﮐﺎ ﺣﮑﻢ ﺩﯾﺎ ﮨﮯ ﻭﮨﯿﮟ ﻣﺮﺩﻭﮞ ﮐﻮ ﺑﮭﯽ ﺍﭘﻨﯽ ﻧﻈﺮﯾﮟ ﻧﯿﭽﯽ ﺭﮐﮭﻨﮯ ﮐﺎ ﺣﮑﻢ ﺩﯾﺎ ﮨﮯ۔
ﺁﭖ ﺍﮔﺮ ﭘﺮﺩﮮ ﮐﮯ ﺣﺎﻣﯽ ﮨﯿﮟ ﺗﻮ ﺳﺐ ﺳﮯ ﭘﮩﻠﮯ ﺧﻮﺩ ﺳﮯ ﺷﺮﻭﻋﺎﺕ ﮐﯿﺠﯿﺌﮯ ﺍﭘﻨﯽ ﻧﮕﺎﮨﻮﮞ ﮐﻮ ﻧﯿﭽﮯ ﺭﮐﮭﻨﮯ ﮐﯽ ﻋﺎﺩﺕ ﮈﺍﻟﯿﮯ ﺟﺐ ﺁﭖ ﮐﯽ ﻧﻈﺮﻭﮞ ﻣﯿﮟ ﺷﺮﻡ ﻭ ﺣﯿﺎﺀ ﭘﯿﺪﺍ ﮨﻮ ﺟﺎﺋﮯ ﮔﯽ ﺗﻮ ﺩﻝ ﻣﯿﮟ ﺑﮭﯽ ﺍﺣﺘﺮﺍﻡ ﮐﺎ ﺟﺰﺑﮧ ﺟﺎﮔﮯ ﮔﺎ


ﺍﭘﻨﮯ ﮔﮭﺮﻭﮞ ﮐﺎ ﻣﺎﺣﻮﻝ ﭨﮭﯿﮏ ﮐﯿﺠﯿﺌﮯ ۔ ﻣﻨﺪﺭﻭﮞ ﮐﯽ ﮔﮭﻨﭩﯿﺎﮞ ﺑﺠﺎﺗﮯ ﮐﯿﺒﻞ ﮐﮯ ﭘﺮﻭﮔﺮﺍﻣﺰ ﺩﯾﮑﮭﻨﺎ ﺑﻨﺪ ﮐﯿﺠﯿﺌﮯ ﺍﻭﺭ ﺍﺳﻼﻣﯽ ﻣﺎﺣﻮﻝ ﻣﺘﻌﺎﺭﻑ ﮐﺮﻭﺍﺋﯿﮯ ﺟﺲ ﮐﺎ ﮨﻢ ﻣﯿﮟ ﺳﮯ ﺍﮐﺜﺮ ﮐﻮ ﺑﺪ ﻗﺴﻤﺘﯽ ﺳﮯ ﻋﻠﻢ ﮨﯽ ﻧﮩﯿﮟ ﮨﮯ ﺍﭘﻨﯽ ﻣﺎﺅﮞ ﺑﮩﻨﻮﮞ ﮐﻮ ﭘﺮﺩﮮ ﮐﯽ ﺗﺎﮐﯿﺪ ﮐﯿﺠﯿﺌﮯ۔


ﺍﮔﺮ  ﺁﭖ ﺍﭘﻨﮯ ﮔﮭﺮ ﮐﯽ ﻋﻮﺭﺗﻮﮞ ﮐﮯ ﻟﯿﮯ ﻋﺰﺕ ﻭ ﺍﺣﺘﺮﺍﻡ ﭼﺎﮨﺘﮯ ﮨﯿﮟ ﺗﻮ ﭘﮭﺮ ﺩﻭﺳﺮﻭﮞ ﮐﯽ ﻣﺎﺅﮞ ﺑﮩﻨﻮﮞ ﮐﻮ ﺑﮭﯽ ﻋﺰﺕ ﻭ ﺍﺣﺘﺮﺍﻡ ﺩﯾﺠﯿﺌﮯ۔


ﻣﺠﮭﮯ ﺍﻣﯿﺪ ﮨﮯ ﮐﮧ ﺁﭖ ﺍﺱ ﺑﺎﺕ ﺳﮯ ﺿﺮﻭﺭ ﺍﺗﻔﺎﻕ ﮐﺮﯾﮟ ﮔﮯ ﮐﮧ ﺟﺐ ﮨﻢ ﺍﭘﻨﯽ ﺍﭘﻨﯽ ﺍﺻﻼﺡ ﮐﺮﻧﮯ ﮐﺎ ﺍﺭﺍﺩﮦ ﮐﺮ ﻟﯿﮟ ﺗﻮ ﻣﻌﺎﺷﺮﮮ ﮐﯽ ﺍﺻﻼﺡ ﺑﺎﺁﺳﺎﻧﯽ ﻣﻤﮑﻦ ﮨﻮ ﺟﺎﺗﯽ ﮨﮯ۔
ﷲ ﮐﺮﯾﻢ ﮨﻢ ﺳﺐ ﮐﻮ ﮔﻨﺎﮨﻮﮞ ﮐﯽ ﺩﻟﺪﻝ ﻣﯿﮟ ﮈﻭﺑﻨﮯ ﺳﮯ ﺑﭽﺎﺋﮯ ﺍﻭﺭ ﮨﻤﯿﮟ ﺩﯾﻦ ﮐﻮ ﺳﻤﺠﮭﻨﮯ ﮐﯽ ﺍﻭﺭ ﺍﺳﮑﯽ ﺗﻌﻠﯿﻤﺎﺕ ﭘﺮ ﻋﻤﻞ ﮐﺮﻧﮯ ﮐﯽ ﺗﻮﻓﯿﻖ ﻋﻄﺎ ﻓﺮﻣﺎﺋﮯ۔ آمین ثمہ آمین

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