Hindu Mazhab Me Ling Ki Pooja | hindu dharm Ki Haqeeqat
![]() |
| Ling Ki Puja. |
आर्य पशुओं से भी सम्भोग करते थे. दाम ने हिरनी से और सूर्य ने घोड़ी से सम्भोग किया. अश्वमेध यज्ञ में औरत का मृत घोड़े से सम्भोग कराया जाता था.”
(देखें, महाराष्ट्र सरकार द्वारा प्रकाशित, डॉ.बाबासाहब आंबेडकर राइटिंग्स एंड स्पीचेज़ खंड ३ के पृष्ठ १५३-१५७)
स्वामी दयानंद ने, यजुर्वेद भाष्य (पृष्ठ ७८८) में लिखा है: अश्विम्याँ छागेन सरस्वत्यै मेशेगेन्द्रय ऋषमें (यजुर्वेद २१/६०)
अर्थात: प्राण और अपान के लिए दु:ख विनाश करने वाले छेरी आदि पशु से, वाणी के लिए मेढ़ा से, परम ऐश्वर्य के लिए बैल से-भोग करें.
वेदों में दर्ज कुछ और नमूने अश्लील नमूने :-
इन्द्राणी कहती है :- न सेशे ……………..उत्तर: (ऋगवेद १०.८६.१६)
अर्थ :- हे इन्द्र, वह मनुष्य सम्भोग करने में समर्थ नहीं हो सकता, जिसका पुरुषांग (लिंग) दोनों जंघाओं के बीच लम्बायमान है वही समर्थ हो सकता है, जिस के बैठने पर रोमयुक्त पुरुषांग बल का प्रकाश करता है अर्थात इन्द्र सब से श्रेष्ठ है. इस पर इन्द्र कहता है.
न सेशे………...उत्तर. (ऋग्वेद १०-८६-१७)
अर्थ :- वह मनुष्य सम्भोग करने में समर्थ नहीं हो सकता, जिसके बैठने पर रोम-युक्त पुरुषांग बल का प्रकाश करता है. वही समर्थ हो सकता है, जिसका पुरुषांग दोनों जंघाओं के बीच लंबायमान है।
न मत्स्त्री………………………..उत्तर: (ऋग्वेद १०-८६-६)
अर्थ :- मुझ से बढ़कर कोई स्त्री सौभाग्यवती नहीं है. मुझ से बढ़कर कोई भी स्त्री पुरुष के पास शरीर को प्रफुल्लित नहीं कर सकती और न मेरे समान कोई दूसरी स्त्री सम्भोग के दौरान दोनों जाँघों को उठा सकती है.
ताम…………………….शेमम. (ऋग्वेद १०-८५-३७)
अर्थ :- हे पूषा देवता, जिस नारी के गर्भ में पुरुष बीज बोता है, उसे तुम कल्याणी बनाकर भेजो, काम के वश में होकर वह अपनी दोनों जंघाओं को फैलाएगी और हम कामवश उसमें अपने लिंग से प्रहार करेंगे.
(देखें, महाराष्ट्र सरकार द्वारा प्रकाशित, डॉ.बाबासाहब आंबेडकर राइटिंग्स एंड स्पीचेज़ खंड ३ के पृष्ठ १५३-१५७)
स्वामी दयानंद ने, यजुर्वेद भाष्य (पृष्ठ ७८८) में लिखा है: अश्विम्याँ छागेन सरस्वत्यै मेशेगेन्द्रय ऋषमें (यजुर्वेद २१/६०)
अर्थात: प्राण और अपान के लिए दु:ख विनाश करने वाले छेरी आदि पशु से, वाणी के लिए मेढ़ा से, परम ऐश्वर्य के लिए बैल से-भोग करें.
वेदों में दर्ज कुछ और नमूने अश्लील नमूने :-
इन्द्राणी कहती है :- न सेशे ……………..उत्तर: (ऋगवेद १०.८६.१६)
अर्थ :- हे इन्द्र, वह मनुष्य सम्भोग करने में समर्थ नहीं हो सकता, जिसका पुरुषांग (लिंग) दोनों जंघाओं के बीच लम्बायमान है वही समर्थ हो सकता है, जिस के बैठने पर रोमयुक्त पुरुषांग बल का प्रकाश करता है अर्थात इन्द्र सब से श्रेष्ठ है. इस पर इन्द्र कहता है.
न सेशे………...उत्तर. (ऋग्वेद १०-८६-१७)
अर्थ :- वह मनुष्य सम्भोग करने में समर्थ नहीं हो सकता, जिसके बैठने पर रोम-युक्त पुरुषांग बल का प्रकाश करता है. वही समर्थ हो सकता है, जिसका पुरुषांग दोनों जंघाओं के बीच लंबायमान है।
न मत्स्त्री………………………..उत्तर: (ऋग्वेद १०-८६-६)
अर्थ :- मुझ से बढ़कर कोई स्त्री सौभाग्यवती नहीं है. मुझ से बढ़कर कोई भी स्त्री पुरुष के पास शरीर को प्रफुल्लित नहीं कर सकती और न मेरे समान कोई दूसरी स्त्री सम्भोग के दौरान दोनों जाँघों को उठा सकती है.
ताम…………………….शेमम. (ऋग्वेद १०-८५-३७)
अर्थ :- हे पूषा देवता, जिस नारी के गर्भ में पुरुष बीज बोता है, उसे तुम कल्याणी बनाकर भेजो, काम के वश में होकर वह अपनी दोनों जंघाओं को फैलाएगी और हम कामवश उसमें अपने लिंग से प्रहार करेंगे.







No comments:
Post a Comment